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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Aapka bohot- bohot AabhaarMujhe tu Ramesh ,nirdosh sidh hota lagta hai. Badi der baad koi jasusi novel padh rhi hu, aisa lga aap ki yeh suspenseful update padh kr.
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Nice update...# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Amazing# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Ab Maja aayega na bidu# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
Shandar jabardast update# 26
मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?
माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।
"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।
"माया देवी।"
"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"
माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।
"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।
"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,
"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"
"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"
"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।
मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"
माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।
"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।
“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"
"क्या हुआ उस रात ?"
"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,
"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।
“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।
"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"
"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"
"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,
"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"
"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।
"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।
“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"
वह कुछ रुकी।
"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"
"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,
"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"
"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"
"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।
"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"
माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।
"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"
इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।
"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।
जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।
"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"
इस बार रोमेश ने टोका !
"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"
"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"
"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"
"ऑर्डर…ऑर्डर !"
न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।
"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।
"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"
"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"
विजय कुछ रुका।
"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"
उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।
बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,
"एनी क्वेश्चन ?"
"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,
"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"
विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।
“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।
"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "
"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"
"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”
न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।
किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।
रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।
"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"
जारी रहेगा .....……![]()
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है#:12
बटाला की गिरफ्तारी का समाचार ही सनसनी खेज था।
सावंत मर्डर केस ने अब एक नया मोड़ ले लिया था। इस नए मोड़ के सामने आते ही स्वयं मायादास एडवोकेट रोमेश के घर पर आ पहुँचा।
"बटाला से वह स्टेनगन भी बरामद कर ली गई है, जिससे मर्डर हुआ।" रोमेश ने कहा।
"तुम किस मर्ज की दवा हो, उसे फौरन जमानत पर बाहर करो भई।" मायादास ने कहा !
"अपनी फीस बोलो, लेके आया हूँ।" उसने अपना ब्रीफकेस रोमेश की तरफ सरकाते हुए कहा।
"मायादास जी, बेशक आप माया में खेलते रहते हैं। लेकिन आपकी जानकारी के लिए मैं सिर्फ इतना बता देना काफी समझता हूँ कि मैंने अपनी आज तक की वकालत की जिन्दगी में किसी मुजरिम का केस नहीं लड़ा, जिसके बारे में मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल उसी ने किया, अलबत्ता उसे मैं फाँसी के तख्ते पर पहुंचाने में तो मदद कर सकता हूँ, मगर उसका केस लड़ने की तो सोच भी नहीं सकता।"
"मेरा ख्याल है कि तुम नशे में नहीं हो।"
"आपका ख्याल दुरुस्त है मायादास जी, मैं नशे में नहीं हूँ।"
"मगर तुमने तो कहा था, तुम केस लड़ोगे।"
"उस वक्त मैं नशे में रहा होऊंगा।"
"आई सी! नशे में न हम हैं न आप। मैं आपसे केस लड़वाने आया हूँ और आप उसे फाँसी चढ़ाने की सोच बैठे हैं।"
"दूसरे वकील बहुत हैं।"
"नहीं, मिस्टर रोमेश सक्सेना ! वकील सिर्फ तुम ही हो, हम जे.एन. साहब के पी.ए. हैं, और जे.एन. साहब जो कहते हैं, वो ही होना होता है।" मायादास ने फोन का रुख अपनी तरफ किया। जब तक वह नम्बर डायल करता रहा, तब तक सन्नाटा छाया रहा। नम्बर मिलते ही मायादास ने कहा,
"सी.एम. साहब से बात कराओ हम मायादास।" कुछ पल बाद।
"हाँ सर, हम मायादास बोल रहे हैं सर, आपने जिस वकील को पसन्द किया था, उसका नाम रोमेश सक्सेना ही है ना ?"
