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Very interesting story.UPDATE 001
सफर
इंदौर जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर मैं एक टी स्टाल के पास खड़ा होकर , सफर के लिए स्नैक्स पानी बोतल वगैरह ले रहा था , इंदौर - पटना एक्सप्रेस अभी कुछ मिंट लेट थी ।
अक्सर मेरे साथ ये अनुभव रहा है कि जब भी कही जाने की जल्दी हो तो सवारी कही न कही खुद लेट हो ही जाती है और वो महज कुछ मिंट की देरी से लगता है कि अब समय से सारा सोचा हुआ काम होगा ही नही ।
तभी सामने से इंदौर - पटना एक्सप्रेस तेजी से हॉर्न बजाती हुई अपनी जगह पर रुकती है और मैं अपना एक पिट्ठू बैग लेकर 3Ac के एक कोच के चढ़ जाता हूं।
चढ़ते उतरते यात्रियों की भीड़ से गुजर कर अपनी सीट खोजता हुआ मैं आगे बढ़ रहा था , दोपहर के 2 बज रहे थे और ट्रेन निकल पड़ी थी ।
हल्के झटके से मैं संभलता हुआ अपना बैग वही किनारे रख कर एक महिला जो मेरे सीट पर लेटी हुई उनको खड़े खड़े आवाज देने लगा ।
आस पास के लोग भी उन्हें आवाज देने लगे , उस केबिन शायद उस वक्त तक कोई और महिला नही थी ।
स्वस्थ तदुरुस्त बदन की मालकिन दिख रही थी , पटियाला सलवार और सूट में अपने ऊपर लंबा चौड़ा काटन का दुपट्टा चढ़ाए गहरी नींद में थी वो ।
कूल्हे पर हुई सलवार में उसके मोटे विशालकाय मटके जैसे चूतड बहुत ही कामुक नजर आ रहे थे , और उन उन्नत फैले हुए नितंब को देख कर पल भर के लिए मुझे किसी की याद आई , मगर सोती हुई निर्दोष महिला के अंग निहारने से मेरे भीतर का पौरुष मुझे धिक्कारने लगा ।
मैंने नजरें फेर ली और बड़े असहज भाव से कुछ पल उनके उठने की राह निहारी , आस पास बड़ी बेबसी से जबरन होठों पर मुस्कुराहट लाकर बाकी बैठे हुए लोगो की देखा मगर शायद उन्हें भी इस चीज के लिए फर्क नहीं पड़ रहा था , शायद वो पहले भी काफी बार से उस महिला को उठाना चाह रहे थे ।
तभी उन भले लोगो में से एक ने घिसक कर मुझे खिड़की से लगी हुई किनारे की ओर सीट में जगह देदी ।
बड़ी मुश्किल से अपने कूल्हे पिचकाकर मैं वहा बैठ पा रहा था , कुछ ही मिनट बीते होंगे कि मेरी ही बेल्ट अब बगल से कुछ कमर में तो कुछ पेट में चुभने लगी थी ।
मुझे ये सफर एक झंझट सा महसूस हो रहा था , महगी टिकट और सीट भी कन्फर्म थी मगर ऐसे सफर करना पड़ रहा था ।
थोड़ा खुद को सही करता बेल्ट ढीला का बोगी की लोहे की दीवाल में सर टिका दिया , तिरछी नजर कर शीशे से बाहर निहार रहा था जल्द ही मेरी पुतलियां भी तंग होने लगी और मैंने नजरें सामने की अह्ह्ह्ह्ह गजब की ठंडक आ रही थी ,
उस महिला के दुपट्टे के नीचे से हल्की सी उसके नूरानी घाटियों की झलक सी मिली और थोड़ा सा गर्दन सेट किया तो एक लंबी गहरी दरार
आस पास नजर घुमा कर देखा तो सब बातो में लगे थे तो कोई झपकियां ले रहा था ,
मेरी नजर रह रह कर उस महिला के सूट में लोटी हुई छातियों के दरखतों के जा रही थी, कभी खुद को धिक्कारता तो कभी लालच हावी होने लगता और जैसे पल भर को आंखे मूंदता तो एक कामकल्पना से परिपूर्ण दृश्य मेरी आंखो में भर सा जाता , जहा कई कहानीयां उभर आती थी मन में ।
बार बार चीजे मन में घूमने से मेरे पेंट में कसावट सी होने लगी , जिसे छिपाने के लिए मुझे अपनी बैग का सहारा लेना पड़ा ।
कुछ देर बाद एक आदमी अगले स्टेशन पर उतर गया और मुझे भी आराम से बैठने का मौका मिला । मगर जैसे ही तन को सुख हुआ मन अपनी मनमानीयों पर उतर आया ।
अब मेरी नजर उस महिला को भरपूर नजर से निहारने लगी थी , बैग अभी भी मेरे जांघो पर थी । नीचे पेंट में तम्बू का साइज बढ़ने लगा था ।
ऐसा ही सूट सलवार कोई पहनता है जिसे मैं बचपन से देखता आ रहा हूं और वो मुझे बहुत अजीज थी ।
मेरी अम्मी ,
अभी कल ही बात लगती है कि मैं जब उनसे लिपट जाया करता था , उनके मखमली पेट पर जब वो लेटी होती थी मैं चढ़ कर अटखेलियां कर लिया करता था , उनके मोटे मोटे खरबूजे जैसे दूध की थैलियों में सर छिपा कर उनका दुलार प्यार जबरन ले लिया करता था ।
गर्मी की दोपहर अक्सर सोते हुए मेरे पैर उनके विशालकाय चूतड पर ही होते थे , अक्सर मोबाइल चलाते हुए मेरे पैर के पंजे उनके मुलायम चूतड को सलवार के ऊपर से आंटे की तरह घंटो गुदते रहते ।
अम्मी - शानू बेटा क्या कर रहा है
मैं - अम्मी मूवी देख रहा हु बस लास्ट सीन है
अम्मी - ओहो पैर हटा ना अपना , क्या कबसे गीज रहा है मुझे
मै अपनी धुन में मस्त था - अम्मी बस 5 मिंट
अम्मी - मैं क्या बोल रही हू और ये क्या सुन रहा है , कुछ नही हो सकता इसका आह्ह् रब्बा पुरा कमर लोहे का कर दिया
अम्मी लड़खड़ाती हुई उठी और गुसलखाने की ओर बढ़ गई , मैने मुस्कुरा कर मोबाइल से नजर हटा कर कमरे से बाहर जाती हुई अम्मी की मोटी थिरकती गाड़ देख कर अपना खड़ा लंड मिस दिया ।
"कितने बजे भैया ,अरे हस क्यूं रहे हो बताओ ना कितने बजे "
मै चौक कर नजर उठा कर देखा तो आस पास की सीट सब खाली थी और वो महिला जो सो रही थी वो सामने खड़ी होकर मुझे ही आवाज दे रही थी - जी ? जी 03.45 हो रहे है ।
वो महिला सुस्त होकर एक बार फिर उस सीट पर बैठ गई ।
दुपट्टे की चादर अभी भी उसके खरबूजे से चूची को अच्छे से ढके हुए थी मगर उनके उभार छिपाने में नाकाम थी ।
महिला - भैया पानी साफ है क्या ?
मै - जी , लीजिए
मैंने ढक्कन खोलकर उसकी और बढ़ाया और एक सास में जितना पी सकी वो पी गई , कुछ छलक कर उसके होठों से होकर ठूढी से टपक कर उसके सीने पर गिरने लगी और दाई ओर से चूचे के ऊपरी भाग पर दुपट्टा और सूट पर थोड़ा सा हिस्सा गिला होकर उसके सीने से चिपक गया , देखने ऐसा लग रहा था मानो दुपट्टे के नीचे उसकी रसदार चूचियां पूरी नंगी ही है ।
उसने मुझे पानी का बोतल दिया - थैंक यू
मैंने मुस्कुरा कर - आप अकेली सफर कर रही है क्या ?
उस महिला ने मुझे अजीब नजरो से देखा और फिर कुछ देर चुप्पी किए रही मुझे लगा शायद उसे मेरा सवाल समझ नही आया या फिर मेरी शक्ल ही ऐसी है ।
कुछ देर बाद वो बोली - मेरी बहन का इंतकाल हो गया था उसी सिलसिले में आई थी अब वापिस जा रही हू , और मेरे शौहर बाहर रहते है ।
उसकी बातें सुन कर मुझे तो बहुत गहरा दुख हुआ , फिर मैंने उसे खाने के लिए पूछा पहले तो उसने मना किया फिर मैंने जब दुबारा से कहा तो वो उसने मेरी टिफिन से एक रोटी ले ली
मै - कैसी है सब्जी , मैने बनाई है ?
वो मुस्कुराई और स्वाद लेती हुई - बनानी आती है क्या ?
मै - हा अम्मी से सीखी है ,
वो - अच्छी है
मै टिफिन आगे कर - और दू
वो ना में सर हिलाती हुई खाना खाने लगी और उसकी निगाहें शीशे से बाहर थी । गुमसुम सी आंखे उसकी बहुत हल्की फुल्की मुस्कान लिए सब देख रही थी ।
[मैंने भी नज़रे बाहर की ओर कर सपाट खेतो की ओर निहारने लगा , मेरी बनाई हुई सब्जी अभी भी मेरे दांतो मे पिस रही थी और मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी
"ओहो , ऐसे नही जला देगा तू हट, हट जा " अम्मी मुझे अपने देह से मुझे धकेलती हुई मेरे हाथो से कलछी और कपड़ा ले लेती है जिससे मैंने कराही पकड़ी थी ।
अम्मी के मुलायम स्पर्श से मैं भीतर से सिहर उठा और वही उनसे लग कर खड़ा होकर उनके देह से आ रही भीनी सी खुश्बु को अपनी सासो में बसा लेना चाह रहा था ।
" अब अगला उबाल आए तो उतार देना "
" अब अगला स्टाफ आए तो बता देना " , उस महिला ने कहा ।
" जी ? जी , ठीक है "
महिला मुझे घूरती हुई - तुम फिर मुस्कुरा रहे हो ?
मै हंसता हुआ - जी ? वो काफी समय बाद घर जा रहा हु तो बस अम्मी की बातें याद आ रही है ।
वो महिला मुस्कुरा कर - बहुत प्यार करते हो न अपनी अम्मी को ?
मै अचरज से - आपको कैसे पता ?
महिला इतराहट भरी मुस्कुराहट से - तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी ही बसी होती है इसीलिए
मै उसकी बात सुनकर ऐसे मुस्कुराता जैसे वो मेरी प्रेमिका के बारे में बोल रही थी ।
महिला - कहा से आ रहे हो ?
मै - जी इंदौर में ही नौकरी है मेरी और लखनऊ जाना है ।
महिला - खास लखनऊ ही ?
मै - जी नहीं , वहा मुख्य शहर से बाहर एक गांव है वही घर है मेरा और आप ?
