भाग 17
जिंदगी क्या है, सिर्फ कुछ सांसो की मोहताज। जब तक सांसे चलती है, तब तक जिंदगी चलती है। जिंदगी में चलने वाली दिनचर्या चलती है। दिनचर्या से दिन व्यतीत होते है। किसी दिन सूरज अपने साथ आशा की किरण ले कर उगता है तो किसी दिन पूरे दिन की कमाई हुई निराशा ले कर अस्त होता है।लेकिन फिर आदमी एक नई आशा के साथ फिर उठता है, फिर अस्त हो जाता है। ये क्रमबद्धता चलती रहती है। समय जो अपने आप में एक रहस्य है, अगले ही पल कब क्या घट जाये किसी को नहीं पता होता। समय का हर पल अपने साथ या तो जोखिम लेकर आता है, या कोई ख़ुशी। इंसान उन्ही में से ख़ुशी के पल तलाशता रहता है।
हॉस्पिटल में भी सब लोग के साथ कुछ ऐसा ही चल रहा था, बस सब समय से ये ही प्रार्थना कर रहे थे कि अगला पल उनके लिए खुशखबरी ले कर आये। लेकिन स्ट्रेचर से शवगृह तक जाते हुए शव, सबकी प्रार्थना में विघ्न डाल रहे थे। और आरव इन सब चिंताओं से मुक्त बड़ी सहजता से जिंदगी और मौत का खेल खेल रहा था। डॉक्टर्स एक बाप होने का फर्ज निभा रहे थे, जो बार बार आरव को ये बता रहे थे कि खेल बहुत हो चुका, अब तुम्हें खेल से निकल कर भविष्य के बारे में सोचना चाहिए। बेटे का भविष्य बनाने के लिए एक बाप जो अपने फर्ज निभाता है, वो ही सब फर्ज अब आरव की जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टर्स निभा रहे थे।
" डॉक्टर कैसा है आरव..?" जैसे ही डॉक्टर ऑपरेशन थियटर से बाहर निकले तो मि. जैन ने पूछा।
" ठीक है, लेकिन आप लोगों को सिर्फ उन्हें खुश रखना है। दावा और दुआ अपनी जगह ठीक काम करेंगी, पर आदमी का खुद का विश्वास इन सब से ज्यादा काम करेगा।" डॉक्टर भी किसी दार्शनिक के भाँति सबको बता रहे थे..!
पुलिस अपने काम पर लगी थी, डॉक्टर से पूछ-ताछ, एक्सीडेंट के समय मौके पर उपस्थित गवाहों और cctv की फुटेज से इतना पता चल पाया था कि डॉक्टर ने फर्जी रिपोर्ट सिर्फ कुछ पैसों के लिए बनाई थी और आरव को ड्रग उसी रात को दिया गया था जिस रात आरव देहली वापिस आया था, जिस ट्रक से एक्सीडेंट हुआ था उसकी नंबर प्लेट ब्लैक कवर से ढकी हुई थी। डॉक्टर को पैसे जिस शख्स ने दिए थे, उससे डॉक्टर भी अनजान था। डील पूरी इंटरनेट कॉलिंग के जरिये की गयी थी। इसलिए पुलिस ने शक की बुनियाद पर हितेन से पूछ-ताछ की। क्योंकि आरव देहली आने के बाद सबसे पहले हितेन से ही मिला था और हितेन की गाडी से वो बोतल भी बरामद की, जिस बोतल में पानी के साथ उसे ड्रग दिया गया था। लेकिन हितेन की मेडिकल रिपोर्ट्स में भी उसी ड्रग के टिशुस पाये गए।
सब के लिए ये यकीन कर पाना मुश्किल था कि हितेन ये सब कर सकता है। क्योंकि हितेन और आरव दोनों ही बचपन के बहुत अच्छे दोस्त थे। सुख-दुःख दोनों में हमेशा एक दूसरे के साथ रहे थे और हितेन भी कुछ नहीं बोल रहा था, न जुर्म कबूल कर रहा था और न ही सफाई दे रहा था। बस खुद को चुप-चाप किये बैठा था। पुलिस और गहराई से जाँच में जुटी थी कि हितेन ने ये सब खुद से किया था या किसी के कहने पर किया था या वो किसी को बचा रहा था और आरव भी धीरे-धीरे सामान्य होने लगा गया था। लेकिन वो इन सब बातों से अनजान था कि बाहर क्या चल रहा है।
डॉक्टर्स ने आरव को घर ले जाने की अनुमति दे दी थी। आरुषि के मम्मी पापा भी घर जा चुके थे। आरुषि और आरव के मम्मी पापा आरव के साथ थे। आरव के शरीर का एक तरफ का भाग अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ था। व्हील चेयर और बिस्तर पर आरव के दिन कट रहे थे। कंपनी को आरुषि ने सम्भाल रखा था।
ऑफिस में आरुषि का पहला दिन था। ऑफिस में सारी तरफ नई बॉस के आने की चर्चा चल रही थी।
" हेलो मेम, आरव सर का ऑफिस उस तरफ है।" मैनेजर ने आरुषि को इशारे के साथ कहा।
" थैंक यू मिस्टर सुमित। मुझे आरव के काम के बारे में ज्यादा कुछ मालूम नहीं है, इसलिए आप मुझे समय समय पर गाइड करते रहना।"
"जी मेम, मुझे नहीं लगता कि मुझे आपको गाइड करना पड़ेगा। लेकिन हाँ, मैं हर विषय पर आपसे विचार-विमर्श करता रहूँगा। बाकि आरव सर का सारा काम आपको उनकी सेक्रेटरी बता देगी।"
" जी, लेकिन है कहाँ वो।"
" वो अपने केबिन में होगी, मैं उनको आपके पास भेजता हूँ।"
" जी, मैं ऑफिस में उनका इंतज़ार करूंगी।"
मैनेजर सेक्रेटरी के केबिन में जाकर आरुषि के आने की खबर देता है।
" कैसी है, आरव सर की वाइफ। वो सम्भाल पाएंगी आरव सर का काम।" सेक्रेटरी ने मैनेजर से पूछा।
" स्वाभाव तो ठीक ही लगा मुझे उनका। सक्षम भी है, कुछ दिन लगेंगे, सम्भाल लेंगी।"
" ठीक है, फिर मिलती हूँ उनसे।"
ऋतु ( सेकेट्री ) अपने केबिन से निकल कर आरव के ऑफिस में जाती है।
" माय आय कम इन मेम।" ऋतु ने गेट खटखटाते हुए आरुषि से पूछा।
" जी आइए, आप मिस ऋतु ही है न।"
" जी मेम।"
" सबसे पहले तो सॉरी ऋतु, हितेन के साथ इन दिनों जो कुछ भी हो रहा है। आरव ने बताया था कि आप और हितेन रिलेशनशिप में है। मुझे भी नहीं लगता कि हितेन ऐसा करेंगे, पर पता नहीं क्यों वो भी कुछ नहीं बोल रहे।" आरुषि ने एक मित्र की तरह व्यवहार करते हुए कहा।
" जिसने जो किया है, उसको उसकी सजा मिलनी चाहिए मेम, फिर वो चाहे कोई भी हो। मुझे नहीं लगता कि हमें इस विषय पर कोई बात करनी चाहिए।" ऋतु ने झुंझुला कर कहा।
" जैसा आप चाहे। चलो, कुछ काम की बात कर लेते है। आप मुझे बताइये कि अभी टीम कौनसे प्रोजेक्ट पर काम कर रही है?"
