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Fantasy THE DARKNESS RISING [Completed]

AK 24

Supreme
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(UPDATE-84)

में श्रुति के अंदर का वो नदी का पानी एक बार उस बाँध को भेदता हुआ बाहर निकालने लगा. वो फिर से गहरी साँसें लेने लगी थी. लेकिन रोहन तो जैसे लगा हुआ था अपनी ड्यूटी पर. जैसे आख़िर मुकाम तक वो लड़कर आएगा. फिर कुछ देर और ऐसे ही श्रुति को छोढ़ते रहने के बाद उसे भी ऐसा लगने लगा के उसके अंदर का लावा अब बाहर आने को आतुर है. बस फिर क्या था रोहन के दो चार शॉट के बाद वो सारे लावे एक साथ इतनी तादाद में निकालने लगे की श्रुति की चुत में उनके लिए जगह नहीं बची और वह बाहर निकालने लगे. इतनी ज्यादा मेहनत करने के बाद रोहन, श्रुति के ऊपर आकर गिर पढ़ा. श्रुति रोहन को अपनी बाज़ुओं के घेरे में ले ली. फिर वो दोनों थोड़ी देर तक प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगे. फिर जब उन्हें ऐसा लगा के उन्हें वापसे एक बार फिर काम क्रीड़ा करना है तो फिर से दोनों सेम रुटीन पर चलने लगे.

विजया और सौंदर्या ने पता लगाया के श्रुति नैनीताल में किस दोस्त के फार्महाउस पर पार्टी एंजाय करने गयी थी. तो उन्हें मालूम पढ़ा की वह सब निखिल की गाड़ी में बैठकर उसके ही फार्महाउस पर गये हुए थे. विजय कपूर ने निखिल के फादर संजीव सान्याल से कॉंटॅक्ट किया.

“संजीव जी!! विजय हियर…”

“हां विजय जी, कहिए?” संजीव एक दम हारे हुए सिपाही की तरह कहा. विजय को संजीव की आवाज़ में दुख साफ नज़र आ रहा था.

“सांजेव जी आपको तो पता ही हमारे बच्चे जो नैनीताल गये हुए थे और उनका अभी तक कोई भी पता नहीं है. में उसी सिलसिले में फोन किया है.”

“में समझ गया था विजय जी जब आपका फोन आया तो. इसमें कहने वाली कौनसी बात है. क्योंकि यह मामला गंभीर है ही इतना की कोई भी बाप इस समय परेशान होगा.”

“शुक्रिया संजीव जी मेरी परेशानी समझ ने के लिए.”

“अरे कैसी बातें कर रहे है..मुझे पता है आप इस वक्त कितने परेशान होंगे क्योंकि में भी उसी दौड़ से गुजर रहा हूँ. मेरा बेटा भी तो लापता है.”

“जी!….संजीव जी में यही कहना चाह रहा था की आपने कुछ पता लगाया की आपका बेटा निखिल और उसके सारे दोस्त नैनीताल कब पहुंचे थे?”

“यही तो परेशानी वाली बात है विजय जी!! क्योंकि वो लोग जब यहां से नैनीताल के लिए निकले तो वहां पहुंचे ही नहीं है अभी तक. क्योंकि मैंने अपने नैनीताल के फार्महाउस के केर्टेकर से पता लगाया और उसने कहा की निखिल और उसके दोस्त नैनीताल पहुच्छे ही नहीं है.”


“क्या!! वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है…? ऐसे कैसे हो सकता है संजीव जी? मेरी बेटी तो यही बोलकर गयी थी की वो लोग नैनीताल अपने कॉलेज के फेरवेल पार्टी करने जा रहे है. और आप अभी यह शॉकिंग न्यूज दे रहे है की वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है. तो कहा गये हुए होंगे?”

“यही तो समस्या है विजय जी …मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है..मैंने अपने सोर्स से सब पता लगाया लेकिन ंखिल और उस की गाड़ी का जिसमें वह लोग बैठ कर गये थे कुछ भी पता नहीं चला..” संजीव ने बेचारगी से कहा.

“हम…..यह तो बड़ी समस्या हो गयी.. अब तो एक ही चारा है की हमें पुलिस की मदद लेनी होगी. इसलिए में अपने कमिशनर दोस्त की मदद लेता हूँ.”

“यही बढ़िया रहेगा. में भी आपके साथ चलता हूँ …”

“जरूर!! बल्कि में तो कहता हूँ हमें उन सब पेरेंट्स को ले लेना चाहिए जिनके बच्चे हमारे बच्चों के साथ गये हुए थे.”

“सही कहा आपने …में अभी उनसबको खबर करता हूँ.”

फिर कुछ ही देर में विजय कपूर और संजीव सान्याल समेट वो सब पेरेंट्स इस वक्त कमिशनर की ऑफिस में बैठे हुए थे.

“आप घबराए नहीं विजय जी….कुछ नहीं होगा आप सब के बच्चों को..हम उन्हें ढूँढ निका लेंगे.” कमिशनर अतुल चतुर्वेदी ने कहा.

“शुक्रिया अतुल जी….लेकिन आप उन्हें ढूंढ़ेंगे कैसे?” विजय ने कहा.

“वो सब आप हमारे ऊपर छोड दीजिए….” फिर अतुल ने उन सब से रुटीन सवाल पूछना लगा की वह कब घर से निकले थे , कोन से गाड़ी से गये थे और कितने लोग गये थे वगैरह वगैरह….

पूरी बातें सुनाने के बाद अतुल चतुर्वेदी ने कहा.

“आप लोग एक काम करिए पहले अपने अपने बच्चों के मोबाइल नंबर्स और उनके फोटोग्रॅफ्स दीजिए.हम उनके मोबाइल नंबर्स के जरिए उनको ट्रेस करेंगे..फिलहाल आप लोग घर जाए. जैसे ही कुछ पता चलता है में आप लोगों को खबर कर दूँगा.”

घर पहुंचने के बाद विजय और सौंदर्या को जैसे एक पल का भी सुकून नहीं था. वह बेचैनी से यहां वहां टहल रहे थे..उन्हें वेट था अतुल चतुर्वेदी के फोन का की वो कब श्रुति और उसके दोस्तों के मोबाइल नंबर्स ट्रेस करवाता है और उन्हें कब खबर करता है. काफी देर बाद अतुल चतुर्वेदी का फोन विजय कपूर को आता है.

“विजय जी!! हमने तमाम बच्चों का मोबाइल नंबर्स ट्रेस कर लिया है.” यह खबर सुनकर विजय की आँखें चौड़ी हो गयी.

“ओह अच्छा!! जल्दी से बताए कहा है वह लोग इस वक्त?” विजय ने जोश भरे लहज़े में बोला

“इस वक्त वह लोग कहा है इस बारे में तो में अभी…
 

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(UPDATE-85)


नहीं कह सकता, लेकिन हां उनका मोबाइल जो आखिरी बार बंद हुआ था वो जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में हुआ था.” अतुल चतुर्वेदी ने बताया.

“जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क?? यह कैसे हो सकता है?? वह लोग तो नैनीताल के लिए निकले थे वहां कैसे पहुंच गये?” विजय कपूर ने हैरत से भरे लहज़े में कहा.

“इसमें इतना शॉकिंग वाली कोई बात नहीं विजय जी. जिम कॉर्बेट नैनीताल जाने के रास्ते में पढ़ता है. बच्चे है वो, हो सकता है अपना मूंड़ चेंज कर लिया होगा उन्होंने. नैनीताल जाने के बजाए वह जिम कॉर्बेट चले गये होंगे. “

“लेकिन यह तो बड़ा गज़ब हो गया…..!! आप तो जानते है में क्या कहना चाह रहा हूँ.”

“हां…..में समझ गया..आपका मतलब क्या है..वो नेशनल पार्क इस वक्त खतरे से खाली नहीं है. किसी जंगली जानवरो ने आतंक मचाया हुआ है वहां पर..”

“तो अब क्या होगा अतुल जी…कही मेरी बेटी श्रुति को कुछ…….”
“घबराइए नहीं विजय जी…बच्चों को कुछ नहीं होगा..में अभी अपनी एक टीम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क के लिए रवाना करता हूँ और में खुद वहां के फोरेस्ट डिपार्टमेंट वालो को फोन करके उन बच्चों के बारे में पता लगाने के लिए कहता हूँ..”

