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♡ Family Introduction ♡ |
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भ्राता श्री शाम तक आपको मिल जाएगा अपडेट
Wow pura investigation mahol. Aap ne to durdarshan par aane vali ek tv serial ki yaad dila di. Byomkesh Bakshi. Ramesh sirf vakil hi nahi ek achha crime investigation visheshagya bhi hai. Maza aaaya. Ess logo ki soch to hamse kai jyada hi pare hai. Hads off hai Panditji# 5
"क्या बात कर रहे हो भाई, अपने मामले में मैं कितना सख्त हूँ, यह तो तुम भी जानते हो।"
"यही तो मुश्किल है कि इस बार तुम हर जगह से हारोगे, कातिल सामने होगा और तुम उसे गिरफ्तार नहीं कर सकोगे ।"
"साफ-साफ बताओ यार, पहेली मत बुझाओ ।"
"तो सुनो , जो मकतूल है, वही कातिल भी है ।"
"क… क्या मतलब ? माई गॉड ! मगर कैसे ? वह यहाँ और रिवॉल्वर वहाँ ? हाउ इज इट पॉसिबल ?
आत्महत्या करने के बाद वह रिवॉल्वर इतनी दूर कैसे फेंक सकता है ? या तो उसके हाथ में होती या मेज पर ? नहीं तो ज्यादा-से-ज्यादा उसके पैरों के पास ।
कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि आत्महत्या के बाद किसी ने रिवॉल्वर उस तरफ फेंक दी होगी ।"
"यार तुम तो हजा रों सवाल किये जा रहे हो । कभी-कभी दिमाग के घोड़े भी दौड़ा लिया करो , तुमने वह दरवाजा देखा ।" दरवा जा बन्द था ।
"हाँ , देखा ।"
"इस किस्म के फ्लैटों में रहने वाले लोग क्या दरवाजों पर इस तरह कीलें ठोककर रखते हैं। कीलें तो झोंपड़पट्टी वाले भी अपने दरवाजों पर नहीं ठोकते ।" विजय ने उन कीलों को देखा ।
"मगर इससे क्या हल निकला ?"
"रिवॉल्वर दरवाजे के पास गिरी हुई थी , लो पहले इसका चेम्बर खाली करके गोलियां अपने कब्जे में करो , फिर बताता हूँ ।"
विजय ने चेम्बर खाली कर दिया । खाली रिवॉल्वर की मूठ को रोमेश ने उन कीलों पर फिक्स किया , रिवॉल्वर कीलों पर अटक गया ।
''अब अगर इसकी नाल से गोली निकलती है, तो कहाँ पड़नी चाहिये ?" रोमेश ने पूछा ।
"ओ गॉड ! गोली सीधा उसी कुर्सी पर पड़ेगी , जहाँ मृतक मौजूद है ।"
"बिल्कुल ठीक ! यह भी कि गोली उसी जगह लगेगी , जहाँ इस शख्स के लगी हुई है । वह अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिला । कुर्सी के पुश्ते से उसका सिर उसी पोजीशन में है । वह उसी स्थिति में मरा है ।
उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया , गोली चली और सीधा उसके मस्तक को फोड़ती चली गई ।"
"लेकिन सवाल अब भी वही है, उसने रिवॉल्वर का ट्रिगर दबाया कैसे ?"
"रबड़ की इस डोरी से ।"
रोमेश में एकपतली डोरी दिखाई,
"यह डोरी इस मेज के नीचे पड़ी थी”
उसने डोरी का एक सिरा ट्रिगर पर मिलाया , दूसरा सिरा खुद पकड़कर धीरे-धीरे डोरी खींची । जैसे ही तनाव बढ़ा , डोरी ने ट्रिगर दबा दिया । गोली चलने पर रिवॉल्वर को झटका लगा । साथ ही डोरी का बंधन भी ट्रिगर से छूट गया , रिवॉल्वर नीचे गिर गई और मृतक के मरते ही डोरी का दूसरा सिरा उसके हाथ से भी निकल गया।धमाके की आवाज सुनकर तुरन्त ही हीरालाल अन्दर आया, और बाकी वही हुआ, जो वह कहता है ।"
"ओ रियली ! यू आर जीनियस मैन रोमेश ! इस सारे मामले ने मेरे तो छक्के ही छुड़ा दिये । मगर इस शख्स ने आत्महत्या की यह तरकीब क्यों सोची और यह बिसात पर बिछे मोहरे, दो गिलास, व्हिस्की की बोतल यह सब क्या है ?"
"मरने से पहले उसने यह कौशिश की, कि यह मामला कत्ल का बन जाये और शायद यह भी सोच लिया था कि हीरा लाल पकड़ा जायेगा ,
हीरा लाल ने डोर नॉक किया तो वह मरने के लिए तैयार बैठा था ।"
"मगर वजह क्या हो सकती है ?"
