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★ INDEX ★
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♡ Family Introduction ♡ |
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Last edited:
♡ Family Introduction ♡ |
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Vijqy bhi ek honhar aur tez tarrar inspector hai wo bhi romesh ke jaise pata lagane me mahir haiBhot hi umda update lagata to nahi ki romesh kuch bole but Vijay ko bhi underestimate nahi kar skate......so see in the next update what will happen....
Thank you yaar aapka support amazing haiDon't vary. Pata chal gaya. Mazedar kahani hai.
# 29
रोमेश ने दिल्ली फोन मिलाया। उसने फोन कैलाश वर्मा को मिलाया था। कैलाश वर्मा घर पर मिल गया।
"हैलो, मैं रोमेश बोल रहा हूँ।"
"हाँ रोमेश, मैं तो तुम्हें याद ही कर रहा था।"
"अब मैंने वह पेशा छोड़ दिया है, अब न तो मैं किसी के लिए जासूसी करता हूँ, न ही वकालत।"
"यह बात नहीं है यार, मैं तो तुम्हारे आर्ट की दाद देना चाहता था। तुमने किस सफाई से जे.एन. का क़त्ल किया और ऐसे कामों की तो बड़ी मोटी रकम मिल सकती है, करोगे?"
"नो मिस्टर कैलाश वर्मा ! मुझे यह काम इसलिये करना पड़ा, क्यों कि तुमने जे.एन. को बचा लिया था। खैर छोड़ो, मैं फिलहाल तुम्हारी एजेन्सी से एक काम लेना चाहता हूँ। काम की फीस मिलेगी।"
"बोलो।"
"दिल्ली में मेरी पत्नी सीमा कहीं रहती है।" रोमेश बोला,
"तुम तो सीमा से मिल चुके हो न।"
"हाँ, शक्ल से अच्छी तरह वाफिक हूँ। मगर बात क्या है ? "
"सीमा आजकल दिल्ली में है, मुझे सिर्फ एक सूत्र का पता है, उसी के सहारे तुम सीमा का अता-पता निकालो। वह आजकल मुझसे अलग रह रही है।"
"अच्छा-अच्छा ! यह बात है, सूत्र बताओ।"
"होटल डिलोरा में उसका आना-जाना है। वह एक अच्छी सिंगर भी है। हो सकता है कि वहाँ आती हो। उसने दस जनवरी की रात वहाँ एक रूम भी बुक किया हुआ था, आगे तुम खुद पता लगाओ।"
"तुम मुझे उसका एक फोटो तुरन्त भेज दो, बाकी मुझ पर छोड़ दो।"
"काम जल्दी करना है।"
"जल्दी ही होगा।"
"फीस ?"
"अपने लोग खो जायें, तो उन्हें खोजकर घर पहुंचाने में बड़ा सुख मिलता है रोमेश ! यही सुख और खुशी मेरी फीस है। मैंने एक बार तुम्हें बहुत नाराज कर दिया था, शायद नाराजगी दूर करने का मौका मेरे हाथ आ गया है।"
कैलाश वर्मा ने वह काम जल्दी ही कर डाला। एक सप्ताह में ही उसका फोन आ गया।
"भाभी यहाँ नहीं है। वह कुछ दिन राजौरी गार्डन में रहीं, उसके बाद मुम्बई लौट गयीं। दिल्ली में उसकी एक खास सहेली रहती है, उससे मुम्बई का एक पता मिला है। नोट कर लो, शायद सीमा भाभी उसी पते पर मिल जायेगी।"
रोमेश ने मुम्बई के पते पर मालूम किया। पता लगा सीमा मुम्बई में ही है और उसी फ्लैट पर रहती है, जिसका पता कैलाश वर्मा ने दिया था।
हल्की बरसात हो रही थी। आकाश पर सुबह से बादल छाये हुए थे। रोमेश एक टैक्सी में बैठा था। टैक्सी में नोटों से भरा सूटकेस रखा था। वह कोलाबा के क्षेत्र में एक इमारत के सामने रुका।
इमारत की पहली मंजिल पर उसकी दृष्टि ठहर गई। टैक्सी से बाहर कदम रखने से पहले वह फ्लैट का जायजा ले लेना चाहता था। रात के ग्यारह बज रहे थे। दिन भर से वह प्रतीक्षा कर रहा था कि बारिश रुक जाये, तो वह चले। लेकिन बारिश ने रुकने का नाम नहीं लिया। बेताबी इतनी बढ़ चुकी थी कि वह अपने को रोक भी न सका और उसी रात को ही चल पड़ा।
उसने क़त्ल की सारी कमाई सूटकेस में भर ली थी और अब वह ये सारी रकम सीमा को देने जा रहा था। फ्लैट की खिड़की पर रोशनी थी। खिड़की पर एक स्त्री का साया खड़ा था।
"शायद वह हर रात मेरा इसी तरह से इंतजार करती होगी।"
"उसे भी तो हमारी मुहब्बत की यादें सताती होंगी।"
"वह भी तो मेरी तरह तन्हाई में रोती होगी।"
"उसको हम कितना प्रेम करते थे।"
रोमेश देखते ही पहचान गया कि खिड़की पर खड़ी स्त्री उसकी पत्नी सीमा ही है। वह हसीन ख्यालों में खो गया, इतनी दौलत उसने चाही थी। मनचाही दौलत देखकर वह कितनी खुश होगी, उसे बांह में समेट लेगी और ? तभी रोमेश को एक झटका-सा लगा।
खिड़की पर धीरे-धीरे एक पुरुष साया उभरा। उसे देखकर रोमेश के छक्के ही छूट गये, पुरुष ने स्त्री को बांहों में लिया। दोनों खिड़की से हटते चले गये ।
"हैं, यह कौन था ?"
