Nice update...Update - 16
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"भोसड़ी के चुप कर तू।" संपत ने उसे घुड़की दी____"वरना अभी अपन इसको छोड़ देगा। फिर जब ये तेरा टेंटुआ दबाएगा तो मदद के लिए घंटा नहीं आएगा अपन।"
मोहन चुप हो गया। जगन अभी भी उसे गुस्से से घूरे जा रहा था। संपत उसे ले कर थोड़ी दूरी पर बैठ गया। उसके बाद किसी ने किसी से कोई बात नहीं की। रात गहरा रही थी इस लिए तीनों ही लेट कर सोने की कोशिश करने लगे। जगन का गुस्सा ठंडा पड़ गया था इस लिए वो जल्दी ही सो गया किंतु संपत इस सोच में डूबा हुआ था कि क्या सच में मोहन का शालू से टांका भिड़ गया होगा? वहीं दूसरी तरफ मोहन आंखें बंद किए शालू के बारे में तरह तरह कल्पनाएं किए जा रहा था। कुछ ही देर में वो दोनों भी गहरी नींद में चले गए।
अब आगे....
अगली सुबह हुई।
आज भी तबेले में जोगिंदर नज़र नहीं आया। प्रीतो के न रहने से उसने घर का जो कबाड़ा किया था उसको चमाचम करने में लगा हुआ था वो। घर की सफाई के बाद अब घर में पोताई का काम शुरू करवा दिया था उसने। प्रीतो ने अच्छे से समझा दिया था कि घर के किस किस हिस्से में कौन कौन सा रंग पोता जाएगा। जोगिंदर प्रीतो को खुश करने के लिए बिना कोई विरोध किए सब कुछ करवाने में लगा हुआ था। पुताई के लिए उसने दो मजदूर लगवा दिए थे। प्रीतो का कहना था कि जब तक वो उसका घर चमाचम नहीं करवा देता तब तक वो तबेले में नहीं आ सकता और ना ही अपने किसी काम से कहीं बाहर जा सकता है। बाहर सिर्फ वो दूध बेचने ही जा सकता है।
तबेले में सुबह मवेशियों को चारा भूसा डालने के बाद उनका दूध निकालने का काम शुरू हो चुका था। मवेशियों का दूध निकालने के लिए प्रीतो के साथ मंगू और बबलू ही थे। बिरजू अभी वापस नहीं आया था। दूसरी तरफ जगन और संपत आस पास की सफाई में लगे हुए थे जबकि मोहन को खुद प्रीतो ने दूध के कनस्तर धोने के लिए ट्यूब वेल में भेज दिया था।
मोहन ट्यूब वेल में बर्तनों को धोने में लगा हुआ था। हालाकि अकेले बर्तन धोने में आज उसे मज़ा नहीं आ रहा था। रह रह कर उसे शालू की याद आ जाती थी और साथ ही कल शाम को उसके साथ बिताया हुआ पल भी। जिसके बारे में सोच सोच कर कभी वो खुश होता तो कभी मायूस हो जाता। आख़िर किसी तरह उसने बर्तन धुले और फिर उन बर्तनों को जगन और संपत की मदद से तबेले में पहुंचा दिया।
जोगिंदर दूध बेचने के लिए क़रीब दस बजे शहर जाता था। इस लिए जब सारा दूध कनस्तर में भर कर उसके छोटे से टेंपो में रख दिया गया तो वो टेंपो ले कर शहर चला गया। वहीं दूसरी तरफ उसके घर में शालू और रवि सबके लिए खाना बनाने में लगे हुए थे। सभी कामों से फुर्सत होने के बाद प्रीतो के कहने पर सब नहाने धोने के लिए ट्यूब वेल में चले गए।
दोपहर को खाना पीना हुआ और फिर तीनों नमूने कमरे में आराम करने के लिए आ गए। प्रीतो के आने से इतना ज़रूर हुआ था कि उन तीनों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती थी और ना ही उन्हें किसी की बातें सुननी पड़ती थी। इस बात से तीनों ही खुश थे किंतु मोहन की खुशी थोड़ा फीकी सी थी। ज़ाहिर है उसके दिलो दिमाग़ में कमला की बेटी शालू छाई हुई थी।
