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Adultery अनुभूति

nitya bansal3

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वास्तविक नारी सशक्तिकरण l

स्त्रियों को खुलकर जिने की आजादी मिलनी चाहिए, इसके लिए पुरुष वर्ग को हर तरह से अपने आसपास ( घर हो, सड़क हो, संस्थान हो या निजी या सर्वजनिक स्थल) की महिलाओं को सपोर्ट करनी चाहिए।पुरुष वर्ग इस मामले मे उदार और कृपालु बने। पुरुष वर्ग को समझनी होगी की जबतक वो समाज में महिलाओं के लिए जगह नहीं छोड़ेंगे, महिलाओं की शोषण होती रहेगी।महिलाओं की विवशता को समझें, महसूस कीजिये और उसका सहयोग कीजिये। महिलाएं आपके सहयोग की आकांक्षी हैं।

शुक्रिया, धन्यवाद।

क्या पुरुष वर्ग इस उपकार के लिए सहमत हैं ?


GWHd-I-WMAA06f-S
 

dhalchandarun

Everything in the world will come to end one day.
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वास्तविक नारी सशक्तिकरण l

स्त्रियों को खुलकर जिने की आजादी मिलनी चाहिए, इसके लिए पुरुष वर्ग को हर तरह से अपने आसपास ( घर हो, सड़क हो, संस्थान हो या निजी या सर्वजनिक स्थल) की महिलाओं को सपोर्ट करनी चाहिए।पुरुष वर्ग इस मामले मे उदार और कृपालु बने। पुरुष वर्ग को समझनी होगी की जबतक वो समाज में महिलाओं के लिए जगह नहीं छोड़ेंगे, महिलाओं की शोषण होती रहेगी।महिलाओं की विवशता को समझें, महसूस कीजिये और उसका सहयोग कीजिये। महिलाएं आपके सहयोग की आकांक्षी हैं।

शुक्रिया, धन्यवाद।

क्या पुरुष वर्ग इस उपकार के लिए सहमत हैं ?


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Yes I agree....
 

dhalchandarun

Everything in the world will come to end one day.
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एक नई अनुभूति मासूस करेंगे आपस्त्री के मौन को पढ़ने वाला पुरुष हीं स्त्री के समर्पण के लिए योग्य होता है।और मौन को समझने वाला पुरुष हीं प्रेम की गहराइयों में जाकर आलिंगन को सफल कर सकता है, स्त्रियों के मन की गहराइयों मे उतर कर चरमसुख की अनुभूति करा सकता है। ऐसे पुरुष के साथ स्त्री हमेशा आनंदित महसूस करती है।वो स्त्री बहुत भाग्यशाली होती है जिसे मौन को पढ़ने वाला पुरुष मिल जाये। क्योंकि स्त्रियों में एक स्वभाव होती है, जो हर स्त्री में समान्य होती है की वो अपने अधिकतर दुख दर्द, अनुभूति, अपेक्षा, उपेक्षा, जरूरत आदि को शब्दों में नहीं करना चाहती। वो समझती है की इसे कोई बिन बोले हीं समझ जाये।जब स्त्री ऐसा पुरुष पा जाती है तो उसे जी भर ओरेम देती है, अपना सबकुछ समर्पित कर देती है। अपनी गहराइयों मे उसे समा लेती हैं।कमेंट करके जरूर बताइये कि कैसी लगी मेरी अनुभूति।

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Bahut hai sach kaha hai aapne wonderful thoughts...
 
