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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ३२ - आपरेशन गुंजा + + पृष्ठ ३५९

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komaalrani

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भाग ३२ - आपरेशन गुंजा + +

४,२५,४१२

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मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास। गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था, मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।



वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी, ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

दोनों लड़कियां, डरी सहमी, सीढ़ीा के दरवाजे के पीछे चिपकी, दीवाल से सटी, कातर हिरणी की तरह, देख रही थीं। डर के मारे उनका चेहरा अभी भी सफ़ेद था, और गुंजा के पास पहुँचते ही, दोनों ने गुंजा के हाथ को कस के पकड़ लिया और जहाँ से गुंजा आयी थी, जहाँ तीनो अभी पल भर पहले बॉम्ब के ऊपर बैठायी गयी थीं, बस उधर ही देख रही थीं।

चुम्मन की पहले गरजती हुयी आवाज, ' “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…” उन्होंने सुनी थी और दहस गयी थीं, और फिर जो मैंने कांटा चुभोया चुम्मन के पैर में तो उसकी हलकी सी चीख भी सुनी, लेकिन वो जानती थीं, खतरा टला नहीं है, बॉम्ब अभी भी क्लास में लगा है और चुम्मन को पता चल गया है की वो सब क्लास से बच के निकल भागी हैं।

मुझे देख के गुंजा ने कस के दोनों लड़कियों का हाथ कस के दबा दिया और डरी हुयी भी उसके चेहरे पे एक छोटी सी, नन्ही सी मुस्कान दौड़ गयी।

लेकिन डर मैं भी रहा था,

चुम्मन से भी और उस से ज्यादा होने वाले कमांडो हमले से। और चुम्मन को जो मैंने पल भर के लिए देखा था, मान गया था मैं, जबरदस्त किलर इंस्टिंक्ट, पावर पैक्ड, और अँधेरे में भी गजब का निशाना। लाइटर की हिलती डुलती रौशनी में भी अगर मैंने पालक झपकते कस के गुंजा को अपने नीचे दबोचा नहीं होता और पूरी तरह अपनी देह से छाप नहीं लिया होता, पक्का वो चाक़ू, गुंजा के दिल में पैबस्त होता। देह से चिपकी टाइट जींस, टाइट टी शर्ट में उसकी एक मसल्स साफ़ साफ़ झलक रही थीं, मैंने उसके एक पैर और हाथ में जो काँटा एकदम आर्टरी में चुभोया था, दूसरा होता तो उसका एक हाथ पैर बेकार हो चुका होता, लेकिन मैं जानता था की बस थोड़ी देर अरे वो हम लोगों के पीछे होगा।

चुम्मन जानता था की उसका पूरा प्रोटेक्शन वो तीनों लड़कियां हैं और जब तक लड़कियां उसके कब्जे में है, कोई शायद ही गोली चलाये, और वो निगोशिएट कर सकता है, लेकिन अगर लड़कियां एक बार निकल गयीं तो डी बी से ज्यादा सिद्द्की की जो अबतक छप्पन वाली रेपुटेशन थी, उसका बचना मुश्किल था, इसलिए मैं जानता था की वो कुछ भी कर के तीनो लड़कियों को पकड़ने की फिर से कोशिश करेगा, और उसकी दोनों फूली जेबों से मुझे अंदाज लग गया था की उसके एक जेब में कट्टा नहीं रिवाल्वर है और दूसरी में बॉम्ब का रिमोट। और एक दो चाक़ू तो जरूर और उसने रख रखा होगा,

इसलिए उसका लड़कियों से सामना होना जरूरी नहीं है, बस एक बार विजुअल कांटेक्ट हो जाए, फिर तो जिस फुर्ती से उसने चाक़ू गुंजा के ऊपर अँधेरे में फेंका था, कोई न कोई लड़की या मैं चाक़ू का शिकार का बनता, और उसके बाद बाकी लड़कियां भी पकड़ी जातीं,

और जो डाइवरसन टूटे ताले और चूड़ियों से मैंने किया था वो भी बहुत देर तक टिकने वाला नहीं था, तो उसकी नजर में आने के पहले हम सब को निकल लेने में ही भलाई थी।

लेकिन चुमन से कम खतरा कमांडो से नहीं था। जिस तरह जब हम लोग कमरे से निकले उसके पहले आंसू गैस का गोला खिड़की तोड़ते हुए आया, ये साफ़ था की अब पांच मिनट के अंदर खिड़की से कमांडो घुस सकते हैं, लेकिन उन्हें मेरे बारे में कुछ पता नहीं है और लड़कियों के पास मुझे देख के हो सकता है कोई शाप शूटर गोली चला दे।

इसलिए बस किसी तरह जल्द से जल्द मुझे इन तीनो लड़कियों के साथ बाहर निकल लेना था, लेकिन अब दो बातें थी। एक तो चढ़ते समय गुंजा और उसकी सहेलियों की बचाने की बात थी, और एड्रिनेलिन पूरी तेजी पर था, लेकिन अब एक बार मिशन हो जाने के बाद वो बात नहीं रहती, और दूसरे खुद को हैंडल करना अकेले आसान होता है, लेकिन साथ में तीन लड़कियां हो और उनकी जान पर भी बनी हो तो खतरा तीन गुना ज्यादा बढ़ जाता है।



एक बार मैंने उन तीनो को देखा, गुंजा दोनों के बीच में, और गुंजा का हाथ दोनों कस के पकडे थीं, जैसे मेले की भीड़ में बच्चे माँ का हाथ कस के पकडे रहते हैं, कहीं बिछुड़ ना जाएँ और गुंजा ने मेरी ओर इशारा करके कुछ कहा तो उन दोनों डरे हुए चेहरों पर एक कमजोर सी मजबूर मुस्कान छा गयी।

एक लड़की जो सबसे पहले बेंच पर से उठी थी, और जिसके कान में गुंजा ने अभी कुछ बोला था, कुछ मुझसे, कुछ अपनी सहेलियों से बोली - “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”



वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

ये दरवाजा हमारा पहला प्रोटेक्शन था, कितना भी कमजोर क्यों न हो, लेकिन कुछ तो था।



सीढ़ी पर अँधेरा था, जाले, कबाड़, और एक दो टूटी सीढ़ी और हम चार लोगों को उतर के नीचे के दरवाजे तक पहुंचना था, तो तीन चार मिनट तो लगना ही था और अगर तब तक कहीं चुम्मन इस सीढ़ी के छत वाले दरवाजे पर अपने चमचे के साथ पहुँच जाता तो, उसे सीढ़ी से नीचे उतरना भी नहीं है। मैं अँधेरे में चुम्मन के चाक़ू का निशाना देख चुका था और यहाँ तो हम सब की पीठ उस की ओर होती तो बचने का कोई चांस नहीं था।



बस मुझे मालूम था, की जो मैंने चुम्मन के पैरों में काँटा चुभोया था, उसका एक फायदा तो होगा की पैर से मार के अब वो ये दरवाजा आसानी से नहीं तोड़ पायेगा, और थोड़ा भी बैरकेडिंग में ताकत होगी तो हम लोगों को निचले दरवाजे तक पहुँचने का टाइम मिल जाएगा।

तीसरी लड़की से न मैंने नाम पूछा था न उसने बताया, लेकिन बिन बताये, मुझे पता चल गया था की वो शाज़िया है, एक मामले में मेरी गुंजा के कान काटती और एक मामले में गुंजा को टक्कर देती। सुबह से कितनी बार तो गुंजा उसका गुणगान कर चुकी थी, गाली देने में और होली में मस्ती में सिर्फ अकेली शाज़िया थी जो गुंजा के भी कान काटती थी और फागुन लगते ही उसकी होली शुरू हो जाती थी, और ' बिग बी ( बिग बूब्स ) के मामले में वो दोनों अपने से बड़ी दर्जा दस वालियों को भी पीछे छोड़ देती थीं, हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ते, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, खूब लम्बे बाल, गुंजा के बूब्स पर जो दसो उँगलियों के निशान थे वो शाज़िया के ही थे।

लेकिन इस समय सब हंसी खिलंदरा पन गायब था, डर अभी भी उसके चेहरे पर था, पर धीरे धीरे मेरे साथ डर कम होता जा रहा था और रस्सी लगाने, पूरी सीढ़ी पर से टूटे फूटे कबाड़ ला के रस्सी से बाँध के बैरिकेड को स्ट्रांग करने में वो मेरे साथ लगी थी, और गुंजा और महक पुरानी कापियों के बंडल को एक के ऊपर रख के उस को सपोर्ट दे रही थीं।



दो तीन मिनट के अंदर हम लोगों ने सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को अच्छी तरह से ब्लाक कर दिया और फिर नीचे की ओर।
 
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खतरा
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तब तक दो बार पैरों से मारने की और फिर धड़ाम की आवाज आई। जिस कमरे में इन्हें होस्टेज बनाकर रखा था, और जिसे मैंने बाहर से बन्द कर दिया था, टूटा ताला लटका कर।

उसका दरवाजा टूट गया था।

मैंने तीनों से बोला- “भागो नीचे। सम्हलकर। चौथी सीढ़ी टूटी है। 11वीं के ऊपर छत नीची है…”

महक ने उतरते हुये जवाब दिया- “मालूम है मालूम है। स्कूल बंक करने का फायदा…”