महिला - मुझे अगले ही स्टेशन पर उतरना है और फिर यह तो तुम अकेले पड़ जाओगे
मै हस कर - आप भी चलिए फिर मेरे साथ
महिला खिलखिलाई - अम्मी से मिलवाने हिहिहिही
मै भी उसकी खिलखिलाई सूरत देख कर हस पड़ा - हा और है ही कौन मेरा ?
वो महिला का चेहरा फीका सा पड़ने लगा - क्यू , अब्बू नही है ?
मै मुस्कुरा कर - है , वो मेरी उनसे खास बनती नही इसीलिए
महिला - और बहन ?
मैंने ना में सर हिला दिया ।
कुछ देर यूं ही हमारी बातें चलती रही और फिर आधे घंटे बाद वो उतर गई , जल्द ही कुछ नए यात्री आ गए मैंने भी इत्मीनान से अपनी सीट लेली और पैर फैला कर कोने से टेक लेकर आंख मूंद लिया ।
मेरे जहन में अब भी उस महिला की बातें चल रही थी और वो लाइन मेरे दिल में बस सी गई थी " तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी बसी होती है "
गाड़ी स्टेशन दर स्टेशन गुजरती रही और भीड़ आती जाती रही , चेहरे बदलते रहे
" अरे अरे भाई साहब देख कर बैग है मेरा " मैने एक आदमी को डांट लगाई हो अपने परिवार के साथ अभी अभी बोगी में चढ़ा था और उसके जूते मेरे बैग पर आ गए थे ।
मैंने झल्लाते हुए बैग ऊपर किया और उसको झाड़ते हुए चैन खोल कर बैग में रखा हुआ वो गिफ्ट का वो बॉक्स देखा जिसकी लाल चमकीली पन्नी देख कर मेरे होठ मुस्कुराने लगे ।
मैंने वापस बैग की चैन बंद कर बैग को अपने गोद में रख कर सीने से लगाए हुए आंख बंद लिया ।
" नही नही नही , इससे बड़ी नही मिलेगी भैया ये ही सबसे बड़ी size मेरे पास "
" भैया आपको जितने पैसे चाहिए लेलो कही से मेरे लिए शेम यही सूट की 4XL साइज देदो" , मैं मिन्नते करते हुए उस दुकानदार से बोला ।
दुकानदार ने अपने किसी स्टाफ कर बाजार की दूसरी गली से वही ड्रेस मेरे पसंद की साइज में मंगवाई और मैंने फाइनल करवा लिया
दुकानदार - देख समझ लो भैया इस साइज की कोई वापसी नहीं लूंगा मैं , आपको यकीन है ना कि जिसको आप देंगे उनकी साइज यही है ?
मै मुस्कुराता हुआ - हा भईया पता है , मेरी ही अम्म..... , अब पैक भी करवा दो ।
" टिकट टिकट , ओह भाईसाहब टिकट दिखाइए"
मैंने टीटी को अपनी टिकट दी और वो आगे बढ़ गया
मेरे मन में एक कड़वाहट सी होने लगी थी अब , ढलती रात में भी कोई न कोई मुझे डिस्टर्ब कर देता था । जिस वजह से मैने एसी की टिकट निकलवाई थी वो सफल नहीं दिख रही थी
मेरी नजर ऊपर के बर्थ पर गई सोचा किसी से बदली कर लू
मगर ऊपर वही आदमी लेटा हुआ मोबाइल चला रहा था जिसको आते ही मैंने फटकार लगा दी थी ।
रात के 10 बजने को हो रहे थे कि मेरी फोन की घंटी बजनी शुरू हुई और स्क्रीन पर अब्बू का नंबर देख कर मेरा मूड और भी उखड़ सा गया - हा हैलो नमस्ते अब्बू
: हम्म्म लो तुम्हारी अम्मी बात करेगी
मै एक पल के चहक उठा मगर अगले ही पल जब अहसास हुआ कि अब्बू भी घर पर है तो मेरा मन मायूस सा हो गया ।
मै - जी नमस्ते अम्मी
: क्या हुआ बेटा , तबियत ठीक है ना तेरी ? ट्रेन मिली ? कुछ खाना पीना किया ?
सवालों पर सवाल, फिकरमंद अम्मी ने मुझपर दागे और उसके लाड में मैं भी मुस्कुरा कर - इतनी फिकर है तो खुद क्यूं नही आती जाती हो अपने बेटे के साथ , हूह
मोबाइल में छाई चुप्पी की वजह मै समझ सकता था अब्बू के कारण अम्मी खुलकर कभी मुझसे अपने दिल की बात नही कहती और न ही ज्यादा लाड प्यार जताती ।
मै उनकी चुप्पी पर उखड़े मन से बोल पड़ा - आप फिकर ना करे , अब्बू से कह दें , मैं ठीक हूं और खाना पीना भी हो गया है सुबह 6 बजे लखनऊ पहुंच जाऊंगा ।
: ठीक है बेटा , रखती हु
मै - जी बाय
अभी फोन कटा नही था और अब्बू को शायद लगा कि कट गया । फोन पर उनकी बड़बड़ाहट और अम्मी पर गुस्सा साफ साफ सुनाई दे रहा था ।
ये सब पहली बार मैं नही सुन रहा था और मैने फोन काट दिया । आंखे भर आई मेरी ।
मेरी डबडबाई आंखे मिडल बर्थ पर लेटी एक चाची ने देख ली और करवट लेकर बोली - क्या हुआ बच्चा , सब ठीक है ना
मै आंख पोछ कर - जी ? जी सब ठीक है ?
चाची - अकेले सफर कर रहे हो क्या बच्चा
मै - जी चाची , घर जा रहा हु
चाची - कुछ खाना पीना किया ?
मै मुस्कुरा कर - आप फिकर ना करें , मैं खाना खा चुका हु । वो बस अम्मी की याद आ गई थी
चाची सीधी होकर लेट गई - सो जा बच्चा , रो कर अपनी अम्मी को तकलीफ मत दे
मै अचरज से - मतलब ?
चाची - अरे वो तेरी अम्मी है , तू उसका ही अंश है तू रोएगा तो उसका भी कलेजा रोएगा बेटा । सो जा
मै उसकी बात सुनकर अपने आशु साफ किए और लेट गया
मेरे दिमाग में उस चाची की बात घूमने लगी कि क्या सच में ऐसा होता होगा कि मैं जैसा महसूस करूंगा वो अम्मी भी करेंगी । अगले ही पल मेरी घटिया सोच मेरे साफ पाक भावनाओं पर हावी हो गई ।
मै मुस्कुरा कर खुद को गाली देते हुए - बीसी तू नहीं सुधरेगा कभी हिहीही
कुछ देर तक लेटे रहने के बाद भी मुझे नीद नही आ रही थी रात गहराती चली गई और ख्याल अम्मी के बातें उनकी यादों से भरता चला गया ।
मै उठा और बैग सही से रख कर बाथरूम की जाने लगा रास्ते में बोगी के हर कपार्टमेंट में कोई न कोई महिला के कपड़े अस्त व्यस्त दिखे ।
मन में तरंगे भी उठनी शुरू हुई और बाथरूम में जाते ही मैंने अपना अकड़ा हुआ लंड निकाल कर पेशाब करने लगा
मोबाइल हाथ में था तो उसको चलाने लगा कि मेरी नजर गैलरी ऐप पर गई
मै पूरी शिद्दत से अपने मन को रोक रहा था मगर मेरे दिमाग पर हवस हावी होने लगा था और मैने गहरी सास लेते हुए hide image से एक तस्वीर बाहर निकाली
वो एक वीडियो कॉल के दौरान ली गई स्क्रीन शॉट थी जिसमे अम्मी पहली बार बिना दुपट्टे के मेरे सामने थी और मैंने झट से वो कैप्चर कर ली थी ।
तस्वीर में उनके उन्नत और सूट में कसे हुए थन जैसे चूचे देखकर मेरा लंड बौरा उठा और मैं तेजी से अपना लंड सहलाते हुए आंखे बंद कर कभी अम्मी का चेहरा याद करता तो कभी तस्वीर में अम्मी की मोटी मोटी चूचियां निहारता , उनके गुलाबी गाल और लाल लाल कश्मीरी सेब रंग के होठ देख कर मेरे होठ बड़बड़ाने लगे ,मगर ट्रेन के टॉयलेट में एक डर था कि कही कोई मेरी आवाज न सुन ले ।
अम्मी उह्ह्ह्ह मेरी अम्मी आप क्यू नही आ जाती मेरे पास अअह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मैं आपको हमेशा के अपना बना लेना चाहता हुं उह्ह्ह्ह पकड़ो ना मेरा लंड , कब मेरे तपते लंड को अपने इन होठों की मिठास से ठंडा करोगी , कब मेरे होठ तुम्हारे रसीले निप्पल को दुबारा से जूठा करेंगे अअह्ह्ह्ह अम्मी अहह्ह्ह्
मै अब और नही रूकूंगा अअह्ह्ह्ह इस बार तो आपको छू लूंगा , आपके बड़े मुबारक चूतड पर हाथ लगाऊंगा अह्ह्ह्ह्ह अम्मी कितने साल हो गए आपकी नरम नरम गाड़ को छुए , आपके बड़े रसीले खरबूजे जैसे चूची में अपना सर रख कर सोए उह्ह्ह्ह अम्मी मुझे बड़ा नही होना अअह्ह्ह्ह मैं आपका होकर रहना चाहता हु अह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मत दूर करो मुझे उह्ह्ह्ह ओह येस्स उम्मम्म गॉड फक्क्क्क उह्ह्ह्ह अम्मीई अअह्ह्ह्हह
और देखते ही देखते मेरी तेज गाढ़ी मलाईदार पिचकारी बाथरूम की दिवालों पर एक के बाद एक छूटती रही और मैं मोबाइल जेब में रख कर अंत तक उसे निचोड़ता रहा ।
फिर आकर अपनी सीट पर सो गया
अगली सुबह तड़के मेरी नीद खुली , कंपार्टमेंट में अजीब गुपचुप तरीके भिनभिनाहट मची हुई थी और कुछ देर में मुझे भनक लगी कि वहा अनजाने में लोग मेरी ही बात कर रहे थे , क्योंकि हिलाने के बाद मैने पानी से कुछ भी साफ नही किया था वैसे ही निकल आया था ।
मुझे हसी भी आई और खुद को गालियां भी दी मैने की एक जग पानी मार देता तो क्या हो जाता
खैर मैं लखनऊ उतर चुका था मुझे सीतापुर रोड के लिए बस लेनी थी और आगे 15-17km बाद ही हाईवे से लगा मेरा छोटा सा कस्बानूमा गांव था - काजीपुर ।
जारी रहेगी
mast story hai.UPDATE 002
मनपसंद हलवा
"अम्मी ...अम्मी आओ ना "
मैं उनको आवाज देते हुए रसोई घर से हाल में आ गया , सामने देखा तो अम्मी सोफे पर सर टिका पर लेटी हुई थी और उनका सूट कूल्हे से हट गया था ।
बड़े विशालकाय चूतड बिना पैंटी के सलवार में साफ साफ झलक रहे थे , मगर दिल अक्सर यही बेईमान हो जाता है , उधर मेरी दसवीं के प्रैक्टिकल के लिए गृह विज्ञान की रेसिपी जल रही थी और यहां अम्मी के भारी चूतड को बेपर्दा हुआ देख कर भीतर से मैं ।
अम्मी को देख कर लोअर में मेरे हलचल ही होने लगी , ऐसा पहली बार नही था जब मैंने अम्मी के मुबारक पहाड़ जैसे ऊंचे उभरे हुए कूल्हे और मुलायम गाड़ देखी थी, मगर हर बार महज झलक भर से वो हसीन नजारा मेरी आंखो से कही खो सा जाता था
मगर आज वो दिन कुछ और ही था , मै धीरे धीरे अम्मी की ओर बढ़ने लगा मेरी नजर एक टक उनकी गाड़ की लाइन में जमी थी जो सलवार पर उभरी हुई थी , देखने भर से ही मुझे भीतर से महसूस हो रहा था कि कितने मुलायम होंगे , मेरे लोअर में लंड हरकत करने लगा था
मैंने मौका देख कर उन्हे छू लेना चाहा , मेरे हाथ उन लजीज रसभरे फूले हुए गुलगुलो को छुने को मचल रहे थे
" शानू "
एक तेज करकस आवाज और मैं भीतर से कांप उठा , मेरा रोम रोम भीतर से थरथराने लगा । डर से चेहरा सफेद होने लगा और उस आवाज से अम्मी भी चौक कर उठ गई ।
वो अब्बू की आवाज थी और अम्मी हड़बड़ा कर जल्दी जल्दी अपना दुपट्टा सर पर करने लगी और उन्हें कही से जलने की बू आई और वो मेरी ओर देखी और गुस्से से लाल होकर - अब फिर से क्या जला रहा है कमीने तू
अम्मी गुस्से में भागती हुई रसोई घर में गई और मैं भी तेजी से उनके पीछे गया - सॉरी अम्मी , कबसे तो जगा रहा था आपको , अब ये हलवा भी जल गया । कल मेरा प्रैक्टिकल है ?