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dhalchandarun

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हम सभी को एक ऐसे मन के मित पसंद होते हैँ हो मेरी बातों को ध्यान से सुनेहममें से अधिकांश लोग जन्मजात अच्छे श्रोता नहीं होते, क्योंकि किसी की बात सुनना ऐसा अधिग्रहित कौशल है, जिसके लिए हमें अथक प्रयास एवं ध्यान की आवश्यकता होती है।इस गुण के लिए हमें सर्वप्रथम कम बोलने की आदत डालनी चाहिए ताकि हम दूसरे की बातों को सुन और समझ सकें।एक अच्छा श्रोता होने का गुण होना भी महिलाएं अपने जीवनसाथी में ढूंढती हैं। क्योंकि जब पुरुष अपनी प्रेयशी की बातों को सुनेगा नहीं, तो समझेगा भी नहीं,, तो उस स्त्री से पुरुष क्या खाक प्रेम करेंगे ?प्रेम करने की पहली शर्त है एक दूसरे की समझ, पसंद-नापसंद की, रुचि-अरुचि की, स्वीकार्यता की, सहमति की, रूठने की, मनाने की, आलिंगन की, सम्भोग की आकांक्षा की, सम्भोग मे एकरुपता की, सम्भिंग मे तृप्ति की...आदि आदिअतः उपरोक्त बातों की समझ होने से पहले एक श्रोता होना अतिआवश्यक है।ये बातें खास कर पुरुषों को समझनी होगी , तभी वो स्त्री के प्रियतम हो सकते हैं और सबसे बड़ी बात, की ऐसे पुरुष को हीं कोई भी स्त्री अपना सर्वस्व समर्पित कर सकती है, तन से हीं नहीं बल्कि मन से भी संभोग कर सकती है। लिखी बातें आपको कैसी लगी, कमेंट करके जरूर बताइये।

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Aapne bilkul sach kaha hai lekin ye women par bhi apply hoti hain bahut sari women sirf apni karti hain men ki sunti nahi hain aur ye mera experience hai isliye if you give someone your love 💕 you get the same from him (love 💕 💕 💕 💕).
 
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nitya bansal3

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स्त्रियों का मन ब्लाउज़ के हुक मेंफँसा हुआ नही होता किजिसको खोलते ही उसका मन भी खुल जाए।

न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता हैकि उसके बंधते ही उसका मन भी बंध जाये।

।स्त्री का मन एक यात्रा है!!और ये आप पर निर्भर है किआप कहाँ तक पहुँचते है।


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SKYESH

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aap ki likhavat bahut gehri hai
स्त्रियां उलझी सी होतीं हैं नाराज़ भी होती है जताती भी हैं मगर बताती नहीं या सह जाती हैं या कभी कह जाती हैं सचमुच कितनी पेचीदा होतीं हैं।थोड़ी सुलझी सी भी होतीं हैं यूँही ,यूँही काम के बीच में गुनगुना उठती हैं छेड़े जाने पर चिढ़ जाती हैं कभी बस हंस देती हैं इनकी सुने, तो स्त्रियां बेहूदा होतीं हैं।कई बार तो मात्र ज़ोर से बोले जाने पर रो पड़ती हैं दूसरे के दुख में अपना दुख भूल जाती हैं सचमुच, स्त्रियां कितनी संजीदा होती हैं।।

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nitya bansal3

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एक छोटी सी विधि बहुत सहायक होगी ।

जब कभी तुम्हारे अंदर सेक्स की कामना उठे, तो वहां उसकी तीन सम्भावनाएं है:

पहली है, उनको तुष्ट करने में लग जाओ, सामान्य रूप से प्रत्येक व्यक्ति यही कर रहा है,

दूसरी है—उसका दमन करो, उसे बलपूर्वक अपनी चेतना के पार अचेतन के अंधकार में नीचे धकेल दो, उसे अपने जीवन के अंधेरे तलघर में फेंक दो। तुम्हारे तथा कथित असाधारण लोग, महात्मा, संत और भिक्षु यही कर भी रहे हैं। लेकिन यह दोनों ही प्रकृति के विरुद्ध हैं। ये दोनों ही रूपांतरण के अंतर्विज्ञान के विरुद्ध हैं।

तीसरी सम्भावना है—जिसका बहुत थोड़े से लोग सदैव प्रयास करते हैं। जब भी सेक्स की कामना उठे, तुम अपनी आंखें बंद कर लो। यह बहुत मूल्यवान क्षण है: कामना का उठना ऊर्जा का जाग जाना है। यह ठीक सुबह सूर्योदय होने जैसा है। अपनी दोनों आंखें बंदकर लो, यह क्षण ध्यान करने का है। अपनी पूरी चेतना को काम केंद्र पर ले जाओ, जहां तुम उत्तेजना, कम्पन और उमंग का अनुभव कर रहे हो। वहां गतिशील होकर केवल एक मौन दृष्टा बने रहो। उसकी निंदा मत करो, उसकी साक्षी बने रहो। तुम उसकी निंदा करते हो, तुम उससे बहुत दूर चले जाते हो। और न उसका मजा लो, क्योंकि जिस क्षण तुम उसमें मज़ा लेने लगते हो, तुम मूर्च्छा में होते हो। केवल सजग, निरीक्षण कर्ता बने रहो, उस दीये की तरह जो अंधेरी रात में जल रहा है। तुम केवल अपनी चेतना वहां ले जाओ, चेतना की ज्योति, बिना हिले डुले थिर बनी रहे। तुम देखते रहो कि कामकेंद्र पर क्या हो रहा है, और यह ऊर्जा है क्या?


