- 22,995
- 61,669
- 259
फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
वापस -घर
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
वापस -घर
अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
Last edited:
Click anywhere to continue browsing...
वाह आनंद बाबू वाह. तुम तो समझो जीत गए. फागुन सार्थक हुआ. शुरू से ही कोई गलती नहीं. फॉर प्ले से अंत तक. सब कुछ परफेक्ट.देवर बना खिलाड़ी
![]()
मैंने हथेली में तेल लेकर अच्छी तरह पहले सुपाड़े पे फिर पूरे लण्ड पे मला। वो चिकना होकर खड़ा चमक रहा था। भाभी सोच रही थी की अब मैं ‘उसे’ लगाऊँगा।
लेकीन मैं भी।
मैंने एक बार फिर कसकर चूत चूसना शुरू किया। मेरे दोनों होठों के बीच उनके निचले होंठ थे। होंठ चूस रहे थे और जुबान बार-बार अन्दर-बाहर हो रही थी।
![]()
साथ में मेरी उंगलियां बिना रुके उनके क्लिट को। थोड़ी देर में भाभी के नितम्ब जोरों से ऊपर-नीचे होने लगे, वो फिर से झड़ने के कगार पे पहुँच गई थी लेकिन मैं रुक गया। मैंने अपने उत्थित लिंग को उनकी चूत के मुंहाने पे, क्लिट पे बार-बार रगड़ा।
भाभी खुद अपनी टांगें फैला रही थी। जैसे कह रही हों- “घुसाते क्यों नहीं। अब मत तड़पाओ…”
लेकिन थोड़ी देर में फिर मैंने उसे हटा लिया, और अबकी जो मेरे होंठों ने चूतरस का पान करना शुरू किया तो। बिना रुके। लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे होंठ पहली बार उनके क्लिट पे थे।
पहले तो मैंने सिर्फ जीभ की टिप वहां पे लगाई फिर होंठों के बीच लेकर हल्के-हल्के चूसना शुरू किया।
![]()
भाभी जैसे पागल हो गई थी- ओह्ह्ह… अंहं्ह। अह्ह्ह… अह्ह्ह… चूतड़ उठाती मुझे अपनी ओर खींचती। अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं।
मैंने हल्के से उनकी क्लिट पे काट लिया फिर तो। मैंने उनकी दोनों टांगें अपने कंधे पे रख ली। जांघें पूरी तरह फैली हुई। दोनों अंगूठों से मैंने उनकी योनि के छेद को फैलाकर अपने लिंग को सटाया और फिर कमर पकड़कर एक जोरदार धक्का पूरी ताकत से।
उनकी चूत अभी भी एक कच्ची कली की तरह कसी थी। उन्होंने ऐसे सिकोड़ रखा था।
लेकिन अब वो इत्ती गीली थी, और जैसे ही मेरा लिंग अन्दर घुसा, भाभी ने झड़ना शुरू कर दिया। लेकिन बिना रुके कमर पकड़कर मैंने दो-तीन धक्के और लगाए। आधा से ज्यादा अब मेरा लण्ड उनकी चूत में था। एक पल के लिए मैं रुक गया।
![]()
उनका चेहरा एकदम फ्ल्श्ड लग रहा था। हल्की सी थकान। लेकिन एक अजीब खुशी। उनके निपल तन्नाये खड़े थे।
मैं एक पल को ठहरा। मैंने हल्के-हल्के चुम्बन उनके चेहरे पे। फिर होंठों पे। और जब तक मेरे होंठ उनके उरोजों तक पहुँचें। भाभी ने मुझे कसकर अपनी बाहों में भींच लिया था। उनकी लम्बी टांगें लता बनकर मेरी पीठ पे मुझे उनके अन्दर खींच रही थी।
लेकिन बस मैं हल्के-हल्के निपल पे किस करता रहा।
उन्होंने अपनी आँखें खोल दी और मुझे देखकर मुश्कुरायी।
मतलब मैं इम्तहान में पास हो गया था। रोल प्ले ख़तम.
अब वह वापस चंदा भाभी के रूप में थी और मैं उनके देवर के रूप में।
मैं भी मुश्कुराया और उसी के साथ उनके उरोजों को कसकर पकड़कर मैंने पूरी ताकत से एक धक्का मारा, उईई, उनके होंठों से सिसकारी निकल गई। मैं कस-कसकर जोबन मसल रहा था, साथ में धक्के मार रहा था। दो-तीन धक्कों में मेरा पूरा लण्ड अन्दर था। दो पल के लिए मैं रुका।
फिर मैंने सूत-सूत करके उसे बाहर खींचा। सिर्फ सुपाड़ा जब अन्दर रह गया तो मैं रुक गया।
मैं भाभी के चेहरे की ओर देख रहा था। वो इत्ती खुश लग रही थी कि बस। और फिर बाँध टूट गया। उन्होंने नीचे से कस-कसकर धक्के लगाने शुरू कर दिए। उनकी बाहों का पाश और तगड़ा हो गया। भाभी अब अपने रूप में आ गई थी, और मेरी उस किशोरी सारंग नयनी के रूप से बाहर आ गई थी।
जैसा उन्होंने सिखाया था उनकी पूरी देह। सब कुछ।
![]()
हाथ, नाखून, उंगलियां, उरोज, जुबान और सबसे बढ़कर उनकी मस्त गालियां।
उनके लम्बे नाखून मेरी पीठ में चुभ रहे थे। वो कस-कसकर अपनी बड़ी-बड़ी गदराई चूचियां मेरी छाती में रगड़ रही थी। उनके बड़े-बड़े नितम्ब खूब उचक-उचक के मेरे हर धक्के का जवाब दे रहे थे।
भाभी- “बतलाती हूँ साले अब। ये कोई तुम्हारे मायके वाले माल की तरह कुँवारी कली नहीं है। हचक-हचक के चोदो ना। देवरजी। देखती हूँ कितनी ताकत है तुममें। बहनचोद। बहना के भंड़ुये…”
जवाब में मैं भी,
मैंने उनके पैर मोड़कर दुहरे कर दिए और लण्ड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया। फिर जांघें एकदम सटाकर अपने पैरों के बीच दबाकर जब हचक के एक बार में अपना मोटा 8” इंच का लण्ड पेला तो भाभी की चीख निकल गई। वो एकदम रगड़ते घिसटते हुए अन्दर घुसा। लेकिन मैंने अपने पैरों का जोर कम नहीं किया। इनकी जांघें मेरे पैरों के बीच सिमटी हुई थी।
![]()
भाभी- “साले बहनचोद तेरी सारी बहनों की बुर में गदहे का लण्ड। साले क्या तेरे मायके वालियों की तरह भोंसड़ा है क्या जो ऐसे पेल रहे हो?”
