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Adultery छुटकी - होली दीदी की ससुराल में

komaalrani

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ये सौवां भाग ( ननद की बिदाई- बाँझिन का सोहर पृष्ठ १०३५) जैसा बन पड़ा आप लोगों की सेवा में हाजिर है और इन पोस्टों के लिखने के बाद कम से कम मैं ज्यादा कुछ कहने, बोलने की हालत में नहीं हूँ। हाँ बस कह सकती हूँ, जैसा कुछ आप लोगों को लगे, मन में महसूस हो तो हो सके तो दो चार लाइन लिख जरूर दीजियेगा।
 
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motaalund

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Vese to me nahi chahti ki ye story khatam ho. Par agar next story jiske kuchh ans aapne dale vo mene bhi padhe he. Agar vashikaran ko bhi isme istamak karo to maza aa jaega.
जो शुरू हुआ है उसका अंत भी होगा...
और तभी कुछ नया भी होगा....

और नयापन एक नई ताजगी और मानसिक संतुष्टि देगा.....
 

motaalund

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रजत जड़ित वह द्वार शायद गजराजों के जोर से भी नहीं हिलता, लेकिन अपने आप, एक अलग ढंग की रौशनी और दरवाजे के ठीक ऊपर एक तोते की आकृति,... जैसे पन्ने का हो, पल भर के लिए चमका, नीचे कुछ मंत्र सा लिखा,... और उसी समय भाभी ने गुड्डो की ओर दिखा के कुछ इशारा किया,



ऊँची सी चौखट, गुड्डो को गोद में उठाकर मैं द्वार के पार, बांये भाभी,



बिन बोले जैसे मन मना कर रहा हो पीछे मुड़ के देखने को,

जीवन और समय आगे ही चलते हैं,

और अब आगे ढेर सारे पेड़, अशोक के छोटे छोटे लाल फूलों से लदे, आम्र मंजरी से भरे पड़े ढेर सारे आम के पेड़, उन सब पर सैकड़ों तोते,... चमेली की बेल और लताओं पेड़ों का एक गझिन गुम्फन लेकिन उनको पार करती सूरज की विदा लेती सुनहली किरणे, और उन पेड़ों के बीच एक बहुत ही पुराना मंदिर,

एक बहुत ही अलग ढंग की हवा, सुरभित मंद मलय समीर,आम की बौर की महक के साथ चम्पा और चमेली की महक,

भाभी ने इशारा किया और पूजा की सामग्री जो भाभी के हाथ में थी उसके अलावा हमारे पहने कपडे, झोले सा गुड्डो का पर्स , बाकी सब सामान एक पेड़ के नीचे रख दिया, और भाभी के साथ हम दोनों, पेड़ों का झुरमुट और उसके ठीक बीचोबीच एक पुराना सा मंदिर और उसके शिखर पर डूबते सूर्य की किरणें पड़ रही थी और सूरज की उन किरणों से वो सोने सा चमक रहा था।

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एक मृदुल स्मिति,... और फिर वही आवाज,



' ये तो तेरा कर्म है और कर्मों का फल भी,... "



जैसे बच्चा माँ की गोद में सर घुसेड़े, तोड़े मरोड़े, बस उसे अच्छा लग रहा और कुछ भी समझ में न आ रहा हो,...



काम,... शक्ति,.. आनंद,... पुरुष,... बस कुछ कुछ,... और ये भी

स्मरण और विस्मरण दोनों ही जरूरी हैं और दोनों एक दूसरे के पूरक,... यहाँ से जाते ही सब कुछ विस्मृत के गर्त में और कुछ यादों का धंधलका जिसमें याद भी न रहे की क्या याद है या क्या कल्पना,...

फिर वो देसी शराब के चार,... मैं चढ़ा रहा भी था और देवता के प्रसाद का पान भी, अंजुरी रोप कर के,.. ... मैंने और गुड्डो ने साथ वो भांग की मिठाई,... जैसे एकदम संवेदन शून्य होकर या संवेदना की आखिरी चढ़ाई पार कर के,