"आरव सर, मिस्टर वालिया के साथ मीटिंग करके गए थे, उनकी तरफ से डील स्वीकृत कर ली गयी है। आरव सर के यहाँ नहीं होने से डील हमारी तरफ से पेंडिंग पड़ी है।"
" क्या आप मुझे उस प्रोजेक्ट की फाइल्स दे सकती है?"
" जी मेम, ये फाइल्स है उस प्रॉजेक्ट की।"
" ठीक है, मैं मिस्टर वालिया की सारी ट्रमस् और कंडीशन्स पढ़ कर, आरव के साथ डिस्कशन करके ये डील जल्द ही पूरी करवाती हूँ।"
" जी मेम।"
आरुषि अब घर की जिम्मेदारियों के साथ साथ ऑफिस की जिम्मेदारियां भी देखने लगी। हर प्रोजेक्ट को आरव से डिस्कश करना। आरव की देख-भाल करना। उसका रोज का कम हो चुका था।
" मैंने तुम्हें हमेशा जिम्मेदारियां ही दी है, जब स्ट्रगल कर रहा था तब भी और जब सब ठीक हो गया तब भी।" आरव ने खुद को लाचार महसूस करते हुए आरुषि से कहा।
" नहीं आरव ऐसा कुछ नहीं है, आपने हमेशा जो भी किया मेरे लिए ही तो किया है कि मेरा भविष्य सही बन सके, अगर उसमे मैंने थोड़ा बहुत आपका साथ दे भी दिया तो कौन सा बड़ा काम कर लिया।"
" हितेन नहीं आया एक भी बार मुझसे मिलने, कहाँ है वो?" आरव ने शंकित निगाहों से आरुषि से पूछा।
" आप नहीं हो न, इसलिए वो ऑफिस में बहुत बिजी रहते है। इसलिए नहीं आ पाये।" आरुषि ने नजर फिराते हुए कहा।
" अब तुम भी मुझसे झूठ बोलने लगी आरुषि। मैंने सब पढ़ा है नेट पर, पुलिस ने उसे मेरे ही केस में अरेस्ट किया हुआ है।"
" सॉरी आरव, मैंने जान-बुझ कर झूठ नहीं बोला। डॉक्टर्स ने मना किया था आपको बताने के लिए, इसलिए नहीं बताया।" आरुषि ने रोते हुए कहा।
" चलो जो भी है, लेकिन अब तुम एक काम करो। कल हमारे वकील को घर बुलाओ, हमे ये केस वापिस लेना है।"
" पर क्यों आरव? पता है आपकी जान को खतरा हो सकता है।" आरुषि ने आश्चर्य से पूछा।
" जान को तो अभी भी खतरा है। दोषी हितेन नहीं है, वो कभी भी ऐसा नहीं सोच सकता। मैं बचपन से जानता हूँ उसे। वो बिचारा बिना जुर्म की सजा काट रहा है, जो मैं नहीं होने दे सकता।"
" पर सारे सबूत उनके खिलाफ है आरव, उनकी गाडी में आपको जो ड्रग्स दिया गया है उसकी बोतल मिलना, डॉक्टर को पैसे देकर रिपोर्ट बदलवाना, किसी दूसरे नंबर से आपको कॉल करके अपने पास बुलाना और ठीक उसी के बाद आपका एक्सीडेंट हो जाना। इन सब का क्या आरव?"
