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Adultery तेरे प्यार में .....

sunoanuj

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Bahut hi shandaar update hai dono bhai रोंगटे खड़े हो गए थे !

अब अगले भाग में क्या नया होगा ?

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 

Tiger 786

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#7

“कोई तो है, कुछ तो कहानी है तेरी जो इतना बड़ा काण्ड कर दिया ” कहा उसने

“बड़ी लम्बी कहानी है मैं बता नहीं पाउँगा तू समझ नहीं पायेगा, फिलहाल दो घडी मुझे उलझने दे अपनी यादो से ” मैने कहा और फिर से खिड़की पर सर टिका लिया. जब गाडी रुकी तो मैंने बाहर देखा . ये सरकारी कोठी थी . नेम प्लेट पर बड़ा बड़ा लिखा था “निशा कुमारी ”

“कुछ समय के लिए तुम्हे यही रहना है ” dsp ने कहा

मैंने बोतल से कुछ घूँट भरे और उतर कर वापिस सड़क की तरफ चल दिया.

Dsp- कहाँ जा रहे हो , तुम्हे यही रहना है

मैं- बड़े लोगो की बस्ती में हम जैसो का कोई काम नहीं . तेरी मैडम से कहना कबीर आज भी उस रस्ते पर खड़ा है जहाँ वो छोड़ गयी थी . ये कोठी बंगले , ये महल कबीर के काम के नहीं

Dsp- रुक जा मेरे बाप कम से कम वो आये तब तक तो रुक जा वर्ना मैं दिक्कत में आ जाऊंगा.

मैं- पानी पीना चाहता हूँ

Dsp- अन्दर तो चलो

मैं – यही पिला दो

Dsp- तू बैठ जरा

मैं पास में रखी कुर्सियों पर बैठ गया . वो अन्दर चले गया . मेरी नजर टेबल पर रखे शादी के कार्ड पर पड़ी. नाम पड़ कर रोक ना सका उसे देखने से . कांपते हुए हाथो से कार्ड को खोला. दिल में उठी पीड़ा को शब्दों में ब्यान करना मुश्किल था . चाचा की लड़की छोटी बहन अपनी का ब्याह का कार्ड था वो . माथे से लगा कर चूमा कार्ड को और फिर सीने से लगा लिया. दुनिया में मुझ सा गरीब शायद ही कोई रहा होगा जिसके पास सब कुछ होकर भी कुछ भी नहीं था . दिल के दर्द को बहने दिया मैंने. मेरी बहन की शादी थी और मुझे ही पता नहीं था.

“पानी ” तभी एक नौकर ने मेरा धयान तोडा

मैं- जरुरत नहीं है, dsp आये तो कहना की ये कार्ड ले गया मैं

वो-साहब, मैं मर जाऊंगा

मैं- मेमसाहब आये तो कहना की कबीर न्योता ले गया. वो कुछ भी नहीं कहेगी तुझे.

मैंने गिलास को गले से निचे किया और कार्ड उठा कर वहां से बाहर आ गया. दिमाग और दिल में अजीब सी जंग छिड़ी थी . निशा इसी शहर में थी हाय रे किस्मत. कमरे पर आया तो रत्ना बेसब्री से मेरा ही इंतज़ार कर रही थी .

“क्या काण्ड कर आया तू पूरी बस्ती में तेरा ही जिक्र हो रहा था ” बोली वो

मैं- देखा मैंने अभी आते हुए.

रत्ना- शोएब को मार दिया तूने

मैं- लाला को भी मारता अगर पुलिस बीच में नहीं आती तो

रत्ना- कौन है तू क्या क्या छिपाया तूने मुझसे

मैं- न बताने की जरुरत न छिपाने की जरुरत शहर छोड़ कर जा रहा हूँ मैं , हाँ एक सिरफिरी आएगी इधर तू बस उस से कहना की जहाँ से कहानी शुरू हुई थी अंत भी वही होगा .

रत्ना- क्या बोल रहा है , कौन आएगी

मैं- क़यामत है वो मैंने जितना कहा उसे बता देना . ये अपनी आखिरी मुलाकात है फिर मिलना हो न हो. इस शहर में तू मेरा परिवार थी .सब कुछ तू थी . मैंने रत्ना को सीने से लगाया और उसके लबो को चूम लिया .

रत्ना- मत जा

मैं- जाना पड़ेगा सफ़र यही तक का था .

