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Romance Three Idiot's

parkas

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Update - 01
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"क्या लगता है तुझे बूम बूम फुस्स होगा?" जगन ने सड़क पर निगाहें जमाए पूछा।
"अरे! इस बार ज़रूर होगा देख लेना।" मोहन ने सिर हिला कर कहा।

"पिछली बार भी तूने यही बोला था मगर घण्टा कुछ नहीं हुआ।" संपत ने चिढ़े हुए लहजे में कहा____"साला जीप के दोनों पहिए उनके किनारे से निकल गए थे।"

"अरे! इस बार पक्का होगा रे, तेरे माल की कसम।" मोहन ने अपनी खीसें निपोर दी।
"मुझे यकीन है इस बार भी कुछ नहीं होगा और पहिए उनके बगल से छू मंतर कर के निकल जाएंगे। लिख के ले ले मेरे से।" संपत ने अपनी हथेली उसके सामने कर दी।

"भोसड़ी के तू न ज़्यादा ज्ञान न पेल समझा। अपन ने कह दिया कि इस बार होगा तो ज़रूर होगा।" मोहन ने मजबूती से सिर हिलाया।

"लंड होगा भोसड़ी के।" संपत ने खिसिया कर कहा____"साले पाँचवीं फेल तेरे भेजे में भेजा ही नहीं है। अपन ने पहले जो तरीका बताया था उसी से होगा।"

"ओए! पाँचवीं फेल किसको बोला बे?" मोहन मानों तैश में आ कर बोला____"तेरे से ज़्यादा भेजा है अपन के भेजे में। तू पांचवीं पास है तो क्या हुआ।"

"अपन पांचवीं पास है तभी कुछ होता है और इसका सबूत हज़ारो बार तुम दोनों देख चुके हो।" संपत ने मुंह बनाते हुए कहा____"हर बार अपन के ही तरीके से काम होता है। साला बात करता है...हुंह।"

"घंटा, इस बार तो अपन के तरीक़े से ही काम होगा देख लेना।" मोहन ने आँखें दिखा कर कहा।

"और अगर न हुआ तो?" संपत ने जैसे उसे ताव दिया।
"तो मेरी गांड मार लेना अब खुश?" मोहन ने मानों फ़ैसला सुना दिया।

"सुन रहा है न बे जगन?" संपत ने तीसरे की तरफ देखा____"अभी तूने भी सुना न इसने क्या बोला है? अब अगर ये अपने कहे से मुकरा तो इसकी गांड मारने में तू मेरी मदद करेगा।"

"क्यों अकेले तेरे बस का नहीं है क्या?" मोहन ब्यंग से हंस पड़ा।

"अबे दम तो बहुत है पर लौड़ा तू भाग खड़ा होता है न।" संपत ने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"इस लिए जगन तुझे पकड़ के रखेगा ताकि मैं तेरी सड़ेली गांड में अपना मोटा लंड डाल कर तेरी गांड मार सकूं।"

"ओए! चुप करो बे भोसड़ी वालो।" जगन ने दोनों को घुड़की दी और सड़क के छोर की तरफ देखते हुए बोला____"उधर से एक जीप आ रही है। इस बार अगर गड़बड़ हुई तो माँ चोद दूंगा तुम दोनों की।"

"अबे मेरी माँ कैसे चोदेगा चिड़ी मार?" संपत जैसे नाराज़ हो गया_____"वो तो कब का मर चुकी है। और वैसे भी गड़बड़ तो इस गांडू की वजह से होगी।"

उसकी बात पर मोहन गुस्से से अभी कुछ बोलने ही वाला था कि जगन ने उसके सिर पर चपत मार कर उसे चुप करा दिया। तीनों सड़क के उस छोर की तरफ देखने लगे थे जिस तरफ से एक कार आ रही थी। जैसे जैसे वो कार क़रीब आ रही थी तीनों की धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं थी।

"इस बार तो बूम बूम फुस्स हो के ही रहेगा देख लेना " मोहन ख़ुशी से बड़बड़ाया। उसकी बात बाकी दोनों के कानों में भी पहुंची थी लेकिन दोनों ही चुप रहे और कार पर नज़रें जमाए रहे।

