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Adultery जब तक है जान

Tiger 786

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#21

भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
Awesome update
 

Tiger 786

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#22

सुबह उठा तो बदन में दर्द सा था हाथ मुह धो ही रहा था की मैंने पिताजी की आवाज सुनी जो किसी बात को लेकर बुआ पर चिल्ला रहे थे मुझे देख कर वो चुप हो गए बुआ अन्दर चली गयी .

“तुझे कितनी बार कहा है की मुनीम जी से काम सीख ले , ” पिताजी ने कहा

मैं- शराब से लोगो की जिन्दगी बर्बाद होती है , मैं ये काम नहीं करूँगा हां खेती की पूरी जिम्मेदारी ले लूँगा

पिताजी- ये जो तमाम सुख सुविधाए तुमको मिलती है न उसी शराब की कमाई से आती है और तुझे क्या परवाह है लोगो की जिन्दगी की ये मत भूल तू किसका बेटा है . पैदा तो मैंने शेर किया था पर तुझे देख कर लगता है की शेर के घर में गीदड़ पैदा हो गया है . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है यहाँ अच्छाई एक लिमिट तक ही रहती है , सरल सहज लोग जल्दी ही बर्बाद हो जाते है . इस बात को समझ लेगा तो जी लेगा दुनिया में वर्ना धिक्कार ही रहेगा तुझ पर .मैंने आगे कुछ नहीं कहा और घर से बाहर निकल गया .


देखा पिस्ता अपने घर के बाहर ही बैठी थी .

“और चौधरी साहब आज इधर किधर ” उसने मुझे देखते हुए कहा .

मैं- और कोई काम नहीं है क्या बाप के ताने सुनकर आया हूँ तू भी ताने मार ले

“आजा बैठ के बात करते है ” पिस्ता ने मुझे घर के अन्दर आने को कहा

मैं उसके पीछे गया .

“क्या हुआ जो सुबह सुबह उदासी चेहरे पर ले आये ” उसने कहा

मैं- वही रोज का किस्से, बाप चाहता है की मैं उसके कारोबार को संभालू. मैं शराब नहीं बनाना चाहता न बेचना चाहता हूँ . मैंने कहा खेती कर लूँगा तो बाप चिढ गया उसकी आन बाण से तंग आ चूका हूँ मैं

पिस्ता- सही कहते है बड़े चौधरी , तू एकलौती औलाद है उनकी और फिर कौन बा चाहेगा की औलाद कामयाब ना हो.

मैं- तू उस घर में रहती न तो तू समझती कितना जहर है उन दीवारों में

पिस्ता- दुनिया तेरी तरह नहीं सोचती देव, जिस जहर की तू बात करता है वो चौधरी ही नहीं इस गाँव के हर घर में फैला है , ये दुनिया इतनी भी आसान नहीं है जितनी तू समझता है और फिर तूने जाना ही क्या है . जिस आन बान शान से तू नफरत करता है तेरे जीवन की सच्चाई है जिस से तू कभी भाग नहीं पायेगा. जात-पात की दीवारे इतनी ऊँची है की इंसानियत बौनी पड़ ही जाती है .


“फिर तो मुझ को इन्सान होना ही नहीं चाहिए पिस्ता, फिर तो इस चौधरी को तेरे घर में पैर ही नहीं रखना चाहिए था . क्या बकवास है ये सब. मैं तेरे साथ इसलिए हूँ क्योंकि तू समझती है मुझे. अपने मन की कह सकता हु तुझसे .मुझे लगता है की कोई है जो मेरे साथ है .और अगर ये सब करने से मुझे मेरा चौधरी होना रोकता है तो मैं खुद को चौधरी मानता ही नहीं ” मैंने कहा

पिस्ता- फिर तो तेरा आने वाला वक्त मुश्किल रहेगा देव .

मैं- देखेंगे वो भी फिलहाल कुछ है तो खिला दे भूख सी लगी है बैसे भी अब घर नहीं जाने वाला मैं जब तक बापू रहेगा .

पिस्ता- ये भी कोई कहने की बात है

पिस्ता ने मुझे खाना परोसा .

“क्या सोचने लगा देवा ” लस्सी का गिलास भरते हुए बोली वो

मैं- इस रोटी और मेरे घर की रोटी में फर्क है , वो रोटी अपनी सी नहीं लगती और ये रोटी रोज नहीं मिल सकती .

