Nice update....Update - 17
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"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।
अब आगे....
"अबे छोड़ ना भोसड़ी के।" ट्यूब वेल से दूर आने के बाद भी जब संपत ने जगन को न छोड़ा तो वो खिसियाते हुए झिड़का____"और उस गाँडू के सामने अपन को आंख क्यों दिखा रेला था तू? एक वो था बेटीचोद कि छोकरी के सामने झूठ बोल रेला था अपन से। उसको तो छोड़ेगा नहीं अपन।"
"अबे शांत हो जा लौड़े।" संपत ने कहा____"जब देखो तब साला तेरा भेजा ही गरम रहता है। अबे अपन तेरे को इस लिए आंख दिखा रेला था क्योंकि तू लौड़ा गुस्से में कुछ ज़्यादा ही उल्टा सीधा बोले जा रेला था।"
"भोसड़ी के तू भी तो बोल रेला था।" जगन ने उसे घूरा____"और देखा नहीं उस बेटीचोद को कैसे छोकरी के सामने नाटक कर रेला था।"
"अबे वो नाटक नहीं कर रेला था।" संपत ने जैसे समझाते हुए कहा____"बल्कि उसकी तो अपन लोग की बात सुन के फट गएली थी।"
"वो कैसे बे?" जगन को जैसे समझ न आया।
"अपन को पक्का यकीन हो गएला है कि वो कमला की लौंडिया को पटा रेला है।" संपत ने कहा____"अपन लोग को जलाने के लिए ही वो लौड़ा अपन लोग से बोला था कि वो छोकरी अपन लोग की भाभी है। जबकि सच ये है कि ऐसा कुछ हैइच नहीं लौड़ा।"
"अबे ये क्या बोल रेला है तू?" जगन को बड़ा आश्चर्य हुआ।
"तू साले शून्य बुद्धि ही रहेगा लौड़े।" संपत ने जैसे जगन पर लानत भेजी____"तेरे भेजे में कभी भेजा आएगाइच नहीं लौड़ा।"
"भोसड़ी के ऐसा बोलेगा तो गांड़ तोड़ देगा तेरी।" जगन ने मुक्का दिखाते हुए कहा____"साफ साफ बता कि क्या कहना चाह रेला है तू?"
"अबे अपन ये कहना चाह रेला है कि मोहन ने अपन लोग से झूठ बोलेला था कि कमला की लौंडिया अपन लोग की भाभी है।" संपत ने कहा____"अभी जब अपन लोग उसको भाभी से मिलवाने को बोल रेले थे तो तूने देखा नहीं कैसे उसकी गांड़ फट गएली थी और उधर वो लौंडिया कैसे मोहन को गुस्से से घूर रेली थी। अपन ने जब ये देखा तभिच समझ गया लौड़ा कि वो चिंदीचोर अपन लोग को एड़ा बनाएला था।"
"मतलब बेटीचोद गेम खेला था अपन लोग के साथ?" जगन ने आंखें फैलाते हुए कहा____"आज रात गांड़ तोड़ेगा अपन उसकी, पक्का।"
"अबे छोड़ ना बे।" संपत ने कहा____"अपन को तो लग रेला है कि मोहन अगर कमला की लौंडिया को पटा रेला है तो अच्छा ही है लौड़ा। उस कमला ने अपन लोग को पेलवाया था न तो अब अपन लोग भी उसकी लौंडिया को पेल के बदला लेंगे। पिलान मस्त है ना बे?"