दौड़ते हुये कदमों की आवाज, सीधे सीढ़ी के दरवाजे की ओर से आ रही थी।

मेरा चूड़ी वाली ट्रिक फेल हो गई थी। मेरे दिमाग की बत्ती जली, जो मेरा खून गिर रहा होगा। अन्धेरे में उससे अच्छा ट्रेल क्या मिलेगा। और कम से कम दो तीन मिनट का टाइम अब कम था हम लोगों के पास, गुंजा के क्लास से निकलने के बाद सीढ़ी वाला दरवाजा बरामदे के कोने में ही तो था इसलिए अब किसी भी पल


और वही हुआ। हमारे नीचे पहुँचने से पहले ही सीढ़ी के दरवाजे पे हमला शुरू हो गया था।

इसका मतलब कि अब दोनों साथ थे, जिसके पैर में मैंने कांटा चुभोया था उसके पैर में इतनी ताकत तो होगी नहीं,

की अकेले वो पैर के धक्के से मारकर दरवाजा खोल सके, दोनों एक साथ जोर लगा रहे थे, भड़ भड़ भड़ भड़,

लेकिन शाज़िया और महक की मेहनत का नतीजा जो बैरिकेड हमने बनाया था वो टिका था, वो टिका था, वरना अब तक वो दरवाजा टूट चुका होता। कुंडे में इतनी ताकत नहीं थी की उसे रोक सकता,



लड़कियां एक बार फिर घबड़ा रही थीं, वो भी जानती थीं, जहाँ वो सीढ़ी का दरवाजा खुला, वहीँ,


चुम्मन की जोर की आवाज, गालियां, और एक बार फिर सहम कर के सब सीढ़ी के किनारे खड़ी, नीचे का दरवाजा अभी भी दूर था, पंद्रह बीस सीढियाँ बाकी थीं, और उस भड़भड़ाहट से कापियों के एक दो बंडल लुढ़कते हुए सीढयों पर गिरने लगे,

सीढ़ियों पर एकदम अँधेरा था, ऊपर से जाले, एक दो सीढियाँ बीच में टूटी, और गिरते बंडलों से और मुसीबत हो रही थी फिर टाइम भी निकल रहा था,

चलो, एक एक की लाइन में, मैंने हलके से बोला, सबसे आगे गुंजा, सबसे पीछे मैं और तभी


…. गोली की आवाज।

गोली से वो दरवाजे का बोल्ट तोड़ने की कोशिश कर रहे थे। लेकिन मुझे ये डर था की कहीं वो इन लड़कियों को ना लग जाये।

मैंने बोला- “पीठ दीवाल से सटाकर चुपचाप…”

एक के बाद एक धांय धांय

सब लाइन में खड़े हो गये। दिवाल से चिपक के और अगले ही पल अगली गोली वहीं से गुजरी जहां हम दो पल पहले थे। वो जाकर सामने वाले दरवाजे में पैबस्त हो गई।



सबसे आगे गुंजा थी, पीछे वो दूसरी लड़की और सबसे अन्त में महक और मैं, एक दूसरे का हाथ पकड़े। गोली की आवाज सुनकर महक कांप गई और उसने कसकर मेरा हाथ भींच लिया और मैंने भी उसी तरह जवाब में उसका हाथ दबा दिया।

महक मुझे देखकर मुश्कुरा दी, और मैं भी मुश्कुरा दिया।

खतरा दोहरा था, एक तो गोली लगने का, दूसरा, गोली छत पर, सीढ़ी की दूसरी दीवार पर लग के जो टकराएगी तो वहां से वापस आ के भी घायल कर सकती थी, और फिर हम रुक भी नहीं सकते थे, दरवाजा अगर ऊपर वाला खुल जाता तो हम सबका बचना मुश्किल था। मैं देख चुका था उस की किलर इंस्टिक्ट, जिस तरह से उसने गुंजा पर चाक़ू चलाया था जो मैंने रोका, वो सीधे गोली चलाता और किसी न किसी का निशाना बनना तय था। इसलिए किसी भी हालत में दरवाजे के खुलने के पहले निचले दरवाजे तक उन चलती गोलियों के बीच पहुंचना जरुरी था। तीनो एक बार फिर डर से सफ़ेद हो गयीं थी, दीवाल में चिपकी, धीरे धीरे सरकते हुए एक एक सीढ़ी उतरते हुए और फिर जब किसी गोली की आवाज आती, कोई गोली सनसनाती हुयी किसी की बगल से निकलती तो एक बार फिर सबकी रूह काँप जाती,

बम से बचे लेकिन गोलियों से कहीं,....

हम सब अपनी पीठ दीवाल से चिपकाए,

अब हम लोग सीढ़ी के नीचे वाले हिस्से में थे, जहां निचले दरवाजे से छनकर रोशनी आ रही थी। मुझे देखकर महक मीठी-मीठी मुश्कुराती रही और मैं भी। इत्ती प्यारी सुन्दर कुड़ी मुश्कुराये और कोई रिस्पान्स ना दे? गुनाह है।

तब तक महक की निगाह मेरे हाथ पे पड़ी वो चीखी- “उईईई… कितना खून?”



अब मेरी नजर भी हाथ पर पड़ी। मैं इतना तो जानता था की चोट हड्डी में नहीं है वरना हाथ काम के लायक नहीं रहता। लेकिन खून लगातार बह रहा था। मेरी बांह और बायीं साईड की शर्ट खून से लाल हो गई थी।

महक ने अपना सफेद दुपट्टा निकाला और एक झटके में फाड़ दिया। और आधा दुपट्टा मेरी चोट पे बांध दिया। खून अभी भी रिस रहा था लेकिन बहना बहुत कम हो गया था।



तब तक दुबारा गोली की आवाज और मैंने महक को खींचकर अपनी ओर। अचानक मैंने रियलाइज किया की मेरे हाथ उसके रूई के फाहे ऐसे उभार पे थे। मैंने झट से हाथ हटा लिया और बोला- “सारी…”



महक ने एक बार फिर मेरा हाथ खींचकर वहीं रख लिया और बोली- “किस बात की सारी? नो थैन्क नो सारी। वी आर फ्रेन्डस…”



मैंने मोबाइल की ओर देखा। सिर्फ दो मिनट बचे थे। अगर मैंने आल क्लियर ना दिया तो इसी रास्ते से मिलेट्री कमान्डो और हम लोग क्रास फायर में। नेटवर्क अभी भी गायब था।

सिर्फ चार सिढ़ियां बची थी। दीवाल से पीठ सटाये-सटाये। हम नीचे उतरे।



ऊपर से जो गोलियां चली थी, उससे नीचे सीढ़ी के दरवाजे में अनेक छेद हो गये थे। काफी रोशनी अंदर आ रही थी। पहली बार हम लोगों ने चैन की सांस ली, और पहली बार हम चारों ने एक दूसरे को देखा।



महक ने अपनी नीली-नीली आँखें नचाकर कहा- “आप हो कौन जी? इत्ते हैन्डसम पुलिस में तो होते नहीं। मिलेट्री में। लेकिन ना पिस्तौल ना बन्दूक…”



गुंजा आगे बढ़कर आई- “मेरे जीजू है यार। जीजू ये है, …”

“महक…” उसनेदुबारा अपना नाम बताया खुद हाथ बढ़ाया और मैंने हाथ मिला लिया।

“मैं शाज़िया…” तीसरी लड़की बोली और अबकी मैंने हाथ बढ़ाया।

महक ने हँसकर कहा- “हे तेरे जीजू तो मेरे भी जीजू…” शाज़िया बोली- “और मेरे भी…”



“एकदम…” गुंजा बोली- “लेकिन आपको ये कैसे पता चला की मैं यहां फँसी हूँ?”



“अरे यार सालियों को जीजा के अलावा और कहीं फँसने की इजाजत नहीं है…” मैंने कसकर महक और गुंजा को दबाते हुये कहा।



मैं बात उन सबसे कर रहा था, लेकिन मेरी निगाह बार-बार ऊपर और नीचे के दरवाजों पे दौड़ रही थी। मुझे ये डर लग रहा था की अभी तो हम सब दिवाल से सटे खड़े हैं। लेकिन जब हम नीचे वाले दरवाजे पे खड़े होंगे अगर उस समय उन सबों ने गोली चलाई, तो हमारी पीठ उनकी ओर होगी। बहुत मुश्किल हो जायेगी। मैं इसलिये टाइम पास कर रहा था की। ऊपर से वो दोनों क्या करते हैं। मुझे एक तरकीब सूझी। कुछ रिस्क तो लेना ही था।



मैं- “तुम तीनों इसी तरह दीवार से चिपक के खड़ी रहो…” और मैं झुक के नीचे वाले दरवाजे के पास गया और ऊपर की ओर देख रहा था।



महक ने आह्ह… भरी- “काश इस निगोड़ी दीवाल की जगह ऐसे हैन्डसम जीजू के साथ सटकर खड़ा होना पड़ता…”



गुंजा बोली- “अरी सालियों वो मौका भी आयेगा। ज्यादा उतावली ना हो…”

एक मिनट तक जब कुछ नहीं हुआ तो मुझे लग गया कि कम से कम अब वो ऊपर दरवाजे के पीछे नहीं हैं।लग रहा था की उसके रिवाल्वर की या तो गोलियां खतम हो गयी हैं या फिर वो दरवाजे के बोल्ट को तोड़ने का कोई और जुगाड़ करने गया है। गोलियां बंद हो गयीं थीं, बस अब हम सबको जल्द से जल्द नीचे का दरवाजा खोल के बाहर निकल लेना था।



