Super duper hotघर आने तक काफी अँधेरा हो गया था. तो मेरे बेटे को भी नींद आ रही थी, सो हम सब अपने अपने कमरे में सोने के लिए चले गए.
शर्म के मारे मैं बाबूजी से आँख नहीं मिला पा रही थी,
बाबूजी मेरी तरफ देख रहे थे पर मैंने उन्हकी तरफ ध्यान नहीं दिया. बाबूजी कुछ मायूस से लग रहे थे मेरे बर्ताव के कारण.
मेरी चूत में तो बाबूजी की हरकतों से आग लगी हुई थी, मुझे जल्दी थी कि कब मैं अपने कमरे में जाऊं और मेरे पति मेरी चुदाई कर दें.
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पति भी अब तक थोड़ा होश में आ चुके थे. रात में पति ने चुदाई तो करी, आखिर उन्हें भी मुझे चोदे हुए कितने दिन हो गए थे. पर ना जाने क्यों कुछ मजा नहीं आया.
पति का लण्ड हाथ में पकड़ा तो ऐसे लगा कि जैसे किसी बच्चे का लौड़ा हो. न जाने क्यों बार बार बाबूजी के लण्ड से ही मन तुलना करता रहा. और पतिदेव का लौड़ा तो बाबूजी के लण्ड के सामने कहीं ठहरता ही नहीं था.
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पति भी 2 - 3 मिनट धक्के मार कर झाड़ गए। फिर मेरा मन बाबूजी के लंड पर चला गया, कितना मोटा और गर्म था. कितनी देर तक में उसे मुठ मारती रही तब कहीं जा कर उसने अपना पानी छोड़ा था. और यहाँ मेरे पति का तो दो मिनट में ही काम तमाम हो गया है.
अगले दिन भी मैं बाबूजी से कटती ही रही. मैंने उनसे कोई बात भी नहीं करि. बस उन्हें चुपचाप नाश्ता और खाना वगैरा दे दिया. मुझे मन मैं अब ग्लानि अनुभव हो रही थी. जिंदगी में मैंने पहली बार किसी दुसरे मर्द का लौड़ा पकड़ा था. और पकड़ा ही नहीं था बल्कि उनकी मुठ भी मारी थी.
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चाहे यह सब बाबूजी ने जबरदस्ती किया था. पर सबसे बड़ी बात तो ऊपर से यह थी कि यह सब करने में मुझे भी मजा आया था. उन्होंने मेरी चूत में ऊँगली भी की थी और उसका भी मैंने आनंद लिया था.
मुझे यह अब बुरा लग रहा था. अपने आप पर शर्म आ रही थी.
बाबूजी भी मेरा बदला हुआ मूड देख रहे थे. उन्होंने भी कोई शरारत नहीं करि. हालाँकि शायद मेरे मन में कहीं न कहीं दबी हुई भावना थी कि बाबूजी कुछ छेड़छाड़ करें. पर वो भी शांत थे.
खैर रात में फिर वही हुआ, मेरे पति शराब पी कर आये और कुछ चुदाई ना कर सके. ऐसा ही दो तीन दिन तक चलता रहा. अब मुझे बाबूजी का वो मोटा और सख्त लण्ड ही याद आ रहा था.
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पर एक पतिव्रता नारी होने के कारण मन को समझा रही थी.
चौथे दिन सुबह ही जब हम अभी चाय ही पी रहे थे कि पति को फिर से ऑफिस से फोन आया कि उन्हें 3 - 4 दिन के लिए ऑफिस के काम से बाहर जाना था. पति ने मुझे उनका बैग पैक करने को बोल दिया.
मेरा तो मन बुझ गया. पर बाबूजी बड़े खुश लग रहे थे. मैं समझ सकती थी उनकी ख़ुशी का राज.
थोड़ी देर बाद पति तो चले गए और मेरा बेटा भी स्कूल चला गया.
घर में अब मैं और बाबूजी ही थे. मुझे लग रहा था कि अब बाबूजी कुछ करेंगे. पर मैं वैसे ही चुप रही और उनसे कोई बात नहीं करी.
थोड़ी देर बाद बाबूजी अपने कमरे में चले गए. और पांच मिनट बाद वापिस आये. उन्होंने मुझे चाय देने को कहा.
