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♡ Family Introduction ♡ |
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Yep internet pe jaise dekhte h us se bhi kale h.....Oh thari, be kaliya ruggad hande hai bayhe to Akeli ya pariwar ke sath? Waise matra bhoomi ki sewa karne ke liye to kathe bhi ja sake hai insaan
Re dat re shyar ....meko ye thoda time lagagarang me aane me kuki abhi kafi chije pending hto aapki shayri padhi jayagi appreciate Kiya jayaga per jawab aane suru hoge kuch time baadतो अपने शहर के रौनक़ की ख़ैर माँगना तुम,
मैं अपने गाँव से इक शाम ले के आ रहा हूँ ।।
Kia boss zabardast update diya hai dimagh ki chakkar ghinni bana kar rakh di hain. Maza aa gaya bohat top ka update thaa.# 27
"रस्सी जल गई, मगर बल नहीं गया।" राजदान बोला।
"मैं वह रस्सी हूँ राजदान, जिसे कानून की आग कभी नहीं जला सकती।"
"ऑर्डर… ऑर्डर ?" न्यायाधीश ने मेज बजाई, "मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपको जो कुछ कहना है अदालत के समक्ष कहें।"
रोमेश अब अदालत से मुखातिब हुआ।
"योर ऑनर, मैं जानता था कि मेरी कानूनी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए अदालत मेरे प्रति सॉफ्ट कार्नर रखती है और वह मुझे एक आखिरी मौका देगी। मुझे भी इसी मौके
का इन्तजार था। योर ऑनर, यह तो अपनी जगह अटल सत्य है कि क़त्ल मैंने ही किया है, परन्तु यह भी अपनी जगह सत्य है कि रोमेश सक्सेना ने जिस मुकदमे को अपने हाथों में लिया, जिसकी पैरवी कि उसे कभी हारा नहीं। यह अलग बात है कि रोमेश पहली बार एक अपराधी का मुकदमा लड़ रहा है।"
अदालत में बैठे लोग कानाफूसी करने लगे, पीछे से एक शोर-सा उठा।
"शांत रहिये, शांत !" न्यायाधीश को कहना पड़ा। लोग चुप हो गये।
"आप कहना क्या चाहते हैं सक्सेना? "
"यही योर ऑनर कि अपराध के इतिहास में ऐसा विचित्र मुकदमा कभी पेश नहीं हुआ होगा कि यह साबित होने पर भी कि मुलजिम ने क़त्ल किया है, अदालत मुलजिम को सजा न देते हुए बाइज्जत रिहा करेगी।"
"व्हाट नॉनसेन्स !" राजदान चीखा, "यह अदालत का अपमान कर रहा है। कानून का मजाक उड़ा रहा है, क्या समझ रखा है इसने कानून को?"
"चुप बे कानून के सिपह सालार ! तेरी तो आज बहुत बुरी गत होने होने वाली है, ऐसे औंधे मुंह गिरने वाला है तू कि कई दिन तक होश नहीं आएगा। कानून के नाम पर हमेशा मेरा भूत तुझे सपनों में डराता रहेगा।"
"योर ऑनर यह गाली गलौज पर उतर आया है।" राजदान चीखा।
"ऑर्डर ! ऑर्डर !!"
एक बार फिर सब शांत हो गया।
"हाँ, योर ऑनर!" रोमेश अदालत से मुखातिब हुआ,
"आप मुझे बाइज्जत रिहा करेंगे। क्यों कि मैं जिन तीन गवाहों को अदालत में पेश करूंगा, वह ही इसके लिए काफी हैं, साबित हो जायेगा कि क़त्ल मैंने नहीं किया, जबकि साबित यह भी हो चुका है कि क़त्ल मैंने ही किया है।"
पीछे वाली बेंच पर ठहाके गूँज उठे।
"मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि मुझे गवाह पेश करने का अवसर दिया जाये।"
न्यायाधीश ने पानी मांग लिया था। छक्के तो सभी के छूट रहे थे। मुकदमे ने एक सनसनी खेज नाटकीय मोड़ ले लिया था।
"इजाजत है।" न्यायाधीश ने कहा।
"थैंक्यू योर ऑनर, जिन तीन सरकारी अधिकारियों को मैं बुलाना चा हता हूँ, अदालत उन्हें तलब करने का प्रबन्ध करे। नम्बर एक, रेलवे विभाग के टिकट चेकर मिस्टर
रामानुज महाचारी ! "
"नम्बर दो, बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इन्चार्ज इंस्पेक्टर बलवंत
सिन्हा !"
