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Thriller The cold night (वो सर्द रात) (completed)

Shetan

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Update 2.

नेहरू नगर, मुम्बई गोरेगाँव ।
⁸उसी नगर की एक चाल में वैशाली का निवास था । उदास मन से वैशाली घर पहुंची । घर में अपाहिज बाप और माँ थी । उस समय घर में एक और अजनबी शख्स मौजूद था ।

वैशाली ने इस व्यक्ति को देखा , वह अधेड़ और दुबला -पतला आदमी था । सिर के आधे बाल उड़े हुये थे ।

"बेटी ये हैं करुण पटेल, सोमू के दोस्त ।"

"मेरे कू करुण पटेल बोलता ।

" वह व्यक्ति बोला, "तुम सोमू का बैन वैशाली होता ना ।"

"हाँ , मैं ही वैशाली हूँ । मगर आपको पहले कभी सोमू के साथ देखा नहीं ।"

"कभी अपुन तुम्हारे घर आया ही नहीं , देखेगा किधर से और अगर हम पहले आ गया होता , तो भी गड़बड़ होता ।"

"क्या मतलब ?"


"अभी कुछ दिन पहले तुम्हारे भाई ने हमको एक लाख रुपया दिया था । हम उसका पूरा सेफ्टी किया , इधर पुलिस वाला लोग आया होगा , उनको एक लाख रुपया का रिकवरी करना था । अब मामला फिनिश है, सोमू ने इकबाले जुर्म कर लिया ।
अब पुलिस को सबूत जुटाने का जरूरत नहीं पड़ेगा ।

देखो बैन तुम्हारा डैडी भी सेठ के यहाँ काम करता था , फैक्ट्री में टांग कट गया , तो उसको पूरा हर्जाना देना होता था कि नहीं ?"

"तो क्या सोमू ने सचमुच… ?"

"अरे अब आलतू-फालतू नहीं सोचने का । सेठ का मर्डर करके सोमू ने ठीक किया , साला ऐसा लोग को जिन्दा रहने का कोई हक नहीं ।

अरे उसकू फांसी नहीं होगा और दस बारह साल अन्दर भी रहेगा , तो कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम अपना शादी धूमधाम से मनाओ और किसी पचड़े में नहीं पड़ने का ।"

"लेकिन मेरा दिल कहता है, मेरा भाई काति ल नहीं हो सकता ।"

"दिल क्या कहता है बैन, उसको छोड़ो । अपुन की बात पर भरोसा करो , वो ही कत्ल किया है, माल हमको दे गया था । हम उसकी अमानत लेके आया है । हम तुम्हारा मम्मी डैडी को भी बरोबर समझा दिया , किसी लफड़े में पड़ेगा , तो पुलिस तुमको भी तंग करेगा ।

इसलिये चुप लगा के काम करने का , तुम्हारा डैडी -मम्मी ने जो रिश्ता देखा है, उन छोकरा लोग को बोलो कि शादी का तारीख पक्की करें ।
पीछे मुड़के नहीं देखने का है । काहे को देखना भई, इस दुनिया में मेहनत मजदूरी से कमाने वाला सारी जिन्दगी इतना नहीं कमा सकता कि अपनी बेटी का शादी धूमधाम से कर दे । नोट इसी माफिक आता है ।"

"बेटी ! अब हमारी फिक्र दूर हो गई, सिर का बोझ उतर गया । तेरे हाथ पीले हो जायेंगे, तो हमारा बोझ उतर जायेगा । सोमू के जेल से आने तक हम किसी तरह गुजारा कर ही लेंगे ।

"अच्छा हम चलता , कभी जरूरत पड़े तो बता ना । हमने माई को अपना एड्रेस दे दिया है । ओ.के. वैशाली बैन, हम तुम्हारी शादी पर भी आयेगा ।

"करुण पटेल चलता बना । उसके जाने के बाद वैशाली ने पूछा ।

"रुपया कहाँ है माँ ?"


"सम्भाल के रख दिया है ।"

"रुपया मेरे हवाले करदो माँ ।"

"क्यों , तू क्या करेगी ?"

"शादी तो मेरी होगी न, किसी बैंक में जमा कर दूंगी । "


वैशाली की माँ पार्वती देवी अपनी बेटी की मंशा नहीं भांप पायी । उसकी सुन्दर सुशील बेटी यूँ भी पढ़ी लिखी थी , बी .ए. करने के बाद एल.एल.बी . कर रही थी । लेकिन माँ इस बात को भी अच्छी तरह जानती थी , बेटी चाहे जितनी पढ़ लिख जाये पराया धन ही होती है और निष्ठुर समाज में बिना दान दहेज के पढ़ी- लिखी लड़की का भी विवाह नहीं होता बल्कि पढ़ -लिखने के बाद तो उसके लिये वर और भी महँगा पड़ता है ।"

"बेटी , तू इस पैसे को जमा कर आ, हमें कोई ऐतराज नहीं । वैसे भी घर में इतना पैसा रखना ठीक नहीं , जमाना बड़ा खराब है ।" पार्वती देवी ने रुपयों से भरा ब्रीफकेस वैशाली के सामने रख दिया ।


वैशाली ने ब्रीफकेस खोला । ब्रीफकेस में नये नोटों की गड्डियां रखी थी , वैशाली ने उन्हें गिना , वह एक लाख थे । उसने ब्री फकेस बन्द किया ।

"माँ , मैं थोड़ी देर में लौट आऊंगी ।"

"रुपया सम्भालकर ले जाना बेटी ।" अपाहिज पिता जानकी दास ने कहा।

"आप चिन्ता न करें डैडी ।"


वैशाली चाल से बाहर निकली । उसने बस से जाने की बजाय ऑटो किया और ऑटो में बैठ गई ।

"कि धर जाने का मैडम ।" ऑटो वाले ने पूछा ।

"थाने चलो ।"

"ठाणे, ठाणे तो इधर से बहुत दूर पड़ेला ।" ड्राइवर ने आश्चर्य से वैशाली को घूरा ।

"ठा _णे नहीं पुलिस स्टेशन ।" ऑटो वाले ने वैशाली को जरा चौंककर देखा , फिर गर्दन हिलाई और ऑटो स्टार्ट कर दिया ।

…………………………..जहां दो दिन पहले ही इंस्पेक्टर विजय ने गोरेगाव पुलिस स्टेशन का चार्ज सम्भाला था।

गोरेगांव में फिलहाल क्रिमिनल्स का ऐसा कोई गैंग नहीं था , जो उसे अपनी विशेष प्रतिभा का परिचय देना पड़ता । विजय अपने जूनियर ऑफिसर सब-इंस्पेक्टर बलदेव से इलाके के छंटे -छटाये बदमाशों का ब्यौरा प्राप्त कर रहा था ।

"दारू के अड्डे वालों का तो हफ्ता बंधा ही रहता है सर ।"

"हूँ ।"

"वैसे तो इलाके में हड़कम्प मच ही गया है, बदमाश लोग इलाका छोड़ रहे हैं, सबको पता है कि आपके इलाके में ये लोग धंधा नहीं कर सकते । हमने नकली दारू वालों को बता दिया है कि धंधा समेट लें, जुए के अड्डे भी बन्द हो गये हैं ।"

"ये लोग क्या अपनी सोर्स इस्तेमाल नहीं करते ।"

"आपके नाम के सामने कोई सोर्स नहीं चलती सबको पता है ।"

इंस्पेक्टर विजय अभी यह सब रिकार्ड्स देख ही रहा था कि एक सिपाही ने आकर सूचना दी कि कोई लड़की मिलना चाहती है ।

"अन्दर भेज दो ।" विजय ने कहा ।

कुछ ही सेकंड बाद हरे सूट में सजी-संवरी वैशाली ने जैसे स्टेशन इंचार्ज के कक्ष में हरियाली फैला दी । विजय ने वैशाली को देखा तो देखता रह गया ।
वैशाली ने भी विजय को देखा तो ठगी -सी रह गई ।

"बलदेव !"
विजय को सहसा कुछ आभास हुआ,"जरा तुम बाहर जाओ ।

" बलदेव ने वैशाली को सिर से पाँव तक देखा । उसकी कुछ समझ में नहीं आया , फिर भी वह उठकर बाहर चला गया ।

"बैठिये ।" विजय ने सन्नाटा भंग किया । वैशाली ने विजय के चेहरे से दृष्टि हटाई, "अ… आप मेरा मतलब।"

"हाँ , मैं विजय ही हूँ ।" विजय के होंठों पर मुस्कान आ गई, "बैठिये !"

वैशाली कुर्सी पर बैठ गई । "हाँ , मुझे तो यकीन ही नहीं आ रहा है ।"

"बहुत कम सर्विस है मेरी और इस कम सर्विस में ही मैंने अच्छा काम किया है वैशाली।"

"आपको इस रूप में देखकर मुझे बेहद खुशी हुई ।"


"तुम यहीं रहती हो वैशा ली ?"

"नेहरू नगर की चाल नम्बर 18 में ।"

"इन्टर तक तो हम साथ-साथ पढ़े, मेरा इसके बाद ही पुलिस में सलेक्शन हो गया था और मैं पुलिस ऑफिसर बन गया ,

" कैसा लगता हूँ पुलिस ऑफिसर के रूप में ?"

"बहुत अच्छे लग रहे हो विजय ।"

"क्या तुम्हा री शादी हो गई ?" विजय ने पूछा ।

"नहीं । " वैशाली ने उत्तर दिया ।

"मेरी भी नहीं हुई ।"

वैशाली की आँखें शर्म से झुक गई ।

''अरे हाँ , यह पूछना तो मैं भूल ही गया , तुम यहाँ किस काम से आई हो।"

"दरअसल मैं आपको … ।"

''यह आप-वाप छोड़ो , पहले की तरह मुझे सिर्फ विजय कहो । अच्छा लगेगा ।"

वैशा ली मुस्करा दी । "पहले तो बहुत कुछ था , मगर… ।"


"अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, खैर यह घरेलू बातें तो किसी दूसरी जगह होंगी , फिलहाल तुम यह बताओ कि पुलिस स्टेशन में क्यों आना हुआ ?"

वैशाली ने ब्रीफकेस विजय के सामने रख दिया और फिर सारी बात बता दी।

विजय ध्यानपूर्वक सुनता रहा । सारी बात सुनने के बाद विजय बोला ,

"एक तरफ तो तुम्हारा दिल गवाही दे रहा है कि सोमू ने कत्ल नहीं किया । दूसरी तरफ यह रुपया चीख-चीख कर कह रहा है कि सोमू ने ही कत्ल किया है, और कानून कभी जज्बात नहीं देखता , सबूत देखता है ।
नो चांस, इकबाले जुर्म के बाद क्या बच जाता है ।"

"असल में मैं यहाँ पुलिस से मदद लेने नहीं यह लूट का माल जमा करने आई थी , ताकि अगर मेरे भाई ने सचमुच खून किया है, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा मिल सके, और मैं इस दौलत से अपनी मांग भी नहीं सजा सकती ।"

"मैं जानता हूँ वैशाली तुम शुरू से ही कानून का सम्मान करती हो , फिर भी मैं तुम्हें एक निजी मशवरा दूँगा , बेशक यह रुपया तुम पुलिस स्टेशन में जमा कर दो , मगर एक बार किसी अच्छे वकील से मिलकर उसकी पैरवी तो की जा सकती है ।"

"इकबाले जुर्म और इस सबूत के बाद भी क्या कोई वकील उसे बचा सकता है ?"

