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Fantasy WO BHAYANAK RAAT

gauravrani

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समय रात्री 11:40 11 जनवरी 2004 अमावस की एक मनहूस काली रात. चारो तरफ घनघोर अँधेरा. एक सुनसान सड़क और सड़क के दोनों तरफ फैला हुआ एक घना जंगल. सड़क पर तेजी से दौडती हुयी एक कार. कार में आर्मी से रिटायर्ड मेजर संग्राम सिंह अपनी पत्नी अर्चना, बेटे राहुल और बहू गीता के साथ अपने एक दोस्त की बेटी की शादी अटेंड करके वापस लौट रहे थे. “पापा आज शादी में बहुत मजा आया. आपने शर्मा
 

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जी को देखा कितना हंगामा किया उन्होंने ड्रिंक करने के बाद?” राहुल ने कार ड्राइव करते हुए कहा. राहुल की पत्नी गीता उसकी बगल वाली सीट में बैठी थी और पिछली सीट पर उसके माँ और पिता यानि संग्राम सिंह और अर्चना बैठे हुए थे. सभी लोग काफी थके हुए थे. “बेटा आजकल ये सब चीज़ें शादीयों और पार्टियो में मामूली बात हो गयी हैं.” संग्राम सिंह ने राहुल की बात का जवाब दिया. जहाँ बाप और बेटे पार्टी की गुफ्तगू में लगे थे वही संग्राम सिंह की पत्नी अर्चना किसी और ही विचारों में खोयी हुयी थी. “आप लोग बेकार की बातें छोडिये” - उसके स्वर में घबराहट थी “आज इतनी काली घनी रात है, और ऊपर से ये मनहूस अमावस, मुझे न जाने क्यों डर लग रहा है. ये सड़क और ये जंगल तो ख़त्म होने का नाम ही नही ले रहे हैं. हे भगवान! जल्दी से हम लोग घर पहुँच जाएँ बस. '' एक पल के लिये बाप-बेटे अपनी बातों से रुक गए और अर्चना को तांकने लगे. अर्चना ने एक लंबी सांस ली और आगे कहा ''मैंने तो आप लोगों से पहले ही कहा था कि घर के लिए जल्दी निकलना चाहिए, पर आप बाप-बेटे मेरी सुनते ही नहीं हैं.
 

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इतनी रात में इस काले घने जंगल से फैमिली के साथ जाना आप दोनों को कोई रिस्क नहीं लगता?” अर्चना बोलते बोलते दोनों तरफ से घिरे हुए काले जंगल को उस दौड़ती हुई कार की खिड़की से झाँक कर निहार रही थी. “लो जी तेरी मम्मी फिर से शुरू हो चुकी अब तो.’’ संग्राम सिंह ने मुँह बिचकाते हुए कहा. “क्या मम्मी! आप भी न...” राहुल ने कार ड्राइव करते हुए कहा. “अरे आप क्यों डर रही हैं मम्मी?” गीता यानी राहुल की पत्नी और संग्राम सिंह की बहू ने बीच में ही कहा “अरे पापा और राहुल हमारे साथ तो है न डरने की क्या बात है फिर!” संग्राम सिंह जो कि अर्चना के साथ बैठे हुए थे बोले, “बेटा तुम नही जानती तुम्हारी मम्मी को डरने की पुरानी बीमारी है इनका बस चले तो हम लोग घर में दुबक कर ही बैठे रहें बस. क्यूँ जी सही कहा ना मैंने?” संग्राम सिंह ने अर्चना को देखकर आँखे मटकाई. “हा हा हा!” इसी के साथ राहुल और संग्राम सिंह के ठहाके गूँज उठे. जिसमे गीता की हलकी हंसी भी शायद शामिल हो चुकी थी. “अरे मेरी जान! आर्मी में इससे भी भयानक-भयानक
 

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जंगलों में रात-रात भर मैं कई मिशन पर जा चुका हूँ...अरे भाई ये अमावस-पूनम...की रात...क्या है ये सब? लगता है तुम्हारा विज्ञान बहुत कमज़ोर हैं. अरे सब रात एक जैसी होती है...चाँद निकला पूरा तो...पूनम की रात..और पूरा डूब गया तो अमावस की रात...वैसे सच कहूँ तो अमावस की रात तो अच्छी रहती है, अँधेरे में दुश्मन फौजी आपको देख भी नहीं सकता. हा हा हा...” संग्राम सिंह के ठहाकों के साथ गीता और राहुल भी फिर से हंस पड़े. अर्चना कसमसाकर रह गई. पर वो अन्दर से कुछ घबराई हुई थी और शायद अपने किसी डर को ज़ाहिर नहीं कर पा रही थी. कहतें हैं डरना कोई बुरी बात नहीं, पर वो ‘बुरी’ बात तब हो जाती है जब आपका डर और भी बुरा हो जाए. कार में फिर से ठहाकों के बीच बातें होने लगी जिसमे अर्चना शामिल नही हो पायी. शायद वो डरी हुयी थी अपनी सोच में आती उस भयानकता के कारण ***** और तभी….
 

