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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Tiger 786

Well-Known Member
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सुगना को जी भर कर चोदने के बाद सरयू सिंह सुगना के नंगे जिस्म को अपने सीने से सटाए हुए आनंदित हो रहे थे सुगना उनसे अपने कोमल गाल रगड़ रही थी। अचानक सुगना ने अलसायी आवाज में कहा

"बाबूजी हमार बात ना मननी हा नु"

सरयू सिंह को सुगना की बात समझ ना आई। उन्होंने उसे चूमते हुए कहा

" कौन बात बाबू " सुगना ने अपना चेहरा उनसे दूर किया और अपने पेट से सटे हुए वीर्य से सने लंड को पकड़ लिया और बोली "एकर मलाई हमरा भीतरी भर देनी हा अब हमार पेट बछिया जइसन फूल जायी फेर ई सुख कैसे मिली"

सरयू सिंह सुगना का दर्द समझ चुके थे उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा

"ताहरा मां और सास दुनो के इहे ईच्छा रहे तू भी तो पहले इहे चाहत रहलु"

सुगना अपनी छोटी-छोटी मुठ्ठीयों से उनके सीने पर मरने लगी और बोली अभी

"कुछ देर पहले बतावले त रहनी"

सरयू सिंह को सुगना की एक एक बात याद थी परंतु वह उसे छेड़ने के मूड में थे। उन्होंने कहा

"एक हाली फिर से बता द"

सुगना शर्मा रही थी। शरीर सिंह उसे चुमते हुए बार-बार उससे पूछ रहे थे पर वह कोई जवाब न दे रही थी अपितु उनके सीने से अपनी चूचियाँ रगड़ रही थी तथा अपने हाथों से उनके चिपचिपा लंड को सहला रही थी। सरयू सिंह … अपना हाथ चारपाई के नीचे ले गए और अपनी धोती को अपने पास खींचा धोती में गठियाये हुए मोतीचूर के लड्डू को निकाला और उसे सुगना के होठों पर रख दिया।

सुगना को लड्डू बेहद पसंद थे। उसने अपने होठों को गोलकर उस लड्डू को पकड़ लिया और उसे अपने बाबूजी के होठों से सटाने लगी। वह उस लड्डू को अपने बाबू जी से भी साझा करना चाह रही थी। सरयू सिंह ने लड्डू को अपने होठों से सटा लिया परंतु खाया नहीं। धीरे-धीरे लड्डू का अधिकतर भाग सुगना के मुंह में विलीन होता चला गया। सरयू सिंह अपनी बहू को वह लड्डू खाते देख रहे थे तथा उसके नितंबों को लगातार सहलाते हुए आने वाले दिनों की कल्पना कर रहे थे। लड्डू के खत्म होते ही सुगना ने कहा ..

"लड्डुआ तनि तीत लाग तला हा"

"जायेदा इहे तहर सब मनोकामना पूरा करी"

सुगना को सरयू सिंह की यह बात समझ ना आयी परंतु उसकी बुर अब एक बार फिर चुदाई का सुख लेने के लिए तैयार हो चुकी थी। सुगना धीरे धीरे अपने बाबूजी के शरीर पर आ रही थी। कुछ ही देर में वह सरयू सिंह के ऊपर थी उसकी दोनों मखमली जाँघे सरयू सिंह की कमर के दोनों तरफ आ चुकी थी। लंड और बुर के बीच का फासला तेजी से कम हो रहा था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना के कोमल और मासूम चेहरे को देखते हुए उसके भूत और भविष्य दोनों के बारे में सोच रहे थे। क्या उन्होंने वह लड्डू खिलाकर गलत किया था?

दरअसल आज सुबह से ही वह इस उधेड़बुन में थे कि यदि सुगना गर्भवती हो गई तो वह उसके साथ आगे संभोग कैसे कर पाएंगे। वह सुगना की सुंदर काया और मासूमियत से आकर्षित हो गए थे। वह उसके साथ जी भर कर और तरह-तरह से संभोग करना चाहते थे। अपने मन की इच्छा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय न सूझ रहा था। यदि वह अपना वीर्य बाहर गिराते तो सुगना उनकी इस कामुक इच्छा को जान जाती।

उनका दिमाग वासना के आधीन हो गया। अपनी भौजी कजरी और प्रेमिका पदमा की इच्छा को दरकिनार रखते हुए वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोधक गोलियां ले आए उन्हें अपने हाथों से लड्डू में मिलाकर कुछ लड्डू तैयार कर लिए। वह अपनी उधेड़बुन में अब भी थे। मन में दुविधा प्रबल थी अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह ने उसमें से एक लड्डू अपनी धोती में गठियाया और सुगना को उसका प्रथम मिलन का सुख देने कमरे में आ गए थे।

कजरी चुदाई का दृश्य देख चुकी थी। उन्होंने सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भरकर कजरी और पदमा दोनों की इच्छा का मान रख लिया था और अब नियति ने सुगना के मुख से गर्भवती न होने की इच्छा जाहिर करा कर आकर उस लड्डू की उपयोगिता सिद्ध कर दी थी।

सरयू सिंह ने अपने हाथों से अपनी बहू को गर्भवती न होने के लिए उस लड्डू का सेवन करा दिया था जिसे सुगना ने अनजाने में खा लिया था।

सरयू सिंह ने वह लड्डू बनाकर जो पाप किया था उसमें सुगना की सहभागिता शामिल हो गई थी। सरयू सिंह ने सुगना के कोमल चेहरे को चूम लिया और उधर उनके लंड ने सुगना की कोमल बुर को। सुगना सिहर उठी।