"नम्बर तीन, बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी ! इनके वर्तमान कार्यक्षेत्र के पते भी नोट कर लिए जायें ।"
अदालत से बाहर चंदू, राजा और कासिम डिस्कस कर रहे थे।
"यार यह तीन नये गवाह कहाँ से आ गये ?" चंदू बोला।
"अपुन को लगता है कि इसने उनको भी पहले से हमारी तरह फिट करके रखा होगा। यह तो साला लफड़े पे लफड़ा हो गया।"
"अरे यार अब तो उसे ख़ुदा भी बरी नहीं करा सकता।" कासिम बोला।
"यार मेरे को लगता है, बरी हो जायेगा।" चंदू बोला,
"अगर हो गया, तो मैं उसे मुबारकबाद दूँगा।"
"अपुन का धंधा भी चमकेगा भाई, सबको पता चल जायेगा कि राजा का खरीदा चाकू-छुरे से क़त्ल करने वाला बरी होता है।" राजा बोला।
"मगर क़त्ल तो उसने किया ही है।"
"यह तो सबको पता है, मगर अब लफड़ा हो गया।"
शाम के समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुख सुर्खियों में छपी थी।
जे० एन० मर्डर केस में एक नाटकीय मोड़!
अपराध जगत का सबसे सनसनी खेज मुकदमा!
क्या अदालत रोमेश को बरी करेगी?
तरह-तरह की सुर्खियां थीं, जो अख़बारों में छपी हुई थीं। हॉकरों की बन आई थी।
लोग अख़बार पढ़ने के लिये टूटे पड़ रहे थे। गयी रात तक चौराहों, बाजारों, नुक्कड़ो में यही एक बात चर्चा का विषय बन गई थी ।
..............अगली तारीख............
अदालत खचा-खच भरी थी। अदालत के बाहर भी लोगों का हुजूम उमड़ा था। हर कोई जे.एन. मर्डर केस में दिलचस्पी लेने लगा था।
रोमेश सक्सेना को जिस समय
अदालत में पेश किया जा रहा था, कुछ पत्रकारों के कैमरों की फ़्लैश चमकी और कुछ ने आगे बढ़कर सवाल करने चाहे, तरह तरह के प्रश्न थे।
"आप किस तरह साबित करेंगें कि क़त्ल आपने नहीं किया ?"
"मैं यह साबित नहीं करने जा रहा हूँ।" रोमेश का जवाब था,
"मैं सिर्फ अपने को बरी करवाने जा रहा हूँ।"
प्रश्न : "आपके तीनों गवाह क्या कहने जा रहे हैं ? "
उत्तर: "वक्त का इन्तजार कीजिए, अभी अदालत में सब कुछ आपके सामने आने वाला है।"
रोमेश अदालत के कटघरे में पहुँचा। अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी।
"गवाह नम्बर एक, रामानुज महाचारी पेश हों।"
अदालत ने रामानुज को तलब किया। रामानुज मद्रासी था। करीब पचास साल उम्र होगी, रंग काला तो था ही, ऊपर से काला सूट पहने हुये था। रामानुज को शपथ दिलाई गयी। उसने शपथ ली और अपने चश्मे के अन्दर से पूरी अदालत पर सरसरी निगाह दौड़ाई, फिर उसकी नजरें रोमेश पर ठहर गयी। वह चौंक पड़ा।
"उसके मुँह से निकला,"तुम, यू बास्टर्ड !"
"हाँ, मैं !" रोमेश बोला,
"मेरा पहला सवाल यही है मिस्टर रामानुज, कि क्या तुम मुझे जानते हो ? "
"अरे अपनी सर्विस लाइफ में साला ऐसा कभी नहीं हुआ, तुमने हमारा ऐसा बेइज्जती किया कि हम भूल नहीं पाता आज भी, मिस्टर बास्टर्ड एडवोकेट।"
"मिस्टर रामानुज, यह अदालत है, अपनी भाषा दुरुस्त रखें।" न्यायाधीश ने रोका।
"ठीक सर, बरोबर ठीक बोलूंगा।"
"गाली नहीं देने का।"
रोमेश बोला, "हाँ तो रामानुज, क्या तुम अदालत को बता सकते हो कि तुम मुझे कैसे जानते हो ?"