मैंने मुड़कर दरवाजे को खोलने की कोशिश की। वो नहीं खुला।-मैंने तो दरवाजा बन्द नहीं किया था। नीचे झुक के एक छेद से मैंने देखने की कोशिश की। तो देखा की बाहर एक ताला लटक रहा
था।
 
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मुसीबत -ताला बंद बाहर से
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मेरी ऊपर की सांस ऊपर, नीचे की नीचे।

ये क्या हुआ? दरवाजा किसने बन्द किया? ड्राईवर को तो मैं बोलकर गया था की देखते रहने को, अब।

लड़कियां जो चुहल कर रही थी। वो मैं जानता था की चुहुल कम डर भगाने का तरीका ज्यादा है,

लेकिन अब मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया था, बाहर से दरवाजा बन्द और ऊपर से ताला। जब कि तय यही हुआ था की हम लोगों को इधर से ही निकलना है।

“कौन हो सकता है वो?” मेरा दिमाग नहीं सोच पा रहा था। मुझे याद आया, अगर दिमाग काम करना बन्द कर दे तो दिल से काम लो, और दिमाग की बत्ती तुरन्त जल गई।

पहला काम- सेफ्टी फर्स्ट। स्पेशली जब साथ में तीन लड़कियां हैं। तो खतरा किधर से आ सकता है? दरवाजे से, ऊपर से या नीचे से? इसलिये दीवाल के सहारे रहना ही ठीक होगा और डेन्जर का एक्स्पोजर कम करने के लिये। चार के बजाय दो की फाइल में, और फाइल में।

एक आगे एक पीछे।



मैं महक के पास गया। और बोला- “चलो तुम कह रही थी ना की दीवाल के बजाय जीजू के तो मैं तुम्हारे आगे खड़ा हो जाता हूँ और गुंजा तुम शाज़िया के आगे…”



महक बोली- “नहीं नहीं। “मैं आपके आगे खड़ी होऊंगी…” और मेरे आगे आकर खड़ी हो गई।



मैं उसकी कमर को पकड़े था की गुन्जा बोली- “जीजू आप गलत जगह पकड़े हैं। थोड़ा और ऊपर…”



महक ने खुद मेरा हाथ पकड़कर अपने एक उभार पे रख दिया और गुंजा की ओर देखकर बोला- “अब ठीक है ना। अब तू सिर्फ जल, सुलग। इत्ते खूबसूरत सेक्सी जीजू को छिपाकर रखने की यही सजा है…”



मैं कान से उनकी बातें सुन रही था, लेकिन आँख मेरी बाहर निकलने वाले दरवाजे पे गड़ी थी।

नेटवर्क जाम था और अगले आधे घंटे और जाम रहने की बात थी, इसलिये मोबाइल से भी डी॰बी॰ से बात नहीं हो सकती थी।

बन्द कोई गलती से कर सकता है लेकिन ताला नहीं, तो कोई बड़ा खतरा आने के पहले।

मैं खुद,… खुद ही कोई रास्ता निकालना पड़ेगा।



अचानक मुझे एक ब्रेन-वेव आई- “किसी के पास ऐसा नेल कटर है। जिसमें स्क्रू ड्राइवर है?”

शाज़िया ने मुस्कराकर कहा- “मेरे पास है…”

चहक महक ज्यादा रही थी, लेकिन मुस्करा शाज़िया भी कम नहीं रही थी। अब जब गोलियां चलनी बंद हो गयी थीं, ऊपर से दरवाजे का टूटने का खतरा और सीढ़ी से चुम्मन के हमले का डर थोड़ा कम हो गया था, स्कूल से बाहर निकलने के और इन सीढ़ियों के बीच बस ये मुआ दरवाजा बचा था, जिसे पार कर के इन तीनो ने न जाने कितनी बार क्लास बंक की थी, तो माहौल थोड़ा नार्मल होने लगा था।



दो चार घंटे पहले ही इसी स्कूल में इन तीन बालाओं ने कितना होली का हंगामा किया, शाज़िया ने एक से एक गालियां सुना के ९ बी वालों की माँ बहन एक कर दिया, क्लास की कोई लड़की नहीं बची होगी जिसकी चड्ढी बनियाइन इन सबों ने न लूटी हो, दो अंगुल अंदर तक रंग न लगाया हो, लेकिन उसके बाद बस मौत के साये से बच के, जैसे एक बहुत बड़ा खतरा सरसरा के उन्हें छूता हुआ बगल से निकल गया हो,



लेकिन अब जब करीब करीब बचने के कगार पर थीं और साथ में उनकी एक सहेली का जीजू, सहेली क्या बहन से बढ़के तो जीजू भी उसके पहले इन दोनों के और महक के साथ शाज़िया भी मस्तिया रही थी, थोड़ी थोड़ी,

लेकिन साथ में खतरे का अहसास और उससे बचने की तरकीब भी कम नहीं थी, मुश्किल से पांच मिनट हुए होंगे शाज़िया और महक से मिले लेकिन अब बिन कहे वो जैसे मेरी टीम का हिस्सा बन गयी थीं , शाज़िया मेरे साथ दरवाजे का ताला खोलने की जुगत में थी और गुंजा और महक सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे पर निगाह गड़ाए थीं की कहीं चुम्मन फिर से सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को तोड़ने की, खोलने की कोशिश तो नहीं कर रहा है।

मैं सोच रहा था की ताले के बोल्ट के जो स्क्रू हैं उन्हें ढीले करके, जोर से धक्का देने पर ताला कैसा भी हो बोल्ट निकल आयेगा।

चार बोल्ट में से तीन भी अगर किसी तरह किसी तरह खुल जाते तो फिर तो लात मार के ये बोल्ट टूट जाता और हम सब बाहर, हमारा गुंजा + मिशन कामयाब, उसके बाद तो, लेकिन एक परेशानी हो तो न, लकड़ी का वो दरवाजा हिल रहा था, और नेल कटर से प्रेशर नहीं बन रहा था। मेरा बिना कहे, शाज़िया झुक गयी, और कस के पकड़ के जकड़ के, मुड़ के मेरी ओर देखती, वो चम्पई रंग वाली, अपने गोरे गालों से एक लट हटाती

हल्के से मुस्करा के बोली, ' जीजू अब लगाइये, कस के, देखती हूँ स्साला, मादर कैसे नहीं खुलता, "



शाज़िया की बात, पहला बोल्ट आसानी से खुल गया। और अब दूसरे बोल्ट का नंबर था, लेकिन एक पल को मेरी नजर झुकी, निहुरी शाज़िया के ब्वाइश लेकिन भरे भरे हिप्स पे पड़ी, स्कर्ट थोड़ी सरक के ऊपर चली गयी, और कुछ मांसल नितम्बों के बीच धंसी थी, मेरे मन में पता नहीं कहाँ से अपनी गुरुआनी चंदा भाभी की बात याद आ गयी, ' कैसे लौंडे हो, स्साली निहुरी हुयी है, चूतड़ उठा के और " लेकिन मैंने बोल्ट पर ध्यान दिया,



पर ये बनारस की लड़कियां, एक्स रे आईज होती हैं इनकी मन की किताब मर्दो से पहले पढ़ लेती हैं, और निहुरे निहुरे हल्के से मुस्करायी और अपना पिछवाड़ा मटका दिया, और दूसरा बोल्ट भी खुल गया।

लेकिन स्साला तीसरा बोल्ट, उसमें जंग लगा था, और मैं और शाज़िया उससे जंग लड़ रहे थे, बस कुछ पल और, और हम खुली हवा में होते,….. लेकिन ये बोल्ट और बिना इसके
खुले बाहर निकलना मुश्किल था
 
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बूम, बॉम्ब और,… बाहर
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तभी कई बातें एक साथ हुयी,

मेरी उस बदमाश दर्जा नौ वाली स्साली बनारस वाली ने अपना पिछवाड़ा मेरे ' वहां' रगड़ दिया

मुझे लगा सीढ़ी हिल रही है,

ऊपर से एक प्लास्टर का बड़ा सा टुकड़ा गिरा और मैंने झुक के शाज़िया की कमर पकड़ के उसे छाप लिया और मेरा एक हाथ सीधे


मेरे मुंह से ' सॉरी' निकल गया और शाज़िया के मुंह से जबरदस्त गाली, जैसे दीवाली की फुलझड़ी छूटी हो,

" स्साले, तेरी माँ बहन की, ....स्साली से सॉरी बोलते हो, चलो बाहर तेरी तो मैं,... और उस गुंजा की भी "

लेकिन शाज़िया की मीठी मालपुवे ऐसी बाकी गालियां एक तेज आवाज में दब गयीं



गड़गड़ , गड़गड़

प्लास्टर के और ढेर सारे टुकड़े, लेकिन सब के सब मेरी पीठ, बांह और सर पे, शाज़िया बच गयी थी,

पीछे से कापियों के बंडल

आवाज तेज हो गयी थी,

गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़, गड़गड़,

और मैं समझ गया, गड़बड़, महागड़्बड़ जोर से में चीखा ' बचो, दो की फ़ाइल में "

