• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
443
998
93
अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
443
998
93
Are kash main bhi aapki tarah kahani likh paati to kitna achhi baat hoti na...kabhi kabhi confuse ho jaati hu scenes ko ek flow mein kaise rakhu ...btw aap isme mahir hai.....jo apne ap me kabile tarif hai..

Is liye to bas reader hun

Long story line dene mein jo puri koshish hai aapki usme har baar aap kamyaab rahte hai...jo apne aap me ek adbhut lekhni pradashan hai. Aapki manoram lekhni dekh lage ki main bhi koshish karu kahani likhne ki.. :D
dekho aur sikho :lol:
ju ka post revo ban gaya :D
Sahi ja rahe ho sikhao shikhao jab sikh sikh jaye tab mat kahana sab mere jase long revo dene lag gaye hai 🥰
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
443
998
93
Kuch seen pakad me na aaye to writer ki tarif pe tarif kar do revo superhit ho jayega?
Sahi pakde ho bahiya ji bahut upar tak jaoge naina ji ke mast chela banne ke sare gund maujud hai:lol1:
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
443
998
93
Intezaar agle update ke liye :waiting:
Duje garh aaye hain kisi ki fhere padvane to pahle fhere padva deta hu phir update dunga
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
7,519
20,785
174
Are mereko apki tarah revo dena aata nahi to kabhi kabhi confuse ho jata hu ki kis seen ko pakdu ...

Is liye kabhi kabhi "nice update " likhna padta hai...
Long revo dene ke liye puri koshish karta hu par abhi ho nahi pata fir bhi jitna aata hai utni koshish karta hu....

Fir bhi mere nice update revo ko dekh kar koi bhi meri story par long revo na dena chahta to uski marji ab ab mere se se long revo nahi likha jata to me or kuch keh nahi sakta...:angrysad:
Ye dar hame achcha lga :evillaugh:
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
7,519
20,785
174
:calling: कहा हो भाई साहब, काफी समय से आपका हालचाल नही मिल रहा है । मै ब्रेक पर थे तो सोचा काफी कुछ मेहनत करना पड़ेगा वापसी मे ,,, लेकिन यहा जू भी गायब हो ।

Voice msg सुनते ही खबर देना
इन्तजार है
 
  • Like
Reactions: mashish and Sanju@

Sanju@

Well-Known Member
4,837
19,529
158
Update-1


दरवजा खुलता हैं। जिसमें से दुनिया के बेहतरीन नमूने में से एक नमूना बहार निकलता हैं। जिसकी बदन पर कपड़े के नाम पर कमर में एक टॉवल बंधा हुआ था। इनकी बाहर निकली हुई तोंद देखकर मालूम होता महाशय ने माल पानी बहुत गटका था। जो इनके पेट में तोंद बनकर बहार निकल आया था। महाशय पहले सरकारी बाबू हुआ करते थे। रिटायर मेंट के बाद इन्होंने अपना खानदानी पेशा पंडिताई शुरू कर दिया।


हाथ में लोटा लिए कुछ बुदबुदाते हुए आगे बड़े। क्या बुदबुदा रहे थे ये महाशय ही जानते थे क्योंकि सिर्फ़ होंट हिल रहा था, सुनाई कुछ दे नहीं रहा था। चार दिवारी के पास लगे तुलसी जी के पास गए और सूर्य देवता को जल चढ़ाने लगे। जल चढ़ाकर निपटे ही थे की सामने से किसी ने " नमस्कार पंडित जी सब कुशल मंगल"।


ये हैं पंडित अटल पांडे महाशय नाम की तरह अपने कर्म से भी अटल हैं। वचन के इतने पक्के दुनिया चाहे इधर की उधार हों जाएं लेकिन महाशय का दिया हुआ वचन पत्थर पर खींचे लकीर की तरह अटल हैं। परिवार में इनकी धक चलती हैं। इन्होंने कुछ कह दिया उसके बाद इन्हें सिर्फ हां ही सुनना हैं न सुनते ही इनका उजड़ा चमन जिसमें गिने चुने झाड़ झंकार बचे थे उन्हे ही नोचने लगते थे। इनकी उम्मीद की पुल जिसकी सीमाएं असीमित हैं। जिस पर चलने का काम इनका एक मात्र बेटा, एक मात्र पुत्री और एक ही बीवी का है।