"यह आदमी नौ जनवरी को राजधानी में सफर कर रहा था। उस दिन हमारा ड्यूटी
था। मैं रेलवे का एम्प्लोई हूँ और मेरी ड्यूटी राजधानी एक्सप्रेस में रहती है। टिकट चेक करते समय मैं इसकी सीट पर पहुँचा, तो यह शख्स दारू पी रहा था। मेरे रोकने पर इसने
पहले तो दारू का पैग मेरे मुंह पर मारा और उठकर मेरे गाल पर थप्पड़ मारा जी। "
"मेरी सर्विस लाइफ में पहला थप्पड़ सर! मैंने टिकट माँगा, तो दूसरा थप्पड़ पड़ा जी। मेरी सर्विस लाइफ का दूसरा थप्पड़ जी, मैं तो रो पड़ा जी। पैसेंजर लोगों ने मुझे इस बदमाश से बचाया, यह बोला मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना हूँ, कौन मेरे को दारू पीने से रोकेगा ? कौन
मुझसे टिकट मांगेगा ? हमने यह बात अपने स्टाफ के लोगों को बताया, पुलिस का मदद लिया और बड़ौदा में इसको उतारकर रेलवे पुलिस के हवाले कर दिया।
लेकिन मेरी सर्विस लाइफ का पहला और दूसरा थप्पड़, वो मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगा माई लार्ड !"
इतना कहकर रामानुज चुप हो गया।
"योर ऑनर।" रोमेश ने कहा,
"यह बात नोट की जाये कि रामानुज ने मुझे बड़ौदा स्टेशन पर राजधानी से उतार दिया था। नौ जनवरी की रात राजधानी एक्सप्रेस बड़ौदा में नौ बजकर अठ्ठारह मिनट पर पहुंची थी। मेरे काबिल दोस्त राजदान को अगर कोई सवाल करना हो, तो पूछ सकते हैं।"
"नो क्वेश्चन।" राजदान ने रोमेश के अंदाज में कहा,
"रामानुज के बयानों से यह बात और भी साफ हो जा ती है कि रोमेश सक्सेना को बड़ौदा में उतारा गया और यह शख्स बड़ौदा से सीधा मुम्बई आ पहुंचा, जाहिर है कि इसने बड़ी आसानी से अपनी जमानत करवाली होगी या फिर पुलिस ने ही नशा उतरने पर इसे छोड़ दिया होगा।"
"अंधेरे में तीर न चलाइये राजदान साहब, मेरा दूसरा गवाह बुलाया जाये। बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर बलवंत आपके इन सब सवालों का जवाब दे देगा।“
“मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि बलवंत को अदालत में बुलाया जाये।"
अदालत ने इंस्पेक्टर बलवंत को तलब किया।
"इंस्पेक्टर बलवन्त सिन्हा हाजिर हो।"
बलवन्त सिन्हा पुलिस की वर्दी में था। लम्बा तगड़ा जवान था, कटघरे में पहुंचते ही उसने न्यायाधीश को सैल्यूट मारा। अदालती रस्में पूरे होने के बाद बलवन्त की दृष्टि रोमेश पर ठहर गयी।
"इंस्पेक्टर बलवन्त आप मुझे जानते हैं ?"
"ऑफकोर्स।” बलवन्त ने उत्तर दिया, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"
"कैसे जानते हैं ?"
"क्यों कि मैंने आपको नौ जनवरी की रात लॉकअप में बन्द किया था और रामानुज की रिपोर्ट पर आप पर मुकदमा कायम किया था। फिर अगले दिन आपको कोर्ट में पेश
किया गया, जहाँ से आपको बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में दस दिन की सजा हो गई।
यह सजा इसलिये हुई, क्यों कि आपने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया और न ही अपनी जमानत करवाई !"
"क्या आप बता सकते हैं मुझे सजा किस दिन हुई ?"