इस वक्त ये तीनों सड़क से क़रीब दस फीट दूर उस तरफ थे जहां पर कुछ पेड़ पौधे थे। ज़ाहिर है तीनों ही छिपे हुए थे। जिस जगह पर ये तीनों छिपे हुए थे उसी के सामने सड़क के बीच में लोहे की दो कीलें खड़ी कर के रख दी गईं थी। वो कीलें रखने वाला पाँचवीं फेल मोहन था जबकि पाँचवीं पास यानि संपत उसके इस तरीके से पूरी तरह असहमत था। इसके पहले तीन बार कोई न कोई वाहन आ कर निकल गया था लेकिन वो नहीं हुआ था जिसके लिए सड़क पर वो कीलें खड़ी कर के रखी गईं थी। हर बार वाहन के पहिए कभी कीलों के इस तरफ से तो कभी उस तरफ से निकल जाते थे।

आम तौर पर अगर कोई लुटेरा इस तरह से किसी वाहन को लूटने का सोचता है तो वो सड़क पर या तो कई सारे पत्थर रख कर सड़क को ब्लॉक कर देता है या फिर सड़क पर एक्सीडेंट का बहाना बना कर खुद ही लेट जाता है। या फिर सड़क पर ढेर सारी कीलें डाल देता है जिससे वाहन के पहिए पंक्चर हो जाते हैं मगर यहाँ पर ऐसा नहीं था। जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि तीनों ही बुद्धि से माशा अल्ला थे और जिसके पास थोड़ी बहुत बुद्धि थी भी उसकी वो बुद्धि से हीन ब्यक्ति मान नहीं रहा था। मोहन ने सड़क के बीच में कुछ फा़सले पर सिर्फ दो कीलें रखीं थी और पूरे यकीन के साथ कह रहा था कि जो भी वाहन आएगा वो उन कीलों की वजह से ज़रूर पंक्चर हो जाएगा जबकि संपत इस बात से असहमत था। जगन ने हमेशा की तरह ये सोच कर कोई ज्ञान नहीं दिया था कि वो अनपढ़ है। उसके ज़हन में ये बात बैठी हुई थी कि वो अनपढ़ है इस लिए उसके पास कोई ज्ञान ही नहीं है। ऐसे थे ये तीनों नमूने.....!

"ओए! देख वो जीप एकदम पास आ गई है।" मोहन से रहा न गया तो मारे ख़ुशी के बोल ही पड़ा____"देखना इस बार इस जीप के पहिए मेरी डाली कीलों पर चढ़ जाएंगे और फिर बूम्ब बूम्ब....फुस्सस्सस्स हाहाहा।"

"भोसड़ी के अभी तो तू खुश हो रहा है।" संपत ने जैसे उसे चेताया_____"मगर थोड़ी ही देर में तू दहाड़ें मार के रोएगा जब मैं तेरी गांड मारुंगा।"

"अबे चल हट, मर गए अपन की गांड मारने वाले।" उसने शेख़ी से कहा____"अब तो अपन तेरी गांड मारेगा। देखना इस बार ये कार फुस्स्स हो जाएगी और फिर सबसे पहले मैं तेरी तबीयत से बजाऊंगा, लोल।"

"तुम दोनों चुप हो जाओ वरना मैं तुम दोनों के मुँह में लंड दे दूंगा।" जगन ने गुस्से से दोनों की तरफ देखा।

तभी वो कार उन कीलों के एकदम पास पहुँच गई। तीनों की धड़कनें जैसे एकदम से रुक ग‌ईं। उनके देखते ही देखते वो कार कीलों के बगल से निकल गई। कार के निकल जाने से नीचे सड़क पर थोड़ी हवा लगी जिससे दोनों कीलें सड़क पर गिर ग‌ईं। ये देख जहां मोहन की शकल बिगड़ कर रो देने वाली हो गई वहीं संपत ने झपट कर उसे दबोच लिया। उधर जगन गुस्से से मोहन को घूरे जा रहा था।

"अबे देख क्या रहा है जगन, पकड़ इस भोसड़ी वाले को।" संपत ने जगन को ज़ोर से आवाज़ लगाई____"ये चौथी बार था जब इसका तरीका काम नहीं आया। अब तो इसकी गांड मार के ही रहूंगा।"

"सही कहा तूने।" जगन ने भी झपट कर मोहन को पकड़ लिया, बोला____"अब तो मैं खुद भी इसको पेलूंगा।"

