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Chapter
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Bahut badiya :#५.वो झूठा नहीं था।
विद्या के घर पे आज बहुत से लोग आए हुए थे जिसमें उसके माता-पिता, उसकी दीदी, जिजाजी और आरव की मां।
सभी लोग खाना खा रहे थे।
विद्या :"दीदी, 'सुयोग' क्यों नहीं आया।"
सुयोग ,शारदा यानी विद्या की बहन का बेटा।
शारदा :" स्कूल ट्रिप थी उसकी, वरना वो अपनी मौसी के यहां आने से कभी मना नहीं करता।"
विद्या :"कोई बात नहीं, ट्रीप से आणे के बाद भेज देना।"
विद्या की मां शीला बोली:"बेटी, उसकी कोई जरूरत नहीं, 'सुयोग' की भी पढ़ाई होगी।"
विद्या :" मां तीसरी या चौथी कक्षा में होगा वह, इतनी भी कोई पढ़ाई नहीं रहती।"
शीला:"हमारे हिसाब से नहीं रहती, लेकिन उनके हिसाब से वहीं बहुत है। कोई बात नहीं वैसे भी मैं हु ना अब यहां, और तुम्हारे पिताजी भी है, जबसे यहा आने की बात हुई तब से उन्हें रहा नहीं जा रहा था।"
विद्या:"वो तो होगा ही, अब उनके मन में प्यार है मेरे लिए।"
विद्या की बात पर शीला उसे आंख दिखाते हुए:"हा प्यार उनके मन में प्यार है, हमारे मन में नफरत।"
विद्या अपनी मां की बातों पर मुस्कुराई साथ ही सभी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान थी।
विद्या अपनी बहन के साथ कमरे में बात कर रही थी। उसके काम के बारे में दिन के बारे में बता रही थी। कैसे विद्या सब कुछ सम्भल रहीं है।
विद्या:"दीदी आप खुशनसीब हो आपके पास जीजू है, सुयोग है, एक छोटा सा परिवार। जिंदगी में और क्या चाहिए।"
शारदा ने इस पर कुछ नहीं कहा। उसके चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आई। वहीं अचानक से विद्या ने अपनी आंखे दूसरी और कर ली। उसकी आंखे थोड़ी सी गीली हो चुकी थी।
विद्या:"दीदी सॉरी।"
शारदा:"कोई बात नहीं, तेरी बड़ी बहन हु, तुझे मेरी खुशियों से कभी जलन नहीं होगी पता है।"
विद्या:"हा पर अपनी तरफ देखती हु, तो आंसू निकल हीं जाते है।"
शारदा:"तेरी जिदंगी भी अभी कहा खतम हुई है, अभी जिंदगी बच्ची है। अब तो तेरे पास नौकरी है, और आरव भी चाहेगा की तू खुश रहे।"
इतना कहते हुए शारदा ने विद्या का चेहरा अपनी तरफ किया।
विद्या की आंखे अब भर चुकी थी :"बात ये नहीं कि, मैं खुश नहीं होना चाहती। पर जब सोचती हु मैने आरव के साथ देखे सपने। हमारा बच्चा जिसे मैं संभाल नहीं पाई। जो उनकी निशानी बन कर मेरे पास रहता।"
शारदा:"तुम खुदको इस बात के लिए कोस नहीं सकती तुम्हारी जिसमें गलती ना हो। अब तुम देखो घर को किस तरह संभाल रही हो। तुम कभी भी कोई काम गलत नहीं कर सकती, ये सभी जानते है। सभी आरव के लिए दुखी है।"
विद्या ने कुछ नहीं कहा बस सर ना में घुमाया।
अब आंसू गालों पर आ चुके थे।
विद्या:"अभी एक साल भी नहीं हुआ, और मां मेरी दूसरी शादी कराने पर तुली है। आरव ठीक था, मां उसे पसंद नहीं करती थी।"
शारदा:"अब मैं इस बारे में कुछ नहीं बोल सकती, तुम्हारी शादी के लिए मैं और तेरे जीजा ही थे सबसे आगे थे। लेकिन मां को पता है कि तुम उससे कितना प्यार करती हो, वो भला नफरत कैसे करेगी आरव से। अब तो 'आरव की मा' भी तुम्हारी शादी के लिए कह रही है। पूरी जिंदगी अकेली नहीं काटी जाती इसिलिए बस सब को चिंता हैं।"
विद्या ने रेखा जी जैसे बात निकली तो शारदा की तरफ देखा।
शारदा:" सच कह रही हु, तू खुद उनसे पूछ ले। उनकी बाते मासे होती रहती है। वो भी चाहती है कि तुम्हारा परिवार हो। वो तुम्हे बेटी मानती है। उन्हें इस तरह तुझे अकेला देख कर अच्छा थोड़ी लगेगा।"
विद्या शारदा की बात पर चुपचाप रही।
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सुचित्रा जल्दी जल्दी में शुभम के कमरे में पहुंची। अंदर जाने से पहले शुभम अचानक सामने खड़ा हुआ। शुभम अपने कपड़े पहनते हुए दरवाजे के बीचोबीच खड़ा हो गया।
"माँ, क्या हुआ?" शुभम ने बटन लगाते हुए कहा। वो अब कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था।
सुचित्रा जैसे अपनी सोच से बाहर आकर : "कल मुझे क्यों नहीं जगाया? और इतनी रात को कपड़े धोने की क्या जरूरत पड़ी?"
शुभम थोड़ा सोचते हुए उसने कल रात खून से साने कपड़े धोकर ऊपर सुखा दिए थे :"वो.. वो दअरसल आज दोपहर को मुझे दोस्तो के साथ बाहर जाना था और और उस शर्ट पर दाग लगे हुए थे, इसीलिए.." शुभम कुछ आगे बोलता तब तक
सुचित्रा : "तुम्हे कबसे गर्द रंग की शर्ट पसंद आने लगी? और खुद धोने की क्या जरूरत थी?"