" डॉक्टर को किसने पैसे दिए ये अभी तक पता नहीं चला, जिस ड्रग्स के टिशुस मेरे अंदर मिले वो ही उसके अंदर मिले है और जहाँ तक मैं जानता हूँ हितेन कोई ड्रग्स वगैरह नहीं लेता। उसने मुझे अपने पास इसलिए बुलाया था क्योंकि उसका खुद का एक्सीडेंट हो गया था। सब बातें अभी भी उलझी है आरुषि, तुम नहीं मान सकती पर मुझे पता है, हितेन ये सब नहीं कर सकता। इसीलिए तुम कल वकील को बुलाओगी।"
" नहीं आरव, मैं आपकी जान के साथ कोई रिस्क नहीं ले सकती।"
" अच्छा ठीक है मत बुलाओ, लेकिन कल तुम मुझे हितेन से मिलवाने ले जाओगी, प्लीज़ इतना तो कर ही सकती हो।"
" ठीक है, मैं सुशान्त जी से बात करके टाइम कंफर्म करती हूँ।"
आरव के तर्कों ने आरुषि को भी ये सोचने पर मजबूर कर दिया था कि हितेन ऐसा कुछ नहीं करेंगे। पर फिर भी आरुषि केस वापिस लेने के पक्ष में नहीं थी। लेकिन वो भी चाहती थी कि हर पहलु पर अच्छे से सोचा जाये। इसलिए आरुषि ने इंस्पेक्टर से बात करके सुबह की मीटिंग तय की।
【सुबह】
" आरुषि चलो पुलिस स्टेशन जाने का टाइम हो गया है।"
" क्यों बेटा, पुलिस स्टेशन क्यों जाना है?" मिस्टर जैन ने आरव से पूछा।
" पापा आप तो हितेन को अच्छे से जानते है, हितेन ऐसा करना तो दूर, ऐसा सोच भी नहीं सकता। फिर भी आपने ये सब होने दिया। क्यों पापा? पुलिस स्टेशन उसी को छुड़ाने जा रहे है।"
" लेकिन बेटा सारे सबूत बता रहे है ये सब उसने ही करवाया है।"
" पापा मुझे पूरा विश्वास है कि ये कहानी मेरे आने के बाद बदल जायेगी।"
" बेटा मैं भी चलता हूँ, तुम्हारे साथ।"
" नहीं पापा, आरुषि है साथ। आप मम्मी को कहो कि शाम का खाना हितेन का भी बना कर रखे। और आरुषि तुम मुझे वकील से बात करवाओ।"
" पर क्यों?" आरुषि ने आश्चर्य से पूछा।
" सब पता चल जायेगा, तुम कॉल लगाओ..!"
" ठीक है।"
【 आरव और वकील कॉल पर।】
" वकील साहब, आरव बोल रहा हूँ।"
" जी बोलिये, मि. आरव कैसे है आप?"
" मैं ठीक हूँ, पर आपको एक काम सौंप रहा हूँ। आज कोर्ट जाकर आप हितेन की बेल करवाइये।"
" ये क्या बोल रहे है आप, आरव जी। आपके एक्सीडेंट में उनका हाथ था।"
" ये तो आपको भी पता है वकील साहब मैं क्या बोल रहा हूँ, और मुझे नहीं लगता उसकी बेल करवाने में कोई ज्यादा दिक्कत आएगी। क्योंकि अभी उस पर कोई जुर्म साबित नहीं हुआ।"
" जी, जैसा आप चाहे। मैं अभी उनके वकील से बात करके बेल का इन्तज़ाम करता हूँ।"
" जी।"
" आरव अब चले, टाइम हो रहा है।" आरुषि ने अपना फ़ोन लेते हुए कहा।
" हाँ चलो..!"
भाग 18
जो गलती की ही नहीं, उस गलती की सज़ा काटना। ये आप दो ही सूरत में कर सकते है, या तो आप मजबूर हो या आप प्रेम में हो। प्रेम इंसान को विद्रोही या असहाय कुछ भी बना सकता है। प्रेम में जंग अगर दूसरों के खिलाफ हो तो इंसान विद्रोही बनता है और अपनों के ही खिलाफ हो तो असहाय बन जाता है। इस परिस्थिति में वह खुद का अच्छा या बुरा दोनों ही भूल जाता है। याद रहती है तो पुरानी कुछ यादें और ताजे ताजे कुछ ज़ख्म। ज़ख्मो के दर्द सहते सहते वो बड़ी ख़ामोशी से उन लोगों को अपनी नजर से गिरते हुए देखते है, जिन्हें कभी उन्होंने खुदा समझा था।
ऐसा ही कुछ देखने को मिल रहा था हितेन को। वो असहाय हो चुका था, अपने अच्छे और बुरे को समझने की समझ खो चुका था। सिर्फ खुद को तकलीफ़ देकर खुश हो रहा था। आरव को पक्का विश्वास था कि हितेन ये सब नहीं कर सकता था। इसीलिए वो हर प्रकार की कोशिश में लगा था कि हितेन को कैसे बचाया जाये और उससे कैसे जाना जाये कि वो किसे बचाने की कोशिश कर रहा है।
【 पुलिस स्टेशन 】
आरव:- मि. सुशांत, आरुषि ने आपसे हितेन से मिलने की परमिशन मांगी थी। क्या हम मिल सकते है..?
मि. सुशांत:- हाँ..! मि. आरव, आप मिल सकते है और कृपया कोशिश कीजिये कि वो कुछ बोले। वो बिल्कुल हमारे साथ कॉपरेट नहीं कर रहे।
आरव:- जी, थोड़ी ही देर में वकील साहब बेल लेकर आते होंगे, आप वो सब पेपर वर्क देख लीजियेगा। मैं प्रॉमिस करता हूँ कि जल्द ही असली मुजरिम आपकी गिरफ्त में होगा।
मि. सुशांत:- हम भी यही चाहते है मि. आरव कि असली मुजरिम इन सलाखों के पीछे हो। और अगर कोर्ट बेल की अर्जी मंजूर कर देती है तो मैं भी अपनी ओर से बिल्कुल देर नहीं करूंगा। भले 100 मुजरिम छुट जाये, परंतु एक बेगुनाह को सज़ा नहीं होनी चाहिए।
आरव:- जी, मैं मिलकर आता हूँ। आरुषि तुम मेरा यहीं वेट करना, मैं अकेला ही जाऊंगा उसके पास।
मि. सुशांत:- हवलदार, मि. आरव और हितेन को मीटिंग रूम तक छोड़कर आइए। इन्हें व्यक्तिगत बातें करने की पूरी छुट दीजिये, परंतु नज़र रखियेगा कि कुछ अनहोनी न हो पाये।
हवलदार:- जी सर।
"हवलदार, आरव को मीटिंग रूम तक ले जाता है। हितेन पहले से ही वहीँ पर मौजूद होता है।"
हितेन:- कैसा है भाई अब तू..?
