- 536
- 494
- 64
Agar kismat saath na de to ishq tabaah kar deta hai kabhi kabhi Sanju bhai, sach hai ye. Aapka andaza sahi hai, Aman nahin raha.जैसा मुझे लगा था कहानी का द एंड रीडर्स के दिल के भावनाओं के साथ खेलने वाला ही होगा , वैसा ही हुआ ।
यह कहानी किस की थी ? अमन की , या अनामिका की , या हरनाम की !
या तीनों के दर्द भरी दास्तां की !
हरनाम जी का एवरी डे अपने बेटे अमन का पत्र पढ़ना और चुपचाप अपने आंसू बहाना ..... ऐसा वो वही करता है जो पत्र लिखने वाले को याद इस तरह से कर रहा है जैसे वो अब इस दुनिया में ही नहीं है ।
जरूर अमन ने भी इस दुनिया को अलविदा कह दिया था ।
एक बाप को अपने जवान बेटे की मौत को देखना.... एक बाप के लिए इससे बड़ा दुःख कुछ भी नहीं हो सकता ।
अमन ..... एक सिंपल और होनहार लड़का । अनामिका से दिवानगी की हद तक प्यार किया । उसकी खुशियों में ही अपना खुशी ढूंढ़ा । उसकी शादी होने के बाद भी उसका इंतजार करता रहा ।
अनामिका..... एक आदर्श बेटी और एक परफेक्ट प्रेमिका । मां बाप के कहने पर अपने प्रेम को न्योछावर कर दिया ।
एक ऐसी प्रेमिका जिसने अपने प्रेमी के बच्चे को जन्म भी दिया , यह जानने हुए भी उसे दुनिया वाले पतीता कह कर पुकारेगें । उसका पति उस बच्चे के लिए उसे वह प्यार नहीं दे सकता है जो एक पति अपने पत्नी को देता है ।
एक ऐसी पत्नी जिसने अपने प्रेमी/ पति के लिए यह जानते हुए भी मां बनना कबूल करी कि इससे उसकी जान चली जायेगी ।
और जैसा La_mujer जी ने कहा..... एक ऐसा शख्स जो सब कुछ जानते हुए भी अनामिका से विवाह किया और उसके बच्चे को अपना नाम दिया ।
बहुत ही खूबसूरत कहानी थी । कुछ कमी थी तो वो ये कि बहुत जल्द कहानी खत्म हो गई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट भाई ।
मैं अपने शब्दों में कहूं तो - जगमग जगमग ।
Thanks bhai. Aap aaye idhar bahaar aayi
Ek review jarur dena samay mile to.
Bhai completed hai. Review dena padh keJarur waise bhi apan love stories ka pankha hai samay nikal ke ise bhi follow krunga bs puri jarur krna
dekh lo phir kaheen aapke pichee madhav na chhor de..Agli story me aur dard ghusaayenge uparwaale ki kripa rahi to![]()
Thanks bhai, aapke shaandaar review ke liye aur Harnaam Singh ke character ko samajhne ke liye, jinpe bahut kam readers ka dhyan jaata hai.Hmm... Romantic Storylines yaani apun ka favourite genre... Oopar se short story yaani Sone pe suhaaga... “अनामिका – एक प्रेम कहानी” jo shuru huyi Anamika aur Aman ki Mohabbat se ant mein laga ke ye in dono ki kahani se zyada Harnam Singh ki kahani thi... Apne jawaan bete ki mrityu dekhna... Uski arthi ko kandha dena, shayad hi iss se bada koyi dukh ho iss sansaar mein aur issi dukh ke graas ban gaye Harnam Singh...
Rishton mein dooriyan aksar aa jaati hain... Khaaskar Baap aur Bete mein to aksar kaafi kam hi taalmel ban paata hai... Par yahaan Aman aur Harnam Singh ke beech dooriyan kuchh adhik hi ban gayi... Galti kiski thi aur kiski nahi iss baat par charcha vyarth hi hogi kyonki Ek to sada sada ke liye iss sansaar ko hi chhod gaya aur doosra shayad zinda hote huye bhi mrit hai... Harnam Singh kabhi shayad jataa hi nahi paaye Aman ko ke wo uss se kitna pyaar karte hain aur shayad Aman bhi samajh nahi paaya... Wo kehte hain naa – Maa paida hone ke saath hi samajh aa jaati hai aur Baap duniya se jaane ke baad...
Anamika ne Aman se aur Aman ne Anamika se sachi Mohabbat ki jiska anjaam behad hi dukhad hua... Kahin naa kahin ye ussi prem kahani ke jaisi thi jahaan khushiyon ki dastak asal mein Tsunami ka saaya hoti hai... Aman ne hamesha Anamika ke waade ka paalan kiya... Khud ko uss se door kar liya par kabhi bhi uske liye apne Dil mein Pyaar kam naa hone diya... Wo naa sirf apne Pyaar se door raha balki apne Ansh... Apne Bete se bhi door raha...