"बेटीचोद ये तो एकदम झक्कास बोल रेला है तू।" जगन की आंखें चमक उठीं____"लौड़ा अपन के भेजे में तो ये बात आईच नहीं थी।"
"आएगी कहां से लौड़े?" संपत ने कहा____"तू तो साले हर वक्त गुस्से में ही भरा रहता है। कभी भेजे को ठंडा रखेगा तभी तो ऐसा सोच पाएगा लौड़ा।"
"बरोबर बोल रेला है तू।" जगन को जैसे अपनी ग़लती का एहसास हुआ____"बेटीचोद अपन हर वक्त गुस्से में ही रहता है पर, अपन क्या करे? लौड़ा उस मोहन की वजह से अपन गुस्सा हो जाता है।"
"पर अपन तो नहीं होता ना लौड़े।" संपत ने कहा____"अपन को मालूम है कि हर वक्त गुस्सा करना ठीक नहीं है लौड़ा। क्योंकि गुस्से में आदमी अच्छा बुरा सोच ही नहीं पाता है। ख़ैर छोड़ और अब ध्यान से सुन, अपन लोग अब से मोहन पर गुस्सा नहीं होएंगे। वो साला कमला की लौंडिया को पटा रेला है तो उसके पटाने देते हैं अपन लोग।"
संपत की बात पर जगन ने सहमति में सिर हिलाया और फिर दोनों जा कर अपने अपने काम में लग गए।
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शालू को शर्म से मुस्कुराता देख मोहन को अपने अंदर मीठी मीठी गुदगुदी होने लगी थी। उसका जी चाहा कि वो झट से जा कर शालू को गले लगा ले मगर वो चाह कर भी ऐसा न कर सका। शालू सिर झुकाए मुस्कुराते हुए कनस्तर को धोने में लगी हुई थी। मोहन को एकदम से जैसे अपनी हालत का एहसास हुआ तो उसने चौंकते हुए जल्दी से कनस्तर को मांजना शुरू कर दिया।
"अबे अब कुछ बोलेगी भी या ऐसे ही मुस्कुराती रहेगी तू?" कुछ देर गुज़र जाने पर भी जब शालू कुछ न बोली तो मोहन बेचैन हो कर बोल पड़ा।
शालू ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा। उसके चेहरे पर अभी भी शर्म की लाली थी और होठों पर हल्की मुस्कान। मोहन एक बार फिर से उसे अपलक देखने लगा और कनस्तर को मांजना भूल गया।
"मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो तुम?" मोहन को अपनी तरफ अपलक देखते देख शालू थोड़ा असहज होते हुए बोली____"बर्तन मांजो नहीं तो आज फिर देरी हो जाएगी और मालकिन फिर से गुस्सा करेंगी।"
"अबे अपन को उसके गुस्सा करने की कोई फिकर नहीं है।" मोहन ने जैसे शेखी से कहा____"अपन तो अब तब तक तेरे सुंदर चेहरे को देखेगा जब तक अपन का मन नहीं भर जाएगा।"
"य...ये तुम क्या कह रहे हो?" शालू उसकी बात सुन कर हैरत से बोली। ये अलग बात है कि अपनी तारीफ़ सुन एक बार फिर से वो मुस्कुरा उठी थी और साथ ही शर्मा भी गई थी।
"अपन सच बोल रेला है।" मोहन ने कहा____"और तेरे को पताइच नहीं है कि तू कितनी सुंदर लग रेली है अपन को। तू जब मुस्कुराती है न तो एकदम फिलम की हिरोइन के माफिक लगती है, सच्ची।"
"चुप करो तुम।" शालू एकदम से शरमा कर बोल पड़ी____"मेरे जैसी कलूटी भला कहां से तुम्हें फिलम की हीरोइन जैसी लगती है? तुम्हें तो झूठ बोलना भी नहीं आता।"
"अबे अपन सच्ची बोल रेला है।" मोहन एकदम से हड़बड़ा कर बोला____"अम्मा कसम तू अपन को एकदम फिलम की हीरोइन के माफिक लगती है। बस एक ही कमी दिख रेली है अपन को वरना बाकी तो सब बरोबर है।"
"क...कैसी कमी??" शालू ना चाहते हुए भी उत्सुकतावश पूछ बैठी।
"तू अगर अपनी आंखों में काजर और माथे पे बिंदी लगा ले तो एकदम फिलम की हीरोइन के माफिक दिखने लगेगी अपन को।" मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा____"फिलम में तेरे जैसी एक हीरोइन है जो एकदम तेरे माफिक ही दिखती है। हां याद आया, तूने मिथुन चक्रवर्ती की शेरा फिलम देखी है ना, उसमें जो मिथुन की बहन होती है ना, तू एकदम उसके माफिक ही दिखती है अपन को।"
"धत्त झूठ बोलते हो तुम?" शालू को पहले तो हैरानी हुई फिर इतराते हुए बोली____"मैं भला उसके जैसी कैसे दिख सकती हूं?"