शुभम की नजरे सोचते इधर उधर हुए घुमाई, जैसे उसे जवाब आसपास से मिल जायेगा।
शुभम : "मैं बस आपको तकलीफ नहीं देना चाहता था। और मुझे आने में भी कल देर हो गई। वैसे श्वेता की तैयारी हुई कि नहीं, जाना है।"
शुभम की बात सुन सुचित्रा को अजीब लगा। वो उसके मुंह से आप बोलना,और बोलने का तरीका कितना बदल गया है उसके अभी ध्यान आया। सुचित्रा कुछ बोलती तब तक श्वेता वहां आ गई और जाने की बात करने लगी।
सुचित्रा : "अच्छा, तुम्हारे वापस आने पर बात करेंगे, वैसे कल चेतन मामा आए थे और तुम थे नहीं इसीलिए आज जाकर मिल लेना।"
शुभम ने चेहरा बनाते हुए : "क्यों मिलना है? किसी और दिन मिल लूंगा।"
शुभम की बात पर सुचित्रा ने आंखे दिखाई :"अच्छा वैसे तो बहुत मामा-मामा करते थे, अब क्या हुआ, और वैसे भी घर नहीं जाना है, उनके ऑफिस से ही चले जाना।"
श्वेता :" हा, मां तुम चिंता मत करो जाते वक्त उनकी फाउंडेशन से होकर आयेंगे।" इतना कहकर उसने कुछ आंखों से इशारा किया मैं समझ नहीं पाया।
सुचित्राने भी आंखों से इशारा करते हुए कहा :"हा ठीक है, मिल लेना।"
मैं कुछ समझ नहीं पाया, गाड़ी पर बैठते वक्त मैने श्वेता से पूछा। " क्या बात चल रही थी?"
श्वेता :"क्या?"
मैने गाड़ी चालू करदी फिर वो बैठी।
मैं :"वही इशारों से क्या चल रहा था?"
श्वेता :"तुम्हे उससे क्या? तुम अब घर पर नहीं रहते, रहते तो पता होता।"
मैंने आईने से पीछे देखते हुए :"ऐसी क्या बात है, अब बताओ भी?"
श्वेता : "कोई बात नहीं बस कोई इंसान है, चेतन मामा के साथ अन्वी फाउंडेशन में काम करता हैं, अब इसके आगे का तुम खुद मामा से पूछ लो।"
कोण इंसान हैं? कही शुभम के मामा की प्रेमिका वगेरे तो नही। लेकिन अन्वी नाम सुनते ही, मेरे दिमाग में कोई तो बात सता रही थी, ये नाम मैने कही तो सुना हुआ था कहा सुना था मुझे याद नहीं आ रहा था। शायद शुभम ने उसकी मामा की वजह से सुना हो लेकिन ये नाम मैने अभी कुछ दिनों पहले सुना था।
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कॉलेज में आकर वही पकाने वाले लेक्चर में बैठना था। ब्रेक में मेरा किसी से भी यहा पर बात करने का मन नहीं हो रहा था। खासकर आदित्य से, जो कि बाते ऐसे बता रहा था कि जैसे मैं बच्चा हु।उसकी बाते सुनते वक्त मुझे ऐसा लगा कोई घूर रहा है, ये कोई और नहीं बल्कि गौतम और उसकी गैंग थीं। वो तीनो मूर्ति बने मेरी तरफ देख रहे थे। मुझे लगा नहीं था वो तीनो आज आयेंगे भी। कल रात के हादसे के बाद, लेकिन शायद मैने सोचा उससे मजबूत है।
कुछ देर बाद दो लड़किया आकर बैठ गई, गौतम ने नजर उनकी तरफ कर नकली सी मुस्कान दी। और कुछ उनकी बाते चालू हो गई।
मैं तभी अपनी जगह से उठा।
आदित्य बोला : "कहा जा रहे हो?"
फिर उसकी नजर गौतम पर गई "तुम्हे उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं।"
मैं : "तुम मेरी चिंता मत करो, मैं अभी आया।"
मेरे इतना कहने पर आदित्य का चेहरा उतर गया। वो कुछ बोलता तब तक, मैं गौतम की तरफ चल दिया।
मेरे जाते ही उन पांचों की नजरे मेरी तरफ हुई।
मैं :"मुझे तुम तीनो से कुछ बात करनी है, तुम जाओ।" मैने उन लड़कियों को इशारा करते हुए कहा।
उसमें से एक लड़की बोली जिसका नाम शायद से श्रेया था : "गौतम, ये कैसी बतदमीजी कर रहा है, देखो शायद अपनी जगह नहीं जानता। और ऐसे बात करने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"
मैं कुछ बोलता तभी गौतम बोला : "जाओ तुम दोनों, मैं करता हु बात।"
वो कुछ बोलती तब तक उन्हें ओम ने इशारे से जाने को कहा। वो आंखे दिखाते हुए वहा से चली गई।
गौतम उनके जाने पर : "शुभम, श्रेया की बात को दिल पर मत लो, वो नादान है।"
उसकी हा में हा करते हुए बाकी भी कुछ बोलते।
मैं : "उससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता, मैं तो तुम सबसे माफी मांगना चाहता हु।"
ये सुनकर तीनों ने एकदूसरे की तरफ देखा। लगभग तीनों का गला एक ही समय सुख गया।
गौतम : "हमे माफ करदो, हमने तुम्हे जो भी कहा और किया वो अनजाने में किया, अब ऐसा कभी नहीं होगा।"
गौतम की बात पर बाकी दोनों ने उसके तरफ देखा और : "हा... हा बिल्कुल हम सब शर्मिंदा है, और तुम्हारे बारे में भी किसीको कुछ नहीं बताएंगे। तुम जो कहोगे वही करेंगे।"
उन तीनों की बात सुन ऐसा लगा कि ये कितने हरामी है, इतना सब होने के बाद भी उन्हें अक्ल नहीं आई। अभी भी जैसे मैं कोई गैंग हु और ये उसमें में इन्हें शामिल करवा रहा हु ऐसे बर्ताव कर रहे है। लेकिन उन्हें समझाते हुए बोला।
