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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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♡ Family Introduction ♡ |
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बेबी !! वापस लो अपने शब्द वापसThanks for your wonderful review brother,romesh ne kaise or kya kiya? Iska aadha jabaab to wo de hi chuka hai, baki aadha bhi dega
vijay apna poora jor lagayeha pata karne me, per kya kar payega??
Seema baby se bhi jald mulakaat ki sambhavna hai,
Thanks brotherबढ़िया अपडेट, खैर जैसा मैंने पहले ही कहा था, लाख गवाह और सबूत हो, पर सरकारी गवाही के आगे कुछ नहीं। और वैसा ही हुआ, रोमेश को अदालत ने बरी कर दिया।
विजय ने अभी हार नही मानी, और वो इस केस के पीछे पड़ेगा, हालांकि उसे खुद कुछ हाथ नहीं लगना ये तो तय है।
मायादास शंकर का प्लांट किया हुआ आदमी निकला, और शंकर खुद जेएन का बेटा, जिसका शक मुझे शुरू से था।
रोमेश अब सीमा को लाने जा रहा है, और मुझे लग रहा है कि जैसे सीमा अभी तक गायब है, रोमेश को तगड़ा झटका लगने वाला है उससे मिलने पर, और शायद वही झटका ही इंसाफ की डगर साफ करेगा।
उम्दा राज भाई, बेहतरीन कहानी है अब तक ये।![]()
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....# 28.
"जिन लोगों के गले खुश्क हो गये हों, वह अपने लिये पानी मंगा सकते हैं, क्यों कि अब जो गवाह अदालत में पेश किया जाने वाला है, वह साबित करेगा कि मैंने पूरे दस दिन बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल में बिताये हैं। मेरा अगला गवाह है बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी।"
इंस्पेक्टर विजय के चेहरे से भी हवाइयां उड़ने लगी थीं। रोमेश का अन्तिम गवाह अदालत में पेश हो गया।
"मैं मुजरिम को इसलिये जानता हूँ, क्यों कि यह शख्स जब मेरी जेल में लाया गया, तो इसने पहली ही रात जेल में हंगामा खड़ा कर दिया।
इसके हंगामा के कारण जेल में अलार्म बजाया गया और तमाम रात हम सब परेशान रहे। मुझे जेल में दौरा करना पड़ गया।"
"क्या आप पूरी घटना का ब्यौरा सुना सकते हैं ?" न्यायाधीश ने पूछा।
"क्यों नहीं, मुझे अब भी सब याद है। यह वाक्या दस जनवरी की रात का है, सभी कैदी बैरकों में बन्द हो चुके थे। कैदियों की एक बैरक में रोमेश सक्सेना को भी बन्द किया गया था। रात के दस बजे इसने ड्यूटी देने वाले एक सिपाही को किसी बहाने दरवाजे तक बुलाया और सींखचों से बाहर हाथ निकालकर उसकी गर्दन दबोची, फिर उसकी कमर में लटकने वाला चाबियों का गुच्छा छीन लिया। ताला खोला और बाहर आ गया। उसके बाद अलार्म बज गया। उसने उन्हीं चाबियों से कई बैरकों के ताले खोल डाले। कई सिपाहियों को मारा-पीटा, सारी रात यह तमाशा चलता रहा।"
"उसके बाद तुम्हारे सिपाहियों ने मुझे मिलकर इतना मारा कि मैं कई दिन तक जेल के अन्दर ही लुंजपुंज हालत में घिसटता रहा। मुझे जेल की तन्हाई में ही बन्द रखा गया।"
"यह तो होना ही था। दस जनवरी की रात तुमने जो धमा-चौकड़ी मचाई, उसका दंड तो तुम्हें मिलना ही था।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! मैं यही साबित करना चाहता था कि दस जनवरी की रात मैं मर्डर स्पॉट पर नहीं बड़ौदा जेल में था, जेल का पूरा स्टाफ और सैकड़ों कैदी मेरा नाटक मुफ्त में देख रहे थे। वहाँ भी मेरे फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं और क़त्ल करने वाले हथियार पर भी। अब यह फैसला आपको करना है कि मैं उस समय कानून की कस्टडी में था या मौका-ए-वारदात पर था।"
अदालत में सन्नाटा छा गया।
"यह झूठ है ।" राजदान चीखा,
"तीनों गवाह इस शख्स से मिले हुए हैं, यह जेलर भी।"
"शटअप।" जेलर ने राजदान को डांट दिया,
"मेरी सर्विस बुक में बैडएंट्री करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। मैंने जो कहा है, वह अक्षरसः सत्य है और प्रमाणिक है।"
"अ… ओके… नाउ यू कैन गो।" राजदान ने कहा और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गया।
"कानून की किताब में यह फैसला और मुकदमा ऐतिहासिक है। मुलजिम रोमेश सक्सेना पर ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 का मुकदमा अदालत में चलाया गया। मकतूल जनार्दन नागा रेड्डी का क़त्ल मुल्जिम के हाथों हुआ, पुलिस ने साबित किया।“
“लेकिन रोमेश सक्सेना उस रात कानून की हिरासत में पाया गया, इसीलिये यह तथ्य साबित करता है कि दस जनवरी की रात रोमेश सक्सेना घटना स्थल पर मौजूद नहीं था। जो शख्स कानून की हिरासत में है, वह उस वक्त दूसरी जगह हो ही नहीं सकता, इसीलिये यह अदालत रोमेश सक्सेना को बाइज्जत रिहा करती है"
अदालत उठ गयी। एक हड़कम्प सा मचा, रोमेश की हथकड़ियाँ खोल दी गयीं। जब तक वह अदालत की दर्शक दीर्घा में पहुंचा, उसे वहाँ पत्रकारों ने घेर लिया। बहुत से लोग रोमेश के ऑटोग्राफ लेने उमड़ पड़े।
" नहीं, मैं ऑटोग्राफ देने वाली शख्सियत नहीं हूँ, मैं____एक मुजरिम हूँ। जिसने कानून के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है। यह अलग बात है कि जिसे मैंने मारा, वह कानून की पकड़ से सुरक्षित रहने वाला अपराधी था। उसे कोई कानून सजा नहीं दे सकता था। अब एक बड़ा सवाल उठेगा, क्यों कि मैं सरेआम क़त्ल करके बरी हुआ हूँ और यही कानून की मजबूरी है। उसके पास ऐसी ताकत नहीं है, जो हम जैसे चतुर मुजरिमों या जे.एन. जैसे पाखण्डी लोगों को सजा दे सके, मैं इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता।"
अदालत से बाहर निकलते समय रोमेश की मुलाकात विजय से हो गई।
"हेल्लो इंस्पेक्टर, जंग का नतीजा पसन्द आया ?"