और अबकी समझाना नहीं पड़ा, महक ने खुद मुझे खींच के अपने पीछे और मेरा एक हाथ खींच के अपने उभार पे कस के,

लेकिन अभी मेरा ध्यान कहीं और था, मैंने जैसे रटी रटाई कमांड की तरह से, ' दोनों हाथों से कान बंद, सर झुका, एकदम सीने के अंदर '

और एक हाथ से तो महक को पकडे था, दूसरे हाथ से गुंजा और शाज़िया को, कस के दबोच कर, दीवाल से चिपक के



बूम


जोर का धमाका हुआ,

फिर सीढ़ी पर से लुढ़कते पुढ़कते फर्नीचर जो हमने बैरकेड में लगाए थे कापियों के बण्डल, और ढेर सारा छत का प्लास्टर चूना

और साथ ही में वो नीचे वाला दरवाजा धड़ाम से और और हम सब लुढ़कते पुढ़कते बाहर,


और जब मेरी आँख खुली तो शाज़िया पेट के बल थी और मैं उसके ठीक ऊपर,

गुंजा, महक को सहारा दे के खड़ा कर रही थी और मुझे चिढ़ाने लगी

' माना जीजू, मेरी सहेली मस्त माल है, और अभी तक एकदम कोरी भी, सील पैक बंद, अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर से टाइट, ...लेकिन ऐसा भी क्या की खुले मैदान में, "


मैं शरमाता झेंपता उठा और शाज़िया को भी पकड़ के उठाया पर शाज़िया क्यों छोड़ती गुंजा को,

" अबे स्साली, मेरा मुंह मत खुलवा, मेरे जीजू हैं,... मैं चाहे खुले मैदान में मस्ती करूँ चाहे भरे बाजार में,... किसी की क्यों फटती है "

लेकिन लड़कियों की मस्ती से अलग मेरी निगाह चारो ओर घूम रही थी, जहां हम निकले थे वहां तो सन्नाटा था लेकिन दीवाल की कुछ ईंटे अभी भी गिर रही थीं


" भागो " मैं जोर से चिल्लाया और हम सब २००-३०० मीटर दूर जा के रुके।

और तब तक चु दे बालिका विद्यालय की एक दीवाल भरभरा के जहाँ हम लोग थोड़ी देर पहले थे,...

सबने एक साथ खुली हवा में सांस ली। अब हम लोगों ने स्कूल की ओर देखा। ज्यादा नुकसान नहीं हुआ था। जिस कमरे में ये लोग पकड़े गये थे, उसकी छत, एक दीवाल काफी कुछ गिर गई थी। सीढ़ी के ऊपर का वरान्डा भी डैमेज हुआ था। अभी भी थोडे बहुत पत्त्थर गिर रहे थे।


बाम्ब एक्स्प्लोड किसने किया? उन दोनों का क्या हुआ? मेरे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

मैंने इशारे से तीनो लड़कियों को चुप रहने और दीवाल के पास सटने के लिए बोला और चारों और देखने लगा,

अंदर की दो दुष्टात्मा से तो बच के हम लोग निकल आये थे लेकिन बाहर के गिद्ध भी कम खतरनाक नहीं थे, हर चीज को खबर बना के, बेच देने वाले, सेंसेशन फैला कर कमाई करने वाले और सब के अपने हिट थे,

डीबी ने जो आउटर पेरिमीटर बनवाया था, ३०० मीटर का, पुलिस का बैरिकेड लगा था, पी ए सी की एक ट्रक, एक आंसू गैस वालों की टुकड़ी और वाटर कैनन और बैरिकेड के ठीक पार ढेर सारी ओबी वान और कई अनाउंसर कभी अपना मेकअप दुरुस्त करती तो कभी कैमरा मैन को चु दे विद्यालय की ओर इशारा करती, और कभी जोर जोर से चीखती



यह खबर आज सबसे पहले बनारस न्यूज नेटवर्क से सुन रहे हैं,.... में निवेदिता जीरो प्वाइंट पर मौजूद हूँ, चु दे बालिका विद्यालय से, ....पुलिस का आपरेशन शुरू होने वाला है, बल्कि शुरू हो भी चूका है, बस कुछ देर और और हमारी तीनो होस्टेज आजाद होंगी निवेदिता का प्रॉमिस सबसे पहले उन तीनो लड़कियों का इंटरव्यू आप इसी चॅनेल पर देख्नेगे, बस कुछ ही देर में आपरेशन शुरू होने वाला है



तब तक कैमरा में ने कुछ इशारा किया, निवेदिता ने माइक बंद किया और एक छोटे से शीशे में देखकर अपनी लिपस्टिक फ्रेश की , पल्लू को थोड़ा सा झटका दिया, और तब तक कैमरा मैन चारो ओर के पुलिस बंदोबस्त को दिखा रहा था लेकिन एक और अनाउंसर आ गयी, शलवार सूट में

" मै सबीहा, सीधे चु दे विद्यालय से, आप देख सकते हैं पुलिस के इंतजाम को, बस आपरेशन शुरू होने वाला है, अभी अभी हमारे संवाददाता ने बाबतपुर एयरपोर्ट से खबर दी है की लखनऊ से एस टी ऍफ़ की टीम पहुंच गयी है और एयर पोर्ट से चल दी है। बस कुछ देर और , हमरे उन तीनो लड़कियों के बारे में बड़ी एक्सक्लूसिव खबर मिली है, ....कौन हैं वो, जो बनारस पुलिस की लापरवाही से आंतकवादियों के हमले का शिकार हुयी और अभी भी उन बेरहम बदमाशों के कब्जे में फंसी है,.... कब तक छूटेंगी वो,.... क्या गुजर रही होगी उन बेचारियों पे,.... क्या बचपाएगी उन की जान या वे सब भी बनारस पुलिस के निकम्मेपन का शिकार होंगी, ....क्या होगा उन बेचारियों के साथ, बस कुछ पल और,"



और वो तीनो बेचारियाँ भी ये सब सुन रही थीं, खिलखिला रही थीं। और मेरे पीछे पड़ी थीं, ....लेकिन मै अभी सब नजारा देख रहा था,

बॉम्ब के एक्सप्लोजन के बाद एक साथ कई एक्टिविटी शुरू हो चुकी थी,

घेरे के सबसे बाहर की ओर लेकिन इनर पैरामीटर में एम्बुलेंस और फायर ब्रिगेड की गाड़ियां थीं, और दो चार एम्बुलेंस स्कूल की ओर बढ़ना शुरू की और उनके पीछे , दो फायरब्रिगेड की गाड़ियां लेकिन तब तक ट्रैफिक पुलिस के कोई अधिकारी आये और उन्होंने सबको रोक दिया, और सिर्फ एक एम्बुलेंस को आगे बढ़कर स्कूल के सामने पहुँच कर ५० मीटर पहले रुक जाने को बोला, और फायर ब्रिगेड की एक ट्रक को स्कूल की साइड में लगा के खड़ा होने के लिए,


तब तक फायरिंग की आवाज ने मेरा ध्यान खींचा- टैक-टैक। सेल्फ लोडेड राईफल और आटोमेटिक गन्स की, 25-30 राउन्ड।

सारा फायर प्रिन्सीपल आफिस की ओर केन्द्रित था। वो तो हम लोगों को मालूम था की वहां कोई नहीं हैं। स्कूल की ओर से कोई फायर नहीं हो रहा था।

तब तक मेगा फोन पर डी॰बी॰ की आवाज गुंजी- “स्टाप फायर…”

थोड़ी देर में एक पोलिस वालों की टुकडी, कुछ फोरेन्सिक वाले और एक एम्बुलेन्स अन्दर आ गई। कुछ देर बाद एक आदमी लंगड़ाते हुये और दूसरा उसके साथ जिसके कंधे पे चोट लगी थी, चारों ओर पुलिस से घिरे बाहर निकले।

स्कूल के गेट से वो निकले ही थे की धड़धड़ाती हुई 5 एस॰यू॰वी॰ और उनके आगे एक सफेद अम्बेसेडर और सबसे आगे एक सफेद मारुती जिप्सी जिसमें पीछे स्टेनगन लिये हुये। लोग बैठे थे, आकर रुकी।


डी॰बी॰ आगे बढ़कर अम्बेसेडर से निकले आदमी से मिले।

मैंने नोटिस किया बात करते-करते उसने पोजीशन बदल ली और अब डी॰बी॰ की पीठ स्कूल के गेट की ओर हो गई।

उधर एस॰यू॰वी॰ से उतरे लोगों ने पुलिस से कुछ बात की और उसमें से निकलकर चार लोगों ने उन दोनों को एस॰यू॰वी॰ में बिठा लिया, और चल दिये। जैसे ही वो गाड़ियां चली। अम्बेसेडर से उतरे आदमी ने, अब तक वहां प्रेस वालों से इशारा किया की डी॰बी॰ से बात करें।



उधर पीछे से गुंजा और महक आवाज दे रही थी।

सारी एक्टिविटी अब स्कूल के बाहर के दरवाजे के पास हो रही थी, एस टी ऍफ़ के अफसरों के साथ, डी बी और साथ में डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, और कुछ अफसर, एस टी ऍफ़ वाले अपने साथ कुछ मिडिया वाले भी लाये थे और कुछ मिडिया वालों को उन्होंने इजाजत दे दी थी, और पुलिस थाने का रास्ता एकदम खाली था, जो लोग खड़े भी थे वो सब स्कूल की ओर देख रहे थे, कैमरे हो या आँखें सब स्कूल की ओर,

और मै दबे पांव, गुंजा, महक और शाज़िया के साथ पुलिस कंट्रोल रूम के अंदर जो डीबी का इनर रूम था, वहां।



गुड्डी वहीं थी।
 
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कंट्रोल रूम, गुड्डी, ताला

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कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाड़ी का ड्राईवर मिला, जिसे मैंने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोई दरवाजा ना बन्द कर सके। और वो यहाँ… किसी तरह से मैंने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया।

मैंने ठन्डी आवाज में पूछा- “क्यों कहां चले गये थे तुम?”