"वजह तुम तलाश करो , क्या सब कुछ मैं ही करता फिरूंगा । कुछ तुम भी तो करके दिखाओ माई डियर पुलिसमैन ।"
इतना कहकर रोमेश ने दरवाजा खोला और बाहर निकला चला गया । अगले दिन वजय का फोन रोमेश को मिला ।
"वही स्टोरी है, असल में उसे जबरदस्त घाटा हो चुका था उसकी लाइफ इंश्योरेंस की कुछ पॉलिसी थी, जगाधरी और उसकी पत्नी में कुछ सालों से अनबन थी , जगाधरी घर नहीं जाता था ।
उसकी फैमिली पूना में रहती है, और उसकी पत्नी वहाँ टीचर है । इसके दो बच्चे भी हैं, दोनों माँ के साथ रहते हैं, जगाधरी की कमाई का वह एक पैसा भी नहीं लेते थे, जगाधरी काफी मालदार व्यक्ति था , फिर वह शेयर के धंधों में सब कुछ गंवा बैठा और पूरी तरह कर्जदार भी हो गया , इसका सब कुछ बिक चुका था । बस उसकी इंश्योरेंस की पॉलिसियां थीं , इसलिये वह चाहता था कि उसकी मौत का नाटक कत्ल की वारदात में बदल जाये, तो पॉलिसी कैश हो जायेगी, और उसकी मौत के बाद एक मोटी रकम बीवी - बच्चों को मिल जायेगी ।"
"बड़ी ट्रेजिकल स्टोरी है, वह अपने बीवी -बच्चों को चाहता था ।" रोमेश बोला ।
"हाँ , ऐसा ही है ।"
"बहरहाल तुम्हारा बहुत-बहुत शुक्रिया, तुमने गुत्थी सुलझा दी , अगर मेरी जगह कोई और होता , तो शायद जो स्टोरी जगाधरी बनाना चाहता था , वह अखबारों में छपी होती ।"
"मैं कचहरी जा रहा हूँ, एक दिलचस्प मुकदमे की पैरवी करने । जरा आ जाना ।"
इतना कहकर रोमेश ने फोन काट दिया ,
"सेम स्टोरी ।"
रोमश के होंठ गोल हो गये । वह कोर्ट जाने के लिए बिल्कुल तैयार खड़ा था, और कानून की एक मोटी किताब में कुछ मार्क कर रखा था । उसके बाद उसने दो-तीन लॉ बुक उठाई और फ्लैट से बाहर आ गया । श्यामू मोटर साइकिल साफ कर रहा था ।
"श्यामू तूने कभी अपना बीमा करवाया ?"
"नहीं तो साब, क्या करना बीमा करके, जो रुपया अपने काम न आये, वह किस काम का और फिर साब, मेरी अभी शादी ही कहाँ हुई ।"
"ओहो यह तो मैं भूल ही गया था , तेरी उम्र क्या है ?"
"उम्र मत पूछो साब, रोना आता है ।"
श्यामू, रोमेश का घरेलू नौकर था । जो उसे तनख्वाह मिलती थी , सब खर्च कर देता था। अच्छे कपड़े पहनना उसका शौक था, और एक फिल्म को कम-से-कम तीन बार तो देखता ही था । जो फिल्म केवल बालिगों के लिए होतीं , उन्हें तो वह दस-दस बार देखता था । रोमेश कोर्ट के लिए रवाना हो गया ।
रोमेश का संक्षिप्त नाम रोमी था, और रोमी के नाम से उसे सारा कोर्ट बुलाता था। कोर्ट के परिसर में उस समय जबरदस्त हलचल होती थी , जब रोमी का मुकद्दमा होता । उसकी बहस सुनने के लिए अन्य वकील भी आते थे और खासी भीड़ रहती थी ।
रोमी जब अपने चैम्बर में पहुँचा , तो वैशाली वहाँ उसकी प्रतीक्षा कर रही थी । वैशाली को नमस्ते का जवाब देने के बाद वह अपनी सीट पर बैठा, और फाइलें तलब करने लगा । असिस्टेंट उसे घेरे हुए थे ।
ग्यारह बजकर चालीस मिनट पर वह कोर्ट में पहुँचा । उस कोर्ट में आज एक अद्भुत मुकदमे की कार्यवाही होनी थी । कोर्ट में पेश हो रहा था इकबालिया मुलजिम सोमू उर्फ़ सोमदत्त ।
वैशाली वहाँ पहले ही पहुंच गयी थी, और इंस्पेक्टर विजय भी आ गया था, वो वैशाली के बराबर बैठा था । दोनों को बातें करता देख रोमी मुस्कराया ।
एक सीट पर राजदान बैठा था । रोमी को कोर्ट में आता देखकर वह चौंका । उसने बुरा - सा मुँह बनाया , दूसरे लोगों में भी काना फूसी होने लगी , क्या रोमी सोमदत्त की पैरवी पर आया है ?
"अगर उसने वकालतनामा भरा तो इस बार मुँह की खायेगा ।" राजदान किसी से कह रहा था ,
"मुलजिम अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है ।"
उसी समय सोमू को अदालत में पेश किया गया । राजदान उठ खड़ा हुआ। न्यायाधीश ने मेज पर हथौड़ी की चोट की और अदालत की कार्यवा ही शुरू करने का हुक्म दिया ।
"इकबालिया मुलजिम सोमू के बारे में किसी प्रकार की बहस मुनासिब नहीं होगी , इकबाले जुर्म करने के बाद केवल खाना पूर्ति शेष रह जाती है । मेरे ख्याल से इस केस में कोई मुद्दा शेष नहीं रह गया है, अतः महामहिम के फैसले का इन्तजार है ।"
"आई ऑब्जेक्ट योर ऑनर !"
रोमी उठ खड़ा हुआ और फिर उसने अपना वकालतनामा सोमू के पक्ष में पेश किया ,
"मुझे सोमू की पैरवी की इजाजत दी जाये ।"
"इजाजत का प्रश्न ही नहीं उठता , वह अपने जुर्म का इकबाल कर चुका है । अब उसमें पैरवी या बहस के मुद्दे कहाँ से आ पड़े ?"
