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Incest ससुर ने ऑटो में जबरदस्ती मुठ मरवाई

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macssm

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घर आने तक काफी अँधेरा हो गया था. तो मेरे बेटे को भी नींद आ रही थी, सो हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.

शर्म के मारे मैं बाबूजी से आँख नहीं मिला पा रही थी,

बाबूजी मेरी तरफ देख रहे थे पर मैंने उन्हकी तरफ ध्यान नहीं दिया. बाबूजी कुछ मायूस से लग रहे थे मेरे बर्ताव के कारण.

मेरी चूत में तो बाबूजी की हरकतों से आग लगी हुई थी, मुझे जल्दी थी कि कब मैं अपने कमरे में जाऊं और मेरे पति मेरी चुदाई कर दें.
93728563_011_c26c.jpg

पति भी अब तक थोड़ा होश में आ चुके थे. रात में पति ने चुदाई तो करी, आखिर उन्हें भी मुझे चोदे हुए कितने दिन हो गए थे. पर ना जाने क्यों कुछ मजा नहीं आया.

पति का लण्ड हाथ में पकड़ा तो ऐसे लगा कि जैसे किसी बच्चे का लौड़ा हो. न जाने क्यों बार बार बाबूजी के लण्ड से ही मन तुलना करता रहा. और पतिदेव का लौड़ा तो बाबूजी के लण्ड के सामने कहीं ठहरता ही नहीं था.
74523018_043_2276.jpg

पति भी 2 - 3 मिनट धक्के मार कर झाड़ गए। फिर मेरा मन बाबूजी के लंड पर चला गया, कितना मोटा और गर्म था. कितनी देर तक में उसे मुठ मारती रही तब कहीं जा कर उसने अपना पानी छोड़ा था. और यहाँ मेरे पति का तो दो मिनट में ही काम तमाम हो गया है.

अगले दिन भी मैं बाबूजी से कटती ही रही. मैंने उनसे कोई बात भी नहीं करि. बस उन्हें चुपचाप नाश्ता और खाना वगैरा दे दिया. मुझे मन मैं अब ग्लानि अनुभव हो रही थी. जिंदगी में मैंने पहली बार किसी दुसरे मर्द का लौड़ा पकड़ा था. और पकड़ा ही नहीं था बल्कि उनकी मुठ भी मारी थी.
77441418_013_1e40.jpg

चाहे यह सब बाबूजी ने जबरदस्ती किया था. पर सबसे बड़ी बात तो ऊपर से यह थी कि यह सब करने में मुझे भी मजा आया था. उन्होंने मेरी चूत में ऊँगली भी की थी और उसका भी मैंने आनंद लिया था.

मुझे यह अब बुरा लग रहा था. अपने आप पर शर्म आ रही थी.

बाबूजी भी मेरा बदला हुआ मूड देख रहे थे. उन्होंने भी कोई शरारत नहीं करि. हालाँकि शायद मेरे मन में कहीं न कहीं दबी हुई भावना थी कि बाबूजी कुछ छेड़छाड़ करें. पर वो भी शांत थे.

खैर रात में फिर वही हुआ, मेरे पति शराब पी कर आये और कुछ चुदाई ना कर सके. ऐसा ही दो तीन दिन तक चलता रहा. अब मुझे बाबूजी का वो मोटा और सख्त लण्ड ही याद आ रहा था.

90685136_027_0697.jpg

पर एक पतिव्रता नारी होने के कारण मन को समझा रही थी.

चौथे दिन सुबह ही जब हम अभी चाय ही पी रहे थे कि पति को फिर से ऑफिस से फोन आया कि उन्हें 3 - 4 दिन के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना था. पति ने मुझे उनका बैग पैक करने को बोल दिया.

मेरा तो मन बुझ गया. पर बाबूजी बड़े खुश लग रहे थे. मैं समझ सकती थी उनकी ख़ुशी का राज.

थोड़ी देर बाद पति तो चले गए और मेरा बेटा भी स्कूल चला गया.

घर में अब मैं और बाबूजी ही थे. मुझे लग रहा था कि अब बाबूजी कुछ करेंगे. पर मैं वैसे ही चुप रही और उनसे कोई बात नहीं करी.

थोड़ी देर बाद बाबूजी अपने कमरे में चले गए. और पांच मिनट बाद वापिस आये. उन्होंने मुझे चाय देने को कहा.

चाय पीने के बाद जब मैं खाली कप उठाने गयी तो उन्होंने कप में एक कागज रख दिया.

मेरा दिल धड़क गया. जैसे किसी कॉलेज के लड़की को किसी चाहने वाले ने लव लेटर दिया हो.

मैं हैरान हो गयी और धड़कते दिल से किचन में आ गयी. बाबूजी भी फिर अपने कमरे में चले गए.
writing-letter.jpg

किचन में आते ही मैंने वो लेटर खोला, उसे पढ़ने लगी , लिखा था.

"बहुरानी सुषमा! कुछ दिनों से हम ससुर बहु आपस में छेड़खानी कर रहे थे. मुझे लगा कि तुम मुझमे इंट्रस्ट ले रही हो. हम दोनों ने उस दिन ऑटो में भी एक दुसरे के शरीर का आनंद लिया था. और जिसमे तुमने भी खुल कर साथ दिया और मजा लिया था. पर उस दिन के बाद तुम मुझसे कट कर रह रही हो. शायद तुम उसे ठीक नहीं समझ रही. मैं भी समझ नहीं पा रहा कि तुम मुझसे वो वाला सम्बन्ध रखना चाहती हो या नहीं. तुम्हारा व्यवहार मुझे समझ नहीं आ रहा है. मैं तो तुमसे सेक्स सम्बन्ध बनाना चाहता हूँ पर मैं यह सब तुम्हारी मर्जी के बिना और जबरदस्ती नहीं करूँगा. मैं आज रात तुम्हे अपनी चॉकोबार चुसवाना चाहता हूँ और तुम्हारी आइसक्रीम भी चाटना चाहता हूँ. यदि तुम भी मुझसे प्यार करती हो और मेरे साथ यह रिश्ता चालु रखना चाहती हो तो आज हरे रंग की मैक्सी पहन लेना और यदि तुम नहीं चाहती तो कोई भी और रंग की. मैं तुम्हारा जवाब समझ जाऊंगा. यदि तुम चॉकोबार चूसना चाहती हो तो आज रात मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगा और हरी मैक्सी अपने हाथ से उतार कर तुम्हे बताऊंगा कि एक असली मर्द क्या होता है और असली मजा क्या होता है. वर्ना मैं समझ जाऊंगा कि तुम यह सम्बन्ध ख़त्म करना चाहती हो, तो मैं तुम्हारे निर्णय से सहमत हूँ. हम आज तक जो भी कुछ हुआ उसे भूल जायेंगे और मैं आज के बाद तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा. तुम्हारी मर्जी और साथ के बिना कुछ नहीं होगा. तो या तो आज के बाद हम एक दुसरे के शरीरों से खेलेंगे या कभी नहीं. मुझे तुम्हारे मैक्सी पहन कर दिए गए जवाब का इन्तजार रहेगा. क्या मैं आज तुम्हारी हरी मैक्सी खोलूंगा या तुम कोई और पहन कर सोऊगी? यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ता हूँ. ."

लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग घूम गया. मेरा मन अभी पति और ससुर में डोल रहा था की बाबूजी ने यह बम फोड़ दिया.

मैं वहीँ अपना माथा पकड़ कर बैठ गयी.

एक तरफ बाबूजी जैसे जवान का साथ और दूसरी तरफ समाज की बंदिशें. मैं कहाँ जाऊँ? मैं अभी उन्हें तोड़ने को राजी शायद नहीं थी.

तब तक बाबूजी भी दुबारा ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गए थे. यह तो पक्का था कि यदि मैं राजी न होऊं तो बाबूजी जबरदस्ती या बलात्कार नहीं करने वाले थे.

