Nice update.....Update - 13इस तरफ से प्रीतो का सिर तो नहीं दिख रहा था किंतु गर्दन से नीचे का भाग ज़रूर दिख रहा था। प्रीतो ने गुलाबी सलवार सूट पहन रखा था। दुपट्टे को उसने अपनी क़मर में बांधा हुआ था। भैंस के पास बैठे होने की वजह से उसके दोनों घुटने मुड़े हुए थे जो सीधा उसकी बड़ी बड़ी छातियों को दबाए जा रहे थे। दबने की वजह से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां कुर्ते के चौड़े गले से बाहर की तरफ कुछ ज़्यादा ही निकली आ रहीं थी। एकाएक ही मोहन की नजर उसके दूध जैसे गोरे गोलों पर पड़ी तो जैसे वहीं चिपका कर रह गई। मोहन के पूरे जिस्म में झुरझूरी होने लगी।
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अब आगे....
"अबे साले आंखें फाड़े क्या देख रहा था तू?" मोहन को ज़बरदस्ती खींच कर मंगू एक तरफ ले जाने के बाद थोड़ा गुस्से में बोला____"अगर उसने देख लिया होता न तो साले तेरी आंखें निकाल लेती वो।"
"क...क्या मतलब बे?" मोहन बुरी तरह हकलाते हुए बोला____"अ...अपन तो कुछ नहीं देख रेला था?"
"बेटा मुझे अपनी तरह चूतिया मत समझ तू।" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"तुझसे ज़्यादा दुनिया देखी है और तुझसे ज़्यादा इंसानों की परख भी है मुझे, समझा? एक बात कान खोल के सुन ले, उस्ताद की बीवी के बारे में ग़लत सोचना भी मत। वरना उस्ताद तो कम पेलेगा तुझे मगर उसकी बीवी तेरी लुल्ली काट के चील कौओं को खिला देगी। अभी तुझे पता नहीं है कि वो कितनी ख़तरनाक है।"
मंगू की बात सुन कर मोहन की फट के हाथ में आ गई। उसका चेहरा देखने लायक हो गया। सहसा उसने मन ही मन सोचा____'बेटीचोद इधर तो सब डेंजर लोग ही रह रेले हैं। लौड़ा अपन अब ये सब देखेगाइच नहीं।'
मोहन को समझा बुझा कर मंगू ने उसे दूध के कनस्तर धोने के लिए भेज दिया और खुद मवेशियों का दूध निकालने में व्यस्त हो गया। मोहन अपने मन में दुनिया भर की बातें सोचते हुए ट्यूब वेल के पास पहुंच गया। अभी उसे आए दस मिनट ही हुए थे कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ तो उसने पलट कर देखा।
नज़र जिस व्यक्ति पर पड़ी उसे देखते ही वो हड़बड़ा सा गया। आंखें आश्चर्य से फटी रह गईं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी आंखें वही देख रही हैं या वो कोई सपना देख रहा है। उसने फ़ौरन ही खुद को चिकोटी काटी तो उसके मुंह से सिसकी निकल गई। मतलब वो सपना नहीं देख रहा था।
मोहन से चार क़दम की दूरी पर कमला की बेटी शालू खड़ी थी। मोहन को देख वो एकाएक ही असहज हो गई थी। घबराहट और शर्म के मारे उसने सिर झुका लिया था। दोनों हाथों को अजीब तरह से आपस में उमेठने लगी थी वो। इधर मोहन को समझ न आया कि कमला की बेटी यहां क्यों आई है? हालाकि उसे यहां देख वो अंदर ही अंदर बड़ा खुश हो गया था और साथ ही उसकी धड़कनें भी तेज़ हो गईं थी।
"त...त तुझे क..कुछ चाहिए क्या?" मोहन ने हकलाते हुए उससे पूछने की हिम्मत की जिस पर शालू ने पहले तो सिर उठा कर एक बार उसकी तरफ देखा और फिर तुरंत ही सिर झुका कर न में सिर को हिलाया।
"अ...अबे अगर तुझे कुछ चाहिए नहीं।" मोहन जो अब तक सहज हो उठा था फ़ौरन ही अपने अंदाज़ में बोल पड़ा____"तो फिर क्यों आयेली है इधर?"