आरव:- बस व्हीलचेयर पर कट रही है जिंदगी। बाहर सब लोग, मुझे व्हीलचेयर तक लाने का श्रेय तुम्हें दे रहे है।
हितेन:- तुम्हारा क्या मानना है..?
आरव:- क्या करूँ! मैं नहीं मान पा रहा ये, तभी तो तुमसे मिलने यहाँ चला आया।
हितेन:- चलो अच्छा है, तुमने तो मुझे गलत नहीं समझा। वरना मैं तो ये ही सोच रहा था कि तुम भी यही समझ रहे हो कि बिजनेस हड़पने के लिए मैंने ये सब किया है।
आरव:- तुम पुलिस का साथ क्यों नहीं दे रहे। मुझे पता है कि तुम्हे पता है इन सब के पीछे किसका हाथ है। पर तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे।
हितेन:- क्या होगा बोल कर! मेरी जगह कोई और यहाँ आकर बैठ जायेगा। किसी और का परिवार तबाह हो जायेगा।
आरव:- जिसने ये गलती की है उसे सजा मिलनी चाहिए। जो तुमने किया ही नहीं उसकी सज़ा कब तक झेलते रहोगे। और अगर फिर भी तुम ये चाहते हो कि उसे कोई सजा न मिले तो मेरा तुमसे वादा है, मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगा।
हितेन:- बड़ा मुश्किल होता है, तुम जैसा दोस्त कमा पाना। मैं तुम्हे सब कुछ बताने के लिए तैयार हूँ। पर तुम मुझसे वादा करो कि जब तक तुम और मैं दोनों मिलकर उस शख़्स से बात नहीं कर लेते तब तक तुम किसी से कुछ नहीं कहोगे।
आरव:- वादा रहा तुमसे!
हितेन:- तो सुनो फिर! मुझे लगता है कि ये सब ऋतु ने किया है।
आरव:- ऋतु..? मेरी सेकेट्री, तुम्हारी मंगेतर।
हितेन:- हाँ, वो ही।
आरव:- पर वो ये सब क्यों करेगी।
हितेन:- ये तो मुझे भी नहीं पता। पर तुम्हे पता है, वो पानी की बोतल जो मेरी कार में थी, जिसमें वो ड्रग मिलाया गया था। वो बोतल ऋतु ने ही मुझे दी थी उस रात, जिस रात मैं तुम्हे लेने आया था। उस बोतल से ही तुमने पानी पिया था, जिसके कारण तुम्हारी ये हालात हुई। उस दिन मैं और ऋतु डेट पर गए थे। उसे पता था कि मैं तुम्हे पिक-अप करने एअरपोर्ट जाऊंगा।
आरव:- मान भी लिया जाये कि उस बोतल में उसने ड्रग मिलाया था। पर वो मेरे साथ ये सब क्यों करना चाहेगी, मेरी और उसकी क्या दुश्मनी?
हितेन:- ये तो मुझे भी नहीं पता यार, ये सब उसने क्यों किया। पर मैं अच्छे से कह सकता हूँ, ये सब उसका ही किया हुआ है। मैं इसलिए ही किसी से कुछ नहीं कह रहा था। बस, इंतज़ार कर रहा था कि कब बाहर आऊं, और उससे बात करूँ। लेकिन बाहर आने से भी डर लगता था, सबको कैसे फेस करूँगा। सब मुझे गुनहगार समझेंगे। सब ताने मरेंगे, तू भी मुझे ही गलत समझेगा। इस लिए यहीं बैठा रहा।
आरव:- मैं जानता हूँ यार तुझे, मैं कभी तुझे गलत नहीं समझ सकता और बाहर आने की चिंता तुम मत करो। मैंने वकील को बेल लेने के लिए भेज दिया है। आता ही होगा अभी वो। फिर बाहर जाकर सबसे पहले ऋतु से ही मिलेंगे। मैं इंस्पेक्टर से बात करता हूँ कि उसके लिए वॉरंट तैयार करवाये।
हितेन:- इंस्पेक्टर से पहले क्या हम उससे मिल सकते है? उससे पूछ सकते है, उसने ये सब क्यों किया।
आरव:- तुम्हें क्या लगता है, वो हम लोगों को बड़ी आसानी से ये सब बता देगी। अगर इतना ही ईमान रहता उसमें तो, अभी तक आ कर वो अपना जुर्म कबूल कर लेती। यदि फिर भी तुझे ये लगता है कि मुझे इंस्पेक्टर से बात नहीं करनी चाहिए तो ठीक है। मैंने तुझसे वादा किया है। मैं नहीं करूँगा किसी से कोई बात।
हितेन:- तू सही कह रहा है यार..! वो नहीं बताएगी हमें। तुझे जैसा ठीक लगे वैसा कर।
हवलदार:- सर, हितेन कि बेल मंजूर कर ली गयी है। वो कुछ पेपर वर्क पूरे करके जा सकते है। अभी इन्हें हमारे साथ जाना होगा।
आरव:- ठीक है, इन्हें आप ले जाइए, और प्लीज मुझे भी इंस्पेक्टर सुशांत के पास छोड़ दीजिये।
हवलदार:- जी सर।
आरव:- मि. सुशांत, आप मेरी सेकेट्री के ख़िलाफ़ वॉरेंट निकलवाये और उन्हें कस्टडी में लीजिये। जो बोतल आपको हितेन की कार से मिली है, वो हितेन को ऋतु ने ही दी थी।
आरुषि:- पर आरव, वो ये सब क्यों करेगी। आपने उसका क्या बिगाड़ा है।
आरव:- ये तो मुझे भी नहीं पता आरुषि। ये सब तो वो ही बता पायेगी।
मि. सुशांत:- हम अभी जाकर ऋतु को कस्टडी में लेते है। और पूछताछ शुरू करते है।
आरव:- जी, जब भी आप उससे पूछताछ करे तो प्लीज हमें बुला लीजियेगा..!