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दूसरी तरफ कमला को भी रवि के द्वारा पता चल चुका था कि जोगिंदर की बीवी आ चुकी है। जोगिंदर ने तो उसे यही बताया था कि अब शायद ही वो कभी आएगी और यही सोच कर दोनों अपनी मर्ज़ी से ऐश कर रहे थे किंतु अब जैसे हर चीज़ में विराम सा लग जाने वाला था। कमला ने जोगिंदर को जान बूझ कर अपने जिस्म को भोगने का निमंत्रण दिया था। उसे पता था कि जोगिंदर अकेला है और उसकी हर ज़रूरत को पूरा कर सकता है। अपने शराबी पति से उसे कोई उम्मीद नहीं थी। कुछ समय बाद उसकी बेटी ब्याह करने लायक हो जाती तो वो भला कैसे उसका ब्याह कर पाती? यही सब सोच कर उसने जोगिंदर को फांसा था, ताकि उससे वो अपनी ज़रूरत की हर चीज़ प्राप्त कर सके।
प्रीतो के आने से उसके मंसूबों पर एक तरह से पानी फिर गया था। कमला इस बात से बेहद परेशान हो गई थी। इसके पहले उसने तस्वीर में ही प्रीतो को देखा था जोकि उसके कहने पर जोगिंदर ने ही उसे दिखाया था किंतु सामना अभी तक न हुआ था उसका। वो जानती थी कि अब उसका सामना भी होगा क्योंकि ठीक होने के बाद उसे काम करने के लिए तबेले में तो जाना ही पड़ेगा। कमला सोच रही थी कि क्या प्रीतो को उसके पति के साथ उसके संबंधों का पता होगा? इसका जवाब उसे कहीं न कहीं पता ही था। वो जानती थी कि तबेले में काम करने वाले जोगिंदर के मुलाजिमों ने ज़रूर प्रीतो के कान में ऐसी बात पहुंचा दी होगी। उसे याद आया कि एक बार मंगू को उसने बहुत कुछ सुना दिया था तो ज़ाहिर है कि मंगू उसके बारे में प्रीतो को बता ही सकता है।
कमला अब पहले से ठीक थी। माथे पर लगी चोट में अभी भी पट्टी लगी हुई थी किंतु अब वो घर के छोटे मोटे काम खुद ही कर लेती थी। उसकी जेठानी निर्मला हर रोज़ उसके घर आ कर उसका हाल चाल लेती थी और उसके बड़े बड़े काम भी कर देती थी। ऐसे ही आलम में उसे एहसास हुआ था कि उसकी जेठानी कितनी भली औरत है और उसने अब तक कितना ग़लत किया था उसके साथ। उधर उसके पति ने भी उस दिन के बाद से कोई तमाशा नहीं किया था। ये अलग बात है कि वो अब भी पी के ही आता था।
कमला रवि और शालू से रोज़ जोगिंदर के यहां का हाल चाल पूछती थी। वो भली भांति समझ लेना चाहती थी कि उधर का हाल कैसा है आज कल ताकि ठीक होने के बाद जब वो दुबारा वहां काम करने जाए तो उसे किसी परेशानी का सामना न करना पड़े। उसके अंदर घबराहट तो थी ही किंतु बेचैनी भी थी। जोगिंदर के साथ हमबिस्तर हो कर मज़ा करने की बेचैनी। पिछले एक साल से वो जोगिंदर के साथ उसकी बीवी की ही तरह रह कर मज़ा कर रही थी और अब तक वो इसकी आदी भी हो चुकी थी। उसने मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि कल वो जोगिंदर के तबेले में ज़रूर जाएगी।
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जगन और संपत तो सो गए थे लेकिन मोहन की आंखों में नींद का नामो निशान न था। उसे शाम होने का बड़ी बेसब्री से इंतजार था। बड़ी मुश्किल से करवटें बदलते हुए उसका समय गुज़रा। जैसे ही चार बजे वो झट से उठ गया और फिर जगन और संपत को जगाए बिना ही चुपचाप दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गया।
तबेले में आ कर उसने देखा मंगू और बबलू बीड़ी पीते हुए मवेशियों के खाने के लिए चारा भूसा डाल रहे थे। मोहन को आया देख दोनों पहले तो हल्के से चौंके फिर सहसा मुस्कुरा उठे।
"क्यों बे आज बड़ा जल्दी उठ कर आ गया यहां?" मंगू ने मुस्कुराते हुए पूछा____"तेरी इस ज़ल्दबाज़ी का राज़ क्या है? हमें भी बता दे भाई।"
"अबे ऐसा कुछ नहीं है।" मोहन सकपकाते हुए अपने ही अंदाज़ में बोला____"लौड़ा अपन को नींद ही नहीं आ रेली थी तो अपन चला आया इधर।"
"क्या हुआ तेरी नींद को?" बबलू ने उसके लिए फिक्रमंद हो जाने का नाटक किया____"तेरी तबीयत तो ठीक है ना?"