वो बोला- “क्यों? मैं तो यहीं था साहब। वहां कोई नहीं मिला क्या आपको…”

मैं चुप रहा।

ड्राईवर ने सफाई दी-

“आपके जाने के दो-चार मिनट के बाद सी॰ओ॰ साहेब, अरिमर्दन सिंह साहब आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा- “तू यहां क्यो खड़ा है? मैंने बोला की साहब ने बोला है। फिर मैंने उन्हें सारी बातें बता दी। वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हूँ। तुम कन्ट्रोल रूम में जाकर मेम साहेब के पास रहो। तुम अकेले उन्हें ठीक से जानते हो। मेरे सामने ही उन्होंने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैंने सी॰ओ॰ साहब को साफ-साफ बता दिया था की आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये। उन्होंने खुद जाकर दरवाजे को खोलकर देखा…”

मैं क्या बोलता। उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है। और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे।

गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा-

“तुमने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया? मुझे कौन उठा ले जाता। तुम्हारे जाने के 5-6 मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी॰ओ॰ साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास। तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खड़ा है…”


मुझे लगा कि अच्छा हुआ मैंने उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, शाज़िया और महक। एक साथ। गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को। दोनों की आँखों से आँसू बस छलके नहीं।

गुन्जा बोली- “गुड्डी दीदी। अगर आज जीजू नहीं होते तो? मैं सोच नहीं सकती थी…”

“क्यों नहीं होते। खाली होली खेलने के लिये जीजू बने हैं क्या? मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिड़का।

दबाते-दबाते भी एक आँसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया और उसके बाद शाज़िया और महक भी गुड्डी की बांहों में। इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब। बिन बोले बड़ी-बड़ी आँखों में तिरते, छलकते आँसुओं में बह गया। महक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे। बहुत सी बातें दोनों कह रही थी।

मैंने चिढ़ाया- “हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं। यहां सूखा…”

गुंजा मुश्कुराते हुये बोली- “अरे मैं हूँ ना…” और मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कसकर बांहों में भींच लिया।


अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा। खून से लथपथ। और बांह में महक का दुपट्टा। वो चीखते हुये बोली- “हे इतना खून बह रहा है। क्या हुआ?”

मैं- “बह नहीं रहा है। बह रहा था। महक के दुपट्टे का असर है। और सालियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हूँ। क्यों मन्जूर?”

अब उनके शर्माने की बारी थी।

लेकिन शाज़िया और महक इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं, पलट के शाज़िया ने जवाब दिया,

" अरे बाबू वो सीढ़ी पे धूम धड़ाम थोड़ा जल्दी हो गया, वरना मै जो निहुरी थी, वहीँ हाथ बढ़ा के खोल के पकड़ के सटा के, ....बच गए आप "

अब गुंजा भी मैदान में आ गयी, अपनी सहेलियों की हिम्मत बढ़ाते बोली,

" अरे होली के बाद आएंगे ये और पूरे पांच दिन यहीं रहेंगे, मेरा भी हिसाब किताब अभी बाकी है , रंगपंचमी यही होंगी "

उस की रंगभरी पिचकारी छोड़ती आँखे याद दिला रही थीं, उसका फगुवा भी अधूरा था लेकिन महक ने पूरा प्लान बता दिया,

" अरे जीजू, आप सोचते हैं की क्या सिर्फ एक लड़की पे तीन तीन लड़के एक साथ चढ़ सकते हैं, हम तीनो मिल के गैंग रेप करेंगे वो भी एक बार नहीं तीन बार "

" और लाने वाली मै हूँ, जा रही हूँ इनके साथ आज लेकिन कान पकड़ के साथ ले आउंगी और अपनी छोटी बहनों के हवाले कर दूंगी, फिर ये जो बहुत बोल रहे हैं न तब पता चलेगा "

गुड्डी भी उन दर्जा नौ वालियों का साथ देती बोली, एक तो गुंजा की पक्की सहेलियां, दूसरे गुड्डी का भी तो व्ही स्कूल है, उस की जूनियर।

मै दो बातें सोच रहा था, ये लड़कियां अभी थोड़ी देर पहले डर के मारे, कैसे, और ये सब बातें भी डर से बचने का ही एक रास्ता है, और दूसरे मेरी गलती। बनारस में मुंह नहीं खोलना चाहिए, वो भी लड़कियों के आगे और वो सालिया हो तब तो एकदम नहीं,

गुड्डी ने बात घुमा दी और उन तीनो से कुछ और बात करने लगी और मेरी निगाह खिड़की के बाहर स्कूल पर जा रही थी,



एस टी ऍफ़ वाले चले गए थे, लेकिन अब डीबी और लोकल पुलिस जोश में आ गए थे , तीन लाइने पुलिस वालों की सबसे बाहर पी ऐसी के जवान और उसके बाद आर ए ऍफ़ और सबसे अंदर लोकल पुलिस के कमांडो, जो थोड़े बहुत मिडिया वाले आ गए थे आस पास उन्हें हटाया जा रहा था, कुछ लोकल पाल्टीसियन टाइप भी थे जिहे डीबी खुद निपटा रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने पैरामीटर बना लिया , एम्बुलेंस की एक दो गाड़ियों और एक फायर ब्रिगेड की गाडी को छोड़ के सब वापस जा रही थी।



पुलिस को छोड़ के बाकी सिविल आफ़िसर्स भी वापस जा रहे थे।

स्कूल के अंदर बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड का एक दस्ता अंदर घुसा, फिर जो मिलेट्री के कमांडो आये थे, उनके साथ का बॉम्ब स्क्वाड, उन सब के पास तरह तरह के डिटेक्टर थे, फिर दो तीन कुत्ते, शायद बॉम्ब स्क्वाड वालों के थे और सबके बाद सिद्द्की और उसके साथ एक दो लोग और

और मेरे मन में सवाल अभी भी घूम रहे थे चुम्मन लोकल बदमाश था लेकिन जरूर बात उससे कहीं ज्यादा था, उसकी माँ ने बोला था की वो बंबई से हो के आया है, तो वहीँ कोई कांटेक्ट तो नहीं बन गया।



फिर चुम्मन के अलावा शायद मै अकेला था जिसने बॉम्ब को इतनी नजदीक से देखा था और उससे बढ़कर उसके एक्सप्लोड होने का असर देखा था, किसी जबरदस्त बॉम्ब मेकर का हाथ लगता था और अभी ८० % ही लग रहा था , कुछ चीजें उसमे नहीं थी लेकिन, और सबसे ज्यादा मुझे चौंकाया, डबल एक्सप्लोजन ने, आउटर बॉम्ब ने सिर्फ शॉक वेव्स जेनेरेट की, जो लग रहा था सीढ़ी हिल रही है, दरवाजा हिला, प्लास्टर गिरना शुरू हो गया और मुझे लग गया, हम लोग थोड़े सम्हल गए और उसी आउटर बॉम्ब से इनर बॉम्ब का बीस पच्चीस सेकेण्ड के अंदर एक्सप्लोजन हुआ, जो धड़ाके की आवाज हुयी और पक्का भले ही थोड़ी मात्रा में लेकिन लग रहा था आर डी एक्स, पर ये अब जो बॉम्ब डिस्पोजल वाले गए हैं इन्हे अंदाज लग जाएगा,



ऐसा बॉम्ब, बनारस में किसी लोकल बदमाश के पास, ?