“आपका शुक्रिया अतुल जी….!!

“कैसे बातें कर रहे है विजय जी….इसमें शुक्रिया कहने वाली कोन से बात है. यह तो हमारा काम है.” फिर वह दोनों के कुछ और जरूरी बातें करने के बाद फोन डिसकनेक्ट कर दिए. विजय कपूर बेचैन हो गया था यह सुनकर की श्रुति और उसके दोस्त इस वक्त जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में हैं. कहा वो यह डर रहा था श्रुति के नैनीताल जाने पर की वो जंगल उस शहर के करीब में है, उस वक्त उसे यह डर था की हो सकता है उनमें से कुछ जानवर वहां पर भी चले जायें. लेकिन अब तो उसका डर दुगुना नहीं बल्कि कई गुना तरफ गया था क्योंकि वह उस जंगल के पास नैनीताल में नहीं बल्कि खुद उसी जंगल में थे. अब तो खतरा उन लोगों के ऊपर और तरफ चुका था.

“क्या कहा उस कमिशनर ने?” सौंदर्या ने विजय को फोन रखने के बाद गुमसुम देखा तो कहा. विजय कपोर ने जवाब में कुछ नहीं कहा, सिर्फ़ सौंदर्या को घूर कर देखा. उसे इस वक्त बहुत गुस्सा आ रहा था अपनी बीवी पर. क्योंकि यह सब उसी का किया धारा था. अगर वो पहले ही दिन से श्रुति से कॉंटॅक्ट करने की कोशिश करती तो यह नौबत नहीं आती. वह लोग उस वक्त कोशिश करते तो उसे ढूँढ सकते थे. लेकिन जो न्यूज उसने सुना था उसके बाद तो उसे भी खुद उम्मीद नहीं थी की श्रुति के साथ इस वक्त क्या हुआ होगा.


“क्यों पूंछ रही हो? आख़िर तुम्हारा हक क्या बनता है पूच्छने का? जब सब कुछ बिगाड़ लिया तो अब आई हो अपनी बेटी की ख़ैरियत जाने के लिए.” विजय ज़हर उगलता हुआ सौंदर्या से कहने लगा.

“विजय प्लीज़!!!!! यह सब बातों को अभी यह रहने दो. मुझे जल्दी से बताओ क्या कहा अतुल जी ने?” सौंदर्या ने विजय से विनती करते हुए कहा. विजय का मन कर रहा था की वो सौंदर्या को और खड़ी खोती सुनाए लेकिन वो जानता था की इन सब बातों का कुछ मतलब नहीं है. जो होना था वो तो हो चुका है अब उसे सिर्फ़ यही करना की जल्द से जल्द श्रुति को उस जंगल से निकाल ले. वो कुछ देर तक अपने दिमाग को शांत किया फिर सौंदर्या को वो बताने लगा जो उसे अतुल चतुर्वेदी ने कहा था. फिर उसके बाद सौंदर्या की भी वही हालत हो गयी थी जो विजय की थी इस वक्त.

“विजय !! चलो अभी और इसी वक्त उसी पार्क में. हमें कुछ ना कुछ करना होगा, पता ना हमारी श्रुति इस वक्त किस हाल में होगी.” कहते हुए सौंदर्या रोने लगी. सौंदर्या को रोता देख विजय का दिल भी पिघल गया. वो यही सोचने लगा की सौंदर्या जैसे भी है श्रुति की मां है. आज श्रुति तक़लीफ़ में है तो एक मां का दिल टूट गया है. वो एक मां का दिल नहीं दुखाना चाहता था. यही सब सोचकर उसने आगे बढ़कर सौंदर्या को गले लगा लिया और उसे दिलासा देने लगा. फिर उसके बाद वह लोग जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क की और निकल पढ़े. सिर्फ़ वह दोनों ही नहीं बल्कि और पेरेंट्स के यह जाने के बाद की उनके बच्चे आखिरी बार जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में पा गये थे उस और के लिए चल पढ़े.

परवेज़ भूखा प्यासा अकेला चला जा रहा था. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या करे. वो और सुशांत और उनकी टोली निकले थे ढूंढ़ने रोहन को लेकिन खुद ही एक एक करके उस आदमख़ोर दरिंदो का शिकार हो गये थे. अब उन सबमें अकेला परवेज़ ही बच्चा था. उसकी हालत इस वक्त एक दम खराब थी. भूखा प्यासा वो उस आदमख़ोर दरिंदो से बचता बचाता हुआ अपनी मंजिल तलाश कर रहा था. लेकिन उसके साथ में भी वही परेशानी हो गयी थी जो रोहन और श्रुति के साथ में थी. वो भी रास्ते से भटक गया था. खैर, फिर भी जल्द से जल्द अपनी मंजिल…
 

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पा लेना चाहता था क्योंकि उसे मालूम था की अगर वो ऐसे ही भटकता रहा तो वो भी सुशांत और उसके साथियों की तरह मारा जाएगा. रही रही कर उसके सामने वही दृश्या घूम रहे थे जब उन हैवानो ने उन सब पर हमला किया था. उसने देखा था वह कुल चार दरिंदे थे और किस तरह अचानक उन लोगों पर हमला करने लगे थे. उन लोगों को तो कुछ समझ ही नहीं आया की यह बाला है. परवेज़ ने अपनी पूरी जिंदगी में इस तरह भयानक जानवर नहीं देखा था. वह उन लोगों को एक एक करके शिकार करके अपना नीवाला बना रहे थे. उनके सारे हथियार किसी काम नहीं आए थे क्योंकि उन्हें उन दरिंदो ने मौका ही नहीं दिया था हथियार इस्तेमाल करने का. लेकिन परवेज़ किसी तरह उन दरिंदो से अपनी जान बच्चा कर वहां से भाग निकला था. लेकिन वो यही सोच रहा था की वो कब तक यूँही भटकता रहेगा ऐसे ही. उसे 24 घंटे से भी ज्यादा हो गये थे इसी तरह भटकते हुए. भूख के मारे वो एक दम बेहाल हुआ जा रहा था. जब काफी देर तक ऐसे ही चलते रहने के बाद भी उम्मीद की किरण नज़र नहीं आई तो उसने थोड़ा आराम करने का सोच कर एक पेड़ के पास जाकर बैठ गया. तक हारा हुआ परवेज़ इस समय अपने दोस्त रोहन के बारे में सोचने लगा. वो सोच रहा था के पता नहीं रोहन इस समय किधर होगा. ज़िदना भी होगा के नहीं. अगर इन आदमख़ोरो के हटते चढ़ गया होगा तो फिर कुछ भी कहना मुश्किल है. यही सब सोचते सोचते वो नींद की आगोश में जाने लगा. लेकिन उसकी आँख लगे अभी कुछ देर हुआ था की वो खत से अपनी आँखें खोल दिया. कारण था उसे आवाजें आनी लगी जैसे सूखे हुए पत्तो पर जैसे कोई चल रहा हो. खौफ के मारे वो एक दम चौकन्ना हो गया. और इधर उधर देखने की कोशिश करने लगा की आवाजें कहा से आ रही है. थोड़ा गौर करने पर उसे महसूस की वो आवाज़ उसके डायन और से आ रही है. वो एक दम घबराने लगा क्योंकि उसे डर था की कही यह आवाज़ उन दरिंदो के चलने की वजह से तो नहीं आ रही है. अभी वो यही सोच ही रहा था की वो आवाज़ अब उसे साफ साफ सुनाई दे रही थी जैसे अब वो उसके करीब पहुंच गये हो. परवेज़ जल्दी से अपनी जगह से खड़े होकर दूर भागता हुआ एक घनी सी झाड़ियों में चुप कर आने वाले को देखने की कोशिश करने लगा. अभी उसे उस झाड़ियों में बैठे हुए कुछ देर हुआ था की उसे अपने आस पास जैसे कोई चीज़ रेंगती हुई महसूस होने लगी. उसने जल्दी से अपने आस पास देखने की कोशिश करने लगा लेकिन रात हो जाने की वजह से अंधेरा काफी तरफ गया था और उसे ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. वो अपने हाथों से उस रेंगती हुई चीज़ को छू कर महसूस करने की कोशिश करने लगा. बस उसका इतना करना ही था की उसे जैसे बिजली का झटका जैसा लगा. क्योंकि वो एक शिकारी था इसलिए उसे समझने में देर नहीं लगी की वो रेंगती चीज़ कुछ और नहीं बल्कि एक आज़गार साँप था. परवेज़ की हालत एक दम पतली हो गयी.. पीछे खाई और आगे कुँवा वाली उसकी इस समय हालत हो गयी थी. उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था की वो क्या करे. लेकिन कुछ ना कुछ तो करना पड़ेगा ही वरना बाहर जो कोई भी है वो तो बाद में नुकसान पहुचाएगा उससे पहले यह आज़गार उसे अपना नीवाला बना देगा. यही सोच कर परवेज़ जल्दी से उस झाड़ियों से बाहर की और कूड़ा. लेकिन जैसे ही वो बाहर आया उसने वही दो खूनकर लाल लाल आँखें देखा जिन्होंने सुशांत और उसके साथियों को मौत के घाट उतारा था..परवेज़ ने देखा की उसके बाहर आने से उस दरिन्दा का ध्यान उसकी और आकर्षित हो गया है और वो दौड़ता हुआ उस ही की और तरफ रहा था. परवेज़ की हालत एक दम पतली हो गयी थी उसे अपनी तरफ बढ़ता हुआ देखकर. उसे अपनी मौत साफ नज़र आ रही थी. लेकिन वो इतनी आसानी से नहीं मारना चाहता था. उसने सोचा मारना तो है ही तो क्यों ना मुकाबला करके ही मारा जाए. इसलिए उसने अपना चाकू निकाला और वो चाकू लेकर एक लंबी छलांग लगाई उस दरिंदे पर. लेकिन वो चूक गया और वो चाकू उस दरिंदे के बाजू को ही जख्मी कर पाया. अपना वार खाली जाता देख वो दरिन्दा और भौक्ला गया और फिर से दोबारा पलट कर तेजी से अपना हाथ पर परवेज़ पर चलाया. उसका यह वार तो परवेज़ बच्चा लिया था लेकिन अपने भाई तरफ के बाजू को जख्मी होने से नहीं बच्चा पाया.. परवेज़ इस हमले से दूर जा गिरा था और उसका चाकू उसके थोड़ी दूर पर गिर गया था. फिर परवेज़ ने देखा की वो दरिन्दा उस पर फिर हमला करने की तैयारी कर रहा था. परवेज़….
 