"अबे घंटा ठीक होगी।" मोहन से पहले मंगू बोल पड़ा____"इसके अंदर तो कमला की लौंडिया का भूत समा गया है। ऐसे में भला कैसे इसकी तबीयत ठीक हो सकती है? मैं सही कह रहा हूं ना मोहन?"
"हां...न....न नहीं तो।" मोहन एकदम से हड़बड़ा गया, फिर सम्भल कर बोला____"अपन तो एकदम ठीक है, बोले तो झक्कास।"
"चल ठीक है फिर।" बबलू ने मुस्कुराते हुए कहा____"आज अगर शालू आएगी तो मैं मालकिन से कह दूंगा कि वो शालू को बर्तन धोने में तेरी मदद करने के लिए न भेजे।"
"अरे! अबे य...ये क्या बोल रेले हो तुम?" मोहन एकदम से गड़बड़ा गया, उसकी धड़कनें थम गई सी प्रतीत हुईं थी, बोला____"अपन का मतलब है कि अगर वो अपन की मदद करने को उसको भेजना चाह रेली है तो तुमको क्या पिरोब्लम है?"
"अरे! प्रोब्लम तो होगी ही न बे।" बबलू ने कहा____"तू साले अपन के दोस्त बिरजू के माल पर लाइन मार रहा है तो प्रोब्लम तो होगी ना हम लोगों को?"
"अबे अपन कहां उसको लाइन मार रेला है बे?" मोहन हैरत से आंखें फाड़ कर बोला____"लौड़ा वो तो अपन को देखती भी नहीं है बेटीचोद।"
"भोसड़ी के हमें चूतिया समझता है क्या?" मंगू ने आंखें दिखाते हुए कहा____"हमें सब पता है कि तू उसके साथ कौन सा गुल खिलाना चाहता है। बेटा अभी भी वक्त है सुधर जा, वरना बिरजू के द्वारा तेरी ऐसी गांड़ तुड़ाई होगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"
"अबे तुम लोग क्यों अपन को खाली पीली डरा रेले हो?" मोहन ने लापरवाही से कहा____"लौड़ा तुम लोग को पताइच नहीं है कि बिरजू अपन का गुरु है। गुरु ने अपन को बोलेला था कि वो अपन को भी शालू की मलाई खिलाएगा।"
मोहन की बात सुन कर मंगू और बबलू दंग रह गए। किंतु जल्दी ही सम्हले और फिर एक दूसरे को देखने लगे। जैसे एक दूसरे से पूछ रहे हों कि क्या तुम्हें कुछ समझ आया?
अभी उनमें से कोई कुछ बोलने ही वाला था कि तभी प्रीतो तबेले में दाखिल होती नज़र आई जिसे देख दोनों चुपचाप काम में लग गए। प्रीतो ने काले रंग का कुर्ता सलवार पहन रखा था जो उसके गोरे बदन पर काफी खूबसूरत लग रहा था। मंगू और बबलू तो काम में लग गए थे किंतु मोहन ने जब प्रीतो को देखा तो उसकी नज़र जैसे उस पर ही चिपक कर रह गई।
"ये बक्चोद पिटेगा आज देखना।" मंगू की नज़र मोहन पर पड़ी तो वो धीमें स्वर में बबलू से बोला।
"उस्ताद की बीवी को आंखें फाड़े ऐसे देख रहा है जैसे खा ही जाएगा उसे।" बबलू ने भी धीमें से कहा____"वैसे आज ये पिट जाए तो मज़ा ही आ जाए। बहुत उड़ रहा है ये।"
"तुम अभी तक यहीं हो?" मोहन पर नज़र पड़ते ही प्रीतो थोड़े सख़्त भाव से बोली तो मोहन बुरी तरह उछल पड़ा, उधर प्रीतो ने कहा____"बर्तन समेटो और धोने ले जाओ उन्हें। आज अगर धुलने में तुमने ज़्यादा समय लगाया तो अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए, समझ गए?"