अम्मी ने एक नजर बाहर देखा और अब्बू को ना पाकर एक गहरी सास ली - उफ्फ, बेटा तूने इसमें हिस्सा लिया ही क्यों ?
मै - अम्मी वो मीनू मैडम ने सबको बोला है सिख कर आने को ,कहती है कि शादी के बाद काम आयेगी
अम्मी मेरे भोले से जवाब पर खिलखिलाई - अच्छा तो तु भी इसीलिए सीख रहा है कि शादी के बाद अपनी बीवी को हलवा खिलाएगा हिहिही
मै हल्का सा उनके करीब होकर उनसे लिपटने को हुआ - नही तो ? मै तो अपनी प्यारी अम्मी को खिलाऊंगा ।
अम्मी रसोई घर से बाहर देखती हुई मुझसे दूर हट गई - हा हा अब लिपट मत , बड़ा आया प्यारी अम्मी का दीवाना हिहिही
मुझे बड़ी जलन सी हुई कि एक तो अम्मी ने मुझे दूर किया और उसपे से मेरे प्यार का मजाक उड़ाया , गुस्सा भी आ रहा था तब मगर मैं अपनी अम्मी से नाराज कैसे हो सकता था । कितना मुश्किल होता है जिससे प्यार करो उसपे गुस्सा दिखाना । फिल्मों में कई बार ऐसा देखा था सोचता था कि ये सब नाटक होगा मगर वो सब हकीकत में मेरे साथ होता दिख रहा था ।
: लेलो बाबूजी अच्छे आम है
: कैसे दिए काका ?
: पक्के हापुस है बाबूजी , मुंह लगाओ तो भैंस की थन जैसे दूध की तरह रस से भर जाए
मै मुस्कुराया - अरे दिए कितने भाव से ?
: 250 रुपए दर्जन से बेंच रहा हु बाबूजी
मैंने रेडी वाले काका को उसके पैसे दिए और आम लेकर आस पास देखा तो हाईवे से मेरे टाउन की ओर जाने वाले रूट पर कुछ ऑटो रिक्शा लाइन में लगे थे ।
सुबह का समय था सबके नंबर थे और पहली वाले में मैं भी बैठ गया ।
" लो भैया तुम भी खाओ , चने अच्छे है " , उस ऑटो वाले ड्राइवर ने मेरी ओर हाथ बढ़ाया ।
मै - जी अभी ब्रश नही किया मैंने
ड्राइवर : खुशबू अच्छी है , कितने भाव के दिए
मैंने एक नजर उस चाइना पन्नी में रखे हुए दो दरजन आमों की ओर देखा और मुस्कुरा कर - 250 के 12
ड्राइवर : बाप रे इतनी मंहगाई , हम जैसो को तो अब छुने को नहीं मिलती । रोशनी की मां तो चार रोज से कह रही है कि सीजन है आम लेते आओ बच्चे ज़िद दिखाते है । मगर पैसे दाल रोटी से बचे तो न शौक पूरे हो ।
उस ड्राइवर की लार छोड़ती जीभ ही ये सब उससे बुलवा रही थी ये तो पक्का था और मुझे हसी तब आई जब इसमें भी अम्मी की कही बात याद आ गई,ऐसे जब कोई चर्चा करे तो उसे अपने हिस्से से कुछ देदो नही तो नजर लग जाती है चीजों में ।
और नजर लगने का मेरा अनुभव बहुत बुरा रहा है , चार चार रोज तक पेट छुटता रहता था बचपन में । फिर अम्मी किसी सोखा ओझा से झाड़ फूंक करवाती तब तबियत ठीक होती मेरी ।
मै झट से 4 आम निकाल कर उसको देने लगा , वो मना करने लगा - अरे रोशनी बिटिया के लिए लेते जाओ , उसके चाचा की ओर से । बच्ची खुश रहेगी
वो ड्राइवर के चेहरे पर खुशी की लाली देख कर मैं खुश हो गया ,उसने एक पुराने से झोले में वो आम पहले अपने गमछे में लपेटे फिर रखे ।
फिर तो मानो उसमे कोई तेजी आ गई ,ये चिल्ला चिल्ला कर सवारियां बटोरने लगा और फिर मुझे अपने बगल में ही बिठा लिया
: कहा से हो बाबू तुम
: जी काजीपुर से ही हूं
: खास काजीपुर में ? कौन सा टोला ?
: खोवामंडी
: अच्छा वो बिलाल भाई जो टेलर है उनके आस पास क्या ?
: जी जी , बस वही गली में घर है मेरा
: क्या नाम है अब्बा का तुम्हारे बाबू
: जी अकरम अली
: अरे तो तुम वो बड़े बाबू के बेटे हो , वाह मिया क्या बात है , तुम्हारी भी नौकरी है ना कही ?
मै उसकी खुशी देख कर खुद भी खुश होने लगा और वो तेजी से ऑटो चलाता हुआ मुझसे बात करता रहा ।
: जी इंदौर में है
: अच्छा अच्छा , क्या करते हो वहा
: वो **** विभाग में सीनियर टेक्नीशियन हू
: सरकारी है ?
: जी
फिर वो आखिर तक मेरा स्टाफ नही आ गया कभी अपनी गरीबी की मार तो कभी मेरे अब्बू की बड़ी बड़ी बातें करता रहा और फिर मैं उतर गया ।
: क्या इंजीनियर साहब , शर्मिंदा करेंगे अरे बड़े बाबू सुनेगे तो क्या कहेंगे ।
: अरे बोहनी का समय है रख लीजिए
फिर मैंने जबरन उसे पैसे दिए और अलविदा कहा और निकल पड़ा अपने चौराहे से घर की ओर
सुबह का वक्त अब खड़ा होकर दुपहर की धूप छूने हो रहा था , सड़क के किनारे से होकर मकानों की छाया में चलने लगा था मैं ।
चौराहे से घर अभी दूर था और खोवामंडी के बंदर पूरे लखनऊ में आतंक मचाते हैं इसीलिए उधर जाने से पहले एक किराना स्टोर से झोला लेने चला गया ।
:हरी वाली इलाइची लेना बड़ी बड़ी हो एकदम अंगूर के दाने जैसी , ऐसी मरियल मत लेना और लिख ...
: बादाम पिस्ता 100 100 ग्राम , उस सेठानी से कहना कि नए पैकेट खोल के देगी , नही तो इस बार अच्छे से हिसाब करूंगी इसका ।
: अम्मी आपकी सहेली है तो आप चले जाओ ना , वो आंटी मुझे बहुत परेशान करती है
: प्रैक्टिकल किसका है
: मेरा ( उतरे से चेहरे से )
: हा तो जाना हो जा नही तो रहने दे और तेरी मामी लगेगी वो थोड़ा मजाक सहना सीख
मै - नमस्ते मामी
सेठानी - अरे शानू बेटा, आजा आजा चाय बन ही गई , कैसा है ?