लंड का सुपाड़ा बुर में प्रवेश कर चुका था। पिछली दमदार चुदाई में बूर फूलकर अपना मुख खोल चुकी थी। सरयू सिंह अपनी कमर को थोड़ा पीछे ले गए पर सुगना उस जादुई लंड को अपनी बुर से अलग करने के मूड में न थी उसने अपनी कमर पीछे करनी शुरू कर दी। सरयू सिंह सुगना की इच्छा जान चुके थे उन्होंने अचानक अपनी कमर आगे कर दी। सुगना की पीछे जाती हुई बुर में लंड घुसता चला गया। सरयू सिंह द्वारा अपनी बहू के बुर में भरा हुआ वीर्य अब एक स्नेहक (लुब्रिकेंट) की तरह काम कर रहा था।

ज्यों ज्यों लंड अंदर गया सुगुना की आंखें बाहर आने को हो रही थी। उसका चेहरा लाल हो रहा था। उसने अपने बाबुजी के कंधे पर अपने नाखून गड़ाकर उन्हें रोकने की कोशिश की परंतु सरयु सिंह के मजबूत हाथों ने सुगना की कमर को जकड़ लिया था और सुगना के प्रतिरोध के बावजूद लंड का अधिकतर भाग सुगना की बुर में प्रवेश कर गया सुगना अपने बाबुजी के सीने पर अपनी मुठ्ठीयों से मार रही थी और कराहते हुए बोल रही थी..

बाउजी तनि धीरे से…..दुखाता।

सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा लिया और उसे चूम लिया सुगना की इस बात पर बेहद प्यार आता था एक तरफ वह सुगना के गालों और माथे को चुने जा रहे थे दूसरी तरफ अपनी प्यारी बहू की चूत में लंड आगे पीछे करने लगे थे।

सुगना का दर्द गायब होने लगा चुदाई के आनंद के आगे दर्द कुछ फीका लग रहा था। सुगना अपने बाबूजी को लगातार चुम रही थी और चुदाई का आनंद ले रही थी। सरयू सिंह ने अपनी कमर की रफ्तार जैसे-जैसे कम की सुगना की कमर उसी अनुपात में हिलने लगी। उसने लंड और बुर के प्रेमसंघर्ष में कोई कमी नहीं आने दी। अपने बाबूजी का कार्यभार नई पीढ़ी की सुगना ने संभाल लिया था वह अपनी बुर के भगनासे को अपने बाबूजी के पेड़ू से रगड़ते हुए लंड के अधिक से अधिक भाग को अपनी बुर में समाहित करने की चेष्टा कर रही थी।

जब लंड उसके गर्भाशय के मुख में प्रवेश करता हूं वह सिहर उठती थी पर उस आनंद को वह बार-बार लेना चाह रही थी। कुछ देर तक अपने बाबू जी को अपनी कोमल बुर उसे चोदने के बाद सुगना की हिम्मत जवाब दे गयी। उसकी बुर कांपने लगी और उसने अपनी जाँघे फैलाकर लंड को पूरी तरह आत्मसात कर लिया।

सुगना झड़ रही थी। सरयू सिंह उसके चेहरे को देख रहे थे और उसके गालों और माथे को चूम रहे थे। उसने कराहते हुए कहा

"बाबूजी हमारा के हमेशा असहीं चो………….." सुगना से और आगे न कहा गया। सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी। वह अपना चेहरा नीचे करना चाहती थी पर झड़ती हुई सुनना को देखना सरयू सिंह को उत्तेजक लग रहा था। सुगना के चेहरे के भाव तेजी से बदल रहे थे कभी वह अपनी आंखों को भींचती, कभी दांतो से होठों को काटती कभी मुंह को गोल करती तरह-तरह की के भाव चेहरे पर लाते हुए सुगना स्खलित हो गई।

वह पराजित योद्धा की तरह अपने बाबू जी के सीने पर लेट चुकी थी। सरयू सिंह कभी उसकी पीठ को सहलाते कभी गर्दन तो कभी उसके कोमल नितंबों को दबाते। उनकी भावनाएं सुगना के प्रति प्यार और वासना में झूल रही थी। उसकी गुदांज गांड को छूते ही सुगना सिहर उठती पर वह थक चुकी थी। सरयू सिंह का लंड अब भी उसकी बुर में तना हुआ था और चीख चीख कर सरयू सिंह से अपनी कमर हिलाने के लिए कह रहा था। उसे सुगना की थकावट से कोई मतलब न था वह सिर्फ और सिर्फ सुगना की बुर में और अंदर तक प्रवेश करना चाहता था।

सरयू सिंह सुगना को प्यार कर रहे थे जैसे ही सुगना की सांसे सामान्य हुई सरयू सिंह सुगना को गोद मे लिए हुए बैठ गए। एक पल के लिए लगा जैसे उनका लंड सुगना की बुर से बाहर आ जाएगा पर सरयू सिंह ने अपने लंड को बुर के अंदर बनाए रखा।

सुगना सरयू सिंह के खूंटे पर टंगी हुई उनकी गोद में बैठ चुकी थी। शरीर सिंह उसे चूम रहे थे। सुगना भी अब उन्हें प्यार कर रही थी। उसे पता था उसकी बुर के बीच ठंसा हुआ लंड बिना इस स्खलित हुए नहीं मानेगा।

सुगना ने अपने बाबूजी के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और अपनी नुकीली मुलायम जीभ उनके होठों पर फिराने लगी। सरयू सिंह कभी उसे अपने होठों से पकड़ पाते कभी सुगना उसे लप्प से अपनी मुंह के अंदर खींच लेती। ससुर बहु का यह खेल दोनों को उत्तेजित कर रहा था।

सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए थे वह अपनी हथेलियों से उसे धीरे-धीरे ऊपर नीचे करने लगे सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। वह आनंद में डूबने लगे। सुगना भी अपने बाबू जी को स्खलित करने का प्रयास करने लगी।

सुगना ने मुस्कुराते हुए अपनी बुर की तरफ देखा और बोली

"बाबू जी आज एकरो इच्छा पूरा हो गईल" सरयू सिंह उसकी इस अदा पर घायल हो गए उन्होंने सुगना के कान में बोला

" केकर इच्छा हो?