मेरा नहाने का टाइम हो रहा था. बाबूजी के भी दिल की धड़कन बढ़ रही थी.
69337043_015_85ec.jpg

मैं अपने कमरे में गयी और लाल रंग की मैक्सी (घर में सुविधा के लिए मैं अक्सर मैक्सी ही पहनती थी.) ले कर बाथरूम में चली गयी.

नहा कर उसे पहन कर मैं वापिस आयी. बाबूजी तो धड़कते दिल से मेरे रूम की तरफ ही देख रहे थे. जैसे किसी विद्यार्थी का रिजल्ट आने वाला हो.

मैं लाल मैक्सी पहन कर ज्योंही बाहर आयी, बाबूजी का तो मुंह ही उतर गया.
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उनका मुंह बिलकुल छोटा सा हो गया जैसे किसी ने गुब्बारे में से हवा ही निकाल दी हो. बेचारे चुप ही हो गए. उनका इस तरह का मुंह देख कर मेरे दिल में भी हलचल मच गयी.

ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी आशिक़ के प्यार को मेहबूब ने ठुकरा दिया हो. बिलकुल वैसा ही हाल बाबूजी का भी था.

उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकला, बेचारे किसी हारे हुए जुआरी की तरह उठ कर अपने कमरे में चले गए.
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बाबूजी को इस तरह देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ. सारा दिन बाबूजी अपने कमरे में ही लेटे रहे. बस खाना खाने आये और चुपचाप खाना खा कर फिर अपने कमरे में चले गए.

बाबूजी को इस तरह देख कर मेरे दिल में भी कुछ कुछ हो रहा था. मैं सोचने लगी कि मैंने जो निर्णय लिया वो ठीक था या गलत.

क्या मुझे बाबूजी का प्यार ठुकरा देना चाहिए था या नहीं. सारा दिन मन में यही विचार चलते रहे.

शाम को मेरा बेटा भी आ गया और ड्राइंग रूम में बाबूजी को देख कर उन्हें कमरे से बुला लाया और उन्हें वहां अपने साथ बिठा कर खेलने लगा. बाबूजी भी बच्चे का मन रखने के लिए बैठ गए.,

मेरा भी मन ना जाने क्यों उदास था. रात को खाना खाने के बाद वो सोफे पर बैठे थे.

मैं किचन में बैठी सुबह से सोच रही थी. बेटे ने मुझे उनके पास आ कर बैठने के लिए आवाज दी.

मैंने किचन से ही जवाब दिया

"बेटा! मेरे ऊपर सब्जी गिर गयी है, मैं जरा नहाने जा रही हूँ. अभी आती हूँ."

यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी, हुआ तो कुछ नहीं था.

मैंने अपनी अलमारी खोली और तौलिया उठाया. फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने जैसे अपने आप एक हरे रंग की मैक्सी उठा ली और बाथरूम में घुस गयी. शायद मेरे दिल ने बाबूजी का प्यार स्वीकार कर लिया था.
green-dress-isolated.jpg

आज मैं अच्छी तरह से नहाना चाहती थी. खूब मल मल कर नहाया और फिर कमरे में आ कर थोड़ा मेकअप भी किया. हरी मैक्सी के ऊपर सेंट लगाया और फिर शर्माती हुई ड्राइंग रूम मैं आ गयी.
41839645_004_7fb9.jpg

शर्म के कारण मेरे पाँव जैसे मन भर के हो गए थे. बाबूजी ने मुझे हरी मैक्सी पहने देखा तो उनका मुंह एकदम ऐसे चमक गया जैसे कोई हजार वाट का बल्ब जल गया हो. ख़ुशी के मारे उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकली. उनका मुंह और ख़ुशी देख कर मेरे मुंह पर भी मुस्कराहट आ गयी.
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बाबूजी तो कुछ बोल ही ना पाए बस मेरी हरी मैक्सी ही देखे जा रहे थे. शर्म के कारण मैंने अपनी नजरें उन से ना मिला पायी और जमीन की तरफ देखती रही.
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मेरे बेटे ने भोलेपन से पुछा

"मम्मी! आप ने मैक्सी क्यों चेंज कर ली?"

मैंने बाबूजी की तरफ देखते हुए कहा

"बेटा! मुझे लगा की मुझे हरे रंग की मैक्सी ज्यादा अच्छी लगेगी। पता नहीं क्यों मेरा इस मैक्सी को पहनने का मन किया रात में."
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यह कह कर मैंने बाबूजी की तरफ देखा, उनकी ख़ुशी तो छुपाये नहीं छुप रही थी. मेरे से उनके सामने खड़ा नहीं रहा जा रहा था. मैं शर्माती हुई अपने कमरे में चली गयी.
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Super duper hot 🔥 🥵 😍 update diya hai ✍️ 👌 😍 😋 👙👙👙💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦💦🔥💦💦💦
 

Curiousbull

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घर आने तक काफी अँधेरा हो गया था. तो मेरे बेटे को भी नींद आ रही थी, सो हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.

शर्म के मारे मैं बाबूजी से आँख नहीं मिला पा रही थी,

बाबूजी मेरी तरफ देख रहे थे पर मैंने उन्हकी तरफ ध्यान नहीं दिया. बाबूजी कुछ मायूस से लग रहे थे मेरे बर्ताव के कारण.

मेरी चूत में तो बाबूजी की हरकतों से आग लगी हुई थी, मुझे जल्दी थी कि कब मैं अपने कमरे में जाऊं और मेरे पति मेरी चुदाई कर दें.
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पति भी अब तक थोड़ा होश में आ चुके थे. रात में पति ने चुदाई तो करी, आखिर उन्हें भी मुझे चोदे हुए कितने दिन हो गए थे. पर ना जाने क्यों कुछ मजा नहीं आया.

पति का लण्ड हाथ में पकड़ा तो ऐसे लगा कि जैसे किसी बच्चे का लौड़ा हो. न जाने क्यों बार बार बाबूजी के लण्ड से ही मन तुलना करता रहा. और पतिदेव का लौड़ा तो बाबूजी के लण्ड के सामने कहीं ठहरता ही नहीं था.
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पति भी 2 - 3 मिनट धक्के मार कर झाड़ गए। फिर मेरा मन बाबूजी के लंड पर चला गया, कितना मोटा और गर्म था. कितनी देर तक में उसे मुठ मारती रही तब कहीं जा कर उसने अपना पानी छोड़ा था. और यहाँ मेरे पति का तो दो मिनट में ही काम तमाम हो गया है.

अगले दिन भी मैं बाबूजी से कटती ही रही. मैंने उनसे कोई बात भी नहीं करि. बस उन्हें चुपचाप नाश्ता और खाना वगैरा दे दिया. मुझे मन मैं अब ग्लानि अनुभव हो रही थी. जिंदगी में मैंने पहली बार किसी दुसरे मर्द का लौड़ा पकड़ा था. और पकड़ा ही नहीं था बल्कि उनकी मुठ भी मारी थी.
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चाहे यह सब बाबूजी ने जबरदस्ती किया था. पर सबसे बड़ी बात तो ऊपर से यह थी कि यह सब करने में मुझे भी मजा आया था. उन्होंने मेरी चूत में ऊँगली भी की थी और उसका भी मैंने आनंद लिया था.

मुझे यह अब बुरा लग रहा था. अपने आप पर शर्म आ रही थी.

बाबूजी भी मेरा बदला हुआ मूड देख रहे थे. उन्होंने भी कोई शरारत नहीं करि. हालाँकि शायद मेरे मन में कहीं न कहीं दबी हुई भावना थी कि बाबूजी कुछ छेड़छाड़ करें. पर वो भी शांत थे.

खैर रात में फिर वही हुआ, मेरे पति शराब पी कर आये और कुछ चुदाई ना कर सके. ऐसा ही दो तीन दिन तक चलता रहा. अब मुझे बाबूजी का वो मोटा और सख्त लण्ड ही याद आ रहा था.

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पर एक पतिव्रता नारी होने के कारण मन को समझा रही थी.