मैंने जरुरत का सामान लिया और बस अड्डे की तरफ बढ़ गया. शहर में नाके बंदी थी पर किसी भी पुलिस वाले ने मुझे नहीं रोका कुछ ने तो गले से लगाया कुछ ने मुस्कुराया. खैर, मैंने टिकिट ली और सीट पर बैठ गया.बारिश की वजह से ठंडी सी लग रही थी मैंने खेसी को बदन पर कसा और पीछे छुटते शहर को देखते हुए न जाने कब मेरी आँख लग गयी.

“उठा जा भाई कितना सोयेगा बस आगे नहीं नहीं जाने वाली ” कंडक्टर ने मुझे हिलाया तो होश आया.

“हाँ क्या हुआ ” मैंने लार को चेहरे से हटाते हुए कहा

कंडक्टर- स्टॉप आ गया है

मैंने सर घुमा कर देखा तो धुप खिली हुई थी .

“शुक्रिया ” मैंने कहा और बस से उतर गया. ये मेरा शहर था . पर अपनापन लगा नहीं सब कुछ तो बदल सा गया था . बैग लटकाए मैं बाहर आया. बस अड्डे के सामने काफी बड़ा बाजार बन गया था . खैर, गाँव के लिए टेम्पू पकड़ा और आधे घंटे के सफ़र के बाद मैं अपनी सरजमीं पर खड़ा था . गाँव की मिटटी की महक सीने में इतना गहरे उतरी की जैसे कल ही की तो बात थी . वो बड़ा सा बरगद का पेड़ जिसने मेरे बचपन से जवानी तक सब कुछ देखा था . पास में ही सरकारी स्कूल जिसकी अब नयी बिल्डिंग बन गयी थी . फ्रूट सब्जियों की दूकान पार करते हुए मैं जल्दी ही उस जगह के सामने खड़ा था जिसका इस जीवन में बहुत महत्त्व था . तीन बार घंटी बजाने के बाद मैंने उस चोखट पर अपना माथा रखा और पटो को खडकाने लगा

“कौन है जो भरी दोपहरी में घंटा बजा रहा है . कमबख्तो बरसो से पट बंद है अब इधर कोई नहीं आता नए मंदिर में जाओ ” बूढ़े पुजारी ने बहार आते हुए कहा

“अब बंद नहीं रहेंगे बाबा, ” मैंने पटो को खोलते हुए कहा .

पुजारी ने मुझे देखा और गले से लगा लिया

“जानता था कबीर, तू लौट आयेगा, इंतज़ार ख़तम हुआ इसका भी और तेरा भी .” बाबा ने कहा

मैं- ये तो ये ही जाने

मैंने कुवे से बाल्टी भरी और शिवाले को साफ़ करने लगा. बहुत दिनों बाद आज आत्मा को सकून मिल रहा था .

“बुला तो लिया है तूने मुझे फिर से यहाँ ” मैंने कहा

बाबा- बुलाया है तो आगे पार भी ये ही लगाएगा

मैं- ये जाने

बाबा- कहाँ था इतने दिन तू , वापिस क्यों नहीं लौटा

मैं- सब ख़तम हो गया बाबा. सबका साथ छुट गया . पता चला की घर में ब्याह है तो रोक न सका खुद को

बाबा- हाँ ब्याह तो हैं, तेरा चाचा अब बड़ा आदमी हो गया है बहुत भव्य तैयारिया चल रही है .

मैं – अच्छी बात है ये तो

बाबा- बैठ पास मेरे जी भर कर देखने दे तुझे, बहुत याद किया तुझे. हर आहट ऐसी लगे की जैसे तू आया

मैं- गाँव की क्या खबर

बाबा- गाँव ठीक है मस्त है सब अपने में

मैं- हवेली


बाबा- तू जानता है सब कुछ .तो..................
Lazwaab shandar update
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#8

बैग उठा कर मैंने काँधे पर टांग लिया.

बाबा- अभी तो आया है रुक तो सही .

मैं- आता हु जल्दी ही रात की रोटी साथ खायेंगे.

