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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Bhai bhai..mai is layak nahi huभाई, मैं तो प्रेम के विषय पर ही कहानियाँ लिखता हूँ। इसलिए मेरी कहानियों का प्रीफ़िक्स रोमांस ही होता है।
हाँ - एक दो बार मैंने रक्त-संबंधों के बीच प्रेम दिखाया है, लेकिन उसके मूल में प्रेम ही है। इसलिए उन कहानियों को इन्सेस्ट का प्रीफ़िक्स नहीं दिया।
यहाँ पाठक इतने मूर्ख हैं कि उनको लगता है कि सेक्स केवल इन्सेस्ट या अडल्ट्री वाली कहानियों में ही हो सकता है। इसलिए वो रोमांस वाली कहानियाँ पढ़ते ही नहीं।
इस फ़ोरम की कुछ बहुत ही बेहतरीन कहानियाँ मैंने रोमांस में ही पढ़ीं। कुछ बार इन्सेस्ट पढ़ने का प्रयास किया, लेकिन वही घिसा-पिटा और बेहूदा फ़ॉर्मूला देखने को मिला।
आपने और Kala Nag भाई ने थ्रिलर कहानियाँ लिख कर आनंद दे दिया। फिलहाल तो इन दोनों कहानियों के अतिरिक्त कोई अन्य कहानी पढ़ने लायक नहीं है यहाँ।
हाँ - komaalrani जी की एक कहानी पढ़ने का मन है! उनसे वायदा भी किया था... लेकिन न जाने क्यों, समय ही नहीं मिल पा रहा है।
इसलिए अपने मन का लिखिए।
आप अच्छा लिखते हैं। ठहर कर लिखिए। हो सके तो पब्लिश भी करिए। क्या पता - जीवन आगे कौन सी राह दिखा दे?!
Lazwaab shandaar update
Abe ye kya ...ye kya hua .....( Rajkumar`s voice) Ku hua....kaise hua.........
Kafi alg adhbut karne ki kosis... badhiyaa h Mitra.....ase hi sochte jao ....ek din jyada nahi to buddhi to tej ho jayagi..aapki...... update ke bare kahu to........kya taarif karu me uski ...... bohot hi mast update...kaam suru kardo agle pe hole hole
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
Badhiya update
Seema to bewafa nikli uske bewafa hone ke sabut bahut pehle se milte aa rahe the uska secret cousin rat ko late night parties or itna sab kuchh ho jane ke bad bhi romesh se na milna sab seema ki bewafai ka sabut de rahe the or 25 lakh ka raj bhi khul gaya ab ye coincidence to nahi ho sakta tha ki seema ne 25 lakh ki mang kari or shankar naga reddy ne bhi 25 lakh ki bat ki mayadas bhi insab me mila hua tha kul milakar seema shankar or mayadas ne romesh ko bewakoof banaya ha JN ko raste se hatane ke liye kher seema ko ye sab karke kya mila romesh ke hathon mout or bad me bhi agar romesh ko sachhai pata padti to kya wo seema ko aise hi thodi chhod deta lekin fir bhi abki bar romesh ne gusse me akar seema ka khun to kar diya ha or bahar logon ne bhi use dekh liya ha dekhte han ki ab kya hota ha kya romesh shankar or mayadas ko bhi saja dega ya jail chala jayega ?
जैसा अंदाजा वही रहा इसी ट्विस्ट का वेट था जैसा पहले सीमा का चरित्र दिखाया गया था उससे अंदाजा था की सीमा बेवफा निकलेगी
लेकिन ऐसे रोमेश सीधे उसे खतम करेगा और अब खुद को पुलिस के हवाले करके शायद जेएन रेड्डी के कतल का भी सब साफ करेगा ये गजब का लिखा है
लेकिन अगर अब रोमेश जेल चला गया तो शंकर और मायादास का हिसाब बाकी रह जायेगा
तो अब रोमेश नया क्या ट्विस्ट लाने वाला है
समझ में नहीं आ रहा हसू या रोऊ
Bhai marne wale bhi to aap hi ho Romesh nahi kyonki aapne story hi aisi design Kiya hai agar aapne Sima ko mara hai to kuchh to soch rakha hoga Romesh ke liye ya aise hi Sima ka character aapne Aisa rakh diya hai bewafai ka ....