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कुछ ही पलों के बाद जैसे सब कुछ बदल सा गया… सड़क पर दौड़ रही उनकी कार का संतुलन बिगड़ा, कार अचानक से लहराई, जैसे ड्राइवर के बस से बाहर आ गयी हो और तभी एक जोरदार झटका खाकर कार सड़क के किनारे एक पेड़ से जा टकराई. ये सब एकदम से हुआ जिसे कोई समझ ही नहीं पाया. दुर्घटनाएं सुना है अचानक से ही होती है. धड़ाम धाड़... आआआआआआअह आह... … एक्सीडेंट की एक ज़ोरदार आवाज़ के कुछ ही पल के बाद खामोशी सी छा चुकी थी, जंगल में सन्नाटा जैसे फिर से पसर गया था. वो काला जंगल फिर से भयानकता में डूबने लगा था. उस भयानक टक्कर के बाद कार बंद हो चुकी थी. थोड़ी देर बाद राहुल जो कि कार चला रहा था, सँभलते
 

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हुए कार से बाहर आ चुका था और दूसरी तरफ से कार का दरवाज़ा खोलने की कोशिश करने लगा. “मम्मी...पापा...गीता आप लोग ठीक तो हैं ना. जल्दी कार से बाहर आइये.” राहुल ने कार का दरवाजा खोला और कार से निकल कर बाकी सभी को भी बाहर निकालने लगा. कार किसी पेड़ से टकरा गयी थी. कुछ ही समय बाद अब सब लोग कार से बाहर आ चुके थे. “आह्ह्ह...रा.. राहुल!” संग्राम सिंह अपना घुटना पकड़कर कराहते हुए बोले. अर्चना और गीता को कोई ख़ास चोट नहीं आई थी. ***** “क्या हुआ था बेटा? गाड़ी से कुछ टकराया था क्या?” “पता नही ऐसा ही कुछ अहसास हुआ था.” राहुल ने घबरायी हुयी आवाज़ में कहा. “'क्या मतलब सच में कोई टकराया था?” “पापा... पता नही! मुझे भी नहीं पता, हम बाते कर रहे थे और अचानक ऐसा लगा जैसे कोई चीज़ सड़क पर थी जो कार से टकराई...और ये दुर्घटना हो गयी...” राहुल
 

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संग्राम सिंह को खड़े होने में मदद करते हुए बोला. सच तो ये है घबराया तो वो भी था. “भगवान का लाख-लाख शुक्र है हम सब ठीक है.” अर्चना गीता का हाथ पकड़ कर बोली. किसी को भी कोई खास चोट नहीं आई थी. उनके पीछे और आगे वही काला सन्नाटों से भरा हुआ जंगल और बीच में अंधेरी सड़क नज़र आ रही थी. संग्राम सिंह ने पलट कर सड़क की तरफ देखा पर सड़क पर उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया. “सड़क पर कोई था. मैं समझा नहीं बेटा, सड़क पर तो कोई भी नहीं दिखाई दे रहा है न ही आसपास कोई परछाई. फिर तुम टकराए किस चीज़ से...मतलब कार किस चीज़ से टकराई थी?” संग्राम सिंह ने राहुल को अजीब तरह से घूरते हुए कहा. राहुल का चेहरा घबराहट से लाल हो चुका था जो कार की जलती हुई इंडिकेटर में रह-रह कर दिख रहा था. “पता नही पापा ऐसा लगा कोई था सड़क पर...लेकिन मुझे कोई दिखाई नही दिया लगता है ऐसा लगा जैसे कोई अचानक से कार के सामने आया होगा...मुझे कुछ ठीक से याद नही आ रहा पापा पर...उसे
 