"दस जनवरी को।"
"यह बात नोट कर ली जाये योर ऑनर ! नौ जनवरी को मुझे पुलिस ने कस्टडी में लिया और दस जनवरी को मुझे दस दिन की सजा हो गयी।"
राजदान एकदम उठ खड़ा हुआ।
"हो सकता है योर ऑनर सजा होने के बाद मुलजिम के किसी आदमी ने जमानत करवाली हो और यह बात इंस्पेक्टर बलवंत की जानकारी में न हो। यह भी हो सकता है कि आज तक जुर्माना भर दिया गया हो और मुलजिम सीधा मुम्बई आ गया। अगर यह ट्रेन से आता है, तब भी छ: सात घंटे में बड़ौदा से मुम्बई पहुंच सकता है।"
"लगता है मेरे काबिल दोस्त या तो बौखला कर ऊलजलूल बातें कर रहे हैं, या फिर इन्हें कानून की जानकारी नहीं है।" रोमेश ने कहा,
"अगर मेरी जमानत होती या जुर्माने की राशि भर दी जाती, तो पुलिस स्टेशन में केस दर्ज है, वहाँ पूरी रिपोर्ट लगा दी जाती है।"
"रिपोर्ट लगने पर भी कोई जरूरी नहीं कि इंस्पेक्टर बलवन्त को इसकी जानकारी हो, यह कोई ऐसा संगीन केस था नहीं।"
"क्यों इंस्पेक्टर, इस बारे में आपका क्या कहना है ?"
"मेरी पक्की जमानत और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार ही मैंने बयान दिया है। मगर यह एक संभ्रांत फेमस एडवोकेट का मामला न होता, तो मुझे याद भी न रहता। मैं तो इनको रात को ही छोड़ देता, मगर रोमेश सक्सेना ने पुलिस स्टेशन में भी अभद्रता दिखाई,
मुझे सस्पेंड तक करा देने की धमकी दी, इसलिये मैंने इनका मामला अपनी पर्सनल डायरी में नोट कर लिया। इन्हें सजा हुई और यह पूरे दस दिन जेल में बिता कर ही बाहर निकले।"
"ऐनी क्वेश्चन मिस्टर राजदान ?"
राजदान ने इन्कार में सिर हिलाया और रूमाल से चेहरा साफ करता हुआ बैठ गया। साथ ही उसने एक गिलास पानी भी मंगा लिया।
जारी रहेगा…….......
Roti to bha-jave hai ke un ne dekh keYep internet pe jaise dekhte h us se bhi kale h.....
Intzaar rahega sarkarRe dat re shyar ....meko ye thoda time lagagarang me aane me kuki abhi kafi chije pending hto aapki shayri padhi jayagi appreciate Kiya jayaga per jawab aane suru hoge kuch time baad
Ban ke sath thodi khau mera wale ke sath khati huor yaha roti milti h nahi soch rahi hu aata managwa luRoti to bha-jave hai ke un ne dekh ke
Romesh babu case to jeet gaye hai aap magar zindagi Jung yani Seema ko har chukey hai coz jo kuch hua hai woh Seema ki marzi se uske plan me shamil hone se hua hai. Behtreen thriller story hai bhai warna Aaj kal bus story ke naam per sex parostey hain.# 28.
"जिन लोगों के गले खुश्क हो गये हों, वह अपने लिये पानी मंगा सकते हैं, क्यों कि अब जो गवाह अदालत में पेश किया जाने वाला है, वह साबित करेगा कि मैंने पूरे दस दिन बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल में बिताये हैं। मेरा अगला गवाह है बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी।"
इंस्पेक्टर विजय के चेहरे से भी हवाइयां उड़ने लगी थीं। रोमेश का अन्तिम गवाह अदालत में पेश हो गया।
"मैं मुजरिम को इसलिये जानता हूँ, क्यों कि यह शख्स जब मेरी जेल में लाया गया, तो इसने पहली ही रात जेल में हंगामा खड़ा कर दिया।
इसके हंगामा के कारण जेल में अलार्म बजाया गया और तमाम रात हम सब परेशान रहे। मुझे जेल में दौरा करना पड़ गया।"
"क्या आप पूरी घटना का ब्यौरा सुना सकते हैं ?" न्यायाधीश ने पूछा।