गाँव के बाजार आकर महसूस किया की आबो हवा बदल गयी थी गाँव की . ईंटो की सड़क पर पक्की हो गयी थी , नालियों का पानी इकठ्ठा नहीं होता था सड़क पर. मेरा गाँव सलीकेदार हो गया था . ये गलिया जहाँ बचपन बीता, जवानी शुरू हुई अब अपनी लग नहीं रही थी. नजर उस दूकान पर पड़ी जहाँ कसेट भरवाने के लिए भीड़ इकठ्ठा होती थी , अब उसका नाम बदल गया था अब रंग बिरंगी सीडी लगी थी . दूकान जिस पर कभी जलेबी, बर्फी और समोसे ही मिलते थे शीशे चढ़ कर आलिशान हो गयी थी . जोहड़ को पार करके मैंने कुंवे पर नीम के पेड़ को सहलाया और उस राह पर चल दिया जहाँ कभी घर होता था. तीन भाइयो की वो हवेली जो कभी मिसाल थी परिवार के प्रेम की , जिसकी चौखट से कभी कोई भूखा नहीं लौटा आज उस हवेली को देख कर रो ही तो पड़ा था उसका वारिस.

वारिस, न जाने क्यों ही मैंने वारिस कहा, जब सब कुछ था तब किसी को कुछ नहीं चाहिए था अब जीती जागती ईमारत जो की घर थी उसे सब भुला गए थे. बरसो पहले इधर पूरा मोहल्ला ही बसा हुआ था पर मैंने देखा की आजकल लोगो की बसाहट इधर उतनी नहीं थी . कुछ घर उजाड़ से पड़े थे , बारिशो में धंसे हुए से कुछ पर ताले थे. खैर, जी भर कर उस ईमारत को देखने के बाद मैंने ऊँची घास से जदोजहद करते हुए दरवाजे तक पहुँच बनाई. पत्थर के दो चार वारो ने ही ताले को आराम दे दिया. दरवाजा खोल कर मैं आँगन में पहुंचा , सब जगह बुरा हाल हुआ पड़ा था . आँगन में जहाँ देखो काई जमी थी . सीलन थी अजीब सी बदबू थी आदमी तो अब रहते नहीं थे इधर तो छोटे मोटे जानवरों का ही ठिकाना थी ये हवेली. कोने में अनाज की टंकी थी धुल से सरोबार. कुछ कमरे खुले थे कुछ पर ताले थे. मैं उस कमरे की तरफ गया जिसे कभी मैं अपना कहता था .एक ताला और तोडना पड़ा मुझे पर एक हैरत भी थी कमरा एकदम सलीके से था , धुल मिटटी का कोई निशान नहीं. मेज पर कुछ किताबे रखी थी, लैंप रखा था . मैंने अलमारी खोली , कुछ कपडे थे . कुछ ख़त थे कुछ फूल थे मुरझाये हुए, एक दराज में कुछ कसेट पड़ी थी . खातो को मैंने पढना शुरू किया कुछ मैंने लिखे थे कुछ जवाब थे. एक दौर था जब मैं आशिकी में था एक दौर है जब मैं अकेला हु. खिड़की जो पीछे गली में खुलती थी खोली मैंने थोड़ी सी हवा आई. बदन में थकान तो थी ही दो पेग लगाने के बाद मैं पलंग पर ही लम्बा हो गया.

आँख खुली तो पाया की ये अगली सुबह थी , बारिश शायद कुछ देर पहले ही थमी होगी. हाथ मुह धो ही रहा था की पुजारी बाबा को अन्दर आते देखा

मैं- बाबा तुम यहाँ

बाबा- रात को तो तू आया नहीं , जानता था इधर ही मिलेगा तू चाय ले आया .

मैं- मैं बस आने ही वाला था आपके पास

बाबा- कोई बात नहीं समझता हूँ इतने दिन बाद आया है तो लगाव लाजमी है .

मैं-ताऊ चाचा सब छोड़ गए इधर से .

बाबा- ताऊ तेरे की तो मौत हो गयी, चाचा तेरा कैसा है तू जानता ही है .

मैं- कब कैसे

बाबा- तेरे जाने के साल भर बाद की बात है खेतो में पड़ा मिला था . न कोई बिमारी, ना कोई घाव किसी को कुछ समझ नहीं आया.

मैं- और ताई

बाबा- उसके बच्चे तो बाहर गए कमाने अकेली ही रहती है , इधर आती है दो-पांच दिन मे. देख कर चली जाती है .

तो वो ताई ही थी जो मेरे कमरे की सफाई करके रखती थी.

“और भाई-भाभी उनका क्या ” मैंने कहा

बाबा-गाँव से थोड़ी दूर उन्होंने मकान बना लिया है उधर ही रहते है , किसी से कोई मेलजोल नहीं रखते . अपने काम धंधे में मगन, गाँव में चाहे कुछ भी हो वो लोग आते नहीं ना किसी की मौत में न किसी की ख़ुशी में .

मैं- बढ़िया है फिर तो

बाबा- क्या कहे अब, किसने सोचा था ये परिवार ऐसे दिन देखेगा.