"कहीं ऐसा तो नहीं, वह औरत सीमा न हो।"
"देखना चाहिये छिपकर"
रोमेश ने टैक्सी का भुगतान किया, सूटकेस को उठाया और नीचे उतर गया। वह रेनकोट पहने हुए था। इमारत का गेट पार करके वह अन्दर चला गया और फिर शीघ्र ही उस फ्लैट तक पहुंच गया। उसने दरवाजे पर कान लगा दिये। फ्लैट का दरवाजा अन्दर से बन्द था, फिर भी अन्दर से हँसने की आवाजें बाहर तक पहुंच रही थी। हँसने की आवाज सीमा की थी। वह खिलखिला कर हँस रही थी। फिर एक पुरुष का स्वर सुनाई दिया, वो कुछ कह रहा था। रोमेश ने की-होल से झांककर देखा, अन्दर रोशनी थी। रोशनी में जो कुछ रोमेश ने देखा, उसके तो छक्के ही छूट गये।
उसकी पत्नी किसी पुरुष की बांहों में थी, दोनो एक- दूसरे को बेतहाशा चूम रहे थे। रोमेश का शरीर सर से पाँव तक कांप गया। उसने ख्वाब में भी नहीं सोचा था कि उससे क़त्ल करवाने वाला शंकर नागा रेड्डी उसकी बीवी का आशिक है और उसकी बीवी इस काम में शामिल है।
उसके सामने सारे चेहरे घूमने लगे, कैसे सब कुछ हुआ ? उसकी बीवी का घर छोड़कर जाना और पच्चीस लाख की रकम की मांग करना, फिर शंकर का आना और पच्चीस लाख की डील करना, तो क्या उसकी बीवी सीमा पहले से ही शंकर से मिली हुई थी ? क्या मायादास ने भी नाटक ही किया था, ताकि ऐसी परिस्थिति खड़ी की जा सके ?
"मैं अपने आपको कितना चतुर खिलाड़ी समझ रहा था और यहाँ तो खुद मेरी बीवी ने मुझे मात दे दी।"
रोमेश पर जुनून सवार हो गया। उसने दरवाजे पर ठोकरें मारनी शुरू कर दीं। धाड़-धाड़ की आवाजें इमारत में गूँजने लगीं। रोमेश तब तक पागलों की तरह टक्करें मारता रहा, जब तक दरवाजा टूट न गया। दरवाजा तोड़ते ही रोमेश आंधी तूफान की तरह अंदर घुसा।
"खबरदार आगे मत बढ़ना।"
शंकर ने रोमेश की तरफ रिवॉल्वर तान दी।
"तो यह है उस सवाल का जवाब कि तुमको कैसे पता चला कि मैं पच्चीस लाख के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।"
"हाँ, और मैं वह रकम वापिस भी चाहता था। तुम इस रकम को सीमा के हवाले करते और सीमा मुझे दे देती। लेकिन इस रकम को हम अब तुम्हें दान करते हैं । जाओ यहाँ से।"
"साले।"
रोमेश ने पास रखा सूटकेस उछाला। शंकर ने फायर किया, उसी समय सूटकेस शंकर के हाथ से टकराया, सूटकेस के साथ-साथ रिवॉल्वर भी जमीन पर आ गिरी। रोमेश का ध्यान रिवॉल्वर पर था।
उसका अनुमान था कि शंकर दोबारा रिवॉल्वर पर झपटेगा, इसलिये रोमेश ने रिवॉल्वर पर ही छलांग लगाई। रिवॉल्वर रोमेश ने अपने काबू में तो कर ली, लेकिन तब तक शंकर टूटे दरवाजे के रास्ते छलांग लगा कर भाग चुका था। रोमेश दरवाजे तक आया, लेकिन तब तक शंकर उसकी दृष्टि से ओझल हो गया। रोमेश हांफ रहा था। उसने शंकर का पीछा करना व्यर्थ समझा। वह टूटे दरवाजे से पलटा।
सामने उसकी बीवी खड़ी थी। उसकी बेवफा बीवी, वह बीवी जिसने उसे कहीं का न छोड़ा था, जिसे वह बहुत प्यार करता था, जिसके लिए उसने अपने आदर्शों का खून कर दिया था।
रोमेश का हाथ धीरे-धीरे उठने लगा। रिवॉल्वर की नाल उठ रही थी, ज्यों-ज्यों उसका हाथ सीमा की तरफ उठता जा रहा था, उसका चेहरा जर्द पड़ता जा रहा था। फिर वह सूखे पत्ते की तरह कांपती पीछे हटी, कहाँ तक हटती, चंद कदम के फासले पर ही तो दीवार थी, वह दीवार से जा लगी। रिवॉल्वर वाला हाथ पूरी तरह तन गया था। रोमेश की आँखों में खून उतर आया था।
"नहीं।" सीमा के मुंह से निकला,
"नहीं , मुझे माफ कर दो।"
"धांय।" एक गोली चली। सीमा के मुंह से चीख निकली।
"धांय धांय धांय।"
रोमेश ने पूरी रिवॉल्वर खाली कर डाली। रिवॉल्वर की सारी गोलियां ख़ाली होने पर भी वह ट्रिगर दबाता रहा, पिट ! पिट !! पिट !!!
खून से लहूलुहान सीमा फर्श पर ढेर हो गई थी। रोमेश का हाथ धीरे-धीरे नीचे आता चला गया। खट की आवाज हुई। रिवॉल्वर फर्श पर आ गिरी। कुछ देर तक रोमेश खामोश खड़ा रहा। सूटकेस खुला हुआ था, कमरे में नोट बिखरे पड़े थे।
रोमेश ने जुनूनी हालत में नोटों को फाड़-फाड़कर सीमा की लाश पर फेंकना शुरू कर दिया।
"यह ले, पच्चीस लाख की दौलत ! तुझे यही चाहिये था न, ले।"
वह नोट फेंकता रहा। टूटे हुए खुले दरवाजे के बाहर कुछ चेहरे नजर आ रहे थे। रोमेश, सीमा की लाश पर गिरकर रोने लगा। फूट-फूटकर रोता रहा। फिर उसने धीरे-धीरे खुद को शव से हटाया और टेलीफोन के करीब पहुँचा। टेलीफोन पर वह पुलिस को फोन करने लगा।
Mind-blowing update bhai ye wala angle nhi socha tha ye to pta tha Seema romesh ko bhul kr move on kr gyi hogi update ka end bhi unpredictable thaजारी रहेगा.......
Dono party ko ladhva to maydash hi raha tha. Par ye achha hai ki basir ramesh ki taraf hai. Katal ka vasta kisi kis se judte ja raha hai. Ramesh ke dimag ko bhi man na padega. Kahi teer aur kahi nishana. Lekin uske dushman bhi chalak hai. Maza aaya ye update padhkar.# 19
पिटने वाले बटाला के आदमी थे और पीटने वाले बशीर के आदमी थे।
रोमेश ने अपनी चाल से इन दोनों गैंगों को भिड़वा दिया था। बटाला को अभी यह समझ नहीं आ रहा था कि बशीर के आदमी उसके आदमियों से क्यों भिड़ गये ?
