Office and Stressful life
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Mast update diya Baba Ji. Lage raho,अपडेट ६
कुछ देर में हम बाजार में पहुंच गए, शनिवार का दिन था इसलिए बाजार में बहुत भीड़ हो रही थी।
"लल्ला यहां तो पैर रखने की भी जगह नहीं है, धूप में कहां तक मेरे पीछे–पीछे घूमता फिरेगा तू"
"तो फिर मैं भीमा भईया की दुकान पर चला जाता हूं"
"ठीक है तो मैं खरीदारी करके तुझे दुकान पर ही मिलती हूं"
फिर ताईजी बाजार में अंदर चली गई और मैं भीमा भईया की दुकान पर चला गया।
भीमा भईया की दुकान लगभग 100 गज जितनी बड़ी थी और नीचे एक अंडरग्राउंड गोदाम भी था, भीमा भईया मुझे कहीं नजर नहीं आ रहे थे, दुकान में शीला भाभी थी जो लेडीज सेक्शन में काउंटर पर बैठी थी और एक अंजान औरत भी थी जो वहां सफाई कर रही थी।
"अरे बलराम तुम यहां कैसे?" शीला भाभी मुझे देखते ही बोली
"ताईजी के साथ पूजा के लिए सामान लेने आया था लेकिन बाजार में भीड़ बहुत थी और मैं कहां तक उनके पीछे–पीछे घूमता इसलिए ताईजी ने मुझे यहां भेज दिया"
फिर शीला भाभी मेरे लिए पानी लेकर आई।
"कल तो आपकी एनिवर्सरी है ना भाभी" मुस्कुराते हुए बोला
"हां तो" कहकर शर्मा गई
"तो कल भईया के साथ कहां घूमने जा रही हो"
"वो तो तुम्हारे भईया ही जानें उन्हें काम से फुर्सत मिलेगी तो ही मुझे कहीं घुमाएंगे ना"
"आप बताओ आपको कहां घूमने जाना है"
"अरे देवर जी तुम्हारे भईया सिनेमा घर में एक ठो फिल्म ही देखा देते तो बड़ी मेहरबानी होती, घूमना फिरना तो बहुत दूर की बात है"
"तो आपको सिनेमा घर फिल्म देखना है, भीमा भईया कहां हैं?"
"माल लेने शहर गए हैं आते होंगे कुछ देर में"
"भाभी वो औरत कौन है जो वहां सफाई कर रही है"
"अरे वो तो कामिनी है, यहां दुकान में ही काम करती है कामिनी को तेरी ताईजी ने नौकरी पर रखा है, प्रधान जी की हवेली के चौकीदार की बहन है"
मैने सोच में पड़ गया कि प्रधान जी के हवेली का चौकीदार तो हरिया है इसका मतलब कि ये हरिया की बहन है।
इधर दुकान में ग्राहक आ गए इसलिए शीला भाभी को जाना पड़ा, तभी मेरी नजर कामिनी पर चली गई, कामिनी देखने में तो अच्छी नहीं थी थोड़ी काली और मोटी थी उसने गुलाबी रंग की सलवार कमीज पहनी हुई थी, वह शीला भाभी से उम्र में थोड़ी बड़ी लग रही थी लेकिन एक बात थी कि उसके स्तनों और चूतड़ों का आकार बहुत बड़ा और मोटा था, कामिनी ने मुझे घूरते हुए देख लिया और एक पल के लिए हम दोनों की आंखे एक दूसरे से टकरा गईं, मुझे कामिनी का मुखड़ा बहुत जाना पहचाना सा लग रहा था पता नहीं ऐसा लग रहा था जैसे मैं कामिनी को जानता हूं।
कामिनी मेरे पास चलते हुए आई और मुस्कुराते हुए बोली "ऐसे क्या देख रहे हो मुन्ना"
मुन्ना शब्द सुनकर मुझे कुछ–कुछ याद आने लगा।
"कम्मो दीदी"
"तो आखिर मुझे पहचान ही गया मेरा मुन्ना राजा"
"कम्मो दीदी आप कितनी बदल गई हो"
"मुन्ना तू भी तो कितना बड़ा हो गया है"
मुझे तो जैसे मेरे बचपन के दृश्य याद आने लगे कि ताईजी के घर कैसे कम्मो दीदी मुझे नंगा करके जबरदस्ती नहलाती थी, मेरी मालिश करने के बहाने मेरे लन्ड के साथ खेलती थी और मुझे अपनी चूचियां और गांड दबाने को कहती थी,
"कम्मो दीदी मुझे लगा था कि आपकी शादी हो गई है और आप गांव से जा चुकी हो।"
"हां मुन्ना, पिछले साल ही मेरी शादी हुई थी लेकिन मेरे पति ने मुझे छोड़ दिया और फिर मैं अपने मायके आ गई"
"मतलब कि आपका तलाक हो गया है"
"नहीं मुन्ना, तलाक तो अभी नहीं हुआ है लेकिन"
"लेकिन क्या?"
