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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Sanju@

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प्रिय पाठकों सभी से निवेदन हैं अपडेट को पड़ने से पहले उपर दिए अनुनय विनय को पढ़ लिजिए

Update - 2

बदन का कोना कोना घिस घिस कर चमकाया गया। इतना घिसा गया बेदाग बदन पर लाल लाल निशान पड़ गया मानो राघव को अपने बदन से कोई खुन्नाश हो जिसे वो घिस घिस कर निकाल रहा हों। मल युद्ध खत्म हुआ भीगे बदन को तौलिए से सुखाकर राघव बाथरूम से निकला, अलमीरा से कपड़े निकाल पहना फिर शीशे के समने खड़े होकर हेयर ड्रायर से बालों को सुखाकर जेल लगाया फिर तरह तरह के हेयर स्टाइल बनाकर देखा संतुष्टि मिलते ही थोडा ओर टच ऑफ देकर डन कर दिया। डीईओ से खुद को महकाया और रूम फ्रेशनर से रूम को भी महका दिया जिससे लगे एक नए दिन की शुभारंभ हों चुका था लेकिन कितना शुभ होगा यह तो ऊपर बैठा जिसे लोग न जाने किस किस नाम से बुलाते हैं। वहीं जनता हैं।

राघव रूम फ्रेशनर स्प्रे कर ही रहा था। तभी तन्नू ने आकार जोर जोर से दरवाजा पीटते हुए धावा बोल दिया। इतने जोर जोर से दरवाजा पीटे जाने से राघव बोला " कौन हो भाई दरवाजा अच्छा नहीं लगा रहा जो पीट पीट कर तोड़ने पर तुली हों। एक मिनट रुको मैं आया।"

तन्नु " भईया जल्दी दरवाजा खोलो सुनामी आया। आप बह जाओगे।"

सुनामी सुनते ही अच्छे अच्छे पहलवान की गीली-पीली हों जाती हैं। राघव ठहरा साधारण इंसान, इसको डर और अचंभे ने ऐसा मर मार विचारे की दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। क्या करें समझ नहीं आया तो जाकर दरवाजा खोला, बाहर मुंडी निकलकर देखते हुए बोला " कहा आया सुनामी।"

तन्नु " ही ही ही …… भईया आपके कमरे में अपकी प्यारी बहनिया सुनामी बनकर आईं।"

एक गहरी श्वास लिया छीने पर हाथ रख राघव बोला " क्या यार तन्नु डरा दिया, मुझसे मिलने का तुझे कोई ओर तरीका नहीं सूझता।"

तन्नु " भईया आप जानते हों न जब भी मैं आपसे मिलने आती हूं,, मूझसे वेट नहीं होता इसलिए मैं तरह तरह के बहने बनाकर दरवाजा खुलवाती हूं।"

राघव "हां हां जनता हूं मेरी बहना प्यारी को, वो बहुत नटखट हैं। उसकी ये अदा मेरे दिन को सुहाना कर देता हैं।"

तन्नु " ही ही ही…. वो तो मैं हूं ही अब आप जल्दी चलो।"

राघव तन्नू का हाथ पकड़ चल देता जैसे ही दोनो डायनिंग हॉल में पहुंचे, वहां अटल जी बैठे प्रगति के साथ चाय पर चर्चा कर रहे थे। राघव को तन्नु के साथ आते देख टोंट करते हुए बोले "देखो तो ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी रियासत का राजा हों। तनुश्री बेटा जिसका हाथ थामे दसी की तरह ला रहे हों ये निक्कमा किसी रियासत का राजा नहीं, डिग्री तो ले लिया जो इसके किसी काम का नहीं मेरे छीने पर मूंग डाले बैठा हैं और बोटी बोटी नोच रहा हैं।"

हो गई सुभारंभ दिल की खोली में अरमान लिए आया था चैन से बैठ कर दो रोटी खायेगा, रोटी तो मिली नहीं रोटी की जगह खाने को ताने मिला, हाथ झटककर छुड़ाया फिर चल दिया तन्नु तकती रह गई। तन्नु उसके पीछे जा ही रही थीं कि अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों,जाने दो उसे वो इसी लायक हैं। तुम उसके पिछे गई तो अच्छा नहीं होगा। चुप चाप यहां बैठो और नाश्ता करों"

तन्नु बाप के आज्ञा का निरादर नहीं कर सकता था इसलिए मुंह लटकाएं आंखो में पानी लिए चुप चाप बैठ गई। हल्की नमी प्रगति के आंखो ने भी बाह दिया लेकिन अटल जी बिलकुल अटल रहे न दिल पसीजा न ही जुबान लड़खड़ाया। चाय का काफ मेज पर रख प्रगति से मुखातिब हुए " ऐसे न देखो दिल के झरोखे में छाले पड़ जायेंगे, जाकर तनुश्री को नाश्ता दो।

प्रगति क्या बोलती पतिव्रता नारी हैं साथ फेरो के साथ वचनों से बंधी, आंखो में आई नमी को पोछकर दर्द जो दिल में उठा उसे दबाकर चल दिया। किचन में जाकर प्रगति खुद को ओर न रोक पाई और सुबक सुबक कर रोने लगीं, रोना शायद विधाता ने इसके किस्मत में लिखकर भेजा। तभी तो अंचल में मुंह छुपाए बीना आवाज किए रो रहीं थीं। आने में देर लागी तो फिर से अटल जी की वाणी का तीर छूटा " कितना देर लगाओगी इतनी देर में तो बाघ एक्सप्रेस काठगोदाम से हावड़ा पहुंच जाता। तुम भी इस बेरोजगार की तरह अलसी हों जब तक दो चार डोज न मिले हाथ पांव नहीं चलता।"

तन्नु नजरे उठाकर देखी जो अब तक झुकी हुई थीं। बाप के हाव भाव समझना चाही लेकिन बाप तो पत्थर की मूरत, जिसे न हवा पानी न ही धूप नुकसान पहुंचा पाए फिर करना किया था आराम से नजरे झुका लीं। प्रगति एक प्लेट में जो कुछ भी बनया था लेकर आई, मेज पर तन्नु के सामने रख दिया। तन्नु का मन नहीं था बेमन से खाने लगी, बेमन का भाव देखकर अटल जी बोले "खाना हैं तो मन से खाओ, खाने की बेअदगी मुझे बर्दास्त नहीं, नहीं मन हैं तो थाली छोड़कर उठ जाओ"

तन्नु क्या करती बाप की बातों से पेट का कोना कोना भर गया था लेकिन उसे बाप की उम्मीद पे खारा जो उतरना था इसलिए न चाहते हुए भी मन लगाकर खाने लगीं तन्नु को खाता देखकर अटल जी बोले " साबास बेटी इस घर में तुम ही एक हों जो मेरी उम्मीद के पुल पर चलती हों, बाकी तो सब मेरे उम्मीद पर पानी फेर देते हैं"

प्रगति इस तरह का टोंट बर्दास्त नहीं कर पाई इसलिए किचन की ओर जानें लगीं तब अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों कमरे से मेरी पोथी का पोटला ले आओ मुझे एक जजमान से मिलने जाना हैं।"

प्रगति चुपचाप घूमकर कमरे में गई पोथी का पोटला उठाया फिर लेकर अटल जी को दे दिया। अटल जी जाते हुए बोले " दिवाली आने वाली हैं अपने बेटे से कहना घर की सफाई ढंग से करे मुझे कही कोई कमी नहीं दिखना चाहिए"

इस बार प्रगति साहस की कुछ बूंदे इकट्ठा कर बोली " राघव को रहने दो एक काम वाली को बुलाकर सफाई करवा लूंगी।"

बस फिर किया था अटल जी अटल मुद्रा धारण किया फिर बोले " पैसे पेड़ पर नहीं उगते, कमाने में सर का पसीना पाव में आ जाता। किसी काम वाली को बुलाने की जरूरत नहीं, बेरोजगारी की हदें पार कर घर बैठा हैं उसी से करवाना एवज में उसे कुछ खर्चा मिल जाएगा।"

इसके बाद तो प्रगति के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था। शब्दों की तीर जो दिल को छलनी कर दे न जानें मां का दिल कितनी बार छलनी हुआ। छलनी होकर जार जार हो गई, फिर भी कुछ कह न पाई कई बार कोशिश किया हर बर मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि अटल के अटल इरादे के सामने प्रगति न टिक पाई। अटल के जाते ही प्रगति दौड़ी, तन्नु खाने की थाली वैसे ही छोड़कर भागी दोनों पहुंचे जाकर राघव के कमरे, कमरे का दरवाजा खुला था राघव अदंर नही था। प्रगति और तन्नु एक दूसरे का मुंह ताके राघव गया तो गया कहा। राघव को न देखकर तन्नु रुवाशा होकर बोली " मम्मा भईया तो यह नहीं हैं कहा गए होंगे"

प्रगति को पता होता तो खुद न चाली जाती। तन्नु को सुनाकर प्रगति परेशान होकर बोली " पता नहीं कहा गई। इनको भी हमेशा चूल चढ़ी रहती हैं जो कहना हैं खाने के वक्त ही कहेंगे मेरे बेटे का जीना ही दुभर कर दिया हैं, न जानें किस जन्म का बदला ले रहे हैं।"

तन्नु " मम्मा बदला वादला छोड़ो चलो भईया को ढूंढते हैं।"

दोनों घर से निकाल पड़ी राघव को ढूंढने बहार आते ही देखा राघव की बाइक वहीं खड़ी थी। जिसे प्रगति ने पिछले बर्थ डे में गिफ्ट किया था। प्रगति झूठ बोलकर अटल से पैसे लेकर राघव के लिए खुद जाकर बाइक पसंद किया था। साथ में तन्नु भी गई थी। बाइक के आते ही अटल जी अटल मुद्रा धारण किया और बवाल मांचा दिया उस दिन राघव का बर्थ डे था प्रगति नहीं चहती थी राघव का यह दिन खराब हो इसलिए प्रगति काम करके पैसे चुकाने की बात कहीं तो यह बात अटल को अहम पर चोट जैसी लगीं। तब जाकर अटल के तेवर में कमी आई।

बाइक देखकर तन्नु बोली " मम्मा बाइक तो यहां खड़ी हैं इससे जन पड़ता, भईया पैदल ही गए हैं।

तब प्रगति बोली " जाकर मेरा मोबाइल लेकर आ"

तन्नु भागी अंदर। अब देखते हैं राघव कहा गया। राघव बाप की खारी खोटी सुनकर सीधा घर से बाहर निकला बाहर आते आते उसके मन को जो ठेस पहुंचा था वो नीर बनकर अविरल बह निकला, राघव नीर बहते हुए बाइक को एक नजर देखा फिर पैदल ही चल दिया। घर से कुछ ही दूरी पर एक मैदान हैं। राघव वहा जाकर बैठ गया, बाप के बातो से उसे इतना चोट पहुंचा था। जिसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं था। राघव बीते दिनो को याद कर नीर बहाए जा रहा था। ऐसा नहीं की अटल हमेशा से राघव के साथ सौतेला व्यवहार करते थे। वो राघव से बहुत प्यार करते थे उनके व्यवहार में तब से परिवर्तन आने लगा जब राघव उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर की पढ़ाई किया। राघव बैठे बैठें उन प्यार भरे पालो को याद करने लगा। यादों में इस कदर खोया था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कोई उसके पास आकार खडा हुआ और उसे आवाज दे रहा था। आवाज देने वाले शख्स को प्रतिक्रिया न मिलने पर कंधा पकड़ हिलाया। दो तीन बार हिलाने पर राघव यादों की झरोखे से बाहर निकला पलटकर पिछे देखा। देखते ही राघव के लव जो अब तक भोजिल थे। खुला और उदास चहरे पर एक सुहानी मुस्कान आया फिर राघव बोला " सृष्टि तुम! कब आई ? कैसी हों?"

जी ये हैं राघव की सोनू मोनू बाबू सोना वाली गर्लफ्रेंड। ऐसा नहीं कहूंगा विश्व सुंदरी हैं। जरूरी तो नहीं सिर्फ विश्व सुंदरियों से प्रेम हों। हीरो अपना सुपर स्मार्ट लेकिन हीरोइन थोड़ी ढल हैं। नैन जिसके मद रस से भरी पीकर दीवाना हो जाइए बैरी बाबरी, गालों पे एक डिंपपल जो दिलकश चहरे को मन लुभावन का भाव दे। रस की भरमार होंटो के किया ही कहने। निचली होंठ के किनारे एक छोटा सा तिल दमकते चहरे के पहरेदारी में खडा मानो कह रहीं हो इधर न देखना नजरे उठा कर वरना पहरा लगा दूंगा नकाब का लबों पे रहती हैं हमेशा एक मीठी सी मुस्कान ये है अपनी हीरोइन की पहचान।

नाम सृष्टि बनर्जी हैं लेकिन इस धरा पर राघव के अलावा कोई ओर नहीं था अनाथ आलय में पली बड़ी हुई दोनों का प्रेम प्रसंग पिछले छ साल से चल रहा हैं दोनों एक फंक्शन मिले थे। राघव को उसके गालों पर पड़ने वाली डिम्पल और होटों के पहरेदारी में खड़ी तिल ने राघव के मन मोह लिया दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़े सृष्टि ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था और इस वक्त एक अच्छी जॉब करती हैं। राघव के बेरोजगार होने से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि दोनों के प्रेम डोर दिल से जुड़े हैं न की जिस्म और परिस्थिती से जुड़ा हैं।


सृष्टि लबों पे मुस्कान लिए बोली " मैं तो अभी अभी आई हूं, तुम किस सोच में गुम थे कितनी आवाज दी सुना ही नहीं।"

राघव हाथ पकड़ सृष्टि को पास बिठाया उसके कंधे पर सर रखा। सर रखते ही राघव को अपर शांति की अनुभूति हुआ। शायद इसलिए कहते हैं जीवन में सच्चा प्रेम का होना बहुत जरूरी हैं। जो शांति सकून एक सच्चा प्रेमी या प्रेमिका दे सकता/ सकती वो ढोंगी प्रेमी नही दे सकता। प्रेम की अनुभूति अगर सच्चा हो तो दोनों प्रेमी खींचा चला आता। चाहे यह लोक हों या प्रलोक इसलिए तो विधाता ने मूलवान उपहार स्वरूप प्रेम का वरदान दिया । लेकिन यह वरदान हमेशा अभिशाप बनकर रह क्योंकि समाज के कायदे कानून प्रेम को तिरस्कार की दृष्टि से देखता, समझ नहीं आता ये कैसे कायदे कानून हैं जो सिर्फ़ प्रेमी जोड़े के लिए हैं। प्रेम की परिभाषा समझाने वाले की पूजा करते हैं लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान से प्रेम करे तो इनके आंखो में खटकता हैं। जो प्रेमियों के राह में कटे बिछा देते, जो इनके लिए दुःख दाई , पीड़ा दाई ओर कष्टों से भरा होता हैं।

कुछ ज्यादा ही फ्लो में बह गया था और लम्बा चौड़ा प्रवचन लिख डाला क्या करूं प्रेम पुजारी हुं लेकिन जिसकी प्रेम की पूजा करना चाहता हूं वो अभी तक नहीं मिला लगता हैं इधर का रस्ता ही भुल गई और किसी दूसरे प्लानेट पर लैंड कर गई। खैर गौर तलब मुद्दा ये हैं खोजबीन जारी हैं मिल गई तो मस्त स्माइल के साथ फोटो पोस्ट कर दूंगा लाईक और कोमेट कर देना।


अपडेट यहीं खत्म करता हूं। दोनों प्रेमी जोड़े का वर्तालब next Update में दूंगा जानें से पहले इतना कहूंगा उंगली करके लाईक ओर कॉमेंट छोड़ जाना बरना…… बरना क्या करूंगा कुछ नहीं कर सकता अपकी उंगली अपका मोबाइल, अपका लैपटॉप उंगली करे या न करें अपकी इच्छा मेरी इच्छा से थोड़ी न चलेंगे।
Nice update 👌👌👌👌👌👌
 

Sanju@

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Update - 2

बदन का कोना कोना घिस घिस कर चमकाया गया। इतना घिसा गया बेदाग बदन पर लाल लाल निशान पड़ गया मानो राघव को अपने बदन से कोई खुन्नाश हो जिसे वो घिस घिस कर निकाल रहा हों। मल युद्ध खत्म हुआ भीगे बदन को तौलिए से सुखाकर राघव बाथरूम से निकला, अलमीरा से कपड़े निकाल पहना फिर शीशे के समने खड़े होकर हेयर ड्रायर से बालों को सुखाकर जेल लगाया फिर तरह तरह के हेयर स्टाइल बनाकर देखा संतुष्टि मिलते ही थोडा ओर टच ऑफ देकर डन कर दिया। डीईओ से खुद को महकाया और रूम फ्रेशनर से रूम को भी महका दिया जिससे लगे एक नए दिन की शुभारंभ हों चुका था लेकिन कितना शुभ होगा यह तो ऊपर बैठा जिसे लोग न जाने किस किस नाम से बुलाते हैं। वहीं जनता हैं।

राघव रूम फ्रेशनर स्प्रे कर ही रहा था। तभी तन्नू ने आकार जोर जोर से दरवाजा पीटते हुए धावा बोल दिया। इतने जोर जोर से दरवाजा पीटे जाने से राघव बोला " कौन हो भाई दरवाजा अच्छा नहीं लगा रहा जो पीट पीट कर तोड़ने पर तुली हों। एक मिनट रुको मैं आया।"

तन्नु " भईया जल्दी दरवाजा खोलो सुनामी आया। आप बह जाओगे।"

सुनामी सुनते ही अच्छे अच्छे पहलवान की गीली-पीली हों जाती हैं। राघव ठहरा साधारण इंसान, इसको डर और अचंभे ने ऐसा मर मार विचारे की दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। क्या करें समझ नहीं आया तो जाकर दरवाजा खोला, बाहर मुंडी निकलकर देखते हुए बोला " कहा आया सुनामी।"

