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सोचती हूँ
हमारे रिश्ते को कोई नाम दे दूं
मगर क्या.....?
और उससे भी बड़ा प्रश्न ये है
कि क्यों.....?
जैसे हवा ख़ुशबू को पहचानती है
जैसे बादल आसमान को
नदियां,समंदर को
वैसे ही
मेरा हृदय पहचानता है तुम्हें
तुम्हारी ख़ुशबू को
तुम्हारे आसमान को
तुम्हारी आँखों के समंदर को
अब तुम ही कहो.....
ख़ुशबू,आसमान और समंदर को कौनसी संज्ञा बांध पाई
और ये कहाँ तक उचित होगा......?
तो अच्छा है ना
कुछ रिश्तों का बेनाम होना
अच्छा है ना
कुछ रास्तों का बेपता होना
हमारे रिश्ते को कोई नाम दे दूं
मगर क्या.....?
और उससे भी बड़ा प्रश्न ये है
कि क्यों.....?
जैसे हवा ख़ुशबू को पहचानती है
जैसे बादल आसमान को
नदियां,समंदर को
वैसे ही
मेरा हृदय पहचानता है तुम्हें
तुम्हारी ख़ुशबू को
तुम्हारे आसमान को
तुम्हारी आँखों के समंदर को
अब तुम ही कहो.....
ख़ुशबू,आसमान और समंदर को कौनसी संज्ञा बांध पाई
और ये कहाँ तक उचित होगा......?
तो अच्छा है ना
कुछ रिश्तों का बेनाम होना
अच्छा है ना
कुछ रास्तों का बेपता होना
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