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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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होली के विशेष अवसर पर स्पेशल अपडेट
सरयू सिंह के दिमाग में सुगना के साथ बिताई गई दिवाली की वह कामुक रात और उसके पहले के कुछ दिन अमिट छाप छोड़ गये थे । उसे याद करते वह अपना घंटों समय काट लेते.सुगना के साथ प्रथम मिलन में उन्होंने समाज की मर्यादाओं के खिलाफ अपनी बहू की खुशी के लिए उसे जी भर कर चोदा था और उसे स्त्री होने का एहसास दिलाया था। इस पवित्र पाप का न तो उन्हें अफसोस था न सुगना को और नहीं सुगना की सास उनकी कजरी भौजी को .

नियति जिसने सुगना और सरयू सिंह को करीब लाया था वह विजय प्राप्त कर चुकी थी. अगले दो-तीन वर्षों में सुगना और सरयू सिंह ने अपने कामुक जीवन को नया आयाम दिया जिस का विस्तृत विवरण उचित समय पर पाठकों को प्रस्तुत किया जाएगा।

फिलहाल आइए कहानी को अब वर्तमान में ले आते है। वैसे भी कल होली है...

सुगना का पुत्र सूरज छः महीने का हो गया था। वह बेहद ही सुंदर था और हो भी क्यों ना? सुगना जैसी अपूर्व सुंदरी और सरयू सिंह जैसे गठीले मर्द की औलाद को तो सुंदर होना ही था। सूरज ने चेहरे पर सुगना की मासूमियत ली हुई थी पर उसकी कद काठी पर सरयू सिंह का असर था। देखने में सूरज सात आठ माह का बच्चा लगता। कजरी हमेशा उसे तेल लगाते समय कहती उसकी नूनी को देखती और बोलती

"देखिह ई हो कुँवर जी जइसन बनी"

सुगना शर्मा जाती और इस बात को अपनी उत्तेजना से जोड़ लेती। क्या सूरज भी रिश्तो की मर्यादाओं को ताक पर रखकर स्त्रियों से संभोग करेगा?

नहीं नहीं वह ऐसा नहीं करेगा। सब की परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती मेरा बालक एक आदर्श पुरुष बनेगा। हालांकि कजरी ने यह बात सूरज की कद काठी को देखकर कहीं पर सुगना ने अपने मन में आए विचारों से उस बात को नई दिशा दे दी थी।

वैसे अपने ससुर से संबंध बनाने के बाद सुगना की निगाहों में संबंधों की अहमियत निश्चय ही कुछ कम हो गई थी स्त्री और पुरुष के बीच बन रहे कामुक संबंध उसे अब स्वभाविक लगते थे।

दो-तीन दिनों बाद होली का त्यौहार आने वाला था।

हरिया की बेटी लाली अपने पति राजेश के साथ गांव आई हुई थी लाली का बेटा राजू अब 4 साल का हो चला था। राजेश ने एक बंगालन से अवैध संबंध बना रखे थे जिसने एक सुंदर पुत्री को जन्म दिया था उसका नाम रीमा रखा गया था। जब रीमा एक वर्ष की हुई तो उस बंगालन की अकारण मृत्यु हो गई। राजेश ने लाली को यह बात समझाई की रीमा अनाथ है। राजेश और लाली ने मिलकर रीमा को अपना लिया और अपने दोनों बच्चों के साथ हंसी-खुशी रहने लगे।

हरिया के घर में हलचल थी। लाली समय के साथ और खूबसूरत हो चली थी। वह अपने दोनों बच्चों को गांव की खेत और गांव की संस्कृति से परिचय करा रही थी।

राजेश एक कामुक व्यक्ति था उसने लाली और उस बंगालन से संबंध बनाकर अपनी काम पिपासा को हर प्रकार से शांत किया था। लाली की तुलना में वह बंगालन ज्यादा कामुक थी। बंगालन के जाने के बाद लाली ही राजेश का एकमात्र सहारा थी।

उधर मुंबई में बबीता की जवानी पर भी ग्रहण लग चुका था। बबीता की वासना बढ़ती जा रही थी उसके अपने होटल के मैनेजर से संबंध बन चुके इधर रतन के साथ संभोग करते समय वह रतन को अपना वीर्य अपने गर्भ में गिराने की इजाजत न देती परंतु उसका बॉस उसकी यह बात मानने को तैयार न था असावधानी वश बबीता गर्भवती हो गई। उसने न चाहते हुए भी दो पुत्रियों को जन्म दिया था जिनका नाम चिंकी और मिंकी था वह क्रमशः 3 वर्ष और 2 माह की थी।

मिंकी का जन्म तो अनायास ही हो गया था बबीता उसके लिए बिल्कुल तैयार न थी पर डॉक्टर ने गर्भपात के लिए साफ साफ मना कर दिया था। अनचाहे में पतली दुबली बबीता दो दो बच्चों को जनने के बाद अपनी अद्भुत सुंदरता को बैठी थी। वह धीरे-धीरे रतन और बबीता के रिश्ते में खटास बढ़ती गई। रतन को परिवार का सुख तो मिल रहा था पर पत्नी सुख कभी-कभी ही प्राप्त होता वह भी बिना मन के।

बबीता उसे प्यारी तो थी पर के व्यवहार में परिवर्तन आ चुका था। रतन की कामवासना और अपेक्षाओं पर बबीता खरीदना उतरती उसका मन उसके बॉस के साथ लग चुका था। रतन की कामुक निगाहें सुंदर औरतों को देखते ही उन पर ठहर जातीं। वह मन ही मन उन्हें अपने ख्वाबों में नग्न करता और उनके साथ संभोग की परिकल्पना कर अपने लंड को सह लाते हुए वीर्य स्खलन करता। यह एक आश्चर्य ही था की जिस सुगना को उसने सुहाग की सेज पर अकेला छोड़ दिया था अब वह उसी सुगना की परिकल्पना कर अपना हस्तमैथुन किया करता था।

सुगना उसकी पत्नी थी परंतु अब वह उसकी निगाहों में किसी अनजान व्यक्ति से संभोग के उपरांत मां बन चुकी थी। रतन सुगना के संपर्क में आना तो चाहता था पर किस मुंह से वह उससे बात करेगा? प्रश्न कठिन था. रतन का भविष्य नियति के हाथों में कैद था।

अगले दिन रतन भी गांव पर आ गया। वैसे भी अपने चाचा को दिए गए वचन के अनुसार उसे हर छः माह पर गांव आना ही था।

उधर सुगना की माँ जिसने तीन पुत्रियों और एक पुत्र को जन्म दिया था होली पर अपने मायके जाना चाहती थी। सबसे बड़ी सुगना थी उसके चार पांच वर्षों बाद पदमा का पुत्र सोनू हुआ था। पर फौजी महोदय यहां भी न रुके और जाते जाते पदमा के गर्भ में दो पुत्रियों को छोड़ गए थे जो अब लगभग 14 वर्ष की थीं। पद्मा ने उनका नाम सोनी और मोनी रखा था वह दोनों लगभग एक जैसी ही दिखाई पड़ती यदि उन्हें एक जैसे कपड़े पहना दिए जाएं तो पहचानना मुश्किल हो सकता था।

पद्मा की दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी ने उसके साथ जाने से मना कर दिया। वह दोनों अपनी सुगना दीदी के पास जाना चाहती थी। अंततः सुगना के भाई सोनू जो अब 18 वर्ष का हो चुका था ने अपनी दोनों छोटी बहनों को अपनी बड़ी बहन सुगना के पास छोड़ दिया और अपनी मां को मायके पहुंचा आया। उसका भी मन अपने नाना के यहां ना लगा और वह भी अपनी सुगना दीदी के घर आ गया।

नियति गांव के बाहर नीम के पेड़ पर बैठी सरयू सिंह और हरिया के घर को निहार रही थी जहां उसने पिछली पीढ़ी में सरयू सिंह और कजरी को अपना शिकार बनाया था तथा नई पीढ़ी में सुगना और राजेश को। लाली इससे अछूती थी और सुगना का भाई सोनू भी अब तक नियति के कामुक दंश से बचा हुआ था।

आने वाली पीढ़ी के कई हंसते खेलते बच्चे भी निष्ठुर नियत की निगाहों में थे। बबीता की पुत्री चिंकी मिंकी गांव नहीं आई थी पर नियति ने उन्हें भी अपने दायरे में ले लिया था। नियति आने वाले समय की पटकथा लिख रही थी।
होली का दिन शुरू हो चुका था। सबसे पहले कजरी उठी थी उसके मन में शरारत सूझी और उसने अटारी पर से रखा आलता उतारा और दालान में जाकर सरयू सिंह के गालों और माथे पर रंग लगाने लगी। वह कुंवर जी का ख्याल रखती थी और रखे भी क्यों न वह उसके इकलौते मर्द थे जो पति की भी भूमिका निभाते और दोस्त की भी। और तो और उन्होंने उसकी बहू का भी जीवन सवार दिया था। कजरी उनके प्रति कृतज्ञ थी।

चेहरे पर रंग लगाने के बावजूद कजरी का जी ना भरा। उसने अपने हाथों में रंग लपेटा और सरयू सिंह की धोती के अंदर ले जाकर प्यारे लंड को पकड़ लिया। सरयू सिंह का नाग सोया हुआ था पर कजरी के हाथ लगते ही वह जागने लगा। सरयू सिंह की आंख खुल गई। उन्हें कजरी की बदमाशी समझ आ चुकी थी।

कजरी लगभग हर वर्ष उनसे पहले उठती और इसी प्रकार की हरकत कर सबसे पहले उन्हें रंग लगाती। उन्होंने कजरी को अपनी चारपाई पर खींच लिया और उसे अपने आगोश में ले कर सहलाने लगे। दो जिस्म एक दूसरे में समा जाने को बेकरार थे तभी सुगना के पायलों की छम छम आंगन में सुनाई पड़ी। कजरी सचेत हो गई। वैसे भी इस समय घर में कई लोग थे सरयू सिंह और कजरी का मिलन संभव न था।

कजरी अपनी पनियायी बुर लेकर सरयू सिंह से दूर हो गई और आंगन में सुगना के पास आ गई। कजरी के हाथों में रंग देखकर सुगना सारी बात समझ गई। दोनों सास बहू एक दूसरे के गले लग गयी। अब सुगना की चुची अपनी सास कजरी से बड़ी हो चली थी।

कजरी की चूचियां उम्र बढ़ने के साथ सूख रही थी और इधर सुगना की सूचियों में दूध भर रहा था। नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी पर हावी हो रही थी। कजरी ने सुगना के कान में कहा

"जा... अपना बाबूजी के गोड लाग ल" इतना कहकर कजरी ने सुगना के नितंबों को दबा दिया। सुगना सरयू सिंह की कोठरी की तरफ आ गयी। उसने अपने बाबू जी के चरण छुए और अपने कामसुख के प्रिय अंग उनके ल** को अपनी हथेलियों में ले लिया। कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग अभी सुखा न था। उसने कजरी के हाथों को रंग दिया। सुगना वह रंग देख कर मुस्कुराने लगी उसे अपनी सास कजरी की हरकत समझ आ चुकी थी।

सरयू सिंह ने अपनी बहू सुगना को निराश ना किया। उन्होंने उन्ही होठों से सुगना को चूम लिया जिनसे कुछ समय पहले ही उन्होंने कजरी को चूमा था। वह दोनों उनकी दो पटरानियां थी। सुगना वर्तमान थी और कजरी धीरे-धीरे पुरानी हो रही थी।

सरयू सिंह के मन में दोनों के प्रति प्यार उतना ही था पर कामुकता पर अब सुगना का कब्जा हो चला रहा था।

वापस आने पर कजरी ने सुगना के हाथों में लगा लाल रंग देख लिया और मुस्कुराने लगी। दोनों एक दूसरे की भाषा समझ चुकी थी। उन्होंने सरयू सिंह के सबसे प्यारे अंग से होली खेल ली थी और सरयू सिंह की पिचकारी में श्वेत रंग भर दिया था।

धीरे धीरे सूरज आसमान में चढ़ने लगा सारे बच्चे और जवान होली खेलने की तैयारी में घर के अहाते में आ गए हरिया का परिवार भी सरयू सिंह के दरवाजे के सामने आ गया सरयू सिंह का अहाता हरिया के अहाते से ठीक सटा हुआ था।

गांव के कुछ लोग भी सरयू सिंह के अहाते में आकर फगुआ गाने लगे। उन्होंने रतन और राजेश को भी बैठा लिया। हरिया भी होली गीत गाने में मगन हो गया घर के सारे वयस्क पुरुष इसका आनंद लेने लगे पर सुगना का भाई सोनू उस बिरादरी से दूर लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

सुगना की छोटी बहनें सोनी और मोनी ढोल मृदंग की आवाज से मस्त हो गई थी और गांव के लोगों द्वारा गाया जा रहा फगुआ देख रही थी उन्हें यह दृश्य बिल्कुल नया लग रहा था।

हरिया की पत्नी और कजरी ने छोटे बच्चों को अपने सानिध्य में ले लिया था। लाली सुगना के साथ आंगन में होली खेल रही थी।

दोनों सहेलियां एक दूसरे को रंग से सराबोर कर रही थी। शरीर का कोई अंग न छूटने पाए यह बात दोनों के जहन में भरी हुई थी। लाली ने सुगना की बड़ी-बड़ी चुचियों पर रंग लगाते समय उसे दबा दिया।

दूध की धार फूट पड़ी सुगना चिल्लाई

"अरे लाली तनी धीरे से ...दुधवा गिरता" लाली ने कहा

"बुलाई रतन भैया के पिया दीह"

उस बेचारी को क्या पता था कि सुगना की चूचियों में दूध रतन ने नहीं उसके बाबूजी सरयू सिंह ने भरा था।

लाली को फिर शरारत सूझी उसने सुगना से कहा "कह त तोर जीजा जी के बुला दी उहो तोर चुचीं के चक्कर में ढेर रहेले"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई निश्चय ही सुगना की कामुक चूचियों का जिक्र राजेश ने अपनी पत्नी लाली से किया हुआ था।

सोनू दोनो सहेलियों की छेड़खानी देख रहा था। लाली आंगन में सुगना से बच कर भाग रही थी तभी सोनू आंगन में आ गया। लाली सोनू से टकरा गयी। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ लाली के हमरा के बहुत रंग लगावले बिया"

सोनू उम्र में लाली और सुगना से तीन चार बरस छोटा था परंतु कद काठी उसकी मर्दों वाली थी कद 5 फुट 11 इंच भरा पूरा शरीर लाली और सुगना के लिए एक मर्द के जैसा था सोनू। सोनू ने लाली देवी को अपने सीने से सटा लिया। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां उसके सीने से सट गयीं।

सुगना द्वारा लाली की चुचियों पर लगाया गया रंग सोनू के सीने पर लग गया। लाली को यह अवस्था ज्यादा आपत्तिजनक लगी वह उसके सीने से दूर होने का प्रयास करने लगी। जब तक वह अपने प्रयास में सफल होती सुगना हाथों में रंग लिए आ चुकी थी।

वाह लाली की पीठ और कमर पर रंग लगा रही थी। जाने कब सुगना के हाथ लाली के नितंबों तक चले गए बीच-बीच में सोनू के हाथ लाली की पीठ को सहला लेते और सोनू अपनी काम पिपासा को कुछ हद तक शांत कर लेता।

लाली को सोनू के लंड की चुभन पेट पर महसूस होने लगी। सोनू उत्तेजित हो चला था और वह भी क्यों ना लाली जैसी भरी पूरी गदरायी जवानी को उसने अपने आलिंगन में लिया हुआ था।

कुछ देर की की छीना झपटी में लाली ने अपने आपको सोनू के आलिंगन से छुड़ा लिया और घर के पिछवाड़े की तरफ भागी। सोनू भी उसे पकड़ने के लिए भागा। सुगना ने कहा

"सोनू पकड़ ओकरा के आज एकरा के पूरा रंग लगाईब"

सुगना उत्साह में थी. वह और रंग तैयार करने के लिए कोठरी में रंग लेने चली गई। इधर राजेश का मन फाग फगुआ में ना लग रहा था। उसे सुगना के साथ होली खेलने का मन था। रतन ने भी अपना मन बनाया हुआ था पर उस उत्साह से नहीं।

वह सुगना के साथ जी भर कर होली खेलना चाहता था पर वह सुगना से दूर था।

राजेश ने हिम्मत जुटा ली उठ कर सुगना के आंगन में आ गया। जैसे ही सुगना रंग लेकर अपनी कोठरी से बाहर आयी राजेश ने अपनी जेब से ढेर सारा अबीर निकाला और सुगना के शरीर पर दोनों हाथों से उड़ेल दिया। लाल और पीले रंग ने सुगना की आंखों के सामने एक धुंध जैसी तस्वीर बना दी। सुगना के शरीर पर अबीर के छीटें गिर रहे थे।

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सुगना को कुछ दिखाई ना दे रहा था इसी बीच राजेश ने उसे पीछे से आकर आलिंगन में ले लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियां राजेश के हाथों में आ गयीं जिसे राजेश ने मसल दिया। सुगना ने कहा

"जीजा जी, तनी धीरे से….दुखाता"

राजेश स्त्रियों की कामुक भाषा को बखूबी समझता था उसने चूचियों पर तो अपना दबाव हटाया पर अपनी कमर का दबाव सुगना के नितंबों पर बढ़ा दिया। राजेश ने थोड़ा झुक कर अपने लंड का तनाव सुगना के नितंबों की दरार पर सटा दिया।

सुगना सिहर उठी राजेश सुगना को छोड़ने के विचार में बिल्कुल नहीं था। वह अपनी हथेलियों से उसके पेट पर रंग लगाने लगा। इसी बीच रतन भी आगन में आ गया अपनी पत्नी सुगना को राजेश की बाहों में मचलते हुए देखकर रतन ने सूरज के जन्म और सुगना के गर्भवती होने की कहानी सोच ली।

निश्चय ही सुगना का पुत्र सुरज राजेश और सुगना के प्यार की परिणिति था। नियति ने रतन को वही दिखाया जो देखना उसके लिए उचित था। रतन उल्टे पैर वापस आ गया। वह अब फगुआ सुनने की स्थिति में नहीं था। वह चुपचाप अपने इक्का-दुक्का दोस्तों से मिलने चल पड़ा।

उधर लाली जब आगन से पिछवाड़े की तरफ भाग रही थी उसका लहंगा एक कील में फस गया और लहंगे का नाडा टूट गया। लाली ने बड़ी मुश्किल से अपना लहंगा पकड़ा और जब तक वह उसे संभालती तब तक सोनू ने आकर उसे पीछे से पकड़ लिया।

सरयू सिंह के आंगन में सुगना राजेश की बाहों में होली का सुख ले रही थी और घर के पिछवाड़े में लाली सोनू अपनी बाहों में अपनी लाली दीदी को लिए एक नए किस्म का अनुभव कर रहा था। लाली का किसी अन्य मर्द के साथ यह पहला अनुभव था। और तो और वह मर्द भी और कोई नहीं बल्कि सुगना का भाई सोनू था।

सोनू ने एकांत पाकर लाली की चुचियों को अपने दोनों हथेलियों में पकड़ लिया लाली चाह कर भी उसे न रोक पायी। उत्तेजना ने उसके हाथों से ताकत से ताकत छीन ली थी।

उसके दोनों हाथ लहंगे के नाडे को पकड़ ने में व्यस्त थे। धीरे धीरे लाली उत्तेजित हो चली थी सोनू के लंड का स्पर्श उसे अपनी पीठ पर महसूस हो रहा था। सोनू अपने लंड को लाली की पीठ पर धीरे-धीरे रगड़ रहा था। सोनू का चेहरा लाली के कान से सटा हुआ था। सोनू की गर्म सांसे लाली को अभिभूत कर रही थी।

इधर जब तक राजेश सुगना की नंगी चूचियों को छूने का प्रयास करता सोनी और मोनी आगन में आ गयीं। राजेश ने सुनना को छोड़ दिया और सुगना का मीठा एहसास लेकर मन मसोसकर आगन से बाहर आ गया। सोनी ने सुगना से गुझिया मांगा सुनना खुशी-खुशी रसोई से जाकर अपनी बहनों के लिए गुजिया ले आई और वह दोनों गुझिया लेकर फिर एक बार ढोल मृदंग की थाप सुनने बाहर दालान में आ गयीं।उनके लिए वह गीत संगीत ज्यादा प्रिय लग रहा था होली का क्या था वह तो वो बाद में भी खेल सकती थीं।

सुगना को लाली का ध्यान आया वह हाथों में रंग लिए पिछवाड़े की तरफ गई जो दृश्य सुगना ने देखा वह सिहर उठी। सोनू का यह मर्दाना रूप उसने पहली बार देखा था सोनू ने लाली की चुचियों को चोली से लगभग आजाद कर लिया था। लाली की चोली ऊपर उठी हुई थी उसके बड़ी-बड़ी चूचियां लाल रंग से भीगी हुई सोनू की हथेलियों में खेल रही थी। लाली की आंखें बंद थी वह सोनू की हथेलियों का स्पर्श महसूस कर आनंद में डूबी हुई थी। लाली ने एक हाथ से लहंगे का नाडा पकड़ा हुआ था। लाली का दूसरा हाँथ सोनू के पजामे में तने हुए लंड को सहला रहा था। सोनू और लाली को इस अवस्था में देखकर सुगना की बुर रिसने लगी। सुगना तो राजेश का स्पर्श पाकर पहले ही उत्तेजित थी और अब यह कामुक दृश्य देखकर उसकी बुर प्रेम रस छोड़ने लगी।

उसका छोटा भाई पूरी तरह जवान हो चुका था और उसकी सहेली लाली की गदराई जवानी को अपने हाथों से मसल रहा था।
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उसकी सहेली लाली भी आनंद में डूबी हुई सोनू के मर्दाना यौवन का सुख ले रही थी।

सुगना पर निगाह पड़ते ही सोनू ने लाली की चुचियों को चोली के अंदर कर दिया और अपने लंड को पीछे किया। लाली ने सोनू की पकड़ से आजाद होने की कोशिश की पर सोनू ने कहा

"दीदी तब से पकड़ ले बानी तू कहां रह गईलु हा"

सुगना ने करीब आकर लाली को रंग लगाना शुरू कर दिया. लहंगे का नाडा पहले ही टूटा था सुगना के मन में उत्तेजना ने घर बना रखा था ।उसने अपनी हथेलियों में लगाया हुआ रंग अपनी सहेली के दोनों जांघो के बीच लगा दिया। जब सुगना की हथेली लाली की बुर से टकरायी लाली की बुर ने सुगना के हाथों को अपने प्रेम रस से भीगा दिया।

लाली की बुर सोनू के स्पर्श से चिपचिपी हो चली थी उसके होठों पर ढेर सारा मदन रस रिस आया था। सुगना ने लाली की तरफ देखा लाली मुस्कुरा दी। लाली की उत्तेजना को उसकी सहेली सुगना ने बखूबी पढ़ लिया था। सुगना स्वयं एक कामुक युवती थी उसने लाली की बुर से चुराया हुआ प्रेम रस अपने हाथों पर मल लिया। हाथों पर लगा रंग लाली की बुर से निकले हुए प्रेम रस से चमकने लगा।

सुगना ने कहा

"सब केहू के रंग लागल बा तेही बाचल बाड़े"

सुगना ने अपने हाथों में लगा चमकता रंग सोनू के गाल पर लगा दिया। सोनू ने अपनी लाली दीदी के बुर में जो उत्तेजना पैदा की थी उससे रिस आया प्रेम रस अब उसके गालों पर लग चुका था। लाली सुगना की यह हरकत देख चुकी थी वह शरमा गई।

तभी लाली ने कहा

"हमरा के त रंग लगा लेल अपना दिदिया के ना लगाईबा"

सोनू के मन में सुगना के प्रति कामुकता न थी वह उसकी बड़ी बहन थी वह उसकी पूरी इज्जत करता था. उसने अपने हाथ का अबीर अपनी सुगना दीदी के गानों पर लगाया और वहां से हटकर आंगन में आ गया.

सोनू के जाते ही सुगना ने कहा

"ते ओकरा के बिगाड़ देबे"

"जाए दे तनि रस लेली त ओकरो होली ठीक हो जायीं।"

"सोनू अब लइका नइखे ओकर सामान थार जीजाजी से बीसे बा"

वह दोनों हंसने लगी. सुगना भी सिहर उठी राजेश के नाम से उसकी बुर जाने क्यों सचेत हो हो जाती थी।

लाली ने सुगना की चूचियों पर लगा अबीर देख लिया था। उसे पता था यह राजेश ने ही लगाया था। लाली ने सुगना को छेड़ा

" अच्छा हमारा के इंतजार करा कर अपना जीजा जी से चूँची मिसवावतालु हा"

सुगना की चोरी पकड़ी गई थी

"हट पगली"

दोनों सहेलियां अपनी जांघों के बीच एक नई उत्तेजना लिए आंगन में आ रही थीं।

नियति अपनी साजिश बन रही थी। एक तरफ तो उसने रतन को यह एहसास करा दिया था की सूरज का संभावित पिता राजेश ही था। यह गर्भधारण परिस्थितिजन्य संभोग के कारण हो सकता था या सुनियोजित।

रतन के मन में सुगना के प्रति प्यार और बढ़ गया। उसे पता था राजेश शहर में रहता है उसका अपनी ससुराल आना कभी कभी ही होता होगा। सुगना के राजेश से मिलन को रतन ने अपनी स्वीकार्यता दे दी। उसके मन में आए सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे।

उधर लाली और सुगना का भाई सोनू तेजी से करीब आ रहे थे। नियति ने उन्हें मिलाने की ठान ली थी। लाली जिसने आज तक अपने पति के अलावा अन्य पुरुष को अपने करीब न फटकने दिया था वह एक वयस्क किशोर के प्रेम में आसक्त हो रही थी।

दालान में लगा फगुआ का रास रंग खत्म हो रहा था। कुछ ही देर में हरिया का परिवार और सरयू सिंह का परिवार जी भर कर होली खेलने लगा। सभी होली का आनंद उठा रहे थे। सरयू सिंह अपनी सुगना को प्यार से देख रहे थे।

वह सुबह से ही अपनी पिचकारी में रंग भर सुगना के साथ एकांत के पल खोज रहे थे। पर इस उत्सव के माहौल में यह कैसे संभव होगा यह तो नियति को ही निर्धारित करना था। एक बार फिर कजरी नियति की अग्रदूत बनी।

उसने सभी से कहा

"चला सब केहु ट्यूबवेल पर वह जा के नहा लोग ओहिजा पानी ढेर बा। उसने सुगना से कहा सुगना बेटी तू जा घर ही नहा ल और खाना के तैयारी कर"

सोनी और मोनी बेहद प्रसन्न हो गयीं। सोनू और रतन भी अपने अपने कपड़े लेकर ट्यूबवेल की तरफ निकल पड़े। निकलते समय कजरी सरयुसिंह के करीब आयी और बोली जाइं अपना सुगना बाबू संग होली खेल लीं।

सरयू सिंह उसे सबके सामने चुम तो नहीं सकते थे पर वह बेहद प्रसन्न हो गए कजरी सच में उनके लिए एक वरदान थी जो उनकी खुशियों को हमेशा कायम रखती थी।

घर का आंगन खाली हो चुका था। प्रेम का अखाड़ा तैयार था। जैसे ही कजरी और बाकी लोग घर से कुछ दूर हुए सरयू सिंह आंगन में आ गए। सुगना अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी वह अपने बाबू जी के साथ होली नहीं खेल पाई थी। वह घर में हुई भीड़ भाड़ की वजह से चिंतित थी कि वह अपने बाबूजी के साथ कैसे होली खेल पाएगी। उसे नहीं पता था उसकी प्यारी सहेली और सास ने इसकी व्यवस्था पहले ही कर दी है।

सुगना अपनी चुचियों पर लगा अबीर झाड़ रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे आकर पीछे से पकड़ लिया और उसे चूमने लगे।

सुगना खुश हो गई। जिस तरह से छोटा बच्चा गोद में आने के बाद खुश हो जाता है सुगना भी अपने बाबुजी की गोद में आकर मस्त हो गयी।

सरयुसिंह ने धीरे-धीरे सुनना को नग्न कर दिया पर सुगना की कुंदन काया पर कई जगह पर रंगों के निशान थे।
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सरयू सिंह भी अबीर से भीगे हुए थे उन्होंने भी अपना धोती और कुर्ता हटा दिया। घर के आंगन में ससुर और बहू पूरी तरह नग्न थे। आंगन का दरवाजा सरयू सिंह ने बंद कर दिया था। ब धूप की चमकती रोशनी में अपने बापू जी के लंड को देखकर सुगना सिहर उठी। तीन चार सालों तक लगातार चुदने के बावजूद सुगना की बुर अपने बाबुजी के लंड के लिए हमेशा छोटी पड़ती थी।

सुगना ने लंड पर कजरी द्वारा लगाया गया लाल रंग देख लिया था जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहा था। सुगना अपने बाबूजी के करीब आई और उस जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सुगना के होठों को चूमने लगे। कुछ ही देर में उन्होंने सुगना को अपनी गोद में उठा लिया हैंड पंप के पास ले आए।