"शाम को तेरी ताईजी के गन्ने के खेत में मिलूंगी, यहां कोई सुन लिया तो गजब हो जाएगा" कहकर कम्मो दीदी दुकान के अंदर चली गई
ताईजी अभी तक नहीं आई थी इसलिए मैंने सोचा अपने भईया भाभी के लिए सिनेमा घर से कोई फिल्म की टिकट खरीद लेता हूं, मैं बाजार के ही सिनेमा घर में चला गया और कल रात की एक फिल्म की दो टिकटें खरीद ली, फिल्म का नाम था "पेटीकोट में धमाका" भोजपुरी बी–ग्रेड मूवी थी,,,,
कुछ देर बाद मैं दुकान पर आ गया तो देखा कि कम्मो दीदी गोदाम में माल रख रही थी और शीला भाभी लेडीज़ को श्रृंगार के सामान दे रही थीं, इधर भीमा भईया दुकान में आ चुके थे और किसी औरत को तरह–तरह की ब्रा दिखाने में बिजी थे वह औरत बुर्खा पहनी हुई थी, भीमा भईया उस औरत से भौजी–भौजी कहकर बात कर रहे थे तो मैं समझ गया कि यह औरत कोई और नहीं बल्कि रुबीना भाभीजान हैं।
"तो बताइए भौजी कौन–सा वाला आपको अच्छा लग रहा है"
"एक तो ये गुलाबी वाला रख दीजिए और कौन–सा लूं कुछ समझ नहीं आ रहा भाईसाहब"
"भौजी ये नारंगी वाला बहुत जचेंगा"
भीमा भईया की इस बात पर रुबीना भाभीजान शर्मा गई "ऐसी बात है तो ये भी रख दीजिए हिहिही"
भीमा भईया पॉलीथीन में देते हुए "भौजी ये लीजिए"
रुबीना भाभीजान पॉलीथीन खोलकर चेक करती हुई "लेकिन ये तो 32 के हैं मैंने तो 34 के मांगे थे"
"मुझे पता है लेकिन एक साइज छोटा ही पहना कीजिए भौजी, मैं खुद शीला को एक साइज छोटा पहनाता हूं ये कसे हुए बहुत मस्त लगते हैं और लटकते भी नही हैं"
"ये लीजिए रुपए भाईसाहब आपको तो बिलकुल भी शर्म हया नही हैं अभी कोई सुनेगा तो क्या कहेगा" कहकर रुबीना भाभीजान मुस्कुराती हुई दुकान से बाहर निकल गई।
तभी भीमा भईया की नजर मेरे ऊपर पड़ती है और मुझे देखकर वह थोड़ा डर जाते हैं।
"अरे बलराम मेरे भाई तू यहां क्या कर रहा है?"
"ताईजी के साथ बाजार आया हुआ था। ये छोड़ो, मुझे आप ये बताओ कि भाभीजान के साथ क्या बातें हो रही थी"
भीमा भईया के माथे पर पसीना आने लगा "कु कु कुछ नहीं"
मैंने भीमा भईया का डायलॉग दोहराया "कसे हुए बहुत मस्त लगते हैं और लटकते भी नहीं हैं"
"क्या?" भीमा भईया की गांड में जैसे कोई विस्फोट हो गया हो
"अभी भाभी से कहता हूं" और मैं शीला भाभी के पास जाने लगा तो भीमा भईया ने मेरा हाथ पकड़ कर रोक लिया।
"क्या चाहिए तुझे मेरे प्यारे भाई" विनती करते हुए
"अरे मैं तो मजाक कर रहा था भईया, देखो कैसे फटे ढोल के जैसे हालत हो गई हिहीही"
"भाई मैं तो डर ही गया था, अगर तेरी भाभी को पता चल गया होता तो मेरी हड्डी तोड़ देती"
"ये लो कल सालगिरह है ना, कल रात की फिल्म की दो टिकट लेकर आया हूं, भाभी आपकी बहुत शिकायत कर रही थीं कि कहीं घुमाते नहीं हो और फिल्म तक नही दिखाते हो। ऐसा कैसे चलेगा भईया"
"मेरे भाई कल परिवार के साथ मैंने बाहर खाने पीने की योजना बनाई थी, लेकिन फिल्म की टिकट लेकर बहुत अच्छा किया मेरे प्यारे भाई, कल से तेरी भाभी कभी तूझसे मेरी शिकयत नही करेगी"
तभी ताईजी बाजार से पूजा का सामान लेकर आ गई।
"चलो भईया ताईजी आ गई मैं चलता हूं" कहकर मैं दुकान के बाहर आ गया।
Baba ji, yeh gaon to pehelio se bhara hua hai, kuch to suljaoअपडेट ९