चौथे दिन सुबह ही जब हम अभी चाय ही पी रहे थे कि पति को फिर से ऑफिस से फोन आया कि उन्हें 3 - 4 दिन के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना था. पति ने मुझे उनका बैग पैक करने को बोल दिया.

मेरा तो मन बुझ गया. पर बाबूजी बड़े खुश लग रहे थे. मैं समझ सकती थी उनकी ख़ुशी का राज.

थोड़ी देर बाद पति तो चले गए और मेरा बेटा भी स्कूल चला गया.

घर में अब मैं और बाबूजी ही थे. मुझे लग रहा था कि अब बाबूजी कुछ करेंगे. पर मैं वैसे ही चुप रही और उनसे कोई बात नहीं करी.

थोड़ी देर बाद बाबूजी अपने कमरे में चले गए. और पांच मिनट बाद वापिस आये. उन्होंने मुझे चाय देने को कहा.

चाय पीने के बाद जब मैं खाली कप उठाने गयी तो उन्होंने कप में एक कागज रख दिया.

मेरा दिल धड़क गया. जैसे किसी कॉलेज के लड़की को किसी चाहने वाले ने लव लेटर दिया हो.

मैं हैरान हो गयी और धड़कते दिल से किचन में आ गयी. बाबूजी भी फिर अपने कमरे में चले गए.
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किचन में आते ही मैंने वो लेटर खोला, उसे पढ़ने लगी , लिखा था.

"बहुरानी सुषमा! कुछ दिनों से हम ससुर बहु आपस में छेड़खानी कर रहे थे. मुझे लगा कि तुम मुझमे इंट्रस्ट ले रही हो. हम दोनों ने उस दिन ऑटो में भी एक दुसरे के शरीर का आनंद लिया था. और जिसमे तुमने भी खुल कर साथ दिया और मजा लिया था. पर उस दिन के बाद तुम मुझसे कट कर रह रही हो. शायद तुम उसे ठीक नहीं समझ रही. मैं भी समझ नहीं पा रहा कि तुम मुझसे वो वाला सम्बन्ध रखना चाहती हो या नहीं. तुम्हारा व्यवहार मुझे समझ नहीं आ रहा है. मैं तो तुमसे सेक्स सम्बन्ध बनाना चाहता हूँ पर मैं यह सब तुम्हारी मर्जी के बिना और जबरदस्ती नहीं करूँगा. मैं आज रात तुम्हे अपनी चॉकोबार चुसवाना चाहता हूँ और तुम्हारी आइसक्रीम भी चाटना चाहता हूँ. यदि तुम भी मुझसे प्यार करती हो और मेरे साथ यह रिश्ता चालु रखना चाहती हो तो आज हरे रंग की मैक्सी पहन लेना और यदि तुम नहीं चाहती तो कोई भी और रंग की. मैं तुम्हारा जवाब समझ जाऊंगा. यदि तुम चॉकोबार चूसना चाहती हो तो आज रात मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगा और हरी मैक्सी अपने हाथ से उतार कर तुम्हे बताऊंगा कि एक असली मर्द क्या होता है और असली मजा क्या होता है. वर्ना मैं समझ जाऊंगा कि तुम यह सम्बन्ध ख़त्म करना चाहती हो, तो मैं तुम्हारे निर्णय से सहमत हूँ. हम आज तक जो भी कुछ हुआ उसे भूल जायेंगे और मैं आज के बाद तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा. तुम्हारी मर्जी और साथ के बिना कुछ नहीं होगा. तो या तो आज के बाद हम एक दुसरे के शरीरों से खेलेंगे या कभी नहीं. मुझे तुम्हारे मैक्सी पहन कर दिए गए जवाब का इन्तजार रहेगा. क्या मैं आज तुम्हारी हरी मैक्सी खोलूंगा या तुम कोई और पहन कर सोऊगी? यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ता हूँ. ."

लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग घूम गया. मेरा मन अभी पति और ससुर में डोल रहा था की बाबूजी ने यह बम फोड़ दिया.

मैं वहीँ अपना माथा पकड़ कर बैठ गयी.

एक तरफ बाबूजी जैसे जवान का साथ और दूसरी तरफ समाज की बंदिशें. मैं कहाँ जाऊँ? मैं अभी उन्हें तोड़ने को राजी शायद नहीं थी.

तब तक बाबूजी भी दुबारा ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गए थे. यह तो पक्का था कि यदि मैं राजी न होऊं तो बाबूजी जबरदस्ती या बलात्कार नहीं करने वाले थे.

मेरा नहाने का टाइम हो रहा था. बाबूजी के भी दिल की धड़कन बढ़ रही थी.
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मैं अपने कमरे में गयी और लाल रंग की मैक्सी (घर में सुविधा के लिए मैं अक्सर मैक्सी ही पहनती थी.) ले कर बाथरूम में चली गयी.

नहा कर उसे पहन कर मैं वापिस आयी. बाबूजी तो धड़कते दिल से मेरे रूम की तरफ ही देख रहे थे. जैसे किसी विद्यार्थी का रिजल्ट आने वाला हो.

मैं लाल मैक्सी पहन कर ज्योंही बाहर आयी, बाबूजी का तो मुंह ही उतर गया.
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उनका मुंह बिलकुल छोटा सा हो गया जैसे किसी ने गुब्बारे में से हवा ही निकाल दी हो. बेचारे चुप ही हो गए. उनका इस तरह का मुंह देख कर मेरे दिल में भी हलचल मच गयी.

ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी आशिक़ के प्यार को मेहबूब ने ठुकरा दिया हो. बिलकुल वैसा ही हाल बाबूजी का भी था.

उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकला, बेचारे किसी हारे हुए जुआरी की तरह उठ कर अपने कमरे में चले गए.
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बाबूजी को इस तरह देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ. सारा दिन बाबूजी अपने कमरे में ही लेटे रहे. बस खाना खाने आये और चुपचाप खाना खा कर फिर अपने कमरे में चले गए.

बाबूजी को इस तरह देख कर मेरे दिल में भी कुछ कुछ हो रहा था. मैं सोचने लगी कि मैंने जो निर्णय लिया वो ठीक था या गलत.

क्या मुझे बाबूजी का प्यार ठुकरा देना चाहिए था या नहीं. सारा दिन मन में यही विचार चलते रहे.

शाम को मेरा बेटा भी आ गया और ड्राइंग रूम में बाबूजी को देख कर उन्हें कमरे से बुला लाया और उन्हें वहां अपने साथ बिठा कर खेलने लगा. बाबूजी भी बच्चे का मन रखने के लिए बैठ गए.,

मेरा भी मन ना जाने क्यों उदास था. रात को खाना खाने के बाद वो सोफे पर बैठे थे.

मैं किचन में बैठी सुबह से सोच रही थी. बेटे ने मुझे उनके पास आ कर बैठने के लिए आवाज दी.

मैंने किचन से ही जवाब दिया

"बेटा! मेरे ऊपर सब्जी गिर गयी है, मैं जरा नहाने जा रही हूँ. अभी आती हूँ."

यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी, हुआ तो कुछ नहीं था.

मैंने अपनी अलमारी खोली और तौलिया उठाया. फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने जैसे अपने आप एक हरे रंग की मैक्सी उठा ली और बाथरूम में घुस गयी. शायद मेरे दिल ने बाबूजी का प्यार स्वीकार कर लिया था.
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आज मैं अच्छी तरह से नहाना चाहती थी. खूब मल मल कर नहाया और फिर कमरे में आ कर थोड़ा मेकअप भी किया. हरी मैक्सी के ऊपर सेंट लगाया और फिर शर्माती हुई ड्राइंग रूम मैं आ गयी.
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शर्म के कारण मेरे पाँव जैसे मन भर के हो गए थे. बाबूजी ने मुझे हरी मैक्सी पहने देखा तो उनका मुंह एकदम ऐसे चमक गया जैसे कोई हजार वाट का बल्ब जल गया हो. ख़ुशी के मारे उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकली. उनका मुंह और ख़ुशी देख कर मेरे मुंह पर भी मुस्कराहट आ गयी.
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बाबूजी तो कुछ बोल ही ना पाए बस मेरी हरी मैक्सी ही देखे जा रहे थे. शर्म के कारण मैंने अपनी नजरें उन से ना मिला पायी और जमीन की तरफ देखती रही.
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मेरे बेटे ने भोलेपन से पुछा

"मम्मी! आप ने मैक्सी क्यों चेंज कर ली?"

