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Erotica फागुन के दिन चार

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Wow...
What an update Madam..
The "gradual" transformation of Chanda Bhabhi from Master to Student (& of Anand Babu vice versa) was just awesome.
The sex, various positions and more importantly their erotic conversation during their coupling was awesome and first rate.
The "Palang Tod Paan" conversation of Dulha offering it to Dulhan showed Anand Babu "upping" his game...and gradually becoming a master. Chanda Bhabhi's gaalis during "their act" conveyed a lot of emotions and excitement. Only an expert like you can describe it..we mere mortals can only "think" about it..
Wonderful update.

komaalrani
 
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1. बनारस की शाम ( पूर्वाभास कुछ झलकियां )

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हम स्टेशन से बाहर निकल आये थे। मेरी चोर निगाहें छुप छुप के उसके उभार पे,... और मुझे देखकर हल्की सी मुस्कराहट के साथ गुड्डी ने दुपट्टा और ऊपर एकदम गले से चिपका लिया और मेरी ओर सरक आई ओर बोली, खुश।


“एकदम…” और मैंने उसकी कमर में हाथ डालकर अपनी ओर खींच लिया।

“हटो ना। देखो ना लोग देख रहे हैं…” गुड्डी झिझक के बोली।

“अरे लोग जलते हैं। तो जलने दो ना। जलते हैं और ललचाते भी हैं…” मैंने अपनी पकड़ और कसकर कर ली।

“किससे जलते हैं…” बिना हटे मुस्करा के गुड्डी बोली।

“मुझ से जलते हैं की कितनी सेक्सी, खूबसूरत, हसीन…”

मेरी बात काटकर तिरछी निगाहों से देख के वो बोली- “इत्ता मस्का लगाने की कोई जरूरत नहीं…”

“और ललचाते तुम्हारे…” मैंने उसके दुपट्टे से बाहर निकले किशोर उभारों की ओर इशारा किया।

“धत्त। दुष्ट…” और उसने अपने दुपट्टे को नीचे करने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया।

“तुम भी ना,… चलो तुम भी क्या याद करोगे। लोग तुम्हें सीधा समझते हैं…” मुश्कुराकर गुड्डी बोली ओर दुपट्टा उसने और गले से सटा लिया।

“मुझसे पूछें तो मैं बताऊँ की कैसे जलेबी ऐसे सीधे हैं…” और मुझे देखकर इतरा के मुस्करा दी।



“तुम्हारे मम्मी पापा तो…”

मेरी बात काटकर वो बोली- “हाँ सच में स्टेशन पे तो तुमने। मम्मी पापा दोनों ही ना। सच में कोई तुम्हारी तारीफ करता है तो मुझे बहुत अच्छा लगता है…” और उसने मेरा हाथ कसकर दबा दिय

“सच्ची?”

“सच्ची। लेकिन रिक्शा करो या ऐसे ही घर तक ले चलोगे?” वो हँसकर बोली।



चारों ओर होली का माहौल था। रंग गुलाल की दुकानें सजी थी। खरीदने वाले पटे पड़ रहे थे। जगह-जगह होली के गाने बज रहे थे। कहीं कहीं जोगीड़ा वाले गाने। कहीं रंग लगे कपड़े पहने। तब तक हमारा रिक्शा एक मेडिकल स्टोर के सामने से गुजरा ओर वो चीखी- “रोको रोको…”

“क्यों कया हुआ, कुछ दवा लेनी है क्या?” मैंने सोच में पड़ के पूछा।

“हर चीज आपको बतानी जरूरी है क्या?”उस सारंग नयनी ने हड़का के कहा।

वो आगे आगे मैं पीछे-पीछे।

“एक पैकेट माला-डी और एक पैकेट आई-पिल…” मेरे पर्स से निकालकर उसने 100 की नोट पकड़ा दी।


रिक्शे पे बैठकर हिम्मत करके मैंने पूछा- “ये…”

“तुम्हारी बहन के लिए है जिसका आज गुणगान हो रहा था। क्या पता होली में तुम्हारा मन उसपे मचल उठे। तुम ना बुद्धू ही हो, बुद्धू ही रहोगे…” फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर उस ने हड़का के कहा।

फिर मेरे गाल पे कसकर चिकोटी काटकर वो बोली-

“तुमसे बताया तो था ना की आज मेरा लास्ट डे है। तो क्या पता। कल किसी की लाटरी निकल जाए…”



मेरे ऊपर तो जैसे किसी ने एक बाल्टी गुलाबी रंग डाल दिया हो, हजारों पिचकारियां चल पड़ी हों साथ-साथ। मैं कुछ बोलता उसके पहले वो रिक्शे वाले से बोल रही थी- “अरे भैया बाएं बाएं। हाँ वहीं गली के सामने बस यहीं रोक दो। चलो उतरो…”

गली के अन्दर पान की दुकान। तब मुझे याद आया जो चंदा भाभी ने बोला था। दुकान तो छोटी सी थी। लेकिन कई लोग। रंगीन मिजाज से बनारस के रसिये। लेकिन वो आई बढ़कर सामने। दो जोड़ी स्पेशल पान।

पान वाले ने मुझे देखा ओर मुश्कुराकर पूछा- “सिंगल पावर या फुल पावर?”

मेरे कुछ समझ में नहीं आया, मैंने हड़बड़ा के बोल दिया- “फुल पावर…”

वो मुश्कुरा रही थी ओर मुझ से बोली- “अरे मीठे पान के लिए भी तो बोल दो। एक…”

“लेकिन मैं तो खाता नहीं…” मैंने फिर फुसफुसा के बोला।

पान वाला सिर हिला हिला के पान लगाने में मस्त था। उसने मेरी ओर देखा तो गुड्डी ने मेरा कहा अनसुना करके बोल दिया- “मीठा पान दो…”

“दो। मतलब?” मैंने फिर गुड्डी से बोला।
वो मुश्कुराकर बोली- “घर पहुँचकर बताऊँगी की तुम खाते हो की नहीं?”