मोहन के पूछने का लहजा सुन शालू और भी घबरा गई। उसने जल्दी से सिर उठा कर मोहन को देखा और फिर उसी घबराहट के साथ कहा____"व...वो मालकिन ने मुझे भेजा है यहां।"
"म...मालकिन ने??" मोहन ने हैरानी से उसकी तरफ देखा____"अबे उसने तुझे यहां क्यों भेजेला है बे?"
"व...वो मुझसे बोली कि मैं यहां बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं।" शालू ने असहजता से कहा____"इसी लिए मैं यहां आई हूं।"
मोहन को उसकी बात पर यकीन न हुआ। उसके लिए ये बड़े ही हैरत की बात थी कि प्रीतो ने कमला की बेटी को उसके पास भेजा ताकि वो दूध के कनस्तर धोने में उसकी मदद करे।
"य...ये क्या कह रेली है तू?" मोहन ने जैसे आश्वस्त होने के लिए पूछा____"अबे कहीं तू झूठ तो नहीं बोल रेली है अपन से?"
"न...न नहीं नहीं।" शालू घबरा कर जल्दी से बोली____"मैं झूठ क्यों बोलूंगी तुमसे? सच में मुझे मालकिन ने यहां भेजा है।"
'बेटीचोद अब ये कौन सा लफड़ा है बे?' मोहन मन ही मन सोचा____'लौड़ा एक लड़की को उस्ताद की बीवी ने अपन के पास भेज दियेला है?'
ये सोचने के बाद सहसा मोहन के मन में जाने क्या आया कि उसके होठों पर मुस्कान उभर आई, फिर सोचा____'अबे अच्छा ही तो है बे। बिरजू गुरु की माल अपन के पास आएली है। बेटीचोद अब अपन इसको हीरो के माफिक पटाएगा। अबे गुरु, तुम्हारी माल को तो लपक लिया अपन ने।"
"त...तो मैं बर्तन धोऊं?" मोहन को ख़ामोश देख शालू ने बड़ी मासूमियत से पूछा जिससे मोहन का ध्यान भंग हो गया और वो सुखद ख़यालों से बाहर आ गया।
"ह...हां हां धो ले।" मोहन ने अपनी खुशी को छुपाते हुए कहा____"जब मालकिन ने ही बोलेला है तो धोनाइच पड़ेगा न तेरे को।"
मोहन की बात सुन शालू ने हल्के से सिर हिलाया और फिर डरते हुए धीरे धीरे उसके क़रीब आई। इधर मोहन की धड़कनें एकाएक ही धाड़ धाड़ कर के बजने लगीं। उसे अभी भी यकीन नहीं हो रहा था कि शालू जैसी कच्ची कली उसके इतने क़रीब है।
"अब देख क्या रेली है?" शालू को चुपचाप खड़े देख मोहन बोल पड़ा____"उधर सामने बैठ जा। अपन कनस्तर की रगड़ाई करता जाएगा और तू उसको पानी से धोते जाने का, समझी ना?"
मोहन की बात सुन शालू ने जल्दी से हां में सिर हिला दिया और फिर आगे बढ़ कर मोहन के सामने जा कर पत्थर में बैठ गई। मोहन की नज़र बार बार उसी पर जा टिकती थी। जैसा कि पहले भी बताया जा चुका है कि शालू कोई हूर की परी नहीं थी किंतु नई जवान लड़की थी और उसकी जवानी के निशान उसके जिस्म पर नज़र भी आ रहे थे इस लिए मोहन जैसे नमूने के लिए वो हूर से कम नहीं थी। शालू के हल्के सांवले बदन पर आसमानी रंग का सलवार सूट था और गले में पतला सा दुपट्टा जिसके अंदर उसकी छातियों के दोनों उभार साफ झलक रहे थे।
मोहन ने जल्दी से एक कनस्तर को रगड़ कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। शालू उसे ले कर साफ पानी से धोने लगी। उसके चेहरे पर अभी भी झिझक, असहजता, घबराहट और शर्म के भाव थे। मोहन ने देखा वो कनस्तर को पानी से धोए जा रही थी। पानी के अधिकतर छींटे उसके अपने कपड़ों पर पड़ रहे थे। सहसा जैसे उसे किसी बात का आभास हुआ तो वो कनस्तर को धोना बंद कर उठी और फिर मोहन की तरफ नज़र डाली। मोहन उसे ही देखे जा रहा था। जैसे ही दोनों की नज़रें मिलीं तो शालू ने झट से अपनी नज़रें नीचे कर ली।
"क्या हुआ?" मोहन उसके यूं उठ जाने से पूछ बैठा____"तुझे बर्तन धोने में अपन की मदद नहीं करनी है क्या?"