तन्नु " ही ही ही …… भईया आपके कमरे में अपकी प्यारी बहनिया सुनामी बनकर आईं।"

एक गहरी श्वास लिया छीने पर हाथ रख राघव बोला " क्या यार तन्नु डरा दिया, मुझसे मिलने का तुझे कोई ओर तरीका नहीं सूझता।"

तन्नु " भईया आप जानते हों न जब भी मैं आपसे मिलने आती हूं,, मूझसे वेट नहीं होता इसलिए मैं तरह तरह के बहने बनाकर दरवाजा खुलवाती हूं।"

राघव "हां हां जनता हूं मेरी बहना प्यारी को, वो बहुत नटखट हैं। उसकी ये अदा मेरे दिन को सुहाना कर देता हैं।"

तन्नु " ही ही ही…. वो तो मैं हूं ही अब आप जल्दी चलो।"

राघव तन्नू का हाथ पकड़ चल देता जैसे ही दोनो डायनिंग हॉल में पहुंचे, वहां अटल जी बैठे प्रगति के साथ चाय पर चर्चा कर रहे थे। राघव को तन्नु के साथ आते देख टोंट करते हुए बोले "देखो तो ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी रियासत का राजा हों। तनुश्री बेटा जिसका हाथ थामे दसी की तरह ला रहे हों ये निक्कमा किसी रियासत का राजा नहीं, डिग्री तो ले लिया जो इसके किसी काम का नहीं मेरे छीने पर मूंग डाले बैठा हैं और बोटी बोटी नोच रहा हैं।"

हो गई सुभारंभ दिल की खोली में अरमान लिए आया था चैन से बैठ कर दो रोटी खायेगा, रोटी तो मिली नहीं रोटी की जगह खाने को ताने मिला, हाथ झटककर छुड़ाया फिर चल दिया तन्नु तकती रह गई। तन्नु उसके पीछे जा ही रही थीं कि अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों,जाने दो उसे वो इसी लायक हैं। तुम उसके पिछे गई तो अच्छा नहीं होगा। चुप चाप यहां बैठो और नाश्ता करों"

तन्नु बाप के आज्ञा का निरादर नहीं कर सकता था इसलिए मुंह लटकाएं आंखो में पानी लिए चुप चाप बैठ गई। हल्की नमी प्रगति के आंखो ने भी बाह दिया लेकिन अटल जी बिलकुल अटल रहे न दिल पसीजा न ही जुबान लड़खड़ाया। चाय का काफ मेज पर रख प्रगति से मुखातिब हुए " ऐसे न देखो दिल के झरोखे में छाले पड़ जायेंगे, जाकर तनुश्री को नाश्ता दो।

प्रगति क्या बोलती पतिव्रता नारी हैं साथ फेरो के साथ वचनों से बंधी, आंखो में आई नमी को पोछकर दर्द जो दिल में उठा उसे दबाकर चल दिया। किचन में जाकर प्रगति खुद को ओर न रोक पाई और सुबक सुबक कर रोने लगीं, रोना शायद विधाता ने इसके किस्मत में लिखकर भेजा। तभी तो अंचल में मुंह छुपाए बीना आवाज किए रो रहीं थीं। आने में देर लागी तो फिर से अटल जी की वाणी का तीर छूटा " कितना देर लगाओगी इतनी देर में तो बाघ एक्सप्रेस काठगोदाम से हावड़ा पहुंच जाता। तुम भी इस बेरोजगार की तरह अलसी हों जब तक दो चार डोज न मिले हाथ पांव नहीं चलता।"

तन्नु नजरे उठाकर देखी जो अब तक झुकी हुई थीं। बाप के हाव भाव समझना चाही लेकिन बाप तो पत्थर की मूरत, जिसे न हवा पानी न ही धूप नुकसान पहुंचा पाए फिर करना किया था आराम से नजरे झुका लीं। प्रगति एक प्लेट में जो कुछ भी बनया था लेकर आई, मेज पर तन्नु के सामने रख दिया। तन्नु का मन नहीं था बेमन से खाने लगी, बेमन का भाव देखकर अटल जी बोले "खाना हैं तो मन से खाओ, खाने की बेअदगी मुझे बर्दास्त नहीं, नहीं मन हैं तो थाली छोड़कर उठ जाओ"

तन्नु क्या करती बाप की बातों से पेट का कोना कोना भर गया था लेकिन उसे बाप की उम्मीद पे खारा जो उतरना था इसलिए न चाहते हुए भी मन लगाकर खाने लगीं तन्नु को खाता देखकर अटल जी बोले " साबास बेटी इस घर में तुम ही एक हों जो मेरी उम्मीद के पुल पर चलती हों, बाकी तो सब मेरे उम्मीद पर पानी फेर देते हैं"

प्रगति इस तरह का टोंट बर्दास्त नहीं कर पाई इसलिए किचन की ओर जानें लगीं तब अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों कमरे से मेरी पोथी का पोटला ले आओ मुझे एक जजमान से मिलने जाना हैं।"

प्रगति चुपचाप घूमकर कमरे में गई पोथी का पोटला उठाया फिर लेकर अटल जी को दे दिया। अटल जी जाते हुए बोले " दिवाली आने वाली हैं अपने बेटे से कहना घर की सफाई ढंग से करे मुझे कही कोई कमी नहीं दिखना चाहिए"

इस बार प्रगति साहस की कुछ बूंदे इकट्ठा कर बोली " राघव को रहने दो एक काम वाली को बुलाकर सफाई करवा लूंगी।"

बस फिर किया था अटल जी अटल मुद्रा धारण किया फिर बोले " पैसे पेड़ पर नहीं उगते, कमाने में सर का पसीना पाव में आ जाता। किसी काम वाली को बुलाने की जरूरत नहीं, बेरोजगारी की हदें पार कर घर बैठा हैं उसी से करवाना एवज में उसे कुछ खर्चा मिल जाएगा।"

इसके बाद तो प्रगति के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था। शब्दों की तीर जो दिल को छलनी कर दे न जानें मां का दिल कितनी बार छलनी हुआ। छलनी होकर जार जार हो गई, फिर भी कुछ कह न पाई कई बार कोशिश किया हर बर मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि अटल के अटल इरादे के सामने प्रगति न टिक पाई। अटल के जाते ही प्रगति दौड़ी, तन्नु खाने की थाली वैसे ही छोड़कर भागी दोनों पहुंचे जाकर राघव के कमरे, कमरे का दरवाजा खुला था राघव अदंर नही था। प्रगति और तन्नु एक दूसरे का मुंह ताके राघव गया तो गया कहा। राघव को न देखकर तन्नु रुवाशा होकर बोली " मम्मा भईया तो यह नहीं हैं कहा गए होंगे"

प्रगति को पता होता तो खुद न चाली जाती। तन्नु को सुनाकर प्रगति परेशान होकर बोली " पता नहीं कहा गई। इनको भी हमेशा चूल चढ़ी रहती हैं जो कहना हैं खाने के वक्त ही कहेंगे मेरे बेटे का जीना ही दुभर कर दिया हैं, न जानें किस जन्म का बदला ले रहे हैं।"

तन्नु " मम्मा बदला वादला छोड़ो चलो भईया को ढूंढते हैं।"

दोनों घर से निकाल पड़ी राघव को ढूंढने बहार आते ही देखा राघव की बाइक वहीं खड़ी थी। जिसे प्रगति ने पिछले बर्थ डे में गिफ्ट किया था। प्रगति झूठ बोलकर अटल से पैसे लेकर राघव के लिए खुद जाकर बाइक पसंद किया था। साथ में तन्नु भी गई थी। बाइक के आते ही अटल जी अटल मुद्रा धारण किया और बवाल मांचा दिया उस दिन राघव का बर्थ डे था प्रगति नहीं चहती थी राघव का यह दिन खराब हो इसलिए प्रगति काम करके पैसे चुकाने की बात कहीं तो यह बात अटल को अहम पर चोट जैसी लगीं। तब जाकर अटल के तेवर में कमी आई।

बाइक देखकर तन्नु बोली " मम्मा बाइक तो यहां खड़ी हैं इससे जन पड़ता, भईया पैदल ही गए हैं।

तब प्रगति बोली " जाकर मेरा मोबाइल लेकर आ"

तन्नु भागी अंदर। अब देखते हैं राघव कहा गया। राघव बाप की खारी खोटी सुनकर सीधा घर से बाहर निकला बाहर आते आते उसके मन को जो ठेस पहुंचा था वो नीर बनकर अविरल बह निकला, राघव नीर बहते हुए बाइक को एक नजर देखा फिर पैदल ही चल दिया। घर से कुछ ही दूरी पर एक मैदान हैं। राघव वहा जाकर बैठ गया, बाप के बातो से उसे इतना चोट पहुंचा था। जिसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं था। राघव बीते दिनो को याद कर नीर बहाए जा रहा था। ऐसा नहीं की अटल हमेशा से राघव के साथ सौतेला व्यवहार करते थे। वो राघव से बहुत प्यार करते थे उनके व्यवहार में तब से परिवर्तन आने लगा जब राघव उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर की पढ़ाई किया। राघव बैठे बैठें उन प्यार भरे पालो को याद करने लगा। यादों में इस कदर खोया था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कोई उसके पास आकार खडा हुआ और उसे आवाज दे रहा था। आवाज देने वाले शख्स को प्रतिक्रिया न मिलने पर कंधा पकड़ हिलाया। दो तीन बार हिलाने पर राघव यादों की झरोखे से बाहर निकला पलटकर पिछे देखा। देखते ही राघव के लव जो अब तक भोजिल थे। खुला और उदास चहरे पर एक सुहानी मुस्कान आया फिर राघव बोला " सृष्टि तुम! कब आई ? कैसी हों?"

जी ये हैं राघव की सोनू मोनू बाबू सोना वाली गर्लफ्रेंड। ऐसा नहीं कहूंगा विश्व सुंदरी हैं। जरूरी तो नहीं सिर्फ विश्व सुंदरियों से प्रेम हों। हीरो अपना सुपर स्मार्ट लेकिन हीरोइन थोड़ी ढल हैं। नैन जिसके मद रस से भरी पीकर दीवाना हो जाइए बैरी बाबरी, गालों पे एक डिंपपल जो दिलकश चहरे को मन लुभावन का भाव दे। रस की भरमार होंटो के किया ही कहने। निचली होंठ के किनारे एक छोटा सा तिल दमकते चहरे के पहरेदारी में खडा मानो कह रहीं हो इधर न देखना नजरे उठा कर वरना पहरा लगा दूंगा नकाब का लबों पे रहती हैं हमेशा एक मीठी सी मुस्कान ये है अपनी हीरोइन की पहचान।

नाम सृष्टि बनर्जी हैं लेकिन इस धरा पर राघव के अलावा कोई ओर नहीं था अनाथ आलय में पली बड़ी हुई दोनों का प्रेम प्रसंग पिछले छ साल से चल रहा हैं दोनों एक फंक्शन मिले थे। राघव को उसके गालों पर पड़ने वाली डिम्पल और होटों के पहरेदारी में खड़ी तिल ने राघव के मन मोह लिया दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़े सृष्टि ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था और इस वक्त एक अच्छी जॉब करती हैं। राघव के बेरोजगार होने से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि दोनों के प्रेम डोर दिल से जुड़े हैं न की जिस्म और परिस्थिती से जुड़ा हैं।


सृष्टि लबों पे मुस्कान लिए बोली " मैं तो अभी अभी आई हूं, तुम किस सोच में गुम थे कितनी आवाज दी सुना ही नहीं।"

राघव हाथ पकड़ सृष्टि को पास बिठाया उसके कंधे पर सर रखा। सर रखते ही राघव को अपर शांति की अनुभूति हुआ। शायद इसलिए कहते हैं जीवन में सच्चा प्रेम का होना बहुत जरूरी हैं। जो शांति सकून एक सच्चा प्रेमी या प्रेमिका दे सकता/ सकती वो ढोंगी प्रेमी नही दे सकता। प्रेम की अनुभूति अगर सच्चा हो तो दोनों प्रेमी खींचा चला आता। चाहे यह लोक हों या प्रलोक इसलिए तो विधाता ने मूलवान उपहार स्वरूप प्रेम का वरदान दिया । लेकिन यह वरदान हमेशा अभिशाप बनकर रह क्योंकि समाज के कायदे कानून प्रेम को तिरस्कार की दृष्टि से देखता, समझ नहीं आता ये कैसे कायदे कानून हैं जो सिर्फ़ प्रेमी जोड़े के लिए हैं। प्रेम की परिभाषा समझाने वाले की पूजा करते हैं लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान से प्रेम करे तो इनके आंखो में खटकता हैं। जो प्रेमियों के राह में कटे बिछा देते, जो इनके लिए दुःख दाई , पीड़ा दाई ओर कष्टों से भरा होता हैं।

कुछ ज्यादा ही फ्लो में बह गया था और लम्बा चौड़ा प्रवचन लिख डाला क्या करूं प्रेम पुजारी हुं लेकिन जिसकी प्रेम की पूजा करना चाहता हूं वो अभी तक नहीं मिला लगता हैं इधर का रस्ता ही भुल गई और किसी दूसरे प्लानेट पर लैंड कर गई। खैर गौर तलब मुद्दा ये हैं खोजबीन जारी हैं मिल गई तो मस्त स्माइल के साथ फोटो पोस्ट कर दूंगा लाईक और कोमेट कर देना।


अपडेट यहीं खत्म करता हूं। दोनों प्रेमी जोड़े का वर्तालब next Update में दूंगा जानें से पहले इतना कहूंगा उंगली करके लाईक ओर कॉमेंट छोड़ जाना बरना…… बरना क्या करूंगा कुछ नहीं कर सकता अपकी उंगली अपका मोबाइल, अपका लैपटॉप उंगली करे या न करें अपकी इच्छा मेरी इच्छा से थोड़ी न चलेंगे।
Nice update 👌👌👌👌👌👌
 

Sanju@

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Update - 3

राघव सृष्टि के कंधे पर सर रख नीर बहा रहा था और कांधे को भिगो रहा था। गीला पान चूबते ही सृष्टि ने राघव का सर उठाया उसके आशु पोछा फिर बोला " क्या हुआ राघव आज फिर से कहा सुनी हुई। मत रो तुम्हारे अंशु मेरे दिल को खचोट रहीं तुम ने रोना बन्द नहीं किया तो मैं भी रो दूंगी।


राघव सृष्टि की आंखो में देखकर उसके लवों को अपने लवों से मिलाया ये अदभूत क्षण कुछ ही सेकंड के लिए था। अलग होकर राघव बोला " रोऊ न तो और क्या करू पापा की तीखी बाते और सहन नहीं होता। मैं क्या करूं जो उनके दिल में पुरानी जगह बना पाऊं"


सृष्टि " करना कुछ नहीं हैं सिर्फ़ आंखे मूंदे सुनती रहो, जो कह रहे हैं एक कान से सुनो और दूसरे कान से निकाल दो तुमने उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर काम किया तो गुंबार तो पनपना ही था। जिस दिन उन्हे अहसास होगा तुम सही थे देखना पुराना दुलार लौट आएगा।


राघव " न जानें कब लौटेगा, उम्मीद खो चुका हूं अब तो मन करता हैं….."


लवों पे उंगली रख सृष्टि कहती हैं " चुप बिलकुल कुछ भी उटपटांग न कहना।"


राघव मुस्कुराया लबों से उंगली हटाकर हाथ को चूमा फिर बोला " अच्छा नहीं कहता बाबा… मैं उटपटांग बोलूं या न बोलूं किसे फर्क पड़ता हैं।"


सृष्टि " आज कहा हैं दुबारा न कहना सब को फर्क पड़ता हैं, मैं हूं , आंटी हैं, तन्नु हैं, अंकल हैं।


राघव "hummm अंकल आंटी….


सृष्टि कान पकड़ भोली सूरत और मासूम अदा से बोली " सॉरी न babaaaa,


राघव " hummm ये ठीक हैं। इतनी भोली सूरत मासूम अदा से बोलोगी तो कौन माफ नहीं करेगा।


सृष्टि मन मोहिनी मुस्कान बिखेर बोली " माफ तो करना ही था। मुझसे इतना प्यार जो करते हों, मैं जो बोलती हूं वो सुनो अभी हमारी शादी नहीं हुई। इसलिए उन्हे अंकल आंटी बोल सकती हूं।


राघव " मोबइल दो जरा मां से पूछकर बताता हूं।


सृष्टि " न बाबा न उनसे न पुछना बहुत डाटेगी। मां से याद आया जल्दी घर जाओ मां टेंशन में हैं।


राघव " ओ तो मां ने तुम्हें मेरे यहां होने की ख़बर दी।


सृष्टि " मां ने सिर्फ इतना बताया पापा ने तुम्हें भला बुरा कहा और तुम घर से निकल आए।"


राघव " फिर तुम कैसे जान पाए मैं यहां हूं?"