और उन्होंने भी कसकर एक बार एक हाथ के नाखून मेरी पीठ में और दूसरा मेरी छाती पे सीधे मेरे टिट्स पे। उनकी बुर ने कस-कसकर मेरे लण्ड को अन्दर निचोड़ना शुरू कर दिया।
मुझे लगा की मैं अब गया तब गया। मैंने कहीं पढ़ा था की अगर ध्यान कहीं बटा दो तो झड़ना कुछ देर के लिए टल जाता है। और मैंने मन ही मन गिनती गिननी शुरू दी।
लेकिन भाभी भी नवल नागर थी-
“हे देवरजी ये फाउल है। कल की छोकरियों के साथ ये चलेगा मेरे साथ नहीं…” और उन्होंने कसकर मेरा गाल काट लिया।
![]()
मैं बोला “चलो भाभी आप भी ये फागुन याद करोगी…” और मैंने जोर-जोर से लण्ड पूरा बाहर निकालकर धक्के मारने शुरू कर दिए। साथ में तिहरा हमला भी। मेरा एक हाथ उनके निपल के साथ खेल रहा था और दूसरा उनके क्लिट को कस-कसकर रगड़, मसल रहा था, साथ में मेरे होंठ उनकी चूचियों को, निपल को कस-कसकर चूस रहे थे।
भाभी सिसक रही थी, काँप रही थीं, उनकी देह तूफ़ान में पत्ते की तरह थी, प्रेम गली बार बार सिकुड़ रही थी। वो बोलीं
“हाँ ओह्ह… आह्ह… मान गए अरे देवरजी। ओह्ह्ह… बहुत दिन बाद। क्या करते हो। हाँ और जोर से करो। नहीं,... निकाल लो,.... लगता है। ओह्ह्ह…”
![]()
कुछ देर बाद मैंने भाभी के दोनों हाथों को अपने एक हाथ से पकड़कर उनके सिर के पास दबा दिया। जिस तरह से वो अपने नाखूनों से मेरे टिट्स को खरोंच रही थी, वो तो रुका और अब जब मेरा लण्ड अन्दर घुसा तो पूरी देह का जोर देकर मैंने बिना आगे-पीछे किये उसे वहीं दबाना शुरू किया।
कभी मैं गोल-गोल घुमा देता, जिससे भाभी की क्लिट मेरे लण्ड के बेस से खूब कस-कसकर रगड़ खा रही थी।
होंठ कभी उनके गालों, कभी होंठों और कभी रसीली चूचियों का रस लूट रहे थे।
“ओह्ह्ह… आह्ह्ह…”
थोड़ी देर में भाभी फिर कगार पे पहुँच गईं। वो बार-बार नीचे से अपने चूतड़ उठाती, लेकिन मैं लण्ड पूरी तरह घुसाए हुए दबाये रहता। लेकिन अब मुझसे भी नहीं रहा जा रहा था। एक बार फिर से मैंने उनकी गोरी लम्बी टांगों को अपने कंधे पे रखा और हचक-हचक के।
![]()
भाभी भी कभी गोल-गोल चूतड़ घुमाती कभी जोर-जोर से मेरे धक्के का जवाब देती तो कभी गाली से-
“साले हरामजादे। कहाँ से सीखा है। रंडियों के घर से हो क्या? ओह्ह… आह्ह…”
जवाब में मैं भी कच-कचा के कभी उनके होंठ, कभी निपल काट लेता।
चन्दा भाभी ने झड़ना शुरू किया। लग रहा था कोई तूफान आ गया। हम दोनों के बदन एक दूसरे में गुथे हुए थे। सिर्फ सिसकियां सुनाई दे रही थी। साथ में मैं भी। भाभी की चूत भी,... जैसे कोई ग्वाला गाय का थन दुहता है।
![]()
बस उसी तरह कभी सिकुड़ती, कभी दबोचती। मेरे लण्ड को जैसे दुह रह थी और मैं गिर रहा था, पता नहीं कब तक
हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,
Awesome super duper gazab palang tod updatesUpdates are posted, and readers are requested to read, enjoy like and share the comments.