"हाँ , रोमेश ही है, क्यों ?" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"वो केस लड़ने से इंकार करता है। वो वकील कहता है, बटाला को फाँसी पर चढ़ना होगा।"
"उसको फोन दो।" मायादास ने रोमेश की तरफ घूरकर देखा और फिर रिसीवर रोमेश को थमा दिया।
"लो तुम खुद बात कर लो, सी .एम. बोलते हैं।"
रोमेश ने रिसीवर लिया और क्रेडिल पर रखकर कनेक्शन काट दिया।
"बहुत गड़बड़ हो गई मिस्टर वकील।" मायादास उठ खड़ा हुआ,
"तुम जे.एन. साहब को नहीं जानते, इसका मतलब तो वह बताएंगे कि बटाला को पकड़वाने मैं तुम्हारा भी हाथ हो सकता है, क्यों कि इंस्पेक्टर विजय तुम्हारा मित्र भी है।"
"मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
"ठीक है, हम चलते हैं।" जाते-जाते ड्राइंग रूम में खड़ी सीमा पर मायादास ने नजर डाली। उसकी आँखों में एक शैतानी चमक आई, फिर वह मुस्कराया और रोमेश के फ्लैट से बाहर निकल गया।
"तुमने उसे नाराज करके अच्छा नहीं किया रोमेश।" सीमा बोली ,
"कम से कम ये तो सोच लिया होता कि वह मुख्यमंत्री का पी .ए. है। जनार्दन नागा रेड्डी अगर चाहे, तो जज तक को उसका कहा मानना पड़ेगा, तुम तो मामूली से वकील हो।"
"मैं मामूली वकील नहीं हूँ मैडम ! इस गलतफहमी में मत रहना, यह मेरा बिजनेस है। आप इसमें दखल न दें, तो बहुत मेहरबानी होगी। बटाला ने एक एम.पी. का मर्डर किया है। एम.पी. का। जो जनता का चुना हुआ प्रतिनिधि होता है, उसने लाखों लोगों का मर्डर किया है, किसी एक का नहीं, समझी आप।"
"मैं तो सिर्फ़ इतना समझती हूँ कि हमें चीफ मिनिस्टर से दुश्मनी नहीं लेनी चाहिये।" इतना कहकर सीमा अन्दर चली गई। उसी दिन रात को रोमेश ने एक फोन रिसीव किया।
"हैल्लो रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर खामोशी टूटी।
"हम जे.एन. बोल रहे हैं, जनार्दन नागा रेड्डी , चीफ मिनिस्टर।"
"कहिये ।"
"कल कोर्ट में हमारा आदमी पेश किया जायेगा, तुम उसके लिए कल वकालत नामा पेश करोगे और उसे तुरन्त जमानत पर रिहा कराओगे, यह हमारा हुक्म है। हम बड़े जिद्दी हैं, हमने भी तय कर लिया है कि तुम ही यह केस लड़ोगे और तुम ही बटाला को रिहा करवाओगे, पसन्द आई हमारी जिद।" इससे पहले कि रोमेश कुछ बोलता , दूसरी तरफ से फोन कट गया।
"गो टू हेल।" रोमेश ने रिसीवर पटक दिया। सुबह वह नित्यक्रम के अनुसार ठीक समय पर कोर्ट के लिए रवाना हो गया। कोई खास बात नहीं थी, इससे पहले भी कई लोग उसे धमकी दे चुके थे, परन्तु उसका मन कभी विचलि त नहीं हुआ था। न जाने आज क्यों उसे बेचैनी-सी लग रही थी। मुम्बई की समुद्री हवा भी उसे अजनबी सी लग रही थी। कोर्ट में उसका मन नहीं लगा। बटाला को पेश किया गया था कोर्ट में, किसी वकील ने उसकी पैरवी नहीं की। अगले तीन दिन की तारीख लगा दी। रोमेश को यह अजीब-सा लगा कि बटाला की पैरवी के लिए कोई वकील नहीं किया गया था। न जाने क्यों उसका दिल असमान्य रूप से धड़कने लगा। शाम को वह घर के लिए रवाना हुआ। वह अपने फ्लैट पर पहुंचा, उसने बेल बजाई। दरवाजा कुछ पल बाद खुला, लेकिन दरवाजा खोलने वाला न तो उसका नौकर था, न सीमा।
एक अजनबी सा फटा-फटा चेहरा नजर आया, जो दरवाजे के बीच खड़ा था। अजीब-सा लम्बा तगड़ा व्यक्ति जो काली जैकेट और पतलून पहने था।
"सॉरी।" रोमेश ने समझा, उसने किसी और के फ्लैट की बेल बजा दी है, "
मैंने अपना फ्लैट समझा था।"
"फ्लैट आपका ही है ।" उस व्यक्ति ने रास्ता दिया, "आइये, आइये।" रोमेश सकपका गया,
"त… तुम।"
"हम तो थोड़ी देर के लिए आपके मेहमान हैं।" रोमेश ने धड़कते दिल से अन्दर कदम रखा, फ्लैट की हालत उसे असामान्य सी लग रही थी, बड़ा अजीब-सा सन्नाटा छाया था। उस शख्स ने रोमेश के अन्दर दाखिल होते ही दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया और रोमेश के पीछे चलने लगा।
"म… मगर…!" रोमेश पलटा।
"बैडरूम में।" उस व्यक्ति ने पीले दाँत चमकाते हुए कहा। रोमेश तेजी के साथ बैडरूम में झपट पड़ा। वहाँ पहुंचते-पहुंचते उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं और फिर बैडरूम का दृश्य देखते ही उसकी आँख फट पड़ी, वह जोर से चीखा- "सीमा !"
तभी रिवॉल्वर की नाल उसकी गुद्दी से चिपक गई।
"अब मत चिल्लाना।"
यह उस शख्स की आवाज थी, जिसने दरवाजा खोला था। उसके हाथ में अब रिवॉल्वर था। उसने रोमेश को एक कुर्सी पर धकेल दिया। एक शख्स खिड़की के पास पर्दा डाले खड़ा था। उसके हाथ में जाम था। वह धीरे- धीरे पलटा, जैसे ही उसका चेहरा सामने आया, रोमेश एक बार फिर तिलमिला उठा।
"हरामी ! साले !! मायादास !!!"
बाकी के शब्द मायादास ने पूरे किये,
"बाँध दो इसे।"
कमरे में दो बदमाश और मौजूद थे। उन्हों ने फ़ौरन रोमेश की मुश्कें कसनी शुरू कर दी। रोमेश को इस बीच में एक झापड़ भी पड़ गया था, जिसमें उसका होंठ फट गया। मायादास ने जाम रोमेश के चेहरे पर फेंका ।
"अभी हमने सिर्फ तुम्हारी बीवी के कपड़े उतारे हैं, इसके साथ ऐसा कुछ नहीं किया, जो या तो यह मर जाये या तुम आत्महत्या कर लो। हम तो तुम्हें सिर्फ नमूना दिखाने आये थे, तुम चाहो तो बान्द्रा पुलिस को फोन कर सकते हो, वहाँ से भी कोई मदद नहीं मिलने वाली।"
मायादास घूमकर सीमा के पास पहुँचा। सीमा का मुंह टेप से बन्द किया हुआ था, उसके हाथ पाँव बैड पर बंधे थे और उसके तन पर एक भी कपड़ा नहीं था।
"डियर स्वीट बेबी, तुम अभी भी बहुत हसीन लग रही हो, दिल तो हमारा बहुत मचल रहा है, मगर सी .एम. साहब का हुक्म है कि हम दिल को सम्भालकर रखें, क्यों कि आगे का काम करने का शौक उन्हीं का है।"
''हरामजादे।" रोमेश चीखा। रोमेश के एक थप्पड़ और पड़ा।
"साले अपने आपको हरिश्चन्द्र समझता है।" मायादास गुर्राया,
"अभी तेरे को हम तीन दिन की मोहलत देने आये हैं। जे.एन. साहब की जिद यही है कि तू ही बटाला को छुड़ायेगा। तीन दिन बाद तेरी बीवी के साथ जे.एन. साहब के नाजायज सम्बन्ध बन जायेंगे, इसके बाद इसे हम सबके हवाले कर दिया जायेगा। तेरा नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है, पानी छिड़क देना , होश आजायेगा।"
मायादास उस समय सिगरेट पी रहा था। उसने सिगरेट सीमा के सीने पर रखकर बुझाई। सीमा केवल तड़पती रह गई, मुँह बन्द होने के कारण चीख भी न सकी। मायादास ने कहा और बाहर निकल गया। उन सबके जाते ही रोमेश हाँफता हुआ जल्दी से उठा। उसकी आँखों में आँसू आ गये थे। उसकी प्यारी पत्नी को इस रूप में देखकर ही रोमेश काँप गया था। उसने सीमा के बन्धन खोले, उसके मुंह से टेप हटाया।
"म… मुझे माफ कर दो डार्लिंग ! मैं बेबस था।"
"शटअप !"