स्टोररूम में बोरियां रखकर मैं सभ्या चाची के ऊपर आने का इंतजार करने लगा, थोड़ी देर बाद मुझे किसी के सीढ़ियों से ऊपर चढ़ने की आवाज आई तो पता चला कि सभ्या चाची ऊपर आ रही है मैं तुरंत स्टोररूम के फाटक के पीछे छुपकर खड़ा हो गया और जैसे ही सभ्य चाची स्टोररूम के अंदर आई तो पीछे से मैंने उन्हें अपनी बाजूओं में जकड़ लिया और उनके कूल्हों और चूचियों पर हाथ फेर दिया मानो जैसे हल्के से स्पर्श किया हो, सभ्या चाची एक वक्त के लिए डर गई लेकिन चिल्लाई नहीं।
"मैं तो डर ही गई थी ऐसा लगा कि कोई चोर आ गया, अब मुझे छोड़ेगा या नहीं" सभ्या चाची कसमसाती हुई बोली
"फिर उठाऊंगा कैसे?" मैं सभ्या चाची को झटके से पलटकर उनकी कमर को जकड़ते हुए बोला
"दम है तो उठा के........ सभ्या चाची इतना ही कह पाई थी कि मैंने उनकी मोटी चर्बीदार गांड को अपने दोनों हाथों से दबोचकर उन्हें ऊपर उठा दिया।
सभ्या चाची लगभग कुंतल भर की थी, पहली बार मैं किसी भारी वजन की औरत को उठाए हुए था, मैंने उन्हें 10 सेकंड्स तक हवा में उठाए रखा, सभ्या चाची अपना मुंह फाड़ फाड़कर मुझे देखे जा रही थी और फिर मैंने उन्हें नीचे उतार दिया।
"ऐसे क्या देख रही हो चाची, अब पता चल गया ना कि मेरे बाजूओं में कितना दम है"
"सच में तू बहुत ताकतवर है रे, मैं हार गई तू जीत गया"
"अब एक दिन के लिए आप मेरी दासी बनकर रहोगी लेकिन दिन मैं चयन करूंगा, तब तक के लिए आप निश्चिंत हो जाओ"
तभी नीचे से ताईजी की आवाज आती है "अरे कहां मर गई सभ्या"
फिर सभ्या चाची मुझसे बिना कुछ कहे स्टोररूम से नीचे रसोईघर में चली गई और फिर कुछ देर छत पर कसरत करने के बाद मैं घर के पिछवाड़े में नहाने चला गया, शीला भाभी पूजा के लिए व्यवस्था कर चुकी थी, ताईजी और सभ्या चाची रसोईघर में प्रसाद बना रही थीं और पीहू दीदी अपने कमरे में तैयार हो रही थी, भीमा भईया आंगन में गद्दे बिछा रहे थे।
कुछ देर बाद पंडित जी भी आ गए, मैंने पंडित जी को प्रणाम किया, इधर भीमा भईया और शीला भाभी पूजा के लिए गद्दे पर बैठ गए थे, थोड़ी देर के बाद पूजा आरंभ हुई पंडित जी ने हवन करना शुरू कर दिया था, ताईजी भी नहाकर तैयार हो गई थी और आंगन में भीमा भईया और शीला भाभी के साथ गद्दे पर बैठ गई थी, उधर धीरे धीरे गांव के लोग आना शुरू हो गए थे।
मैं भी नहाकर धोती और कुर्ता पहन के आंगन में पीछे गद्दे पर बैठा था, कुछ देर बाद मुझे प्यास लगी तो मैं रसोईघर में जाने के लिए उठकर खड़ा हो गया लेकिन रसोईघर में जाने का कोई रास्ता ही नहीं था क्योंकि आंगन में गद्दे पर गांव के बहुत सारे लोग बैठे हुए थे उन्हें लांघ कर तो मैं जा नहीं सकता था।
तभी पीछे से शहनाज़ खाला बोली "क्या हुआ बेटा उठ क्यों गए बैठ जाओ"
"खाला मुझे प्यास लग रही है और रसोईघर में जाने के लिए जगह तक नहीं है"
"कोई बात नहीं बेटा, मेरे घर चले जाओ वहां किसी से अपनी प्यास बुझा लेना"
"शुक्रिया खाला" कहकर मैं शहनाज़ खाला के घर चला गया।
पड़ोस में ही शहनाज़ खाला का घर था, मैं धड़ल्ले से घर में दाखिल हो गया तो मुझे एक कमरे से किसी के गाना गुनगुनाने की आवाज आई, "झुमका गिरा से बरेली के बाजार में" ये गाना गुनगुना रहा था, मैं ऐसा करना तो नही चाहता था लेकिन मुझे देखना था कि कमरे के अंदर आखिर है कौन? क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आवाज के पीछे कोई औरत है या मर्द! मैं चुपके से कमरे के फाटक पर आ गया और जैसे ही मैंने अंदर का नजारा देखा तो मेरे होश उड़ गए, मैंने देखा कि शादाब भाईजान आईने में खुद को निहारते हुए लिपस्टिक लगा रहे थे और उन्होंने हरे रंग का सलवार कमीज पहना हुआ था।