मै - जी ठीक हु मामी , नहीं अभी ब्रश नही किया । मुझे एक झोला चाहिए था
सेठानी - हा हा अपनी मामी के लिए तेरे पास 100 बहाने है अभी कोई छोरी भैया बोल कर भी बुलाए तो उसके पीछे भौरा बनके नाचता जाएगा
मै मुस्कुराने लगा सेठानी का मजाक कुछ ऐसा ही था रिश्ते में मामी लगती थी क्योंकि मेरे मामू का ससुराल इनके मायके के गांव में ही था ।
: कही कोई पटा तो नही रखी उधर ,मुझे बता दे तेरी अम्मी को नहीं बताती मै
: क्या मामी लाओ झोला , ये सब नहीं करता मै ( मुझे कोई छेड़े मुझे भाता नहीं था )
: हम्मम फिर ठीक है और खबरदार मेरे अलावा किसी पर डोरे डाले तो
: क्या कर लोगी ( मै हसा)
: ऐसे कान पकड़ कर घर खींच लाऊंगी तुझे बदमाश कही का , चल अब चाय लाई हू पी कर ही जा
हार कर मुझे चाय पीनी ही पड़ी और चुस्कियां लेते हुए - मामी एक बात पूछूं
सेठानी - हा बोल
मै - पूरे खोवामंडी एक मैं ही मिला था परेशान करने को , इतने हैंडसम है आपके शौहर फिर भी मुझ अबला पर डोरे डालती हो
सेठानी - शुक्र कर अभी तक तेरा तबला नही बजाया , मुझे तो तू बड़ा नमकीन लगता है ना इसलिए
मै अजीब सा मुंह बना कर - नमकीन
सेठानी मेरे गाल खींच कर - हा हर तरह के मसाले है तुझमें हिहिही
मै उठता हुआ अपने गाल झाड़ने लगा मानो उसके उंगलियों के निशान मिटा रहा हो कही अम्मी ना देख ले - धत्त मामी तुम भी ना , अब मैं जा रहा हु
मै उठ कर जाने लगा - पोंछ ले पोंछ ले एक दिन खूब गाढ़ी लाल लिपस्टिक लगा कर पप्पी लूंगी , जुम्मे रात तक नहीं छूटेगी
मै डर गया कि इसका कोई भरोसा नहीं वो अम्मी के आगे भी मुझे छेड़ने से बाज नहीं आती है और मैं सरपट अपना सामान लेकर निकल गया
मुहल्ले में घुसते ही लोगो की सलाम बंदगी चालू हो गई , रुक रुक कर सबसे सफर का हाल चाल साझा करना पड़ा
घर वापसी मुझे ये एक और झंझट मेरा पीछा नहीं छोड़ती, सब के सब अब्बू की वजह से और जबसे नौकरी की पढ़ाई के लिए बाहर गया तबसे मेरा हाल चाल कुछ ज्यादा ही लेते है
हर बार मेरी छुट्टियों के पल से घंटे दो घंटे भर का समय ये सब खा जाते है और लिहाज बस मैं कुछ कहता नही बस भीतर ही भीतर जलता हूं कि इन कमबख्तो की वजह से मुझे मेरी अम्मी के पास पहुंचने में जो देरी लग रही है उसकी तड़प ये क्या जाने ।
जबरन विदा लेकर घर की ओर गुजरने लगा , खोवामण्डी अब कहने को खोवामंडी रह गई है । पुराने हलवाई अब सब यहां से अमीर होकर शहर चले गए , उनकी दुकानों में अब दूसरे चाय नाश्ता की टीन शेड लग गई है और इसी वजह से यह बंदर बहुत बढ़ गए है ।
अक्सर घर आते हुए मेरी नजर बिलाल के बंद पड़े पुराने मकान की दूसरी मंजिल की बाहर दीवार पर निकले हुए सलियों पर जाती है , जहा एक बार एक हरामी बंदर अम्मी की नई सलवार ले कर भागा था और बिलाल के छत की चारदीवारी पर से गिरा दिया मगर वो उन बाहर निकले हुए सलियों में अटके गया ।
और पूरे मुहल्ले को पता चल गया था कि अम्मी के कूल्हे कितने चौड़े है ।
पूरे बरसात अम्मी का वो सलवार वहा झंडे के जैसे लहराता रहा और बारिश धूप में सड़ गल कर खत्म हो गया ।
आज भी मेरी नजर वहा गई और भीतर से एक दबी हुई खुन्नस उस बंदर के लिए हल्की सी बजबजा कर शांत हो गई
मै घर का चैनल सरका कर बरामदे में दाखिल हुआ और अब्बू के पैर छुए
: खुश रहो और जाकर नहा लो पहले
: जी अब्बू
फिर मैं अपना समान लेकर दरवाजे से घुसा और गैलरी से हाल में गया , अम्मी कही नही दिखी ।
किचन में झोला रख कर मैं बैग लेकर ऊपर अपने कमरे में जाने लगा और मुझे ऊपर अम्मी की पायलों की खनक मिली
मै खुश हुआ और कमरे के दरवाजे पर बैग रख कर - अम्मीई
अम्मी खुश होकर मेरी ओर देखी और अपना दुपट्टा सही करने लगी - अरे आ गया बेटा
मै आगे बढ़ा और झुक कर अम्मी को कमर से पकड़ कर उनको पूरा उठा लिया - अम्मी मेरी अम्मी मैं आ गया हिहिहि
: अरे ये क्या कर रहा है शानू छोड़ मुझे , तेरे अब्बू ने देख लिया तो शामत हो जाएगी
अब्बू का नाम आते ही मेरा मुंह उतर गया और उखड़ कर मेरे मुंह से निकल ही गया - इतना भी क्या डरना अब्बू से
अम्मी आंखे दिखा कर - शानू चुप कर तू , क्या बोले जा रहा है
मेरा मूड खराब हो गया , भीतर से एक चिढ़ सी हो रही थी हर बार जब कभी अम्मी के करीब होने का सोचता या अब्बू आ जाते या फिर उनका नाम और अब तो धीरे धीरे अब्बू के नाम से भी मुझे चिढ़ होने लगती है ।
अम्मी मेरा उतरा हुआ चेहरा देख कर मुस्कुराई और बोली - वैसे मैंने तेरे लिए आज आम और सूजी वाला हलवा बनाया है ।
मै खुशी से चहक उठा और थोड़ा जलन भी हुआ कि इन्हे सब पता होता है मुझे कब कैसे मनाना है । कभी तो मुझे फिल्मों वाला ड्रामा करने देती ये औरत ।
मै - सच अम्मी और अब्बू आम लाए थे?
अम्मी मुस्कुरा कर थोड़ा हक जता कर - लायेंगे क्यू नही, उनमे इतनी हिम्मत जो तेरी अम्मी का कहा टाल दे हिहीही
मै हसने लगा तो वो मेरे बाल में हाथ घुमा कर जा जल्दी से नहा ले और कपड़े निकाल कर वाशिंग मशीन में डाल देना
अम्मी बाहर जाने लगी तो मैंने उन्हें रोका - अम्मी रुको न
अम्मी मुस्कुरा कर - हा बोल ना
मैंने झट से बैग से वो चमकीली पन्नी वाला गिफ्ट निकाल और उनको देता हुआ - ये आपकी शादी की सालगिरह का तोहफा अम्मी ,
अम्मी उस चमकती लाल पन्नी वाली गिफ्ट के पैकेट को देख कर खुश हो गई - वाओ कितना प्यारा पैकिंग हुआ है और ये क्या लिखा है
मेरी प्यारी अम्मी को शादी की सालगिराह मुबारक हो , आपका शानू और ये क्या है ?
अम्मी ने उंगली रख कर एक emoji पर मेरी ओर देखा और वहा मैंने एक चुम्मी वाली emoji अपने पेन से बनाई थी जिसे देख कर मेरी हसी निकल गई ।
अम्मी मुझे देख कर मुस्कुराई - बदमाश कही का ,चल मै जाती हु तू जल्दी से आजा नहा कर
मै - अम्मी खोल कर देखो ना क्या
अम्मी - नही नही बाद में जल्दी से नहा कर आजा अभी तेरे अब्बू ने नाश्ता नहीं किया है लेट हुआ तो डांट मिलेगी
फिर अम्मी वो गिफ्ट अपने हाथ ऐसे झुलाते लेकर कर गई मानो मेरा दिया हुआ दिल लटका रखा हो और मेरे मजे ले रही हो , मुझे सता रही हो कि ऐसे ही लटका कर रखूंगी तुझे बच्चू ।
मुझे फिर गुस्सा आया मगर उनकी हिलकोरे खाती बलखाती गाड़ ने मेरे दिल को चैन दिया और मेरे चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई ।
ना जाने क्यों अम्मी पर गुस्सा मैं कर ही नहीं पाता ।
खैर मैं नहा कर नीचे गया , चाय नाश्ता होने लगा । अब्बू से मेरी कोई खास बात चीत होती नही थी मगर न जाने क्यू वो आज वो खुद से पहल कर बातें कर रहे थे ।
: वहा रहने वहने की कोई दिक्कत नही है ना
: जी नहीं अब्बू , नया फ्लैट है rent भी सस्ता है उसका
: आस पास का क्या माहौल है
: सब ठीक ही है ,क्यों ?
: अरे घर परिवार लेकर रहने लायक है या नही ये पूछ रहा हूं
: हा , और भी लोग है वहा फैमली लेकर ( मैने अम्मी की ओर देखकर इशारे से पूछा क्या बात है तो वो ना में सर हिला दी जैसे उन्हें भी नही पता हो )
: ठीक है , आज शाम को अनवर भाई साहब आ रहे है थोड़ा कायदे से पेश आना
: जी अब्बू
मै बड़ी उलझन में था कि अब्बू ने मुझसे ऐसे बात क्यू की और फिर अनवर चचा को मुझसे क्या काम हो सकता है ।
अम्मी के पास भी इनसब का कोई जवाब नही था और अब्बू नाश्ता कर बाजार के लिए निकल गए ।
शाम हुई और तकरीबन 5 बजे तक अनवर चचा अपनी इनोवा से पूरे परिवार के साथ घर आए ।
चचा-चची के साथ उनकी बहु और उसने दो छोटे बच्चे थे जो बरामरे गलियारे हाल में शोर मचा कर खेल कूद करने लगे और अम्मी के साथ सबके लिए नाश्ते लगाते समय मेरी नजर हाल में अनवर चचा की बहु के साथ बैथी हुई रेहाना पर गई
: ओह नो , नो नो अम्मी मैं तो भाग रहा हु इंदौर अभी के अभी
: क्या हुआ शानू
: अम्मी रेहाना आई
: क्या ( अम्मी चौक कर रसोई से हाल में देखी )
हम दोनो उसके आने का मतलब साफसाफ समझ गए थे और मुझे समझ आ गया कि क्यू सुबह नाश्ते पर अब्बू ने मुझसे मेरे रहने वाली जगह का जायजा लिया
मै अम्मी को कंधे से पकड़ कर अपनी ओर घुमाया और उसकी आंखो में अपनी डबडबाती आंखो से पूरे विश्वास से देखता हुआ : अम्मी .... मै ये शादी नही करूंगा .