अरे वाह मान गए तुम्हे. और भौजी ने भी मान लिया जीत गए तुम. अनाड़ी तो नहीं पर आनंद बाबू है तो सही मे एकदम सीधे. अब तक तो भौजी के हिसारो पर चल रहे थे. अब भौजी आनंद बाबू के हिसारो पर.फगुनाई भौजी
![]()
और भाभी के शरारती हाथ भी ना, वो क्यों चुप बैठते।
जो उंगली मेरे पिछवाड़े के छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी, वो अब मेरे बाल्स को सहला रही थी। छेड़ रही थी।
और दूसरे हाथ ने जबड़े को छोड़कर, कस-कसकर मेरे निपलों को पिंच करना, कस-कसकर खींचना शुरू कर दिया, और 8-10 मिनट के जबर्दस्त चुम्बन के बाद ही भाभी ने छोड़ा।
लेकिन बस थोड़ी देर के लिए।
मेरा मुँह उन्होंने फिर जबरन खुलवा दिया और अबकी सीधे उनकी चूची, पहले इंच भर बड़े, खड़े निप्पल और उसके बाद रसीली गदराई मस्त चूची। मेरा मुँह फिर बंद हो गया। मैं हल्के-हल्के चूसने लगा। कभी जीभ से फ्लिक करता, कभी हल्के से काट लेता, और कभी चूस लेता।
![]()
भाभी ने पहले तो एक हाथ से मेरा सिर पकड़ रखा था
लेकिन वो हाथ एक बार फिर मेरे टिट्स पे, अबकी तो वो पहले से भी ज्यादा जोर से वहां चिकोटी काट रही थी, उसे नोच रही थी। दूसरे हाथ की बदमाश उंगलियां मेरे लण्ड के बेस पे हल्के-हल्के सहला रही थी। वो एकदम तन्नाया हुआ, खड़ा था जोश में पागल, बस घुसने को बेताब। अब चन्दा भाभी के होंठ खुल गए थे।
तो फिर तो वो, एकदम जोश में,... क्या-क्या नहीं बोल रही थी-
“साले, चूस कस-कसकर। बहनचोद। तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारूँ, गली के कुत्तों से चुदवाऊं, उन्हीं की चूची चूस-चूसकर ट्रेन हुआ है ना, गान्डू साले…”
![]()
चंदा भाभी की गालियां भी इत्ती मस्त थी। साथ में इतने जोर से मेरे मुँह में अपनी बड़ी-बड़ी चूचियां घुसेड़ रही थी जैसे कोई झिझकती शर्माती मना करती दुल्हन के मुँह में जबरदस्ती पहली बार लौड़ा पेले। मेरा मुँह फटा जा रहा था, लेकिन मैं जोर-जोर से चूस रहा था।
![]()
भाभी के हाथ ने अब कसकर मेरा लण्ड पकड़ लिया था और वो हल्के-हल्के मुठिया रही थी। लेकिन एक उंगली अभी भी मेरी गाण्ड की दरार पे रगड़ खा रही थी, और अब उनकी गालियां भी-
“साले कहता है की तेरी,... कल देखना तेरी वो हालत करूँगी ना। गाण्ड से भोंसड़ा बना दूंगी। जो लण्ड लेने में चार-चार बच्चों की माँ को पसीना छूटता होगा ना। वो भी तू हँस-हँसकर घोंटेगा। ऐसे चींटे काटेंगे ना तेरी गाण्ड में की खुद चियारता फिरेगा…”
पता नहीं भाभी की गालियों का असर था, या उनके हाथ का, या मेरे मुँह में घुल रहे पलंग-तोड़ पान का। बस मेरा मन कर रहा था की बस भाभी को अब पटक के चोद दूं। भाभी ने अपनी एक चूची निकालकर दूसरी मेरे मुँह में डाल दी।
मैंने भी कसकर उनका सिर पकड़कर अपनी ओर खींचा और कस-कसकर पहले तो निपल चूसता रहा फिर हल्के-हल्के दांत उनके सीने पे गड़ा दिए।
भाभी चीखीं- “उई क्या करता है। तेरे उस माल की चूची नहीं है। निशान पड़ जाएगा…”
![]()
जवाब में कसकर मैंने उसी जगह पे दांत और जोर से गड़ा दिए। दूसरी चूची अब कसकर मैं रगड़ मसल रहा था। दांत गड़ाने के साथ-साथ मैंने उनके निपल को भी काटकर पिंच कर दिया।
वो फिर चीखीं, लेकिन वो चीख कम थी सिसकी ज्यादा थी।
मैं रुका नहीं और कस-कसकर उनके निपल को पिंच करता रहा, चूसता रहा। भाभी अब छटपटा रही थी, सिसक रही थी पलंग पे अपने भारी-भारी चूतड़ रगड़ रही थी। उन्होंने मेरे मुँह से अपन चूची निकाल ली और पलंग पे निढाल पड़ गईं।
बिना मौका गवांए मैं भी उनके ऊपर चढ़ गया और उनको कसकर किस लेकर बोला-
“भाभी अबकी मेरा नंबर। अब तो मैं उत्ता अनाड़ी भी नहीं रहा…”
भाभी मुस्कुरायीं और मेरे कान में फुसफुसा के कहा-
“लाला, तुम अनाड़ी भले ना हो लेकिन सीधे बहुत हो। अरे अगर तुम ऐसे किसी लौंडिया से पूछोगे तो क्या वो हाँ कहेगी? अरे बस चढ़ जाना चाहिये उसके ऊपर और जब तक वो सोचे समझे अपना खूंटा ठूंस दो उसके अन्दर…”
और फिर कुछ रुक के बोली-
“चलो देवर हो फागुन है। तुम्हारा हक बनता है लेकिन। तुम अपनी ‘उसको’ समझ के करना। मैं शर्माऊँगी भी, मना भी करूँगी। अगर आज तुम ये बाजी जीत गए तो फिर कभी नहीं हारोगे और वो पहले झड़ने वाली बात याद है ना?”