"अबे अपन सच्ची बोल रेला है।" मोहन ने ज़ोर देते हुए कहा____"तू एक बार जब खुद उस फिलम को देखेगी तो तेरे को मिथुन की बहन को देख के पता चल जाएगा कि अपन सच्ची बोल रेला है कि नहीं।"
शालू बर्तन धोना छोड़ एकटक मोहन की तरफ देखने लगी। उसके चेहरे पर मौजूद भावों से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे वो उसके चेहरे के भावों को समझने की कोशिश कर रही हो।
"क्या तुम सच कह रहे हो?" फिर उसने बेयकीनी से पूछा____"क्या सच में मैं उस फिलम की हीरोइन के जैसी दिखती हूं?"
"लो कर को बात।" मोहन ने कहा____"अबे अपन कितनी बार बोले तेरे से कि तू उसके जैसी ही अपन को दिखती है?"
"कौन सी फिलम में है वो?" शालू ने अजीब भाव से देखते हुए मोहन से पूछा।
"अबे अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती की फिलम है वो।" मोहन ने बड़ी शान से कहा____"शेरा, हां यहिच नाम है अपन के हीरो की उस फिलम का। तू देखियो एक बार। अपन का हीरो उस फिलम में क्या राप्चिक दिखता है। लंबे बाल, काला चश्मा और पांव के घुटने तक झूलता लंबा मोटा सा कोट। साला फिरंगी जैसा दिखने वाले एक गुंडे का एक आंख ही फोड़ दियेला था उसमें अपन के हीरो ने और तेरे को पता है उसने सांप के जैसे अपने हाथ से चाब दियेला था उसकी एक आंख में ऐसा दिख रेला था। बेटीचोद ऐसा उसके जैसा कोई हीरो नहीं कर सकता, तभी तो लौड़ा वो अपन का सबसे झक्कास हीरो है।"
"और उस फिलम में उसकी बहन क्या करती है?" शालू ने बड़ी उत्सुकता से पूछा।
"वो तो स्कूल में पढ़ रेली थी तो एक बार उसको एक गुंडा ठंडे में नशा की दवा मिला के पिला दियेला था।" मोहन ने बताया____"फिर वो गुंडा अपन के हीरो की बहन की इज्ज़त लूटने की कोशिश कर रेला था। वो तो अच्छा हुआ कि अपन का हीरो आ गएला था तो वो बच गएली थी।"
"ये गुंडे लोग बहुत गंदे होते हैं।" शालू ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"हमेशा दूसरे की बहन के साथ गन्दी हरकत करते हैं। मुझे तो ऐसे लोग बिल्कुल भी पसंद नहीं हैं। पता नहीं ऐसे लोग फिलम में क्यों होते हैं?"
"अबे तेरे को अभी पताइच नहीं है।" मोहन अपनी आदत से मजबूर एक ही झोंक में बोलता चला गया____"फिलम में अगर गुंडे नहीं होंगे तो फिलम देखने का घंटा मज़ा नहीं आता। वो लोग जब किसी लड़की की इज्ज़त लूटने के लिए उसको नंगा कर रेले होते हैं तो क़सम से मज़ा ही आ जाता है लौड़ा। लड़की के दूधू दिखने लगते हैं और वो गुंडे लोग साले दूधू में ही मुंह लगाते हैं लौड़ा।"
"छी कितने गंदे हो तुम।" शालू ने बुरा सा मुंह बना कर उसे गुस्से से घूरा____"कोई गुंडा जब लड़की के साथ ऐसी गंदी हरकत करता है तो तुम्हें मज़ा आता है। छी कितने कमीने और गंदे हो तुम। तुमसे तो बात ही करना बेकार है। अब चुपचाप कनस्तर मांजो वरना मैं चली जाऊंगी यहां से।"
शालू को गुस्सा हो गया देख मोहन एकदम से बौखला गया। बिजली की तरह उसके मन में ख़याल आया कि लगता है उससे गड़बड़ी हो गई है। उसे अपने आप पर ये सोच कर बहुत गुस्सा आया कि उसने ऐसी बात शालू के सामने की ही क्यों?