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जल्दी से अपना वो चाकू उठाने की कोशिश करने लगा लेकिन अपने बाएँ वाले बाजू के घायल होने की वजह से वो थोड़ा लड़खड़ा रहा था और चाकू की तरफ नहीं पहुंच पा रहा था. फिर परवेज़ ने देखा की वो भयंकर जानवर अपने लंबे लंबे दाँतों और नाखूनओ से उसपर हमला करने के लिए अपने हाथ बढ़ा चुका था. उसे अपनी मौत साफ नज़र आ रही थी. खौफ के मारे उसने अपनी आँखें बंद करली . वो अब मरने के लिए तैयार हो चुका था, लेकिन इससे पहले की वो दरिन्दा उस पर हमला करता उस दरिंदे के मुंह से एक जोरदार चीख निकली जैसे उसे किसी ने बहुत ज्यादा ही दर्द दिया हो. परवेज़ थोड़ा चौका की इसे क्या हुआ अचानक. यह देखने के लिए उसने आँखें खोली तो उसने देखा की उसका वही चाकू से कोई उस दरिंदे के दिमाग पर हमला करे जा रहा था. और फिर जब उस आदमी का हाथ रुका तो वो दरिन्दा छटपटाने लगा और कुछ ही देर में दम तोड़ दिया. परवेज़ को बड़ी हैरत हुई के इस भयंकर जानवर को मारने के लिए कौन इतनी बहादुरी दिखा सकता है. वो जल्दी से खड़े होकर अपने उस मसीहा का चेहरा देखने की कोशिश करने लगा.

वो पास जाकर उस मसीे को अपनी तरफ किया तो उसकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा क्योंकि वो मसीहा कोई और नहीं बल्कि उसका जिगरी दोस्त रोहन ही था. परवेज़ बहुत खुश हो गया. उसे सिर्फ़ यह खुशी नहीं थी की रोहन ने उसकी जान बचाई बल्कि यह भी थी के उसका प्यारा दोस्त रोहन ज़िंदा था. वो रोहन को अपने सामने देख कर फूला नहीं समा रहा था.

“ओये रोहन तू……??? तू ज़िंदा है मेरे दोस्त???

“क्यों…..तू मेरे मरने की दुआ कर रहा था क्या?

“नहीं यार….कैसे बात कर रहा है?

“अच्छा ठीक है……पहले यह बता तुझे तो रेस्ट हाउस पर होना चाहिए था तो तू यहां क्या कर रहा था?” रोहन, परवेज़ से सवाल पूछते हुए कहा.

“इसका जिम्मेदार तू है खंभाक़त मारे के….!! अकेले निकल पढ़ा था उन लौंदो और लौंदीयों को सबक सिखाने के लिए और जब तू काफी देर तक आया नहीं तो हम सब को फिक्र होने लगी. फिर क्या था में भीमा और सुशांत निकल पढ़े तुझे ढूंढ़ने के लिए लेकिन………” कहते हुए परवेज़ खामोश हो गया.

“लेकिन क्या परवेज़? सुशांत और भीमा अगर तेरे साथ में थे तो कहा है वो दोनों इस वक्त?

“वह दोनों अब ज़िंदा नहीं है. उन्हें इसी क़िस्म के जानवरो ने मौत के घाट उतार दिया.” दुख भारी आवाज़ में परवेज़ बोला.


“ओह नहीं!!” रोहन भी उन दोनों की मौत के बारे में सुनकर अफ़सोस करने लगा.

“लेकिन तू साले किधर था हराम खोर. लंड के बॅया…..” परवेज़ कुछ और कहता उससे पहले ही रोहन अपने हाथों से परवेज़ का मुंह बंद कर दिया और दूर खड़ी श्रुति की तरफ इशारा किया. जब परवेज़ ने श्रुति की तरफ देखा तो हैरत में पढ़ गया. उस दरिंदे के हाथों मरने से और रोहन के इस तरह अचानक मिल जाने से वो इतना खुश था की उसे अपने पास कौन खड़ा है दिख ही नहीं रहा था. परवेज़ थोड़ा संभला और रोहन के कान में कुछ कहने लगा.

“आबे यह तो उन्हीं लौंदीयों में से एक है ना जिन्हें हमने किडनॅप किया था और जिस पर तू अपनी गुण भी रखा था??

“हां यह वही है.” रोहन भी फुसफुसते हुए परवेज़ के कान में कहा.

“तो यह ज़िंदा है!! जब हमने उधर इन लोगों की गाड़ी के पास मानव कंकाल देखे थे तो मुझे लगा था की सब के सब उस जानवरो का शिकार हो गये है.”

“मुझे यह तो नहीं पता की उन लोगों में से कौन बच्चा कौन नहीं क्योंकि में और श्रुति….मेरा मतलब है यह लड़की उस खाई से नीचे गिर गये थे.” फिर रोहन ने परवेज़ को आगे की घटना के बारे में भी विस्तार से बता दिया. पूरी बात सुनाने के बाद परवेज़, रोहन का चेहरा हैरत से देख रहा था.

“क्यों क्या हुआ? ऐसे आँखें फाड़ फाड़ के क्या देख रहा है?” रोहन, परवेज़ से कहने लगा

“मुझे बड़ी हैरत हो रही है यार…..तू इस लड़की के साथ तीन दीं से है? क्या बात है….? परवेज़ थोड़ा दाँत दिखाते हुए रोहन को छेड़ने लगा.”आबे कुछ मामला सेट किया की नहीं पत्थर दिल आदमी?”

“चुप बैठ तू. ज्यादा फॉककेट मत बोल.” रोहन कहते हुए श्रुति की तरफ देखा जो काफी देर से दो दोस्तों को मिलते हुए देख रही थी.

“श्रुति? यह मेरा दोस्त परवेज़ है…..मैंने बताया था ना तुम्हें?