अम्मी एकदम से हड़बड़ा गई मेरी आंखो में आंसुओ के साथ साथ एक बगावत दिख रही थी जो मेरे ही अब्बू के खिलाफ थी , उन्हे डर था कही मेहमानों के आगे मै कुछ हंगामा ना कर दू ।
अम्मी मेरे चेहरे को थाम कर अपनी ओर किया - बेटा देख तू चुप हो जा और खुदा के लिए तू कुछ अनर्थ मत करना वरना तेरे अब्बू खाम्खा नाराज हो जाएंगे
मेरी आंखे सुर्ख लाल होने लगी मुझे अपनी अम्मी मुझसे दूर होती दिखने लगी वो सोच ने मेरी आंखे छलका दी
और होठ बुदबुदाहट के साथ फफकने वाले थे की अम्मी ने उंगली रख दी - नही बेटा रोना मत , तुझे मेरी कसम है अगर तू रोया तो
वो अपने दुपट्टे से मेरा चेहरा पोछने लगी उनकी आंखे पूरी नम हो गई थी ।
मै तो भीतर से टूट ही गया मानो , अम्मी ने तो मुझे मेरे हिस्से का दुख भी मनाने की इजाजत नही दी और अगले ही पल अम्मी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया मैं हार कर फफक पड़ा - अम्मी मुझे ये शादी नही करनी , नही करनी
अम्मी ने मेरा सर अपने सीने से लगा कर कस लिया मुझे सालों बाद उनके गुदाज नरम फूले हुए चूचे मेरे गालों को छू रहे थे और अम्मी ने जब मुझे कसा तो वो ऐसे दब रहे थे जैसे पाव की बन हो , उसपे से उनकी सूट से आती वो मादक गंध मेरे नथुनों में बसने लगी थी । कई बार मैं इनकी खुशबू ले चुका था - तू फिकर ना बेटा , तेरी अम्मी है ना अभी । चुप हो जा मेरे बच्चे चुप हो जा
" शानू की अम्मी , अरे आओ भई मेहमान आ गए है "
अम्मी झट से मुझसे अलग हुई और अपना चेहरा पोंछ कर ट्रे लेकर बाहर चली गई मैं भी उनके साथ अपना हुलिया सही कर दूसरी ट्रे लेकर बाहर आया
जारी रहेगी
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सफर
इंदौर जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर मैं एक टी स्टाल के पास खड़ा होकर , सफर के लिए स्नैक्स पानी बोतल वगैरह ले रहा था , इंदौर - पटना एक्सप्रेस अभी कुछ मिंट लेट थी ।
अक्सर मेरे साथ ये अनुभव रहा है कि जब भी कही जाने की जल्दी हो तो सवारी कही न कही खुद लेट हो ही जाती है और वो महज कुछ मिंट की देरी से लगता है कि अब समय से सारा सोचा हुआ काम होगा ही नही ।
तभी सामने से इंदौर - पटना एक्सप्रेस तेजी से हॉर्न बजाती हुई अपनी जगह पर रुकती है और मैं अपना एक पिट्ठू बैग लेकर 3Ac के एक कोच के चढ़ जाता हूं।
चढ़ते उतरते यात्रियों की भीड़ से गुजर कर अपनी सीट खोजता हुआ मैं आगे बढ़ रहा था , दोपहर के 2 बज रहे थे और ट्रेन निकल पड़ी थी ।
हल्के झटके से मैं संभलता हुआ अपना बैग वही किनारे रख कर एक महिला जो मेरे सीट पर लेटी हुई उनको खड़े खड़े आवाज देने लगा ।
आस पास के लोग भी उन्हें आवाज देने लगे , उस केबिन शायद उस वक्त तक कोई और महिला नही थी ।
स्वस्थ तदुरुस्त बदन की मालकिन दिख रही थी , पटियाला सलवार और सूट में अपने ऊपर लंबा चौड़ा काटन का दुपट्टा चढ़ाए गहरी नींद में थी वो ।
कूल्हे पर हुई सलवार में उसके मोटे विशालकाय मटके जैसे चूतड बहुत ही कामुक नजर आ रहे थे , और उन उन्नत फैले हुए नितंब को देख कर पल भर के लिए मुझे किसी की याद आई , मगर सोती हुई निर्दोष महिला के अंग निहारने से मेरे भीतर का पौरुष मुझे धिक्कारने लगा ।
मैंने नजरें फेर ली और बड़े असहज भाव से कुछ पल उनके उठने की राह निहारी , आस पास बड़ी बेबसी से जबरन होठों पर मुस्कुराहट लाकर बाकी बैठे हुए लोगो की देखा मगर शायद उन्हें भी इस चीज के लिए फर्क नहीं पड़ रहा था , शायद वो पहले भी काफी बार से उस महिला को उठाना चाह रहे थे ।
तभी उन भले लोगो में से एक ने घिसक कर मुझे खिड़की से लगी हुई किनारे की ओर सीट में जगह देदी ।
बड़ी मुश्किल से अपने कूल्हे पिचकाकर मैं वहा बैठ पा रहा था , कुछ ही मिनट बीते होंगे कि मेरी ही बेल्ट अब बगल से कुछ कमर में तो कुछ पेट में चुभने लगी थी ।
मुझे ये सफर एक झंझट सा महसूस हो रहा था , महगी टिकट और सीट भी कन्फर्म थी मगर ऐसे सफर करना पड़ रहा था ।
थोड़ा खुद को सही करता बेल्ट ढीला का बोगी की लोहे की दीवाल में सर टिका दिया , तिरछी नजर कर शीशे से बाहर निहार रहा था जल्द ही मेरी पुतलियां भी तंग होने लगी और मैंने नजरें सामने की अह्ह्ह्ह्ह गजब की ठंडक आ रही थी ,
उस महिला के दुपट्टे के नीचे से हल्की सी उसके नूरानी घाटियों की झलक सी मिली और थोड़ा सा गर्दन सेट किया तो एक लंबी गहरी दरार
आस पास नजर घुमा कर देखा तो सब बातो में लगे थे तो कोई झपकियां ले रहा था ,
मेरी नजर रह रह कर उस महिला के सूट में लोटी हुई छातियों के दरखतों के जा रही थी, कभी खुद को धिक्कारता तो कभी लालच हावी होने लगता और जैसे पल भर को आंखे मूंदता तो एक कामकल्पना से परिपूर्ण दृश्य मेरी आंखो में भर सा जाता , जहा कई कहानीयां उभर आती थी मन में ।
बार बार चीजे मन में घूमने से मेरे पेंट में कसावट सी होने लगी , जिसे छिपाने के लिए मुझे अपनी बैग का सहारा लेना पड़ा ।
कुछ देर बाद एक आदमी अगले स्टेशन पर उतर गया और मुझे भी आराम से बैठने का मौका मिला । मगर जैसे ही तन को सुख हुआ मन अपनी मनमानीयों पर उतर आया ।
अब मेरी नजर उस महिला को भरपूर नजर से निहारने लगी थी , बैग अभी भी मेरे जांघो पर थी । नीचे पेंट में तम्बू का साइज बढ़ने लगा था ।
ऐसा ही सूट सलवार कोई पहनता है जिसे मैं बचपन से देखता आ रहा हूं और वो मुझे बहुत अजीज थी ।
मेरी अम्मी ,
अभी कल ही बात लगती है कि मैं जब उनसे लिपट जाया करता था , उनके मखमली पेट पर जब वो लेटी होती थी मैं चढ़ कर अटखेलियां कर लिया करता था , उनके मोटे मोटे खरबूजे जैसे दूध की थैलियों में सर छिपा कर उनका दुलार प्यार जबरन ले लिया करता था ।
गर्मी की दोपहर अक्सर सोते हुए मेरे पैर उनके विशालकाय चूतड पर ही होते थे , अक्सर मोबाइल चलाते हुए मेरे पैर के पंजे उनके मुलायम चूतड को सलवार के ऊपर से आंटे की तरह घंटो गुदते रहते ।
अम्मी - शानू बेटा क्या कर रहा है
मैं - अम्मी मूवी देख रहा हु बस लास्ट सीन है
अम्मी - ओहो पैर हटा ना अपना , क्या कबसे गीज रहा है मुझे
मै अपनी धुन में मस्त था - अम्मी बस 5 मिंट
अम्मी - मैं क्या बोल रही हू और ये क्या सुन रहा है , कुछ नही हो सकता इसका आह्ह् रब्बा पुरा कमर लोहे का कर दिया
अम्मी लड़खड़ाती हुई उठी और गुसलखाने की ओर बढ़ गई , मैने मुस्कुरा कर मोबाइल से नजर हटा कर कमरे से बाहर जाती हुई अम्मी की मोटी थिरकती गाड़ देख कर अपना खड़ा लंड मिस दिया ।
"कितने बजे भैया ,अरे हस क्यूं रहे हो बताओ ना कितने बजे "
मै चौक कर नजर उठा कर देखा तो आस पास की सीट सब खाली थी और वो महिला जो सो रही थी वो सामने खड़ी होकर मुझे ही आवाज दे रही थी - जी ? जी 03.45 हो रहे है ।
वो महिला सुस्त होकर एक बार फिर उस सीट पर बैठ गई ।
दुपट्टे की चादर अभी भी उसके खरबूजे से चूची को अच्छे से ढके हुए थी मगर उनके उभार छिपाने में नाकाम थी ।
महिला - भैया पानी साफ है क्या ?
मै - जी , लीजिए
मैंने ढक्कन खोलकर उसकी और बढ़ाया और एक सास में जितना पी सकी वो पी गई , कुछ छलक कर उसके होठों से होकर ठूढी से टपक कर उसके सीने पर गिरने लगी और दाई ओर से चूचे के ऊपरी भाग पर दुपट्टा और सूट पर थोड़ा सा हिस्सा गिला होकर उसके सीने से चिपक गया , देखने ऐसा लग रहा था मानो दुपट्टे के नीचे उसकी रसदार चूचियां पूरी नंगी ही है ।
उसने मुझे पानी का बोतल दिया - थैंक यू
मैंने मुस्कुरा कर - आप अकेली सफर कर रही है क्या ?
उस महिला ने मुझे अजीब नजरो से देखा और फिर कुछ देर चुप्पी किए रही मुझे लगा शायद उसे मेरा सवाल समझ नही आया या फिर मेरी शक्ल ही ऐसी है ।
कुछ देर बाद वो बोली - मेरी बहन का इंतकाल हो गया था उसी सिलसिले में आई थी अब वापिस जा रही हू , और मेरे शौहर बाहर रहते है ।
उसकी बातें सुन कर मुझे तो बहुत गहरा दुख हुआ , फिर मैंने उसे खाने के लिए पूछा पहले तो उसने मना किया फिर मैंने जब दुबारा से कहा तो वो उसने मेरी टिफिन से एक रोटी ले ली
मै - कैसी है सब्जी , मैने बनाई है ?
वो मुस्कुराई और स्वाद लेती हुई - बनानी आती है क्या ?
मै - हा अम्मी से सीखी है ,
वो - अच्छी है
मै टिफिन आगे कर - और दू
वो ना में सर हिलाती हुई खाना खाने लगी और उसकी निगाहें शीशे से बाहर थी । गुमसुम सी आंखे उसकी बहुत हल्की फुल्की मुस्कान लिए सब देख रही थी ।
[मैंने भी नज़रे बाहर की ओर कर सपाट खेतो की ओर निहारने लगा , मेरी बनाई हुई सब्जी अभी भी मेरे दांतो मे पिस रही थी और मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी
"ओहो , ऐसे नही जला देगा तू हट, हट जा " अम्मी मुझे अपने देह से मुझे धकेलती हुई मेरे हाथो से कलछी और कपड़ा ले लेती है जिससे मैंने कराही पकड़ी थी ।
अम्मी के मुलायम स्पर्श से मैं भीतर से सिहर उठा और वही उनसे लग कर खड़ा होकर उनके देह से आ रही भीनी सी खुश्बु को अपनी सासो में बसा लेना चाह रहा था ।
" अब अगला उबाल आए तो उतार देना "
" अब अगला स्टाफ आए तो बता देना " , उस महिला ने कहा ।
" जी ? जी , ठीक है "
महिला मुझे घूरती हुई - तुम फिर मुस्कुरा रहे हो ?
मै हंसता हुआ - जी ? वो काफी समय बाद घर जा रहा हु तो बस अम्मी की बातें याद आ रही है ।
वो महिला मुस्कुरा कर - बहुत प्यार करते हो न अपनी अम्मी को ?
मै अचरज से - आपको कैसे पता ?
महिला इतराहट भरी मुस्कुराहट से - तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी ही बसी होती है इसीलिए
मै उसकी बात सुनकर ऐसे मुस्कुराता जैसे वो मेरी प्रेमिका के बारे में बोल रही थी ।
महिला - कहा से आ रहे हो ?
मै - जी इंदौर में ही नौकरी है मेरी और लखनऊ जाना है ।
महिला - खास लखनऊ ही ?