सरयू सिंह जब तक हैंडपंप से पानी निकालते रहें। सुगना उनके लंड से खेलती रही। ऐसा लग रहा था जैसे वह भी अपने छोटे हैण्डपम्प से पानी निकालने का प्रयास कर रही हो।
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सुगना के साथ इस तरह नग्न रहने का यह अनुभव बिल्कुल नया था। पानी भर जाने के पश्चात सरयू सिंह पालथी मारकर बैठ कर गए और अपनी प्यारी बहू सुगना को अपनी गोद में बिठा लिया। सुनना की चुचियां सरयू सिंह के सीने से सट गयीं और जैसे-जैसे सुगना अपनी कमर नीचे करती गई सरयू सिंह का मोटा लंड अपनी बहू की बुर में गुम होता गया।

सुगना का शरीर भरता चला गया। सुगना ने अब अपना पूरा वजन उनकी जांघों पर दे दिया था और उनके लंड को पूरी तरह अपने अंदर ले लिया था।

सुगना ने हाथ में साबुन लिया और अपने बाबूजी की पीठ पर लगाने लगी। सरयू सिंह भी सुगना की पीठ से रंग छुड़ाने लगे और जांघों के बीच अपनी पिचकारी को आगे पीछे करने लगे। सुगना दोहरे सुख में डूब रही थी। जांघों के बीच उसे होली का अद्भुत सुख मिल रहा था और उसके बाबूजी के हाथ उसके बदन से पराए मर्द द्वारा लगाया रंग छुड़ा रहे थे।

सुगना सरयुसिंह की ही थी यह दुर्भाग्य था की उम्र के इस विशाल अंतर की वजह से उसके जीवन मे दूसरे मर्द का आना निश्चित था। सरयू सिंह यह बात जानते थे कि वह सुगना का साथ ज्यादा दिन न दे पाएंगे। वैसे भी उनके माथे का दाग जो सुगना की बुर देखते समय कीड़े के काटने से मिला था बढ़ता जा रहा था।

साबुन की फिसलन उत्तेजना को बढ़ा रही थी। जैसे जैसे शरीर से रंग छूटता गया सरयुसिंह की पिचकारी तैयार होती गई। सुनना स्वयं बेसुध हो रही थी। वह आने बाबुजी को लगातार चूमे जा रही थी तथा उनकी पीठ पर उंगलियां और नाखून को गड़ाए हुए थी। इस अद्भुत चुदाई के समय कभी-कभी वह राजेश को भी याद कर रही थी जिसने अब से कुछ देर पहले उसकी खुशियों को जी भर कर मसला था।

सुगना अपनी कमर को तेजी से आगे पीछे करने लगी। स्खलन का समय आ रहा था। सरयू सिंह ने सुनना की कमर को पकड़ कर तेजी से नीचे खींच लिया और अपने ल** को उसकी नाभि तक ठाँस दिया। सुगना कराह उठी

" बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

सुगना कि इस उदगार ने उसे स्वयं ही झड़ने पर मजबूर कर दिया। वह स्खलित हो रही थी और अपने बाबूजी को लगातार चुमें जा रही थी। सरयू सिंह भी अपनी प्यारी बहू को एक छोटे बच्चे की भांति सहलाए जा रहे थे। उन्हें सखलित होती हुई सुनना को प्यार करना बेहद अच्छा लगता था।

सुगना का उत्साह ठंडा पढ़ते ही सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद से उतार दिया और स्वयं उठकर खड़े हो गए। उनका लंड अभी भी उछल रहा था। सुगना ने देर न कि उसने अपनी हथेलियां उस लंड पर लगा दी अपनी मुठ्ठीयों में भरकर लंड के सुपारी को सहलाने लगी।

सरयू सिंह ने बीर्य की धार छोड़ दी।
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आज सरयू सिंह ने अपनी पिचकारी अपने हाथों में ले ली और अपनी बहू सुगना को अपने श्वेत रंग से भिगोने लगे। सुगना अपने दोनों आंखों में अपनी खुशियों को पकड़े अपने बाबूजी के लंड से गिरते हुए प्रेम रंग को अपने शरीर पर आत्मसात कर रही थी।

सरयू सिंह के वीर्य ने सुगना के अंग प्रत्यंग को प्रेम रस से भिगो दिया यह रंग होली के सब रंगों पर भारी था। सुगना खुश हो गयी थी। वीर्य की अंतिम बूंद सुगना ने सर्विसिंग के लंड से स्वयं अपने होठों में ले ली।

ससुर और बहू दोनों तृप्त हो चले थे। होली का त्यौहार दोनों के लिए हमेशा की तरह पावन हो गया था।

सरयू सिंह के माथे का दाग बढ़ता ही जा रहा था। क्या यह किसी अनिष्ट का सूचक कजरी और सुगना उस दाग को लेकर अब चिंतित हो चली सरयू सिंह ने भी कई डॉक्टरों से उस दाग को दिखाया पर वह किसी की समझ में ना आ रहा था। जब जब वह सुगना के साथ कामुक होते दाग और बढ जाता…. नियति खेल खेल रही थी उसने रतन की दुविधा तो मिटा दीजिए पर दाद का रहस्य कायम रखा था..

सभी सदस्य ट्यूबबेल से नहा धोकर घर वापस आ चुके थे घर में खुशियां ही खुशियां थीं


सभी पाठकों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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आप की विस्तृत प्रतिक्रियाओं और सुझावों की प्रतीक्षा में
बहुत ही कामुक और बढ़िया अपडेट:applause::applause:
सोनू और लाली सुगना और राजेश में नई शुरुआत होने वाली है देखते हैं आगे क्या होता है प्रतीक्षा रहेगी अगले अपडेट कि
 

Sanju@

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नियति ने इस होली पर सोनू और लाली के बीच एक आग सुलगा दी थी। ऐसा नहीं था कि उस आग में सिर्फ लाली और सोनू ही झुलस रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजेश की भी थी वह सुगना के प्रति आसक्त हो चुका था। उधर रतन भी सुगना को अपनाने के लिए आतुर था।

त्यौहार खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घरों को लौट गए। सोनू 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण किया था उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेना था। सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उसका दाखिला शहर (बनारस) के एक अच्छे कालेज में करा दिया।

राजेश का पुश्तैनी घर लाली के गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। गांव में अक्सर वैवाहिक संबंध नजदीक के गांव में ही किये जाते हैं ताकि लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ दे सकें।

शहर में रहने की इच्छा गांव के लोगों में धीरे धीरे बलवती हो रही थी गांव के सभी लोग हर आवश्यक कार्य के लिए शहर (बनारस) का मुंह देखते थे चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाएं हो या पढ़ाई। कजरी और सुगना जैसी कुछ कामुक महिलाएं भी अपनी साज-सज्जा और अरमानों को पूरा करने के लिए उसी शहर पर आश्रित थी। गांव के लोगों का शहर आना जाना अब सामान्य हो रहा था।

राजेश वर्तमान में मेरठ में नौकरी करता था। राजेश रेलवे में टीटी था। उसका गांव मेरठ से काफी दूर पड़ता था और वह लगातार अपने ट्रांसफर के प्रयास में था ताकि वह अपने गांव के करीब पहुंच जाए।

राजेश के अथक प्रयासों और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। इस ट्रांसफर में सोनू की भी दुआएं शामिल वह बार-बार अपनी लाली दीदी की कल्पना करता और सोचता की काश लाली दीदी इसी शहर में रहतीं। नियति ने सुगना के भाई सोनू की प्रार्थना सुन ली। सोनू की लाली दीदी उसके शहर बनारस आ रही थी। नियति लाली और सोनू को करीब ला रही थी।

राजेश के ट्रांसफर की खबर जब सरयू सिंह ने कजरी को बताई सुगना भी वहां उपस्थित थी। उसके दिमाग में एक बार लाली और सोनू का चेहरा घूम गया। लाली के शहर आ जाने से हरिया और सरयू सिंह का परिवार खुश हो गया था अब वह लाली से आसानी से मिल सकते थे। और तो और शहर में उनका एक ठिकाना हो गया था।

सोनू को भी लाली के शहर में आने की खबर लग चुकी थी। सोनू की कद काठी लड़कियों को आकर्षित करने के लिए काफी थी पर उसका दिल अभी अपनी लाली दीदी पर अटक गया था। लाली को लेकर सोनू के लंड में हरकत कब से हो रही थी यह कहना तो मुश्किल है पर निश्चय ही वह कुछ दिनों की बात न थी। शायद सोनू ने जब से हस्तमैथुन प्रारंभ किया था उसके ख्वाबों की मलिका लाली ही थी।

राजेश स्वयं इस ट्रांसफर से बेहद प्रसन्न था वह सुगना के करीब आ रहा था और अब तो शहर में आने के पश्चात उसका गांव आना जाना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता था सुगना से उसके मिलन की संभावनाएं बढ़ रही थी इस बार सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात उसका साहस बढ़ गया था।

लाली को यह बात पता थी कि राजेश सुगना पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं पर अब लाली ने इसे स्वीकार कर लिया था तीन-चार वर्षों तक राजेश जैसे कामुक व्यक्ति के साथ रहते रहते लाली ने भी थोड़ी कामुकता उधार ले ली थी।

होली के दिन रात में जब राजेश में उसकी चुचियों को दीए की रोशनी में देखा तो चुचियों पर लगे हरे रंग को देखकर वह हैरान रह गया उसने लाली से पूछा

"तहरा चूची प हरियर रंग के लगा देलस हा"

लाली को सब याद था पर उसने अपनी आंखें शर्म से झुका ली और राजेश को अपनी तरफ खींचते हुए बोली

"अब होली में केहू रंग याद राखी"

राजेश ने लाली का सुंदर चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला

"ओह त अपना भाई सोनू से रंग लगववले बाड़ू"

लाली शर्म से पानी पानी हो गई। उसने कोई उत्तर न दिया। राजेश यह बात जानता था की हरा रंग सिर्फ और सिर्फ सोनू के पास था । वह सोनू को लाली के आगे पीछे घूमते कई बार देख चुका था।

क्योंकि राजेश स्वयं एक कामुक व्यक्ति था वह किशोर लड़कों की भावनाएं पूरी तरह समझता था उस अवस्था में वह भी अपनी करीबी महिलाओं की चुचियों पर ध्यान देता तथा उन्हें छूने और मसलने की फिराक में रहता था। राजेश जानता था कि सोनू के मन में लाली के प्रति कामुक भावनाएं आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लाली को वह दीदी जरूर बोलता था पर यह तो सामाजिक रिश्ते थे वरना लाली जैसी गदरायी माल और सोनू जैसे लड़के के बीच जो कामुकता होनी चाहिए वह स्वाभाविक रूप से अपना रंग दिखा रही थी। राजेश ने लाली को छेड़ना जारी रखा….

"रंग खाली उपरे लगावाले बा के नीचहूँ"

लाली उत्तेजना से सिहर उठी राजेश ने तो यह बात सिर्फ कही थी पर लाली ने सोनू के मजबूत हथेलियों को अपनी बुर पर महसूस कर लिया वह मदहोश होने लगी राजेश की बातें उसे उत्तेजित कर रही थी राजेश चाह भी यही रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए स्वयं हमलावर हो गई

"रहुआ पगला गईल बानी दिनभर आलतू फालतू सोचत रहेनी। जाई हमरा के छोड़ी और अपन साली सुगना से मन लगाई। आजू ओकर खूब चुची मिसले बानी अब जाके ओकरा जाँघि में मुह दे दीं"

लाली ने अनजाने में ही राजेश की सोच पर सटीक हमला कर दिया था राजेश हमेशा से सुगना की कोमल बुर की कल्पना किया करता था और उसे चूमने तथा चूसने के लिए अपने दिमाग में योजना बनाया करता था और आज उसकी पत्नी लाली ने खुलकर उसे वह बात कह दी थी।

राजेश से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने लाली की साड़ी और साया (पेटीकोट) को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली की गोरी जांघें राजेश की निगाहों में आ गई. उसकी बुर पनिया चुकी थी। शहर में रहने के कारण लाली अब अपनी बुर को साफ रखने लगी थी। राजेश ने अपनी लाली की बुर को सुगना की बुर मानकर अपने होठों और जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया।

उधर लाली अपने सोनू के बारे में सोचने लगी। उसने सोनू के उस मजबूत लंड को याद करना शुरू कर दिया। उत्तेजना ने लाली को वाचाल बना दिया लाली राजेश को उकसा रही थी उसने कराहती आवाज में कहा

"जीजा जी….. तनी धीरे से …..हां हां असहिं अअअअअअअ ईईईई लाली स्खलित होने वाली थी। कुछ ही देर में लाली की बुर में उसके पति राजेश का ल** आ चुका था और राजेश की कमर हिलने लगी थी।

दोनों पति पत्नी अपने अपने मन में अपनी कामुकता को जीते हुए संभोग सुख का आनंद लेने लगे। राजेश की कमर की रफ्तार बढ़ती गई जब लाली का स्खलन प्रारंभ हो गया तब राजेश ने उसे चूमते हुए सोनू की आवाज में कहा

" दीदी ठीक लागल ह नु"

लाली उत्तेजित तो थी ही उसने राजेश के गाल पर चपत लगाई और बोली

"अपना दीदी से असहिं बात कइल जाला" इतना कहकर उसने राजेश को अपने आलिंगन में ले लिया। राजेश भी उत्तेजित हो गया उसने अपने लंड को लाली की बुर में अंदर तक ठान्स दिया और झड़ते हुए बोला

" ना अपना दीदी के अईसे ना बोलल जाला लेकिन असहिं चोदल जाला।"

वह लाली को चूम रहा था और झड़ रहा था।

आज लाली और राजेश ने अपनी उत्तेजना में एक नया अंश जोड़ लिया था। होली के दिन किया गया यह संभोग उसके लिए यादगार बन गया था। उस रात के बाद सुगना और सोनू के बारे में कामुक बातें करने में उन्हें कोई ग्लानि नहीं होती अपितु वह दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर एक-दूसरे से संभोग सुख लेने लगते। उनके जीवन में सेक्स को लेकर एक नया रोमांच पैदा हो गया था सोनू ने लाली के जीवन में एक नया रंग भर दिया था।

बनारस आकर लाली और राजेश बेहद खुश उन्हें रेलवे की तरफ से एक मध्यम दर्जे का मकान उपलब्ध करा दिया गया जो स्टेशन से बेहद करीब था यह एक संयोग ही था उनका घर सोनू के कालेज से भी ज्यादा दूर न था।

जब जब लाली और राजेश बिस्तर पर होते सुगना का जिक्र हो ना हो सोनू का जिक्र अवश्य होता। उत्तेजित स्त्री के साथ संभोग करने का सुख राजेश बखूबी जानता था। लाली को गर्म करने के लिए उसके हाथ में सोनू का ब्रह्मास्त्र आ चुका था। लाली को अपनी बाहों में लिए वह सोनू की बातें शुरू करता और लाली की जांघों के बीच मदन रस स्वयं ही बहने लगता।

लाली खुद भी यह न समझ पाती उसका आकर्षण दिन पर दिन सोनु के प्रति क्यों बढ़ता जा रहा था। अपने पति की शह पाकर उसकी कल्पना आसमान छूने लगी। वह वह मन ही मन अपनी कल्पनाओं में सोनू के साथ अठखेलियां करती। कभी वह अपनी चूचयों को उसके चेहरे से रगड़ती कभी उसके लंड को अपने हाथों में महसूस करती और कभी कभी अपनी जांघों…. आह…….इसके आगे वह स्वयं शर्म से पानी पानी हो जाती।

वह कैसे सोनू के सामने कैसे नंगी हो सकती है। नहीं नहीं यह संभव नहीं. वह अपने विचारों से स्वयं युद्ध लड़ती और उसकी उंगलियां उसकी उत्तेजना में डूबी बुर से। अंततः विजय उंगलियों की होती और उसकी बुर झड़ने लगती।

लाली और राजेश का वैवाहिक जीवन सोनू और सुगना की वजह से आनंदमय हो चला था।

महानगरी एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे में बैठा रतन अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था। क्यों वह अपना खुशहाल गांव छोड़कर मुंबई गया? जहां वह बबीता जैसी दुष्ट स्त्री के संपर्क में आया.

रतन गांव का एक सीधा साधा पर तेज दिमाग वाला युवक था जो जीवन में उन्नति और प्रगति करना चाहता था. इसी कारण वह साहस कर मुंबई आ गया था पर नियति ने उसे बबीता जैसी सुंदरी के मोह जाल में फंसा दिया और वह उसकी जांघों के बीच बनी अनुपम कलाकृति में खो गया।

शहर की चिकनी चुत ने रतन के जीवन में ऐसे रंग भर दिए जैसे इंद्रधनुष आकाश में भर देता है। इंद्रधनुष की यह सुंदरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। आकाश साफ होते ही इंद्रधनुष गायब हो गया और बबीता का असली चेहरा रतन की आंखों के सामने आ गया। अब उसे बबीता से रत्ती भर भी प्रेम न रहा था। उसे तो अब यह भी शक होता था कि कहीं चिंकी और मिंकी उसकी बेटियां थी या बबीता ने अपने गर्भ में किसी और का पाप पाल रखा था। चिंकी और मिंकी दोनों प्यारी बच्चियां थी जो रतन को पापा पापा बुलातीं। रतन इस बात को नजरअंदाज कर कि वो किस का बीज हैं उन बच्चियों से एक आदर्श पिता की भांति प्यार करता और उनके मोह में बबीता से संबंध बनाए हुए था। पर कब तक?

वैसे भी अब रतन की निगाहों में उसकी पत्नी सुगना आ चुकी थी। उसने मन ही मन सुगना को माफ कर दिया था। उसने यह जानते हुए कि सुगना का पुत्र सूरज लाली के पति राजेश के साथ हुए एक आकस्मिक संभोग की परिणिति थी उसने सूरज को भी अपना लिया था।

मन ही मन रतन ने यह निर्णय ले लिया कि वह सुगना को अपनी पत्नी और सूरज को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा। पर क्या वह बबीता के साथ आगे संबंध जारी रख पाएगा? या वह चिंकी और मिंकी को लेकर बबीता को बिना बताए वापस अपने गांव लौट आएगा?

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे ट्रेन पटरी पर सरपट दौड़ी जा रही थी. ट्रेन का लक्ष्य निर्धारित था। परंतु रतन के मन में हलचल मची हुई थी। वह जिस सुगना के करीब आना चाहता था यह ट्रेन उसे उससे दूर ले जा रही थी।

वह उसी जंजाल में जा रहा था जहां से वह निकलना चाहता था। जितना वह सुगना के करीब आ रहा था उतना ही बबीता से दूर हुआ चला जा रहा था। नियति ने अपनी पटकथा लिख रखी थी रतन एक कठपुतली की भाति उस पर अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

चाय …..चाय …...की कर्कश आवाज डिब्बे में गूंजने लगी. एक मैला कुचेला कपड़ा पहने आदमी एलुमिनियम की केतली में चाय लिए कंपार्टमेंट में आ चुका था। रतन ने अपने विचारों को विराम दिया और ₹5 का पुराना नोट देकर एक कुल्हड़ चाय खरीदी और खिड़की के बाहर तरह तरह के लोगों को देखते हुए चाय पीने लगा। उन लोगों में कुछ बबीता जैसी औरतें थी कुछ सुगना जैसी …..

उधर गांव में कजरी सरयू सिंह के दाग पर हल्दी और दूध लगा रही थी सुगना के साथ हैंड पम्प पर होली मनाने के बाद दाग कुछ और बढ़ गया था।

सरयू सिंह जब उस दाग के बारे में सोचते उन्हें वह दिन याद आ जाता जब उन्होंने पहली बार अपनी बेटी समान बहू की कोमल और कुवारी बुर को अपनी कामुक निगाहों से देखा था। वह अपने बालों से उस दाग को छुपाने का प्रयास करते पर अब उम्र की वजह से बाल भी कम हो रहे थे वह दाग आकार बड़ा चुका था और अब बालों द्वारा छुपाया न जा पा रहा हर व्यक्ति की निगाह उस दाग पर पड़ती और वह सरयू सिंह से उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहता सरयू सिंह न उस दाग के लगने का कारण बता पाते नहीं उसके बढ़ने का। नियति ने उन्हें यह दाग देकर निरुत्तर कर दिया इस दाग का उपाय न तो नीम हकीमों के पास था न डॉक्टर के पास।

जाने सरयू सिंह के भाग्य में क्या लिखा था। सुगना अपनी पायल छम छम बजाते हुए एक हाथ से अपने सूरज को अपनी कमर पर बैठाये हुए और दूसरे हाथ में दूध का गिलास पकड़े अपने बाबू जी के पास आ चुकी थी।उसमें सूरज को अपने बाबू जी की गोद में दिया और फिर दूध का गिलास पकड़ा दिया। सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की चूचियों को देखने लगे कितनी मादक थी सुगना। उनके लंड में फिर हरकत होने लगी उन्होंने अपना ध्यान भटकाया और अपने पुत्र सूरज को खिलाने लगे। बीच-बीच में वह गिलास से उसे दूध पिलाते और बचा हुआ दूध खुद भी पीते।।

उस गिलास और सुगना की चूँची में कोई विशेष अंतर न था आज भी सुगना की चूँची पर सरयू सिंह और सूरज का बराबर का अधिकार था यह अलग बात थी की सरयुसिंह सुगना की चूची से जितना दूध खींचते उससे ज्यादा वीर्य उसकी प्यासी बुर में भर देते और सुगना को तृप्त कर देते।

सिर्फ उस बढ़ते हुए दाग को छोड़कर सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी और सुगना बहू के साथ खुश थे…..

सुगना का जीवन भी बेहद खुशहाल हो चला था पिछले तीन-चार वर्षों से वह अपने बाबू जी से लगातार चुदवा रही थी उसने अपने बाबूजी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी से कामकला के ऐसे ऐसे अनोखे ढंग सीखें थे जो शायद उसे एक नौजवान से प्राप्त न हो पाते।

सुगना ने अपने गर्भवती होने से पहले काम कला का लगभग हर सुख प्राप्त किया था। इसमें जितना सरयू सिंह का योगदान था उतना ही कजरी का।

परंतु उसकी चिंता का एक ही कारण था वह था सरयू सिंह के माथे का दाग। पता नहीं जब भी वह उनसे संभोग करती वह दाग उसे परेशान करता। जब वह सरयू सिंह के साथ संभोग कर रही होती तब भी वह दाग उसका ध्यान आकर्षित करता और उसे सोचने पर मजबूर कर देता। यह भटकाव उसकी उत्तेजना में भी कमी कर देता।

यह एक विडंबना ही थी कि उस विलक्षण कीड़े को न सरयू सिंह देख पाए थे न सुगना। उस समय यदि वह कीड़े को देख लिए होते तो निश्चय ही उसके दंश का कुछ न कुछ उपाय अवश्य कर गए होते। पर उन्होंने उस समय उस दाग को नजरअंदाज कर दिया था। सुगना को भी इस दाग का कोई उपाय न समझ रहा था कभी वह दाग कुछ कम होता कभी बढ़ जाता।

अब कजरी धीरे धीरे अपनी कामुकता को विराम दे रही थी। उसने अपनी बहू को पूर्ण पारंगत कर दिया था और वह उसके कुंवर जी का भरपूर ख्याल रखती कजरी अब सूरज के लालन-पालन में व्यस्त हो चली थी। वह अधिक से अधिक समय सुगना और सरयू सिंह को देती ताकि वह दोनों एक दूसरे के साथ का जी भर कर आनंद ले सकें।

उसे सुगना की कामुकता का अंदाजा था सुगना अभी भरपूर जवान थी उसकी बुर की प्यास सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह बुझा सकते थे… कजरी को यह बात पता थी की सरयू सिंह आज भी सुगना की गोरी और गुदांज गांड के पीछे थे। सुगना उससे हर बात बताती थी। परंतु कजरी और सुगना दोनों यह बात जानती थी कि सरयू सिंह के विशाल लंड को अपनी गांड में लेना तो दूर यह सोच कर भी उन दोनों की रूह कांप जाती थी। आज भी सरयू सिंह का लंड सुगना की चूत में वैसे ही जाता जैसे एक बच्चे के मोजे में कोई युवा अपना पैर घुसा रहा हो।

सुगना बार-बार प्रकृति को धन्यवाद देती जिसने उसके बुर को असीम लचीलापन दिया था जो सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर उसी आत्मीयता और लगाव से पनाह देती थी जैसे उसकी पतली और मुलायम उंगलियों को।

सरजू सिंह की उस निराली इच्छा को पूरा करना अभी न कजरी के बस में था न सुगना के। कजरी ने तो उन्हें दिलासा देते देते अपना जीवन काट लिया था और अब पिछले दो-तीन वर्षों से सुगना उन्हें ललचाए जा रही थी। वह अपनी सुगना और कजरी से बेहद प्यार करते थे उन्होंने कभी उन दोनों पर अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं बनाया था उन्हें पता था यह एक अप्राकृतिक क्रिया थी । पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह का भी और हम आप पाठकों का भी…..

शेष अगले भाग में
बहुत ही बढ़िया और सुंदर अपडेट है
 

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होली के दौरान राजेश और सुगना के बीच बढ़ रही नजदीकियों को सरयू सिंह की पारखी निगाहों ने देख लिया था। वह स्वयं इस कला में माहिर थे। उनकी आंखों के सामने उनकी प्यारी सुगना अपने हम उम्र और युवा राजेश के करीब आ रही थी।

उन्होंने सुगना पर अपना अधिकार कायम रखने के लिए उसके साथ बार-बार और विविध प्रकार से संभोग करने लगे परंतु सुगना बदल रही थी। सरयू सिंह की मुट्ठी से रेत फिसल रही थी। जितनी तेजी से वह अपनी मुट्ठी दबाते रेत उतनी ही तेजी से फिसल कर बाहर आती।

दिन पर दिन वह सुगना के साथ और कामुक होते चले गए कभी-कभी वह दिन में दो बार सुगना की जमकर चुदाई करते सुगना उसका आनंद अवश्य लेती पर जो चुलबुला पन उसे राजेश के सानिध्य और उसके एहसास में मिलता वह अब सरयू सिंह के बस में न था। यद्यपि राजेश और सुगना के बीच अब तक कुछ विशेष ना हुआ था फिर भी वह बाहरी स्पर्श भी सुगना को उत्तेजित कर जाता था। वह उसकी सहेली लाली का पति था यही बात सुनना को ज्यादा उत्तेजित करती थी।

सुगना अब भी सरयू सिंह से उतना ही प्यार करती थी परंतु धीरे धीरे उस प्यार में कामुकता का अंश घट रहा था। इधर सुगना की कामुकता में कमी आ रही थी उधर सरयू सिंह कामुकता के अतिरेक पर थे वह अपनी अति कामुकता से अपनी बहू सुगना के मन में वही आकर्षण जगाना चाह रहे थे जो आज से कुछ वर्षों पहले सुगना के मन में था।

सरयू सिंह का दिया बुझने से पहले फड़फड़ा रहा था। यही हाल उनके लंड का था। लंड का तनाव कम हो रहा था यह तो सुगना की बेहद खूबसूरत और मलाईदार बुर थी जो बूढ़ों के लंड में भी एक हरकत पैदा कर देती थी उस बुर के आकर्षण में सरयू सिंह का लंड अब भी तुरंत खड़ा हो जाता था।

सरयू सिंह नीम हकीम से अपने माथे का दाग तो ठीक न करा सके थे परंतु लंड को और खड़ा करने तथा स्तंभन शक्ति को बढ़ाने के लिए वह कई दवाइयों का सेवन करने लगे थे जिसका परिणाम सुगना को भुगतना पड़ता था वह उसे जरूरत से ज्यादा चोदने लगे थे। सुगना की निर्दोषऔर कोमल जाँघे अब थकने लगी थी। वह वासना के अतिरेक से अब तंग हो चली थी।

वह अपने बाबू जी से अब भी प्यार करती थी और अपना जीवन संवारने के लिए उनके प्रति कृतज्ञ थी पर वह चाह कर भी अपने बाबू जी को इस वासना के दलदल से निकाल नहीं पा रही थी। जब भी वह उनसे दूर होती सरयू सिंह की आंखों में आग्रह देखकर वह उनकी बाहों में चली।

आज भी सुगना नहा कर निकली ही थी तभी सरयू सिंह ने उसे अपनी बाहों में ले लिया उन्होंने पीछे से आकर सुगना की कमर में हाथ डाला और उसे अपने पेट से सटा कर उठा लिया। सुगना के दोनों पैर हवा में हो गये। सुगना ने कहा

"बाबूजी अभी ना राती के".