सुगना जान रही थी कि सरयू सिंह इन उत्तेजक बातों का आनंद ले रहे थे। उसने सरयू सिंह के कान को अपने होठों में ले लिया और धीरे से बोली हमार बू….र के"

सरयू सिंह सुगना की इस बात से बेहद उत्तेजित हो गए. उन्होंने सुनना को चारपाई पर लिटा दिया पर अपने लंड को उसकी बुर से बाहर नहीं आने दिया। वह उसकी जांघों को फैलाकर उसे जोर जोर से चोदने लगे। सुगना इस अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थी। सरयू सिंह उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे तेजी से चोद रहे थे। इस चुदाई में प्यार कहीं नहीं था सिर्फ और सिर्फ वासना थी।

सुगना को अब थोड़ा दर्द हो रहा था परंतु वह दर्द की पराकाष्ठा वह झेल चुकी थी। उसने अपने बाबूजी के सुख के लिए अपने दर्द को अपने भीतर संजोए रखा और अपने होठों पर मुस्कुराहट किए हुए अपने बाबुजी को उत्तेजित करती रही….

" हां….बाबू जी…. हां हां…..आईईईईईई आ आ आ….. "

सरयू सिंह ने अपने लंड को गर्भाशय में ठान्स दिया और एक बार फिर स्खलित होने लगे। उन्हें सुगना की इच्छा याद आ गई वीर्य की पहली धार गर्भ में गई परंतु उन्होंने न चाहते हुए भी अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सुगना के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगे। वीर्य की धार सुगना की चेहरे, गले और चूचियों को भीगोती हुई धीमी पड़ रही थी। अंत में बारी सुगना की नाभि और उस कोमल बुर की आई जिसने लंड को झड़ने में अपनी पूरी शक्ति लगाई थी।

सुगना के शरीर पर जगह-जगह वीर्य सफेद मोतियों के रूप में चमक रहा था। सुगना के होंठों को चूमते समय सरयू सिंह ने जानबूझकर अपने वीर्य को उसके मुख के अंदर कर दिया। सुगना प्रेम रस की अहमियत जानती थी वह अपने बाबू जी के होठों को चूसने लगी प्रेम रस ससुर और बहू की लार में विलुप्त हो रहा था।

सरयू सिंह सुगना को अपने सीने से सटाए हुए नग्न अवस्था में ही सो गए सुगना ने भी कपड़े पहने की जहमत नहीं उठाई वह पूरी तरह थक चुकी थी।

दीपावली की रात बीत चुकी थी ससुर और बहू में एक नया संबंध कायम हो चुका था।

सोते समय सुगना उस लड्डू के बारे में सोच रही थी। उसे सरयू सिंह द्वारा की गई साजिश की भनक न थी हालांकि यह साजिश उसकी स्वयं की इच्छा थी।

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे की मनो ईच्छा जान चुके थे और नियत उन दोनों की ही इच्छा को पूरा करने का मार्ग प्रशस्त कर चुकी थी। लड्डू के रूप में सरयू सिंह के पास एक विशेष अस्त्र आ चुका था।

सरयू सिंह के माथे का दाग आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया था। बालों के पीछे ढके होने के कारण सुगना का ध्यान उस पर न गया वैसे भी वह बेचारी आज तो वासना के आधीन थी उसका सारा ध्यान उस जादुई लंड ने खींच रखा था।

सुबह हो चुकी थी कजरी आंगन में मुंह हाथ धोकर अपनी बहू सुगना का इंतजार कर रही थी।

कजरी ने कल रात सुगना की उस अद्भुत चुदाई का दृश्य देखा था वह उसके जेहन में एक अमिट छाप छोड़ गया था। सरयू सिंह ने एक ही रात में सुगना की कामवासना को चरम पर ला दिया था। कभी-कभी कजरी यह सोचती की सुगना ने क्या पहले भी यह अनुभव लिया हुआ था? पर उसके चेहरे के भाव और उसकी मासूमियत इस बात को नकारते थे. जिस तरह सरयू सिंह उसकी बुर को सहला और चूस रहे थे एवं सुगना भी उस का आनंद ले रही थी उस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे सुगना और सरयू सिंह के लिए वह आनंद नया न था।

बात सच थी। कजरी का अवलोकन सत्य के करीब था परंतु जब सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर रहा था सुगना की आंखों में दर्द और खुशी एक साथ दिखाई पड़ रही थी। निश्चय ही वह सुगना के लिए बिल्कुल नया था यह उसके चेहरे से स्पष्ट था..

वह बाबूजी... बाबूजी... पुकार रही थी। कजरी बेहद प्रसन्न थी चाहे जो भी हो उसकी प्यारी बहू सुगना ने अपना प्रथम संभोग सकुशल संपन्न कर लिया था और उसके कुंवर जी ने उसके गर्भ में अपना वीर्य भर दिया था।

धूप निकल रही थी कजरी से और बर्दाश्त ना हुआ दरवाजे पर कभी भी गांव के व्यक्ति आ सकते थे सामान्यतः सरयू सिंह सुबह सुबह उठ जाते थे परंतु आज देर हो रही थी।

कजरी ने पहले सुगना को आवाज देने की सूची परंतु उसे सुगना और सरयू सिंह को देखने का मन किया उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला। सरयू सिंह ने दरवाजे की किल्ली बंद नहीं की थी और करते भी क्यों सुगना के साथ रात बिताने के लिए कजरी स्वयं उन्हें यहां तक लाइ थी।