Wahin Anamika ne sab jaante huye bhi poori shiddat se Aman ko pyaar kiya, yahaan tak ki uske bache ki maa bhi bani... Iss se bada suboot kya hoga in dono ke Prem ka... Par Anamika ke ghar waalon ne uski prem kahani par brake laga di... Shayad unki bhi galti nahi hi thi, aakhir har Maa Baap chahte hain ke unke beti ka shaadi shuda jeewan sukhon aur aisho aaram se bhara rahe par wo bhool gaye ke unhone apni beti ki sabse keemti Khushi hi uss se door kar di thi...
Khair, dono Prem Panchhi ek baar fir ek ho gaye par Anamika ko talaak is shart par mila ke unhe apne bete se door hona hoga... Par ek baar fir inki khushiyan ko grahan lag gaya... Anamika apni bachi ko janam dete huye chal basi aur uske baad wo bachi bhi... Aman ki kismat shayad aansuon ki syaahi se hi likhi gayi thi, kabhi bhi khushiyon se uski dosti ho hi nahi paayi... Aakhir mein Harnam Singh ko wo Khat likhne ke baad Aman ne bhi apni Saanson ki Dor ko todd diya aur Apni Anamika ke paas chala gaya sada sada ke liye...
Ek Prem kahani jo shayad Dharti par Mukammal naa ho saki wo aasamnon mein hi apne pankh faila paayi... Par Harnaam Singh reh gaye uss chitthi aur un yaadon ke saath apni Zindagi ke iss safar mein...
Baat karen lekhak saahab ki to bahut hi prashansniya kaam kiya hai aapne ... Short story thi par Emotions par pakad gazab ki rahi... Chaahe wo Aman ka pehlu ho ya Anamika ka ya fir Harnam Singh ka sabke Bhaavon ko bakhoobi chitrit kiya gaya... Jo as a writer aapki kaabiliyat darshata hai... Overall an excellent Story filled with True Love, Separation,Pain, Emotions & Tears...
Excellent Story Men & Waiting For Your Next Creation...
अदभुत कहानी।क्या कभी ऐसा हो सकता है कि हमारी ज़िंदगी का हर एक दिन पिछली रोज़ से और हसीन और खूबसूरत होता ही जाए?
मेरे साथ ऐसा ही हो रहा था। अनामिका से कुछ घंटों से ज़्यादा अलग रहने पर मैं वापस उसके पास आने की कोशिश करता। अगर एक दिन के लिए मुझे काम से किसी दूसरे शहर जाना होता तो मैं दो, तीन, चार बार उसे फ़ोन करता। अगर जाने का अरसा एक दिन से ज़्यादा होता तो वो हमेशा मेरे साथ आती। मुझे याद है, पहले बहुत पहले, आपने एक बार मुझे आपके और माँ के प्रगाढ़ प्रेम के बारे बताया था। मैं बहुत छोटा रहा हूँगा कि आप अपने दिल की बात मुझसे कर सके थे। लेकिन अब मुझे लगने लगा था कि मैंने भी वैसा ही प्रेम पा लिया था।
एक और बरस कैसे बीत गया पता ही न चला। हमने अपने दूसरे बच्चे के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। तय हुआ कि अगर लड़का होगा तो अनामिका की पसंद का नाम आकाश रखेंगे और अगर लड़की हुई तो मेरी पसंद का नाम, ख़ुशी। मैं जानता था कि लड़की ही होगी। मुझे रोकने की अनामिका की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं, लेकिन मैं न माना और हमारे कमरे को गुलाबी रंग से पुतवा लिया। जब भी बाज़ार से लौट कर आता तो मेरे हाथ में मेरी होने वाली छोटी सी बिटिया के लिए कोई खिलौना या कोई पोशाक होती थी। अनामिका ने भी आख़िर मुझे टोकना छोड़ दिया था।
मैंने दफ़्तर से एक लम्बा अवकाश ले लिया, हर वक्त उसके खान-पान का ख़याल रखता, उसे समय पर कसरत करवाता और ज़रा-ज़रा सी बात पर अस्पताल लेकर दौड़ा करता। उस अस्पताल के सभी डॉक्टर और नर्सें मुझे पहचानने लगे थे और मेरी बेवक़ूफ़ियों की वजह से शायद मुझसे थोड़ा कतराने भी लगे थे। नौ महीने बीत गए, मैं अस्पताल में ही जा जमा। जिस तरह से मैं तैयारियाँ कर रहा था ऐसा लगता था कि किसी शहज़ादे या शहज़ादी का जन्म होने वाला है।
आख़िर वह दिन भी आ गया, जब मेरी ख़ुशी का जन्म होने वाला था, मुझे उस बात पर इतना यक़ीन था कि भगवान भी मुझे डिगा ना सकते थे। मैं पूरे दिन अनामिका के पैरों के पास बैठा उन्हें दबाता रहा था। दिन ढलने लगा था जब उसे डिलिवरी के लिए ले ज़ाया गया। मैं कमरे के बाहर गलियारे में बदहवास सा घूम रहा था। नर्सें और कम्पाउंडर कमरे से अंदर-बाहर आ जा रहे थे। कुछ देर बाद डॉक्टर साहब भी आ गए, जो रोज़ मुझसे बच कर निकलने की कोशिश करते थे। लेकिन आज उन्होंने एक बड़ी सी मुस्कान के साथ मेरा कंधा दबाया और अंदर चले गए।
थोड़ी देर बाद एक नर्स बाहर आई, "बच्चा होने ही वाला है।" उसने सिर्फ़ इतना कहा और गलियारे से होकर एक दूसरे कमरे में चली गई।
कुछ पल और बीते। डॉक्टर साहब बाहर आए, "लड़की हुई है।" उन्होंने कहा, मेरी ख़ुशी का ठिकाना न रहा, पहला विचार जो मेरे मन में आया था वह यह कि "चलो कमरे को दोबारा नहीं रंगना पड़ेगा।"
"क्या मैं मिल सकता हूँ?"