"नतीजा कुछ भी हो दोस्त, मगर मैंने अभी हार नहीं कबूल की है।"
"अब क्या करोगे, मुकदमा तो खत्म हो चुका, हम छूट गये।"
"मैंने जिस अपराधी को पकड़ा है, वह अपराधी ही होता है, उसे सजा मिलती है, मैंने अपनी पुलिसिया जिन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा।"
"मुश्किल तो यही है कि मैं भी कभी नहीं हारा, तब भला अपना केस कैसे हार जाता।"
"तुम उस रात मौका-ए-वारदात पर थे।"
"क्या तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारे फ्लैट को घेर चुका था, तो तुमने मुझ पर फायर किया था, मुझे चेतावनी दी थी, क्या मैं तुम्हारी भावना नहीं पहचानता।"
"बेशक पहचानते हो।“
"तो फिर जेल में उस वक्त कैसे पहुंच गये ?"
"अगर मैंने यह सब बता दिया, तो सारा मामला जग जाहिर हो जायेगा। लोग इसी तरह क़त्ल करते रहेंगे, कानून सिर्फ एक मजाक बनकर रह जायेगा।"
"मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मालूम न कर लूं कि यह सब कैसे हुआ।"
"छोड़ो, यह बताओ शादी कब रचा रहे हो ?"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया। आगे बढ़कर जीप में सवार हो गया।
शंकर नागा रेड्डी शाम के छ: बजे रोमेश के फ्लैट पर आ पहुँचा। रोमेश उसका इन्तजार कर रहा था। रोमेश उस वक्त फ्लैट में अकेला था। डोरबेल बजते ही उसने दरवाजा खोला, शंकर नागा रेड्डी एक चौड़ा-सा ब्रीफकेस लिए दाखिल हुआ।
"बाकी की रकम।" सोफे पर बैठने के बाद शंकर ने कहा,
"एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना है। जैसे मैंने चाहा और सोचा, ठीक वैसा ही परिणाम मेरे सामने आया है। रकम गिन लीजिये।"
"ऐसे धंधों में रकम गिनने की जरुरत नहीं पड़ती।" रोमेश ने ब्रीफकेस एक तरफ रख लिया।
"आज के अखबार आपके कारनामे से रंगे पड़े हैं।" शंकर बोला।
"मेरे मन में एक सवाल अभी भी कुलबुला रहा है।"
"वो क्या ?"
"यही कि तुमने यह क़त्ल मेरे हाथों से क्यों करवाया और तुम्हें इससे क्या मिला ?"
"आपके हाथों क़त्ल तो इसलिये करवाया, क्यों कि आप ही यह नतीजा सामने ला सकते थे। आपकी जे.एन. से ठन गयी थी और लोगों को सहज ही यकीन आ जाता कि आपने जे.एन. का बदला लेने के लिए मार डाला। रहा इस बात का सवाल कि मैंने ऐसा क्यों किया, उसका जवाब देने में अब मुझे कोई आपत्ति नहीं।"
शंकर थोड़ा रूककर बोला।
"यह तो सारी दुनिया जानती है कि जे.एन. को लोग ब्रह्मचारी मानते थे। उसने शादी नहीं की, लिहाजा उसकी प्रॉपर्टी का कोई वारिस भी नहीं था। लोग समझते थे कि उसने समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित किया है। लेकिन हकीकत में वह कुछ और ही था।"
"उसके कई औरतों से नाजायज सम्बन्ध रहे होंगे, यही ना।"
"इसके अलावा उसने एक लड़की की इज्जत लूटने के लिये उससे शादी भी की थी। यह शादी उसने एक प्रपंच के तौर पर रची और उस लड़की को कई वर्षो तक इस्तेमाल करता रहा। वह अपने को जे.एन. की पत्नी ही समझती रही, फिर जब जे.एन. का उससे मन भर गया, तो वह उस लड़की को छोड़कर भाग गया।
अपनी तरफ से उसने फर्जी शादी के सारे सबूत भी नष्ट कर दिये थे, किन्तु लड़की गर्भवती थी और उसका बच्चा सबसे बड़ा सबूत था। जे.एन. उस समय आवारा गर्दी करता था।“
“लड़की माँ बन गयी, उसका एक लड़का हुआ। बाद में जब जे.एन. राजनीति में उतरकर अच्छी पॉजिशन पर पहुंच गया, तो उसकी पत्नी ने अपना हक माँगा। जे.एन. ने उसे स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे मरवा डाला। किन्तु वह उसके पुत्र को न मार पाया और पुत्र के पास उसके खिलाफ सारे सबूत थे। या यूं समझिये कि सबूत इकट्ठे करने में उसने कई साल बिता दिये और तब उसने बदला लेने की ठान ली। उसने अपना एक भरोसे का आदमी जे.एन. के दरबार तक पहुँचा दिया और जे.एन. से तुम टकरा गये और मेरा काम आसान हो गया।"
"यानि तुम जे.एन. की अवैध संतान हो ?"
