मैं तब आर.ई.सी. में पहले वर्ष का स्टूडेन्ट था. अठारह साल उमर थी और जवानी का खूब जोश था. मैं बड़ा शर्मीला था और लड़कियों से ज्यादा मेलजोल नहीं था. पर लंड ऐसा सनसना कर खड़ा होता था कि रोज रात को चादर ओढ कर अपने कमरे में रह रहे मित्र से छुपा कर मुट्ठ मारता था नहीं तो नींद नहीं आती थी.
हमारी गणित की टीचर डॉक्टर आर्या कपूर नाम की एक महिला थी. उम्र करीब पचास की होगी. सब उनसे डरकर रहते थे और खूसट बुढ़िया कहते थे. मैं पहली पंक्ति में बैठा करता था इसलिये मुझे रोज उन्हें पास से देखने का मौका मिलता था.
मैडम गोरी और मझोले शरीर की थी. हाँ, कमर के नीचे का भाग भारी भरकम था जैसा इस उम्र के साथ औरतों का हो जाता है. चेहरा कोई खास सुंदर नहीं था और आँखों और मुंह के चारों ओर उम्र की कुछ लकीरें पड़ गई थी. पर मैडम बड़ी होशियार थी और उनकी बुद्धि साफ़ उनके चेहरे पर झलकती थी. वे हमेशा साड़ी और स्लीवलेस ब्लाउज में रहती थी, जिससे उनकी गोरी गोरी बाँहें खुली रहती थी. उन चिकनी मुलायम बाँहों को देख देख कर मैं उनके बाकी शरीर के बारे में अटकलें लगाने लगा था और मेरा उनकी तरफ़ आकर्षित होना स्वाभाविक था.
धीरे धीरे मैं उनकी हर बात को बड़े ध्यान से देखने लगा. खुला थोड़ा लटका हुआ पर गोरा चिकना पेट, चलते समय दिखने वाले उनके गोरे नाजुक पाँव, जो स्मार्ट ऊंची एडी के काले सैंडलों में और आकर्षक दिखते थे, ऐसी कई बातें मैं नजर गड़ा कर देखा करता था. मैडम का पल्लू अक्सर गिर जाता तो उनके बड़े गले के ब्लाउज में से उनके नरम नरम लटके हुए स्तनों का ऊपरी हिस्सा साफ़ दिखता. ब्लाउज़ की पीठ में से अंदर ब्रेसियर की पट्टी भी साफ़ साफ़ दिखती थी. उनके पैर और सेंडल मैं बार बार देखा करता था क्यों की बचपन से औरतों के सुंदर पैर और चप्पलें मुझे बहुत अच्छा लगती थी.
धीरे धीरे मेरा लंड उन्हें देखकर ही खड़ा हो जाता. मैं उनकी एक भी क्लास मिस नहीं करता था और रात को आकर उनके नाम से जोर जोर से हस्तमैथुन करता. वैसे वे मेरी माँ से भी काफ़ी बड़ी थी, बल्कि करीब करीब नानी की उम्र की ही होंगी पर मेरे लिये वे संसार की सबसे सुंदर औरत बन गई थी.
उन्हों ने भी मेरा उनकी ओर इस तरह से देखना भांप लिया था और शायद मैं भी उन्हें पसंद आ गया था. इसलिये एक दिन क्लास के बाद उन्हों ने खुद ही मुझे बुलाकर कहा कि अगर मेरी कोई डिफ़िकल्टी हो तो मैं स्टाफ़ रूम में या घर आकर उनसे पूछ सकता हूँ. काफ़ी दिन मैं साहस नहीं जुटा पाया, एक दो बार कहने के बाद मैडम ने भी कहना छोड़ दिया, सिर्फ़ अपनी बड़ी बड़ी आँखों से मुझे कभी कभी मूक आमंत्रण दे देती थी. आखिर एक दिन हिम्मत करके मैं रविवार के दिन उनके घर पहुँच गया. बेल दबाई और धड़कते दिल से इंतज़ार करने लगा.