मैं: " नहीं, गलती मेरी थी जो वो सब, तुम सब के सामने हुआ। और मेरा उद्देश्य तुम्हे डराने का बिल्कुल नहीं था, मैं बस इतना चाहूंगा कि ये बात किसीको पता ना चले। अगर तुम किसीको इस बारे मे बताना भी चाहोगे, तो मैं तुम तीनो को कुछ नहीं होने दूंगा।"
मुझे लग रहा था कि उन्हें कुछ राहत की सांस मिलेगी अगर मैं बताऊं कि उन्हें नुकसान पहुंचाने का मेरा उद्देश्य नहीं। लेकिन वो तीनो अब बहुत डर गए शायद उन्होंने मेरी बात का गलत मतलब निकाल दिया।
भलेही उनका पुलिस को मेरे बारे में बताना मेरे लिए घातक था, लेकिन उन लड़कों जो सदमा मेरी वजह से जो मिला है, वो मैं कभी नहीं चाहता था। क्योंकि मैं कानून की नजरों में गलत था और खुदकी नजरों में भी लेकिन ये गलत काम करना एक जरूरत थी।
वो फिरसे मुझसे माफी मांगने लगे, मुझे थोड़ा बुरा लगा, कुछ और कहता तब तक मेरे पीछे आदित्य को आता देख मैं वहा से अलग हुआ।
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एक आदमी अस्पताल में लेटा हुआ , उसके सामने दो हवलदार और एक पुलिस अफसर जो कि 'विमल' था। शरीर पर बहुत से ज़ख्म थे वो बोलने के भी काबिल नहीं था। विमल ने डॉक्टर को इशारा किया, और डॉक्टर वहा से चला गया। फिर से अपनी नजरे उस जख्मी इंसान के तरफ की।
विमल :"गणेश, जिसने पंधरा साल की उम्र में अपना पहला खून किया, बाद में पुलिस से बचाकर शेरा के लिए काम करने लगे, उसके बाद विजू के लिए, और उसका उसे इनाम अब इतने सालों बाद मिला।"
गणेश विमल को घूरते हुए चुपचाप रहा। विमल गणेश की तरफ देख मुस्कुराया।
विमल : "वैसे तुम्हारा नसीब सबसे खराब है, 30 लाशे मिली, जिनपर गोलियां चाकू और कांच बहुत से घाव है, लेकिन तुम ही बचे।"
इतना कहकर विमल ने अपना पैर गणेश के पास रख कुर्सी पर पीछे हुआ।
विमल : " ठीक है, तो बताओ किसके आदमी थे जिन्होंने विजू की गैंग पर हमला किया।"
अपना सर ना में घुमाते हुए गणेश: " नहीं।"
विमल ने सीधे लात उसके शरीर पर रख दी।
गणेश लगभग आंसू निकालकर चिल्लाने लगा।
विमल: "अगर तू नहीं बताएगा, तो जल्द ही भगवान से पूछेगा कि तुझे जिंदा क्यों रखा। तो इसीलिए सीधे शब्दों में बता दे।"
गणेश बोलने कोशिश करते हुए: " वो एक ... अकेला था।"
विमल : "क्या बोला? ये कौन सी गैंग है 'अकेला'।"
विमल ने अपने साथी हवलदारों की तरफ देखा। जैसे कभी नाम सुना है कि नहीं।
गणेश :"नहीं अ ए....एक लड़का आ.. था वो बस।"
विमल : "क्या बकवास कर रहा है? नशा उतरा नहीं क्या तेरा।"
गणेश :" नह ..ही साहब, वो अठारह ह ह साल का.."
आगे उसके शब्द धीरे से निकले।
विमलने झट से हवलदार की तरफ देखते ही हवलदार बाहर भाग कर गया, कुछ ही क्षणों में डॉक्टर वहा पर आ गए
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मेरा दिमाग वैसे ही आदित्य ने खराब कर दिया था। कॉलेज छूटा और मैं श्वेता के लिए पार्किंग में राह देख खड़ा था।
"शुभम, क्या हुआ तुम्हे, ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो?" आदित्य मेरे पास आकर बोला। इस वक्त मेरा सब्र का बांध टूट गया।
मैं :"देखो तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। तुम जिस शुभम को जानते थे वो अब नहीं रहा, तुम्हे बुरा लगेगा लेकिन यही सच है। एक्सीडेंट के बाद तुम जिस भी शुभम को जानते थे वो नहीं रहा।"
आदित्य आगे कुछ नहीं बोला। मेरे इस तरह के शब्दों से उसके हाव भाव बदल गए। उसके कदम अचानक वहीं रुक गए।
मैं : " देखो मैं तुम्हे बुरा महसूस नहीं करवाना चाहता, लेकिन मुझे लगता है मैं तुम्हे जानता भी नहीं हु, बस इतना की तुम एक अच्छे लड़के हो मुझ जैसे इंसान के साथ रहना तुम्हारे लिए सही नहीं है।"
आदित्य ने अपना सर नीचे किया उसे बुरा शायद बहुत लगा था : "ठीक है।" इतना कहकर वो जाने लगा फिर रुककर। "मैं जिस शुभम को जानता हु, वो गैरजिम्मेदार था लेकिन उसने कभी मुझसे झूठ नहीं बोला, वो झूठा नहीं था। या तो तुम बदल गए हो या फिर मैं जिस दोस्त को जानता हु वो है ही नहीं।"
इतना कहकर वो वहां से चला गया। उसके लिए मुझे बुरा लग रहा था लेकिन बात सच थी। उसका दोस्त यह है ही नहीं सिर्फ मैं हु। मेरा मुंह अब उतर चुका था।
तभी सामने से तेजी से चलते हुए श्वेता आयि। लगभग चिल्लाते हुए।"चलो।"
मैं :" क्या हुआ?"
फिर श्वेता ने आंखे दिखाते हुए : " मैने कहा ना चुपचाप चलो तो चलो।"
मैने आगे कुछ ना बोलकर गाड़ी शुरू की वो पीछे बैठ गई।
आगे जाकर जब लगा कि वो शांत हो गई है तो पूछा।
"क्या हुआ? मुझे बताओगी।"
श्वेता :"तुम क्या कर लोगे?"
मैं : " बताओ तो सही।"
श्वेता : "कुछ नहीं, चलो हमे मामा से मिलने जाना है।"
जरूर कुछ तो हुआ है, बाद में पूछना पड़ेगा।
मैं : "वैसे तुमने बताया नहीं क्या इशारे कर रही थी, मां से."