"अबे मादरचोदो, गंडमरो, छोड़ दो बे।" पाँचवीं फेल मोहन मानों गुहार लगा कर चिल्लाने लगा____"क्यों मेरी गदराई गांड के पीछे पड़े हो बे? सालो मुझ अबला पुरुष पर कुछ तो रहम करो रे।"

"भोसड़ी के तेरी वजह से चार बार हम नकाम हुए हैं।" संपत ने जबरदस्ती उसके पैंट की बेल्ट खोलते हुए कहा_____"ऊपर से खड़ी धूप में बुरा हाल हुआ सो अलग। जगन ज़ोर से पकड़ इस गांडू को। आज हम दोनों इसकी पेलाई करेंगे।"

"अबे हब्सियो, बेटीचोदो, रुक जाओ बे।" मोहन बुरी तरह छटपटाते हुए चिल्लाए जा रहा था____"मादरचोदो रहम करो बे। अपन ने सुना है गांड मरवाने में भयंकर दर्द होता है। क्या सच में मेरी गांड मार लोगे बे, छोड़ो मुझे।"

"साले दर्द होगा तभी तो तेरी अकल ठिकाने आएगी।" सम्पत उसकी पैंट पकड़ कर नीचे खींचते हुए बोला। इस वक्त वो बड़ा ही खुश दिखाई दे रहा था। ज़ाहिर है उसके मन की मुराद जो पूरी होने जा रही थी।

"अबे मादरचोदो, सबसे छोटा हूं और बिना माँ बाप का हूं इस लिए मुझे इतना सता रहे हो कमीनो।" मोहन छटपटाते हुए फिर से चीखा।

"भोसड़ी के बिना माँ बाप के तो हम दोनों भी हैं।" जगन ने एक मुक्का उसके पेट में मारा तो वो दोहरा हो कर चीख पड़ा, फिर हैरानी ज़ाहिर करते हुए बोला____"अबे तुम दोनों के भी माँ बाप मर गए? ये कब हुआ? तुम दोनों ने मुझे पहले बताया क्यों नहीं?"

"बीस सालों में ये बात लगभग लाखों बार तुझे बता चुके हैं भोसड़ी के।" सम्पत ने पैंट को खींच के उसकी टाँगों से अलग कर दी, और फिर उसके कच्छे को पकड़ते हुए बोला_____"और तू हर बार भूल जाता है, पर अब से नहीं भूलेगा।" कहने के साथ ही उसने जगन की तरफ देखते हुए कहा____"पहले तू इसकी गांड मारेगा या मैं?"

"अबे मादरचोदो, कमीनो, कुत्तो छोड़ दो बे।" संपत ने जैसे ही उसके कच्छे को पकड़ कर उतारना चाहा तो वो पूरी ताकत लगा कर खुद को छुड़ाने की कोशिश करने लगा, फिर बोला____"मेरी गांड की तरफ देखा भी तो अच्छा नहीं होगा। सालों दोनों के मुँह में हग दूंगा।"

इतना कहने के बाद उसने अज़ीब तरह से ज़ोर लगाते हुए अपने जिस्म को उठाया तो अगले ही पल फ़िज़ा में उसके पादने की ज़ोरदार आवाज़ गूँज उठी।

"तेरी माँ की चूत भोसड़ी के।" संपत जो उसके नीचे ही घुटनों के बल बैठा था उसके पादते ही उसका कच्छा छोड़ भाग कर दूर खड़ा हुआ और इधर जगन भी उसे छोड़ कर दूर हट गया। दोनों ने अपनी अपनी नांक दबा ली थी।

"लगता है बिना गांड मरवाए ही तेरी फट गई भोसड़ी के।" जगन ने एक लात उसकी पसली में मारते हुए कहा तो मोहन दर्द से कराहा और फिर जल्दी ही उठ कर अपनी पैंट पहनने लगा।

"देख लूंगा तुम दोनों को भोसड़ी वालो।" फिर उसने दोनों को घूरते हुए कहा____"किसी दिन सोते में ही तुम दोनों की गांड मार लूंगा मैं।"

"लगता है इसकी गांड मारनी ही पड़ेगी।" जगन ने संपत की तरफ देखा____"पकड़ इसको, इस बार चाहे ये पादे या हग दे लेकिन रुकना मत।"

