Part 1 Update 25 (Last update 1)
अगले दिन जो शायद उन वैम्पायर का मुखिया और अदिति के पिता थे ललित और अदिति के पास आये और .....
"देखो तुम दोनों अगर साथ रहना चाहते हो तो उसका सिर्फ एक ही तरीका लेकिन वो काफी मुश्किल और ख़तरनाक है । अगर तुम चाहो तो वो प्रक्रिया कर सकते है।"
"मुझे बस अदिति का साथ चाहिए , उसके लिए कुछ भी करने को तैयार हूँ । " ललित ने कहा।
"लेकिन बाबा करना क्या होगा , ना मै इंसान बन सकती हूँ और ना ललित को वैम्पायर तो फिर कैसे , मुझे तो रक्त देखकर ही मुझमे दरिंदगी सवार हो जाती है।"
"तुम्हारे और ललित के रक्त को आपस में संपर्क स्थापित करना होगा । इससे तुम्हारे अंदर उसके रक्त को देखकर कोई भी प्रतिक्रिया नही होगी और दोनों साथ में सामान्य जीवन बिता सकते हो ।"
"नही बाबा ऐसा नही कर सकते हम , क्योंकि इससे ललित की जान को खतरा हो सकता है और वो वैम्पायर ही बन जायेगा। "
"अदिति तुम चुप रहो , मुझे जब परेशानी नही है तो तुम्हे क्यों। "
"ललित प्लीज , तुम समझने की कोशिश करो । मै तुमसे तुम्हारा साधारण जीवन नही छीन सकती।"
"अदिति , ऐसा कुछ नही होगा । एक विस्तृत प्रक्रिया द्वारा तुम दोनों के रक्त मे आपस में संपर्क स्थापित किया जायेगा । इससे किसी को कोई नुकसान नही होगा । ललित पहले जैसा ही इंसान रहेगा और तुम उसके साथ रह सकती हो। "
"ठीक है बाबा, लेकिन मुझे डर लग रहा है। "
"डरो मत बेटा , जब तुम्हारा प्यार सच्चा है और तुम्हारे साथ हे तो हर मुश्किल का कोई न कोई समाधान निकल ही आयेगा । तुम दोनों कल आने वाली पूर्णमासी की आधी रात को तैयार रहना और अदिति तुम इसे लेकर जंगल के बीचोबीच उसी जगह पर आ जाना । मै जबतक सारी तयारी करके रखूँगा ।" कहते हुए वो वहाँ से चले गए ।
अगले दिन पूर्णमासी की रात 12 बजे अदिति ललित को लेकर जंगल के बीचोबीच बाबा द्वारा बताई जगह पर ले गयी । वहाँ पर वैम्पायर का पूरा झुण्ड एकत्रित था । ललित और अदिति उन सभी के बीच से निकलकर बीचोबीच में आ गया । पूर्णमासी का चाँद अपनी पूरी चांदनी बिखेर रहा था । उसी रोशनी में इस पूरी प्रक्रिया को अंजाम देना था । वहाँ पर बाबा एक गोल घेरा बनाये बैठे थे और पीतल के 3 कटोरे और कुछ सामग्री रखी हुई थी । बाबा ने उन दोनों को उस गोल घेरे में आकर बैठने को कहा ।
बाबा आँख बंद करके मन ही मन कुछ मंत्रोउच्चारण करने लगे । फिर एक पीतल के पात्र को ललित के सामने रखकर और चाकू देकर अपनी उंगली को काट कर रक्त की कुछ बूंदों को उस पात्र में गिराने को कहा ।
"बाबा इससे ललित को कोई नुकसान तो नही होगा ना । मुझे डर लग रहा है।" अदिति ने डर जताते हुए कहा।
"तुम डरो मत , बस अपने प्यार पर भरोसा रखो । "
ललित ने चाकू से ऊँगली में हल्का सा कट लगा दिया और उससे निकलती रक्त की बूंदों को उसी पात्र में गिरा दिया ।
"अदिति अब तुम्हे भी यही प्रक्रिया कर उस दूसरे पत्र में अपना रक्त गिराना है ।" मुखिया ने अदिति से कहा ।
बाबा के कहे अनुसार अदिति ने भी वैसा ही किया और अपने रक्त की बूंद को दूसरे पात्र में गिरा दिया। अदिति के पात्र में नीला खून और ललित के पात्र में लाल खून को मुखिया ने उठा कर अपने पास रख लिया फिर कुछ मंत्रोउचारण कर एक साथ ही तीसरे पात्र में गिरा कर लकड़ी की सहायता से अच्छे से मिलाने लगे। उसी समय अदिति के चेहरे के भाव बदलने लगे और वो दर्द से तड़पने लगी ।