मैंने बाबूजी की तरफ देखते हुए कहा

"बेटा! मुझे लगा की मुझे हरे रंग की मैक्सी ज्यादा अच्छी लगेगी। पता नहीं क्यों मेरा इस मैक्सी को पहनने का मन किया रात में."
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यह कह कर मैंने बाबूजी की तरफ देखा, उनकी ख़ुशी तो छुपाये नहीं छुप रही थी. मेरे से उनके सामने खड़ा नहीं रहा जा रहा था. मैं शर्माती हुई अपने कमरे में चली गयी.
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insotter

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घर आने तक काफी अँधेरा हो गया था. तो मेरे बेटे को भी नींद आ रही थी, सो हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.

शर्म के मारे मैं बाबूजी से आँख नहीं मिला पा रही थी,

बाबूजी मेरी तरफ देख रहे थे पर मैंने उन्हकी तरफ ध्यान नहीं दिया. बाबूजी कुछ मायूस से लग रहे थे मेरे बर्ताव के कारण.

मेरी चूत में तो बाबूजी की हरकतों से आग लगी हुई थी, मुझे जल्दी थी कि कब मैं अपने कमरे में जाऊं और मेरे पति मेरी चुदाई कर दें.
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पति भी अब तक थोड़ा होश में आ चुके थे. रात में पति ने चुदाई तो करी, आखिर उन्हें भी मुझे चोदे हुए कितने दिन हो गए थे. पर ना जाने क्यों कुछ मजा नहीं आया.

पति का लण्ड हाथ में पकड़ा तो ऐसे लगा कि जैसे किसी बच्चे का लौड़ा हो. न जाने क्यों बार बार बाबूजी के लण्ड से ही मन तुलना करता रहा. और पतिदेव का लौड़ा तो बाबूजी के लण्ड के सामने कहीं ठहरता ही नहीं था.
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पति भी 2 - 3 मिनट धक्के मार कर झाड़ गए। फिर मेरा मन बाबूजी के लंड पर चला गया, कितना मोटा और गर्म था. कितनी देर तक में उसे मुठ मारती रही तब कहीं जा कर उसने अपना पानी छोड़ा था. और यहाँ मेरे पति का तो दो मिनट में ही काम तमाम हो गया है.

अगले दिन भी मैं बाबूजी से कटती ही रही. मैंने उनसे कोई बात भी नहीं करि. बस उन्हें चुपचाप नाश्ता और खाना वगैरा दे दिया. मुझे मन मैं अब ग्लानि अनुभव हो रही थी. जिंदगी में मैंने पहली बार किसी दुसरे मर्द का लौड़ा पकड़ा था. और पकड़ा ही नहीं था बल्कि उनकी मुठ भी मारी थी.
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चाहे यह सब बाबूजी ने जबरदस्ती किया था. पर सबसे बड़ी बात तो ऊपर से यह थी कि यह सब करने में मुझे भी मजा आया था. उन्होंने मेरी चूत में ऊँगली भी की थी और उसका भी मैंने आनंद लिया था.

मुझे यह अब बुरा लग रहा था. अपने आप पर शर्म आ रही थी.

बाबूजी भी मेरा बदला हुआ मूड देख रहे थे. उन्होंने भी कोई शरारत नहीं करि. हालाँकि शायद मेरे मन में कहीं न कहीं दबी हुई भावना थी कि बाबूजी कुछ छेड़छाड़ करें. पर वो भी शांत थे.

खैर रात में फिर वही हुआ, मेरे पति शराब पी कर आये और कुछ चुदाई ना कर सके. ऐसा ही दो तीन दिन तक चलता रहा. अब मुझे बाबूजी का वो मोटा और सख्त लण्ड ही याद आ रहा था.

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पर एक पतिव्रता नारी होने के कारण मन को समझा रही थी.

चौथे दिन सुबह ही जब हम अभी चाय ही पी रहे थे कि पति को फिर से ऑफिस से फोन आया कि उन्हें 3 - 4 दिन के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना था. पति ने मुझे उनका बैग पैक करने को बोल दिया.

मेरा तो मन बुझ गया. पर बाबूजी बड़े खुश लग रहे थे. मैं समझ सकती थी उनकी ख़ुशी का राज.

थोड़ी देर बाद पति तो चले गए और मेरा बेटा भी स्कूल चला गया.

घर में अब मैं और बाबूजी ही थे. मुझे लग रहा था कि अब बाबूजी कुछ करेंगे. पर मैं वैसे ही चुप रही और उनसे कोई बात नहीं करी.

थोड़ी देर बाद बाबूजी अपने कमरे में चले गए. और पांच मिनट बाद वापिस आये. उन्होंने मुझे चाय देने को कहा.

चाय पीने के बाद जब मैं खाली कप उठाने गयी तो उन्होंने कप में एक कागज रख दिया.

मेरा दिल धड़क गया. जैसे किसी कॉलेज के लड़की को किसी चाहने वाले ने लव लेटर दिया हो.

मैं हैरान हो गयी और धड़कते दिल से किचन में आ गयी. बाबूजी भी फिर अपने कमरे में चले गए.
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किचन में आते ही मैंने वो लेटर खोला, उसे पढ़ने लगी , लिखा था.

"बहुरानी सुषमा! कुछ दिनों से हम ससुर बहु आपस में छेड़खानी कर रहे थे. मुझे लगा कि तुम मुझमे इंट्रस्ट ले रही हो. हम दोनों ने उस दिन ऑटो में भी एक दुसरे के शरीर का आनंद लिया था. और जिसमे तुमने भी खुल कर साथ दिया और मजा लिया था. पर उस दिन के बाद तुम मुझसे कट कर रह रही हो. शायद तुम उसे ठीक नहीं समझ रही. मैं भी समझ नहीं पा रहा कि तुम मुझसे वो वाला सम्बन्ध रखना चाहती हो या नहीं. तुम्हारा व्यवहार मुझे समझ नहीं आ रहा है. मैं तो तुमसे सेक्स सम्बन्ध बनाना चाहता हूँ पर मैं यह सब तुम्हारी मर्जी के बिना और जबरदस्ती नहीं करूँगा. मैं आज रात तुम्हे अपनी चॉकोबार चुसवाना चाहता हूँ और तुम्हारी आइसक्रीम भी चाटना चाहता हूँ. यदि तुम भी मुझसे प्यार करती हो और मेरे साथ यह रिश्ता चालु रखना चाहती हो तो आज हरे रंग की मैक्सी पहन लेना और यदि तुम नहीं चाहती तो कोई भी और रंग की. मैं तुम्हारा जवाब समझ जाऊंगा. यदि तुम चॉकोबार चूसना चाहती हो तो आज रात मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगा और हरी मैक्सी अपने हाथ से उतार कर तुम्हे बताऊंगा कि एक असली मर्द क्या होता है और असली मजा क्या होता है. वर्ना मैं समझ जाऊंगा कि तुम यह सम्बन्ध ख़त्म करना चाहती हो, तो मैं तुम्हारे निर्णय से सहमत हूँ. हम आज तक जो भी कुछ हुआ उसे भूल जायेंगे और मैं आज के बाद तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा. तुम्हारी मर्जी और साथ के बिना कुछ नहीं होगा. तो या तो आज के बाद हम एक दुसरे के शरीरों से खेलेंगे या कभी नहीं. मुझे तुम्हारे मैक्सी पहन कर दिए गए जवाब का इन्तजार रहेगा. क्या मैं आज तुम्हारी हरी मैक्सी खोलूंगा या तुम कोई और पहन कर सोऊगी? यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ता हूँ. ."

लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग घूम गया. मेरा मन अभी पति और ससुर में डोल रहा था की बाबूजी ने यह बम फोड़ दिया.

मैं वहीँ अपना माथा पकड़ कर बैठ गयी.

एक तरफ बाबूजी जैसे जवान का साथ और दूसरी तरफ समाज की बंदिशें. मैं कहाँ जाऊँ? मैं अभी उन्हें तोड़ने को राजी शायद नहीं थी.

तब तक बाबूजी भी दुबारा ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गए थे. यह तो पक्का था कि यदि मैं राजी न होऊं तो बाबूजी जबरदस्ती या बलात्कार नहीं करने वाले थे.

मेरा नहाने का टाइम हो रहा था. बाबूजी के भी दिल की धड़कन बढ़ रही थी.
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मैं अपने कमरे में गयी और लाल रंग की मैक्सी (घर में सुविधा के लिए मैं अक्सर मैक्सी ही पहनती थी.) ले कर बाथरूम में चली गयी.

नहा कर उसे पहन कर मैं वापिस आयी. बाबूजी तो धड़कते दिल से मेरे रूम की तरफ ही देख रहे थे. जैसे किसी विद्यार्थी का रिजल्ट आने वाला हो.

मैं लाल मैक्सी पहन कर ज्योंही बाहर आयी, बाबूजी का तो मुंह ही उतर गया.
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उनका मुंह बिलकुल छोटा सा हो गया जैसे किसी ने गुब्बारे में से हवा ही निकाल दी हो. बेचारे चुप ही हो गए. उनका इस तरह का मुंह देख कर मेरे दिल में भी हलचल मच गयी.

ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी आशिक़ के प्यार को मेहबूब ने ठुकरा दिया हो. बिलकुल वैसा ही हाल बाबूजी का भी था.

उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकला, बेचारे किसी हारे हुए जुआरी की तरह उठ कर अपने कमरे में चले गए.
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बाबूजी को इस तरह देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ. सारा दिन बाबूजी अपने कमरे में ही लेटे रहे. बस खाना खाने आये और चुपचाप खाना खा कर फिर अपने कमरे में चले गए.

बाबूजी को इस तरह देख कर मेरे दिल में भी कुछ कुछ हो रहा था. मैं सोचने लगी कि मैंने जो निर्णय लिया वो ठीक था या गलत.

क्या मुझे बाबूजी का प्यार ठुकरा देना चाहिए था या नहीं. सारा दिन मन में यही विचार चलते रहे.

शाम को मेरा बेटा भी आ गया और ड्राइंग रूम में बाबूजी को देख कर उन्हें कमरे से बुला लाया और उन्हें वहां अपने साथ बिठा कर खेलने लगा. बाबूजी भी बच्चे का मन रखने के लिए बैठ गए.,

मेरा भी मन ना जाने क्यों उदास था. रात को खाना खाने के बाद वो सोफे पर बैठे थे.

मैं किचन में बैठी सुबह से सोच रही थी. बेटे ने मुझे उनके पास आ कर बैठने के लिए आवाज दी.

मैंने किचन से ही जवाब दिया

"बेटा! मेरे ऊपर सब्जी गिर गयी है, मैं जरा नहाने जा रही हूँ. अभी आती हूँ."

यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी, हुआ तो कुछ नहीं था.

मैंने अपनी अलमारी खोली और तौलिया उठाया. फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने जैसे अपने आप एक हरे रंग की मैक्सी उठा ली और बाथरूम में घुस गयी. शायद मेरे दिल ने बाबूजी का प्यार स्वीकार कर लिया था.
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आज मैं अच्छी तरह से नहाना चाहती थी. खूब मल मल कर नहाया और फिर कमरे में आ कर थोड़ा मेकअप भी किया. हरी मैक्सी के ऊपर सेंट लगाया और फिर शर्माती हुई ड्राइंग रूम मैं आ गयी.
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शर्म के कारण मेरे पाँव जैसे मन भर के हो गए थे. बाबूजी ने मुझे हरी मैक्सी पहने देखा तो उनका मुंह एकदम ऐसे चमक गया जैसे कोई हजार वाट का बल्ब जल गया हो. ख़ुशी के मारे उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकली. उनका मुंह और ख़ुशी देख कर मेरे मुंह पर भी मुस्कराहट आ गयी.
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बाबूजी तो कुछ बोल ही ना पाए बस मेरी हरी मैक्सी ही देखे जा रहे थे. शर्म के कारण मैंने अपनी नजरें उन से ना मिला पायी और जमीन की तरफ देखती रही.
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मेरे बेटे ने भोलेपन से पुछा

"मम्मी! आप ने मैक्सी क्यों चेंज कर ली?"

मैंने बाबूजी की तरफ देखते हुए कहा

"बेटा! मुझे लगा की मुझे हरे रंग की मैक्सी ज्यादा अच्छी लगेगी। पता नहीं क्यों मेरा इस मैक्सी को पहनने का मन किया रात में."
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यह कह कर मैंने बाबूजी की तरफ देखा, उनकी ख़ुशी तो छुपाये नहीं छुप रही थी. मेरे से उनके सामने खड़ा नहीं रहा जा रहा था. मैं शर्माती हुई अपने कमरे में चली गयी.
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Awesome update bro 👍 👍 👍
 

Premkumar65

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अगले दिन दोपहर को मेरे पति का फोन आया. उन्होंने कहा की वे आज शाम की ट्रैन से रात को लगभग ८ बजे आ जायेंगे.

मैं उन के आने की खबर सुन कर खुश भी हुई की मेरे पति कई दिनों के बाद आएंगे और आज मेरी चुदाई भी होगी, क्योंकि काफी दिन हो गए थे चुदे हुए तो मेरी काम वासना भी बढ़ गयी थी.

उधर मेरे ससुर की हरकतों से मेरा चुदने का बहुत मन हो रहा था. बस दिल कर रहा था की कोई मोटा सा लौड़ा मेरे अंदर घुस जाये.
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पर ना जाने क्यों मैं अपने पति के आने की खबर से कुछ अंदर ही अंदर उदास भी थी.

जाने क्यों ससुर के साथ छेड़खानी और शरारत अच्छी लग रही थी, मैं उनसे चुदने को शायद अभी मन से तैयार नहीं थी. पर उन का साथ अच्छा लग रहा था.

खैर पति के आने की खबर से मेरा बेटा भी बहुत खुश हुआ और बोला की आज पापा कई दिन के बाद आ रहे है तो हम उनको लेने स्टेशन जायेंगे.

बाबूजी भी बेटे के आने से कुछ उदास थे, उन्हें भी लग रहा था की अपनी बहु को चोद पाने का मौका अब शायद न मिले, पर वो भी क्या कर सकते थे.
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तो हम रात को स्टेशन पर चले गए. हमारे पास अपनी गाडी तो थी नहीं तो ऑटो में आने जाने का सोचा.

ट्रेन रात में 8 बजे आ गयी. पति बाहर आये तो उन्हें देख कर दिल ही बुझ गया.

पति शराब में टुन्न थे. उनसे तो ठीक से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. बेटा भी उनसे मिल कर दुखी हुआ.

लगता था कि वो ट्रेन में ही शराब पीते आये थे.
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खैर अब तो यह उनकी रोज की आदत बन गयी थी, बोलने या लड़ने का कोई फायदा नहीं था.

मैं तो डबल उदास हुई, पति की हालत देख कर बिलकुल भी नहीं लगता था कि वो मेरी चुदाई कर भी पाएंगे, मेरे तो जैसे सपने ही ढह गए.

बाबूजी ने ऑटो को बुलाया और घर जाने को बुक किया.
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रात थी तो अँधेरा भी हो गया था. और ठण्ड भी लग रही थी. मैंने तो शाल भी ले रखी थी,

ऑटो वाले ने एक साइड से तो ऑटो को कपडे से बंद किया हुआ था ताकि ठंडी हवा ना आये और दूसरी साइड से ही सवारी के लिए खुला रखा था.