"शायद मेरे अजीज दोस्त राजदान को नहीं मालूम, किसी व्यक्ति के जुर्मस्वीकार कर लेने से ही जुर्म साबित नहीं हो जाता । इकबाले जुर्म के बाद भी पुलिस को उसे साबित करना होता है और पुलिस ने ऐसी कोई कार्यवाही नहीं की है । यदि मुलजिम जुर्म का इकबाल करता है, तो उसे दोषी नहीं माना जा सकता , ठीक उसी तरह जैसे इकबाले-जुर्म न करने पर उसे निर्दोष नहीं माना जाता।"
रोमी ने अपनी लॉ बुक से न्यायाधीश को एक धारा दिखाते हुए कहा ,
"अगर आवश्यकता हो , तो आप इसका अध्ययन कर लें ।"
अदालत में सनसनी फैल गई । यह पहला अवसर था , जब रोमी ने ऐसा केस हाथ में लिया था , जिसका मुलजिम अपने जुर्म का इक़बाल कर चुका था ।
"इजाजत दी जाती है ।"
न्यायाधीश ने कहा । न्यायाधीश ने रोमी का वकालतनामा स्वीकार कर लिया ।
"सबूत पक्ष को आदेश दिया जाता है कि वह मुलजिम सोमू पर जुर्म साबित करने की कार्यवाही मुकम्मल करे और एडवोकेट रोमेश सक्सेना को डिफेन्स का पूरा अधिकार दिया जाता है ।"
न्यायाधीश ने यह आदेश पारित करके एक सप्ताह बाद की तारीख कर दी ।
"इस बार मात होनी तय है, रोमी साहब ।"
राजदान ने बाहर निकलते हुए कहा ।
"हम साबित भी कर देंगे ।"
"मात किसकी होनी है, यह आप अच्छी तरह जानते हैं राजदान साहब। आपकी जिन्दगी में अदालत में जब-जब मेरा सामना होगा , तब शिकस्त ही आपका मुकद्दर होगी ।
मैं इस मुकदमे को लम्बा नहीं जाने दूँगा , तुम एक दो तारीख से ज्यादा नहीं खींच पाओगे और वह बरी हो जायेगा ।"
रोमेश ने विजय और वैशाली को अपने चैम्बर में आने के लिए कहा । दोनों चैम्बर में आ गये ।
"क्या तुम लोग एक-दूसरे से परिचित हो ?" रोमी ने पूछा ।
"हाँ , हम बड़ौदा में एक साथ पढ़े हैं ।" विजय बोला ।
"और आपसे मदद लेने की सलाह इन्होंने ही दी थी ।" वैशाली बोली ।
"भई वाह, यह तुमने पहले क्यों नहीं बताया ।"
"क्यों कि इन्होंने यह भी कहा था कि आपके मामले में कोई सिफारिश जोर नहीं मारती।"
"वैशाली लॉ कर रही है और तुम्हारी सरपरस्ती में कुछ बनना चाहती है ।"
"ओह बात यहाँ तक है ।" रोमी मुस्कुराया ।
"बात तो इससे भी आगे तक है ।" विजय हँसकर बोला ।
"अच्छा , यह बातें तो होती रहेंगी । मैंने तुम्हें आज इसलिये बुलाया था कि इस मामले में तुम्हारी मदद ले सकूं ।"
"ओह श्योर, क्या करना है हुक्म करो।"
"मुझे करुण पटेल चाहिये हर सूरत में ।"
"वह शख्स जिसने एक लाख रुपया दिया था ।"
"हाँ वही , वैशाली ने उसका जो पता मुझे बताया था , वह फर्जी पता है, और मेरी अपनी इन्वेस्टीगेशन के अनुसार यह कोई जरायमपेशा व्यक्ति भी नहीं है, न ही वह सोमू का परिचित है ।
जेल में मेरा एक आदमी सोमू को काफी टटोल चुका है, हमने इस मामले में एक कैदी से मदद ली थी और कैदी द्वारा जिन बातों का पता चला , उसी को ध्यान में रखकर मैंने मुकदमा हाथ में लिया है । फिलहाल मुझे करुण पटेल की जरूरत है ।
सेठ कमलनाथ के विश्वासपात्र लोगों में यह शख्स तुम्हें मिल जायेगा , उसे दबोचने के मामले में तुम पुलिसिया डंडा भी फेर सकते हो । बस यह बात ध्यान रखने की है कि वह सेठ कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होगा , हुलिया तुम्हें वैशाली से पता चल जायेगा ।"
"चिन्ता न करो , मैं उसे हर हालत में खोज निकालूंगा और जैसे ही वह मेरे हत्थे चढ़ेगा , तुम्हें फोन कर दूँगा ।"
विजय ने बड़ी जल्दी सफलता प्राप्त कर ली , तीसरे दिन ही करुण पटेल हाथ आ गया। विजय ने रोमेश को थाने बुला लिया । रोमी जब थाने पहुँचा , तो करुण पटेल हवालात में बंद था ।
"मुझे पकड़ा क्यों गया , क्या किया है मैंने ?"
करुण पटेल गिड़गिड़ा रहा था ,
"मेरा कसूर तो बता दो इंस्पेक्टर साहब ।"
"इसका नाम करुण पटेल नहीं बेंकट करुण है ।" विजय बोला ।
"क्या वैशाली ने इसकी पुष्टि कर ली ।"
"हाँ , उसने दूर से देखकर इसे पहचाना और मैंने धर दबोचा । यह सेठ कमलनाथ का बहनोई लगता है।"
"बस काम बन गया ।"
"लेकिन तुम्हें यह अन्देशा कैसे था कि यह शख्स कमलनाथ का कोई विश्वास पात्र होना चाहिये, आखिर लूटी गई रकम उसके विश्वासपात्र के पास कैसे सोमू रखेगा ?"
"तस्वीर का दूसरा रुख सामने आते ही सब तुम्हारी समझ में आ जायेगा , अब तुम्हें एक काम और करना है ।"
जारी रहेगा....✍
Yaha leed vakil shahab kar gae. Par yaha muke umid thi ki vaishali katghare me akar ye dalil karegi. Aur uski sahi soch par Ramesh bethkar mushkuraega. Lekin aap ne ramesh se leed karwai. Ye bhi badhiya tha. Lekin jise crime na pata ho. Agar vo is case ke bare me sochega to bhi use kamalnath ka crime samajh nahin aaega. Par last ki line me jo itfak bade mazakiya andaz me bola. Jese kahena chahte ho ki vo yahi hai. Yaha isi Kota room me.# 6
अगली तारीख पर अदालत खचा-खच भरी हुई थी ।
पुलिस ने जो गवाह पेश किये, वह सब रटे रटाये तोते की तरह बयान दे रहे थे । रोमी ने इनमें से किसी से भी खास क्वेश्चन नहीं कि या, न ही चश्मदीद गवाह से यह पूछा कि वह सुनसान हाईवे पर आधी रात को क्या कर रहा था ?