पिस्ता- चुपचाप खा ले, किसी को मालूम हुआ की तू मेरे घर खाना खाया है तो गाँव में बवाल हो जाये

मैं- वो भी देखेंगे ,वैसे तेरे घर वाले गए कहाँ कोई दिख नहीं रहा

पिस्ता- वो होते तो क्या तू अन्दर होता

हम दोनों हंस पड़े. मैं सोचने लगा की बुआ वाली बात पिस्ता को बतानी चाहिए या नहीं . कुछ देर उसके साथ रहने के बाद मैं गाँव में निकल गया .मालूम हुआ की रागनी प्रोग्राम वाले अपना सामान समेट कर चले गए जबकि प्रोग्राम कम से कम हफ्ते भर तो चलना ही था . कब तक भटकता , घर पहुंचा तो देखा की माँ कपडे धो रही थी पिताजी के कुरते पर खून के दाग थे .आज मैंने हिम्मत करके माँ से सवाल कर ही लिया

मैं- माँ, ये दाग मैं अक्सर ही देखता हूँ इस कुरते पर .

“तू जानता है न इस घर में सवाल करने की इजाजत नहीं है देवा. ” माँ ने कहा

मैं- मैं नहीं तुम तो सवाल कर सकती हो न माँ. मुझसे ना सही पर तुमसे तो कुछ नहीं छिपा ना माँ

“इस घर में औरतो को भी इजाजत नहीं है ” माँ ने कहा

मैं- पिताजी ऐसा क्या करते है . कहने को तो हमारी शराब की फक्ट्री है दान पुन्य भी करते है जमीने है फिर भी ये सब

माँ- बाहुबली है तेरे बापू , और फिर तुझे अगर इतना ही जानने की ललक है तो फिर धंधा संभाल क्यों नहीं लेता तू

“कुछ बाते घर के बेटे को घर में ही मालूम हो जाये तो बेहतर होगा माँ, कल किसी और से मैं जानूंगा तो कहीं इस घर की आन बान शान पर असर ना हो ”मैंने कहा . माँ कुछ नहीं बोली.

“भाभी मैं कुछ देर घर से बहार जाना चाहती हूँ ” बुआ ने आते हुए कहा

माँ- चौधरी सहाब को मालूम हुआ तो जानती हो न क्या होगा.

मैं- बुआ पर इतनी बंदिशे क्यों है माँ

माँ- तू चुप कर , आजकल जुबान बहुत चलने लगी है तेरी अन्दर जा और तुम ,मैं कुछ कहना नहीं चाहती. कम से कम मुझे तो चैन से जीने दो .
पैर पटकते हुए मैं कमरे में जाने की जगह एक बार फिर से निकल गया घर से. पर कहते हैं न की जब मन में व्यथा हो तो मन कही भी नहीं लगता खेतो पर भी करार नहीं आया तो मैं जंगल में भटकने लगा और भटकते भटकते मैंने एक बार फिर जंगल में कुछ ऐसा देखा की साला समझ में आया ही नहीं की ये सब आखिर है क्या......................
Lazwaab shandaar update
 

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भटकते भटकते मैं उस जगह पर जा पहुंचा जो होकर भी नहीं थी .........
मुझे जरा भी अंदाजा नहीं था की ये बारिश मुझे कैसे भिगोएगी, सिर्फ मेरे तन को ही नहीं मेरे मन को भी जंगल में मोर को नाचते तो दुनिया ने देखा था पर मैंने उसे देखा, उसे देखा और देखता ही रह गया. बारिश की बूंदों संग खेलती वो ,फुल पत्तियों संग डोलती वो . उगता सूरज भी देखा था ,दोपहर को तपता सूरज भी देखा था पर बारिश में उगता चाँद मैंने पहली बार देखा था, वो सांवली सूरत ,उसके गुनगुनाते होंठ जैसे बंसी की कोई तान . मेरी जगह को कवी, शायर होता तो उसकी पहली तमन्ना यही होती की वक्त का पन्ना वही उस छोटे से लम्हे में रुक जाए.
तभी उसकी नजर मुझ पर पड़ी और उसके हाथ थम गए. उसने अपना नाच रोका और मुझे देखने लगी.


“माफ़ी चाहूँगा , मेरा इरादा बिलकुल भी नहीं था आपका ध्यान भटकाने का ” मैंने कहा

“हम्म ” उसने मेरे पास आते हुए कहा

केसरिया लहंगा चोली में वो सांवली सूरत , उसकी आभा में कोई तो बात थी . कुछ देर वो बस मुझे देखती रही और फिर वो जाने लगी .