उसके बाद मोहन की हिम्मत न पड़ी कुछ कहने की। ये अलग बात है कि वो शालू से बात करने का कोई न कोई बहाना खोजने में लग गया था मगर दुर्भाग्य से उसे कोई बहाना न सूझा। कुछ ही देर में बर्तन धुल गए तो शालू अपने हाथ पैर और मुंह धो कर चली गई। उसने एक नज़र मोहन को देखा ज़रूर था लेकिन उससे कोई बात नहीं की थी उसने। मोहन उसके यूं चले जाने पर बेहद परेशान और उदास सा हो गया था।
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रात में खाना पीना खा कर तीनों नमूने अपने कमरे में पहुंचे। मोहन थोड़ा उदास था, ज़ाहिर है शालू का बिना कुछ कहे मुंह फेर कर चले जाना ही उसकी उदासी का सबब बन गया था। उस समय के बाद उसने अपने दोनों दोस्तों से भी ठीक से बात नहीं की थी। यहां एक बदलाव ये दिखा था कि उसकी मामूली सी हरकत पर भी गुस्सा हो जाने वाला जगन भी अब उससे अच्छे से बात करने लगा था।
"आख़िर क्या हो गएला है बे तुझे?" संपत ने मोहन के क़रीब बैठते हुए उससे कहा____"लौड़ा शाम से देख रेला है अपन कि तू टूटे दिल वाले आशिक़ के माफिक उदास है। भाभी ने तेरा लौड़ा काट दियेला है क्या बे?"
"तू तो साले चाहता ही यहिच है कि अपन का कट जाए।" मोहन एकदम से खीझते हुए कहा।
"भोसड़ी के अपन क्यों चाहेगा बे?" संपत ने उसके बाजू पर हल्के से मुक्का मारते हुए कहा____"अबे तू अपन लोग का यार है लौड़े। अपन लोग बचपन से साथ रहे हैं। बेटीचोद हर सुख दुख में अपन लोग ने बरोबर एक दूसरे का साथ दियेला है। फिर ऐसा क्यों बोल रेला है तू कि अपन ऐसा चाहेगा?"
"अपन को भी माफ़ कर दे यार।" जगन भी संजीदा सा होते हुए बोला____"अपन ने अब तक तेरे पर बहुत गुस्सा कियेला था और तेरे को जाने क्या क्या बोला अपन ने। अम्मा बापू की क़सम अब से अपन तेरे पर गुस्सा नहीं करेगा। साला तेरे को उदास देखता है तो अपन का कलेजा फटने को आता है।"
जगन की बात सुन कर मोहन ने झटके से पलट कर उसकी तरफ देखा। चेहरे पर हैरत के भाव नाचते नज़र आने लगे थे उसके। जब उसे यकीन हो गया कि जगन वाकई में सच कह रहा है तो वो एक झटके से उससे लिपट गया। मोहन उमर में उन दोनों से छोटा था। हालाकि ज़्यादा उमर का फ़ासला भी नहीं था किंतु छोटा तो था ही और इसी बात का हमेशा उसे फ़ायदा मिलता था या यूं कहें कि वो फ़ायदा उठाया करता था।
"चल अब सेंटी मत हो बे।" संपत ने उसे जगन से अलग करते हुए कहा____"और ये बता कि शाम से इतना उदास क्यों है तू? क्या भाभी ने तेरे को कुछ बोलेला है? अगर ऐसा है तो बेटीचोद अपन मां चोद देगा उसकी, क्यों बे जगन?"