मै - जी नहीं , वहा मुख्य शहर से बाहर एक गांव है वही घर है मेरा और आप ?
महिला - मुझे अगले ही स्टेशन पर उतरना है और फिर यह तो तुम अकेले पड़ जाओगे
मै हस कर - आप भी चलिए फिर मेरे साथ
महिला खिलखिलाई - अम्मी से मिलवाने हिहिहिही
मै भी उसकी खिलखिलाई सूरत देख कर हस पड़ा - हा और है ही कौन मेरा ?
वो महिला का चेहरा फीका सा पड़ने लगा - क्यू , अब्बू नही है ?
मै मुस्कुरा कर - है , वो मेरी उनसे खास बनती नही इसीलिए
महिला - और बहन ?
मैंने ना में सर हिला दिया ।
कुछ देर यूं ही हमारी बातें चलती रही और फिर आधे घंटे बाद वो उतर गई , जल्द ही कुछ नए यात्री आ गए मैंने भी इत्मीनान से अपनी सीट लेली और पैर फैला कर कोने से टेक लेकर आंख मूंद लिया ।
मेरे जहन में अब भी उस महिला की बातें चल रही थी और वो लाइन मेरे दिल में बस सी गई थी " तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी बसी होती है "
गाड़ी स्टेशन दर स्टेशन गुजरती रही और भीड़ आती जाती रही , चेहरे बदलते रहे
" अरे अरे भाई साहब देख कर बैग है मेरा " मैने एक आदमी को डांट लगाई हो अपने परिवार के साथ अभी अभी बोगी में चढ़ा था और उसके जूते मेरे बैग पर आ गए थे ।
मैंने झल्लाते हुए बैग ऊपर किया और उसको झाड़ते हुए चैन खोल कर बैग में रखा हुआ वो गिफ्ट का वो बॉक्स देखा जिसकी लाल चमकीली पन्नी देख कर मेरे होठ मुस्कुराने लगे ।
मैंने वापस बैग की चैन बंद कर बैग को अपने गोद में रख कर सीने से लगाए हुए आंख बंद लिया ।
" नही नही नही , इससे बड़ी नही मिलेगी भैया ये ही सबसे बड़ी size मेरे पास "
" भैया आपको जितने पैसे चाहिए लेलो कही से मेरे लिए शेम यही सूट की 4XL साइज देदो" , मैं मिन्नते करते हुए उस दुकानदार से बोला ।
दुकानदार ने अपने किसी स्टाफ कर बाजार की दूसरी गली से वही ड्रेस मेरे पसंद की साइज में मंगवाई और मैंने फाइनल करवा लिया
दुकानदार - देख समझ लो भैया इस साइज की कोई वापसी नहीं लूंगा मैं , आपको यकीन है ना कि जिसको आप देंगे उनकी साइज यही है ?
मै मुस्कुराता हुआ - हा भईया पता है , मेरी ही अम्म..... , अब पैक भी करवा दो ।
" टिकट टिकट , ओह भाईसाहब टिकट दिखाइए"
मैंने टीटी को अपनी टिकट दी और वो आगे बढ़ गया
मेरे मन में एक कड़वाहट सी होने लगी थी अब , ढलती रात में भी कोई न कोई मुझे डिस्टर्ब कर देता था । जिस वजह से मैने एसी की टिकट निकलवाई थी वो सफल नहीं दिख रही थी
मेरी नजर ऊपर के बर्थ पर गई सोचा किसी से बदली कर लू
मगर ऊपर वही आदमी लेटा हुआ मोबाइल चला रहा था जिसको आते ही मैंने फटकार लगा दी थी ।
रात के 10 बजने को हो रहे थे कि मेरी फोन की घंटी बजनी शुरू हुई और स्क्रीन पर अब्बू का नंबर देख कर मेरा मूड और भी उखड़ सा गया - हा हैलो नमस्ते अब्बू
: हम्म्म लो तुम्हारी अम्मी बात करेगी
मै एक पल के चहक उठा मगर अगले ही पल जब अहसास हुआ कि अब्बू भी घर पर है तो मेरा मन मायूस सा हो गया ।
मै - जी नमस्ते अम्मी
: क्या हुआ बेटा , तबियत ठीक है ना तेरी ? ट्रेन मिली ? कुछ खाना पीना किया ?
सवालों पर सवाल, फिकरमंद अम्मी ने मुझपर दागे और उसके लाड में मैं भी मुस्कुरा कर - इतनी फिकर है तो खुद क्यूं नही आती जाती हो अपने बेटे के साथ , हूह
मोबाइल में छाई चुप्पी की वजह मै समझ सकता था अब्बू के कारण अम्मी खुलकर कभी मुझसे अपने दिल की बात नही कहती और न ही ज्यादा लाड प्यार जताती ।
मै उनकी चुप्पी पर उखड़े मन से बोल पड़ा - आप फिकर ना करे , अब्बू से कह दें , मैं ठीक हूं और खाना पीना भी हो गया है सुबह 6 बजे लखनऊ पहुंच जाऊंगा ।
: ठीक है बेटा , रखती हु
मै - जी बाय
अभी फोन कटा नही था और अब्बू को शायद लगा कि कट गया । फोन पर उनकी बड़बड़ाहट और अम्मी पर गुस्सा साफ साफ सुनाई दे रहा था ।
ये सब पहली बार मैं नही सुन रहा था और मैने फोन काट दिया । आंखे भर आई मेरी ।
मेरी डबडबाई आंखे मिडल बर्थ पर लेटी एक चाची ने देख ली और करवट लेकर बोली - क्या हुआ बच्चा , सब ठीक है ना
मै आंख पोछ कर - जी ? जी सब ठीक है ?
चाची - अकेले सफर कर रहे हो क्या बच्चा
मै - जी चाची , घर जा रहा हु
चाची - कुछ खाना पीना किया ?
मै मुस्कुरा कर - आप फिकर ना करें , मैं खाना खा चुका हु । वो बस अम्मी की याद आ गई थी
चाची सीधी होकर लेट गई - सो जा बच्चा , रो कर अपनी अम्मी को तकलीफ मत दे
मै अचरज से - मतलब ?
चाची - अरे वो तेरी अम्मी है , तू उसका ही अंश है तू रोएगा तो उसका भी कलेजा रोएगा बेटा । सो जा
मै उसकी बात सुनकर अपने आशु साफ किए और लेट गया
मेरे दिमाग में उस चाची की बात घूमने लगी कि क्या सच में ऐसा होता होगा कि मैं जैसा महसूस करूंगा वो अम्मी भी करेंगी । अगले ही पल मेरी घटिया सोच मेरे साफ पाक भावनाओं पर हावी हो गई ।
मै मुस्कुरा कर खुद को गाली देते हुए - बीसी तू नहीं सुधरेगा कभी हिहीही
कुछ देर तक लेटे रहने के बाद भी मुझे नीद नही आ रही थी रात गहराती चली गई और ख्याल अम्मी के बातें उनकी यादों से भरता चला गया ।
मै उठा और बैग सही से रख कर बाथरूम की जाने लगा रास्ते में बोगी के हर कपार्टमेंट में कोई न कोई महिला के कपड़े अस्त व्यस्त दिखे ।
मन में तरंगे भी उठनी शुरू हुई और बाथरूम में जाते ही मैंने अपना अकड़ा हुआ लंड निकाल कर पेशाब करने लगा
मोबाइल हाथ में था तो उसको चलाने लगा कि मेरी नजर गैलरी ऐप पर गई
मै पूरी शिद्दत से अपने मन को रोक रहा था मगर मेरे दिमाग पर हवस हावी होने लगा था और मैने गहरी सास लेते हुए hide image से एक तस्वीर बाहर निकाली
वो एक वीडियो कॉल के दौरान ली गई स्क्रीन शॉट थी जिसमे अम्मी पहली बार बिना दुपट्टे के मेरे सामने थी और मैंने झट से वो कैप्चर कर ली थी ।
तस्वीर में उनके उन्नत और सूट में कसे हुए थन जैसे चूचे देखकर मेरा लंड बौरा उठा और मैं तेजी से अपना लंड सहलाते हुए आंखे बंद कर कभी अम्मी का चेहरा याद करता तो कभी तस्वीर में अम्मी की मोटी मोटी चूचियां निहारता , उनके गुलाबी गाल और लाल लाल कश्मीरी सेब रंग के होठ देख कर मेरे होठ बड़बड़ाने लगे ,मगर ट्रेन के टॉयलेट में एक डर था कि कही कोई मेरी आवाज न सुन ले ।
अम्मी उह्ह्ह्ह मेरी अम्मी आप क्यू नही आ जाती मेरे पास अअह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मैं आपको हमेशा के अपना बना लेना चाहता हुं उह्ह्ह्ह पकड़ो ना मेरा लंड , कब मेरे तपते लंड को अपने इन होठों की मिठास से ठंडा करोगी , कब मेरे होठ तुम्हारे रसीले निप्पल को दुबारा से जूठा करेंगे अअह्ह्ह्ह अम्मी अहह्ह्ह्
मै अब और नही रूकूंगा अअह्ह्ह्ह इस बार तो आपको छू लूंगा , आपके बड़े मुबारक चूतड पर हाथ लगाऊंगा अह्ह्ह्ह्ह अम्मी कितने साल हो गए आपकी नरम नरम गाड़ को छुए , आपके बड़े रसीले खरबूजे जैसे चूची में अपना सर रख कर सोए उह्ह्ह्ह अम्मी मुझे बड़ा नही होना अअह्ह्ह्ह मैं आपका होकर रहना चाहता हु अह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मत दूर करो मुझे उह्ह्ह्ह ओह येस्स उम्मम्म गॉड फक्क्क्क उह्ह्ह्ह अम्मीई अअह्ह्ह्हह
और देखते ही देखते मेरी तेज गाढ़ी मलाईदार पिचकारी बाथरूम की दिवालों पर एक के बाद एक छूटती रही और मैं मोबाइल जेब में रख कर अंत तक उसे निचोड़ता रहा ।
फिर आकर अपनी सीट पर सो गया
अगली सुबह तड़के मेरी नीद खुली , कंपार्टमेंट में अजीब गुपचुप तरीके भिनभिनाहट मची हुई थी और कुछ देर में मुझे भनक लगी कि वहा अनजाने में लोग मेरी ही बात कर रहे थे , क्योंकि हिलाने के बाद मैने पानी से कुछ भी साफ नही किया था वैसे ही निकल आया था ।
मुझे हसी भी आई और खुद को गालियां भी दी मैने की एक जग पानी मार देता तो क्या हो जाता
खैर मैं लखनऊ उतर चुका था मुझे सीतापुर रोड के लिए बस लेनी थी और आगे 15-17km बाद ही हाईवे से लगा मेरा छोटा सा कस्बानूमा गांव था - काजीपुर ।
जारी रहेगी
Good UpdateUPDATE 001
सफर