# Agar aap kahte ho ki Romesh ke sath galat hua hai to main sahmat nahi hoon ....kyonki aapne design hi aisa kiya hai story ko aur yahi to aapne title bhi rakha hai story ka....to ye to hona hi tha Romesh ke sath ab dekhna ye hai ki aap ab aage Romesh ka charitra kis parkar se design karte ho.
#Lo apun ne pura ek update likh dala aapke liye.
ये क्या कर दिया बंधु हम सीमा सीमा करते रहे यहाँ सीमा ही खत्म हो गई ।
जिसका डर था वही हुआ ।
रोमेश का पेशा गया , प्यार गया, आदर्श गए बढ़िया देखते है आगे क्या बाकी है
रोमेश साहब की बीवी - सीमा मैडम - के रंग ढंग , चाल चलन शुरू से एक आदर्श पत्नी के जैसे नही थे । लेट नाइट पार्टी करना , मिड नाइट घर आना , शराब पीना , अपने हसबैंड से सब समय पैसे की तंगी को लेकर झगड़े करना एक अच्छी पत्नी की पहचान नही होती । और जो कुछ बाकी बचा वह शंकर साहब के साथ एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशनशिप बनाकर पुरा कर दिया ।
वैसे सीमा मैडम का अपने हसबैंड के घर त्यागने से पहले पच्चीस लाख रुपए डिमांड करना और उसके कुछ दिन बाद ही शंकर साहब को रोमेश साहब को पच्चीस लाख रुपए ऑफर करना ' टू प्लस टू = फोर ' के बराबर ही थे ।
अब स्पष्ट जाहिर हो रहा है कि रोमेश साहब के साथ चाल चली गई । उन्हे धोखा दिया गया । उन्हे मैनिपुलेट किया गया । और यह सब सीमा मैडम और शंकर ने मिलकर किया ।
लेकिन रोमेश साहब जैसे कानून के पुजारी को कत्ल जैसे अपराध नही करना चाहिए था । बेहतर होता वह कानून के दायरे मे रहकर उन्हे अदालत के कटघरे तक ले जाते ।
खैर निष्कर्ष यह हुआ कि रोमेश साहब को न माया मिली और न ही राम । बीवी बेवफा निकली । दोस्त दोस्त ना रहा । धन दौलत के नाम पर मुफलिसी नसीब हुआ । और अंततः एक कातिल भी बनना पड़ा ।
लेकिन लाख रुपए का सवाल अब भी वहीं खड़ा है कि वह जे एन साहब का कत्ल किस तरह से किए ?
कहीं जेलर साहब के साथ कोई मिलीभगत तो नही कर ली ?
खुबसूरत अपडेट शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग अपडेट ।
मान गए. रेडर्स को पूरा उलझा कर रखा है. ज्यादा दिमाग़ लगाने से बढ़िया मै कहानी इन्जॉय करुँगी.
पढ़ने वालों को अच्छा लिखा ही अच्छा लगता है, चाहे वो सस्पेंस थ्रिलर हो या रोमांस, इसीलिए जो भी लिखे अच्छा लिखें, पाठक सब पढ़ लेते हैं।
बहुत ही जबरदस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
ये कहानी ने तो जबरदस्त करवट बदली जे एन का कत्ल करवाने वाले शंकर का रोमेश की पत्नी सीमा के साथ टाका भिडा था
शंकर तो रोमेश के चुंगल से भाग गया लेकीन बेवफा सीमा अपने पती रोमेश के हाथों परलोक सीधार गयी
बडा ही खतरनाक अपडेट है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Very interesting & thrilling update
update full of suspense
Ajju Landwaliaभाई, मैं तो प्रेम के विषय पर ही कहानियाँ लिखता हूँ। इसलिए मेरी कहानियों का प्रीफ़िक्स रोमांस ही होता है।
हाँ - एक दो बार मैंने रक्त-संबंधों के बीच प्रेम दिखाया है, लेकिन उसके मूल में प्रेम ही है। इसलिए उन कहानियों को इन्सेस्ट का प्रीफ़िक्स नहीं दिया।
यहाँ पाठक इतने मूर्ख हैं कि उनको लगता है कि सेक्स केवल इन्सेस्ट या अडल्ट्री वाली कहानियों में ही हो सकता है। इसलिए वो रोमांस वाली कहानियाँ पढ़ते ही नहीं।
इस फ़ोरम की कुछ बहुत ही बेहतरीन कहानियाँ मैंने रोमांस में ही पढ़ीं। कुछ बार इन्सेस्ट पढ़ने का प्रयास किया, लेकिन वही घिसा-पिटा और बेहूदा फ़ॉर्मूला देखने को मिला।
आपने और Kala Nag भाई ने थ्रिलर कहानियाँ लिख कर आनंद दे दिया। फिलहाल तो इन दोनों कहानियों के अतिरिक्त कोई अन्य कहानी पढ़ने लायक नहीं है यहाँ।
हाँ - komaalrani जी की एक कहानी पढ़ने का मन है! उनसे वायदा भी किया था... लेकिन न जाने क्यों, समय ही नहीं मिल पा रहा है।
इसलिए अपने मन का लिखिए।
आप अच्छा लिखते हैं। ठहर कर लिखिए। हो सके तो पब्लिश भी करिए। क्या पता - जीवन आगे कौन सी राह दिखा दे?!