पर सरयू सिंह कहां मानने वाले थे। शिलाजीत के असर और सुगना की गदरायी जवानी ने उन्हें कामुकता के जाल में जकड़ लिया था। सूरज कजरी के साथ किचन में बैठा हुआ आटे की लोई से खेल रहा था। आंगन में सरयू सिंह उसकी मां को अर्धनग्न अवस्था में अपने सीने से सटाये घुमा रहे थे। कजरी को पता था सुगना चुदने वाली है उसने किचन से आवाज दी

"अपना सुगना बाबू संगे कुछ देर बाद खेल लेब चली पहले खाना खा लीं।" कजरी ने सरयू सिंह को रोकने की कोशिश की

सरयू सिंह कुछ सुनने के मूड में नहीं थे वह सुगना को लिए लिए उसके कमरे में आ गए सुगना अभी उत्तेजित न थी परंतु अपने बाबूजी की इच्छा का मान रखने के लिए वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गई सरयू सिंह ने उसके साये को ऊपर किया और उसके गदराये नितंबों को अनावृत कर दिया।

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सुगना के नितंब पूरी तरह गोल और अत्यंत मादक थे। सुगना अभी अभी नहा कर आई थी और उसकी जांघों पर पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं। उसकी जांघो और शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी। सरयू सिंह ने अपने लंड का सुपाड़ा सुगना की बुर पर सटा दिया।

सुगना ना तो उत्तेजित थी नहीं उसका मन इस कृत्य के लिए तैयार था परंतु वह सरयू सिंह की इच्छा का मान रखते हुए इस अवस्था में आ गई थी। सरयू सिंह ने उसकी जांघों और नितंबों को सह लाया और अपने लंड को सुगना की बुर में घुसाने का प्रयास करने लगे।

सुगना की बुर गीली न थी सरयू सिंह को अपना लंड अंदर डालने में परेशानी हो रही थी परंतु वह तो बेचैन थे। उन्होंने ढेर सारी लार अपने हथेलियों में ली और अपने लंड पर मल दिया। लंड की चिकनाई बढ़ चली थी। सुगना की बुर उनके लंड को और ना रोक पायी।

सुगना की सांसे रुक गई सरयू सिंह का लंड सुगना की नाभि को चूमने लगा। सरयू सिंह ने अपनी बहू की कमर पकड लिया और लगातार धक्के लगाने लगे।

उन्हें यह भ्रम हो गया था कि शायद उनकी उत्तेजना में वह आवेश और नयापन नहीं था जो सुगना युवा मर्दों में खोज रही थी। वह अपने लंड को बेहद तेजी से आगे पीछे कर रहे थे। सुगना इससे उलट परेशान हो रही थी वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहती इसलिए उनकी कामुकता को लगभग सह रही थी।

सरयू सिंह सुगना की बुर से वह सहयोग न पाकर मन ही मन उससे नाराज हो जाते और उनकी चुदाई में प्यार गायब हो जाता। सुगना उनके व्यवहार में आए बदलाव को बखूबी महसूस करती परंतु उनकी उम्र और पुराने संबंधों को ध्यान रखते हुए कोई प्रतिरोध न करती।

सरयू सिंह अब भी सुगना की गुदांज गाड़ के पीछे पड़े हुए थे। डॉगी स्टाइल में सुगना को चोदते समय सुगना की सुंदर गांड उन्हें ललचाती कभी वह फूलती कभी पिचकती। वह केलाइडोस्कोप की भांति अपनी आकृति बदल कर सरयू सिंह को लुभाती। वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाते कभी अपनी उंगलियों में थूक लगाकर अपनी उंगली को थोड़ा अंदर प्रवेश कराते।

सुगना सिहर उठती और बोलती..

"बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

उसे पता था सरयू सिंह उसकी उस गुदांज गांड के पीछे शुरू से ही पड़े थे। उसे अपना वादा याद था परंतु आज भी वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। सरयू सिंह उसे कभी-कभी हंसकर उसे उसका वादा याद दिलाते।

सुगना अपने बाबू जी की यह इच्छा पूरी तो करना चाहती थी पर वह हिम्मत न जुटा पाती थी। सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। सुगना ना चाहते हुए भी स्खलित होने को तैयार हो गई थी। आज भी सरयू सिंह के लंड में जादू कायम था। कुछ देर की चुदाई में सुगना की बुर सुगना की बात न मानकर स्खलन के लिए तैयार हो गई।

सरयू सिंह ने अंततः अपनी बहू के बुर से बह रहे मदन रस को महसूस कर लिया और अपनी चुदाई को और तेज कर दिया। वह हांफ रहे थे।

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"सुगना…….हमार बाबू, ठीक…. लग ता नु" कहते हुए वह अपनी प्यारी बहु को चोद रहे थे। अंततः उन्होंने अपने लंड को पूरी तरह सुगना की स्खलित हो रही बुर में ठान्स दिया। सुगना पहले ही स्खलित हो रही थी उधर सरयू सिंगर की आवाज लहराने लगी। सुगना …...कहते हुए अचानक सरयू सिंह एक कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़े।

उनके लंड से वीर्य उछल उछल कर बह रहा था। सुगना पीछे मुड़ी और अपने बाबुजी को जमीन पर गिरते हुए देख रही थी। सर्विसिंग अपना सीना पकड़े जमीन पर पड़े कराह रहे थे

नंगी सुगना ने रोते हुए कजरी को आवाज दी।

"माँ बाबुजी गिर गइले"

कजरी सूरज को गोद मे लिए भागते हुए कमरे में आयी….

अंदर का दृश्य देखकर कजरी की सांसे रुक गई नंग धड़ंग सरयू सिंह जमीन पर अपना सीना पकड़े कराह रहे थे नंगी सुगना उनके चेहरे को हिला कर बाबूजी…. बाबूजी… पुकार रही थी.

शरीर सिंह की का मुंह टेढ़ा हो रहा था कजरी ने कहा

"सुगना बाबू... अपन कपड़ा पहन और जाकर हरिया चाचा के बुला ले आव.."

सुगना ने अपने उपेक्षित पड़े साये से अपनी चुदी हुई बुर को पोछा फिर सरयू सिंह की जाँघों पर गिरा वीर्य पोछकर उसे पहना और कजरी की मदद से सरयू सिंह को लंगोट और धोती पहनायी और आनन फानन में साड़ी लपेट कर हरिया को बुलाने चली गयी।

गाँव के वैद्य की मेहरबानी से सरयू सिंह उठ तो गए पर सुगना और कजरी ने दबाव बनाकर उन्हें शहर इलाज कराने ले आयीं।

नियति ने सरयू सिंह की कामुकता पर विराम लगा लेने की सोच ली थी... आज वह अपनी अति कामुकता की वजह से ही अपनी बहू सुगना को चोदते चोदते गिर पड़े थे। उनकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी।

यह कैसा वासना का अतिरेक था सुगना जैसी सुंदरी की जांघों के बीच जाने कौन सा रत्न छुपा था जिसे सरयू सिंह का लंड बार-बार खोद कर निकालना चाहता पर हर बार उसका गुरुर उन गुफाओं में पानी की भांति बह जाता और सुगना की बुर एक बार फिर उन्हें वही प्रयत्न करने को बाध्य कर देती।

आज उनके माथे का दाग भी बढ़ा हुआ प्रतीत हो रहा था। कभी-कभी तो सुगना को लगता की उसके बाबूजी जब जब उसको अति उत्तेजना से चोदते हैं तभी उनके माथे का दाग बढ़ जाता है। उसका यह वहम उसे अपने बाबू जी से दूर रहने को प्रेरित करता पर सरयू सिंह वह तो सुगना की कमर के नीचे छुपे खजाने के गुलाम थे। उनके हाथ सुगना का एक खजाना तो लग ही चुका था और दूसरे खजाने को प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षारत थे।

बनारस पहुंच कर सरयू सिंह जी को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया डॉक्टर ने उनके शरीर की विधिवत जांच और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कुछ विशेष दवाओं के सेवन की वजह से उनका रक्तचाप आवश्यकता से अधिक बढ़ गया था. यह एक लघु हृदयाघात से कम न था।

डॉक्टर बार-बार सरयू सिंह से उन दवाओं के बारे में पूछता पर सरयू सिंह ने उन दवाओं का नाम डॉक्टर को ना बताएं आखिर वह किस मुंह से डॉक्टर को यह बताते हैं कि उन्होंने शिलाजीत और अन्य कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया है जबकि वह ऐसे सम्मानित पुरुष थे जिसने आज तक विवाह न किया था।

डॉक्टर ने कहा ने 2 दिन यही रहना पड़ेगा आप में से कोई एक व्यक्ति यहां रह सकता है।

हरिया ने कहा

"भौजी तू इनका संगे रुक जा हम सुगना के लाली के यहां ले जा तानी सूरज बाबू के खाए पिए के इंतजाम हो जाए. काल सुबह फेर आइब जा"

हरिया का यह प्रस्ताव सर्वाधिक उचित था पर सरयू सिंह उदास हो गए हॉस्पिटल के कमरे में वह सुगना के साथ की उम्मीद कर रहे थे उन्हें हर वक्त सुगना का साथ पसंद आता था। उनके दिमाग में बार बार यह बात आ रही थी कि सुगना लाली के घर में जाएगी तो राजेश निश्चय ही उनकी बहु सुगना से नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करेगा जो उन्हें कतई गवारा ना था मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने कोई प्रतिकार न किया और सुगना हरिया के साथ कमरे से बाहर जाने लगी सुगना के भरे पूरे नितंब उनकी आंखों के सामने हिलते हुए ओझल हो रहे थे कजरी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की चूतड़ का पीछा करते हुए देख रही थी सुगना के जाते ही उसने कहा

"सुगना के साथ उ सब काम कईल अब छोड़ दी। देखी आज उहे कारण हॉस्पिटल में आवे के परल बा"

सरयू सिंह किसी भी सूरत में यह बात मानने को तैयार न थे कि वह और उनकी मर्दानगी सुगना को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। परंतु आज वह बिस्तर पर पड़े थे और उनके पास कजरी की बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता ना था।

कजरी सरयू सिंह के बिस्तर के बगल में पढ़े लंबे बेंच पर लेट कर ऊँघने लगी.

सरयू सिंह अपने और सुगना के प्रथम मिलन को याद करने लगे…..

कजरी ने जब से सुगना और शरीर सिंह के मिलन का रास्ता बनाया था वह बेहद प्रसन्न थी। सरयू सिंह ने उसकी बात मान कर उसकी राह आसान कर दी थी। दरअसल कजरी को सुगना और सरयू सिंह के बीच पनप रही कामुकता की भनक बिल्कुल न थी. बेचारी कजरी तो सुगना की भावनाओं में बहकर सरयू सिंह के पास चली गई थी। वरना कुछ ही समय में सुगना की कोमल बुर का आकर्षण सरयू सिंह को उसके लहंगे में खींच लाता अद्भुत सुंदरी थी सुगना...अपनी मां पदमा से भी ज्यादा।

सुबह सुगना के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ नववधू वाली लालिमा भी थी। पिछली दोपहर में सरयू सिंह की मजबूत उंगलियों ने उसका कौमार्य हर लिया था। सरयू सिंह की उंगली किसी कमजोर मर्द के लंड से कम नहीं थी। सुगना को अपना कौमार्य खोने का दर्द वैसा महसूस न हुआ था जैसा लंड से चोदने के बाद होता उसके बाबुजी ने मक्खन की मदद से स्खलित होते समय यह शुभ कार्य किया था सुगना खुश थी।

अब सुगना तैयार हो रही थी बीती रात उसकी कोमल उंगलियों ने पहली बार उसकी बुर की अंदरूनी मालिश की थी और सुगना को स्खलित कर दिया था। सुगना को अब अपनी उंगलियां करामातीं लग रही थी। उसने अपनी उनलियों को चूम लिया और अनजाने में ही अपने होंठों से स्वयं के प्रेम रस का स्वाद भी ले लिया।

कजरी की आवाज आयी

" ए सुगना कुँवर जी के दूध दे आवा"

कजरी सुगना को पहले भी बता चुकी थी कि वह सरयू सिंह को बाबूजी की जगह कुंवर जी ही बोला करें। कजरी के अनुसार बाबूजी शब्द पिता पुत्री के बीच का संबोधन है इस संबोधन के साथ चुदना या चोदना दोनों अनुचित होगा। परंतु सुगना के मुंह से हमेशा बाबूजी शब्द ही निकलता। वही हाल शरीर सिंह का था वह अपने मन में सुगना को नग्न करते मन ही मन उसे चोदते उसके साथ सारे नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप करते पर जैसे ही वह सामने आती उसे सुगना बेटा या सुगना बेटी ही बुलाते। सिर्फ सुगना बोलना जैसे उनकी जीभ को गवारा ना था। शुरुआती महीनों में सुगना और सरयू सिंह के बीच बना ससुर बहु का संबंध प्रगाढ़ हो गया था।

यह तो पिछले दो-तीन महीनों में सरयू सिंह और सुगना प्रेम की पाठशाला में पढ़ने लगे थे और दिन पर दिन महारत हासिल करते जा रहे थे।

"बाबूजी दूध ले ली" सुगना ने कहा। अपनी गलती पर उसकी जीभ खुद-ब-खुद दांतो के बीच आ गई।

सरयू सिंह ने दूध पकड़ते वक्त उसका चेहरा देख लिया सुगना ने अपनी नजरें झुका ली. वह अब बाबुजी से शर्माने लगी थी। दूध का गिलास छोड़ते ही सुगना वापस जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा

"सुगना बाबू कोनो दिक्कत नइखे नु, दुखाइल होखे त माफ कर दिह"

वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर रहे थे।

"ना सब ठीक बा" वह मुस्कुराते हुए अपनी पायल बजाते हुए छम छम करती आगन में चली गई. नव योवनाओं की खुशी सरयू सिंह के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी।

तभी अंदर से कजरी की आवाज आई

"सुगना के मायके घुमा ले आयीं दीपावली से पहले अपना मां पदमा से मिल ली"

कजरी ने दीपावली शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था। सरयू सिंह को ऐसा महसूस हुआ जैसे सुगना दीपावली के दिन अपनी चुदाई से पहले अपनी मां से मिलना चाहती हो। यह सच ही था सुगना के लिए वह अवसर एक त्यौहार से कम न था वह अपनी मां से आशीर्वाद चाहती होगी ऐसा उन्होंने अनुमान लगाया।

सुगना मायके जाने के नाम से खुश हो गई थी।

कजरी और सुगना ने मिलकर सुगना के छोटे भाई बहनों के लिए कई सारी मिठाइयां बनाई और अगले दिन सुगना अपने बाबुजी के साथ मायके के लिए निकल पड़ी।

सरयू सिंह जब भी पदमा के बारे में सोचते उनके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ जाती। यद्यपि वह पिछले कई वर्षों से वह पदमा के संपर्क में नहीं आए थे पर उसका नाम सुनकर उनका लंड थिरक उठता।

वह पद्मा को याद करते करते आगे आगे चल रहे थे और पद्मा पुत्री सुगना पीछे पीछे चल रही थी।

आज जब वह सुगना को लेकर पदमा के पास जा रहे थे उन्हें वह दिन याद आ गया जब सुगना पदमा की गोद में थी और पदमा अपने मायके आई हुई थी । सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। पदमा को तांगे से उतरते देखकर ही उनकी आंखों में चमक आ गई। शहर से आई हुई पदमा और खूबसूरत हो गई थी। गोद में सुगना को लिए हुए व नीचे उतर रही थी। आँचल हटते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ का उभार दिखाई दे गया। चूचियाँ सच मे कुछ ज्यादा बड़ी लग रही थीं। बड़ी हो भी क्यों न? उन चूचियों पर चार चार हथेलियो (सरयू सिंह और पद्मा का पति) ने मेहनत की थी। ऊपर से चूँचियों में सुगना के लिए दूध भी भर आया था। सरयू सिंह उन चूँचियों को सोचकर ही मस्त हो गए धोती में लंड फनफनाने लगा।

पदमा का पति लोहे की दो बड़े-बड़े संदूके लिए घर की तरफ आ रहा था। पास पहुंचने पर पद्मा ने अपने सरयू भैया की तरफ देखा और मुस्कुरायी।

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पद्मा ने उनसे बात नहीं की पर आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति प्यार का इजहार हो गया। सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था और लंड का क्या कहना वह तनाव में आ रहा था और पद्मा की जाँघों के बीच खो जाने को बेकरार था।

पदमा का पिछवाड़ा अब सरयू सिंह की निगाह में था। उसके गोरे-गोरे गदराए नितंब लाल रंग की साड़ी में छुपे हुए हिल रहे थे। सुगना अपनी मां के कंधे पर सर रखे हुए सरयू सिंह का को टुकुर टुकुर देख रही थी। कुछ ही देर में पदमा अपने आंगन में चली गई और सरयू सिंह का नयनसुख खत्म हो गया।

"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ" गांव के एक किसान बुधिया ने कहा

सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।।।

शेष अगले भाग में
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Tiger 786

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नियति ने इस होली पर सोनू और लाली के बीच एक आग सुलगा दी थी। ऐसा नहीं था कि उस आग में सिर्फ लाली और सोनू ही झुलस रहे थे। कुछ ऐसी ही स्थिति राजेश की भी थी वह सुगना के प्रति आसक्त हो चुका था। उधर रतन भी सुगना को अपनाने के लिए आतुर था।

त्यौहार खत्म होने के बाद धीरे-धीरे सब अपने अपने घरों को लौट गए। सोनू 12वीं की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण किया था उसे शहर में आगे की पढ़ाई के लिए दाखिला लेना था। सरयू सिंह ने उसकी मदद की और उसका दाखिला शहर (बनारस) के एक अच्छे कालेज में करा दिया।

राजेश का पुश्तैनी घर लाली के गांव से लगभग 10 किलोमीटर दूर था। गांव में अक्सर वैवाहिक संबंध नजदीक के गांव में ही किये जाते हैं ताकि लोग एक दूसरे के सुख दुख में साथ दे सकें।

शहर में रहने की इच्छा गांव के लोगों में धीरे धीरे बलवती हो रही थी गांव के सभी लोग हर आवश्यक कार्य के लिए शहर (बनारस) का मुंह देखते थे चाहे वह स्वास्थ्य सुविधाएं हो या पढ़ाई। कजरी और सुगना जैसी कुछ कामुक महिलाएं भी अपनी साज-सज्जा और अरमानों को पूरा करने के लिए उसी शहर पर आश्रित थी। गांव के लोगों का शहर आना जाना अब सामान्य हो रहा था।

राजेश वर्तमान में मेरठ में नौकरी करता था। राजेश रेलवे में टीटी था। उसका गांव मेरठ से काफी दूर पड़ता था और वह लगातार अपने ट्रांसफर के प्रयास में था ताकि वह अपने गांव के करीब पहुंच जाए।

राजेश के अथक प्रयासों और लक्ष्मी जी की कृपा से उसका ट्रांसफर बनारस हो गया। इस ट्रांसफर में सोनू की भी दुआएं शामिल वह बार-बार अपनी लाली दीदी की कल्पना करता और सोचता की काश लाली दीदी इसी शहर में रहतीं। नियति ने सुगना के भाई सोनू की प्रार्थना सुन ली। सोनू की लाली दीदी उसके शहर बनारस आ रही थी। नियति लाली और सोनू को करीब ला रही थी।

राजेश के ट्रांसफर की खबर जब सरयू सिंह ने कजरी को बताई सुगना भी वहां उपस्थित थी। उसके दिमाग में एक बार लाली और सोनू का चेहरा घूम गया। लाली के शहर आ जाने से हरिया और सरयू सिंह का परिवार खुश हो गया था अब वह लाली से आसानी से मिल सकते थे। और तो और शहर में उनका एक ठिकाना हो गया था।

सोनू को भी लाली के शहर में आने की खबर लग चुकी थी। सोनू की कद काठी लड़कियों को आकर्षित करने के लिए काफी थी पर उसका दिल अभी अपनी लाली दीदी पर अटक गया था। लाली को लेकर सोनू के लंड में हरकत कब से हो रही थी यह कहना तो मुश्किल है पर निश्चय ही वह कुछ दिनों की बात न थी। शायद सोनू ने जब से हस्तमैथुन प्रारंभ किया था उसके ख्वाबों की मलिका लाली ही थी।

राजेश स्वयं इस ट्रांसफर से बेहद प्रसन्न था वह सुगना के करीब आ रहा था और अब तो शहर में आने के पश्चात उसका गांव आना जाना स्वाभाविक रूप से बढ़ सकता था सुगना से उसके मिलन की संभावनाएं बढ़ रही थी इस बार सुगना के साथ होली मनाने के पश्चात उसका साहस बढ़ गया था।

लाली को यह बात पता थी कि राजेश सुगना पर अपनी नजर गड़ाए हुए हैं पर अब लाली ने इसे स्वीकार कर लिया था तीन-चार वर्षों तक राजेश जैसे कामुक व्यक्ति के साथ रहते रहते लाली ने भी थोड़ी कामुकता उधार ले ली थी।

होली के दिन रात में जब राजेश में उसकी चुचियों को दीए की रोशनी में देखा तो चुचियों पर लगे हरे रंग को देखकर वह हैरान रह गया उसने लाली से पूछा

"तहरा चूची प हरियर रंग के लगा देलस हा"

लाली को सब याद था पर उसने अपनी आंखें शर्म से झुका ली और राजेश को अपनी तरफ खींचते हुए बोली

"अब होली में केहू रंग याद राखी"

राजेश ने लाली का सुंदर चेहरा अपने हाथों में ले लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला

"ओह त अपना भाई सोनू से रंग लगववले बाड़ू"

लाली शर्म से पानी पानी हो गई। उसने कोई उत्तर न दिया। राजेश यह बात जानता था की हरा रंग सिर्फ और सिर्फ सोनू के पास था । वह सोनू को लाली के आगे पीछे घूमते कई बार देख चुका था।

क्योंकि राजेश स्वयं एक कामुक व्यक्ति था वह किशोर लड़कों की भावनाएं पूरी तरह समझता था उस अवस्था में वह भी अपनी करीबी महिलाओं की चुचियों पर ध्यान देता तथा उन्हें छूने और मसलने की फिराक में रहता था। राजेश जानता था कि सोनू के मन में लाली के प्रति कामुक भावनाएं आना एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी। लाली को वह दीदी जरूर बोलता था पर यह तो सामाजिक रिश्ते थे वरना लाली जैसी गदरायी माल और सोनू जैसे लड़के के बीच जो कामुकता होनी चाहिए वह स्वाभाविक रूप से अपना रंग दिखा रही थी। राजेश ने लाली को छेड़ना जारी रखा….

"रंग खाली उपरे लगावाले बा के नीचहूँ"

लाली उत्तेजना से सिहर उठी राजेश ने तो यह बात सिर्फ कही थी पर लाली ने सोनू के मजबूत हथेलियों को अपनी बुर पर महसूस कर लिया वह मदहोश होने लगी राजेश की बातें उसे उत्तेजित कर रही थी राजेश चाह भी यही रहा था। लाली अपनी उत्तेजना को छुपाते हुए स्वयं हमलावर हो गई

"रहुआ पगला गईल बानी दिनभर आलतू फालतू सोचत रहेनी। जाई हमरा के छोड़ी और अपन साली सुगना से मन लगाई। आजू ओकर खूब चुची मिसले बानी अब जाके ओकरा जाँघि में मुह दे दीं"

लाली ने अनजाने में ही राजेश की सोच पर सटीक हमला कर दिया था राजेश हमेशा से सुगना की कोमल बुर की कल्पना किया करता था और उसे चूमने तथा चूसने के लिए अपने दिमाग में योजना बनाया करता था और आज उसकी पत्नी लाली ने खुलकर उसे वह बात कह दी थी।

राजेश से अब और बर्दाश्त ना हुआ उसने लाली की साड़ी और साया (पेटीकोट) को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली की गोरी जांघें राजेश की निगाहों में आ गई. उसकी बुर पनिया चुकी थी। शहर में रहने के कारण लाली अब अपनी बुर को साफ रखने लगी थी। राजेश ने अपनी लाली की बुर को सुगना की बुर मानकर अपने होठों और जीभ का कमाल दिखाना शुरू कर दिया।

उधर लाली अपने सोनू के बारे में सोचने लगी। उसने सोनू के उस मजबूत लंड को याद करना शुरू कर दिया। उत्तेजना ने लाली को वाचाल बना दिया लाली राजेश को उकसा रही थी उसने कराहती आवाज में कहा

"जीजा जी….. तनी धीरे से …..हां हां असहिं अअअअअअअ ईईईई लाली स्खलित होने वाली थी। कुछ ही देर में लाली की बुर में उसके पति राजेश का ल** आ चुका था और राजेश की कमर हिलने लगी थी।

दोनों पति पत्नी अपने अपने मन में अपनी कामुकता को जीते हुए संभोग सुख का आनंद लेने लगे। राजेश की कमर की रफ्तार बढ़ती गई जब लाली का स्खलन प्रारंभ हो गया तब राजेश ने उसे चूमते हुए सोनू की आवाज में कहा

" दीदी ठीक लागल ह नु"

लाली उत्तेजित तो थी ही उसने राजेश के गाल पर चपत लगाई और बोली

"अपना दीदी से असहिं बात कइल जाला" इतना कहकर उसने राजेश को अपने आलिंगन में ले लिया। राजेश भी उत्तेजित हो गया उसने अपने लंड को लाली की बुर में अंदर तक ठान्स दिया और झड़ते हुए बोला

" ना अपना दीदी के अईसे ना बोलल जाला लेकिन असहिं चोदल जाला।"

वह लाली को चूम रहा था और झड़ रहा था।

आज लाली और राजेश ने अपनी उत्तेजना में एक नया अंश जोड़ लिया था। होली के दिन किया गया यह संभोग उसके लिए यादगार बन गया था। उस रात के बाद सुगना और सोनू के बारे में कामुक बातें करने में उन्हें कोई ग्लानि नहीं होती अपितु वह दोनों अपनी अपनी उत्तेजना को जागृत कर एक-दूसरे से संभोग सुख लेने लगते। उनके जीवन में सेक्स को लेकर एक नया रोमांच पैदा हो गया था सोनू ने लाली के जीवन में एक नया रंग भर दिया था।

बनारस आकर लाली और राजेश बेहद खुश उन्हें रेलवे की तरफ से एक मध्यम दर्जे का मकान उपलब्ध करा दिया गया जो स्टेशन से बेहद करीब था यह एक संयोग ही था उनका घर सोनू के कालेज से भी ज्यादा दूर न था।

जब जब लाली और राजेश बिस्तर पर होते सुगना का जिक्र हो ना हो सोनू का जिक्र अवश्य होता। उत्तेजित स्त्री के साथ संभोग करने का सुख राजेश बखूबी जानता था। लाली को गर्म करने के लिए उसके हाथ में सोनू का ब्रह्मास्त्र आ चुका था। लाली को अपनी बाहों में लिए वह सोनू की बातें शुरू करता और लाली की जांघों के बीच मदन रस स्वयं ही बहने लगता।

लाली खुद भी यह न समझ पाती उसका आकर्षण दिन पर दिन सोनु के प्रति क्यों बढ़ता जा रहा था। अपने पति की शह पाकर उसकी कल्पना आसमान छूने लगी। वह वह मन ही मन अपनी कल्पनाओं में सोनू के साथ अठखेलियां करती। कभी वह अपनी चूचयों को उसके चेहरे से रगड़ती कभी उसके लंड को अपने हाथों में महसूस करती और कभी कभी अपनी जांघों…. आह…….इसके आगे वह स्वयं शर्म से पानी पानी हो जाती।

वह कैसे सोनू के सामने कैसे नंगी हो सकती है। नहीं नहीं यह संभव नहीं. वह अपने विचारों से स्वयं युद्ध लड़ती और उसकी उंगलियां उसकी उत्तेजना में डूबी बुर से। अंततः विजय उंगलियों की होती और उसकी बुर झड़ने लगती।

लाली और राजेश का वैवाहिक जीवन सोनू और सुगना की वजह से आनंदमय हो चला था।

महानगरी एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे में बैठा रतन अपने भाग्य या दुर्भाग्य के बारे में सोच रहा था। क्यों वह अपना खुशहाल गांव छोड़कर मुंबई गया? जहां वह बबीता जैसी दुष्ट स्त्री के संपर्क में आया.

रतन गांव का एक सीधा साधा पर तेज दिमाग वाला युवक था जो जीवन में उन्नति और प्रगति करना चाहता था. इसी कारण वह साहस कर मुंबई आ गया था पर नियति ने उसे बबीता जैसी सुंदरी के मोह जाल में फंसा दिया और वह उसकी जांघों के बीच बनी अनुपम कलाकृति में खो गया।

शहर की चिकनी चुत ने रतन के जीवन में ऐसे रंग भर दिए जैसे इंद्रधनुष आकाश में भर देता है। इंद्रधनुष की यह सुंदरता ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। आकाश साफ होते ही इंद्रधनुष गायब हो गया और बबीता का असली चेहरा रतन की आंखों के सामने आ गया। अब उसे बबीता से रत्ती भर भी प्रेम न रहा था। उसे तो अब यह भी शक होता था कि कहीं चिंकी और मिंकी उसकी बेटियां थी या बबीता ने अपने गर्भ में किसी और का पाप पाल रखा था। चिंकी और मिंकी दोनों प्यारी बच्चियां थी जो रतन को पापा पापा बुलातीं। रतन इस बात को नजरअंदाज कर कि वो किस का बीज हैं उन बच्चियों से एक आदर्श पिता की भांति प्यार करता और उनके मोह में बबीता से संबंध बनाए हुए था। पर कब तक?