सृष्टि " तुम न पुरे के पूरे झल्ले हों जानते सब हों जानकर भी अनजान बनते हो। जब भी तुम्हारा पापा से नोक झोंक होता हैं। तुम अपना ये क्यूट सा चहरा कद्दू जैसा बनाकर यहां आ जाते हों।


राघव " मेरा चहरा कद्दू जैसा तो क्या तुम्हारा चहरा फुल गोभी जैसा।"


सृष्टि " न न मेरा चहरा गोभी जैसा क्यों होगा। खिला हुआ गुलाब हैं जिसे देखकर तुम्हारे चहरे की क्यूटनेंस ओर बड़ जाती हैं।


राघव " न जाने कब ये खिला हुआ गुलाब मेरे अंगना आकार महकेगा।"


सृष्टि " वो दिन तो तब आएगा जब मम्मी पापा चाहेंगे।"


राघव " फिर तो वो दिन आने से रहीं क्योंकि नौकरी नहीं तो छोकरी नहीं ।"


सृष्टि मुस्कुराया पीट पे एक धाप दिया फिर बोला " नौकरी से याद आया एक जगह बात किया हैं तुम्हारे नाक पर मक्खी न बैठें तो जाकर देख आना।"


राघव " मेरे नाक पे भला मक्खी क्यों बैठेगा। बैठा तो उसे मसल न दू।"


राघव के नाक पकड़ हिलाते हुए सृष्टि बोली " कभी कभी इगो आड़े आ जाती हैं अहम को चोट न पहुंचे इसलिए ऐसे प्रस्ताव को ठुकरा दिया जाता हैं।


राघव " मेरा अहम कभी आड़े नहीं आया। तूम जो कुछ भी मेरे लिए करती उससे मुझे खुशी मिलता हैं। तुम्हारी जैसी गर्लफ्रेंड बहुत नसीब वालो को मिलाता हैं। शायद किसी जनम में बहुत पुण्य काम किया होगा जिसके फलस्वरूप तुम मुझे मिली।"


सृष्टि " ये कैसी बाते कर रहें हों नसीब वाली तो मैं हु जो तुम मुझे मिले। तुम्हारे लिए नहीं करूंगी तो ओर किसके लिए करूंगी तुम्हारे अलावा मेरा कौन हैं।"


राघव " haumnnn……


सृष्टि " रूको रुको फुन आई बात कर लू फिर जो बोलना हैं बोल लेना।"


सृष्टि बात करती हैं फिर राघव को बोलती हैं " बहुत देर हों गई अब हमे चलना चहिए। तुम भी जाओ मां वहा टेंशन के मारे फिर से फेरे लेने पे तुली हैं।"


राघव एक छोटा सा kiss 😘 कर चल देता हैं तब सृष्टि राघव को रोक कर बोलती हैं " एड्रेस तो लिया नहीं बिना एड्रेस के जॉब की इंटरव्यू देने कैसे जाओगे।


सृष्टि राघव को एड्रेस बता देती हैं। राघव चलने लगता हैं तब सृष्टि पिछे से बोलती हैं " कल याद से मिल लेना और शाम को मुझे good news देना।"


राघव मुंडी hannn में हिलाया, सृष्टि मुस्कुराते हुए चल दिया। राघव भी मस्त मौला चल दिए। चाल से जान पड़ता, बहुत खुश होकर जा रहा था। कौन कहेगा कुछ देर पहले राघव को बाप ने तीखी मिर्ची वाली चटनी चटाई। बस लवर के होटों का मिठास चाट लिया और सारा तीखापन भूल गया। ये कैसा प्यार है कुछ पल्ले न पड़ा। ऐसी प्रेमिका सब की लाइफ में आ जाए तो बल्ले बल्ले डिस्को भांगड़ा तिनक धीन ताना नाचू मैं टांग उठाके।


राघव सभी बाते भुलाकर मन मौजी नाचते हुए घर पहुंचा। वहां तन्नु और प्रगति डायनिग टेबल पर कोहनी टिकाए दोनों गालों को पकड़े सोच की मुद्रा में बैठी थीं। नाश्ते की प्लेट दोनों के सामने रखा था। तन्नु की पेट की खोली पहले से थोडा सा भरा था। इसलिए खाएं न खाए कुछ फर्क नहीं पड़ता लेकिन प्रगति के सामने रखी प्लेट में से एक भी निवाला खाया नहीं गया। प्रगति बीच बीच में सर को हिला रहीं थीं। ये देखकर राघव की हंसी छूट गया। राघव khiii..khiii...khiii… कर हसने लगा। हसी कि आवाज कानों में पड़ते ही दोनों का ध्यान भंग हुआ। राघव को देखकर प्रगति राघव के पास गईं और बोली " तुझे मज़ा आ रहा हैं यहां हमारी टेंशन के मारे दो चार किलो वजन कम हों गया। नाराज होकर कहा गया था। तेरे बाप को ना जाने कौन-सा खुन्नस चढ़ा हुआ हैं। जो मन में आता बोल देता किसी को नहीं बकस्ता। तू भी ऐसा करेगा तो देख लेना किसी दिन मैं कुछ कर बैठूंगी।


मां की बात सुनाकर राघव की सारी हसी गायब हों गया। राघव कान पकड़ कर " soryyy.. soryyy..soryyy….. आगे से ऐसा नहीं करूंगा।


तन्नु " कोई सॉरी बोरी नहीं चलेगी मेरी जान हलक में आ गई थी और अपको khiii..khiii... सूझ रहीं थीं।


तन्नु फुल्के की तरह मुंह फुलाकर खड़ी हों गईं। राघव सोचे मनाए तो किसे मनाए मां अलग रूठी हैं, तन्नु अलग रूठी हैं। कुछ समझ न आया करे तो क्या करें फिर अचानक करेंट का फ्लो तेज हुआ दिमाग की ट्यूब लाईट जली चाट से एक चुटकी बजाई और जाकर डयानिग टेबल पर बैठ गई और तन्नु की झुटी प्लेट से चाटा... चाट…, चाटा….. चाट…. चपाती खाने लगा। हपसी की तरह खाते देख प्रगति और तन्नु का चेहरा खिल उठा और हसी छूट गई। हंसते हुऐ तन्नु बोली "देखो भुक्कड़ को हपसी की तरह खाए जा रहा हैं। हम रूठे हैं माने के बजाय गपागप गपागप खाए जा रहा हैं"


राघव के मुंह में निवाला था। पानी पीकर निवाला गटका फिर बोला " वो क्या है न मुझे बड़ी जोरो की भूख लगा था मेरी प्यारी बहनिया की झूठी प्लेट देखा तब भूख ओर बड़ गया। सोचा पेट को शांत कर लूं फिर दोनों को माना लूंगा।"


प्रगति हंस दिया तन्नु मोटी मोटी आंखे बनाकर राघव की ओर दौड़ी गला दबाने का ढोंग करते हुए बोली " मन कर रहा हैं अपका गला दबा दूं।"


राघव "चल हट पगली पहले खाने दे फिर शौक से गला दवा लेना।"


तन्नु आंखे मलते हुए uaammm.. uaammm… करने लागी। राघव तन्नु को रोने की एक्टिंग करते देखकर खडा हुआ और बोला

"तन्नु तू रो क्यों रहीं"


तन्नु प्रगति की ओर उंगली दिखते हुए बोली "मम्मा"


राघव प्रगति की ओर देखकर बोला " मां अपने कुछ कहा"


प्रगति " मैने कहां कुछ कहा, कहता तो तुझे सुनाई नहीं देता। ये ढोंगी, ढोंग करना बंद कर जब देखो नौटंकी करती रहेंगी।"


तन्नु किया करती उसकी भांडा तो फुट गया। मुस्कुराते हुए आंखों से हाथ हटा लिया और भोली सुरत बना लिया। भोली सुरत देखकर राघव मुस्कुराया और फिर से खाने बैठ गया।


(' ये हापसी कितना खायेगा पेट हैं की कुंआ '

राघव " चुप चाप स्टोरी लिख, ज्यादा भूख लागी हैं तो आ जा जली हुई चपाती के साथ मोमो वाली थिखी चटनी चाट के निकल जाना"

"ये हलकट चुप रह")


राघव को दुबारा खान खाते देखकर प्रगति सर पर हाथ मरते हुए बोला " हे _____ कैसा चिराग दिया। मां भूखा है पूछने के बजाय खुद खाने बैठ गया। राघव तू कैसा बेटा हैं मां को पुछ तो लेता।"


राघव " पुछना किया अपने हाथ से खिलाता हूं।"


कहकर प्लेट हाथ में लिया मां के पास गया एक छोटा निवाला बनाकर हाथ आगे बढाया तो प्रगति ने सर हिलाकर मना कर दिया तब राघव बोला " आले ले ले मेरा सोना मम्मा नलाज हो गया। चलो मुंह खोलो छोटे बच्चे की तरह जिद्द नहीं करते।"


प्रगति भाव विहीन होकर राघव को देखने लगीं। उसकी पलके भोजील हुईं तो आंख मिच लिया। आंख मिचते ही दो बूंद नीर बह निकला, आंखे पोछा मुंह खोला और निवाला लपक लिया। आंख पोछते देखकर राघव पूछा " मां किया हुआ आप रो क्यों रहे हों?"


प्रगति " कुछ नही रे बचपन में तू न खाने की जिद्द करता तो मैं तुझे ऐसे ही मनाया करती थीं। वो पल याद आ गया इसलिए आंखे नम हों गईं।


तन्नु " अच्छा तो फिर अपने मुझे भी खिलाया था।"


प्रगति " हां दोनों को खिलाया था। तू तो सबसे ज्यादा जिद्द करती थी और मेरे हाथों से खाती ही नहीं थी राघव खिलाता तो झट से खां लेती थीं।"


तन्नु " वो मैं आज भी खाती हूं भईया की प्यारी बहनिया जो हूं। क्यों सही कहा न भईया।"


राघव " तूने कभी गलत बोला हैं जो अब बोलेगी तू तो मेरी चुनूं सी, मुन्नू सी बहना प्यारी हैं।"


राघव बोलते हुए मुंह ही इस तरीके से बनया था। सब के चहरे पर हसी छा गईं फिर प्रगति बोली "चलो बहुत हुआ हसी मजाक अब आराम से बैठ कर नाश्ता करते हैं।"


डायनिंग टेबल पर जाकर तीनों नाश्ता करने बैठ गए। क्या मनोरम दृश्य था। तीनों मां, बेटी, बेटा एक ही थाली से खां रहे थे और एक दुसरे को खिला रहे थे। इनकी खुशी की झलकी देखकर कोई कह नहीं पाएगा जैसे अभी अभी कुछ देर पहले कुछ हुआ था। तन्नु ठहरी चुलबुली बच्ची उसके मस्तिष्क के खोचे में चूल मची रहती तो फिर किया चूल मची और बोल बैठी " वैसे तो आप उदास चहरा , रोतढू सकल के साथ गए थे। भाभी ने ऐसा किया चखा दिया जो खिलखिलाते हुए आए।"


राघव कुछ बोलता उससे पहले प्रगति बोल पड़ी " चुप कर बड़बोला कही का जब देखो बक बक करती रहेंगी साथ ही मेरे बेटे को परेशान करती रहेंगी।"


फिर किया था तन्नु की एक्टिंग शुरू इसे अगर एक्टिंग की कंपीटीशन में भेजा जाए तो जज का भेजा खाके फर्स्ट प्राइज लेकर आएगी। रोतढू सकल बनके दोनों आंखे मलते हुए बोली "uaammm.. uaammm… भईया मम्मा डाट रहीं हैं।"


राघव " मां अपने डांटा क्यों, तू चुप कर कोई नहीं डांटेगा।"


तन्नु " sachiiii"


राघव " mucchiiii"


तन्नु " तो फिर बोलो न भईया भाभी ने किया किया?"


प्रगति " tannuuuuu"


तन्नु " भईया देखो फिर से"


प्रगति " भईया की बच्ची रुक तुझे बताती हूं।"


प्रगति जैसे ही अपने जगह से उठी तन्नु जीव दिखाकर fhurrr से भागी जाकर कमरे में रूकी और दरवाजा बन्द कर लिया। प्रगति पहुंची दरवाजा पीटते रह गई दरवजा नहीं खुला। इन मां बेटी की tom and jerry सो देखकर राघव के पेट में गुदगुदी मची और जी भर के हंसा। प्रगति थक हर के वापस आईं। राघव को हंसता देखकर बोली " तुझे क्या हुआ भांग बांग पी लिया जो वाबलो की तरह हासे जा रहा हैं।


राघव " आप दोनों के tom and jerry वाला सो देख के खुद को रोक नहीं पाया और बावला बनके हंसने लगा।"


प्रगति "ऐसे ही हंसती रहा कर। ये जो कुछ भी हों रहीं है सब तेरी कारिस्तानी है। तेरी वजह से ही इतनी सर चढ़ी हुई हैं।"


राघव "अरे मां करने दो न जो करती है। अभी उसे उसकी मन की करने दो शादी के बाद न जानें कैसा ससुराल मिलेगा क्या पाता शादी के बाद ऐसे मस्ती ही न कर पाए।"


प्रगति " तू कहता है तो करने देती हूं। तेरे सामने तो कुछ कह नहीं पाऊंगी तेरे पिछे उसकी ढोलक दवाके बजूंगी।



फिल्म का पॉज बटन यहां दबाता हूं। अब प्ले बटन तब दवेगा जब आप मस्त मस्त रेवो के संग लाईक ठोकोगे। तो भाऊ और भाऊ लोगों आज के लिए विदा लेते हूं सास रही तो फिर मिलूंगा।
Fanatic update
बहुत ही बेहतरीन अपडेट है
 

Sanju@

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Update - 4


राघव "मेरे पीछे उसे पीटेंगे तो आपको क्या लगता हैं मेरे आने पर शिकायत नहीं करेंगी

प्रगति "तो क्या तू मुझे डाटेगा।"

राघव "आप मेरी मां जगद जननी हों मैं आपको कैसे डांट सकता हूं। मैं तो समझा बुझा कर तन्नु को चॉकलेट 🍫 देकर चुप करा दूंगा।"

प्रगति "यही ठीक रहेगी तू बैठ मैं झूठे बर्तन रखकर आती हू।"

प्रगति झूठे बर्तन रखने किचन गई राघव वहां बैठा रहा तभी तन्नू आई और बोली "भईया मम्मा कहा हैं।"

प्रगति ने शायद तन्नु की आवाज सुन लिया था। हाथ में बेलन लेकर बाहर आई दूसरे हाथ पर बेलन मरते हुए बोली "मैं इधर हु बोल क्या काम हैं?"

तन्नु बेलन हाथ में देखकर राघव के पास गई और बोली "भईया देखो मम्मी डांट रहीं हैं। आप कुछ नहीं कहोगे।"

प्रगति "चुप कर नौटंकी क्यो मां बेटे के बीच झगड़ा करवाने पे तुली हैं चुप चाप कॉलेज जा नहीं तो लेट हों जायेगी।

तन्नु "ठीक हैं अभी तो जा रही हूं। मम्मा आप न दूध गर्म करके रखना कॉलेज से आने के बाद जम के मुकाबला होगी।"

राघव "मुकाबला करेगी, तो दूध कहा से बीच में आ गया।"

तन्नु "दिन भर की पढ़ाई से मेरी एनर्जी डाउन हो जायेगी मां से मुकाबला करने के लिए मुझे एनर्जी की जरूरत पड़ेगी। दूध पाऊंगी तभी तो एनर्जी बड़ेगी इतना भी नहीं समझते बुद्ध कहीं के।"

तन्नु के बोलते ही हंसी ठहाके का माहौल बन गया। हंसते हुए प्रगति बेलन दिखाने लगी तब तन्नु कॉलेज जाना ही बेहतर समझा और कॉलेज को चाली गई तन्नु के जाते ही राघव बोला "मां कल मुझे इंटरव्यू देने जाना हैं मेरा फॉर्मल ड्रेस गंदा हैं धो देना।"

प्रगति haummm बोला और अपना काम करने लग गई राघव कुछ काम का बोलकर बाहर चला गया। ऐसे ही दिन का वक्त बीत गया। इसी बीच राघव ने ये बोल दिया जब तक बाप बेटे का रिश्ता सुधार नहीं जाता तब तक सब के साथ बैठ कर न नाश्ता करेंगा न खान खाएगा हां जब पापा बाहर जाएंगे तब तन्नु और प्रगति के साथ खां लेगा। प्रगति का मन माना करने को कहा लेकिन परिस्थिती को भाप कर हां कह दिया। रात के खाने के वक्त राघव को न देखकर अटल कारण जाना चाहा तो प्रगति ने कारण बता दिया तब अटल ने कहा " अच्छा हैं! उसके लिए और मेरे लिए यह ठीक रहेगा, काम से काम मेरे मन को तो शांति मिलेगा।"

बहुत कुछ बोलना चाहती थीं लेकिन प्रिस्थिती बिगड़ न जाएं इसलिए चुप रहीं। राघव अपने रूम में ही खा लेता हैं। यहां भी तीनों खाने का काम निपटा लेते हैं। तन्नु और प्रगति को तोड़ा अजीब लगा लेकिन शांति इस बात की मिली राघव बिना ताने सुने शांति से खाना खां लिया। ऐसे ही रात बीत गई अगले दिन अटल तड़के सुबह कही चले गए। राघव तैयार होकर रूम से निकला मां को बोलकर जाने लगा तब प्रगति राघव को रोक कर दही शक्कर लाकर खिलाया फिर उसके हाथ में कुछ पैसे रख दिए राघव न नुकार करने लगा। तब प्रगति ने डांटकर जबर्दस्ती पैसे जेब में ढाल दिया। बाहर आकर बाइक लिया और चल दिया।