पुजारी जी ने कुछ भाभी को इशारा किया और उन्होंने गुड्डो का हाथ पकड़ के,... वो छोटा सा सफेद बिन सिला कपडा जो कटि प्रदेश के नीचे बस लपेटा सा,... और गुड्डो का हाथ लग के, सरसरा के जमीन पर जहाँ चमेली और अशोक के फूल बिख्ररे थे,... वही मदिरा प्रसाद, मेरी देह से होकर,कटि प्रदेश के नीचे बस बूँद बूँद होकर , जैसे आसव टपक रहा हो, ... और ओक लगाकर ,... वहां से गिरता टपकता , गुड्डो,.. और फिर भाभी भी,...
नई कहानी में नया थीम...
एकदम हट के...
रोमांचक... उत्तेजक... सिहरा देने वाला..
बेचैन कर देने वाला...
 

motaalund

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Esa mahesua huaa jese incast karaya ja raha he premika or uske pariwar ki taraf se jo start sadhuo ke bich se gujarna vo duaa vo mahol kafi maza aa raha he. Par story me kuchh chal kapat bhi hoga to maza aa jaega. Kyo ki aap ki ek bhi story me gum or dukh dekhne ko nahi mila .aapne shadi or tyohare ke tango ko darsaya he. Kristo ki nazakat or pitam sang prem dikhaya. Dill kare to kuchh or bhi tray karo.

Kyo ki aap ek unic righter ho. Skill ko dusri fold me bhi ajmao
अनूठा... अनुपम.. अपूर्व....
 

motaalund

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20,0000 Likes, Thanks Frnds
२ लाख व्यूज पर सहस्र बधाइयाँ....
 

Shetan

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जो शुरू हुआ है उसका अंत भी होगा...
और तभी कुछ नया भी होगा....

और नयापन एक नई ताजगी और मानसिक संतुष्टि देगा.....
Ye to shanshar ka niyam he
 

Shetan

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Random2022

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भाग २४

देवर भाभी की होली




और हाथों में रंग ले के वो मेरे पीछे, मैंने भागने की बचने की कोशिश की लेकिन बस इतनी की, वो थोड़ी देर में ही मुझे पीछे से दबोच ले और उसके दोनों हाथ मेरे रसमलाई ऐसे गालों पर, देवर उसी लिए तो होली का इन्तजार करते हैं , इस बहाने कम से कम छूने का भाभी के गाल मलने का मौका मिल जाता है,... और देवर थोड़ा हिम्मती हो,..


मेरा देवर हिम्मती तो था लेकिन झिझकता भी था, और हाथ अगर छुड़ाने के बहाने मैंने सरका के नीचे न किया होता तो वो वहीँ गालों पे उलझा होता, खैर मेरे चिकने गोरे गोरे गाल इतने रसीले हैं ही, और हाथ उसके वहीँ आके जहाँ वो भी चाहता था , मैं भी चाहती थी,


और मैं अकेली थोड़ी थी,

अगर कोई भौजाई ये कहे की वो नहीं चाहती की उसके देवर चोली में हाथ डाल के उसके जोबन पे रंग लगाएं , जुबना का रस लूटें तो इसका मतलब वो सरासर झुठ बोल रही है और उसे कौवा जरूर काटेगा,...




अब वो हाथ हटाना चाहता भी तो , उसका हाथ रोकने के बहाने, उसके हाथ के ऊपर से उसका हाथ पकड़ के मैं उसका हाथ अपने उभारों पर दबा रही थी,..

. और इस धींगामुश्ती में ब्लाउज तो मेरी ननद ने ही फाड़ दिया था, किसी तरह लपेट के बाँध के मैंने अपने जोबन को छिपाया था, बस ब्लाउज सरक के खुल के अखाड़े में गिर गया, और उस के रंग लगे हाथ मेरे उभारों पे,




अब देवर भाभी की देवर भाभी वाली होली शुरू होगयी थी, ताकत तो बहुत थी उसमें और मेरे पहाड़ ऐसे पत्थर से कड़े जोबन तो हरदम वो ललचा के देखता था,आज मौका मिल गया था ,

मैंने अपने हाथ उसके हाथों से हटा लिया पर अब भी वो रंग लगे हाथों से कस के मेरी दोनों चूँचियों को रगड़ रगड़ के मसल मसल के, और उसी को क्यों दोष दूँ मैं तो चाहती थी उससे मिजवाना, मसलवाना,


पर अखाड़े के बगल में ही एक क्यारी में पानी पड़ा हुआ था एकदम कीचड़, वहीँ नाली भी थी कीच से भरी, कुछ मैं फिसली, कुछ जान बूझ के गिरी




तो साथ में देवर को भी लेके, और वो एक तो इतना सीधा , मुझे बचाने के लिए वो नीचे गिरा मैं उसके ऊपर, .. पूरी तरह लेटी, ...