वैसे भी अब रतन की निगाहों में उसकी पत्नी सुगना आ चुकी थी। उसने मन ही मन सुगना को माफ कर दिया था। उसने यह जानते हुए कि सुगना का पुत्र सूरज लाली के पति राजेश के साथ हुए एक आकस्मिक संभोग की परिणिति थी उसने सूरज को भी अपना लिया था।

मन ही मन रतन ने यह निर्णय ले लिया कि वह सुगना को अपनी पत्नी और सूरज को अपने पुत्र के रूप में स्वीकार कर लेगा। पर क्या वह बबीता के साथ आगे संबंध जारी रख पाएगा? या वह चिंकी और मिंकी को लेकर बबीता को बिना बताए वापस अपने गांव लौट आएगा?

उसके मन में तरह-तरह के विचार आ रहे थे ट्रेन पटरी पर सरपट दौड़ी जा रही थी. ट्रेन का लक्ष्य निर्धारित था। परंतु रतन के मन में हलचल मची हुई थी। वह जिस सुगना के करीब आना चाहता था यह ट्रेन उसे उससे दूर ले जा रही थी।

वह उसी जंजाल में जा रहा था जहां से वह निकलना चाहता था। जितना वह सुगना के करीब आ रहा था उतना ही बबीता से दूर हुआ चला जा रहा था। नियति ने अपनी पटकथा लिख रखी थी रतन एक कठपुतली की भाति उस पर अपने कदम बढ़ाए जा रहा था।

चाय …..चाय …...की कर्कश आवाज डिब्बे में गूंजने लगी. एक मैला कुचेला कपड़ा पहने आदमी एलुमिनियम की केतली में चाय लिए कंपार्टमेंट में आ चुका था। रतन ने अपने विचारों को विराम दिया और ₹5 का पुराना नोट देकर एक कुल्हड़ चाय खरीदी और खिड़की के बाहर तरह तरह के लोगों को देखते हुए चाय पीने लगा। उन लोगों में कुछ बबीता जैसी औरतें थी कुछ सुगना जैसी …..

उधर गांव में कजरी सरयू सिंह के दाग पर हल्दी और दूध लगा रही थी सुगना के साथ हैंड पम्प पर होली मनाने के बाद दाग कुछ और बढ़ गया था।

सरयू सिंह जब उस दाग के बारे में सोचते उन्हें वह दिन याद आ जाता जब उन्होंने पहली बार अपनी बेटी समान बहू की कोमल और कुवारी बुर को अपनी कामुक निगाहों से देखा था। वह अपने बालों से उस दाग को छुपाने का प्रयास करते पर अब उम्र की वजह से बाल भी कम हो रहे थे वह दाग आकार बड़ा चुका था और अब बालों द्वारा छुपाया न जा पा रहा हर व्यक्ति की निगाह उस दाग पर पड़ती और वह सरयू सिंह से उसके बारे में जानकारी एकत्रित करना चाहता सरयू सिंह न उस दाग के लगने का कारण बता पाते नहीं उसके बढ़ने का। नियति ने उन्हें यह दाग देकर निरुत्तर कर दिया इस दाग का उपाय न तो नीम हकीमों के पास था न डॉक्टर के पास।

जाने सरयू सिंह के भाग्य में क्या लिखा था। सुगना अपनी पायल छम छम बजाते हुए एक हाथ से अपने सूरज को अपनी कमर पर बैठाये हुए और दूसरे हाथ में दूध का गिलास पकड़े अपने बाबू जी के पास आ चुकी थी।उसमें सूरज को अपने बाबू जी की गोद में दिया और फिर दूध का गिलास पकड़ा दिया। सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की चूचियों को देखने लगे कितनी मादक थी सुगना। उनके लंड में फिर हरकत होने लगी उन्होंने अपना ध्यान भटकाया और अपने पुत्र सूरज को खिलाने लगे। बीच-बीच में वह गिलास से उसे दूध पिलाते और बचा हुआ दूध खुद भी पीते।।

उस गिलास और सुगना की चूँची में कोई विशेष अंतर न था आज भी सुगना की चूँची पर सरयू सिंह और सूरज का बराबर का अधिकार था यह अलग बात थी की सरयुसिंह सुगना की चूची से जितना दूध खींचते उससे ज्यादा वीर्य उसकी प्यासी बुर में भर देते और सुगना को तृप्त कर देते।

सिर्फ उस बढ़ते हुए दाग को छोड़कर सरयू सिंह अपनी कजरी भौजी और सुगना बहू के साथ खुश थे…..

सुगना का जीवन भी बेहद खुशहाल हो चला था पिछले तीन-चार वर्षों से वह अपने बाबू जी से लगातार चुदवा रही थी उसने अपने बाबूजी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी से कामकला के ऐसे ऐसे अनोखे ढंग सीखें थे जो शायद उसे एक नौजवान से प्राप्त न हो पाते।

सुगना ने अपने गर्भवती होने से पहले काम कला का लगभग हर सुख प्राप्त किया था। इसमें जितना सरयू सिंह का योगदान था उतना ही कजरी का।

परंतु उसकी चिंता का एक ही कारण था वह था सरयू सिंह के माथे का दाग। पता नहीं जब भी वह उनसे संभोग करती वह दाग उसे परेशान करता। जब वह सरयू सिंह के साथ संभोग कर रही होती तब भी वह दाग उसका ध्यान आकर्षित करता और उसे सोचने पर मजबूर कर देता। यह भटकाव उसकी उत्तेजना में भी कमी कर देता।

यह एक विडंबना ही थी कि उस विलक्षण कीड़े को न सरयू सिंह देख पाए थे न सुगना। उस समय यदि वह कीड़े को देख लिए होते तो निश्चय ही उसके दंश का कुछ न कुछ उपाय अवश्य कर गए होते। पर उन्होंने उस समय उस दाग को नजरअंदाज कर दिया था। सुगना को भी इस दाग का कोई उपाय न समझ रहा था कभी वह दाग कुछ कम होता कभी बढ़ जाता।

अब कजरी धीरे धीरे अपनी कामुकता को विराम दे रही थी। उसने अपनी बहू को पूर्ण पारंगत कर दिया था और वह उसके कुंवर जी का भरपूर ख्याल रखती कजरी अब सूरज के लालन-पालन में व्यस्त हो चली थी। वह अधिक से अधिक समय सुगना और सरयू सिंह को देती ताकि वह दोनों एक दूसरे के साथ का जी भर कर आनंद ले सकें।

उसे सुगना की कामुकता का अंदाजा था सुगना अभी भरपूर जवान थी उसकी बुर की प्यास सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह बुझा सकते थे… कजरी को यह बात पता थी की सरयू सिंह आज भी सुगना की गोरी और गुदांज गांड के पीछे थे। सुगना उससे हर बात बताती थी। परंतु कजरी और सुगना दोनों यह बात जानती थी कि सरयू सिंह के विशाल लंड को अपनी गांड में लेना तो दूर यह सोच कर भी उन दोनों की रूह कांप जाती थी। आज भी सरयू सिंह का लंड सुगना की चूत में वैसे ही जाता जैसे एक बच्चे के मोजे में कोई युवा अपना पैर घुसा रहा हो।

सुगना बार-बार प्रकृति को धन्यवाद देती जिसने उसके बुर को असीम लचीलापन दिया था जो सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर उसी आत्मीयता और लगाव से पनाह देती थी जैसे उसकी पतली और मुलायम उंगलियों को।

सरजू सिंह की उस निराली इच्छा को पूरा करना अभी न कजरी के बस में था न सुगना के। कजरी ने तो उन्हें दिलासा देते देते अपना जीवन काट लिया था और अब पिछले दो-तीन वर्षों से सुगना उन्हें ललचाए जा रही थी। वह अपनी सुगना और कजरी से बेहद प्यार करते थे उन्होंने कभी उन दोनों पर अनुचित कार्य के लिए दबाव नहीं बनाया था उन्हें पता था यह एक अप्राकृतिक क्रिया थी । पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह का भी और हम आप पाठकों का भी…..

शेष अगले भाग में
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होली के दौरान राजेश और सुगना के बीच बढ़ रही नजदीकियों को सरयू सिंह की पारखी निगाहों ने देख लिया था। वह स्वयं इस कला में माहिर थे। उनकी आंखों के सामने उनकी प्यारी सुगना अपने हम उम्र और युवा राजेश के करीब आ रही थी।

उन्होंने सुगना पर अपना अधिकार कायम रखने के लिए उसके साथ बार-बार और विविध प्रकार से संभोग करने लगे परंतु सुगना बदल रही थी। सरयू सिंह की मुट्ठी से रेत फिसल रही थी। जितनी तेजी से वह अपनी मुट्ठी दबाते रेत उतनी ही तेजी से फिसल कर बाहर आती।

दिन पर दिन वह सुगना के साथ और कामुक होते चले गए कभी-कभी वह दिन में दो बार सुगना की जमकर चुदाई करते सुगना उसका आनंद अवश्य लेती पर जो चुलबुला पन उसे राजेश के सानिध्य और उसके एहसास में मिलता वह अब सरयू सिंह के बस में न था। यद्यपि राजेश और सुगना के बीच अब तक कुछ विशेष ना हुआ था फिर भी वह बाहरी स्पर्श भी सुगना को उत्तेजित कर जाता था। वह उसकी सहेली लाली का पति था यही बात सुनना को ज्यादा उत्तेजित करती थी।

सुगना अब भी सरयू सिंह से उतना ही प्यार करती थी परंतु धीरे धीरे उस प्यार में कामुकता का अंश घट रहा था। इधर सुगना की कामुकता में कमी आ रही थी उधर सरयू सिंह कामुकता के अतिरेक पर थे वह अपनी अति कामुकता से अपनी बहू सुगना के मन में वही आकर्षण जगाना चाह रहे थे जो आज से कुछ वर्षों पहले सुगना के मन में था।

सरयू सिंह का दिया बुझने से पहले फड़फड़ा रहा था। यही हाल उनके लंड का था। लंड का तनाव कम हो रहा था यह तो सुगना की बेहद खूबसूरत और मलाईदार बुर थी जो बूढ़ों के लंड में भी एक हरकत पैदा कर देती थी उस बुर के आकर्षण में सरयू सिंह का लंड अब भी तुरंत खड़ा हो जाता था।

सरयू सिंह नीम हकीम से अपने माथे का दाग तो ठीक न करा सके थे परंतु लंड को और खड़ा करने तथा स्तंभन शक्ति को बढ़ाने के लिए वह कई दवाइयों का सेवन करने लगे थे जिसका परिणाम सुगना को भुगतना पड़ता था वह उसे जरूरत से ज्यादा चोदने लगे थे। सुगना की निर्दोषऔर कोमल जाँघे अब थकने लगी थी। वह वासना के अतिरेक से अब तंग हो चली थी।

वह अपने बाबू जी से अब भी प्यार करती थी और अपना जीवन संवारने के लिए उनके प्रति कृतज्ञ थी पर वह चाह कर भी अपने बाबू जी को इस वासना के दलदल से निकाल नहीं पा रही थी। जब भी वह उनसे दूर होती सरयू सिंह की आंखों में आग्रह देखकर वह उनकी बाहों में चली।

आज भी सुगना नहा कर निकली ही थी तभी सरयू सिंह ने उसे अपनी बाहों में ले लिया उन्होंने पीछे से आकर सुगना की कमर में हाथ डाला और उसे अपने पेट से सटा कर उठा लिया। सुगना के दोनों पैर हवा में हो गये। सुगना ने कहा

"बाबूजी अभी ना राती के".

पर सरयू सिंह कहां मानने वाले थे। शिलाजीत के असर और सुगना की गदरायी जवानी ने उन्हें कामुकता के जाल में जकड़ लिया था। सूरज कजरी के साथ किचन में बैठा हुआ आटे की लोई से खेल रहा था। आंगन में सरयू सिंह उसकी मां को अर्धनग्न अवस्था में अपने सीने से सटाये घुमा रहे थे। कजरी को पता था सुगना चुदने वाली है उसने किचन से आवाज दी

"अपना सुगना बाबू संगे कुछ देर बाद खेल लेब चली पहले खाना खा लीं।" कजरी ने सरयू सिंह को रोकने की कोशिश की

सरयू सिंह कुछ सुनने के मूड में नहीं थे वह सुगना को लिए लिए उसके कमरे में आ गए सुगना अभी उत्तेजित न थी परंतु अपने बाबूजी की इच्छा का मान रखने के लिए वह तुरंत ही डॉगी स्टाइल में आ गई सरयू सिंह ने उसके साये को ऊपर किया और उसके गदराये नितंबों को अनावृत कर दिया।

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सुगना के नितंब पूरी तरह गोल और अत्यंत मादक थे। सुगना अभी अभी नहा कर आई थी और उसकी जांघों पर पानी की बूंदे मोतियों की तरह चमक रही थीं। उसकी जांघो और शरीर से लक्स साबुन की खुशबू आ रही थी। सरयू सिंह ने अपने लंड का सुपाड़ा सुगना की बुर पर सटा दिया।

सुगना ना तो उत्तेजित थी नहीं उसका मन इस कृत्य के लिए तैयार था परंतु वह सरयू सिंह की इच्छा का मान रखते हुए इस अवस्था में आ गई थी। सरयू सिंह ने उसकी जांघों और नितंबों को सह लाया और अपने लंड को सुगना की बुर में घुसाने का प्रयास करने लगे।

सुगना की बुर गीली न थी सरयू सिंह को अपना लंड अंदर डालने में परेशानी हो रही थी परंतु वह तो बेचैन थे। उन्होंने ढेर सारी लार अपने हथेलियों में ली और अपने लंड पर मल दिया। लंड की चिकनाई बढ़ चली थी। सुगना की बुर उनके लंड को और ना रोक पायी।

सुगना की सांसे रुक गई सरयू सिंह का लंड सुगना की नाभि को चूमने लगा। सरयू सिंह ने अपनी बहू की कमर पकड लिया और लगातार धक्के लगाने लगे।

उन्हें यह भ्रम हो गया था कि शायद उनकी उत्तेजना में वह आवेश और नयापन नहीं था जो सुगना युवा मर्दों में खोज रही थी। वह अपने लंड को बेहद तेजी से आगे पीछे कर रहे थे। सुगना इससे उलट परेशान हो रही थी वह उन्हें दुखी नहीं करना चाहती इसलिए उनकी कामुकता को लगभग सह रही थी।

सरयू सिंह सुगना की बुर से वह सहयोग न पाकर मन ही मन उससे नाराज हो जाते और उनकी चुदाई में प्यार गायब हो जाता। सुगना उनके व्यवहार में आए बदलाव को बखूबी महसूस करती परंतु उनकी उम्र और पुराने संबंधों को ध्यान रखते हुए कोई प्रतिरोध न करती।

सरयू सिंह अब भी सुगना की गुदांज गाड़ के पीछे पड़े हुए थे। डॉगी स्टाइल में सुगना को चोदते समय सुगना की सुंदर गांड उन्हें ललचाती कभी वह फूलती कभी पिचकती। वह केलाइडोस्कोप की भांति अपनी आकृति बदल कर सरयू सिंह को लुभाती। वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाते कभी अपनी उंगलियों में थूक लगाकर अपनी उंगली को थोड़ा अंदर प्रवेश कराते।

सुगना सिहर उठती और बोलती..

"बाबू जी तनी धीरे से….. दुखाता"

उसे पता था सरयू सिंह उसकी उस गुदांज गांड के पीछे शुरू से ही पड़े थे। उसे अपना वादा याद था परंतु आज भी वह हिम्मत नहीं जुटा पाती थी। सरयू सिंह उसे कभी-कभी हंसकर उसे उसका वादा याद दिलाते।

सुगना अपने बाबू जी की यह इच्छा पूरी तो करना चाहती थी पर वह हिम्मत न जुटा पाती थी। सरयू सिंह की चुदाई की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। सुगना ना चाहते हुए भी स्खलित होने को तैयार हो गई थी। आज भी सरयू सिंह के लंड में जादू कायम था। कुछ देर की चुदाई में सुगना की बुर सुगना की बात न मानकर स्खलन के लिए तैयार हो गई।

सरयू सिंह ने अंततः अपनी बहू के बुर से बह रहे मदन रस को महसूस कर लिया और अपनी चुदाई को और तेज कर दिया। वह हांफ रहे थे।

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"सुगना…….हमार बाबू, ठीक…. लग ता नु" कहते हुए वह अपनी प्यारी बहु को चोद रहे थे। अंततः उन्होंने अपने लंड को पूरी तरह सुगना की स्खलित हो रही बुर में ठान्स दिया। सुगना पहले ही स्खलित हो रही थी उधर सरयू सिंगर की आवाज लहराने लगी। सुगना …...कहते हुए अचानक सरयू सिंह एक कटे हुए पेड़ की भांति जमीन पर गिर पड़े।

उनके लंड से वीर्य उछल उछल कर बह रहा था। सुगना पीछे मुड़ी और अपने बाबुजी को जमीन पर गिरते हुए देख रही थी। सर्विसिंग अपना सीना पकड़े जमीन पर पड़े कराह रहे थे

नंगी सुगना ने रोते हुए कजरी को आवाज दी।

"माँ बाबुजी गिर गइले"

कजरी सूरज को गोद मे लिए भागते हुए कमरे में आयी….

अंदर का दृश्य देखकर कजरी की सांसे रुक गई नंग धड़ंग सरयू सिंह जमीन पर अपना सीना पकड़े कराह रहे थे नंगी सुगना उनके चेहरे को हिला कर बाबूजी…. बाबूजी… पुकार रही थी.

शरीर सिंह की का मुंह टेढ़ा हो रहा था कजरी ने कहा

"सुगना बाबू... अपन कपड़ा पहन और जाकर हरिया चाचा के बुला ले आव.."

सुगना ने अपने उपेक्षित पड़े साये से अपनी चुदी हुई बुर को पोछा फिर सरयू सिंह की जाँघों पर गिरा वीर्य पोछकर उसे पहना और कजरी की मदद से सरयू सिंह को लंगोट और धोती पहनायी और आनन फानन में साड़ी लपेट कर हरिया को बुलाने चली गयी।

गाँव के वैद्य की मेहरबानी से सरयू सिंह उठ तो गए पर सुगना और कजरी ने दबाव बनाकर उन्हें शहर इलाज कराने ले आयीं।

नियति ने सरयू सिंह की कामुकता पर विराम लगा लेने की सोच ली थी... आज वह अपनी अति कामुकता की वजह से ही अपनी बहू सुगना को चोदते चोदते गिर पड़े थे। उनकी सांस ऊपर नीचे होने लगी थी।

यह कैसा वासना का अतिरेक था सुगना जैसी सुंदरी की जांघों के बीच जाने कौन सा रत्न छुपा था जिसे सरयू सिंह का लंड बार-बार खोद कर निकालना चाहता पर हर बार उसका गुरुर उन गुफाओं में पानी की भांति बह जाता और सुगना की बुर एक बार फिर उन्हें वही प्रयत्न करने को बाध्य कर देती।

आज उनके माथे का दाग भी बढ़ा हुआ प्रतीत हो रहा था। कभी-कभी तो सुगना को लगता की उसके बाबूजी जब जब उसको अति उत्तेजना से चोदते हैं तभी उनके माथे का दाग बढ़ जाता है। उसका यह वहम उसे अपने बाबू जी से दूर रहने को प्रेरित करता पर सरयू सिंह वह तो सुगना की कमर के नीचे छुपे खजाने के गुलाम थे। उनके हाथ सुगना का एक खजाना तो लग ही चुका था और दूसरे खजाने को प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षारत थे।

बनारस पहुंच कर सरयू सिंह जी को हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया गया डॉक्टर ने उनके शरीर की विधिवत जांच और इस निष्कर्ष पर पहुंचा कुछ विशेष दवाओं के सेवन की वजह से उनका रक्तचाप आवश्यकता से अधिक बढ़ गया था. यह एक लघु हृदयाघात से कम न था।

डॉक्टर बार-बार सरयू सिंह से उन दवाओं के बारे में पूछता पर सरयू सिंह ने उन दवाओं का नाम डॉक्टर को ना बताएं आखिर वह किस मुंह से डॉक्टर को यह बताते हैं कि उन्होंने शिलाजीत और अन्य कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया है जबकि वह ऐसे सम्मानित पुरुष थे जिसने आज तक विवाह न किया था।

डॉक्टर ने कहा ने 2 दिन यही रहना पड़ेगा आप में से कोई एक व्यक्ति यहां रह सकता है।

हरिया ने कहा

"भौजी तू इनका संगे रुक जा हम सुगना के लाली के यहां ले जा तानी सूरज बाबू के खाए पिए के इंतजाम हो जाए. काल सुबह फेर आइब जा"

हरिया का यह प्रस्ताव सर्वाधिक उचित था पर सरयू सिंह उदास हो गए हॉस्पिटल के कमरे में वह सुगना के साथ की उम्मीद कर रहे थे उन्हें हर वक्त सुगना का साथ पसंद आता था। उनके दिमाग में बार बार यह बात आ रही थी कि सुगना लाली के घर में जाएगी तो राजेश निश्चय ही उनकी बहु सुगना से नजदीकियां बढ़ाने का प्रयास करेगा जो उन्हें कतई गवारा ना था मौके की नजाकत को देखते हुए उन्होंने कोई प्रतिकार न किया और सुगना हरिया के साथ कमरे से बाहर जाने लगी सुगना के भरे पूरे नितंब उनकी आंखों के सामने हिलते हुए ओझल हो रहे थे कजरी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की चूतड़ का पीछा करते हुए देख रही थी सुगना के जाते ही उसने कहा

"सुगना के साथ उ सब काम कईल अब छोड़ दी। देखी आज उहे कारण हॉस्पिटल में आवे के परल बा"

सरयू सिंह किसी भी सूरत में यह बात मानने को तैयार न थे कि वह और उनकी मर्दानगी सुगना को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। परंतु आज वह बिस्तर पर पड़े थे और उनके पास कजरी की बात मानने के अलावा दूसरा रास्ता ना था।

कजरी सरयू सिंह के बिस्तर के बगल में पढ़े लंबे बेंच पर लेट कर ऊँघने लगी.

सरयू सिंह अपने और सुगना के प्रथम मिलन को याद करने लगे…..

कजरी ने जब से सुगना और शरीर सिंह के मिलन का रास्ता बनाया था वह बेहद प्रसन्न थी। सरयू सिंह ने उसकी बात मान कर उसकी राह आसान कर दी थी। दरअसल कजरी को सुगना और सरयू सिंह के बीच पनप रही कामुकता की भनक बिल्कुल न थी. बेचारी कजरी तो सुगना की भावनाओं में बहकर सरयू सिंह के पास चली गई थी। वरना कुछ ही समय में सुगना की कोमल बुर का आकर्षण सरयू सिंह को उसके लहंगे में खींच लाता अद्भुत सुंदरी थी सुगना...अपनी मां पदमा से भी ज्यादा।

सुबह सुगना के चेहरे पर खुशी के साथ-साथ नववधू वाली लालिमा भी थी। पिछली दोपहर में सरयू सिंह की मजबूत उंगलियों ने उसका कौमार्य हर लिया था। सरयू सिंह की उंगली किसी कमजोर मर्द के लंड से कम नहीं थी। सुगना को अपना कौमार्य खोने का दर्द वैसा महसूस न हुआ था जैसा लंड से चोदने के बाद होता उसके बाबुजी ने मक्खन की मदद से स्खलित होते समय यह शुभ कार्य किया था सुगना खुश थी।

अब सुगना तैयार हो रही थी बीती रात उसकी कोमल उंगलियों ने पहली बार उसकी बुर की अंदरूनी मालिश की थी और सुगना को स्खलित कर दिया था। सुगना को अब अपनी उंगलियां करामातीं लग रही थी। उसने अपनी उनलियों को चूम लिया और अनजाने में ही अपने होंठों से स्वयं के प्रेम रस का स्वाद भी ले लिया।

कजरी की आवाज आयी

" ए सुगना कुँवर जी के दूध दे आवा"

कजरी सुगना को पहले भी बता चुकी थी कि वह सरयू सिंह को बाबूजी की जगह कुंवर जी ही बोला करें। कजरी के अनुसार बाबूजी शब्द पिता पुत्री के बीच का संबोधन है इस संबोधन के साथ चुदना या चोदना दोनों अनुचित होगा। परंतु सुगना के मुंह से हमेशा बाबूजी शब्द ही निकलता। वही हाल शरीर सिंह का था वह अपने मन में सुगना को नग्न करते मन ही मन उसे चोदते उसके साथ सारे नैतिक और अनैतिक क्रियाकलाप करते पर जैसे ही वह सामने आती उसे सुगना बेटा या सुगना बेटी ही बुलाते। सिर्फ सुगना बोलना जैसे उनकी जीभ को गवारा ना था। शुरुआती महीनों में सुगना और सरयू सिंह के बीच बना ससुर बहु का संबंध प्रगाढ़ हो गया था।

यह तो पिछले दो-तीन महीनों में सरयू सिंह और सुगना प्रेम की पाठशाला में पढ़ने लगे थे और दिन पर दिन महारत हासिल करते जा रहे थे।

"बाबूजी दूध ले ली" सुगना ने कहा। अपनी गलती पर उसकी जीभ खुद-ब-खुद दांतो के बीच आ गई।

सरयू सिंह ने दूध पकड़ते वक्त उसका चेहरा देख लिया सुगना ने अपनी नजरें झुका ली. वह अब बाबुजी से शर्माने लगी थी। दूध का गिलास छोड़ते ही सुगना वापस जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा

"सुगना बाबू कोनो दिक्कत नइखे नु, दुखाइल होखे त माफ कर दिह"

वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर रहे थे।

"ना सब ठीक बा" वह मुस्कुराते हुए अपनी पायल बजाते हुए छम छम करती आगन में चली गई. नव योवनाओं की खुशी सरयू सिंह के लिए सबसे महत्वपूर्ण थी।

तभी अंदर से कजरी की आवाज आई

"सुगना के मायके घुमा ले आयीं दीपावली से पहले अपना मां पदमा से मिल ली"

कजरी ने दीपावली शब्द पर ज्यादा ही जोर दिया था। सरयू सिंह को ऐसा महसूस हुआ जैसे सुगना दीपावली के दिन अपनी चुदाई से पहले अपनी मां से मिलना चाहती हो। यह सच ही था सुगना के लिए वह अवसर एक त्यौहार से कम न था वह अपनी मां से आशीर्वाद चाहती होगी ऐसा उन्होंने अनुमान लगाया।

सुगना मायके जाने के नाम से खुश हो गई थी।

कजरी और सुगना ने मिलकर सुगना के छोटे भाई बहनों के लिए कई सारी मिठाइयां बनाई और अगले दिन सुगना अपने बाबुजी के साथ मायके के लिए निकल पड़ी।

सरयू सिंह जब भी पदमा के बारे में सोचते उनके शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ जाती। यद्यपि वह पिछले कई वर्षों से वह पदमा के संपर्क में नहीं आए थे पर उसका नाम सुनकर उनका लंड थिरक उठता।

वह पद्मा को याद करते करते आगे आगे चल रहे थे और पद्मा पुत्री सुगना पीछे पीछे चल रही थी।

आज जब वह सुगना को लेकर पदमा के पास जा रहे थे उन्हें वह दिन याद आ गया जब सुगना पदमा की गोद में थी और पदमा अपने मायके आई हुई थी । सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। पदमा को तांगे से उतरते देखकर ही उनकी आंखों में चमक आ गई। शहर से आई हुई पदमा और खूबसूरत हो गई थी। गोद में सुगना को लिए हुए व नीचे उतर रही थी। आँचल हटते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियाँ का उभार दिखाई दे गया। चूचियाँ सच मे कुछ ज्यादा बड़ी लग रही थीं। बड़ी हो भी क्यों न? उन चूचियों पर चार चार हथेलियो (सरयू सिंह और पद्मा का पति) ने मेहनत की थी। ऊपर से चूँचियों में सुगना के लिए दूध भी भर आया था। सरयू सिंह उन चूँचियों को सोचकर ही मस्त हो गए धोती में लंड फनफनाने लगा।

पदमा का पति लोहे की दो बड़े-बड़े संदूके लिए घर की तरफ आ रहा था। पास पहुंचने पर पद्मा ने अपने सरयू भैया की तरफ देखा और मुस्कुरायी।

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पद्मा ने उनसे बात नहीं की पर आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति प्यार का इजहार हो गया। सरयू सिंह का दिल बल्लियों उछल रहा था और लंड का क्या कहना वह तनाव में आ रहा था और पद्मा की जाँघों के बीच खो जाने को बेकरार था।

पदमा का पिछवाड़ा अब सरयू सिंह की निगाह में था। उसके गोरे-गोरे गदराए नितंब लाल रंग की साड़ी में छुपे हुए हिल रहे थे। सुगना अपनी मां के कंधे पर सर रखे हुए सरयू सिंह का को टुकुर टुकुर देख रही थी। कुछ ही देर में पदमा अपने आंगन में चली गई और सरयू सिंह का नयनसुख खत्म हो गया।

"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ" गांव के एक किसान बुधिया ने कहा

सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।।।

शेष अगले भाग में
Saru singh ab umar ke padav pe hai or
Aise mai sughna ka apni hum umar ki tarf akarshan swbavik hai.lagta hai age sugna ki life mai kafi utaar chadav aayenge.
Bohot ummdha storie hai.maaf karna bro
Bech mai padhna chor diya tha storie ko
Abi dobara shuru kiya hai
 

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"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ"गांव के एक किसान बुधिया ने कहा

सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।

"सीतापुर जा तानी हो"

"बहु रानी खाती पालकी ना मिलल हा का?"