दोनों को अपनी तरफ बढ़ते देख वो एकदम से हड़बड़ाया और सड़क की तरफ गालियां देते हुए भाग खड़ा हुआ। इधर जगन और संपत मुस्कुराते हुए सड़क की तरफ बढ़ चले।

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शाम हो चुकी थी और चारो तरफ हल्का अंधेरा छा गया था। संपत जगन और मोहन नाम के तीनों नमूने भूख से बेहाल दर दर भटकते हुए भैंसों के एक तबेले के पास पहुंचे। उन्होंने देखा तबेले में कई सारी भैंसें बंधी हुईं थी और हरी हरी किंतु कतरी हुई घांस में मोया हुआ भूसा खा रहीं थी। तबेले में एक लंबा चौड़ा तथा हट्टा कट्टा आदमी एक भैंस के पास बैठा बाल्टी में लिए पानी से उसके थनों को धो रहा था।

"काश! हम भी भैंस होते तो कितना अच्छा होता ना?" मोहन ने तबेले की तरफ ललचाई हुई दृष्टि से देखते हुए कहा____"कभी भूखे ना रहना पड़ता। साला भर पेट भूसा खाने को मिलता।"

"सही कह रहा है।" संपत ने जैसे उसकी बात का समर्थन करते हुए कहा____"और हगने के लिए भी कहीं नहीं जाना पड़ता। उन भैंसों की तरह एक ही जगह पर खड़े खड़े खाना खाते और वहीं हगते रहते। इतना ही नहीं हमें खुद नहाने की भी ज़रूरत न पड़ती, क्योंकि वो तबेले वाला आदमी हमें रोज़ अच्छे से मल मल के नहलाता।"

"सच में यार।" जगन ने मानो आह भरी____"क्या किस्मत है उन भैंसों की। काश हम भी भैंस होते तो हमारी भी किस्मत ऐसी ही मस्त होती।"

"अबे सुन मेरे भेजे में अभी अभी एक मस्त पिलान आएला है।" मोहन ने उस हट्टे कट्टे आदमी की तरफ देखते हुए कहा____"अपन लोग चुपके से तबेले में चलते हैं और भैंसों के दूध में मुंह लगा कर सारा दूध पी लेते हैं। कसम से बे मज़ा ही आ जाएगा।"

"घंटा मज़ा आ जाएगा।" संपत उसे घूरते हुए बोला____"अगर एक बार भी भैंस ने लात मार दी तो अपन लोगों का भेजा भेजे से निकल के बाहर आ जाएगा समझा?"

"अबे ऐसा कुछ नहीं होगा।" मोहन लात खाने के डर से कांप तो गया था किंतु फिर जल्दी ही अपनी बुद्धि का दिखावा करते हुए बोला____"हम में से दो लोग भैंस के पैर पकड़ लेंगे और एक आदमी गटागट कर के जल्दी जल्दी भैंस का दूध पी लेगा। उसके बाद ऐसे ही हम तीनों एक एक कर के भैंस का दूध पी लेंगे।"

"तू न अपनी बुद्धि अपनी गांड़ में डाल ले भोसड़ी के।" संपत ने तैश में कहा____"साले तुझे अभी पता नहीं है कि भैंस में कितनी ताकत होती है। अगर हम उसका पैर पकड़ेंगे तो वो एक ही झटके में हमें उछाल कर दूर फेंक देगी। दूध तो घंटा न पी पाएंगे मगर हाथ मुंह ज़रूर तुड़वा लेंगे अपना।"

"अबे एक बार कोशिश तो करनी ही चाहिए न।" मोहन मानों अपनी बुद्धि द्वारा कही गई बात मनवाने की ज़िद करते हुए बोला____"क्या पता भैंस को हम पर तरस ही आ जाए और वो आसानी से हमें अपना दूध पिला दे।"

"चल मान लिया कि भैंस कुछ न करेगी।" संपत ने कहा_____"पर अगर तबेले के उस हट्टे कट्टे आदमी ने हमें दूध पीते देख लिया तो? लौड़े वो बिना थूक लगाए हम तीनो की गांड़ मार लेगा। दूध तो नहीं पर अपनी अपनी गांड़ फड़वाए ज़रूर यहां से जाना पड़ेगा हमें।"

संपत की बात सुन कर एक बार फिर से मोहन डर से कांप गया। इस बार उससे कुछ कहते ना बन पड़ा था। ये अलग बात है कि वो एक बार फिर से अपना दिमाग़ लगाने में मशगूल हो गया था।

"क्या हुआ चुप क्यों हो गया?" मोहन को ख़ामोश देख संपत ने मुस्कुराते हुए कहा____"गांड़ फट गई क्या तेरी?"