"हाँ , बचा सकता है । इस शहर में एक वकील है रोमेश सक्सेना । वह अगर इस केस को हाथ में ले लेगा , तो समझो सोमू बरी हो गया । रोमेश की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह आज तक कोई मुकदमा हारा नहीं है, रोमेश की दूसरी विशेषता यह है कि वह मुकदमा ही तब हाथ में लेता है, जब उसे विश्वास हो जाता है कि मुलजिम निर्दोष है ।"


"क्या बात कह रहे हो , किसी भी वकील को भला इस बात से क्या मतलब कि वह किसी निर्दोष का मुकदमा लड़ रहा है या दोषी का ?,
मुकदमा लड़ना तो उसका पेशा है ।"


"यही तो अद्भुत बात इस वकील में है, वह जरायम पेशा लोगों की कतई पैरवी नहीं करता । वैसे तो वह मेरा मित्र भी है, लेकिन तुम खुद ही उससे सम्पर्क करो , मैं उसका एड्रेस दे देता हूँ, वह बांद्रा विंग जैग रोड पर रहता है।"

"यह रुपया ।"

"रुपया तुम यहाँ जमा कर सकती हो, अगर यह लूट का माल न हुआ, तो तुम्हें वापि स मिल जायेगा , लेकिन तुम रोमेश से तुरन्त सम्पर्क कर लो , उसके बाद मुझे बताना , कल मैं ड्यूटी के बाद तुमसे मिलने घर पर आऊँगा ।

" वैशाली जब पुलिस स्टेशन से बाहर निकली , तो उसका मन काफी कुछ हल्का हो गया था । किस्मत ने उसे एक बार विजय से मिला दिया था ।

इंटर तक दोनों साथ-साथ पढ़े थे । वह बड़ौदा में थी उस वक्त, फिर परिवार मुम्बई आ गया और वैशाली का बीच में एक वर्ष बेकार चला गया। उसने पुनः अपनी शिक्षा जारी रखी । वह विजय से प्यार करती थी , विजय भी उसे उतना ही चाहता था , परन्तु उस वक्त यह प्यार मुखरित नहीं हो पाया ।
इस अधूरे प्यार के बाद दोनों कभी नहीं मिले और आज संयोग ने उन्हें मिला दिया था ।

"क्या विजय आज भी मुझे उतना ही चाहता है ?" यह सोचती हुई वह अपने आप में खोई बढ़ी चली जा रही थी ।


जारी रहेगा..✍✍️
Kahani ke sayad hireo hiroine yahi honge??? Par kahani ka ashli makshad samaz aa gaya sayad. Aap ek scam ko ujagar karna chahte ho. Amezing. Thriller bass aap ki akript bhi muje bahot pasand aai aur likhne ka andaz to la jawab hai. Ek tarah se redrs ko padhte wakt vo seen man me img karwana 100% success ho.

Bas ek chij par aap ki pakad dhili kahungi vo hai language. Mumbaiya local bhansha. Tapori type. Ye jitni ashan lagti hai. Utni hoti nahi. Fir bhi aap ki kosis karna bahot achha hai.

Magar language esi chij hai ki us mahol ko redrs 100 and 1 % feel karta hai. Iske lie koi dushri bhasha me likhne ki jarurat nahi hai. Har prant ke logo ka bat karne ka tarika. Unke hindi bolne ke tarike ko mahesus karna hai. Mano to unki bolne ki ton ko sikhna.

Lekin aap us mahol ko jatane me la jawab ho. Iis lie aap ki itni chhoti chij par jyada gor karne ki bhi jarurat nahi hai.

Aap amezing ho Panditji.
 

Shetan

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# 3


एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने नवयौवना को ध्यानपूर्वक देखा ।

"इस किस्म का यह पहला केस है ।" रोमेश मे कहा, "एक तरफ तो आप फरमाती हैं कि वह बेकसूर है । दूसरी तरफ उसके खिलाफ खुद सबूत जुटा कर थाने में पहुँचा रही हैं, तीसरी बात यह कि मुझसे मदद भी चाहती हैं, आप आखिर हैं क्या चीज ?"


"सर आप मेरी मनोस्थिति समझिए, मैं उसकी सगी बहन हूँ, बचपन से उसे जानती हूँ । वह मुझे बेइन्तहा चाहता है, मगर ऐसा नहीं कि वह किसी का कत्ल कर डाले ।"


"तो फिर वह रुपया कहाँ से आ गया ?"

"उसी रुपये ने मुझे दोहरी मानसिक स्थिति में ला खड़ा किया है, इसीलिये तो मैं आपके पास आई हूँ ।
कहीं ऐसा न हो कि वह निर्दोष हो और मेरी एक भूल से उसे फाँसी की सजा हो जाये, फिर तो मैं अपने आपको कभी माफ न कर पाऊँगी ।

सर हो सकता है किसी ने उसे फंसाने के लिए चाल चली हो, और एक लाख रुपया मेरे घर पहुंचाया हो , क्यों कि सोमू ने कभी उस व्यक्ति का जिक्र तक नहीं किया , जो अपने को उसका शुभचिंतक बता रहा है।"


"मिस वैशाली पहले अपना माइण्ड मेकअप करो , एक ट्रैक पर चलो , यह तय करो कि वह निर्दोष है या दोषी , उसके बाद मेरे पास आना , वैसे भी मैं कोई मुकदमा तब तक हाथ में नहीं लेता , जब तक मुझे यकीन नहीं हो जाता कि मुलजिम निर्दोष है ।"


"लेकिन सर, जबतक आप या मैं इस नतीजे पर पहुँचेंगे… ।"


"कुछ नहीं होगा , तब तक के लिए अदालत की कार्यवाही रोकी जा सकती है । आप मुझे अगले सप्ताह इसी दिन मिलना समझी आप, तब तक मैं अपने तौर से भी पुष्टि कर लूँगा,
हाँ उस आदमी का नाम पता नोट कराओ, जिसने एक लाख रुपया दिया है ।"

वैशाली ने उसका नाम-पता नोट करा दिया । अगले सप्ताह उसी दिन एक बार फिर रोमेश सक्सेना के सामने थी।

"अब बताइए आपकी पटरी किसी एक लाइन पर चढ़ी ?" एडवोकेट सक्सेना ने प्रश्न किया ।“

रोमेश सक्सेना की आयु करीब पैंतीस वर्ष थी । उसका आकर्षक व्यक्तित्व था और गोरा चिट्टा छरहरा शरीर । उसकी उजली -सी आँखें, चौड़ा ललाट और बलिष्ट भुजायें, इस कसरती बदन को देखकर कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता था कि वह शख्स एथलीट होगा ।

रोमेश सक्सेना सिगरेट का धुआं छोड़ रहा था और उसकी दूरदृष्टि शून्य में बैलेंस थी । "बोलिए कौन-सा ट्रैक चुना है ?" इस बार रोमेश ने सीधे वैशाली की आँखों में देखते हुए कहा ।


"मैंने उससे जेल में मुलाकात की थी ।" वैशाली बोली ।

"फिर ।"

"उससे मिलने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि कत्ल उसी ने किया है, आई एम सॉरी सर, मैंने व्यर्थ में आपका समय नष्ट किया ।"

"क्या तुमने उसे यह भी बता दिया था कि तुमने रुपया पुलिस स्टेशन में जमा कर दिया है ।"

"मैंने उससे रुपए का कोई जिक्र नहीं किया , ऐसा इसलिये कि कहीं यह जानकर उसे सदमा न पहुंच जाये,

उसने मुझे साफ-साफ बताया कि मेरी शादी के लिए उसने सेठ से कर्जा माँगा था , सेठ ने देने से इन्कार कर दिया और फिर वह अवसर की ताक में रहा , वह मेरे लिए कुछ भी कर गुजर सकता था बस ।"


"तो आपके दिमाग ने यह तय कर लिया कि सोमू हत्यारा है, इसलिये उसे सजा मिलनी ही चाहिये ।"

"कानून के आगे मैं रिश्तों को महत्व नहीं देती सर ।"

"हम तुम्हारे जज्बे की कद्र करते हैं और हमने यह फैसला किया है कि हम सोमू का मुकदमा लड़ेंगे ।"

"क्या ? मगर सर ?"

"मिस वैशाली , तुम्हारी नजर में सोमू हत्यारा है, मगर मेरी नजर से वह हत्यारा नहीं है! और यह जानने के बाद कि सोमू हत्यारा नहीं है, मैं आँख नहीं मूंद सकता , ऐसे मुकदमों को मैं जरूर लड़ता हूँ ।"

"लेकिन आप यह किस आधार पर कह रहे हैं ?"

"आधार आपको अदालत में पता चल जायेगा । अब आप निश्चिन्त हो जायें, बेशक आप सबको बता सकती हैं कि आपका ब्रदर बरी हो कर बाहर आयेगा , क्यों कि रोमेश सक्सेना जिस मुकदमे को हाथ में लेता है, दुनिया की कोई अदालत उसमें मुलजिम को सजा नहीं दे सकती ।"

"मेरे लिए वह क्षण बेहद अद्भुत और आश्चर्यजनक होंगे ।"

"नाउ रिलैक्स ।" रोमेश उठ खड़ा हुआ,

"मुझे जरूरी काम से जाना है ।"

वैशाली और रोमेश दोनों साथ-साथ फ्लैट से बाहर निकले और फिर रोमेश ने अपनी मोटरसाइकिल सम्भाली , जबकि वैशाली आगे की तरफ बढ़ गई।

वहीं दूसरी और:


विजय ने घड़ी में समय देखा , वह कोई दस मिनट लेट था । पुलिस स्टेशन में हर काम रूटीन की तरह चल रहा था । इंस्पेक्टर विजय के आते ही पूरा थाना अलर्ट हो गया । उसने आफिस में बैठते ही जी डी तलब की । जी डी तुरंत उसकी मेज पर आ गई । अभी वह जी डी देख रहा था कि टेलीफोन घनघना उठा ।

"नमस्कार ।" उसने फोन पर कहा ,

"मैं गोरेगांव पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर विजय बोल रहा हूँ ।"

"ओ सांई, यहाँ पहुंचो नी फौरन, संगीता अपार्टमेंट में मर्डर हो गया नी सांई, मेरे फ्रेंड जगाधरी का ।"


"आप कौन बोल रहे हैं ?"

"ओ सांई हम हीरालाल जेठानी बोलता जी , उसका पड़ोसी , फौरन आओ नी।"


"ठीक है, हम अभी पहुंचते हैं ।"

"इंस्पेक्टर विजय ने तुरन्त सब इंस्पेक्टर बलदेव को बुलाया ।

"तुमने संगीता अपार्टमेंट देखा है ।"

"ओ श्योर !" बलदेव ने कहा ,
"क्या हुआ ?"

"रवानगी दर्ज करो , हमें वहाँ एक कत्ल की तफ्तीश के लिए तुरन्त पहुंचना है ।"

बलदेव के अलावा चार सिपाहियों को साथ लेकर इंस्पेक्टर विजय घटना स्थल की ओर रवाना हो गया । संगीता अपार्टमेंट ईस्ट में था , फिर भी घटना स्थल पर पहुंचने में उन्हें दस मिनट से अधिक समय नहीं लगा ।

विजय के पहुंचने से पहले ही अपार्टमेंट के बाहर काफी भीड़ लग चुकी थी । इंस्पेक्टर विजय ने उन लोगों के पास एक सिपाही को छोड़ा और बाकी को लेकर अपार्टमेंट के तीसरे फ्लैट पर जा पहुँचा । इमारत में प्रविष्ट होते ही उसे पता चल चुका था कि वारदात कहाँ हुई है ।

"सांई मेरा मतलब हीरा लाल जेठानी ।"

फ्लैट के दरवाजे पर खड़े एक अधेड़ व्यक्ति ने विजय की तरफ लपकते हुए कहा । हीरालाल कुर्ता -पजामा पहने था , सुनहरी फ्रेम की ऐनक नाक पर झुक-सी रही थी और सिर पर मारवाड़ियों जैसी टोपी थी । तीसरे माले में चार फ्लैट थे ।

"क्या नाम बताया था ?"