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mr bean animated pictures
इस ऊर्जा को किसी भी नाम से मत पुकारो, क्योंकि सभी शब्द प्रदूषित हो गए हैं। यदि तुम यह भी कहते हो कि यह सेक्स है, तुरंत ही तुम उसकी निंदा करना प्रारम्भ कर देते हो। यह शब्द ही निदापूर्ण बन जाता है। अथवा यदि तुम नई पीढ़ी के हो, तो इसके लिए प्रयुक्त शब्द ही कुछ पवित्र बन जाता है। लेकिन शब्द अपने आप में हमेशा भाव के भार से दबा रहता है। कोई भी शब्द जो भाव से बोझिल हो, सजगता और होश के मार्ग में अवरोध बन जाता है। तुम बस उसे किसी भी नाम से पुकारो ही मत। केवल इस तथ्य को देखते रहो कि काम केंद्र के निकट एक ऊर्जा उठ रही है। उसमें उत्तेजना है उमंग है, उसका निरीक्षण करो। और उसका निरीक्षण करते हुए तुम्हें इस ऊर्जा का पूरी तरह से एक नये गुण का अनुभव होगा। उसका निरीक्षण करते हुए तुम देखोगे कि यह ऊर्जा ऊपर उठ रही है। वह तुम्हारे अंदर मार्ग खोज रही है। और जिस क्षण वह ऊपर की ओर उठना प्रारम्भ करती है, तुम्हें अनुभव होगा कि एक शीतलता तुम पर बरस रही है, तुम पर चारों ओर से एक अनूठी शांति, मौन अनुग्रह आशीर्वाद और आनंद की वर्षा हो रही है। अब कोई पीड़ायुक्त है, यह ठीक एक मरहम जैसा है। और तुम जितने अधिक सजग बने रहोगे, यह ऊर्जा उतनी ही ऊपर जाएगी। यदि यह हृदय तक आ सकती है, जो बहुत कठिन नहीं है, कठिन तो है, लेकिन बहुत अधिक कठिन नहीं है.. यदि तुम सजग बने रहे, तो तुम देखोगे कि यह हृदय तक आ गई है। जब यह ऊर्जा हृदय तक आ जाती है तो तुम पहली बार यह जानोगे कि प्रेम क्या होता है।
 

nitya bansal3

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स्त्री मन नातों-रिश्तों में आते ही बनाने लग जाता है वो हौसला, जिससे रिश्ता टूटने पर वो ख़ुद को दुबारा जोड़ सके, सिख जाती है स्त्रियाँ वो मलहम बनाना, तैयार रखने लग जाती है वो फाहे जो अंतस् की चोट पे लगा सकें, हर बार जब एक भाव छूटता है दिल से, एक अभाव कर जाता है जीवन में और वो उस दरार में भर देती है अपने आंसू जो बन जाते हैं पत्थर और समेट लेता है सारे बिखराव को अपने में, थाम लेता है जीवन प्रवाह को फिर से, बिखर कर ख़ुद को समेटने की आदत हो जाती है स्त्रियों को, हर बार इस तरह ख़ुद को जोड़ लेती हैं कि कोई बाल बराबर भी जोड़ नहीं ढूँढ पाता,जितनी बार भी टूटी स्त्रियाँ,उतनी बार नयी सी जी,उतनी बार निखरी वो स्त्रियाँदुख और ग्लानि क्या गलायेगा उन्हें,जो जानी है अपने ज़ख्मों की गहराई,इस बिखरन-सिमटन के चक्र में, हर बार ख़ुद को नयी सी गढ़ती स्त्रियाँ।

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