पण्डित जी का हल चल लेने वाला इनके पड़ोसियों में से एक था जो सुबह सुबह की ताजी हवा फेफड़ों को सूंघने के लिए बालकोनी में खड़े थे। पण्डित जी को जल चढ़ाते देखकर चुप रहे जल चढ़ जाने के बाद पण्डित जी की खेम खबर पुछा, पण्डित जी उनकी और देखकर मुस्कुराए फिर बोले…… रोज की तरह सब कुशल मंगल हैं। आप अपना सुनाए जजमान।


पण्डित जी दो चार बाते ओर किया फिर कुछ गुनगुनाते हुए । घर के अंदर चल दिए। अंदर आकर मंदिर गए लोटा वहा रखा भगवान जी को "हे विघ्न हारता, मंगल करता, पालन करता अपने इस तुच्छ भक्त की सभी भूल चूक को क्षमा करना, सभी प्राणी का मंगल करना, मेरे परिवार को सद बुद्धि देना जो अपने अभी तक नहीं दिया" बोलकर साष्टांग प्रणाम किया फिर उठाकर कमरे में गए, कपड़े इत्यादि पहनें फिर कुछ ढूंढ रहे थे जो मिल ही नहीं रहा था। तब ये बोले "भाग्यश्री कहा हों मेरी समय सूचक यंत्र नहीं मिल रहा "।


"जी वहीं रखा होगा ठीक से ढूंढिए" एक आवाज पण्डित जी को सुनाई दिया। अटल जी ठहरे अटल प्राणी इन्होंने अटल फैसला बना लिया इनकी समय सूचक यंत्र मतलब घड़ी नहीं मिलेगा तो मिलता कैसे? इन्होंने फिर से आवाज लगाया "भाग्यश्री जल्दी आओ न मुझे नहीं मिल रहा लगता हैं मेरा समय सूचक यंत्र मेरे साथ लुका छुपी खेल रहा हैं।"


"जी अभी आई" बोलकर एक महिला थोड़ी देर में कमरे में प्रवेश करती हैं।


ये हैं अटल जी की एक मात्र धर्मपत्नी कहे तो बीवी, प्रियतमा इनका नाम प्रगति पांडे जो की ग्रहणी हैं। इनके मां बाप ने उच्च शिक्षा देने में कोई कमी नहीं रखी मतलब इन्होंने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था। लेकिन इनका पोस्ट ग्रेजुएशन करना किसी काम नहीं आई सिर्फ इनके लिए एक उपाधि बनकर दीवार पर टांगी रह गईं। शादी से पहले इन्होंने ग्रेजुएट होने का बहुत फायदा लिया मतलब एक अच्छा संस्कारी जॉब करते थे। शादी होते ही सास - ससुर के उम्मीद अनुसार जॉब छोड़कर सामान्य ग्रहणी बनकर रह गई। इनके सास -ससुर अब नहीं रहे वे अपना बोरिया विस्तार इस धरा से समेत कर किसी ओर धरा में जमा लिया। प्रगति अपने एक मात्र बेटे और एक ही बेटी से बहुत प्यार करते हैं। ये उम्मीद लगाए बैठें हैं इनके बेटा और बेटी अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जिए लेकिन एक समय सीमा में रहकर जो कभी कभी इनके परेशानी का कारण बन जाता हैं और पंडित जी से इनकी तू तू मैं मैं बोले तो ग्रह युद्ध हों जाता हैं। बम गोले नहीं बरसते बस वाणी युद्ध होता हैं। पण्डित जी इन्हे प्यार से भाग्यश्री कहते हैं। क्यों कहते यहां तो पण्डित अटल पांडे जी ही जानते हैं।