मैंने चाय पी, थोडा समय बाबा संग बाते की और बाबा को समझाया की हवेली की सफाई करवा दे उसके बाद मैं वहां से चल दिया. ताऊ की मौत से मुझे दुःख तो बहुत हुआ था पर जो जा चूका था उसका अब क्या अफ़सोस करना, बेशक मुझे ताई से मिलना चाहिए था पर फिलहाल मैं उस जगह पर जाना चाहता था जो मुझे बहुत प्रिय थी . घूमते हुए मैं अपने खेतो पर जा पहुंचा जहाँ की हालत देख कर मुझे रोना आ गया. खेत , खेत रहे ही नहीं थे. मेरी तरह समय शायद उनका भी साथ छोड़ गया था . कभी जहा तक मैं देखता फसल खड़ी दिखती थी अब मैं जहाँ तक देख पा रहा था था खरपतवार थी , कीकर के पेड़ थे कुछ और किस्मे थी कहने का मतलब सब बर्बाद था. कुवे पर बने कमरे का दरवाजा खुला था अन्दर बदबू थी जानवरों ने अपना आशियाना बना लिया था .

वापसी में थोड़ी देर पेड़ वाले चबूतरे पर बैठ गया. जेब से पव्वा निकाल कर दो घूँट भरे ही थे की मेरी नजर सामने से आती औरत पर पड़ी उसे जो देखा दिल ठहर सा गया. थोड़ी पास और आई , हमारी नजरे मिली और समय जैसे रुक सा गया...................
 

Luckyloda

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बैग उठा कर मैंने काँधे पर टांग लिया.

बाबा- अभी तो आया है रुक तो सही .

मैं- आता हु जल्दी ही रात की रोटी साथ खायेंगे.

गाँव के बाजार आकर महसूस किया की आबो हवा बदल गयी थी गाँव की . ईंटो की सड़क पर पक्की हो गयी थी , नालियों का पानी इकठ्ठा नहीं होता था सड़क पर. मेरा गाँव सलीकेदार हो गया था . ये गलिया जहाँ बचपन बीता, जवानी शुरू हुई अब अपनी लग नहीं रही थी. नजर उस दूकान पर पड़ी जहाँ कसेट भरवाने के लिए भीड़ इकठ्ठा होती थी , अब उसका नाम बदल गया था अब रंग बिरंगी सीडी लगी थी . दूकान जिस पर कभी जलेबी, बर्फी और समोसे ही मिलते थे शीशे चढ़ कर आलिशान हो गयी थी . जोहड़ को पार करके मैंने कुंवे पर नीम के पेड़ को सहलाया और उस राह पर चल दिया जहाँ कभी घर होता था. तीन भाइयो की वो हवेली जो कभी मिसाल थी परिवार के प्रेम की , जिसकी चौखट से कभी कोई भूखा नहीं लौटा आज उस हवेली को देख कर रो ही तो पड़ा था उसका वारिस.

वारिस, न जाने क्यों ही मैंने वारिस कहा, जब सब कुछ था तब किसी को कुछ नहीं चाहिए था अब जीती जागती ईमारत जो की घर थी उसे सब भुला गए थे. बरसो पहले इधर पूरा मोहल्ला ही बसा हुआ था पर मैंने देखा की आजकल लोगो की बसाहट इधर उतनी नहीं थी . कुछ घर उजाड़ से पड़े थे , बारिशो में धंसे हुए से कुछ पर ताले थे. खैर, जी भर कर उस ईमारत को देखने के बाद मैंने ऊँची घास से जदोजहद करते हुए दरवाजे तक पहुँच बनाई. पत्थर के दो चार वारो ने ही ताले को आराम दे दिया. दरवाजा खोल कर मैं आँगन में पहुंचा , सब जगह बुरा हाल हुआ पड़ा था . आँगन में जहाँ देखो काई जमी थी . सीलन थी अजीब सी बदबू थी आदमी तो अब रहते नहीं थे इधर तो छोटे मोटे जानवरों का ही ठिकाना थी ये हवेली. कोने में अनाज की टंकी थी धुल से सरोबार. कुछ कमरे खुले थे कुछ पर ताले थे. मैं उस कमरे की तरफ गया जिसे कभी मैं अपना कहता था .एक ताला और तोडना पड़ा मुझे पर एक हैरत भी थी कमरा एकदम सलीके से था , धुल मिटटी का कोई निशान नहीं. मेज पर कुछ किताबे रखी थी, लैंप रखा था . मैंने अलमारी खोली , कुछ कपडे थे . कुछ ख़त थे कुछ फूल थे मुरझाये हुए, एक दराज में कुछ कसेट पड़ी थी . खातो को मैंने पढना शुरू किया कुछ मैंने लिखे थे कुछ जवाब थे. एक दौर था जब मैं आशिकी में था एक दौर है जब मैं अकेला हु. खिड़की जो पीछे गली में खुलती थी खोली मैंने थोड़ी सी हवा आई. बदन में थकान तो थी ही दो पेग लगाने के बाद मैं पलंग पर ही लम्बा हो गया.