श्वेता :"कुछ नहीं, वो कल मामा आए थे, बोल रहे थे मां से उन्हें एक लड़की पसंद है, शायद उनके यहां शादी की बात करने के लिए मम्मी से पूछने बोल रहे थे कि नानी से कहे।"
मैं : " अच्छा।"
श्वेता :"अच्छा क्या अच्छा? तुम खुश नहीं हो, चेतन मामा शादी कर रहे है।"
मैं :" मैं क्यों खुश होऊंगा?"
श्वेता :"क्यों तुम्हे ही तो शादी पार्टी वगैरह में मजा आता है।"
मैं कुछ बोल ना पाया और हम अन्वी संस्था के पास पहुंच गए।
श्वेता झट से ऊपर चली गई। शायद वहां पर चेतन का ऑफिस था। मैं इधर उधर देखते हुए अंदर जाने लगा। तभी मेरी नजर मेरी विद्या पर पड़ी, सबसे पहला सवाल मेरे मन आया कि ये यह क्या कर रही है। लेकिन जब उसे किसी से फोन पर बात करते हुए देखा तो मैं समझ गया कि क्या होने वाला है।
मैं श्वेता के पीछे जाने वाला था मामा के पास जो कि शायद ऊपर था। लेकिन मैं सीधे विद्या की तरफ चला गया।
विद्या थोड़ी डर गई थी।
मैं : "मैडम दरअसल मुझे आपसे बात करनी थी, उस दिन हो नहीं पाई।"
विद्या : "रुको मैं नहीं जानती तुम यहां क्यों आए हो, लेकिन मैने पुलिस को अभी कॉल किया है वो आते ही होंगे और एक कदम भी आगे बढ़ाया तो यहा भीड़ खड़ी हो जाएगी।"
मैं :"सुनिए मुझे सच में आपसे बात करनी है, औंर मैं आपका पिछा नहीं बल्की आपसे बात करना चाह रह था."
विद्या :"क्या बात करनी है तुम्हे?"
मैं :"बहुत जरुरी है, आरव से जुडी बात है।"
विद्या ने नाम सुनते ही इधर उधर देखा। वो बाहर आई,मैं उसके साथ सीढ़ियों के पास खड़ा हुआ:"तुम इतना जोखिम उठाकर बात करना चाहते हो ,इसीलिए तुम्हे मौका दे रही हु, वैसे भी कुछ मिनिट में पुलिस आएगी। तुम्हारा क्या संबंध है आरव से।"
मैं :"अकेले में बात कर सकते है, यहां बहुत से लोग है।"
विद्या :"नहीं जो कहना है यही कहो। कोई नहीं सुनेगा।"
मैने उस पर कुछ नहीं बोला। इस तरह मुझ पर विद्या का भरोसा ना देख बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन उसकी इसमें गलती नहीं थी।
मैं :"दअरसल मैं आरव को जानता हु, उनकी मौत जिस जगह पर हुई थी, ड्रग्स के रैकेट को पकड़ते वक्त दरअसल वो जगह अभी अन्वी फाउंडेशन को दी गई है रेंट पर।"
विद्या:"ये तुम्हे कैसे पता? और इसका क्या संबंध आरव से।"
मैं :"दअरसल मैं वहा पर एक बार जा कर आया हु, और वो जगह अभी भी ड्रग्स का अड्डा है।"
विद्या:"क्या बकवास कर रहे हो? और ये बात सच हैं तो पुलिस को बताओ। वो क्या कर रही है, ये तो उनका काम है।"
मैं:"हा, बता देता लेकिन मैं किसी पर भरोसा नहीं करता,और ऊपर आप यहां पर काम करती है।"
विद्या:"सबसे जरूरी बात,तुम्हारा इन सब से क्या संबंध।"
मैं:"इन सबसे सभी का संबंध है। ये हमारे शहर बर्बाद कर रहे है। और ऊपर से आरव को मैं जानता था।"
विद्या:"मैने तो कभी नहीं देखा तुम्हे, और तुम्हारी बातों पर भरोसा कैसे कर लू।"
मैं:"आपने पुलिस को फोन लगाया मैं उनके सामने ये बाते बोल दूंगा। और इतना बड़ा जोखिम मैं क्यों लूंगा अगर मेरी बात झूठी होगी तो।"
तभी मुझे पीछे से श्वेता की आवाज आई, उसके साथ उसके मामा भी थे। मैं मुड़ा साथ ही मैं विद्या भी मुड़ी।
चेतन:"मैं ऊपर इंतजार कर रहा था, और तुम नीचे खड़े होकर विद्याजी से बात कर रहे हो।"
विद्या:"सर, आप इसे जानते हो।"
चेतन:"जानते हो मतलब मेरी बहन का लड़का है, बताया नहीं था 'कोमा' मे था।"
विद्या:"हा, मतलब अच्छे से जानते होगे।"
विद्या की मैने ना मैं इशारा किया।
चेतन:"वैसे शुभम तुम यहां क्या कर रहे थे?"