"यह इत्तफाक भी हो सकता है।" मायादास ने कहा-
"तुम्हारे लोगों की गाड़ी उनसे टकरा गई। वह इलाका बशीर का था। इसलिये उसका पाला भी भारी था।"
"मेरे लोग बोलते हैं, नाके पर आते ही खुद उन लोगों ने टक्कर मारी थी।" बटाला बोला,
"फोन पे भी जब तक हम छुड़ाते, उनको पीटा पुलिस वालों ने।"
"काहे को पीटा, तुम किस मर्ज की दवा है ? साले का होटल बंद काहे नहीं करवा दिया? अपुन को अब बशीर से पिटना होगा क्या ? इस साले बशीर को ही खल्लास कर देने का।"
"अरे यार तुम तो हर वक्त खल्लास करने की सोचते हो। अभी नहीं करने का ना बटाला बाबा।"
"बशीर से बोलो, हमसे माफ़ी मांगे। नहीं तो हम गैंगवार छेड़ देगा।"
"हम बशीर से बात करेंगे।"
"अबी करो, अपुन के सामने।" बटाला अड़ गया,
"उधर घाट कोपर में साला हमारा थू-थू होता, अपुन का आदमी पिटेगा तो पूरी मुम्बई को खल्लास कर देगा अपुन।"
"अजीब अहमक है।" मायादास बड़बड़ाया। बटाला ने पास रखा फोन उठाया और मायादास के पास आ गया।
उसने फोन स्टूल पर रखकर बशीर का नंबर डायल किया। रिंग जाते ही उसने मायादास की तरफ सिर किया था।
"तुम्हारा आदमी पुलिस स्टेशन से तो छुड़वा ही दिया ना।" मायादास ने कहा। बटाला ने कोई उत्तर नहीं दिया। फिर फोन पर बोला,
"लाइन दो हाजी बशीर को।" कुछ रुककर बोला, "जे.एन. साहब के पी .ए. मायादास बोलते हैं इधर से।" फिर उसने फोन का रिसीवर मायादास को थमा दिया।
"बात करो इससे। बोलो इधर हमसे माफ़ी मांगेगा, नहीं तो आज वो मरेगा।" मायादास ने सिर हिलाया और बटाला को चुप रहने का इशारा किया।
"हाँ, हम मायादास।" मायादास ने कहा, "बटाला के लोगों से तुम्हारे लोगों का क्या लफड़ा हुआ भई?" मायादास ने पूछा।
"कुछ खास नहीं।" फोन पर बशीर ने कहा,
"इस किस्म के झगड़े तो इन लोगों में होते ही रहते हैं, सब दारु पिये हुए थे। मेरे को तो बाद में पता चला कि वह बटाला के लोग है, सॉरी भाई।"
"बटाला बहुत गुस्से में है।"
"क्या इधर ही बैठा है?"
"हाँ, इधर ही है।"
"उसको फोन दो, हम खुद उससे माफ़ी मांग लेते हैं।" मायादास ने फोन बटाला को दिया।
"अ…अपुन बटाला दादा बोलता, काहे को मारा तेरे लोगों ने ?"
"दारू पियेला वो लोग।"
"अगर हम दारु पी के तुम्हारा होटल पर आ गया तो ?"
"देखो बटाला, तुम्हारी हमसे तो कोई दुश्मनी है नहीं, यह जो हुआ उसके लिए तो हम माफ़ी मांग लेते है। मगर आगे तुमको भी एक बात का ख्याल रखना होगा।"
"किस बात का ख्याल ?"
"एडवोकेट रोमेश मेरा दोस्त है, उसके पीछे तेरे लोग क्यों पड़े हैं ?"
बटाला सुनकर ही चुप हो गया, उसने मायादास की तरफ देखा।
"जवाब नहीं मिला मुझे।"
"इस बारे में मायादास जी से बात करो। मगर याद रहे, ऐसा गलती फिर नहीं होने को मांगता।
तुम्हारे दोस्त का पंगा हमसे नहीं है। उसका पंगा जे.एन. साहब से है। बात करो मायादास जी से, वह बोलेगा तो अपुन वो काम नहीं करेगा।
" रिसीवर माया दास को दे दिया बटाला ने। "कनेक्शन रोमेश से अटैच है।" बटाला ने कहा।
"हाँ।" माया दास ने फोन पर कहा, "पूरा मामला बताओ बशीर मियां।"
"रोमेश मेरा दोस्त है, बटाला के आदमी उसकी चौकसी क्यों कर रहे हैं ?"
"अगर बात रोमेश की है बशीर, तो यूँ समझो कि तुम बटाला से नहीं हमसे पंगा ले रहे हो। लड़ना चाहते हो हमसे? यह मत सोच लेना कि जे.एन. चीफ मिनिस्टर नहीं है, सीट पर न होते हुए भी वे चीफ मिनिस्टर ही हैं और तीन चार महीने बाद फिर इसी सीट पर होंगे, हम तुम्हें बर्बाद कर देंगे।"
"मैं समझा यह मामला बटाला तक ही है।"
"नहीं, बटाला को हमने लगाया है काम पर।"
"मगर मैं भी तो उसकी हिफाजत का वादा कर चुका हूँ, फिर कैसे होगा?" बशीर बिना किसी दबाव के बोला।
"गैंगवार चाहते हो क्या?"
"मैं उसकी हिफाजत की बात कर रहा हूँ, गैंगवार की नहीं।
सेंट्रल मिनिस्टर पोद्दार से बात करा दूँ आपकी, अगर वो कहेंगे गैंगवार होनी है तो…!"
पोद्दार का नाम सुनकर माया दास कुछ नरम पड़ गया ।
"देखो हम तुम्हें एक गारंटी तो दे सकते हैं, रोमेश की जान को किसी तरह का खतरा तब तक नहीं है, जब तक वह खुद कोई गलत कदम नहीं उठाता। वह तुम्हारा दोस्त है तो उसको बोलो, जे.एन. साहब को फोन पर धमकाना बंद करे और अपने काम-से-काम रखे, वही उसकी हिफाजत की गारंटी है।"
"जे.एन. सा हब को क्या कहता है वह?"