【 अगले दिन】
आरुषि:- आरव, इंस्पेक्टर साहब का कॉल आया था, वो पुलिस स्टेशन बुला रहे है तीनो को।
आरव:- चलो फिर, देखते है क्या पता चलता है।
हितेन:- यार मैं नहीं देख पाउँगा उसे, इस हालत में।
आरव:- सच्चाई का तो पता लगाना पड़ेगा न।
हितेन:- हाँ, ये भी है।
"आरव, आरुषि और हितेन पुलिस स्टेशन पहुँचते है। ऋतु को पूछताछ कक्ष में बिठाया जाता है। और तीनो को एक दर्पण के इस तरफ, जहाँ वह तो ऋतु को देख और सुन सकते है। परन्तु ऋतु उन्हें देख और सुन नहीं सकती। मि. सुशांत पूछताछ करते है।"
मि. सुशांत:- ऋतु हमें पता चल गया है कि हितेन की कार में जो बोतल थी, उसमे ड्रग्स तुमने मिलाया था। और जहाँ से तुमने ये ड्रग्स लिया था, उस केमिस्ट की शॉप के CCTV फुटेज बहुत है सबूत के लिए। इसलिए तुम अब सीधे सीधे बता दो, ये सब क्यों किया? वरना मजबूरन हमे कठोर कदम उठाना पड़ेगा।
ऋतु:- ये सब मैंने आरव सर के लिए नहीं किया था।
इंस्पेक्टर:- तो फिर किसके लिए किया था?
ऋतु:- हितेन के लिए।
इंस्पेक्टर:- हितेन के लिए क्यों?
ऋतु:- हितेन और मेरी सगाई हो चुकी थी और हितेन की आरव सर की कंपनी में 30% की हिस्सेदारी थी। मैं हितेन को ड्रग्स देकर उनसे पेपर पर साइन करवाना चाहती थी। पर मेरा सारा काम आरव सर ने चौपट कर दिया। जिस रात हम डेट पर गए थे। उसी रात आरव सर वापिस आ गए थे। इसलिए हितेन मुझे घर ड्राप करके आरव सर को लेने चले गए। और मैं वो बोतल कार में ही भूल गयी।
इंस्पेक्टर:- तो फिर तुमने डॉक्टर को क्यों ख़रीदा।
ऋतु:- उस रात के बाद, मैं जब सुबह हितेन से मिली तो, वो मुझे नॉर्मल लग रहे थे। पर बोतल में पानी कम था। तो मैंने बातों ही बातों में हितेन से जाना कि ये पानी आरव सर ने पिया है। और तभी आरुषि मेम का कॉल हितेन के पास आया कि आरव सर को डॉक्टर के पास ले जाये। मैंने ही हितेन को उस डॉक्टर के पास जाने का सुझाव दिया। और डॉक्टर से फेक कॉल पर बात करके उसे खरीद लिया।
इंस्पेक्टर:- यहाँ के बाद तो तुम बच गयी थी, फिर एक्सीडेंट क्यों करवाया?
ऋतु:- वो इसलिए क्योंकि आरव सर के जाने के बाद पूरी कंपनी के मालिक हितेन हो जाते, क्योंकि आरुषि मेम वैसे ही रॉयल फॅमिली से ताल्लुक़ात रखती है तो उन्हें वैसे भई जरूरत नहीं रहती इस कंपनी की। और हितेन की पत्नी बनने के बाद मेरा भी इस पर अधिकार हो जाता। इसलिए मैंने आरव सर को ही रास्ते से हटाने का प्लान बनाया। मैंने ही एक कॉन्ट्रेक्ट किलर के द्वारा वो एक्सीडेंट करवाया। सबसे पहले तो हितेन का छोटा सा एक्सीडेंट करवाया। और जैसा की मैंने सोचा था उसी हिसाब से हितेन ने फ़ोन करके आरव को अपने पास बुलाया और फिर उनकी कार का एक्सीडेंट करवा दिया। पर उनकी किस्मत बहुत अच्छी थी कि वो बच गए।
इंस्पेक्टर:- और हितेन की बॉडी में वो ड्रग्स..?
ऋतु:- शायद उन्होंने भी बाद में ड्रग्स वाला पानी पी लिया होगा।
इंस्पेक्टर:- तुमने अपने थोड़े से लालच के कारण कितनी जिंदगियों से कितने रिश्तों से खिलवाड़ किया, यहाँ तक कि खुद का रिश्ता भी बिगाड़ बैठी।
ऋतु:- आई ऍम सॉरी सर, मुझे पछतावा है इस बात का.. और मैं अपना जुर्म कबूल करने के लिए आ भी रही थी यहाँ। लेकिन अपनी मम्मी के कारण हिम्मत नहीं जुटा पायी। इस दुनिया में उनका मेरे अलावा कोई नहीं है, इसलिए। ( रोते हुए..!)
इंस्पेक्टर:- अब ये सब तो कोर्ट में ही बताना तुम। फ़िलहाल तो हितेन और आरव सब सुन रहे थे तुम्हारा बयान..! मैं भेजता हूँ उन्हें तुम्हारे पास।
【आरव और हितेन पूछताछ कक्ष में】
ऋतु:- मुझे माफ़ कर देना आरव सर, मैं लालच में अंधी हो गयी थी। ( रोते हुए)
आरव:- माफ़ी मांगनी है तो हितेन से मांगों तुम, मुझसे ज्यादा तुम उसकी गुनहगार हो। और सफलता षड्यंत्रों और प्रपंचो से नहीं, मेहनत और संबंधो से मिलती है।
ऋतु:- ऍम सो सॉरी हितेन..! ( हितेन का हाथ पकड़ कर रोते हुए..!)