कतई चू** है ये रोमेश, भले ही सीमा बेवफा थी, लेकिन खून तो उससे शंकर और मायदास ने करवाया था, फिर क्यों उनकी बचा रहा है ये?# 30
रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।
गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।
कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।
"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"
"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,
"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"
"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"
"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"
"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"
"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"
"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”
"क्या ? " विजय उछल पड़ा।
"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"
"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"
"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"
"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"
"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"
"पता बताओ।"
रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।
विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।
विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।
रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,
"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,
एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।
"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।
"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।
"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"
"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"
"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"
"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"
"क्या ?"
"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"
"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"
"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"
"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"
"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"
"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"
"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"
"वक्त __________बतायेगा।"
विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।
"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"
विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"
जारी रहेगा.......
Bahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....# 30
रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।
गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।
कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।
"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"
"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,
"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"
"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"
"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"
"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"
"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"
"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”
"क्या ? " विजय उछल पड़ा।
"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"
"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"
"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"
"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"
"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"
"पता बताओ।"
रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।
विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।
विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।
रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,
"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,
एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।
"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।
"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।
"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"
"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"
"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"
"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"
"क्या ?"
"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"
"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"
"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"
"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"
"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"
"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"
"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"
"वक्त __________बतायेगा।"
विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।
"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"
विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"
जारी रहेगा.......
Badhiya update# 30
रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।
गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।
कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।
"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।
"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"
"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"
"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,
"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"
"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"
"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"
"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"
"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"
"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”
"क्या ? " विजय उछल पड़ा।
"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"
"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"
"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"
"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"
"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"
"पता बताओ।"
रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।
विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।
विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।
रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,
"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"
विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,
एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।
"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।
"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।
"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"
"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"
"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"
"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"
"क्या ?"
"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"
"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"
"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"
"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"
"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"
"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"
"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"
"वक्त __________बतायेगा।"
विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।
"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"
विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।
"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"
जारी रहेगा.......
Itna tagda dimak ho to aadmi kya nahi kar sakta? 25 lak. To the hi uske pas, gunda takat ka support bhi tha, thoda dimak ka istemal karke sankar aur mayadas ko pel deta, fir ant me sema ko nipta deta, usko kon pakde wala tha, per kanoon ka chutiyapa jo pakad ke baitha hai khair kya hi kare wo aisa hi hai abb, thank you for your wonderful support and review bhaiकतई चू** है ये रोमेश, भले ही सीमा बेवफा थी, लेकिन खून तो उससे शंकर और मायदास ने करवाया था, फिर क्यों उनकी बचा रहा है ये?
खैर बढ़िया अपडेट, औरत की लालसा सब बरबाद कर देती है।
Thanks brother for your valuable review and supportBahut hi shaandar update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and awesome update....