"मेरे अजीज दोस्त रोमेश सक्सेना ने बिना वजह अदालत का समय जाया किया है मीलार्ड”।
“इनका तो मनो बल इतना टूटा हुआ है कि किसी गवाह से सवाल जवाब करने से ही कतरा रहे हैं ।"
"फर्जी गवाहों से सवाल जवाब करना मैं अपनी तौहीन समझता हूँ, और न ही इस किस्म के क्रिया कलापों में समय नष्ट करता हूँ । मैं अपने काबिल दोस्त से जानना चाहूँगा कि सारे गवाह पेश करने के बावजूद भी पुलिस वह रकम क्यों बरामद नहीं कर पायी , जो सोमू ने लूट ली थी। यह प्वाइन्ट नोट किया जाये योर ऑनर, कि जिस रकम के पीछे कत्ल हो गया , वह रकम सोमू के पास से बरामद नहीं हुई ।"
"इस रकम की बरामदगी न होने से केस की मजबूती पर कोई असर नहीं पड़ता योर ऑनर !
पुलिस सोमू से रकम बरामद न कर सकी, इससे केस के हालात नहीं बदल जाते । सोमू पहले ही अपने जुर्म का इकबा ल कर चुका है।" राजदान ने पुरजोर असर डालते हुए कहा ,
"यह बात मुलजिम ही बेहतर जानता होगा , उसने रकम कहाँ छिपायी थी। पुलिस ने उस पर थर्ड डिग्री प्रयोग की होती, तो शायद रकम भी बरामद हो जाती । लेकिन उसने पुलिस को चकमा देकर अदालत में समर्पण किया, और उसे रिमाण्ड पर नहीं लिया जा सका । पुलिस ने रिमाण्ड की जरूरत इसलिये भी नहीं समझी, कि वह अपना जुर्म कबूल करने के लिए तैयार था । दैट्स आल योर ऑनर ।"
"योर ऑनर मेरे काबिल दोस्त की सारी दलीलें अभी फर्जी साबित हो जाएंगी, मैं वह रकम पेश करने की इजाजत चाहता हूँ ।"
"आप रकम पेश करेंगे ?" राजदान चिल्लाया ।
"क्या हर्ज है ? पुलिस का अधूरा काम कोई भी शरीफ शहरी पूरा कर दे, तो उसमें हर्ज क्या है। क्या मुझे कानून की मदद करने का अधिकार नहीं? और फिर यह रकम कोई मैं अपने पल्ले से दे नहीं रहा। न ही उसमें मेरा कोई कमीशन है ।" अदालत में बैठे लोग हँस पड़े ।
"आर्डर !आर्डर !!" जज ने मेज पर हथौड़ी पीटी ।अदालत शांत हो गई ।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना , रकम पेश कीजिए ।"
इंस्पेक्टर विजय उठकर बाहर गया और कुछ क्षण में ही एक व्यक्ति को पेश किया गया ! वह हाथ में ब्रीफकेस लिए हुए था । यह शख्स और कोई नहीं बेंकट करुण था । कमलनाथ का बहनोई। अदालत की रस्मी कार्यवाही के अनुसार गी.. पर हाथ रख कसम लेने के बाद उसके बयान शुरू हो गये ।
"आपका नाम ?" रोमेश ने पूछा ।
"बेंकट करुण ।"
"बाप का नाम ।"
"अंकेश करुण ।"
"क्या आप वह रकम लेकर आये हैं, जिसका मालिक सोमू है ?" रोमेश ने पूछा ।
"जी हाँ , ये रही ।"
"यह फर्जी ड्रामा कर रहे हैं योर ऑनर।" राजदान चीखा ,
"पता नहीं क्या गुल खिलाना चाहते हैं?"
"मैं कोई गुल नहीं खिलाना चाहता गुले गुलजार, मैं तो आपकी मदद कर रहा हूँ । केस को और मजबूत कर रहा हूँ ।"
"योर ऑनर, मेरे काबिल दोस्त से कहें कि गवाह का बयान पूरा होने के बाद ही गुल खिलायें ।"
पब्लिक एक बार फिर हँस पड़ी । न्यायाधीश को एक बार फिर मेज बजानी पड़ी। कार्यवाही आगे बढ़ी ।
"ब्रीफकेस खोलो ।" रोमेश ने कहा ।
ब्रीफकेस में सौ-सौ के नोटों की दस गड्डियां थीं । रोमेश ने रकम न्यायाधीश की मेज पर रखी ।
"गिन लीजिये योर ऑनर ! पूरे एक लाख ही हैं, और यह रकम कोई मैं अपनी जेब से दान नहीं कर रहा हूँ, यह वही रकम है जिसकी खातिर यह सब घटना यें प्रकाश में आई ।"
"ठीक है, आगे कहिए ।" न्यायाधीश ने अत्यन्त क्षीण दिलचस्पी से कहा । अदालत में बैठी जनता में खुसुर-फुसुर हो रही थी ।
"यह उसकी पैरवी कर रहा है या फाँसी पर लटकवाना चाहता है, सब उसके खिलाफ जा रहा है ।"
राजदान ने पीछे बैठे व्यक्ति की टिप्पणी सुन ली थी, वह मुस्करा तो दिया, परन्तु अन्दर ही अन्दर उसका मन किसी आशंका से काँप रहा था ।
"बेंकट करुण, अदालत को बताओ कि यह रकम किसने तुम्हें दी, और किस शर्त पर तुमने इसे सोमू के घर तक पहुंचाया ?"