"इनके मन रहे पैदल चलेके"

दरअसल पैदल चलने का सुझाव सुगना का ही था वह पालकी में अकेले नहीं जाना चाहती थी। जितना ज्यादा से ज्यादा समय वह अपने बाबुजी के साथ व्यतीत करती उतना ही आनंदित होती जब तक वह गांव के करीब थी.
तब तक सुगना सरयू सिंह के पीछे पीछे चल रही थी. सरयू सिंह अपने गांव से बाहर आ चुके थे और अभी सुगना का गांव आने में कुछ वक्त था बीच का यह रास्ता लगभग एकांत जैसा था सरयू सिंह ने सुगना से कहा "सुगना बाबू तू आगे-आगे चल...अ"

सुगना मासूम लड़की की तरह सरयू सिंह के आगे आगे चलने लगी। दो खेतों के बीच पतली पगडंडी जिस पर बमुश्किल एक आदमी चल पाता है सुगना और शरीर सिंह आगे का सफर तय करने लगे सुगना अपने मदमस्त यौवन के साथ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आगे आगे चलने लगी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की खूबसूरती के दर्शन होने लगे। जैसे-जैसे सुगना के कदम आगे बढ़ते उसकी उभरे हुए नितंब सरयू सिंह का ध्यान खींचते जब कभी वह अपने शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए अपने हाथ उठाती उसकी कोमल बाहें सरयू सिंह को आमंत्रित करती वह सुगना के पीछे पीछे चल रहे थे। और अपनी बहु पदमा के अंग प्रत्यंगो का निरीक्षण कर रहे थे जिन्हें दीपावली के दिन सहलाते और मसलते हुए सुगना को उसके जीवन का पहला संभोग सुख देना था।

सरयू सिंह जी की निगाहों ने अपनी पुत्री समान बहू के वस्त्रों का हरण कर लिया था जैसे-जैसे सरयू सिंह सुगना के नितंबों के बीच अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे उन्हें सुगना के नितंब निर्वस्त्र दिखाई दे रहे थे और उन हिलते हुए मादक नितंबों के बीच सुगना की कोमल गांड की कल्पना कर रहे थे निश्चय ही सुगना अपनी मां पदमा से ज्यादा खूबसूरत थी और हो भी क्यों ना सुगना की कमसिन उमर और गदराई जवानी ऊपर वाले की देन थी।

सुगना को अब तक एहसास हो चुका था कि उसके बाबूजी उसके शरीर को देख कर आनंदित हो रहे हैं । उसने पीछे मुड़कर देखा सरयू सिंह अपनी लंगोट में तन रहे लंड को व्यवस्थित कर रहे थे। सुगना शर्मा गयी।

सुगना और सरयू सिंह बातें करते हुए पदमा के घर पहुंच गए। पदमा का छोटा भाई सोनू कुछ दूर पहले ही गली में खेल रहा था उसने शरीर सिंह और पदमा को आते हुए देख लिया उसकी खुशी की सीमा न रही वह सरयू सिंह और सुगना के पास आने की बजाय भागता हुआ घर गया। शायद उसे अपने घर यह सूचना देना ज्यादा आवश्यक लगा वनस्पत कि वह अपनी बहन सुगना और सरयू सिंह से मिलता।

पदमा खुश हो गई। सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपने गोबर से सने हाथ धोकर सुगना के स्वागत के लिए तैयार हो गयीं। घर पहुंचते ही तीनों बच्चों ने सुगना को घेर लिया गजब का उत्साह था बच्चों में।

सरयू सिंह ने अपना झोला खोला और जो मिठाईयां कजरी और सुगना ने बनाई थी वह बच्चों के सुपुर्द कर दीं। उनके इस कार्य से बच्चों और सरयू सिंह में थोड़ी आत्मीयता बढ़ी।

सोनू ने पूछा

" चाचा कब चलल रहला हा"

सोनू द्वारा सरयू सिंह से जोड़ा गया यह रिश्ता अपेक्षाकृत ज्यादा उचित था। इसने सुगना और सरयू सिंह के बीच चल रहे कामुक प्रेम प्रसंग की ग्लानि को थोड़ा कम कर दिया। सरयू सिंह खुश हो गए। उन्होंने सोनू से खेती किसानी की बातें की और कुछ ही देर में बाद घर के आंगन से सफेद साड़ी में लिपटी हुई पदमा आज कई दिनों बाद उनके नजरों के सामने आ गयी।

सरयू सिंह खुद उस समय लगभग 45 -46 वर्ष के युवा थे पदमा की उम्र भी 42 -43 के आसपास रही होगी. इस उमर में भी पदमा के शरीर का कसाव कजरी जैसा ही था. विधवा होने के बावजूद गांव में लगातार श्रम करने की वजह से वाह अपने शरीर की बनावट को कायम रख पाई थी। सरयू सिंह की निगाहें एक सधे हुए दर्जी की भांति उसके शरीर के उभारों और कटावों का नाप लेने लगीं। तभी पद्मा ने उन्हें गुड़ और पानी पकड़ा दिया। जाने अधेड़ महिलाएं इतनी निश्चिंत क्यों होती है। झुकते समय यदि वह सावधानी ना बरतें तो अपनी चूचियां अनायास ही सामने बैठे पुरुष को दिखा देती हैं।

पद्मा ने भी अनजाने में अपनी गदरायी हुई चूँचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा दिए। पर जैसे सांड के मन मे गाय की जगह बछिया छायी हुई थी वैसे ही सरयू सिंह के मन में सुगना छाई हुई थी। सरयू सिंह ने पदमा की गदरायी हुई चुचियों को नजरअंदाज कर दिया।

अभी एक-दो दिन पहले ही सुगना का कसा हुआ बदन उन्होंने अपने हाथों से हुआ था। छूआ ही क्या उसके शरीर के हर अंग को महसूस किया था तथा अपनी उंगलियों से सुगना की कुंवारी बुर को जी भर कर सहलाया तथा उसका कौमार्य हरण किया था।

पदमा पुरानी रसमलाई थी और सुगना ताजी। इस समय सरयू सिंह की कामुकता पर सुगना एकछत्र राज कर रही थी।

सोनू ने कहा

"चाचा तनी धान में पानी डालकर आव तानी तब तक रउआ आराम कर लीं"

सोनी - मोनी भी खेलने भाग गयीं।

अब घर में सिर्फ सुगना और पदमा ही बचे थे। कुछ देर बाद सुगना भी अपनी सहेलियों से मिलने चली गई।

पद्मा सरयू सिंह के लिए खाना बना रही थी वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी। और संयोग से उसी दिन को याद करने लगी (जिस दिन को रास्ते मे सरयू सिंह याद कर रहे थे) जब वह दूध पीती हुई सुगना को लेकर अपने मायके गई हुई थी।

सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। तांगे से उतरते हुए उसमें सरयू सिंह को देख लिया था और उसकी आंखों में चमक आ गई थी। ऐसा नहीं था कि सिर्फ पद्मा ही खुश हुयी थी सरयू सिंह भी उतना ही खुश थे।

आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति ललक जाग उठी प्रेम छलक उठा। शाम होते होते पदमा सरयू सिंह से मिलने उनके मामा के घर आ गयी। सरयू सिंह ने सुगना को अपनी गोद में ले लिया और अपने जेब से ₹50 निकालकर पद्मा को दिया और बोला "केतना प्यारी बेटी बिया"

सुगना भी उनके साथ खेलने लगी वह उनकी गोद में रच बस गई. वह कभी उनकी मूछें छूती कभी बाल पकड़ती पदमा सुगना को बार-बार रोकती पर सुगना उसे अपना हक मान रही थी।

(निष्ठुर नियति को यह पवित्र प्यार रास न आया था और उसने अगले कुछ सालों में उसने यह परिस्थितियां पैदा कर दी कि अपनी गोद में खिलाई हुई सुगना को सरयू सिंह दीपावली के दिन चोदने जा रहे थे)

कुछ देर खेलने के बाद सुगना पदमा की गोद में चली गई।

उस समय गांव में रामलीला हो रही थी। सारे बुजुर्ग और धर्म कर्म में लिप्त लोग वह रामलीला देखने अवश्य जाया करते थे। पदमा के मां और पिताजी भी वह रामलीला नियमित रूप से देखते थे।

सुगना आज रो रही थी इसलिए पदमा रामलीला देखने न गई उसकी मां ने कहा "बेटा जब सुगना सुत जाई तब आ जाइह" पदमा के घर से उनके माता-पिता को निकलते देख कर सरयू सिंह की आंखें चमकने लगी. उनकी प्रेयसी घर में अकेली थी उसकी रखवाली के लिए सिर्फ और सिर्फ एक छोटी बच्ची थी जो स्वयं उसका ही दूध पी रही थी.

रामलीला का प्रसंग प्रारंभ होते ही लाउड स्पीकर की आवाज गांव में गूंजने लगी सरयू सिंह के कदम पदमा के घर की तरफ बढ़ चले।

कमरे में दिए की रोशनी चल रही थी। पद्मा अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी उसकी चारपाई अपेक्षाकृत बड़ी थी जिस पर दो व्यक्ति आसानी से सो सकते थे। पदमा को सरयू सिंह के कदमों की आहट लग चुकी थी। उसने सरयू सिंह से कहा

"अंगनवा के द्वार में किल्ली लगा दी"

( आगन का दरवाजा बंद करके लॉक कर दीजिए )

सरयू सिंह उल्टे कदमों से एक बार फिर आंगन में गए और अपनी प्रेयसी पदमा के कथन का पालन किया। जैसे ही दरवाजा बंद हुआ उनके दिमाग ने उनकी हथेलियों को निर्देश पारित कर दिया शरीर सिंह की धोती खुल चुकी थी। कुछ ही देर में धोती और लंगोट दोनों पदमा के कमरे में दिखाई पड़ रहे थे पर उनका तनाव में आता हुआ लिंग अभी कुर्ते के पीछे छुपा हुआ था। सरयू सिंह की हथेलियां पदमा की पीठ पर घूमने लगी पद्मा ने खिलखिलाते हुए कहा "तनी धीरज धरी सुगना के सूत जाए दी"

पर सरयू सिंह अधीर हो चले थे। दीए की रोशनी में पदमा की बेदाग पीठ चमक रही थी। रीड की हड्डी का भाग दबा हुआ था साड़ी सरक पर नितंबों तक आ चुकी थी। सरयू सिंह के हाथ पदमा की पीठ पर रेंगते हुए उसकी चूचियो तक पहुंच गए।

पद्मा बाई करवट लेटी हुई थी और आगे की तरफ झुक कर अपनी दाहिनी चूची सुगना को पिला रही थी जिससे वह लगभग पेट के बल लेटी हुई प्रतीत हो रही थी। उसकी बाईं चूची पर सुगना का ही अधिकार था। वह अपने छोटे छोटे हाथों से उससे खेल रही थी। सरयू सिंह के हाथ जैसे ही दाहिनी चूची पर गए सुगना ने चूँची छोड़ दी और रोने लगी। पदमा फिर हंसने लगी और बोली "सरयू भैया चूँचियां छोड़ दी ओकरा के पी लेवे दीं रउआ नीचे चल जायीं"

सरयू सिंह को तो जैसे जन्नत मिल गई वह तो पदमा का चुचियों का रस लेने गए थे उन्हें पदमा के गोल नितंबों को छूने का विधिवत आमंत्रण मिल चुका था। उनकी हथेलियां चूँची को छोड़कर वापस पीठ पर आ गयीं और धीरे-धीरे पदमा के कोमल और गोल नितंबों की तरफ बढ़ने लगीं।

नितंबों की दरार आते आते सरयू सिंह की उंगलियां पेटीकोट का नाड़ा खोज रही थी पर वह दिखाई न पढ़ रहा था। कुछ ही देर में उनके हाथ में पदमा के नितंब आ गए वह पेटीकोट न पाकर थोड़ा आश्चर्यचकित थे पर जैसे ही उनके हाथ आगे बढ़े साड़ी की गांठ खुल गयी और एक पल के लिए उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे साड़ी द्वारा लगाया जा रहा प्रतिरोध पूरी तरह खत्म हो गया। साड़ी एक पतली चादर की भांति हटती गई पदमा के गोर और मादक नितंब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से उसे सहलाना शुरु कर दिया।

कभी वह उन्हें फैलाते कभी आपस में सटा देते। उन्हें पदमा की गोरी और ग़दरायी गांड उन्हें दिखाई देने लगी। अद्भुत थी पदमा। सरयू सिंह की उंगलियां और आगे बढ़ती गई। और वह उनकी पसंदीदा जगह पर पहुंच गई। पदमा की बूर पनिया चुकी थी। उनकी उंगलियों में लिसलिसा मदन रस लग गया। सरयू सिंह प्रसन्न हो गए पदमा पहले से ही उत्तेजित थी। उनके लंड का पदमा की बुर मिलन शीघ्र होने वाला था। उन्होंने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार दिया और पदमा के बगल में आकर लेट गये। सुगना अभी भी चूँची पी रही थी।

सरयू सिंह के प्यासे लंड ने अपना रास्ता खोज लिया। पदमा ने भी अपने दोनों पैर अपने पेट की तरफ लाकर अपनी बुर को सरयू सिंह के लंड के सामने ला दिया।

पद्मा के सरयू भैया का मूसल उसकी ओखली में प्रवेश कर गया। गजब चिपचिपी थी पदमा की बुर। सुगना के जन्म के बाद भी उसका कसाव कायम था। सरयू सिंह अपनी कमर हिलाने लगे। वह चारपाई पालना बन गई छोटी बच्ची सुगना पालना झूलते झूलते पदमा का दूध पी रही थी और पदमा की बुर सरयू सिंह के अंडकोष में दही के उत्पादन को बढ़ावा दे रही थी। कुछ ही देर में सुगना नींद में चली गई थी।

अब पदमा निश्चिंत थी वह चारपाई से उठ खड़ी हुई सरयू सिंह का लंड पूरी तरह खड़ा था और उछल रहा था पदमा की बुर से रिस रहा चिपचिपा मदन रस उस पर एक आवरण की तरह लिपटा हुआ था। पदमा जैसे ही चारपाई से उतर कर खड़ी हुई उसकी साड़ी जमीन पर आ गयी।

दीए की रोशनी में अपनी नंगी और गदरायी पद्मा को देखकर सरयू सिंह मदहोश हो गए। जांघों के बीच बीच फूली हुयी बुर चमक रही थी कुछ ही देर की चुदाई में उसका मुंह खुल गया था। बुर की फांके अलग-अलग थीं जिन पर प्रेम रस सना हुआ था। होठों के बीच से बुर का गुलाबी मुख दिखाई पड़ रहा था। पदमा ने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ाएं पर सरयू सिंह ने रोक दिया।

" बस 2 मिनट जी भर कर देख लेवे द जाने फेर कब मिलबु"

पदमा शर्मा गई उसने अपनी आंखें बंद कर ली पर अपने सरयू भैया के लिए अपना सारा खजाना खोल दिया सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मस्त हो गए।

चारपाई की पाठ पर बैठकर पदमा को अपने पास खींच लिया और पदमा की पीठ को अपने सीने से हटा लिया।पदमा अभी भी खड़ी थी उसकी जांघों के बीच से सरयू सिंह का चिपचिपा लंड निकलकर पदमा को छूने का खुला आमंत्रण दे रहा था।

लंड का सुपाड़ा सच में बहुत आकर्षक लग रहा था दीए की रोशनी में वह चमक रहा था। पद्मा ने अपने हाथ नीचे किए और अपने छोटे कोमल हथेलियों में उस जादुई लट्टू को पकड़ लिया। जैसे ही लंड पर पदमा के हाथ लगे वह उछलकर उसकी बुर की तरफ बढ़ने लगा। वह बार-बार उसे नीचे करती पर सरयू सिंह का लंड मजबूत था वह पदमा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल रहा था। वह बुर में समा जाने को बेताब था।

जिस तरह एक मदमस्त नाग सपेरे की पकड़ में आने के बावजूद अपना तनाव लगातार बनाए रखता है उसी प्रकार सरयू सिंह का लंड पद्मा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल कर बुर में घुस जाने को बेताब था। पदमा हंस रही थी उसने कहा "संरयु भैया ई त पकड़ में आवते नईखे"

सरयू सिंह ने पदमा की चूचियां सहलायीं और उसकी कमर को नीचे की तरफ आने का इशारा किया और कहा

"जायेदा तू आराम से बैठा उ अपन रास्ता खोज ली"

ठीक वैसा ही हुआ पदमा उनकी गोद में बैठ रही थी और लंड अपना रास्ता खोजता हुआ बुर के मुहाने पर पहुंच गया। जैसे-जैसे पदमा अपना वजन छोड़ती गई उसकी पनियाई बुर एक बार फिर से भर गई। पदमा के पैर जमीन के ऊपर आ चुके थे। लंड नाभि को चूम रहा था। पदमा पूरी तरह भरी हुई महसूस हो रही थी। सरयू सिंह ने थोड़ी देर उसकी चूचियां सहलायीं और फिर अपने हाथों और पैरों का उपयोग कर पदमा को अपनी गोद में ऊपर नीचे करने लगे। जैसे जैसे पदमा ऊपर नीचे हो रही थी सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। अद्भुत आनंद में डूबे दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे में खोने लगे। कुछ देर इसी अवस्था में पदमा को चोदने के बाद उन्होंने पदमा की अवस्था बदल अब भी पदमा उनकी गोद में ही थी पर उसका चेहरा सरयू सिंह की तरफ था।

शर्म से लाल पद्मा के चेहरे को देखकर सरयू सिंह उसे चूमने लगे। उसके होठों पर अपनी जीभ फिराते हुए वह आनंद लेने लगे। पद्मा ने भी अपने होंठ खोल कर अपनी जीभ को बाहर निकाल लिया। दोनों छोटी तलवारे एक दूसरे में उलझ पड़ी। कभी पदमा की जीभ सरयू सिंह के मुह में प्रवेश कर जाती कभी सरयू सिंह की जीभ पद्मा में।

ऊपर के इस छोटे प्रेम युद्ध ने सरयू सिंह के लंड की रफ्तार बढ़ा दी उसे जैसे इशारा मिल रहा था। जितना प्यार सरयू सिंह और पदमा के होंठ एक दूसरे से कर रहे थे पदमा की बुर में लंड का आवागमन उतना ही तेज हो रहा था।

पदमा की दूध से भरी फूली हुई चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटकर सपाट हो रहीं थी उसके निप्पल ओं से दूध रिस रहा था जो शरीर से के पेट से होता हुआ उनके लंड तक पहुंच रहा था।

एक बार फिर तूफान रफ्तार पकड़ रहा था पदमा की जाँघे तनने लगी। सरयू सिंह उसके होठों को चूमे जा रहे थे। उनकी हथेलियां पदमा के दोनों नितंबों को सहलाए जा रहीं थीं और दोनों ही हाथों की मध्यमा उंगली पदमा की गांड को छूने में होड़ लगा रही थीं। जब जब पदमा की गांड पर सरयू सिंह की उंगलियां घूमती पद्मा सिहर उठती पर उसकी उत्तेजना में चार चांद लग जाते। पद्मा से अब और बर्दाश्त न हुआ वह स्खलित होने लगी। वह उनसे अमरबेल की भांति लिपट चुकी थी। वह अपनी चूँचियां उनके सीने से रगड़ रही थी। कुछ ही देर में पद्मा स्खलित होकर शांत हो गई पर सरयू सिंह का लंड इतनी जल्दी पानी छोड़ने के मूड में नहीं था।

पदमा कोमलंगी थी उसे इस अद्भुत लंड का साथ पाकर झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता था वह उनके प्यार से अभिभूत हो जाती थी। पदमा शांत हो चुकी थी और अपनी तेज चल रही सांसो को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी। उससे अपनी कमर और नहीं हिलाई जा रही थी। सरयू सिंह उसे चूमे जा रहे थे और उसके स्खलन को आनंददायक बना रहे थे।

पदमा अगले कदम के बारे में सोच रही थी उसकी कोमल बुर इस अद्भुत चुदाई के बाद संवेदनशील हो चुकी थी वह सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर प्रवेश देने में अक्षम थी ठीक उसी प्रकार जिस तरह बारात में जी भर कर मिठाई खाकर पानी पी लेने के पश्चात दोबारा मिठाई खाने की हिम्मत नहीं होती वही हाल पद्मा की बुर का हो चुका था वह अपनी जी भर कर चुदाई करा चुकी थी और अब कुछ देर शांत रहना चाहती थी। सरयू सिंह अपना लंड लिए पदमा के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे।

तभी सुगना रोने लगी पद्मा ने लोटे से पानी निकाला अपनी चूचियां पर पानी का छींटा मारा सरयू भैया के कुर्ते से उसे पोछा और सुगना को दूध पिलाने लगी।

सरयू सिंह पदमा के चूतड़ों पर अपना लंड रगड़ रहे थे उन्हें पता था अभी बुर के अंदर लंड प्रवेश करा पाना उचित नहीं था पर वह अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए पदमा के गोल नितंबों से खेलने लगे। अचानक ही पदमा डॉगी स्टाइल में आ गई। सुगना पदमा के पेट के ठीक नीचे थी और अपना सिर ऊपर कर उनकी चूचियां पी रही थी सरयू सिंह को यह समझ नहीं आया।

पदमा को इस मादक अवस्था में देखकर उन्होंने तुरंत ही अपना लंड उसकी बुर में ठाँस दिया पदमा आगे की तरफ झुक गई सुगना के मुंह में फंसी उसकी चूची छूट गई सुगना फिर रोने लगी सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया।

इस अवस्था में वह अपनी प्यारी पदमा को चोदने को लालायित थे पर सुगना उनका खेल बिगाड़ रही थी वह छोटी सी बच्ची अनजाने में ही सरयू सिंह को सता रही थी।

(नियति का खेल निराला था जो सुगना अनजाने में सरयू सिंह को सता रही थी वही 2 दिनों बाद उसी निराले लंड से स्वयं चुदने जा रही थी)

जैसे ही उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला तभी पद्मा ने कहा "सरयू भैया आगे आ जाई" सरयू सिंह पदमा के चेहरे की तरफ चले गए। पदमा सुगना को दूध पिलाती रही और एक हाथ से उनका लंड सहलाने लगी। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्होंने अपना लंड पदमा के होठों से छुवाने की कोशिश की। पदमा शहर जाने के बाद पुरुषों का यह आदत बखूबी जानती थी। उसका फौजी पति भी इस सुख का कायल था। पदमा में अपने प्रेमी सरयू भैया को वह सुख देने की सोची और अपने होठों से उनके लंड का सुपाड़ा छूने लगी।

सरयू सिंह की उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई यह पहला अवसर था जब किसी स्त्री ने उनके लंड को अपने होठों से छुआ था। सरयू सिंह के हाथ पदमा के सिर के ऊपर आ गए वह उसके कोमल बालों से खेलने लगे। पदमा ने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर ले लिया।

उधर सुगना पदमा की चूचियां चूस रही थी इधर सुगना की मां पदमा सरयू सिंह का लंड। सरयू सिंह पदमा के प्रति कृतज्ञ हो रहे थे। आज वो जीवन का एक नया सुख पाकर खुश थे। वीर्य धार फूट पड़ी वह पद्मा के होठों को सीचने लगे पदमा को पता था कि यदि उसने अपना मुंह अभी खोला तो वीर्य की धार न सिर्फ पदमा को भीगोएगी अपितु छोटी बच्ची सुगना पर भी पड़ सकती थी जो पदमा को कतई पसंद न था।

पदमा के मुंह में वीर्य का दबाव बढ़ रहा था। पदमा अपने होठों को उनके लंड पर जकड़ी रही। उसका पूरा मुंह भर चुका था। सरयू सिंह की उत्तेजना भी शांत हो चुकी थी। लंड का उछलना खत्म हो चुका था। अब लंड को बाहर आने का समय हो चुका था। उन्होंने अपना ल** धीरे-धीरे पीछे करना शुरू किया और पदमा ने अपने होंठों को सिकोड़ना शुरू किया। जैसे-जैसे पदमा के हॉट सिकुड़ रहे थे उसके मुंह में भरे हुए वीर्य के लिए जगह कम पड़ रही थी।

अंततः जब लंड बाहर आया सुगना के मुंह से वीर्य की धार बह निकली।। पद्मा ने अपना चेहरा नीचे कर दिया और वह वीर तकिए पर गिरने लगा। पदमा के मुंह पर वीर्य की एक परत चढ़ चुकी थी।

अब तक सुगना सो चुकी थी। पदमा एक बार फिर बिस्तर से उतरकर सरयू सिंह के करीब आ गयी उसने सरयू सिंह के पास आकर कहा

" भैया हम का करीं हमार ई ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) हमेशा हार जाले"

सरयू सिंह ने उसे अपने सीने से सता लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले

"लेकिन अब तहरा भीरी इहो बा. अब ना हरबू"

पद्मा उनका इशारा समझ चुकी थी। वो मुस्कुराने लगी।

सरयू सिंह अपनी प्रेमिका के होठों से अपने ही बीर्य को चुराकर उन्होंने उसका स्वाद लिया और भाव विभोर होकर बोले

"पदमा आज तू जीत गईलू हम तोहार दिहल ई सुख कभी ना भूलब तू हमारा से कुछो माग ल"

"ठीक बा माग लेब"

पदमा अपनी तारीफ सुनकर उनसे सटती चली गई। सरयू सिंह अभी भी पदमा के नितंबों को सहलाए जा रहे थे। उनका जी पदमा से कभी नहीं भरता था।

पद्मा रोटी बनाते हुए सोचने लगी कि क्या वह आज सरयू सिंह से अपनी सुगना को गर्भवती करने का वचन मांग ले? क्या यह उचित होगा?


शेष अगले भाग में
Bohot hi erotic update
 

Sanju@

Well-Known Member
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"सरयू भैया कहां चल दिहल… अ"गांव के एक किसान बुधिया ने कहा

सरयू सिंह अपनी यादों से बाहर आये। वो और सुगना चलते चलते गांव के लगभग बाहर आ गए थे।

"सीतापुर जा तानी हो"

"बहु रानी खाती पालकी ना मिलल हा का?"

