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(UPDATE-84)
में श्रुति के अंदर का वो नदी का पानी एक बार उस बाँध को भेदता हुआ बाहर निकालने लगा. वो फिर से गहरी साँसें लेने लगी थी. लेकिन रोहन तो जैसे लगा हुआ था अपनी ड्यूटी पर. जैसे आख़िर मुकाम तक वो लड़कर आएगा. फिर कुछ देर और ऐसे ही श्रुति को छोढ़ते रहने के बाद उसे भी ऐसा लगने लगा के उसके अंदर का लावा अब बाहर आने को आतुर है. बस फिर क्या था रोहन के दो चार शॉट के बाद वो सारे लावे एक साथ इतनी तादाद में निकालने लगे की श्रुति की चुत में उनके लिए जगह नहीं बची और वह बाहर निकालने लगे. इतनी ज्यादा मेहनत करने के बाद रोहन, श्रुति के ऊपर आकर गिर पढ़ा. श्रुति रोहन को अपनी बाज़ुओं के घेरे में ले ली. फिर वो दोनों थोड़ी देर तक प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगे. फिर जब उन्हें ऐसा लगा के उन्हें वापसे एक बार फिर काम क्रीड़ा करना है तो फिर से दोनों सेम रुटीन पर चलने लगे.
विजया और सौंदर्या ने पता लगाया के श्रुति नैनीताल में किस दोस्त के फार्महाउस पर पार्टी एंजाय करने गयी थी. तो उन्हें मालूम पढ़ा की वह सब निखिल की गाड़ी में बैठकर उसके ही फार्महाउस पर गये हुए थे. विजय कपूर ने निखिल के फादर संजीव सान्याल से कॉंटॅक्ट किया.
“संजीव जी!! विजय हियर…”
“हां विजय जी, कहिए?” संजीव एक दम हारे हुए सिपाही की तरह कहा. विजय को संजीव की आवाज़ में दुख साफ नज़र आ रहा था.
“सांजेव जी आपको तो पता ही हमारे बच्चे जो नैनीताल गये हुए थे और उनका अभी तक कोई भी पता नहीं है. में उसी सिलसिले में फोन किया है.”
“में समझ गया था विजय जी जब आपका फोन आया तो. इसमें कहने वाली कौनसी बात है. क्योंकि यह मामला गंभीर है ही इतना की कोई भी बाप इस समय परेशान होगा.”
“शुक्रिया संजीव जी मेरी परेशानी समझ ने के लिए.”
“अरे कैसी बातें कर रहे है..मुझे पता है आप इस वक्त कितने परेशान होंगे क्योंकि में भी उसी दौड़ से गुजर रहा हूँ. मेरा बेटा भी तो लापता है.”
“जी!….संजीव जी में यही कहना चाह रहा था की आपने कुछ पता लगाया की आपका बेटा निखिल और उसके सारे दोस्त नैनीताल कब पहुंचे थे?”
“यही तो परेशानी वाली बात है विजय जी!! क्योंकि वो लोग जब यहां से नैनीताल के लिए निकले तो वहां पहुंचे ही नहीं है अभी तक. क्योंकि मैंने अपने नैनीताल के फार्महाउस के केर्टेकर से पता लगाया और उसने कहा की निखिल और उसके दोस्त नैनीताल पहुच्छे ही नहीं है.”
“क्या!! वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है…? ऐसे कैसे हो सकता है संजीव जी? मेरी बेटी तो यही बोलकर गयी थी की वो लोग नैनीताल अपने कॉलेज के फेरवेल पार्टी करने जा रहे है. और आप अभी यह शॉकिंग न्यूज दे रहे है की वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है. तो कहा गये हुए होंगे?”
“यही तो समस्या है विजय जी …मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है..मैंने अपने सोर्स से सब पता लगाया लेकिन ंखिल और उस की गाड़ी का जिसमें वह लोग बैठ कर गये थे कुछ भी पता नहीं चला..” संजीव ने बेचारगी से कहा.
“हम…..यह तो बड़ी समस्या हो गयी.. अब तो एक ही चारा है की हमें पुलिस की मदद लेनी होगी. इसलिए में अपने कमिशनर दोस्त की मदद लेता हूँ.”
“यही बढ़िया रहेगा. में भी आपके साथ चलता हूँ …”
“जरूर!! बल्कि में तो कहता हूँ हमें उन सब पेरेंट्स को ले लेना चाहिए जिनके बच्चे हमारे बच्चों के साथ गये हुए थे.”
“सही कहा आपने …में अभी उनसबको खबर करता हूँ.”