अंदर का दृश्य देखकर कजरी भाव विभोर हो गई उसकी बहू सुगना एकदम नग्न अपने ससुर के आलिंगन में लिपटी हुई सो रही थी उसकी दाहिनी जांग सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच में थी उसकी चुदी हुई बुर झांक रही थी कजरी की निगाहें रक्त के निशान खोज रही थी पर उसे वह दिखाई न पड़ा। उसे इस बात पर आश्चर्य भी हो रहा था

तभी सुगना ने अंगड़ाई ली कजरी उल्टे पांव कमरे से बाहर आ गई और आगन से सुगना का नाम पुकारा।

सुगना बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई . उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और अपनी फूली हुयी बुर को देखकर सिहर गयी। दो बार की जमकर चुदाई से उसकी बुर का मुंह खुल गया था। तभी उसकी नजर सरयू सिंह के लटके हुए बैगन पर चली गई। जादुई लंड सो रहा था। वह एक बैगन की भांति सरयू सिंह की जांघों के बीच लटका हुआ था। सुगना को जितना आनंद उसने पिछली रात दिया था वह उसकी मुरीद हो चली थी। उसे लंड को छूने का मन हुआ। वह खुद को ना रोक पायी और सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया।

सरयू सिंह की नींद खुल गई अपनी नग्न सुगना को अपना लंड पकड़े हुए देखकर सरयू सिंह बेहद प्रसन्न और उत्तेजित हो गए। उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। इससे पहले की वह अपनी प्यारी बहू को एक बार फिर चोद पाते कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटी उठ जा देर हो जाइ"

नंगी सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और पूरी मासूमियत से बोला

"बाबूजी अभी जाए दीं, सासू मां बुलावत बाड़ी। बाकी राती के फिर मालपुआ भेटाई"

(भेटाई मतलब मिलेगा)

यह एक संयोग ही था सुगना यह बात करते हुए अपनी पेंटी को उठा रही थी और सरयू सिंह नीचे से उसके फूले हुए मालपुआ का दर्शन कर रहे थे लंड पूरी तरह तनाव में था पर वह सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसे छोड़ दिया पर जाते जाते उसकी बुर पर एक बार फिर हाथ फिरा दिया।

सरयू सिंह की उंगलियों पर एक बार फिर सुगना की फूली हुई बुर से रिस आया मदन रस लग चुका था। उन्होंने अपनी उंगलियां चुम लीं। आज सुबह-सुबह ही उनके होठों को उनका बहुप्रतीक्षित और पसंदीदा रस मिल चुका था।

सुगना अपने वस्त्र पहनकर आंगन में आ गयी। उसने कजरी के पैर छुए और उसके सीने से लग गई। कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूम लिया।

कजरी ने पूछा

"हमरा सुगना बाबू के नींद आईल ह नु? कुंवर जी सुते देले हा कि रात भर जगावले रहले हा?"

सुगना ने अपना सिर शर्म से नीचे कर लिया उसे उत्तर देने में हिचकिचाहट हो रही थी। कजरी ने फिर कहा

"जा मुंह हाथ धो कर तैयार हो जा फेर…"

सुगना अब तक अपनी के कामुक दुनिया से बाहर नहीं लौटी थी उसने पूरी बात सुने हुए बोला

"मां अभी ना, अब राती के…"

दरअसल सुगना में कजरी की बात से यह अंदाज लगाया कि कजरी उसे साथ मुंह हाथ धोने के बाद एक बार फिर अपने ससुर से संभोग के लिए प्रेरित कर रही है। तभी उसने अपनी मानसिकता के अनुरूप उत्तर दिया था जिसे सुनकर अब कजरी हंस रही उसने कहा..

"हट पगली"

सुगना अपनी दीवाली मना चुकी थी. उसके जीवन और लहंगे दोनों में खुशियां भरी हुई थी।

सुगना के जाने के बाद कजरी सरयू सिंह के पास आ गई सरयू सिंह अपने लंड को लंगोट में कस रहे थे कजरी को देखकर वह थोड़ा शर्मा से गए पर उन्होंने कहा

"आवा आखिर हमरा से तू ही गलत काम करवा ही देलू"

"रहुआ त हमारा कहला से आगे बढ़ गईनी. हम तो सुगना के मालपुआ में रस भरे के कहले रहनी रउआ त पुआ चूसे लगनी हा…रहुआ लाज ना लागत रहे"

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि कजरी सारा दृश्य अपनी आंखों से देख चुकी है उससे छुपाने का अब कोई औचित्य न था उन्होंने कहा..

"अइसन सुंदर पुआ रहे मन लालच गईल रहे हम सोचनी ओकरो के सुख दे दी"

एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा कि जैसे कजरी उनके और सुगना के बीच हुए इस मिलन से उतनी प्रसन्न नहीं थी।

कल की चुदाई से सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी और संवेदनशील हो चुकी थी जिसका एहसास सुगना को तब हुआ जब वह मूत्र विसर्जन के लिए बैठी। उसने अपनी चुदी हुई बुर को देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि 1 दिन में ही उसका छोटा सा मालपुआ बड़ा हो गया था। आज वह सरयू सिंह के साथ पुनः मिलन की इच्छुक थी परंतु बुर की हालत उसे रोक रही थी।

उधर सरयू सिंह का लंड अपनी जबान बहु को चोद कर मदमस्त हो गया था वह रह रह कर अपना सर उठा रहा था जिसे सरयू सिंह सहला कर वापस लंगोट में कर देते परंतु सुगना की आहट सबसे पहले वह लंड ही सुन रहा था। जब भी सुगना आस पास से गुजरती सरयू सिंह के लंड में तनाव बढ़ने लगता।