"बेटा दूध तो पी के ही जाएंगे यहां से।" मोहन जैसे हार मानने वाला नहीं था, बोला____"फिर चाहे अपनी गांड़ ही क्यों न फड़वानी पड़े। साला पेट में चूहे दौड़ रहे हैं। अगर कुछ खाने को न मिला तो कुछ देर में मर जाऊंगा मैं।"

"क्यों न हम उस तबेले वाले से दूध मांग लें।" काफी देर से चुप जगन ने मानों खुद राय दी____"उससे कहें कि हम भूखें हैं और हमें थोड़ा दूध दे दे।"

"तू तो चुप ही रह बे कूड़मगज।" संपत मानों चढ़ दौड़ा उस पर____"वो कोई सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं है जो मांगने से हमें अपना दूध दान में दे देगा।"

"एक काम करते हैं फिर।" मोहन को जैसे एक और तरकीब सूझ गई, खुशी से बोला____"हम दूध चुरा लेते हैं। जब वो आदमी भैंस का दूध बाल्टी में निकाल लेगा तो हम उसे चुरा लेंगे। पिलान मस्त है न?"

"घंटा मस्त है।" संपत ने बुरा सा मुंह बनाया____"भला हम उस हट्टे कट्टे आदमी के रहते उसका दूध कैसे चुरा लेंगे? अगर उसने दूध चुराते हुए हमें देख लिया तो समझो हम तीनों की गांड़ बिना तेल लगाए मार लेगा वो।"

"बेटीचोद तुझे तो अपन की हर बात फिजूल ही लगती है।" मोहन ने गुस्से से कहा____"खुद को अगर इतना ही हुद्धिमान समझता है तो तू ही बता कैसे हम उसका दूध पी सकेंगे?"

मोहन की बात सुन कर संपत सोचने वाली मुद्रा में आ गया। वो तबेले की तरफ देखते हुए सोच में डूब ही गया था कि तभी उसकी नज़र तबेले के बाहर अभी अभी नज़र आए एक युवक और एक औरत पर पड़ी। युवक इन तीनों की ही उमर का था जबकि वो औरत उमर में उससे काफी बड़ी थी। तबेले के बगल में अचानक ही वो दोनों जाने कहां से आ गए थे। युवक ने उस औरत को पीछे से पकड़ कर खुद से चिपका लिया और दोनों हाथों से उस औरत की बड़ी बड़ी चूचियों को मसलने लगा। ये देख संपत के जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी। उसने फ़ौरन ही मोहन और जगन को उस तरफ देखने को कहा तो वो दोनों भी उस तरफ देखने लगे। वो औरत चूचियों के मसले जाने से मचले जा रही थी।

"इसकी मां की।" मोहन बोल पड़ा____"उधर तो कांड हो रेला है बे।"
"तुझे भी करना है क्या?" संपत ने उसके बाजू में हल्के से मुक्का मारा तो मोहन ने कहा____"मिल जाए तो कसम से मज़ा ही जाए।"

मोहन की बात पर संपत अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी उसने देखा तबेले में भैंस के थन को धुल रहा आदमी उठा और कुछ दूर रखी दूसरी बाल्टी को उठा कर दीवार के पास रख दिया। हल्के अंधेरे में भी बाल्टी में भरा सफेद दूध दिख रहा था। आदमी पलट कर फिर से भैंस के पास गया और बाल्टी का पानी एक तरफ फेंक कर उसमें उस भैंस का दूध निकालने लगा।

"अबे काम बन गया।" संपत एकदम से उत्साहित सा बोल पड़ा तो बाकी दोनों चौंक पड़े और उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखने लगे।

"तुम दोनों ने देखा न अभी अभी वो तबेले वाला हट्टा कट्टा आदमी बाल्टी भर दूध उस दीवार के पास रख के गया है।" संपत कह रहा था____"और अब वो उस भैंस के पास जा कर उसका दूध निकाल रहा है। बस यहीं पे काम बन गया है।"