"क्यों नहीं, मुझे अब भी सब याद है। यह वाक्या दस जनवरी की रात का है, सभी कैदी बैरकों में बन्द हो चुके थे। कैदियों की एक बैरक में रोमेश सक्सेना को भी बन्द किया गया था। रात के दस बजे इसने ड्यूटी देने वाले एक सिपाही को किसी बहाने दरवाजे तक बुलाया और सींखचों से बाहर हाथ निकालकर उसकी गर्दन दबोची, फिर उसकी कमर में लटकने वाला चाबियों का गुच्छा छीन लिया। ताला खोला और बाहर आ गया। उसके बाद अलार्म बज गया। उसने उन्हीं चाबियों से कई बैरकों के ताले खोल डाले। कई सिपाहियों को मारा-पीटा, सारी रात यह तमाशा चलता रहा।"
"उसके बाद तुम्हारे सिपाहियों ने मुझे मिलकर इतना मारा कि मैं कई दिन तक जेल के अन्दर ही लुंजपुंज हालत में घिसटता रहा। मुझे जेल की तन्हाई में ही बन्द रखा गया।"
"यह तो होना ही था। दस जनवरी की रात तुमने जो धमा-चौकड़ी मचाई, उसका दंड तो तुम्हें मिलना ही था।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! मैं यही साबित करना चाहता था कि दस जनवरी की रात मैं मर्डर स्पॉट पर नहीं बड़ौदा जेल में था, जेल का पूरा स्टाफ और सैकड़ों कैदी मेरा नाटक मुफ्त में देख रहे थे। वहाँ भी मेरे फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं और क़त्ल करने वाले हथियार पर भी। अब यह फैसला आपको करना है कि मैं उस समय कानून की कस्टडी में था या मौका-ए-वारदात पर था।"
अदालत में सन्नाटा छा गया।
"यह झूठ है ।" राजदान चीखा,
"तीनों गवाह इस शख्स से मिले हुए हैं, यह जेलर भी।"
"शटअप।" जेलर ने राजदान को डांट दिया,
"मेरी सर्विस बुक में बैडएंट्री करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। मैंने जो कहा है, वह अक्षरसः सत्य है और प्रमाणिक है।"
"अ… ओके… नाउ यू कैन गो।" राजदान ने कहा और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गया।
"कानून की किताब में यह फैसला और मुकदमा ऐतिहासिक है। मुलजिम रोमेश सक्सेना पर ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 का मुकदमा अदालत में चलाया गया। मकतूल जनार्दन नागा रेड्डी का क़त्ल मुल्जिम के हाथों हुआ, पुलिस ने साबित किया।“
“लेकिन रोमेश सक्सेना उस रात कानून की हिरासत में पाया गया, इसीलिये यह तथ्य साबित करता है कि दस जनवरी की रात रोमेश सक्सेना घटना स्थल पर मौजूद नहीं था। जो शख्स कानून की हिरासत में है, वह उस वक्त दूसरी जगह हो ही नहीं सकता, इसीलिये यह अदालत रोमेश सक्सेना को बाइज्जत रिहा करती है"
अदालत उठ गयी। एक हड़कम्प सा मचा, रोमेश की हथकड़ियाँ खोल दी गयीं। जब तक वह अदालत की दर्शक दीर्घा में पहुंचा, उसे वहाँ पत्रकारों ने घेर लिया। बहुत से लोग रोमेश के ऑटोग्राफ लेने उमड़ पड़े।
" नहीं, मैं ऑटोग्राफ देने वाली शख्सियत नहीं हूँ, मैं____एक मुजरिम हूँ। जिसने कानून के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है। यह अलग बात है कि जिसे मैंने मारा, वह कानून की पकड़ से सुरक्षित रहने वाला अपराधी था। उसे कोई कानून सजा नहीं दे सकता था। अब एक बड़ा सवाल उठेगा, क्यों कि मैं सरेआम क़त्ल करके बरी हुआ हूँ और यही कानून की मजबूरी है। उसके पास ऐसी ताकत नहीं है, जो हम जैसे चतुर मुजरिमों या जे.एन. जैसे पाखण्डी लोगों को सजा दे सके, मैं इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता।"
अदालत से बाहर निकलते समय रोमेश की मुलाकात विजय से हो गई।
"हेल्लो इंस्पेक्टर, जंग का नतीजा पसन्द आया ?"