"अवैध नहीं, वैध संतान ! क्यों कि अब मैं उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस हूँ।
“उसकी अरबों की जायदाद का मालिक ! मैं साबित करूंगा कि मैं उसका बेटा हूँ। उसने मेरी माँ को मार डाला था, मैंने उसे मार डाला और अब मेरे पास बेशुमार दौलत होगी । मैं जे.एन. की दौलत का वारिस हूँ।"
"यह बात अब मेरी समझ आ गयी कि तुमने जे.एन. को माया देवी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए किस तरह विवश किया होगा। तुम्हारा आदमी जो कि जे.एन. का करीबी था, यकीनन इतना करीबी है कि मर्डर की तारीख दस जनवरी को आसानी से जे.एन. को मेरे बताये स्थान पर भेजने में कामयाब हो गया।"
"हाँ , तुमने बीच में मुझे फोन किया था और बताया कि जे.एन. की सुरक्षा व्यवस्था इंस्पेक्टर विजय के हाथों में है, उससे बचकर जे.एन. का क़त्ल करना लगभग असम्भव है। तब मैंने तुमसे कहा, कि इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम जहाँ चाहोगे, जे.एन. खुद ही अपनी सुरक्षा तोड़कर पहुंच जायेगा और यही हुआ। जे.एन. उस रात वहाँ पहुँचा, जहाँ तुमने उसे क़त्ल करना था।"
"अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शख्स और कोई नहीं सिर्फ मायादास है।"
"हम दोनों इस गेम में बराबर के साझीदार हैं, अन्दर के मामलों को ठीक करना उसी का काम था। अगर मायादास हमारी मदद न करता, तो तुम हरगिज अपने काम में कामयाब नहीं हो सकते थे।"
"एक सवाल आखिरी।"
"पूछो।"
"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि पच्चीस लाख की रकम हासिल करने के लिए मैं यह सब कर गुजरूँगा।"
"यह बात मुझे पता चल गई थी कि तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़कर चली गई है और तुम उसे बहुत चाहते हो। उसे दोबारा हासिल करने के लिए तुम्हें पच्चीस लाख की जरुरत है, बस मैंने यह रकम अरेंज कर दी और कोई सवाल ?"
"नहीं, अब तुम जा सकते हो। हमारा बिजनेस यही पर खत्म होता है, दुनिया को कभी यह न मालूम होने पाये कि हमारा तुम्हारा कोई सम्बन्ध था।"
शंकर, रोमेश को रुपया देकर चलता बना। अब रोमेश सोच रहा था कि इस पूरे खेल में मायादास ने एक बड़ी भूमिका अदा की और हमेशा पर्दे के पीछे रहा। मायादास ने ही जे.एन. को मर्डर स्पॉट पर बिना किसी सुरक्षा के भेज दिया था। मायादास का ध्यान आते ही रोमेश को याद आया कि किस तरह इसी मायादास ने उसकी पत्नी सीमा को उसके फ्लैट पर नंगा कर दिया था। इसकी उसी हरकत ने सीमा को उससे जुदा कर डाला।
"सजा तो मुझे मायादास को भी देनी चाहिये।" रोमेश बड़बड़ाया,
"मगर अभी नहीं। अभी तो मुझे सिर्फ एक काम करना है, एक काम। सीमा की वापसी।"
सीमा का ध्यान आते ही वह बीती यादों में खो गया।
"अब मैं तुम्हें पच्चीस लाख भी दूँगा सीमा ! मैं आ रहा हूँ, जल्द आ रहा हूँ तुम्हारे पास। मैं जानता हूँ कि तुम भी बेकरारी से मेरा इन्तजार कर रही होगी।"
रोमेश उठ खड़े हुआ ।
जारी रहेगा...............![]()
Behtreen shuruwat hai story ki aur Ramesh ka character bhi interesting dikhaya hai. Maza aayega padne me.# 4
अपना फ्रेन्ड जगाधरी बहुत अच्छा आदमी था नी , सण्डे का दिन हमारा छुट्टी का दिन होता , दोनों यार शतरंज खेलता और दारू पीता , हम शतरंज खेलता , कबी वो जीतता कबी हम जीतता , कबी __________हम जीतता कबी वो , शतरंज भी अजीब खेल है सांई! हम दोनों बिल्कुल बराबर का खिलाड़ी , एकदम बराबर का । कबी वोजीतता कबी … ।"
"मुझे तुम्हारी शतरंज की जीत हार से कुछ लेना-देना नहीं समझे ।" विजय ने बीच में उसे टोकते हुए कहा ,
"तुम आज यहाँ शतरंज खेलने आये थे? और तुमने यहाँ आकर दारू पी थी।"
"कसम खा के बोलता सांई, आज दारू नहीं पी , अरे पीता किसके साथ, जगाधरी तो रहा नहीं , आप दारू की बात करता ।
" हीरा लाल की आंखों में एका एक आँसू छलक आए, "हम दोनों हफ्ते में एक दिन पीता , बस एक दिन । अब तो हफ्ते में एक दिन क्या महीने में भी एक दिन पीना नहीं होयेगा सांई।"
"शटअप !"