कुछ देर बाद मैडम ने खुद दरवाजा खोला. वे घर में सिर्फ़ एक ढीला ढाला गाउन पहने हुए थी. गाउन में से उनके लटके स्तनों का उभार दिख रहा था. पैरों में नाजुक सी रबर की हवाई चप्पल थी. मुझे देख उनकी आँखें चमक उठी और प्यार से उन्हों ने मुझे घर में बुलाकर दरवाजा बंद कर लिया और सिटकनी लगा दी. उनके साथ घर में अकेले होने के एहसास से ही मेरा लंड खड़ा होने लगा.
"आओ वरुण, आखिर अपनी मैडम की जरूरत तुम्हें पड़ ही गयी. अच्छा हुआ तुम आ गये, मैं भी बोर हो रही थी." मुझे पता था कि वे तलाकशुदा थी और अकेली रहती थी. आर्या मैडम मुझे सीधे अपने बेडरूम में ले गई. "चलो बेडरूम में ही बैठते हैं क्यों की मेरी सारी किताबें और स्टडी टेबल वहीं है." उनके पीछे चलते हुए मेरी नजर फ़िर उनके पैरों पर गई. चलते समय उनकी चप्पल सटाक सटाक से उनके गुलाबी तलवों से टकरा रही थी. सिर्फ़ उस आवाज से और उन चप्पलों को देखकर मैं और उत्तेजित होना शुरू हो गया.
बात यह है कि मुझे चप्पलों की फेटीश है. खास कर रबर की हवाई चप्पलों की. और जब किसी सुंदर पैरों वाली औरत ने पहनी हों, और उन्हें चटका कर वह चलती हो तो बात ही क्या है! खैर मैं उनके पैरों की ओर घूरता हुआ उनके पीछे हो लिया. मुझे वहाँ रखे एक सोफ़े पर बिठा कर खुद सामने कुर्सी पर बैठकर उन्हों ने मुझसे पूछा कि क्या डिफ़िकल्टी है. मैं गणित की किताब खोलकर बैठ गया और उनसे प्रश्न समझने लगा. मुझे सच में कुछ प्रश्न नहीं आते थे जो उन्हों ने प्यार से समझाये.
घंटे भर बाद मैं जब चलने को उठा तो मैडम बोली. "तुम बैठो तो, काम हो गया तो भाग लिये? जरा बैठ कर अपनी मैडम से गप्पें ही मारो. मैं शरबत बना लाती हूँ." मैं बैठा बैठा उनकी किताबें पलटने लगा. सहसा मुझे अखबारो के नीचे दबी कुछ मेगेज़ीन दिखी. खींच कर देखा तो रंगीन नग्न चित्रों में काम क्रीडा दिखाने वाली अमेरिकन मेगेज़ीन थी. उनमें ऐसे ऐसे चित्र थे कि मेरा लंड बुरी तरह से खड़ा हो गया.
मेरा दिल जोर जोर से धडकने लगा कि अगर आर्या मैडम यह किताबें देखती हैं तो और भी काफ़ी कुछ करती होंगी मैं मजे लेकर अपने खड़े लंड को पैन्ट के ऊपर से ही सहलाने लगा. किताबों के चित्र देखने के चक्कर में मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैडम सामने आकर खड़ी हो गई.
"पसंद आये पिक्चर, वरुण?" मैं चौंक कर खड़ा हो गया और फ़िर शर्म से मेरा चेहरा लाल हो गया क्यों की मेरा खड़ा लंड पैन्ट में तम्बू बना रहा था. मैडम ने हंसकर मुझे वापिस सोफ़े पर ढकेल दिया और खुद भी मेरे पास बैठ गई. मेरे लंड को पैन्ट के ऊपर से ही अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली. "इन सुंदर लड़कियों को देखकर तुम्हारे जैसे कमसिन लड़के तो मस्त होंगे ही, मेरे जैसी बड़ी अधेड उम्र की महिलाओं को देखकर थोड़े ही लड़कों को कुछ होता है." मैंने उनकी तरफ़ देखा तो उनके मुस्कराते चेहरे पर एक प्रश्न था.
मैंने किताबें बंद कर दी और साहस कर के कहा. "मैडम, मुझे तो आप बहुत प्यारी लगती हैं, ऐसी हालत तो मेरी आपकी क्लास में रोज रहती है." मैडम कुछ देर मेरी ओर देखती रहीं, फ़िर अचानक झुक कर उन्हों ने मुझे चूम लिया. फ़िर तो मानों उनके सब्र का बांध टूट गया. मुझे बाहों में भरकर वे बेतहाशी चूमने लगी.