मेरे पर्स से निकालकर उसने 500 की नोट पकड़ा दी। जब चेंज मैंने ली तो मेरे हाथ से उसने ले लिया और पर्स में रख लिया। रिक्शे पे बैठकर मैंने उसे याद दिलाया की भाभी ने वो गुलाब जामुन के लिए भी बोला था।


“याद है मुझे गोदौलिया जाना पड़ेगा, भइया थोड़ा आगे मोड़ना…” रिक्शे वाले से वो बोली।

“हे सुन यार ये चन्दा भाभी ना। मुझे लगता है की लाइन मारती हैं मुझपे…” मैं बोला।



हँसकर वो बोली-


“जैसे तुम कामदेव के अवतार हो। गनीमत मानो की मैंने थोड़ी सी लिफ्ट दे दी। वरना…”

मेरे कंधे हाथ रखकर मेरे कान में बोली- “लाइन मारती हैं तो दे दो ना। अरे यार ससुराल में आये हो तो ससुराल वालियों पे तेरा पूरा हक बनता है। वैसे तुम अपने मायके वाली से भी चक्कर चलाना चाहो तो मुझे कोई ऐतराज नहीं है…”

“लेकिन तुम। मेरा तुम्हारे सिवाय किसी और से…”

“मालूम है मुझे। बुद्धूराम तुम्हारे दिल में क्या है? यार हाथी घूमे गाँव-गाँव जिसका हाथी उसका नाम। तो रहोगे तो तुम मेरे ही। किसी से कुछ। थोड़ा बहुत। बस दिल मत दे देना…”

“वो तो मेरे पास है ही नहीं कब से तुमको दे दिया…”

“ठीक किया। तुमसे कोई चीज संभलती तो है नहीं। तो मेरी चीज है मैं संभाल के रखूंगी। तुम्हारी सब चीजें अच्छी हैं सिवाय दो बातों के…” गुड्डी, टिपिकल गुड्डी

तब तक मिठाई की दुकान आ गई थी ओर हम रिक्शे से उतर गए।

“गुलाब जामुन एक किलो…” मैंने बोला।

“स्पेशल वाले…” मेरे कान में वो फुसफुसाई।

“स्पेशल वाले…” मैंने फिर से दुकानदार से कहा।

“तो ऐसा बोलिए ना। लेकिन रेट डबल है…” वो बोला।

“हाँ ठीक है…” फिर मैंने मुड़कर गुड्डी से पूछा- “हे एक किलो चन्दा भाभी के लिए भी ले लें क्या?”

“नेकी और पूछ पूछ…” वो मुश्कुराई।

“एक किलो और। अलग अलग पैकेट में…” मैं बोला।

पैकेट मैंने पकड़े और पैसे उसने दिए। लेकिन मैं अपनी उत्सुकता रोक नहीं पा रहा था-

“हे तुमने बताया नहीं की स्पेशल क्या? क्या खास बात है बताओ ना…”



“सब चीजें बताना जरूरी है तुमको। इसलिए तो कहती हूँ तुम्हारे अंदर दो बातें बस गड़बड़ हैं। बुद्धू हो और अनाड़ी हो। अरे पागल। होली में स्पेशल का क्या मतलब होगा, वो भी बनारस में…”
बनारसी बाला ने मुस्कराते हुए भेद खोला।


सामने जोगीरा चल रहा था। एक लड़का लड़कियों के कपड़े पहने और उसके साथ।

रास्ता रुक गया था। वो भी रुक के देखने लगी। और मैं भी।



जोगीरा सा रा सा रा। और साथ में सब लोग बोल रहे थे जोगीरा सारा रा।

तनी धीरे-धीरे डाला होली में। तनी धीरे-धीरे डाला होली में।
Shuruat bahut hi achhe se ki hai, lgta hai jese pehlu baar padh raha hoon
 

komaalrani

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The "gradual" transformation of Chanda Bhabhi from Master to Student (& of Anand Babu vice versa) was just awesome.
The sex, various positions and more importantly their erotic conversation during their coupling was awesome and first rate.
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Wonderful update.

komaalrani
Thanks so much for the nice words. You must have read countless stories, reviewed them. hundreds of them, coming from you these words are pure nectar and enthuses me. Thanks so much.
 

komaalrani

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Shuruat bahut hi achhe se ki hai, lgta hai jese pehlu baar padh raha hoon
Thanks and welcome. Yes a lot of new content has been added and secondly, pics add to the spice. Please do read and share your views.
 

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी
 

Shetan

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी
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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी…”


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भाभी ने वो बोतल बंद करके दूसरी ओर रख दी और दूसरी छोटी बोतल उठा ली। जैसे उन्होंने बोतल खोली मैं समझ गया की सरसों का तेल है। उन्होंने खोलकर दो-चार बूंदें सीधे मेरे सुपाड़े के छेद पे पहले डाली।

मजे से मैं गिनगिना गया।

“क्यों बचपन में तो ऐसे ही पड़ता रहा होगा ना। याद आया। वैसे तो मुझे किसी चिकनाई की जरूरत नहीं पड़ती लेकिन तुम्हारा आदमी की जगह गधे, घोड़े का लगता है, इसलिए। मैं वैसलीन की जगह सरसों का तेल ही लगाती हूँ। लेकिन किसी लड़की के साथ, कच्ची कली के साथ तो पहले तो गीला करना अच्छी तरह से। फिर खूब वैसलीन चुपड़ के उंगली करना। अपने लण्ड में भी खूब वैसलीन मल लेना। हाँ एक बात और तुम एक काम करो। अपना सुपाड़ा कभी कवर मत करना। इसको खुला ही रखना…” भौजी ने समझाया

“क्यों भाभी?” मैंने उत्सकुता से पूछा।

भाभी पूरे सुपाड़े पे तेल लगाते हुए बोली-

“अरे देवरजी, आपको आम खाने से मतलब या। यही सब तो ट्रिक हैं असली मर्द बनने के। आप भी क्या याद करियेगा कि कोई सिखाने वाली मिली थी। खुला रहने से बचपन से रगड़ खा-खाकर वो ऐसा सुन्न हो जाता है कि बस। तो जल्दी झड़ने का खतरा खत्म हो जाता है। और औरत क्या चाहती है कि मर्द खूब रगड़कर अच्छी तरह, देर तक चोदे, ये नहीं की बस घुसेड़ा, निकाला और कहानी खतम। जो मरद औरत को झाड़ के झड़े, वो असली मर्द। तो अगर इसको ढकोगे नहीं तो तुम्हारे कपड़े से रगड़ खा-खाकर ये भी। समझ गए और हाँ अगर तुम मुझसे पहले गए तो समझ लेना…”
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तेल की दोनों बोतल बंद करके वो टेबल पर रख चुकी थी।
“भाभी। प्लीज…” मेरी आँखें गुहार लगा रही थी।

“चल ठीक है तू भी क्या याद करेगा। होली का मौका है तो आज देवर भाभी की होली हो जाये। बस याद रखना की तुम बस ऐसे ही लेटे रहना उठने कि कोशिश भी मत करना…”

मैंने वोमन आन टाप की कई कहानियां पढ़ी थी, फोटुयें और फिल्में भी देखी थी, लेकिन वो सीन।


चंदा भाभी पर वो जोबन था। नाईट लैंप की हल्की नीली रोशनी में, लंबे-लंबे बाल, सिंदूर से सजी माँग, बड़ी-बड़ी कजरारी आँखें, गले में नेकलेश जिसका पेंडेंट उनके गदराये मस्त जोबन के बीच लटकता हुआ, खूब बड़ी-बड़ी लेकिन एकदम कड़ी मस्त चूचियां,


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गोरी-गोरी चिकनी जांघें, और उसके बीच काली झुरमुट।