हीरालाल इस प्रकार चुप हो गया , जैसे ब्रेक लग गया हो ।
"जो मैं पूछता हूँ, बस उतना ही जवाब देना , वरना अन्दर कर दूँगा ।"
हीरा लाल के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।
"आज तुम यहाँ शतरंज खेलने आये थे?"
"आज नहीं खेला , ठीक वक्त पर जब मैं आया , घंटी बजाया फ्लैट की , तभी अन्दर गोली चलने का आवाज हुआ, पहले मैं समझा कोई पटाखा छूटा होगा , हड़बड़ाहट में मैंने दरवाजे पर धक्का मारा , दरवाजा खुला था , जगाधरी को पुकारता हुआ उस कमरे के अन्दर घुसा तो देखा सांई ! बस जो देखा , कभी नहीं देखा पहले । मेरा यार राम को प्यारा हो गया नी।
मैं उसका हालत देखके भागा और सबसे पेले आपको फोन किया नी ।"
"क्या उस वक्त तक जगाधरी मर चुका था ?"
"देखने से यही लगता था , अबी जैसा देखने से लगता ।"
"तुम्हारे अलावा कमरे में और कोई नहीं गया ?"
"नहीं जी , मैं तो यहीं से फोन मिलाया , फिर दरवाजा बन्द करके बाहर बैठ गया , मैं सोचा के गोली चलाने वाला अन्दर ही कहीं छिप गया होयेगा , मैं दरवाजे पे डट गया सांई।
मेरे यार को मारके साला निकल के दिखाता बाहर, मैं ही उसका खोपड़ा तोड़ देता ।"
"कातिल को तुमने नहीं देखा?"
"देखता तो वो यहाँ लम्बा न पड़ा होता?"
"इस फ्लैट में जगाधरी के अलावा कौन रहता था ?"
"एक नौकर था बस, वो भी दो दिन से छुट्टी पे गया है । उसका यहाँ कोई नहीं था , यह बात जगाधरी ने मुझे बताया था सांई ।"
"सर यह झूठ बोलता है ।" बलदेव बोल उठा , "इसने फायर की आवाज सुनी । उसी वक्त अंदर भी आया और फिर दरवाजा बन्द करके बाहर जम गया । फिर गोली चलाने वाला कहाँ गया ?
मैंने सारा फ्लैट देख मारा है, इस दरवाजे के सिवा बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, एक खिड़की है, जिस पर ग्रिल लगी है, सलामत है ग्रिल भी ।"
"यही तो मैं पूछता सांई, वो गोली चला के गया किधर ?"
"जगाधरी का पार्टनर कहाँ रहता है ?"
"मैं इतना नहीं जानता सांई, ना उसने कबी बताया । मैंने कभी उसके घर का लोग नहीं देखा , एक-दो बार पूछा, बता के नहीं देता था ।
छ: महीने पहले यह फ्लैट किराये पर लिया।"
"जगाधरी का क्या बिजनेस था ?"
"शेयर मार्केट में दलाली करता था , बस और हम कुछ नहीं जानता , हमारी दोस्ती शतरंज से शुरू हुई, दोनों एक क्लब में मिले, फिर पता लगा वो हमारा पड़ोसी है, उसके बाद यहीं जमने लगी , मगर आदमी बहुत अच्छा था सांई ! हफ्ते में एक दिन पीता था सण्डे को, और मैं भी उसी दिन पीता , कबी वो जीतता कबी मैं ।"
"कबी मैं जीतता कबी वो ।" विजय चीख पड़ा ।
"आपको कैसे मालूम जी ।" हीरालाल ने एक बार फिर चश्मा दुरुस्त किया ।
"अब तुम ड्राइंगरूम से बाहर बैठो , कहीं फूटना नहीं , तुम्हारे बयान होंगे ।" विजय ने हीरालाल को बाहर भेज दिया । विजय ने गहरी सांस ली और तफ्तीश शुरू कर दी । कुछ ही देर में फिंगर प्रिंट्स और फोटो वाले भी आ गये । पुलिस कंट्रोल रूम को मर्डर की सूचना दे दी गई थी । ……
उधर :
सण्डे था । सण्डे का दिन रोमेश अपनी पत्नी सीमा के लिए सुरक्षित रखता था , बाथरूम से नहा धो कर नौ बजे वह नाश्ते की टेबिल पर आ गया ।
"डार्लिंग, आज कहाँ का प्रोग्राम है ?"