सरयू सिंह दोपहर में ही सुगना से मिलन को तत्पर थे परंतु सुगना ने अपना सारा वक्त लाली के यहां बिता दिया सरयू सिंह मन मसोसकर रह गए शाम होते होते आखिर उन्होंने सुगना को रसोई में घेर लिया कजरी घर से बाहर परचून की दुकान से तेल लेने गई हुई थी सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना की साड़ी उतार दी वह पेटीकोट और ब्लाउज में रसोई में खड़ी थी सरयू उसकी चुचियों को मसले जा रहे थे परंतु जब तक सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता भूल कर चुदाई के लिए तैयार हो पाती बाहर कजरी की आवाज आई। सरयू सिंह जल्दी बाजी में अपनी धोती समेटते हुए रसोई से बाहर आ गए सुगना ने भी अपनी साड़ी लपेटी और बैठकर सब्जी चलाने लगी।

आज सुगना में चुदने के लिए वह उत्साह नहीं था उधर सरयू सिंह के मन में निराशा जाग रही थी। रात होते-होते सुगना कजरी के बिस्तर पर ही सो गए सरयू सिंह इंतजार ही करते रह गए। उनकी हालत न माया मिली न राम जैसी हो गई थी सास और बहू एक ही बिस्तर पर एक दूसरे के आलिंगन में सो रही थी सरयू सिंह मन ही मन तरह तरह की कल्पनाएं करते हुए सो गए।

भाई दूज के दिन सुगना का भाई सोनू सुगना के घर आया हुआ था। उसे सुगना की मां पदमा ने सुगना का हाल-चाल लेने के लिए भेजा था।

पदमा सुगना को लेकर चिंतित थी परंतु पदमा से मिलने के बाद सोनू बेहद प्रसन्न था। उसकी बहन सुगना आज से पहले इतनी खुश कभी न दिखाई दी थी। उसका रोम-रोम खिला हुआ था।

सोनू अब तक स्त्री पुरुष के बीच होने वाले

क्रियाकलापों को बखूबी जान चुका था। लाली को देखकर उसके किशोर मन में हलचल होती थी वह उसका सानिध्य पाने को बेताब रहता था सोनू की मासूमियत लाली को भी आकर्षित करती थी परन्तु कामुकता वश नहीं अपितु वह सोनू की मासूमियत और सुगना के छोटे भाई होने की वजह से उसके करीब आसानी से आ जाती थी।

लाली और सुगना आगन में बातें कर रही थीं। सोनू दालान में बैठा लाली की बातों में ध्यान लगाया हुआ था। सुगना के कहा...

शेष अगले भाग में।
Awesome update
 

Tiger 786

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सुगना को जी भर कर चोदने के बाद सरयू सिंह सुगना के नंगे जिस्म को अपने सीने से सटाए हुए आनंदित हो रहे थे सुगना उनसे अपने कोमल गाल रगड़ रही थी। अचानक सुगना ने अलसायी आवाज में कहा

"बाबूजी हमार बात ना मननी हा नु"

सरयू सिंह को सुगना की बात समझ ना आई। उन्होंने उसे चूमते हुए कहा

" कौन बात बाबू " सुगना ने अपना चेहरा उनसे दूर किया और अपने पेट से सटे हुए वीर्य से सने लंड को पकड़ लिया और बोली "एकर मलाई हमरा भीतरी भर देनी हा अब हमार पेट बछिया जइसन फूल जायी फेर ई सुख कैसे मिली"

सरयू सिंह सुगना का दर्द समझ चुके थे उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा

"ताहरा मां और सास दुनो के इहे ईच्छा रहे तू भी तो पहले इहे चाहत रहलु"

सुगना अपनी छोटी-छोटी मुठ्ठीयों से उनके सीने पर मरने लगी और बोली अभी

"कुछ देर पहले बतावले त रहनी"

सरयू सिंह को सुगना की एक एक बात याद थी परंतु वह उसे छेड़ने के मूड में थे। उन्होंने कहा

"एक हाली फिर से बता द"

सुगना शर्मा रही थी। शरीर सिंह उसे चुमते हुए बार-बार उससे पूछ रहे थे पर वह कोई जवाब न दे रही थी अपितु उनके सीने से अपनी चूचियाँ रगड़ रही थी तथा अपने हाथों से उनके चिपचिपा लंड को सहला रही थी। सरयू सिंह … अपना हाथ चारपाई के नीचे ले गए और अपनी धोती को अपने पास खींचा धोती में गठियाये हुए मोतीचूर के लड्डू को निकाला और उसे सुगना के होठों पर रख दिया।

सुगना को लड्डू बेहद पसंद थे। उसने अपने होठों को गोलकर उस लड्डू को पकड़ लिया और उसे अपने बाबूजी के होठों से सटाने लगी। वह उस लड्डू को अपने बाबू जी से भी साझा करना चाह रही थी। सरयू सिंह ने लड्डू को अपने होठों से सटा लिया परंतु खाया नहीं। धीरे-धीरे लड्डू का अधिकतर भाग सुगना के मुंह में विलीन होता चला गया। सरयू सिंह अपनी बहू को वह लड्डू खाते देख रहे थे तथा उसके नितंबों को लगातार सहलाते हुए आने वाले दिनों की कल्पना कर रहे थे। लड्डू के खत्म होते ही सुगना ने कहा ..

"लड्डुआ तनि तीत लाग तला हा"

"जायेदा इहे तहर सब मनोकामना पूरा करी"

सुगना को सरयू सिंह की यह बात समझ ना आयी परंतु उसकी बुर अब एक बार फिर चुदाई का सुख लेने के लिए तैयार हो चुकी थी। सुगना धीरे धीरे अपने बाबूजी के शरीर पर आ रही थी। कुछ ही देर में वह सरयू सिंह के ऊपर थी उसकी दोनों मखमली जाँघे सरयू सिंह की कमर के दोनों तरफ आ चुकी थी। लंड और बुर के बीच का फासला तेजी से कम हो रहा था।

सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना के कोमल और मासूम चेहरे को देखते हुए उसके भूत और भविष्य दोनों के बारे में सोच रहे थे। क्या उन्होंने वह लड्डू खिलाकर गलत किया था?