“हां हां….मुझे याद है. हेलो परवेज़ भाई!! “ श्रुति के मुंह से भाई शब्द सुनकर उसे एक झटका सा लग गया था.

“और परवेज़ यह श्रुति है……” रोहन, परवेज़ को श्रुति का तरफ करते हुए कहा. थोड़े देर तक वह तीनों यूँही एक दूसरे का मुंह देखते रहे क्योंकि उनकी समझ नहीं आ रहा था की आगे क्या कहें. परवेज़ तो श्रुति से नज़रे ही नहीं मिला पा रहा था क्योंकि उसे वही सब बातें याद आ रही जो उन दोनों ने इसके साथ में किया था. फिर भी उसने हिम्मत करके कहा.

“श्रुति जी…….रोहन का तो मुझे पता नहीं…..शायद….
 

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इसने आपसे माफी माँग भी ली हो…..तो…..इसलिए…..में भी माफी माँगता हूँ आप लोगों के साथ जो मैंने किया…..मेरा मतलब है हम दोनों ने किया…..” कहते हुए परवेज़ अपने हलक़ुए से थूक निगलने लगा. परवेज़ की बात सुनकर पहले श्रुति, रोहन की और देखने लगी की क्या जवाब दे उसका, लेकिन कुछ सोच कर वो खुद ही बोली

“नहीं….नहीं….परवेज़ भाई इसकी कोई जरूरत नहीं है!!”

“अरे जरूरत क्यों नहीं है. हम दोनों ने वाक़ई में आपके साथ में बहुत बुरा किया था. हमें ऐसा नहीं…….”वो आगे कुछ और कहता रोहन उसे चुप करते हुए कहने लगा.

“बस बस……उसे सब समझ आ गया है….उसे किसी भी बात का बुरा नहीं लगा है. मैंने सब समझ दिया है. तू बस अब बिलकुल खामोश हो जा क्योंकि हमें यहां से निकालने के बारे में भी सोचना है.”

“अच्छा ऐसा है क्या? ठीक है जैसे तू बोलता है. लेकिन हम यहां से जाएँगे कहा? तुझे कोई रास्ता पता है क्योंकि में तो रास्ता भटक गया हूँ” परवेज़ ने कहा.

“अजीब अहमक (बेवक़ूफ़) है तू. अगर मुझे रास्ता पता होता तो अब तक यही भटकता? रोहन उस पर च्चिदते हुए कहा.

“अच्छा बाबा ठीक है. माफ करदे मुझे, लेकिन कुछ तो तूने सोचा होगा तूने क्योंकि दिमाग तो सिर्फ़ तेरे पास है?” परवेज़ भी तंज़िया अंदाज़ में कहा.

“बस सीधा चलते है. कही ना कही से रास्ता मिल ही जाएगा.”

“वो तो ठीक है यार लेकिन एक प्राब्लम है? परवेज़ ने कहा.

“अब क्या हुआ?”

“यार अब मुझसे इतना लंबा चला नहीं जाएगा क्योंकि एक तो बहुत तक चुका हूँ और दूसरे मुझे भूख भी बहुत ज़ोर की लगी है.”

“वो तो में तेरी हालत देख कर ही समझ गया था. लेकिन परवेज़ बात को समझ हम लोग इस तरह एक जगह पर देर तक नहीं रुक सकते. यह खतरे से खाली नहीं होगा. हमें जल्द से जल्द यहां से निकलना होगा वरना फिर से कही वो जानवर आ गये तो मुसीबत हो जाएगी. और रही बात तेरी भूख मिटानी की तो आगे कोई ना कोई पेड़ ऐसा होगा जिसमें खाने लायक फल होंगे तो हम सब उसी से अपना पेट भर लेंगे.” रोहन, परवेज़ को समझते हुए कहा.

“लेकिन रोहन, परवेज़ भाई के बाजू तो पूरी तरह जख्मी है इसका क्या करेंगे?” श्रुति ने कहा. परवेज़ को बड़ी हैरत हो रही थी की श्रुति उसको भाई कहकर पुकार रही थी और रोहन को सिर्फ़ ‘रोहन’. वो सोचने लगा की आख़िर चक्कर क्या है या फिर इनके बीच सही में कोई चक्कर तो नहीं चल गया.


“उसके बारे में भी हम आगे चल कर कोई जड़ी बूटी वाली कोई पट्टी देखकर उसका लेप लगा लेंगे. लेकिन फिलहाल यहां से जितनी जल्दी हो सके निकल होगा.

“हम….शायद तू ठीक कह रहा है.” कहते हुए परवेज़ चलने के लिए तैयार हो गया.” लेकिन एक बात बता यार यह किस तरह के जानवर थे यार तेरी कुछ समझ में आ रहा है? परवेज़ ने कहा.

“नहीं यार अभी तक तो में भी नहीं समझा हूँ की यह क्या चीज़ है. यह इतने खूनकर और भयानक है की इंसानो को संभालने का मौका भी नहीं देते.”

“दिखने में इनकी शकलें तो बंदरों जैसी है……” परवेज़ ने कहा.

“वो तो है. पता नहीं यह बंदरों की कोन से ज़ात है?” रोहन ने कहा. फिर परवेज़ ने श्रुति की तरफ देख कर कहा.

“श्रुति जी अगर बुरा ना मैंने तो आप थोड़ा आगे आगे चलेंगे क्योंकि मुझे मेरे दोस्त से कुछ प्राइवेट बातें करनी है?” इससे पहले की श्रुति कुछ कह पति रोहन, परवेज़ की तरफ देख कर कहा.

“अब क्या बातें करनी है? जो भी कहना है कह दे इनके सामने.”

“ओके ओके नो प्राब्लम! तुम लोग करो अपनी प्राइवेट बातें. में थोड़ा आगे चलती हूँ.” कहते हुए श्रुति उनसे इतने आगे चलने लगी के उसे वो लोग की बातें करने की आवाजें ना आए. श्रुति को आगे जाते देख रोहन घूर के देखना लगा परवेज़ को.

“बोल क्या बकना है?

“मुझे वही सब बता जो तूने मुझे अब तक नहीं बताया है?”

“मतलब?”

“आबे मतलब के बच्चे सब समझ रहा हूँ तुम दोनों के बीच क्या चल रहा है.”

“आबे तू क्या कह रहा है मेरी तो कुछ समझ नहीं आ रहा है.” रोहन समझ गया था की परवेज़ क्या पूछना चाहता है.

“ज्यादा भोला मत बन. मुझे उस लड़की की आँखों में साफ दिख रहा है.”

“क्या दिख रहा है?” रोहन फिर अंजान बनते हुए कहा.

“पागल समझ रखा मुझे क्या? में उस लड़की और तेरे बर्ताव से समझ गया था की तुम दोनों के बीच जरूर कोई खिचड़ी पकई हुई है. और यह लड़की जो जॅकेट पहनी हुई है यह मेरी जॅकेट है जो मैंने तुझे दी थी पहनने के लिए. और तूने इसे दी है पहनने के लिए, ऐसा कोई तब करता है जब कोई किसी की ज्यादा परवाह करता है.”

“क्या अनाप शनाप बेक जा रहा है. तेरा दिमाग खराब है? आबे कोई किसी को कुछ पहनने के लिए दे दे तो क्या उसे प्यार करने लगता है इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं होती?” अब रोहन हल्का सा गुस्सा करते हुए कहा.

“ठीक है बेटा कर नाटक. मत बता मुझे में इसी लौंडिया से पूछता हूँ.” कहते हुए परवेज़,श्रुति की तरफ कदम बढ़ने लगा.
 

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इज्जत से बात कर.” रोहन उसे रोकते हुए कहा.

“क्यों तुझे क्यों मिर्ची लग रही है?” परवेज़, रोहन की आँखों में झाँकते हुए कहा.

“क्योंकि बाभी है वो तेरी!”

“हाअ…..अब निकला ना मुंह से तेरे सच!! यही बात पहले ढंग से नहीं बता सकता था?”

“क्यों? तू इतना बेक़रार क्यों था जाने के लिए?” अभी परवेज़, रोहन की बात का कुछ जवाब देता उससे पहले श्रुति ने उन दोनों की तरफ घूम कर कहा

“रोहन!! वहां देखो.” श्रुति ने अपनी डायन और कुछ ही दूरी पर बने हुए एक घर की तरफ इशारा किया. रोहन और परवेज़ भी उसी के बताए हुई जगह पर देखने लगे. उन्होंने ने भी देखा की वो एक मंज़िला घर था.