इंदौर जंक्शन के प्लेटफार्म नंबर 3 पर मैं एक टी स्टाल के पास खड़ा होकर , सफर के लिए स्नैक्स पानी बोतल वगैरह ले रहा था , इंदौर - पटना एक्सप्रेस अभी कुछ मिंट लेट थी ।
अक्सर मेरे साथ ये अनुभव रहा है कि जब भी कही जाने की जल्दी हो तो सवारी कही न कही खुद लेट हो ही जाती है और वो महज कुछ मिंट की देरी से लगता है कि अब समय से सारा सोचा हुआ काम होगा ही नही ।
तभी सामने से इंदौर - पटना एक्सप्रेस तेजी से हॉर्न बजाती हुई अपनी जगह पर रुकती है और मैं अपना एक पिट्ठू बैग लेकर 3Ac के एक कोच के चढ़ जाता हूं।
चढ़ते उतरते यात्रियों की भीड़ से गुजर कर अपनी सीट खोजता हुआ मैं आगे बढ़ रहा था , दोपहर के 2 बज रहे थे और ट्रेन निकल पड़ी थी ।
हल्के झटके से मैं संभलता हुआ अपना बैग वही किनारे रख कर एक महिला जो मेरे सीट पर लेटी हुई उनको खड़े खड़े आवाज देने लगा ।
आस पास के लोग भी उन्हें आवाज देने लगे , उस केबिन शायद उस वक्त तक कोई और महिला नही थी ।
स्वस्थ तदुरुस्त बदन की मालकिन दिख रही थी , पटियाला सलवार और सूट में अपने ऊपर लंबा चौड़ा काटन का दुपट्टा चढ़ाए गहरी नींद में थी वो ।
कूल्हे पर हुई सलवार में उसके मोटे विशालकाय मटके जैसे चूतड बहुत ही कामुक नजर आ रहे थे , और उन उन्नत फैले हुए नितंब को देख कर पल भर के लिए मुझे किसी की याद आई , मगर सोती हुई निर्दोष महिला के अंग निहारने से मेरे भीतर का पौरुष मुझे धिक्कारने लगा ।
मैंने नजरें फेर ली और बड़े असहज भाव से कुछ पल उनके उठने की राह निहारी , आस पास बड़ी बेबसी से जबरन होठों पर मुस्कुराहट लाकर बाकी बैठे हुए लोगो की देखा मगर शायद उन्हें भी इस चीज के लिए फर्क नहीं पड़ रहा था , शायद वो पहले भी काफी बार से उस महिला को उठाना चाह रहे थे ।
तभी उन भले लोगो में से एक ने घिसक कर मुझे खिड़की से लगी हुई किनारे की ओर सीट में जगह देदी ।
बड़ी मुश्किल से अपने कूल्हे पिचकाकर मैं वहा बैठ पा रहा था , कुछ ही मिनट बीते होंगे कि मेरी ही बेल्ट अब बगल से कुछ कमर में तो कुछ पेट में चुभने लगी थी ।
मुझे ये सफर एक झंझट सा महसूस हो रहा था , महगी टिकट और सीट भी कन्फर्म थी मगर ऐसे सफर करना पड़ रहा था ।
थोड़ा खुद को सही करता बेल्ट ढीला का बोगी की लोहे की दीवाल में सर टिका दिया , तिरछी नजर कर शीशे से बाहर निहार रहा था जल्द ही मेरी पुतलियां भी तंग होने लगी और मैंने नजरें सामने की अह्ह्ह्ह्ह गजब की ठंडक आ रही थी ,
उस महिला के दुपट्टे के नीचे से हल्की सी उसके नूरानी घाटियों की झलक सी मिली और थोड़ा सा गर्दन सेट किया तो एक लंबी गहरी दरार
आस पास नजर घुमा कर देखा तो सब बातो में लगे थे तो कोई झपकियां ले रहा था ,
मेरी नजर रह रह कर उस महिला के सूट में लोटी हुई छातियों के दरखतों के जा रही थी, कभी खुद को धिक्कारता तो कभी लालच हावी होने लगता और जैसे पल भर को आंखे मूंदता तो एक कामकल्पना से परिपूर्ण दृश्य मेरी आंखो में भर सा जाता , जहा कई कहानीयां उभर आती थी मन में ।
बार बार चीजे मन में घूमने से मेरे पेंट में कसावट सी होने लगी , जिसे छिपाने के लिए मुझे अपनी बैग का सहारा लेना पड़ा ।
कुछ देर बाद एक आदमी अगले स्टेशन पर उतर गया और मुझे भी आराम से बैठने का मौका मिला । मगर जैसे ही तन को सुख हुआ मन अपनी मनमानीयों पर उतर आया ।
अब मेरी नजर उस महिला को भरपूर नजर से निहारने लगी थी , बैग अभी भी मेरे जांघो पर थी । नीचे पेंट में तम्बू का साइज बढ़ने लगा था ।
ऐसा ही सूट सलवार कोई पहनता है जिसे मैं बचपन से देखता आ रहा हूं और वो मुझे बहुत अजीज थी ।
मेरी अम्मी ,
अभी कल ही बात लगती है कि मैं जब उनसे लिपट जाया करता था , उनके मखमली पेट पर जब वो लेटी होती थी मैं चढ़ कर अटखेलियां कर लिया करता था , उनके मोटे मोटे खरबूजे जैसे दूध की थैलियों में सर छिपा कर उनका दुलार प्यार जबरन ले लिया करता था ।
गर्मी की दोपहर अक्सर सोते हुए मेरे पैर उनके विशालकाय चूतड पर ही होते थे , अक्सर मोबाइल चलाते हुए मेरे पैर के पंजे उनके मुलायम चूतड को सलवार के ऊपर से आंटे की तरह घंटो गुदते रहते ।
अम्मी - शानू बेटा क्या कर रहा है
मैं - अम्मी मूवी देख रहा हु बस लास्ट सीन है
अम्मी - ओहो पैर हटा ना अपना , क्या कबसे गीज रहा है मुझे
मै अपनी धुन में मस्त था - अम्मी बस 5 मिंट
अम्मी - मैं क्या बोल रही हू और ये क्या सुन रहा है , कुछ नही हो सकता इसका आह्ह् रब्बा पुरा कमर लोहे का कर दिया
अम्मी लड़खड़ाती हुई उठी और गुसलखाने की ओर बढ़ गई , मैने मुस्कुरा कर मोबाइल से नजर हटा कर कमरे से बाहर जाती हुई अम्मी की मोटी थिरकती गाड़ देख कर अपना खड़ा लंड मिस दिया ।
"कितने बजे भैया ,अरे हस क्यूं रहे हो बताओ ना कितने बजे "
मै चौक कर नजर उठा कर देखा तो आस पास की सीट सब खाली थी और वो महिला जो सो रही थी वो सामने खड़ी होकर मुझे ही आवाज दे रही थी - जी ? जी 03.45 हो रहे है ।
वो महिला सुस्त होकर एक बार फिर उस सीट पर बैठ गई ।
दुपट्टे की चादर अभी भी उसके खरबूजे से चूची को अच्छे से ढके हुए थी मगर उनके उभार छिपाने में नाकाम थी ।
महिला - भैया पानी साफ है क्या ?
मै - जी , लीजिए
मैंने ढक्कन खोलकर उसकी और बढ़ाया और एक सास में जितना पी सकी वो पी गई , कुछ छलक कर उसके होठों से होकर ठूढी से टपक कर उसके सीने पर गिरने लगी और दाई ओर से चूचे के ऊपरी भाग पर दुपट्टा और सूट पर थोड़ा सा हिस्सा गिला होकर उसके सीने से चिपक गया , देखने ऐसा लग रहा था मानो दुपट्टे के नीचे उसकी रसदार चूचियां पूरी नंगी ही है ।
उसने मुझे पानी का बोतल दिया - थैंक यू
मैंने मुस्कुरा कर - आप अकेली सफर कर रही है क्या ?
उस महिला ने मुझे अजीब नजरो से देखा और फिर कुछ देर चुप्पी किए रही मुझे लगा शायद उसे मेरा सवाल समझ नही आया या फिर मेरी शक्ल ही ऐसी है ।
कुछ देर बाद वो बोली - मेरी बहन का इंतकाल हो गया था उसी सिलसिले में आई थी अब वापिस जा रही हू , और मेरे शौहर बाहर रहते है ।
उसकी बातें सुन कर मुझे तो बहुत गहरा दुख हुआ , फिर मैंने उसे खाने के लिए पूछा पहले तो उसने मना किया फिर मैंने जब दुबारा से कहा तो वो उसने मेरी टिफिन से एक रोटी ले ली
मै - कैसी है सब्जी , मैने बनाई है ?
वो मुस्कुराई और स्वाद लेती हुई - बनानी आती है क्या ?
मै - हा अम्मी से सीखी है ,
वो - अच्छी है
मै टिफिन आगे कर - और दू
वो ना में सर हिलाती हुई खाना खाने लगी और उसकी निगाहें शीशे से बाहर थी । गुमसुम सी आंखे उसकी बहुत हल्की फुल्की मुस्कान लिए सब देख रही थी ।
[मैंने भी नज़रे बाहर की ओर कर सपाट खेतो की ओर निहारने लगा , मेरी बनाई हुई सब्जी अभी भी मेरे दांतो मे पिस रही थी और मेरे चेहरे पर एक मुस्कुराहट थी
"ओहो , ऐसे नही जला देगा तू हट, हट जा " अम्मी मुझे अपने देह से मुझे धकेलती हुई मेरे हाथो से कलछी और कपड़ा ले लेती है जिससे मैंने कराही पकड़ी थी ।
अम्मी के मुलायम स्पर्श से मैं भीतर से सिहर उठा और वही उनसे लग कर खड़ा होकर उनके देह से आ रही भीनी सी खुश्बु को अपनी सासो में बसा लेना चाह रहा था ।
" अब अगला उबाल आए तो उतार देना "
" अब अगला स्टाफ आए तो बता देना " , उस महिला ने कहा ।
" जी ? जी , ठीक है "
महिला मुझे घूरती हुई - तुम फिर मुस्कुरा रहे हो ?
मै हंसता हुआ - जी ? वो काफी समय बाद घर जा रहा हु तो बस अम्मी की बातें याद आ रही है ।
वो महिला मुस्कुरा कर - बहुत प्यार करते हो न अपनी अम्मी को ?
मै अचरज से - आपको कैसे पता ?
महिला इतराहट भरी मुस्कुराहट से - तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी ही बसी होती है इसीलिए
मै उसकी बात सुनकर ऐसे मुस्कुराता जैसे वो मेरी प्रेमिका के बारे में बोल रही थी ।
महिला - कहा से आ रहे हो ?
मै - जी इंदौर में ही नौकरी है मेरी और लखनऊ जाना है ।
महिला - खास लखनऊ ही ?
मै - जी नहीं , वहा मुख्य शहर से बाहर एक गांव है वही घर है मेरा और आप ?