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बचाने के साथ ही ये सब हुआ... पर सच में वहाँ सड़क पर कोई तो था जो कार से टकराया.” राहुल की इस तरह की बात सुनकर सभी का घबराना और सवाल पूछना कोई अजीब बात नहीं थी. गीता भी काफी घबरायी हुयी थी “अगर ऐसा था तो मैं भी सामने बैठी थी मुझे तो कुछ भी नहीं दिखाई दिया राहुल.” “मैं सच कह रहा हूँ. हो सकता है हम बात करने में इतने मशगूल हो गए थे कि ठीक से ध्यान न दे पाए हो...पर मुझे पूरा यकीन है कि कुछ तो था, क्योंकि टकराने की आवाज़ भी हुई थी.” राहुल अब भी परेशान था और पेड़ से भिड़ी हुई अपनी कार को घूर रहा था. सभी लोग ये जानने में लगे थे आखिर ये सब अचानक कैसे हुआ था. “बेटा लगता है तुम्हें वहम हुआ है... तुम काफी थक गये हो बाते करते हुए तुमने ध्यान नही दिया होगा और गाड़ी बहक गयी होगी. या कोई गड्ढा आ गया होगा. वैसे भी काफी अँधेरा है...अब जाने दो वहाँ तो कोई भी नही है, और भगवान का शुक्र हैं हम सब सही सलामत है, चलो देखते हैं गाड़ी तो ठीक है न. वर्ना आज रात इस काले घने जंगल में तेरी मम्मी की भूतों की कहानियां सुन के बितानी
 

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पड़ेगी...इस छोटे से एक्सीडेंट के पीछे फिर तेरी मम्मी कोई भयानक कहानी रच लेगी.” संग्राम सिंह ने चिढ़ते हुए कहा और वो कार की तरफ बढे और ड्राइविंग सीट पर बैठते हुए उन्होंने कार को स्टार्ट करने की कोशिश की. आखिरकार कोई फौजी ऐसे छोटे-मोटे एक्सीडेंट से कैसे घबरा सकता था. कार चालू करने की भरसक कोशिश की गयी पर इंजन आवाज़ करके शांत हो गया और इसी के साथ पूरा जंगल भी एक पल को शांत हुआ लगने लगा. “बेटा ये कैसी सुनसान सड़क है?” अर्चना सड़क के दोनों तरफ देखते हुए बोली, “न कोई रौशनी और न ही कोई गाड़ी आ रही है, मुझे तो बहुत डर लग रहा है” अर्चना शायद उस कहानी को रचने लगी थी जिसका ज़िक्र अभी संग्राम सिंह ने किया था. “अरे...मम्मी! आपने ही तो कहा था आज अमावस की रात है तो अँधेरा तो होगा ही, और वैसे भी ऐसे जंगलों में रोड लाइट्स तो होती नहीं है न मम्मी, आप प्लीज ये सब सोचना बंद करो.” राहुल ने कहा क्योंकि वो जानता था अर्चना के डरे हुए बर्ताव को और अभी समय वहां से निकलने का था इन कहानियों का नहीं. तभी संग्राम सिंह से कार स्टार्ट हो गयी और वो कार
 

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को रिवर्स गेयर में डालकर पीछे सड़क पर ले आये. राहुल अर्चना और गीता को कार की तरफ लेकर आया. “चलो सब लोग गाड़ी में बैठ जाओ फटाफट, शुक्र है बोनट और हेडलाइट्स के अलावा सब ठीक है और ये स्टार्ट हो गयी है.” वाकई कार को ज्यादा नुक्सान नहीं हुआ था और अब कार स्टार्ट हो चुकी थी. संग्राम सिंह ऐसे मुस्कुराये जैसे डूबते हुए इंसान को नाव मिल गयी हो वो भी पूरी की पूरी. और अब इसी नाव में उन्हें अपनी फॅमिली को जंगल पार करवाना था. ***** “भगवान का लाख-लाख शुक्र है जो गाड़ी चालू हो गयी.” अर्चना ने हाथ जोड़ कर कहा. अर्चना संग्राम सिंह के साथ आगे की सीट पर बैठ गई और इस बार राहुल और उसकी पत्नी गीता पीछे की सीट पर बैठे. उस घने जंगल की दशा ऐसी थी कि कोई भी वहां से जल्दी ही निकलना चाहेगा. गाड़ी वापस सड़क पर थी- बीचोंबीच. जंगल के सन्नाटे में इंजन की घुन-घुन आवाज़ किसी जानवर की गुर्राहट की तरह गूँज रही थी.
 
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