“यह तो किसी का मकान लग रहा है? और वहां पर रोशनी भी है. इसका मतलब वहां जरूर कोई रहता होगा” परवेज़ ने कहा.

“हां….तुम ठीक कह रहे हो. चलो उधर ही चल कर देखते है.” रोहन ने कहा. फिर वह तीनों उसी मकान की और चलने लगे. जब वह मकान के करीब पहुंचे तो उन्होंने पाया की उसका मैं दरवाजा अंदर से लॉक्ड था

“यह तो लॉक्ड है” श्रुति ने कहा.

“अंदर से लॉक है. और घर के अंदर से रोशनी भी आ रही है इसका मतलब अंदर जरूर कोई है.” रोहन ने कहा.

“वो तो है, लेकिन हम अंदर कैसे जाएँगे और उनसे मदद कैसे माँगेंगे.” परवेज़ ने कहा. रोहन ने जवाब में कुछ नहीं कहा. वो आगे तरफ कर दरवाजा को ज़ोर ज़ोर हिलाने लगा शायद उसके हिलने की आवाज़ से अंदर जो भी है बाहर की और आ जाए.
“अंदर कोई है?” दरवाजा को हिलाने के बाद भी कोई बाहर की और नहीं आया तो रोहन आवाजें देने लगा.

“कमाल है कोई बाहर झाँकने को तैयार ही नहीं है.” परवेज़ ने कहा.

“अब क्या करेंगे?” श्रुति ने कहा.

“करना क्या है अब इस दरवाजा के उप्पर से कूद कर जाना पड़ेगा.” रोहन ने कहा.

“लेकिन यह ठीक रहेगा? ई मीन किसी के घर में इस तरह से घूसना ठीक नहीं लगता मुझे.” श्रुति ने कहा. रोहन उसकी बात पर थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा.

“तुम भी कमाल करती हो शूति,यहां हमारी जान पर बन आई है और तुम हो की……” रोहन पूरी बात बोले बिना ही दरवाजा पर चढ़ने लगा. दरवाजा पर चढ़ने के बाद वो दरवाजा के दूसरी तरफ से उतरने लगा. फिर जब वो दरवाजा के उस पार पहुंच गया तो उसने श्रुति से कहने लगा.

“चलो तुम भी इधर आ जाओ जैसे में इधर आया.” रोहन, श्रुति की तरफ देख कर कहा. फिर पहले श्रुति दरवाजा के उप्पर चढ़ के उस तरफ गयी फिर उसके परवेज़ ने भी वैसा ही किया.


“आओ चलो अंदर चल कर देखते है.” फिर वो परवेज़ की तरफ घूम कर कहा. “ज़रा होशियार रहना अंदर कुछ भी हो सकता है.” परवेज़ ने जवाब अपनी गर्दन हिलाकर अपनी सहमति जताई. श्रुति थोड़ा घबराई हुई थी इसलिए उसने रोहन का बायन हाथ पकड़ कर चल रही थी. परवेज़ भी यह सब देख रहा था की कैसे यह लड़की रोहन से चिपक कर चल रही है. उसे बड़ी हैरत हो रही थी की यह कैसे हो गया रोहन एक लड़की से प्यार करने लगा, क्योंकि वो लड़की के ज़ात से ही नफरत करता था. लेकिन उसने सोचा की यह वक्त इन बातों के सोचने का नहीं है. वो किसी और वक्त रोहन से इस बारे में पुच्छ लेगा की आख़िर उसका पत्थर जैसा दिल कैसे पिघल गया.

उन तीनों ने देखा की उस घर का दरवाजा भी अंदर से लॉक्ड था. काफी खटकटने के बावजूद भी उधर से कोई जवाब नहीं आया .

“अगर यह दरवाजा अंदर से बंद है तो जरूर अंदर कोई होगा, लेकिन कोई खोलता क्यों नहीं दरवाजा.” रोहन ने कहा.

“हो सकता है कोई सो रहा हो.” श्रुति ने कहा.

“अब ऐसी कैसी नींद की इतना दरवाजा पीटने पर भी ना खुले.” परवेज़ ने कहा.

“मुझे तो कुछ गड़बड़ लगती है. ” कहते हुए रोहन उस घर के चारों तरफ घूम कर देखने लगा की तभी उसे एक खिड़की खुली हुई मिल
“परवेज़, श्रुति !! अंदर जाने का रास्ता मिल गया. ” दोनों को खिड़की का रास्ता दिखाते हुए रोहन उस खिड़की से अंदर जाने की
कोशिश करने लगा. फिर उसका देखा देखी वो दोनों भी अंदर घुस गये. जब वह तीनों उस अंदर पहुंचे तो उन्होंने पाया
की वो एक बड़ा सा हॉल था जो तकरीबन खाली खाली सा था. फर्नीचर वगैरह कुछ भी नहीं था. उन्हें थोड़ा अजीब लग
रहा था. फिर रोहन ने एक सीधी की तरफ इशारा करते हुए कहा

“उधर देखो! वहां ऊपर के किसी कमरे से रोशनी आ रही है. चलो चल कर देखते है.” फिर वह तीनों उस सीढ़ियों से
चढ़ कर उस कमरे के करीब पहुंचे जहां से रोशनी आ रही थी. उन्हें थोड़ा डर भी लग रहा था उस जगह को देख कर
फिर भी रोहन उस कमरे के दरवाजे का करीब पहुंच कर उसे खोलने की कोशिश करने लगा. लेकिन उसे ज्यादा कोशिश नहीं
करनी पढ़ी क्योंकि वो दरवाजा पहले से ही खुला हुआ था. फिर वह तीनों कदम संभाल संभाल कर अंदर जाने
लगे. लेकिन जब उन्होंने उस कमरे का पूरे दृश्या देखा तो उन्हें एक ज़ोर का झटका लगा. क्योंकि वो एक….
 

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लॅबोरेटरी थी. उन्हें
अच्ंभा होने लगा की इस वीरने जंगल में यह लॅबोरेटरी किसने खोल कर रखी हुई है.

“यह क्या है?? लॅबोरेटरी?? वो भी इस वीरने जंगल में?” कहते हुए श्रुति लॅबोरेटरी के चारों और देखने लगी.

“मेरी भी समझ में नहीं आ रहा की यह क्या माजरा है.” रोहन ने कहा.

“रोहन!! उधर देख वहां क्या है.” परवेज़ ने कहा.रोहन, परवेज़ की दिखाई हुई दिशा में देखने लगा तो जैसे उसे 100 वॉल्ट
का बिजली का झटका लगा हुआ हो.

“यह तो….यह तो …..बंदर है.” रोहन उस बंदर के पिंजरे के करीब जाते हुए कहा.

“ओह अब में समझी!! इस लॅबोरेटरी में इस बंदर पर जरूर कोई एक्सपेरिमेंट किया जा रहा होगा.” श्रुति ने कहा.

“और शायद वह सब खूनकर दरिंदे इसी एक्सपेरिमेंट का नतीजा है.” रोहन ने कहा.

“हां…ऐसा ही है…तभी में बोलू की यह किस प्रकार के जानवर है जो दिखने में तो बंदर जैसे है पर इतने खूनकर क्यों है.” परवेज़ ने कहा..