प्रगति सीधा बेड के दूसरे सईद रखी एक छोटी मेज के पास गई। जहां पंडित अटल पांडे जी की घड़ी विराजमान थी। उठाकर पण्डित जी को "अपकी न आंखो का नंबर बड़ गया हैं। आप नंबरों वाला कांच आंखो पर चढ़ा लिजिए जिससे अपको बड़ा बड़ा और दूर तक दिखेगा"। बोलकर घड़ी उनके हाथ में थमा दिया।


घड़ी लेकर पहनते हुए " हमारे दोनों अलाद्दीन के जिन और जिनी चिराग से बाहर निकले की नहीं या उन्हें चिराग घिस कर बाहर निकलना पड़ेगा।"


पण्डित जी के बोलते ही प्रगति समझ नहीं पाई ऐसा क्यों बोला गया। जब समझ आया बिना कुछ बोले प्रगति कमरे से बाहर निकलने लगीं, प्रगति को जाते देखकर "तुम्हारा यूं चुप चाप जाना मतलब दोनों अभी तक उठे नहीं भाग्यश्री उन्हें सिखाओ सुबह जल्दी उठना सेहत के लिए लाभ दायक हैं न कि हानिकारक।"


प्रगति जाते जाते रुक गई, पलटी और बोली

"क्या आप भी सुबह सुबह अपना पोथी पुराण लेकर बैठ गए। प्रत्येक दिन समय से उठ जाते हैं। एक आध दिन लेट उठने से उनका सेहत बिगड़ नहीं जाएगा। आप ख़ुद को देखिए आप तो रोजाना समय से उठते हों फ़िर भी अपकी तोंद बुलेट ट्रेन की भाती फुल रफ्तार से बड़ी जा रही हैं।


पण्डित जी तोंद पर हाथ फिरते हुए " देखो भाग्यश्री मेरी बड़ी हुई तोंद को कुछ मत कहना ये मेरे प्रतिष्ठा की प्रतीक हैं। मेरे जीवन भर की जमा पूंजी इसी में कैद हैं। तुम मेरी तोंद की बुराई करना छोड़, जाकर जिन और जिनी को चिराग से बाहर निकालो।"


प्रगति बिना कुछ बोले अंचल में मुंह छुपाए हंसते हुए चल देती हैं। वही दुसरे कमरे में एक जवान लडका बोले तो 27-28 साल का एक लड़का दीन दुनिया के उल जुलूल रश्मो से बेखबर लवों पे मुस्कान और तकिए को बगल में दबाए, सपनों की दुनिया के खुबसूरत वादियों में खोकर सोया हुआ था। लडका ही जानें सपने में किसे देख रहा था। पारी थी या फ़िर कोई चुड़ैल लेकिन लवों की मुस्कान से इतना तो मालूम चलता हैं। भाई जी किसी खुबसूरत पारी की सपना देखने में खोया हुआ था।


प्रगति लडके के कमरे के पास पहुंच कर दरवाजे पर हाथ रखती हैं। दरवजा रूक रूक कर चायां….चायां….चायां की आवाज करते हुए खुल जाता हैं। जैसे दरवाजा कहना चहती हों "मेरे अस्ति पंजर सब कस गए हैं। मूझसे ओर कब तक काम करवाओगे अब तो मुझे छुट्टी दे दो।"


बिना जोर जबर्दस्ती के दरवाजा खुलते देखकर प्रगति बुदबुदाती हैं " ये लडका भी न इतना बड़ा हो गया हैं अकल दो कोड़ी की नहीं हैं। दरवजा खुला रखकर ही सो गया"।


पहला कदम अदंर रखते ही प्रगति की नजर लडके पर पड़ती हैं। लडके को बिंदास सोया हुआ देखकर प्रगति के लवों पर मंद मंद मुस्कान तैयर जाती। लडके के पास जाकर राघव….. राघव…. राघव…. उठ जा बेटा।