"माफ़ कीजिएगा मगर एक बुरी खबर है, हम आपकी वाइफ़ को नहीं बचा सके।" उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए कहा। मुझे उनकी बात पर विश्वास न हुआ, मैं चीखना चाहता था कि यह सच नहीं है, मगर अपने शब्द खो बैठा था।
"हमने उनसे पहले ही कहा था, पहले बच्चे के दौरान हुई दिक़्क़त के बाद शायद दूसरा बच्चा करना ठीक ना होगा।" डॉक्टर ने मुझे कंधे से पकड़ पास रखे एक स्टूल पर बिठाते हुए कहा था।
"पहले कहा था? कब कहा था?" मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
"जब वे पहली बार यहाँ दिखाने आईं थी।" डॉक्टर ने कहा।
उस रोज़ मैं उसके साथ नहीं था दफ़्तर के काम से बाहर गया था, मेरा दिल दहल उठा, आख़िर क्यूँ मैं अनामिका के साथ ना आया था।
"लेकिन अनामिका ने मुझे यह बात क्यों नहीं बताई?" मैंने पूछा। डॉक्टर इस बात का क्या जवाब दे सकता था, लेकिन मैं समझ गया। मेरी ख़ातिर, मेरी चाहत के ख़ातिर, मुझे वो बच्चा देने के लिए जो एक बार पहले खो चुका था। मैंने ही उसे मार दिया था।
ख़ुशी का जन्म ऑपरेशन से हुआ था और उसे अस्पताल में ही इनक्यूबेटर पर रखा गया। अपने विषाद से थोड़ा उबर कर जब मैं उसे देखने गया तो मानो मुझे फिर से जीने की वजह मिल गई। अनामिका के लिए मेरे अंदर जितना प्यार था सब उसका हो गया था।
मैं बता नहीं सकता बाबा उस रोज़ आपका वहाँ आना मेरे लिए कितना बड़ा सहारा था। आप जैसे पलक झपकते ही आ गए थे। अनामिका के अभिभावक भी कुछ देर बाद आए। उस दिन राव साहब को पहली बार मैंने एक पिता के रूप में देखा। उन्होंने रो-रो कर मुझसे माफ़ी मांगी अपनी सोच पर अवसाद किया। लेकिन अब मैं पिता बन चुका था, उनका दर्द समझता था, मैंने बिना किसी शिकवे के दिल से उन्हें माफ़ कर दिया। अनामिका की माँ ने मेरा हाथ अपने हाथों में लेकर पूछा कि क्या वे समय-समय पर ख़ुशी से मिलने आ सकते हैं। वे ज़रूर आ सकते हैं मैंने कहा था।
उस डॉक्टर में शायद एक अदभुत ही शक्ति रही होगी, कि वह मुझे बताने आ सका, कि मेरी ख़ुशी भी इस दुनियाँ में नहीं रही थी। कुछ देर पहले ही उसके नन्हे से दिल ने धड़कना बंद कर दिया था। पूरा अस्पताल गमगीन था, वे सभी रो रहे थे जिन्होंने पिछले चंद महीनों में मेरा उल्लास देखा था।
बाबा, मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ। जब अनामिका मेरे पास नहीं थी, मैं दर्द में रहा मगर कभी रोया नहीं, मुझे लगता था कि अगर उसकी याद में एक सफल इंसान भी बन सका था बहुत कुछ पा लूँगा। लेकिन आज अनामिका और ख़ुशी दोनों को खोने के बाद मेरा साहस टूट चुका है। मैं सिर्फ़ इतना ही चाहता हूँ कि जब भी आप मुझे याद करें मुझे एक पति और एक पिता की तरह याद करना। इस उम्र में आपको बेटे का सहारा ना दे सका इसका खेद है।
आपका पुत्र,
अमन
बाहर के दरवाज़े पर दस्तक हुई। कोई उन्हें बुलाने आ गया था।
हरनाम सिंह ने धीरे-धीरे उस ख़त के पन्ने समेटे और उसे दराज में रख दिया।
पिछले 20 वर्षों से वे रोज़ उसे पढ़ा करते थे।