मैं:"वो बस पूछताछ कर रहा था, आपकी संस्था के बारे मे।"
तभी सामने से विमल पुलिस की गाड़ी में आया।
विद्या:"सर पांच मिनिट मुझे बस काम है आती हु।" इतना कहकर विद्या वहां पर चली गई। उसकी बातों से लग रहा था कि विद्या ने पूरी बाते विमल को बता दी
है। क्योंकि विमल की नजर अचानक मेरी तरफ हुई। ये नजर में जानता था, में भी पुलिस वाला था। ऊपर से विमल को अच्छी तरह से पहचानता था। उसे शक तो हुआ था। वो फिर चल गया। शायद वो शुभम के मामा के सामने मेरी पूछताछ नहीं करवाना चाहती थी।
और मुझे पता था विमल मुझसे मिलने जरूर आएगाl
.........लाइक दो और अपने विचार लिखो।मैं घूमने गया था, उसके बाद वापस आने पर थोड़ा काम में बिजी हो गया। एक महीना लगा है लेकिन अगला भाग जल्दी आएगा।
ThanksShaandar jabardast Romanchak Update![]()
ThanksBahut badiya :![]()
Thanks, agli jaldi aayegi.Lovely starting maja aa gaya bus update jaldi dene ki try karna![]()
#५.वो झूठा नहीं था।
विद्या के घर पे आज बहुत से लोग आए हुए थे जिसमें उसके माता-पिता, उसकी दीदी, जिजाजी और आरव की मां।
सभी लोग खाना खा रहे थे।
विद्या :"दीदी, 'सुयोग' क्यों नहीं आया।"
सुयोग ,शारदा यानी विद्या की बहन का बेटा।
शारदा :" स्कूल ट्रिप थी उसकी, वरना वो अपनी मौसी के यहां आने से कभी मना नहीं करता।"
विद्या :"कोई बात नहीं, ट्रीप से आणे के बाद भेज देना।"
विद्या की मां शीला बोली:"बेटी, उसकी कोई जरूरत नहीं, 'सुयोग' की भी पढ़ाई होगी।"
विद्या :" मां तीसरी या चौथी कक्षा में होगा वह, इतनी भी कोई पढ़ाई नहीं रहती।"
शीला:"हमारे हिसाब से नहीं रहती, लेकिन उनके हिसाब से वहीं बहुत है। कोई बात नहीं वैसे भी मैं हु ना अब यहां, और तुम्हारे पिताजी भी है, जबसे यहा आने की बात हुई तब से उन्हें रहा नहीं जा रहा था।"
विद्या:"वो तो होगा ही, अब उनके मन में प्यार है मेरे लिए।"
विद्या की बात पर शीला उसे आंख दिखाते हुए:"हा प्यार उनके मन में प्यार है, हमारे मन में नफरत।"
विद्या अपनी मां की बातों पर मुस्कुराई साथ ही सभी के चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान थी।
विद्या अपनी बहन के साथ कमरे में बात कर रही थी। उसके काम के बारे में दिन के बारे में बता रही थी। कैसे विद्या सब कुछ सम्भल रहीं है।
विद्या:"दीदी आप खुशनसीब हो आपके पास जीजू है, सुयोग है, एक छोटा सा परिवार। जिंदगी में और क्या चाहिए।"
शारदा ने इस पर कुछ नहीं कहा। उसके चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान आई। वहीं अचानक से विद्या ने अपनी आंखे दूसरी और कर ली। उसकी आंखे थोड़ी सी गीली हो चुकी थी।
विद्या:"दीदी सॉरी।"
शारदा:"कोई बात नहीं, तेरी बड़ी बहन हु, तुझे मेरी खुशियों से कभी जलन नहीं होगी पता है।"
विद्या:"हा पर अपनी तरफ देखती हु, तो आंसू निकल हीं जाते है।"
शारदा:"तेरी जिदंगी भी अभी कहा खतम हुई है, अभी जिंदगी बच्ची है। अब तो तेरे पास नौकरी है, और आरव भी चाहेगा की तू खुश रहे।"
इतना कहते हुए शारदा ने विद्या का चेहरा अपनी तरफ किया।
विद्या की आंखे अब भर चुकी थी :"बात ये नहीं कि, मैं खुश नहीं होना चाहती। पर जब सोचती हु मैने आरव के साथ देखे सपने। हमारा बच्चा जिसे मैं संभाल नहीं पाई। जो उनकी निशानी बन कर मेरे पास रहता।"
शारदा:"तुम खुदको इस बात के लिए कोस नहीं सकती तुम्हारी जिसमें गलती ना हो। अब तुम देखो घर को किस तरह संभाल रही हो। तुम कभी भी कोई काम गलत नहीं कर सकती, ये सभी जानते है। सभी आरव के लिए दुखी है।"
विद्या ने कुछ नहीं कहा बस सर ना में घुमाया।
अब आंसू गालों पर आ चुके थे।
विद्या:"अभी एक साल भी नहीं हुआ, और मां मेरी दूसरी शादी कराने पर तुली है। आरव ठीक था, मां उसे पसंद नहीं करती थी।"
शारदा:"अब मैं इस बारे में कुछ नहीं बोल सकती, तुम्हारी शादी के लिए मैं और तेरे जीजा ही थे सबसे आगे थे। लेकिन मां को पता है कि तुम उससे कितना प्यार करती हो, वो भला नफरत कैसे करेगी आरव से। अब तो 'आरव की मा' भी तुम्हारी शादी के लिए कह रही है। पूरी जिंदगी अकेली नहीं काटी जाती इसिलिए बस सब को चिंता हैं।"
विद्या ने रेखा जी जैसे बात निकली तो शारदा की तरफ देखा।
शारदा:" सच कह रही हु, तू खुद उनसे पूछ ले। उनकी बाते मासे होती रहती है। वो भी चाहती है कि तुम्हारा परिवार हो। वो तुम्हे बेटी मानती है। उन्हें इस तरह तुझे अकेला देख कर अच्छा थोड़ी लगेगा।"
विद्या शारदा की बात पर चुपचाप रही।
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सुचित्रा जल्दी जल्दी में शुभम के कमरे में पहुंची। अंदर जाने से पहले शुभम अचानक सामने खड़ा हुआ। शुभम अपने कपड़े पहनते हुए दरवाजे के बीचोबीच खड़ा हो गया।
"माँ, क्या हुआ?" शुभम ने बटन लगाते हुए कहा। वो अब कॉलेज जाने की तैयारी कर रहा था।
सुचित्रा जैसे अपनी सोच से बाहर आकर : "कल मुझे क्यों नहीं जगाया? और इतनी रात को कपड़े धोने की क्या जरूरत पड़ी?"
शुभम थोड़ा सोचते हुए उसने कल रात खून से साने कपड़े धोकर ऊपर सुखा दिए थे :"वो.. वो दअरसल आज दोपहर को मुझे दोस्तो के साथ बाहर जाना था और और उस शर्ट पर दाग लगे हुए थे, इसीलिए.." शुभम कुछ आगे बोलता तब तक
सुचित्रा : "तुम्हे कबसे गर्द रंग की शर्ट पसंद आने लगी? और खुद धोने की क्या जरूरत थी?"