"जान से मारने की धमकी देता है।"
"क्या बोलते हो माया दास जी ? वह तो वकील है, किसी बदमाश तक का मुकदमा तो लड़ता नहीं और आप कह रहे हैं।"
"हम बिलकुल सही बोल रहे हैं। उससे बोलो जे.एन. साहब को फोन न किया करे, बस उसे कुछ नहीं होने का।"
"ऐसा है तो फिर हम बोलेगा।"
"इसी शर्त पर हमारा तुम्हारा कॉम्प्रोमाइज हो सकता है, वरना गैंगवार की तैयारी करो।" इतना कहकर माया दास ने फोन काट दिया।
रोमेश के विरुद्ध अब जे.एन. की तरफ से नामजद रिपोर्ट दर्ज हो चुकी थी। उसी समय नौकर ने इंस्पेक्टर के आने की खबर दी।
"बुला लाओ अंदर।" मायादास ने कहा और फिर बटाला से बोला,
"बशीर के अगले फोन का इन्तजार करना होगा, उसके बाद सोचेंगे कि क्या करना है। अब मामला सीधा हमसे आ जुड़ा है, तुम भी गैंगवार की तैयारी शुरू कर दो।"
तभी विजय अंदर आया। बटाला को देखकर वह ठिठका।
"आओ इंस्पेक्टर विजय।" बटाला ने दांत चमकाते हुए कहा। अब मायादास चौंका और फिर स्थिति भांपकर बोला:-
"बटाला अब तुम जाओ।"
"बड़ा तीस-मार-खां दरोगा है यह मायादास जी ! एक प्राइवेट बिल्डिंग में अपुन की सारी रात ठुकाई करता रहा, अपुन को इससे भी हिसाब चुकाना है।"
"ऐ !" विजय ने अपना रूल उसके सीने पर रखते हुए ठकठकाया,
"तुमको अपनी चौड़ी छाती पर नाज है न, कल मैं तेरे बार में प्राइवेट कपड़े पहनके आऊँगा और अगर तू वहाँ भी हमसे पिट गया तो घाटकोपर ही नहीं, मुम्बई छोड़ देना। नहीं तो जीना हराम कर दूँगा तेरा और तू यह मत समझना कि तू जमानत करवाकर बच गया, तुझे फांसी तक ले जाऊँगा।"
"अरे यह क्या हो रहा है बटाला, निकलो यहाँ से।"
"कल रात अपने बार में मिलना।" बटाला का कंधा ठकठका कर विजय ने फिर से याद दिलाया।
"मिलेगा अपुन, जरूर मिलेगा।" बटाला गुर्राता हुआ बाहर निकल गया।
"यह बटाला ऐसे ही इधर आ गया था, तुम तो जानते ही हो इंस्पेक्टर चुनाव में ऐसे लोगों की जरूरत पड़ती है, सबको फिट रखना पड़ता है। नेता बनने के लिए क्या नहीं करना पड़ता।"
"लीडर की परिभाषा समझाने की जरूरत नहीं। गांधी भी लीडर थे, सुभाष भी लीडर थे, इन लोगों से पूरी ब्रिटिश हुकूमत घबरा गई थी और उन्हें यह देश छोड़ना पड़ा। लेकिन मुझे यह तो बता दो कि इनके पास कितने गुंडे थे, कितने कातिल थे? खैर इस बात से कुछ हासिल नहीं होना, बटाला जैसे लोगों की मेरी निगाह में कोई अहमियत नहीं हुआ करती, मुझे सिर्फ अपनी ड्यूटी से मतलब है। आपने एफ़.आई.आर. में रोमेश सक्सेना को नामजद किया है?"
"हाँ, वही फोन पर धमकी देता था।"
"कोई सबूत है इसका?" विजय ने पूछा।
"हमारे लोगों ने उसे फोन करते देखा है और फिर हमारे पास उसकी आवाज भी टेप है। इसके अलावा उसने खुद कहा था कि वह रोमेश सक्सेना है।"
"टेप की आवा ज सबूत नहीं होती, कोई भी किसी की आवाज बना सकता है। फिल्मों में डबिंग आर्टिस्टों का कमाल तो आपने देखा सुना होगा।"
"यहाँ कोई फ़िल्म नहीं बन रही इंस्पेक्टर। यहाँ हमने किसी को नामजद किया है। इन्क्वारी तुम्हारे पास है, उसको गिरफ्तार करना तुम्हारी ड्यूटी है और उसे दस जनवरी तक जमानत पर न छूटने देना भी तुम्हारा काम है।"
"शायद आप यह भूल गये हैं कि वह एक चोटी का वकील है। वह ऐसा शख्स है, जो आज तक कोई मुकदमा नहीं हारा। उसे दुनिया की कोई पुलिस केवल शक के आधार पर अंदर नहीं रोक सकती। हम उसे अरेस्ट तो कर सकते हैं, मगर जमानत पर हमारा वश नहीं चलेगा और अरेस्ट करके भी मैं अपनी नौकरी खतरे में नहीं डाल सकता।"
"या तुम अपने दोस्त को गिरफ्तार नहीं करना चाहते ?"
"वर्दी पहनने के बाद मेरा कोई दोस्त नहीं होता। और यकीन मानिए, पुलिस कमिश्नर भी अगर खुद चाहें तो उसे गिरफ्तार नहीं कर सकते। अगर यह साबित हो जाये कि उसने आपको फोन पर धमकी दी, तो भी नहीं।"
"आई.सी.! लेकिन आपने हमारे बचाव के लिए क्या व्यवस्था की है? केवल कमांडो या कुछ और भी ? हम यह चाहते हैं कि रोमेश सक्सेना उस दिन जे.एन. तक किसी कीमत पर न पहुंचने पाये, उसका क्या प्रबंध है ?"
"है, मैंने सोच लिया है। अगर वाकई इस शख्स से जे.एन. साहब को खतरा है, जबकि मैं समझता हूँ, उससे किसी को कोई खतरा हो ही नहीं सकता। वह खुद कानून का बड़ा आदर करता है।"
"उसके बावजूद भी हम चुप तो नहीं बैठेंगे।"
"हाँ, वही बता रहा हूँ। मैं उसे नौ तारीख को रात राजधानी से दिल्ली रवाना कर दूँगा। मेरे पास तगड़ा आधार है।"
"क्या? "
"सीमा भाभी इन दिनों दिल्ली में रह रही हैं। दस जनवरी को रोमेश की शादी की सालगिरह है। देखिये, वह इस वक्त बहुत टूटा हुआ है। लेकिन वह अपनी बीवी को बहुत प्यार करता है। मैं वह अंगूठी उसे दूँगा, जो वह अपनी पत्नी को शादी की सालगिरह पर देना चाहता है। मैं कहूँगा कि मैं सीमा भाभी से बात कर चुका हूँ और अंगूठी का उपहार पाते ही उनका गुस्सा ठन्डा हो जायेगा, रोमेश सब कुछ भूलकर दिल्ली चला जायेगा।"
"और दिल्ली में उसकी पत्नी से मुलाकात न हो पायी तो?"