मैंने अपना पूरा वजन उसके ऊपर डाल के दबा लिया , साडी भी मेरी सरक के सिर्फ पतले छल्ले की तरह कमर पे, मेरी जाँघे पैर पूरी तरह खुले, बस दोनों जाँघे फैला के उसकी कमर के दोनों ओर मैं एकदम चढ़ी, और जो डरते सहमते रंग उसने मेरे उभारो में लगाया था वो सब अपने जोबन को उसकी चौड़ी छाती पर रगड़ रगड़ कर,

लेकिन गाँव की होली खाली रंग की थोड़ी होती है, और बस बगल की नाली से कीच निकाल निकाल के , मैंने ... हम दोनों एकदम एक दूसरे में धंसे, वो कीचड़ में धंसा, मुस्कराता, ... और मै नाली से कीच निकाल के उसकी छाती पर लोंदे का लोंदा, उसके ऊपर बैठी,... वो मेरे रंगे पुते गदराये उभारों को देख के ललचा रहा था , और अबकी खुद मैंने अनावृत्त उरोजों को पकड़ के क्या मस्त रगड़ना मसलना शुरू किया, उसके हाथ मेरे जोबन में उलझे और मैं दोनों हाथों से कीच उसके पहले तो सीने पर, फिर कंधे और गालों पर , बालों पर,...




बदमाश वो,

अब अपनी सारी शराफत अपनी महतारी की गाँड़ में पेल के उसने बस मुझे पकड़ के अपनी ओर खींच लिया और अपने सीने से रगड़ रगड़ कर,... और अब वो ऊपर था , मैं कीचड में और उसकी देह में जो रच रच के मैंने कीच लगाई थी वो सब उसकी देह से मेरी देह पर, मैं भी कस के उसको पकड़ के अपने बड़े बड़े गदराये उभार उसके चौड़े सीने पर रगड़ रही थी, उसने मुझे कस के पकड़ रखा था, मैंने भी उसे कस के भींच रखा था, और उसे पकडे दबोचे मैंने पलटा मारा,.... और एक बार फिर वो नीचे मैं ऊपर,




मैंने अबतक अपनी कितनी ननदों की शलवार और साया का नाड़ा खोला था तो गाँठ खोलने में मैं भी, और जब तक वो सम्हलता, उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था, लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ,

और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,...

लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी ,

लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,... कड़ा तो लोहे का रॉड, पर अभी तो होली होनी थी




तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,

मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,




बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...
Aag laga rakhi h komal ji apne
 

Random2022

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देह की होली



उसकी लंगोट की गाँठ,...



नहीं नहीं पूरी गाँठ नहीं खुली, दुष्ट ने बहुत कस के बांधा था,





लेकिन ढीली इतनी हो गयी थी, की कीचड़ से भरा मेरा हाथ, और भौजाई की होली असली वाली शुरू हो गयी थी,... लंगोट में हाथ डाल के मैंने उसे पकड़ लिया जिसके बारे में सुना इतना था लेकिन अबतक न देखा था न छुआ था, देख तो अभी भी नहीं पा रही थी , लेकिन छूने पकड़ने से ही अहसास हो गया की देवर की माँ भी मेरी सास की तरह , गदहे घोड़े से चुदवाने के बाद बियाई होंगी इसको,...


कड़ा तो लोहे का रॉड,




पर अभी तो होली होनी थी तो पहले तो कीचड़, और हाथ फैला के बगल में रखी पेण्ट और रंग की टूयब तो देवर के बाकी देह पर चार पांच कोट रंग पेण्ट वार्निश का चढ़ा था तो यही क्यों बच जाता,



और कीचड़ से निकल एक बार फिर हम दोनों अखाड़े में थे लेकिन मैंने झुक के कान में उसके बोल दिया था ,



मैं बड़ी हूँ , डालूंगी मैं जैसे तेरी बहने चुपचाप डलवाती है वैसे तू भी डलवा आज,



बेचारा देवर,... और देह की होली शुरू हो गयी।



और क्या होली हुयी देवर भाभी के बीच, कुछ देर तक तो देवर हिचका, झिझका,... लेकिन फिर भौजाई की बैंड बजा दी,...