आँख खुली तो पाया की ये अगली सुबह थी , बारिश शायद कुछ देर पहले ही थमी होगी. हाथ मुह धो ही रहा था की पुजारी बाबा को अन्दर आते देखा

मैं- बाबा तुम यहाँ

बाबा- रात को तो तू आया नहीं , जानता था इधर ही मिलेगा तू चाय ले आया .

मैं- मैं बस आने ही वाला था आपके पास

बाबा- कोई बात नहीं समझता हूँ इतने दिन बाद आया है तो लगाव लाजमी है .

मैं-ताऊ चाचा सब छोड़ गए इधर से .

बाबा- ताऊ तेरे की तो मौत हो गयी, चाचा तेरा कैसा है तू जानता ही है .

मैं- कब कैसे

बाबा- तेरे जाने के साल भर बाद की बात है खेतो में पड़ा मिला था . न कोई बिमारी, ना कोई घाव किसी को कुछ समझ नहीं आया.

मैं- और ताई

बाबा- उसके बच्चे तो बाहर गए कमाने अकेली ही रहती है , इधर आती है दो-पांच दिन मे. देख कर चली जाती है .

तो वो ताई ही थी जो मेरे कमरे की सफाई करके रखती थी.

“और भाई-भाभी उनका क्या ” मैंने कहा

बाबा-गाँव से थोड़ी दूर उन्होंने मकान बना लिया है उधर ही रहते है , किसी से कोई मेलजोल नहीं रखते . अपने काम धंधे में मगन, गाँव में चाहे कुछ भी हो वो लोग आते नहीं ना किसी की मौत में न किसी की ख़ुशी में .

मैं- बढ़िया है फिर तो

बाबा- क्या कहे अब, किसने सोचा था ये परिवार ऐसे दिन देखेगा.

मैंने चाय पी, थोडा समय बाबा संग बाते की और बाबा को समझाया की हवेली की सफाई करवा दे उसके बाद मैं वहां से चल दिया. ताऊ की मौत से मुझे दुःख तो बहुत हुआ था पर जो जा चूका था उसका अब क्या अफ़सोस करना, बेशक मुझे ताई से मिलना चाहिए था पर फिलहाल मैं उस जगह पर जाना चाहता था जो मुझे बहुत प्रिय थी . घूमते हुए मैं अपने खेतो पर जा पहुंचा जहाँ की हालत देख कर मुझे रोना आ गया. खेत , खेत रहे ही नहीं थे. मेरी तरह समय शायद उनका भी साथ छोड़ गया था . कभी जहा तक मैं देखता फसल खड़ी दिखती थी अब मैं जहाँ तक देख पा रहा था था खरपतवार थी , कीकर के पेड़ थे कुछ और किस्मे थी कहने का मतलब सब बर्बाद था. कुवे पर बने कमरे का दरवाजा खुला था अन्दर बदबू थी जानवरों ने अपना आशियाना बना लिया था .

वापसी में थोड़ी देर पेड़ वाले चबूतरे पर बैठ गया. जेब से पव्वा निकाल कर दो घूँट भरे ही थे की मेरी नजर सामने से आती औरत पर पड़ी उसे जो देखा दिल ठहर सा गया. थोड़ी पास और आई , हमारी नजरे मिली और समय जैसे रुक सा गया...................
गांव में तो सब बर्बाद हुआ प़डा हैं... क्या हवेली क्या खेत.....


अब मिलने kon आया है..... ये भी देखना दिलचस्प है शायद निशा हो...


.या फिर कोई 1 तरफा प्यार
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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अखिरकार कबीर के अतीत आकर मिल ही गया वर्तमान से......


कैसा होगा उसका अतीत और उसकी प्रेम कहानी जिस कारण से कबीर सालों से गुमनामी के साथ जी रहा हैं.



इंतजार रहेगा 1 और टूटी हुई दास्तां का.......
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