सीमा इतनी जोर से चीखी कि उसे खांसी आ गई, "
"आज के बाद तुम्हारा मेरा कोई वास्ता नहीं रहा, क्यों कि तीन दिन बाद मेरी जो गत बनने वाली है, वह मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती।"
सीमा रोती हुई वार्डरोब की तरफ भागी, टॉवल लपेटा और सीधे बाथरूम में चली गई।
"सीमा प्लीज।" वह बाथरूम से ही चीख रही थी,
"आज के बाद हमारा कोई रिश्ता नहीं रहा राजा हरिश्चन्द। मैं अब तुम जैसे कंगले वकील के पास एक पल भी नहीं रहूँगी समझे ?"
"सीमा, मेरी बात तो सुनो, मैं अभी पुलिस को फोन करता हूँ।"
रोमेश ड्राइंगरूम में पहुंचा, पुलिस को फोन मिलाया। बान्द्रा थाने का इंचार्ज अपनी ड्यूटी पर मौजूद था।
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ।"
"यही कहना है ना कि आपके फ्लैट पर मायादास जी कुछ गुण्डों के साथ आये और आपकी बीवी को नंगा कर दिया।"
"त… तुम्हें कैसे मालूम ?"
"वकील साहब, जब तक रेप केस न हो जाये, पुलिस को तंग मत करना, मामूली छेड़छाड़ के मुकदमे हम दर्ज नहीं करते। सॉरी … ।"
फोन कट गया। सीमा अपनी तैयारियों में लग चुकी थी। उसने अपने कपड़े एक सूटकेस में डाले और रोमेश उसे लाख समझाता रहा, मगर सीमा ने एक न सुनी।
"मुझे एक मौका और दो प्लीज।" रोमेश गिड़गिड़ाया।
"एक मौका !" वह बिफरी शेरनी की तरह पलटी,
"तो सुनो, जिस दिन तुम मेरे अकाउंट में पच्चीस लाख रुपया जमा कर दोगे, उस दिन मेरे पास आना, शायद तुम्हें तुम्हारी पत्नी वापिस मिल जाये।"
"पच्चीस लाख? पच्चीस लाख मैं कहाँ से लाऊंगा ? मैं तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं जी सकता।"
"चोरी करो, डाका डालो, कत्ल करो, चाहे जो करो, पच्चीस लाख मेरे खाते में दिखा दो, सीमा तुम्हें मिल जायेगी, वरना कभी मेरी ओर रुख मत करना, कभी नहीं।"
"क… कब तक ? "
"सिर्फ एक महीना।"
"प्लीज ऐसा न करो, दस जनवरी को तो हमारी शादी की वर्षगांठ है। प्लीज मैं तुम्हें वह अंगूठी ला दूँगा।"
"नहीं चाहिये मुझे अंगूठी।" रोमेश ने बहुत कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी और उसे छोड़कर चली गई। फ्लैट से बाहर रोमेश ने टैक्सी को रोकने की भी कौशिश की, परन्तु सीमा नहीं रुकी। रोमेश हताश सा वापिस फ्लैट में पहुँचा।
रोमेश को ध्यान आया कि नौकर बाथरूम में बेहोश पड़ा है। उसने तुरन्त नौकर पर पानी छिड़का। उसे होश आ गया।
"तू जा कर पीछा कर, देख तो सीमा कहाँ गई है ?"
"क… क्या हो गया मालकिन को साहब ?"
"पता नहीं वह हमें छोड़कर चली गई, जा देख। बाहर देख, टैक्सी कर, कुछ भी कर, उसे बुलाकर ला।"
नौकर नंगे पाँव ही बाहर दौड़ पड़ा। रोमेश के कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करे, क्या न करे? उसका होंठ सूखा हुआ था। बायीं आंख के नीचे भी नील का निशान और सूजन आ गई थी, लेकिन इस सबकी तरफ तो उसका ध्यान ही न था। वह सिगरेट पर सिगरेट फूंक रहा था और उसकी अक्ल जैसे जाम हो कर रह गई थी। फिर उसने विजय का नम्बर मिलाया। विजय फोन पर मिल गया।
"विजय बटाला को छोड़ दे, फ़ौरन छोड़ दे उसे।" रोमेश पागलों की तरह बोल रहा था,
"नहीं छोड़ेगा, तो मैं छुड़ा लूँगा उसे। और सुन, तेरे पास पच्चीस लाख रुपया है?" फोन पर बातचीत से ही विजय ने समझ लिया, दाल में काला है।
"मैं आ रहा हूँ।" विजय ने कहा।
''हाँ जल्दी आना, पच्चीस लाख लेकर आना।"
पन्द्रह मिनट बाद ही विजय और वैशाली रोमेश के फ्लैट पर थे। नौकर तब तक खाली हाथ लौट आया था। दरवाजे पर ही उसने विजय को सारी बात समझा दी। अब विजय और वैशाली का काम था, रोमेश को ढांढस बंधाना।
"पुलिस में रिपोट दर्ज करो उसकी।" विजय बोला।
"न…नहीं। नहीं वह कह रहा था, जब तक रेप नहीं होता, कोई मुकदमा नहीं बनता।"
"प्लीज, आपको क्या हो गया सर?" वैशाली के तो आँखों में आंसू आ गये।
"लीव मी अलोन।"
अचानक रोमेश हिस्टीरियाई अंदाज में चीख पड़ा,
"वह मुझे छोड़कर चली गई, तो चली जाये, चली जाये।"
रोमेश बैडरूम में घुसा और उसने दरवाजा अन्दर से बन्द कर लिया।
"मेरे ख्याल से वैशाली, तुम यहीं रहो। भाभी के इस तरह जाने से रोमेश की दिमागी हालत ठीक नहीं है, मैं जरा बान्द्रा थाने होकर जाता हूँ। देखता हूँ कि कौन थाना इंचार्ज है, जो रेप से नीचे बात ही नहीं करता।"
जारी रहेगा.....![]()
अब कोई शंकर रेड्डी cm को मारने के लिए रोमेष को 25 लाख दे रहा है रोमेश एक दलदल में फंसता जा रहा है#.13
दो दिन बाद रोमेश बैडरूम से बाहर निकला। इस बीच उसने कुछ खाया पिया न था।
उसने पुलिस से मदद लेने से भी इन्कार कर दिया। वैशाली इन दो दिनों उसी फ्लैट पर थी और कौशिश कर रही थी कि रोमेश अपनी रूटीन की जिन्दगी में लौट आये। इस बीच रोमेश बराबर शराब पीता रहा था।
वैशाली अन्तत: अपनी कौशिश में कामयाब हुई।
रोमेश ने स्नान किया और नाश्ते की टेबिल पर आ गया।
"सीमा का कोई फोन तो नहीं आया?" रोमेश ने पूछा।
"आप धीरज रखिये, हम सीमा भाभी को मना कर ले ही आयेंगे, वह भी तो आपको बहुत चाहती हैं। दो चार दिन में गुस्सा उतर जायेगा, आ जायेंगी।"
"और किसी का फोन मैसेज वगैरा?"