मैं हँसकर बोला- “हाँ याद है, कैसे भूल सकता हूँ। अगर मैं पहले झड़ा तो आप मेरी गाण्ड मार लेंगी…”
मैं समझ गया था बात भौजी की मतलब रोल प्ले, वो गुड्डी बनेंगी औरमुझे एक ऐसी टीनेजर जिसके साथ पहली बार हो रहा हो, उसके साथ कैसे उसे मनाना है, पटाना है, ना ना करते रहने पर भी करना है और उसे गरम करना है, इतना की वो खुद टाँगे फैला दे। और अगर आज पास हो गया तो कल जब गुड्डी मेरे साथ चलेगी तो रात को, इत्ते दिन का सपना पूरा होगा।
भाभी- “वो तो मैं मारूंगी ही। सुसराल आये हो तो होली में ऐसे कैसे सूखे सूखे जा सकते हो? ये होली तो तुम्हें याद रहेगी…”
तब तक मैं उनके ऊपर चढ़ चुका था और मेरे होंठों ने उनके होंठ सील कर दिए थे। बात बंद काम शुरू, अबकी मेरी जीभ उनके मुँह के अन्दर थी।
वो अपना सिर इधर-उधर हिला रही थी जैसे मेरे चुम्बन से बचने की कोशिश कर रही हों।
मैं समझ गया वो अब उस किशोरी की तरह हैं, जिसे मुझे कल पहली बार यौवन सुख देना है। तो वो कुछ तो शर्मायेंगी, झिझकेंगी और मेरा काम होगा उसे पटाना, तैयार करना और वो लाख ना ना करे उसे कच्ची कली से फूल बना देना। मैंने कसकर उनके मुँह में जीभ ठेल रखी थी।
कुछ देर की ना-नुकुर के बाद उनकी जीभ ने भी रिस्पोंड करना शुरू कर दिया। अब हल्के से मेरी जीभ के साथ खिलवाड़ कर रही थी। उनके रसीले होंठ भी अब मेरे होंठों को धीरे-धीरे कभी चूम लेते। लेकिन मैं ऐसे छोड़ने वाला थोड़े ही था। मेरे हाथ जो अब तक उनके सिर को पकड़े थे अब उनके उभारों की ओर बढ़े और बजाय कसकर रगड़ने मसलने के एक हाथ से मैंने उनके जवानी के फूलों को हल्के-हल्के सहलाना शुरू किया।
जैसे कोई भौंरा कभी फूल पे बैठे तो कभी हट जाय, मेरी उंगलियां भी यही कर रही थी।
![]()
दूसरे हाथ की उंगलियां उनके जोबन के बेस पे पहले बहुत हल्के-हल्के सहलाती रही फिर जैसे कोई शिखर पे सम्हल-सम्हल के चढ़े वो उनके निपल तक बढ़ गईं। उनका पूरा शरीर उत्तेजना से गनगना रहा था।
भाभी- “नहीं नहीं। छोड़ो ना। फिर कभी आज नही…”
लेकिन मैंने गालों को छोड़ा नहीं। हल्के से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लदी पलकों की ओर बढ़ चला।
भाभी बुदबुदा रही थी- “उन्न्। हो तो गया प्लीज…”
लेकिन मैं नहीं सुनने वाला था। मेरे होंठ अब उनके होंठों को छोड़कर रसीले गालों का मजा ले रहे थे। मैंने पहले तो हल्के से किस किया फिर धीरे से। बहुत धीरे से काट लिया।
भाभी- “नहीं नहीं। प्लीज कोई देख लेगा। निशान पड़ जाएगा। मेरी सहेलियां क्या कहेंगी? वैसे ही सब इत्ता चिढ़ाती हैं। छोड़ो ना। हो तो गया…”
उनकी आवाज में उस किशोरी की घबराहट, डर, लेकिन इच्छा भी थी।एकदम गुड्डी की तरह
लेकिन मैंने गालों को छोड़ा नहीं। हल्के से उसी जगह पे फिर किस किया और उनके सपनों से लदी पलकों की ओर बढ़ चला।
![]()
एक बार मैंने जैसे कोई सुबह की हवा किसी कली को हल्के से छेड़े। बस उसी तरह बड़ी-बड़ी आँखों को छू भर दिया। और फिर एक जोरदार चुम्बन से उन शर्माती लजाती पलकों को बंद कर दिया, जिससे मैं अब मन भर उसकी देह का रस लूट सकूँ।
मेरे होंठ उनके कानों की ओर पहुँच गए थे और मेरी जीभ का कोना उनके कान में सुरसुरी कर रहा था, जैसे ना जाने कब की प्रेम कहानियां सुना रहा हो। मेरे होंठों ने उनके इअर-लोबस पे एक हल्की सी किस्सी ली और वो सिहर सी गईं।
उनके दोनों गदराये रस भरे जोबन मेरे हाथों की गिरफ्त में थे। एक हाथ उसे बस हल्के-हल्के सहलाकर रस लूट रहा था और दूसरा बस धीरे-धीरे दबा रहा था। मैं भी बस उन्हें अपनी प्यारी सोन चिरैया ही मान रहा था, जिसका जोबन सुख मैं पहली बार खुलकर लूट रहा होऊं। एक हाथ की उंगलियां टहलते-टहलते धीरे-धीरे उनके यौवन शिखरों की ओर बढ़ रही थी और बस निपल के पास पहुँचकर ठिठक के रुक गईं।
मेरे होंठों ने उनके कानों को एक बार फिर से किस किया, हल्के से पूछा-
“उन उभारों का रस चूस सकता हूँ?”
भाभी बस कुछ बुदबुदा सी उठी और मैंने इसे इजाजत मान लिया।
एक निपल मेरे उंगलियों के बीच में था। मैं उसे हल्के-हल्के दबा रहा था, घुमा रहा था।
![]()
दोनों जोबन मारे जोश के पत्थर हो रहे थे। मेरे होंठों ने बस उनके उभार के निचले हिस्से पे एक छोटी सी किस्सी ली। पत्ते की तरह उनकी देह काँप गईं लेकिन मैं रुका नहीं। मेरे होंठ हल्के चुम्बन के पग धरते निपल के किनारे तक पहुँच गए। जीभ से मैंने बस निपल के बेस को छुआ। वो उत्तेजना से एकदम कड़ा हो गया था।
![]()
मैं जान रहा था की वो सोच रही थी की अब मैं उसे गप्प कर लूंगा। लेकिन मुझे भी तड़पाना आता था। जीभ की टिप से मैं बस उसे छू रहा था। छेड़ रहा था।
भाभी- ( एकदम गुड्डी की आवाज में गुड्डी की तरह ही ) “छोड़ो ना प्लीज। क्या कैसा हो रहा है। क्या करते हो। तुम बहुत बदमाश हो। नहीं। न न। बस वहां नहीं…”
वो सिसक रही थी। उनकी देह इधर-उधर हो रही थी बिलकुल किसी किशोरी की तरह।
मेरी भी आँखें अपने आप मुंद चली थी और मुझे भी लग रहा था की मेरे साथ चन्दा भाभी नहीं वो मेरे दिल की चोर, वो किशोरी सारंग नयनी है। मैंने जीभ से एक बार इसके उत्तेजित निपल को ऊपर से नीचे तक लिक किया और फिर उसके कानों के पास होंठ लगाकर हल्के से बोला-
“हे सुन। मेरा मन कर रहा है। तुम्हारे इन जवानी के फूलों का रस लेने का। मेरे होंठ बहुत प्यासे हैं। तुम्हारे ये रस कूप। तुम्हारे ये। …”
“ले तो रहे हो। और क्या?” हल्के से वो बुदबुदायीं।
मैंने बोला- “नहीं मेरा मन कर रहा है और कसकर इन उभारों को कस-कसकर…”
साथ-साथ मैं अब कसकर मेरे हाथ उसके सीने को दबा रहे थे। वो शुरू की झिझक जैसे खतम हो जाए। एक हाथ अब कसकर उसके निपल को फ्लिक कर रहा था।
भाभी चुप रही। लेकिन उसकी देह से लग रहा था की उसे भी मजा मिल रहा है।
मैं- “हे प्लीज किस कर लूं तुम्हारे इन रसीले उभारों पे बोलो ना?”