शुभम की नजरे सोचते इधर उधर हुए घुमाई, जैसे उसे जवाब आसपास से मिल जायेगा।
शुभम : "मैं बस आपको तकलीफ नहीं देना चाहता था। और मुझे आने में भी कल देर हो गई। वैसे श्वेता की तैयारी हुई कि नहीं, जाना है।"
शुभम की बात सुन सुचित्रा को अजीब लगा। वो उसके मुंह से आप बोलना,और बोलने का तरीका कितना बदल गया है उसके अभी ध्यान आया। सुचित्रा कुछ बोलती तब तक श्वेता वहां आ गई और जाने की बात करने लगी।
सुचित्रा : "अच्छा, तुम्हारे वापस आने पर बात करेंगे, वैसे कल चेतन मामा आए थे और तुम थे नहीं इसीलिए आज जाकर मिल लेना।"
शुभम ने चेहरा बनाते हुए : "क्यों मिलना है? किसी और दिन मिल लूंगा।"
शुभम की बात पर सुचित्रा ने आंखे दिखाई :"अच्छा वैसे तो बहुत मामा-मामा करते थे, अब क्या हुआ, और वैसे भी घर नहीं जाना है, उनके ऑफिस से ही चले जाना।"
श्वेता :" हा, मां तुम चिंता मत करो जाते वक्त उनकी फाउंडेशन से होकर आयेंगे।" इतना कहकर उसने कुछ आंखों से इशारा किया मैं समझ नहीं पाया।
सुचित्राने भी आंखों से इशारा करते हुए कहा :"हा ठीक है, मिल लेना।"
मैं कुछ समझ नहीं पाया, गाड़ी पर बैठते वक्त मैने श्वेता से पूछा। " क्या बात चल रही थी?"
श्वेता :"क्या?"
मैने गाड़ी चालू करदी फिर वो बैठी।
मैं :"वही इशारों से क्या चल रहा था?"
श्वेता :"तुम्हे उससे क्या? तुम अब घर पर नहीं रहते, रहते तो पता होता।"
मैंने आईने से पीछे देखते हुए :"ऐसी क्या बात है, अब बताओ भी?"
श्वेता : "कोई बात नहीं बस कोई इंसान है, चेतन मामा के साथ अन्वी फाउंडेशन में काम करता हैं, अब इसके आगे का तुम खुद मामा से पूछ लो।"
कोण इंसान हैं? कही शुभम के मामा की प्रेमिका वगेरे तो नही। लेकिन अन्वी नाम सुनते ही, मेरे दिमाग में कोई तो बात सता रही थी, ये नाम मैने कही तो सुना हुआ था कहा सुना था मुझे याद नहीं आ रहा था। शायद शुभम ने उसकी मामा की वजह से सुना हो लेकिन ये नाम मैने अभी कुछ दिनों पहले सुना था।
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कॉलेज में आकर वही पकाने वाले लेक्चर में बैठना था। ब्रेक में मेरा किसी से भी यहा पर बात करने का मन नहीं हो रहा था। खासकर आदित्य से, जो कि बाते ऐसे बता रहा था कि जैसे मैं बच्चा हु।उसकी बाते सुनते वक्त मुझे ऐसा लगा कोई घूर रहा है, ये कोई और नहीं बल्कि गौतम और उसकी गैंग थीं। वो तीनो मूर्ति बने मेरी तरफ देख रहे थे। मुझे लगा नहीं था वो तीनो आज आयेंगे भी। कल रात के हादसे के बाद, लेकिन शायद मैने सोचा उससे मजबूत है।
कुछ देर बाद दो लड़किया आकर बैठ गई, गौतम ने नजर उनकी तरफ कर नकली सी मुस्कान दी। और कुछ उनकी बाते चालू हो गई।
मैं तभी अपनी जगह से उठा।
आदित्य बोला : "कहा जा रहे हो?"
फिर उसकी नजर गौतम पर गई "तुम्हे उनसे डरने की कोई जरूरत नहीं।"
मैं : "तुम मेरी चिंता मत करो, मैं अभी आया।"
मेरे इतना कहने पर आदित्य का चेहरा उतर गया। वो कुछ बोलता तब तक, मैं गौतम की तरफ चल दिया।
मेरे जाते ही उन पांचों की नजरे मेरी तरफ हुई।
मैं :"मुझे तुम तीनो से कुछ बात करनी है, तुम जाओ।" मैने उन लड़कियों को इशारा करते हुए कहा।
उसमें से एक लड़की बोली जिसका नाम शायद से श्रेया था : "गौतम, ये कैसी बतदमीजी कर रहा है, देखो शायद अपनी जगह नहीं जानता। और ऐसे बात करने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी?"
मैं कुछ बोलता तभी गौतम बोला : "जाओ तुम दोनों, मैं करता हु बात।"
वो कुछ बोलती तब तक उन्हें ओम ने इशारे से जाने को कहा। वो आंखे दिखाते हुए वहा से चली गई।
गौतम उनके जाने पर : "शुभम, श्रेया की बात को दिल पर मत लो, वो नादान है।"
उसकी हा में हा करते हुए बाकी भी कुछ बोलते।
मैं : "उससे मुझे कोई फरक नहीं पड़ता, मैं तो तुम सबसे माफी मांगना चाहता हु।"
ये सुनकर तीनों ने एकदूसरे की तरफ देखा। लगभग तीनों का गला एक ही समय सुख गया।
गौतम : "हमे माफ करदो, हमने तुम्हे जो भी कहा और किया वो अनजाने में किया, अब ऐसा कभी नहीं होगा।"
गौतम की बात पर बाकी दोनों ने उसके तरफ देखा और : "हा... हा बिल्कुल हम सब शर्मिंदा है, और तुम्हारे बारे में भी किसीको कुछ नहीं बताएंगे। तुम जो कहोगे वही करेंगे।"
उन तीनों की बात सुन ऐसा लगा कि ये कितने हरामी है, इतना सब होने के बाद भी उन्हें अक्ल नहीं आई। अभी भी जैसे मैं कोई गैंग हु और ये उसमें में इन्हें शामिल करवा रहा हु ऐसे बर्ताव कर रहे है। लेकिन उन्हें समझाते हुए बोला।
