Premkumar65
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Very nice background to justify Komal's actions.मेरी ननद
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था, बस सूनी आँखों से उस रास्ते को देख रही थी जिधर से मेरी ननद गयी थीं, कभी उनकी उदास सूरत नजर आती आँखों के सामने,
“ भौजी, अगर वो साधुवा के पास जाना पड़ा तो बस ये आखीरी मुलाकात, इसलिए मैं अबकी इतना रह गयी, घर क आँगन डेहरी देख लूँ, जहाँ गुड्डा गुड़िया खेली, माई से तो बता नहीं सकती थी, इतना दुःख का बोझ, नहीं बर्दास्त कर पाती वो, एक तो बड़की भाभी चली गयीं तोहार छुटकी ननदिया को लेके, और बड़े भैया तो अब बम्बइये के, उनका बस चले तो सब खेत खलिहान बेच के बंबई ही, और फिर हमार ये, “
जिस तरह से ननद भभक के रोई थीं,
मैंने तय कर लिया था कुछ भी हो आपन ननद को,
ओह्ह साधुवा, उनकी सास और ननद के बीच दीवार की तरह खड़ी होना पड़े,
इसलिए छुटकी को इतने दिन मैंने घर से दूर रखा, अरविन्द गीता के यहाँ फिर नैना ननदिया के साथ,…
है तो बच्ची ही, कहीं गलती से ही कुछ सुन लेती, कुछ मायके में मेरे जाके मुंह से निकल जाता उसके,
ये बात सिर्फ मेरी ननद और हमारे बीच की थी, इनको बताने का तो सवाल ही नहीं था। गुस्से से पागल हो जाते, अपने बहनोई के साथ, ननद की ससुरार में,
अब चाहे जो पाप दोख लगे, बरम बाबा, सत्ती माई, भाई का बीज बहिन के कोख में,
लेकिन हमको कुछ और नहीं सूझा.
जो पाप दोख लगे, बस हमको लगे, ...भले हमरी कोख पे लगे. हमरे ननद को कुछ न हो उनकी कोख हरदम हरी रहे, नौवें महीना सोहर हो, उनकी मुंहझौसी सास ननद क मुंह बंद हो,... हमार सोना अस ननद,
मेरी सास, अब जब खुश खबरी उनकी समधन की ओर से आ गयी थी तो पूजा मनौती, तिझरिया तक तो उनको आना नहीं था, लेकिन दो चीजे आ गयी और मेरा मन एकदम बदल गया,
एक तो मायके से फोन मेरी माँ का, और उसके बाद मेरी सास का पूत, मेरी सास और ननद का भतार ये
बताती हूँ , बताती हूँ अगली पोस्ट में