सबसे पहले तो बाबूजी औरो में घुसे। फिर मेरे पति अंदर घुसने लगे तो बाबूजी ने उसे डांट दिया और कहा कि उस से शराब की बदबू आ रही है, तो वो उनसे दूर ही बैठे.

अब मुझे ही बाबूजी से लग कर बैठना पड़ा. फिर मेरे पति बैठे और जो एक छोटा सा फट्टा ड्राइवर ने अपने पीछे सवारी के लिए लगाया होता है उस पर मेरा बेटा बैठा. ऑटो क्योंकि छोटा होता है तो हम तीनो फंस कर ही बैठे थे. मेरे जाँघे बाबूजी की टांगों से लगी हुई थी. एक तो रात का अँधेरा और उस पर ऑटो में हम चिपक कर बैठे थे. पति के पास जो बैग था वो मैंने अपनी गोद में रख लिया और उस पर मेरे बेटे ने सर रख लिया..
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अब स्थिति यह थी की बाबूजी अंत में बैठे थे, और उनके साइड में ऑटो कपडे से बंद था, बाबूजी से चिपक कर मैं बैठी थी और किनारे पर पति थे.

बाहर से किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था. और बेटे के कारण ड्राइवर भी हमें देख नहीं सकता था.

मेरे पति तो बस ऑटो में बैठते ही, अपनी साइड के रॉड पर सर रख कर ऊँघने लगे.

एक तरह से हम दोनों बाबूजी और मैं ही जाग रहे थे.

हमारा घर लगभग १ घंटे की दूरी पर था.

ऑटो चलते हुए पांच मिनट ही हुए थे की बेटा भी मेरी गोद में ऊँघने लग गया.

बाबूजी ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा दिए उनकी आँखों में शरारत की चमक थी, मैं समज रही थी की बाबूजी के मन में कुछ तो चल रहा है. आज यह पहली बार था की बाबूजी मेरे से इतना सट कर बैठे थे. तभी बाबूजी ने अपनी टांग मेरी टांग से मिला दी.
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मैंने उनकी तरफ देखा, बाबूजी दूसरी तरफ मुंह किये मुस्कुरा रहे थे.

अचानक से बाबूजी ने अपना हाथ मेरी कमर पर रख दिया. मैं एकदम से हिल सी गयी.

मैंने हिल कर उनका हाथ हटाना चाहा तो बाबूजी ने अपना हाथ हटा कर मेरे पेट पर रख दिया.
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मैं चुप रही कि देखते हैं कि बाबूजी बाबूजी क्या करते हैं, जब बाबूजी ने मुझे कुछ भी ना कहते पाया तो उन्होंने अपना हाथ मेरी कमीज के अंदर घुसा कर मेरे नंगे पेट पर रख दिया. मैं एकदम से घबरा गयी. मेरे पति मेरे पास ही बैठे थे और मेरा बेटा मेरी गोद में सो रहा था और बाबूजी यह हरकत कर रहे थे.

हालाँकि उनका हाथ कमीज के अंदर था और ऊपर से मैंने शाल भी ले राखी थी, तो किसी को कुछ भी दिख नहीं सकता था पर मैंने बाबूजी का हाथ पकड़ कर बाहर निकालना चाहा पर बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर ही रखा.

मैं सब के सामने ऑटो में जोर आजमाईश तो कर नहीं सकती थी, तो थोड़ी देर कोशिश करने के बाद मैं चुप कर गयी और बाबूजी का हाथ रहने दिया.

बाबूजी मेरे इस सहयोग से बहुत खुश हो गए और अपना हाथ मेरे नंगे पेट पर सहलाने लगे.

अब मेरे बाबूजी को तो आप जानते ही हैं. जब मैंने अपना हाथ हटाया तो तुरंत उन्होंने मेरे पेट पर से हटा कर ऊपर मेरी छाती पर रख दिया. और मेरे मुम्मे को सीधा ही पकड़ लिया.
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मैं एकदम से चिहुंक पड़ी. इधर मेरे पति मेरे पास बैठे थे, और मेरे ससुर ने जिंदगी में पहली बार मेरा मम्मा पकड़ लिया था. मैं करती भी तो क्या करती.
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कुछ बोल भी तो नहीं सकती थी, मैंने अपना हाथ फिर से कमीज में डाल कर उनके हाथ को पकड़ लिया और उनकी तरफ गुस्से की नजरों से देखा.

बाबूजी मुझे देखते ही एक आँख मार दी, मैं शर्मा गयी. क्या करती. बाबूजी का हाथ कमीज के तो अंदर था ही तब तक बाबूजी ने जोर से अपना हाथ मेरे ब्रा के अंदर घुसेड़ कर मेरा नंगा मुम्मा पकड़ लिया और उसे दबाने लगे.
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मेरी स्थिति बड़ी अजीब थी. पहली बार कोई गैर मर्द मेरी छाती दबा रहा था. और वो भी मेरे बाबूजी ही,

मैंने पति की तरफ देखा, वो तो शराब के नशे में ऊंघ रहे थे. मुझे बड़ा गुस्सा आया.

अब तक ससुर जी ने मेरे एक निप्पल को अपने अंगूठे और ऊँगली में दबा लिया और उसे सहलाने लगे. मेरे शरीर में तो आग ही लग गयी थी,
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मैंने जोर से बाबूजी का हाथ अपने हाथ से पकड़ कर नीचे पेट की तरफ खींच दिया और ब्रा से बाहर निकाल दिया.

लेकिन उसका एक असर यह हुआ कि जो बाबूजी ने मेरी छाती हाथ में पकड़ी थी, हाथ जोर से नीचे खींचने के कारण मेरा मुम्मा भी ब्रा से बाहर निकल कर आ गया. और वो अब ब्रा से बाहर और कमीज के अंदर था.
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मैंने सोचा कि उसे तो मैं बाद में अंदर कर लूंगी, पहली बाबूजी का हाथ तो रोकूं किसी तरह.

उधर बाबूजी अपने दुसरे हाथ से पता नहीं क्या कर रहे थे. वो हाथ उनके लण्ड पर था, शायद उसे मसल रहे होंगे हमेशा की तरह.

बाबूजी ने अपना हाथ जो मेरे पेट पर घूम रहा था उसे मेरी सलवार के अंदर घुसेड़ने की कोशिश की.

वो मेरी चूत पर जाना चाहते थे. मैंने सलवार के नाड़े में घुसता हुआ उनका हाथ एकदम से पकड़ लिया. बाबूजी नई दुसरे हाथ से मेरा वो हाथ जोर से पकड़ा और अपनी गोद में खींचा. जब तक मैं कुछ समझती बाबूजी ने मेरा वो हाथ अपने नंगे लौड़े पर रख दिया. (अब मैं समझी कि बाबूजी ने अपना लण्ड अपनी धोती से बाहर निकाल लिया था.)
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अपना हाथ बाबूजी के गर्म गर्म लौड़े पर लगते ही मैं तो लगभग उछल ही पड़ी. बाबूजी इतनी हिम्मत करेंगे वो भी मेरे पति और बच्चे के सामने, यह तो मैंने कभी सोचा भी नहीं था.
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बाबूजी मुझे अपना लौड़ा पकड़वाना चाह रहे थे. पर मैंने जोर से अपनी मुठी बंद कर ली और अपना हाथ वापिस खींचने लगी. अब इस स्थिति में जबकि मेरे पति और बेटा पास में थे और सामने ऑटो ड्राइवर गाड़ी चला रहा था तो मैं कुछ बोल तो नहीं सकती थी. बस जोर से अपनी मुठी भींच रखी और उसे बाबूजी के लण्ड पर से वापिस खींचने लगी.

पर बाबूजी भी पुराने घाघ और पहलवान थे. उन में बहुत जोर था. उन्होंने अपने हाथ से मेरे मुठी भरे हाथ को कस के पकडे रखा और मुझे वापिस नहीं लेने दिया.
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अब चलते ऑटो में मैं बाबूजी के साथ कुश्ती को कर नहीं सकती थी. बस जोर लगाती रही. बाबूजी के लाख कोशिश करने पर भी कि मैं उनके लौड़े को पकड़ लूँ, मैंने मुठी नहीं खोली.