दरअसल आज सुबह से ही वह इस उधेड़बुन में थे कि यदि सुगना गर्भवती हो गई तो वह उसके साथ आगे संभोग कैसे कर पाएंगे। वह सुगना की सुंदर काया और मासूमियत से आकर्षित हो गए थे। वह उसके साथ जी भर कर और तरह-तरह से संभोग करना चाहते थे। अपने मन की इच्छा को पूरा करने का उन्हें कोई उपाय न सूझ रहा था। यदि वह अपना वीर्य बाहर गिराते तो सुगना उनकी इस कामुक इच्छा को जान जाती।

उनका दिमाग वासना के आधीन हो गया। अपनी भौजी कजरी और प्रेमिका पदमा की इच्छा को दरकिनार रखते हुए वो प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोधक गोलियां ले आए उन्हें अपने हाथों से लड्डू में मिलाकर कुछ लड्डू तैयार कर लिए। वह अपनी उधेड़बुन में अब भी थे। मन में दुविधा प्रबल थी अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह ने उसमें से एक लड्डू अपनी धोती में गठियाया और सुगना को उसका प्रथम मिलन का सुख देने कमरे में आ गए थे।

कजरी चुदाई का दृश्य देख चुकी थी। उन्होंने सुगना के गर्भ में अपना वीर्य भरकर कजरी और पदमा दोनों की इच्छा का मान रख लिया था और अब नियति ने सुगना के मुख से गर्भवती न होने की इच्छा जाहिर करा कर आकर उस लड्डू की उपयोगिता सिद्ध कर दी थी।

सरयू सिंह ने अपने हाथों से अपनी बहू को गर्भवती न होने के लिए उस लड्डू का सेवन करा दिया था जिसे सुगना ने अनजाने में खा लिया था।

सरयू सिंह ने वह लड्डू बनाकर जो पाप किया था उसमें सुगना की सहभागिता शामिल हो गई थी। सरयू सिंह ने सुगना के कोमल चेहरे को चूम लिया और उधर उनके लंड ने सुगना की कोमल बुर को। सुगना सिहर उठी।

लंड का सुपाड़ा बुर में प्रवेश कर चुका था। पिछली दमदार चुदाई में बूर फूलकर अपना मुख खोल चुकी थी। सरयू सिंह अपनी कमर को थोड़ा पीछे ले गए पर सुगना उस जादुई लंड को अपनी बुर से अलग करने के मूड में न थी उसने अपनी कमर पीछे करनी शुरू कर दी। सरयू सिंह सुगना की इच्छा जान चुके थे उन्होंने अचानक अपनी कमर आगे कर दी। सुगना की पीछे जाती हुई बुर में लंड घुसता चला गया। सरयू सिंह द्वारा अपनी बहू के बुर में भरा हुआ वीर्य अब एक स्नेहक (लुब्रिकेंट) की तरह काम कर रहा था।

ज्यों ज्यों लंड अंदर गया सुगुना की आंखें बाहर आने को हो रही थी। उसका चेहरा लाल हो रहा था। उसने अपने बाबुजी के कंधे पर अपने नाखून गड़ाकर उन्हें रोकने की कोशिश की परंतु सरयु सिंह के मजबूत हाथों ने सुगना की कमर को जकड़ लिया था और सुगना के प्रतिरोध के बावजूद लंड का अधिकतर भाग सुगना की बुर में प्रवेश कर गया सुगना अपने बाबुजी के सीने पर अपनी मुठ्ठीयों से मार रही थी और कराहते हुए बोल रही थी..

बाउजी तनि धीरे से…..दुखाता।

सरयू सिंह ने सुगना को अपने सीने से सटा लिया और उसे चूम लिया सुगना की इस बात पर बेहद प्यार आता था एक तरफ वह सुगना के गालों और माथे को चुने जा रहे थे दूसरी तरफ अपनी प्यारी बहू की चूत में लंड आगे पीछे करने लगे थे।

सुगना का दर्द गायब होने लगा चुदाई के आनंद के आगे दर्द कुछ फीका लग रहा था। सुगना अपने बाबूजी को लगातार चुम रही थी और चुदाई का आनंद ले रही थी। सरयू सिंह ने अपनी कमर की रफ्तार जैसे-जैसे कम की सुगना की कमर उसी अनुपात में हिलने लगी। उसने लंड और बुर के प्रेमसंघर्ष में कोई कमी नहीं आने दी। अपने बाबूजी का कार्यभार नई पीढ़ी की सुगना ने संभाल लिया था वह अपनी बुर के भगनासे को अपने बाबूजी के पेड़ू से रगड़ते हुए लंड के अधिक से अधिक भाग को अपनी बुर में समाहित करने की चेष्टा कर रही थी।

जब लंड उसके गर्भाशय के मुख में प्रवेश करता हूं वह सिहर उठती थी पर उस आनंद को वह बार-बार लेना चाह रही थी। कुछ देर तक अपने बाबू जी को अपनी कोमल बुर उसे चोदने के बाद सुगना की हिम्मत जवाब दे गयी। उसकी बुर कांपने लगी और उसने अपनी जाँघे फैलाकर लंड को पूरी तरह आत्मसात कर लिया।

सुगना झड़ रही थी। सरयू सिंह उसके चेहरे को देख रहे थे और उसके गालों और माथे को चूम रहे थे। उसने कराहते हुए कहा