“क्या किया गया होगा इस बंदर के साथ जो यह इतना खूनकर हो गया.” श्रुति उस बंदर के पिंजरे के पास जाते हुए कहा जिसके अंदर वो बंदर एक दम से बेसुध पढ़ा हुआ था. श्रुति जिज्ञासा के मारे उस पिंजरे के करीब जाकर उस बंदर का निरक्षण करने लगी की तभी वो बंदर एक दम से एक अजीब सी आवाज़ निकालता हुआ उसी पिंजरे के अंदर से श्रुति को काट खाने लिए झपटा. श्रुति एक दम से चीख मार्टी हुई पीछे हटी और रोहन से जाकर चिपक गयी. रोहन भी उस बंदर के पास जाकर देखा की इसे अचानक क्या हुआ था. लेकिन वो बंदर थोड़ी देर तक तड़प्ता रहा फिर शांत हो गया.
“यह क्या माजरा है? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. कौन इन बंदरों पर इतना बुरा एक्सपेरिमेंट कर रहा है जिसकी वजह से यह लोग की यह हालत हो गयी है.” परवेज़ ने कहा. इससे पहले की रोहन कुछ और कहता अचानक उन्हें लब के बाहर से किसी के कदमों की आवाज़ आने लगी. कदमों की आवाज़ सुनकर वह तीनों पहले थोड़ा चौंके फिर एक कोने में जाकर छिप गये. फिर लब में कोई प्रवेश हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी के भाव साफ समझ में आ रहे थे. ऐसा लग रहा था मानो उस पर कितना बड़ा पहाड़ टूट पढ़ा हो. रोहन उस व्यक्ति को देख रहा था की वो उस बंदर के पिंजरे के पास जाकर कुछ मुयएना कर रहा था. फिर कुछ देर बाद उसने पास में रखी हुई एक सरिंज निकाली और फिर उसमें कुछ भरने लगा. फिर उसके बाद वही सरिंज उसने उस बेसुध से पढ़े हुए बंदर को लगाया. उसके कुछ ही पलों बाद वो बंदर एक बार फिर से झपट्टा मारा और उस पिंजरे में इधर उधर तड़प्ता रहा और फिर खामोश हो गया. वो अपनी तसल्ली के लिए एक डंडे से उस बंदर को हिलाने दुलाने लगा. वो यह तय करना चाहता था की उसके अंदर जो दवा उसने डाली है उसका क्या असर हुआ है उस बंदर पर .. उस व्यक्ति के द्वारा जब उस बंदर को हिलाने दुलाने के बाद वो बंदर नहीं हिला तो वो समझ गया की इस बंदर पर वो जो प्रयोग करना चाहता था वो उसमें वो सफल हो गया है. फिर उसके बाद उस व्यक्ति के चेहरे पर एक इत्मीनान सा आ गया मानो उसे ऐसा लग रहा हो जैसे उसके सर पर रखा हुआ भोजा हाथ गया हो. रोहन, परवेज़ और श्रुति यह सब नज़ारा देख रहे थे और समझने की कोशिश कर रहे थे की यह व्यक्ति क्या कर रहा था उस बंदर के साथ और क्यों कर रहा था. लेकिन उनकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था इसलिए रोहन अपनी जगह से खड़ा हुआ और सीधा जाकर उस व्यक्ति को जो अब कुर्सी पर इत्मीनान से बैठा हुआ था एक जोरदार मारी की वो कुर्सी समेट दूर जा गिरा. उस व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया की अचानक यह क्या हुआ. वो पलट कर अपने हमलवार को देखा जो एक बार फिर से उसकी तुकाई करने के लिए तैयार था.
“के..सीसी…कौन हो तुम? “ उसने कहा.
“पहले तू बता मादरचोड़….तू कौन है और इन बंदरों के साथ तू क्या कर रहा है?” कहते हुए रोहन फिर एक जोरदार लात उसकी पिच्छवाड़े पर मारा. वो व्यक्ति रोहन के इस वार से एक दम भॉकला गया.
“त..तुम….कहा से आ आए हो और तुम्हें क्या चाहिए?”
“आबे भोसड़ी के मुझसे सवाल बाद में पूछना पहले यह बता तू कौन है और इस वीरने जंगल में यह सब क्या कर रहा है?” रोहन उसकी बात का जवाब ना देते हुए अब उसके कॉलर से उसको पकड़ते हुए कहा. अब इतनी देर में श्रुति और परवेज़ भी उसके करीब आ चुके थे.
“बब्ब…बताता हूँ…..मेरा नाम……विक्रम है. में एक साइंटिस्ट हूँ और यहां पर में एक केमिकल का टॉक्सिकॉलजी टेस्ट कर रहा था. जिसके लिए मैंने इन बंदरों को छूना था अपने एक्सपेरिमेंट के लिए…..”
“क्या कर रहा था में समझा नहीं?” परवेज़, विक्रम की बात काटते हुए कहा.
“परवेज़ भाई इसका मतलब है की यह जिस केमिकल का टेस्ट कर रहा उसका क्या असर रहता है इसके लिए इसने इन….
 

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बंदरों को छूना था अपने एक्सपेरिमेंट के लिए.” श्रुति, परवेज़ को समझते हुए कहा.
“वो तो ठीक है. लेकिन तेरे इस एक्सपेरिमेंट से इन बंदरों पर क्या असर पढ़ा है. यह इतने खूनकर क्यों हो गये?” रोहन, विक्रम की और देखते हुए कहा.
“दरसा यह मेरे दो सहायक थे उनकी गलती से हुआ था. उन्होंने शराब के नशे में एक बंदर पर उस केमिकल का ओवेरडोज़े टेस्ट कर लिया था. जिसकी वजह से उस बंदर पर केमिकल रिएक्शन हुआ और वो खूनकर हो गया.” विक्रम ने कहा.
“तुम लोगों ने कितने बंदरों पर यह एक्सपेरिमेंट किया था?” श्रुति ने विक्रम की तरफ देखते हुए कहा.
“सिर्फ़ एक बंदर था उस वक्त.” विक्रम ने जवाब दिया.
“सिर्फ़ एक! लेकिन बाहर तो कई ऐसे बंदर है जिसपर यह एक्सपेरिमेंट किया हुआ लग रहा है. मेरा मतलब है अगर तूने सिर्फ़ एक बंदर पर यह एक्सपेरिमेंट किया था तो यह लोग की तादाद इतनी कैसे हो गयी?” रोहन ने कहा.
“वाइरस! वाइरस की वजह से. मेरे कहने का मतलब है जो केमिकल रिएक्शन उस बंदर पर हुआ था उसने वही चीज़ अपने साथी बंदर को दे दी और उसके साथी बंदर ने दूसरों को. और इसी तरह एक बंदर दूसरे बंदर को अपनी तरह खूनकर बनाते गये.”
“लेकिन मेरी समझ में यह नहीं आया की यह बीमारी सिर्फ़ बंदरों में क्यों ट्रांसफर हो रही है……इंसानो में या कोई दूसरे जानवर में क्यों नहीं हुई?” इस बार परवेज़ ने कहा.
“वो इसलिए की…उस केमिकल रिएक्शन की वजह से वह सारे बंदर इतने खूनकर हो जाते है और फिर उन्हें हर वक्त खून और माँस की तलाश रहती है. वह अपनी बिरादरी को तो कुछ नहीं करते है लेकिन जैसे ही उन्हें उनकी बिरादरी से कोई बाहर वाला दिखता है तो वो झपट पढ़ते है उसपर और तब तक उस पर झपते रहते है जब तक उसके जिस्म से माँस का एक एक टुकड़ा ना कहा ले. तो ऐसी सूरत में जब कोई बंदरों के अलावा ज़िंदा ही नहीं बचेगा तो वो वाइरस कैसे दूसरों में पहुंचेगा.” इतना कहते हुए विक्रम खामोश हो गया. फिर रोहन, विक्रम का गला पकड़ते हुए कहता है.
“लेकिन तुझे इस जंगल में यह एक्सपेरिमेंट करने की क्या जरूरत पढ़ गयी?” जब थोड़ी देर तक विक्रम, रोहन की बात का कोई जवाब नहीं दिया तो रोहन ने एक तमंचा उसके गाल पे खींच के मारा. रोहन का जोरदार हाथ पढ़ते ही विक्रम बिलबिला उठा और कहने लगा.
“ववओो….में गैर कानोनी तरीके से यह सब एक्सपेरिमेंट करता हूँ और फिर उन्हें ब्लैक मार्केट में बेच देता हूँ. और इसके लिए मुझे ऐसी ही एकांत जगह चाहिए थी.”
“साले मादरचोड़!! तेरे इस एक्सपेरिमेंट की वजह हम सब की मां बहन हुई वो अलग और ना जाने कितनों की जान चली गयी बहनचोद!!!”
“हां बहनचोद बोल!! क्यों किया तूने ऐसा?” इस बार श्रुति ने कहा. रोहन और परवेज़ हैरत से श्रुति की तरफ देखने लगे.
“ययएएः….क्या बक रही हो?” रोहन, श्रुति की तरफ देखते हुए कहा.
“क्यों गाली सिर्फ़ तुम ही बक सकते हो में नहीं?” श्रुति भी जवाब देते हुए कहा.
“अरे लेकिन….तुम पर अच्छा नहीं लगता है.”
“तो तुम्हारे ऊपर भी अच्छा नहीं लगता है. जब तक तुम गाली देना बंद नहीं करोगे में भी तुम्हारी तरह यूँही गालियाँ देती रहूंगी. तभी तुम्हें एहसास होगा जब तुम गालियाँ बकते हो तो मुझे कितना बुरा लगता है.”
“अच्छा अच्छा ठीक है. नहीं देता में गाल्यान, लेकिन आज के बाद तुम यह सब नहीं कहोगी.”
“वाह बेटा वाह!! इतनी जल्दी पलटी कहा गया. मेरे मना करने पर तो आज तक यह आदत छ्छूती नहीं और आज इनकी एक आवाज़ पर तूने मिंटो में गाली देना छोड दिया.” परवेज़ तंज़ करता हुआ बोला. परवेज़ की बात सुनकर श्रुति थोड़ा सा खिलखिला कर हँसने लगी.
“अच्छा ठीक है . यह वक्त इन बातों का नहीं है. पहले ज़रा हम इस नमूने से तो निपट ले.” रोहन ने कहा.. फिर रोहन विक्रम की तरफ देख कर कहा.
“अब यह बता की जो बीमारी तूने इन जानवरो में फेलाइ है इसका कोई तोड़ है?”
“हां..हां…मैंने अभी अभी एक आंटिडोट तैयार किया है. और अभी मैंने जो इंजेक्शन इस बंदर को दिया है यह वही आंटिडोट है. जिसके कारण यह अपनी पुरानी अवस्था में आ गया है.” विक्रम ने पिंजरे की तरफ इशारा करते हुए कहा जिसमें वो बंदर एक दम बेसुध पढ़ा हुआ गहरी गहरी साँसें ले रहा था.