"हां हां क्यों नहीं।" जगन ने भी आवेश में आ कर कहा____"अपन लोग उसकी मां चोद देंगे।"
"अबे बेटीचोदो चुप करो तुम लोग।" मोहन एकदम से घुड़का____"लौड़ा सब अपन की ही ग़लती है। अच्छा खासा वो अपन के झांसे में आ रेली थी और अपन ने चुटकियों में सब गड़बड़ कर दिया।"
"भोसड़ी के ये क्या बोल रेला है तू?" संपत भौचक्का सा हो कर पूछा।
मोहन ने दोनों को बारी बारी से देखा और फिर सारा किस्सा बता दिया। सारी बातें सुन कर जगन और संपत आश्चर्य से देखने लगे उसे।
"इसकी मां की।" जगन चकित भाव से बोल पड़ा____"लौड़ा ये तो बहुत ऊपर तक पहुंच गएला है बे संपत।"
"हां सही कहा तूने।" संपत ने मुस्कुरात हुए कहा____"बेटीचोद अपन को तो यकीन ही नहीं हो रेला है कि अपना ये चिंदीचोर मोहन कमाल कर देगा। शाबाश लौड़े शाबाश, तू ज़रूर अपन लोग का नाम रोशन करेगा।"
संपत की ये बात सुन कर मोहन पलक झपकते ही आसमान में पहुंच गया। उसे पता ही नहीं चला कि कब उसका सीना गर्व के चलते ज़रूरत से ज़्यादा चौड़ा हो गया। दोनों को वो ऐसे देखने लगा था जैसे उन दोनों की अब उसके सामने कोई औकात ही नहीं है।
"अपन ऐसा ही है लौड़ा।" मोहन से रहा न गया तो तपाक से बोल भी पड़ा____"छोटे मोटे काम तो अपन करताइच नहीं।"
"हां चल चल अपने बाप को मत सिखा अब।" संपत ने उसे घूरा____"और ज़्यादा उड़ मत लौड़े। भूल मत कि अभी थोड़ी देर पहले सडे़ली गांड़ जैसा मुंह बनाए हुए था तू।"
संपत की इस बात से मोहन जिस एक पल में आसमान में पहुंच गया था उसी एक पल में ज़मीन पर औंधे मुंह गिर भी गया। नज़रें चुराते हुए बगले झांकने लगा था वो। ये देख संपत के होठों पर अनायास ही मुस्कान उभर आई।
"भोसड़ी के तीस मार खां तो तू बहुत बनता है लेकिन अपनी ऊटपटांग हरकतों से सब गड़बड़ भी कर देता है।" संपत ने कहा____"अबे शालू से तेरे को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। वो एक लड़की है और लड़की से तो बड़े तरीके से बात करना मांगता है।"
"बेटीचोद बोल तो ऐसे रहा है जैसे तूने बहुत सारी लड़की लोग से बता कर रखी है।" मोहन ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा।
"अबे अपन ने बात नहीं किया तो क्या हुआ लौड़े?" संपत ने कहा____"इतना तो अपन को पताइच है कि लड़की से कैसे बात करने का है। वैसे अपन तो यही सोच के हैरान है कि शालू ने अब तक तेरे को झेला कैसे?"
"अब ये क्या बोल रेला है बे तू?" जगन एकदम से आंखें फाड़ कर बोला____"क्या इस चिंडीचोर ने उसको पेल दियेला है?"
"तू तो चुप ही रह बे बैल बुद्धि।" संपत ने खिसियाते हुए कहा____"इसने उसको पेला नहीं लौड़े। अपन का मतलब था कि जैसी ये हरकतें करता है तो उसको वो कैसे झेल गएली है? साला होना तो ये चाहिए था कि इसकी हरकतें देख के वो इसे अपने चप्पल से मार मार के इसका थोबड़ा लाल कर देती।"
"ऐसे कैसे लाल कर देती बे?" मोहन एकदम से हाथ झटकते हुए बोल पड़ा____"अपन को ऐरा गैरा समझ रेला है क्या? अबे अपन मिथुन चक्रवर्ती का फेन है। लौड़ा एक ही पंच पे उसको ढेर कर देगा अपन, समझा क्या?"