"पूरे हफ्ते बाद याद आई मेरी ।" सीमा मेज पर नाश्ते की प्लेटें सजाती हुई बोली ।
"क्या करें डार्लिंग, तुम तो जानती ही हो कि कितना काम करना पड़ता है । दिन में कोर्ट, बाकी वक्त इन्वेस्टीगेशन, कई बार तो खतरों से भी जूझना पड़ता है, मुझे इन क्रिमिनल्स से सख्त नफरत है डार्लिंग ।"
"अब यह कोर्ट की बातें बन्द करिये, सण्डे है ।"
"हाँ भई, आज का दिन तुम्हारा होता है, आज के दिन हम जोरू के गुलाम,
किधर का प्रोग्राम बनाया जानेमन ?"
"बहुत दिनों से झावेरी ज्वैलर्स में शॉपिंग करने की सोच रही थी ।"
"झावेरी ज्वैलर्स ।"
रोमेश के हलक में जैसे कुछ फंस गया , "क… क्या खरीदना था ?"
"हीरे की एक अंगूठी , तुमने हनीमून पर वादा किया था कि मुझे हीरे की अंगूठी ला कर दोगे, वही जो झावेरी के शो रूम में लगी है और कुल पचास हजार की है ।"
"म…मारे गये, यह अंगूठी फिर टपक पड़ी ।" रोमेश बड़बड़ाया ।
"क्यों , कुछ फंस गया गले में, लो पानी पीलो ।" सीमा ने पानी का गिलास सामने कर दिया ।
रोमेश एक साँस में पूरा गिलास खाली कर गया । "डार्लिंग गिफ्ट देने का कोई शुभ अवसर भी तो होना चाहिये ना ।"
"पाँच साल हो गये हैं हमारी शादी हुए। इस बीच कम-से-कम पांच शुभ अवसर तो आये ही होंगे ।" सीमा ने व्यंगात्मक स्वर में कहा , "आपको याद है जब हमारे प्यार के शुरुआती दिन थे तो । "
"याद तो सब कुछ है, तुम्हें भी तो बंगला कार वगैरा से बहुत लगाव है।"
"किसको नहीं होता , आप अपने साथी वकीलों की माली हालत पर भी तो नजर डाल लिया कीजिए, उनके पास क्या नहीं है? और एक आप हैं कि आपकी मोटरसाइकिल तक रिटायर नहीं हो पाती ।"
"तल्खी खत्म हो तो बता देना ।" रोमेश उठकर फ्लैट की बालकनी में चला गया । तल्खी खत्म नहीं हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी । रोमेश फोन की तरफ बढ़ गया ।
"रोमेश हेयर ।"
"मैं विजय ।" दूसरी तरफ से कहा गया ।
"इंस्पेक्टर, यह सुबह-सुबह कहाँ से बोल रहे हो ?"
''गोरेगांव ईस्ट, संगीता अपार्टमेंट ।"
"किसी का मर्डर हो गया क्या ?"
"तुम्हें कैसे मालूम ।"
"फोन पर गंध आ रही है । संगीता अपार्टमेन्ट में न तो तुम्हारा कोई रिश्तेदार रहता है, न कोई गर्लफ्रेंड, न ही वहाँ कोई शराब का अड्डा चलता है। घड़ी जो समय बता रही है, उसके अनुसार तुम्हें इस वक्त थाने में होना चाहिये था । तुम अपने ही इलाके की किसी और लोकेशन से बोल रहे हो , जिसका साफ मतलब है कि तुम मौका-ए-वारदात पर हो । मुझे फोन किया , इसलिये साफ जाहिर है कत्ल का मामला होगा , चोर डकैतों की लिस्ट तो पुलिस के पास होती ही है । हाँ , हत्यारों की नहीं होती ।"
"गुरु फौरन आ जाओ, मेरी फंसी पड़ी है ।"
"गुरु मानते हो , इसलिये आना ही होगा , लेकिन यार आज सण्डे है ।" दूसरी तरफ से फोन कट चुका था ।
"इन पुलिस वालों की छुट्टी तो वैसे कभी होती ही नहीं ।"
"खासकर विजय की तो हो ही नहीं सकती ।" सीमा बोल पड़ी ,
"जैसे आप, वैसा विजय। आप किसी क्रिमिनल का केस नहीं लड़ते और वह किसी क्रिमिनल को रिश्वत लेकर नहीं छोड़ता ।"
"कोई फतवा हो तो बताओ, वरना मैं देख आऊं क्या मामला है ?"