"जगाधरी ।" हीरालाल बोला और फिर रूमाल से अपनी आँखें पोंछने लगा ,"मेरा पक्का दोस्त साहब जी , चल बसा ।"


"हूँ ।"

विजय ने फ्लैट का दरवाजा खोला और एक सिपाही को दरवाजे पर खड़े रहने का संकेत करके अन्दर दाखिल हो गया । दो बैडरूम और एक ड्राइंगरूम का फ्लैट था । फ्लैट में कोई नहीं था ।

"किधर ?" विजय ने हीरालाल से पूछा।

हीरालाल ने एक बेडरूम की ओर इशारा कर दिया । विजय बेडरूम की तरफ बढ़ा । उसने बेडरूम को पुश किया , दरवाजा खुलता चला गया। वह सोच रहा था , बेडरूम में बेड पड़ा होगा और लाश या तो बेड पर होगी या नीचे बिछे कालीन पर, किन्तु वहाँ का दृश्य कुछ और ही था ,

मृतक इस अन्दाज में बैठा था जैसे बिल्कुल किसी सस्पेंस मूवी का दृश्य हो । वह एक ऊँचे हत्थे वाली रिवाल्विंग चेयर पर विराजमान था ,

उसके माथे पर खून जमा हो गया था और चेहरे पर लोथड़े झूल रहे थे । नीचे तक खून फैला था । वह रेशमी गाउन पहने हुए था । मेज पर शतरंज की बिसात बिछी हुई थी और सफेद मोहरे वाले बादशाह को काले मोहरे ने मात दी हुई थी ।

तो क्या वह मरने से पहले शतरंज खेल रहा था ? बिसात पर भी खून टपका हुआ था ।

"सर रिवॉल्वर ।"

बलदेव की आवाज ने विजय का ध्यान भंग किया , बलदेव भी विजय के साथ-साथ कमरे में दाखिल हो गया था, अलबत्ता हीरा लाल ड्राइंगरूम में ही था । मेज के पीछे एक चेयर थी जिस पर मृतक विराजमान था , ठीक कुर्सी के पीछे हैण्डलूम के मोटे परदे झूल रहे थे, मेज की दूसरी ओर चार कुर्सियां थी, एक तरफ टेलीफोन रखा था , दो गिलास रखे थे, एक व्हिस्की की बोतल भी मेज पर रखी थी , इसके अलावा एक पेपर वेट, डायरेक्ट्री , ऊपर दो फाइलें । बस इतना ही सामान था मेज की टॉप पर ।

गोली ठीक ललाट के बीचों -बीच लगी थी । बलदेव ने जिधर रिवॉल्वर होने का इशारा किया था , विजय उधर ही मुड़ गया । कमरे के दरवाजे से कोई तीन फुट दूर कालीन पर रिवॉल्वर पड़ी थी । विजय ने रिवॉल्वर को रूमाल में लपेटकर बलदेव को थमा दिया ।

"फिंगरप्रिंट और फोटो डिपार्टमेंट को फोन करो ।"

बलदेव कमरे में रखे फोन की तरफ बढ़ा ।

"इधर नहीं बाहर से, ड्राइंगरूम में फोन की टेबल है, किसी चीज को छूना नहीं, दस्ताने पहन लो ।

विजय ने स्वयं भी दस्ताने लिए । दो सिपाही ड्राइंगरूम के अन्दर हीरालाल के दायें चुपचाप इस तरह खड़े थे, जैसे ऑफिसर का हुक्म मिलते ही उसे धर दबोचेंगे । विजय ने कमरे का निरीक्षण शुरू किया । इस कमरे में कोई खिड़की नहीं थी । ऊपर वेन्टीलेशन था , परन्तु वहीं एग्जास्ट लगा था । कमरे में आने-जाने का एकमात्र रास्ता वही दरवाजा था । जिससे हो कर विजय स्वयं अन्दर आया था । कुछ देर बाद विजय ड्राइंगरूम में आ गया ।

"तुम्हारा नाम हीरालाल है ?"

"हीरालाल जेठानी ।" हीरालाल अपने चश्मे का एंगल दुरुस्त करते हुए बोला।

"जेठानी ।"

"जी ।"

"तुम मृतक के पड़ोसी हो ।"

"बराबर वाला फ्लैट अपना ही है ।"

"पूरी बात बताओ ।" विजय एक कुर्सी पर बैठ गया ।



जारी रहेगा…….✍️
Amezing. Jis tarah lash mili hai. Kahani apne aap me aur jyada hi dilchaspi badha rahi hai. Bahot hi amezing seen create kiya hai. Maza aa gaya. Romanch peda karne ki kabiliyat har thriller story me nahi hoti. Par ye story padhkar vo romanch mahesus ho raha hai.


Vaishali ke jariye ek woman se leed karvana ye muje sabse jyada pasand aaya.
 

Shetan

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# 4

अपना फ्रेन्ड जगाधरी बहुत अच्छा आदमी था नी , सण्डे का दिन हमारा छुट्टी का दिन होता , दोनों यार शतरंज खेलता और दारू पीता , हम शतरंज खेलता , कबी वो जीतता कबी हम जीतता , कबी __________हम जीतता कबी वो , शतरंज भी अजीब खेल है सांई! हम दोनों बिल्कुल बराबर का खिलाड़ी , एकदम बराबर का । कबी वोजीतता कबी … ।"


"मुझे तुम्हारी शतरंज की जीत हार से कुछ लेना-देना नहीं समझे ।" विजय ने बीच में उसे टोकते हुए कहा ,

"तुम आज यहाँ शतरंज खेलने आये थे? और तुमने यहाँ आकर दारू पी थी।"

"कसम खा के बोलता सांई, आज दारू नहीं पी , अरे पीता किसके साथ, जगाधरी तो रहा नहीं , आप दारू की बात करता ।

" हीरा लाल की आंखों में एका एक आँसू छलक आए, "हम दोनों हफ्ते में एक दिन पीता , बस एक दिन । अब तो हफ्ते में एक दिन क्या महीने में भी एक दिन पीना नहीं होयेगा सांई।"

"शटअप !"

हीरालाल इस प्रकार चुप हो गया , जैसे ब्रेक लग गया हो ।

"जो मैं पूछता हूँ, बस उतना ही जवाब देना , वरना अन्दर कर दूँगा ।"

हीरा लाल के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं ।

"आज तुम यहाँ शतरंज खेलने आये थे?"

"आज नहीं खेला , ठीक वक्त पर जब मैं आया , घंटी बजाया फ्लैट की , तभी अन्दर गोली चलने का आवाज हुआ, पहले मैं समझा कोई पटाखा छूटा होगा , हड़बड़ाहट में मैंने दरवाजे पर धक्का मारा , दरवाजा खुला था , जगाधरी को पुकारता हुआ उस कमरे के अन्दर घुसा तो देखा सांई ! बस जो देखा , कभी नहीं देखा पहले । मेरा यार राम को प्यारा हो गया नी।
मैं उसका हालत देखके भागा और सबसे पेले आपको फोन किया नी ।"

"क्या उस वक्त तक जगाधरी मर चुका था ?"

"देखने से यही लगता था , अबी जैसा देखने से लगता ।"

"तुम्हारे अलावा कमरे में और कोई नहीं गया ?"

"नहीं जी , मैं तो यहीं से फोन मिलाया , फिर दरवाजा बन्द करके बाहर बैठ गया , मैं सोचा के गोली चलाने वाला अन्दर ही कहीं छिप गया होयेगा , मैं दरवाजे पे डट गया सांई।

मेरे यार को मारके साला निकल के दिखाता बाहर, मैं ही उसका खोपड़ा तोड़ देता ।"

"कातिल को तुमने नहीं देखा?"



"देखता तो वो यहाँ लम्बा न पड़ा होता?"

"इस फ्लैट में जगाधरी के अलावा कौन रहता था ?"

"एक नौकर था बस, वो भी दो दिन से छुट्टी पे गया है । उसका यहाँ कोई नहीं था , यह बात जगाधरी ने मुझे बताया था सांई ।"

"सर यह झूठ बोलता है ।" बलदेव बोल उठा , "इसने फायर की आवाज सुनी । उसी वक्त अंदर भी आया और फिर दरवाजा बन्द करके बाहर जम गया । फिर गोली चलाने वाला कहाँ गया ?


मैंने सारा फ्लैट देख मारा है, इस दरवाजे के सिवा बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं है, एक खिड़की है, जिस पर ग्रिल लगी है, सलामत है ग्रिल भी ।"

"यही तो मैं पूछता सांई, वो गोली चला के गया किधर ?"

"जगाधरी का पार्टनर कहाँ रहता है ?"

"मैं इतना नहीं जानता सांई, ना उसने कबी बताया । मैंने कभी उसके घर का लोग नहीं देखा , एक-दो बार पूछा, बता के नहीं देता था ।
छ: महीने पहले यह फ्लैट किराये पर लिया।"

"जगाधरी का क्या बिजनेस था ?"

"शेयर मार्केट में दलाली करता था , बस और हम कुछ नहीं जानता , हमारी दोस्ती शतरंज से शुरू हुई, दोनों एक क्लब में मिले, फिर पता लगा वो हमारा पड़ोसी है, उसके बाद यहीं जमने लगी , मगर आदमी बहुत अच्छा था सांई ! हफ्ते में एक दिन पीता था सण्डे को, और मैं भी उसी दिन पीता , कबी वो जीतता कबी मैं ।"

"कबी मैं जीतता कबी वो ।" विजय चीख पड़ा ।

"आपको कैसे मालूम जी ।" हीरालाल ने एक बार फिर चश्मा दुरुस्त किया ।

"अब तुम ड्राइंगरूम से बाहर बैठो , कहीं फूटना नहीं , तुम्हारे बयान होंगे ।" विजय ने हीरालाल को बाहर भेज दिया । विजय ने गहरी सांस ली और तफ्तीश शुरू कर दी । कुछ ही देर में फिंगर प्रिंट्स और फोटो वाले भी आ गये । पुलिस कंट्रोल रूम को मर्डर की सूचना दे दी गई थी । ……

उधर :

सण्डे था । सण्डे का दिन रोमेश अपनी पत्नी सीमा के लिए सुरक्षित रखता था , बाथरूम से नहा धो कर नौ बजे वह नाश्ते की टेबिल पर आ गया ।

"डार्लिंग, आज कहाँ का प्रोग्राम है ?"

"पूरे हफ्ते बाद याद आई मेरी ।" सीमा मेज पर नाश्ते की प्लेटें सजाती हुई बोली ।

"क्या करें डार्लिंग, तुम तो जानती ही हो कि कितना काम करना पड़ता है । दिन में कोर्ट, बाकी वक्त इन्वेस्टीगेशन, कई बार तो खतरों से भी जूझना पड़ता है, मुझे इन क्रिमिनल्स से सख्त नफरत है डार्लिंग ।"

"अब यह कोर्ट की बातें बन्द करिये, सण्डे है ।"

"हाँ भई, आज का दिन तुम्हारा होता है, आज के दिन हम जोरू के गुलाम,
किधर का प्रोग्राम बनाया जानेमन ?"

"बहुत दिनों से झावेरी ज्वैलर्स में शॉपिंग करने की सोच रही थी ।"

"झावेरी ज्वैलर्स ।"

रोमेश के हलक में जैसे कुछ फंस गया , "क… क्या खरीदना था ?"