Kyu ki ab uski jeene ki iccha hi khatam ho gai hai bhai, jab uski darling hi bewafa nikli jisko wo dil jaan se pyar karta tha, warna us ko kanoon se to kabhi koi khatra hi nahi, wo kanoon ka jadugar hai bhai, Thank you very much for your wonderful review and support bhaiBadhiya update
Ab ye romesh na jane kyun shankar or mayadas ko bacha raha ha vijay ko sach na batakar jabki un dono ko bhi saja dilani chhahiye kher vijay ne shankar ka bare me pata laga liya ha or paison ke bare me bhi ab dekhte han ki 8 dinon me or kya pata laga pata ha vijay kahin ek din aisa na bol de ki romesh tumhari biwi begunah thi or ye idhar romesh sadme me(just kidding) aisa hona possible nahi ha
Wow Ramesh khoon karne ki sari taiyari karne laga. Vo sach me karega ya kuchh aur plan hai.# 14
उस रात तेज बारिश हो रही थी, रोमेश बरसती घटाओं को देख रहा था। बिजली चमकती, बादल गरजते, वह बे-मौसम की बरसात थी। वह खिड़की पर खड़ा सोच रहा
था कि क्या सीमा अब कभी उसकी जिन्दगी में नहीं लौटेगी? उसकी दुनिया में यह अचानक कैसी आग लग गई ?ञवह शराब पीता रहा। जनार्दन नागा रेड्डी इस तबाही का एकमात्र जिम्मेदार था।
ऐसे लोगों के सामने कानून बेबस खड़ा होता है, कानून की किताब रद्दी का कागज बन जाती है। पुलिस ऐसे लोगों की रक्षक बनकर खड़ी हो जाती है, तो फिर कानून किसके लिए है? किसके लिए वकील लड़ता है? यहाँ तो जज भी बिकते हैं। ऐसे लोगों को सजा नहीं मिलती? क्यों? क्यों है यह विधान?
"आज मेरे साथ हुआ, कल विजय के साथ होगा। हो सकता है कि वैशाली के साथ भी वैसा ही हादसा हो? आने वाले कल में वह विजय की पत्नी है। मेरे और विजय के
करीब रहने वाले हर शख्स को खतरा है।"
उसे लगा, जैसे दूर खड़ी सीमा उसे बुला रही है। लेकिन वह जा नहीं पा रहा है। उसके पैरों में बेड़ियाँ पड़ी हैं और वह बेड़ियाँ एक ही सूरत से कट सकती है, पच्चीस लाख !
पच्चीस लाख !! पच्चीस लाख !!!
पच्चीस लाख मिल सकता है। शर्त सिर्फ एक ही है, जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल। कानून की आन भी यही कहती है कि ऐसे अपराधी को सजा मिलनी ही चाहिये ।
क्या फर्क पड़ता है, उसे फांसी पर जल्लाद लटकाए या वह खुद ? कानून की आन रखनेके लिए अगर वह जल्लाद बन भी जाता है, तो हर्ज क्या है? क्या पुलिस, बदमाशों को मुठभेड़ में नहीं मार गिराती ?
मैं यह कत्ल करूंगा, जनार्दन नागा रेड्डी अब तुझे कोई नहीं बचा सकता।
सुबह रोमेश डस्टबिन से विजि टिंग कार्ड के टुकड़े तलाश कर रहा था, संयोग से डस्टबिन साफ नहीं हुआ था और कार्ड के टुकड़े मिल गये। रोमेश उन टुकड़ों को जोड़कर फोन नम्बर उतारने लगा।
शंकर का फोन नम्बर अब उसके सामने था। उसने फोन पर नम्बर डायल करना शुरू कर दिया।
शंकर दस लाख लेकर आ गया। उसने ब्रीफकेस रोमेश की तरफ खिसका दिया।
"गिन लीजिये, दस लाख हैं।"
"मुझे यकीन है कि दस लाख ही होंगे।" रोमेश ने कहा और ब्रीफकेस उठा कर एक तरफ रख दिया ।
"साथ में मेरी ओर से बधाई।"
"बधाई किस बात की ?"
"कत्ल करने और उसके जुर्म में बरी होने के लिए। आप जैसे काबिल आदमी की इस देश में जरूरत ही क्या है, मैं आपको अमेरिका में स्टैब्लिश कर सकता हूँ।"
"वह मेरा पर्सनल मैटर है कि मैं कहाँ रहूंगा, अभी हम केस पर ही बात करेंगे। पहले मुझे यह बताओ कि तुम यह कत्ल क्यों करवाना चाहते हो और तुम्हारा बैकग्राउण्ड क्या है, क्या तुम उसके कोई नाते रिश्तेदार हो ?"