और फिर रिवाल्वर, और उसकी गोलियां। अक्सर हम लोग मानते हैं की रिवाल्वर में छह गोलियां होती है लेकिन चार गोलियां तो नीचे वाले दरवाजे में ही लगी थीं, और फिर वो सीढ़ी के ऊपर के दरवाजे को भेद के आयीं और नीचे वाले दरवाजे में उन्होंने छेद किया, तो बिना हाई कैलिबर के और फिर कुछ शेल मैंने देखे भी थे, जो सामने दीवाल में लगा था, जो उससे लड़ के जिस दीवाल में हम चिपके थे वहां नीचे, वो तो मैंने महक को कस के चिपका रखा था, वरना उस हालत में भी वो गोली घायल तो कर ही देती।

आज मुझे अंदाज लग गया था की बनारस में गन रनिंग भी होती है और फॉरन गन्स भी आ गयी हैं लेकिन इस तरह की रिवाल्वर अभी कॉमन नहीं है फिर चुम्मन बनारस के किसी आर्गेनाइज्ड गैंग का पार्ट भी नहीं है

लेकिन सबसे बड़ी बात थी गुंजा और उसकी सहेलियों का बचना और वो हो गया, और इन सब सवालों का जवाब एस टी ऍफ़ वाले और पुलिस वाले ढूंढेंगे, अगर ढूंढना चाहेंगे, मुझे तो बस गुंजा को चंदा भाभी के हवाले करना है और उसकी बाकी सहेलिया भी ठीक ठाक पहुँच जाए अपने अपने घर

और ये चार आने का काम अभी भी बचा था, क्योंकि मिडिया वाले और कुछ सिक्योरटी एजेंसी वाले भी जानना चाहते होंगे की अंदर क्या हुआ



और ये चहकती गौरेया सब कहीं उन के चक्कर में पड़ गयीं तो एक अलग झंझट



कमरे में लगे टीवी पर एंकर चीख रही थी

" कहाँ; हैं तीनो लड़कियां , कौन थी तीनो लड़कियां, क्या हुआ था उनके, बस सिर्फ इसी चैनल पर " निवेदिता जी चीख रही थीं, और पीछे चु दे विद्यालय की तस्वीर और उसके ठीक सामने स्टूडियों में खड़ी वो, नीचे रनर चल रहा था, एस टी ऍफ़ का जबरदस्त आपरेशन, संघर्ष के बाद कमांडो ने तीनो लड़कियों को सकुशल छुड़ाया, लड़कियों की मेडिकल जांच चल रही है

शाज़िया और गुंजा देख के मुस्करा रही थीं, लेकिन महक के चेहरे पे एक बार फिर से डर छा गया था, जैसे वो उन पलों में वापस चली गयी हो। गुड्डी के हाथ को पकड़ के बोली, ' दी , लग नहीं रहा था बचूंगी, अगर आप लोग न आते "


गुड्डी ने बिना बोले बस उसके हाथ को दबा दिया, और मैंने चैनल चेंज कर दिया,

उस चैनल पर सबीहा बोल रही थीं, पहली खबर, होस्टेज के छूटने की सबसे पहली खबर आपको इसी चैनल पर मिली, और उनसे बात भी सबसे पहले इसी चॅनेल पर, हम दिखाएंगे आपको अंदरखाने की खबर, अंदर की बात, एकदम एक्सक्लूसिव, क्या गुजरा उन लड़कियों पर उन तीन घंटो में लेकिन उससे पहले बनारस जानना चाहता है , पुलिस व्यवस्था इतनी लचर क्यों, दिन दहाड़े, थाने से २०० मीटर दूर के लड़कियों के स्कूल में आतंकी हमला, क्या कर रही थी पुलिस, बने रहिये बस ब्रेक के बाद अंदरखाने की खबर , क्या हो रहा था स्कूल में



गुड्डी ने कुछ जानने के लिए कुछ बात बदलने के लिए और कुछ इस बड़े हादसे से बच के आयी लड़कियों का मूड ठीक करने के लिए पूछ लिया गुंजा से, " तू बता न अंदर की बात, क्या हुआ था, कैसे चुम्मन, ? "
 
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Chalakmanus

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भाग ३२ - आपरेशन गुंजा + +

४,२५,४१२

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मैं जमीन पे गिरा था, उसके पैरों के पास। गुड्डी से जो मैंने बाल वाला कांटा लिया था और उसने मजाक में मेरे बालों में खोंस दिया था, मेरे हाथ में था।

खच्च। खच्च। खच्च। दो बार दायें पैर में एक बार बायें पैर में।



वो आदमी लड़खड़ाकर गिर पड़ा।

उठते हुये मैंने उसके दायें हाथ की मेन आर्टरी में, पूरी ताकत से कांटा चुभोया और खून छल-छल बहने लगा। निकलते-निकलते मैंने देखा कि एक मोबाइल फर्श पे गिरा है। मैंने उसे तुरन्त उठा लिया और कमरे के बाहर।

उसी समय एक आँसू गैस का शेल खिड़की तोड़ता हुआ कमरे में।

20 मिनट हो चुका था। मुझे 5 मिनट में बाहर निकलकर आल क्लियर का मेसेज देना था, वरना कमांडो अन्दर। लेकिन ज्यादा तुरन्त की समस्या ये थी, ये दोनों पीछा तो करेंगे ही कैसे उसे कम से कम 5-10 मिनट के लिये डिले किया जाय।

दरवाजा बन्द करके मैंने टूटा हुआ ताला उसमें लटका दिया- ऐडवांटेज एक मिनट।

मैंने गुड्डी से जो चूड़ियां ली थी, सीढ़ी की उल्टी डायरेक्शन में मैंने बिखरा दी और कुछ एक कमरे के सामने। अगर वो कन्फुज हुये तो- ऐडवांटेज दो मिनट।



मैं वापस दौड़ता हुआ सीढ़ी की ओर। तीनों लड़कियां सीढ़ी के पार खड़ी थी।

दोनों लड़कियां, डरी सहमी, सीढ़ीा के दरवाजे के पीछे चिपकी, दीवाल से सटी, कातर हिरणी की तरह, देख रही थीं। डर के मारे उनका चेहरा अभी भी सफ़ेद था, और गुंजा के पास पहुँचते ही, दोनों ने गुंजा के हाथ को कस के पकड़ लिया और जहाँ से गुंजा आयी थी, जहाँ तीनो अभी पल भर पहले बॉम्ब के ऊपर बैठायी गयी थीं, बस उधर ही देख रही थीं।

चुम्मन की पहले गरजती हुयी आवाज, ' “लड़कियां कहां गईं?” देख जायेंगी कहां? यहीं कहीं होगीं, ढूँढ़ जल्दी…” उन्होंने सुनी थी और दहस गयी थीं, और फिर जो मैंने कांटा चुभोया चुम्मन के पैर में तो उसकी हलकी सी चीख भी सुनी, लेकिन वो जानती थीं, खतरा टला नहीं है, बॉम्ब अभी भी क्लास में लगा है और चुम्मन को पता चल गया है की वो सब क्लास से बच के निकल भागी हैं।

मुझे देख के गुंजा ने कस के दोनों लड़कियों का हाथ कस के दबा दिया और डरी हुयी भी उसके चेहरे पे एक छोटी सी, नन्ही सी मुस्कान दौड़ गयी।

लेकिन डर मैं भी रहा था,

चुम्मन से भी और उस से ज्यादा होने वाले कमांडो हमले से। और चुम्मन को जो मैंने पल भर के लिए देखा था, मान गया था मैं, जबरदस्त किलर इंस्टिंक्ट, पावर पैक्ड, और अँधेरे में भी गजब का निशाना। लाइटर की हिलती डुलती रौशनी में भी अगर मैंने पालक झपकते कस के गुंजा को अपने नीचे दबोचा नहीं होता और पूरी तरह अपनी देह से छाप नहीं लिया होता, पक्का वो चाक़ू, गुंजा के दिल में पैबस्त होता। देह से चिपकी टाइट जींस, टाइट टी शर्ट में उसकी एक मसल्स साफ़ साफ़ झलक रही थीं, मैंने उसके एक पैर और हाथ में जो काँटा एकदम आर्टरी में चुभोया था, दूसरा होता तो उसका एक हाथ पैर बेकार हो चुका होता, लेकिन मैं जानता था की बस थोड़ी देर अरे वो हम लोगों के पीछे होगा।

चुम्मन जानता था की उसका पूरा प्रोटेक्शन वो तीनों लड़कियां हैं और जब तक लड़कियां उसके कब्जे में है, कोई शायद ही गोली चलाये, और वो निगोशिएट कर सकता है, लेकिन अगर लड़कियां एक बार निकल गयीं तो डी बी से ज्यादा सिद्द्की की जो अबतक छप्पन वाली रेपुटेशन थी, उसका बचना मुश्किल था, इसलिए मैं जानता था की वो कुछ भी कर के तीनो लड़कियों को पकड़ने की फिर से कोशिश करेगा, और उसकी दोनों फूली जेबों से मुझे अंदाज लग गया था की उसके एक जेब में कट्टा नहीं रिवाल्वर है और दूसरी में बॉम्ब का रिमोट। और एक दो चाक़ू तो जरूर और उसने रख रखा होगा,

इसलिए उसका लड़कियों से सामना होना जरूरी नहीं है, बस एक बार विजुअल कांटेक्ट हो जाए, फिर तो जिस फुर्ती से उसने चाक़ू गुंजा के ऊपर अँधेरे में फेंका था, कोई न कोई लड़की या मैं चाक़ू का शिकार का बनता, और उसके बाद बाकी लड़कियां भी पकड़ी जातीं,

और जो डाइवरसन टूटे ताले और चूड़ियों से मैंने किया था वो भी बहुत देर तक टिकने वाला नहीं था, तो उसकी नजर में आने के पहले हम सब को निकल लेने में ही भलाई थी।

लेकिन चुमन से कम खतरा कमांडो से नहीं था। जिस तरह जब हम लोग कमरे से निकले उसके पहले आंसू गैस का गोला खिड़की तोड़ते हुए आया, ये साफ़ था की अब पांच मिनट के अंदर खिड़की से कमांडो घुस सकते हैं, लेकिन उन्हें मेरे बारे में कुछ पता नहीं है और लड़कियों के पास मुझे देख के हो सकता है कोई शाप शूटर गोली चला दे।

इसलिए बस किसी तरह जल्द से जल्द मुझे इन तीनो लड़कियों के साथ बाहर निकल लेना था, लेकिन अब दो बातें थी। एक तो चढ़ते समय गुंजा और उसकी सहेलियों की बचाने की बात थी, और एड्रिनेलिन पूरी तेजी पर था, लेकिन अब एक बार मिशन हो जाने के बाद वो बात नहीं रहती, और दूसरे खुद को हैंडल करना अकेले आसान होता है, लेकिन साथ में तीन लड़कियां हो और उनकी जान पर भी बनी हो तो खतरा तीन गुना ज्यादा बढ़ जाता है।



एक बार मैंने उन तीनो को देखा, गुंजा दोनों के बीच में, और गुंजा का हाथ दोनों कस के पकडे थीं, जैसे मेले की भीड़ में बच्चे माँ का हाथ कस के पकडे रहते हैं, कहीं बिछुड़ ना जाएँ और गुंजा ने मेरी ओर इशारा करके कुछ कहा तो उन दोनों डरे हुए चेहरों पर एक कमजोर सी मजबूर मुस्कान छा गयी।

एक लड़की जो सबसे पहले बेंच पर से उठी थी, और जिसके कान में गुंजा ने अभी कुछ बोला था, कुछ मुझसे, कुछ अपनी सहेलियों से बोली - “चलें नीचे?”