"हीरे की एक अंगूठी , तुमने हनीमून पर वादा किया था कि मुझे हीरे की अंगूठी ला कर दोगे, वही जो झावेरी के शो रूम में लगी है और कुल पचास हजार की है ।"

"म…मारे गये, यह अंगूठी फिर टपक पड़ी ।" रोमेश बड़बड़ाया ।

"क्यों , कुछ फंस गया गले में, लो पानी पीलो ।" सीमा ने पानी का गिलास सामने कर दिया ।

रोमेश एक साँस में पूरा गिलास खाली कर गया । "डार्लिंग गिफ्ट देने का कोई शुभ अवसर भी तो होना चाहिये ना ।"


"पाँच साल हो गये हैं हमारी शादी हुए। इस बीच कम-से-कम पांच शुभ अवसर तो आये ही होंगे ।" सीमा ने व्यंगात्मक स्वर में कहा , "आपको याद है जब हमारे प्यार के शुरुआती दिन थे तो । "

"याद तो सब कुछ है, तुम्हें भी तो बंगला कार वगैरा से बहुत लगाव है।"

"किसको नहीं होता , आप अपने साथी वकीलों की माली हालत पर भी तो नजर डाल लिया कीजिए, उनके पास क्या नहीं है? और एक आप हैं कि आपकी मोटरसाइकिल तक रिटायर नहीं हो पाती ।"

"तल्खी खत्म हो तो बता देना ।" रोमेश उठकर फ्लैट की बालकनी में चला गया । तल्खी खत्म नहीं हुई थी कि फोन की घंटी बज उठी । रोमेश फोन की तरफ बढ़ गया ।

"रोमेश हेयर ।"

"मैं विजय ।" दूसरी तरफ से कहा गया ।

"इंस्पेक्टर, यह सुबह-सुबह कहाँ से बोल रहे हो ?"

''गोरेगांव ईस्ट, संगीता अपार्टमेंट ।"

"किसी का मर्डर हो गया क्या ?"

"तुम्हें कैसे मालूम ।"

"फोन पर गंध आ रही है । संगीता अपार्टमेन्ट में न तो तुम्हारा कोई रिश्तेदार रहता है, न कोई गर्लफ्रेंड, न ही वहाँ कोई शराब का अड्डा चलता है। घड़ी जो समय बता रही है, उसके अनुसार तुम्हें इस वक्त थाने में होना चाहिये था । तुम अपने ही इलाके की किसी और लोकेशन से बोल रहे हो , जिसका साफ मतलब है कि तुम मौका-ए-वारदात पर हो । मुझे फोन किया , इसलिये साफ जाहिर है कत्ल का मामला होगा , चोर डकैतों की लिस्ट तो पुलिस के पास होती ही है । हाँ , हत्यारों की नहीं होती ।"

"गुरु फौरन आ जाओ, मेरी फंसी पड़ी है ।"

"गुरु मानते हो , इसलिये आना ही होगा , लेकिन यार आज सण्डे है ।" दूसरी तरफ से फोन कट चुका था ।

"इन पुलिस वालों की छुट्टी तो वैसे कभी होती ही नहीं ।"

"खासकर विजय की तो हो ही नहीं सकती ।" सीमा बोल पड़ी ,


"जैसे आप, वैसा विजय। आप किसी क्रिमिनल का केस नहीं लड़ते और वह किसी क्रिमिनल को रिश्वत लेकर नहीं छोड़ता ।"

"कोई फतवा हो तो बताओ, वरना मैं देख आऊं क्या मामला है ?"

"जाइये ।"

इतना कहकर सीमा बाथरूम में चली गई । जल्दी ही तैयार होकर रोमेश अपनी मोटरसाइकिल लेकर चल पड़ा । बांद्रा से अंधेरी , अंधेरी से गोरेगांव । रॉयल एनफील्ड की बुलेट गाड़ी को पुलिसिया अंदाज में दौड़ाता हुआ वह पंद्रह मिनट में मौका-ए-वारदात पर पहुंच गया । और फिर जगाधरी के फ्लैट में पहुँचा , जहाँ विजय उसका बेताबी से इन्तजार कर रहाथा ।

कुछ दूसरे सीनियर पुलिस ऑफिसर भी घटना स्थल पर आ चुके थे । उनमें से कुछेक ऐसे भी थे, जो रोमेश को पसन्द नहीं करते थे।

"मकतूल की लाश कहाँ है? " रोमेश ने विजय से पूछा । विजय, रोमेश को लाश वाले कमरे में ले गया ।

"जब तुम उस कमरे में दाखिल हुए, क्या सब इसी तरह था , कोई चेजिंग तो नहीं हुई है?" रोमेश ने कमरे में सरसरी नजर दौड़ाते हुए कहा ।

"सिर्फ एक चेंजिग है, रिवॉल्वर हमने अपने कब्जे में ले ली है ।"

"यानि कि जिस रिवॉल्वर से कत्ल हुआ ।"

"अभी यह कहना मुनासिब न होगा कि कत्ल उसी से हुआ, लेकिन वह यहाँ उसे नीचे पड़ी मिली ।"

"वह जहाँ से उठाई, वहीं रख दो ।" विजय ने बलदेव को संकेत किया , बलदेव ने रिवॉल्वर रख दी ।

"क्या रिवॉल्वर रखने से सिचुऐशन पर फर्क पड़ जायेगा ।" यह बात डी .एस.पी . केसरी नाथ ने कटाक्ष के तौर पर कही ।

"हंड्रेड परसेन्ट ।"
रोमेश बोला ,"धारा भी बदल सकती है ।"

"यानि कि मर्डर की धारा 302 की जगह कुछ और बनती है ।"

"सर प्लीज ।"
विजय ने केसरी नाथ को टिप्पणियां करने से रोका ।

"एनी वे ।"

केसरी नाथ ड्राइंगरूम में चला गया ,
"जो भी रिजल्ट निकले, मेरे को इन्फॉर्म करो ।"

"यह दरवा जा बन्द कर दो बलदेव ।" रोमेश ने कहा ।

बलदेव, रोमेश की जांबाजी से वाकिफ था, और यह भी जानता था कि विजय तभी रोमेश की मदद लेता है, जब मामला सचमुच पेचीदा हो । कत्ल के मामले सुलझाने में उसे मुम्बई पुलिस का मददगार शरलक होम्स कहा जाता था ।

रोमेश इस काम की कोई फीस नहीं लेता था । बतौर शौक, यही नहीं बल्कि गुत्थी सुलझाने में उसे इस बात का सुकून मिलता था कि कोई निर्दोष नहीं पकड़ा गया ।
दरवाजा बन्द होने के बाद एक बार फिर रोमेश ने कमरे का निरीक्षण शुरू कर दिया था। विजय सारी घटना पर प्रकाश डालता जा रहा था । जब वह सब बता चुका , तो बोला ,

"अब बताओ कातिल कोई हवा तो है नहीं कि निकल गया होगा । या तो हीरालाल गलत बयानी कर रहा है, या वह खुद ।"

"किसी ठोस निर्णय के बिना हीरालाल को लपेटना उचित नहीं होगा ।" रोमेश ने बीच में ही टोक दिया .

"ऐसा आमतौर पर होता नहीं है कि कातिल कत्ल के बाद खुद गले में फंदा डालने वाली परिस्थितियां बना दे ।"

"मगर दरवाजा एक ही है, और धमाके के समय हीरा लाल द्वार पर था , फिर वह यहाँ आया । ओह एक बात हो सकती है ।"


"क्या ?"

"कत्ल करने के बाद कातिल इस कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में या बाथरूम में छिपा , हीरालाल जैसे ही इसके अन्दर आया , वह बाहर निकल गया होगा । लेकिन उसने रिवॉल्वर यहाँ फेंक क्यों दी ? किसी मुसीबत से निपटने के लिए उसे रिवॉल्वर तो अपने पास रखनी चाहिये थी । ऐसे में जबकि हीरालाल दरवाजे पर था ।"


रोमेश ने रिवॉल्वर रूमाल से लपेटकर उठा ली । उसकी नाल सूंघी , गर्दन हिलाई । उसका चेम्बर चेक किया । चेम्बर में अभी भी पांच गोलियां थीं , एक ही चली थी । बारूद की गंध से पता चलता था कि गोली उसी से चली थी । फिर रोमेश का ध्यान दरवाजे पर लगी चंद कीलों पर पड़ा । उसने दरवाजे से सीधा लाश को देखा और फिर लाश के पास पहुंच गया । उसके बाद वह घुटने के बल बैठ गया और फर्श पर कुछ कुरेदता रहा । फिर रबड़ की एक डोरी उठा ते ही उसके होंठ गोल हो गये । वह सीधा खड़ा हो गया ।

"माई डियर पुलिस ऑफिसर । अब आप चाहें, तो शव को सील करके पोस्टमार्टम के लिए भेज सकते हैं ।"


इंस्पेक्टर विजय समझ गया कि जो गुत्थी वह नहीं सुलझा पा रहा था , वह सुलझ चुकी है ।

"हुआ क्या , लाश तो सील होगी ही । पंचनामा भी होगा , पोस्टमार्टम भी होगा । मगर बतौर कातिल मैं किसे गिरफ्तार करूं ? मैं जानने के लिए बेचैन हूँ, “रोमेश” आखिर कत्ल किसने किया? और कातिल कैसे निकल भागा ?"

"कातिल कहीं नहीं गया ।"

''क्या मतलब ?"

"माईडियर फ्रेन्ड, मकतूल भी यहीं है और कातिल भी , लेकिन अफसोस एक ही बात का है कि सारे सबूत उसके खिलाफ होते हुए भी तुम उसे गिरफ्तार न कर पाओगे ?"


जारी रहेगा...✍️✍️
Amezing characters include ho rahe hai. Puchh tachh me koi ajib character mile to sawal jawab sun ne me bada maza aata hai. Sindhi bhansa sun ne ko mili. Bhale hi thodi si zalak bas ek ward include kiya bat bat pe sai. Par kirdar ko img karwana success raha. Maza aaya padhne me. Amezing yaar. Kahani me dilchaspi badh rahi hai.
 

Napster

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# 26

मैडम माया सिर झुकाये धीरे-धीरे अदालत में दाखिल हुई। वह अब खुली किताब थीं, उसके बारे में पहले ही समाचार पत्रों में खूब छप चुका था और लोग उसे देखना भी चाहते थे। आखिर वह कौन-सी सुन्दरी है, जिसके फ्लैट पर एक वी.आई.पी. का मर्डर हुआ। जे.एन. के इस लेडी से क्या ताल्लुक थे ?

माया देवी सफेद साड़ी पहने हुये थी। इस साड़ी में लिपटा उसका चांदी-सा बदन झिलमिला रहा था। लबों पर ताजगी थी, चेहरा अब भी सुर्ख गुलाब की तरह खिला हुआ था। आँखों में मदहोशी थी, अगर वह किसी की तरफ देख भी लेती, तो बिजली-सी कौंध जाती थी। माया कटघरे में आ खड़ी हुई।


"आपका नाम ?" राजदान ने सवाल किया।

"माया देवी।"

"गीता पर हाथ रखकर कसम खाइये ।"

माया देवी के सामने गीता रख दी गयी। हाथ रखने से पूर्व उसने सामने के कटघरे में खड़े रोमेश को देखा। दोनों की आंखें चार हुई। कभी वह नजरों से खुद बिजली गिराती थी, अभी रोमेश की आंखों से बिजली उतरकर खुद उसी पर गिर रही थी। उसने शपथ की रस्म शुरू कर दी।


"हाँ, तो मैडम माया देवी ! आप विवाहिता हैं ?" राजदान ने पूछा।


"विवाहिता के बाद विधवा भी।" माया देवी बोली,

"उचित होगा कि मेरी प्राइवेट लाइफ के सम्बन्ध में आप कोई प्रश्न न करें।"

"नहीं, हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है। हम सिर्फ यह जानना चाहते हैं कि जिस रात जे.एन. की हत्या की गयी, वारदात की उस रात यानि दस जनवरी की रात क्या हुआ ?"