शुरुआत तो मैंने ही की और उसे आँख से भी बरज दिया , मुंह से बोल के भी साफ़ साफ़ मना कर दिया और हाथ से भी पकड़ के रोक दिया, की मैं बड़ी हूँ, भौजाई हूँ, जो करुँगी मैं करुँगी , डालूंगी मैं वो अपनी बहनों की तरह चुपचाप डलवा ले,

और अखाड़े में उसे पटक के अखाड़े की मिटटी में ही गिरा दिया, और चढ़ गयी ऊपर,...



लंगोट रंग और कीच लगाने के लिए तो मैंने पहले ही ढीला कर दिया था, अबकी खोल के दूर फेंक दिया, भौजी देवर के बीच में लंगोट का क्या काम,... साड़ी मेरी छल्ले की तरह बस कमर से फंसी,


और फटा पोस्टर निकला हीरो,... और क्या हीरो था,


सच में जबरदस्त, लम्बाई तो मैंने पहले ही नाप ली थी, मेरे बीत्ते से भी एकाध इंच बड़ा ही रहा होगा, लेकिन जो देख के दिल दहल गया, वो था सुपाड़ा खूब मोटा तो था ही एकदम कड़ा, धूसर, बस पेशाब वाला छेद हलका सा दिखता था, लाल गुलाबी,




और अब मैं समझी मेरी एक से एक छिनार ननदों की भी मेरे इस देवर के आगे क्यों फटती थी, इस मोटे कड़े सुपाड़े को लीलने में भी भोंसड़ी वालियों की फूंक सरक जाती होगी,... पर मैं तो भौजाई थी, ...

अखाड़े में का देसी कडुआ तेल उठा के,... नहीं सुपाड़े पे नहीं पोता मैंने , ... सुपाड़ा दबा के छेद खोल के, जैसे मेरी देवर की माँ बचपन में लगाती होंगी, ... बस उसी तरह टप टप, बूँद बूँद सरसों का तेल,... मुझे मालूम था खूब छरछरा रहा होगा, छरछराये , मेरी भी तो परपरायेगी जब ये पेलेगा,... और फिर बाकी का तेल अपनी हथेली में लगा के बाकी के शिश्न पे,एकदम जड़ से लेकर,... जैसे पहलवान अखाड़े में कुश्ती लड़ने से पहले ढेर सारा तेल चुपड़ते हैं,




और मैंने अपनी गुलबिया में भी दो ऊँगली में ढेर सारा तेल चुपड़ के, एकदम अंदर तक, ...

असल में जो लौंडिया चुदने में चिल्लाती हैं एक तो छिनरपना और नौटंकी, स्साली शुद्ध नौटंकी और दूसरे, तैयारी नहीं करतीं चुदवाने के लिए जैसे सादी बियाह खाली मरद के चोदने के लिए होता है, लड़की को तो कुछ चहिये ही नहीं, मेरी तो जिस दिन से से इन लोगों ने लड़की देख के हाँ कहा था, बस तिलक बरीक्षा तो दूर, बस उसी दिन से, भाभियाँ तो छोड़िये, माँ मेरी उन से भी ज्यादा, गुलबिया को तेल पिलाया की नहीं, चिक्कन मुककन किया की नहीं,...



हाँ, देवर के सुपाड़े के लिए मेरी जीभ, होंठ, मुंह थे न,...


पहले वही पेशाब वाले छेद पर, जीभ की टिप डाल के जो सुरसुरी की मेरे देवर की महतारी की फट गयी,




उसके बाद जीभ से लपड़ सपड़ सुपाडे को चाट चाट के अपने थूक गीला कर दिया, और साथ में मेरे तेल लगे हाथ, देवर के लंड को मुठिया मुठिया के , बहुत मोटा बांस था, पूरी तरह से मुट्ठी में नहीं आ पा रहा था,...





और फिर भौजाई चढ़ गयी देवर की बांस की पिचकारी के ऊपर, मोटा मूसल,... लेकिन देवर पहलवान था तो भौजाई भी उस अखाड़े के जबरदस्त खिलाड़न,...

मैंने पहले दो ऊँगली डाल के अपनी बुर की फांको को फैला दिया, एकदम कैंची की खुली फाल की तरह, पूरी ताकत से,जाँघे भी पूरी तरह खुलीं,... और मेरी रसीली फांकों के बीच बस मैंने सुपाड़े को फंसा दिया, पहाड़ी आलू ऐसा मोटा सुपाड़ा, ... बस एक तिहाई फंसा होगा, पर इतना काफी था मेरे लिए, ...