''यह रकम सेठ कमलनाथ ने मुझे दी थी, मैं उनका बहनोई हूँ ।"
उसके इतना कहते ही अदालत में एकदम खलबली मच गयी ।
"शर्त यह थी कि जब सोमू कत्ल के जुर्म का इकबाल कर लेगा, तो रकम उनके घर पहुँचा दी जायेगी और उसके ऐसा करते ही हमने रकम पहुँचा दी ।"
"यह झूठा प्रपंच है ।" राजदान चीखा ,
"भला कमलनाथ क्यों देगा, कमलनाथ तो मर चुका था योर ऑनर ! सफाई पक्ष का वकील तो इस तरह कह रहा है, जैसे वह अभी चुर्रर-मुर्रर करेगा और कमलनाथ को जिन्दा कर लेगा ।"
"यही होने जा रहा है मिस्टर राजदान।"
ठीक उसी समय हथकड़ियों में जकड़ा कमलनाथ अदालत में आ गया।
"देखो,वो रहा कमलनाथ! गौर से देखो और चाहे जैसे शिनाख्त कर लो और खुद अदालत को बतादो कि जो शख्स मरा ही नहीं, उसके कत्ल के जुर्म में क्या किसी मुलजिम को सजा दी जा सकती है? हाउ कैन इट पॉसिबल?, चाहे उसने जुर्म का इकबाल ही क्यों न किया हो ।"
राजदान के तो छक्के छूट गये। पसीना-पसीना हो गया वह। सेठ कमलनाथ सचमुच अदालत में प्रकट हो गया था। अदालत में खलबली शांत हुई, तो कमलनाथ को कटघरे में लाया गया, और कमलनाथ को भी..कसम दिलाई गई ।
"सेठ कमलनाथ, उचित होगा कि आप स्वयं अदालत को सब कुछ बता दें, क्यों कि अब आपका खेल खत्म हो गया है।"
"मैं दिवालिया हो गया था ।" कमलनाथ ने बोलना शुरू किया,
"तीन महीने से मेरी फैक्ट्री में ताला पड़ा था। स्टाफ को वेतन नहीं दे पा रहा था, और वह लोग मुझे कोर्ट में घसीटने की धमकियां दे रहे थे। ट्रेड यूनियन्स उनकी पीठ पर आ खड़ी हुई थी। उनको मेरी हालत का अन्दाजा भी न था, कि मेरी सारी प्रॉपर्टी गिरवी पड़ी है। उस रात मैं बहुत परेशान था और अचानक वह हादसा हो गया, कोई शख्स आत्महत्या के इरादे से रात के अन्धेरे में सड़क के किनारे खड़ा शायद किसी वाहन की प्रतीक्षा कर रहा था, और अचानक हमारी कार के आगे कूद गया, उसकी मौत हो गई ।" इतना कहकर वह कुछ क्षण के लिए रुका ।
"संयोग से उसकी कद-काठी मेरे जैसी थी। मेरे दिमाग में तुरन्त एक ख्याल आया, अगर मेरी मौत इस तरह हो जाती, तो मुझे पचास लाख रुपया मिल सकता था। यह रकम मुझे इंश्योरेंस से मिल सकती थी। उधर सोमू को अपनी बहन की शादी के लिए एक लाख रुपये की जरूरत थी। मैंने पहले तो लाश को अपने कपड़े वगैरा पहनवाये, फिर सोमू से सौदा कर लिया कि उसे क्या करना है । अगर मैं खाली एक्सीडेन्ट दिखाता हूँ, तो तफ्तीश में शायद यह भेद खुल जाता। इसलिये मैंने उसे कत्ल का नाटक बनाकर पेश कर दिया और सोमू मुलजिम बनने को तैयार हो गया। उसके इकबाले-जुर्म करने से पुलिस भी अधिक झंझट में नहीं पड़ी और इंश्योरेंस की रकम भी मुझे मिल गई। मैं कुछ दिन के लिए मुम्बई से बाहर अपने बहनोई के गाँव वाले मकान में रहने चला गया, और काम होने पर रकम सोमू के घर पहुंचाने का निर्देश भी दे दिया था। लेकिन बेंकट करुण पकड़ा गया और फिर मेरा सारा भांडा फूट गया।"
"दैट्स आल योर ऑनर ! यह है असली वाकया, आप चाहें तो सेठ कमलनाथ की शिनाख्त करवा सकते हैं। कहीं मेरे वकील दोस्त राजदान, कमलनाथ को भी फर्जी न कह बैठे।"
अदालत में बैठे लोगों ने तालियां बजा कर उसका उत्साह-वर्धन किया। अगले दिन अखबारों में रोमी सुर्खियों में था।
जारी रहेगा….
कहीं मेरे वकील दोस्त राजदान, कमलनाथ को भी फर्जी न कह बैठे।"
Yaha esa mahesus huaa ki Panditji aap bazi mar gae. Redrs ko thode hi starting me hi ulzan me jarur badla.# 8
रोमेश घर पर ही था , शाम हो गयी थी। वह आज सीमा के साथ किसी अच्छे होटल
में डिनर के मूड में था, उसी समय फोन की घंटी बज उठी, फोन खुद रमेश ने उठाया।
''एडवोकेट रोमेश सक्सेना स्पीकिंग।''
''नमस्ते वकील साहब, हम माया दास बोल रहे हैं।''
''माया दास कौन?''
''आपकी श्रीमती ने कुछ बताया नहीं क्या, हम चीफ मिनिस्टर जे.एन.साहब के पी.ए. हैं।''
''कहिए कैसे कष्ट किया?''
"कष्ट की बात तो फोन पर बताना उचित नहीं होगा, मुलाकात का वक्त तय कर लिया
जाये, आज का डिनर हमारे साथ हो जाये, तो कैसा हो?"