"वारदात की रात से पहले एडवोकेट रोमेश सक्सेना मेरे फ्लैट पर मुझसे मिलने आये, उस मुलाकात से पहले मैंने यह नाम सुना था कि यह शख्स मर्डर मिस्ट्री सुलझाने वाला ऐसा एडवोकेट है, जैसा वर्णन किताबों में पाया जाता है।

मैंने इनके सॉल्व किये कई केस अखबारों में पढ़े थे। उस दिन जब यह मुझसे मिलने आये, तो मुझे बड़ी हैरानी हुई, धड़कते दिल से मैंने इनका स्वागत किया। इस पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे स्तब्ध कर दिया।"

माया देवी कुछ पल के लिए रुकी।

"इन्होंने मुझसे कहा कि यह मुझे एक केस का चश्मदीद गवाह बनाने आये हैं। मैं हैरान हो गई कि जब कोई वारदात मेरे सामने हुई ही नहीं, तो मैं चश्मदीद गवाह कैसे बन सकती हूँ? मैंने यह सवाल किया, तो रोमेश सक्सेना ने कहा कि वारदात हुई नहीं होने वाली है।

“एक कत्ल मेरे सामने होगा और मैं उस मर्डर की आई विटनेस बनूंगी। मुझे उस वक्त वह किसी जासूसी फिल्म का या किसी कहानी का प्लाट महसूस हुआ। उस वक्त क्या, कत्ल होने तक मुझे यकीन ही नहीं आता था कि सचमुच मेरे सामने कत्ल होगा और मैं यहाँ कटघरे में आई विटनेस की हैसियत से खड़ी होऊँगी।"

"क्या हुआ उस रात ?"

"उस रात !"
माया देवी की निगाह एक बार फिर रोमेश पर ठहर गयी,

"किसी अजनबी ने मुझे फोन किया। करीब साढ़े नौ बजे फोन आया कि मेरे अंकल का एक्सीडेंट हो गया और वह जसलोक में एडमिट कर दिये गये हैं। मैं उसी वक्त हॉस्पिटल के लिए रवाना हो गयी। वहाँ पहुँचकर पता लगा कि फोन फर्जी था।

“वह फोन किसने किया था मिस्टर ?" यह प्रश्न माया ने रोमेश से किया। रोमेश चुप रहा।

"मिस्टर रोमेश, मैं तुमसे पूछ रही हूँ, किसने किया वह फोन ?"

"आपको मुझसे पूछताछ करने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।" रोमेश ने उत्तर दिया,

"फिर भी मुझे यह बताने में कोई हर्ज नहीं कि फोन मैंने आपके फ्लैट के करीबी बूथ से किया था और आपको जाते हुए भी देखा।"

"सुन लिया आपने मीलार्ड।" राजदान बोला,

"कितना जबरदस्त प्लान था इस शख्स का।"

"आगे क्या हुआ ?" न्याया धीश ने पूछा।

"जब मैं लौटकर आई, तो मेरा फ्लैट हत्यारे के कब्जे में आ चुका था, नौकरानी को बांधकर स्टोर में डाल दिया गया और बैडरूम में मुझ पर अटैक हुआ।
वह शख्स मुझे दबोचकर बैडरूम से अटैच बाथरूम में ले गया और मुझे चाकू की नोंक पर विवश किया कि चुपचाप खड़ी रहूँ।


“इसने मेरे हाथ मोड़कर बांध दिये थे। कुछ देर बाद ही जे.एन. आये। इसने बाथरूम का शावर चला दिया, ताकि जे.एन. यह समझे कि मैं नहा रही हूँ।"

वह कुछ रुकी।

"फिर यह शख्स मुझे बाथरूम में छोड़कर बैडरूम में पहुँचा और पीछे से मैं भी डरती-डरती बाथरूम से निकली। मेरे मुंह पर इसने टेप चिपका दिया था, मैं कुछ बोल भी नहीं सकी, यह व्यक्ति आगे बढ़ा और इसने जे.एन. को चाकू घोंपकर मार डाला। मैं अदालत से रिक्वेस्ट करूंगी कि वह यह जानने की कौशिश न करें कि जे.एन. मेरे पास क्यों आये थे।"

"योर ऑनर !"
राजदान के चेहरे पर आज विशेष चमक थी,


"मेरे ख्याल से अदालत को यह जानने की आवश्यकता भी नहीं कि जे.एन. वहाँ क्यों आये थे, क्यों कि मर्डर का प्राइवेट लाइफ से कोई ताल्लुक नहीं। माया देवी के बयानों से साफ जाहिर होता है कि क़त्ल कि प्लानिंग बड़ी जबरदस्त थी और कातिल पहले से जानता था कि जे.एन. ने वहाँ पहुंचना ही है।"

"अब सब आइने की तरह साफ है। रोमेश सक्सेना ने ऐसा जघन्य अपराध किया है, जैसा इससे पहले किसी ने कभी नहीं किया, अदालत से मेरा अनुरोध है कि रोमेश सक्सेना को बहुत कड़ी से कड़ी सजा दी जाये। दैट्स आल योर ऑनर।"

"मुलजिम रोमेश सक्सेना क्या आप माया देवी से कोई प्रश्न करना चाहेंगे?" न्यायाधीश ने पूछा।

"नहीं योर ऑनर ! मैं किसी की प्राइवेट लाइफ के बारे में कोई सवाल नहीं करना चाहता, मेरा एक सवाल सैंकड़ों सवाल खड़े कर देगा। मुझे माया देवी से सहानुभूति है, इसलिये कोई प्रश्न नहीं।"

माया देवी ने गहरी सांस ली। वह सोच रही थी कि रोमेश उसकी प्राइवेट लाइफ के सवालों को उछालेगा, पूछेगा, क्या जे.एन. हर शनिवार उसके फ्लैट पर बिताता था? जे.एन. से उसके क्या सम्बन्ध थे, वह इस किस्म के सवालों से डरती थी। लेकिन अब कोई डर न था। रोमेश ने उसे शरारत भरी मुस्कराहट से विदा किया।


"अब मैं अपना आखिरी गवाह पेश करता हूँ, इंस्पेक्टर विजय।"

इंस्पेक्टर विजय अदालत में उपस्थित था और अगली कतार में बैठा था। वह उठा और गवाह बॉक्स में चला गया। अदालत की रस्में पूरी करने के बाद राजदान ने अपना काम शुरू कर दिया।

"इस शहर की कानूनी किताब में पिछले कुछ अरसे से दो व्यक्ति चर्चित रहे। नम्बर एक मुल्जिम रोमेश सक्सेना, जो ईमानदारी और सही न्याय दिलाने की प्रतिमूर्ति कहे जाते थे। यह बात सारे कानूनी हल्के में प्रसिद्ध थी कि रोमेश सक्सेना किसी क्रिमिनल का मुकदमा कभी नहीं लड़ते।

जिस मुकदमे की पैरवी करते हैं, पहले खुद उसकी छानबीन करके उसकी सच्चाई का पता लगाते हैं, रोमेश सक्सेना ने कभी कोई मुकदमा हारा नहीं।" राजदान, रोमेश की तरफ से पलटा। उसने विजय की तरफ देखा।


"यानि दो अपराजित हस्तियां आमने सामने और बीच में, मैं हूँ। जो हमेशा रोमेश से हारता रहा। रोमेश, इंस्पेक्टर विजय का मित्र भी है, किन्तु कर्तव्य के साथ यह रिश्ते ना तों को कोई महत्व नहीं देते। यह बेमिसाल पुलिस ऑफिसर है योर ऑनर ! आज भी यह अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करेंगे। क्यों कि जीत हमेशा सत्य की होती है।"

इस बार रोमेश ने टोका !

"आप गलत कह रहे हैं राजदान साहब; कि जीत सत्य की होती है। अदालतों में नब्बे प्रतिशत जीत झूठ की होती है। यहाँ पर हार जीत का फैसला झूठ सच पर नहीं सबूतों और वकीलों के दांव पेंचों पर निर्भर होता है।"

"देखना यह है कि आप कौन-सा दांव इस्तेमाल करते हैं मिस्टर सक्सेना।"

"मैं न तो दांव इस्तेमाल कर रहा हूँ और न कोई इरादा है। अदालत को भाषण मत दीजिए, अपने गवाह के बयान जारी करवाइये।"

"ऑर्डर…ऑर्डर !"

न्यायाधीश ने दोनों की नोंक झोंक पर आपत्ति प्रकट की। राजदान ने कार्यवा ही शुरू की।

"इंस्पेक्टर विजय अब आप अपना बयान दे सकते हैं।" विजय ने बयान शुरू किए।

"मेरा दुर्भाग्य यह है कि जिसकी हिफाजत के लिए मुझे तैनात किया गया था, उसे नहीं बचा सका और उसके कातिल के रूप में एक ऐसा शख्स मेरे सामने खड़ा है, जो कानून का पाठ पढ़ने वाले होनहार नवोदित हाथों का आदर्श था और जिसका मैं भी उतना ही सम्मान करता हूँ, यहाँ तक कि मैं मुलजिम की मनोभावना और घरेलू स्थिति से भी परिचित था और मित्र होने के नाते इनसे कभी-कभी मदद भी ले लिया करता था।"

"मैं इस मुलजिम को कानून का सबसे बुद्धिमान व्यक्ति मानता था। परन्तु मुलजिम ने मेरा सारा भ्रम ही तोड़ डाला, इस मुकदमे के हर पहलू को मुझसे अधिक करीब से किसी ने नहीं देखा। यहाँ मैं मकतूल की समाज सेवाओं का उल्लेख नहीं करूँगा, मैं यह बताना चाहता हूँ कि कानून हाथ में लेने का अधिकार किसी को भी नहीं है, जे.एन. कोई वान्टेड इनामी डाकू नहीं था, जो रोमेश सक्सेना उसका क़त्ल करके किसी इनाम का हकदार बनता। लिहाज़ा यह क्रूरतम अपराध था।"

विजय कुछ रुका।

"शायद मैं भी गलत रौ में बह गया, बयान की बजाय भाषण देने लगा। वारदात किस तरह हुई, यह मैं बता ने जा रहा हूँ। मुझे फोन द्वारा इस क़त्ल की सूचना मिली और मैं तेजी के साथ घटना स्थल की तरफ रवाना हुआ"

उसके बाद विजय ने दस जनवरी से लेकर मुलजिम की गिरफ्तारी तक का पूरा बयान रिकार्ड में दर्ज करवाया, यह बताया कि किस तरह सारे सबूत जुटाये गये। विजय के बयान काफी लम्बे थे। बीच-बीच में उसकी टिप्पणियां भी थीं।

बयान समाप्त होने के बाद विजय ने सीधा रोमेश से सवाल किया,

"एनी क्वेश्चन ?"