"व...वो नहीं मैं।" शालू एकदम से हड़बड़ाते हुए बोली____"वो मैं इस लिए उठी कि इस तरह पानी से धोने की वजह से पानी के छींटे मेरे कपड़ों पर पड़ रहे हैं।"
"हां तो?" मोहन को जैसे समझ न आया___"उसमें क्या है? वो तो अपन के कपड़ों पर भी पड़ रेले हैं।"
मोहन की बात सुन शालू ने कुछ नहीं कहा। उसने झिझकते हुए अपने गले से दुपट्टे को निकाला और फिर उसे अपनी कमर पर लपेट कर बांध लिया। उसकी ये हरकत देख मोहन की आंखें फैल गईं। उधर शालू जो पहले से ही उसके सामने असहज थी वो उसके यूं आंखें फैला कर देखने से और भी असहज हो गई। वो जल्दी से नीचे पत्थर पर बैठ गई और फिर से कनस्तर को धोने लगी।
"अबे तू अपन से डर रेली है क्या?" मोहन ने दूसरे कनस्तर को रगड़ते हुए उससे पूछा तो शालू उसकी तरफ देखने लगी।
"देख तुझे अपन से डरने की कोई ज़रूरत नहीं है।" मोहन ने कहा____"अपन भी तेरे माफिक इंसान है। तू भी इधर काम कर रेली है और अपन भी।"
मोहन की इस बात का शालू ने कोई जवाब नहीं दिया। वो एक नज़र मोहन को देखने के बाद फिर से कनस्तर को धोने में लग गई। उसे कुछ न बोलता देख मोहन जाने क्यों बेचैन सा हो उठा। उसकी धड़कनें काफी तेज़ी से चल रहीं थी। वो शालू से बहुत कुछ कहना चाहता था मगर उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। वो चाहता था कि ये वक्त अब बस यहीं पर ठहर जाए और शालू जैसी मासूम किंतु करारी माल उसकी आंखों के सामने ही रहे। ये कहना भी ग़लत न होगा कि वो चाहता था कि शालू किसी चमत्कार की तरह उसे अपना सब कुछ दे दे।
मोहन कुछ कहने के लिए फिर से मन बनाया और जैसे ही उसकी तरफ देखा तो इस बार उसकी नज़र शालू की छातियों पर अटक सी गई। शालू ने अपना दुपट्टा निकाल कर उसे अपनी कमर में बांध लिया था और अब वो बैठ कर कनस्तर को धोने में लगी थी। उसके घुटने कभी कभी उसकी छातियों पर दब जाते थे जिससे उसकी छातियों के किनारे कुछ ज़्यादा ही उजागर हो जाते थे। कुर्ते का गला ज़्यादा बड़ा तो नहीं था किंतु जितना भी था उससे जो नज़ारा मोहन को नज़र आ जाता था उससे उसकी आंखें फैल गईं थी। सहसा शालू उठ गई तो मोहन का ध्यान भंग हो गया और वो जल्दी से दूसरे कनस्तर की रगड़ाई में लग गया।
उधर शालू उठने के बाद कनस्तर को अब झुके झुके धोने लगी। मोहन ने जैसे ही उसकी तरफ देखा तो इस बार उसकी सांसें ही अटक गईं। झुके होने की वजह से शालू के कुर्ते से उसकी छातियां आधे से ज़्यादा दिखाई देने लगीं थी। कुर्ते के अंदर उसने कुछ नहीं पहना था इस लिए उसके हिलने की वजह से उसके मध्यम आकार के गोले भी हिल रहे थे। मोहन जो कनस्तर की रगड़ाई कर रहा था वो रगड़ना भूल गया और आंखें फाड़े बस शालू के गोलों को ही हिलते देखने लगा। उधर शालू अपनी ही धुन में कनस्तर को धोने में लगी थी। उसे इस बात का ध्यान ही नहीं था कि झुके होने की वजह से उसके नाज़ुक अंग आधे से ज़्यादा दिख रहे हैं जिसके चलते मोहन की नज़रें प्रतिपल फैलती ही जा रहीं हैं।
