घर में सब को ये खुश खबरी दे दी थी। सब हमारा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। जब हम घर पहुंचे तो हम ये देख कर शॉक हो गए कि घर पर पार्टी का माहौल था। हमें देख कर मम्मी आई और मेरा माथा चूम कर बोलीं।
मम्मी - मेरी बच्ची आज मैं बहुत खुश हूं। तुम दोनो नहीं जानते हो हम कितने खुश हैं। तुम लोग हमे बहुत बड़ी खुशी देने जा रहे हो।
यहां पूरा परिवार खड़ा था, बड़ी मम्मी, बड़े पापा, दादा दादी, पीहू दीदी, उनके हसबैंड, रूही, अरुण,सुशीला आंटी। सब लोग हमारे वेलकम के लिए खड़े थे।
सुशीला आंटी - सबसे ज्यादा तो मैं खुश हूं। तेरी वजह से मुझे बेटा मिला था जो बेटी बन गई। फिर उस बेटी की वजह से मुझे बेटा मिला जो मुझे सगी मां से ज्यादा मानता है। और अब तुम दोनो मुझे पोता या पोती दे कर दादी बनाने वाले हो।
ऐसे ही सब बातें करते रहे।
प्रेगनेंसी के कारण मुझे ये पता चला कि महिलाएं कितना कुछ झेलती हैं लाइफ में। प्रेगनेंसी के बाद कभी उल्टी हो रही है, कभी चक्कर आ रहे हैं। ये सब चलता रहा और डिलीवरी का टाइम आ गया।
हॉस्पिटल में डिलीवरी रूम में मेरे मुंह से एक ही बात निकली।
मैं - हे भगवान मुझे लड़की नहीं बनना चाहिए था।
डॉक्टर - लड़का या लड़की होना इंसान के हाथ में नहीं होता है। ये तो भगवान ही डिसाइड करता है कि कौन लड़का होगा और कौन लड़की।
मैं -(दर्द के साथ) पर ये मेरे हाथ में था कि मैं लड़का बनूं या लड़की।
नर्स - मतलब।
मैं - कुछ नहीं।
डिलीवरी के बाद मेरे लड़का हुआ। हमने अपने बच्चे की जांच करवाई उन्हीं डॉक्टर से जिन्होंने मेरी जांच की थी। ये मेरी जिद थी जांच करवाने की। क्योंकि मुझे डर था कहीं ये भी मेरी तरह ही न हो। बच्चे की जांच के बाद जब सब नॉर्मल निकला तब दिल को कुछ सुकून मिला।
अब मेरा बेटा 2.5 साल का हो गया है। मेरा एडमिशन भी कुमुद ने अपने कॉलेज में करवा लिया है। जब तक मैं कॉलेज में रहती हूं कुमुद के साथ तब तक मम्मी और सुशीला आंटी बच्चे की देखभाल करतीं।
मुझे लड़की बनके ही लड़कियों की मजबूरी समझ में आई। जब मैं लड़का थी तब ये ही समझती थी कि लड़कियों और औरतों को सारी छूट होती है, लेकिन जब मैं खुद लड़की बनी तब पता चला कि लड़कियों की लाइफ में कितने रिस्ट्रिक्शन होते हैं। अगर मैं बताने बैठूं तो पूरी कहानी लिखी जा सकती है रिस्ट्रिक्शन के लिए।
कॉलेज में ही मुझे इस साइट के बारे में पता चला कि इस साइट में हर कोई अपनी कहानी लिख सकता है और किसी भी टाइप की कहानी पढ़ भी सकता है। तब मुझे अपनी लाइफ के कुछ पन्ने पलटने का मन हुआ जो आप सब के सामने है।
मेरी कहानी पढ़ कर बहुत से लोगों ने अपनी प्रोब्लम डिस्कस करी हैं तो मैं उन्हें बता दूं मेरी फैमिली ने मेरा सपोर्ट किया ताकि जो मैं बनना चाहूं वो मैं बन सकती थी। इतना सब होने के बाद भी मैं परफेक्ट लड़कियों की तरह नहीं बन पाती हूं मैने खुद को एक लड़की की तरह ट्रेन किया है। ऐसी प्रॉब्लम किसी में भी हो सकती हैं। लोग डरते हैं कि फैमिली वाले क्या कहेंगे, लोग क्या कहेंगे तो इस पर सिर्फ इतना कहना चाहूंगी फैमिली वाले कभी भी दूर नहीं हो सकते अगर वो आपसे प्यार करते हैं तो वो आपको समझेंगे और लोगों का क्या है उनको तो भगवान में भी कमियां दिख जाती हैं तो आप तो इंसान हो। इस बात पर फिल्म का एक डायलॉग है "कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना"। अगर आप में मेरी तरह की प्रोब्लम है तो बिना देर किए बिना डरे डॉक्टर को दिखा सकते हैं। वहां से एक प्रॉपर फीडबैक मिल सकता है। जिससे आपकी आगे की लाइफ सही से चल सकती है वरना.......
अपनी लाइफ के चैप्टर को यहां ही बंद करती हूं, जैसा कि मैने आप लोगों बताया मेरा एक बेटा हुआ था जो अब ढाई साल का है जिसे मेरी पूरी फैमिली संभालती है। कुमुद ने मेरा एडमिशन अपने ही कॉलेज में करवा दिया है मैं अभी फर्स्ट ईयर में ही हूं। एक डॉक्टर बनने के लिए तैयार।
Good Bye Friends...