"नो।" रोमेश ने उत्तर दिया,

"तुम्हारे बयान अपनी जगह बिल्कुल दुरुस्त हैं, तुम एक होनहार कर्त्तव्यपालक पुलिस ऑफिसर हो, यह बात पहले ही अदालत को बताई जा चुकी है।"

विजय विटनेस बॉक्स से बाहर आ गया।

“तमाम गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए अदालत इस निर्णय पर पहुंचती है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने कानून को मजाक समझते हुए इस तरह योजना बना कर हत्या की, जैसे हत्या करना अपराध नहीं धार्मिक अनुष्ठान हो।

"जनार्दन नागा रेड्डी समाज सेवा और राजनीतिक क्षितिज की एक महत्वपूर्ण हस्ती थी। ऐसे व्यक्ति की हत्या को सार्वजनिक बना कर अत्यन्त क्रूरता पूर्ण तरीके से मार डाला गया। "

"मुलजिम ने भी अपना अपराध स्वीकार किया और किसी भी गवाह से जिरह करना उचित नहीं समझा, इससे साफ साबित होता है कि मुलजिम रोमेश सक्सेना ने हत्या की, अत: ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 के तहत मुलजिम को अपराधी ठहराया जाता है। परन्तु इससे पूर्व अदालत रोमेश सक्सेना को दण्ड सुनाये, उसे एक मौका और देती है।"

"रोमेश सक्सेना की कानूनी सेवा में स्वच्छ छवि होने के कारण अन्तिम अवसर प्रदान किया जाता है, यदि वह अपनी सफाई में कुछ कहना चाहे, तो अदालत सुनने के लिए तैयार है और यदि रोमेश सक्सेना इस आखिरी मौके को भी नकार देता है, तो अदालत दण्ड सुनाने के लिए तारीख निर्धारित करेगी।”


न्यायाधीश द्वारा लगी इस टिप्पणी को अदालत में सुनाया गया। राजदान के होंठों पर जीत की मुस्कान थी। विजय गम्भीर और खामोश था। वैशाली उदास नजर आ रही थी। किसी को यकीन ही नहीं आ रहा था कि रोमेश इतनी जल्दी हार मानकर स्वयं के गले में फंदा बना देगा।

किन्तु अदालत में कुछ लोग ऐसे भी बैठे थे, जिन्हें यकीन था कि अब भी पलड़ा पलटेगा, केस अभी फाइनल नहीं हुआ। उनकी अकस्मात दृष्टि रोमेश की तरफ उठ जाती थी।

रोमेश ने धीरे-धीरे फिर अदालत में बैठे लोगों का अवलोकन किया। घूमती हुई दृष्टि वैशाली, विजय से घूमती राजदान पर ठहर गई।


"अदालत ने यह एक आखिरी मौका न दिया होता, तो तुम केस जीत चुके थे राजदान ! लेकिन लगता है कि तुम्हारी किस्मत में हमेशा मुझसे बस हारना ही लिखा है।"




जारी रहेगा .....……✍️✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Kahani ke sayad hireo hiroine yahi honge??? Par kahani ka ashli makshad samaz aa gaya sayad. Aap ek scam ko ujagar karna chahte ho. Amezing. Thriller bass aap ki akript bhi muje bahot pasand aai aur likhne ka andaz to la jawab hai. Ek tarah se redrs ko padhte wakt vo seen man me img karwana 100% success ho.

Bas ek chij par aap ki pakad dhili kahungi vo hai language. Mumbaiya local bhansha. Tapori type. Ye jitni ashan lagti hai. Utni hoti nahi. Fir bhi aap ki kosis karna bahot achha hai.

Magar language esi chij hai ki us mahol ko redrs 100 and 1 % feel karta hai. Iske lie koi dushri bhasha me likhne ki jarurat nahi hai. Har prant ke logo ka bat karne ka tarika. Unke hindi bolne ke tarike ko mahesus karna hai. Mano to unki bolne ki ton ko sikhna.

Lekin aap us mahol ko jatane me la jawab ho. Iis lie aap ki itni chhoti chij par jyada gor karne ki bhi jarurat nahi hai.


Aap amezing ho Panditji.
Bohot bohot sukriya shetan ji, aapke kahe anusaar kosis ki jayegi ise sudhrne ki :D
Thank you so much for your wonderful review and support :hug:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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Amezing. Jis tarah lash mili hai. Kahani apne aap me aur jyada hi dilchaspi badha rahi hai. Bahot hi amezing seen create kiya hai. Maza aa gaya. Romanch peda karne ki kabiliyat har thriller story me nahi hoti. Par ye story padhkar vo romanch mahesus ho raha hai.


Vaishali ke jariye ek woman se leed karvana ye muje sabse jyada pasand aaya.
Woman's ko aage hi rakhte hai apan to, kyu ki naari hi sakti, mata,peremika,.. vagarah sab hoti hai to unko kaise bhool sakte hai sarkaar😊 aapko pasand aai ye badi baat hai mere liye👍
Thanks for your wonderful review and support Shetan ji
 

Raj_sharma

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Amezing characters include ho rahe hai. Puchh tachh me koi ajib character mile to sawal jawab sun ne me bada maza aata hai. Sindhi bhansa sun ne ko mili. Bhale hi thodi si zalak bas ek ward include kiya bat bat pe sai. Par kirdar ko img karwana success raha. Maza aaya padhne me. Amezing yaar. Kahani me dilchaspi badh rahi hai.
Aapko pasand aai aur aap character se connect kar pa rahe ho iska matlab hai ki likhna safal 👍
Padhte rahi aur apni raay dete rahiye, thanks shetan ji for your amazing review and superb support :thanx:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
Thank you very much for your valuable review and support bhai ❣️
 

Napster

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# 27


"रस्सी जल गई, मगर बल नहीं गया।" राजदान बोला।

"मैं वह रस्सी हूँ राजदान, जिसे कानून की आग कभी नहीं जला सकती।"

"ऑर्डर… ऑर्डर ?" न्यायाधीश ने मेज बजाई, "मिस्टर रोमेश सक्सेना, आपको जो कुछ कहना है अदालत के समक्ष कहें।"

रोमेश अब अदालत से मुखातिब हुआ।

"योर ऑनर, मैं जानता था कि मेरी कानूनी सेवाओं को ध्यान में रखते हुए अदालत मेरे प्रति सॉफ्ट कार्नर रखती है और वह मुझे एक आखिरी मौका देगी। मुझे भी इसी मौके
का इन्तजार था। योर ऑनर, यह तो अपनी जगह अटल सत्य है कि क़त्ल मैंने ही किया है, परन्तु यह भी अपनी जगह सत्य है कि रोमेश सक्सेना ने जिस मुकदमे को अपने हाथों में लिया, जिसकी पैरवी कि उसे कभी हारा नहीं। यह अलग बात है कि रोमेश पहली बार एक अपराधी का मुकदमा लड़ रहा है।"

अदालत में बैठे लोग कानाफूसी करने लगे, पीछे से एक शोर-सा उठा।

"शांत रहिये, शांत !" न्यायाधीश को कहना पड़ा। लोग चुप हो गये।

"आप कहना क्या चाहते हैं सक्सेना? "

"यही योर ऑनर कि अपराध के इतिहास में ऐसा विचित्र मुकदमा कभी पेश नहीं हुआ होगा कि यह साबित होने पर भी कि मुलजिम ने क़त्ल किया है, अदालत मुलजिम को सजा न देते हुए बाइज्जत रिहा करेगी।"

"व्हाट नॉनसेन्स !" राजदान चीखा, "यह अदालत का अपमान कर रहा है। कानून का मजाक उड़ा रहा है, क्या समझ रखा है इसने कानून को?"

"चुप बे कानून के सिपह सालार ! तेरी तो आज बहुत बुरी गत होने होने वाली है, ऐसे औंधे मुंह गिरने वाला है तू कि कई दिन तक होश नहीं आएगा। कानून के नाम पर हमेशा मेरा भूत तुझे सपनों में डराता रहेगा।"

"योर ऑनर यह गाली गलौज पर उतर आया है।" राजदान चीखा।

"ऑर्डर ! ऑर्डर !!"

एक बार फिर सब शांत हो गया।

"हाँ, योर ऑनर!" रोमेश अदालत से मुखातिब हुआ,

"आप मुझे बाइज्जत रिहा करेंगे। क्यों कि मैं जिन तीन गवाहों को अदालत में पेश करूंगा, वह ही इसके लिए काफी हैं, साबित हो जायेगा कि क़त्ल मैंने नहीं किया, जबकि साबित यह भी हो चुका है कि क़त्ल मैंने ही किया है।"

पीछे वाली बेंच पर ठहाके गूँज उठे।

"मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि मुझे गवाह पेश करने का अवसर दिया जाये।"

न्यायाधीश ने पानी मांग लिया था। छक्के तो सभी के छूट रहे थे। मुकदमे ने एक सनसनी खेज नाटकीय मोड़ ले लिया था।

"इजाजत है।" न्यायाधीश ने कहा।

"थैंक्यू योर ऑनर, जिन तीन सरकारी अधिकारियों को मैं बुलाना चा हता हूँ, अदालत उन्हें तलब करने का प्रबन्ध करे। नम्बर एक, रेलवे विभाग के टिकट चेकर मिस्टर
रामानुज महाचारी ! "

"नम्बर दो, बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इन्चार्ज इंस्पेक्टर बलवंत
सिन्हा !"

"नम्बर तीन, बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी ! इनके वर्तमान कार्यक्षेत्र के पते भी नोट कर लिए जायें ।"

अदालत से बाहर चंदू, राजा और कासिम डिस्कस कर रहे थे।

"यार यह तीन नये गवाह कहाँ से आ गये ?" चंदू बोला।

"अपुन को लगता है कि इसने उनको भी पहले से हमारी तरह फिट करके रखा होगा। यह तो साला लफड़े पे लफड़ा हो गया।"

"अरे यार अब तो उसे ख़ुदा भी बरी नहीं करा सकता।" कासिम बोला।

"यार मेरे को लगता है, बरी हो जायेगा।" चंदू बोला,

"अगर हो गया, तो मैं उसे मुबारकबाद दूँगा।"

"अपुन का धंधा भी चमकेगा भाई, सबको पता चल जायेगा कि राजा का खरीदा चाकू-छुरे से क़त्ल करने वाला बरी होता है।" राजा बोला।

"मगर क़त्ल तो उसने किया ही है।"

"यह तो सबको पता है, मगर अब लफड़ा हो गया।"

शाम के समाचार पत्रों में यह खबर प्रमुख सुर्खियों में छपी थी।
जे० एन० मर्डर केस में एक नाटकीय मोड़!

अपराध जगत का सबसे सनसनी खेज मुकदमा!

क्या अदालत रोमेश को बरी करेगी?

तरह-तरह की सुर्खियां थीं, जो अख़बारों में छपी हुई थीं। हॉकरों की बन आई थी।
लोग अख़बार पढ़ने के लिये टूटे पड़ रहे थे। गयी रात तक चौराहों, बाजारों, नुक्कड़ो में यही एक बात चर्चा का विषय बन गई थी ।

..............अगली तारीख............

अदालत खचा-खच भरी थी। अदालत के बाहर भी लोगों का हुजूम उमड़ा था। हर कोई जे.एन. मर्डर केस में दिलचस्पी लेने लगा था।

रोमेश सक्सेना को जिस समय
अदालत में पेश किया जा रहा था, कुछ पत्रकारों के कैमरों की फ़्लैश चमकी और कुछ ने आगे बढ़कर सवाल करने चाहे, तरह तरह के प्रश्न थे।

"आप किस तरह साबित करेंगें कि क़त्ल आपने नहीं किया ?"