कुछ ही देर में शालू ने कनस्तर को धो डाला और उसे एक तरफ रख दिया। उसके बाद उसने दूसरे कनस्तर को धोने के लिए मोहन की तरफ देखा तो मोहन को अपनी तरफ आंखें फाड़े देखते पाया। पहले तो उसे समझ न आया कि वो उसे क्यों आंखें फाड़े देखे जा रहा है फिर जब उसने उसकी नज़रों का पीछा किया तो अचानक ही जैसे उसके होश उड़ गए। वो घबरा कर जल्दी से सीधा खड़ी हो गई। उसके खड़े होते ही नज़ारा दिखना बंद हो गया और इसके साथ ही मोहन का ध्यान भी भंग हो गया। मोहन ने हड़बड़ा कर शालू की तरफ देखा तो उसे अपनी तरफ असहजता से घूरते पाया।
"व...वो म..माफ़ करना अपन को।" फिर वो हकलाते हुए बोला____"अपन को पता ही नहीं चला कब अपन की नज़रें तेरे दुधू में चली गईं।"
मोहन की बात सुन शालू बुरी तरह शर्मा गई। उसके चेहरे पर लाज की सुर्खी छाती चली गई और उसने अपनी नज़रें झुका ली। फिर जाने उसे क्या हुआ कि उसने जल्दी से अपने दुपट्टे को कमर से निकाला और उसे अपने सीने में लपेटते हुए बांध सा लिया। ये देख मोहन को बुरा भी लगा और उसे शर्मिंदगी भी हुई मगर वो कर भी क्या सकता था। एकाएक उसके ज़हन में ख़याल उभरा कि वो इतना घबरा क्यों रेला है? उसके यूं देखने से शालू को न तो बुरा लगा और ना ही उसने उस पर गुस्सा कियेला है। मतलब उसे डरने की ज़रूरत नहीं है। ये सोचते ही मोहन मन ही मन खुश हो गया।
मोहन ने जल्दी जल्दी रगड़ कर कनस्तर को मांज दिया और धुलने के लिए उसे शालू की तरफ बढ़ा दिया। शालू उसे ले कर चुपचाप धुलने लगी। इस बार उसके धुलने पर पानी के छींटे भले ही उसके कपड़ों पर पड़ रहे थे लेकिन उसकी छातियां दुपट्टे में ढंकी हुई थी। मोहन को बड़ी निराशा हुई।
"वैसे अपन ने आज पहली बार किसी लड़की का दुधू देखेला है।" फिर उसने कुछ सोच कर शालू को सुनाते हुए कहा____"अपन अपने मरे हुए अम्मा बापू की क़सम खा के बोल रेला है कि तेरे दुधू अपन को बहुत अच्छे लगे।"
"ध....धत्त।" शालू बुरी तरह शर्मा कर एकदम से बोल पड़ी____"य...ये क्या बोल रहे हो तुम? तुम्हें शर्म नहीं आती किसी लड़की के बारे में ऐसा बोलते हुए?"
"लो कर लो बात।" मोहन अपनी ही धुन में बोला____"अबे अपन को इसमें काहे को शर्म आएगी भला? अपन ने तो वहिच बोला जो सच है। अम्मा कसम तेरे दूधू बहुत अच्छे लगे अपन को। वैसे तू भी अपन को बहुत अच्छी लग रेली है, किसी फिलम की हिरोइन के माफिक।"
शालू उसकी बातें सुन कर शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। इस तरह किसी ने भी खुल कर उसके अथवा उसके किसी अंग के बारे में नहीं बोला था। जोगिंदर का मुलाजिम बिरजू से उसका टांका भिड़ा हुआ था लेकिन उसने भी उससे ये सब नहीं बोला था। उसे समझ न आया कि वो अब क्या बोले। उसे बहुत शर्म आने लगी थी। उसका मन किया कि वो अभी भाग जाए यहां से मगर प्रीतो का सख़्त हुकुम था कि उसे बर्तन साफ करने में मोहन की मदद करनी है।
"अरे! अपन तेरी तारीफ़ कर रेला है और तू कुछ जवाब ही नहीं दे रेली है?" मोहन ने हैरानी ज़ाहिर करते हुए उसकी तरफ देखा____"क्या अपन का तारीफ़ करना तेरे को अच्छा नहीं लगा? अबे अपन ने तो तेरी तारीफ़ में गाना भी गाएला था। तूने सुना था न?"