इंटरव्यू की जगह राघव के घर से बहुत दूर था उसे जाने में काम से काम एक घंटा लगता। राघव अभी आधे रस्ते तक ही पहुंचा था की बाईक बंद हों गई। बाईक बंद भी ऐसी जगह हुआ जहां चहल पहल भी काम था। राघव किक पे किक मारे जा रहा था लेकिन बाईक हैं की स्टार्ट होने का नाम ही नहीं ले रहा था। किक मरते मरते राघव परेशान हों गया लेकिन बाईक बाबू मन बनकर बैठे हैं स्टार्स ही नहीं होने का मार ले किक जितनी मारनी हैं बाइक को हिलाए डुलाए फिर किक मारे बाईक स्टार्ट ही न हों। परेशान मुद्रा में राघव इधर उधार ताके ओर बाइक को किक मारे यह समय निकलता जा रहा था किया करे समझ नहीं आ रहा था। टेंशन के मारे दिमाग ने अपना फटक बंध कर लिया टेंशन में राघव बाइक के चक्कर काटे फिर रूखे शायद इस बार बाईक स्टार्ट हो जाए ये सोचकर किक मारे कोई नतीजा हाथ में न आएं बडा ही विकट परिस्थिती में फस गया। किसका मुंह देखकर निकला था जो ऐसा हो रहा था आज ही इसे बंद पड़ना था। कितने दिनों बाद मौका हाथ आया अगर ये मौका हाथ से निकल गया तो सृष्टि नाराज होगी सो अलग मां और तन्नु भी नाराज होगी। आज नौकरी की व्यवस्था नहीं हुआ तो कही मेरा बाप मुझे घर से न निकल दे सोचते हुए राघव घड़ी देखता और घूम घूम कर बाइक को देखता, हुआ तो हुआ किया जो बाइक स्टार्ट नहीं हों रहा। फिर सोचे किसी से लिफ्ट मांगकर उसके साथ चल दे लेकिन बाईक का किया यहां छोड़कर भी नही जा सकता चोर उचक्के तो ऐसे मौके के तलाश में रहते कोई बाइक खाली मिले और उसे उड़ा ले। बाईक भी नहीं छोड़ सकता छोड़े तो छोड़े किसके भरोसे कोई जान पहचान वाला भी तो नहीं हैं। अब तो उसे यह भी डर लगने लगा नौकरी समझो गई हाथ से ये विचार मन में आते ही राघव का चेहरा रुवशा जैसा हों गया। किस्मत भी अजीब चीज हैं जरूरत के वक्त गुलाटी मारके दूसरी पले से खेलना शुरू कर देता हैं। अब तो राघव उम्मीद भी खोता जा रहा था और ज्यादा देर हुआ तो मिलने वाली नौकरी भी हाथ से निकल जाएगा। तभी अचानक उम्मीद की किरण बनकर कोई आया बाइक रोका और बोला " ओए यारा बाइक के साथ फेर ले रहा हैं तो सृष्टि भाभी के साथ फेरे कौन लेगा।"

राघव जो नजर निचे किए सोचते हुए बाइक के चाकर काट रहा था। उसको ये आवाज जाना पहचाना लगा। उसको देखकर राघव हर्षित हों उठा, thanks 👍 बोलने का मान किया। Thanks बोलने में समय बरबाद कौन करें इसलिए एक cute सा स्माइल लवों पर सजाकर बोला "सार्थक तू सही टाइम पर आया, दोस्त हों तो तेरे जैसा।"

अचानक उम्मीद की किरण बनकर आया इस शख्स का परिचय तो होना ही चहिए इनका पूरा नाम है सार्थक सिंह, बंदा है तोड़ा कॉमेडी टाइप और मस्त मौला ज़िंदगी को खुल कर जीने वाला। राघव के दोस्तों में सबसे खाश दोस्त, राघव के घर से दो गली छोड़कर इसका घर हैं। भाई जी राघव के बचपन का दोस्त हैं, साथ में स्कूल गए और एक ही कॉलेज से इलेक्ट्रानिक इंजीनियर की डिग्री लिया। लेकिन भाई जी को नौकरी से कोई लेना देना नहीं बेफलतु में डिग्री का तमगा अपने गले में लटका लिया। दिन भर बाप की दुकान में बैठ मौज करता बंदा हैं थोडा छिछौरा टाइप का लेकिन यारी बिलकुल पक्की जब राघव के साथ होता तो कोई भी छिछौरा पान नहीं करता लेकिन जब अकेले या किसी और दोस्त के साथ होता तो छिछौरा पान का कीड़ा कुलबुला उठता। भाई साहब की यारी इतनी पक्की हैं। राघव जब जब मुसीबत में फंसाता ये भाई जी खेवन हर बनके वह पहुंच ही जाता हैं।

सार्थक बाइक पर ही बैठा था राघव हाथ पकड़ खींचते हुए "सार्थक बाइक दे जल्दी कही जाना हैं।"

सार्थक "यारा मेरे ही बाइक से मुझे ही उतरता मजरा किया हैं।"

राघव "यार इंटरव्यू के लिए जाना हैं जल्दी बाइक छोड़ मुझे देर हों रहा हैं।"

सार्थक के बाइक से उतरते ही राघव बैठा स्टार्ट किया और जाते हुए बोला "बाइक ठीक करबाके घर छोड़ denaaaaaa।"

सार्थक बाइक के पास गया और खुद भी किक मार कर देखा लेकिन रिजल्ट बोही बाइक स्टार्ट नहीं हुआ। तब टंकी के पास कान लेकर बाइक हिलाया फिर टंकी का ढक्कन खोल कर देखा और बोला "आब्बे इसका तो दाना पानी खत्म हों गया मेरा फूल टंकी वाला बाइक ले गया और अपना ये खाली टंकी मुझे पकड़ा गया।"

सार्थक एक बार आगे देखें तो एक बार पीछे देखें फिर बोला "यहां तो दूर दूर तक कोई पेट्रोल पंप भी नहीं हैं यू राघव भी न मुसीबत की टोकरी सर पर लिए पैदा हुआ जब देखो तब मुसुबत में ही फंसा मिलता हैं और हर बार अपना मुसीबत मेरे गले टांग चल देता हैं। कोई नही अपना जिगरी दोस्त हैं इतना तो करना बनता है। चल बेटा बैल गाड़ी को लगा धक्का ।"

सार्थक बाइक धकेलते हुए जा रहा था अभी कुछ ही दूर गया था की उसका मोबाइल झनझना उठा। मोबइल निकाला कॉल रिसीव किया, हां हूं में बात किया, फिर कॉल कट किया, मोबाइल जेब में रखते हुए बोला " अजीब मुसीबत हैं gf की सुनूं या दोस्त की, दोस्त की सुनूं तो gf नाराज gf की सुनूं तो दोस्त नाराज, gf तो सृष्टि भाभी जैसी होना चहिए नाराज ही नहीं होती। इस मामले में अपनें दोस्त की किस्मत बुलंदी पे हैं। खर्चे की कोई टेंशन ही नहीं उल्टा gf उसपे खर्चा करता हैं। यह अपनी वाली खर्चा करना तो दूर मेरे ही जेब पे डंका डाल देती हैं। ऐसा चलता रहा तो एक दिन मेरा बाप दिवालिया हो जाएगा। छायां लगता हैं इसको रिटायरमेंट देने का टाइम आ गया चल बेटा पुरानी वाली को छोड़ नहीं gf ढूंढते हैं बिलकुल सृष्टि भाभी जैसा नो चिक चिक नो झिक झिक।

ऐसे ही अकेले में बड़बड़ते हुए लमसम दो ढाई किलोमीटर चलने के बाद एक पेट्रोल पंप आता हैं। पेट्रोल पंप देखते ही सर्तक एक चैन की सांस लेता है और पेट्रोल भरवा कर चल देता हैं।

राघव इंटरव्यू वाले जगह पहुंचता हैं। रिसेप्शन पर एक खुबसूरत लडक़ी बैठी थीं। उसके पास गया मस्त स्माइल देते हुए कहा "मैडम मैं इंटरव्यू देने आया हूं। आप बताएंगे इंटरव्यू किस तरफ हों रहा हैं।"

रिसेप्शन वाली ने भी रिप्लाई में एक क्यूटीपाई 🌝 वाली स्माइल दिया और बोला "सर आज तो कोई इंटरव्यू नहीं हों रहा शायद आपको किसी ने गलत इनफॉर्मेशन दिया था।"

ले इतनी भागा दौड़ी हाथ किया आया ठेंगा। राघव के चहरे पर चिंता की लकीर छाया। चिंतित होकर राघव बोला "मेम मुझे कैरेक्ट इनफॉर्मेशन मिला था और मैं सही जगह पर आया हूं। शायद आपसे कोई भूल हों रहीं होगी। आप एक बार ठीक से पता कर लिजिए।"

रिसेप्शन वाली "जब कोई इंटरव्यू हों ही नहीं रहा तो पाता किया करना। आप अपना भी समय बर्बाद कर रहे हैं और मेरी भी, इसलिए आप जा सकते हैं।"

रिसेप्शन वाली के दो टूक ज़बाब देने पर राघव को बहुत गुस्सा आया। लेकिन गुस्से को दवा लिया क्या करें नौकरी का सवाल था फिर जाकर एक कोने में खडा हों गया और सृष्टि को कॉल किया सृष्टि ने न जाने किया कहा राघव रिसेप्शन पर गया और लडक़ी की और मोबाइल बड़ाकर बोला "मैम कोई आपसे बात करना चहती हैं आप बात कर लेते तो अच्छा होता।"

रिसेप्शन वाली "कौन हैं" कहकर मोबाइल लिया कुछ देर बात किया फिर मुस्कुराते हुए मोबाइल देकर कहा "ओ तो वो हो आप जिसका गुण गान सृष्टि गाती रहती हैं। वैसे हों बहुत स्मार्ट , सृष्टि बहुत भाग्य साली लडक़ी हैं।"

फ्री में तारीफ सुनने को मिले तो किसको अच्छा नहीं लगेगा और एक लडक़ी, लडके की तारीफ करें फिर तो सोने पे सुहागा बस किया था राघव गदगद हों उठा, मुस्कुराते हुए बोला "मुझे नज़र लगाने के वजह आप यह बताइए जाना किस तरफ हैं।"

लडक़ी मुंह भीतकाई 😏 और जाना किस तरफ हैं, किससे मिलना हैं , बता दिया। राघव उस तरफ चल दिया राघव के जाते ही। लिडकी ने अपने मोबाईल से किसी को कॉल किया। राघव बताए रूम के पास गया दरवाजा खटखटाया अदब से पूछकर अंदर गया। अदंर जो शक्श बैठा था उसके पूछने पर राघव ने अपना नाम और आने का करण बताया। तब शख्स ने कहा "तो आप ही हों जिसकी सिफारिश करवाई गई थीं जरा अपनी काबिलियत के सर्टिफिकेट तो दिखाइए।"

राघव ने सर्टिफिकेट दिया सामने बैठा बंदा किसी नमूने से कम नहीं सर्टिफिकेट देखते हुए aanhaaaa ,unhuuuu कर रहा था और सर हिला रहा था। राघव का मन हंसने का कर रहा था लेकिन खुद पर खाबू रखा ये सोचते हुए कहीं बुरा न मान जाए और नौकरी मिलने से पहले ही निकाल दे, सर्टिफिकेट देखने के बाद बोला "सार्टिफिकेट में परसेंटेज बहुत अच्छा हैं लेकिन कोई वर्क experience नहीं हैं ऐसा क्यों बता सकते हों।

राघव "जॉब ही नहीं मिल रहा था। जॉब ही नहीं तो experience कैसा।"

शख्स "हां जॉब की मारा मारी ही इतनी है तो जॉब कैसे मिलता। यह भी नहीं मिलता वो तो एक खुबसूरत लडक़ी ने अपकी सिफारिश किया हैं। इसलिए आपको जॉब मिल रहा हैं।"

खुबसूरत लडक़ी का जिक्र सुनते ही राघव मन ही मन बोला "बूढ़ा खुसट एक टांग कब्र में लटका हैं फिर भी लडक़ी की खुबसूरती देखने में बांज नहीं आ रहा। मेरी सृष्टि की ओर आंख उठा कर देखा तो तेरी आंख निकलकर आन्टा खेलूंगा।"

राघव पर इंटरव्यू के रूप में बहुत सारे सवाल पूछा गया। निजी जिंदगी से जुड़ा सवाल पूछा गया। जॉब से रिलेटेट सवाल पूछा गया। क्लॉन्ट को कैसे इंप्रेस करोगे। कोई अड़ा टेड़ा क्लाइंट मिल गया तो कैसे हैंडल करोगे कैसे उनको कन्वेंस करोगे। मतलब की राघव के योग्यता को ठोक बजाके चेक किया गया। राघव ने भी योग्यता अनुसार प्रदर्शन किया और सभी सवाल का माकूल ज़बाब दिया। राघव के बात करने का स्टाइल, वाणी में शालीनता और बातो में फंसकर कन्वेंस करने के तरीकों से इंटरव्यू लेने वाला बहुत प्रभावित हुआ। फिर बोला "फील्ड electrician के पोस्ट के लिए हमें जैसी योग्यता चाहिए आप उसमे खारे उतरे तो किया आप फील्ड electrician का जॉब करना चाहेंगे।"

राघव सोच में पड गया की क्या बोला जाएं सोच विचार करते हुए जॉब न होने से बेहतर तो यहीं हैं ये वाला जॉब कर लेता हूं वैसे भी कोई काम छोटा या बडा नहीं होता लोगों की बिगड़ी ही तो बनना हैं लोगों की बिगड़ी बनने में जो मज़ा हैं वो और किसी काम में नहीं, क्या पता किस्मत साथ दे जाएं और मेरा यह जॉब मुझे मेरे मंजिल तक पहुंचा दे जहां मैं पहुंचना चहता हूं। तरह तरह के सोच विचार करने के बाद राघव ने हां कर दिया। तब सैलरी वेलरी की बात हुआ लेकिन सैलरी राघव को उम्मीद से काम लगा फिर ये सोचते हुए खाली जेब घूमने से अच्छा थोडा तो जेब भरेगा। अच्छा काम करूंगा तो आज नहीं तो कल सैलरी बड़ ही जाएगा। इतना सोच विचार करने के बाद राघव ने मिलने वाली सैलरी को भी हां कह दिया। राघव के हां कहने के बाद इंटरव्यू लेने वाले ने राघव को दिवाली के बाद ज्वाइन करने को कहा


( वो इसलिए हमने तो दिवाली मना लिया लेकिन कहानी में दिवाली का किस्सा रहा गया और कहानी में दीवाली आने में अभी चार पांच दिन रह गया।)


राघव ने उन्हे बहुत बहुत धन्यवाद कहा। तब राघव जाते हुए पूछा "सर मैं जान सकता हूं किस खुबसूरत लडक़ी ने मेरे लिए सिफारिस किया वो क्या हैं उससे thank You बोलना हैं ☺️।"


(आगे जहां भी इंटरव्यू लेने वाले का पार्ट आए गा उन्हें बॉस नाम से परिचित करवाऊंग)


बॉस "हां हां क्यों नहीं रिसेप्शन पर जो खुबसूरत बाला बैठी हैं उसी ने सिफारिस किया था। उससे थोडा दूरी बना कर रखना बहुत खूंखार लडक़ी हैं। वैसे बता सकते हों उससे तुम्हारा किया रिश्ता हैं?"

क्या जब दे राघव सोचने लगा तब राघव के दिमाग का ट्यूब लाईट जाला और रिसेप्शन पर हुआ किस्सा ध्यान आया तब राघव बोला "सर वो मेरे दोस्त के दोस्त हैं। मैं तो उन्हें जनता भी नहीं आज ही मिला हूं।

इतना कहकर राघव thank you बोला सर्टिफिकेट लिया और चल दिया। बहार आकार रिसेप्शन पर गया और बोला "मैने जो मिसबिहेव किया उसके लिए माफी चाहता हु और जॉब दिलवाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"

लडक़ी ने मुस्कुरा कर राघव की और देखा राघव भी बत्तीसी फाड़ दिया और बाय बोलकर चल दिया। राघव के जाने के बाद लडक़ी ने फिर किसी को कॉल किया। राघव बाहर आकार सृष्टि को कॉल किया कुछ देर बाते किया फिर खुशी के मरे फुल स्पीड में बाइक दौड़ा दिया। मार्केट में जाकर रुका मिठाई के दुकान से एक डब्बा स्वादिष्ट मिठाई लिया और चल दिया।



आज के लिए कहानी को यही रोकता हूं। इससे आगे बस इतना कहूंगा बहुत दिनों तक बेरोजगार रहने के बाद अचानक रोजगार मिलने पर क्या क्या बाते मन में चलता हैं। ये चित्रणन आप सब पाठकों को कितना अच्छा लगा। बताना न भूलिएगा। ओर ज्यादा शब्द जाया न करते हुए। बेरोजगार पाठकों को जल्दी से रोजगार मिले इसकी दुआ करते हुए विदा लेता हूं। आज के लिए शव्वाखैर सांसे रहीं तो फिर मिलेंगे।
Nice aur excellent and emotional update
 

Sanju@

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Update - 5

दोपहर बीत चुका था शाम होने को आई थी। देर होने के कारण प्रगति चिंतित हो रहीं थीं। न जाने जॉब मिला की नहीं कहां रह गया। इतना देर क्यों कर रहा हैं। इसलिए बार बार फोन कर रही थीं। राघव उस वक्त मार्केट में था। मिठाई ले रहा था मिठाई लेने के बाद मां से बात किया और घर को चल दिया, प्रगति घर के बाहर ही मिल गईं बाइक खड़ा किया और जाकर मिठाई का डब्बा खोला, एक टुकड़ा मिठाई का निकला और मां को खिलाते हुए बोला मां मुझे जॉब मिल गया अब पापा के ताने सुनने को नहीं मिलेगा। बेटे को खुश देख मां की ममता स्नेह छलक आया। राघव के सर पर हाथ रख आंख बन्द कर मन ही मन "मेरे बेटे को ऐसे ही खुश रखना इसकी सभी मनोकामना पूर्ण करना" दुआ मांगने लगा फिर राघव को लेकर अदंर गया। अंदर आकार राघव "मां तन्नु कहा हैं।"


तन्नु नाम लेते ही तन्नु टपक पड़ी ये चुलबुली लडक़ी नाम लो और देखो हाजिर हों गई


तन्नु "मैं इधर ही हूं मुझे क्यों ढूंढ रहे हों बताओओओ.. बताओओओ.. "


राघव डब्बे से एक बड़ा सा मिठाई का टुकड़ा निकाला डब्बा मां को थमाया फिर दौड़कर तन्नु के पास गया और बोला "जल्दी से बड़ा सा मुंह खोल"


तन्नु बोहे हिलाकर पूछा kyauuuu तब राघव बोला "खोल न जल्दी फिर बताता हू।"


जितना मुंह खोल सकती थीं खोला और राघव ने झट से मिठाई मुंह में डाल दिया। तन्नु मुंह पे हाथ रख मिठाई बाहर निकाला और बोली "इतना बडा मिठाई का टुकड़ा मेरे मूंह में डाल दिया गले में अटक जाती तो….. वैसे मिठाई किस खुशी में?