"बाबूजी हमारा के हमेशा असहीं चो………….." सुगना से और आगे न कहा गया। सुगना शर्म से पानी पानी हो रही थी। वह अपना चेहरा नीचे करना चाहती थी पर झड़ती हुई सुनना को देखना सरयू सिंह को उत्तेजक लग रहा था। सुगना के चेहरे के भाव तेजी से बदल रहे थे कभी वह अपनी आंखों को भींचती, कभी दांतो से होठों को काटती कभी मुंह को गोल करती तरह-तरह की के भाव चेहरे पर लाते हुए सुगना स्खलित हो गई।

वह पराजित योद्धा की तरह अपने बाबू जी के सीने पर लेट चुकी थी। सरयू सिंह कभी उसकी पीठ को सहलाते कभी गर्दन तो कभी उसके कोमल नितंबों को दबाते। उनकी भावनाएं सुगना के प्रति प्यार और वासना में झूल रही थी। उसकी गुदांज गांड को छूते ही सुगना सिहर उठती पर वह थक चुकी थी। सरयू सिंह का लंड अब भी उसकी बुर में तना हुआ था और चीख चीख कर सरयू सिंह से अपनी कमर हिलाने के लिए कह रहा था। उसे सुगना की थकावट से कोई मतलब न था वह सिर्फ और सिर्फ सुगना की बुर में और अंदर तक प्रवेश करना चाहता था।

सरयू सिंह सुगना को प्यार कर रहे थे जैसे ही सुगना की सांसे सामान्य हुई सरयू सिंह सुगना को गोद मे लिए हुए बैठ गए। एक पल के लिए लगा जैसे उनका लंड सुगना की बुर से बाहर आ जाएगा पर सरयू सिंह ने अपने लंड को बुर के अंदर बनाए रखा।

सुगना सरयू सिंह के खूंटे पर टंगी हुई उनकी गोद में बैठ चुकी थी। शरीर सिंह उसे चूम रहे थे। सुगना भी अब उन्हें प्यार कर रही थी। उसे पता था उसकी बुर के बीच ठंसा हुआ लंड बिना इस स्खलित हुए नहीं मानेगा।

सुगना ने अपने बाबूजी के होंठों को चूसना शुरू कर दिया और अपनी नुकीली मुलायम जीभ उनके होठों पर फिराने लगी। सरयू सिंह कभी उसे अपने होठों से पकड़ पाते कभी सुगना उसे लप्प से अपनी मुंह के अंदर खींच लेती। ससुर बहु का यह खेल दोनों को उत्तेजित कर रहा था।

सरयू सिंह के हाथ सुगना के नितंबों को सहारा दिए हुए थे वह अपनी हथेलियों से उसे धीरे-धीरे ऊपर नीचे करने लगे सरयू सिंह का लंड बुर में आगे पीछे होने लगा। वह आनंद में डूबने लगे। सुगना भी अपने बाबू जी को स्खलित करने का प्रयास करने लगी।

सुगना ने मुस्कुराते हुए अपनी बुर की तरफ देखा और बोली

"बाबू जी आज एकरो इच्छा पूरा हो गईल" सरयू सिंह उसकी इस अदा पर घायल हो गए उन्होंने सुगना के कान में बोला

" केकर इच्छा हो?

सुगना जान रही थी कि सरयू सिंह इन उत्तेजक बातों का आनंद ले रहे थे। उसने सरयू सिंह के कान को अपने होठों में ले लिया और धीरे से बोली हमार बू….र के"

सरयू सिंह सुगना की इस बात से बेहद उत्तेजित हो गए. उन्होंने सुनना को चारपाई पर लिटा दिया पर अपने लंड को उसकी बुर से बाहर नहीं आने दिया। वह उसकी जांघों को फैलाकर उसे जोर जोर से चोदने लगे। सुगना इस अप्रत्याशित व्यवहार से आश्चर्यचकित थी। सरयू सिंह उसकी चूचियों को मसलते हुए उसे तेजी से चोद रहे थे। इस चुदाई में प्यार कहीं नहीं था सिर्फ और सिर्फ वासना थी।

सुगना को अब थोड़ा दर्द हो रहा था परंतु वह दर्द की पराकाष्ठा वह झेल चुकी थी। उसने अपने बाबूजी के सुख के लिए अपने दर्द को अपने भीतर संजोए रखा और अपने होठों पर मुस्कुराहट किए हुए अपने बाबुजी को उत्तेजित करती रही….

" हां….बाबू जी…. हां हां…..आईईईईईई आ आ आ….. "

सरयू सिंह ने अपने लंड को गर्भाशय में ठान्स दिया और एक बार फिर स्खलित होने लगे। उन्हें सुगना की इच्छा याद आ गई वीर्य की पहली धार गर्भ में गई परंतु उन्होंने न चाहते हुए भी अपने लंड को बाहर निकाल लिया और सुगना के शरीर पर वीर्य वर्षा करने लगे। वीर्य की धार सुगना की चेहरे, गले और चूचियों को भीगोती हुई धीमी पड़ रही थी। अंत में बारी सुगना की नाभि और उस कोमल बुर की आई जिसने लंड को झड़ने में अपनी पूरी शक्ति लगाई थी।

सुगना के शरीर पर जगह-जगह वीर्य सफेद मोतियों के रूप में चमक रहा था। सुगना के होंठों को चूमते समय सरयू सिंह ने जानबूझकर अपने वीर्य को उसके मुख के अंदर कर दिया। सुगना प्रेम रस की अहमियत जानती थी वह अपने बाबू जी के होठों को चूसने लगी प्रेम रस ससुर और बहू की लार में विलुप्त हो रहा था।

सरयू सिंह सुगना को अपने सीने से सटाए हुए नग्न अवस्था में ही सो गए सुगना ने भी कपड़े पहने की जहमत नहीं उठाई वह पूरी तरह थक चुकी थी।