"यह बाद की बात है, बहरहाल वह दस तारीख को दिल्ली पहुँचेगा। मैंने उसे जो जगह बताई है, वह एक क्लब है, जहाँ सीमा भाभी रात को दस बजे के आसपास पहुंचती हैं। रोमेश उसी क्लब में अपनी पत्नी का इन्तजार करेगा और मैं समझता हूँ, उसी समय उनका झगड़ा भी खत्म हो लेगा। वहाँ रात को जो भी हो, वह फिलहाल विषय नहीं है। विषय ये है कि रोमेश दस तारीख की रात यहाँ मुम्बई में नहीं होगा। जे.एन. साहब से कह दें कि वह चाहें तो स्वयं मुम्बई सेन्ट्रल पर नौ तारीख को पहुंचकर राजधानी से उसे जाते देख सकते हैं।"
"हम इस प्लान से सन्तुष्ट हैं इंस्पेक्टर !"
"वैसे हमारे चार कमाण्डो तो आपके साथ हैं ही।"
"ओ. के.! कुछ लेंगे ?"
"नो थैंक्यू।" वहाँ से विजय सीधा रोमेश के फ्लैट पर पहुँचा। रोमेश उस समय अपने फ्लैट पर ही था।
"मैंने तुम्हें कहा था कि ग्यारह जनवरी से पहले इधर मत आना। अगर तुम जे.एन. की नामजद रिपोर्ट पर कार्यवाही करने आये हो, तो मैं तुम्हें बता दूँ कि इस सिलसिले में मैं अग्रिम जमानत करवा चुका हूँ। अगर तुम पेपर देखना चाहते हो, तो देख सकते हो।"
"नहीं, मैं किसी सरकारी काम से नहीं आया। मैं कुछ देने आया हूँ।"
"क्या?"
"तुम्हें ध्यान होगा रोमेश, तुमने मुझे तीस हजार रुपये दिये थे, बदले में मैंने साठ हजार देने का वादा किया था।”
"मैं जानता हूँ, तुम ऐसा कोई धन्धा नहीं कर सकते, जहाँ रुपया एक महीने में दुगना हो जाता हो। तुम्हें जरूरत थी, मैंने दे दिया, क्या रुपया लौटाने आये हो?"
"नहीं, यह गिफ्ट देने आया हूँ।" विजय ने अंगूठी निकाली और रोमेश के हाथ में रख दी, रोमेश ने पैक खोलकर देखा।
"ओह, तो यह बात है। लेकिन विजय हम बहुत लेट हो चुके हैं, अब कोई फायदा नहीं।"
"कुछ लेट नहीं हुए, भाभी दिल्ली में हैं। मैंने पता निकाल लिया है। 10 जनवरी का दिन तुम्हारी जिन्दगी का सबसे महत्वपूर्ण दिन है। भाभी को पछतावा तो है पर वह आत्मसम्मान की वजह से लौट नहीं सकती। तुम जाओ रोमेश ! वह चित्रा क्लब में जाती हैं। वहाँ जब तुम्हें दस जनवरी की रात देखेगी, तो सारे गिले-शिकवे दूर हो जायेंगे। यह अंगूठी देना भाभी को और फिर सब ठीक हो जायेगा।”
"ऐसा तो नहीं हैं विजय, तुमने 10 जनवरी को मुझे बाहर भेजने का प्लान बना लिया हो?"
"नहीं, ऐसा मेरा कोई प्लान नहीं। मैं इसकी जरूरत भी नहीं समझता, क्यों कि मैं जानता हूँ कि तुम किसी का कत्ल नहीं कर सकते। मैं तो तुम्हारी जिन्दगी में एक बार फिर वही खुशियां लौटाना चाहता हूँ और ये रहा तुम्हारा रिजर्वेशन टिकट।" विजय ने राजधानी का टिकट रोमेश को पकड़ा दिया।
"नौ तारीख का है, दस जनवरी को तुम अपनी शादी की सालगिरह भाभी के साथ मनाओगे। विश यू गुडलक ! मैं तुम्हें नौ को मुम्बई सेन्ट्रल पर मिलूँगा।"
"अगर सचमुच ऐसा ही है, तो मैं जरूर जाऊंगा।" विजय ने हाथ मिलाया और बाहर आ गया।
विजय के दिमाग का बोझ अब काफी हल्का हो गया था। हालांकि उसने अपनी तरफ से जे.एन. को सुरक्षित कर दिया था, परन्तु वह खुद भी जे.एन. को कटघरे में खड़ा करने के लिए लालायित था। चाहकर भी वह सावंत मर्डर केस में अभी तक जे. एन. का वारंट हासिल नहीं कर पाया था। फिर उसे बटाला का ख्याल आया। वह बटाला का गुरुर तोड़ना चाहता था।
जे.एन. भले ही उसकी पकड़ से दूर था, परन्तु बटाला को उसकी बद्तमीजी का सबक वह पढ़ाना चाहता था। उसकी पुलिसिया जिन्दगी इन दिनों अजीब कशमकश से गुजर रही थी, एक तरफ तो वह जे.एन. की हिफाजत कर रहा था और दूसरी तरफ जे.एन. को सावंत मर्डर केस में बांधना चाहता था। सावंत के पक्ष में जो सियासी लोग पहले उसका साथ दे रहे थे, अचानक सब शांत हो गये थे।
जारी रहेगा…..
Kahi na kahi muje ek chij ki umid thi ki kahani ko vaishali leed karegi. Fir Vijay se bhi umid hui. Par main leed to ramesh hi kar raha hai. Lekin fir bhi maza aa raha hai. Amezing.# 20
रोमेश ने सात जनवरी को पुन: जे.एन. को फोन किया।
"जनार्दन नागा रेड्डी, तुम्हें पता लग ही चुका होगा कि मैं दस तारीख को मुम्बई से बाहर रहूँगा। लेकिन तुम्हारे लिए यह कोई खुश होने की बात नहीं है। मैं चाहे दूर रहूँ या करीब, मौत तो तुम्हारी आनी ही है। दो दिन और काट लो, फिर सब खत्म हो जायेगा।"
"तेरे को मैं दस तारीख के बाद पागलखाने भिजवाऊंगा।" जे.एन. बोला,
"इतनी बकवास करने पर भी तू जिन्दा है, यह शुक्र कर।"
"तू सावंत का हत्यारा है।"
"तू सावंत का मामा लगता है या कोई रिश्ते नाते वाला ?"
"तूने और भी न जाने कितने लोगों को मरवाया होगा ?"