भाभी मेरे ऊपर आ गई थी, उनकी फैली हुई जांघों के बीच, ... मेरा

भाभी- “क्यों ले लूँ इसे अपने अन्दर?” हँसकर अपनी नशीली आँखें मेरी आँखों में डालकर वो बोली।

“एकदम…” मैंने भी हँसकर जवाब दिया। बेचैनी से मेरी हालत खराब थी। उनका जन्नत का खजाना मेरे ‘उससे’ टच कर रहा था। बता नहीं सकता वो पहली बार का स्पर्श।

भाभी रुक गई थी।
मैं बेताब हो रहा था। मैंने अपनी कमर उचकायी।
तभी भाभी बोली- “मना किया था ना की हिलोगे नहीं। बदमाश…” कहकर भाभी ने आँखें तरेरी।

मैं एकदम रुक गया।

भाभी मुश्कुराने लगी और उन्होंने कमर थोड़ी और नीची की।


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अपने हाथों से उन्होंने अपने निचले होंठों को थोड़ा फैलाया और मेरा सुपाड़ा उनकी चूत के अंदर। उन्होंने मेरे जंधे पकड़कर एक और धक्का दिया, और बोली-


“अब मैं मर्द हूँ और तुम औरत। वैसे भी कल होली में अच्छी तरह सेचुदवाओगे तुम। और चोदेगी हम सब। । ठीक से बोल आ रहा है मजा?”


और इसके साथ उन्होंने एक जबर्दस्त धक्का मारा।

सुपाड़ा पूरी तरह उनकी चूत के गिरफ्त में था। दोनों कन्धों पर जो उनका हाथ था वो सरक के मेरी छाती तक आ चुका था। जैसे कोई किशोरी के नए जोबन को सहलाए,... वो उसी तरह।
याद तो रखोगे ही भाभी को आनंद बाबू. तुम्हारी नथ जो उतर रही है. सिख लो जो बता रही है समझ लो. काम आएगा जब अपनी बचपन के माल से मिलगे. घोप देना घच से. माझा आ गया.

वुमन ऑन टॉप तो सबसे पसंदीदा है नारी का. एहसास दिलाता है. तुम नहीं मै तुम्हे भोग रही हु. अमेज़िंग कोमलजी.

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Shetan

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कथा रति विपरीत की

मैं बनूँ साजन, तुम बनो सजनी
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भाभी मुश्कुराने लगी और उन्होंने कमर थोड़ी और नीची की। अपने हाथों से उन्होंने अपने निचले होंठों को थोड़ा फैलाया और मेरा सुपाड़ा उनकी चूत के अंदर। उन्होंने मेरे जंधे पकड़कर एक और धक्का दिया, और बोली-

“अब मैं मर्द हूँ और तुम औरत। ” और इसके साथ उन्होंने एक जबर्दस्त धक्का मारा।
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सुपाड़ा पूरी तरह उनकी चूत के गिरफ्त में था। दोनों कन्धों पर जो उनका हाथ था वो सरक के मेरी छाती तक आ चुका था। जैसे कोई किशोरी के नए जोबन को सहलाए,वो उसी तरह।

मैं चाह रहा था की भाभी जल्दी से पूरा अन्दर ले लें पर वो तो।

उन्होंने सुपाड़े को अपनी चूत से कस-कसकर भींचना शुरू कर दिया। साथ ही उनके एक हाथ ने मेरे एक निपल को कसकर पिंच कर लिया। उनके लम्बे नाखून वहां निशान बना रहे थे। अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने कसकर अपने दोनों हाथों से उनके झुके हुए मस्त रसीले जोबन पकड़ लिए और कस-कसकर दबाने लगा। जवाब में भाभी ने एक जोर का धकका मारा और आधा लण्ड अन्दर चला गया।

लेकिन अब वो रुक गईं। वो गोल-गोल अपनी कमर घुमा रही थी।

अब मुझसे नहीं रहा गया। मैंने उनकी कमर कसकर पकड़ी और नीचे से जोर का धक्का मारा। साथ ही मैंने अपने हाथ से उनकी कमर पकड़कर नीचे की ओर खींचा। अब बाजी थोड़ी सी मेरे हाथ में थी। भाभी सिसकियां भर रही थी। और मेरा लण्ड सरक-सरक के और उनकी चूत में घुस रहा था।

भाभी- “तुम ना। बदमाश,... कल अगर तुम्हारी। …”
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लेकिन भाभी की बात बीच में रह गई क्योंकि मैंने कसकर उनकी क्लिट दबा दी।

भ।भी जोर-जोर से सिसकी भरने लगी-

“साले। बहनचोद। मेरी सीख मेरे ही ऊपर। तेरे सारे खानदान की फुद्दी मारूँ…” और फुल स्पीड चुदाई चालू हो गई।

भाभी की चूची मेरी छाती से रगड़ रही थी। मैंने कस को उनको बांहों में भींच रखा था। और उन्होंने भी कसकर मुझे पकड़ रखा था। हचक के सटासट। ऊपर-नीचे, ऊपर-नीचे। थोड़ी देर तक भाभी खुद पुश कर रही थी और साथ में मैं। उनकी कमर पकड़कर। लेकिन कुछ देर बाद। उन्होंने जोर कम कर दिया और मैं ही अपनी कमर उचका के उनकी कमर नीचे खींचकर, चूतड़ उठाकर अपना लण्ड उनकी चूत में सटासट।
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थोड़ी देर बाद ऐसी ही जबरदस्त चुदाई के बाद भाभी ने मेरे कान में कहा- “सुनो। तुम अपनी टाँगें कसकर मेरी पीठ पे पीछे बाँध लो। पूरी ताकत से…”



उस समय ‘मेरा’ पूरी तरह से भाभी के अन्दर पैबस्त था। मैंने वही किया। भाभी ने भी कसकर अपने हाथ मेरी पीठ के नीचे करके बाँध लिए। मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था।

तभी भाभी पलटी और। गाड़ी नाव के ऊपर। नीचे से भाभी बोली-

“बस ऐसे ही रहो थोड़ी देर…” और उन्होंने कुछ ऐडजस्ट किया और मैं उनकी जाँघों के बीच।
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भाभी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थी। मैंने भाभी को पहले हल्के से फिर पूरी ताकत से किस किया। उन्होंने भी उसी तरह जवाब दिया। मुझे भाभी की बात याद आई। थोड़ी ही देर में मेरा होंठ उनके एक निपल को कसकर चूस रहा था और दूसरा निपल मेरी उंगलियों के बीच था। धक्कों की रफ्तार मैंने कम कर दी थी।

भाभी मस्त सिसकियां भर रही थी। कुछ देर बाद ही वो चूतड़ उचकाने लगी-

“करो ना देवरजी। और जोर से करो बहुत मजा आ रहा है। ओह्ह… ओह्ह…” करके भाभी सिसक रही थी बोल रही थी।

मैं कौन होता था अपनी इस मस्त भाभी को मना करने वाला। मैंने पूरी तेजी से कमर चलानी शुरू कर दी। इंजन के पिस्टन की तरह।