राघव की हरकत देख प्रगति हंसे बिना रह नहीं पाई और पेट पकड़ कर हंसने लगीं। प्रगति को हंसता हुआ देखकर तन्नु मिठाई के टुकड़े से एक वाइट लिया और बोली "मां ऐसे क्यों हंस रहीं हों।"


प्रगति हसीं रोककर बोली "तुम दोनों को देखकर कभी कभी लगता हैं तुम दोनों अभी भी छोटे हो, बिल्कुल बच्चों जैसी हरकते करते हों।"


तन्नु आकार बैठते हुए बोली "मम्मा भईया का नहीं जानती लेकिन मैं तो अभी भी छोटी बच्ची हूं।"


फिर से हंसी और ठहाके गुजने लगा। कुछ देर हंसने के बाद तन्नु बोली "भईया आज मिठाई किस खुशी में लेकर आए और आप खुश भी बहुत लग रहे हों।"


राघव "तेरे भईया को जॉब मिल गया है इसलिए खुश होकर मिठाई लेकर आया हूं।"


तन्नु आगे कुछ बोलती उससे पहले किसी और ने बोला "मेरे यारा को जॉब मिल गया और मुझे पाता ही नहीं ये भेद भाव क्यों?"


सार्थक अदंर आते हुए लगड़के चल रहा था ऐसा तो होना ही था जो बंदा बिना बाइक के नहीं चलता था वो दो ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लायेगा तो ऐसा ही होगा। ऐसे चलते हुए देखकर राघव hhhhhhhhh hhhhhhhh हंस रहा था। तन्नु और प्रगति सार्थक की दशा देख अचंभित होकर देख रहा था। तभी तन्नू बोली "सार्थक भईया आप का ये हल किसने किया आपने फिर किसी से मारपीट किया।"


सार्थक " तौबा तौबा बहना प्यारी क्यो मेरे व्हाइट शर्ट पे पान की पीप डाल रही हैं। मेरे क्यूट और भोला फेश पर कहीं तुझे टपोरी लिख हुआ दिख रहा हैं जो तू मेरे फेस पे कालिक पोत रही हैं।"


सार्थक की बाते सुन तन्नु, प्रगति और राघव अपने अपने ढंग से हंस रहे थे राघव की हंसी से ऐसा लग रहा था मानो वो सार्थक की खिली उड़ा रहा हों। उसको ऐसे हंसते देख सार्थक बोला "तू दोस्त हैं या दुश्मन मेरी जैसी तेरी दशा होता तब तुझे पाता चलता।"


राघव "एक तो तेरी बाते निराली ऊपर से चल तेरी अलबेली अब तु ही बता तुझे छेडूं न तो और क्या करूं।"


सार्थक "मैं तुझे क्या छोरी दिखता हूॅं जो तू मुझे छेड़ रहा है। …. आंटी आप इस मुसीबत के पिटारे को कहा से उठा कर लाए थे। जहां भी जाता हैं मुसीबत साथ लेकर जाता हैं।


प्रगति "ऐसा किया हुआ ठीक ठीक बोल तेरी बाते सुनाकर अब तो मुझे भी हंसी आ रही हैं।"


सार्थक "हां हां हंसो हंसो बत्तीसी फड़के हंसो मेरे इस दशा की देन अपका सुपुत्र राघव प्रभु ही हैं।"


तन्नु "सार्थक भईया आप खामख मेरे भईया को दोष दे रहे हों गलती आप करो और ठीकरा भईया के सर फोड़ों।"


सार्थक "ये तेरा भाई हैं तो मै किया कसाई हु। मैं भी तो तेरा भाई हूं। कभी तो मेरे पले में भी खेल लिया कर जब देखो इस मुसीबत के पिटारे का साथ देगी।"


प्रगति "कोई तेरे पले में खेले चाहे न खेले मैं तेरे पले में हूं बता क्या हुआ था जो अलबेली चाल से चल रहा हैं।"


सार्थक "हां हां अब आप भी मुझे छेड़ो मेरी चल क्या बदल गई आप सब तो मुझे लडक़ी समझ, छेड़ने लगे।"


प्रगति "अच्छा बाबा नहीं छेड़ता अब बता किया हुआ जो तेरी चल बदल गई।"


राघव "मां इससे क्या पूछते हों मैं बताता हूं।"


सार्थक "हां हां बता अपने कारनामे ठीक से बताना hannnnnn…"


राघव "तू चुप करेगा तभी तो बताउंगा बिना बैटरी के लाइट जलना शुरू कर दे तो बुझने का नाम न ले।"


सार्थक मुंह पर उंगली रख बैठ गया और राघव अपने साथ घाटा किस्सा सुनना शुरू किया। जैसे जैसे सुनता गया। वैसे वैसे प्रगति और तन्नु के माथे पर चिंता की लकीर आ गईं लेकिन अंत में खुशी की ख़बर ये मिला राघव बे रोजगार नहीं रहा। पहले विपदा और बाद में खुशी की ख़बर सुन के प्रगति या तन्नु में से कोई कुछ बोलती उससे पहले ही सार्थक बीच में टपक पड़ा और अलबेली अदा से बोल पडा "तेरे ट्यूबलाइट में रोशनी होता भी हैं या नहीं खाली पीली 5fit 6 Inch के धड़ पर कद्दू जैसा भार धोए जा रहा हैं।"


राघव, तन्नू प्रगति सर खुजाते हुए सोचने लगा। सार्थक ने ऐसा क्यों बोला फ़िर राघव fupppp हंसी रोकते हुए बोला "मेरे ट्यूब लाइट में full रोशनी with high voltage और मेरे सर को कद्दू क्यो कहा मेरा सर sharp brain 🧠 वाला हैं।"


सार्थक "छायां sharp brain 🧠 गोबर भरा हुआ हैं….. आंटी आप ही बताओ इसके सर में गोबर नहीं भरा होता तो क्या ये बाइक की टंकी न चेक करता। टंकी चेक करने के वजह full to tension round and round बाइक के फेरे ले रहा था। अब आप ही इससे पूछो बाइक के साथ फेरे लेकर आ गया। सृष्टि भाभी के साथ कौन फेरे लेगा।


सार्थक की बाते किसी को समझ ही नहीं आया सर के ऊपर से बाउंस गया तब तन्नु बोली " क्या सार्थक भईया आप भी गोल गोल घुमा रहे हों सीधे मुद्दे की बात बताओ न हुआ क्या था।


सार्थक "क्या यार बहना प्यारी इतनी दिमाग वाली होकर भी झल्ली जैसी बोल रहीं हैं तुझसे ये उम्मीद न थीं।"


झल्ली बोलते ही तन्नु खिसिया गई पैर फटकते हुए khunnnnnnn😤 " अपका न गला दबा दूंगी दुबारा झल्ली बोला तो।"


प्रगति मुंह पर हाथ रख हंसने लगीं फिर हंसी रोककर बोली "सार्थक तू तन्नु को झल्ली बोलना छोड़ और बिना आंडा टेड़ा अलबेली चल के सीधे जुबान बोल हुआ किया था।"


तन्नु "मम्मी आप भी unhuuuu….."


तन्नु पर ध्यान न देखकर सार्थक बोलना शुरू किया "आंटी ये अपका सुपुत्र बाइक में तेल नहीं था बिना चेक किए मन बना लिया बाइक खराब हों गया हैं और बाइक के चाकर काट रहा था। उसी वक्त मैं पहुंचा मैं उस ओर किसी काम से जा रहा था। इसको देखा बाइक के चाकर काट रहा हैं तब मैं रुका मेरे रुकते ही मेरा बाइक लेके 9 2 11 हों गया। बस इतना बोला बाइक खराब हों गया हैं सही करके घर ले जाना। मैंने चेक किया उसमें तेल नहीं था। पूरा ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लाया। उसी का नतीजा मेरा ये अलबेली चल हैं।



सार्थक से कथा पुराण सुनाकर राघव उसके पास गया। सार्थक से गले मिला फिर बोला " sorry यार मेरी वजह से तेरा ये हल हुआ लेकिन मैं भी किया करता इतने दिनों बाद जॉब की ख़बर मिला और बीच रस्ते में बाइक बंद हों गया। टेंशन में दिमाग काम ही नहीं कर रहा था।


सार्थक "आंटी देखो इसे, मुझे sorry बोल रहा हैं अपने दोस्त को , मेरा मान कर रहा हैं इसे खूब धोऊ आप कुछ मत कहना। फिर रघाव को परे हटाते हुए बोला चल हट बाजू मुझे मिठाई खाने दे।"


सार्थक मिठाई का डिब्बा लिया और बड़े चाव से एक एक पिस मिठाई के, खाने लगा। खाए जा रहा था रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रुकता न देखकर राघव बोला "अरे अरे सारा खा जाएगा क्या कुछ तो छोड़ दे यार।"


सार्थक मुंह में एक टुकड़ा मिठाई का डालकर बोला "ये सारा मिठाई मेरा हैं मेरे ही करण ये मिठाई आया हैं। तूने ज्यादा कुछ बोला तो अभी जाकर मिठाई के दुकान में बैठ जाऊंगा और सारा मिठाई खा जाऊंगा फिर भरते रहना लब्बा चौड़ा बिल।"


तन्नु "haunnnn भईया आप इतना सार मिठाई खां लेंगे आप का पेट तो ittuuuu सु है।


तन्नु का बोलने का स्टाइल निराला था। फ़िर हुआ वहीं जो हर बार होता है हंसी और ठहाके खैर ठहके थमी तब सार्थक बोला "बहना प्यारी दोस्त के नौकरी मिलने की खुशी में मेरा ittuuuu सा पेट फुलकर बहुत बडा हों गया अब तो मैं दो चार दुकान की सारी मिठाई खां सकता हैं।"


तभी राघव का फोन बजा राघव साइड में जाकर बात करने लगा। कुछ देर बात करने के बाद राघव जब लौटा तब तक सार्थक सारी मिठाई खाकर जा चुका था। तन्नु कमरे में चला गया था। कोई नही था सिर्फ प्रगति बैठी थीं तो प्रगति को बोला मां मैं बाहर जा रहा हु कुछ काम से तब प्रगति बोली कहा जा रहा हैं।


राघव "मां सृष्टि से मिलने जा रहा हूं।"


प्रगति "ओ तो जॉब मिलने की खुशी बहु के साथ भी बाटने जा रहे हों sahiiiii haiiiii, sahiiii haiiii।"


राघव "मां जिसकी वजह से खुशी मिला हैं उसके साथ खुशी बांटना तो बनता हैं। मेरे जीवन में आने वाली सभी सुखद पालो में आप और तन्नु की तरह सृष्टि भी बराबर हकदार हैं। मैं उसका हक कैसे मर सकता हूं।"


प्रगति "मेरा बेटा कितना जिम्मेदार हैं मुझसे बेहतर कौन जान सकता हैं। इसलिए तू जल्दी जा वहां मेरी बहू वेट कर रही होगी और जल्दी आना नहीं तो तेरा बाप रौद्र रूप धारण कर लेगा।"


राघव हां में मुंडी हिलाकर बाहर आता हैं फिर एक कॉल करता हैं कुछ देर बात करता हैं फिर बाइक लेकर चल देता। 15-20 मिनट बाइक चलाने के बाद एक घर के सामने रुक कर हॉर्न देता हैं। कुछ देर बाद फिर हॉर्न देता। लेकिन कोई बहार नहीं आता। तब बार बार हॉर्न देता हैं। तभी सृष्टि बाहर आती और कहती हैं " क्या हुआ बार बार हॉर्न दे रहे हों। थोडा वेट नहीं कर सकते।


बाइक से उतरकर राघव सृष्टि पास जाते हुए बोला "सृष्टि खुशी ही इतनी बड़ी हैं मैं वेट नहीं कर पा रहा था। इसलिए हॉर्न दे रहा था।"


राघव जाकर सृष्टि को गले से लगा लिया ओर बोला " thank you सृष्टि"


सृष्टि राघव को अलग कर धक्का देकर दुर करते हुए बोली "मुझे thunk you बोल रहे हों जाओ मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी।"


ये बोली और मुड़कर अंदर जाने लगीं तभी। राघव ने हाथ पकड़ लिया और खीच कर खुद से चिपका लिया फिर सृष्टि के कमर को दोनों, हाथों के घेरे में ले लिया और बोला "क्यों न बोलू thank You तुम्हारा किया हुआ सभी काम thunk You बोलने वाला है फ़िर भी तुम्हे बुरा लगा है तो sorryyyy srishtiiiiii।


राघव के पकड़ से निकलने की भरसक प्रयास करते हुए "छोड़े मुझे न मुझे तुमसे बात करनी हैं न ही मुझे तुम्हारा sorry चाहिए।"


सृष्टि हाथ घुमा कर पिछे लिया फिर राघव के हाथ पर चिकुटी कटा राघव "aahaaaaa जंगली बिल्ली नाखून कितने बड़े बड़े हैं।"


राघव के बाजू में थापड़ मरते हुए बोला "मैं जंगली बिल्ली हूॅं तो तुम जंगली बिल्ला।"


राघव "सही कहा जंगली बिल्ला ही जंगली बिल्ली को सम्भाल सकता हैं।"


सृष्टि हल्की सी मुस्कुराई फिर दिखवाती गुस्से से बोली "तुमसे तो बात करना ही बेकार हैं।"


ये खाकर सृष्टि मुड़ गई राघव घुटने पर बैठा और कान पकड़ बोला "sorryyy sorryyyy sorryyyy आगे से नहीं बोलूंगा।


राघव की और पलटी घुटनो पर बैठा देखकर सृष्टि बोली "उठो सरे कपड़े गंदे हो गए गंदे कही के"


राघव "कपड़े गंदे होता है तो होने दो जब तक माफ नहीं करोगे ऐसे ही घुटनों पर रहूंगा।


सृष्टि " अच्छा बाबा माफ किया अब उठो, ध्यान रखना दुबारा thank You बोला तो माफ नही करूंगी।"


राघव खड़ा हुआ घुटना झाड़ते हुए बोला "gf thunk you सुनने के लिए मरी जाती हैं, न जाने तुम कैसी gf हों thunk you बोलते ही भड़क जाती हों।"


गाल खींचते हुई सृष्टि "ओ मेरे आंशिक हम थोडा दूजे किस्म के हैं।"


राघव "वो तो तुम हों ही अब जल्दी बैठो देर हों रहा हैं।


सृष्टि " अरे जाना कहा हैं और क्यों जाना हैं।"


राघव "पहली जॉब सेलीब्रेट करने, पहुंच कर ख़ुद ही देख लेना।"


सृष्टि "वो तो तुमने फोन पर ही बता दिया फिर सेलीब्रेट क्यों करना।"


राघव "तुम बैठ रहीं हों या फ़िर घुटनों पर बैठू।"


सृष्टि "न न बैठ रहीं हूं।"



सृष्टि बैठ गईं फ़िर दोनों आशिक सेलीब्रेट करने चाल दिया। कहा जा रहे हैं अगले अपडेट में जानेंगे। आज के लिए इतना ही सांस रहीं तो फिर मिलेंगे।
Excellent update बेरोजगार को अगर जॉब मिल जाती हैं तो उसको इतनी उसकी मिलती हैं की उसने पूरी दुनिया जीत ली ये ही राघव के साथ हुआ है इसका पूरा क्रेडिट सृष्टि को जाता है सच में सृष्टि का प्यार निस्वार्थ है
 

Sanju@

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Update - 6



सृष्टि के बाईक पर बैठते ही राघव बाईक चला दिया। सृष्टि एक तरफ पैर करके बैठी थी। जो राघव को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए कुछ दूर बाईक चलाने के बाद बाइक रोक सृष्टि को दोनों तरफ पैर रख कर बैठने को कहता हैं। सृष्टि एक मस्त स्माइल 🤗 देकर बैठ जाती हैं। सृष्टि राघव के कंधे को पकड़ कर बैठी थी। राघव हाथ कंधे से हटाकर निचे कर देता हैं। सृष्टि फिर कंधे पर रखता हैं। राघव फिर हटा देता हैं बार बार ऐसा करने पर सृष्टि राघव के मंशा को समझकर दोनों हाथ राधव के बागलो से होते हुए ले जाकर छीने को कसकर पकड़ लेती हैं और राधव से चिपककर बैठ जाती हैं। जिससे राघव का तन गुदगुदा उठता हैं। राघव गुदगुदाती अहसास में खोने लगता हैं। जिससे बाइक का संतुलन बिगड़ने लगता हैं। तब सृष्टि के चीखने पर राघव बाईक को संतुलित करता हैं। तब सृष्टि राघव को दो तीन थप्पड उसके कंधे पर मरती हैं और फ़िर से पकड़ कर बैठ जाती हैं। राधव शहर के बाहर की ओर बाईक दौड़ाए जाता हैं। कुछ दूर ओर बाइक चलाने के बाद राघव एक कैफे कम रेस्टोरेंट के सामने बाईक को रोकता हैं। सृष्टि इस कैफे को देखकर हर्षित हो जाती हैं और मंद मंद मुस्कान😙 के साथ राधव को देखती हैं तो कभी कैफे को देखती हैं। हर्षित भाव से कैफे को देखते देखकर राघव बोलता हैं " ऐसे ही देखते रहोगे या अदंर भी चलोगे।"