"तू बस अपनी खैर मना, अभी तो तू मुझे चेतावनी देता फिर रहा है, मैंने अगर आँख भी घुमा दी न तेरी तरफ, तो तू दुनिया में नहीं रहेगा। बस बहुत हो गया, अब मेरे को फोन मत करना, वरना मेरा पारा सिर से गुजर जायेगा।" जे.एन. ने फोन काट दिया।
"साला मुझे मारेगा, पागल हो गया है।" जे. एन. ने अपने चारों सरकारी कमाण्डो को बुलाया,
"यहाँ तुम चारों का क्या काम है?"
"दस तारीख की रात तक आपकी हिफाजत करना।" कमाण्डो में से एक बोला।
"हाँ , हिफाजत करना। मगर यह मत समझना कि सिर्फ तुम चार ही मेरी हिफाजत पर हो। तुम्हारे पीछे मेरे आदमी भी रहेंगे और अगर मुझे कुछ हो गया, तो मेरे आदमी तुम चारों को भूनकर रख देंगे, समझे कि नहीं ?"
"अपनी जान बचानी है, तो मैं सलामत रहूं। हमेशा साये की तरह मेरे साथ लगे रहना।"
"ओ.के. सर ! हमारे रहते परिन्दा भी आपको पर नहीं मार सकता।"
"हूँ।" जे.एन. आगे बढ़ गया और फिर सीधा अपने बैडरूम में चला गया। आठ तारीख को वह एकदम तरो ताजा था। चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। उसके बैडरूम के बाहर दो कमाण्डो चौकसी करते रहे। सुबह सोने वाले पहरेदार उठ गये और रात वाले सो गये।
यूँ तो जे.एन. के बंगले में जबरदस्त सिक्योरिटी थी। उसके प्राइवेट गार्ड्स भी थे, बंगले में किसी का घुसना एकदम असम्भव था। फोन रोमेश ने आठ जनवरी को भी किया, लेकिन जे.एन. अब उसके फोनों को ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
नौ तारीख को जरुर उसके दिमाग में हलचल थी, कहीं सचमुच उस वकील ने कोई प्लान तो नहीं बना रखा है।
"वह अपने हाथों से मेरा कत्ल करेगा। क्या यह सम्भव है?"अपने आपसे जे.एन. ने सवाल किया,
"वह भी तारीख बता कर, नामुमकिन। इतना बड़ा बेवकूफ तो नहीं था वो।"
"मगर वह तो नौ को ही दिल्ली जाने वाला है।" जे.एन. के मन ने उत्तर दिया। जनार्दन नागा रेड्डी ने फैसला किया कि वह रोमेश को मुम्बई से बाहर जाते हुए जरूर देखेगा।
अतः वह राजधानी के समय मुम्बई सेन्ट्रल पहुंच गया। राजधानी एक्सप्रेस कुल चार स्टेशनों पर रुकती थी। अठारह घंटे बाद वह दिल्ली पहुंच जाती थी। ग्यारह-बारह बजे दिल्ली पहुंचेगा, फिर रात को चित्रा क्लब में अपनी बीवी से मिलेगा। नामुमकिन! फिर वह मुम्बई कैसे पहुंच सकता था? और अगर वह मुम्बई में होगा भी, तो क्या बिगाड़ लेगा? जे.एन. खुद रिवॉल्वर रखता था और अच्छा निशानेबाज भी था।
रेलवे स्टेशन पर वैशाली और विजय, रोमेश को विदा करने आये थे। राजधानी प्लेटफार्म पर आ गई थी और यात्री चढ़ रहे थे। रोमेश भी अपनी सीट पर जा बैठा। रस्मी बातें होती रही।
"कुछ भी हो, मैं तुम दोनों की शादी में जरूर शामिल होऊंगा।" रोमेश काफी खुश था। दूर खड़ा जे.एन. यह सब देख रहा था । जे.एन. के पास ही माया दास भी खड़ा था और उनके गार्ड्स भी मौजूद थे। रोमेश की दृष्टि प्लेटफार्म पर दूर तक दौड़ती चली गई। फिर उसकी निगाह जे.एन. पर ठहर गई।
"अपना ख्याल रखना" ट्रेन का ग्रीन सिग्नल होते ही विजय ने कहा।
"हाँ , तुम भी मेरी बातों का ध्यान रखना। हमेशा एक ईमानदार होनहार पुलिस ऑफिसर की तरह काम करना। अगर कभी मुझे कत्ल के जुर्म में गिरफ्तार करना पड़े, तो संकोच मत करना। कर्तव्य के आगे रिश्ते नातों का कोई महत्व नहीं रहता।" रोमेश ने उस पर एक अजीब-सी मुस्कराहट डाली।
गाड़ी चल पड़ी। रोमेश ने हाथ हिलाया, गाड़ी सरकती हुई आहिस्ता-आहिस्ता उस तरफ बढ़ी, जिधर जे.एन. खड़ा था। रोमेश ने हाथ हिला कर उसे भी बाय किया और फिर ए.सी . डोर में दाखिल हो गया। गाड़ी धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ती जा रही थी। विजय ने गहरी सांस ली और फिर सीधा जे.एन. के पास पहुँचा।
"सब ठीक है ?" विजय ने कहा।
"गुड !" जे.एन. की बजाय मायादास ने उत्तर दिया और फिर वह लोग मुड़ गये। राजधानी ने तब तक पूरी रफ्तार पकड़ ली थी।
“दस जनवरी, शनिवार का दिन।“
यह वह दिन था, जो बहुत से लोगों के लिए बड़ा महत्वपूर्ण था। सबसे अधिक महत्वपूर्ण दिन था जनार्दन नागा रेड्डी के लिए। जो सवेरे-सवेरे मन्दिर इसलिये गया था, ताकि उसके ऊपर जो शनि की ग्रह दशा चढ़ी हुई है, वह शांत रहे। शनि ने उसे अब तक कई झटके दे दिये थे, उसे मुख्यमंत्री पद से हटवाया था, सावंत की हत्या करवाई थी और अब एक शख्स ने उसे शनिवार को ही मार डालने का ऐलान कर दिया था।
जनार्दन नागा रेड्डी वैसे तो हर कार्य अपने तांत्रिक गुरु से पूछकर ही किया करता था। तांत्रिक गुरु स्वामी करुणानन्द ने ही उस पर शनि की दशा बताई थी और ग्रह को शांत करने के लिए उपाय भी बताए थे।
जे.एन. इन उपायों को निरंतर करता रहा था। इसके अतिरिक्त स्वयं तांत्रिक भी ग्रह शांत करने के लिए अनुष्ठान कर रहा था। मन्दिर से लौटते हुये भी जे.एन. के दिलो-दिमाग से यह बात नहीं निकल पा रही थी कि आज शनिवार का दिन है। घर पहुंच कर उसने माया-दास को बुलाया। मायादास तुरन्त हाजिर हो गया।
"मायादास जी, जरा देखना तो हमें आज किस-किससे मिलना है?" जे.एन. ने पूछा। माया-दास ने मिलने वालों की सूची बना दी।
"ऐसा करिये, सारी मुलाकातें कैंसिल कर दीजिये।" जे.एन. बोला।
"क्यों श्री मान जी? " मायादास ने हैरानी से पूछा।
"भई आपको कम से कम यह तो देख लेना चाहिये था कि आज शनिवार है।"
"तो शनिवार होने से क्या फर्क पड़ता है ?"