"कोई शंकर नागा रेड्डी है, तीन-चार बार उसका फोन आया था। वह आपसे मुलाकात का वक्त तय करना चाहता है।"
"शंकर नागा रेड्डी, मैंने तो यह नाम पहली बार सुना, हाँ जनार्दन नागा रेड्डी का नाम जरूर जेहन से चिपक सा गया है।"
"जनार्दन नहीं शंकर नागा रेड्डी।"
"क्यों मिलना चाहता है?"
"किसी केस के सम्बन्ध में।"
"केस क्या है?"
"यह तो उसने नहीं बताया, उसका फोन फिर आयेगा। आप समय तय कर लें, तो मैं उसे बता दूँ।"
"ठीक है, आज शाम सात बजे का समय तय कर लेना। मैं घर पर ही हूँ, कहीं नहीं जाऊंगा। फिलहाल कोर्ट के मैटर तुम देख लेना।"
"वह तो मैं देख ही रही हूँ सर, उसकी तरफ से आप चिन्ता न करें।"
दोपहर एक बजे शंकर का फोन फिर आया। वैशाली ने मुलाकात का समय तय कर दिया। दिन भर रोमेश, वैशाली के साथ शतरंज खेलता रहा। विजय भी एक चक्कर लगा गया था, उसने भी एक बाजी खेली, सब सामान्य देखकर उसने वैशाली की पीठ
थपथपायी।
"पुलिस में मामला मत उठाना।" रोमेश बोला, "वैसे तो मैं खुद बाद में यह मामला उठा सकता था। मगर इससे मेरी बदनामी होगी, कैसे कहूँगा कि मेरी बीवी …।"
"ठीक है, मैं समझ गया।"
"जिनके साथ बलात्कार होता है, पता नहीं वह महिला और उसके अभिवावकों पर क्या गुजरती होगी, जब वह कानूनी प्रक्रिया से गुजरते होंगे। कल बटाला को पेश किया जाना है ना?"
"हाँ, मुझे उम्मीद है रिमाण्ड मिल जायेगा और उसकी जमानत नहीं होगी। एम.पी . सावन्त की पत्नी भी सक्रिय है, वह बटाला की किसी कीमत पर जमानत नहीं होने देंगे।
मुझे उम्मीद है जब मैं जे.एन. को __________लपेटूंगा, तो पूरी लाठी मेरे हाथ होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि कोई आन्दोलन खड़ा हो जाये।"
"तुम काम करते रहो।" रोमेश ने कहा।
सात बजे शंकर नागा रेड्डी उससे मिलने आया। रोमेश सोच रहा था कि वह शख्स अधेड़ आयु का होगा किन्तु शंकर एकदम जवान पट्ठा था। रंगत सांवली जरूर थी किन्तु व्यक्तित्व आकर्षक था। लम्बा छरहरा बदन और चेहरे पर फ्रेंचकट दाढ़ी थी।
"मुझे शंकर नागा रेड्डी कहते हैं।"
"हैल्लो !" रोमेश ने हाथ मिलाया और शंकर को बैठने का संकेत किया।शंकर बैठ गया।
फ्लैट का एक कमरा रोमेश का दफ्तर होता था। दायें बायें अलमारियों में कानून की किताबें भरी हुई थीं। मेज की टॉप पर इन्साफ की देवी का एक छोटा बुत रखा हुआ था, बायीं तरफ टाइपराइटर था।
"कहिए, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?"
"मेरा एक केस है, मैं वह केस आपको देना चाहता हूँ ? "
"केस क्या है ?"
"कत्ल का मुकदमा।"
"ओह, क्या आप मेरे बारे में कुछ जानकारी रखते हैं ?"
"जी हाँ, कुछ नहीं काफी जानकारी रखता हूँ। मसलन आप एक ईमानदार वकील हैं। किसी अपराधी का केस नहीं लड़ते। आप पहले केस को इन्वेस्टीगेट करके खुद पता करते हैं कि जिसकी आप पैरवी करने जा रहे हैं, वह निर्दोष है या नहीं।"
"बस-बस इतनी जानकारी पर्याप्त है। अब बताइये कि किसका मर्डर हुआ और किसने किया ?"
"मर्डर अभी नहीं हुआ और जब मर्डर हुआ ही नहीं, तो हत्यारा भी अभी कोई नहीं है।"
"क्या मतलब ?"
"पहले तो आप यह जान लीजिये कि मैं आपसे केस किस तरह का लड़वाना चाहताहूँ, मुझे मर्डर से पहले इस बात की गारंटी चाहिये कि मर्डर में जो भी अरेस्ट होगा,वह बरी होगा और यह गारंटी मुझे एक ही सूरत में मिल सकती है।"
"वह सूरत क्या है ?"
"यह कि मर्डर आप खुद करें।"
"व्हाट नॉनसेंस।" रोमेश उछल पड़ा, "तुम यहाँ एक वकील से बात करने आए हो या किसी पेशेवर कातिल से।"
"मैं जानता हूँ कि जब आप खुद किसी का कत्ल करेंगे, तो दुनिया की कोई अदालत आपको सजा नहीं दे पायेगी, यही एक गारन्टी है।"
"बस अब तुम जा सकते हो।"
"रास्ता मुझे मालूम है वकील साहब, लेकिन जाने से पहले मैं दो बातें और करूंगा !!
पहली बात तो यह कि मैं उस केस की आपको कुल मिला कर जो रकम दूँगा, वह पच्चीस लाख रुपया होगा।"
"प…पच्चीस लाख ! तुम बेवकूफ हो क्या, अरे किसी पेशेवर कातिल से मिलो , हद से हद तुम्हारा काम लाख दो लाख में हो जायेगा, फिर पच्चीस लाख।"
रोमेश को एकदम ध्यान आया कि सीमा ने इतनी ही रकम मांगी थी,
"प…पच्चीस लाख ही क्यों ?
