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में अकेला छोड़ बाकी मुसाफिरों को उनकी मंज़िल पर पहुंचाने निकल चुकी थी। मेघना भी अपना बैग उठाये स्टेशन पर खड़ी थी। अब उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे। अचानक खयाल आया उसके बैग में मामा जी के घर का एड्रेस पड़ा है। उसने जल्दी से बैग टटोला ओर एड्रेस वाला पर्चा निकाला तो उसकी सांस में सांस आयी। स्टेशन से निकल कर अब उसे ऑटो वाले के पास जा कर बस मामा जी के एड्रेस पर पहुंचना था। उसे लगा अब सब मुश्किल आसान हो गयी और बस वो मामा जी के घर पहुंच ही चुकी है। स्टेशन से निकली तो कोई ऑटो वाला उस एड्रेस पर जाने को तैयार नहीं था। सब दूर बता कर मना कर रहे थे “अरे मैडम इतनी रात को हम नहीं जायँगे इतनी दूर, आप कोई और ऑटो देख लो” ऑटो वाला ऐसा कह कर दूसरी सवारी बैठा कर चला गया। मेघना की बंधी हिम्मत टूटने लगी थी। गहरी होती रात, अकेली लड़की और अनजान शहर। इधर उधर ऑटो को देखती परेशान हो रही थी तभी उसकी नज़र सामने से आते उन्ही 4-5 लड़कों पर पड़ी जो बार बार उसे ट्रेन में देख रहे थे। मेघना की रही सही हिम्मत भी टूटने लगी। उन्हें सामने से आता देख एक