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भाभी ने अपने हाथों से मेरे चूतड़ कसकर पकड़ रखे थे। मस्त गालियां। चीखें-

“साले रुके तो तेरी गाण्ड मार लूँगी। कल पूरी पिचकारी तेरी गाण्ड फैलाकर पेल दूँगी। बहनचोद। तेरी बहन को मेरे सारे देवर चोदें। बहुत मजा आ रहा है। हाँ…”



और भाभी ने फिर पोज बदल दिया।


वो मेरी गोद में थी। उनकी फैली जांघें मेरी कमर के चारों ओर, चूचियां मेरे सीने से रगड़ती।
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मैं अब हल्के-हल्के धक्के मार रहा था। साथ में हम लोग बातें भी कर रहे थे।

भाभी ने चिढ़ाया- “सीख तो तुम ठीक रहे हो। अपने मायके जाकर उस छिनाल ननद के साथ प्रैक्टिस करना एकदम पक्के हो जाओगे…”

मैं- “गुरु तो आप ही हैं भाभी…”

भाभी कभी मेरे कान में अपनी जीभ डाल देती,



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कभी हल्के से मेरे होंठ काट लेती और एक बार उन्होंने मेरे निपल को कसकर काट लिया।

मैं क्यों पीछे रहता।


मैंने ध्यान से सब सुना और पढ़ा था, और फिल्में देखी थी सो अलग।

मैंने दोतरफा हमला एक साथ किया। मैंने होंठों से पहले तो कसकर उनके निपल फ्लिक करना फिर चूसना शुरू किया और निपल हल्के से काट लिए।

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एक हाथ जोबन मर्दन में लगा था। दूसरे हाथ को मैं नीचे ले गया और पहले तो हल्के-हल्के फिर जोर से उनके क्लिट को रगड़ने लगा।



--

भाभी झड़ने के कगार पे पहुँच गईं लेकिन वो मेरी ट्रिक समझ गईं। उन्होंने धक्का देकर मुझे गिरा दिया और फिर मेरे ऊपर आ गईं, कहा-

“बदमाश हरामी, बहनचोद। बहन के भंड़वे, तेरी बहन को कोठे पे बैठाऊँ। मेरी सीख मुझी पे…”

और कस-कसकर धक्के लगाने लगी।



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एक हाथ उनका मेरे निपल पे तो दूसरा मेरे पीछे गाण्ड के छेद पे।

मैं भी उसी तरह जवाब दे रहा था। हम लोग धकापेल चुदाई कर रहे थे। मैं बस अब रुकना नहीं चाहता था। मेरे हाथ कभी उनकी चूची पे कभी क्लिट पे। मेरा लण्ड अब बिना रुके अन्दर-बाहर हो रहा था।



भाभी की चूत कस-कसकर मेरे लण्ड को निचोड़ने लगी, और भाभी बोल रही थी-


“ओह्ह्ह… आह्ह… हाँ ओह्ह्ह… नहीं मैन्न…”

मुझे लग रहा था की मैं अब गया तब गया, लेकिन भाभी निढाल हो गईं, उनके धक्के रुक गए। लेकिन उनकी चूत कस-कसकर सिकोड़ती रही। निचोड़ती रही। और मैं भी। लगा मेरी जान निकल जायेगी पूरी देह से, आँखें बंद हो गई मैं कमर हिला रहा था।

जैसे कोई फव्वारा फूटे, मेरी देह शिथिल पड़ गई थी।
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भाभी मेरे ऊपर लेटी थी। थोड़ी देर तक हम दोनों लम्बी-लम्बी साँसें लेते रहे। भाभी ही उठी और फिर मेरे बगल में लेट गईं। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझे बाहों में भरकर एक जबर्दस्त किस कर लिया। मुझे जवाब मिल गया था की मैं इम्तेहान मैं पास हो गया, बाहर जबर्दस्त होली के गाने चल रहे थे।

--------
जो सोचते है आप उन सोच से आगे ही चलती हो. वुमन ऑन टॉप पर मेने अपनी फैंटासी जाहिर की आपने तो आगे निबंध ही लिख रखा है.

चरण स्पर्श.

वाह फिर वही एहसास. आज मै साजन और तुम मेरी सजनी. माझा आ गया. क्या सीन बनाया है. शब्दो की जादूगर्नी. पर आनंद बाबू तो जैसे महतरी के पेट से ही सीखे आए लगता है.

भाभी ने उस पोज़ मे भी आनंद बाबू को गरियाना नहीं छोड़ा. माझा आ गया कोमाजी.

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Shetan

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नकबेसर कागा लै भागा,


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बाहर जबर्दस्त होली के गाने चल रहे थे।


नकबेसर कागा लै भागा, मोरा सैयां अभागा ना जागा,


अरे अरे उड़ उड़ कागा चोलिया पे बैठा जोबना पे,

अरे जोबना के सब रस ले भागा।
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थोड़ी देर हम लोग एक दूसरे को कसकर पकड़कर लेटे थे। मैं धीरे-धीरे उनके बाल सहला रहा था। मेरी एक उंगली उनके गालों पे फिर रही थी। चन्दा भाभी भी मेरे पीठ पे हल्के-हल्के हाथ फिरा रही थी।

फिर बातें शुरू हुई।



चन्दा भाभी ने कुछ इधर-उधर की फिर कुछ और ट्रिक्स। खोद-खोद के चन्दा भाभी ने सब कुछ पूछ लिया, मैं इतना शर्मीला कैसे हूँ। मैंने बता दिया की साथ के लड़कों में मैं अकेला था जिसने आज तक ‘कुछ नहीं’ किया था। ज्यादातर लड़कों ने तो 18-19 साल की उम्र में ही। और मोस्टली ने तो कम से कम पांच-छ के साथ। दो-चार ने तो कजिन के साथ ही। गर्लफ्रेंड तो आलमोस्ट सबकी थी।



“अरे तो तुमने क्यों नहीं?” चंदा भाभी ने पूछा।
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“पता नहीं। मन तो बहुत करता था। लेकिन कुछ शर्माता था। कुछ डर की कहीं लड़की मन ना कर दे। और कुछ बदनामी का डर…”

पहली बार मैंने अपने मन की बात किसी को बतायी। चंदा भाभी की उंगली मेरे पीठ के निचले हिस्से पे, मेरे नितम्बों की दरार के ठीक ऊपर सहला रही थी।



“चल कोई बात नहीं,.. अब तो। अरे यार यही तो उम्र होती है। पढ़ाई पूरी हो गई। इत्ती अच्छी नौकरी मिल गई। अभी शादी नहीं हुई। तुम इत्ते लम्बे चौड़े हो। सब कुछ एकदम…”

और ये कहते हुए उनके एक हाथ की उंगली मेरे निपल पे पहुँच गई और पीठ वाली नितम्बों के दरार में।


‘वो’ कुनमुनाने लगा। फिर उन्होंने गुड्डी के बारे में सब कुछ पूछ लिया। पहली बार पिक्चर हाल में से लेकर, आज तक।



भाभी बोली-

“तुम ना बुद्धू हो। अरे जब पेड़ की डाल पे कोई फल पक जाय और उसे कोई ना तोड़े तो क्या होगा?”