“बारिश बहुत तेज है ,क्या मैं आपकी मदद करू, मेरा मतलब है इस समय आप अकेली है आपको घर तक छोड़ दू ” मालूम नहीं क्यों मैंने उसे ये बात कह दी

“घर , हाँ घर तो जाना ही है बस देखना है की देर कितनी लगेगी ” उसने कहा

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- मेरा घर पास में ही है , वैसे तुम क्यों भटक रहे हो

मैं- सच कहूँ, घर जाने का मन नहीं था

“एक हम है जो घर को तरसते है एक ये है जो घर को घर नहीं समझते ” उसने कहा

मैं- समझा नहीं

तभी बादलो से बिजली लड़ पड़ी, इतनी जोर की आवाज थी की एक पल के लिए लगा की सूरज ही उग आया हो , शोर से जैसे कानो के परदे फट ही गए हो बिजली पास में ही गिरी थी वो दौड़ पड़ी उसके पीछे मैं भागा. खंडहर की मीनार को ध्वस्त कर दिया था बिजली ने पत्थरों के आँगन में मीनार के टुकड़े बिखरे हुए थे .

“नुक्सान बहुत हुआ है ” मैंने कहा

“खंडहर नहीं है ये मंदिर था किसी ज़माने में, और ज़माने ने ही भुला दिया इसे. ” उसने कहा और जाकर उस जगह बैठ गयी जहाँ पर माता की मूर्ति थी मैं भी बैठ गया .


“क्या कहानी है इस जगह की ” मैंने सवाल किया

“समय से पूछना क्यों भुला दिया गया ” उसने जवाब दिया

मैं- तुम्हारी आधी बाते तो मेरे सर के ऊपर से जा रही है

“इतनी भी मुश्किल नहीं मैं ” वो बोली

मैं- आसान भी तो नहीं

वो- तुम्हे लौट जाना चाहिए अब

मैं- तुम नहीं जाओगी

वो- मेरा घर यही है , तालाब के पीछे घर है मेरा

मैं- ठीक है तुम्हे छोड़ते हुए मैं भी निकल जाऊँगा

उसने काँधे उचकाए और सीढियों से उतरते हुए हम उस जगह जा पहुंचे जहाँ एक झोपडी थी

मैं- यहाँ रहती हो तुम

वो- हाँ

मैं- बस्ती से इतनी दूर तुम्हे परेशानी नहीं होती

वो- बस्ती में जायदा परेशानी होगी मुझे

“ठीक है , मिलते है फिर ” मैंने कहा कायदे से मुझे आगे बढ़ जाना चाहिए था पर मेरे पैर जाना नहीं चाहते थे वहां से

वो- क्या हुआ

मैं- बारिश की वजह से ठण्ड सी लग रही है चाय मिल सकती है क्या एक कप

वो- दस्तूर तो यही है की इस मौसम में कुछ चुसकिया ली जाये पर अफ़सोस आज मेरे घर चाय नहीं मिल पायेगी मैंने कुछ दिन पहले ही बकरी बेचीं है

मैं- कोई बात नहीं फिर तो

“मुझे लगता है की तुम्हे अब जाना चाहिए ” उसने आसमान की तरफ देखते हुए कहा और मैं गाँव की तरफ चल दिया .पुरे रस्ते मैं बस उसके बारे में ही सोचता रहा .

चोबारे में गया तो पाया की बुआ कुछ परेशान सी थी

मैं- क्या हुआ बुआ कुछ परेशान सी लगती हो

बुआ के चेहरे पर अस्मंस्ज्स के भाव थे हो न हो वो उसी किताब की वजह से परेशान थी , अब सीधे सीधे तो मुझ से पूछ सकती नहीं थी

बुआ- नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं

मैंने रेडियो चला दिया, बारिश के मौसम में बड़ा साफ़ पकड़ता था . हलकी आवाज में गाने सुनते हुए मैंने वो शाम काटी, कभी कभी मेरी और बुआ की निगाहें मिल जाती थी , जिन्दगी में मैंने पहली बार बुआ को गौर से देखा, पांच फूट लम्बी , गोरी, भारी छातिया और पीछे को उभरे हुए कुल्हे, मेरे दिमाग में हलचल सी मचने लगी, शयद उस किताब में पढ़ी कहानियो का असर था ये .



रात घिर आई थी , चूँकि बारिश अभि भी हो रही थी तो हलकी सी ठण्ड थी मैंने चादर ओढ़ ली, बुआ मेरे पास ही लेटी ही थी रात न जाने कितनी बीती कितनी बची थी पर मैं जाग रहा था .बुआ ने अपना मुह मेरी तरफ किया और अपने पैर को मेरे पैर पर चढ़ा लिया बुआ की गरम साँसे मैंने अपने गालो पर महसूस की . कुछ देर बाद बुआ ने अपने होंठ मेरे गालो रख दिए और हलके से पप्पी ली. मेरा तो बदन ही सुन्न हो गया था . बुआ का बदन धीरे धीरे हिलने लगा था पर क्यों हिल रहा था मैं ये समझ नहीं आ रहा था .