जी ये हैं श्रीमान राघव पांडे कहानी का हीरो, अटल और प्रगति जी का सुपुत्र इनके आदत का किया ही कहने चिराग लेकर ढूंढों तब भी इनके जैसा चरित्रवान और गुणी लडका नहीं मिलेगा। लेकिन महाशय बाप के नजरों में बिल्कुल भी चरित्रवान नहीं हैं। अटल जी को इसके सभी कामों में खामियां ही नजर आता हैं। आए भी क्यो न महाशय जो भी काम करने जाते हैं अच्छा करने के जगह ओर बिगड़ देते हैं। महाशय पेशे से इलेक्ट्रिक इंजीनियर हैं। जो की बाप से लड़ झगड़ कर बना था। अटल जी चहते थे महाशय ज्योतिष विज्ञान की पढ़ाई करके एक नामी विद्वान बाने और खानदानी पेशे को सुचारू रूप से चलाए लेकिन महाशय बाप की उम्मीद को किनारे रखकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर बन गए। अटल जी शक्त खिलाफ थे लेकिन प्रगति ने अपने बेटे का साथ दिया और भूख हड़ताल पर बैठ कर अटल जी से बाते मनवा ही लिया। अटल जी आज कल कुछ ज्यादा ही चिड़े रहते हैं कारण राघव अभी तक बेरोजगार बैठा हैं। जिसके लिए कभी कभी ताने भी सुनने को मिलता हैं। अब अटल जी को कौन समझाए इस जमने में नौकरी की इतनी मारा मारी चल रहा हैं। एक पोस्ट की वेकेंसी निकलता हैं तो अप्लाई करने वाले हजारों खड़े हों जाते हैं। नौकरी ढूंढते ढूंढते राघव की चप्पलें घिस चुका हैं। लेकिन नौकरी हैं कि राघव से दुर भागती जा रही हैं।


प्रगति बार बार हिला डुला कर राघव को आवाज देती हैं। लेकिन राघव बिना सुने बिना उठे सपनो की खूबसूरत वादी में खोया हुआ था। जगाने की इतनी कोशिश करने के बाद भी जब राघव नहीं उठता तब बेड के किनारे मेज पर रखा पानी से भरा जग उठाकर राघव के चहरे पर उड़ेल देती। पानी की धारा चहरे को छुने से राघव " क्या करती हों जानेंमन क्यों सुबह सुबह बिन बदल बरसात कर रही हों।"


प्रगति "आहां" मुंह पर हाथ रख मोटी मोटी आंखे बनाकर राघव को देखती है फ़िर कान पकड़कर " नालायक मां को जानेमन बोलता हैं शर्म हया सब बेच खाया हैं" बोलती हैं।


राघव जो अभी भी हल्की हल्की नींद में था। कान खींचे जाने से दर्द होता हैं। जिससे राघव की नीद पूरी तरह टूट जाता हैं। प्रगति को कान पकड़े देखकर " मां आप कब आए कान छोड़ो दर्द हों रहा हैं।"


प्रगति कान ओर कसकर खींचते हुए बोली " क्यों छोडूं ये बता तूने मुझे जानेमन क्यों कहा निर्लज बालक मां को जानेमन बोलता हैं।"


राघव " मां अपको क्यो कहूंगा आप तो मेरी मां जगद जननी हों, जानेंमन तो अपकी बहु को कहा था। कितनी अच्छी अच्छी बाते कर रहा था फिर अचानक उसे क्या सूजा मेरे चहरे पर पानी से भरा गिलास उड़ेल दिया।"


प्रगति समझ जाती राघव सपने में प्रियतमा से मिलाप करने में व्यस्त था। इसलिए उठ नहीं रहा था। जब उठा तो उसके मूंह से जानेंमन निकाल गया। कान छोड़कर प्रगति बोलती " जा जल्दी तैयार होकर बाहर आ तेरा बाप उम्मीद का पिटारा लिए वेट कर रहा हैं। पाता नहीं तेरे लिए आज कौन कौन सी उम्मीदें उनके पिटारे से निकले।"


राघव " पापा के पिटारे में इतनी उम्मीदें आती कहा से, रस्ता पता होता तो एक बड़ा सा खड्डा खोद कर रस्ता ही बंद कर देता।"