"जाइये ।"
इतना कहकर सीमा बाथरूम में चली गई । जल्दी ही तैयार होकर रोमेश अपनी मोटरसाइकिल लेकर चल पड़ा । बांद्रा से अंधेरी , अंधेरी से गोरेगांव । रॉयल एनफील्ड की बुलेट गाड़ी को पुलिसिया अंदाज में दौड़ाता हुआ वह पंद्रह मिनट में मौका-ए-वारदात पर पहुंच गया । और फिर जगाधरी के फ्लैट में पहुँचा , जहाँ विजय उसका बेताबी से इन्तजार कर रहाथा ।
कुछ दूसरे सीनियर पुलिस ऑफिसर भी घटना स्थल पर आ चुके थे । उनमें से कुछेक ऐसे भी थे, जो रोमेश को पसन्द नहीं करते थे।
"मकतूल की लाश कहाँ है? " रोमेश ने विजय से पूछा । विजय, रोमेश को लाश वाले कमरे में ले गया ।
"जब तुम उस कमरे में दाखिल हुए, क्या सब इसी तरह था , कोई चेजिंग तो नहीं हुई है?" रोमेश ने कमरे में सरसरी नजर दौड़ाते हुए कहा ।
"सिर्फ एक चेंजिग है, रिवॉल्वर हमने अपने कब्जे में ले ली है ।"
"यानि कि जिस रिवॉल्वर से कत्ल हुआ ।"
"अभी यह कहना मुनासिब न होगा कि कत्ल उसी से हुआ, लेकिन वह यहाँ उसे नीचे पड़ी मिली ।"
"वह जहाँ से उठाई, वहीं रख दो ।" विजय ने बलदेव को संकेत किया , बलदेव ने रिवॉल्वर रख दी ।
"क्या रिवॉल्वर रखने से सिचुऐशन पर फर्क पड़ जायेगा ।" यह बात डी .एस.पी . केसरी नाथ ने कटाक्ष के तौर पर कही ।
"हंड्रेड परसेन्ट ।"
रोमेश बोला ,"धारा भी बदल सकती है ।"
"यानि कि मर्डर की धारा 302 की जगह कुछ और बनती है ।"
"सर प्लीज ।"
विजय ने केसरी नाथ को टिप्पणियां करने से रोका ।
"एनी वे ।"
केसरी नाथ ड्राइंगरूम में चला गया ,
"जो भी रिजल्ट निकले, मेरे को इन्फॉर्म करो ।"
"यह दरवा जा बन्द कर दो बलदेव ।" रोमेश ने कहा ।
बलदेव, रोमेश की जांबाजी से वाकिफ था, और यह भी जानता था कि विजय तभी रोमेश की मदद लेता है, जब मामला सचमुच पेचीदा हो । कत्ल के मामले सुलझाने में उसे मुम्बई पुलिस का मददगार शरलक होम्स कहा जाता था ।
रोमेश इस काम की कोई फीस नहीं लेता था । बतौर शौक, यही नहीं बल्कि गुत्थी सुलझाने में उसे इस बात का सुकून मिलता था कि कोई निर्दोष नहीं पकड़ा गया ।
दरवाजा बन्द होने के बाद एक बार फिर रोमेश ने कमरे का निरीक्षण शुरू कर दिया था। विजय सारी घटना पर प्रकाश डालता जा रहा था । जब वह सब बता चुका , तो बोला ,
"अब बताओ कातिल कोई हवा तो है नहीं कि निकल गया होगा । या तो हीरालाल गलत बयानी कर रहा है, या वह खुद ।"
"किसी ठोस निर्णय के बिना हीरालाल को लपेटना उचित नहीं होगा ।" रोमेश ने बीच में ही टोक दिया .
"ऐसा आमतौर पर होता नहीं है कि कातिल कत्ल के बाद खुद गले में फंदा डालने वाली परिस्थितियां बना दे ।"
"मगर दरवाजा एक ही है, और धमाके के समय हीरा लाल द्वार पर था , फिर वह यहाँ आया । ओह एक बात हो सकती है ।"
"क्या ?"
"कत्ल करने के बाद कातिल इस कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में या बाथरूम में छिपा , हीरालाल जैसे ही इसके अन्दर आया , वह बाहर निकल गया होगा । लेकिन उसने रिवॉल्वर यहाँ फेंक क्यों दी ? किसी मुसीबत से निपटने के लिए उसे रिवॉल्वर तो अपने पास रखनी चाहिये थी । ऐसे में जबकि हीरालाल दरवाजे पर था ।"
रोमेश ने रिवॉल्वर रूमाल से लपेटकर उठा ली । उसकी नाल सूंघी , गर्दन हिलाई । उसका चेम्बर चेक किया । चेम्बर में अभी भी पांच गोलियां थीं , एक ही चली थी । बारूद की गंध से पता चलता था कि गोली उसी से चली थी । फिर रोमेश का ध्यान दरवाजे पर लगी चंद कीलों पर पड़ा । उसने दरवाजे से सीधा लाश को देखा और फिर लाश के पास पहुंच गया । उसके बाद वह घुटने के बल बैठ गया और फर्श पर कुछ कुरेदता रहा । फिर रबड़ की एक डोरी उठा ते ही उसके होंठ गोल हो गये । वह सीधा खड़ा हो गया ।
"माई डियर पुलिस ऑफिसर । अब आप चाहें, तो शव को सील करके पोस्टमार्टम के लिए भेज सकते हैं ।"
इंस्पेक्टर विजय समझ गया कि जो गुत्थी वह नहीं सुलझा पा रहा था , वह सुलझ चुकी है ।
"हुआ क्या , लाश तो सील होगी ही । पंचनामा भी होगा , पोस्टमार्टम भी होगा । मगर बतौर कातिल मैं किसे गिरफ्तार करूं ? मैं जानने के लिए बेचैन हूँ, “रोमेश” आखिर कत्ल किसने किया? और कातिल कैसे निकल भागा ?"
"कातिल कहीं नहीं गया ।"
''क्या मतलब ?"
"माईडियर फ्रेन्ड, मकतूल भी यहीं है और कातिल भी , लेकिन अफसोस एक ही बात का है कि सारे सबूत उसके खिलाफ होते हुए भी तुम उसे गिरफ्तार न कर पाओगे ?"