"नागा रेड्डी तो हजारों हो सकते हैं, फिलहाल मैं इस सवाल का जवाब नहीं दे पाऊंगा। हाँ, जब मुकदमा खत्म हो जायेगा, तब आप मुझसे इस सवाल का जवाब भी पा लेंगे।"
"तुमने यह भी कहा था कि कोई पेशेवर कातिल इस काम को करेगा, तो तुम पकड़े जाओगे।"
"हाँ, यह सही है। इसलिये मैं यह चाहता हूँ कि इस कत्ल को कोई पेशेवर न करे। आपको यह बात अच्छी तरह जाननी होगी कि कत्ल आपके ही हाथों होना हैं और बरी भी आपको होना है। यही दो बातें इस सौदे में हैं।"
"ठीक है, काम हो जायेगा।"
"मैं जानता हूँ, शत प्रतिशत हो जायेगा। एक बार फिर आपको मुबारकबाद देना चाहूँगा। मैं अखबार, रेडियो और टी .वी . पर यह खबर सुनने के लिए बेताब रहूँगा। जैसे ही यह खबर मुझे मिलेगी, मैं बाकी रकम लेकर आपके पास चला आऊँगा।"
दोनों ने हाथ मिलाया और शंकर लौट गया।
अब रोमेश ने एक नयी विचारधारा के तहत सोचना शुरू कर दिया।
"मुझे यह रकम बहुत जल्दी खत्म कर देनी चाहिये।" रोमेश ने घूंसा मेज पर मारते हुए कहा,
"यह मुकदमा सचमुच ऐतिहासिक होगा।"
कुछ देर बाद ही रोमेश कोर्ट पहुँचा। उसने अपनी मोटरसाइकिल सर्विस के लिए दे दी और चैम्बर में पहुंचते ही उसने आवश्यक कागजात देखे और कुछ फाइलें देखीं और फिर अपने केबिन में वैशाली को बुलाया।
"आज मैं तुम्हें एक विशेष दर्जा देना चाहता हूँ।" रोमेश ने कहा।
"क्या सर ?"
"आज के बाद यह जितने भी केस पेंडिंग पड़े हैं और जितनी भी पैरवी मैं कर रहा हूँ, वह सब तुम करोगी।"
"मगर...। "
"पहले मेरी बात पूरी सुनो। ध्यान से सुनो। गौर से सुनो। आज के बाद मैं इस
चैम्बर में नहीं आऊँगा, इसकी उत्तराधिकारी तुम हो। मैं पूरे पेपर साइन करके इसकी ऑनरशिप तुम्हें दे रहा हूं, क्यों कि मैं एक संगीन मुकदमे से दो चार होने जा रहा हूँ। एक ऐसा मुकदमा, जो कभी किसी वकील ने नहीं लड़ा होगा। यह मुकदमा अदालत से बाहर लड़ा जाना है। हाँ, इसका अन्त अदालत में ही होगा।"
"मैं कुछ समझी नहीं सर।"
"मैंने जनार्दन नागा रेड्डी का कत्ल कर देने का फैसला किया है, कातिल बनने के बाद मुझे इस चैम्बर में आने का हक नहीं रह जायेगा, मेरी वकालत की दुनिया का यह आखिरी मुकदमा होगा।"
"आप क्या कह रहे हैं?" वैशाली का दिल बैठने लगा।
"हाँ, मैं सच कह रहा हूँ। इसलिये ध्यान से सुनो, आज के बाद तुम मेरे फ्लैट पर भी कदम नहीं रखोगी। तुम्हें अपने जीवन में मेरी पहचान बनना है। यह बात विजय को भी समझा देना कि वह मुझसे दूर रहे। मैंने आज अपने घरेलू नौकर को भी हटा देना है।"
"सर, मैं आपके लिए कुछ मंगाऊं?"