"पच्चीस लाख क्यों ? अच्छा सवाल है। बिना शक कोई पेशेवर कातिल बहुत सस्ते में यह काम कर देगा, लेकिन उस हालत में देर-सवेर फंदा मेरे गले में ही आकर गिरेगा और आपके लिए मैंने यह रकम इसलिये लगाई है, क्यों कि मैं जानता हूँ, इससे कम में आप
शायद ऐसा डिफिकल्ट केस नहीं लेंगे।"
रोमेश ने उसे घूरकर देखा।
"दूसरी बात क्या थी ?"
"आपने यह तो पूछा ही नहीं, कत्ल किसका करना है। दूसरी बात यह है, हो सकता है कि कत्ल होने वाले का नाम सुनकर आप तैयार हो जायें, उसका नाम है जनार्दन
नागा रेड्डी। "
"ज…जनार्दन…?"
"हाँ वही, चीफ मिनिस्टर जनार्दन नागा रेड्डी यानि जे.एन.। मैं जानता हूँ कि जब आप यह कत्ल करोगे, तो अदालत आपको रिहा भी करेगी और मुझ तक पुलिस कभी न पहुंच सकेगी।"
"नेवर, यह नहीं होगा, यह हो ही नहीं सकता।"
"यह रहा मेरा कार्ड, इसमें मेरा फोन नम्बर लिखा है। अगर तैयार हो, तो फोन कर देना, मैं आपको दस लाख एडवांस भिजवा दूँगा। बाकी काम होने के बाद।"
"अपना विजिटिंग कार्ड टेबिल पर रखकर शंकर नागा रेड्डी गुडबाय करता हुआ बाहर निकल गया।
रोमेश ने कार्ड उठाया और उसके टुकड़े-टुकड़े करके डस्टबिन में फेंक दिया।
"कैसे-कैसे लोग मेरे पास आने लगे हैं।"
अगले दिन रोमेश को पता चला कि पर्याप्त सबूतों के अभाव के कारण बटाला को जमानत हो गई, विजय उसकी रिमाण्ड नहीं ले सका। उसके आधे घण्टे बाद मायादास का फोन आया।
"देखा हमारा कमाल, वह अगली तारीख तक बरी भी हो जायेगा। तुम जैसे वकीलों की औकात क्या है, तुमसे ऊपर जज होता है साले ! अब हम उस दरोगा की वर्दी उतरायेंगे।
तू उसकी वर्दी बचाने के लिए पैरवी करना, जरूर करना और तब तुझे पता चलेगा कि मुकदमा तू भी हार सकता है। क्यों कि तू उसकी वर्दी नहीं बचा पायेगा, जे.एन. से टक्कर लेने का अंजाम तो मालूम होना ही चाहिये।"
रोमेश कुछ नहीं बोला। फोन कट गया।
जारी रहेगा.....![]()
रोमेश ने अपने हालातो और असूलो के आगे हार मानकर शंकर का ऑफर कबूल कर लिया है वह जे एन का कत्ल करने को तैयार हो गया है उसने अपने ऑफिस का उत्तराधिकारी वैशाली को बना दिया है साथ ही वैशाली को भी यही कहा है कि कभी किसी निर्दोष को सजा ना हो पाए# 14
उस रात तेज बारिश हो रही थी, रोमेश बरसती घटाओं को देख रहा था। बिजली चमकती, बादल गरजते, वह बे-मौसम की बरसात थी। वह खिड़की पर खड़ा सोच रहा
था कि क्या सीमा अब कभी उसकी जिन्दगी में नहीं लौटेगी? उसकी दुनिया में यह अचानक कैसी आग लग गई ?ञवह शराब पीता रहा। जनार्दन नागा रेड्डी इस तबाही का एकमात्र जिम्मेदार था।
ऐसे लोगों के सामने कानून बेबस खड़ा होता है, कानून की किताब रद्दी का कागज बन जाती है। पुलिस ऐसे लोगों की रक्षक बनकर खड़ी हो जाती है, तो फिर कानून किसके लिए है? किसके लिए वकील लड़ता है? यहाँ तो जज भी बिकते हैं। ऐसे लोगों को सजा नहीं मिलती? क्यों? क्यों है यह विधान?
"आज मेरे साथ हुआ, कल विजय के साथ होगा। हो सकता है कि वैशाली के साथ भी वैसा ही हादसा हो? आने वाले कल में वह विजय की पत्नी है। मेरे और विजय के
करीब रहने वाले हर शख्स को खतरा है।"
उसे लगा, जैसे दूर खड़ी सीमा उसे बुला रही है। लेकिन वह जा नहीं पा रहा है। उसके पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हैं और वह बेड़ियाँ एक ही सूरत से कट सकती है, पच्चीस लाख !
पच्चीस लाख !! पच्चीस लाख !!!
पच्चीस लाख मिल सकता है। शर्त सिर्फ एक ही है, जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल। कानून की आन भी यही कहती है कि ऐसे अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिये ।
क्या फर्क पड़ता है, उसे फांसी पर जल्लाद लटकाए या वह खुद ? कानून की आन रखनेके लिए अगर वह जल्लाद बन भी जाता है, तो हर्ज क्या है? क्या पुलिस, बदमाशों को मुठभेड़ में नहीं मार गिराती ?
मैं यह कत्ल करूंगा, जनार्दन नागा रेड्डी अब तुझे कोई नहीं बचा सकता।
सुबह रोमेश डस्टबिन से विजि टिंग कार्ड के टुकड़े तलाश कर रहा था, संयोग से डस्टबिन साफ नहीं हुआ था और कार्ड के टुकड़े मिल गये। रोमेश उन टुकड़ों को जोड़कर फोन नम्बर उतारने लगा।
शंकर का फोन नम्बर अब उसके सामने था। उसने फोन पर नम्बर डायल करना शुरू कर दिया।
शंकर दस लाख लेकर आ गया। उसने ब्रीफकेस रोमेश की तरफ खिसका दिया।
"गिन लीजिये, दस लाख हैं।"
"मुझे यकीन है कि दस लाख ही होंगे।" रोमेश ने कहा और ब्रीफकेस उठा कर एक तरफ रख दिया ।
"साथ में मेरी ओर से बधाई।"
"बधाई किस बात की ?"
"कत्ल करने और उसके जुर्म में बरी होने के लिए। आप जैसे काबिल आदमी की इस देश में जरूरत ही क्या है, मैं आपको अमेरिका में स्टैब्लिश कर सकता हूँ।"
"वह मेरा पर्सनल मैटर है कि मैं कहाँ रहूंगा, अभी हम केस पर ही बात करेंगे। पहले मुझे यह बताओ कि तुम यह कत्ल क्यों करवाना चाहते हो और तुम्हारा बैकग्राउण्ड क्या है, क्या तुम उसके कोई नाते रिश्तेदार हो ?"