तभी मुझे रुबीना भाभीजान नजर आई सीढ़ियों से नीचे आती हुई तो मैं चुपके से घर के बाहर चला गया और वापस से पूजा में बैठ गया फिर कुछ देर बाद पूजा समाप्त हुई तो मैं प्रसाद बांटने लगा, धीरे धीरे गांव के लोग भईया भाभी को आश्रीवाद देकर और प्रसाद लेकर चले गए।
अब 12 बज चुके थे, मैं थोड़ा बहुत आराम करके भोजन करने के लिए आंगन में आ गया तो मैंने देखा कि भीमा भईया चारपाई पर बैठे हैं और ताईजी शीला भाभी के साथ रसोईघर में खाना बना रही थीं। शादाब भाईजान के बारे में सोच–सोच कर मैं थोड़ा विचलित हो गया था।
"बलराम क्या बात है, तू परेशान सा लग रहा है गांव में किसी ने तुझे कुछ कहा क्या"
"ऐसी कोई बात नही है भईया, आज मैंने कुछ ऐसा देख लिया जिसकी मैंने सपने में कभी कल्पना भी नहीं की थी"
"क्या मैं भी जान सकता हूं कि ऐसा क्या देखा लिया मेरे प्यारे भाई ने?"
"भईया पड़ोस में शादाब भाईजान हैं ना, उन्हें आज मैंने सलवार कमीज पहने देखा था" मैं धीरे से भीमा भईया के कान में बोला
"हाहाहाहा क्या तुझे पता नही कि शादाब गाँडू है" भीमा भईया मुस्कुराते हुए धीरे से बोले
"क्या?"
"अरे भाई वो गाँडू है, गांड मरवाने का शौकीन है"
"क्या वह समलैंगिक हैं?"
"पता नहीं लेकिन शादाब कई बार गांव में अपनी गांड मरवाते पकड़ा गया है"
"लेकिन क्या रुबीना भाभीजान जानती हैं कि शादाब भाईजान गाँडू हैं"
"शादी के पहले तक तो नहीं जानती थी लेकिन अब तो जानती ही होगी"
तभी ताईजी और शीला भाभी खाना लेकर आती है और हम साथ में भोजन करते है फिर मैं अपने कमरे में सोने चला आता हूं।
Jesa socha hai vesa likho. Garhi track par rahegi.thoda patience rakho yar, chut ke liye thoda bahut struggle toh karna padega na, mai chahta toh sabse pehle blackmail karke Tai ko hero se chudva deta lekin isme kisi ko maza nahi aata. kajri tai , sabhya chachi, kammo didi aur Ragini kaki hero se set ho rahi hai phir pihu didi, Rekha mousi, shehnaaz khaala, Rubina bhabhijaan, Nusrat aur muralilal ke pariwar ki auraten bhi ek ek karke hero ke niche aayengi, ek sath sabki chut hero ko paros dunga toh chod chodke uske lund me tetnus ho jayega.... Thoda samjha karo bhai, mujhe pata kaise kab kya likhna hai.... Hero tab ek hero banta hai jab woh struggle karta hai aur bina struggle kiye hero ko sab kuch mil jaye toh kisi ko bhi story padhne me maza nahi aayega
Bhai Maine to bolna hi chhod diya hai...abhi bola tha to mujhe middle finger dikha raha tha ye banda...ab mai bhi isko dikha sakta tha par socha real life me bahot ladayi jhagda kiya hai maine...yaha Kuchh nahi bolunga.Ye log aise hi pata ni bina dekhe kisi bhi section me story likhna suru kar dete hai
Ho sakta hai baki logo ko aapki story achi lag rahi ho par mujhe aapki ye story bilkul bhi achi ni lagi sorry bhai