"नहीं, अभी इतनी खुश्की नहीं आई कि पानी पीना पड़े। चैम्बर का चार्ज सम्भालो और लगन से अपने काम पर जुट जाओ। अगर तुम कभी सरकारी वकील भी बनो, तब
भी एक बात का ध्यान रखना कि कभी भी किसी निर्दोष को सजा न होने पाये। यह तुम्हारा उसूल रहेगा। अपने पति को इतना प्यार देना, जितना कभी किसी पत्नी ने न दिया हो। जीवन में सिर्फ आदर्शों का महत्व होता है, पैसे का नहीं होता। विजय भी मेरी तरह का शख्स है, कभी उसे चोट न पहुँचे। यह लो, ये वह फाइल है, जिसमें तुम्हें इस चैम्बर की ऑनरशिप दी जाती है।"
वैशाली की आंखें डबडबा आयीं। वह कुछ बोली नहीं।
रोमेश उसका कंधा थपथपाता हुआ बाहर निकल गया। जाते जाते उसने कहा,
"कभी मेरे घर की तरफ मत आना। यह मत सोचना कि मैं मानसिक रूप से अस्वस्थ हूँ। मैं ठीक हूँ, बिल्कुल ठीक। और मेरा फैसला भी ठीक ही है।" रोमेश बाहर निकल गया।
रोमेश ने काम शुरू कर दिया। सबसे पहले जे.एन. के बारे में जानकारियां प्राप्त करने का काम था।
उसकी पिछली जिन्दगी की जानकारी, उसकी दिनचर्या क्या है? कौन उसके करीब हैं? उसे क्या-क्या शौक हैं ?
रोमेश ने तीन दिन में ही काफी कुछ जानकारियां प्राप्त कर लीं। सबसे उल्लेखनीय जानकारी यह थी कि जनार्दन नागा रेड्डी की माया नाम की एक रखैल थी, जिसके लिए उसने एक फ्लैट बांद्रा में खरीदा हुआ था। माया के पास वह बिना नागा हर शनिवार की रात गुजरता था, चाहे कहीं हो, उस जगह अवश्य पहुंच जाता था। वह भी गोपनीय तरीके से।
उस समय उसके पास सरकारी गार्ड या पुलिस प्रोटेक्शन भी नहीं रहता था। उसके दो प्राइवेट गार्ड रहते थे, जो रात भर उस फ्लैट पर रहते थे।
जे.एन. यहाँ वी .आई.पी . गाड़ी से नहीं आता था बल्कि साधारण गाड़ी से आता था । यह उसकी प्राइवेट लाइफ का एक हिस्सा था। सियासत से पहले जे.एन. एक माफिया था, और उसने एक जेबकतरे से अपनी जिन्दगी शुरू की थी। वह दो बार सजा भी काट चुका था। किन्तु अब सरकारी तौर पर जे.एन. का कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं मिलता था।
इसके अतिरिक्त एक कोड का पता चला, फ़ोन पर यह कोड बोलने से सीधा जे.एन. ही कॉल सुनता था। यह कोड बहुत ही खास आदमी प्रयोग करते थे। यह कोड
माया भी प्रयोग करती थी। रोमेश के पास काफी जानकारियां थी।
एक जानकारी यह भी थी कि किसी आंदोलन के डर से जे.एन. की पार्टी के लोग ही उसे मुख्यमन्त्री पद से हटाने
के लिए अन्दर-अन्दर मुहिम छेड़े हुए हैं। वह जानते हैं कि सांवत मर्डर केस कभी भी रंग पकड़ सकता है।
अगर जे.एन. मुख्यमन्त्री बना रहता है, तो पार्टी की छवि खराब हो जायेगी। हो सकता था कि एक दो दिन में ही जे.एन. को मुख्यमन्त्री पद छोड़ना पड़े।
जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री के रूप में लिया जाना तय हो चुका था, किन्तु कुछ दिन उसे पार्टी ठंडे बस्ते में रखना चाहती थी।
इकत्तीस दिसम्बर की सुबह ही टी.वी. में यह खबर आ गयी थी कि जे.एन. मुख्यमन्त्री पद से हटा दिये गये हैं। समाचार यह भी था कि शीघ्र ही जे.एन. को केन्द्रीय मन्त्री पद मिल जायेगा। टी .वी . पर जे.एन. का इण्टरव्यू भी था। उसका यही कहना था कि पार्टी का जो कहना होगा, वह उसे स्वीकार है। चाहे वह मन्त्री न भी रहे, तब भी जनता की सेवा तो करता ही रहेगा ।
एक्स चीफ मिनिस्टर जे.एन. अब भी अत्यंत महत्वपूर्ण व्यक्ति था।
इकत्तीस दिसम्बर की रात जश्न की रात होती है। नया साल शुरू होने वाला था।
रोमेश एक मन्दिर में गया, उसने देवी माँ के चरण की रज ली और प्रार्थना की, कि आने वाले साल में वह जिस काम से निकल रहा है, उसे सम्भव बना दे। वह जे.एन. को
कत्ल करने के लिए मन्नत मांग रहा था।
उसके बाद उसने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और मुम्बई की सड़कों पर निकल गया। एक डिपार्टमेंटल स्टोर के सामने उसने मोटरसाइकिल रोक दी। स्टोर में दाखिल हो गया, रेडीमेड गारमेंट्स के काउण्टर पर पहुँचा।
"वह जो बाहर शोकेस में काला ओवरकोट टंगा है, उसे देखकर मैं आपकी शॉप में चला आया हूँ।"
"अभी मंगाते हैं।" सेल्समैन ने कहा। शीघ्र ही काउण्टर पर ओवरकोट आ गया।
"क्या प्राइस है?"