"नतीजा कुछ भी हो दोस्त, मगर मैंने अभी हार नहीं कबूल की है।"
"अब क्या करोगे, मुकदमा तो खत्म हो चुका, हम छूट गये।"
"मैंने जिस अपराधी को पकड़ा है, वह अपराधी ही होता है, उसे सजा मिलती है, मैंने अपनी पुलिसिया जिन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा।"
"मुश्किल तो यही है कि मैं भी कभी नहीं हारा, तब भला अपना केस कैसे हार जाता।"
"तुम उस रात मौका-ए-वारदात पर थे।"
"क्या तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारे फ्लैट को घेर चुका था, तो तुमने मुझ पर फायर किया था, मुझे चेतावनी दी थी, क्या मैं तुम्हारी भावना नहीं पहचानता।"
"बेशक पहचानते हो।“
"तो फिर जेल में उस वक्त कैसे पहुंच गये ?"
"अगर मैंने यह सब बता दिया, तो सारा मामला जग जाहिर हो जायेगा। लोग इसी तरह क़त्ल करते रहेंगे, कानून सिर्फ एक मजाक बनकर रह जायेगा।"
"मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मालूम न कर लूं कि यह सब कैसे हुआ।"
"छोड़ो, यह बताओ शादी कब रचा रहे हो ?"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया। आगे बढ़कर जीप में सवार हो गया।
शंकर नागा रेड्डी शाम के छ: बजे रोमेश के फ्लैट पर आ पहुँचा। रोमेश उसका इन्तजार कर रहा था। रोमेश उस वक्त फ्लैट में अकेला था। डोरबेल बजते ही उसने दरवाजा खोला, शंकर नागा रेड्डी एक चौड़ा-सा ब्रीफकेस लिए दाखिल हुआ।
"बाकी की रकम।" सोफे पर बैठने के बाद शंकर ने कहा,
"एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना है। जैसे मैंने चाहा और सोचा, ठीक वैसा ही परिणाम मेरे सामने आया है। रकम गिन लीजिये।"
"ऐसे धंधों में रकम गिनने की जरुरत नहीं पड़ती।" रोमेश ने ब्रीफकेस एक तरफ रख लिया।
"आज के अखबार आपके कारनामे से रंगे पड़े हैं।" शंकर बोला।
"मेरे मन में एक सवाल अभी भी कुलबुला रहा है।"
"वो क्या ?"
"यही कि तुमने यह क़त्ल मेरे हाथों से क्यों करवाया और तुम्हें इससे क्या मिला ?"
"आपके हाथों क़त्ल तो इसलिये करवाया, क्यों कि आप ही यह नतीजा सामने ला सकते थे। आपकी जे.एन. से ठन गयी थी और लोगों को सहज ही यकीन आ जाता कि आपने जे.एन. का बदला लेने के लिए मार डाला। रहा इस बात का सवाल कि मैंने ऐसा क्यों किया, उसका जवाब देने में अब मुझे कोई आपत्ति नहीं।"
शंकर थोड़ा रूककर बोला।
"यह तो सारी दुनिया जानती है कि जे.एन. को लोग ब्रह्मचारी मानते थे। उसने शादी नहीं की, लिहाजा उसकी प्रॉपर्टी का कोई वारिस भी नहीं था। लोग समझते थे कि उसने समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित किया है। लेकिन हकीकत में वह कुछ और ही था।"
"उसके कई औरतों से नाजायज सम्बन्ध रहे होंगे, यही ना।"
"इसके अलावा उसने एक लड़की की इज्जत लूटने के लिये उससे शादी भी की थी। यह शादी उसने एक प्रपंच के तौर पर रची और उस लड़की को कई वर्षो तक इस्तेमाल करता रहा। वह अपने को जे.एन. की पत्नी ही समझती रही, फिर जब जे.एन. का उससे मन भर गया, तो वह उस लड़की को छोड़कर भाग गया।
अपनी तरफ से उसने फर्जी शादी के सारे सबूत भी नष्ट कर दिये थे, किन्तु लड़की गर्भवती थी और उसका बच्चा सबसे बड़ा सबूत था। जे.एन. उस समय आवारा गर्दी करता था।“
“लड़की माँ बन गयी, उसका एक लड़का हुआ। बाद में जब जे.एन. राजनीति में उतरकर अच्छी पॉजिशन पर पहुंच गया, तो उसकी पत्नी ने अपना हक माँगा। जे.एन. ने उसे स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे मरवा डाला। किन्तु वह उसके पुत्र को न मार पाया और पुत्र के पास उसके खिलाफ सारे सबूत थे। या यूं समझिये कि सबूत इकट्ठे करने में उसने कई साल बिता दिये और तब उसने बदला लेने की ठान ली। उसने अपना एक भरोसे का आदमी जे.एन. के दरबार तक पहुँचा दिया और जे.एन. से तुम टकरा गये और मेरा काम आसान हो गया।"
"यानि तुम जे.एन. की अवैध संतान हो ?"