“अरे वाह!! यह तो बहुत बढ़िया हो गया!! अब हम आसानी से इन दरिंदो को मर कर इस जंगल से निकल सकते है.” परवेज़ ने कहा.
“वो तो ठीक है. लेकिन हम इतने सारे दरिंदो को एक साथ इंजेक्शन तो नहीं दे सकते ना.” रोहन ने कहा.
“हां यार! बात तो तेरी ठीक है. मैंने तो इस बारे में सोचा ही नहीं. अब हम क्या करे?” परवेज़ ने कहा.
“हम एक काम कर सकते है. हम इसे यहां के फोरेस्ट ऑफिसर के हवाले कर देंगे. फिर जब उन्हें इन बंदारो के बारे में मालूम पड़ेगा तो वह कुछ ना कुछ इसका हाल जरूर निकालेंगे.” श्रुति ने कहा.
“यह नहीं हो सकता क्योंकि हम दोनों फोरेस्ट ऑफिसर्स के सामने नहीं जा सकते, इसमें खतरा है.” परवेज़, श्रुति की तरफ देखते हुए कहा.
“परवेज़ ठीक कह रहा….
 

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है. हमें कुछ और सोचना होगा.” रोहन ने कहा
उन तीनों को बातें करता हुआ देख विक्रम कुछ सोचने लगा और फिर कहने लगा.
“अगर आप लोगों को इस जंगल से निकलना है तो में इसमें आप लोगों की मदद कर सकता हूँ.”
“वो कैसे?” रोहन ने कहा.
“स्टोर रूम में तीन या चार ट्रांक्विललाइज़र गन्स होगी. अगर हम उसके डार्ट्स के अंदर यह आंटिडोट भर देंगे तो शायद हम उनका मुकाबला आसानी से कर सकते है.” विक्रम जवाब में कहा.
“हम” से तुम्हारा क्या मतलब? क्या तुम भी हमारे साथ आना चाहते हो?” श्रुति ने विक्रम की तरफ देखते हुए कहा.
“हां.हां….बिलकुल…मुझे भी यहां से जल्द से जल्द निकलना है. क्योंकि अगर में यहां रहा तो में बेमौत मारा जाऊंगा.” विक्रम ने कहा.
“क्यों? इसके बारे में तुम्हें पहले ख्याल नहीं आया था जब तुम इन जानवरों पर अपना एक्सपेरिमेंट कर रहे थे?” श्रुति ने थोड़ा व्यंग करते हुए कहा.
“देखो में मानता हूँ की मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था. में अपने किए पर शर्मिंदा भी हूँ.” फिर विक्रम थोड़ा रुक कर फिर कहने लगा. ” लेकिन अगर आप लोग मुझे अपने साथ लेकर चलते है तो इसमें आप लोगों का भी भला होगा.”
“इसमें भला हमारा क्या भला है भाई?” परवेज़ ने कहा.
“देखो इन बंदारो में जो बीमारी है इसके बारे में सिर्फ़ मुझे पता है, तो यह संभव है की इसका तोड़ भी मेरे पास है. अगर में आप लोगों के साथ में रहूँगा तो उन सब से निपटने में आप लोगों की सहायता भी कर सकूँगा.” विक्रम ने कहा.
“हां परवेज़!! यह ठीक कह रहा है. इसका हमारा साथ में रहना जरूरी है.” रोहन ने कहा.
“लेकिन रोहन यह गलत है. यह आदमी ना जाने कितने मासूमों का हत्यारा है. इसने जो कांड किया है उसके लिए इसे सजा मिलनी चाहिए.” श्रुति ने कहा.
“श्रुति जी!!! वो सब ठीक है. अगर हम इसे सजा दिलवाने जाएँगे तो हमें भी लेने के देने पढ़ जाएँगे. हमें इस वक्त बस इस जंगल से निकालने के बारे में सोचना चाहिए.” परवेज़ ने कहा.
“ठीक है परवेज़ भाई अगर तुम्हारी बात मान भी लेते है तो भी प्रॉब्लम्स खत्म नहीं होगी क्योंकि इस आदमी के अनुसार जिन बंदारो में यह वाइरस होता है वो एक दूसरे में शामिल करते है. अगर उनका कोई तोड़ नहीं ढूंढ़ा गया तो यह दरिंदे अभी फिलहाल इस जंगल में है, अगर इनकी आबादी तरफ जाएगी तो यह शहरो में भी अपना आतंक मचा देंगे. और हो सकता है और भी कई सारी मासूमू की जाने चली जाए. इन दरिंदो को आतंक मचाने से अगर कोई रोक सकता है तो इस वक्त हम ही है. तो प्लीज़ मेरी मानो तो इसे यहां के अतॉरिटी के हवाले कर दो इसी में सब की भलाई रहेगी.” श्रुति ने कहा.
“अरे लेकिन अगर………” परवेज़ कुछ और कहता रोहन उसे चुप करता हुआ बोला.
“श्रुति ठीक कह रही परवेज़!! हम इतने सारे मासूमों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते. हमें इस कुत्ते को फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले करना पड़ेगा.” फिर परवेज़, रोहन घसीटता हुआ एक कोने में ले गया और धीमे धीमे कहने लगा.
“आबे तेरा दिमाग खराब हो गया है? फोरेस्ट ऑफिसर्स के पास जाएगा तो जानता है ना क्या होगा?”
“हां जानता हूँ, वह हमें गिरफ्तार कर लेंगे. यही ना? तो ठीक है. एक काम करते तू श्रुति को अपने साथ इस जंगल से बाहर ले जा और में इस कमीने को फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले कर देता हूँ. बाद में अगर वह लोग मुझे गिरफ्तार करेंगे तो कार्नो दो.”
“आबे तू पागल…..”
“बस मुझे जो कहना है मैंने कह दिया. अब जैसे में कह रहा हूँ तू वैसा कर” कहते हुए रोहन, श्रुति की तरफ बढ़ने लगा.
“श्रुति तुम एक काम करो तुम परवेज़ के साथ चली जाओ में इसे अकेला ही फोरेस्ट ऑफिसर्स के हवाले कर देता हूँ.” रोहन, श्रुति के तरफ देख कर कहा.
“अकेले…? में कुछ समझी नहीं?” श्रुति ने कहा.
“अब इसमें समझना क्या है. परवेज़ तुम्हें यहां से हिफ़ाज़त से बाहर निकाल ले जाएगा.” रोहन ने कहा.
“नहीं रोहन तुम जानते हो में ऐसा नहीं कर सकती. में भी तुम्हारे साथ चलूंगी.”
“यह नहीं हो सकता श्रुति, अगर हम दोनों वहां गये तो हम दोनों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. इसलिए कह रहा हूँ प्लीज़ इसके साथ में चली जाओ.”
“अगर परवेज़ भाई जाना चाहते है तो वह जा सकते है लेकिन में तुम्हारे साथ ही जाओंगी. और अगर तुम और ज़बरदस्ती करोगे तो में इसी वक्त बाहर चली जाओंगी, फिर चाहे वह दरिंदे मुझे मर डाले या कुछ भी कर डाले.” श्रुति ने कहा.
“श्रुति जी ठीक कह रही है रोहन…तू क्या समझता है मुझे बचाने के लिए तू अकेला जाकर गिरफ्तार हो जाएगा तो क्या मुझे अच्छा लगेगा. आबे दोस्त हूँ में तेरा……तो हर हाल में दोस्ती निभाओंगा अगर गिरफ्तार होना ही है तो हम दोनों गिरफ्तार होंगे. तू अकेला क़ुर्बानी क्यों देगा.” परवेज़ ने कहा. रोहन के पास कहने के लिए अब कुछ भी नहीं बच्चा था. उसे उन दोनों की बात माननी ही पढ़ी.
“ठीक है ठीक है…ज्यादा जज़्बाती मत बन.. चल मेरे साथ. लेकिन हम यहां से जाएँगे कैसे? हमें तो पता भी नहीं है की फोरेस्ट ऑफिसर्स वालो का…
 