राधव सृष्टि को साथ लेकर अदंर जाता हैं। कॉर्नर की एक टेबल पर बैठ जाता हैं फिर राधव मेनू कार्ड सृष्टि को देते हुए कहता हैं "जो तुम्हे पसंद हों ऑर्डर कर दो।

सृष्टि "यहां का लवर कॉफी सबसे मशहूर हैं क्यो न हम उस कॉफी को पीकर सेलीब्रेट करे।"

राधव " तुम्हें अब भी याद हैं जब की हम कितने दिनों बाद यहां आए हैं।"

सृष्टि "इस जगह को मैं कैसे भूल सकती हूं। यहां बिताया हुआ पल मेरे जीवन के बेहतरीन पालो में से एक हैं। न ही मैं उस दिन को, न ही उस डेट को कभी भूल सकती हूं। जब तुमने मुझे यहां बुलबाकर खचाखच भरी भीड़ के सामने प्रपोज किया था। मुझे ये अहसास कराया था। इस दुनिया में कोई हैं जो भीड़ में भी कभी तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ेगा। तुमने इस अनाथ का हाथ थामा था। ये वादा भी किया था मुझे एक भरा पूरा परिवार दोगे जो सिर्फ़ मेरा होगा । जिसमें एक स्नेह और ममता को निछावर करने वाली मां होगी। एक बाप होगा जिसके डांट में संस्कारो वाला प्यार होगा। एक नंद जैसी बहन होगी। जिसकी कमी मुझे हमेशा खालती थी। लेकिन उस दिन के बाद यह कमी भी तुमने भर दिया। तुम ही बताओ मैं उस दिन को उस पल को कैसे भूल सकती हु। जो मेरे जीवन में एक नया सवेरा लेकर आई। एक नई उम्मीद को मेरे अदंर जन्म दिया और उसी उम्मीद को मैं थोडा ही सही पल पल जीती आ रही हूं। आज इस जगह पर वापस लाकर तुमने मुझे उस पल का उस दिन का फिर से अहसास करा दिया। मैं जिन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करू वो शब्द भी काम होंगे।😰

कहते हुए सृष्टि रो दिया एक एक शब्द उसके अंतरात्मा से निकाल रहीं थीं। उसके कहे एक एक शब्द उसके अनाथ होने की दर्द को बयां कर रही थीं। राघव जो हमेशा सृष्टि की आंखो में निश्छल भाव और लबों पर लुभावनी मुस्कान देखता था। आज उसे सिर्फ दर्द और दर्द के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। जहां उसे अपने लिए अपर प्यार दिखता था आज उसे उम्मीद दिख रहा था। जैसे उसकी आंखे कह रहीं हों मुझे उम्मीद हैं। तुम मुझे इस बेरहम और बेदर्द दुनिया में कभी अकेले नहीं छोड़ोगे। मेरे निश्छल प्रेम को निराशा में बदलने नहीं दोगे। मेरे प्यार का सही मोल दोगे जो मैंने तुमसे किया।

सृष्टि फफक फफक कर रो रहीं थीं आसपास बैठें लोग सिर्फ़ उन दोनों को ही देख रहे थे। लेकिन राघव का ध्यान सिर्फ सृष्टि पर था। सृष्टि को ऐसे रोते हुए देखकर राधव का दिल भी रो दिया। राधव उठाकर सृष्टि के पास गया और बोला "सृष्टि मत रो मैं हु तुम्हारे साथ तुम्हे कभी अकेला छोड़ कर नहीं जाउंगा। मैं किसी की उम्मीद न पुरी करू लेकिन तुम्हारे उम्मीद को कभी टूटने नहीं दुंगा। मत रो सृष्टि देखो मेरे आंखे से भी आंसू निकाल रहे हैं। तुम कहती हों न तुम मेरे बहते आंसू नहीं देख पाती हों देखो आज सिर्फ तुम्हारे लिए मेरे आंसू बह रहे हैं। देखो न सृष्टि।"😭


सृष्टि ने आंसू को पोछा लेकिन ये आंसू न बहने से कहा मानने वाले थे फिर से बह निकला, सृष्टि ने ओझल दृष्टी से राधव की और देखा। उठाकर राधव से लिपट गई और रोते हुए बोली "राधव तुम कभी मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी। तभी भीड़ में से किसी ने कहा "अरे बोल दे भाई जहां रिश्ते पल भर में टूट जाते हैं। सुबह प्यार की आस जागती हैं और शाम को आस टूट जाती हैं। वहा ये लडक़ी तुझसे उम्मीद लगाएं तुझसे सिर्फ प्यार मांग रहीं हैं। हां बोल दे, बोल दे हां।

बोलने वाला शख्स सृष्टि के पीठ की ओर था। इसलिए सृष्टि देख नहीं पाई लेकिन राधव ने देख लिया था। शख्स का सिर्फ आंखे ही दिख रहा था। बाकी चेहरा नकाब से ढका हुआ था। राघव उसकी और देख रहा था। अपनी ओर देखते देखकर शख्स जल्दी से बाहर निकल गया जब तक सृष्टि पलट कर उसको देखती तब तक वह शख्स जा चूका था। तब राघव सृष्टि को अपनी और घुमा कर उसकी आंखो में देखकर कहता हैं "सृष्टि मैं तुम्हें कभी छोड़कर नही जाऊंगा न ही तुम्हारी उम्मीद को कभी टूटने दूंगा ये वादा हैं मेरा।"

राघव के कहते ही कैफे तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता हैं कोई सिटी बजता हैं तो कोई हुर्रे हुर्रे की हूटिंग करता हैं। वह मौजुद लोग दोनों प्रेमी जोड़े को बधाई देते हैं ताली बजाते हैं और हूटिंग भी करते हैं। कुछ वक्त में सब शांत होकर बैठ जाते हैं। सृष्टि और राघव दोनों एक दुसरे के आंसू पूछते हैं और अपनी अपनी जगह बैठ जाते हैं। तब सृष्टि कहती हैं "राधव कुछ याद आया उस दिन भी तुम्हारे प्रपोज करने पर लोगों ने ऐसे ही तालियां बजाईं थी, हुटिग किया था, सिटी बजाई थी।"

राधव "मुझे सब याद हैं सृष्टि जब तुम्हें प्रपोज किया था। वो दिन साल का अखरी था तुमने कुछ वक्त लिया था मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट करने में, तुम्हारे एक्सेप्ट करने के लामशम दो घंटे बाद नए साल का वेलकम किया गया था। हम दोनों ने साथ में लवर की तरह नए साल सेलीब्रेट किया था। नए साल की शुरुवात के साथ हम दोनों ने एक नए सफर की शुरवात किया था जो आज तक जारी हैं और आगे भी चलता रहेगा। कुछ दिन बाद मेरा एक और सफर शुरू होने वाला हैं जो मुझे मेरे मुकाम तक पहुंचाएगा। इसलिए मैं तुम्हें आज यह लाया हू। जॉब मिलने की खुशी तुम्हारे साथ सेलिब्रेट कर मुकाम तक पहुंचने का जो रास्ता मैं तय करना चहता हूं उसमे तुम भी मेरे साथ रहो।

सृष्टि "सच्ची में"

राधव "हां सृष्टि यह सफर मैं अकेले तय नहीं कर सकता जो मुझे मेरे सपनों की मंजिल तक पहुंचाएगा जिसका पहला कदम रखने में तुमने ही मेरी मदद की, तुम्हारी वजह से ही मुझे जॉब मिला हैं। मन तो कह रहा है तुम्हे बहुत सारा थैंक you कहूं लेकिन नहीं कहूंगा क्योंकि तुम मुंह फुला लोगी।

सृष्टि "thank You कहना चाहते हो, पर मुझे नहीं इस thank you का हकदार कोई और हैं। तुम्हें उसे कहना चाहिए।

राधव कुछ सोचकर "कौन वो रिसेप्शन वाली जिससे तुम्हे बात कराया था।"

सृष्टि "नहीं रे बाबा ! वो तो एक अनजान शख्स है

राघव "अनजान शख्स ये कैसा नाम हैं।"😄

सृष्टि "ये नाम नहीं ये उसका पहचान हैं।"😏

राघव "ये कैसा पहचान अनजान शख्स"🤪

सृष्टि "तुम मेरी खिंचाई कर रहें हों। करों खिचाई और सेलिब्रेशन मैं चाली।"😡

सृष्टि उठाकर जाने लगीं, राघव उसे पकड़ कर बैठाते हुए बोला "अजीब gf हों मजाक भी नहीं कर सकता। थोडा सा मजाक किया तो बुरा मान गई।

सृष्टि "तुम मजाक कहा कर रहे थे तुम तो मेरी खिंचाई कर रहें थे।😠

राघव हाथ जोड़कर "जैसा तुम कहो मोहतरमा।"

सृष्टि "तुम्हारा सही हैं कुछ भी बोल दो फिर हाथ जोड़कर कन्नी काट लो।"

राघव " लग रहा हैं। तुम आज लड़ाई करने के फूल मुड़ में कमर कस लिया हैं। तुम्हारे मन में ऐसा कुछ हैं तो बता दो।

सृष्टि "हां आज मैं लड़ाई के फूल मुड़ में हूं और तुम्हारा ये कद्दू जैसा सर फोड़ना चहती हूं।:bat1:

राघव उठाकर सृष्टि के पास गया। मेज से एक गिलास उठाकर सृष्टि की ओर बडकर अपना सर आगे कर दिया और बोला "लो मैडम ये कद्दू हाजिर हैं शवख से फोड़ों काटो जो मन हो वो करों।"

सृष्टि गिलास परे हटकर राघव के सर को चूम लिया फिर राघव को बैठने के लिए कहा। बैठते ही राघव बोला " सृष्टि ये किया था फोड़ने के वजह चूम लिया कुछ समझ नहीं पाया।"😉

सृष्टि "तुमने अभी अभी तो कह था जो मन आए वो करों। मेरा मान किया इस कद्दू को न फोड़कर चूम लूं तो चूम लिया।"🤪

राघव "मन बदल कर अच्छा किया नहीं तो कद्दू फूटते ही यहां भाग दौड़ मच जाता।"😁

राघव की बात सुनाकर सृष्टि हंस दिया। संग संग राघव भी हंसने लगा। तभी एक वेटर ऑर्डर लेने आया। सृष्टि ने ऑर्डर दिया फिर वेटर चला गया। जब तक ऑर्डर नहीं आया तब तक दोनों तरह तरह की बाते करते रहे। एक वेटर आकार उन्हें उनका कॉफी दे गया। कॉफी पीते हुए राघव बोला "सृष्टि तुमने उस अनजान शख्स के बरे में कुछ नहीं बताए। उसका पता ठिकाना जानते हों तो बता दो उससे मिलकर उसे भी thank You बोल दू।"

सृष्टि "उसका पता ठिकाना मालूम होता तो मैं उसे अनजान शख्स क्यों कहती। मैं तो यह भी नहीं जानती वो दिखता कैसा हैं।"

राघव "अजीब हों तुम न जान न पहचान फिर भी तुम कहती हों मैं उसे thank You बोलूं अब तुम ही बोलों उसे thank you बोलूं तो कैसे बोलूं।"🤔

सृष्टि "thank you कैसे बोलोगे ये तुम्हारा कम हैं। मेरा काम बताना था सो बता दिया अब तुम सोचो क्या करना हैं और कैसे करना हैं।

राघव "ये भी एक झमेला हैं अब उस शख्स को ढूंढो जिसकी कोई पहचान नहीं, गौर करने वाली बात ये हैं जिसे न हम जानते हैं न पहचानते हैं लेकिन वह कैसे जनता हैं मुझे जॉब चाहिए मैं जॉब की खोज में हूं।"

सृष्टि "कहा तो तुमने ठीक हैं न जान न पहचान फिर भी वो जॉब की ख़बर देता हैं और कहता हैं मैं सिफारिश कर दुंगा तुम अपने bf Ko भेज देना।"

सिफारिश की बात सुनाकर राघव चौक गया और बोला "क्या कहा रहीं हों कहीं ये कोई साजिश तो नहीं हैं। कहीं मुझे किसी गलत काम में फंसना तो नहीं चहता हैं।"

सृष्टि "तुम्हें कोई क्यों फंसना चाहेगा। तुम्हारा किसी के साथ कोई दुश्मनी थोड़ी न हैं।"

राघव "दुश्मनी नहीं हैं लेकिन एक बात सोचो बिना कारण कोई अनजान मेरे लिए जॉब खोजता हैं तुम्हारे जरिए मुझ तक ख़बर पहुंचता हैं। सृष्टि बिना कारण कोई किसी की मदद नहीं करता वह ये अनजान शख्स मेरी मदद कर रहा हैं। लेकिन एक बात गौर करने की हैं उसने कैसे जाना मुझे जॉब की जरूरत हैं।"

सृष्टि "मैं नहीं जानती वो अनजान शख्स क्यों तुम्हारा मदद कर रहा हैं इसके पीछे मकसद किया हैं लेकिन ये बता सकती हु उसे कैसे पता चला अभी तीन चार दिन पहले मेरे रूम के पास वाले पार्क में हम दोनों मिले थे। बातों बातों में तुम्हारी जॉब की बात छिड़ी यह बात उस अनजान शख्स ने सुन लिया। तुम्हारे जाने के बाद वह शख्स मेरे पास आया और जॉब कहा मिल सकता हैं उसका एड्रेस दिया और तुम्हें वह भेजने को कहा। लेकिन मुझे उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ। जब मैंने एड्रेस को ध्यान से देखा तो जाना वह मेरी सहेली साक्षी काम करती हैं। तब मैंने उसे फोन किया उसने बताया वह कोई जॉब खाली नहीं हैं तब मैंने उससे रिक्वेस्ट किया बहुत मनाया तब जाकर उसने कहा मैं तुम्हें वह भेज दूं। वो अपने बॉस से बात कर लेगी तब जाकर मैंने तुम्हें वह का पता दिया।

राघव "तुमने भी मेरी सिफारिश की , ये करके तुमने जो किया उसके लिए मैं जो बोलना चहता हूं। उसे सुनाकर तुम नाराज हों जाओगी। इसलिए नहीं बोल रहा हूं। लेकिन ये अनजान शख्स मेरे लिए अबूझ पहेली जैसी बनता जा रहा हैं न जाने उसके मन में किया हैं न जाने क्यो वो मेरी मदद कर रहा हैं। कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। पहले जॉब नहीं थी तो न मिलने की टेंशन थी अब मिल गई तो क्यों मिली ये टेंशन बना हुआ हैं।

सृष्टि "जॉब करते समय ध्यान से करना कुछ भी गलत लगे तो जॉब छोड़ देना। जॉब दूसरी मिल जाएगी लेकिन तुम्हें कुछ हों……

राघव "चुप बिल्कुल चुप एक शब्द भी उटपटांग नहीं बोलना कुछ भी हो जाय सृष्टि तुमसे किया वादा निभाया बिना मैं अपनी सांसों को जबरदस्ती रोक कर रखूंगा ये कहकर मैंने अपनी सृष्टि से किया वादा अभी तक नहीं निभाया इसलिए तेरे निकलने का टाइम नहीं हुआ हैं।"

सृष्टि "मुझे बोलने से रोकते हों और खुद बोलते हों ये कैसा इंसाफ हैं। तुम्हारे इंशाफ का तराजू डामाडोल हों रहा हैं। उसे सही वजन देकर बैलेंस करों नहीं तो……

राघव "आगे कुछ बोलने की जरूरत नहीं हैं। मैं समझ गया हूं तुम कहना किया चहते हों।"

सृष्टि "समझ गए हों तो अच्छी बात हैं नहीं तो मैं तुम्हें अच्छे से समझती। अच्छा सुनो अब हमें घर चलना चाहिए देर हों रहीं हैं।"

राघव "देर तो हों रहा हैं लेकिन जाने का मान नहीं कर रहा हैं। मन कर रहा हैं तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करता जाऊ करता ही जाऊ यह बातों का सिलसिला कभी खत्म ही न करूं।"

सृष्टि "अच्छा तो जल्दी से शादी कर लो फिर इतनी बाते करूंगी इतनी बाते करूंगी तुम पाक कर पिलपिला हों जाओगे।"☺️

राघव "तुम्हारी बातों से नहीं पकूंगा क्योंकि तुम मुझे बीच बीच में अपने लवों की मिठास जो चखने दोगी। मेरा मान कर रहा हैं अभी तुम्हारे इन लबों का मिठास चख लू 😘

सृष्टि " चुप करों और चुप चाप बिना इधर उधार देखे बाहर जाओ मैं बिल पे करके आती हूं।"

बिल पे करने को लेकर दोनों में नोक झोंक होने लगता हैं लेकिन सृष्टि किसी भीं हाल में माने को तैयार नहीं होती वो तरह तरह के तर्क देती हैं थक हर कर राघव हां कर देता हैं। तब जाकर कहीं कैफे का बिल पे होता हैं फिर जैसे आए थे वैसे ही सृष्टि राघव से चिपक कर बैठ जाती हैं। एक बर फिर से राघव का तन मन झनझना उठता हैं लेकिन खुद को काबू कर सृष्टि के रूम तक पहुंचता हैं। सृष्टि को बाइक से उतर कर राघव सृष्टि को किस 😘 करता हैं जो थोडा लंबा चलता हैं फिर सृष्टि अदंर चाली जाती हैं और राघव वह से बाजार जाता हैं एक और डब्बा मिटाई का लेता हैं और घर को चाल देता हैं।



आज के लिए इतना ही आगे के अपडेट में जानेंगे राघव ने दुबारा मिठाई किस लिए लिया। अपडेट में मजा आए तो अपना सुंदर सुंदर रेवो से अलंकृत करना न भूलिएगा। सांस रहीं तो फिर मुलाकात होगी। सांसों का किया आती जाती हवा का झोंका हैं।
Excellent update
लव बर्डस की तू तू मैं प्यार भरी बातें बहुत ही अच्छी थी
 

Sanju@

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Update - 7


अटल जी घर पहुंच चुके थे। उनके घर पहुंचते ही मानो सब को सांप सूंघ गया हों ये अटल जी के धाक का कमाल था। जिसके दम पर घर के सदस्यों को दबाकर रखते थे। तन्नु चुप चाप कमरे में जाकर किताबों में उलझ गई थी और प्रगति किचन का कार्यभार संभाल लिया था। प्रगति किचन का कार्य भार नहीं संभालती तो कहीं अटल जी का पापी पेट जो हद से ज्यादा फुला हुआ था। कहीं कोई बवाल न मचा दे इसलिए प्रगति किचन का कार्य भार संभालते हुए चाकू छुरी तेज कर युद्ध स्तर पर सब्जियों को कटने में जुट गई। किचन भी किसी युद्ध के मैदान से कम थोड़ी न था। जहां महिलाओं को रोजाना युद्ध स्तर पर काम करना होता हैं। कभी भगोना में लगे कालिख पोत कमांडो बनना पड़ता हैं। तो कभी सब्जियों को कटने के लिए माहिर तलवार बाज की तरह चाकू छुरी चलाना पड़ता हैं। कुकर सिटी मरे तो उसे थपकी मार चुप कराना होता हैं चुप कर छिछोरा जब देखो सिटी मरता रहेगा। कभी गुब्बारे की तरह फूलती रोटी को जल्दी से उतर कर बिलास्ट होने से बचाना पड़ता था नहीं तो अगले दिन अखबार में मोटी मोटी हेडलाइन के साथ ख़बर छपेगी। रोटी फटने से एक महिला की हुई मौत ! ये हुआ तो हुआ कैसे ? रोटी फटने से मौत !