मैंने कहा- “अभी नहीं…” और सीढ़ी का दरवाजा बन्द कर दिया।

पीछे से जोर-जोर से दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज आ रही थी।

मैंने बोला- “ये जो कापियों का बन्डल रखा है ना उसे उठा-उठाकर यहां रखो…”



वो बोली- “मेरा नाम महक है। महक दीप…”

मैंने कहा- “मुझे मालूम है। लेकिन प्लीज जरा जल्दी…” और जल्दी-जल्दी कापियों से जो बैरीकेडिंग हो सकती थी किया।

तीसरी लड़की से मैंने रस्सी के लिये इशारा किया और उसने हाथ बढ़ाकर रस्सी पास कर दी। ऊपर की सिटकिनी से बोल्ट तक फिर एक क्रास बनाते हुये। बीच में जो भी टूटी कुर्सियां, फर्नीचर सब कुछ, कम से कम 5-6 मिनट तक इसे होल्ड करना चाहिये।

ये दरवाजा हमारा पहला प्रोटेक्शन था, कितना भी कमजोर क्यों न हो, लेकिन कुछ तो था।



सीढ़ी पर अँधेरा था, जाले, कबाड़, और एक दो टूटी सीढ़ी और हम चार लोगों को उतर के नीचे के दरवाजे तक पहुंचना था, तो तीन चार मिनट तो लगना ही था और अगर तब तक कहीं चुम्मन इस सीढ़ी के छत वाले दरवाजे पर अपने चमचे के साथ पहुँच जाता तो, उसे सीढ़ी से नीचे उतरना भी नहीं है। मैं अँधेरे में चुम्मन के चाक़ू का निशाना देख चुका था और यहाँ तो हम सब की पीठ उस की ओर होती तो बचने का कोई चांस नहीं था।



बस मुझे मालूम था, की जो मैंने चुम्मन के पैरों में काँटा चुभोया था, उसका एक फायदा तो होगा की पैर से मार के अब वो ये दरवाजा आसानी से नहीं तोड़ पायेगा, और थोड़ा भी बैरकेडिंग में ताकत होगी तो हम लोगों को निचले दरवाजे तक पहुँचने का टाइम मिल जाएगा।

तीसरी लड़की से न मैंने नाम पूछा था न उसने बताया, लेकिन बिन बताये, मुझे पता चल गया था की वो शाज़िया है, एक मामले में मेरी गुंजा के कान काटती और एक मामले में गुंजा को टक्कर देती। सुबह से कितनी बार तो गुंजा उसका गुणगान कर चुकी थी, गाली देने में और होली में मस्ती में सिर्फ अकेली शाज़िया थी जो गुंजा के भी कान काटती थी और फागुन लगते ही उसकी होली शुरू हो जाती थी, और ' बिग बी ( बिग बूब्स ) के मामले में वो दोनों अपने से बड़ी दर्जा दस वालियों को भी पीछे छोड़ देती थीं, हंसती तो गालों में गड्ढे पड़ते, बड़ी बड़ी कजरारी आँखे, खूब लम्बे बाल, गुंजा के बूब्स पर जो दसो उँगलियों के निशान थे वो शाज़िया के ही थे।

लेकिन इस समय सब हंसी खिलंदरा पन गायब था, डर अभी भी उसके चेहरे पर था, पर धीरे धीरे मेरे साथ डर कम होता जा रहा था और रस्सी लगाने, पूरी सीढ़ी पर से टूटे फूटे कबाड़ ला के रस्सी से बाँध के बैरिकेड को स्ट्रांग करने में वो मेरे साथ लगी थी, और गुंजा और महक पुरानी कापियों के बंडल को एक के ऊपर रख के उस को सपोर्ट दे रही थीं।



दो तीन मिनट के अंदर हम लोगों ने सीढ़ी के ऊपर वाले दरवाजे को अच्छी तरह से ब्लाक कर दिया और फिर नीचे की ओर।
Sandar
 

Sutradhar

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कंट्रोल रूम, गुड्डी, ताला

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कन्ट्रोल रूम के सामने ही वो मोबाईल, पुलिस की गाड़ी का ड्राईवर मिला, जिसे मैंने नीचे रहने को बोला था, दरवाजे के सामने और जिससे कोई दरवाजा ना बन्द कर सके। और वो यहाँ… किसी तरह से मैंने अपने गुस्से को कन्ट्रोल किया।

मैंने ठन्डी आवाज में पूछा- “क्यों कहां चले गये थे तुम?”

वो बोला- “क्यों? मैं तो यहीं था साहब। वहां कोई नहीं मिला क्या आपको…”

मैं चुप रहा।

ड्राईवर ने सफाई दी-

“आपके जाने के दो-चार मिनट के बाद सी॰ओ॰ साहेब, अरिमर्दन सिंह साहब आये थे। उन्होंने मुझसे पूछा- “तू यहां क्यो खड़ा है? मैंने बोला की साहब ने बोला है। फिर मैंने उन्हें सारी बातें बता दी। वो बोले की ठीक है, मैं यहां दो आर्मेड कान्स्टेबल लगा देता हूँ। तुम कन्ट्रोल रूम में जाकर मेम साहेब के पास रहो। तुम अकेले उन्हें ठीक से जानते हो। मेरे सामने ही उन्होंने दो कान्स्टेबल बुलाये और मैंने सी॰ओ॰ साहब को साफ-साफ बता दिया था की आपने बोला है की किसी हालत में दरवाजा नहीं बन्द होना चाहिये। उन्होंने खुद जाकर दरवाजे को खोलकर देखा…”

मैं क्या बोलता। उसके चेहरे से ये लग रहा था की ये आदमी झूठ नहीं बोल रहा है। और जैसे ही हम लोग कमरे में घुसे।

गुड्डी ने पहला सवाल यही दागा-

“तुमने उस ड्राईवर को यहां क्यों भेज दिया? मुझे कौन उठा ले जाता। तुम्हारे जाने के 5-6 मिनट के अन्दर ही वो ड्राईवर आया और बोला की सी॰ओ॰ साहेब ने बोला है की वो यहीं रहे, मेरे पास। तब से भूत की तरह वो दरवाजे के सामने खड़ा है…”


मुझे लगा कि अच्छा हुआ मैंने उसे कुछ नहीं कहा।

लेकिन मैं बोल पाता उसके पहले ही गुन्जा, शाज़िया और महक। एक साथ। गुंजा ने गुड्डी को बाहों में भर लिया और गुड्डी ने गुन्जा को। दोनों की आँखों से आँसू बस छलके नहीं।

गुन्जा बोली- “गुड्डी दीदी। अगर आज जीजू नहीं होते तो? मैं सोच नहीं सकती थी…”

“क्यों नहीं होते। खाली होली खेलने के लिये जीजू बने हैं क्या? मजा लेंगे वो और बचाने कौन आयेगा…” मुझे देखते हुये गुड्डी ने झिड़का।

दबाते-दबाते भी एक आँसू का कतरा उसके गाल पे गिर गया और उसके बाद शाज़िया और महक भी गुड्डी की बांहों में। इतनी देर का टेन्शन, डर, खतरा सब। बिन बोले बड़ी-बड़ी आँखों में तिरते, छलकते आँसुओं में बह गया। महक ने गुड्डी को अपनी बाहों में भर रखा था और बिन कहे। बहुत सी बातें दोनों कह रही थी।

मैंने चिढ़ाया- “हे गुड्डी को सब लोग बांहों में ले रहे हो और मैं। यहां सूखा…”

गुंजा मुश्कुराते हुये बोली- “अरे मैं हूँ ना…” और मेरी बांहों में आ गई और मैंने उसे कसकर बांहों में भींच लिया।


अब गुड्डी ने पहली बार मेरे बायें हाथ और शर्ट को ध्यान से देखा। खून से लथपथ। और बांह में महक का दुपट्टा। वो चीखते हुये बोली- “हे इतना खून बह रहा है। क्या हुआ?”

मैं- “बह नहीं रहा है। बह रहा था। महक के दुपट्टे का असर है। और सालियों के लिये खून क्या मैं सब कुछ बहाने को तैयार हूँ। क्यों मन्जूर?”