अरे गन्ने अरहर के खेत में कुँवारी नयी उमर वाली जब जांघ के नीचे आती है तो गाँव के लौंडे बस , इतना भी सुपाड़ा भी घुस जाए तो फिर तो लड़की चाहे जितना रोये गरियाये , दुहाई दे, कोर्ट पुलिस का , बाप महतारी का नाम ले , बिन चोदे नहीं छोड़ते

तो मैं इत्ते मस्त देवर को क्यों छोड़ती,


तो मैंने भी नहीं छोड़ा,

बस गहरी सांस ले के, देवर के दोनों हाथ पकड़ के, ये मान के की आज इज्जत की बात है अगर मैंने इसकी इज्जत आज न लूटी , ... और पूरी ताकत से धक्का मार दिया,




चुदाई में जैसे लंड की लम्बाई मोटाई के साथ कमर का जोर और चूतड़ की ताकत लगती है वही बात जब औरत ऊपर होती है , तो मेरी कमर की ताकत किसी मर्द से कम नहीं थी, ...

गप्पांक, दो तीन धक्के और सुपाड़ा पूरा अंदर,... लेकिन उतने में ही मेरी माँ बहन सब चुद गयीं। लग रहा था मेरी बुर की एक एक मांसपेशियां फट के अलग अलग हो जाएंगी, जैसे किसी ने एक नहीं दो दो मुट्ठियां एक साथ मेरी बुर में जबरदस्ती पूरी ताकत से ठेल दी हों,... दर्द जाँघों तक फ़ैल गया था, लेकिन मैं जानती थी अगर इस समय मैं ज़रा भी चीखी, दर्द मेरे चेहरे पर आया तो मेरा ये देवर,... फिर कभी किसी लड़की की ओर मुंह भी नहीं करेगा,


दर्द मैं पी गयी, घूँट घूँट, औरत का जनम ही दर्द पीने के लिए होता है,


और फिर मेरे तरकश में सिर्फ एक ही तीर थोड़े ही थे , इस मर्द के लिए,... मेरे जोबन पर तो जान देता था वो, बस उसके दोनों हाथ अपने हाथों से खींच के मैंने अपनी भरी भरी छातियों पर रख दिया, और जिस तरह से उसे मुस्करा के देखा, कोयी भी पागल हो जाता,... और मेरा देवर तो पहले ही पागल था भाभी के जुबना पर, पहले तो झिझकते हुए उसने पकड़ा कुछ देर सहलाया, फिर पूरी ताकत से, सच्च में असली मर्द, जिस लड़की के हिस्से आएगा न उसकी जवानी धन्य हो जायेगी, ...




और मेरी बुर को भी अब उस सुपाड़े की आदत पड़ गयी थी, एक दो बार मैंने अपनी बुर को टाइट, ढीला किया , फिर देवर की कमर पकड़ के, नहीं धक्के नहीं मारे बस सरकना,... जैसे नटिनी की जवान लड़की सरसर सरसर बांस पर सरकती है न मेले में, बस उसी तरह, फिर अच्छी तरह से सरसों के तेल से पोत पोत के मैंने चिकना कर दिया था, ... पूरी ताकत मैं लगा रही थी, लेकिन मैं भी,... किसी आदमी का जितना होता है उतना तो मैं घोंट गयी थी , छह सात इंच, पर उसका तो बांस था,...
Bahut mast or achhe se ghont liya, lekin itne se kya hoga. Poora lena hoga
 

Luckyloda

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भाग ३३ अरविन्द और गीता की इन्सेस्ट गाथा

सांझ भई घर आये



गीता ने कुछ बोलने की कोशिश की पर माँ ने अनसुनी कर दी और सिर्फ ये बताया की वो आज नहीं आ रहीं है,... और ये सुन के मारे ख़ुशी के भाई ने गीता की चूँचियाँ कस के दबा दी , ... और गालों पर के मीठी सी चुम्मी ले ली, ... वैसे तो गीता भी कुछ जवाब देती पर माँ का फोन ऑन था और वो समझदार थी उसने साफ़ साफ़ पूछ लिया,...