किचन में प्रगति का कार्य युद्ध स्तर पर जारी था लेकिन उसे एक चिंता भी खाए जा रही थीं। चिंता का करण उनका सुपुत्र श्रीमान राघव ही था जो अभी तक घर नहीं लौटा था। इधर अटल जी को कोई टेंशन नहीं थी। घर का एक सदस्य कम हैं बजाय पूछने या ढूंढने के चने चवाये जा रहे थे। जैसे कल सुबह घोड़ों का रेस हों और घोड़े के बदले खुद दौड़ने वाले हों इसलिए चने खाकर खुद को और ताकतवर बना लेना चाहते हों।

अटल जी बड़े चाव से चने खाए जा रहे थे। बीच बीच में अकेले बडबडा भी रहे थे। "अरे इतना सख्त चना किस कमबख्त ने दे दिया इसे चबाने में मेरे दांत ही टूट जायेंगे। दांत टूट गया तो कल फिर से चना नहीं खा पाऊंगा।"

कोई सख्त चना मुंह में आता तो उसे थूक कर फेक देते फिर दूसरा मुंह में डालते। उसी वक्त राघव घर पहुंचता है। बाइक सही जगह खड़ा कर दरवजा ठोकता हैं। कईं बार दरवजा ठोकता हैं। दरवजा ठोकने की आवाज़ सुनाकर अटल जी बोलते है "भाग्य श्री देखो तो इतनी रात को कौन कमबख्त दरवजा ठोक रहा हैं। कोई पड़ोसी हो तो चूरन देकर वापस भेज देना। कोई अपना हो तो उसे एक गिलास पानी देकर टरका देना।"

प्रगति उस वक्त गोल गोल गुमाकर रोटी फूला रही थीं। माथे से पसीना टपक रहीं थी। पसीना पोछते हुऐ बोली "जी मैं इस वक्त रोटी फूलने में व्यस्त हूं आप जाकर देखिए न कौनननन…..

तभी प्रगति को याद आता हैं शायद राघव आया होगा। जल्दी से आधी फूली रोटी को उतर दरवजा खोलने भागती हैं। प्रगति को दरवाज़े की और भागते देख अटल जी उछल कर खड़े हों जाते हैं और बोलते हैं "भाग्य श्री एक आध रोटी बोटी फट गई जो इस तरह भागे जा रहीं हों।"

प्रगति कुछ नहीं बोलती सीधा दरवाज़े की ओर बड़ जाती हैं तब अटल जी बोलते हैं "अजीव औरत है घर की मुखिया को कोई भाव ही नहीं दे रही लगता है धाक काम हो गया हैं फिर से धाक जमाना पड़ेगा।"

प्रगति दरवजा खोलती हैं सामने राघव को खड़ा देखकर बोलती हैं "तुझे जल्दी आने को कहा था फिर भी तू देर से आया खुद गलती करता हैं फिर बोलता हैं पापा मुझे बेवजह सुनते हैं।"

राघव "क्या पापा आ गए आज तो लग गई ढंग से।"

राघव अदंर आ जाता हैं। प्रगति किचन की और चल देती हैं। राघव अटल जी के पास जाता हैं। राघव को देखकर अटल जी बोलते हैं "ओ तो तू है, कामचोर काम नहीं हैं तो इसका मतलब रात भर बाहर घूमता रहेगा और ये तेरे हाथ में किया हैं।"

बाप की बात सुनाकर राघव एक पल के लिए ठिठक जाता हैं फिर आगे बड़ मिठाई का डब्बा खोल एक टुकड़ा मिठाई का निकल पापा की ओर बड़ते हुए बोला "पापा मुझे जॉब मिल गया हैं"

अटल जी मन में "मैं भी तो यही चाहता था में बहुत खुश हूं लेकिन अपनी ख़ुशी तेरे सामने जाहिर नहीं कर सकता।"

अटल जी राघव के हाथ से मिठाई का टुकड़ा ले लिया और मुंह भिचकाते हुए बोला "ओ तो मेरे घर के चिराग को रोशन होने का रस्ता मिल गया वैसे किस कमबख्त ने तुम जैसे नलायक को नौकरी दे दिया मैं होता तो जॉब न देकर धक्के मर कर बाहर निकाल देता।"

पापा की बात सुन राघव की खुशी पल भर में टूट गया। मिठाई का डिब्बा वहीं पटका और आंसू बहाते हुए रूम को भाग गया। अटल जी मुस्कुराते हुए गिरे मिठाई को उठाते हुए तेज आवाज में बोला "एक ढेला कमा नहीं पाते और गुस्सा देखो महाशय का, खरीदने मे पैसे नही लगे थे जो फेक कर चल दिया। फिर धीमी आवाज़ में बोला "बेटा तुम्हें ताने देते हुए मेरा दिल कितना दुखता हैं मैं ही जानता हूं। लेकिन मैं तुम्हे तरक्की की सीढ़ी चढ़ते हुए देखना चाहता हु। मैं चाहता हु जो मैं नहीं कर पाया वो तुम करके दिखाओ यही उम्मीद तो मैं तुमसे करता हूं।"

मिठाई उठाकर अटल जी पलटे तो पीछे प्रगति को खड़ा देखकर उनकी मुस्कान फीका पड़ गया। प्रगति पास आकार बोली "मिल गई अपके दिल को शांति मेरा बेटा कितना खुश था अपने एक पल में ही उसकी सारी खुशी को चखना चूर कर दिया। क्यों करते हो? आपका दिल नहीं पसीजता किस मिट्टी के बने हो जो थोडा भी नहीं पिघलता।"

अटल "तुम्हारा भाषण खत्म हो गया हों तो कुछ खाने को दे दो या मिठाई खाकर ही सो जाऊ।"

प्रगति "बन गया है अभी देती हुं मन भर कर ठूस लेना न ठूस पाओ तो मूझसे कहना मैं मदद कर दूंगी।"

प्रगति किचन की और चल देती हैं। उनको ऐसे जाते देखकर अटल जी धीमे आवाज में बोलते हैं। "भाग्य श्री तुम भी मुझे समझ नहीं पाई क्यो करता हूं मैं ऐसा जिस दिन तुम जान पाओगे उस दिन सबसे ज्यादा दुख तुम्हें ही होगा।"

प्रगति खाना लगा देती हैं। तन्नु को बुलाया जाता हैं। तन्नु के आने पर प्रगति दोनों को खाना देती हैं फिर एक थाली में खाना लगाकर जाने लगाती हैं तब अटल जी उन्हें रोकते हुए कहते हैं "थाली कहा लेकर जा रही हों थाली यह रखो और राघव को बुलाकर लाओ आज वो हमारे साथ बैठ कर खायेगा।"

प्रगति "लगता है सुनने में कुछ कमी रह गई जो उसे यह बुलाकर फिर से सुनना चाहते हों। बिना उसको खरी खोटी सुनाए अपका खाना नहीं पचता होगा।"

अटल "मुझे भाषण सुनाने के वजह जीतना कहा गया है करों।"

प्रगति जाकर राघव को आवाज देती हैं लेकिन राघव दरवजा नहीं खोलता तब प्रगति बोलती हैं "बेटा तेरे पापा साथ में खाना खाने बुला रहें हैं। जल्दी से आ जा नहीं तो फिर से गुस्सा करेंगे।"

राघव "मुझे उनके गुस्सा करने से कोई फर्क नहीं पड़ता आप जाकर उन्हे खिला कर खुद भी खा लेना मुझे भूख नहीं है मेरा पेट उनकी बातो से भर गया हैं।"

प्रगति कई बार आवाज देती हैं लेकिन राघव न कुछ बोलता हैं न ही बाहर आता हैं। थक हर कर प्रगति वापिस आ जाती हैं। खाली हाथ वापिस आया देखकर अटल जी पूछते हैं "राघव क्यो नहीं आया उसे भूख नहीं हैं क्या?

प्रगति "नहीं हैं भूख अपकी बातो से उसका पेट भर गया हैं। आप भी भर लो अपना पेट।"

प्रगति की बात सुनाकर अटल जी थाली धकेल कर उठ जाते हैं। हाथ धोकर कमरे में चले जाते हैं। प्रगति उनको जाते हुए देखती रह जाती ही। तन्नु ने जीतना खाया था उतने में ही विराम देकर उठ कर चाली जाती हैं। प्रगति एक बार और राघव को खिलाने की कोशिश करती हैं। लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता हैं। तब प्रगति सब कुछ बटोरकर किचन में रख कर सोने चाली जाती हैं।

विधि का विधान देखो जहां दिन हर्ष और उल्लास में बिता, रात होते ही रात के अंधकार में सब काला पड़ गया सारा हर्ष उल्लास रात्रि के सन्नाटे में खो गया। घर के चारों सदस्य में से किसी के आंखो में नीद नहीं था सब अपने अपने सोचो में गुम थे। ऐसे ही रात बीत जाता हैं। एक नई सुबह नई उम्मीद के साथ आता हैं। सुबह भी राघव कमरे से बाहर नहीं आता। अटल जी तोड़ा बहुत नाश्ता करके कहीं चले जाते हैं। जाते वक्त बोलकर जाते हैं राघव को खाना खिला देना कल से कुछ नहीं खाया हैं। अटल जी के मुंह से ये बात सुनाकर प्रगति और तन्नु भौचकी होकर उन्हे देखने लगती हैं। क्योंकि अटल जी के मुंह से यह बात बहुत दिनों बाद निकला था जब वो खुद से राघव को खान खिलाने के लिए कहा हों।

अटल जी के जाते ही प्रगति एक थाली में नाश्ता लगाकर राघव के कमरे की ओर जाती हैं तन्नु भी उनके पीछे पीछे जाती हैं। दोनों मां बेटी दरवाज़े पर दस्तक देती हैं और ठोकने लगती हैं। जैसे दोनों में प्रतियोगिता चल रहीं हों कौन पहले दरवाजा खुलवाती हैं। राघव अभी अभी सो कर उठा था और अंगड़ाई ले रहा था। आंख मलते हुए बोला "अजीब मुसीबत हैं दरवजा नहीं ढोल हों जिसे देखो बे सुर ताल बजाते रहते हैं। अभी आया दो पल वेट करों।"

तन्नु "भईया जल्दी दरवाजा खोलो देखो बाहर मदारी आया हैं। बंदर गुलाटी मार मार कर खेल दिखा रहा हैं।"

राघव दरवाजा खोल कर "कहा हैं बंदर चल मुझे भी खेल देखना हैं।"

तन्नु "हे हे हे बुधु बनाया बडा मजा आया बुधु बनाया……

राघव "तन्नु तू ये रोज रोज नए नए पैंतरे कह से लाती हैं।"

प्रगति "चुप कर कल रात से मैं भूखी हुं और तुम दोनों को अपनी अपनी पड़ी हैं। राधव तू दिन चढ़कर डूबने को हो रहीं हैं और अब उठा रहा हैं।"

राधव "दिन डूबा नहीं है अभी अभी उगा है रात देर से सोया था सो उठने में देर हों गईं। प्रगति के हाथ में रखी नाश्ते के प्लेट देखकर कहा "आप ये नाश्ते की प्लेट लेकर पक्षियों को खिलाने जा रहे हों।"

प्रगति मुंह भिचकाते हुए बोली " हुहुनन मैं तो अपने बेटे को खिलाने आई थी जो रात से भूखा हैं। फिर तन्नु से बोली चल तन्नु बेटा जब इसे ही भूख नहीं हैं तो हम क्यों भूखा रहे।"

राधव पेट पर हाथ रखा " मां भूख तो बहुत तेज लागी है तभी तो रात भर सोया नहीं अभी अभी सोया था और आप दोनों ने धाबा बोल दिया।"

तन्नु "खी खी खी….

प्रगति तन्नू को आंखे दिखाती हैं तन्नु चुप चाप खड़ी हों जाती हैं। जैसे वो कुछ जानती ही न हों बिल्कुल अबोध बालिका हों। तब जाकर कही राघव को जल्दी से तैयार होकर आने को कहती हैं। मां के कहते ही राघव "आप की आज्ञा का पालन अति शीघ्र होगा माते।"

राघव के कहने का ढंग निराला था इसी निराले पान ने दोनों मां बेटी के लवों पर मंद मंद चलती वायूरिया समान मुस्कान ला दिया। मुस्कुराते हुए दोनों चल दिए राघव सीधा बाथरूम में घुस गया। यहां प्रगति ने सारी तैयारी कर लिया था फिर बैठे बैठे प्रतिक्षा कर रहीं थीं। भूख बड़ी जोरो की लगी थी पर खां नहीं सकती थीं बेटा जो रात से भूखा था। बेटा आया उसको खिलाया तब जाकर निवाला प्रगति के पेट में उतरा। नाश्ते के दौरान विभिन्न विषय पर वार्तालाप हों रहा था। थोड़ी चुगली छीना झपटी हुआ और अटल भवन टहको से गूंज उठा हंसी ख़ुशी से तीनों ने पेट भर नाश्ता किया जो कल रात से अन्न के दाने के लिए तरस रहा था। विभिन्न प्रकार की क्रयकलाप करते हुए तीनों नाश्ते के काम से निपट चुके थे। राघव कहीं जा रहा था। तब प्रगति रोकते हुए बोली "पापा की डांट से बचना चाहते हों सुपुत्र, तो चरण को अपने कहीं बाहर न लेकर जाओ। घर की साफ सफाई में थोडा दो साथ, चलो मिलकर घर को चमकाए आज।"

प्रगति के कहने के स्टाइल से दोनों बेटा बेटी हंस हंस कर लोट पोट हों गए। कोई पेट पकड़ कर हंसे तो कोई रुक रूक कर हंसे एक बार फ़िर से अटल भवन हंसी ठहाकों से गूंज उठा। कुछ वक्त तक यह दृश्य चलता रहा फिर कही जाकर रुका। रुकते ही प्रगति झाड़ू पोछा बाल्टी लेकर आई, तीनों ने अपना अपना काम बांट लिया और शुरू कर दिया सफाई अभियान, कोई जाले निकले तो कोई झाड़ू मारे, दोनों भाई बहन बीच बीच में लड़ बैठे तब प्रगति उन पर भड़क जाए कुछ वक्त तक सही चले फिर वहीं मजरा शुरू हों जाए। प्रगति सर पर हाथ मार दोनों को आंख दिखाए और अपने काम में डाट जाएं। किया किया न किया दोनों भाई बहनों ने लेकिन अंत में घर को चमका ही दिया। कचरे का कहीं कोई नामों निशान नहीं जला कभी था की नहीं इसकी भी कोई निशानी नहीं पोछा ऐसा मारा मानो फर्श नहीं आईना लगा हों, फर्श में देखकर ही चहरे को संवारा जा सकता हैं।

सफाई का कार्य समाप्त हुआ जिसमें तीनों के बदन का कोना कोना गंदा हों गया। साथ ही थक भी बहुत गए थे आखिर धमाचोकड़ी जो इतनी मचाई थीं। घर की सफाई के बाद आई बदन की साफ सफाई की बारी तो तीनों बारी बारी बाथरूम गए और बदन को साफ कर बाहर आए।



घर और बदन की सफ़ाई के साथ आज की अपडेट की समाप्ति की घोषणा करता हूं। सांस रहीं तो फिर मिलेंगे कुछ ओर शब्दकोष के साथ तब तक के लिए मैं लेता हूं विदा। आप अपना काम करना न भूलिएगा मजा आए तो कुछ शब्द छोड़ जाइएगा।
हमेसा अटल जी राघव को डाटते रहते है आज पता चला कि वे भी राघव से कितना प्यार करते हैं वे चाहते की जो वो अपनी जिंदगी में नहीं कर पाए वे उनके बच्चे करे सच है हर बाप यही चाहता है कि जो काम उसने नही किया उनके बच्चे करे और उनका नाम रोशन करे
 