"अपनी समझ में घंटा कुछ नहीं आया।" मोहन ने झल्ला कर कहा____"साफ साफ बता ना भोसड़ी के।"

"समझ में तो तब आएगा भोसड़ी के।" संपत ने उसे घूरते हुए कहा____"जब तेरे भेजे में भेजा होगा। साला पांचवीं फेल।"

"पांचवीं फेल किसको बोला बे?" मोहन गुस्से से चढ़ दौड़ा उस पर मगर जगन ने बीच में ही रोक लिया उसे।
"तू बता तेरे दिमाग़ में क्या तरकीब है?" फिर जगन ने संपत से पूछा।

"तू तो देख ही रहा है कि इस वक्त तबेले में वो आदमी अकेला ही भैंस का दूध निकाल रहा है।" संपत जैसे समझाते हुए बोला____"और हमारी तरफ उसकी पीठ है। इधर तबेले के बगल से दीवार के उस पार वो लड़का उस औरत के साथ लगा हुआ है। यानि उसका ध्यान हमारी तरफ हो ही नहीं सकता। तो अब तरकीब यही है कि हम तीनों चुपके से वहां चलते हैं और दीवार के पास रखी दूध से भरी उस बाल्टी को उठा कर छू मंतर हो जाते हैं। ना तो तबेले वाले उस आदमी को इसका पता चल पाएगा और न ही उन दोनों को जो दीवार के पार कांड कर रहे हैं। क्या बोलता है, तरकीब मस्त है ना।"

"कोई ख़ास नहीं है।" मोहन ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा। इस पर संपत उसकी तरफ इस अंदाज़ से देखा जैसे उसने कोई किला फतह कर लिया हो और उसके सामने उसकी बुद्धि की कोई औकात ही नहीं है।

बहरहाल, संपत के कहे अनुसार तीनों चुपके से तबेले की तरफ बढ़ चले। कुछ ही देर में वो तीनों उस बाल्टी के पास पहुंच गए। तीनों की ही धड़कनें बढ़ी हुईं थी। संपत ने जहां जगन को आस पास नज़र रखने का इशारा कर दिया था वहीं मोहन को तबेले वाले आदमी और उन दोनों की तरफ जो कांड कर रहे थे। संपत ने जैसे ही दूध से भरी बाल्टी को हाथ लगाया तो तबेले में मौजूद दो तीन भैंसों ने उसकी तरफ देखा और एकदम से रंभाने लगीं। भैंसों की आवाज़ सुन कर तीनों की ही गांड़ फट के हाथ में आ गई। उधर भैंसों के रंभाने से तबेले वाले उस आदमी ने गर्दन घुमा कर एक बार भैंसों की तरफ देखा और फिर से अपने काम में लग गया। ये देख संपत ने राहत की सांस ली और बाल्टी को उठा कर दबे पांव वापस चल पड़ा। उसके पीछे जगन और मोहन भी हलक में फंसी सांसों को लिए चल पड़े।

कुछ ही देर में तीनों तबेले से दूर आ कर एक बढ़िया सी जगह पर रुक कर सुस्ताने लगे। दूध से भरी बाल्टी तीनों के बीच रखी हुई थी जिसमें भैंस का गाढ़ा दूध झाग के साथ बाल्टी की सतह तक भरा हुआ था।

"मान गया तेरे दिमाग़ को।" जगन ने संपत की तारीफ़ करते हुए कहा____"क्या तरकीब लगाई तूने। अगर तू ऐसी तरकीब न लगाता तो आज हम तीनों भूखे ही मर जाते।"

"इतनी भी खास तरकीब नहीं थी इस चिड़ी मार की।" मोहन ने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"शुकर करो कि उस आदमी ने भैंसों की आवाज़ को सुन कर सिर्फ भैंसों की तरफ देखा था। अगर उसने एकदम से पीछे की तरफ ही देख लेता तो सोचो हमारा क्या हाल होता फिर।"

"जो भी हो।" जगन ने कहा____"पर ये तो सच है न कि संपत की वजह से ही इतना सारा दूध हमें पीने के लिए मिल गया है। साला दोपहर से कुछ खाने को नहीं मिला था। इस दुनिया के लोग बड़े ही ज़ालिम हैं। कोई भूखे को खाना ही नहीं देता।"