अब मेरा सारा ध्यान मेरे इस लौड़े पर ठीके हुए हाथ पर था तो बाबूजी ने इस स्थिति का भरपूर लाभ उठाते हुए अपना दूसरा हाथ झट से मेरी सलवार के अंदर घुसा दिया और मेरी उसे जोर से अंदर धकेलते हुए सीधे मेरी चूत पर ले आये और मेरी चूत को अपनी मुठी में भींच लिया.
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मैं तो इस दोतरफा हमले से घबरा गयी. क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था.

बाबूजी ने एक हाथ से मेरी मुठी वाले हाथ को अपने अकड़े हुए लौड़े पर टिका रखा था. और दुसरे से मेरी नंगी चूत को पकड़ रखा था.

शायद आज भगवन भी मेरी तरफ नहीं था. आज मैंने कच्छी भी नहीं पहन राखी थी. और अपनी चूत को बिलकुल साफ़ भी कर रखा था. आज मेरे पति जो आ रहे थे.
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पर इस का भरपूर लाभ मेरे ससुर को मिल रहा था. उन्होंने मेरी चूत को कस के अपने हाथ में पकड़ लिया.

अब मैं औरत जात करती भी तो इस समय क्या करती. और ऊपर से मेरे लाख न चाहते हुए भी मेरी चूत गीली होने लग गयी. इस साली चूत का भी अपना ही दिमाग है. यह यह नहीं देखती की उसे मसलने वाला हाथ उसके पति का है या ससुर का. बस उसे किसी की ऊँगली लगी नहीं कि चूत अपनी ख़ुशी जाहिर करने के लिए अपना रस छोड़ने लग पड़ती है.
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मैं अभी सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी बाबूजी ने अपनी एक ऊँगली मेरी गीली हो चुकी चूत में घुसा दी. और अपने अंगूठे को मेरी भगनासा पर रख कर उसे रगड़ना शुरू कर दिया. मेरी भगनासा उन्होंने अपने अंगूठे और पहली ऊँगली से पकड़ ली और उसे मसलने लगे और दूसरी ऊँगली मेरी भीगी चूत में सरका दी.
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यह मेरे लिए सहन करने की शक्ति से अधिक था. न चाहते हुए भी मेरे मुंह से सिसकारी निकल गयी. जो भगवान् की दया से ऑटो के शोर में किसी ने ना सुनी,

मैंने अपने पति की तरफ डर के मारे देखा कि कहीं उन्हें तो पता नहीं चल गया पर वो तो शराब के नशे में ऑटो दे डंडे से लगे ऊँघ रहे थे और मेरा बेटा तो सो ही रहा था.

अब स्थिति मेरे काबू से बाहर हो रही थी. बाबूजी तो ऐसे बैठे थे कि जैसे उन जैसा शरीफ आदमी इस दुनिया में कोई है ही नहीं. यह तो मुझे ही पता था उनकी शराफत का, जिसकी चूत में बाबूजी की ऊँगली घुसी हुई थी और दूसरा हाथ बाबूजी के तने हुए लौड़े पर था.
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मैंने बाबूजी की तरफ देखा और नजरों से उन्हें मिन्नत की, और ना में गर्दन हिला कर उन्हें हाथ बाहर करने का इशारा किया, पर बाबूजी ने तो मुझे आँख मार दी और मुस्कुरा कर मजा लेने का इशारा किया.

अब बाबूजी को दो मिनट मेरी चूत में ऊँगली करते हो गए थे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी. उधर मेरी भगनासा का दाना भी बाबूजी मसल रहे थे.

अचानक बाबूजी ने अपनी एक और ऊँगली मेरी चूत में घुसेड़ दी. बाबूजी की तो ऊँगली भी किसी छोटे मोटे लण्ड से कम थोड़े ही थी.
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मेरे मुंह से एक आह की आवाज निकल गयी , दो उँगलियाँ चूत में जाते ही, मैंने अपने पति वाले साइड के हाथ से उन्हें रोकना चाहा, इसका असर यह हुआ कि मेरा ध्यान चूत वाली साइड में हो गया, और लौड़े पर रखे हाथ की मुठी अपने आप खुल गयी.

बाबूजी को ध्यान उसी पर था. ज्योंही मेरी मुठी खुली बाबूजी ने तुरंत मेरी उँगलियाँ अपने लौड़े के ऊपर लपेट दी और अपनी मुठी मेरी उँगलियों पर कस ली.
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अब मेरे हाथ में उनका लण्ड पूरी मुठी में था. उनका लौड़ा इतना मोटा था कि मेरी उँगलियाँ उस पर पूरी तरह से नहीं आ पा रही थी,


मैं तो बुरी तरह फंस गयी थी, मेरी चूत में बाबूजी की दो उँगलियाँ घुसी हुई थी और हाथ में उनका लौड़ा था. जिस पर बाबूजी ने अपना हाथ रखा था ताकि मैं अपना हाथ उनके लण्ड से हटा ना सकूँ.
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Bahut garam update hai.
 

Premkumar65

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वैसे सच कहु तो कुछ अच्छा भी लग रहा था.
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इस तरह की हरकतें जवान लोग या कॉलेज के स्टूडेंट्स करते हैं, यह तो सुना था पर आज मुझे अधेड़ औरत के साथ भी ऑटो में यह छेड़खानी हो रही थी. और वो भी अपने ही ससुर के हाथों.
मन में रोमांच भी हो रहा था. मेरे पति और बेटे के सामने मेरे ससुर मेरी चूत में ऊँगली कर रहे थे. बहुत अजीब सा लग रहा था. मैंने भी बाबूजी के साथ सेक्स का सोच रखा था पर यह जो ऑटो में हो रहा है, यह तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था.
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अब बाबूजी ने मेरे हाथ, जो उनके लण्ड पर लिपटा हुआ था को अपने हाथ जो उसके ऊपर रखा था, सो आगे पीछे करना शुरू कर दिया. धीरे धीरे सेहला रहे थे जैसे मुठ मार रहे हों. मैं शर्म से मरी जा रही थी. पर कुछ कर नहीं पा रही थी.

मैंने सोचा की बाबूजी के लण्ड को जोर से कस कर दबा देती हूँ ताकि दर्द होने से बाबूजी मेरा हाथ छोड़ देंगे, तो मैंने अपनी लण्ड पर लिपटी हुई उँगलियों से उनके लौड़े को जोर से दबा दिया.
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मैं तो हैरान ही हो गयी. बाबूजी का लण्ड तो इतना सख्त था की जैसे कोई लोहे की रॉड हो. इतना टाइट कि दब तो बिलकुल नहीं पाया. और ऊपर से गर्म इतना कि जैसे आग से तप रहा हो. मेरे पति का लैंड मैंने इतने जोर से दबाया होता तो बेचारे चीख उठते, पर बाबूजी को तो मजा आया. उन्होंने मेरी आँखों में देखते हुए शाबाशी दी जैसे मैंने जान बूझ कर उन्हें मजा देने के लिए लौड़ा दबाया हो. और आँखों में ही ऐसे ही करने का इशारा किया.
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अपनी आँखों में उन्हें देखते और शाबाशी देने से मुझे तो इतनी शर्म आ रही थी कि क्या बताऊँ, पर कुछ कर भी नहीं सकती थी,

सच कहूँ तो मझे भी अच्छा तो लग रहा था, क्योंकि आखिर थी तो मैं एक औरत ही, आप मेरी स्थिति का सोचिये तो मेरी भी कामवासना भड़क रही थी,

इधर जो बीते कुछ दिनों से बाबूजी के साथ छेड़खानी चल रही थी उसका भी हाथ था.

अब बाबूजी ने मेरी चूत में ऊँगली अंदर बाहर करने की स्पीड तेज कर दी.
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पता नहीं क्यों पर अब मैं उनके हाथ को रोकने की उतनी कोशिश भी नहीं कर रही थी.