महिला - मुझे अगले ही स्टेशन पर उतरना है और फिर यह तो तुम अकेले पड़ जाओगे
मै हस कर - आप भी चलिए फिर मेरे साथ
महिला खिलखिलाई - अम्मी से मिलवाने हिहिहिही
मै भी उसकी खिलखिलाई सूरत देख कर हस पड़ा - हा और है ही कौन मेरा ?
वो महिला का चेहरा फीका सा पड़ने लगा - क्यू , अब्बू नही है ?
मै मुस्कुरा कर - है , वो मेरी उनसे खास बनती नही इसीलिए
महिला - और बहन ?
मैंने ना में सर हिला दिया ।
कुछ देर यूं ही हमारी बातें चलती रही और फिर आधे घंटे बाद वो उतर गई , जल्द ही कुछ नए यात्री आ गए मैंने भी इत्मीनान से अपनी सीट लेली और पैर फैला कर कोने से टेक लेकर आंख मूंद लिया ।
मेरे जहन में अब भी उस महिला की बातें चल रही थी और वो लाइन मेरे दिल में बस सी गई थी " तुम्हारी बातों में तुम्हारी अम्मी बसी होती है "
गाड़ी स्टेशन दर स्टेशन गुजरती रही और भीड़ आती जाती रही , चेहरे बदलते रहे
" अरे अरे भाई साहब देख कर बैग है मेरा " मैने एक आदमी को डांट लगाई हो अपने परिवार के साथ अभी अभी बोगी में चढ़ा था और उसके जूते मेरे बैग पर आ गए थे ।
मैंने झल्लाते हुए बैग ऊपर किया और उसको झाड़ते हुए चैन खोल कर बैग में रखा हुआ वो गिफ्ट का वो बॉक्स देखा जिसकी लाल चमकीली पन्नी देख कर मेरे होठ मुस्कुराने लगे ।
मैंने वापस बैग की चैन बंद कर बैग को अपने गोद में रख कर सीने से लगाए हुए आंख बंद लिया ।
" नही नही नही , इससे बड़ी नही मिलेगी भैया ये ही सबसे बड़ी size मेरे पास "
" भैया आपको जितने पैसे चाहिए लेलो कही से मेरे लिए शेम यही सूट की 4XL साइज देदो" , मैं मिन्नते करते हुए उस दुकानदार से बोला ।
दुकानदार ने अपने किसी स्टाफ कर बाजार की दूसरी गली से वही ड्रेस मेरे पसंद की साइज में मंगवाई और मैंने फाइनल करवा लिया
दुकानदार - देख समझ लो भैया इस साइज की कोई वापसी नहीं लूंगा मैं , आपको यकीन है ना कि जिसको आप देंगे उनकी साइज यही है ?
मै मुस्कुराता हुआ - हा भईया पता है , मेरी ही अम्म..... , अब पैक भी करवा दो ।
" टिकट टिकट , ओह भाईसाहब टिकट दिखाइए"
मैंने टीटी को अपनी टिकट दी और वो आगे बढ़ गया
मेरे मन में एक कड़वाहट सी होने लगी थी अब , ढलती रात में भी कोई न कोई मुझे डिस्टर्ब कर देता था । जिस वजह से मैने एसी की टिकट निकलवाई थी वो सफल नहीं दिख रही थी
मेरी नजर ऊपर के बर्थ पर गई सोचा किसी से बदली कर लू
मगर ऊपर वही आदमी लेटा हुआ मोबाइल चला रहा था जिसको आते ही मैंने फटकार लगा दी थी ।
रात के 10 बजने को हो रहे थे कि मेरी फोन की घंटी बजनी शुरू हुई और स्क्रीन पर अब्बू का नंबर देख कर मेरा मूड और भी उखड़ सा गया - हा हैलो नमस्ते अब्बू
: हम्म्म लो तुम्हारी अम्मी बात करेगी
मै एक पल के चहक उठा मगर अगले ही पल जब अहसास हुआ कि अब्बू भी घर पर है तो मेरा मन मायूस सा हो गया ।
मै - जी नमस्ते अम्मी
: क्या हुआ बेटा , तबियत ठीक है ना तेरी ? ट्रेन मिली ? कुछ खाना पीना किया ?
सवालों पर सवाल, फिकरमंद अम्मी ने मुझपर दागे और उसके लाड में मैं भी मुस्कुरा कर - इतनी फिकर है तो खुद क्यूं नही आती जाती हो अपने बेटे के साथ , हूह
मोबाइल में छाई चुप्पी की वजह मै समझ सकता था अब्बू के कारण अम्मी खुलकर कभी मुझसे अपने दिल की बात नही कहती और न ही ज्यादा लाड प्यार जताती ।
मै उनकी चुप्पी पर उखड़े मन से बोल पड़ा - आप फिकर ना करे , अब्बू से कह दें , मैं ठीक हूं और खाना पीना भी हो गया है सुबह 6 बजे लखनऊ पहुंच जाऊंगा ।
: ठीक है बेटा , रखती हु
मै - जी बाय
अभी फोन कटा नही था और अब्बू को शायद लगा कि कट गया । फोन पर उनकी बड़बड़ाहट और अम्मी पर गुस्सा साफ साफ सुनाई दे रहा था ।
ये सब पहली बार मैं नही सुन रहा था और मैने फोन काट दिया । आंखे भर आई मेरी ।
मेरी डबडबाई आंखे मिडल बर्थ पर लेटी एक चाची ने देख ली और करवट लेकर बोली - क्या हुआ बच्चा , सब ठीक है ना
मै आंख पोछ कर - जी ? जी सब ठीक है ?
चाची - अकेले सफर कर रहे हो क्या बच्चा
मै - जी चाची , घर जा रहा हु
चाची - कुछ खाना पीना किया ?
मै मुस्कुरा कर - आप फिकर ना करें , मैं खाना खा चुका हु । वो बस अम्मी की याद आ गई थी
चाची सीधी होकर लेट गई - सो जा बच्चा , रो कर अपनी अम्मी को तकलीफ मत दे
मै अचरज से - मतलब ?
चाची - अरे वो तेरी अम्मी है , तू उसका ही अंश है तू रोएगा तो उसका भी कलेजा रोएगा बेटा । सो जा
मै उसकी बात सुनकर अपने आशु साफ किए और लेट गया
मेरे दिमाग में उस चाची की बात घूमने लगी कि क्या सच में ऐसा होता होगा कि मैं जैसा महसूस करूंगा वो अम्मी भी करेंगी । अगले ही पल मेरी घटिया सोच मेरे साफ पाक भावनाओं पर हावी हो गई ।
मै मुस्कुरा कर खुद को गाली देते हुए - बीसी तू नहीं सुधरेगा कभी हिहीही
कुछ देर तक लेटे रहने के बाद भी मुझे नीद नही आ रही थी रात गहराती चली गई और ख्याल अम्मी के बातें उनकी यादों से भरता चला गया ।
मै उठा और बैग सही से रख कर बाथरूम की जाने लगा रास्ते में बोगी के हर कपार्टमेंट में कोई न कोई महिला के कपड़े अस्त व्यस्त दिखे ।
मन में तरंगे भी उठनी शुरू हुई और बाथरूम में जाते ही मैंने अपना अकड़ा हुआ लंड निकाल कर पेशाब करने लगा
मोबाइल हाथ में था तो उसको चलाने लगा कि मेरी नजर गैलरी ऐप पर गई
मै पूरी शिद्दत से अपने मन को रोक रहा था मगर मेरे दिमाग पर हवस हावी होने लगा था और मैने गहरी सास लेते हुए hide image से एक तस्वीर बाहर निकाली
वो एक वीडियो कॉल के दौरान ली गई स्क्रीन शॉट थी जिसमे अम्मी पहली बार बिना दुपट्टे के मेरे सामने थी और मैंने झट से वो कैप्चर कर ली थी ।
तस्वीर में उनके उन्नत और सूट में कसे हुए थन जैसे चूचे देखकर मेरा लंड बौरा उठा और मैं तेजी से अपना लंड सहलाते हुए आंखे बंद कर कभी अम्मी का चेहरा याद करता तो कभी तस्वीर में अम्मी की मोटी मोटी चूचियां निहारता , उनके गुलाबी गाल और लाल लाल कश्मीरी सेब रंग के होठ देख कर मेरे होठ बड़बड़ाने लगे ,मगर ट्रेन के टॉयलेट में एक डर था कि कही कोई मेरी आवाज न सुन ले ।
अम्मी उह्ह्ह्ह मेरी अम्मी आप क्यू नही आ जाती मेरे पास अअह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मैं आपको हमेशा के अपना बना लेना चाहता हुं उह्ह्ह्ह पकड़ो ना मेरा लंड , कब मेरे तपते लंड को अपने इन होठों की मिठास से ठंडा करोगी , कब मेरे होठ तुम्हारे रसीले निप्पल को दुबारा से जूठा करेंगे अअह्ह्ह्ह अम्मी अहह्ह्ह्
मै अब और नही रूकूंगा अअह्ह्ह्ह इस बार तो आपको छू लूंगा , आपके बड़े मुबारक चूतड पर हाथ लगाऊंगा अह्ह्ह्ह्ह अम्मी कितने साल हो गए आपकी नरम नरम गाड़ को छुए , आपके बड़े रसीले खरबूजे जैसे चूची में अपना सर रख कर सोए उह्ह्ह्ह अम्मी मुझे बड़ा नही होना अअह्ह्ह्ह मैं आपका होकर रहना चाहता हु अह्ह्ह्ह सीईईईईईआई मत दूर करो मुझे उह्ह्ह्ह ओह येस्स उम्मम्म गॉड फक्क्क्क उह्ह्ह्ह अम्मीई अअह्ह्ह्हह
और देखते ही देखते मेरी तेज गाढ़ी मलाईदार पिचकारी बाथरूम की दिवालों पर एक के बाद एक छूटती रही और मैं मोबाइल जेब में रख कर अंत तक उसे निचोड़ता रहा ।
फिर आकर अपनी सीट पर सो गया
अगली सुबह तड़के मेरी नीद खुली , कंपार्टमेंट में अजीब गुपचुप तरीके भिनभिनाहट मची हुई थी और कुछ देर में मुझे भनक लगी कि वहा अनजाने में लोग मेरी ही बात कर रहे थे , क्योंकि हिलाने के बाद मैने पानी से कुछ भी साफ नही किया था वैसे ही निकल आया था ।
मुझे हसी भी आई और खुद को गालियां भी दी मैने की एक जग पानी मार देता तो क्या हो जाता
खैर मैं लखनऊ उतर चुका था मुझे सीतापुर रोड के लिए बस लेनी थी और आगे 15-17km बाद ही हाईवे से लगा मेरा छोटा सा कस्बानूमा गांव था - काजीपुर ।
जारी रहेगी
Hinglish कोई भाषा नही है मित्र ये बस जनसुविधा के रूप मे electronic जगत द्वारा बेचा गया झूठ है जिसमें चीजे सुविधा जनक तो दिखाई पड़ती है मगर उनमे व्याकरण के बेसिक भी फीट नही होते ।Thanks for the new story it's awesome but bhai hinglish font me likho na
Aur good luck
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