"अपन तो समझ गएला है भोसड़ी के।" संपत ने उसे घूरा____"लेकिन शायद तू नहीं समझा है। अगर तू उसको पंच मार के ढेर कर देता तो फिर उसको तू घंटा अपने लौड़े पे नहीं बिठा पाता। भेजे में कुछ घुसा कि नहीं?"
मोहन एकदम से चुप रह गया। चेहरे पर सोचने वाले भाव उभर आए थे उसके। अगले ही पल वो परेशान सा नज़र आने लगा।
"बेटीचोद ये तो सही बोल रेला है तू।" फिर वो बोला____"साला ये तो अपन ने सोचाइच नहीं। कुछ कर....कुछ कर बे। अपन को शालू को फंसाने का है। तू कोई उपाय बता ना लौड़े।"
"क्यों? अब क्या हुआ?" संपत बड़े जानदार तरीके से मुस्कुराया____"भोसड़ी के तू तो खुद को बड़ा तीस मार खां समझ रेला था न? तो अब खुद ही कोई उपाय सोच ले लौड़े।"
"भोसड़ी के क्यों परेशान कर रेला है उसे।" जगन बोल पड़ा____"बता दे ना कोई उपाय उसको।"
"अपन एक शर्त पर बताएगा उपाय।" संपत ने जगन की तरफ देख कर कहा तो मोहन झट से बोल पड़ा____"बेटीचोद अगर तू अपन की गांड़ मारने की शर्त रखेगा तो अपन घंटा तेरी शर्त नहीं मानेगा।"
मोहन की ये बात सुन कर संपत ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा। उसे हंसता देख जगन भी हंसने लगा। ये देख मोहन बड़े ही दयनीय भाव से दोनों को देखने लगा।
"बेटीचोदो हंस क्यों रेले हो बे?" मोहन खिसिया कर मानो चीख ही पड़ा।
"लौड़े हंसें ना तो क्या करें बे?" संपत अपनी हंसी को रोकते हुए बोला____"भोसड़ी के तूने ये सोचा भी कैसे कि अपन तेरी गांड़ मारने की शर्त रखेगा?"
"भोसड़ी के अच्छी तरह जानता है अपन तेरे को।" मोहन ने उसे घूरते हुए कहा____"लौड़ा जब देखो तब अपन की गदराई गांड़ के पीछे पड़ा रहता है तू, बात करता है लौड़ा।"
"ये बाकचोदी बंद कर।" जगन इस बार सख़्त भाव से बोल____"तू बता भोसड़ी के तेरी क्या शर्त है?"
"अपन की शर्त ये है कि जब ये शालू को अच्छे से पटा लेगा।" संपत ने कहा____"तो ये अपन को भी उसके साथ मज़ा करने का मौका देगा। अगर इसको अपन की ये शर्त मंजूर है तो ठीक वरना अपन घंटा कोई उपाय नहीं बताएगा इसको।"
"मादरचोद क्या बोला बे तू?" संपत की बात सुनते ही मोहन गुस्से में आ कर उस पर झपट पड़ा।
संपत ने सोचा था कि जगन बचा लेगा उसे लेकिन जगन खुद उसकी तरफ गुस्से से देखे जा रहा था। ज़ाहिर है उसको मोहन से बचाने का कोई इरादा नहीं था उसका। इधर मोहन उसकी छाती पर सवार हो कर अपने दोनों हाथों से संपत का गला दबाने में लग गया था और साथ ही गंदी गंदी गालियां भी दिए जा रहा था। संपत उससे छूटने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था लेकिन मोहन तो जैसे किसी जोंक की तरह उससे चिपक ही गया था। कुछ ही देर में संपत को अपनी हालत ख़राब होती महसूस होने लगी और वो अपने हाथ पांव पटकते हुए मानो रहम की भीख मांगने लगा।
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