मोहन ने झट से हां में सिर हिला दिया। उसके मन में एकाएक ही मंथन सा चलने लगा था। वो प्रीतो से शालू के बारे में पूछना चाहता था किंतु डर रहा था कि कहीं प्रीतो उसके पूंछने पर गुस्सा ना हो जाए। तबेले के एक तरफ दूध के सारे कनस्तर रखे हुए थे इस लिए वो आगे बढ़ा और दो कनस्तर को ले कर ट्यूब वेल की तरफ जाने लगा।
कुछ ही देर में मोहन कनस्तर रख कर बाकी के कनस्तर लेने के लिए वापस आया तो देखा उसके दोनों साथी बाकी के कनस्तर लिए आ रहे थे। उन्हें देख मोहन अभी मायूस ही हुआ था कि तभी उसकी नज़र तबेले से अभी अभी निकली शालू पर पड़ी। उसे देखते ही मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उधर शालू अपने हाथ में एक छोटा सा कनस्तर लिए इधर ही चली आ रही थी। मोहन बिजली की सी तेज़ी आगे बढ़ चला। शालू की नज़र जैसे ही मोहन पर पड़ी तो उसने बुरा सा मुंह बना कर उससे नज़रें हटा ली। ये देख कर मोहन को घंटा कोई फ़र्क नहीं पड़ा बल्कि वो जल्दी ही तबेले में पहुंचा और बाकी जो कनस्तर बचे थे उन्हें ले कर फ़ौरन ही ट्यूब वेल की तरफ बढ़ चला।
"अबे मोहन।" ट्यूब वेल में जैसे ही मोहन कनस्तर ले कर पहुंचा तो संपत ने मुस्कुराते हुए उससे कहा____"अपन लोग को भी तो भाभी से मिलवा दे लौड़े।"
संपत की बात सुन कर शालू बुरी तरह चौंकी और फिर एकदम से घूम कर मोहन की तरफ आश्चर्य से देखने लगी। इधर संपत की बात सुन कर मोहन की सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गई। उसने घबरा कर शालू की तरफ देखा। जब उसे अपनी तरफ घूरता देखा तो उसने जल्दी ही अपना सिर झुका लिया।
"अबे चुप क्यों हो गया बे लौड़े?" संपत ने इस बार मुस्कुराते हुए कहा____"अपन लोग को भाभी से मिलवा क्यों नहीं रेला है तू?"
"अ...अबे ये क्या बोल रेला है बे?" मोहन बड़ी मुश्किल से संपत को देखते हुए बोला____"अपन किसी भाभी वाभी को नहीं जानता, समझा?"
"भोसड़ी के कल रात को तो तू अपन लोग से बोल रेला था कि ये अपन लोग की भाभी है?" जगन ने मोहन की तरफ घूरते हुए कहा____"और अब बोल रेला है कि तू किसी भाभी वाभी को नहीं जानता? बेटीचोद सच सच बता अपन को वरना यहीं खोपड़ी तोड़ देगा अपन।"
बेचारा मोहन। जगन की बातों से उसकी ऐसी हालत हो गई जैसे अभी रो देगा। उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि उसके दोनों साथी शालू के सामने एकदम से ऐसा बोलने लगेंगे। सहसा उसकी नज़र शालू पर पड़ी तो उसे अपनी तरफ गुस्से से देखता पाया। ये देख वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसके ज़हन में बस एक ही ख़याल आया कि____"बेटीचोद गांड़ मार ली इन दोनों लोग ने अपन की।"
"अबे सड़ी सी शकल क्यों बना ली है लौड़े?" संपत ने कुछ सोचते हुए कहा____"अबे अपन लोग तो मज़ाक कर रेले थे। चल बे जगन तू भी लौड़े क्या क्या बोल देता है इस चिंदी चोर से।"
संपत की बात सुन कर जगन अभी कुछ बोलने ही वाला था कि संपत ने उसे आंखें दिखाई और फिर घसीटता हुआ ले गया। इधर उन दोनों के जाने से और संपत की बातों से मोहन को ऐसा लगा जैसे जान में जान आ गई है। उसने एक बार फिर से शालू की तरफ देखा। शालू अभी भी गुस्से से उसे घूरे जा रही थी।
"अबे तू अपन को ऐसे क्यों घूर रेली है?" संपत खुद को सम्हाल कर एकदम अपने ही अंदाज़ में बोल पड़ा____"बर्तनों की धुलाई भी करने का है अपन लोग को। आज मालकिन ने अपन को बोलेला है कि अगर देर हुई तो अपन के साथ अच्छा नहीं होएगा।"
"पहले तुम ये बताओ कि तुम्हारे वो दोनों साथी क्या बोल रहे थे?" शालू का गुस्सा जैसे अभी भी शांत नहीं हुआ था____"तुमने मेरे बारे में क्या बोला है उन लोगों से?"