मैं बोला- “वो गिर जाएगा और फिर कोई भी उठाकर ले जाएगा…”



भाभी ने प्यार से समझाया- “एकदम वो तो एकदम तैयार थी। वो तो तुम्हारी किश्मत अच्छी थी की किसी और ने। अब तक तुम्हारी जगह कोई और होता तो कब का…”



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“मैं सोच रहा था की वो अभी 10वीं में पढ़ती है उसे कुछ मालूम नहीं होगा। फिर कहीं वह भाभी को शिकायत कर दे तो। वैसे वो है बहुत अच्छी…”

मैंने अपनी मन की बात बताई।



भाभी ने मेरे कान की लौ पे एक छोटी सी किस्सी ले ली और बोली- “अरे बुद्धू। कित्ती बहने हैं उसकी …”



“दो …” मैं बिना समझे बोला।



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“तो सोचो ना, तो क्या उसकी मम्मी के बिना चुदवाये। और तुमने तो देखा ही है की पहले वह लोग एक कमरे में रहते थे। उसने बचपन से कितनी बार अपने मम्मी पापा को करते देखा होगा। और मैं जानती हूँ ना उसकी मम्मी को,... कितनी बार दिन दहाड़े।

फिर लड़कियां तो,... कितनी खुली बातें सब लोग करते हैं आपस में और वो तो गाँव शहर दोनों की है। गाँव में तो शादी ब्याह में, गन्ने के खेत में। लड़कियां बहुत जल्दी तैयार हो जाती हैं। लेकिन एक बात गांठ बाँध लो…”

“क्या?” मैं बड़ी उत्सुकता से भाभी की एक-एक बात सुन रहा था।

“किसी भी कुँवारी लड़की को पहली बार मजा नहीं आता। जो तुमने कहानियों में पढ़ा होगा, सब गलत है। मन उसका जरूर करता है, सहेलियों की बातें सुनकर, भाभी की छेड़खानी से। इसलिए। …”

“बताइये ना फिर क्या करना चाहिए?” मैं बेताब हो रहा था।

“अरे बोलने तो दे…” भाभी बोली-


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“पहली बार उसे दर्द होगा। लेकिन ये दर्द सबको होता है। वह पहली लड़की तो होगी नहीं जिसकी फटेगी। इसलिए उसे थोड़ा प्यार से समझाना चाहिए। मनाना चाहिये और जब दर्द कम हो जाए तो उसे दूसरी बार जरूर चोदो। भले वह चीखें चिल्लाये, थोड़ा गुस्सा हो। वरना पहली चुदाई का दर्द अगर उसके मन में बैठ गया ना तो फिर उसे दुबारा राजी करना मुश्किल होगा।

दुबारा करने पे ही उसे असल मजा मिलेगा। ज्यादातर लड़के ही उसके बाद थक जाते हैं। थक तो वो भी जायेगी। लेकिन कुछ देर बाद अगर कोई, किसी तरह। लड़की को गरम करना उतना मुश्किल नहीं।

तीसरी बार उसे चोद दे ना, फिर तो वो लड़की उसकी गुलाम हो जायेगी। जब भी उससे कहोगे खुद तैयार रहेगी, और कहीं तीन-चार दिन कर दिया तो। फिर तो उसकी चूत में चींटे काटेंगे। तुम नहीं चाहोगे तो भी तुम्हारे पीछे-पीछे आएगी, सबके सामने बिना किसी की परवाह किये…”



मैं आने वाले कल की रात के बारे में सोच रहा था। जब मैं उसे लेकर अपने घर पहुँचूंगा।



“भाभी अगर किसी लड़की के वो वाले पांच दिन चल रहे हों, और जिस दिन खतम हो उस दिन मौका मिले तो। उस दिन करना ठीक होगा की नहीं?”

मैंने भाभी से दिल की बात पूछ ही ली।


भाभी- “अरे वो तो सबसे अच्छा है। उस दिन तो चूत को ऐसी भूख लगी रहती है। वो खुद राजी हो जायेगी। उस दिन तो छोड़ना, कामदेव का अपमान करना है। बस पटक के चोद दो…”



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भाभी ने फिर समझाया- “उस दिन तो लड़की को ऐसी खुजली मचती है ना की बस पूछो मत। बड़ी से बड़ी शर्मीली सती साध्वी होगी वो भी खुद टांग उठाकर। उस दिन तो कोई रह नहीं सकती। लण्ड देव की कृपा ना हुई तो बैगन, मोमबत्ती। कुछ नहीं हुआ तो उंगली। उस दिन तो बस तुम्हें पूछने की देर है…”

हँसकर भाभी बोली।

हम दोनों नें एक दूसरे को कसकर पकड़ रखा था। बाहर अभी भी होली के गाने, जोगीड़ा चल रहा था।




अरे कौन गाँव में सूरज निकले कौन गाँव में चन्दा,

किसने गोरी की चूची पकड़ी किसने हचक के चोदा, जोगीरा सा रा रा।




“बनारस है ये सारी रात चलता है। और तुम सोच रहे की लड़की को ये नहीं पता होगा, वो नहीं पता होगा…”

भाभी जोगीड़ा सुनकर मुश्कुराते हुए बोली। तभी अच्छानक मुझे छुड़ाकर वो उठ खडी हुई।

“क्या हुआ, किधर जा रही हैं आप?” मैंने पूछा।



“कहीं नहीं…” हल्के से उन्होंने बोला और धीरे से दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर झाँका। दोनों लड़कियां घोड़े बेचकर सो रही थीं। उन्होंने फिर दरवाजा बंद कर दिया और मुझसे बोली-

“अरे वो जो पान तुम लाये थे। वो तो मैंने खाया ही नहीं। और वैसे तो तुम पान खाते नहीं, जब तक कोई जबरदस्ती ना खिलाये। तो फागुन में तो देवर से जबरदस्ती बनती है खास तौर से जब वो अगर तुम्हारे ऐसा चिकना हो। है ना?”


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हँसते हुए बर्क में लिपटा हुआ वो ‘स्पेशल’ पान लेकर भाभी आ गईं।
कहानी मे जो गीत लोक गीत का आप जो तड़का डालती हो. वो सीन को फील करने का माझा ही कुछ और है.

भोजी ज्ञान जबरदस्त माझा ला दिया. सीखो आनंद बाबू कुछ. कभी दर्द समझ कर पीछे हटे तो वो मौका कोई और ले लेगा. कहानी की और हकीकत जिंदगी की सचाई.

जो बाते देवर से भाभी पूछ सकती है बता सकती है. वो और कोई नहीं कर सकता.

तो सारे मिलकर बोलो.