" माँ , मामा के यहाँ सब ठीक है , मामी लौट आयीं क्या ,... "




" नहीं नहीं , वही तो , इत्ती बारिश हो गयी है यहाँ भी बहुत हालत खराब है,... और तेरी मामी के घर का तो रस्ता बंद हो गया है , उनका फोन आया था की उनके आने में दस बारह दिन लग सकते हैं,... और जिस काम के लिए मायके गयी थीं वो तेज बारिश के चलते हुआ भी नहीं , यहाँ कोई है नहीं तेरे मामा अकेले हैं , इस लिए देख ,... दस दिन तो लग जाएंगे मुझे, हो सकता है दो चार दिन ज्यादा ही लग जाएंगे , तुम लोग सम्हाल लोगे न , कोई परेशानी तो नहीं होगी तुम दोनों को,.... "




उधर से जवाब मिला।



ऊँगली में गीता के निपल पकड़ के मस्ती से घुमाते हुए भाई ने बोला , ...

" नहीं माँ , तू चिंता न कर मैं हूँ न घर का बाहर का सब मैं देख रहा हूँ , आज दिन में खेत पे भी गया था , बाग़ में भी,... "



" अरे मेरा बेटा बड़ा हो गया , " दुलराते हुए माँ की आवाज आयी उधर से ,...

लेकिन पीछे से शायद उनके मामा की आवाज आ रही थी,...' आओ न "

गीता क्यों पीछे रहती,वो भी बोली,...

" माँ आपकी भी बेटी भी बड़ी हो गयी है , आप आराम से आइये हम लोगों की चिंता को कोई जर्रूरत नहीं ,... बस एक बात है,... "




माँ फोन रखने वाली थीं की गीता की बात सुनने के लिए रुक गयीं , और गीता ने अपनी बात पूरी कर दी,...

" भैया को बोल दे न ,... मुझे मारेगा नहीं ,... "

और अब उधर से खिलखिलाने की आवाज आयी और उन्होंने अपने बेटे से कहा,...

" सुन, अपनी बहन को कस के मारना , हलके से इसके ऊपर असर नहीं होता,... "



और बिटिया को बोला, ... \

" भैया की सब बात मानना , और मारेगा तो क्या हुआ तेरा सगा भाई है , हाँ चल मैं बोल देती हूँ सुन मारना तो प्यार से और ज्यादा दर्द हो तो बाद में सहला भी देना,... "


ये कह के उन्होंने हँसते हुए फोन काट दिया



और यहाँ तो ख़ुशी की लहर, ... कस कस के बहन की चूँची मसलते हुए भाई बोला,...
" अब तो दस दिन तक तेरी,... "




" तो डरती हूँ क्या तेरे से कर लेना जो तेरी मर्जी हो ,... "नीचे दबी खिलखिलाती बहन बोली ,...

लेकिन फिर अगले ही पल निकल गयी और बोली , अब बाकी की मस्ती रात को,.. अभी मैं खाना चढ़ा देती हूँ , अभी ग्वालिन भौजी भी आती होंगी, भैंस को दूह के ,... "





भाई भी बाहर निकल गया , बारिश अभी रुकी थी , खेत के काम बहुत होते हैं , ....

गाँव में रात बहुत जल्दी होती है और बारिश के दिन में तो और ,..आठ बजे तक खाना बना के खा खिला के , बर्तन वर्त्तन कर के गीता निपट गयी और भैया के बिस्तर में

लेकिन भैया ने आज कुछ और सोच रखा था, बस सीधे उसने प्रेम गली में मुंह लगा दिया,...

पिछले २४ घंटे में बहन के ऊपर छह बार से ज्यादा चढ़ चुका था, इसलिए न उसे अब जल्दी थी चोदने की न बहना को चुदवाने की, आज तो खूब रस ले लेकर इस कच्ची कली का मज़ा लेना चाहती था , और इसलिए आराम से पहले सीधे जाँघों को फैला के मुंह लगा दिया कभी जीभ से चाटता, कभी दोनों फांको को फैला के जीभ से चोदता , कभी क्लिट को होंठों के बीच दबा के चूसता ,



वो छटपटा रही थी , तड़प रही थी , पर यही तो वो चाहता था , उसे पागल कर देना इतना पागल कर देना की खुद आये और उसका लंड मुंह में ले कर चूसे, उसके ऊपर चढ़ के चोदे, एकदम बेशर्म होके उसके लंड की दीवानी हो जाए,...
Bhut shandaar update..... komal ji
 