"अबे अपन ने ऐसा कुछ भी नहीं बोलेला है, अम्मा क़सम।" मोहन अपनी मां की झूठी क़सम खाने में देरी नहीं की, बोला____"वो लोग तो बेटीचोद झूठ बोल रेले थे। तूने भी तो सुना न कि संपत अभी क्या बोल के गया इधर से।"
"अगर तुमने मेरे बारे में उनसे उल्टा सीधा बोला तो देख लेना, ठीक नहीं होगा तुम्हारे लिए।" शालू ने जैसे धमकी देते हुए कहा____"जैसे तुम गंदे हो उसी तरह तुम्हारे वो दोनों दोस्त भी गंदे हैं। उनको भी तमीज नहीं है कि किसी लड़की के सामने क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं।"
"अबे क्यों खाली पीली तू अपना मूड बिगाड़ रेली है?" मोहन ने कहा____"वो दोनों बेटीचोद तो ऐसे ही हैं।"
"हां और तुम तो जैसे बहुत शरीफ़ हो, है ना?" शालू ने उसे घूर कर देखा____"कल देखा था मैंने तुम्हारी शराफ़त और तमीज को। कैसे तुम मेरे ग़लत जगह को देख रहे थे और फिर गंदा गंदा बोल रहे थे।"
"अच्छा माफ़ कर दे ना अपन को।" मोहन एक कनस्तर को ले कर बैठते हुए बोला____"अपन ने तेरे को बताएला था न कि अपन लोग को कभी किसी ने तमीज नहीं सिखायला है। इसी लिए तो अपन तेरे को बोल रेला था कि तू अपन को सब कुछ सिखा दे।"
"मुझे कुछ नहीं सिखना।" शालू ने हाथ झटकते हुए कहा____"अब चुपचाप बर्तन मांजो वरना मालकिन से जा के शिकायत कर दूंगी तुम्हारी।"
"आइला गुस्से में तो तू और भी ज़्यादा सुंदर लग रेली है बे।" मोहन शालू को खुश करने के इरादे से मुस्कुराते हुए बोल पड़ा____"लौड़ा तेरे को देख के अपन के अंदर कुछ कुछ हो रेला है, अम्मा क़सम।"
"छी फिर तुमने गंदा शब्द बोला।" शालू बुरा सा मुंह बना कर बोल पड़ी____"देखो मैं तुमसे आख़िरी बार बोल रही हूं। इस बार से अगर तुमने कुछ भी गंदा बोला तो मैं मालकिन के पास तुम्हारी शिकायत करने चली जाऊंगी।"
"बेटीचोद अपन को तो पताइच नहीं चला कि कब अपन के मुंह से गंदा शब्द निकल गएला है?" मोहन हैरत से मुंह फाड़ कर बोला____"बस इस बार माफ़ कर दे अपन को। अम्मा क़सम अपन अब से ऐसा कुछ नहीं बोलेगा।"
शालू उसकी बात सुन कर कुछ देर तक घूरती रही फिर बोली____"अगर तुम चाहते हो कि मैं बर्तन धोने में तुम्हारी मदद करूं तो तुम अब से कुछ भी नहीं बोलोगे। अगर मंज़ूर हो तो बोलो वरना अभी चली जाऊंगी मैं।"
"ठीक है, अपन को मंज़ूर है।" मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था____"अब अपन कुछ बोलेगा ही नहीं। अपन ने तेरे को अपना दोस्त मान लिएला था। कितना खुश था अपन कि तू अपन को तमीज से बात करना सिखाएगी पर ठीक है कोई न। साला अपन की तो किस्मत ही झंड है।"
कहने के साथ ही मोहन दुखी सी शकल बना कर जल्दी जल्दी बर्तन को मांजने लगा। उसकी बात सुन कर शालू ख़ामोशी से उसे देखती रही। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? ऐसा नहीं था कि उसे मोहन से कोई बैर था या फिर कोई नफ़रत थी किंतु उसकी बातें ही ऐसी थीं जिसके चलते वो बहुत ज़्यादा असहज हो जाती थी। मोहन के द्वारा ही उसे इतना तो पता चल ही गया था कि वो तीनों शुरू से ही ऐसे हैं। वो कभी ऐसी जगह या ऐसे लोगों के बीच रहे ही नहीं जिससे कि उन्हें किसी से बात करने का तरीका आ सके।