"नागा रेड्डी तो हजारों हो सकते हैं, फिलहाल मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे पाऊंगा। हाँ, जब मुकदमा खत्म हो जायेगा, तब आप मुझसे इस सवाल का जवाब भी पा लेंगे।"
"तुमने यह भी कहा था कि कोई पेशेवर कातिल इस काम को करेगा, तो तुम पकड़े जाओगे।"
"हाँ, यह सही है। इसलिये मैं यह चाहता हूँ कि इस कत्ल को कोई पेशेवर न करे। आपको यह बात अच्छी तरह जाननी होगी कि कत्ल आपके ही हाथों होना हैं और बरी भी आपको होना है। यही दो बातें इस सौदे में हैं।"
"ठीक है, काम हो जायेगा।"
"मैं जानता हूँ, शत प्रतिशत हो जायेगा। एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना चाहूँगा। मैं अखबार, रेडियो और टी .वी . पर यह खबर सुनने के लिए बेताब रहूँगा। जैसे ही यह खबर मुझे मिलेगी, मैं बाकी रकम लेकर आपके पास चला आऊँगा।"
दोनों ने हाथ मिलाया और शंकर लौट गया।
अब रोमेश ने एक नयी विचारधारा के तहत सोचना शुरू कर दिया।
"मुझे यह रकम बहुत जल्दी खत्म कर देनी चाहिये।" रोमेश ने घूंसा मेज पर मारते हुए कहा,
"यह मुकदमा सचमुच ऐतिहासिक होगा।"
कुछ देर बाद ही रोमेश कोर्ट पहुँचा। उसने अपनी मोटरसाइकिल सर्विस के लिए दे दी और चैम्बर में पहुंचते ही उसने आवश्यक कागजात देखे और कुछ फाइलें देखीं और फिर अपने केबिन में वैशाली को बुलाया।
"आज मैं तुम्हें एक विशेष दर्जा देना चाहता हूँ।" रोमेश ने कहा।
"क्या सर ?"
"आज के बाद यह जितने भी केस पेंडिंग पड़े हैं और जितनी भी पैरवी मैं कर रहा हूँ, वह सब तुम करोगी।"
"मगर...। "
"पहले मेरी बात पूरी सुनो। ध्यान से सुनो। गौर से सुनो। आज के बाद मैं इस
चैम्बर में नहीं आऊँगा, इसकी उत्तराधिकारी तुम हो। मैं पूरे पेपर साइन करके इसकी ऑनरशिप तुम्हें दे रहा हूं, क्यों कि मैं एक संगीन मुकदमे से दो चार होने जा रहा हूँ। एक ऐसा मुकदमा, जो कभी किसी वकील ने नहीं लड़ा होगा। यह मुकदमा अदालत से बाहर लड़ा जाना है। हाँ, इसका अन्त अदालत में ही होगा।"
"मैं कुछ समझी नहीं सर।"
"मैंने जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल कर देने का फैसला किया है, कातिल बनने के बाद मुझे इस चैम्बर में आने का हक नहीं रह जायेगा, मेरी वकालत की दुनिया का यह आखिरी मुकदमा होगा।"
"आप क्या कह रहे हैं?" वैशाली का दिल बैठने लगा।
"हाँ, मैं सच कह रहा हूँ। इसलिये ध्यान से सुनो, आज के बाद तुम मेरे फ्लैट पर भी कदम नहीं रखोगी। तुम्हें अपने जीवन में मेरी पहचान बनना है। यह बात विजय को भी समझा देना कि वह मुझसे दूर रहे। मैंने आज अपने घरेलू नौकर को भी हटा देना है।"
"सर, मैं आपके लिए कुछ मंगाऊं?"
"नहीं, अभी इतनी खुश्की नहीं आई कि पानी पीना पड़े। चैम्बर का चार्ज सम्भालो और लगन से अपने काम पर जुट जाओ। अगर तुम कभी सरकारी वकील भी बनो, तब
भी एक बात का ध्यान रखना कि कभी भी किसी निर्दोष को सजा न होने पाये। यह तुम्हारा उसूल रहेगा। अपने पति को इतना प्यार देना, जितना कभी किसी पत्नी ने न दिया हो। जीवन में सिर्फ आदर्शों का महत्व होता है, पैसे का नहीं होता। विजय भी मेरी तरह का शख्स है, कभी उसे चोट न पहुँचे। यह लो, ये वह फाइल है, जिसमें तुम्हें इस चैम्बर की ऑनरशिप दी जाती है।"
वैशाली की आंखें डबडबा आयीं। वह कुछ बोली नहीं।
रोमेश उसका कंधा थपथपाता हुआ बाहर निकल गया। जाते जाते उसने कहा,
"कभी मेरे घर की तरफ मत आना। यह मत सोचना कि मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हूँ। मैं ठीक हूँ, बिल्कुल ठीक। और मेरा फैसला भी ठीक ही है।" रोमेश बाहर निकल गया।
रोमेश ने काम शुरू कर दिया। सबसे पहले जे.एन. के बारे में जानकारियां प्राप्त करने का काम था।
उसकी पिछली जिन्दगी की जानकारी, उसकी दिनचर्या क्या है? कौन उसके करीब हैं? उसे क्या-क्या शौक हैं ?