हितेन:- आई हेट यू ऋतु, तुम्हें बहुत बड़ा धोखा दिया है मुझे। और चिंता मत करना इस दुनिया में तुम्हारी मॉम का तुम्हारे अलावा भी कोई है। मैं उनका ध्यान रख लूंगा।
【 हितेन और आरव पूछताछ रूम से बाहर आकर इंस्पेक्टर से मिलते हुए।】
आरव:- मि. सुशांत इस केस को एक्सीडेंट दिखा कर यहीं बंद कर दीजिये। मैं ये केस वापिस लेता हूँ।
मि. सुशांत:- पर ये कैसे संभव है सर, अगर ये केस यहीं बन्द हुआ तो मीडिया ये खबर छपेगा कि आपने हितेन को बचाने के लिए केस वापिस ले लिया। मीडिया को पता है कि ड्रग्स हितेन की कार में ही मिले थे।
आरव:- लेकिन उन्हें ये नहीं पता कि ये हितेन ने रखे थे या किसी और ने, आप रिपोर्ट में लिखना की वो ड्रग्स मेरी मेडिसन थी, जिसके ओवरडोज़ की वजह से ये एक्सीडेंट हुआ। ऋतु को मीडिया के सामने आये बिना ही उससे कॉन्ट्रेक्ट किलर की जानकारी ले कर छोड़ देना। कॉन्ट्रेक्ट किलर को पकड़ने की कोशिश करना। बाकि मीडिया को मैं सम्भाल लूंगा।
मि. सुशांत:- पर आप ऋतु को क्यों छोड़ना चाहते है?
आरव:- उसे अपनी गलती का पछतावा हो गया। अगर इस केस में उसे सजा हुई तो वो हमेशा के लिए जुर्म का रास्ता अपना लेगी। क्योंकि उसके पीछे रोने वाला कोई नहीं रहेगा। मैं अपने कारण किसी एक और अपराधी को जन्म नहीं दे सकता। और वैसे भी एक मौका तो सबको मिलना चाहिए।
हितेन:- ये सब तू मेरे लिए कर रहा है न आरव..?
आरव:- नहीं रे, ये मैं ऋतु के लिए ही कर रहा हूँ। और तुझे भी कह रहा हूँ। अब वो बदल चुकी है, इसलिए इस समय तू उसका साथ दे उसे और बदलने में। और वैसे भी मैं तो बैठा हूँ अभी व्हीलचेयर पर, पता नहीं कब ठीक होऊं, तब तक कंपनी तुझे और उसे ही संभालनी है। आरुषि को इतना सब कहा पता है इस बारे में। क्यों आरुषि?
आरुषि:- आई ऍम प्राउड ऑफ़ यू आरव।
भाग 19
आरव:- और बताओ कैसा रहा आज का दिन ऑफिस में।
आरुषि:- बड़ा बिजी। कैसे कर लेते थे आप रोज इतना काम? और घर पर ऐसे आते थे कि लगता था कि दिन भर आराम फरमा कर आये हो।
आरव:- ऐसा कुछ नहीं है। जिसका जो काम होता है, उसे उसमें ही मजा आता है। तुम भी दिन भर ड्राफ्टर, स्केल से ड्राइंग बनती रहती थी तो मुझे भी ऐसा ही लगता था, कैसे कर लेती हो ये सब? यहाँ ढंग से एक सीधी लाइन नहीं खींची जाती, तुम बड़े-बड़े ऑफिस डिज़ाइन करती हो।
आरुषि:- दिन भर मीटिंग्स में माथा पचाने से तो अच्छा ही है वो काम। जल्दी-जल्दी ठीक हो जाओ, और संभालो अपने काम को और मुझे। अब मुझसे नहीं होता ये ऑफिस वगैरह। अब मुझे शादी करके अपना घर बसाना है। पति के हाथ की जली रोटियां खानी है। सब्जी में नमक तेज होने पर उन्हें डाँट लगानी है। और देखो ठण्ड की भी शुरुआत होने लगी, उनके साथ राजीव चौक पार्क में बैठ कर आइसक्रीम भी तो खानी है।
आरव:- हाँ, और पिछली कुछ डील रह गयी थी। उसका भी तो हिसाब उठाना है। ( हँसते हुए..!)
आरुषि:- कैसे खेल खेलती है न जिंदगी भी। पहले कितना स्ट्रगल करते हुए दिन बिताये फिर जब जिंदगी जीने की बारी आई तो ये दुर्घटना घट गयी।
आरव:- अरे यार, वो दिन हँसते खेलते हुए बिताये थे अपन ने, पता भी नहीं चला कब बीते। अब ये पल है, इन्हें भी ऐसे ही बिताओ। जल्दी ही खत्म हो जायेंगे ये भी।
आरुषि:- आई हॉप सो। एनीवे.. ये बताओ क्या खाओगे आप, मॉम डेड तो आज जयपुर गए है। अपन दोनों ही है अब, जो आपको अच्छा लगे वो बना देती हूँ।
आरव:- बनाने की कोई जरूरत नहीं है, तू भी दिन भर से थकी हारी आई है। आर्डर कर ले कुछ भी अच्छा सा। वो ही खा लेंगे।
आरुषि:- अच्छा जी, मेरी थकान के चक्कर में आप अपना उल्लू सीधा करने में लगे है। कुछ नहीं मिलेगा बाहर का खाने को।
आरव:- यार प्लीज न, रोज खिचड़ी-दलिया से थक गया यार मैं। अब मम्मी तो मानती नहीं। तू मान जा न प्लीज, थोड़ा बहुत ही खाऊंगा, पक्का।
आरुषि:- नहीं आरव, डॉ ने मना किया है। कुछ भी स्पाइसी खाने को मत देना। तो फिर मैं कैसे दे सकती हूँ।
आरव:- यार, आज आज ही तो मांग रहा हूँ। एक दिन से क्या होगा भला।
आरुषि:- ओके, करती हूँ ऑर्डर।
आरव:- हम्म..!