चन्दा भाभी मेरे कान में फुसफुसायीं-
“लाला अरे अब उसे चूची बोलना शुरू करो नहीं तो वो भी शर्माती ही रह जायेगी…”
मैं समझ गया। मैंने दोनों हाथों से अब कस-कसकर उसके जोबन को मसलना शुरू कर दिया और फिर उसके कान में बोला- “सुनो ना। एक बार तुम्हारे रसीले जोबन को किस कर लूं। बस एक बार इन। इन चूचियों का रसपान करा दो ना…”
![]()
अबकी उसने जोर से जवाब दिया- “क्या बोलते हो। कैसे बोलते हो प्लीज। ऐसे नहीं। मुझे शर्म आती है…”
मुझे मेरा सिगनल मिल गया था। अब मेरे होंठ सीधे उसके निपल पे थे। पहले मैंने एक हल्के से किस किया फिर उसे मुँह में भरकर हल्के-हल्के चूसने लगा। वो सिसक रही थी उसके चूतड़ पलंग पे रगड़ रहे थे।
दूसरा निपल मेरी उंगलियों के बीच था।
![]()
मैंने हाथ को नीचे उसकी जाँघों की ओर किया। वो दोनों जांघें कसकर सिकोड़े हुए थी। हाथ से वो मेरी जांघ पे रखे हाथ को हटाने की भी कोशिश कर रही थी। लेकिन मेरी उंगलियां भी कम नहीं थी। घुटने से ऊपर एकदम जाँघों के ऊपर तक। हल्के-हल्के बार-बार।
भाभी ने दूसरे हाथ से मुझे नीचे छुआ तो मैं इशारा समझ गया। मेरे तन्नाया लिंग भी बार-बार उनकी जाँघों से रगड़ रहा था। मैंने उनके दायें हाथ में उसे पकड़ा दिया। उन्होंने हाथ हटा लिया जैसे कोई अंगारा छू लिया हो। लेकिन मैंने मजबूती से फिर अपने हाथ से उनके हाथ को पकड़कर रखा और कसकर मुट्ठी बंधवा दी।
अबकी भाभी ने नहीं छोड़ा।
थोड़े देर में ही उनकी उंगलियां उसे हल्के-हल्के दबाने लगी।
![]()
मेरा दूसरा हाथ उनकी जांघों को प्यार से सहला रहा था। एक बार वो ऊपर आया तो सीधे मैंने उनकी योनि गुफा के पास हल्के से दबा दिया। जांघें जो कसकर सिकुड़ी हुई थी अब हल्के से खुली। मैं तो इसी मौके के इंतजार में था। मैंने झट से अपना हाथ अन्दर घुसा दिया।
और अबकी जो जांघें सिकुड़ी तो मेरी हथेली सीधे योनि के ऊपर।
![]()
वो अब अपने दोनों हाथों से मेरा हाथ वहां से हटाने की कोशिश में थी लेकिन ये कहाँ होने वाला था।
“हे छोड़ो ना। वहां से हाथ हटाओ प्लीज। बात मानो। वहां नहीं…” वो बोल रही थी।
“कहाँ से हाथ हटाऊं। साफ-साफ बोलो ना…” मैं छेड़ रहा था साथ में अब योनि के ऊपर का हाथ हल्के-हल्के उसे दबाने लगा था।
जाँघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी। और मेरे हाथ का दबाव मजबूत। हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के-हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हालाँकि हल्की गीली हो रही थी। उसका असर पूरे देह पे दिख रहा था। देह हल्के-हल्के काँप रही थी। आँखें बंद थी। रह-रहकर वो सिसकियां भर रही थी। मेरी भी आँखें मुंदी हुई थी। मुझे बस ये लग रहा था की ये मेरी और ‘उसकी’ मिलन की पहली रात है। मेरे होंठ अब कस-कसकर उसके निपल को चूस रहे थे। मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता, कभी चाट लेता, कभी चूस लेता।
अमेज़िंग कोमलजी. क्या शब्दो का यूज़ किया है.झरती चांदनी
![]()
हम दोनों थके थे। एक दूसरे को कस के बाँहों में भींचे, बाहर चांदनी, पलाश और रात झर रही थी,
---
" तोहरे भैया के बियाहे में गुड्डी क महतारी पूछी थीं न गुड्डी से बियाह करोगे "
वो यादें, मेरा तन मन फागुन हो गया। बियाह तो उसी पल घड़ी हो गया था, जब उस सारंग नयनी ने भाभी के बीड़े के बाद बीड़ा मारा, सीधे मेरे सीने पे, ... जिंदगी में मिठास उसी दिन घुल गयी थी जब जनवासे में मेरे दांत देखने के बहाने पूरा बड़ा सा रसगुल्ला उसने एक बार में खिला दिया था , और उसकी वो खील बताशे वाली हंसी,...