रोमेश ने तीन दिन में ही काफी कुछ जानकारियां प्राप्त कर लीं। सबसे उल्लेखनीय जानकारी यह थी कि जनार्दन नागा रेड्डी की माया नाम की एक रखैल थी, जिसके लिए उसने एक फ्लैट बांद्रा में खरीदा हुआ था। माया के पास वह बिना नागा हर शनिवार की रात गुजरता था, चाहे कहीं हो, उस जगह अवश्य पहुंच जाता था। वह भी गोपनीय तरीके से।
उस समय उसके पास सरकारी गार्ड या पुलिस प्रोटेक्शन भी नहीं रहता था। उसके दो प्राइवेट गार्ड रहते थे, जो रात भर उस फ्लैट पर रहते थे।
जे.एन. यहाँ वी .आई.पी . गाड़ी से नहीं आता था बल्कि साधारण गाड़ी से आता था । यह उसकी प्राइवेट लाइफ का एक हिस्सा था। सियासत से पहले जे.एन. एक माफिया था, और उसने एक जेबकतरे से अपनी जिन्दगी शुरू की थी। वह दो बार सजा भी काट चुका था। किन्तु अब सरकारी तौर पर जे.एन. का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं मिलता था।
इसके अतिरिक्त एक कोड का पता चला, फ़ोन पर यह कोड बोलने से सीधा जे.एन. ही कॉल सुनता था। यह कोड बहुत ही खास आदमी प्रयोग करते थे। यह कोड
माया भी प्रयोग करती थी। रोमेश के पास काफी जानकारियां थी।
एक जानकारी यह भी थी कि किसी आंदोलन के डर से जे.एन. की पार्टी के लोग ही उसे मुख्यमन्त्री पद से हटाने
के लिए अन्दर-अन्दर मुहिम छेड़े हुए हैं। वह जानते हैं कि सांवत मर्डर केस कभी भी रंग पकड़ सकता है।
अगर जे.एन. मुख्यमन्त्री बना रहता है, तो पार्टी की छवि खराब हो जायेगी। हो सकता था कि एक दो दिन में ही जे.एन. को मुख्यमन्त्री पद छोड़ना पड़े।
जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री के रूप में लिया जाना तय हो चुका था, किन्तु कुछ दिन उसे पार्टी ठंडे बस्ते में रखना चाहती थी।
इकत्तीस दिसम्बर की सुबह ही टी.वी. में यह खबर आ गयी थी कि जे.एन. मुख्यमन्त्री पद से हटा दिये गये हैं। समाचार यह भी था कि शीघ्र ही जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री पद मिल जायेगा। टी .वी . पर जे.एन. का इण्टरव्यू भी था। उसका यही कहना था कि पार्टी का जो कहना होगा, वह उसे स्वीकार है। चाहे वह मन्त्री न भी रहे, तब भी जनता की सेवा तो करता ही रहेगा ।
एक्स चीफ मिनिस्टर जे.एन. अब भी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति था।
इकत्तीस दिसम्बर की रात जश्न की रात होती है। नया साल शुरू होने वाला था।
रोमेश एक मन्दिर में गया, उसने देवी माँ के चरण की रज ली और प्रार्थना की, कि आने वाले साल में वह जिस काम से निकल रहा है, उसे सम्भव बना दे। वह जे.एन. को
कत्ल करने के लिए मन्नत मांग रहा था।
उसके बाद उसने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और मुम्बई की सड़कों पर निकल गया। एक डिपार्टमेंटल स्टोर के सामने उसने मोटरसाइकिल रोक दी। स्टोर में दाखिल हो गया, रेडीमेड गारमेंट्स के काउण्टर पर पहुँचा।
"वह जो बाहर शोकेस में काला ओवरकोट टंगा है, उसे देखकर मैं आपकी शॉप में चला आया हूँ।"
"अभी मंगाते हैं।" सेल्समैन ने कहा। शीघ्र ही काउण्टर पर ओवरकोट आ गया।
"क्या प्राइस है?"
"अभी आप पसन्द कर लीजिये, प्राइस भी लग जायेगी और क्या दें, पैंट शर्ट ?"
"इससे मैच करती एक काली पैंट।"
सेल्समैन ने कुछ काली पैंटे सामने रख दी और पैंटों की तारीफ करने लगा। रोमेश ने एक पैंट पसन्द की।
"काली शर्ट ?" रोमेश बोला।
"जी।" सेल्समैन ने सिर हिला या।
अब काउंटर पर काली शर्टों का नम्बर था। रोमेश ने उसमें से एक पसन्द की।
"एक काला स्कार्फ या मफलर होगा।" रोमेश बोला। मफलर भी आ गया।
"काले दस्ताने।"
"ज… जी !" सेल्समैन ने दस्ताने भी ला दिये,
"काले जुराब, काला चश्मा, काले जूते।"
"तुम आदमी समझदार हो, वैसे काले जूते मेरे पास हैं।" रोमेश ने अपने जूतों की तरफ इशारा किया।
"चश्मा इसी स्टोर के दूसरे काउण्टर पर है।" सेल्समैन बोला,
"यहीं मंगा दूँ ?"
चश्मे का सेल्समैन भी वहाँ आ गया। उसने कुछ चश्मे सामने रखे, रोमेश ने एक पसन्द कर लिया।
"अब एक काला फेल्ट हैट।"
"हूँ!"
सेल्समैन ने सीटी बजाने के अन्दाज में होंठ गोल किये, "मैं भी कितना अहमक हूँ, असली चीज तो भूल ही गया था। काला हैट !"
काला हैट भी आ गया।
"क्यों साहब किसी फैंसी शो में जाना है क्या ?" सेल्समैन ने पूछा।
"जरा मैं यह सब पहनकर देख लूं, फिर बताऊंगा।"
सेल्समैन ने एक केबिन की तरफ इशारा किया। रोमेश सारा सामान लेकर उसमें चला गया।
"अपुन को लगता है, कोई फिल्म का आदमी है, उसके वास्ते ड्रेस ले रहा होगा , नहीं तो मुम्बई के अन्दर कोट कौन पहनेगा ?"
"मेरे को लगता है फैंसी शो होगा।"
दोनों किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये, तभी रोमेश सारी कॉ स्ट्यू म पहनकर बाहर आया।
"हैलो जेंटलमैन !" रोमेश बोला।
"ऐ बड़ा जमता है यार।" एक सेल्समैन ने दूसरे से कहा,
"फिल्म का विलेन लगता है कि नहीं।"
"अब एक रसीद बनाना, बिल पर हमारा नाम लिखो , रोमेश सक्सेना।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं साहब, बिना नाम के बिल कट जायेगा।"
"नहीं , नाम जरूर।"
"ठीक है आपकी मर्ज़ी, लिख देंगे नाम भी।"
"रोमेश सक्सेना ।" रोमेश ने याद दिलाया।
बिल काटने के बाद रोमेश ने पेमेंट दी और फिर बोला, "हाँ तो तुम पूछ रहे थे कि साहब किसी फैन्सी शो में जाना है क्या ?"
"वही तो।" सेल्समैन बोला,
"हम तो वैसे ही आइडिया मार रहे थे।"
"मैं बताता हूँ । इन कपड़ों को पहनकर मुझे एक आदमी का खून करना है।"
"ख… खून।" सेल्समैन चौंका।
"हाँ , खून !"