भाभी देवो भवः

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Shetan

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पान पलंग तोड़

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“क्या हुआ, किधर जा रही हैं आप?” मैंने पूछा।

“कहीं नहीं…” हल्के से उन्होंने बोला और धीरे से दरवाजे की कुण्डी खोलकर बाहर झाँका। दोनों लड़कियां घोड़े बेचकर सो रही थीं। उन्होंने फिर दरवाजा बंद कर दिया और मुझसे बोली-


“अरे वो जो पान तुम लाये थे। वो तो मैंने खाया ही नहीं। और वैसे तो तुम पान खाते नहीं, जब तक कोई जबरदस्ती ना खिलाये। तो फागुन में तो देवर से जबरदस्ती बनती है खास तौर से जब वो अगर तुम्हारे ऐसा चिकना हो। है ना?”

हँसते हुए बर्क में लिपटा हुआ वो ‘स्पेशल’ पान लेकर भाभी आ गईं।

फिर से उन्होंने मेरे गालों को दबाकर मुँह खुलवा दिया। पान का चौड़ा वाला भाग उनके मुँह में था और नोक वाल भाग निकला था।


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बिना किसी ना-नुकुर के मैंने ले लिया। ज्यादातर पान उनके हिस्से में गया और थोड़ा सा मेरे में। क्यों ये राज बाद में खुला?

हम दोनों पान का रस ले रहे थे।

भाभी ने हल्के से मेरे होंठ पे काट लिया। मैं क्यों पीछे रहता मैंने और कसकर काट लिया और अपने दांतों का निशान उनके गुलाबी होंठों पे छोड़ दिया। इसका स्वाद थोड़ा अलग सा लग रहा था। स्वाद के साथ एक मस्ती सी छा रही थी। देह में एक मरोड़ सी उठ रही थी। भाभी की आँखों में भी सुरूर नजर आ रहा था।

भाभी ने फिर मुझे चूम लिया और मुश्कुराते हुए पूछा- “जानते हो, इस पान को क्या कहते हैं और ये कब खिलाया जाता है?”
“ना…” मैंने कसकर सिर हिलाया और उन्हें हल्के से गाल पे काट लिया। मेरी हरकतें अब मेरे कंट्रोल में नहीं थी।

“तुम बुद्धू हो…”

उन्होंने कसकर अपने मस्त उरोजों को मेरे सीने पे रगड़ा, और कहा-

“इसे पलंग-तोड़ पान कहते हैं और इसे दुल्हन दूल्हा खाते हैं। दूल्हा डालता है दुल्हन के मुँह में इसलिए मैंने डाला तेरे मुँह में। आज तो मैं दूल्हा तुम दुल्हन। क्योंकि मैं ऊपर तुम नीचे। मैं डाल रही हूँ और तुम डलवा रहे हो…”
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“नहीं नहीं भाभी। वो पिछली बार था। अबकी मैं डालूँगा और आप डलवाइयेगा…” मैं भी बोल्ड हो रहा था।

“क्या डालोगे। नाम लेने में तो तेरी साले फटती है…” हँसकर ‘उसे’ हल्के से सहलाती वो बोली।

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‘वो’ जोर-जोर से कुनमुनाने लगा। उनकी चूची कस-कसकर दबाकर मैं बोला-

“भाभी लण्ड डालूँगा। आपकी चूत में और वो भी हचक-हचक कर। आपका देवर हूँ कोई मजाक नहीं…”

“अरे मेरे देवर तो हो ही लेकिन साथ में मेरी बिन्नो (मेरी भाभी) ननद साली के ननदोई भी हो। अपनी बहन कम माल के भंड़वे भी हो और उसके यार भी हो…”

अब भाभी ‘उसे’ कस-कसकर आगे-पीछे कर रही थी और ‘वो’ पूरी तरह तन्ना गया था।

“तुमने भी ना देवरजी क्या सोचकर फुल पावर का माँगा था…” भाभी ने मुझे चिढ़ाया।

मैंने बहाना बनाया- “मुझे क्या मालूम। आपने बोला था। तो मुझे लगा फुल पावर मतलब ज्यादा अच्छा होगा…”

मेरे हाथ अब कस-कसकर उनके जोबन का मर्दन कर रहे थे। क्या मस्त चूचियां थी, खूब गदराई, कड़ी-कड़ी रसीली। मेरी उंगलियां उनके निपल को फ्लिक कर रही थी-

“भाभी, दो ना…”

“क्या?” मेरी आँखों में आँखें डालकर चंदा भाभी ने पूछा।
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“यही। आपकी ए रसीली मस्त चूचियां, ये। ये। चूत…” मुझे ना जाने क्या हो रहा था।

“तो ले लो ना। मेरे प्यारे देवर। मैंने कब मना किया है। देवर का तो हक होता है और वैसे भी फागुन में और…”

और ये कहकर वो मेरे ऊपर आ गईं।
उनके 36डीडी मेरे टिटस को कस-कसकर रगड़ रहे थे।
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मेरे कानों को किस करके वो हल्के से बोली-


“लेकिन याद रख। अगर तू मुझसे पहले झड़ा तो तेरा उपवास हो जायेगा। मैं तो नहीं ही मिलूँगी। वो भी नहीं मिलेगी। अपनी उस मायके वाली छिनाल से काम चलाना। और तेरी गाण्ड मारूंगी सो अलग। और वो तो वैसे भी कल मारी ही जायेगी। ससुराल में वो भी फागुन में आकर बची रहे ऐसी मस्त चिकनी गाण्ड। सख्त नाईन्साफी है…”

और उनकी मझली उंगली मेरे गाण्ड के क्रैक पे रगड़ रही थी।

मेरे पूरे देह में सनसनी फैल गई। जोश के मारे तो ‘उसकी’ हालत खराब थी। मुझे लगा की शायद चन्दा भाभी ‘उसे’ पकड़ लें लेकिन कहाँ.... उनकी उंगली मेरी गाण्ड में घुसने की कोशिश कर रही थी।

अचानक भाभी ने अपने हाथों से मेरे जबड़े को कसकर दबा दिया।

मेरा मुँह खुल गया। उनके रसीले पान से रंगे होंठ मेरे होंठों के ठीक ऊपर थे शायद बस एक इंच ऊपर। वो पान चुभला रही थी और उनकी नशीली आँखें सीधी मेरी आँखों में झाँक रही थीं। उन्होंने मेरे ऊपर से ही, अपना होंठ खोला और सीधे उनके मुँह से मेरे खुले मुँह में।



चन्दा भाभी के मुख रस से घुला मिला, अधखाया कुचला पान का रस।

उनके मजबूत हाथों की पकड़ में मैं अपना चेहरा हिला डुला भी नहीं पा रहा था और पान रस की धार सीधे मेरे मुँह में।