"इनके मन रहे पैदल चलेके"

दरअसल पैदल चलने का सुझाव सुगना का ही था वह पालकी में अकेले नहीं जाना चाहती थी। जितना ज्यादा से ज्यादा समय वह अपने बाबुजी के साथ व्यतीत करती उतना ही आनंदित होती जब तक वह गांव के करीब थी.
तब तक सुगना सरयू सिंह के पीछे पीछे चल रही थी. सरयू सिंह अपने गांव से बाहर आ चुके थे और अभी सुगना का गांव आने में कुछ वक्त था बीच का यह रास्ता लगभग एकांत जैसा था सरयू सिंह ने सुगना से कहा "सुगना बाबू तू आगे-आगे चल...अ"

सुगना मासूम लड़की की तरह सरयू सिंह के आगे आगे चलने लगी। दो खेतों के बीच पतली पगडंडी जिस पर बमुश्किल एक आदमी चल पाता है सुगना और शरीर सिंह आगे का सफर तय करने लगे सुगना अपने मदमस्त यौवन के साथ सरयू सिंह की निगाहों के सामने आगे आगे चलने लगी सरयू सिंह की निगाहों को सुगना की खूबसूरती के दर्शन होने लगे। जैसे-जैसे सुगना के कदम आगे बढ़ते उसकी उभरे हुए नितंब सरयू सिंह का ध्यान खींचते जब कभी वह अपने शरीर का संतुलन बनाए रखने के लिए अपने हाथ उठाती उसकी कोमल बाहें सरयू सिंह को आमंत्रित करती वह सुगना के पीछे पीछे चल रहे थे। और अपनी बहु पदमा के अंग प्रत्यंगो का निरीक्षण कर रहे थे जिन्हें दीपावली के दिन सहलाते और मसलते हुए सुगना को उसके जीवन का पहला संभोग सुख देना था।

सरयू सिंह जी की निगाहों ने अपनी पुत्री समान बहू के वस्त्रों का हरण कर लिया था जैसे-जैसे सरयू सिंह सुगना के नितंबों के बीच अपना ध्यान केंद्रित कर रहे थे उन्हें सुगना के नितंब निर्वस्त्र दिखाई दे रहे थे और उन हिलते हुए मादक नितंबों के बीच सुगना की कोमल गांड की कल्पना कर रहे थे निश्चय ही सुगना अपनी मां पदमा से ज्यादा खूबसूरत थी और हो भी क्यों ना सुगना की कमसिन उमर और गदराई जवानी ऊपर वाले की देन थी।

सुगना को अब तक एहसास हो चुका था कि उसके बाबूजी उसके शरीर को देख कर आनंदित हो रहे हैं । उसने पीछे मुड़कर देखा सरयू सिंह अपनी लंगोट में तन रहे लंड को व्यवस्थित कर रहे थे। सुगना शर्मा गयी।

सुगना और सरयू सिंह बातें करते हुए पदमा के घर पहुंच गए। पदमा का छोटा भाई सोनू कुछ दूर पहले ही गली में खेल रहा था उसने शरीर सिंह और पदमा को आते हुए देख लिया उसकी खुशी की सीमा न रही वह सरयू सिंह और सुगना के पास आने की बजाय भागता हुआ घर गया। शायद उसे अपने घर यह सूचना देना ज्यादा आवश्यक लगा वनस्पत कि वह अपनी बहन सुगना और सरयू सिंह से मिलता।

पदमा खुश हो गई। सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपने गोबर से सने हाथ धोकर सुगना के स्वागत के लिए तैयार हो गयीं। घर पहुंचते ही तीनों बच्चों ने सुगना को घेर लिया गजब का उत्साह था बच्चों में।

सरयू सिंह ने अपना झोला खोला और जो मिठाईयां कजरी और सुगना ने बनाई थी वह बच्चों के सुपुर्द कर दीं। उनके इस कार्य से बच्चों और सरयू सिंह में थोड़ी आत्मीयता बढ़ी।

सोनू ने पूछा

" चाचा कब चलल रहला हा"

सोनू द्वारा सरयू सिंह से जोड़ा गया यह रिश्ता अपेक्षाकृत ज्यादा उचित था। इसने सुगना और सरयू सिंह के बीच चल रहे कामुक प्रेम प्रसंग की ग्लानि को थोड़ा कम कर दिया। सरयू सिंह खुश हो गए। उन्होंने सोनू से खेती किसानी की बातें की और कुछ ही देर में बाद घर के आंगन से सफेद साड़ी में लिपटी हुई पदमा आज कई दिनों बाद उनके नजरों के सामने आ गयी।

सरयू सिंह खुद उस समय लगभग 45 -46 वर्ष के युवा थे पदमा की उम्र भी 42 -43 के आसपास रही होगी. इस उमर में भी पदमा के शरीर का कसाव कजरी जैसा ही था. विधवा होने के बावजूद गांव में लगातार श्रम करने की वजह से वाह अपने शरीर की बनावट को कायम रख पाई थी। सरयू सिंह की निगाहें एक सधे हुए दर्जी की भांति उसके शरीर के उभारों और कटावों का नाप लेने लगीं। तभी पद्मा ने उन्हें गुड़ और पानी पकड़ा दिया। जाने अधेड़ महिलाएं इतनी निश्चिंत क्यों होती है। झुकते समय यदि वह सावधानी ना बरतें तो अपनी चूचियां अनायास ही सामने बैठे पुरुष को दिखा देती हैं।

पद्मा ने भी अनजाने में अपनी गदरायी हुई चूँचियों के दर्शन सरयू सिंह को करा दिए। पर जैसे सांड के मन मे गाय की जगह बछिया छायी हुई थी वैसे ही सरयू सिंह के मन में सुगना छाई हुई थी। सरयू सिंह ने पदमा की गदरायी हुई चुचियों को नजरअंदाज कर दिया।

अभी एक-दो दिन पहले ही सुगना का कसा हुआ बदन उन्होंने अपने हाथों से हुआ था। छूआ ही क्या उसके शरीर के हर अंग को महसूस किया था तथा अपनी उंगलियों से सुगना की कुंवारी बुर को जी भर कर सहलाया तथा उसका कौमार्य हरण किया था।

पदमा पुरानी रसमलाई थी और सुगना ताजी। इस समय सरयू सिंह की कामुकता पर सुगना एकछत्र राज कर रही थी।

सोनू ने कहा

"चाचा तनी धान में पानी डालकर आव तानी तब तक रउआ आराम कर लीं"

सोनी - मोनी भी खेलने भाग गयीं।

अब घर में सिर्फ सुगना और पदमा ही बचे थे। कुछ देर बाद सुगना भी अपनी सहेलियों से मिलने चली गई।

पद्मा सरयू सिंह के लिए खाना बना रही थी वह सरयू सिंह की यादों में खो गयी। और संयोग से उसी दिन को याद करने लगी (जिस दिन को रास्ते मे सरयू सिंह याद कर रहे थे) जब वह दूध पीती हुई सुगना को लेकर अपने मायके गई हुई थी।

सरयू सिंह भी अपने मामा के यहां पहुंचे हुए थे। तांगे से उतरते हुए उसमें सरयू सिंह को देख लिया था और उसकी आंखों में चमक आ गई थी। ऐसा नहीं था कि सिर्फ पद्मा ही खुश हुयी थी सरयू सिंह भी उतना ही खुश थे।

आंखों ही आंखों में एक दूसरे के प्रति ललक जाग उठी प्रेम छलक उठा। शाम होते होते पदमा सरयू सिंह से मिलने उनके मामा के घर आ गयी। सरयू सिंह ने सुगना को अपनी गोद में ले लिया और अपने जेब से ₹50 निकालकर पद्मा को दिया और बोला "केतना प्यारी बेटी बिया"

सुगना भी उनके साथ खेलने लगी वह उनकी गोद में रच बस गई. वह कभी उनकी मूछें छूती कभी बाल पकड़ती पदमा सुगना को बार-बार रोकती पर सुगना उसे अपना हक मान रही थी।

(निष्ठुर नियति को यह पवित्र प्यार रास न आया था और उसने अगले कुछ सालों में उसने यह परिस्थितियां पैदा कर दी कि अपनी गोद में खिलाई हुई सुगना को सरयू सिंह दीपावली के दिन चोदने जा रहे थे)

कुछ देर खेलने के बाद सुगना पदमा की गोद में चली गई।

उस समय गांव में रामलीला हो रही थी। सारे बुजुर्ग और धर्म कर्म में लिप्त लोग वह रामलीला देखने अवश्य जाया करते थे। पदमा के मां और पिताजी भी वह रामलीला नियमित रूप से देखते थे।

सुगना आज रो रही थी इसलिए पदमा रामलीला देखने न गई उसकी मां ने कहा "बेटा जब सुगना सुत जाई तब आ जाइह" पदमा के घर से उनके माता-पिता को निकलते देख कर सरयू सिंह की आंखें चमकने लगी. उनकी प्रेयसी घर में अकेली थी उसकी रखवाली के लिए सिर्फ और सिर्फ एक छोटी बच्ची थी जो स्वयं उसका ही दूध पी रही थी.

रामलीला का प्रसंग प्रारंभ होते ही लाउड स्पीकर की आवाज गांव में गूंजने लगी सरयू सिंह के कदम पदमा के घर की तरफ बढ़ चले।

कमरे में दिए की रोशनी चल रही थी। पद्मा अपनी चारपाई पर लेटी हुई थी उसकी चारपाई अपेक्षाकृत बड़ी थी जिस पर दो व्यक्ति आसानी से सो सकते थे। पदमा को सरयू सिंह के कदमों की आहट लग चुकी थी। उसने सरयू सिंह से कहा

"अंगनवा के द्वार में किल्ली लगा दी"

( आगन का दरवाजा बंद करके लॉक कर दीजिए )

सरयू सिंह उल्टे कदमों से एक बार फिर आंगन में गए और अपनी प्रेयसी पदमा के कथन का पालन किया। जैसे ही दरवाजा बंद हुआ उनके दिमाग ने उनकी हथेलियों को निर्देश पारित कर दिया शरीर सिंह की धोती खुल चुकी थी। कुछ ही देर में धोती और लंगोट दोनों पदमा के कमरे में दिखाई पड़ रहे थे पर उनका तनाव में आता हुआ लिंग अभी कुर्ते के पीछे छुपा हुआ था। सरयू सिंह की हथेलियां पदमा की पीठ पर घूमने लगी पद्मा ने खिलखिलाते हुए कहा "तनी धीरज धरी सुगना के सूत जाए दी"

पर सरयू सिंह अधीर हो चले थे। दीए की रोशनी में पदमा की बेदाग पीठ चमक रही थी। रीड की हड्डी का भाग दबा हुआ था साड़ी सरक पर नितंबों तक आ चुकी थी। सरयू सिंह के हाथ पदमा की पीठ पर रेंगते हुए उसकी चूचियो तक पहुंच गए।

पद्मा बाई करवट लेटी हुई थी और आगे की तरफ झुक कर अपनी दाहिनी चूची सुगना को पिला रही थी जिससे वह लगभग पेट के बल लेटी हुई प्रतीत हो रही थी। उसकी बाईं चूची पर सुगना का ही अधिकार था। वह अपने छोटे छोटे हाथों से उससे खेल रही थी। सरयू सिंह के हाथ जैसे ही दाहिनी चूची पर गए सुगना ने चूँची छोड़ दी और रोने लगी। पदमा फिर हंसने लगी और बोली "सरयू भैया चूँचियां छोड़ दी ओकरा के पी लेवे दीं रउआ नीचे चल जायीं"

सरयू सिंह को तो जैसे जन्नत मिल गई वह तो पदमा का चुचियों का रस लेने गए थे उन्हें पदमा के गोल नितंबों को छूने का विधिवत आमंत्रण मिल चुका था। उनकी हथेलियां चूँची को छोड़कर वापस पीठ पर आ गयीं और धीरे-धीरे पदमा के कोमल और गोल नितंबों की तरफ बढ़ने लगीं।

नितंबों की दरार आते आते सरयू सिंह की उंगलियां पेटीकोट का नाड़ा खोज रही थी पर वह दिखाई न पढ़ रहा था। कुछ ही देर में उनके हाथ में पदमा के नितंब आ गए वह पेटीकोट न पाकर थोड़ा आश्चर्यचकित थे पर जैसे ही उनके हाथ आगे बढ़े साड़ी की गांठ खुल गयी और एक पल के लिए उन्हें ऐसा महसूस हुआ जैसे साड़ी द्वारा लगाया जा रहा प्रतिरोध पूरी तरह खत्म हो गया। साड़ी एक पतली चादर की भांति हटती गई पदमा के गोर और मादक नितंब उनकी आंखों के ठीक सामने थे। उन्होंने अपनी दोनों हथेलियों से उसे सहलाना शुरु कर दिया।

कभी वह उन्हें फैलाते कभी आपस में सटा देते। उन्हें पदमा की गोरी और ग़दरायी गांड उन्हें दिखाई देने लगी। अद्भुत थी पदमा। सरयू सिंह की उंगलियां और आगे बढ़ती गई। और वह उनकी पसंदीदा जगह पर पहुंच गई। पदमा की बूर पनिया चुकी थी। उनकी उंगलियों में लिसलिसा मदन रस लग गया। सरयू सिंह प्रसन्न हो गए पदमा पहले से ही उत्तेजित थी। उनके लंड का पदमा की बुर मिलन शीघ्र होने वाला था। उन्होंने एक ही झटके में अपना कुर्ता उतार दिया और पदमा के बगल में आकर लेट गये। सुगना अभी भी चूँची पी रही थी।

सरयू सिंह के प्यासे लंड ने अपना रास्ता खोज लिया। पदमा ने भी अपने दोनों पैर अपने पेट की तरफ लाकर अपनी बुर को सरयू सिंह के लंड के सामने ला दिया।

पद्मा के सरयू भैया का मूसल उसकी ओखली में प्रवेश कर गया। गजब चिपचिपी थी पदमा की बुर। सुगना के जन्म के बाद भी उसका कसाव कायम था। सरयू सिंह अपनी कमर हिलाने लगे। वह चारपाई पालना बन गई छोटी बच्ची सुगना पालना झूलते झूलते पदमा का दूध पी रही थी और पदमा की बुर सरयू सिंह के अंडकोष में दही के उत्पादन को बढ़ावा दे रही थी। कुछ ही देर में सुगना नींद में चली गई थी।

अब पदमा निश्चिंत थी वह चारपाई से उठ खड़ी हुई सरयू सिंह का लंड पूरी तरह खड़ा था और उछल रहा था पदमा की बुर से रिस रहा चिपचिपा मदन रस उस पर एक आवरण की तरह लिपटा हुआ था। पदमा जैसे ही चारपाई से उतर कर खड़ी हुई उसकी साड़ी जमीन पर आ गयी।

दीए की रोशनी में अपनी नंगी और गदरायी पद्मा को देखकर सरयू सिंह मदहोश हो गए। जांघों के बीच बीच फूली हुयी बुर चमक रही थी कुछ ही देर की चुदाई में उसका मुंह खुल गया था। बुर की फांके अलग-अलग थीं जिन पर प्रेम रस सना हुआ था। होठों के बीच से बुर का गुलाबी मुख दिखाई पड़ रहा था। पदमा ने अपने कदम उनकी तरफ बढ़ाएं पर सरयू सिंह ने रोक दिया।

" बस 2 मिनट जी भर कर देख लेवे द जाने फेर कब मिलबु"

पदमा शर्मा गई उसने अपनी आंखें बंद कर ली पर अपने सरयू भैया के लिए अपना सारा खजाना खोल दिया सरयू सिंह उस खूबसूरती को देखकर मस्त हो गए।

चारपाई की पाठ पर बैठकर पदमा को अपने पास खींच लिया और पदमा की पीठ को अपने सीने से हटा लिया।पदमा अभी भी खड़ी थी उसकी जांघों के बीच से सरयू सिंह का चिपचिपा लंड निकलकर पदमा को छूने का खुला आमंत्रण दे रहा था।

लंड का सुपाड़ा सच में बहुत आकर्षक लग रहा था दीए की रोशनी में वह चमक रहा था। पद्मा ने अपने हाथ नीचे किए और अपने छोटे कोमल हथेलियों में उस जादुई लट्टू को पकड़ लिया। जैसे ही लंड पर पदमा के हाथ लगे वह उछलकर उसकी बुर की तरफ बढ़ने लगा। वह बार-बार उसे नीचे करती पर सरयू सिंह का लंड मजबूत था वह पदमा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल रहा था। वह बुर में समा जाने को बेताब था।

जिस तरह एक मदमस्त नाग सपेरे की पकड़ में आने के बावजूद अपना तनाव लगातार बनाए रखता है उसी प्रकार सरयू सिंह का लंड पद्मा की हथेलियों को ऊपर की तरफ धकेल कर बुर में घुस जाने को बेताब था। पदमा हंस रही थी उसने कहा "संरयु भैया ई त पकड़ में आवते नईखे"

सरयू सिंह ने पदमा की चूचियां सहलायीं और उसकी कमर को नीचे की तरफ आने का इशारा किया और कहा

"जायेदा तू आराम से बैठा उ अपन रास्ता खोज ली"

ठीक वैसा ही हुआ पदमा उनकी गोद में बैठ रही थी और लंड अपना रास्ता खोजता हुआ बुर के मुहाने पर पहुंच गया। जैसे-जैसे पदमा अपना वजन छोड़ती गई उसकी पनियाई बुर एक बार फिर से भर गई। पदमा के पैर जमीन के ऊपर आ चुके थे। लंड नाभि को चूम रहा था। पदमा पूरी तरह भरी हुई महसूस हो रही थी। सरयू सिंह ने थोड़ी देर उसकी चूचियां सहलायीं और फिर अपने हाथों और पैरों का उपयोग कर पदमा को अपनी गोद में ऊपर नीचे करने लगे। जैसे जैसे पदमा ऊपर नीचे हो रही थी सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। अद्भुत आनंद में डूबे दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे में खोने लगे। कुछ देर इसी अवस्था में पदमा को चोदने के बाद उन्होंने पदमा की अवस्था बदल अब भी पदमा उनकी गोद में ही थी पर उसका चेहरा सरयू सिंह की तरफ था।

शर्म से लाल पद्मा के चेहरे को देखकर सरयू सिंह उसे चूमने लगे। उसके होठों पर अपनी जीभ फिराते हुए वह आनंद लेने लगे। पद्मा ने भी अपने होंठ खोल कर अपनी जीभ को बाहर निकाल लिया। दोनों छोटी तलवारे एक दूसरे में उलझ पड़ी। कभी पदमा की जीभ सरयू सिंह के मुह में प्रवेश कर जाती कभी सरयू सिंह की जीभ पद्मा में।

ऊपर के इस छोटे प्रेम युद्ध ने सरयू सिंह के लंड की रफ्तार बढ़ा दी उसे जैसे इशारा मिल रहा था। जितना प्यार सरयू सिंह और पदमा के होंठ एक दूसरे से कर रहे थे पदमा की बुर में लंड का आवागमन उतना ही तेज हो रहा था।

पदमा की दूध से भरी फूली हुई चूचियां सरयू सिंह के सीने से सटकर सपाट हो रहीं थी उसके निप्पल ओं से दूध रिस रहा था जो शरीर से के पेट से होता हुआ उनके लंड तक पहुंच रहा था।

एक बार फिर तूफान रफ्तार पकड़ रहा था पदमा की जाँघे तनने लगी। सरयू सिंह उसके होठों को चूमे जा रहे थे। उनकी हथेलियां पदमा के दोनों नितंबों को सहलाए जा रहीं थीं और दोनों ही हाथों की मध्यमा उंगली पदमा की गांड को छूने में होड़ लगा रही थीं। जब जब पदमा की गांड पर सरयू सिंह की उंगलियां घूमती पद्मा सिहर उठती पर उसकी उत्तेजना में चार चांद लग जाते। पद्मा से अब और बर्दाश्त न हुआ वह स्खलित होने लगी। वह उनसे अमरबेल की भांति लिपट चुकी थी। वह अपनी चूँचियां उनके सीने से रगड़ रही थी। कुछ ही देर में पद्मा स्खलित होकर शांत हो गई पर सरयू सिंह का लंड इतनी जल्दी पानी छोड़ने के मूड में नहीं था।

पदमा कोमलंगी थी उसे इस अद्भुत लंड का साथ पाकर झड़ने में ज्यादा समय नहीं लगता था वह उनके प्यार से अभिभूत हो जाती थी। पदमा शांत हो चुकी थी और अपनी तेज चल रही सांसो को सामान्य करने की कोशिश कर रही थी। उससे अपनी कमर और नहीं हिलाई जा रही थी। सरयू सिंह उसे चूमे जा रहे थे और उसके स्खलन को आनंददायक बना रहे थे।

पदमा अगले कदम के बारे में सोच रही थी उसकी कोमल बुर इस अद्भुत चुदाई के बाद संवेदनशील हो चुकी थी वह सरयू सिंह के लंड को अपने अंदर प्रवेश देने में अक्षम थी ठीक उसी प्रकार जिस तरह बारात में जी भर कर मिठाई खाकर पानी पी लेने के पश्चात दोबारा मिठाई खाने की हिम्मत नहीं होती वही हाल पद्मा की बुर का हो चुका था वह अपनी जी भर कर चुदाई करा चुकी थी और अब कुछ देर शांत रहना चाहती थी। सरयू सिंह अपना लंड लिए पदमा के अगले कदम का इंतजार कर रहे थे।

तभी सुगना रोने लगी पद्मा ने लोटे से पानी निकाला अपनी चूचियां पर पानी का छींटा मारा सरयू भैया के कुर्ते से उसे पोछा और सुगना को दूध पिलाने लगी।

सरयू सिंह पदमा के चूतड़ों पर अपना लंड रगड़ रहे थे उन्हें पता था अभी बुर के अंदर लंड प्रवेश करा पाना उचित नहीं था पर वह अपनी उत्तेजना कायम रखते हुए पदमा के गोल नितंबों से खेलने लगे। अचानक ही पदमा डॉगी स्टाइल में आ गई। सुगना पदमा के पेट के ठीक नीचे थी और अपना सिर ऊपर कर उनकी चूचियां पी रही थी सरयू सिंह को यह समझ नहीं आया।

पदमा को इस मादक अवस्था में देखकर उन्होंने तुरंत ही अपना लंड उसकी बुर में ठाँस दिया पदमा आगे की तरफ झुक गई सुगना के मुंह में फंसी उसकी चूची छूट गई सुगना फिर रोने लगी सरयू सिंह ने अपना लंड बाहर निकाल लिया।

इस अवस्था में वह अपनी प्यारी पदमा को चोदने को लालायित थे पर सुगना उनका खेल बिगाड़ रही थी वह छोटी सी बच्ची अनजाने में ही सरयू सिंह को सता रही थी।

(नियति का खेल निराला था जो सुगना अनजाने में सरयू सिंह को सता रही थी वही 2 दिनों बाद उसी निराले लंड से स्वयं चुदने जा रही थी)

जैसे ही उन्होंने अपना लंड बाहर निकाला तभी पद्मा ने कहा "सरयू भैया आगे आ जाई" सरयू सिंह पदमा के चेहरे की तरफ चले गए। पदमा सुगना को दूध पिलाती रही और एक हाथ से उनका लंड सहलाने लगी। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्होंने अपना लंड पदमा के होठों से छुवाने की कोशिश की। पदमा शहर जाने के बाद पुरुषों का यह आदत बखूबी जानती थी। उसका फौजी पति भी इस सुख का कायल था। पदमा में अपने प्रेमी सरयू भैया को वह सुख देने की सोची और अपने होठों से उनके लंड का सुपाड़ा छूने लगी।

सरयू सिंह की उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गई यह पहला अवसर था जब किसी स्त्री ने उनके लंड को अपने होठों से छुआ था। सरयू सिंह के हाथ पदमा के सिर के ऊपर आ गए वह उसके कोमल बालों से खेलने लगे। पदमा ने लंड का सुपाड़ा अपने मुंह के भीतर ले लिया।

उधर सुगना पदमा की चूचियां चूस रही थी इधर सुगना की मां पदमा सरयू सिंह का लंड। सरयू सिंह पदमा के प्रति कृतज्ञ हो रहे थे। आज वो जीवन का एक नया सुख पाकर खुश थे। वीर्य धार फूट पड़ी वह पद्मा के होठों को सीचने लगे पदमा को पता था कि यदि उसने अपना मुंह अभी खोला तो वीर्य की धार न सिर्फ पदमा को भीगोएगी अपितु छोटी बच्ची सुगना पर भी पड़ सकती थी जो पदमा को कतई पसंद न था।

पदमा के मुंह में वीर्य का दबाव बढ़ रहा था। पदमा अपने होठों को उनके लंड पर जकड़ी रही। उसका पूरा मुंह भर चुका था। सरयू सिंह की उत्तेजना भी शांत हो चुकी थी। लंड का उछलना खत्म हो चुका था। अब लंड को बाहर आने का समय हो चुका था। उन्होंने अपना ल** धीरे-धीरे पीछे करना शुरू किया और पदमा ने अपने होंठों को सिकोड़ना शुरू किया। जैसे-जैसे पदमा के हॉट सिकुड़ रहे थे उसके मुंह में भरे हुए वीर्य के लिए जगह कम पड़ रही थी।

अंततः जब लंड बाहर आया सुगना के मुंह से वीर्य की धार बह निकली।। पद्मा ने अपना चेहरा नीचे कर दिया और वह वीर तकिए पर गिरने लगा। पदमा के मुंह पर वीर्य की एक परत चढ़ चुकी थी।

अब तक सुगना सो चुकी थी। पदमा एक बार फिर बिस्तर से उतरकर सरयू सिंह के करीब आ गयी उसने सरयू सिंह के पास आकर कहा

" भैया हम का करीं हमार ई ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) हमेशा हार जाले"

सरयू सिंह ने उसे अपने सीने से सता लिया और उसके होंठों को चूमते हुए बोले

"लेकिन अब तहरा भीरी इहो बा. अब ना हरबू"

पद्मा उनका इशारा समझ चुकी थी। वो मुस्कुराने लगी।

सरयू सिंह अपनी प्रेमिका के होठों से अपने ही बीर्य को चुराकर उन्होंने उसका स्वाद लिया और भाव विभोर होकर बोले

"पदमा आज तू जीत गईलू हम तोहार दिहल ई सुख कभी ना भूलब तू हमारा से कुछो माग ल"

"ठीक बा माग लेब"

पदमा अपनी तारीफ सुनकर उनसे सटती चली गई। सरयू सिंह अभी भी पदमा के नितंबों को सहलाए जा रहे थे। उनका जी पदमा से कभी नहीं भरता था।

पद्मा रोटी बनाते हुए सोचने लगी कि क्या वह आज सरयू सिंह से अपनी सुगना को गर्भवती करने का वचन मांग ले? क्या यह उचित होगा?


शेष अगले भाग में
बहुत ही शानदार गरमागरम और सुपर-डूपर कामोत्तेजक अपडेट है भाई :sex:
मजा आ गया :applause::adore:
अगले धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Sanju@

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पदमा अपनी यादों में इतना खो गई थी कि तवे पर रोटी रखी रोटी चल रही थी सुगना वापस आ चुकी थी

"मां कहां भुलाईल बाड़े देख रोटी जरता" पदमा सचेत हो गई।

उस दिन की छोटी सुगना न आज पूर्ण युवा और वयस्क नारी बन चुकी थी और अपनी मां के प्रेमी के साथ दीपावली के दिन संभोग करने जा रहे थी।

सुगना और पदमा आपस में बातें करने लगी। मां और बेटी को आपस में खुलने में ज्यादा वक्त ना लगा सुगना ने अपनी सासू मां कजरी द्वारा कुछ दिन बाद (दीपवली के दिन) आयोजित किये गए प्रथम संभोग के बारे में अपनी मां पदमा को स्पष्ट रूप से बता दिया।

पदमा खुश हो गई पर जैसे ही उसका ध्यान सुगना की कमर पर गया वह थोड़ी डर गई सुगना की कोमल जांघों और उसके बीच उसकी छोटी और कोमल बुर सरयू सिंह के विशाल लंड को अपने आगोश में कैसे ले पाएगी यह सोचकर वह सिहर उठी। उसने यह सब नियति पर छोड़ दिया आखिर उस अवस्था में वह भी सुगना की ही तरह थी कोमल और कमसिन।


कुछ देर बाद हुआ दालान में बैठकर पंखा झलते हुए पद्मा सरयू सिंह को खाना खिलाने लगी। पदमा के मन में यह उत्सुकता कायम थी कि आखिर सरयू सिंह सुगना को चोदने के बारे में क्या सोच रहे होंगे। क्या उन्होंने अपनी बहू सुगना को चोदने का प्रस्ताव यूं ही स्वीकार कर लिया होगा? क्या उनके मन में इस बात का हर्ष होगा या वह ऐसा करने को विवश हो रहे होंगे?

जितना व सरयू सिंह को जानती थी उससे ज्यादा उनके लंड को। सरयू सिंह के मन में चाहे जो चल रहा हो धोती के अंदर वह जादुई लंड सुगना के बुर में जाने के लिए अवश्य उछल रहा होगा इतना पदमा अवश्य जानती थी।

सरयू सिंह मन में कई भाव लिए खाना खा रहे थे। कभी पदमा को देखते कभी रोटी को। वह पदमा को चोदना तो हमेशा से चाहते थे पर इस समय वह सुगना में खोए हुए थे। आखिर पद्मा ने पूछ ही दिया

"कजरी जी मंदिर में मिलल रहली सुगना के दुख के बारे में बतावत रहली"

"हा कुछ त करहीं के परि"

उन्होंने गंभीर मुद्रा में कहा। वह इस बारे में ज्यादा बात करने से बच रहे थे।

आखिर वह यह बात करते भी कैसे जिस लंड से वह पद्मा को चोद चुके थे उसी लंड से उसकी पुत्री को चोदने जा रहे थे।

तभी पद्मा का ध्यान सरयू सिंह के माथे पर कीड़े द्वारा काटे गए निशान पर गया। पद्मा ने पूछा..

"ई कइसे लाग गइल हा"

सरयू सिंह से जवाब देते न बना। वह पदमा से किस मुंह से कहते कि नियति ने यह इनाम उन्हें सुगना की कोमल बुर देखने के उपलक्ष्य में दिया है।

पद्मा ने कहा

"एक बात बोली मानब"

"हा बोल...अ"

"दीपावली के दिन हमार सुगना बेटी के ध्यान राखब बहुत कोमल और सुकवार बीया तनी धीरे धीरे आगे बढ़ब"

सरयू सिंह भावुक हो गए और बोले। उनकी प्रेमिका अपनी बेटी को धीरे धीरे चोदने का आग्रह कर रही थी। पर शायद पदमा को नहीं पता था सरयू सिंह भी सुगना से उतना ही प्यार करते थे जितना पदमा स्वयं यह तो नियति ने साजिश रचकर उनके प्यार में वासना का पुट डाल दिया था और अब वह अपनी प्यारी पुत्री समान बहू को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे।

"तहर बेटी के खुश राखल हमार जिमेवारी बा बाकी सुगना ने पूछ लिह"

सरयू सिंह की बात सुनकर पदमा संतुष्ट हो गई उसे यह बात पता थी कि सरयू सिंह कभी भी स्त्रियों के साथ आक्रामक नहीं होते थे वह उन्हें जी भर कर प्यार करते और मन भर चोदते थे। वह स्वयं उनकी इस कला की प्रत्यक्ष गवाह थी और हमेशा अपनी जाघें खोले उनसे चुदने के लिए तैयार थी।

आज पदमा ने अपनी कामुकता को दवा लिया था वह सुगना के प्रति चिंतित भी थी और मन ही मन सुगना के प्रथम संभोग के सुखद होने की कामना कर रही थी। सरयू सिंह पर उसे पूरा विश्वास था पर उनका जादुई लंड…... पदमा को उसकी करतूतें याद थी।

अपनी जांघों के बीच फंसे सरयू सिंह के लंड को सोचकर वह सिहर उठती। कितना शैतान था वह लंड पदमा की कोमल बुर को जी भर चोदने के बाद भी उसकी प्यास ना बुझती। आखिर पदमा को अपने होठों और नितंबों को भी मैदान में उतारना पड़ता तब जाकर लंड अपने अभिमान का परित्याग करता और वीर्य रस बहाते हुए पदमा के सामने नतमस्तक हो जाता।

पदमा द्वारा बनाया बेहतरीन खाना खाकर बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे वह शाम की कल्पना में डूबे हुए थे उनकी दोनों परियां एक साथ एक ही घर में थी क्या आज उनकी रात गुलजार होगी ? यह प्रश्न मन में लिए हुए वह निद्रा देवी की आगोश में चलें गए।

पदमा आज अपनी सुगना को प्रसन्न देखकर स्वयं भी बेहद खुश थी. सुगना अपनी छोटी बहनों सोनी मोनी के साथ खेल रही थी खेलते समय उसकी उम्र कुछ और भी कम हो गई। पदमा सुगना के बारे में सोच सोच कर कभी घबराती कभी शरमाती और कभी कभी उत्तेजित हो जाती।


सुगना एक पूर्ण युवा नारी थी जो संभोग की प्रतीक्षा में थी नियति ने मिलन का दिन निर्धारित भी कर दिया था पर अभी इस वक्त उसे खेलते देखकर पदमा की ममता जाग उठी वह कैसे अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मर्द के हाथों चुदने के लिए छोड़ सकती थी।

पदमा भावनाओं में खो गई उसने सुगना को अपने पास बुलाया और अपने आलिंगन में ले लिया। सुगना की चूँचीयां अपनी मां की चुचियों से सट गई। सुगना की चूँचियां तनी हुई थी। अभी कल ही सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों ने उसकी चुचियों को नया आकार देने की कोशिश की थी। सुगना ने भी अपनी मां को गले से लगा लिया। सुगना ने पूछा

"का भइल मां?"