"अभी आप पसन्द कर लीजिये, प्राइस भी लग जायेगी और क्या दें, पैंट शर्ट ?"
"इससे मैच करती एक काली पैंट।"
सेल्समैन ने कुछ काली पैंटे सामने रख दी और पैंटों की तारीफ करने लगा। रोमेश ने एक पैंट पसन्द की।
"काली शर्ट ?" रोमेश बोला।
"जी।" सेल्समैन ने सिर हिला या।
अब काउंटर पर काली शर्टों का नम्बर था। रोमेश ने उसमें से एक पसन्द की।
"एक काला स्कार्फ या मफलर होगा।" रोमेश बोला। मफलर भी आ गया।
"काले दस्ताने।"
"ज… जी !" सेल्समैन ने दस्ताने भी ला दिये,
"काले जुराब, काला चश्मा, काले जूते।"
"तुम आदमी समझदार हो, वैसे काले जूते मेरे पास हैं।" रोमेश ने अपने जूतों की तरफ इशारा किया।
"चश्मा इसी स्टोर के दूसरे काउण्टर पर है।" सेल्समैन बोला,
"यहीं मंगा दूँ ?"
चश्मे का सेल्समैन भी वहाँ आ गया। उसने कुछ चश्मे सामने रखे, रोमेश ने एक पसन्द कर लिया।
"अब एक काला फेल्ट हैट।"
"हूँ!"
सेल्समैन ने सीटी बजाने के अन्दाज में होंठ गोल किये, "मैं भी कितना अहमक हूँ, असली चीज तो भूल ही गया था। काला हैट !"
काला हैट भी आ गया।
"क्यों साहब किसी फैंसी शो में जाना है क्या ?" सेल्समैन ने पूछा।
"जरा मैं यह सब पहनकर देख लूं, फिर बताऊंगा।"
सेल्समैन ने एक केबिन की तरफ इशारा किया। रोमेश सारा सामान लेकर उसमें चला गया।
"अपुन को लगता है, कोई फिल्म का आदमी है, उसके वास्ते ड्रेस ले रहा होगा , नहीं तो मुम्बई के अन्दर कोट कौन पहनेगा ?"
"मेरे को लगता है फैंसी शो होगा।"
दोनों किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाये, तभी रोमेश सारी कॉ स्ट्यू म पहनकर बाहर आया।
"हैलो जेंटलमैन !" रोमेश बोला।
"ऐ बड़ा जमता है यार।" एक सेल्समैन ने दूसरे से कहा,
"फिल्म का विलेन लगता है कि नहीं।"
"अब एक रसीद बनाना, बिल पर हमारा नाम लिखो , रोमेश सक्सेना।"
"उसकी कोई जरूरत नहीं साहब, बिना नाम के बिल कट जायेगा।"
"नहीं , नाम जरूर।"
"ठीक है आपकी मर्ज़ी, लिख देंगे नाम भी।"
"रोमेश सक्सेना ।" रोमेश ने याद दिलाया।
बिल काटने के बाद रोमेश ने पेमेंट दी और फिर बोला, "हाँ तो तुम पूछ रहे थे कि साहब किसी फैन्सी शो में जाना है क्या ?"
"वही तो।" सेल्समैन बोला,
"हम तो वैसे ही आइडिया मार रहे थे।"
"मैं बताता हूँ । इन कपड़ों को पहनकर मुझे एक आदमी का खून करना है।"
"ख… खून।" सेल्समैन चौंका।
"हाँ , खून !"
जारी रहेगा.....