मैं कुछ बोलता, उसके पहले भौजी ने अपनी मीठी मीठी ऊँगली मेरे होंठ पर रख दी और चुप कराते हुए पूछा,
" अबकी होलिका देवी का आशीर्वाद, तोहरे राशिफल में भी लिखा है तो का पता,... तो मान लो तोहार किस्मत,... बियाह हो ही जाए, तो दहेज में का मांगोगे। "
![]()
मेरे लिए तो उस लड़की का मिलना ही जिंदगी का सपना पूरा होना था,... जब तक मैं बस के पीछे लिखा, दुल्हन ही दहेज़ है, मैं दहेज़ के खिलाफ हूँ इत्यादि बोलता, मुंह खोलने की कोशिश करता, चंदा भाभी ने मुंह बंद करा दिया।
'" बहुत बोलते हो , सब मर्दो में यही एक बुरी आदत है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम हैं। "
और चुप कराने के लिए अपनी दायीं चूँची भौजी ने मेरे मुंह में डाल दी बल्कि पेल दी, और बोलना शुरू कर दिया
" दहेज़ तो जरूर मांगना, और मैं बताती हूँ क्या मांगना, गुड्डी क मम्मी और दोनों उसकी छोटी बहने। और गुड्डी क महतारी ये जो टनटनाया औजार ले के घूमते हो न , कोहबर में ही दोनों अपनी बड़ी बड़ी चूँची में दबा के एक पानी निकाल देंगी, ... "
![]()
मेरी आँखों के सामने एक बार गुड्डी की मम्मी, मेरा मतलब मम्मी की तस्वीर घूम गयी, दीर्घ स्तना, उन्नत उरोज, एकदम ब्लाउज फाड़ते, ब्लाउज के बाहर झांकते, चंदा भाभी से ही दो नंबर बड़े होंगे लेकिन वैसे ही कड़े कड़े,... सोच के फनफनाने लगता है।
![]()
लेकिन लालची मन, मैंने भाभी के दूसरे उरोज को कस के मुट्ठी से दबा दिया और जब मुंह खुला तो मन की बात कह दी, ... " और भौजी पास पड़ोसन "
" ये पूछने की बात है, कल दिन में ही पता चल जाएगा, जब पास पड़ोसन रगड़ाई करेंगी। " भौजी ने हंस के जवाब दिया।
बाहों में लिपटे-लिपटे साइड में होकर हम वैसे ही सो गए। मेरा लिंग भाभी के अन्दर ही था।
![]()
सुबह अभी नहीं हुई थी। रात का अन्धेरा बस छटा ही चाहता था।
कहीं कोई मुर्गा बोला और मेरी नींद खुल गई। हम उसी तरह से थे एक दूसरे की बाहों में लिपटे।
मेरा मुर्गा भी फिर से बोलने लगा था। मैंने भाभी को फिर से बाहों में भर लिया। बिना आँखें खोले उन्होंने अपनी टांग उठाकर मेरी टांग पे रख दी और अपने हाथ से ‘उसे’ अपने छेद पे सेट कर दिया। हम दोनों ने एक साथ पुश किया और वो अन्दर। उसी तरह साथ-साथ लेटे, साइड में। हल्के-हल्के धक्के के साथ।
![]()
पता नहीं हम कब झड़े कब सोये।
हाँ एक बात और चंदा भाभी ने बता दिया की उनकी नथ कब कैसे उतरी किसने उतारी, एक दो बार तो उन्होंने नखड़ा किया लेकिन फिर हंस के बोली,
तेरी तरह इन्तजार नहीं किया मैंने,... तेरी उस ममेरी बहन से कम उमर थी, अच्छा पहले तीन तिरबाचा भरो की अपनी छुटकी बहिनिया को चोदोगे तो बताउंगी,,.... हाँ बोलने से काम नहीं चला, उसका स्कूल का नाम ले के बताना पड़ा रंजीता को,... तीन बार तीर्बाचा भरवाया, की उस की फाड़ूंगा,... तो बात उन्होंने शुरू की। और बात पता नहीं कैसे घूम फिर के गुड्डी की मझली बहिनिया पर पहुँच गयी तो भौजी बोलीं
" अरे मंझली से भी छोटी थी, जब मेरी चिड़िया उड़नी शुरू हो गयी थी और तुझे वो क्या गुड्डी भी अभी छोटी लगती है,... "
![]()
पता नहीं कैसे मेरे मुंह से उनकी बेटी का नाम निकल गया, फिर लगा की नहीं बोलना चाहिए था पर बात तो निकल ही गयी, उन्होंने ही बोला था की उनकी बेटी भी मंझली की ही समौरिया है तो वही सोच के,...