बुआ थोड़ी सी मेरी तरफ सरकी और हलके से बुआ ने मेरे होंठो से खुद के होंठ जोड़ दिए, जीवन का पहला चुम्बन मेरी बुआ ले रही थी \मैं चाह कर भी अपने लिंग में भरती उत्तेजना को रोक नहीं सका , चूँकि बुआ की जांघ मेरे ऊपर थी तो शायद उन्होंने भी मेरे लिंग का तनाव महसूस किया होगा . फिर बुआ सीढ़ी होकर लेट गयी , कुछ देर जरा भी हरकत नहीं हुई और फिर अचानक से बुआ ने अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया . बेशक कमरे में अँधेरा था पर मैं शर्म से मरा जा रहा था मेरी बुआ अपने ही भतीजे के साथ ये अब कर रही थी . बुआ पेंट के ऊपर से मेरे लिंग को सहला रही थी और मैं शर्त लगा कर कह सकता हूँ की ठीक उसी समय बुआ का हाथ अपनी सलवार में था . फिर बुआ ने हाथ लिंग से हटाया और मेरे हाथ को उसकी चुचियो पर रख दिया बुआ सोच रही थी की मैं गहरी नींद में हु पर मैं जागा हुआ था , मैं सोचने लगा की ऐसा बुआ ने क्या पहले भी मेरे साथ ही किया होगा
बहुत ही सुंदर और खुबसुरत अपडेट है भाई मजा आ गया
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
 

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सुबह उठा तो बदन में दर्द सा था हाथ मुह धो ही रहा था की मैंने पिताजी की आवाज सुनी जो किसी बात को लेकर बुआ पर चिल्ला रहे थे मुझे देख कर वो चुप हो गए बुआ अन्दर चली गयी .

“तुझे कितनी बार कहा है की मुनीम जी से काम सीख ले , ” पिताजी ने कहा

मैं- शराब से लोगो की जिन्दगी बर्बाद होती है , मैं ये काम नहीं करूँगा हां खेती की पूरी जिम्मेदारी ले लूँगा

पिताजी- ये जो तमाम सुख सुविधाए तुमको मिलती है न उसी शराब की कमाई से आती है और तुझे क्या परवाह है लोगो की जिन्दगी की ये मत भूल तू किसका बेटा है . पैदा तो मैंने शेर किया था पर तुझे देख कर लगता है की शेर के घर में गीदड़ पैदा हो गया है . ये दुनिया बड़ी मादरचोद है यहाँ अच्छाई एक लिमिट तक ही रहती है , सरल सहज लोग जल्दी ही बर्बाद हो जाते है . इस बात को समझ लेगा तो जी लेगा दुनिया में वर्ना धिक्कार ही रहेगा तुझ पर .मैंने आगे कुछ नहीं कहा और घर से बाहर निकल गया .


देखा पिस्ता अपने घर के बाहर ही बैठी थी .

“और चौधरी साहब आज इधर किधर ” उसने मुझे देखते हुए कहा .

मैं- और कोई काम नहीं है क्या बाप के ताने सुनकर आया हूँ तू भी ताने मार ले

“आजा बैठ के बात करते है ” पिस्ता ने मुझे घर के अन्दर आने को कहा

मैं उसके पीछे गया .

“क्या हुआ जो सुबह सुबह उदासी चेहरे पर ले आये ” उसने कहा

मैं- वही रोज का किस्से, बाप चाहता है की मैं उसके कारोबार को संभालू. मैं शराब नहीं बनाना चाहता न बेचना चाहता हूँ . मैंने कहा खेती कर लूँगा तो बाप चिढ गया उसकी आन बाण से तंग आ चूका हूँ मैं

पिस्ता- सही कहते है बड़े चौधरी , तू एकलौती औलाद है उनकी और फिर कौन बा चाहेगा की औलाद कामयाब ना हो.

मैं- तू उस घर में रहती न तो तू समझती कितना जहर है उन दीवारों में

पिस्ता- दुनिया तेरी तरह नहीं सोचती देव, जिस जहर की तू बात करता है वो चौधरी ही नहीं इस गाँव के हर घर में फैला है , ये दुनिया इतनी भी आसान नहीं है जितनी तू समझता है और फिर तूने जाना ही क्या है . जिस आन बान शान से तू नफरत करता है तेरे जीवन की सच्चाई है जिस से तू कभी भाग नहीं पायेगा. जात-पात की दीवारे इतनी ऊँची है की इंसानियत बौनी पड़ ही जाती है .