"क्षमा कीजिए, आज तो मैं कहीं और बिजी हूँ।''
''तो फिर कल का वक़्त तय कर लें, शाम को आठ बजे होटल ताज में दो सौ पांच नंबर सीट हमारी ही है, बारह महीने हमारी ही होती है।''
रोमेश को भी जे.एन. में दिलचस्पी थी , उसे कैलाश वर्मा का काम भी निबटाना था , यही सोचकर उसने हाँ कर दी।
''ठीक है, कल आठ बजे।''
"सीट नंबर दो सौ पांच ! होटल ताज!'' माया दास ने इतना कहकर फोन कट कर दिया।
कुछ ही देर में सीमा तैयार होकर आ गई। बहुत दिनों बाद अपनी प्यारी पत्नी के साथ वह बाहर डिनर कर रहा था, वह सीमा को लेकर चल पड़ा। डिनर के बाद दोनों काफी देर तक जुहू पर घूमते रहे। रात के बारह बजे कहीं जा कर वापसी हो पायी।
अगले दिन वह माया दास से मिला।
माया दास खद्दर के कुर्ते पजामे में था, औसत कद का सांवले रंग का नौजवान था,
देखने से यू.पी. का लगता था, दोनों हाथों में चमकदार पत्थरों की 4 अंगूठियां पहने हुए था और गले में छोटे दाने के रुद्राक्ष डाले हुए था।
"हाँ , तो क्या पियेंगे? व्हिस्की, स्कॉच, शैम्पैन?''
"मैं काम के समय पीता नहीं हूँ, काम खत्म होने पर आपके साथ डिनर भी लेंगे, कानून की भाषा के अंतर्गत जो कुछ भी किया जाये, होशो -हवास में किया जाये, वरना कोई एग्रीमेंट वेलिड नहीं होता।"
"देखिये, हम आपसे एक केस पर काम करवाना चाहते हैं।" माया-दास ने केस की बात सीधे ही शुरू कर दी।
''किस किस्म का केस है?"
"कत्ल का।"
रोमेश सम्भलकर बैठ गया।
"वैसे तो सियासत में कत्लो-गारत कोई नई बात नहीं। ऐसे मामलों से हम लोग सीधे खुद ही निबट लेते हैं, मगर यह मामला कुछ दूसरे किस्म का है। इसमें वकील की जरूरत पड़ सकती है। वकील भी ऐसा, जो मुलजिम को हर रूप में बरी करवा दे।"
"और वह फन मेरे पास है।''
''बिल्कुल उचित, जो शख्स इकबाले जुर्म के मुलजिम को इतने नाटकीय ढंग से बरी करा सकता है, वह हमारे लिए काम का है। हमने तभी फैसला कर लिया था कि केस आपसे लड़वाना होगा।''
"मुलजिम कौन है? और वह किसके कत्ल का मामला है?"
''अभी कत्ल नहीं हुआ, नहीं कोई मुलजिम बना है।''
''क्या मतलब?" रोमेश दोबारा चौंका।
मायादास गहरी मुस्कान होंठों पर लाते हुए बोला,
"कुछ बोलने से पहले एक बात और
बतानी है। जो आप सुनेंगे, वह बस आप तक रहे। चाहे आप केस लड़े या न लड़े।"
''हमारे देश में हर केस गोपनीय रखा जाता है, केवल वकील ही जानता है कि उसका मुवक्किल दोषी है या निर्दोष, आप मेरे पेशे के नाते मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।''
''तो यूं जान लो कि शहर में एक बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति का कत्ल जल्द ही होने जा रहा है, और यह भी कि उसे कत्ल करने वाला हमारा आदमी होगा। मरने वाले को भी पूर्वाभास है, कि हम उसे मरवा सकते हैं। इसलिये उसने अपने कत्ल के बाद का भी जुगाड़ जरूर किया होगा। उस वक्त हमें आपकी जरूरत पड़ेगी। अगर पुलिस कोई दबाव में आकर पंगा ले, तो कातिल अग्रिम जमानत पर बाहर होना चाहिये। अगर उस पर मर्डर
केस लगता है, तो वह बरी होना चाहिये। यह कानूनी सेवा हम आपसे लेंगे, और धन की सेवा जो आप कहोगे, हम करेंगे।''
"जे.एन. साहब ऐसा पंगा क्यों ले रहे हैं?"
"यह आपके सोचने की बात नहीं, सियासत में सब जायज होता है। एक लॉबी उसके खिलाफ है, जिससे उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने का प्रपंच चलाया हुआ है।
''एम.पी . सावंत !"
माया-दास एकदम चुप हो गया,उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभरे, ललाट की रेखाए तन गई, परंतु फिर वह जल्दी ही सामान्य होता चला गया।
''पहले डील के लिए हाँ बोलो, केस लेना है? और रकम क्या लगेगी। बस फिर पत्ते खोले जायेंगे, फिर भी हम कत्ल से पहले यह नहीं बतायेंगे कि कौन मरने वाला है।''
माया दास ने कुर्ते की जेब में हाथ डाला और दस हज़ार की गड्डी निकालकर बीच मेज पर रख दी, ''एडवांस !''
"मान लो कि केस लड़ने की नौबत ही नहीं आती।"
"तो यह रकम तुम्हारी।"
"फिलहाल यह रकम आप अपने पास ही रखिये, मैं केस हो जाने के बाद ही केस की स्थिति देखकर फीस तय करता हूँ।"
"ठीक है, हमें कोई एतराज नहीं। अगले हफ्ते अखबारों में पढ़ लेना, न्यूज़ छपने के तुरंत बाद ही हम तुमसे संपर्क करेंगे।''
डिनर के समय माया दास ने इस संबंध में कोई बात नहीं की। वह समाज सेवा की बातें करता रहा, कभी-कभी जे.एन. की नेकी पर चार चांद लगाता रहा।
"कभी मिलाएंगे आपको सी.एम. से।"
"हूँ",
मिल लेंगे। कोई जल्दी भी नहीं है।"
रमेश साढ़े बारह बजे घर पहुँचा। जब वह घर पहुँचा, तो अच्छे मूड में था, उसके कुछ किए बिना ही सारा काम हो गया था। उसने माया दास की आवाज पॉकेट रिकॉर्डर में टेप कर ली थी, और कैलाश वर्मा के लिए इतना ही सबक पर्याप्त था। यह बात साफ हो गई कि सावंत के मर्डर का प्लान जे.एन. के यहाँ रचा जा रहा है। उसकी बाकी की पेमेंट खरी हो गई थी।
वह जब चाहे, यह रकम उठा सकता था। उसे इस बात की बेहद खुशी थी।
जब वह बेडरूम में पहुँचा, तो सीमा को नदारद पा कर उसे एक धक्का सा लगा। उसने नौकर को बुलाया।
''मेमसा हब कहाँ हैं?"