अब उनके शर्माने की बारी थी।

लेकिन शाज़िया और महक इत्ती आसानी से थोड़ी छोड़ने वाली थीं, पलट के शाज़िया ने जवाब दिया,

" अरे बाबू वो सीढ़ी पे धूम धड़ाम थोड़ा जल्दी हो गया, वरना मै जो निहुरी थी, वहीँ हाथ बढ़ा के खोल के पकड़ के सटा के, ....बच गए आप "

अब गुंजा भी मैदान में आ गयी, अपनी सहेलियों की हिम्मत बढ़ाते बोली,

" अरे होली के बाद आएंगे ये और पूरे पांच दिन यहीं रहेंगे, मेरा भी हिसाब किताब अभी बाकी है , रंगपंचमी यही होंगी "

उस की रंगभरी पिचकारी छोड़ती आँखे याद दिला रही थीं, उसका फगुवा भी अधूरा था लेकिन महक ने पूरा प्लान बता दिया,

" अरे जीजू, आप सोचते हैं की क्या सिर्फ एक लड़की पे तीन तीन लड़के एक साथ चढ़ सकते हैं, हम तीनो मिल के गैंग रेप करेंगे वो भी एक बार नहीं तीन बार "

" और लाने वाली मै हूँ, जा रही हूँ इनके साथ आज लेकिन कान पकड़ के साथ ले आउंगी और अपनी छोटी बहनों के हवाले कर दूंगी, फिर ये जो बहुत बोल रहे हैं न तब पता चलेगा "

गुड्डी भी उन दर्जा नौ वालियों का साथ देती बोली, एक तो गुंजा की पक्की सहेलियां, दूसरे गुड्डी का भी तो व्ही स्कूल है, उस की जूनियर।

मै दो बातें सोच रहा था, ये लड़कियां अभी थोड़ी देर पहले डर के मारे, कैसे, और ये सब बातें भी डर से बचने का ही एक रास्ता है, और दूसरे मेरी गलती। बनारस में मुंह नहीं खोलना चाहिए, वो भी लड़कियों के आगे और वो सालिया हो तब तो एकदम नहीं,

गुड्डी ने बात घुमा दी और उन तीनो से कुछ और बात करने लगी और मेरी निगाह खिड़की के बाहर स्कूल पर जा रही थी,



एस टी ऍफ़ वाले चले गए थे, लेकिन अब डीबी और लोकल पुलिस जोश में आ गए थे , तीन लाइने पुलिस वालों की सबसे बाहर पी ऐसी के जवान और उसके बाद आर ए ऍफ़ और सबसे अंदर लोकल पुलिस के कमांडो, जो थोड़े बहुत मिडिया वाले आ गए थे आस पास उन्हें हटाया जा रहा था, कुछ लोकल पाल्टीसियन टाइप भी थे जिहे डीबी खुद निपटा रहे थे। एक बार फिर पुलिस ने पैरामीटर बना लिया , एम्बुलेंस की एक दो गाड़ियों और एक फायर ब्रिगेड की गाडी को छोड़ के सब वापस जा रही थी।



पुलिस को छोड़ के बाकी सिविल आफ़िसर्स भी वापस जा रहे थे।

स्कूल के अंदर बॉम्ब डिस्पोजल स्क्वाड का एक दस्ता अंदर घुसा, फिर जो मिलेट्री के कमांडो आये थे, उनके साथ का बॉम्ब स्क्वाड, उन सब के पास तरह तरह के डिटेक्टर थे, फिर दो तीन कुत्ते, शायद बॉम्ब स्क्वाड वालों के थे और सबके बाद सिद्द्की और उसके साथ एक दो लोग और

और मेरे मन में सवाल अभी भी घूम रहे थे चुम्मन लोकल बदमाश था लेकिन जरूर बात उससे कहीं ज्यादा था, उसकी माँ ने बोला था की वो बंबई से हो के आया है, तो वहीँ कोई कांटेक्ट तो नहीं बन गया।



फिर चुम्मन के अलावा शायद मै अकेला था जिसने बॉम्ब को इतनी नजदीक से देखा था और उससे बढ़कर उसके एक्सप्लोड होने का असर देखा था, किसी जबरदस्त बॉम्ब मेकर का हाथ लगता था और अभी ८० % ही लग रहा था , कुछ चीजें उसमे नहीं थी लेकिन, और सबसे ज्यादा मुझे चौंकाया, डबल एक्सप्लोजन ने, आउटर बॉम्ब ने सिर्फ शॉक वेव्स जेनेरेट की, जो लग रहा था सीढ़ी हिल रही है, दरवाजा हिला, प्लास्टर गिरना शुरू हो गया और मुझे लग गया, हम लोग थोड़े सम्हल गए और उसी आउटर बॉम्ब से इनर बॉम्ब का बीस पच्चीस सेकेण्ड के अंदर एक्सप्लोजन हुआ, जो धड़ाके की आवाज हुयी और पक्का भले ही थोड़ी मात्रा में लेकिन लग रहा था आर डी एक्स, पर ये अब जो बॉम्ब डिस्पोजल वाले गए हैं इन्हे अंदाज लग जाएगा,



ऐसा बॉम्ब, बनारस में किसी लोकल बदमाश के पास, ?

और फिर रिवाल्वर, और उसकी गोलियां। अक्सर हम लोग मानते हैं की रिवाल्वर में छह गोलियां होती है लेकिन चार गोलियां तो नीचे वाले दरवाजे में ही लगी थीं, और फिर वो सीढ़ी के ऊपर के दरवाजे को भेद के आयीं और नीचे वाले दरवाजे में उन्होंने छेद किया, तो बिना हाई कैलिबर के और फिर कुछ शेल मैंने देखे भी थे, जो सामने दीवाल में लगा था, जो उससे लड़ के जिस दीवाल में हम चिपके थे वहां नीचे, वो तो मैंने महक को कस के चिपका रखा था, वरना उस हालत में भी वो गोली घायल तो कर ही देती।

आज मुझे अंदाज लग गया था की बनारस में गन रनिंग भी होती है और फॉरन गन्स भी आ गयी हैं लेकिन इस तरह की रिवाल्वर अभी कॉमन नहीं है फिर चुम्मन बनारस के किसी आर्गेनाइज्ड गैंग का पार्ट भी नहीं है

लेकिन सबसे बड़ी बात थी गुंजा और उसकी सहेलियों का बचना और वो हो गया, और इन सब सवालों का जवाब एस टी ऍफ़ वाले और पुलिस वाले ढूंढेंगे, अगर ढूंढना चाहेंगे, मुझे तो बस गुंजा को चंदा भाभी के हवाले करना है और उसकी बाकी सहेलिया भी ठीक ठाक पहुँच जाए अपने अपने घर

और ये चार आने का काम अभी भी बचा था, क्योंकि मिडिया वाले और कुछ सिक्योरटी एजेंसी वाले भी जानना चाहते होंगे की अंदर क्या हुआ



और ये चहकती गौरेया सब कहीं उन के चक्कर में पड़ गयीं तो एक अलग झंझट



कमरे में लगे टीवी पर एंकर चीख रही थी

" कहाँ; हैं तीनो लड़कियां , कौन थी तीनो लड़कियां, क्या हुआ था उनके, बस सिर्फ इसी चैनल पर " निवेदिता जी चीख रही थीं, और पीछे चु दे विद्यालय की तस्वीर और उसके ठीक सामने स्टूडियों में खड़ी वो, नीचे रनर चल रहा था, एस टी ऍफ़ का जबरदस्त आपरेशन, संघर्ष के बाद कमांडो ने तीनो लड़कियों को सकुशल छुड़ाया, लड़कियों की मेडिकल जांच चल रही है

शाज़िया और गुंजा देख के मुस्करा रही थीं, लेकिन महक के चेहरे पे एक बार फिर से डर छा गया था, जैसे वो उन पलों में वापस चली गयी हो। गुड्डी के हाथ को पकड़ के बोली, ' दी , लग नहीं रहा था बचूंगी, अगर आप लोग न आते "


गुड्डी ने बिना बोले बस उसके हाथ को दबा दिया, और मैंने चैनल चेंज कर दिया,

उस चैनल पर सबीहा बोल रही थीं, पहली खबर, होस्टेज के छूटने की सबसे पहली खबर आपको इसी चैनल पर मिली, और उनसे बात भी सबसे पहले इसी चॅनेल पर, हम दिखाएंगे आपको अंदरखाने की खबर, अंदर की बात, एकदम एक्सक्लूसिव, क्या गुजरा उन लड़कियों पर उन तीन घंटो में लेकिन उससे पहले बनारस जानना चाहता है , पुलिस व्यवस्था इतनी लचर क्यों, दिन दहाड़े, थाने से २०० मीटर दूर के लड़कियों के स्कूल में आतंकी हमला, क्या कर रही थी पुलिस, बने रहिये बस ब्रेक के बाद अंदरखाने की खबर , क्या हो रहा था स्कूल में



गुड्डी ने कुछ जानने के लिए कुछ बात बदलने के लिए और कुछ इस बड़े हादसे से बच के आयी लड़कियों का मूड ठीक करने के लिए पूछ लिया गुंजा से, " तू बता न अंदर की बात, क्या हुआ था, कैसे चुम्मन, ? "
कोमल मैम

फिर सांस रोक देने वाला अपडेट।

सादर
 
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