Sanju@

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तीनों नहा धोकर बिल्कुल चकाचक चमकने लगे। घर के धूल के साथ साथ बदन में जमी धूल जो साफ कर लिया था। थकान से बदन चूर हों रहा था लेकिन अभी विश्राम करने का वक्त नहीं था। आज धन के पहरेदार की पूजा जो थी। रिवाज अनुसार आज खरीददारी करना शुभ मना जाता हैं। इसलिए प्रगति राघव को खरीददारी करने साथ चलने को कहा लेकिन राघव आलस की मारी थकान की बीमारी से पीड़ित था। आराम कर थकान नामक बीमारी से निजात पाना चहता था इसलिए आनाकानी करने लगा तो प्रगति खीज कर बोला "थका सिर्फ़ तू ही नहीं, मैं भी थका गई हूं, फिर भी मैं चल रही हूं, तू चल मेरे साथ नहीं तो तेरे बाप को कॉल करती हूं।"

बाप का नाम सुनते ही बाप के ताने याद आ गया थका शरीर फिर से तरो ताजा हों गया प्रफुलित होकर राघव बोला "जैसी अपकी आज्ञा माते, आप चलिए मेरे साथ, खरीद लाते हैं सारा बाजार आज।"

प्रगति कुछ न बोली बस एक मोहिनी मुस्कान बिखेर दी और चल दिया राघव के साथ तभी आ टपकी चुलबुली बाला भोंहे हिलाते हुए बोली "किधर को चल दी मां बेटे की टोली, मुझे भी साथ लेकर चलो, क्यो रहूं मैं घर पर अकेली।"

राघव प्रगति दोनों हंस दिए फिर प्रगति समझते हुए बोली "तू घर पर रह बाजार में बहुत भीड़ होगी खरीददारी करने में समय लगेगी। दुकान दुकान घूमना पड़ेगा तू हमारे साथ कहा कहा टक्कर खाती फिरेगी।"

तन्नु "umhnnnnn मुझे लोलोपॉप दे रहीं हों बच्ची समझी हों क्या मैं तो जाऊंगी।"

दोनों मां बेटी में तर्क वितर्क का युद्ध छिड़ गया। प्रगति तर्क दे तो चुलबुली तन्नु के भेजे में वितर्क उपज आए और अपने अंदाज में कह सुनाए। तर्क वितर्क का युद्ध कुछ लंबा चला तब जाकर कहीं तन्नु मानी तो प्रगति ने चैन की सांस लिया और तन्नु को एक और लॉलीपॉप दिया "तन्नु बेटा बता तुझे क्या खाना हैं जो बोलेगी लेकर आऊंगी।"

मां की बात सुनाकर राघव सर पर हाथ मारा और मन ही मन बोला क्या जरूरत थीं शान्त पानी में पत्थर मार लहर लाने की, इसी लहर में आप भी बहोगी साथ में मुझे भी खींच ले जाओगी।"

क्या खाना हैं? सुनते ही तन्नु की बांछे खिल गई। लिस्ट इतनी लंबी चौड़ी बता दिया। इतना लंबा मेनू तो रेस्टोरेंट और होटलों में भी नहीं होता होगा। न जाने कौन कौन से नाम गिना दिए इस धरा की थी ही, दूसरे धारा की भी समेट कर लिस्ट में छप दिया। इतने सारे नाम सुनाकर प्रगति सोच में पड गई और खुद को कोसने लागी "क्या जरूरत थीं इस भुक्कड़ को छेड़ने की अच्छा खासा मन गई थी अब ढूंढते रहना इसकी लिस्ट हाथ में लिए।" फिर प्रगति मुस्कुराकर बोली "सभी ले तो आऊ तू खा पाएगी क्या?"

तन्नु किया बोले, बोलने को कुछ था ही नहीं इसलिए सिर्फ मुस्कुरा दिया। राघव समझ गया मामला सुलट गया अब कट लेना ही बेहतर हैं। मां का हाथ पकड़ा और बाहर खींच ले गया। बाईक निकाला और चल दिया खरीददारी करने।

बाजार मे भिड़ खचाखच थीं। सभी खरीददारी करने जो आए थे। दुकानों की सजावट देख लगा दिवाली आज यहीं मन जायेगा। दुकान ओर बाहर सजी तरह तरह के समान देख दोनों मां बेटे की आंखे चौंधिया गया क्या खरीदे क्या न खरीदे असमंजस मे पड़ गए। दुकान दुकान घूमे पर पसंद कुछ न आए। अब थकान भी अपना करतब दिखाने लगा राघव की आंखे बोझिल होने लगा तक हर कर राघव बोला "मां कितना घुमाओगे अब तो मेरे पैर भी दाम तोड़ने लगा, जल्दी से जो खरीदना हैं खरीद लो नही तो मैं घर को चला।"

प्रगति "रुक न बाबा पहले पसंद तो कर लू फिर खरीद लूंगी।"

राघव आगे कुछ नहीं कहा क्यो आया मां के साथ घर पर रहता तो अच्छा होता ये पापा भी न आज उनके कारण ही मेरी ऐसी दशा हैं। मन में कहते हुए मां के पीछे पीछे घूमने लगा। घूमते घूमते प्रगति को उसके पसंद का समान मिल गया। उसे खरीदने के लिए दुकान में घूस गई। भाव पता किया तो दाम कुछ जांचा नहीं फिर शुरू हुआ तोल मोल का विचित्र खेल दुकान दर कुछ कहें प्रगति कुछ और कहें, भाव दोनों को पाटे नहीं तोड़ी देर ओर मोल भाव चला अंत में दुकान दर ने हार मान ही लिया। तब प्रगति ने अपने पसंद का समान अपने भाव से खरीद लिया। ऐसे ही मोल भाव करके कुछ और जरूरी समान को खरीदा गया। खरीददारी के समापन होने पर खाने पीने की कुछ चीजे खरीदा और चल दिया घर।

घर पहुंचते ही राघव की बांछे खिल गया। खरीदा हुआ सभी समान अदंर रख कमरे को ऐसे भागा जैसे किसी ने रॉकेट के पूंछ में आग लगा दिया हों। प्रगति "aahannn maaaaa बहुत तक गई तन्नु बेटा एक गिलास पानी पिला दे।"

तन्नी किचन में थी पानी लाकर दिया फिर तन्नु बाजार से लाए सभी सामन को चेक किया और उन्हें सही जगह रख दिया। कुछ वक्त आराम करने के बाद प्रगति शाम की खाने की तैयारी करने किचन चली गईं। साथ में तन्नु को भी ले गईं। इधर ये दोनों खाने की तैयारी में लगे थे उधार राघव रूम में जाते ही पसार गया। आज दिन भर की थकान उसके अंग अंग से झलक रहा था। उसे लेटे एक पल ही हुआ था की नींद ने अपनी जकड़ में ले लिया। नींद की अंचल में अभी खोने ही लगा था की मोबइल ने खलाल डाल दिया मन कर रहा था मोबाइल फेक कर मारे लेकिन विचार को त्याग कर "अब कौन हैं?" बोलकर मोबाइल हाथ में लिया स्क्रीन पर फ्लैश हों रहा नाम देखकर राघव थकान नींद सब भुल गया। नाम ही ऐसा था। कॉल रिसिव किया और शुरू हों गया इनकी बाबू सोना वाली गपशप दिन भरा क्या क्या किया सब सुना डाला। इधर राघव ने कॉल कटा उधर अटल जी का आगमन हुआ। अटल जी की आभास पते ही तन्नु किचन से निकलकर रूम को भागी और किताबों में उलझ गई।

अटल जी अदंर आए घर की सुधरी हुई दशा देखकर मन में बोला "गलती से किसी ओर के घर में तो नहीं घूस गया निकल ले अटल बेटा नहीं तो सारी पंडिताई भुल जाऐगा।

अटल जी सिघ्रता से बाहर निकले। मैन गेट पर गुदे हुए नामावाली पर नज़र फेरा वहा अपना नाम देखकर बोला " ये तो मेरा ही घर हैं लगता हैं मेरे बेटे ने अपना करतब दिखा ही दिया आज तो सब्बासी देना बनता हैं। अरे सब्बासी दिया तो कहीं अपना रास्ता न भटक जाएं। बरहाल जो भी हों आज उसने एक अच्छा काम किया हैं। तारीफ तो करना ही पड़ेगा।"

बड़बड़ाते हुए अटल जी अदंर आए और आवाज दिया "भाग्य श्री किधर हों कभी पति का भी हल चल ले लिया करों जब देखो किचन और बच्चों में उलझी रहती हों।"

प्रगति उस वक्त आटा गूंध रहीं थीं हाथ खाली नहीं था तो बोली "ओ जी मेरा हाथ खाली नहीं हैं आप जरा खुद से लेकर पी लिजिए।"

अटल जी कीचन की और आते हुए बोला "ऐसा किया कर रहीं हों जो हाथ खाली नहीं हैं।"

प्रगति पीछे पलटी तब तक अटल जी किचन में आ गए थे। प्रगति की दशा देखकर अटल जी की हंसी छूट गया। हंसी तो आना ही था प्रगति के दोनों गालों पर आटा जो लगा था। अटल जी पास गए कमर में खोंचा हुआ आंचल निकला गालों पर लगे आटा को पौछते हुए बोला "भाग्य श्री आटा हाथ से गोंद रहीं हों या मुड़ी से जो इन खुबसूरत गालों पर लगा लिया।"

प्रगति मुस्कुराते हुए अपने काम में डांट गई। अटल जी फ्रीज से पानी निकला और गला तर कर लिया फिर दीवाल से टेक लगाई प्रगति को काम करते हुऐ देखने लगा कुछ वक्त देखने के बाद प्रगति के बगल में जाकर खड़ा हों गए और बोला "भाग्य श्री मैं कुछ मदद कर दू।"

प्रगति "नहीं आप थक गए होंगे जाकर थोडा विश्राम कर लिजिए।"

अटल "थक तो तुम भी गई होगी आज घर को जो चमका दिया नक्शा ही बदल दिया। मैं पहचान ही नहीं पाया बाहर जाकर नाम प्लेट देखा तब जाना मैं सही घर में घुसा हूं।"

प्रगति "सच्ची में आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।"

अटल "सही कह रहा हु मै आकर वापिस चला गया था। नाम प्लेट देखकर फिर वापस आया।"

प्रगति "ये जो आपको चमकता हुआ और बदला बदला घर लग रहा हैं। इस काम में हमारे बेटे और बेटी ने भी पूरा पूरा सहयोग दिया था। आज दोनों भी बहुत थक गए हैं।"

अटल "ओ तो उस नालायक ने आज घर का काम किया हैं। उम्मीद नहीं था ये आलस के पुजारी काम करेगा।"

प्रगति " आप उससे इतना खफा क्यो रहते हैं? मैं नहीं जानती लेकिन साफ साफ कह देती हूं। त्यौहार के कुछ दिन उसके साथ अच्छा वर्तव करना नहीं तो……

अटल जी बीच में ही बोल पडा "नहीं तो तुम भूख हड़ताल पर बैठ जाओगी। तुम कम करों में जाकर तनुश्री को भेजती हूं।"

अटल जी बाहर आकार तन्नु के कमरे में गए उसको कीचन में भेज दिया फिर राघव की कमरे के और बड़े राघव के कमरे की ओर जाते हुए अटल जी के पैर डगमगा रहे थे। कईं सालो बाद आज अटल जी बेटे के कमरे में जा रहे थे तो पैर तो डगमगाना ही था। एक मन जाने को कह रहा था एक रोकने की पुरी पुरी कोशिश कर रहा था। लेकिन आज अटल जी का अटल मन हार गया और बाप का मान जीत गया। ऐसा नहीं की अटल जी कभी राघव के कमरे में नहीं गए। अटल की सुबह राघव और तन्नु को देखने से ही शुरू होता था और दिन का अंत दिनों को सोता हुआ देखकर ही होता था। लेकिन समय ने ऐसा चल चाला की अटल जी बेटे से दुर होते गए सिर्फ बेटे से ही नहीं बेटी से भी दूर होते गए और एक अटल पत्थर बन कर रह गए। धीरे धीर डग भरते हुए राघव के रूम तक पूछा, खड़े होकर कुछ वक्त सोचा आवाज दे या दरवाज़ा खटखटाएं, बड़ा ही विकट और असमझास की स्थिति बन गया एक बार तो अटल जी पलट गए दो कदम बड़े फिर पलटे और आवाज दिया "राघव बेटा दरवाजों खोलो।"

राघव उस वक्त कुछ काम कर रहा था। दरसल राघव ने कमरे मे ही एक कोने में छोटा सा वर्क शॉप बना रखा था। खाली टाईम में वहां बैठ कर अपने इंजीनियरिंग दिमाग को काम में लगता था और विभिन्न प्रकार की ब्लैंक सर्किट बोर्ड में कंपोनेंट को जोड़कर नए नए डिवाइस बने का काम करता था। लेकिन उसका यहां काम हमेशा असफल ही रहा। आज भी राघव सृष्टि से बात करने के बाद एक डिवाइस पर काम कर रहा था। तभी उसके कान में अटल जी की आवाज़ गूंजी। पापा भला मुझे क्यों बुलाने आयेंगे। ये सोचकर नजरंदाज कर दिया। एक बार फिर अटल जी ने आवाज दिया तब जाकर राघव को लगा सच में पापा मुझे ही आवाज दे रहे हैं।

राघव उठाकर दरवाजे के पास गया दरवाजा खोल, अटल जी को खड़ा देखकर पहले तो चौका फिर आंखें मलकर देखा। राघव खुद को यकीन ही नहीं दिला पा रहा था कि उसका पिता इतने सालो बाद आज उसके कमरे के सामने दरवाज़े पर खड़ा हैं। इसलिए बार बार आंखें माल रहा था और विस्मित होकर देख रहा था। एक पल को अटल जी की आंखो में भी नमी आ गया। आज अटल जी अटल पत्थर की तरह अटल न रह सके। पलके भोजील होते ही पलके मूंद लिया और आंखों में आई नमी बूंदों का रूप लेकर बह निकला। अटल जी बहते आंसुओ को पोछा और बोला "कैसे हो राघव बेटा दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रभु तुम्हारी सभी मनोकामना पुरी करे।"

इतने दिनों बाद बाप से बेटा शब्द सुनाकर राघव खुद को ओर न रोक पाया और पापा मैं ठीक हूं कहकर लिपट गया। बाप बेटे का यहां अदभूत मिलाप जो न जानें कब से अधूरा था। आज पूरा हुआ। कुछ वक्त लिपटे रहने के बाद अटल जी अलग हुए राघव के सर पर हाथ फिरते हुए मन में बोला "राघव मै जानता हु तू आज बहुत खुश होगा। लेकिन मैं भी क्या करू एक बाप हूं तुझे कामियाब होते हुए देखना चहता हूं। तू नहीं जानता मैं तेरे सामने तो पत्थर बना राहता हूं लेकिन अकेले में तुझसे ज्यादा रोता हूं। तू जल्दी से सफलता की सीढ़ी चढ़कर दिखा ताकि मैं तुझे पुराना वाला दुलार फिर से दे सकूं।"

अटल जी राघव के कमरे के अंदर जाते हैं। कमरे को बारीकी से निरीक्षण करते हैं कहीं कुछ कमी तो नहीं हैं फिर बैठ कर बहुत सारी बातें करते हैं। राघव तो फुले नहीं समा पा रहा था खुशी आंखो से आंसू बन छलक रहा था। कुछ वक्त तक सभी तरह की बाते करने के बाद अटल जी "राघव बेटा अब तुम अपना काम करों थोड़ी देर में खाना खाने आ जाना और हां तुम्हारे मां को पता नहीं चलना चाहिए मैं तुमसे बात करने तुम्हारे कमरे में आया था।"

राघव के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात ओर किया होगा कि उसके पिता उससे बात करने उसके रूम तक आया। इसलिए हां में मुड़ी हिला दिया। अटल जी मुस्कुराते हुए रूम से चले गए। बाप के जाते ही राघव खुशी से उछल पड़ा किया करे किया न करें समझ ही नहीं पा रहा था। अपना यहां खुशी किस के साथ बांटे उस बंदे को मन ही मन खोज रहा था। उसे सिर्फ़ एक ही नाम सुझा वो हैं सृष्टि बस फ़िर किया था मोबइल उठाया और सृष्टि को कॉल लगा दिया। सृष्टि शायद मोबाइल हाथ में लिए बैठी थीं। पहली रिंग पर ही रिसिव कर लिया और राघव ने एक ही सांस में सब सुना डाला। सुनकर सृष्टि भी खुश हों गई। चलो अच्छा हुआ बाप बेटे का रिश्ता सुधार गया। राघव सृष्टि बातों में मगन था। इधर प्रगति खाना खाने के लिए उसे आवाज दे रहा था। तीन चार आवाज देने के बाद राघव कॉल कट कर खाना खाने चला गया। राघव को इतना खुश देख प्रगति भी खुशी खुशी खाना खिलाने लगीं। आज राघव खुशी के मारे और दिनों से ज्यादा खा लिया। एक डकार आई और उसे एहसास करा दिया बेटा घड़ा भर गया हैं अब उठा जा नही तो सारा लेथन यहां ही फैल जाएगा। राघव उठाकर चला गया बाकी सब ने भी अपने अपने पेट रूपी घड़े को परिपूर्ण भर लिया और अपने अपने रुम में सोने चले गए।


आज के अपडेट को यहां ही विराम देता हूं। पहले खरीददारी फिर बाप बेटे का मिलन कैसा लगा अपने शब्दों में बताना na भूलिएगा। मिलते है फ़िर एक नए किस्से के साथ तब तक के लिए अलविदा।
Nice update 👌👌👌👌👌
आज आखिर बाप की विजय हुई हर बाप ये चाहता है कि उसका बेटा बुलंदियों को छुए अटल जी ने भी ये ही किया अंदर से उनका दिल भी बहुत रोता था अब वे अपने बेटे को खरी खोटी सुनते लेकिन क्या करते उनको ये डर रहता कहीं बेटा बिगड़ नही जाए
Emotional wala part achaa laga
 
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