【 थोड़ी देर बाद, डोरबेल बजती हुई।】
डिलिवरी बॉय:- मेम आपका ऑर्डर..!
आरुषि:- जी, थैंक यू भैया..!
डिलिवरी बॉय:- वेलकम मेम..!
【 थोड़ी देर बाद】
आरुषि:- आरव आ जाइए, खाना लग चुका है।
आरव:- हाँ, आया।
आरुषि:- हाँ, सरप्राइज है आपके लिए।
आरव:- ये कैसा सरप्राइज हुआ यार, क्या मंगाया है।
आरुषि:- ये, इसे एवोकाडो सैलेड और इसे बेबी कॉर्न सुप कहते है।
आरव:- अच्छा हुआ आपने बता दिया, वरना मुझे तो पता ही नहीं था। वैसे मेरे लिए तो ये सही, पर अपने लिए तो कुछ अच्छा ऑर्डर कर देती।
आरुषि:- आज तक कभी हुआ है, जब अपन दोनों घर में एक साथ हो तो अलग-अलग प्लेट में अलग-अलग खाना खाया हो।
आरव:- आज तक तो बहुत कुछ नहीं हुआ। तुम कभी मेरे ऑफिस नहीं गयी, पर अब जाती हो। मैं कभी व्हील-चेयर पर नहीं बैठा, पर अभी बैठा हूँ। और भी बहुत कुछ।
आरुषि:- तो आप चाहते है कि इन सब बदलाव के कारण मैं आपके साथ खाना खाना छोड़ दूँ।
आरव:- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। मैं तो बस इतना कह रहा था कि तुम अपने लिए कुछ अच्छा मंगा लेती। मरीज के साथ तुम क्यों मरीज बन रही हो।
आरुषि:- अब जब आरव के साथ मिसेज आरव बन सकती हूँ तो मरीज आरव के साथ मरीज आरुषि क्यों नहीं बन सकती।
आरव:- अच्छा बाबा बनो, तुमसे जितना मेरे बस की बात तो नहीं है।
आरुषि:- फिर कोशिश ही क्यों करते हो।
आरव:- वैसे डॉक्टर ने कहा है कि परसो तक ये प्लास्टर वगैरह सब खुल जायेंगे, उसके बाद दिन में थोड़े समय के लिए मैं भी ऑफिस जा सकता हूँ।
आरुषि:- मैं भी से क्या मतलब है आपका। सिर्फ आप ही जाओगे। मेरे पल्ले नहीं पड़ता कुछ आपका काम।
आरव:- थोड़े दिन तो चलना पड़ेगा तुम्हे साथ। पुराना काम समझाने के लिए। फिर चाहे मत जाना।
आरुषि:- ठीक है, पापा का कॉल भी आया था। कल आपके घर जा रहे है, शादी की डेट वगैरह फिक्स करने।
आरव:- इतनी जल्दी क्या है यार, अभी तो मैं पूरा ठीक भी नहीं हुआ।
आरुषि:- आपको नहीं होगी जल्दी, पर मुझे है। मुझे जल्द से जल्द शादी करनी है। और रही बात ठीक होने की, तो जितने दिन शादी की तैयारी चलेंगे उतने समय तक आप ठीक हो जायेंगे।
आरव:- वो तो सब ठीक है, पर कुछ ज्यादा ही जल्दी नहीं हो रहा सब।
आरुषि:- कुछ ज्यादा जल्दी नहीं है। थोड़े दिन आपसे दूर क्या हुई, अपनी हड्डियां तुड़वा कर बैठ गए। आगे पता नहीं और क्या कर लोगे।
आरव:- अच्छा, मुझे तो जैसे बड़ा मजा आया हड्डियां तुड़वा कर। मतलब कुछ भी बोल रही हो। नियति में लिखा था हड्डी टूटना, तो टूट गयी। इसमें तुम्हारे दूर जाने या न जाने से क्या फर्क पड़ता है।
आरुषि:- पड़ता है, क्योंकि आप बच्चे हो। और आपको अपना ध्यान रखना नहीं आता।
आरव:- ओह, मतलब मिस आरुषि मेरी बीबी बन कर नहीं, मेरी केअर टेकर बन कर आएँगी।
आरुषि:- जैसा आप समझो।
आरव:- अच्छा, एक बात तो बताओ आरुषि। इतने दिन हम लिव इन में रहे, कभी तुम्हारी मम्मी ने या किसी और ने नहीं पूछा कि हमारे बीच वो सब हुआ कि नहीं, जो पति-पत्नी के बीच होता है।
आरुषि:- डायरेक्टली तो नहीं हाँ, एक बार इंडिरेक्टली पूछा था।
आरव:- क्या पूछा?
आरुषि:- पहले तो मुझे समझाया कि कैसे लड़की को रहना चाहिए और फलां-फलां। बाद में जब बेस बन गया तो पूछा, तुमने और आरव जी ने तो ये सब नहीं किया ना। अब आप ही बताओ आरव, अगर कोई ऐसे पूछेगा तो मैं उत्तर तो ना में ही दूंगी न।
आरव:- ना में ही दूंगी मतलब। उत्तर ना ही है। मैंने कभी तुम्हारे साथ लिमिट क्रॉस नहीं की।
आरुषि:- अच्छा, ये तो आपको पता है और मुझे। दूसरों को थोड़ी पता है। दूसरों को तो वो ही पता होगा न, जो मैं बताउंगी। ( हँसते हुए..!)