"मैं यह साबित नहीं करने जा रहा हूँ।" रोमेश का जवाब था,

"मैं सिर्फ अपने को बरी करवाने जा रहा हूँ।"

प्रश्न : "आपके तीनों गवाह क्या कहने जा रहे हैं ? "

उत्तर: "वक्त का इन्तजार कीजिए, अभी अदालत में सब कुछ आपके सामने आने वाला है।"

रोमेश अदालत के कटघरे में पहुँचा। अदालत की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी।

"गवाह नम्बर एक, रामानुज महाचारी पेश हों।"

अदालत ने रामानुज को तलब किया। रामानुज मद्रासी था। करीब पचास साल उम्र होगी, रंग काला तो था ही, ऊपर से काला सूट पहने हुये था। रामानुज को शपथ दिलाई गयी। उसने शपथ ली और अपने चश्मे के अन्दर से पूरी अदालत पर सरसरी निगाह दौड़ाई, फिर उसकी नजरें रोमेश पर ठहर गयी। वह चौंक पड़ा।

"उसके मुँह से निकला,"तुम, यू बास्टर्ड !"

"हाँ, मैं !" रोमेश बोला,

"मेरा पहला सवाल यही है मिस्टर रामानुज, कि क्या तुम मुझे जानते हो ? "

"अरे अपनी सर्विस लाइफ में साला ऐसा कभी नहीं हुआ, तुमने हमारा ऐसा बेइज्जती किया कि हम भूल नहीं पाता आज भी, मिस्टर बास्टर्ड एडवोकेट।"

"मिस्टर रामानुज, यह अदालत है, अपनी भाषा दुरुस्त रखें।" न्यायाधीश ने रोका।

"ठीक सर, बरोबर ठीक बोलूंगा।"

"गाली नहीं देने का।"

रोमेश बोला, "हाँ तो रामानुज, क्या तुम अदालत को बता सकते हो कि तुम मुझे कैसे जानते हो ?"

"यह आदमी नौ जनवरी को राजधानी में सफर कर रहा था। उस दिन हमारा ड्यूटी
था। मैं रेलवे का एम्प्लोई हूँ और मेरी ड्यूटी राजधानी एक्सप्रेस में रहती है। टिकट चेक करते समय मैं इसकी सीट पर पहुँचा, तो यह शख्स दारू पी रहा था। मेरे रोकने पर इसने
पहले तो दारू का पैग मेरे मुंह पर मारा और उठकर मेरे गाल पर थप्पड़ मारा जी। "

"मेरी सर्विस लाइफ में पहला थप्पड़ सर! मैंने टिकट माँगा, तो दूसरा थप्पड़ पड़ा जी। मेरी सर्विस लाइफ का दूसरा थप्पड़ जी, मैं तो रो पड़ा जी। पैसेंजर लोगों ने मुझे इस बदमाश से बचाया, यह बोला मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना हूँ, कौन मेरे को दारू पीने से रोकेगा ? कौन
मुझसे टिकट मांगेगा ? हमने यह बात अपने स्टाफ के लोगों को बताया, पुलिस का मदद लिया और बड़ौदा में इसको उतारकर रेलवे पुलिस के हवाले कर दिया।
लेकिन मेरी सर्विस लाइफ का पहला और दूसरा थप्पड़, वो मैं कभी भी नहीं भूल पाऊंगा माई लार्ड !"


इतना कहकर रामानुज चुप हो गया।

"योर ऑनर।" रोमेश ने कहा,

"यह बात नोट की जाये कि रामानुज ने मुझे बड़ौदा स्टेशन पर राजधानी से उतार दिया था। नौ जनवरी की रात राजधानी एक्सप्रेस बड़ौदा में नौ बजकर अठ्ठारह मिनट पर पहुंची थी। मेरे काबिल दोस्त राजदान को अगर कोई सवाल करना हो, तो पूछ सकते हैं।"


"नो क्वेश्चन।" राजदान ने रोमेश के अंदाज में कहा,

"रामानुज के बयानों से यह बात और भी साफ हो जा ती है कि रोमेश सक्सेना को बड़ौदा में उतारा गया और यह शख्स बड़ौदा से सीधा मुम्बई आ पहुंचा, जाहिर है कि इसने बड़ी आसानी से अपनी जमानत करवाली होगी या फिर पुलिस ने ही नशा उतरने पर इसे छोड़ दिया होगा।"


"अंधेरे में तीर न चलाइये राजदान साहब, मेरा दूसरा गवाह बुलाया जाये। बड़ौदा रेलवे पुलिस स्टेशन का इंचार्ज इंस्पेक्टर बलवंत आपके इन सब सवालों का जवाब दे देगा।“

“मैं अदालत से दरख्वास्त करूंगा कि बलवंत को अदालत में बुलाया जाये।"

अदालत ने इंस्पेक्टर बलवंत को तलब किया।

"इंस्पेक्टर बलवन्त सिन्हा हाजिर हो।"

बलवन्त सिन्हा पुलिस की वर्दी में था। लम्बा तगड़ा जवान था, कटघरे में पहुंचते ही उसने न्यायाधीश को सैल्यूट मारा। अदालती रस्में पूरे होने के बाद बलवन्त की दृष्टि रोमेश पर ठहर गयी।

"इंस्पेक्टर बलवन्त आप मुझे जानते हैं ?"

"ऑफकोर्स।” बलवन्त ने उत्तर दिया, "एडवोकेट रोमेश सक्सेना ।"

"कैसे जानते हैं ?"

"क्यों कि मैंने आपको नौ जनवरी की रात लॉकअप में बन्द किया था और रामानुज की रिपोर्ट पर आप पर मुकदमा कायम किया था। फिर अगले दिन आपको कोर्ट में पेश
किया गया, जहाँ से आपको बिना टिकट यात्रा करने के जुर्म में दस दिन की सजा हो गई।

यह सजा इसलिये हुई, क्यों कि आपने जुर्माना देने से इन्कार कर दिया और न ही अपनी जमानत करवाई !"

"क्या आप बता सकते हैं मुझे सजा किस दिन हुई ?"

"दस जनवरी को।"

"यह बात नोट कर ली जाये योर ऑनर ! नौ जनवरी को मुझे पुलिस ने कस्टडी में लिया और दस जनवरी को मुझे दस दिन की सजा हो गयी।"

राजदान एकदम उठ खड़ा हुआ।

"हो सकता है योर ऑनर सजा होने के बाद मुलजिम के किसी आदमी ने जमानत करवाली हो और यह बात इंस्पेक्टर बलवंत की जानकारी में न हो। यह भी हो सकता है कि आज तक जुर्माना भर दिया गया हो और मुलजिम सीधा मुम्बई आ गया। अगर यह ट्रेन से आता है, तब भी छ: सात घंटे में बड़ौदा से मुम्बई पहुंच सकता है।"


"लगता है मेरे काबिल दोस्त या तो बौखला कर ऊलजलूल बातें कर रहे हैं, या फिर इन्हें कानून की जानकारी नहीं है।" रोमेश ने कहा,

"अगर मेरी जमानत होती या जुर्माने की राशि भर दी जाती, तो पुलिस स्टेशन में केस दर्ज है, वहाँ पूरी रिपोर्ट लगा दी जाती है।"

"रिपोर्ट लगने पर भी कोई जरूरी नहीं कि इंस्पेक्टर बलवन्त को इसकी जानकारी हो, यह कोई ऐसा संगीन केस था नहीं।"

"क्यों इंस्पेक्टर, इस बारे में आपका क्या कहना है ?"

"मेरी पक्की जमानत और पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार ही मैंने बयान दिया है। मगर यह एक संभ्रांत फेमस एडवोकेट का मामला न होता, तो मुझे याद भी न रहता। मैं तो इनको रात को ही छोड़ देता, मगर रोमेश सक्सेना ने पुलिस स्टेशन में भी अभद्रता दिखाई,
मुझे सस्पेंड तक करा देने की धमकी दी, इसलिये मैंने इनका मामला अपनी पर्सनल डायरी में नोट कर लिया। इन्हें सजा हुई और यह पूरे दस दिन जेल में बिता कर ही बाहर निकले।"

"ऐनी क्वेश्चन मिस्टर राजदान ?"

राजदान ने इन्कार में सिर हिलाया और रूमाल से चेहरा साफ करता हुआ बैठ गया। साथ ही उसने एक गिलास पानी भी मंगा लिया।



जारी रहेगा…….......✍️✍️
बहुत ही जबरदस्त और रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये रोमेश ने केस का पुरा फासा ही पलट दिया
 

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# 28.

"जिन लोगों के गले खुश्क हो गये हों, वह अपने लिये पानी मंगा सकते हैं, क्यों कि अब जो गवाह अदालत में पेश किया जाने वाला है, वह साबित करेगा कि मैंने पूरे दस दिन बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल में बिताये हैं। मेरा अगला गवाह है बड़ौदा डिस्ट्रिक जेल का जेलर कबीर गोस्वामी।"


इंस्पेक्टर विजय के चेहरे से भी हवाइयां उड़ने लगी थीं। रोमेश का अन्तिम गवाह अदालत में पेश हो गया।

"मैं मुजरिम को इसलिये जानता हूँ, क्यों कि यह शख्स जब मेरी जेल में लाया गया, तो इसने पहली ही रात जेल में हंगामा खड़ा कर दिया।
इसके हंगामा के कारण जेल में अलार्म बजाया गया और तमाम रात हम सब परेशान रहे। मुझे जेल में दौरा करना पड़ गया।"

"क्या आप पूरी घटना का ब्यौरा सुना सकते हैं ?" न्यायाधीश ने पूछा।

"क्यों नहीं, मुझे अब भी सब याद है। यह वाक्या दस जनवरी की रात का है, सभी कैदी बैरकों में बन्द हो चुके थे। कैदियों की एक बैरक में रोमेश सक्सेना को भी बन्द किया गया था। रात के दस बजे इसने ड्यूटी देने वाले एक सिपाही को किसी बहाने दरवाजे तक बुलाया और सींखचों से बाहर हाथ निकालकर उसकी गर्दन दबोची, फिर उसकी कमर में लटकने वाला चाबियों का गुच्छा छीन लिया। ताला खोला और बाहर आ गया। उसके बाद अलार्म बज गया। उसने उन्हीं चाबियों से कई बैरकों के ताले खोल डाले। कई सिपाहियों को मारा-पीटा, सारी रात यह तमाशा चलता रहा।"

"उसके बाद तुम्हारे सिपाहियों ने मुझे मिलकर इतना मारा कि मैं कई दिन तक जेल के अन्दर ही लुंजपुंज हालत में घिसटता रहा। मुझे जेल की तन्हाई में ही बन्द रखा गया।"


"यह तो होना ही था। दस जनवरी की रात तुमने जो धमा-चौकड़ी मचाई, उसका दंड तो तुम्हें मिलना ही था।"


"दैट्स आल योर ऑनर ! मैं यही साबित करना चाहता था कि दस जनवरी की रात मैं मर्डर स्पॉट पर नहीं बड़ौदा जेल में था, जेल का पूरा स्टाफ और सैकड़ों कैदी मेरा नाटक मुफ्त में देख रहे थे। वहाँ भी मेरे फोटोग्राफ, फिंगरप्रिंट्स मौजूद हैं और क़त्ल करने वाले हथियार पर भी। अब यह फैसला आपको करना है कि मैं उस समय कानून की कस्टडी में था या मौका-ए-वारदात पर था।"

अदालत में सन्नाटा छा गया।

"यह झूठ है ।" राजदान चीखा,

"तीनों गवाह इस शख्स से मिले हुए हैं, यह जेलर भी।"

"शटअप।" जेलर ने राजदान को डांट दिया,


"मेरी सर्विस बुक में बैडएंट्री करने का तुम्हें कोई अधिकार नहीं। मैंने जो कहा है, वह अक्षरसः सत्य है और प्रमाणिक है।"