" गुंजा से भी कच्ची उमर थी भौजी आप की "
मेर्री बात उन्होंने काट दी, उन्हें बात आगे बढ़ाने की जल्दी थी, " उससे पूरे छह महीने छोटी थी "
फिर उन्होंने हाल खुलासा बताया। एक उनके पड़ोस की बहन थीं, उसे ये दीदी बोलती थीं इनसे चार पांच साल बड़ी, ... न सगी न रिश्ते की बस मुंह बोली। पडोसी थीं लेकिन दोस्ती खूब थी, दीदी से भी उनकी भाभी से भी। गौना जाड़े में हुआ था दीदी का और गौने में ही जीजा, उन पे मोहा गए. पास के गाँव में ही शादी हुयी थी।
भौजी बोलीं बस उनके टिकोरे से ही आ रहे थे, लेकिन उनकी उस मुंहबोली दीदी वाले जीजा जब भी आते, महीने में दो चार चक्कर लग ही जाता, बस कभी पीछे से पकड़ के टिकोरे मसल देते, अपना खूंटा चूतड़ में रगड़ देते, और ये नहीं की अकेले पाके, ... दीदी होती तो उसके सामने, और वो चिढ़ातीं,
' नाप लो, पिछली बार से कुछ बड़े हुए की नहीं "
और भौजी तो और चिढ़ाती अपने नन्दोई को,
" गलती तो पाहुन की है ठीक से दबाते नहीं तो बढ़ेंगे कैसे, फिर ननद ननद में फरक करते हैं , एक का तो चोली खोल के खुल के रगड़ते मसलते हैं और दूसरी का फ्राक के ऊपर से बस हलके से नाम के लिए "
और दीदी और, बोलतीं भौजी से लेकिन उकसातीं अपने मरद को,
" भौजी सही है , आपके नन्दोई बहन बहन में फरक करते हैं मुझे भी अच्छा नहीं लगता। "
![]()
फिर तो जीजू फ्राक के अंदर हाथ डाल के कस कस के कच्ची अमिया को, .... और जान बुझ के अपना टनटनाया खूंटा मेरे पिछवाड़े कस कस के रगड़ते, भले बीच में उनका पजामा मेरी फ्राक रहती लेकिन उसका कड़ापन, मोटाई,... मेरी देह सनसना जाती गुलाबो फड़कने लगतीं, मैं पनिया जाती। ऊपर से बोलती जीजू छोड़ न , लेकिन मन कतई नहीं होता की वो छोड़ें, पहली बार आ रहे जोबन पर किसी का हाथ पड़ा था.
भौजी मेरे मन की हाल अच्छी तरह समझती थीं खुद ही उनसे खुल के बोलतीं, ...
" अरे अब नेवान कर दो बबुनी का कब तक तड़पाओगे,... फिर खुद ही दिन घड़ी तय कर देतीं, ' अरे दो महीने में फागुन लग जाएगा, बस असली पिचकारी का रंग मेरी ननद को,... "
![]()
और हुआ वही, होली के एक दिन पहले भौजी ने अपने घर बुला लिया, होली में काम तो बढ़ ही जाता है, फिर मैं सोच रही थी की जीजू तो होली के दिन आयंगे।
मैं और भौजी मिल के गुझिया बना रहे थे और भौजी ने पहले से बनी दो गुझिया खिला दी, मुझे क्या मालूम था उसमें डबल भांग की डोज पड़ी है,... बस थोड़ी देर में ही,...
और पता चला की दीदी जीजू तो सुबह ही आ गए थे, दीदी अपनी किसी सहेली के यहाँ गयीं हैं शाम तक लौटेंगी और जीजू सो रहे हैं,...
लेकिन घर में कच्ची उमर की साली हो, होली हो किस जीजू को नींद लगती है, मानुस गंध मानुस गंध करते वो उठे,...
होली रंग से शुरू हुयी अंग तक पहुंच गयी,
पहले चरर कर के फ्राक फटी फिर जाँघों के बीच की चुनमुनिया, ...
भौजी ने कस के मेरे दोनों हाथ पकड़ रखे थे, लेकिन एक बार जब जीजू का सुपाड़ा अंदर घुस गया तो उन्होंने हाथ छोड़ दिया और मुझसे बोलीं, " ननद रानी जोर जोर से चूतड़ पटको, चीखो चिल्लाओ, अब बिना चुदवाये बचत नहीं है "
![]()
लेकिन जब झिल्ली फटने का टाइम आया, तो भौजी ने अपनी बड़ी बड़ी चूँची मेरे मुंह में ठेल दी, और अपने नन्दोई से बोलीं
![]()
" अब पेलो कस के, अरे कच्ची कली है, उछले कूदेगी है है, बछिया के उछलने से का सांड़ छोड़ देता है , और रगड़ के पेलता है। "
झिल्ली फटनी थी फटी,दर्द होना था हुआ, लेकिन जीजू ने खूब हचक के चोदा। और भौजी और उन्हें चढ़ा रही थीं।
![]()
और मुझसे उठा नहीं जा रहा था, भौजी और जीजू ने मिल के किसी तरह बिठाया। हम लोग बस ऐसे बैठे ही थी की दीदी आगयीं।
बात काट के मैं बोला, " वो तो बहुत गुस्सा हुयी होंगी उन्हें अगर पता चल गया होगा "
चंदा भाभी बोलीं, एकदम बहुत गुस्सा हुईं जीजू पर बहुत चिल्लाईं और मैं भी सहम गयी।
उसके बाद भाभी खूब देर तक खिलखिलाती रही फिर बोलीं अरे हाल तो पता चलना ही था, मेरी फ्राक फटी थी, जाँघों के बीच मलाई लगी थी, लेकिन जानते हो दी गुस्सा क्यों हो रही थीं,...
उनके आने का इन्तजार क्यों नहीं किया, उनके सामने मेरी लेनी चाहिए थी और दो बातों पर वो राजी हुयी, मैं जब जीजू की ओर से बोलने लगी तो वो बोलीं,
" चलों अब मेरे सामने फिर से करो, और जैसे मैं कहूं, मेरी छोटी बहिन के साथ मजा लिया और मुझे देखने को भी नहीं मिला, ... ऐसे नहीं निहुरा के हां "
और वहीँ आँगन में निहुरा के कुतिया बना के जीजू ने फिर से मुझे दीदी और भौजी के सामने चोदा ,
![]()
और भौजी से ज्यादा दीदी मुझे चिढ़ा रही थीं,
" क्यों पूछती थीं न जीजू के साथ कैसा लगता है अब खुद देख ले,... कैसे जोर के धक्के लगते हैं,... आ रहा है न मजा "
![]()
और कभी जोर से फिर जीजू को हड़काती, " मेरी बहिनिया की अभी कच्ची अमिया है तो क्या इत्ते हलके हलके मसलोगे,... सब ताकत क्या मेरी ननदों के लिए बी बचा रखी है, ... "
लेकिन एक बात समझ लो असली मजा नयी लड़की को दूसरी चुदाई में ही आता है। मैं समझ गयी क्यों सब लड़कियां इस के चक्कर में पड़ी रहती हैं।
डेढ़ घंटे में दो बार मैं चुदी। बाद में दी ने जीजू से दूसरी शर्त बतायी, और अब ये मेरी बहन आपको रंग लगाएगी पूरे पांच कोट रंग आज भी कल भी और चुपचाप बिना उछले कूदे लगवा लीजियेगा, ...