"क्या आपको मालूम नहीं कि हम पर शनि की दशा सवार है?"
"लेकि….न उससे इन मुलाकातों पर क्या असर पड़ता है, यह सारे लोग तो आपके पूर्व परिचित हैं। साथ में आपको फायदा भी पहुंचाने वाले हैं।"
"कुछ भी हो, हम आज किसी से नहीं मिलेंगे।"
"जैसी आपकी मर्जी।" मायादास ने कहा,
"वैसे आपकी तबियत तो ठीक है?"
"बैठो, यहाँ हमारे पास बैठो।" जे.एन. बोला। मायादास पास बैठ गया।
"देखो मायादास जी, तुम्हें याद है कि पिछले कई शनिवारों से हमें तगड़े झटके लगे हैं। जिस दिन सावन्त का चार्ज हमारे आदमी पर लगा, वह भी शनिवार का दिन था। जिस दिन मैंने सी .एम. की सीट छोड़ी, वह भी शनिवार का दिन था। और इस रोमेश के बच्चे ने भी मुझे मारने का दिन शनिवार ही चुना।"
"ओह, तो यह टेंशन है आपके दिमाग में। लेकिन मुझे यकीन है, यह टेंशन कल तक दूर हो जायेगी। अब आप चाहें तो दिन भर आराम कर सकते हैं। मैं आप तक किसी का टेलीफोन भी नहीं पहुंचने दूँगा। कोई खास फोन हुआ, तो बात अलग है। वरना मैं कोड वाले फोन भी नहीं पहुंचने दूँगा।"
"हाँ, ठीक है। मुझे आराम करना चाहिये।" जे.एन. अपने बैडरूम में चला गया, लेकिन आराम कहाँ ? बन्द कमरे में तो उसकी बैचेनी और बढ़ ही रही थी। बार-बार रोमेश की धमकी का ख्याल आता।
जारी रहेगा.......
Vijay me jawani ka josh hai. Vo Ramesh ko samaz kar bhi nahi samaz raha. Ye us jamane ki police hai jo kanun ke dayre se bilkul bahar nahi nikalti. Ramesh achha huaa bhag hi gaya. Amezing.# 22.
जनार्दन नागा रेड्डी की कार फ्लैट के पोर्च में रुकी। पीछे कमाण्डो की कार थी। वह कार बाहर सड़क के किनारे खड़ी हो गई। जे.एन. अपनी कार से उतरा।
"इन कमाण्डो से कहना, बाहर ही रहें।" उसने अपने ड्राइवर से कहा !!
''और तुम गाड़ी में रहना, ठीक?"
"जी साहब !" ड्राइवर ने कहा।
जे.एन. फ्लैट के द्वार पर पहुँचा। द्वार को आधा खुला देखकर जे.एन. मुस्कराया,
"शायद इंतजार करते-करते दरवाजा खोलकर ही सो गई।"
अन्दर दाखिल होकर जे.एन. ने द्वार बोल्ट किया और सीधा बैडरूम की तरफ बढ़ गया। बैडरूम में रोशनी थी और बाथरूम में शावर चलने की आवाज आ रही थी।
"ओह तो इसलिये दरवाजा खुला था, स्नान हो रहा है।"
"जी हाँ, आप बैठिए।"
बाथरुम से आवाज आई। जनार्दन नागा रेड्डी आराम से बैठ गया। फिर उसने फ्रीज खोला, एक बियर निकाल ली और उसके साथ ही एक गिलास भी। मेज पर पहले से एक गिलास और बियर की तीन चौथाई खाली बोतल रखी थी।
जे. एन. ने उस पर कोई ख़ास ध्यान नहीं दिया। उसने अपनी बियर खोली और गिलास में डालने लगा, उसके बाद उसने गिलास होंठों की तरफ बढ़ाया। बाथरूम का दरवाजा खुलने की हल्की आवाज सुनाई दी। जे.एन. मुस्कराया। वह जानता था कि माया दबे कदम उसके करीब आयेगी और फिर पीछे से गले में बाँहें डाल देगी।
वह इन्तजार करता रहा। किसी ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखा। जे.एन. को एका एक वह स्पर्श अजनबी लगा। उसका हाथ रुक गया, जाम लबों पर ही ठहर गया। फिर हाथ धीरे-धीरे नीचे आया और मेज के ऊपर ठहर गया।
"जनार्दन नागा रेड्डी !" किसी ने फुसफुसा कर कहा। जे.एन. का हाथ गिलास पर से छूट गया। उसका हाथ तेजी के साथ रिवॉल्वर की तरफ बढ़ा, परन्तु तब तक पीछे से जोरदार झटका लगा!
जे.एन. कुर्सी सहित घूम गया। एक क्षण के लिए उसे चाकू का ब्लेड चमकता दिखाई दिया। उसने चीखना चाहा। वह चीखा भी। परन्तु वह चीख घुटी-घुटी थी। तब तक चाकू उसके जिस्म में पैवस्त हो चुका था। उसकी आंख फटी-की-फटी रह गई। खून सना जिस्म कालीन पर लुढ़कता चला गया।
जनार्दन की चीख शायद बाहर तक पहुंच गई थी और बेल बजने लगी थी। फिर दरवाजा इस तरह बजने लगा, जैसे कोई उसे तोड़ने की कौशिश कर रहा हो। बैडरूम की रोशनी बुझ चुकी थी। वह शख्स पीछे खुलने वाली बालकनी पर पहुँचा। फिर उसने बालकनी पर डोरी बाँधी और फिर डोरी द्वारा तीव्रता के साथ नीचे जा कूदा। उस वक्त सबका ध्यान फ्लैट के मुख्य द्वार की तरफ था। फिर कि सीने चीखकर कहा:
"देखो वह कौ न कूदा है ?"