मैं: " नहीं, गलती मेरी थी जो वो सब, तुम सब के सामने हुआ। और मेरा उद्देश्य तुम्हे डराने का बिल्कुल नहीं था, मैं बस इतना चाहूंगा कि ये बात किसीको पता ना चले। अगर तुम किसीको इस बारे मे बताना भी चाहोगे, तो मैं तुम तीनो को कुछ नहीं होने दूंगा।"
मुझे लग रहा था कि उन्हें कुछ राहत की सांस मिलेगी अगर मैं बताऊं कि उन्हें नुकसान पहुंचाने का मेरा उद्देश्य नहीं। लेकिन वो तीनो अब बहुत डर गए शायद उन्होंने मेरी बात का गलत मतलब निकाल दिया।
भलेही उनका पुलिस को मेरे बारे में बताना मेरे लिए घातक था, लेकिन उन लड़कों जो सदमा मेरी वजह से जो मिला है, वो मैं कभी नहीं चाहता था। क्योंकि मैं कानून की नजरों में गलत था और खुदकी नजरों में भी लेकिन ये गलत काम करना एक जरूरत थी।
वो फिरसे मुझसे माफी मांगने लगे, मुझे थोड़ा बुरा लगा, कुछ और कहता तब तक मेरे पीछे आदित्य को आता देख मैं वहा से अलग हुआ।
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एक आदमी अस्पताल में लेटा हुआ , उसके सामने दो हवलदार और एक पुलिस अफसर जो कि 'विमल' था। शरीर पर बहुत से ज़ख्म थे वो बोलने के भी काबिल नहीं था। विमल ने डॉक्टर को इशारा किया, और डॉक्टर वहा से चला गया। फिर से अपनी नजरे उस जख्मी इंसान के तरफ की।
विमल :"गणेश, जिसने पंधरा साल की उम्र में अपना पहला खून किया, बाद में पुलिस से बचाकर शेरा के लिए काम करने लगे, उसके बाद विजू के लिए, और उसका उसे इनाम अब इतने सालों बाद मिला।"
गणेश विमल को घूरते हुए चुपचाप रहा। विमल गणेश की तरफ देख मुस्कुराया।
विमल : "वैसे तुम्हारा नसीब सबसे खराब है, 30 लाशे मिली, जिनपर गोलियां चाकू और कांच बहुत से घाव है, लेकिन तुम ही बचे।"
इतना कहकर विमल ने अपना पैर गणेश के पास रख कुर्सी पर पीछे हुआ।
विमल : " ठीक है, तो बताओ किसके आदमी थे जिन्होंने विजू की गैंग पर हमला किया।"
अपना सर ना में घुमाते हुए गणेश: " नहीं।"
विमल ने सीधे लात उसके शरीर पर रख दी।
गणेश लगभग आंसू निकालकर चिल्लाने लगा।
विमल: "अगर तू नहीं बताएगा, तो जल्द ही भगवान से पूछेगा कि तुझे जिंदा क्यों रखा। तो इसीलिए सीधे शब्दों में बता दे।"
गणेश बोलने कोशिश करते हुए: " वो एक ... अकेला था।"
विमल : "क्या बोला? ये कौन सी गैंग है 'अकेला'।"
विमल ने अपने साथी हवलदारों की तरफ देखा। जैसे कभी नाम सुना है कि नहीं।
गणेश :"नहीं अ ए....एक लड़का आ.. था वो बस।"
विमल : "क्या बकवास कर रहा है? नशा उतरा नहीं क्या तेरा।"
गणेश :" नह ..ही साहब, वो अठारह ह ह साल का.."
आगे उसके शब्द धीरे से निकले।
विमलने झट से हवलदार की तरफ देखते ही हवलदार बाहर भाग कर गया, कुछ ही क्षणों में डॉक्टर वहा पर आ गए
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मेरा दिमाग वैसे ही आदित्य ने खराब कर दिया था। कॉलेज छूटा और मैं श्वेता के लिए पार्किंग में राह देख खड़ा था।
"शुभम, क्या हुआ तुम्हे, ऐसे क्यों बर्ताव कर रहे हो?" आदित्य मेरे पास आकर बोला। इस वक्त मेरा सब्र का बांध टूट गया।
मैं :"देखो तुम्हे मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं। तुम जिस शुभम को जानते थे वो अब नहीं रहा, तुम्हे बुरा लगेगा लेकिन यही सच है। एक्सीडेंट के बाद तुम जिस भी शुभम को जानते थे वो नहीं रहा।"
आदित्य आगे कुछ नहीं बोला। मेरे इस तरह के शब्दों से उसके हाव भाव बदल गए। उसके कदम अचानक वहीं रुक गए।
मैं : " देखो मैं तुम्हे बुरा महसूस नहीं करवाना चाहता, लेकिन मुझे लगता है मैं तुम्हे जानता भी नहीं हु, बस इतना की तुम एक अच्छे लड़के हो मुझ जैसे इंसान के साथ रहना तुम्हारे लिए सही नहीं है।"
आदित्य ने अपना सर नीचे किया उसे बुरा शायद बहुत लगा था : "ठीक है।" इतना कहकर वो जाने लगा फिर रुककर। "मैं जिस शुभम को जानता हु, वो गैरजिम्मेदार था लेकिन उसने कभी मुझसे झूठ नहीं बोला, वो झूठा नहीं था। या तो तुम बदल गए हो या फिर मैं जिस दोस्त को जानता हु वो है ही नहीं।"
इतना कहकर वो वहां से चला गया। उसके लिए मुझे बुरा लग रहा था लेकिन बात सच थी। उसका दोस्त यह है ही नहीं सिर्फ मैं हु। मेरा मुंह अब उतर चुका था।
तभी सामने से तेजी से चलते हुए श्वेता आयि। लगभग चिल्लाते हुए।"चलो।"
मैं :" क्या हुआ?"
फिर श्वेता ने आंखे दिखाते हुए : " मैने कहा ना चुपचाप चलो तो चलो।"
मैने आगे कुछ ना बोलकर गाड़ी शुरू की वो पीछे बैठ गई।
आगे जाकर जब लगा कि वो शांत हो गई है तो पूछा।
"क्या हुआ? मुझे बताओगी।"
श्वेता :"तुम क्या कर लोगे?"
मैं : " बताओ तो सही।"
श्वेता : "कुछ नहीं, चलो हमे मामा से मिलने जाना है।"
जरूर कुछ तो हुआ है, बाद में पूछना पड़ेगा।
मैं : "वैसे तुमने बताया नहीं क्या इशारे कर रही थी, मां से."