चाय पीने के बाद जब मैं खाली कप उठाने गयी तो उन्होंने कप में एक कागज रख दिया.
मेरा दिल धड़क गया. जैसे किसी कॉलेज के लड़की को किसी चाहने वाले ने लव लेटर दिया हो.
मैं हैरान हो गयी और धड़कते दिल से किचन में आ गयी. बाबूजी भी फिर अपने कमरे में चले गए.
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किचन में आते ही मैंने वो लेटर खोला, उसे पढ़ने लगी , लिखा था.
"बहुरानी सुषमा! कुछ दिनों से हम ससुर बहु आपस में छेड़खानी कर रहे थे. मुझे लगा कि तुम मुझमे इंट्रस्ट ले रही हो. हम दोनों ने उस दिन ऑटो में भी एक दुसरे के शरीर का आनंद लिया था. और जिसमे तुमने भी खुल कर साथ दिया और मजा लिया था. पर उस दिन के बाद तुम मुझसे कट कर रह रही हो. शायद तुम उसे ठीक नहीं समझ रही. मैं भी समझ नहीं पा रहा कि तुम मुझसे वो वाला सम्बन्ध रखना चाहती हो या नहीं. तुम्हारा व्यवहार मुझे समझ नहीं आ रहा है. मैं तो तुमसे सेक्स सम्बन्ध बनाना चाहता हूँ पर मैं यह सब तुम्हारी मर्जी के बिना और जबरदस्ती नहीं करूँगा. मैं आज रात तुम्हे अपनी चॉकोबार चुसवाना चाहता हूँ और तुम्हारी आइसक्रीम भी चाटना चाहता हूँ. यदि तुम भी मुझसे प्यार करती हो और मेरे साथ यह रिश्ता चालु रखना चाहती हो तो आज हरे रंग की मैक्सी पहन लेना और यदि तुम नहीं चाहती तो कोई भी और रंग की. मैं तुम्हारा जवाब समझ जाऊंगा. यदि तुम चॉकोबार चूसना चाहती हो तो आज रात मैं तुम्हारे कमरे में आऊंगा और हरी मैक्सी अपने हाथ से उतार कर तुम्हे बताऊंगा कि एक असली मर्द क्या होता है और असली मजा क्या होता है. वर्ना मैं समझ जाऊंगा कि तुम यह सम्बन्ध ख़त्म करना चाहती हो, तो मैं तुम्हारे निर्णय से सहमत हूँ. हम आज तक जो भी कुछ हुआ उसे भूल जायेंगे और मैं आज के बाद तुम्हारे साथ कुछ भी नहीं करूँगा. तुम्हारी मर्जी और साथ के बिना कुछ नहीं होगा. तो या तो आज के बाद हम एक दुसरे के शरीरों से खेलेंगे या कभी नहीं. मुझे तुम्हारे मैक्सी पहन कर दिए गए जवाब का इन्तजार रहेगा. क्या मैं आज तुम्हारी हरी मैक्सी खोलूंगा या तुम कोई और पहन कर सोऊगी? यह निर्णय मैं तुम पर छोड़ता हूँ. ."
लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग घूम गया. मेरा मन अभी पति और ससुर में डोल रहा था की बाबूजी ने यह बम फोड़ दिया.
मैं वहीँ अपना माथा पकड़ कर बैठ गयी.
एक तरफ बाबूजी जैसे जवान का साथ और दूसरी तरफ समाज की बंदिशें. मैं कहाँ जाऊँ? मैं अभी उन्हें तोड़ने को राजी शायद नहीं थी.
तब तक बाबूजी भी दुबारा ड्राइंग रूम में आ कर बैठ गए थे. यह तो पक्का था कि यदि मैं राजी न होऊं तो बाबूजी जबरदस्ती या बलात्कार नहीं करने वाले थे.
मेरा नहाने का टाइम हो रहा था. बाबूजी के भी दिल की धड़कन बढ़ रही थी.
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मैं अपने कमरे में गयी और लाल रंग की मैक्सी (घर में सुविधा के लिए मैं अक्सर मैक्सी ही पहनती थी.) ले कर बाथरूम में चली गयी.
नहा कर उसे पहन कर मैं वापिस आयी. बाबूजी तो धड़कते दिल से मेरे रूम की तरफ ही देख रहे थे. जैसे किसी विद्यार्थी का रिजल्ट आने वाला हो.