जारी रहेगा...![]()
Thank you very much for your valuable review and supportBhai ji hamesha ki tarah adhbhut lekhni update Lajawab Jabardast superb mast ekdum dhasu update![]()
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Thanks for your wonderful review and support bhaiBahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
Wow Kia khoobsurti se qatal ki gutthi ko sove kia hai. Inka dimagh to chacha chaudhary se bhi tez chalta hai.# 6
अगली तारीख पर अदालत खचा-खच भरी हुई थी ।
पुलिस ने जो गवाह पेश किये, वह सब रटे रटाये तोते की तरह बयान दे रहे थे । रोमी ने इनमें से किसी से भी खास क्वेश्चन नहीं कि या, न ही चश्मदीद गवाह से यह पूछा कि वह सुनसान हाईवे पर आधी रात को क्या कर रहा था ?
"मेरे अजीज दोस्त रोमेश सक्सेना ने बिना वजह अदालत का समय जाया किया है मीलार्ड”।
“इनका तो मनो बल इतना टूटा हुआ है कि किसी गवाह से सवाल जवाब करने से ही कतरा रहे हैं ।"
"फर्जी गवाहों से सवाल जवाब करना मैं अपनी तौहीन समझता हूँ, और न ही इस किस्म के क्रिया कलापों में समय नष्ट करता हूँ । मैं अपने काबिल दोस्त से जानना चाहूँगा कि सारे गवाह पेश करने के बावजूद भी पुलिस वह रकम क्यों बरामद नहीं कर पायी , जो सोमू ने लूट ली थी। यह प्वाइन्ट नोट किया जाये योर ऑनर, कि जिस रकम के पीछे कत्ल हो गया , वह रकम सोमू के पास से बरामद नहीं हुई ।"
"इस रकम की बरामदगी न होने से केस की मजबूती पर कोई असर नहीं पड़ता योर ऑनर !
पुलिस सोमू से रकम बरामद न कर सकी, इससे केस के हालात नहीं बदल जाते । सोमू पहले ही अपने जुर्म का इकबा ल कर चुका है।" राजदान ने पुरजोर असर डालते हुए कहा ,
"यह बात मुलजिम ही बेहतर जानता होगा , उसने रकम कहाँ छिपायी थी। पुलिस ने उस पर थर्ड डिग्री प्रयोग की होती, तो शायद रकम भी बरामद हो जाती । लेकिन उसने पुलिस को चकमा देकर अदालत में समर्पण किया, और उसे रिमाण्ड पर नहीं लिया जा सका । पुलिस ने रिमाण्ड की जरूरत इसलिये भी नहीं समझी, कि वह अपना जुर्म कबूल करने के लिए तैयार था । दैट्स आल योर ऑनर ।"
"योर ऑनर मेरे काबिल दोस्त की सारी दलीलें अभी फर्जी साबित हो जाएंगी, मैं वह रकम पेश करने की इजाजत चाहता हूँ ।"
"आप रकम पेश करेंगे ?" राजदान चिल्लाया ।
"क्या हर्ज है ? पुलिस का अधूरा काम कोई भी शरीफ शहरी पूरा कर दे, तो उसमें हर्ज क्या है। क्या मुझे कानून की मदद करने का अधिकार नहीं? और फिर यह रकम कोई मैं अपने पल्ले से दे नहीं रहा। न ही उसमें मेरा कोई कमीशन है ।" अदालत में बैठे लोग हँस पड़े ।
"आर्डर !आर्डर !!" जज ने मेज पर हथौड़ी पीटी ।अदालत शांत हो गई ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना , रकम पेश कीजिए ।"
इंस्पेक्टर विजय उठकर बाहर गया और कुछ क्षण में ही एक व्यक्ति को पेश किया गया ! वह हाथ में ब्रीफकेस लिए हुए था । यह शख्स और कोई नहीं बेंकट करुण था । कमलनाथ का बहनोई। अदालत की रस्मी कार्यवाही के अनुसार गी.. पर हाथ रख कसम लेने के बाद उसके बयान शुरू हो गये ।
"आपका नाम ?" रोमेश ने पूछा ।
"बेंकट करुण ।"
"बाप का नाम ।"
"अंकेश करुण ।"
"क्या आप वह रकम लेकर आये हैं, जिसका मालिक सोमू है ?" रोमेश ने पूछा ।
"जी हाँ , ये रही ।"
"यह फर्जी ड्रामा कर रहे हैं योर ऑनर।" राजदान चीखा ,
"पता नहीं क्या गुल खिलाना चाहते हैं?"
"मैं कोई गुल नहीं खिलाना चाहता गुले गुलजार, मैं तो आपकी मदद कर रहा हूँ । केस को और मजबूत कर रहा हूँ ।"
"योर ऑनर, मेरे काबिल दोस्त से कहें कि गवाह का बयान पूरा होने के बाद ही गुल खिलायें ।"
पब्लिक एक बार फिर हँस पड़ी । न्यायाधीश को एक बार फिर मेज बजानी पड़ी। कार्यवाही आगे बढ़ी ।
"ब्रीफकेस खोलो ।" रोमेश ने कहा ।
ब्रीफकेस में सौ-सौ के नोटों की दस गड्डियां थीं । रोमेश ने रकम न्यायाधीश की मेज पर रखी ।
"गिन लीजिये योर ऑनर ! पूरे एक लाख ही हैं, और यह रकम कोई मैं अपनी जेब से दान नहीं कर रहा हूँ, यह वही रकम है जिसकी खातिर यह सब घटना यें प्रकाश में आई ।"
"ठीक है, आगे कहिए ।" न्यायाधीश ने अत्यन्त क्षीण दिलचस्पी से कहा । अदालत में बैठी जनता में खुसुर-फुसुर हो रही थी ।
"यह उसकी पैरवी कर रहा है या फाँसी पर लटकवाना चाहता है, सब उसके खिलाफ जा रहा है ।"
राजदान ने पीछे बैठे व्यक्ति की टिप्पणी सुन ली थी, वह मुस्करा तो दिया, परन्तु अन्दर ही अन्दर उसका मन किसी आशंका से काँप रहा था ।
"बेंकट करुण, अदालत को बताओ कि यह रकम किसने तुम्हें दी, और किस शर्त पर तुमने इसे सोमू के घर तक पहुंचाया ?"