श्वेता :"कुछ नहीं, वो कल मामा आए थे, बोल रहे थे मां से उन्हें एक लड़की पसंद है, शायद उनके यहां शादी की बात करने के लिए मम्मी से पूछने बोल रहे थे कि नानी से कहे।"
मैं : " अच्छा।"
श्वेता :"अच्छा क्या अच्छा? तुम खुश नहीं हो, चेतन मामा शादी कर रहे है।"
मैं :" मैं क्यों खुश होऊंगा?"
श्वेता :"क्यों तुम्हे ही तो शादी पार्टी वगैरह में मजा आता है।"
मैं कुछ बोल ना पाया और हम अन्वी संस्था के पास पहुंच गए।
श्वेता झट से ऊपर चली गई। शायद वहां पर चेतन का ऑफिस था। मैं इधर उधर देखते हुए अंदर जाने लगा। तभी मेरी नजर मेरी विद्या पर पड़ी, सबसे पहला सवाल मेरे मन आया कि ये यह क्या कर रही है। लेकिन जब उसे किसी से फोन पर बात करते हुए देखा तो मैं समझ गया कि क्या होने वाला है।
मैं श्वेता के पीछे जाने वाला था मामा के पास जो कि शायद ऊपर था। लेकिन मैं सीधे विद्या की तरफ चला गया।
विद्या थोड़ी डर गई थी।
मैं : "मैडम दरअसल मुझे आपसे बात करनी थी, उस दिन हो नहीं पाई।"
विद्या : "रुको मैं नहीं जानती तुम यहां क्यों आए हो, लेकिन मैने पुलिस को अभी कॉल किया है वो आते ही होंगे और एक कदम भी आगे बढ़ाया तो यहा भीड़ खड़ी हो जाएगी।"
मैं :"सुनिए मुझे सच में आपसे बात करनी है, औंर मैं आपका पिछा नहीं बल्की आपसे बात करना चाह रह था."
विद्या :"क्या बात करनी है तुम्हे?"
मैं :"बहुत जरुरी है, आरव से जुडी बात है।"
विद्या ने नाम सुनते ही इधर उधर देखा। वो बाहर आई,मैं उसके साथ सीढ़ियों के पास खड़ा हुआ:"तुम इतना जोखिम उठाकर बात करना चाहते हो ,इसीलिए तुम्हे मौका दे रही हु, वैसे भी कुछ मिनिट में पुलिस आएगी। तुम्हारा क्या संबंध है आरव से।"
मैं :"अकेले में बात कर सकते है, यहां बहुत से लोग है।"
विद्या :"नहीं जो कहना है यही कहो। कोई नहीं सुनेगा।"
मैने उस पर कुछ नहीं बोला। इस तरह मुझ पर विद्या का भरोसा ना देख बहुत बुरा लग रहा था। लेकिन उसकी इसमें गलती नहीं थी।
मैं :"दअरसल मैं आरव को जानता हु, उनकी मौत जिस जगह पर हुई थी, ड्रग्स के रैकेट को पकड़ते वक्त दरअसल वो जगह अभी अन्वी फाउंडेशन को दी गई है रेंट पर।"
विद्या:"ये तुम्हे कैसे पता? और इसका क्या संबंध आरव से।"
मैं :"दअरसल मैं वहा पर एक बार जा कर आया हु, और वो जगह अभी भी ड्रग्स का अड्डा है।"
विद्या:"क्या बकवास कर रहे हो? और ये बात सच हैं तो पुलिस को बताओ। वो क्या कर रही है, ये तो उनका काम है।"
मैं:"हा, बता देता लेकिन मैं किसी पर भरोसा नहीं करता,और ऊपर आप यहां पर काम करती है।"
विद्या:"सबसे जरूरी बात,तुम्हारा इन सब से क्या संबंध।"
मैं:"इन सबसे सभी का संबंध है। ये हमारे शहर बर्बाद कर रहे है। और ऊपर से आरव को मैं जानता था।"
विद्या:"मैने तो कभी नहीं देखा तुम्हे, और तुम्हारी बातों पर भरोसा कैसे कर लू।"
मैं:"आपने पुलिस को फोन लगाया मैं उनके सामने ये बाते बोल दूंगा। और इतना बड़ा जोखिम मैं क्यों लूंगा अगर मेरी बात झूठी होगी तो।"
तभी मुझे पीछे से श्वेता की आवाज आई, उसके साथ उसके मामा भी थे। मैं मुड़ा साथ ही मैं विद्या भी मुड़ी।
चेतन:"मैं ऊपर इंतजार कर रहा था, और तुम नीचे खड़े होकर विद्याजी से बात कर रहे हो।"
विद्या:"सर, आप इसे जानते हो।"
चेतन:"जानते हो मतलब मेरी बहन का लड़का है, बताया नहीं था 'कोमा' मे था।"
विद्या:"हा, मतलब अच्छे से जानते होगे।"
विद्या की मैने ना मैं इशारा किया।
चेतन:"वैसे शुभम तुम यहां क्या कर रहे थे?"
मैं:"वो बस पूछताछ कर रहा था, आपकी संस्था के बारे मे।"
तभी सामने से विमल पुलिस की गाड़ी में आया।
विद्या:"सर पांच मिनिट मुझे बस काम है आती हु।" इतना कहकर विद्या वहां पर चली गई। उसकी बातों से लग रहा था कि विद्या ने पूरी बाते विमल को बता दी
है। क्योंकि विमल की नजर अचानक मेरी तरफ हुई। ये नजर में जानता था, में भी पुलिस वाला था। ऊपर से विमल को अच्छी तरह से पहचानता था। उसे शक तो हुआ था। वो फिर चल गया। शायद वो शुभम के मामा के सामने मेरी पूछताछ नहीं करवाना चाहती थी।
और मुझे पता था विमल मुझसे मिलने जरूर आएगाl
.........लाइक दो और अपने विचार लिखो।मैं घूमने गया था, उसके बाद वापस आने पर थोड़ा काम में बिजी हो गया। एक महीना लगा है लेकिन अगला भाग जल्दी आएगा।
धन्यवाद भाई,Bahut hi umda upate he Anatole Bro,
Shubham aur Vidhya ka aamna samna hota he, lekin shubhak chah kar bhi apne baare me kuch bhi vidhya ko nahi bata sakta.............
Shubham ke mama ki NGO ko vahi godown rent par diya he.....
Ho sakta he chetan mama ka bhi koi haath ho us drug rackit me
Keep rocking Bro