"वह तो साहब अभी तक क्लब से नहीं लौटी।''
"क्लब ! क्लब !! आखिर किसी चीज की हद होती है, कम से कम यह तो देखना चाहिये कि हमारी क्या आमदनी है।''
रोमेश ने सिगरेट सुलगा ली और काफी देर तक बड़बड़ाता रहा।
"कही सीमा , किसी और से?'' यह विचार भी उसके मन में घुमड़ रहा था, वह इस विचार को तुरंत दिमाग से बाहर निकाल फेंकता, परन्तु विचार पुनः घुमड़ आता और उसका सिर पकड़ लेता।
निसंदेह सीमा एक खूबसूरत औरत थी। उनकी मोहब्बत कॉलेज के जमाने से ही परवान चढ़ चुकी थी। सीमा उससे 2 साल जूनियर थी। बाद में सीमा ने एयरहोस्टेस की नौकरी कर ली और रोमेश ने वकालत। वकालत के पेशे में रोमेश ने शीघ्र ही अपना सिक्का जमा लिया। इस बीच सीमा से उसका फासला बना रहा, किन्तु उनका पत्र और टेलीफोन पर संपर्क बना रहता था।
रोमेश ने अंततः सीमा से विवाह कर लिया, और विवाह के साथ ही सीमा की नौकरी भी छूट गई। रमेश ने उसे सब सुख-सुविधा देने का वादा तो किया, परंतु पूरा ना कर सका। घर-गृहस्थी में कोई कमी नहीं थी, लेकिन सीमा के खर्चे दूसरे किस्म के थे। सीमा जब घर लौटी, तो रात का एक बज रहा था। रोमेश को पहली बार जिज्ञासा हुई कि देखे उसे छोड़ने कौन आया है? एक कंटेसा गाड़ी उसे ड्रॉप करके चली गई। उस कार में कौन था, वह नजर नहीं आया।
रोमेश चुपचाप बैड पर लेट गया।
सीमा के बैडरूम में घुसते ही शराब की बू ने भी अंदर प्रवेश किया। सीमा जरूरत से ज्यादा नशे में थी। उसने अपना पर्स एक तरफ फेंका और बिना कपड़े बदले ही बैड पर धराशाई हो गई।
''थोड़ी देर हो गई डियर।'' वह बुदबुदाई,
''सॉरी।''
रोमेश ने कोई उत्तर नहीं दिया।
सीमा करवट लेकर सो गई।
सुबह ही सुबह हाजी बशीर आ गया। हाजी बशीर एक बिल्डर था, लेकिन मुम्बई का बच्चा-बच्चा जानता था, कि हाजी का असली धंधा तस्करी है। वह फिल्मों में भी फाइनेंस करता था, और कभी-कभार जब गैंगवार होती थी, तो बशीर का नाम सुर्खियों में आ जाता था।
''मैं आपका काम नहीं कर सकता हाजी साहब।"
"पैसे बोलो ना भाई ! ऐसा कैसे धंधा चलाता है? अरे तुम्हारा काम लोगों को छुड़ाना है। वकील ऐसा बोलेगा, तो अपन लोगों का तो साला कारोबार ही बंद हो जायेगा।"
वह बात कहते हुए हाजी ने ब्रीफकेस खोल दिया।
''इसमें एक लाख रुपया है। जितना उठाना हो , उठा लो। पण अपुन का काम होने को मांगता है। करी-मुल्ला नशे में गोली चला दिया। अरे इधर मुम्बई में हमारे आदमी ने पहले कोई मर्डर नहीं किया। मगर करी-मुल्लाह हथियार सहित दबोच लिया गया वहीं के वहीं। और वह क्या है, गोरेगांव का थाना इंचार्ज सीधे बात नहीं करता। वरना अपुन इधर काहे को आता।''
''इंस्पेक्टर विजय रिश्वत नहीं लेता।"
''यही तो घपला है यार! देखो, हमको मालूम है कि तुम छुड़ा लेगा। चाहे साला कैसा ही मुकदमा हो।''
''हाजी साहब, मैं किसी मुजरिम को छुड़ाने का ठेका नहीं लेता, उसको अंदर करने का काम करता हूँ।"
"तुम पब्लिक प्रॉसिक्यूटर तो है नहीं।"
"आप मेरा वक्त खराब न करें, किसी और वकील का इंतजाम करें।"
"ये रख।"
उसने ब्री फकेस रोमेश की तरफ घुमाया।
रोमेश ने उसे फटाक से बंद किया,
''गेट आउट! आई से गेट आउट!!''