''यह रकम सेठ कमलनाथ ने मुझे दी थी, मैं उनका बहनोई हूँ ।"
उसके इतना कहते ही अदालत में एकदम खलबली मच गयी ।
"शर्त यह थी कि जब सोमू कत्ल के जुर्म का इकबाल कर लेगा, तो रकम उनके घर पहुँचा दी जायेगी और उसके ऐसा करते ही हमने रकम पहुँचा दी ।"
"यह झूठा प्रपंच है ।" राजदान चीखा ,
"भला कमलनाथ क्यों देगा, कमलनाथ तो मर चुका था योर ऑनर ! सफाई पक्ष का वकील तो इस तरह कह रहा है, जैसे वह अभी चुर्रर-मुर्रर करेगा और कमलनाथ को जिन्दा कर लेगा ।"
"यही होने जा रहा है मिस्टर राजदान।"
ठीक उसी समय हथकड़ियों में जकड़ा कमलनाथ अदालत में आ गया।
"देखो,वो रहा कमलनाथ! गौर से देखो और चाहे जैसे शिनाख्त कर लो और खुद अदालत को बतादो कि जो शख्स मरा ही नहीं, उसके कत्ल के जुर्म में क्या किसी मुलजिम को सजा दी जा सकती है? हाउ कैन इट पॉसिबल?, चाहे उसने जुर्म का इकबाल ही क्यों न किया हो ।"
राजदान के तो छक्के छूट गये। पसीना-पसीना हो गया वह। सेठ कमलनाथ सचमुच अदालत में प्रकट हो गया था। अदालत में खलबली शांत हुई, तो कमलनाथ को कटघरे में लाया गया, और कमलनाथ को भी..कसम दिलाई गई ।
"सेठ कमलनाथ, उचित होगा कि आप स्वयं अदालत को सब कुछ बता दें, क्यों कि अब आपका खेल खत्म हो गया है।"
"मैं दिवालिया हो गया था ।" कमलनाथ ने बोलना शुरू किया,
"तीन महीने से मेरी फैक्ट्री में ताला पड़ा था। स्टाफ को वेतन नहीं दे पा रहा था, और वह लोग मुझे कोर्ट में घसीटने की धमकियां दे रहे थे। ट्रेड यूनियन्स उनकी पीठ पर आ खड़ी हुई थी। उनको मेरी हालत का अन्दाजा भी न था, कि मेरी सारी प्रॉपर्टी गिरवी पड़ी है। उस रात मैं बहुत परेशान था और अचानक वह हादसा हो गया, कोई शख्स आत्महत्या के इरादे से रात के अन्धेरे में सड़क के किनारे खड़ा शायद किसी वाहन की प्रतीक्षा कर रहा था, और अचानक हमारी कार के आगे कूद गया, उसकी मौत हो गई ।" इतना कहकर वह कुछ क्षण के लिए रुका ।
"संयोग से उसकी कद-काठी मेरे जैसी थी। मेरे दिमाग में तुरन्त एक ख्याल आया, अगर मेरी मौत इस तरह हो जाती, तो मुझे पचास लाख रुपया मिल सकता था। यह रकम मुझे इंश्योरेंस से मिल सकती थी। उधर सोमू को अपनी बहन की शादी के लिए एक लाख रुपये की जरूरत थी। मैंने पहले तो लाश को अपने कपड़े वगैरा पहनवाये, फिर सोमू से सौदा कर लिया कि उसे क्या करना है । अगर मैं खाली एक्सीडेन्ट दिखाता हूँ, तो तफ्तीश में शायद यह भेद खुल जाता। इसलिये मैंने उसे कत्ल का नाटक बनाकर पेश कर दिया और सोमू मुलजिम बनने को तैयार हो गया। उसके इकबाले-जुर्म करने से पुलिस भी अधिक झंझट में नहीं पड़ी और इंश्योरेंस की रकम भी मुझे मिल गई। मैं कुछ दिन के लिए मुम्बई से बाहर अपने बहनोई के गाँव वाले मकान में रहने चला गया, और काम होने पर रकम सोमू के घर पहुंचाने का निर्देश भी दे दिया था। लेकिन बेंकट करुण पकड़ा गया और फिर मेरा सारा भांडा फूट गया।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! यह है असली वाकया, आप चाहें तो सेठ कमलनाथ की शिनाख्त करवा सकते हैं। कहीं मेरे वकील दोस्त राजदान, कमलनाथ को भी फर्जी न कह बैठे।"
अदालत में बैठे लोगों ने तालियां बजा कर उसका उत्साह-वर्धन किया। अगले दिन अखबारों में रोमी सुर्खियों में था।
जारी रहेगा….![]()