फिर कुछ ही देर में विजय कपूर और संजीव सान्याल समेट वो सब पेरेंट्स इस वक्त कमिशनर की ऑफिस में बैठे हुए थे.
“आप घबराए नहीं विजय जी….कुछ नहीं होगा आप सब के बच्चों को..हम उन्हें ढूँढ निका लेंगे.” कमिशनर अतुल चतुर्वेदी ने कहा.
“शुक्रिया अतुल जी….लेकिन आप उन्हें ढूंढ़ेंगे कैसे?” विजय ने कहा.
“वो सब आप हमारे ऊपर छोड दीजिए….” फिर अतुल ने उन सब से रुटीन सवाल पूछना लगा की वह कब घर से निकले थे , कोन से गाड़ी से गये थे और कितने लोग गये थे वगैरह वगैरह….
पूरी बातें सुनाने के बाद अतुल चतुर्वेदी ने कहा.
“आप लोग एक काम करिए पहले अपने अपने बच्चों के मोबाइल नंबर्स और उनके फोटोग्रॅफ्स दीजिए.हम उनके मोबाइल नंबर्स के जरिए उनको ट्रेस करेंगे..फिलहाल आप लोग घर जाए. जैसे ही कुछ पता चलता है में आप लोगों को खबर कर दूँगा.”
घर पहुंचने के बाद विजय और सौंदर्या को जैसे एक पल का भी सुकून नहीं था. वह बेचैनी से यहां वहां टहल रहे थे..उन्हें वेट था अतुल चतुर्वेदी के फोन का की वो कब श्रुति और उसके दोस्तों के मोबाइल नंबर्स ट्रेस करवाता है और उन्हें कब खबर करता है. काफी देर बाद अतुल चतुर्वेदी का फोन विजय कपूर को आता है.
“विजय जी!! हमने तमाम बच्चों का मोबाइल नंबर्स ट्रेस कर लिया है.” यह खबर सुनकर विजय की आँखें चौड़ी हो गयी.
“ओह अच्छा!! जल्दी से बताए कहा है वह लोग इस वक्त?” विजय ने जोश भरे लहज़े में बोला
“इस वक्त वह लोग कहा है इस बारे में तो में अभी…
में श्रुति के अंदर का वो नदी का पानी एक बार उस बाँध को भेदता हुआ बाहर निकालने लगा. वो फिर से गहरी साँसें लेने लगी थी. लेकिन रोहन तो जैसे लगा हुआ था अपनी ड्यूटी पर. जैसे आख़िर मुकाम तक वो लड़कर आएगा. फिर कुछ देर और ऐसे ही श्रुति को छोढ़ते रहने के बाद उसे भी ऐसा लगने लगा के उसके अंदर का लावा अब बाहर आने को आतुर है. बस फिर क्या था रोहन के दो चार शॉट के बाद वो सारे लावे एक साथ इतनी तादाद में निकालने लगे की श्रुति की चुत में उनके लिए जगह नहीं बची और वह बाहर निकालने लगे. इतनी ज्यादा मेहनत करने के बाद रोहन, श्रुति के ऊपर आकर गिर पढ़ा. श्रुति रोहन को अपनी बाज़ुओं के घेरे में ले ली. फिर वो दोनों थोड़ी देर तक प्यार मोहब्बत वाली बातें करने लगे. फिर जब उन्हें ऐसा लगा के उन्हें वापसे एक बार फिर काम क्रीड़ा करना है तो फिर से दोनों सेम रुटीन पर चलने लगे.
विजया और सौंदर्या ने पता लगाया के श्रुति नैनीताल में किस दोस्त के फार्महाउस पर पार्टी एंजाय करने गयी थी. तो उन्हें मालूम पढ़ा की वह सब निखिल की गाड़ी में बैठकर उसके ही फार्महाउस पर गये हुए थे. विजय कपूर ने निखिल के फादर संजीव सान्याल से कॉंटॅक्ट किया.
“संजीव जी!! विजय हियर…”
“हां विजय जी, कहिए?” संजीव एक दम हारे हुए सिपाही की तरह कहा. विजय को संजीव की आवाज़ में दुख साफ नज़र आ रहा था.
“सांजेव जी आपको तो पता ही हमारे बच्चे जो नैनीताल गये हुए थे और उनका अभी तक कोई भी पता नहीं है. में उसी सिलसिले में फोन किया है.”
“में समझ गया था विजय जी जब आपका फोन आया तो. इसमें कहने वाली कौनसी बात है. क्योंकि यह मामला गंभीर है ही इतना की कोई भी बाप इस समय परेशान होगा.”