Luckyloda

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चटोरा भाई





आज तो खूब रस ले लेकर इस कच्ची कली का मज़ा लेनाचाहता था ,

और इसलिए आराम से पहले सीधे जाँघों को फैला के मुंह लगा दिया कभी जीभ से चाटता, कभी दोनों फांको को फैला के जीभ से चोदता ,

कभी क्लिट को होंठों के बीच दबा के चूसता ,





वो छटपटा रही थी , तड़प रही थी , पर यही तो वो चाहता था , उसे पागल कर देना इतना पागल कर देना की खुद आये और उसका लंड मुंह में ले कर चूसे, उसके ऊपर चढ़ के चोदे, एकदम बेशर्म होके उसके लंड की दीवानी हो जाए,...


कस के उसने अपने दोनों मजबूत हाथों से बहन की कोमल कलाइयों को कस के दबोच रखा था, इंच भर भी नहीं हिल सकती थी , छटपटाये चाहे जितना तड़पे चीखे,...



चूस चूस के वो उसे झाड़ने के कगार पे ले आता , फिर छोड़ देता,....


और थोड़ी देर बाद फिर जीभ उसी तरह कभी फांकों पे, कभी अंदर





और थोड़ी देर में गीता फिर बिस्तर पे अपने चूतड़ रगड़ती, गहरी गहरी साँसे लेती लेकिन वो बस बार बार उसे झड़ने के कगार पे ला के रुक जाता , जब तक गीता ने खुद चीखना शुरू कर दिया,...

"भैया, भैया प्लीज हो जाने दे न ,... दुष्ट बदमाश,... मेरे अच्छे वाले भैया प्लीज बस एक बार झड़ जाने दे न,"
बार बार गीता बोल रही थी


"क्यों तड़पाते हो , तेरी हर बात मानूंगी , प्लीज भैया ,"

चार पांच मिनट इसी तरह तड़पाने के बाद , उसने स्ट्रेटजी चेंज कर दी,...

और बिना बोले , पहले धीमे धीमे हलके हलके चाटता चूसता रहा , चूत चटोरा तो वो गज़ब का था , भोसड़े वालियों का भोंसड़ा चूस के पागल कर देता था, और ये तो नयी बछेड़ी थी,... फिर धीरे धीरे उसने चूसने की रफ्तार बढ़ाई, कभी जीभ से हचक के चूत चोदता तो कभी दोनों होंठों के बीच बहन की दोनों फांको को पकड़ के कस कस के चूसता ,




जल्द ही एक तार की चाशनी बहन की रसमलाई ने छोड़नी शुरू कर दी, रस बह के गोरी गोरी मखमली जाँघों पर बहना शुरू हो गया, बहना के ,.. लेकिन वो रुका नहीं सीधे चौथे गियर में ,... और वो जब झड़ी तो भी नहीं ,

एक दो बार , चार बार , पांच बार ,


झड़ झड़ के वो थेथर हो गयी। हिला नहीं जा रहा था , सिसक भी नहीं पा रही थी , अब वो जीभ से छू भी दे रहा था क्लिट तो देह कांपना शुरू कर देती थी, एक बार झड़ना रुकता नहीं था की ,...


और उसके बाद भी चूसता था , सीधे क्लिट को , ... दस मिनट




और अब बस जैसे वो संज्ञा शून्य हो गयी तो फिर धीमे धीमे उसने चूसने की रफ्तार कम की सारी चाशनी चाट गया और उसी चासनी को हथेली में लिपेट के बहन के मुंह में पोत दिया , होंठों पर गाल पे।

बहुत देर तक दोनों एक दूसरे की बांह में , तब कहीं जा के गीता बोलीं ,.. बोली क्या भाई के मुंह को चूम लिया। और जो सवाल कब से उसके मन में उमड़ घुमड़ रहा था पूछ लिया,...

" भैया, तूने सबसे पहले किसके साथ, कब,... "




भैया कुछ देर तक उसकी संतरे की फांक सी रसीली, होंठों को चूसता रहा, ... फिर बोला, ..



" चाची के साथ,... करीब दो साल पहले,.. तू मौसी की यहाँ गयी थी , छुट्टी में. "



तो चलिए अब चाची की हाल चाल,...
अबकी बार तो चाट चाट कर ही बुरा हाल कर दिया शर्मीले भाई ने,,,



अब आया है चुत सही ढंग से लन्ड के काबु मे


😍😍😍😍
 
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