वे बड़े मीठे चुंबन थे और मैडम की साँसे भी बड़ी खुशबूदार थी. पहले तो मैं चुपचाप उनके चुंबनों का मजा लेता रहा, फ़िर मैंने भी उन्हें बाहों में जकड लिया और उनके मुलायम होंठ चूसने लगा. अब उन्हों ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसेड दी और मेरी जीभ और तालू को चाटने लगी. उनकी गीली गरम जीभ मुझे बहुत मीठी लगी और मैंने उसे अपने होंठों में दबाकर खूब चूसा.
पाँच मिनट बाद मैडम ने चूमा चाटी बंद की और कहा. "बड़ा प्यारा छोकरा है तू वरुण, अब जरा देखें कि तेरा लंड कैसा है." और मेरे कुछ कहने के पहले ही उन्हों ने ज़िप खोल कर मेरा तन्नाया हुआ लंड बाहर निकाल लिया. अठारह साल के एक लड़के का होता है वैसे मेरा लंड लोहे जैसा कडा था और खूब तन्ना कर उछल रहा था. सुपाड़ा भी फ़ूल कर लाल लाल टमाटर की तरह हो गया था.
मैडम ने मेरे लंड को ऐसे देखा जैसे कोई भूखा मिठाई की ओर देखता है, फ़िर बिना कुछ कहे झुक कर उसे मुंह में ले लिया और चूसने लगी. कुछ देर सिर्फ़ सुपाड़ा चूसने के बाद अपना मुंह और खोल कर मेरा पूरा लंड उन्हों ने निगल लिया और गन्ने की तरह चूसने लगी.
मैं एक अवर्णनीय सुख में डूब गया और मेरे मुंह से सिसकियाँ निकलने लगी. अपने हाथ मैंने आर्या मैडम के घने बालों में चलाने शुरू कर दिये. उनके बाल बड़े प्यारे और रेशम जैसे मुलायम थे. वे अब मेरे लंड को इस तरह से चूस रही थी जैसे सालों की भूखी हों. उनकी जीभ मेरे सुपाड़े को ऐसे रगड रही थी जैसे कि कोई सेन्ड-पेपर से लकडी रगडता है. मैं इतना आनंद सह न सका और इस कदर झड़ा कि मेरे मुंह से एक हल्की चीख निकल गई. मेरा लंड उछल उछल कर अपना वीर्य उनके चूसते मुंह में उगलने लगा और वे उसे स्वाद ले लेकर निगलती रहीं. आखिरी बूंद समाप्त होने तक मेरे लंड को उन्हों ने नहीं छोड़ा.
वे मुस्कराते हुए उठ कर बैठ गई और मैं लस्त होकर उनकी गोद में सिर रखकर लेट गया. प्यार से मेरे सिर को सहलाते हुए वे बोली. "एकदम गाढ़ा वीर्य है तेरा, कमसिन जवानी की असली निशानी." अपनी जांघें वे अब धीरे धीरे आपस में रगड रही थी. एक बड़ी मतवाली खुशबू उनकी जांघों में से आ रही थी. मैंने अपना चेहरा उनकी गोद में और दबा दिया और उस खुशबू का मजा लेने लगा.
कुछ देर बाद उन्हों ने मुझे उठाया. तीव्र कामवासना उनके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी. "चलो वरुण, पलंग पर आराम से लेटते हैं." कहकर वे मुझे हाथ पकड़कर बिस्तर पर ले गई. लेटकर मुझे भी खींच कर उन्हों ने अपने ऊपर लिटा लिया और चूमने लगी.
उनके मुंह से अभी भी मेरे वीर्य की गंध आ रही थी पर उनके खुद के मुंह की मीठी साँसे भी उनमें मिली हुई थी. आखिर जब उन्हों ने अपना मुंह खोल कर मुझे न्योता सा दिया तो मैंने झट से अपनी जीभ उनके मुंह में डाल दी और उनके तालू और गले को जीभ से टटोलने लगा. मैडम के मुखरस का स्वाद मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे मीठी चासनी हो. मैडम ने मुंह बंद कर के मेरी जीभ चूसना शुरू कर दी और सिर्फ़ पाँच मिनट के अंदर मेरा लंड फ़िर से खड़ा होने लगा.