थोड़ी ही देर में भाभी के होंठ मेरे होंठों पे थे। और उन्होंने उसे अच्छी तरह जकड़ लिया, कसकर कचकचा के। कभी वो उसे चूसती, कभी काटती। जैसे सुहागरात के वक्त कोई दुल्हा दुल्हन की नथ उतारने के पहले कस-कसकर उसके मीठे होंठों का रस लूटता है बिलकुल वैसे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपनी मोटी रसीली जीभ भी मेरे मुँह में घुसेड़ दी। वो मेरी जीभ को छेड़ रही थी, उससे लड़ रही थी।

और उसके साथ ही भाभी के खाए, कुचले, रस से लिथड़े पान के बचे खुचे टुकड़े, सबके सब मेरे मुँह में और उनकी जुबान उसे मेरे मुँह के अन्दर ठेलती हुई। पूरा पलंग-तोड़ पान मेरे मुँह में घुल रहा था, उसका रस भिन रहा था। मैं पहले धीरे-धीरे फिर खुलकर मेरे मुँह के अन्दर घुसी, भाभी की जीभ को हल्के-हल्के चूसना शुरू कर दिया।
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जैसे कोई शर्माती लजाती दुलहन, पहले झिझके फिर अपने मुँह में जबरन घुसे शिश्न को रस ले लेकर चूसने लगे। बहुत अच्छा लग रहा था। और भाभी के शरारती हाथ भी ना, वो क्यों चुप बैठते।

जो उंगली मेरे पिछवाड़े के छेद में घुसने की कोशिश कर रही थी, वो अब मेरे बाल्स को सहला रही थी। छेड़ रही थी। और दूसरे हाथ ने जबड़े को छोड़कर, कस-कसकर मेरे निपलों को पिंच करना, कस-कसकर खींचना शुरू कर दिया, और 8-10 मिनट के जबर्दस्त चुम्बन के बाद ही भाभी ने छोड़ा।
वाह आनंद बाबू. अब समझ आया पलंग तोड़ पान किस काम मे आता है. माझा आ गया.

मुन्ना को अब पहल करनी है. आले ले ले.

देख लो आनंद बाबू. अगर भोजी से पहले ज़ड़े तो फिर. उपवास तो करना ही पड़ेगा. तुम्हारा पिछवादा छल्ली होगा वो अलग.

जबरदस्त इरोटिक

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Shetan

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देह का फागुन





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“कहाँ से हाथ हटाऊं। साफ-साफ बोलो ना…”

मैं छेड़ रहा था साथ में अब योनि के ऊपर का हाथ हल्के-हल्के उसे दबाने लगा था।

चंदा भाभी एकदम गुड्डी का रोल प्ले कर रही थीं, एक शर्माती झिझकती किशोरी जो यौवन दान को तैयार तो बैठी हो लेकिन लज्जा अभी भी उसका हाथ पकड़ के खींच रही हो। कभी आँखे बंद कर ले रही हो तो कभी आधी खुली नीम निगाहों से देख रही

जाँघों की पकड़ अब हल्की हो रही थी। और मेरे हाथ का दबाव मजबूत। हाथ अब नीचे दबाने के साथ हल्के-हल्के सहलाने भी लगा था, और वो हालाँकि हल्की गीली हो रही थी। उसका असर पूरे देह पे दिख रहा था। देह हल्के-हल्के काँप रही थी। आँखें बंद थी। रह-रहकर वो सिसकियां भर रही थी।

मेरी भी आँखें मुंदी हुई थी। मुझे बस ये लग रहा था की ये मेरी और ‘उसकी’ मिलन की पहली रात है। मेरे होंठ अब कस-कसकर उसके निपल को चूस रहे थे। मैं जैसे किसी बच्चे को मिठाई मिल जाए बस उस तरह से कभी किस करता, कभी चाट लेता, कभी चूस लेता।
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एक हाथ निपल को फ्लिक कर रहा था, पुल कर रहा था, और दूसरा उसकी योनि को अब खुलकर रगड़ रहा था, और इस तिहरे हमले का जो असर होना था वही हुआ। जांघों की पकड़ अब एकदम ढीली हो गई थी। देह ने पूरी तरह सरेंडर कर दिया था और मौके का फायदा उठाकर मैंने एक घुटना उसकी टांगों के बीच घुसेड़ दिया।

उसे शायद इस बात का अहसास हो गया था इसलिए फिर से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की।



लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। सेंध लग चुकी थी। मेरे हाथों ने जोर लगाकर अब एक टांग को और थोड़ा फैला दिया और अब मेरे दोनों पैर उसके पैरों के बीच घुस चुके थे। मैंने धीरे-धीरे पैर फैलाए और अब दोनों जांघें अपने आप खुल गईं।

मेरा एक हाथ वापस प्रेम द्वार पे पहुँच गया था।
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लेकिन अब सीधे उसकी काम सुरंग के बाहर, दोनों पुत्तियों पे मेरा अंगूठा और तर्जनी थी। मैंने पहले उसे हल्के से दबाया और फिर धीरे-धीरे रगड़ने लगा। वो अब अच्छी तरह गीली हो रही थी। मैंने एक उंगली अब लिटाकर दोनों पुत्तियों के बीच डाल दी, और साथ-साथ रगड़ने लगा। मेरा अंगूठा और तरजनी बाहर से और बीच की उंगली अन्दर रगड़ घिस कर रही थी।


सिसकियों की आवाजें अब तेज हो गई थी।

नितम्ब भी अपने आप ऊपर-नीचे होने लगे थे। मेरे होंठ अब बारी-बारी से दोनों निपलों को चूसते थे, कभी फ्लिक कर लेते थे। साथ में जुबान भी पूरी तरह उत्तेजित खड़े इंच भर लम्बे निपलों को निचे से ऊपर तक तेजी से चाट रही थी। जितनी तेजी से नीचे योनि के अन्दर और बाहर मेरी उंगलियां रगड़ती, उसी तेजी से जीभ निपल चाटती।
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भाभी के होंठ सूख रहे थे। जोबन पत्थर हो गए थे। योनि की पुत्तियां काँप रही थी और वो अच्छी तरह गीली हो गईं।

मेरे होंठों ने जोबन को छोड़कर नीचे का रास्ता पकड़ा।

पहले उनके केले के पत्ते ऐसे चिकने पेट पे चुम्बनों की बारिश की और फिर जीभ की टिप उनकी गहरी नाभि में गोल-गोल चक्कर लगाने लगी।
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साथ ही मेरी बीच वाली उंगली अब पहली बार उनकी योनि में घुसी।

मैंने बस हल्के से दबाया, बिना घुसेड़ने की कोशिश किये।

चन्दा भाभी ने इत्ती कसकर सिकोड़ रखा था की किसी किशोरी कच्ची कली की ही अनछुई प्रेम गुफा लग रही थी। थोड़ी देर में टिप बल्की टिप का भी आधा घुस पाया। वह इत्ती गीली हो रही थी की अब मुझे रोकना उनके बस में ही नहीं था। पहले मैंने हल्के-हल्के अन्दर-बाहर किया और फिर गोल-गोल घुमाने लगा।