मैं लाल मैक्सी पहन कर ज्योंही बाहर आयी, बाबूजी का तो मुंह ही उतर गया.
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उनका मुंह बिलकुल छोटा सा हो गया जैसे किसी ने गुब्बारे में से हवा ही निकाल दी हो. बेचारे चुप ही हो गए. उनका इस तरह का मुंह देख कर मेरे दिल में भी हलचल मच गयी.
ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी आशिक़ के प्यार को मेहबूब ने ठुकरा दिया हो. बिलकुल वैसा ही हाल बाबूजी का भी था.
उनके मुंह से कोई बोल नहीं निकला, बेचारे किसी हारे हुए जुआरी की तरह उठ कर अपने कमरे में चले गए.
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बाबूजी को इस तरह देख कर मुझे बड़ा दुःख हुआ. सारा दिन बाबूजी अपने कमरे में ही लेटे रहे. बस खाना खाने आये और चुपचाप खाना खा कर फिर अपने कमरे में चले गए.
बाबूजी को इस तरह देख कर मेरे दिल में भी कुछ कुछ हो रहा था. मैं सोचने लगी कि मैंने जो निर्णय लिया वो ठीक था या गलत.
क्या मुझे बाबूजी का प्यार ठुकरा देना चाहिए था या नहीं. सारा दिन मन में यही विचार चलते रहे.
शाम को मेरा बेटा भी आ गया और ड्राइंग रूम में बाबूजी को देख कर उन्हें कमरे से बुला लाया और उन्हें वहां अपने साथ बिठा कर खेलने लगा. बाबूजी भी बच्चे का मन रखने के लिए बैठ गए.,
मेरा भी मन ना जाने क्यों उदास था. रात को खाना खाने के बाद वो सोफे पर बैठे थे.
मैं किचन में बैठी सुबह से सोच रही थी. बेटे ने मुझे उनके पास आ कर बैठने के लिए आवाज दी.
मैंने किचन से ही जवाब दिया
"बेटा! मेरे ऊपर सब्जी गिर गयी है, मैं जरा नहाने जा रही हूँ. अभी आती हूँ."
यह कह कर मैं अपने कमरे में चली गयी, हुआ तो कुछ नहीं था.
मैंने अपनी अलमारी खोली और तौलिया उठाया. फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैंने जैसे अपने आप एक हरे रंग की मैक्सी उठा ली और बाथरूम में घुस गयी. शायद मेरे दिल ने बाबूजी का प्यार स्वीकार कर लिया था.
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आज मैं अच्छी तरह से नहाना चाहती थी. खूब मल मल कर नहाया और फिर कमरे में आ कर थोड़ा मेकअप भी किया. हरी मैक्सी के ऊपर सेंट लगाया और फिर शर्माती हुई ड्राइंग रूम मैं आ गयी.
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शर्म के कारण मेरे पाँव जैसे मन भर के हो गए थे. बाबूजी ने मुझे हरी मैक्सी पहने देखा तो उनका मुंह एकदम ऐसे चमक गया जैसे कोई हजार वाट का बल्ब जल गया हो. ख़ुशी के मारे उनके मुंह से आवाज भी नहीं निकली. उनका मुंह और ख़ुशी देख कर मेरे मुंह पर भी मुस्कराहट आ गयी.
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बाबूजी तो कुछ बोल ही ना पाए बस मेरी हरी मैक्सी ही देखे जा रहे थे. शर्म के कारण मैंने अपनी नजरें उन से ना मिला पायी और जमीन की तरफ देखती रही.
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मेरे बेटे ने भोलेपन से पुछा
"मम्मी! आप ने मैक्सी क्यों चेंज कर ली?"
मैंने बाबूजी की तरफ देखते हुए कहा
"बेटा! मुझे लगा की मुझे हरे रंग की मैक्सी ज्यादा अच्छी लगेगी। पता नहीं क्यों मेरा इस मैक्सी को पहनने का मन किया रात में."
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यह कह कर मैंने बाबूजी की तरफ देखा, उनकी ख़ुशी तो छुपाये नहीं छुप रही थी. मेरे से उनके सामने खड़ा नहीं रहा जा रहा था. मैं शर्माती हुई अपने कमरे में चली गयी.
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