''कैसा वकील है यार तू।'' बशीर का साथी गुर्रा उठा, “बशीर भाई इतना तो किसी के आगे नहीं झुकते, अबे अगर हमको खुंदक आ गई तो।"
बशीर ने तुरंत उसको थप्पड़ मार दिया।
''किसी पुलिस वाले से और किसी वकील से कभी इस माफिक बात नहीं करने का। अपुन लोगों का धंधा इन्हीं से चलता है। समझा !'' हाजी ने ब्रीफकेस उठा लिया,
''रोमेश भाई, घर में आई दौलत कभी ठुकरानी नहीं चाहिये। पैसा सब कुछ होता है, हमारी नसीहत याद रखना।"
इतना कहकर हाजी बाहर निकल गया। उसके जाते ही सीमा, रोमेश के पास टपक पड़ी।
"एक लाख रुपये को फिर ठोकर मार दी तुमने रोमेश ! वह भी हाजी के।"
''दस लाख भी न लूँ।'' रोमेश ने सीमा की बात बीच में काटते हुए कहा ।
''तुम फिर अपने आदतों की दुहाई दोगे, वही कहोगे कि किसी अपराधी के लिए केस नहीं लड़ना। तलाशते रहो निर्दोषों को और करते रहो फाके।"
"हमारे घर में अकाल नहीं पड़ रहा है कोई। सब कुछ है खाने पहनने को। हाँ अगर कमी है, तो सिर्फ क्लबों में शराब पीने की।''
"तो तुम सीधा मुझ पर हमला कर रहे हो।''
"हमला नहीं नसीहत मैडम ! नसीहत! जो औरतें अपने पति की परवाह किए बिना रात एक-एक बजे तक क्लबों में शराब पीती रहेंगी, उनका फ्यूचर अच्छा नहीं होता । डार्कहोता है।"
"शराब तुम नहीं पीते क्या? क्या तुम होटलों में अपने दोस्तों के साथ गुलछर्रे नहीं उड़ाते? रात तो तुम ताज में थे। अगर तुम ताज में डिनर ले सकते हो, शराब पी सकते हो , तो फिर मुझे पाबंदी क्यों?"
"मैं कारोबार से गया था।"
"क्या कमाया वहाँ? वहाँ भी कोई अपराधी ही होगा। बहुत हो चुका रोमेश ! मैं अभी भी खत्म नहीं हो गई, मुझे फिर से नौकरी भी मिल सकती है।"
"याद रखो सीमा , आज के बाद तुम शराब नहीं पियोगी।''
"तुम भी नहीं पियोगे।"
"नहीं पियूँगा।"
''सिगरेट भी नहीं पियोगे।"
"नहीं , तुम जो कहोगी, वह करूंगा। मगर तुम शराब नहीं पियोगी और अगर किसी क्लब में जाना भी हो, तो मेरे साथ जाओगी। वो इसलिये कि नंबर एक, मैं तुमसे बेइन्तहा प्यार करता हूँ, और नंबर दो, तुम मेरी पत्नी हो।"
अगर उसी समय वैशाली न आ गई होती , तो हंगामा और भी बढ़ सकता था। वैशाली के आते ही दोनों चुप हो गये और हँसकर अपने-अपने कामों में लग गये।
वैशाली कोर्ट से लौटी , तो विजय से जा कर मिली । दोनों एक रेस्टोरेंट में बैठे थे ।
"शादी के बाद क्या ऐसा ही होता है विजय ?"
"ऐसा क्या ?"
"बीवी क्लबों में जाती हो। बिना हसबैंड के शराब पीती हो। और फिर झगड़ा, छोटी -छोटी बात पर झगड़ा। लाइफ में क्या पैसा इतना जरूरी है कि पति-पत्नी में दरार डाल दे?''
''पता नहीं तुम क्या बहकी-बहकी बातें कर रही हो?''
''दरअसल मैंने आज भैया-भाभी की सब बातें सुनली थीं । फ्लैट का दरवाजा खुला था , मैं अंदर आ गई थी, और मैंने उनकी सब बातें सुन लीं।''
''भैया -भाभी ?"
''रोमेश भैया की।"
''ओह ! क्या हुआ था?" विजय ने पूछा।
''हाजी बशीर एक लाख रुपये लेकर आया था, उसका कोई आदमी बंद हो गया है, रोमेश भैया बता रहे थे, तुम्हारे थाने का केस है।''
''अच्छा ! अच्छा !! करीमुल्ला की बात कर रहा होगा। रात उसने एक आदमी को नशे में गोली मार दी, हमें भी उसकी बहुत दिनों से तलाश थी, मगर यह बशीर वहाँ कैसे पहुंच गया?''
वैशाली ने सारी बातें बता डालीं ।
''ओह ! तो यह बात थी।'' विजय ने गहरी सांस ली।
''क्या हम लोग इसमें कुछ कर सकते हैं? कोई ऐसा काम जो रोमेश भैया और भाभी में झगड़ा ही ना हो।''
''एक काम हो सकता है।'' विजय ने कुछ सोचकर कहा, ''रोमेश की मैरिज एनिवर्सरी आने वाली है, इस मौके पर एक पार्टी की जाये और फिर रोमेश के हाथों एक गिफ्ट भाभी को दिलवाया जाये, गिफ्ट पाते ही सारा लफड़ा ही खत्म हो जायेगा।''
''ऐसा क्या ?''
''अरे जानेमन, कभी-कभी छोटी बात भी बड़ा रूप धारण कर लेती है, एक बार सीमा भाभी ने झावेरी वालों के यहाँ एक अंगूठी पसंद की थी, उस वक्त रोमेश के पास भुगतान के लिए पैसे न थे, और उसने वादा किया कि शादी की आने वाली सालगिरह पर एक अंगूठी ला देगा। यह अंगूठी रोमेश आज तक नहीं खरीद सका। कभी-कभार तो इस अंगूठी का किस्सा ही तकरार का कारण बन जाता है, अंगूठी मिलते ही भाभी खुश हो जायेगी और बस टेंशन खत्म।''
''मगर वह अंगूठी है कितने की ?''
''उस वक्त तो पचास हज़ार की थी, अब ज्यादा से ज्यादा साठ हज़ार की हो गई होगी।''
''इतने पैसे आएंगे कहाँ से ?"
"कोई चक्कर तो चलाना ही होगा।''
जारी रहेगा......
Besabari se intezaar kar rahe hai next update ka Raj_sharma bhai...भ्राता श्री शाम तक आपको मिल जाएगा अपडेट
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भ्राता श्री ko update nahi mila to ghar pe aa jayenge ........
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kahe ko dhamaka rahe ho ... bachhe ko .....