राघव उठाकर बाथरूम जाता, प्रगति वह से निकलकर तीसरे कमरे की और जाती प्रगति के पहुंचते ही दरवाजा खुलता एक विश्व सुंदरी लडक़ी प्रगति को देखकर बोलती " गुड मॉर्निंग मम्मा,


प्रगति लडक़ी के माथे पर चुम्बन देकर बोली " वेरी वेरी गुड मॉर्निंग तन्नू बेटा"


जी ये है अटल और प्रगति की सुपुत्री तनुश्री पांडे दिखने में बला की खूबसूरती अटल जी ने पोथी खंगालकर इनकी खूबसूरती के साथ मेल करता हुआ नाम तनुश्री पांडे रखा। बाप को इनसे भी काम उम्मीद नहीं हैं। लेकिन बाप की उम्मीदों पर खरा उतरने में इनसे भी कभी कभी भूल हों जाती हैं। अभी पोस्ट ग्रेजुएशन कर रही हैं। कॉलेज गोइंग लडक़ी हैं तो लडके इनकी खूबसूरती के दीवाने बनकर इनके आगे पीछे भंवरे की तरह मंडराते रहते हैं। लेकिन मजाल जो कोई भांवरा इस फूल को छू पाए। ऐसा नहीं की इनका मन नहीं करता, करता हैं कोई इनका भी दीवाना परवाना हों जिसके साथ ये प्रेम की दो बोल बोले प्रेम गीत गुनगुनाए। लेकिन नए युग के लडको का किया ही कहना जब तक फूल का रस नहीं चूस लेते तब तक तू मेरी बाबू हैं, तू मेरी सोना हैं, तू ही दिल की धड़कन हैं, तू ही मेरी चलती सांसों की वजह हैं और एक दो बार रस का मजा ले लिए फिर चल हट पगली तू कौन हैं, तुझे जनता कौन हैं, तुझसे मेरा वास्ता किया हैं। इसलिए लडको से दूरी बनाकर रखती हैं। इसके पीछे एक और करण हैं वह हैं अटल जी, अटल जी को इनसे उम्मीद हैं कि ये कोई ऐसा काम न करें जिससे उनकी नाक पर बैठी मक्खी की तरह कोई काला धब्बा न लग जाएं। इसलिए तनुश्री बाप के नाक को काला होने से बचाने के लिए लडको से ओर ज्यादा दूरी बनाकर रखती हैं। तन्नू राघव से तीन साल छोटी हैं। तन्नू नाम इनको राघव ने दिया, राघव इनसे बहुत ज्यादा प्यार करता हैं और इनकी आंखो से बहते अंशु नहीं देख पाता। लेकिन राघव का दिया नाम अटल जी को मंजूर नहीं इसलिए उन्होंने शक्त चेतवानी दिया था। तनुश्री को तन्नू नाम से कोई न बुलाए। बस अटल जी के सामने तन्नू नाम से कोई नहीं बुलाता बाकी उनके पीछे सभी तन्नू नाम से बुलाते हैं।


तन्नू "मम्मा भईया उठ गए देर से उठे तो पापा बहुत डाटेंगे"।


प्रगति " बेटा तेरे भईया उठ गए हैं। तू चल राघव आ जाएगा।


तन्नू "मम्मा आप जाओ मैं भईया के साथ आती हूं."


प्रगति तन्नू के गाल पर एक ओर चुम्बन देती हैं और चाली जाती हैं। तन्नू राघव के रूम की ओर चल देती हैं।



अभी कुछ ओर किरदारों की एंट्री होगा जिनके इर्द गिर्द यह कहानी भंवर बनाएगी। जब उनका पार्ट आयेगा तब उनका भी इंट्रोडेक्शन ऐसे ही दूंगा। पत्रों के इंट्रोडेक्शन देने का यह तरीका आप पाठकों को कैसा लगा जरुर बताना। बताएंगे तभी आगे की कहानी पोस्ट करुंगा वरना कहानी यहीं पर ही दी एंड, फिनीश, टाटा बाय बाय,
:congrats: नई कहानी शुरू करने लिए
बीबहुत ही शानदार और सुन्दर अपडेट है
 
Top