आरव:- हाँ तो, दूसरों को सच ही बताओगी ना तुम। और सच सच बताना, तुमने मम्मी से क्या कहा। पता नहीं, मम्मी मेरे बारे में क्या सोचेंगी।
आरुषि:- अच्छा, लिव इन में रहने से पहले नहीं सोचा ये सब।
आरव:- मुझे क्या पता था मेरी होने वाली बीबी मेरी होने वाली सासु मां को झूठ-झूठ बताएगी।
आरुषि:- हाँ, तो अब पता चल गया ना। वैसे मॉम ने कहा था कि घर जाकर आरव जी से बात कराना। उनका हाल-चाल पूछना है।
आरव:- मुझे नहीं करनी बात। एक तो इतना रायता फैला दिया तुमने। ऊपर से उनसे बात करने के लिए कह रही हो। कैसे करूँ उनसे बात ?
आरुषि:- अरे कुछ नहीं बताया मैंने उन्हें, और न ही उन्होंने मुझसे कभी कुछ पूछा। हाँ, बस जब रिलेशन में थे तो मुझे ये सलाह देती थी कि अपनी लिमिट्स कभी क्रॉस मत करना। और मेरी किस्मत भी इतनी अच्छी है कि मुझे पतिदेव भी आप जैसे मिले। जिन्होंने हमेशा मुझे इज्जत दी।
आरव:- क्या यार, डरा दिया फालतू में ही। और मैंने इज्जत दी नहीं है। मुझे तुमसे मिली है, जिसे मैंने वापिस लौटाई है।
आरुषि:- लगता है राईटर साहब के अंदर का राईटर वापिस धीरे-धीरे बाहर आ रहा है।
आरव:- हाँ यार, काम वगैरह में इतना उलझे की लिखना वगैरह सब भूल गए। अब जब कई दिन से घर में बैठा हूँ तो पुरानी किताबों को उठा कर पढ़ लेता हूँ।
आरुषि:- अच्छा ही है, खाली दिमाग वैसे भी शैतान का घर होता है।
आरव:- हाँ, अगर किताबें नहीं पढ़ता तो आज राईटर साहब के अंदर से राइटर नहीं शैतान निकलता। फिर बेचारी अकेली जान आरुषि,ऑफिस संभालती, आरव को संभालती या शैतान को संभालती।
आरुषि:- आप चिंता मत करो, अच्छे-अच्छे शैतानों को ठीक किया है मैंने।
आरव:- कैसे, कोई जादू-टोना का भी कोर्स किया है क्या तुमने।
आरुषि:- हाँ, स्कूलिंग के टाइम कराटे सीखे है मैंने।
आरव:- अरे मेरी माँ, मुझ पर कभी ट्राय मत कर लेना। वरना और टूट जाऊंगा।
आरुषि:- अभी बीबी बनने तो दो, फिर बताउंगी आपको।
आरव:- अगर ऐसे ही डराया ना तूने तो, मुझे नहीं करनी फिर कोई शादी-वादी, लिव-इन ही सही है।
आरुषि:- अरे नहीं, मैं तो मजाक कर रही थी।
आरव:- हाँ, अब आया न ऊंट पहाड़ के नीचे।
आरुषि:- सिर्फ शादी के पहले तक।
आरव:- और क्या बोल रहे थे पापा..?
आरुषि:- बस ये ही कि 2-3 महीने के अंदर डेट निकलवा लेंगे..!
आरव:- इतने कम टाइम में इतना सब मैनेज कैसे होगा।
आरुषि:- वो बड़ो का काम है, वो संभाल लेंगे। आप तो बस जल्दी से ठीक हो जाओ।
आरव:- हाँ, जिस हिसाब से तुम मुझे ये सब खिला रही हो, उस हिसाब से तो जल्दी ही ठीक होना पड़ेगा।
आरुषि:- शादी में आपकी एक्स को भी बुलाएंगे।
आरव:- एक शर्त पर।
आरुषि:- क्या ?
आरव:- स्कूल टाइम के तुम्हारे आशिक़ भी सब आएंगे।
आरुषि:- अब मुझे क्या पता होगा कि स्कूल टाइम के में मेरे कौन-कौन आशिक़ थे। काश पता होता तो उन्हें बुला पाती।
आरव:- स्कूल में तुम्हे किसी ने प्रोपोज़ नहीं किया।
आरुषि:- नहीं।
आरव:- हाँ.. कराटे क्लास जो लेती थी। मुझे पता होता तो मैं भी नहीं करता।
आरुषि:- वैसे आपकी जानकारी के लिए बता दूँ, प्रोपोज़ आपने नहीं, मैंने आपको किया था।
आरव:- ये ही तो कभी विश्वास नहीं होता कि ऐसा क्या देख लिया था तुमने मुझमे कि सीधे प्रोपोज़ कर बैठी।
आरुषि:- कुछ देखा-वेखा नहीं था। वो दो चार दिन साथ में रहे थे तो मैं समझ गयी थी कि आप अपना ध्यान नहीं रख पाओगे अकेले तो, इसीलिए ये सोच कर प्रोपोज़ कर दिया कि मैं ध्यान रख लुंगी।
आरव:- अच्छा जी..!
आरुषि:- हाँ जी..!
आरव:- चल रात बहुत हो गयी है। सो जा.. दिन भर की थकी है..!
आरुषि:- हाँ, आज बहुत दिन बाद आपके कंधों पर सोने को मिलेगा। इतने दिन तो मम्मी का डर लगता था।
आरव:- अच्छा, आरुषि जी अपनी सासु मां से डरती है। बताना पड़ेगा मम्मी को।
आरुषि:- चलो बहुत हो गया मजाक। सोने चलो।
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Aakhir ritu pakdi hee gayi.....and hetain proved innocent......
Aarav's decision to forgive them......is very well......
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Aarav and aarushi's conversation.......
Very good.......speechless.....
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