पदमा की आंखों में आंसू थे. उसने कहा "कुछ ना बेटा जा खेल.."

पदमा नियति का यह निराला खेल देख रही थी. उसने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह घटित होना था. उसने अपने आप को इसी बात से संतुष्ट कर लिया कि सरयू सिंह निश्चय ही उसके अनुरोध का ख्याल रखेंगे और सुगना के साथ कोई कामवेग में कोई ज्यादती नहीं करेंगे।

वह शाम के खाने की तैयारियों में लग गई

खाना पीना खाने के पश्चात सोनी और मोनी सोने चली गई। पदमा का भाई सोनू भी खेत रखाने ट्यूबवेल पर चला गया घर में पदमा और सुगना रसोई के कार्य निपटा रही थी।

बाहर दालान में सरयू सिंह अपने ख्वाबों में खोए हुए थे। वह आज रात के लिए व्यग्र थे। उनके मन में इस रात के लिए कोई पटकथा तैयार नहीं थी वह कभी सुगना के बारे में सोचते कभी पदमा के। उन दोनों के बारे में सोच कर ही उनका लंड धोती में खड़ा हो चुका था जिसे वह बीच-बीच में थपकीया देकर सुलाने की कोशिश करते पर अपनी भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमिकाओं को आंगन में घूमते और आपस में बातें करते देख कर उनका लंड सोने को तैयार न था। उसे अपनी प्रेमिकाओं की प्रतीक्षा थी।

कहते हैं जब अपनी प्रेमिका को सच्चे दिल से पुकारो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए लग जाती है. आज सरयू सिंह के लंड का सबसे ज्यादा इंतजार सुगना कर रही थी वह अपने बाबू जी से अपने ही घर में मिलने के लिए बेचैन थी।


पद्मा ने उसके मन की बात पढ़ ली और कहा "जा अपना ससुर जी के तेल लगा द, रास्ता चलत चलत थक गईल होइहें"

सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही उसने लकड़ी के चूल्हे पर कड़ाही में तेल गर्म किया और कटोरी में लेकर दालान में आ गई. पद्मा ने आगन से आवाज दी

"सुगना बेटी तेल लगा कर हमारे कोठरी में आ जाइह" सुगना खुशी-खुशी अपने बाबू जी के पास आकर उनके पैरों में तेल लगाने लगी. सरयू सिंह के मजबूत पैरों पर सुगना की कोमल हथेलियां फूल जैसी लग रही थीं फिर भी सुगना की हथेलियों का दबाव उन्हें अच्छा लग रहा था। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियां ऊपर बढ़ती गई लंड मुस्कुराने लगा। जाने क्यों उसे यह प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोमल हथेलियां उसका भी ख्याल रखेंगी.


सुगना स्वयं उस जादुई अंग को अपने हाथों में लेना चाहती थी परंतु दीए की रोशनी में अपने बाबूजी का लंड पकड़ना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नियति ने फिर उसका साथ दिया और एक ठंडी हवा के झोंके ने दिया बुझा दिया पर झरोखे से आ रही चांदनी कमरे को अभी भी थोड़ा प्रकाशमय की हुई थी। सुगना का गोरा चेहरा सरयू सिंह की आंखों में चमक रहा था। सुगना की हथेलियां धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी। सरयू सिंह अपना लंगोट पहले ही खोल चुके थे।

कुछ ही देर में सुगना के तेल से भीगी हुयी हथेलियों ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सिहर उठे। अपनी बहू के हाथ में अपना लंड महसूस कर उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गयी। लंड से रिश्ता हुआ वीर्य सुगना की हथेलियों से छू गया।

सुगना अब चिपचिपे द्रव्य को आसानी से पहचान लेती थी। उसकी हथेलियों ने सरयू सिंह के वीर्य की बूंदों को उनके ही सुपारे पर फैला दिया और अपनी छोटी हथेलियों से उसकी मालिश करने लगी। वह आई तो थी अपने बाबूजी के पैरों की मालिश करने पर अब जो वह कर रही थी वह उसके बाबूजी को भी उतना ही पसंद था जितना खुद उसको।

वह अपनी हथेलियों से कभी उसे नापने की कोशिश करती कभी उसकी गोलाई महसूस करती और कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसे ऊपर नीचे करने लगती। लंड बार-बार उसकी हथेलियों को ऊपर की तरफ खींच रहा था। इस उम्र में भी शरीर सिंह के लंड में जाने इतनी ताकत कहां से रहती थी। सुगना उस लंड से खेलने लगी।

कुछ देर बाद सरयू सिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। सुगना उनके पेट के पास आकर बैठने लगी।

सुगना ने लहंगा पहना हुआ था जैसे ही वह बैठ रही थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से उसके लहंगे को सरकाया और अपनी हथेली को सुगना के नितंबों के नीचे रख दिया। सुगना लगभग उनकी हथेली पर बैठ चुकी थी। अपने कोमल नितंबों के नीचे सरयू सिंह की मजबूत हथेली को पाकर वह आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा कर रही थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की उंगलियां सुगना की बुर की फांकों को सहलाने लगी। सुगना की उत्तेजना बढ़ रही थी सुगना की बुर ने सरयू सिंह की उंगलियों को अपने मदन रस से भिगो दिया। सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की कोमल बुर के अंदर एक बार फिर प्रवेश कर गई।


सुगना आनंद में डूब रही थी जितना आनंद उसे अपने लहंगे के नीचे प्राप्त हो रहा था वह प्रत्युत्तर में उतना ही आनंद सरयू सिंह के लंड को सहला कर उन्हें प्रदान कर रही थी।

सरयू सिंह भी दोहरे आनंद में डूबे हुए थे एक तरफ उनकी हथेलियों को सुगना की कोमल बुर् का स्पर्श मिल रहा था जिसकी संवेदना उनके दिमाग तक भी जा रही थी उसी संवेदना लंड तन जा रहा था। उधर सुगना की हथेलियां उसे और उत्तेजित कर रही थीं। कुछ ही देर में सुगना की कोमल हथेलियों ने सरयू सिंह के लंड की अकड़ ढीली कर दी।

सुकुमारी सुगना के प्रयासों से लंड से वीर्य प्रवाह होने लगा वीर्य की धार उछल कर सुगना के गाल पर जा पड़ी। उछलते समय लंड को पकड़ना सुगना के लिए कठिन हो रहा था। इसी बीच सरयू सिंह की उंगलियों का कंपन बढ़ गया और सुगना की बुर भी पानी छोड़ने लगी। इस दोहरी उत्तेजना से वह वह वीर्य वर्षा को सही दिशा न दे पायी और सरयू सिंह के वीर्य की धार में वह खुद भी भीग गई और उसका कुछ अंश सरयू सिंह के चेहरे और सीने पर जा गिरा।


सरयू सिंह के लंड की उत्तेजना शांत पढ़ते ही सरयू सिंह ने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। और उसके गालों को चूमने लगे। सुगना ने भी उनके होठों से अपने होंठ सटा दिए और उनके होठों पर लगा उनका वीर्य अनजाने में अपने होठों पर ले लिया।

सरयू सिंह की मध्यमा उंगली जो सुगना के काम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी उसे सरयू सिंह ने अपने होठों से सटा लिया। सुगना उस उंगली पर चमकते हुए अपने काम रस को देखकर शर्मा गई सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में देखा और अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया।

सुगना अपने बाबू जी की इस हरकत पर सिहर उठी। क्या उसके बाबूजी उसकी बुर का स्वाद ले रहे हैं? क्या बाबूजी को वह स्वाद पसंद आ रहा है? क्या कभी वह अपने होठों से उसके बुर का स्वाद लेंगे? सुगना सिहर रही थी वह उनसे अपनी आंखें और मिला पाने में खुद को असहज महसूस कर रही थी.

वह बिस्तर से उठी अपने बाबूजी के लंड को धोती से ढका और कटोरी में बचा हुआ तेल लेकर वापस आंगन में आ गई। पदमा कोठरी में उसका इंतजार कर रही थी। सुगना ने अपने चेहरे और चूचियों को साफ किया जो शरीर सिंह के वीर्य से गीली हो चुकी थी। सुगना ने अपने शरीर पर से वीर्य तो पोछ लिया था पर उसकी चोली और लहंगे पर जगह-जगह वीर्य के दाग पड़ चुके थे। सुबह उठने पर पद्मा ने वह दाग देखा और बोला

"सुगना बेटा ई का लगा ले लु हा"


सुगना ने जबाब न दिया।सुगना को अब जाकर एहसास हुआ की प्रेम रस का अपना दाग होता है वह शरमा गई और नहाने चली गई।

पदमा के मन में यह शंका उत्पन्न हो चुकी थी कि क्या सुगना के लहंगे पर लगा वीर्य सरयू सिंह का ही था? तो क्या सरयू सिंह ने सुगना के साथ नज़दीकियां बना ली थी? क्या सुगना ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में लेकर स्खलितकिया था या फिर सुगना पहले ही चुदाई का आनंद ले चुकी थी।


पदमा अपने ख्यालों में खोई थी पर उसके पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था। वह सुगना से और बातें करना चाहती थी पर समय का अभाव था आज ही सुगना और सरयू सिंह को वापस अपने गांव निकलना था

कुछ ही समय बाद सरयू सिंह और सुगना वापसी यात्रा के लिए निकल चुके थे। आज धनतेरस का दिन था 2 दिनों बाद दिवाली थी। सुगना और उसकी बुर दिवाली मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी।

शेष अगले भाग में।
Bahut hi behtarin hai lagta h dono ma beti ki Diwali saryu damdar chudai ke sath manegi
 

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पदमा अपनी यादों में इतना खो गई थी कि तवे पर रोटी रखी रोटी चल रही थी सुगना वापस आ चुकी थी

"मां कहां भुलाईल बाड़े देख रोटी जरता" पदमा सचेत हो गई।

उस दिन की छोटी सुगना न आज पूर्ण युवा और वयस्क नारी बन चुकी थी और अपनी मां के प्रेमी के साथ दीपावली के दिन संभोग करने जा रहे थी।

सुगना और पदमा आपस में बातें करने लगी। मां और बेटी को आपस में खुलने में ज्यादा वक्त ना लगा सुगना ने अपनी सासू मां कजरी द्वारा कुछ दिन बाद (दीपवली के दिन) आयोजित किये गए प्रथम संभोग के बारे में अपनी मां पदमा को स्पष्ट रूप से बता दिया।

पदमा खुश हो गई पर जैसे ही उसका ध्यान सुगना की कमर पर गया वह थोड़ी डर गई सुगना की कोमल जांघों और उसके बीच उसकी छोटी और कोमल बुर सरयू सिंह के विशाल लंड को अपने आगोश में कैसे ले पाएगी यह सोचकर वह सिहर उठी। उसने यह सब नियति पर छोड़ दिया आखिर उस अवस्था में वह भी सुगना की ही तरह थी कोमल और कमसिन।


कुछ देर बाद हुआ दालान में बैठकर पंखा झलते हुए पद्मा सरयू सिंह को खाना खिलाने लगी। पदमा के मन में यह उत्सुकता कायम थी कि आखिर सरयू सिंह सुगना को चोदने के बारे में क्या सोच रहे होंगे। क्या उन्होंने अपनी बहू सुगना को चोदने का प्रस्ताव यूं ही स्वीकार कर लिया होगा? क्या उनके मन में इस बात का हर्ष होगा या वह ऐसा करने को विवश हो रहे होंगे?

जितना व सरयू सिंह को जानती थी उससे ज्यादा उनके लंड को। सरयू सिंह के मन में चाहे जो चल रहा हो धोती के अंदर वह जादुई लंड सुगना के बुर में जाने के लिए अवश्य उछल रहा होगा इतना पदमा अवश्य जानती थी।

सरयू सिंह मन में कई भाव लिए खाना खा रहे थे। कभी पदमा को देखते कभी रोटी को। वह पदमा को चोदना तो हमेशा से चाहते थे पर इस समय वह सुगना में खोए हुए थे। आखिर पद्मा ने पूछ ही दिया

"कजरी जी मंदिर में मिलल रहली सुगना के दुख के बारे में बतावत रहली"

"हा कुछ त करहीं के परि"

उन्होंने गंभीर मुद्रा में कहा। वह इस बारे में ज्यादा बात करने से बच रहे थे।

आखिर वह यह बात करते भी कैसे जिस लंड से वह पद्मा को चोद चुके थे उसी लंड से उसकी पुत्री को चोदने जा रहे थे।

तभी पद्मा का ध्यान सरयू सिंह के माथे पर कीड़े द्वारा काटे गए निशान पर गया। पद्मा ने पूछा..

"ई कइसे लाग गइल हा"

सरयू सिंह से जवाब देते न बना। वह पदमा से किस मुंह से कहते कि नियति ने यह इनाम उन्हें सुगना की कोमल बुर देखने के उपलक्ष्य में दिया है।

पद्मा ने कहा

"एक बात बोली मानब"

"हा बोल...अ"

"दीपावली के दिन हमार सुगना बेटी के ध्यान राखब बहुत कोमल और सुकवार बीया तनी धीरे धीरे आगे बढ़ब"

सरयू सिंह भावुक हो गए और बोले। उनकी प्रेमिका अपनी बेटी को धीरे धीरे चोदने का आग्रह कर रही थी। पर शायद पदमा को नहीं पता था सरयू सिंह भी सुगना से उतना ही प्यार करते थे जितना पदमा स्वयं यह तो नियति ने साजिश रचकर उनके प्यार में वासना का पुट डाल दिया था और अब वह अपनी प्यारी पुत्री समान बहू को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे।

"तहर बेटी के खुश राखल हमार जिमेवारी बा बाकी सुगना ने पूछ लिह"

सरयू सिंह की बात सुनकर पदमा संतुष्ट हो गई उसे यह बात पता थी कि सरयू सिंह कभी भी स्त्रियों के साथ आक्रामक नहीं होते थे वह उन्हें जी भर कर प्यार करते और मन भर चोदते थे। वह स्वयं उनकी इस कला की प्रत्यक्ष गवाह थी और हमेशा अपनी जाघें खोले उनसे चुदने के लिए तैयार थी।

आज पदमा ने अपनी कामुकता को दवा लिया था वह सुगना के प्रति चिंतित भी थी और मन ही मन सुगना के प्रथम संभोग के सुखद होने की कामना कर रही थी। सरयू सिंह पर उसे पूरा विश्वास था पर उनका जादुई लंड…... पदमा को उसकी करतूतें याद थी।

अपनी जांघों के बीच फंसे सरयू सिंह के लंड को सोचकर वह सिहर उठती। कितना शैतान था वह लंड पदमा की कोमल बुर को जी भर चोदने के बाद भी उसकी प्यास ना बुझती। आखिर पदमा को अपने होठों और नितंबों को भी मैदान में उतारना पड़ता तब जाकर लंड अपने अभिमान का परित्याग करता और वीर्य रस बहाते हुए पदमा के सामने नतमस्तक हो जाता।

पदमा द्वारा बनाया बेहतरीन खाना खाकर बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे वह शाम की कल्पना में डूबे हुए थे उनकी दोनों परियां एक साथ एक ही घर में थी क्या आज उनकी रात गुलजार होगी ? यह प्रश्न मन में लिए हुए वह निद्रा देवी की आगोश में चलें गए।

पदमा आज अपनी सुगना को प्रसन्न देखकर स्वयं भी बेहद खुश थी. सुगना अपनी छोटी बहनों सोनी मोनी के साथ खेल रही थी खेलते समय उसकी उम्र कुछ और भी कम हो गई। पदमा सुगना के बारे में सोच सोच कर कभी घबराती कभी शरमाती और कभी कभी उत्तेजित हो जाती।


सुगना एक पूर्ण युवा नारी थी जो संभोग की प्रतीक्षा में थी नियति ने मिलन का दिन निर्धारित भी कर दिया था पर अभी इस वक्त उसे खेलते देखकर पदमा की ममता जाग उठी वह कैसे अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मर्द के हाथों चुदने के लिए छोड़ सकती थी।

पदमा भावनाओं में खो गई उसने सुगना को अपने पास बुलाया और अपने आलिंगन में ले लिया। सुगना की चूँचीयां अपनी मां की चुचियों से सट गई। सुगना की चूँचियां तनी हुई थी। अभी कल ही सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों ने उसकी चुचियों को नया आकार देने की कोशिश की थी। सुगना ने भी अपनी मां को गले से लगा लिया। सुगना ने पूछा

"का भइल मां?"


पदमा की आंखों में आंसू थे. उसने कहा "कुछ ना बेटा जा खेल.."

पदमा नियति का यह निराला खेल देख रही थी. उसने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह घटित होना था. उसने अपने आप को इसी बात से संतुष्ट कर लिया कि सरयू सिंह निश्चय ही उसके अनुरोध का ख्याल रखेंगे और सुगना के साथ कोई कामवेग में कोई ज्यादती नहीं करेंगे।

वह शाम के खाने की तैयारियों में लग गई

खाना पीना खाने के पश्चात सोनी और मोनी सोने चली गई। पदमा का भाई सोनू भी खेत रखाने ट्यूबवेल पर चला गया घर में पदमा और सुगना रसोई के कार्य निपटा रही थी।

बाहर दालान में सरयू सिंह अपने ख्वाबों में खोए हुए थे। वह आज रात के लिए व्यग्र थे। उनके मन में इस रात के लिए कोई पटकथा तैयार नहीं थी वह कभी सुगना के बारे में सोचते कभी पदमा के। उन दोनों के बारे में सोच कर ही उनका लंड धोती में खड़ा हो चुका था जिसे वह बीच-बीच में थपकीया देकर सुलाने की कोशिश करते पर अपनी भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमिकाओं को आंगन में घूमते और आपस में बातें करते देख कर उनका लंड सोने को तैयार न था। उसे अपनी प्रेमिकाओं की प्रतीक्षा थी।

कहते हैं जब अपनी प्रेमिका को सच्चे दिल से पुकारो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए लग जाती है. आज सरयू सिंह के लंड का सबसे ज्यादा इंतजार सुगना कर रही थी वह अपने बाबू जी से अपने ही घर में मिलने के लिए बेचैन थी।


पद्मा ने उसके मन की बात पढ़ ली और कहा "जा अपना ससुर जी के तेल लगा द, रास्ता चलत चलत थक गईल होइहें"

सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही उसने लकड़ी के चूल्हे पर कड़ाही में तेल गर्म किया और कटोरी में लेकर दालान में आ गई. पद्मा ने आगन से आवाज दी

"सुगना बेटी तेल लगा कर हमारे कोठरी में आ जाइह" सुगना खुशी-खुशी अपने बाबू जी के पास आकर उनके पैरों में तेल लगाने लगी. सरयू सिंह के मजबूत पैरों पर सुगना की कोमल हथेलियां फूल जैसी लग रही थीं फिर भी सुगना की हथेलियों का दबाव उन्हें अच्छा लग रहा था। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियां ऊपर बढ़ती गई लंड मुस्कुराने लगा। जाने क्यों उसे यह प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोमल हथेलियां उसका भी ख्याल रखेंगी.


सुगना स्वयं उस जादुई अंग को अपने हाथों में लेना चाहती थी परंतु दीए की रोशनी में अपने बाबूजी का लंड पकड़ना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नियति ने फिर उसका साथ दिया और एक ठंडी हवा के झोंके ने दिया बुझा दिया पर झरोखे से आ रही चांदनी कमरे को अभी भी थोड़ा प्रकाशमय की हुई थी। सुगना का गोरा चेहरा सरयू सिंह की आंखों में चमक रहा था। सुगना की हथेलियां धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी। सरयू सिंह अपना लंगोट पहले ही खोल चुके थे।

कुछ ही देर में सुगना के तेल से भीगी हुयी हथेलियों ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सिहर उठे। अपनी बहू के हाथ में अपना लंड महसूस कर उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गयी। लंड से रिश्ता हुआ वीर्य सुगना की हथेलियों से छू गया।

सुगना अब चिपचिपे द्रव्य को आसानी से पहचान लेती थी। उसकी हथेलियों ने सरयू सिंह के वीर्य की बूंदों को उनके ही सुपारे पर फैला दिया और अपनी छोटी हथेलियों से उसकी मालिश करने लगी। वह आई तो थी अपने बाबूजी के पैरों की मालिश करने पर अब जो वह कर रही थी वह उसके बाबूजी को भी उतना ही पसंद था जितना खुद उसको।

वह अपनी हथेलियों से कभी उसे नापने की कोशिश करती कभी उसकी गोलाई महसूस करती और कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसे ऊपर नीचे करने लगती। लंड बार-बार उसकी हथेलियों को ऊपर की तरफ खींच रहा था। इस उम्र में भी शरीर सिंह के लंड में जाने इतनी ताकत कहां से रहती थी। सुगना उस लंड से खेलने लगी।

कुछ देर बाद सरयू सिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। सुगना उनके पेट के पास आकर बैठने लगी।

सुगना ने लहंगा पहना हुआ था जैसे ही वह बैठ रही थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से उसके लहंगे को सरकाया और अपनी हथेली को सुगना के नितंबों के नीचे रख दिया। सुगना लगभग उनकी हथेली पर बैठ चुकी थी। अपने कोमल नितंबों के नीचे सरयू सिंह की मजबूत हथेली को पाकर वह आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा कर रही थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की उंगलियां सुगना की बुर की फांकों को सहलाने लगी। सुगना की उत्तेजना बढ़ रही थी सुगना की बुर ने सरयू सिंह की उंगलियों को अपने मदन रस से भिगो दिया। सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की कोमल बुर के अंदर एक बार फिर प्रवेश कर गई।


सुगना आनंद में डूब रही थी जितना आनंद उसे अपने लहंगे के नीचे प्राप्त हो रहा था वह प्रत्युत्तर में उतना ही आनंद सरयू सिंह के लंड को सहला कर उन्हें प्रदान कर रही थी।

सरयू सिंह भी दोहरे आनंद में डूबे हुए थे एक तरफ उनकी हथेलियों को सुगना की कोमल बुर् का स्पर्श मिल रहा था जिसकी संवेदना उनके दिमाग तक भी जा रही थी उसी संवेदना लंड तन जा रहा था। उधर सुगना की हथेलियां उसे और उत्तेजित कर रही थीं। कुछ ही देर में सुगना की कोमल हथेलियों ने सरयू सिंह के लंड की अकड़ ढीली कर दी।

सुकुमारी सुगना के प्रयासों से लंड से वीर्य प्रवाह होने लगा वीर्य की धार उछल कर सुगना के गाल पर जा पड़ी। उछलते समय लंड को पकड़ना सुगना के लिए कठिन हो रहा था। इसी बीच सरयू सिंह की उंगलियों का कंपन बढ़ गया और सुगना की बुर भी पानी छोड़ने लगी। इस दोहरी उत्तेजना से वह वह वीर्य वर्षा को सही दिशा न दे पायी और सरयू सिंह के वीर्य की धार में वह खुद भी भीग गई और उसका कुछ अंश सरयू सिंह के चेहरे और सीने पर जा गिरा।


सरयू सिंह के लंड की उत्तेजना शांत पढ़ते ही सरयू सिंह ने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। और उसके गालों को चूमने लगे। सुगना ने भी उनके होठों से अपने होंठ सटा दिए और उनके होठों पर लगा उनका वीर्य अनजाने में अपने होठों पर ले लिया।

सरयू सिंह की मध्यमा उंगली जो सुगना के काम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी उसे सरयू सिंह ने अपने होठों से सटा लिया। सुगना उस उंगली पर चमकते हुए अपने काम रस को देखकर शर्मा गई सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में देखा और अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया।

सुगना अपने बाबू जी की इस हरकत पर सिहर उठी। क्या उसके बाबूजी उसकी बुर का स्वाद ले रहे हैं? क्या बाबूजी को वह स्वाद पसंद आ रहा है? क्या कभी वह अपने होठों से उसके बुर का स्वाद लेंगे? सुगना सिहर रही थी वह उनसे अपनी आंखें और मिला पाने में खुद को असहज महसूस कर रही थी.

वह बिस्तर से उठी अपने बाबूजी के लंड को धोती से ढका और कटोरी में बचा हुआ तेल लेकर वापस आंगन में आ गई। पदमा कोठरी में उसका इंतजार कर रही थी। सुगना ने अपने चेहरे और चूचियों को साफ किया जो शरीर सिंह के वीर्य से गीली हो चुकी थी। सुगना ने अपने शरीर पर से वीर्य तो पोछ लिया था पर उसकी चोली और लहंगे पर जगह-जगह वीर्य के दाग पड़ चुके थे। सुबह उठने पर पद्मा ने वह दाग देखा और बोला

"सुगना बेटा ई का लगा ले लु हा"


सुगना ने जबाब न दिया।सुगना को अब जाकर एहसास हुआ की प्रेम रस का अपना दाग होता है वह शरमा गई और नहाने चली गई।

पदमा के मन में यह शंका उत्पन्न हो चुकी थी कि क्या सुगना के लहंगे पर लगा वीर्य सरयू सिंह का ही था? तो क्या सरयू सिंह ने सुगना के साथ नज़दीकियां बना ली थी? क्या सुगना ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में लेकर स्खलितकिया था या फिर सुगना पहले ही चुदाई का आनंद ले चुकी थी।


पदमा अपने ख्यालों में खोई थी पर उसके पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था। वह सुगना से और बातें करना चाहती थी पर समय का अभाव था आज ही सुगना और सरयू सिंह को वापस अपने गांव निकलना था

कुछ ही समय बाद सरयू सिंह और सुगना वापसी यात्रा के लिए निकल चुके थे। आज धनतेरस का दिन था 2 दिनों बाद दिवाली थी। सुगना और उसकी बुर दिवाली मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
बहुत बहुत गजब और कामुक उत्तेजना से भरपूर अपडेट हैं भाई मजा आ गया
दिपावली का बेसबरीसे इंतजार रहेगा
सरयूसिंग और सुगना की धमाकेदार कामोत्तेजक चुदाई के अपडेट का इंतजार रहेगा
 

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सुगना आज अपने मायके से विदा हो रही थी। गवना के बाद यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह सुगना को विदा कराकर ला रहे थे ससुर बहू का संबंध अब बदल रहा था सुगना अपने ससुराल जा रही थी पर उसके दिलो-दिमाग पर उसके पति रतन की जगह उसके बाबूजी सरयू सिंह छाए हुए थे. सुगना बेहद प्रसन्न थी पद्मा ने सुगना को कॉटन की एक नई साड़ी उपहार में दी और उसे अपने हाथों से पहना दिया सुगना बेहद सुंदर लग रही थी।

जाते समय पद्मा ने सुगना को दीपावली की बधाई दी और उसके कान में कहा

"भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे तहर हर मनोकामना भगवान पूरा करें. दीपावली तहरा खातिर ढेर खुशियां ले के आये"

दीपावली का नाम सुनकर सुगना सिहर उठी।

सुगना की आंखों में अपनी मां से बिछड़ने का अफसोस था पर सरयू सिंह के साथ दीपावली मनाने की खुशी। वह अब उनका संसर्ग पाने को अधीर हो चली थी। सुगना का भाई सोनू और दोनों छोटी बहन उसे गांव के बाहर तक छोड़ने आए और उसके बाद सुगना अपने बाबूजी के पीछे पीछे अपने ससुराल के लिए चल पड़ी। गांव से दूर आते हैं सुगना अपने बाबूजी के साथ साथ चलने लगी

सरयू सिंह ने कहा

"दिवाली के बात ताहरा मां के मालूम बा?"

"हां, बुझाता सासू मां बतावले बाड़ी"

"तू तो खुश बाड़ू नु?"