''लगता है, अन्दर कुछ गड़बड़ हो गई है।"
कूदने वाला बेतहाशा सड़क पर दौड़ता चला गया। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, एक गाड़ी के पीछे खड़ी मोटर साइकिल स्टार्ट हुई और फिर मोटर साइकिल सड़क पर दौड़ने लगी। कमाण्डो जे.एन. को छोड़कर नहीं जा सकते थे। जैसे ही कमांडो को पता चला कि जे.एन. का कत्ल हो गया है, वह सकपका गये।
''क्या करें ?" एक ने कहा।
"उसने कहा था कि अगर उसकी जान को कुछ हो गया, तो उसके आदमी हमें मार डालेंगे। जो कभी भी यहाँ आ सकते हैं।"
"मेरे ख्याल से भागने में ही भलाई है।"
"नौकरी चली जायेगी।" दूसरा बोला।
"नौकरी तो वैसे भी जानी है, जे.एन. तो मर गया। अब तो जान बचाओ।" पहले वाले ने कहा। चारों कार लेकर वहाँ से भाग खड़े हुए।
इंस्पेक्टर विजय के अतिरिक्त बहुत से वरिष्ठ पुलिस अधिकारी घटना स्थल पर पहुंच चुके थे। टेलीफोन वायरलेस, टेलेक्स, फैक्स न जाने कितने माध्यमों से यह न्यूज बाहर जा रही थी। सबसे पहले घटना स्थल पर पहुंचने वाला शख्स विजय ही था। माया रो रही थी। पास ही जे. एन. का ड्राइवर और नौकरानी खड़ी थी। बाहर कुछ लोग जमा थे, जिन्हें अन्दर नहीं जाने दिया जा रहा था। फ्लैट के दरवाजे पर भी सिपाही तैनात थे।
"कैसे हुआ ?"
"उसने पहले मुझे मेरे अंकल के एक्सीडेन्ट के फोन का धोखा दिया।" माया बताती जा रही थी। नौकरानी भी बीच-बीच में बोल रही थी।
"वही था, तुम अच्छी तरह पहचानती हो।"
"वही था, रोमेश सक्सेना एडवोकेट ! ओह गॉड ! उसने मुझे बैडरूम के बाथरूम में बांधकर डाल दिया। किसी तरह मैं घिसटती-2 बाहर तक आई, मगर तब तक जे.एन. साहब का कत्ल हो चुका था।
"उसने जाते-जाते मेरे हाथ खोले और बालकनी के रास्ते भाग गया। फिर मैंने मुँह का टेप हटाया और शोर मचाया। उसके बाद दरवाजा खोलकर पुलिस को फोन किया।"
"रोमेश, तुमने बहुत बुरा किया।"
विजय ने अपने मातहत को घटना स्थल पर तैनात किया। तब तक दूसरे अधिकारी भी आ चुके थे। कुछ ही देर में उसकी जीप रोमेश के फ्लैट की ओर भागी चली जा रही थी। वह एक हाथ से स्टेयरिंग कंट्रोल कर रहा था और उसके दूसरे हाथ में सर्विस रिवॉल्वर थी। रोमेश के फ्लैट पर पहुंचते ही उसकी जीप रुक गई।
फ्लैट के एक कमरे में रोशनी हो रही थी। विजय जीप से नीचे कूदा और जैसे ही उसने आगे बढ़ना चाहा, फ्लैट की खिड़की से एक फायर हुआ। गोली उसके करीब से सनसनाती गुजर गई, विजय ने तुरन्त जीप की आड़ ले ली थी।
"इंस्पेक्टर विजय।" रोमेश की आवाज सुनाई दी ।
"अभी ग्यारह जनवरी शुरू नहीं हुई है। मैंने कहा था कि तुम मुझे गिरफ्तार करने ग्यारह जनवरी को आना। इस वक्त मैं जल्दी में हूँ, अगर तुमने मुझ पर हाथ डालने की कौशिश की, तो मैं भूनकर रख दूँगा।"
"अपने आपको कानून के हवाले कर दो रोमेश।" विजय ने चेतावनी दी और साथ ही धीरे-धीरे आगे सरकना शुरू कर दिया।
विजय उस वक्त अकेला ही था। उसी क्षण फ्लैट की रोशनी गुल हो गई। इस अंधेरे का लाभ उठा कर विजय तेजी से आगे बढ़ा। वह रोमेश को भागने का अवसर नहीं देना चाहता था। वह फ्लैट के दरवाजे पर पहुँचा। उसे हैरानी हुई कि फ्लैट का दरवाजा अन्दर से खुला है। वह तेजी के साथ अंदर गया और जल्दी ही उस कमरे में पहुँचा, जिसकी खिड़की से उस पर फायर किया गया था।
वह उस फ्लैट के चप्पे-चप्पे से वाकिफ था।
थोड़ी देर तक वह आहट लेता रहा कि कहीं रोमेश उस पर फायर न कर दे। तभी वह चौंका, उसने मोटर साइकिल स्टार्ट होने की आवाज सुनी। विजय ने कमरे की रोशनी जलाई, कमरा खाली था। वह तीव्रता के साथ खिड़की पर झपटा और फिर उसकी निगाह सड़क पर दौड़ती मोटर साइकिल पर पड़ी।
"रुक जाओ रोमेश !" वह चीखा। उसने मोटर साइकिल की तरफ एक फायर भी किया, परन्तु बेकार ! खिड़की पर बंधी रस्सी देखकर वह समझ गया कि अंधेरा इसलिये किया गया था, ताकि कोई उसे रस्सी से उतरते न देखे। संयोग से विजय उस समय फ्लैट के दरवाजे से अन्दर आ रहा था।
विजय तीव्रता के साथ बाहर आ गया। उसने अपनी जीप तक पहुंचने में अधिक देर नहीं की। उसके बाद जीप को टर्न किया और उसी दिशा में दौड़ा दी, जिधर मोटर साइकिल गई थी। रिवॉल्वर अब भी उसके हाथ में थी। काफी दौड़-भाग के बाद मोटर साइकिल एक पुल पर खड़ी मिली।
विजय ने वहीं से वायरलेस किया, शीघ्र ही एक कार वहाँ पहुंच गई। मोटर साइकिल कस्टडी में ले ली गई। रोमेश का कहीं पता न था।
"फरार हो कर जायेगा कहाँ ?" विजय बड़बड़ाया। एक बार फिर वह रोमेश के फ़्लैट पर जा पहुँचा।
जारी रहेगा…..
Hmmm great writer...HalfbludPrince foji bhai, aapke sabdo ki bhi partiksha rahegi