"अब ये सब छोड़ो।" संपत ने कहा____"और बाल्टी के इस दूध को पीना शुरू कर दो। उसके बाद हम फ़ौरन ही इस जगह से भाग जाएंगे। अगर तबेले वाला वो आदमी अपने दूध की खोज करते हुए इस तरफ आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे।"


संपत की बात सुन कर जगन और मोहन ने सिर हिलाया और फिर एक एक कर के तीनों उस दूध को पीने लगे। इतने सालों में आज पहली बार इतना सारा दूध पीने को मिला था उन्हें। बाल्टी में इतना दूध था कि तीनों के पीने से भी खत्म न हुआ। कुछ देर तक तीनों एक दूसरे का मुंह देखते रहे उसके बाद तीनों ने थोड़ा थोड़ा कर के पूरा दूध पी लिया। पेट पूरी तरह से भर गया था अब। जिस्म में जैसे नई ताज़गी और नई जान आ गई थी। खाली बाल्टी को वहीं छोड़ तीनों भाग लिए उधर से। अभी वो कुछ ही दूर गए होंगे कि तबेले का आदमी इधर इधर निगाह दौड़ाते हुए इस तरफ आ पहुंचा। उसकी नज़र जैसे ही अपनी खाली बाल्टी पर पड़ी तो वो चौंक पड़ा और फिर अगले ही पल उसके चेहरे पर गुस्से के भाव उभर आए। गंदी गंदी गालियां बकते हुए उसने खाली बाल्टी को उठाया और वापस तबेले की तरफ बढ़ गया।

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Bahut hi badhiya update diya hai The_InnoCent bhai....
Nice and beautiful update....
 

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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:congrats: शुभम भाई
कहानी रोमैन्स से ज्यादा हास्य-व्यंग्य की लग रही है

राहजनी से लेकर दोध चुराने तक इनके कारनामे वास्तव में मूर्खतापूर्ण लगे
लेकिन ये भी है कि इंसान सबकुछ छोड़ सकता है लेकिन पेट भरने के लिए कुछ भी कर सकता है
और तब तक करता है, जब तक उसका पेट ना भर जाए
 
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ये तीन तिलंगे मुर्ख ही नही , निकम्मे , अकर्मण्य और नाकारे भी है। एक लम्बी चौड़ी सड़क पर मात्र दो किलें रखकर राहजनी कौन करता है ! वो भी इस तरह कि हवा के एक हल्के झोंके से ही किल उड़ कर गायब हो जाए।

अपनी भूख मिटाने के लिए भैंस की दूध भी चोरी करना चाहते थे। जवान मर्द है ये सब , प्रभू ने हाथ - पांव सलामत ही दिए है फिर क्यों न कोई दिहाड़ी मजदूर वाला काम ही कर लेते ! लेकिन लगता है , ये भूखे मर जाएंगे लेकिन मेहनत और इमानदारी का काम नही करेंगे।
आगे चलकर जरूर कोई ऐसा वैसा कार्य करेंगे ये सब जो इनके लिए भारी मुसीबत का वायस बन सकता है। जरूर ही ये ' आ बैल मुझे मार ' वाली हरकतें करने वाले है।

वैसे पहलवान जी बड़े ही इत्मिनान से भैंस का दूध दूह रहे है , इस बात से बेखबर की कोई इनकी धर्म पत्नी का दूध भी दूह रहा है।

बहुत खुबसूरत अपडेट शुभम भाई।
आउटस्टैंडिंग अपडेट।
 

ranipyaarkidiwani

Rajit singh
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Thanks

Readers khud nahi chaahte ki wo story complete ho :silly:
Gine chune hi story hai jo best hai unme aap last vali bhi hai jo adhori hai jitne padh rahe hai jitne comment karte hai unke liye hi likh do bhai pls mujhe intrest hai padhne me bhi ek reader hu bhai please continue the story
 

The_InnoCent

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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कहानी की रूपरेखा तो काफी दिलचस्प लग रही हैं। कहानी किसी भी श्रेणी में क्यों ना हो, आप लिखते बहोत कमाल हो। नई कहानी के लिए शुभकामनाएं...
Thanks
 
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