“शुक्रिया संजीव जी मेरी परेशानी समझ ने के लिए.”
“अरे कैसी बातें कर रहे है..मुझे पता है आप इस वक्त कितने परेशान होंगे क्योंकि में भी उसी दौड़ से गुजर रहा हूँ. मेरा बेटा भी तो लापता है.”
“जी!….संजीव जी में यही कहना चाह रहा था की आपने कुछ पता लगाया की आपका बेटा निखिल और उसके सारे दोस्त नैनीताल कब पहुंचे थे?”
“यही तो परेशानी वाली बात है विजय जी!! क्योंकि वो लोग जब यहां से नैनीताल के लिए निकले तो वहां पहुंचे ही नहीं है अभी तक. क्योंकि मैंने अपने नैनीताल के फार्महाउस के केर्टेकर से पता लगाया और उसने कहा की निखिल और उसके दोस्त नैनीताल पहुच्छे ही नहीं है.”
“क्या!! वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है…? ऐसे कैसे हो सकता है संजीव जी? मेरी बेटी तो यही बोलकर गयी थी की वो लोग नैनीताल अपने कॉलेज के फेरवेल पार्टी करने जा रहे है. और आप अभी यह शॉकिंग न्यूज दे रहे है की वह लोग नैनीताल पहुंचे ही नहीं है. तो कहा गये हुए होंगे?”
“यही तो समस्या है विजय जी …मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है..मैंने अपने सोर्स से सब पता लगाया लेकिन ंखिल और उस की गाड़ी का जिसमें वह लोग बैठ कर गये थे कुछ भी पता नहीं चला..” संजीव ने बेचारगी से कहा.
“हम…..यह तो बड़ी समस्या हो गयी.. अब तो एक ही चारा है की हमें पुलिस की मदद लेनी होगी. इसलिए में अपने कमिशनर दोस्त की मदद लेता हूँ.”
“यही बढ़िया रहेगा. में भी आपके साथ चलता हूँ …”
“जरूर!! बल्कि में तो कहता हूँ हमें उन सब पेरेंट्स को ले लेना चाहिए जिनके बच्चे हमारे बच्चों के साथ गये हुए थे.”
“सही कहा आपने …में अभी उनसबको खबर करता हूँ.”
फिर कुछ ही देर में विजय कपूर और संजीव सान्याल समेट वो सब पेरेंट्स इस वक्त कमिशनर की ऑफिस में बैठे हुए थे.
“आप घबराए नहीं विजय जी….कुछ नहीं होगा आप सब के बच्चों को..हम उन्हें ढूँढ निका लेंगे.” कमिशनर अतुल चतुर्वेदी ने कहा.
“शुक्रिया अतुल जी….लेकिन आप उन्हें ढूंढ़ेंगे कैसे?” विजय ने कहा.
“वो सब आप हमारे ऊपर छोड दीजिए….” फिर अतुल ने उन सब से रुटीन सवाल पूछना लगा की वह कब घर से निकले थे , कोन से गाड़ी से गये थे और कितने लोग गये थे वगैरह वगैरह….
पूरी बातें सुनाने के बाद अतुल चतुर्वेदी ने कहा.
“आप लोग एक काम करिए पहले अपने अपने बच्चों के मोबाइल नंबर्स और उनके फोटोग्रॅफ्स दीजिए.हम उनके मोबाइल नंबर्स के जरिए उनको ट्रेस करेंगे..फिलहाल आप लोग घर जाए. जैसे ही कुछ पता चलता है में आप लोगों को खबर कर दूँगा.”
घर पहुंचने के बाद विजय और सौंदर्या को जैसे एक पल का भी सुकून नहीं था. वह बेचैनी से यहां वहां टहल रहे थे..उन्हें वेट था अतुल चतुर्वेदी के फोन का की वो कब श्रुति और उसके दोस्तों के मोबाइल नंबर्स ट्रेस करवाता है और उन्हें कब खबर करता है. काफी देर बाद अतुल चतुर्वेदी का फोन विजय कपूर को आता है.
“विजय जी!! हमने तमाम बच्चों का मोबाइल नंबर्स ट्रेस कर लिया है.” यह खबर सुनकर विजय की आँखें चौड़ी हो गयी.
“ओह अच्छा!! जल्दी से बताए कहा है वह लोग इस वक्त?” विजय ने जोश भरे लहज़े में बोला
“इस वक्त वह लोग कहा है इस बारे में तो में अभी…