भाभी ने मुझे समझा दिया था की मजे की सारी जगह यहीं होती है।
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उंगली के साथ अंगूठे ने अब ऊपर कुछ ढूँढ़ना शुरू किया और जैसे ही उसने क्लिट को छुआ, तो भाभी को लगा की कोई करेंट लग गया हो और उन्होंने झटके से अपने भारी भारी 38” इंच साइज वाले चूतड़ ऊपर उछाले, और ओह्ह… ओह्ह्ह… उनके मुँह से आवाज निकली।

साथ ही मेरी उंगली अब एक पोर से ज्यादा अन्दर घुस गई।

होंठ अब नाभि से बाहर निकलकर उनकी काली घुंघराली केसर क्यारी तक आ पहुँचे थे। वो सोच रही थी की शायद अब मैं ‘नीचे’ चुम्बन लूंगा। लेकिन मैं भी। उन्होंने मुझे बहुत सताया था।



उन्होंने उसके चारों और किस किया और नीचे उतर आये, जांघों के एकदम ऊपरी भाग पे, कभी मैं किस करता, कभी चाटता।

साथ में मेरी मझली उंगली अब कभी तेजी से अन्दर होती, कभी बाहर, कभी गोल-गोल रगड़ती। और अंगूठा भी अब वो क्लिट को प्रेस नहीं कर रहा था बल्की कभी फ्लिक करता कभी पुल करता।

मस्ती के मारे भाभी की हालत खराब थी।

एक पल के लिए मैंने उन्हें छोड़ा और झट से एक मोटी बड़ी तकिया उनके चूतड़ों के नीचे लगाई और कसकर दोनों हाथों से उनकी जांघें पूरी तरह फैला दी, तो अब मेरे प्यासे होंठ सीधे उनकी योनि पे थे।

पहले तो मेरे होंठ उनके निचले होंठों से मिले। हल्की सी किस।


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फिर एक जोरदार किस और थोड़ी ही देर में मेरे होंठ कस-कसकर चूम रहे थे, चाट रहे थे।

योनि और पिछवाड़े वाले छेद के बीच की जगह से शुरू करके एकदम ऊपर तक कभी छोटे-छोटे और कभी कसकर चुम्बन। फिर थोड़ी देर में मेरी जुबान भी चालू हो गई। उसे पहली बार चूत चाटने का स्वाद मिला था। क्या मस्त स्वाद था। अन्दर से खारे कसैले अमृत का स्वाद। लालची जीभ रस चाटते-चाटते अमृत कूप में घुस गई।



भाभी- “उह्ह्ह… आह्ह्ह… ओह्ह… ओह्ह्ह… नहीं यीईई…” की सिसकियों, आवाजों से अब कमरा गूँज रहा था।

लेकिन मेरी जीभ किसी लिंग से कम नहीं थी। वो कभी अन्दर घुसती, कभी बाहर आती, कभी गोल-गोल घूमती, साथ-साथ मेरे होंठ कस-कसकर उनकी चूत को चूस रहे थे जैसे कोई रसीले आम की फांक को चूसे और रस से उसका चेहरा तरबतर हो जाए, लेकिन वो बेपरवाह मजे लेता रहे, चूसता रहे।
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तभी मुझे भाभी की वार्निंग याद आई- “अगर तुम पहले झड़े तो ‘वो’ भी नहीं मिलेगी…”

ये मौका अच्छा था।

मेरे अंगूठे और तरजनी ने एक साथ उनकी क्लिट को धर दबोचा। मस्ती के मारे वो कड़ी हो रही थी। उसका मटर के दाने ऐसा मुँह खुल गया था। कभी मैं उसे गोल-गोल घुमाता, कभी दबा देता, जुबान होंठों और उंगली के इस तिहरे हमले से। भाभी की आँखें मुंदी हुई थी। वो बार-बार चूतड़ उचका रही थी।

चार-पाँच मिनट में लगातार और बार-बार लगता की भाभी अब झड़ी तब झड़ी।

लेकिन तभी मुझे कुछ याद आया। मेरा तन्नाया जोश में पागल मूसल अन्दर घुसने के लिए बेताब था। वो बार-बार भाभी की जाँघों से टकरा रहा था। भाभी तो आज ‘उसकी’ तरह हैं और मुझे, तो बिना चिकनाहटकर एक कच्ची कली के प्रेम कपाट कैसे खुलते ?


बगल में सरसों के तेल की शीशी रखी थी जिससे अभी थोड़ी देर पहले भाभी ने इस्तेमाल किया था।

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मैंने हथेली में तेल लेकर अच्छी तरह पहले सुपाड़े पे फिर पूरे लण्ड पे मला। वो चिकना होकर खड़ा चमक रहा था। भाभी सोच रही थी की अब मैं ‘उसे’ लगाऊँगा। लेकीन मैं भी।

मैंने एक बार फिर कसकर चूत चूसना शुरू किया।

मेरे दोनों होठों के बीच उनके निचले होंठ थे। होंठ चूस रहे थे और जुबान बार-बार अन्दर-बाहर हो रही थी। साथ में मेरी उंगलियां बिना रुके उनके क्लिट को।


थोड़ी देर में भाभी के नितम्ब जोरों से ऊपर-नीचे होने लगे, वो फिर से झड़ने के कगार पे पहुँच गई थी लेकिन मैं रुक गया। मैंने अपने उत्थित लिंग को उनकी चूत के मुंहाने पे, क्लिट पे बार-बार रगड़ा।

भाभी खुद अपनी टांगें फैला रही थी। जैसे कह रही हों- “घुसाते क्यों नहीं। अब मत तड़पाओ…”

लेकिन थोड़ी देर में फिर मैंने उसे हटा लिया, और अबकी जो मेरे होंठों ने चूतरस का पान करना शुरू किया तो। बिना रुके। लेकिन थोड़ी ही देर में मेरे होंठ पहली बार उनके क्लिट पे थे। पहले तो मैंने सिर्फ जीभ की टिप वहां पे लगाई फिर होंठों के बीच लेकर हल्के-हल्के चूसना शुरू किया।

भाभी जैसे पागल हो गई थी-

ओह्ह्ह… अंहं्ह। अह्ह्ह… अह्ह्ह… चूतड़ उठाती मुझे अपनी ओर खींचती। अबकी वो कगार पे आई तो मैं रुका नहीं। मैंने हल्के से उनकी क्लिट पे काट लिया फिर तो। मैंने उनकी दोनों टांगें अपने कंधे पे रख ली। जांघें पूरी तरह फैली हुई।
वाह आनंद बाबू वाह. क्या इरोटिक सीन बनाया है. फागुन सार्थक हो गया. जबरदस्त..... अब तक के पैमाने मे बिलकुल सही उतारे हो. माझा आ गया.

फागुन होता किस लिए है आखिर. देवर का काम ही जब उनकी कमी बाकि रहे जाए.

शारारत और हवस का मिश्रण.

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