शालू को समझ नहीं आ रहा था कि वो मोहन की बातों का क्या जवाब दे? उसने बस हल्के से हां में सिर हिला दिया । उसकी धड़कनें बड़ी तेज़ी से चल रहीं थी। उसका बस चलता तो वो पलक झपकते ही यहां से भाग जाती। मोहन उसे बड़ा ही विचित्र किस्म का लड़का नज़र आ रहा था।
"अच्छा ये बता आज तेरी मां क्यों नहीं आएली है इधर?" मोहन ने उससे पूछा____"अपन को पता चलेला है कि वो अस्पताल में पहुंच गएली थी। आख़िर क्या हो गएला था उसको कि वो अस्तपाल पहुंच गई?"
"व...वो मेरे बापू और अम्मा का झगड़ा हो रहा था।" शालू ने हिचकिचाते हुए बताया____"फिर बापू ने अम्मा को डंडा मार दिया तो अम्मा का सिर फूट गया। रवि भैया उसको अस्पताल ले गए थे।"
"अबे ये क्या सुन रेला है अपन?" मोहन को बड़ा आश्चर्य हुआ, बोला____"पर बेटीचोद बापू तेरी अम्मा से झगड़ा क्यों कर रेला था लौड़ा?"
मोहन के मुख से अपने बापू के लिए गाली के रूप में बेटीचोद और लौड़ा सुन शालू ने नाराज़गी से उसकी तरफ देखा। अभी तक जो वो उससे घबरा रही थी उसमें एकदम से जैसे हिम्मत आ गई।
"तुमने मेरे बापू को गाली दी?" फिर उसने मोहन से कहा____"छी! कितने गंदे हो तुम। शायद तुम्हारी इसी हरकत की वजह से मालिक ने तुम लोगों की कुटाई करवाई होगी।"
"क...क्या?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए बोला____"अबे ये क्या बोल रेली है तू? तेरे को कैसे पता कि अपन लोग की कुटाई हुई थी?"
"रवि भैया से सुना है मैंने।" शालू ने उसे घूरते हुए कहा____"और एक दिन मैंने भी देखा था।"
"अरे! ये सब झूठ है।" मोहन नज़रें चुराते हुए बोला____"अपन लोग को कोई हाथ भी नहीं लगा सकता, समझी क्या?"
"झूठे तो तुम हो।" शालू उसे बदस्तूर घूरते हुए बोली____"मैंने खुद तुम्हें और तुम्हारे साथ दो और लड़कों को मार खाते देखा था।"
मोहन से कुछ कहते ना बना। उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी इज्ज़त का एक पल में यूं कचरा हो जाएगा। कहां वो शालू की नज़र में हीरो बनने की सोच बैठा था और कहां अब उसकी इज्ज़त का जनाजा ही निकाल दिया था शालू ने। मोहन जल्दी जल्दी सोचने लगा कि अब वो शालू से क्या कहे अथवा ऐसा क्या बोले जिससे उसकी नज़र में फिर से उसकी इज्ज़त बन जाए.
"व...वो तो तेरी मां की वजह से अपन लोग की कुटाई हो गएली थी।" मोहन को जो सूझा बोल पड़ा____"उसने फोकट में अपन लोग को पेलवा दिया था उस्ताद से।"
"य...ये क्या कह रहे हो तुम?" शालू उसकी बात सुन कर आश्चर्य से बोल पड़ी____"मेरी अम्मा ने तुम्हें पिटवाया? नहीं नहीं, झूठ बोल रहे हो तुम? वो भला क्यों तुम लोगों को पिटवाएगी?"
शालू ने ये पूछा तो एकदम से मोहन के मन में कई सारे ख़याल उभरने लगे और फिर अचानक ही बिजली की तरह उसके दिमाग़ में कोई पिलान आ गया। मोहन मन ही मन बड़ा खुश हुआ और सोचा____'बेटीचोद ये तो झक्कास पिलान है लौड़ा।'
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