मोहन ने जल्दी जल्दी हाथ चला कर जल्दी ही एक कनस्तर को मांज कर शालू की तरफ बढ़ा दिया। उसने एक नज़र शालू को देखा और फिर बिना कुछ कहे दूसरा कनस्तर उठा कर उसे भी मांजना शुरू कर दिया। अभी भी उसकी शकल पर दुखी वाले भाव नुमायां हो रहे थे। शालू के मन में ख़याल उभरा कि अगर वो उसे बात करने का तरीका सिखाए तो शायद उसको बोलने की तमीज आ जाए। शालू ने सोचा कि अगर हर रोज़ ही उसे उसके साथ बर्तन धोने के लिए रहना पड़ा तो दोनों के बीच कोई न कोई बात तो होगी ही इस लिए इससे अच्छा यही है कि उसे थोड़ा बहुत बोलने का तरीका सिखाया जाए।
"क्या तुम सच में बात करने का तरीका सीखना चाहते हो?" फिर उसने मोहन से झिझकते हुए पूछा।
"अगर तेरा दिल करे तो सीखा दे।" मोहन ने सपाट भाव से कहा____"तेरा एहसान होएगा अपन पर। अपन भी अख्खा लाइफ में याद करेगा कि अपन की एक सुंदर दोस्त थी जिसने अपन को बात करने की तमीज सिखाएली थी।"
"तुम बार बार मुझे सुंदर क्यों बोलते हो?" शालू ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं तो काली कलूटी हूं।"
"अबे तेरे को क्या पता कि तू कितनी सुंदर है?" मोहन एकदम से बोल पड़ा____"अपन की आंख से देख, तेरे को पता चल जाएगा कि अपन झूठ नहीं बोल रेला है।"
शालू को पहली बार उसकी ये बात सुन कर अच्छा महसूस हुआ। उसके अंदर खुशी की एक लहर सी दौड़ गई। होठों पर उभर आई मुस्कान को उसने जल्दी ही दबा लिया और फिर मोहन की तरफ देखा।
"कितने झूठे हो तुम।" फिर उसने जैसे इतराते हुए कहा____"कोई दूसरे की आंख से कैसे देख सकता है भला?"
"अबे....अपन का मतलब है कि अरे ऐसा अपन ने फिलम में हीरो के मुख से सुनेला है।" मोहन ने कहा____"वो हीरोइन को ऐसेइच बोलता है। फिलम का हीरो झूठ थोड़े ना बोलता होएगा।"
"मतलब तुमने जो फिल्म में हीरो के मुख से सुना उसी को सच मान लिया?" शालू ने कनस्तर को धोते हुए कहा।
"हां तो अपन तो मानेगा ही।" मोहन ने बड़े शान से कहा____"अपन के हीरो मिथुन चक्रवर्ती ने बोलेला है और वो कभी झूठ नहीं बोलता, समझी क्या?"
"हां तो वो हीरोइन को बोलता है ना।" शालू ने जैसे तर्क किया____"मैने भी देखा है, फिल्म की हीरोइनें तो सच में सुंदर होती हैं। अब सुंदर को सुंदर तो बोलेगा ही न हीरो।"
"अबे तू यहिच समझ ले कि तू अपन की हिरोइन है और अपन तेरा हीरो।" मोहन जैसे हार नहीं मानने वाला था____"अब अपन बोल रेला है कि तू बहुत सुंदर लग रेली है तो मतलब सच में लग रेली है, समझी?"
शालू उसकी बात सुन कर खिलखिला कर हंसने लगी। उसे हंसता देख मोहन को बड़ा अच्छा लगा। ये पहली बार था जब शालू को उसकी किसी बात से हंसी आई थी। उसे हंसता देख वो कनस्तर को मांजना ही भूल गया।
"क्या हुआ? ऐसे क्यों देख रहे हो?" शालू अपनी हंसी रोकते हुए बोली____"जल्दी जल्दी बर्तन मांजो वरना अगर देर हो गई तो पता है ना कि क्या होगा?"
"बेटीचोद अपन तो तेरे को देखने में ही खो गएला था।" मोहन झेंपते हुए बोला____"अम्मा क़सम तू जब हंस रेली थी तो और भी सुंदर लग रेली थी। तभी तो अपन बर्तन मांजना भूल के तुझे देखने में खो गएला था।"
शालू ने इस बार मोहन की गाली को नज़रअंदाज़ कर दिया। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मोहन उसकी तारीफ़ कर रहा था जिसके चलते उसे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके होठों पर इस बार बहुत ही गहरी मुस्कान उभर आई थी। चेहरे पर लाज की हल्की सुर्खी भी दिखने लगी थी।
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