रक्त समूह के सीमित पैटर्निटी टेस्ट के बाद पद्मा से सम्भोग की तिथि और सुगना के जन्म की तिथि के साथ अब सरजू सिंह और सुगना का पिता पुत्री का रिश्ता जो नियति ने तय कर रखा था, बहुत तार्किक ढंग से रख दिया, और अब यह कहानी पिता पुत्री के ( बायोकोजिकल , एक्सीडेंटल ही सही ) संबंधों की ओर मुड़ चुकी है. यह संबंध जो वर्जना की सभी चारदीवारियों को तोड़ता है , लेकिन यह बहुत नाटकीय ढंग से लेखक ने पूरे तानेबाने के साथ प्रस्तुत किया है जो उनकी रचना धर्मिता का सशक्त प्रमाण है.
लेकिन इस तरह के संबंध आत्मग्लानि को अवसाद को और अक्सर दुखांत को ही जन्म देते हैं और शायद यही उनका तार्किक अंत है. और ग्लानि के कुछ चिन्ह इस पोस्ट में भी परिलक्षित हो रहे हैं.
इन्सेस्ट, खासतौर से पिता पुत्री के बीच का मुझे कुछ अच्छा नहीं लगता, पर ये मेरी निजी सोच है, मैं गाँव गंवई माहौल की, गोबर मिटटी वाली, ननदों को सादी बियाह में गारी गाने, भौजाइयों से गारी सुनने सुनाने में, रतजगे में भी, चिढ़ाने में भी कुछ संबध वर्ज्य रहते हैं और पिता पुत्री का संबंध उनमे से है.
भिखारी ठाकुर, जो किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है का एक नाटक याद आता है इसमें एक व्यक्ति कमाने गया है और बरसों बाद लौटता है और उसकी पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया है अब प्रश्न यह है की बच्चा किसका है,
पति कहता है की स्त्री उसकी ब्याहता है इसलिए बच्चा उसका है,
वह व्यक्ति जिसके वीर्य से वह बच्चा पैदा हुआ कहता है , बच्चा उसका है.
पर मुझे सबसे तगड़ा तर्क उसकी माँ का लगा, जो कहती है की मेरे पास दूध था, मैं दही चाहती थी। मैंने पडोसी के घर से थोड़ा सा दही का जामन लिया, और दही जमा ली। तो क्या कहतरी भर दही उसकी होगयी जिसने थोड़ा सा जामन दिया।
नियति ने जो कुछ नियत कर दिया उसमें कौन क्या कह सकता है , लेकिन कुछ सवाल उमड़ते घुमड़ते हैं,
जैसे उस गहरी काली अमावस की रात, जब सुगना नियति के अनुसार पद्मा की कोख में आयी तो पद्मा विवाहिता थी या कुंवारी ? अगर कुँवारी भी रही होगी तो निश्चित तौर पर कुछ दिन के बाद उसकी शादी हो गयी होगी , उसके और भी बच्चे हैं।
और कुँवारी माँ तो वो निश्चित नहीं थी।
गर्भवती होने के दो तीन महीने बाद गर्भ के लक्षण दिखने लगते हैं, और गाँव देहात में अगर किसी नयी बहू के पांच छह महीने बाद प्रसव जो जाए , हम सब कल्पना कर सकते हैं, फिर गाँव के घर में रजस्वला होने या न होने की बाद भी घर में नहीं छुपती।
पद्मा के पति का जिक्र कहानी में नहीं आया है, शायद।
बस एक बात और,
कर्ण को हम सूर्य पुत्र कहते हैं
पर युधष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव को, यम, वायु, इंद्र और अश्विनी पुत्र नहीं कहते पाण्डु पुत्र ही कहते हैं क्योंकि उनके जन्म के समय कुंती और माद्री दोनों पांडू की धर्म से विवाहित पत्नियां थीं।
लेकिन मैं जानती हूँ इस तरह के फालतू के सवाल कथा की गति में बाधा डालते हैं , रस भंग करते हैं और पाठकों के आनंद में विघ्न उत्पन्न करते हैं , इसलिए आखिर बार इस तरह की पोस्ट, वरना मैं भी मानती हूँ , जानती हूँ की यह एक कहानी है , कहानी में थोड़ा सस्पेंशन आफ डिसबिलिफ होता है, कभी कभी ज्यादा भी हो जाता है,
मेरी सहानुभूति पति परित्यक्ता सुगना के साथ है, पर वह भी कहानी का एक चरित्र है और नियति ने जो उसकी भूमिका लिखी होगी वह उसी प्रकार से,
कहानी की गति, प्रस्तुति और तेज घटनाक्रम अद्भुत है और मैं भी कहानी के आगे बढ़ने का लाखों पाठकों के साथ इन्तजार करुँगी इस वायदे के साथ की इस तरह के सवाल अब और नहीं, बस नियति ने नियत किया है उस का रसास्वादन करुँगी,