चूत एक तो इतने दिनों से चुदी नहीं थी, तो उसका गीला होना और मुझे आनंद आना तो स्वाभाविक ही था.

बाबूजी अब जोर जोर और अधिक स्पीड से उँगलियों से मेरी चूत चोद रहे थे.

पता नहीं कब अपने आप मेरी टांगें खुल कर फ़ैल गयी और बाबूजी को अपनी हरकतों के लिए और स्थान मिल गया और ऊँगली चुदाई तेजी से होने लगी.
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मैंने अपना मुंह में अपनी शाल डाल ली ताकि मेरे मुंह से अपने आप निकल रही सिसकारियों की आवाज बाहर ना आ सके.

ऐसे मजे में अपने आप मेरा हाथ बाबूजी के लौड़े पर चलने लग गया. और अब बाबूजी को अपने हाथ से मेरे हाथ को हिलाने की जरूरत नहीं थी, मैं ना चाहते हुए अपने आप अब बाबूजी की मुठ मार रही थी.

बाबूजी का लौड़ा मेरे पति के लौड़े से दुगना मोटा और बहुत बड़ा था. मैंने अपनी जिंदगी में पति के इलावा यह दूसरा लण्ड पकड़ा था. लौड़ा इतना सख्त और मोटा होता है, मुझे आज ही पता चला.
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बाबूजी ने जब देखा कि अब मैं अपने आप ही उनकी मुठा मार रही हूँ, तो उन्होंने अपना हाथ मेरे हाथ पर से हटा कर मेरी चूँचियों पर रख लिया और मेरे मुम्मे दबाने सहलाने लगे.

उनका हाथ हटते ही एकबार तो मैंने सोचा कि उनका लण्ड छोड़ दूँ, पर बाबूजी की मुठ मारने में इतना अच्छा लग रहा था कि मैं उनकी मुठ मारने में लगी रही.
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अब पूरी बेशर्मी से हम दोनों ससुर बहु एक दुसरे के शरीर से मजे ले रहे थे.

मैंने सोच लिया कि अब जब यह सब हो ही रहा है, और हम दोनों चाहते भी यही थे, तो एकदिन तो यह सब होना ही था. तो चलो आज हो ही जाने दो,

मैं अब पूरी स्पीड से बाबूजी की मुठ मार रही थे और बाबूजी मेरी चूत में दो उँगलियाँ अंदर बाहर कर रहे थे, किसी को कुछ दिखाई न दे इस लिए मैंने शाल को थोड़ा फैला लिया और मेरा मुठ मार रहा हाथ भी छुपा लिया.

अब हम ससुर बहु चलते ऑटो में खुल कर मजा ले रहे थे.

मैंने अपने पति की तरफ देखा तो वो नशे में खर्राटे ले रहे थे. मुझे उन पर बहुत घृणा आयी और मन ही मन गाली देते बोली

"सो ले कंजर , और कर नशा. देख तेरे सामने ही तेरा बाप तेरी बीवी की चूत में ऊँगली फेर रहाहै और तेरी बीवी अपने ससुर की मुठ मार रही है. तू सोता रह."
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मैंने पूरा ध्यान बाबूजी पर किया और आनंद लेने लगी.

मैंने मुठ मारना तेज किया तो बाबूजी ने भी चूत में ऊँगली तेज कर दी और मेरे मुम्मे भी जोर से मसलने लगे. हम दोनों ससुर बहु स्वर्ग में थे.

एक तो मैं इतने दिन से चुदी नहीं थी, दुसरे रोज बाबूजी के साथ छेड़खानी और सेक्सी बातों से मैं बहुत चुदासी हो रही थी. ऊपर से यह पति बच्चे और ड्राइवर के सामने इस तरह की हरकत, मैं बता नहीं सकती कि कितना मजा आ रहा था.

दोनों ससुर बहु को मजा लेते अब काफी देर हो चुकी थी,. मेरा स्खलन भी पास ही था. लगता है बाबूजी का भी काम तमाम होने ही वाला था.

बाबूजी मेरी ओर देखते हुए बोले

"सुषमा! लगता है अपनी मंजिल दूर नहीं है, जल्दी ही अपने मुकाम पर पहुँच जायेंगे."

यह कहते हुए बाबूजी ने मेरी आँखों में देखते हुए अपने लौड़े की तरफ इशारा किया, ताकि मैं समझ जाऊ कि किस मंजिल की बात है.
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मेरा भी काम होने वाला था. तो मैं भी मुस्कुराते हुए बोली

"हाँ बाबूजी! मुझे भी लगता है कि पहुँचने में मुश्किल से १-२ मिनट ही बाकी हैं. जरा तेज हाथ चलाया जाये, मतलब गाड़ी की स्पीड बढ़ा दें तो और भी जल्दी पहुँच जायेंगे.." ऑटो ड्राइवर तो अपनी ही धुन में मस्त था.
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बाबूजी मेरी दोअर्थी बात पर मुस्कुरा पड़े. उन्होंने अपनी जेब से रुमाल निकल कर मुठ मार रहे मेरे हाथ में दे दिया. मैं जान गयी कि बाबूजी ने मुझे यह क्यों दिया है.

मैंने तुरंत वो रुमाल बाबूजी के लौड़े पर लपेट लिया और तेजी से मुठ मारना चालू किया.

बाबूजी की भी उँगलियाँ बिजली की तेजी से मेरे अंदर चल रही थी. अचानक मेरी चूत ने एक जोर का झटका खाया और मेरी चूत ने छर छर अपना पानी छोड़ना शुरू कर दिया. मैंने काफी सारी शाल अपने मुंह में दबा ली ताकि मेरी सिसकारियां उस में ही दब जाएँ.
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मेरी चूत ने पहली बार बाबूजी के हाथ से पानी निकाला था तो बहुत पानी निकला. बाबूजी का पूरा हाथ भीग गया. मैंने भी जोर जोर से बाबूजी के लण्ड पर सड़का मारा और बाबूजी का भी शरीर कांपने लगा. और उनके लौड़े ने भी ढेर सा घाड़ा घाड़ा माल छोड़ दिया..

मैं तो पहले से ही तैयार थी और बाबूजी का सारा वीर्य मैंने रुमाल में ले लिया.

पर बाबूजी के लण्ड ने इतना माल निकाला की रुमाल भर जाने के बाद भी मेरे हाथ भी उस से भर गए.
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थोड़ी देर बाद बाबूजी के लण्ड ने झटके मारने बंद किये, तो मैंने उसे छोड़ दिया.

मैंने रुमाल ऑटो के फर्श पर ही फेंक दिया, जिसे पैर से बाबूजी ने धकेल कर ऑटो से बाहर फेंक दिया. चलते ऑटो में और रात में किसी को पता नहीं चला.
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मेरे हाथ अभी भी बाबूजी के वीर्य से ही भरे थे, मैंने उन्हें शाल से पोंछना चाहा तो इशारे से बाबूजी ने मुझे रोक दिया और मेरी सलवार से मेरे चूत रस से भीगा अपना हाथ निकाला और उसे चाटना शुरू कर दिया.

और इशारे से मुझे भी अपना वीर्य भरा हाथ चाट कर साफ़ करने को कहा.

बहुत ही कामुक दृश्य था. मेरे सामने मेरे ससुर मेरे चूत रस को चाट रहे थे. और मैंने भी शर्म लिहाज छोड़ कर बाबूजी के माल को अपने हाथ से चाटना शुरू कर दिया.

बाबूजी का वीर्य बहुत ही स्वादिष्ट था. मैं सोच रही थी कि कब मुझे यह माल सीधे लौड़े से ही चूस कर चाटने को मिलेगा.
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इतने में हमारा घर आ गया.

मेरे पति और बेटा भी उठ गए और हम घर में चले गए.


मैं रात में अपने पति से होने वाली संभावित चुदाई के बारे में ही सोच रही थी,
very very hot update. Majaa aa gaya aur main bhi aa gaya.
 
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