जारी रहेगा.....![]()
अब ये क्या नाटक है रोमेश का उसकी इन्ही हरकतों की वजह से कोई भी उसकी बात पर विश्वास नहीं कर रहा है सब उसे कोई फिल्म में विलन का रोल प्ले करने वाला मान रहे हैं# 15
"मैं समझ गया साहब, अपना दूसरा वाला सेल्समैन ठीक बोलता था, आप फिल्म का आदमी है।
साहब वैसे एक्टिंग मैं भी अच्छी कर लेता हूँ, दिखाऊं।"
"नहीं , तुम गलत समझ रहे हो। मैं कोई फ़िल्मी आदमी नहीं हूँ। मुझे सचमुच इस लिबास को पहनकर किसी का कत्ल करना है और मैंने बिल में अपना नाम-पता इसलिये लिखवाया है, क्यों कि बिल की डुप्लीकेट कॉपी तुम्हारे पास रहेगी।
यह कपड़े पुलिस बरामद करेगी, इन पर खून लगा होगा, तहकीकात करते-करते पुलिस यहाँ तक पहुंचेगी, क्यों कि इन कपड़ों की खरीददारी का यह बिल उस वक्त ओवरकोट की जेब में होगा।"
सेल्समन हैरत से रोमेश को देख रहा था।
"फिर… फिर क्या होगा साहब?" उसने हकलाए स्वर में पूछा।
"पुलिस यहाँ पहुंचेगी, बिल देखने के बाद तुम्हें याद आ जायेगा कि यहाँ इन कपड़ों को मैं खरीदने आया था। तुम उन्हें बताओगे कि मैंने कपड़ों को पहनकर खून करने के लिए कहा था और इसीलिये यह कपड़े खरीदे थे।"
"ठीक है फिर।"
"फिर यह होगा कि पुलिस तुम्हें गवाह बनायेगी।" रोमेश ने उसका कंधा थपथपा कर कहा,
"अदालत में तुम्हें पेश किया जायेगा, मैं वहाँ कटघरे में मुलजिम बनकर खड़ा होऊंगा। मुझे देखते ही तुम चीख-चीखकर कहना, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो 31 दिसम्बर को हमारी दुकान पर आया और यह कपड़े जो सामने रखे हैं, इसने खून करने के लिए खरीदे थे। मुझसे कहा था।" कुछ रुककर रोमेश बोला,
"क्या कहा था ?"
"ऐं !" सेल्समैन जैसे सोते से जागा। "क्या कहा था ?"
"ख… खून करूंगा, कपड़े पहनकर।"
"शाबास।" रोमेश ने भुगतान किया और सेल्समैन को स्तब्ध छोड़कर बाहर निकल गया।
"साला क्या सस्पेंस वाली स्टोरी सुना गया।" रोमेश के जाने के बाद सेल्समैन को जैसे होश आया,
"फिल्म सुपर हिट हो के रहेगा, जब मुझको सांप सूंघ गया, तो पब्लिक का क्या होगा ? क्या स्टोरी है यार, खून करने वाला गवाह भी पहले खुद तैयार करता फिर रहाहै। पुलिस की पूरी मदद करता है।"
"अपुन को पता था, वह फिल्म का आदमी है, तेरे को काम मांगना था यार चंदूलाल।"
"मैं जरा डायलॉग ठीक से याद कर लूं।" चंदू एक्शन में आया,
"देख सामने अदालत… कुर्सी पर बैठा जज, कैमरा इधर से टर्न हो रहा है, कोर्ट का पूरा सीन दिखाता है और फिर मुझ पर ठहरता है… बोल एक्शन।"
"एक्शन!" दूसरे सेल्समैन ने कहा।
"योर ऑनर।" चन्दू ने शॉट बनाया,
"यह शख्स जो कटघरे में खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल इसी ने किया है और यह कपड़े, यह कपड़े योर ऑनर।"
"कट।" दूसरे सेल्समैन ने सीन काट दिया।
"क्या हो रहा है यह सब?" अचानक डिपार्टमेन्टल स्टोर का मालिक राउण्ड पर आगया।
दोनों सेल्समैन सकपका कर बगलें झांकने लगे। फिर उन्होंने धीरे-धीरे सारी बात मालिक को बता दी। मालिक भी जोर से हँसने लगा। साला हमारा दुकान का पब्लिसिटी होयेंगा फ्री में। सेल्समैन भी मालिक के साथ हँसने लगे। बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे। नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था। एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी। बूथ में घुस गया और जनार्दन नागा रेड्डी का फोन नम्बर डायल किया। फोन बजते ही उसने कोड बोला। कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था।
"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"
"नया साल मुबारक।" "तुमको भी मुबारक।" जे.एन. ने उत्तर दिया,
"आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।"
"क्या बोला ?"
"तुम्हारा होने वाला कातिल।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला,
"मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है।"
"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ। जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा। अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी।" उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया। उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया। नया साल शुरू हो गया था।
रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था। सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था। रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा। जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे।
मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा। रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था। दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था। घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका।
"ले लो भई, ले लो। रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था।
"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी।
"आओ साहब, बोलो क्या मांगता? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा।"
"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर।"
"समझा साहब।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया,
"करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना।" लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया।
"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो।" रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया।
"यह ठीक है, कितने का है ?"
"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं , एक दाम।"
"ठीक है, एक बिल बनाओ। उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना।"
"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी। अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है।"
"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम।"
"बरोबर साहब।"
"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के। कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा। मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा।"
"ये बात है साहब, तो हम बना देगा। मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब।"
"नहीं ।" अब राजा कागज और कार्बन ले आया। जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा , वह लिखता रहा , फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया।
"एक बात समझ में नहीं आया साहब।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला।
"क्या ?"
"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"
"हाँ , मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता।"
"गवाही, कैसा गवाही ?"
"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है। क्यों कि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है।"
"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता।"
"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं। लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा,
"इसी लिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा। तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया।" राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं।
"अदा लत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा। तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है।" आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे।
"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है।" जमा होते लोगों में से कोई बोला। राजा के तो छक्के छूट रहे थे।
"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या? यह तो फिल्म की स्टोरी है।"
"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ। दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी।"
"पर मैंने किया क्या है ?"
"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा। लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा।"
"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो।"
राजा गिड़गिड़ाने लगा। "नहीं, इससे ही मुझे खून करना है।" रोमेश ने जोर से कहा,
"तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ।"
"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई।" भीड़ में से कोई बोला।
"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे।" रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया। शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी। रोमेश घूमता रहा।
जारी रहेगा…![]()