"अ… ओके… नाउ यू कैन गो।" राजदान ने कहा और धम्म से अपनी सीट पर बैठ गया।

"कानून की किताब में यह फैसला और मुकदमा ऐतिहासिक है। मुलजिम रोमेश सक्सेना पर ताजेरात-ए-हिन्द जेरे दफा 302 का मुकदमा अदालत में चलाया गया। मकतूल जनार्दन नागा रेड्डी का क़त्ल मुल्जिम के हाथों हुआ, पुलिस ने साबित किया।“

“लेकिन रोमेश सक्सेना उस रात कानून की हिरासत में पाया गया, इसीलिये यह तथ्य साबित करता है कि दस जनवरी की रात रोमेश सक्सेना घटना स्थल पर मौजूद नहीं था। जो शख्स कानून की हिरासत में है, वह उस वक्त दूसरी जगह हो ही नहीं सकता, इसीलिये यह अदालत रोमेश सक्सेना को बाइज्जत रिहा करती है"

अदालत उठ गयी। एक हड़कम्प सा मचा, रोमेश की हथकड़ियाँ खोल दी गयीं। जब तक वह अदालत की दर्शक दीर्घा में पहुंचा, उसे वहाँ पत्रकारों ने घेर लिया। बहुत से लोग रोमेश के ऑटोग्राफ लेने उमड़ पड़े।


" नहीं, मैं ऑटोग्राफ देने वाली शख्सियत नहीं हूँ, मैं____एक मुजरिम हूँ। जिसने कानून के साथ बहुत बड़ा मजाक किया है। यह अलग बात है कि जिसे मैंने मारा, वह कानून की पकड़ से सुरक्षित रहने वाला अपराधी था। उसे कोई कानून सजा नहीं दे सकता था। अब एक बड़ा सवाल उठेगा, क्यों कि मैं सरेआम क़त्ल करके बरी हुआ हूँ और यही कानून की मजबूरी है। उसके पास ऐसी ताकत नहीं है, जो हम जैसे चतुर मुजरिमों या जे.एन. जैसे पाखण्डी लोगों को सजा दे सके, मैं इसके अलावा कुछ नहीं कहना चाहता।"

अदालत से बाहर निकलते समय रोमेश की मुलाकात विजय से हो गई।

"हेल्लो इंस्पेक्टर, जंग का नतीजा पसन्द आया ?"

"नतीजा कुछ भी हो दोस्त, मगर मैंने अभी हार नहीं कबूल की है।"

"अब क्या करोगे, मुकदमा तो खत्म हो चुका, हम छूट गये।"

"मैंने जिस अपराधी को पकड़ा है, वह अपराधी ही होता है, उसे सजा मिलती है, मैंने अपनी पुलिसिया जिन्दगी में कभी कोई केस नहीं हारा।"

"मुश्किल तो यही है कि मैं भी कभी नहीं हारा, तब भला अपना केस कैसे हार जाता।"

"तुम उस रात मौका-ए-वारदात पर थे।"

"क्या तुम्हें याद है, जब मैं तुम्हारे फ्लैट को घेर चुका था, तो तुमने मुझ पर फायर किया था, मुझे चेतावनी दी थी, क्या मैं तुम्हारी भावना नहीं पहचानता।"

"बेशक पहचानते हो।“

"तो फिर जेल में उस वक्त कैसे पहुंच गये ?"

"अगर मैंने यह सब बता दिया, तो सारा मामला जग जाहिर हो जायेगा। लोग इसी तरह क़त्ल करते रहेंगे, कानून सिर्फ एक मजाक बनकर रह जायेगा।"

"मैं तब तक चैन से नहीं बैठूँगा, जब तक मालूम न कर लूं कि यह सब कैसे हुआ।"

"छोड़ो, यह बताओ शादी कब रचा रहे हो ?"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया। आगे बढ़कर जीप में सवार हो गया।

शंकर नागा रेड्डी शाम के छ: बजे रोमेश के फ्लैट पर आ पहुँचा। रोमेश उसका इन्तजार कर रहा था। रोमेश उस वक्त फ्लैट में अकेला था। डोरबेल बजते ही उसने दरवाजा खोला, शंकर नागा रेड्डी एक चौड़ा-सा ब्रीफकेस लिए दाखिल हुआ।

"बाकी की रकम।" सोफे पर बैठने के बाद शंकर ने कहा,

"एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना है। जैसे मैंने चाहा और सोचा, ठीक वैसा ही परिणाम मेरे सामने आया है। रकम गिन लीजिये।"

"ऐसे धंधों में रकम गिनने की जरुरत नहीं पड़ती।" रोमेश ने ब्रीफकेस एक तरफ रख लिया।


"आज के अखबार आपके कारनामे से रंगे पड़े हैं।" शंकर बोला।


"मेरे मन में एक सवाल अभी भी कुलबुला रहा है।"


"वो क्या ?"

"यही कि तुमने यह क़त्ल मेरे हाथों से क्यों करवाया और तुम्हें इससे क्या मिला ?"

"आपके हाथों क़त्ल तो इसलिये करवाया, क्यों कि आप ही यह नतीजा सामने ला सकते थे। आपकी जे.एन. से ठन गयी थी और लोगों को सहज ही यकीन आ जाता कि आपने जे.एन. का बदला लेने के लिए मार डाला। रहा इस बात का सवाल कि मैंने ऐसा क्यों किया, उसका जवाब देने में अब मुझे कोई आपत्ति नहीं।"

शंकर थोड़ा रूककर बोला।

"यह तो सारी दुनिया जानती है कि जे.एन. को लोग ब्रह्मचारी मानते थे। उसने शादी नहीं की, लिहाजा उसकी प्रॉपर्टी का कोई वारिस भी नहीं था। लोग समझते थे कि उसने समाज सेवा के लिए अपने को समर्पित किया है। लेकिन हकीकत में वह कुछ और ही था।"

"उसके कई औरतों से नाजायज सम्बन्ध रहे होंगे, यही ना।"

"इसके अलावा उसने एक लड़की की इज्जत लूटने के लिये उससे शादी भी की थी। यह शादी उसने एक प्रपंच के तौर पर रची और उस लड़की को कई वर्षो तक इस्तेमाल करता रहा। वह अपने को जे.एन. की पत्नी ही समझती रही, फिर जब जे.एन. का उससे मन भर गया, तो वह उस लड़की को छोड़कर भाग गया।
अपनी तरफ से उसने फर्जी शादी के सारे सबूत भी नष्ट कर दिये थे, किन्तु लड़की गर्भवती थी और उसका बच्चा सबसे बड़ा सबूत था। जे.एन. उस समय आवारा गर्दी करता था।“


“लड़की माँ बन गयी, उसका एक लड़का हुआ। बाद में जब जे.एन. राजनीति में उतरकर अच्छी पॉजिशन पर पहुंच गया, तो उसकी पत्नी ने अपना हक माँगा। जे.एन. ने उसे स्वीकार नहीं किया बल्कि उसे मरवा डाला। किन्तु वह उसके पुत्र को न मार पाया और पुत्र के पास उसके खिलाफ सारे सबूत थे। या यूं समझिये कि सबूत इकट्ठे करने में उसने कई साल बिता दिये और तब उसने बदला लेने की ठान ली। उसने अपना एक भरोसे का आदमी जे.एन. के दरबार तक पहुँचा दिया और जे.एन. से तुम टकरा गये और मेरा काम आसान हो गया।"


"यानि तुम जे.एन. की अवैध संतान हो ?"

"अवैध नहीं, वैध संतान ! क्यों कि अब मैं उसकी पूरी सम्पत्ति का वारिस हूँ।

“उसकी अरबों की जायदाद का मालिक ! मैं साबित करूंगा कि मैं उसका बेटा हूँ। उसने मेरी माँ को मार डाला था, मैंने उसे मार डाला और अब मेरे पास बेशुमार दौलत होगी । मैं जे.एन. की दौलत का वारिस हूँ।"

"यह बात अब मेरी समझ आ गयी कि तुमने जे.एन. को माया देवी के फ्लैट पर पहुंचने के लिए किस तरह विवश किया होगा। तुम्हारा आदमी जो कि जे.एन. का करीबी था, यकीनन इतना करीबी है कि मर्डर की तारीख दस जनवरी को आसानी से जे.एन. को मेरे बताये स्थान पर भेजने में कामयाब हो गया।"

"हाँ , तुमने बीच में मुझे फोन किया था और बताया कि जे.एन. की सुरक्षा व्यवस्था इंस्पेक्टर विजय के हाथों में है, उससे बचकर जे.एन. का क़त्ल करना लगभग असम्भव है। तब मैंने तुमसे कहा, कि इस मामले में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ। तुम जहाँ चाहोगे, जे.एन. खुद ही अपनी सुरक्षा तोड़कर पहुंच जायेगा और यही हुआ। जे.एन. उस रात वहाँ पहुँचा, जहाँ तुमने उसे क़त्ल करना था।"

"अब मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह शख्स और कोई नहीं सिर्फ मायादास है।"

"हम दोनों इस गेम में बराबर के साझीदार हैं, अन्दर के मामलों को ठीक करना उसी का काम था। अगर मायादास हमारी मदद न करता, तो तुम हरगिज अपने काम में कामयाब नहीं हो सकते थे।"

"एक सवाल आखिरी।"

"पूछो।"

"तुम्हें यह कैसे पता लगा कि पच्चीस लाख की रकम हासिल करने के लिए मैं यह सब कर गुजरूँगा।"

"यह बात मुझे पता चल गई थी कि तुम्हारी पत्नी तुम्हें छोड़कर चली गई है और तुम उसे बहुत चाहते हो। उसे दोबारा हासिल करने के लिए तुम्हें पच्चीस लाख की जरुरत है, बस मैंने यह रकम अरेंज कर दी और कोई सवाल ?"


"नहीं, अब तुम जा सकते हो। हमारा बिजनेस यही पर खत्म होता है, दुनिया को कभी यह न मालूम होने पाये कि हमारा तुम्हारा कोई सम्बन्ध था।"

शंकर, रोमेश को रुपया देकर चलता बना। अब रोमेश सोच रहा था कि इस पूरे खेल में मायादास ने एक बड़ी भूमिका अदा की और हमेशा पर्दे के पीछे रहा। मायादास ने ही जे.एन. को मर्डर स्पॉट पर बिना किसी सुरक्षा के भेज दिया था। मायादास का ध्यान आते ही रोमेश को याद आया कि किस तरह इसी मायादास ने उसकी पत्नी सीमा को उसके फ्लैट पर नंगा कर दिया था। इसकी उसी हरकत ने सीमा को उससे जुदा कर डाला।

"सजा तो मुझे मायादास को भी देनी चाहिये।" रोमेश बड़बड़ाया,

"मगर अभी नहीं। अभी तो मुझे सिर्फ एक काम करना है, एक काम। सीमा की वापसी।"

सीमा का ध्यान आते ही वह बीती यादों में खो गया।

"अब मैं तुम्हें पच्चीस लाख भी दूँगा सीमा ! मैं आ रहा हूँ, जल्द आ रहा हूँ तुम्हारे पास। मैं जानता हूँ कि तुम भी बेकरारी से मेरा इन्तजार कर रही होगी।"

रोमेश उठ खड़े हुआ ।




जारी रहेगा...............✍️✍️
बहुत ही सुंदर लाजवाब और गजब का अपडेट हैं भाई मजा आ गया
कानुनी दावपेंचों का माहीर रोमेश ने अदालत में पुरा फासा पलट कर अपने आप को बे कसुर साबित कर ही लिया
बहुत ही जबरदस्त अपडेट
 
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