"अवैध नहीं, वैध संतान ! क्यों कि अब मैं उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस हूँ।
“उसकी अरबों की जायदाद का मालिक ! मैं साबित करूंगा कि मैं उसका बेटा हूँ। उसने मेरी माँ को मार डाला था, मैंने उसे मार डाला और अब मेरे पास बेशुमार दौलत होगी । मैं जे.एन. की दौलत का वारिस हूँ।"
"यह बात अब मेरी समझ आ गयी कि तुमने जे.एन. को माया देवी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए किस तरह विवश किया होगा। तुम्हारा आदमी जो कि जे.एन. का करीबी था, यकीनन इतना करीबी है कि मर्डर की तारीख दस जनवरी को आसानी से जे.एन. को मेरे बताये स्थान पर भेजने में कामयाब हो गया।"
"हाँ , तुमने बीच में मुझे फोन किया था और बताया कि जे.एन. की सुरक्षा व्यवस्था इंस्पेक्टर विजय के हाथों में है, उससे बचकर जे.एन. का क़त्ल करना लगभग असम्भव है। तब मैंने तुमसे कहा, कि इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम जहाँ चाहोगे, जे.एन. खुद ही अपनी सुरक्षा तोड़कर पहुंच जायेगा और यही हुआ। जे.एन. उस रात वहाँ पहुँचा, जहाँ तुमने उसे क़त्ल करना था।"
"अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शख्स और कोई नहीं सिर्फ मायादास है।"
"हम दोनों इस गेम में बराबर के साझीदार हैं, अन्दर के मामलों को ठीक करना उसी का काम था। अगर मायादास हमारी मदद न करता, तो तुम हरगिज अपने काम में कामयाब नहीं हो सकते थे।"
"एक सवाल आखिरी।"
"पूछो।"
"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि पच्चीस लाख की रकम हासिल करने के लिए मैं यह सब कर गुजरूँगा।"
"यह बात मुझे पता चल गई थी कि तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़कर चली गई है और तुम उसे बहुत चाहते हो। उसे दोबारा हासिल करने के लिए तुम्हें पच्चीस लाख की जरुरत है, बस मैंने यह रकम अरेंज कर दी और कोई सवाल ?"
"नहीं, अब तुम जा सकते हो। हमारा बिजनेस यही पर खत्म होता है, दुनिया को कभी यह न मालूम होने पाये कि हमारा तुम्हारा कोई सम्बन्ध था।"
शंकर, रोमेश को रुपया देकर चलता बना। अब रोमेश सोच रहा था कि इस पूरे खेल में मायादास ने एक बड़ी भूमिका अदा की और हमेशा पर्दे के पीछे रहा। मायादास ने ही जे.एन. को मर्डर स्पॉट पर बिना किसी सुरक्षा के भेज दिया था। मायादास का ध्यान आते ही रोमेश को याद आया कि किस तरह इसी मायादास ने उसकी पत्नी सीमा को उसके फ्लैट पर नंगा कर दिया था। इसकी उसी हरकत ने सीमा को उससे जुदा कर डाला।
"सजा तो मुझे मायादास को भी देनी चाहिये।" रोमेश बड़बड़ाया,
"मगर अभी नहीं। अभी तो मुझे सिर्फ एक काम करना है, एक काम। सीमा की वापसी।"
सीमा का ध्यान आते ही वह बीती यादों में खो गया।
"अब मैं तुम्हें पच्चीस लाख भी दूँगा सीमा ! मैं आ रहा हूँ, जल्द आ रहा हूँ तुम्हारे पास। मैं जानता हूँ कि तुम भी बेकरारी से मेरा इन्तजार कर रही होगी।"
रोमेश उठ खड़े हुआ ।
जारी रहेगा...............
Thank you very much for your amazing review and superb support bhaiKia boss zabardast update diya hai dimagh ki chakkar ghinni bana kar rakh di hain. Maza aa gaya bohat top ka update thaa.
Ha ye to sahi hai, aato mangwa lyo the.Ban ke sath thodi khau mera wale ke sath khati huor yaha roti milti h nahi soch rahi hu aata managwa lu
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