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हेडक्वॉर्टर्स कहा होगा?”
“मुझे पता है.” श्रुति का इतना कहना ही था की वह दोनों हैरत से श्रुति की तरफ देखने लगे जो इस वक्त अपने सामने रखे हुए टेबल पर कुछ पेपर्स को पढ़ रही थी..
“तुम्हें पता है? पर कैसे? हम दोनों को नहीं पता और तुम्हें कैसे पता चल गया.?” रोहन हैरत से कहा.
“इस नक्शे की वजह से” श्रुति उन पेपर्स में से कुछ उठाते हुए दिखाई जो एक नक्शा था.
“नक्शा? यह कैसा नक्शा है?” रोहन हैरत से श्रुति के हाथ में नक्शे को देखते हुए कहा.
“यह इस नेशनल पार्क का पूरा नक्शा है. कौनसा रास्ता किस तरफ जाएगा इसके बारे में पूरी इन्फार्मेशन दी हुई है इसमें.”
“रोहन यह तो बहुत अच्छा हुआ अब आसनई से यहां से निकल सकते है. वैसे हम इस वक्त किधर है श्रुति जी?” परवेज़ ने कहा. शरइत ने नक्शे में किसी एक तरफ उंगली रखकर बताया.
“चलो इस नमूने ने कुछ तो अच्छा काम किया है.” परवेज़ ने कहा.
“अब हमें और देर नहीं करना चाहिए और फौरन फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर जाना चाहिए. जितनी जल्दी हो सके हमें इस आफत को रोकना होगा.” रोहन, श्रुति से वो नक्शा अपने हाथ में लिया और बारे गौर से फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर के जाने का रास्ता समझने लगा.


इधर फोरेस्ट डिपार्टमेंट के हेडक्वॉर्टर में…
“विजय जी!! आप घबराए नहीं आपकी बेटी के बारे में जल्द ही हमें कुछ ना कुछ खबर जरूर मिल जाएगी.मैंने अपने कुछ ऑफिसर्स को श्रुति और उसके दोस्तों की तलाश के लिए भेजा है” उमेश ने कहा.
“ज़रा जल्दी करिए उमेश जी!! आप तो जानते है जंगल में कितने खूनकर जानवर घूम रहे है. कही मेरी श्रुति को कुछ हो ना जाए.” विजय से पहले सौंदर्या ने रोते हुए उमेश से कहा.
“देखिए मैडम हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे है आप लोग……” अभी वो कुछ और कहते की इतने में उसके केबिन में कोई जूनियर ऑफिसर आकर कहने लगा.
“सर! अभी एक लड़की मिली है. जिसकी हालत इस वक्त बहुत नाज़ुक है और वो बहुत बुरी तरह से जख्मी भी है. हमें जो गुमशुदा बच्चों की रिपोर्ट मिली है यह उन्हीं में से एक लग रही है क्योंकि यह अपना नाम छाया बता रही है.” इतना सुनना था की एक तरफ खड़े छाया के मां बाप चौंक गये और झट से उस ऑफिसर की तरफ बढ़ने लगे.
“कहा है हमारी बच्ची!! हम….हम उसके पेरेंट्स है….प्लीज़ जल्दी से हमें उससे मिलवओ..” इतनी देर उमेश भी उन दोनों के पास आ गया और उस ऑफिसर से कहने लगा.
“इस वक्त वो लड़की किधर है?” उमेश ने कहा
“सर! यही सर उसका ट्रीटमेंट चल रहा है.” उस ऑफिसर ने जवाब दिया.
“ओके चलो देखते है उसे!! आप लोग भी आइये मेरे साथ.” उमेश उन सारे पेरेंट्स से कहता हुआ उधर चला गया जहां छाया का उपचार चल रहा था.
छाया जो इस वक्त एक दम बेहाल हुई थी. जगह जगह से उसके कपड़े पाते हुए थे और उन पाते हुई जगह से उसके गहरे गहरे जख्म साफ नज़र आ रहे थे. दूर से देखने में मालूम पढ़ रहा था की उसपर कितना अत्याचार हुआ होगा.डॉक्टर्स और नर्स उसका जल्दी से उपचार करने लगे. अभी उसकी सारी ड्रेसिंग अभी पूरी हुई थी की उस कमरे में यकायक ढेर सारे लोग प्रवेश कर गये. पहले उमेश आया फिर उसके पीछे पीछे छाया के मां बाप. और आते ही वह छाया से गले लग रख रोते रहे. फिर काफी देर वो भावक शान खत्म हुआ तो उमेश ने छाया से सवाल पूछने लगा.
“छाया? अब तुम कैसा फील कर रही हो?”
“पहले से बेहतर.” छाया ने जवाब दिया
“अच्छा छाया तुम्हारे दोस्त कहा है इस वक्त?” उमेश ने कहा. उमेश का इतना कहना था की छाया फिर से फूट फूट कर रोने लगी.
“क्या हुआ छाया बेटी तुम कुछ बोलती क्यों नहीं? कहा है मेरा बेटा निखिल?” संजीव सान्याल जो निखिल के पिता थे काफी देर से चुप बैठे हुआ था. छाया को रोता देख कर उससे पूछने लगे.
“अंकल…..निखिल इस नो मोर .” रोते रोते छाया ने बताया. इतना सुनना था की संजीव ज़ोर ज़ोर से रोने लगा. और इतना सुनना था की बाकी के और पेरेंट्स भी घबरा गये और सब एक साथ अपने बच्चों के बारे में छाया से सवाल पूछने लगे. यह देखकर छाया और घबरा गयी. उमेश ने उन्हें बड़ी मुश्किल से रोका और फिर से छाया से पूछने लगा.
“छाया? क्या तुम हमें पूरी बात बनाएगी की तुम यहां कैसे पहुँची? क्योंकि तुम लोग का प्लान तो नैनीताल जाने का था तो यहां कैसे तुम सब लोग पहुंच गये?”
“वो दो गुंडों की वजह से.” छाया ने रोते हुए कहा.
“गुंडे? कौन गुंडे और इस वक्त कहा है?” उमेश थोड़ा हैरत से पूछा.
“मुझे नहीं पता वह दोनों इस वक्त कहा है. वह बस हमें अपने साथ में बंदी बनाकर यहां लाए थे और फिर हमें अकेला छोड कर चले गये थे.”
“एक काम करो छाया तुम हमें शुरू से सारी बताओ की तुम्हारे साथ में क्या क्या हुआ था और यह गुंडे कौन थे जो तुम्हें और तुम्हारे दोस्त से मिले थे.” उमेश ने कहा. फिर उसके बाद छाया ने सारी बात बता दी ढाबे से लेकर और नेशनल पार्क….
 
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