“फिर तो मुझ को इन्सान होना ही नहीं चाहिए पिस्ता, फिर तो इस चौधरी को तेरे घर में पैर ही नहीं रखना चाहिए था . क्या बकवास है ये सब. मैं तेरे साथ इसलिए हूँ क्योंकि तू समझती है मुझे. अपने मन की कह सकता हु तुझसे .मुझे लगता है की कोई है जो मेरे साथ है .और अगर ये सब करने से मुझे मेरा चौधरी होना रोकता है तो मैं खुद को चौधरी मानता ही नहीं ” मैंने कहा

पिस्ता- फिर तो तेरा आने वाला वक्त मुश्किल रहेगा देव .

मैं- देखेंगे वो भी फिलहाल कुछ है तो खिला दे भूख सी लगी है बैसे भी अब घर नहीं जाने वाला मैं जब तक बापू रहेगा .

पिस्ता- ये भी कोई कहने की बात है

पिस्ता ने मुझे खाना परोसा .

“क्या सोचने लगा देवा ” लस्सी का गिलास भरते हुए बोली वो

मैं- इस रोटी और मेरे घर की रोटी में फर्क है , वो रोटी अपनी सी नहीं लगती और ये रोटी रोज नहीं मिल सकती .

पिस्ता- चुपचाप खा ले, किसी को मालूम हुआ की तू मेरे घर खाना खाया है तो गाँव में बवाल हो जाये

मैं- वो भी देखेंगे ,वैसे तेरे घर वाले गए कहाँ कोई दिख नहीं रहा

पिस्ता- वो होते तो क्या तू अन्दर होता

हम दोनों हंस पड़े. मैं सोचने लगा की बुआ वाली बात पिस्ता को बतानी चाहिए या नहीं . कुछ देर उसके साथ रहने के बाद मैं गाँव में निकल गया .मालूम हुआ की रागनी प्रोग्राम वाले अपना सामान समेट कर चले गए जबकि प्रोग्राम कम से कम हफ्ते भर तो चलना ही था . कब तक भटकता , घर पहुंचा तो देखा की माँ कपडे धो रही थी पिताजी के कुरते पर खून के दाग थे .आज मैंने हिम्मत करके माँ से सवाल कर ही लिया

मैं- माँ, ये दाग मैं अक्सर ही देखता हूँ इस कुरते पर .

“तू जानता है न इस घर में सवाल करने की इजाजत नहीं है देवा. ” माँ ने कहा

मैं- मैं नहीं तुम तो सवाल कर सकती हो न माँ. मुझसे ना सही पर तुमसे तो कुछ नहीं छिपा ना माँ

“इस घर में औरतो को भी इजाजत नहीं है ” माँ ने कहा

मैं- पिताजी ऐसा क्या करते है . कहने को तो हमारी शराब की फक्ट्री है दान पुन्य भी करते है जमीने है फिर भी ये सब

माँ- बाहुबली है तेरे बापू , और फिर तुझे अगर इतना ही जानने की ललक है तो फिर धंधा संभाल क्यों नहीं लेता तू

“कुछ बाते घर के बेटे को घर में ही मालूम हो जाये तो बेहतर होगा माँ, कल किसी और से मैं जानूंगा तो कहीं इस घर की आन बान शान पर असर ना हो ”मैंने कहा . माँ कुछ नहीं बोली.

“भाभी मैं कुछ देर घर से बहार जाना चाहती हूँ ” बुआ ने आते हुए कहा

माँ- चौधरी सहाब को मालूम हुआ तो जानती हो न क्या होगा.

मैं- बुआ पर इतनी बंदिशे क्यों है माँ

माँ- तू चुप कर , आजकल जुबान बहुत चलने लगी है तेरी अन्दर जा और तुम ,मैं कुछ कहना नहीं चाहती. कम से कम मुझे तो चैन से जीने दो .
पैर पटकते हुए मैं कमरे में जाने की जगह एक बार फिर से निकल गया घर से. पर कहते हैं न की जब मन में व्यथा हो तो मन कही भी नहीं लगता खेतो पर भी करार नहीं आया तो मैं जंगल में भटकने लगा और भटकते भटकते मैंने एक बार फिर जंगल में कुछ ऐसा देखा की साला समझ में आया ही नहीं की ये सब आखिर है क्या......................
बहुत ही मस्त और मनमोहक अपडेट हैं भाई
मजा आ गया
 
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