"रउआ नइखी का"

सरयू सिंह के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। सुगना अब एक प्रेमिका की भांति बर्ताव कर रही थी।

नियति सरयू सिंह और सुगना का मिलन सुनियोजित कर चुकी थी। दोनों ही तरफ आग लगी हुई थी सुगना की अधीरता बढ़ती जा रही थी। नियति ने इस आग को भड़काने की कोशिश की और आसमान से बूंदाबांदी होने लगी। इस मौसम में वैसे कभी बरसात नहीं होती थी पर आज कुछ नया था।

आसपास सिर्फ और सिर्फ खेत थे जिन में धान की फसल लहलहा रही थी सरयू सिंह और सुगना परेशान हो गए। कुछ दूर एक बरगद का पेड़ दिखाई दे रहा था। सरयू सिंह और सुगना ने अपने पैरों की रफ्तार बढ़ा ली। सुगना कोमलांगी थी और शरीर सिंह गठीले मर्द। सुगना उनका साथ दे पाने में असमर्थ हो थी फिर भी भागते भागते वह दोनों प्रेमी युगल बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच गए।

सुगना और सरयू सिंह थोड़े-थोड़े भीग गए थे। सुगना के चेहरे पर पानी की बूंदे उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी काटन की साड़ी भीग कर उसके बदन से चिपक गई सुगना की चूँचियां अपना उभार दिखाने लगी थी। अपने बाबू जी की निगाहें अपने चुचियों पर महसूस कर सुगना ने अपना आंचल ठीक किया और चुचियों को एक बार फिर आंचल से ढक लिया। सरयू सिंह अपनी बहू की यह अदा देख रहे थे उनका लंड चुचियों के दर्शन मात्र से ही खड़ा हो चुका था। उन्हें अपने लंगोट पहने होने पर अफसोस हो रहा था। उन्होंने सुगना से अपनी नजर घुमाई और पीछे मुड़कर अपने लंड को लंगोट से बाहर निकाल दिया।

धोती और कुर्ते के अंदर छुपा लंड ऐसा लग रहा था नाग पिटारे से निकालकर चादर ओढ़े बैठा हो। सुगना इस अप्रत्याशित बारिश से डरी हुई थी। आकाश में बिजली कड़कना शुरू हो चुकी थी। वह सरयू सिंह के पास आती जा रही थी। बरगद का पेड़ अभी भी उन्हें पानी से बचा रहा था पर कब तक?

बिजली कड़कने की आवाज से सुगना बेहद डर गई और सरयू सिंह से आकर सट गई. सरयू सिंह ने उसे अपने आगोश में ले दिया उसकी चूचियां उनके सीने से टकराने लगी. सुगना जैसी कोमलंगी बहु को अपने आगोश में लिए सरयू सिंह मदहोश हो गए उन्हें यह ध्यान न रहा कि वह उनकी बहू सुगना है उनकी भौजी कजरी नहीं। वह उसके नितंबों और पीठ पर अपने हाथ फिराने लगे सुंदर युवती उनकी हमेशा से कमजोरी थी। इस भरी दुपहरी में वह अपनी बहु सुगना के अंग प्रत्यंगो को छूने लगे सुगना स्वयं भी मस्त हो गई थी। उसका डर अब उत्तेजना में बदल चुका था। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने पेट पर महसूस कर लिया था।

सरयू सिंह के मन में आया कि वह सुगना की साड़ी उठा दे और गदराये नितंबों की मखमली त्वचा को अपने हाथों से महसूस करें। उन्हें अपनी उत्तेजना पर शर्म भी आई। क्या हुआ इतने अधीर हो चले थे कि अपनी बहू को दिन के उजाले में खुले खेत में नंगा करने को तैयार है। वह नई नई जवान हुई थी उसे इस तरह नंगा करना सर्वाधिक अनुचित था।

सरयू सिंह सुगना से अलग हुए और बरगद की जड़ पर पालथी मारकर बैठ गए सुगना अभी भी खड़ी थी उसे सरयू सिंह ने अपने आलिंगन से अलग कर उसका मन तोड़ दिया था। वह तो उस आलिंगन का आनंद ले रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे बैठने के लिए कहा वह नीचे बरगद की जड़ पर बैठने लगी।

सरयू सिंह ने अपनी गोद की तरफ इशारा किया और बोले

"सुगना बेटा नया साड़ी गंदा हो जायी एहिजे बैठ जा"

सुगना प्रसन्न हो गई सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद में ही बिठा लिया सुगना के नितंब सरयू सिंह के गोद में आ गए। कितनी कोमल थी सुगना। उनकी एड़ियों पर सुगना के गोल नितंब मुलायम तकिए के जैसे लग रहे थे। सरयू सिंह अपने अंगौछे से सुगना के गालों पर आई पानी की बूंदे पोछने लगे। उन्हें सुगना का चेहरा तो नहीं दिखाई दे रहा था पर उसके नाक नक्श का उन्हें भरपूर अंदाजा था सुगना उनके प्यार से अभिभूत हो रही थी और अपना प्रेम अपनी जांघों के बीच मदन रस छोड़कर जता रही थी। क्या उसके बाबूजी उसका प्यार समझ पाएंगे ? वह उनकी उंगलियों और लंड का स्पर्श अपनी बुर पर चाह रही थी।

जब भावनाएं और विचार एक तो लक्ष्य एक हो ही जाता है। सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित हो चले थे । सुगना के कोमल नितंब उनके लंड से भी छू रहे थे। सुगना के चेहरे को पोछने के बाद उन्होंने सुगना के गर्दन और नीचे के भाग को छूना शुरु कर। दिया जैसे जैसे बिजली कड़कती सुगना की पीठ सरयू सिंह के सीने सट जाती। सरयू सिंह अपनी भुजाओं से सुनना को अपनी तरफ खींच लेते।

वह उनकी गोद में बेहद सुंदर लग रही थी। सरयू सिंह की हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियाँ उनकी हथेलियों में आ चुकी थी। कुछ देर तो वह उन्हें साड़ी के ऊपर से ही सहलाते रहे पर वह न सुगना को रास आ रहा था ना सरयू सिंह को। सरयू सिंह को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह पन्नी में भरकर रसगुल्ला खा रहे थे। उनकी हथेलियों ने सुगना की ब्लाउज के अंदर जाकर सुगना की नंगी चूचियों को अपने आगोश में ले लिया। सुगना सिहर उठी पर खुश हो गई।

अपनी चुचियों पर अपने बाबूजी का हाथ उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी बुर अपने होंठ खोल रही थी। प्रेम रस के बहने से बुर की दोनों फांकें थोड़ी फूल गई थी। शायद यह सुगना की उत्तेजना के कारण था। एक कुंवारी नवयौवना अपने बाबू जी की गोद में बैठी हुई अपनी चूची मीसवा(दबवा) रही थी यह उसके लिए स्वर्गिक सुख से कम न था।

जब जब बिजली कड़कती सरयू सिंह की हथेलियां अनजाने में ही उसकी चुचियों को जोर से दबा देतीं। सुगना कराह उठती

"बाबूजी तनी धीरे से…….दुखाता"

सरयू सिंह अपनी बहू की कोमल कराह से द्रवित हो जाते और उसके गर्दन और गालों को चूमने लगते. सुगना उत्तेजना से कांप उठती इस ठंडक में सरयू सिंह की सांसे उसे बेहद मर्मस्पर्शी और अपनत्व से ओतप्रोत लगतीं। वह अपने चेहरे को पीछे कर उनके गाल से अपने गाल सटाती तथा कभी-कभी उन्हें चूमने का प्रयास करती।

नियति बरगद के पेड़ पर बैठे हुए यह प्रेमा लाप देख रही थी उसे अपने निर्णय पर गर्व हो रहा था। उम्र का फासला हटा दें तो सरयुसिंह और सुगना जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे।

सरयु सिंह के माथे पर कीड़े का काटा हुआ दाग दिखाई दे रहा था। उनके खूबसूरत चेहरे पर एक वह एक धब्बे के जैसा दिखाई पड़ रहा था। जाने वह कौन सा कीड़ा था जिसने सरयू सिंह की खूबसूरती पर एक दाग लगा दिया था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे जब वह सुगना के साथ कामुक गतिविधियां करते समय वह दाग और बढ़ जाता था।

सुगना की निगाह जब भी उस दाग पर जाती वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाती और कई बार उसे चूम लेती। उसे बार-बार यही अफसोस होता कि उस दिन उसके लहंगे से कीड़ा निकालते समय उसके बाबूजी को यह दाग मिला था। पर उसका कोमल मन यह जानता था की यही वह पहला दिन था जब उसकी कोमल और कमसिन बुर के दर्शन बाबूजी ने किए थे।

सरयू सिंह के चूमने और सहलाने से सुगना उत्तेजित हो चली थी वह अपने बाबू जी की गोद में हिलडुल रही थी। अचानक ही सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा सा उठाया और अपने साड़ी को स्वयं ही पीछे करते गई। सरयू सिंह सुगना की यह गतिविधि देख रहे थे थोड़ी ही देर में सुगना की साड़ी उसकी कमर तक आ गई और उसके कोमल नितंब पूरी तरह नग्न हो गए इसी दौरान सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती से अलग कर दिया। सुगना जब उनकी गोद में बैठी लंड उसकी जांघों के बीच से होते हुए ऊपर उसकी नाभि तक आ गया।

लंड पर सुगना की पेटीकोट और साड़ी का आवरण था। वह सुगना की साड़ी में एक तंबू बनाए हुए था। सुगना उस लंड की ताकत को देखकर सिहर भी रही थी और आनंदित भी हो रही थी। उसने अपनी हथेलियों से सरयू सिंह के लंड को साड़ी के ऊपर से ही सहलाना शुरु कर दिया।

सरयू सिंह थोड़ा पीछे छुक गए और सुगना को आरामदायक स्थिति प्रदान कर दी। सुगना ने अपने शरीर को एक बार फिर साड़ी से ढक लिया था पर नीचे उसके नितंब और जांघें पूरी तरह नग्न थी जो उसके बाबूजी के पैरों और जांघों से छू रही थीं।

सरयू सिंह का लंड सुगना की पनियायी बुर से छूता हुआ ऊपर की तरफ आ गया था। कोई दूर बैठा व्यक्ति यह तो देख सकता था कि सुगना अपने बाबू जी की गोद में बैठी है पर यह कल्पना भी नहीं कर सकता था सरयू सिंह का लंड सुगना की बुर से छू रहा था।

उनकी प्यारी बहू उस लंड को अपनी साड़ी के ऊपर से सहला रही थी। सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर का स्पर्श अपने लंड पर पाकर अभिभूत हो चले थे। एक पल के लिए उन्हें लगा काश आज दीपावली होती वह अपनी कजरी भौजी की इच्छा आज ही पूरी करते देते।

बुर से निकल रहा चिपचिपा रस लंड पर भी लग रहा था। उस प्रेम रस पर सर्वाधिक अधिकार सरयू सिंह के लंड के सुपारे का था जिसने नहा कर उसे सुगना की बुर की गहराइयां नापनी थीं। पर वह बेचारा उससे दूर था। सुगना इस बात से अनजान सुपारे को अपने पेटीकोट और साड़ी के ऊपर से सूखा ही रगड़ रही थी।

सरयुसिंह सुगना की उंगलियों का कोमल स्पर्श अपने सूपारे पर चाह रहे थे। पर सुगना शायद इतनी समझदार न थी। सरयू सिंह ने स्वयं ही मोर्चा संभाल लिया उनके हाथ सुगना की नंगी जांघों को छूने लगे धीरे-धीरे वो अपने हाथ अपने लंड की तरफ ले गए और अपने लंड को छूने की कोशिश में उन्होंने सुनना कि को बुर को भी न सिर्फ छू दिया अपितु उसके होंठों पर रिस आये प्रेम रस चुरा कर अपने लंड पर लगा दिया

सुगना इस प्रेम रस की चोरी से प्रसन्न हो गई वह उनकी उंगलियों का इंतजार एक बार फिर करने लगी। सुगना और उसके बाबुजी अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चले थे। वह अपने लंड को सुनना की बुर पर रगड़ रहे थे पर लंड का सुपाड़ा बुर् का स्पर्श नहीं कर पा रहा था। वह सुगना की गोरी जांघों के बीच से निकालकर बुर से सट रहा था और सुगना के हाथों में खेल रहा था। ऐसा लग रहा था सरयू सिंह के उस नाग को पकड़ने में वह और उनकी बहू दोनों मेहनत कर रहे थे। सुगना की बुर पूरी तरह पनिया चुकी थी। शरीर सिंह अपने लंड को लगातार उसकी बुर से सटाए हुए थे।

सुगना की बुर लंड को अपने अंदर लेना चाह रही थी पर अभी दिवाली दूर थी। सरयू सिंह की करामाती उंगलियों ने सुगना की बुर के दोनों होठों और भगनासे को सहलाना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में ससुर और बहू स्खलन के लिए तैयार हो गए। सुगना से अब बर्दाश्त ना हुआ वह अपने बापू जी की तरफ मुड़ी और उनके होठों को चूम लिया। इसी दौरान सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के भगनासे को कुरेद दिया। सुगना की बुर का फूलना पिचकना प्रारंभ हो गया।

सुगना कराह रही थी..

"बाबुजी….हा असहिं…..ए..आईईईई हममममम"

सरयू सिंह की हथेलियों को सुगना का प्रेम रस मिलने लगा सुगना ने भी अपने बाबूजी के लंड को तेजी से दबा दिया सरयू सिंह ने भी वीर्य धारा छोड़ दी।

"सुगना बाबू…..आहहहहहहह…"

सुगना की पेटीकोट और जाँघें भीगने लगीं।

सरयू सिंह सुगना की कोमल चुचियों को मीसते हुए अपना वीर्य दान कर रहे थे। (ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रक्तदान करते समय वह अपने हाथों से बॉल को मसल रहे हैं।)

ससुर और बहु की उत्तेजना धीमी पड़ रही थी साथ ही साथ नियत द्वारा नियोजित बारिश भी धीमी हो गयी थी। सरयू सिंह और सुगना एक दूसरे को चूम रहे थे। सुगना की आंखें बंद थी और सरयू सिंह की खुली। सुगना इस उत्तेजक इस स्खलन के पश्चात एकदम शांत होकर सरयू सिंह की गोद में लगभग सो गई थी।

बारिश रुक जाने का एहसास सरयू सिंह को हो चुका था उन्होंने सुगना की गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोला

"सुगना बेटी उठा पानी बंद हो गईल"

सुगना ने अपनी आंखें खोली और बंद हुई बारिश को देखकर प्रसन्न हो गयी। वह धीरे-धीरे सरयू सिंह की गोद से उठ खड़ी हुई। साड़ी और पेटीकोट ने स्वतः ही सुगना की नंगी जांघों और स्खलित हुई बुर को ढक लिया। अपनी चुचियों पर सिकुड़ी अपनी साड़ी देखकर सुगना शर्मा गयी। आज इस बरगद के पेड़ के नीचे खुले आकाश में अपने बाबू जी की गोद मे स्खलित हुई थी। यह बरगद का पेड़ उसकी उत्तेजना और अनूठे प्रेम का गवाह था। ससुर और बहू आगे का सफर तय करते हुए घर तक आ पहुंचे कजरी सुगना को देखकर खुश हो गई।

जैसे-जैसे दिवाली करीब आ रही थी सुगना अपने बाबू जी से खुल रही थी। जिस दिन उसके शरीर पर मक्खन गिरा था और उसके बाबूजी ने उसके नंगे शरीर को जी भर सहलाया और उसका कौमार्य हरण किया था वह दिन उसकी याददाश्त में एक अमिट छाप छोड़ गया था। कैसे वह अपने बाबुजी के साथ नंगे होकर कुछ देर तक उनकी गोद में रही थी और अपने बुर पर उनकी हथेलियों का स्पर्श महसूस की थी।

जब जब इस बारे में सोचती उसका शरीर सिहर उठता। सरयू सिंह के दिमाग में भी नग्न सुगना की वह तस्वीर कैद हो गयी थी और वह अपनी सुगना को फिर नग्न देखना चाहते थे और जी भरकर उसके अंगों से खेलना चाहते थे।

दीपावली का त्यौहार उन दोनों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आने वाला था। कजरी भी खुश थी उसकी बहू उस दिन गर्भवती होने वाली थी।

पर क्या सच में सुगना गर्भवती होना चाहती थी? सुगना मन ही मन अब यौन सुख का आनंद लेने लगी थी वह अपने बाबूजी का संसर्ग तो चाहती थी पर अब उसके मन में गर्भवती होने की इच्छा गौड़ हो चली थी। वह अपने बाबू जी से सिर्फ और सिर्फ चुदना चाहती थी। उसने अपनी सहेलियों से जितना सुन रखा था वह सारा योग प्रयोग वह अपने बाबूजी के साथ करना चाहती थी। एक अकेले वही मर्द थे जिन्होंने आज तक सुगना को छुआ था। वह उनसे अपने सारे अरमान पूरा करना चाहती थी।

क्या उसके बाबूजी उसकी इच्छाओं की पूर्ति करेंगे? या दीपावली के दिन अपने वीर्य को उसके गर्भ में भरकर उसे गर्भवती कर देंगे? यदि वह गर्भवती हो गई तो वह यौन सुख कैसे ले पाएगी? क्या वह उस बछिया की तरह ही बन जाएगी?

सुगना ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी से चुदेगी तो जरूर पर गर्भवती नहीं होगी। वह बछिया नही थी जीती जागती अतिसुन्दर स्त्री थी कामसुख पर उसका भी हक था। यह विचार उसकी सास कजरी के आदेश से अलग था पर सुगना मजबूर थी। उसके दिलो-दिमाग पर अब उत्तेजना ने घर जमा लिया था।

कजरी को सुगना की बदली हुई मनोदशा का अंदाजा न था। सरयू सिंह खुद भी अपनी सुगना को जी भर कर प्यार करना और चोदना चाहते थे उनके मन में भी सुगना के प्रति तरह-तरह के अरमान पनप रहे थे परंतु वह अपनी कजरी भौजी के आग्रह को टाल पाने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें दीपावली के दिन बहु के गर्भ में अपना वीर्य छोड़ना था जो कजरी की इच्छा थी।

दोनों तरफ विचार अलग थे सरयू सिंह के मन में सुगना के प्रति उत्तेजना तो थी पर वह कजरी की बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहते थे।

अगला दिन सुगना और सरयू सिंह के लिए पहाड़ जैसा बीत रहा था वो दोनों दीपावली की शाम का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे।
आखिरकार सुगना का इंतजार खत्म हुआ। दीपावली का दिन आ चुका था सुबह से ही घर में जश्न का माहौल था। कजरी भी खुश थी। आज उसकी बहू को बहुप्रतीक्षित कामसुख मिलने वाला था जिस की कामना वह पिछले 6 महीनों कर रही थी।

कजरी स्वयं भी काफी प्रसन्न थी क्योंकि वह इस मिलन की प्रणेता थी हालांकि वह एक निमित्त मात्र थी जिसे नियति ने एक मोहरे के रूप में प्रयोग किया था।

सरयू सिंह तो उन्माद में थे। आज वह अपनी बहू सुगना को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे। सुगना से वह बेटी का दर्जा पहले ही छीन चुके थे आज वह उसे बहु भी न मान रहे थे। जो कामुकता उस सांड के मन मे सुगना की बछिया के प्रति थी वही कामुकता सरयू सिंह सुगना के प्रति संजोये हुए थे।

उनकी कजरी भौजी और सुगना की मां पदमा की सहमति ने इस उन्माद को और बढ़ा दिया था। इतनी कामुकता के बावजूद संबोधनों में अभी भी वैसा ही प्यार कायम था। सुगना आज भी उन्हें बाबुजी ही बुलाती उसके कुँवर जी न कहा जाता। वही हाल सरयू सिंह का था। वह सुगना को या तो सुगना बेटी बुलाते या सुगना बेटा पर सिर्फ सुगना उनके मुह से चाह कर भी नहीं निकलता।

संबोधनों का यह प्यार अब वासना का अवरोधक न रहा अपितु सुगना की बुर बाबुजी बोलते समय मचल उठती।

उधर सरयू सिंह ऐसा सुंदर संयोग बनाने के लिए वह ऊपर वाले के शुक्रगुजार थे और धोती में फनफनता हुआ लंड लेकर अपनी बहू सुगना को चोदने के लिए तैयार थे।

आसमान में सूरज ढलने लगा था सरयू सिंह की अधीरता बढ़ती जा रही थी जिस तरह जयंद्रथ महाभारत के युद्ध में सूर्यास्त की प्रतीक्षा कर रहा था उसी प्रकार सरयू सिंह भी सूर्यास्त का इंतजार कर रहे थे।

सुगना नहा रही थी। इधर कजरी अपनी बहू सुगना की दीपावली यादगार बनाने की तैयारी कर रही थी। उसके जीवन में यह संभोग सुख कुछ समय की बात थी। जैसे ही वह गर्भवती होती कुंवर जी उसके साथ संभोग बंद कर देते। कजरी मन ही मन इस बात से डरी भी हुई थी कि कहीं सरयू सिंह अपने उन्माद में इस कोमलंगी के साथ ज्यादती ना कर दें। परंतु जिस प्यार से सरयू सिंह सुगना को संबोधित करते थे उसे विश्वास था वह अपनी बहू को कष्ट नहीं देंगे। उस बेचारी कजरी को क्या पता था सरयू सिंह सुगना के शरीर को अद्भुत संभोग के लिए पूरी तरह तैयार कर चुके थे।

जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे में आई कजरी भी पीछे-पीछे आ गई उसने कहा आज हम अपना अपना सुगना बेटी के तैयार कर दी सुगना शर्मा रही थी।

पिछले कुछ दिनों में कजरी और सुगना एक दूसरे के सुख दुख में साथ देने लगे थे वह दोनों सहेलियों की भांति रहते उम्र का अंतर उन दोनों में जरूर था पर वह दोनों एक दूसरे का बहुत ख्याल रखती थी। कजरी ने तो सुगना की गर्भवती होने की इच्छा का मान रख कर उसके दिल मे अपनी जगह बना ली थी।

कजरी सुगना के कोमल शरीर को पोछने लगी। चेहरे और कंधे पर पानी की बूंदे मोतियों के समान लग रहे थे। सुगना बेहद सुंदर थी उसकी कद काठी भगवान ने अपने हाथों से रची थी। यदि वह किसी धनाढ्य घर में पैदा हुई होती तो निश्चय ही एक अप्सरा के समान रहती। पर सुंदरता तो सुंदरता है चाहे वह गांव में हो या शहर में।

कजरी जैसे जैसे उसका शरीर पोछती गयी सुगना का खजाना उसकी आंखों के सामने आता गया। सुगना की चूचियां वह पहले भी देख चुकी थी पर आज वह उसे ज्यादा ही आकर्षक लग रही थीं।

धीरे-धीरे कजरी सुगना के पेट और जांघों को पोछने लगी। उसकी निगाहें सुगना की कोमल बुर पर टिक गयीं। हल्के बालों से घिरी हुई सुगना की कोमल बुर अपना मुंह दिखाने को तैयार न थी। सुगना खड़ी थी बुर के दोनों होंठों ने बुर् के मुंह को पूरी तरह ढक रखा था। सुगना ने भी अपनी जांघों को सिकोड़ रखा था। उसे कजरी से शर्म आ रही थी। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसकी सास कजरी उसकी बुर को देखकर खुश हो रही थी। कजरी के मन में सुगना को लेकर प्यार के साथ-साथ कामुकता भी पैदा हो रही थी।

वह सुगना की उस कोमल बूर को छूना और चूमना चाहती थी। पर क्या यह उचित होता? कजरी मन ही मन अपनी भावनाओं को काबू कर रही थी पर वह सुगना की बुर से अपना ध्यान न हटा पा रही थी। उसके हाथ जांघों पर रुक गए थे।

सुगना ने कहा...

"मां का देखा तारे?"

सुगना खड़ी थी और कजरी जमीन पर उकड़ू बैठी हुई सुगना की जांघों को पोछ रही थी सुगना के प्रश्न से कजरी सचेत हुई उसने सुगना की जांघों के जोड़ पर बुर् के ठीक ऊपर चुंबन ले लिया और कहा

" आज हमारा सुगना बेटी के पहिली बार सुख मिली इहे सोचतानी हां"

सुगना का ध्यान आज की नशीली रात पर चला गया।

सुगना के शरीर को पोछने के पश्चात कजरी में उसके शरीर पर सुगंधित तेल लगाया जो वह विशेष रुप से सुगना के लिए ही लाई थी। सुगना का शरीर कुंदन की भांति चमकने लगा। अब सुगना की शर्म कजरी से खत्म हो रही थी। फिर भी उसे ज्यादा देर तक कजरी के सामने नग्न रहने मे असहज महसूस हो रहा था।

उसने कहा

"मां बस हो गई जा तानी कपड़ा पहने"

" रुक जा बेटा अ पहिले आलता ( एक लाल रंग जो गांव की स्त्रियां अपने पैरों में साथ सजावट के लिए लगाती हैं) लगा दीं"

"कपड़ा पहिने के बाद लगा दिह"

"नया कपड़ा बा गंदा हो जाई. हमारा से का लजा तारू, कुँवर जी से लजाइह आज रात"

सुगना सिहर उठी उसने कजरी के कंधे पर अपने कोमल हाथों से प्यार भरा प्रहार किया। दोनों हंसने लगी…

सुगना चारपाई पर बैठ गई उसने अपनी जांघो को को सटा रखा था। कजरी बार बार सुगना की कोमल बुर का गुलाबी मुखड़ा देखना चाहती थी। देखना ही क्या वह उसे चुमने को भी तैयार थी। उसके मन में यह इच्छा बलवती हो उठी थी।

अंततः कजरी को मौका मिल गया सुगना के पैरों में आलता लगाते समय उसने सुगना के दोनों पैरों को थोड़ा दूर कर दिया यह कार्य अकस्मात हुआ था पर इसने सुगना की कुवारी बुर को कजरी की प्यासी आखों के सामने कर दिया।

जिस तरह आंखों में खुशी के आंसू चमकने लगते हैं उसी प्रकार सुगना की बुर पर प्रेम रस चमक रहा था। सुगना भी रात के ख्यालों में खोई हुई थी जिसका असर उसकी बुर के होठों पर दिखाई पड़ रहा था। कजरी ने सुगना को एक बार फिर छेड़ दिया..

वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर बोली

"ए सुगना, ई तो बछिया नियन पनियाईल बिया" सुगना शर्म से पानी पानी हो गई. उसके गाल लाल हो गए।

कजरी ने उठकर उसके गालों को चूम लिया चूमना तो वह उसकी बुर को भी चाहती थी पर उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा।

कजरी ने सुगना को शहर से लाई हुई लाल रंग की जालीदार ब्रा और पेंटी पहनाई वह सुगना की खूबसूरती की मुरीद होती जा रही थी वह मन ही मन सुगना के प्रति आसक्त हो रही थी उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि एक स्त्री होने के बावजूद उसे सुगना पर इतना प्यार क्यों आ रहा था वह उसके हर अंग को चूमना चाह रही थी और स्वयं उत्तेजित हो रही थी।

कजरी की बुर भी अब तक पनिया चुकी थी पर वह साड़ी और पेटीकोट के आवरण में कैद थी। पर निगाहों का क्या? कजरी की आंखों में वासना तैरने लगी थी सुगना ने यह देख लिया उसने पूछा

"मां तोहार अखिया काहे लाल बा?"

" कुछ ना सुगना असहिं कुछ पर गइल होइ"

कजरी ने अपनी उत्तेजना छुपा ली। कुछ ही देर में सास और बहू पूरी तरह सज संवर कर दीपावली मनाने के लिए तैयार हो गयीं। कजरी ने सुगना के आभूषणों के अलावा अपने आभूषण भी सुगना को पहना दिए थे। सुगना तो अब आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी।

कजरी भी अपना कसा हुआ शरीर लेकर अपनी बहू सुगना से होड़ लगा रही थी यदि कोई अनजान व्यक्ति उन दोनों को एक साथ देखता तो कभी नहीं कह सकता था कि सुगना कजरी की बहू है वह दोनों दो बहनों की भांति दिखाई पड़ रही थी।

उधर सरयू सिंह सफेद धोती कुर्ता पहने एक मर्द की भांति तैयार थे एक ही ऐब आ गया था वह कीड़े द्वारा काटा गया दाग जो उन्हें अपनी सुगना बहू की बुर देखने के बदले प्राप्त हुआ था पर उन्होंने उसे अपने बालों से ढक रखा था।

घर के अंदर उनकी भौजी और बहू दोनों ही उनके लिए ही तैयार हो रही थी पर आज उनका सारा ध्यान अपनी सुगना पर था। आज का दिन अद्भुत था सुगना के लिए भी और सरयू सिंह के लिए भी। कजरी भी आज बेहद उत्साहित थी।

दीपावली का उत्सव मनाया जाने लगा।


पूजा पाठ के पश्चात सुगना और कजरी ने घर के आंगन को दिए से सजा दिया बाहर की दालान और दरवाजे पर भी दिए रखकर पूरे घर को रोशन कर दिया । आज सभी के अंतर्मन में खुशी थी सुगना के जीवन मैं भी रोशनी होने वाली थी।
शेष अगले अपडेट में
Bahut hi behtarin update hai
Aaj intzar ki ghadi khatam ho gayi Aaj diwali aa gayi Aaj ki raat sugun aur saryu ka milan hokar rahega

Intezar agle update ka
 
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