ये बात दी ने एकदम मेरे मन की कही थी, ये बात सोच के ही मैं परेशान हो रही थी, जीजू को रंग कैसे लगाउंगी, एक तो लम्बे हैं उचक के बच जाएंगे मेरा हाथ ही नहीं पहुंचेगा, दूसरे तगड़े भी बहुत हैं पकड़ भी जकड़ने वाली, एक बार मेरी कलाई पकड़ ली,... मैं खूब खुश लेकिन लालची बचपन की,... मैंने दीदी से कहा ,
पांच कोट रंग के बाद एक बाद एक कोट पेण्ट की भी,...
" एकदम पेण्ट तो बहुत जरूरी है, एक ओर सफ़ेद , एक ओर कालिख पक्की वाली " हँसते हुए दी ने मेरी बात में और जोड़ा फिर कहा ये तेरे जीजू ही आज जा के सब पेण्ट रंग लाएंगे तेरे साथ, ... "
पर जीजू एक बदमाश, और जीजू कौन जो बदमाश न हो और साली सलहज को तो बदमाश वाले ही अच्छे लगते हैं। जितने ज्यादा बदमाश हो उत्ते ज्यादा अच्छे। जीजू बोले, " मंजूर मैं चुप चाप लगवा लूंगा लेकिन ये मेरी साली जित्ती बार रंग लगाएगी, उत्ती बार मैं उसे सफ़ेद रंग लगाऊंगा, फिर ये न भागे। ये भी चुपचाप लगवा ले "
मैं मतलब समझ रही थी , थोड़ा शर्मा गयी लेकिन मेरी और से दी बोलीं, और जीजू को हड़का लिया, ...
" कैसे कंजूस जीजू हो जो साली को सफ़ेद रंग लगाने का हिसाब रखोगे,... अरे मेरी बहन है, तेरी पिचकारी पिचका के रख देगी, लगा लेना, जित्ती बार वो रंग लगाएगी उत्ती बार, उसके दूनी बार, वो एकदम मना नहीं करेगी।
"दी और जीजू मेरी लिए एक नयी फ्राक और शलवार कुर्ता ले आये थे,... बस वही पहन के मैं घर लौटी। माँ दरवाजे पे ही मिलीं।
![]()
मुझे लगा की चंदा भाभी की माँ ने हड़काया होगा,... लेकिन भौजी बोलीं " अरे नहीं माँ देख के ही समझ गयीं बस दुलार से मुझे दुपका लिया और गाल पे चूम के बोली, अच्छा हुआ तू भी आज से हम लोगो की बिरादरी में आ गयी। जा थोड़ी देर आराम कर ले "
और हर कहानी के अंत में कहते हैं न की कहानी से क्या शिक्षा मिलती है तो चंदा भाभी ने वो शिक्षा भी दे दी।
" साली साली होती है उस की उमर नहीं रिश्ता देखा जाता है। और साली कोई जरूरी नहीं सगी हो रिश्ते जी , मुंहबोली भी ( आखिर चंदा भाभी की नथ तो मुंहबोली दीदी वाले जीजा ने उतारी थी दिन दहाड़े) दूसरी बात अगर जीजा साली को दबोचे नहीं दबाये रगड़े नहीं, मस्ती न करे तो सबसे ज्यादा साली को बुरा लगता है और जीजा साली के रिश्ते की बेइज्जती है। "
मैं ध्यान से उनकी बात सुन रहा था लेकिन उसके बाद जो बात उन्होंने बताई, वो एकदम काम की थी, ... दे
ख यार कोई चढ़ती उम्र वाली हो , गुड्डी की दोनों छोटी बहनों की उम्र की,...
बस एक बार पीछे से पकड़ के दबोच लो, कच्चे टिकोरों का खुल के रस लो,... और साथ में अपना तन्नाया खूंटा उसके छोटे छोटे चूतड़ के बीच दबाओ, जोर से एकदम खुल के रगड़ो, वो एक तो तुम्हारा इरादा समझ जायेगी, दूसरे उसकी देह में इत्ती जबरदस्त सनसनाहट मचेगी,... उसकी कसी बिल में इत्ते जोर से चींटे काटेंगे की वो खुद टाँगे खोल देगी, ... बस समझ लो उसके बाद न चोदना साली की भी बेइज्जती है और बुर रानी की भी। और जीजा साली के रिश्ते में कोई बोलता भी नहीं।
सुबह जब मेरी नींद खुली तो सूरज ऊपर तक चढ़ आया था और नींद खुली उस आवाज से।
“हे कब तक सोओगे। कल तो बहुत नखड़े दिखा रहे थे। सुबह जल्दी चलना है शापिंग पे जाना है और अब। मुझे मालूम है तुम झूठ-मूठ का। चलो मालूम है तुम कैसे उठोगे?” और मैंने अपने होंठों पे लरजते हुए किशोर होंठों का रसीला स्पर्श महसूस किया।
मैंने तब भी आँखें नहीं खोली।
“गुड मार्निंग…” मेरी चिड़िया चहकी।
मैंने भी उसे बाहों में भर लिया और कसकर किस करके बोला- “गुड मार्निंग…”
“तुम्हारे लिए चाय अपने हाथ से बनाकर लाई हूँ। बेड टी। आज तुम्हारी गुड लक है…” वो मुश्कुरा रही थी।
After the real sexy specialist Dr. Rajizexy ... Now it's गुप्त रोग विशेषज्ञ komaalrani ...Last Update is on page 81
Please read, enjoy like and share your comments.
भाग ६ -
चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी
![]()
तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”
मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?
चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।
जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-
“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”
भाभी बोली-
“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”