दीपावली की रात बीत चुकी थी ससुर और बहू में एक नया संबंध कायम हो चुका था।

सोते समय सुगना उस लड्डू के बारे में सोच रही थी। उसे सरयू सिंह द्वारा की गई साजिश की भनक न थी हालांकि यह साजिश उसकी स्वयं की इच्छा थी।

सुगना और सरयू सिंह दोनों एक दूसरे की मनो ईच्छा जान चुके थे और नियत उन दोनों की ही इच्छा को पूरा करने का मार्ग प्रशस्त कर चुकी थी। लड्डू के रूप में सरयू सिंह के पास एक विशेष अस्त्र आ चुका था।

सरयू सिंह के माथे का दाग आज अप्रत्याशित रूप से बढ़ गया था। बालों के पीछे ढके होने के कारण सुगना का ध्यान उस पर न गया वैसे भी वह बेचारी आज तो वासना के आधीन थी उसका सारा ध्यान उस जादुई लंड ने खींच रखा था।

सुबह हो चुकी थी कजरी आंगन में मुंह हाथ धोकर अपनी बहू सुगना का इंतजार कर रही थी।

कजरी ने कल रात सुगना की उस अद्भुत चुदाई का दृश्य देखा था वह उसके जेहन में एक अमिट छाप छोड़ गया था। सरयू सिंह ने एक ही रात में सुगना की कामवासना को चरम पर ला दिया था। कभी-कभी कजरी यह सोचती की सुगना ने क्या पहले भी यह अनुभव लिया हुआ था? पर उसके चेहरे के भाव और उसकी मासूमियत इस बात को नकारते थे. जिस तरह सरयू सिंह उसकी बुर को सहला और चूस रहे थे एवं सुगना भी उस का आनंद ले रही थी उस दृश्य को देखकर ऐसा प्रतीत होता था जैसे सुगना और सरयू सिंह के लिए वह आनंद नया न था।

बात सच थी। कजरी का अवलोकन सत्य के करीब था परंतु जब सरयू सिंह का लंड सुगना की कोमल बुर में प्रवेश कर रहा था सुगना की आंखों में दर्द और खुशी एक साथ दिखाई पड़ रही थी। निश्चय ही वह सुगना के लिए बिल्कुल नया था यह उसके चेहरे से स्पष्ट था..

वह बाबूजी... बाबूजी... पुकार रही थी। कजरी बेहद प्रसन्न थी चाहे जो भी हो उसकी प्यारी बहू सुगना ने अपना प्रथम संभोग सकुशल संपन्न कर लिया था और उसके कुंवर जी ने उसके गर्भ में अपना वीर्य भर दिया था।

धूप निकल रही थी कजरी से और बर्दाश्त ना हुआ दरवाजे पर कभी भी गांव के व्यक्ति आ सकते थे सामान्यतः सरयू सिंह सुबह सुबह उठ जाते थे परंतु आज देर हो रही थी।

कजरी ने पहले सुगना को आवाज देने की सूची परंतु उसे सुगना और सरयू सिंह को देखने का मन किया उसने अपने कमरे का दरवाजा खोला। सरयू सिंह ने दरवाजे की किल्ली बंद नहीं की थी और करते भी क्यों सुगना के साथ रात बिताने के लिए कजरी स्वयं उन्हें यहां तक लाइ थी।

अंदर का दृश्य देखकर कजरी भाव विभोर हो गई उसकी बहू सुगना एकदम नग्न अपने ससुर के आलिंगन में लिपटी हुई सो रही थी उसकी दाहिनी जांग सरयू सिंह की दोनों जांघों के बीच में थी उसकी चुदी हुई बुर झांक रही थी कजरी की निगाहें रक्त के निशान खोज रही थी पर उसे वह दिखाई न पड़ा। उसे इस बात पर आश्चर्य भी हो रहा था

तभी सुगना ने अंगड़ाई ली कजरी उल्टे पांव कमरे से बाहर आ गई और आगन से सुगना का नाम पुकारा।

सुगना बिस्तर से उठ कर खड़ी हो गई . उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ और अपनी फूली हुयी बुर को देखकर सिहर गयी। दो बार की जमकर चुदाई से उसकी बुर का मुंह खुल गया था। तभी उसकी नजर सरयू सिंह के लटके हुए बैगन पर चली गई। जादुई लंड सो रहा था। वह एक बैगन की भांति सरयू सिंह की जांघों के बीच लटका हुआ था। सुगना को जितना आनंद उसने पिछली रात दिया था वह उसकी मुरीद हो चली थी। उसे लंड को छूने का मन हुआ। वह खुद को ना रोक पायी और सरयू सिंह के लंड को हाथ लगा दिया।

सरयू सिंह की नींद खुल गई अपनी नग्न सुगना को अपना लंड पकड़े हुए देखकर सरयू सिंह बेहद प्रसन्न और उत्तेजित हो गए। उन्होंने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। इससे पहले की वह अपनी प्यारी बहू को एक बार फिर चोद पाते कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटी उठ जा देर हो जाइ"

नंगी सुगना ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए और पूरी मासूमियत से बोला

"बाबूजी अभी जाए दीं, सासू मां बुलावत बाड़ी। बाकी राती के फिर मालपुआ भेटाई"

(भेटाई मतलब मिलेगा)

यह एक संयोग ही था सुगना यह बात करते हुए अपनी पेंटी को उठा रही थी और सरयू सिंह नीचे से उसके फूले हुए मालपुआ का दर्शन कर रहे थे लंड पूरी तरह तनाव में था पर वह सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसे छोड़ दिया पर जाते जाते उसकी बुर पर एक बार फिर हाथ फिरा दिया।

सरयू सिंह की उंगलियों पर एक बार फिर सुगना की फूली हुई बुर से रिस आया मदन रस लग चुका था। उन्होंने अपनी उंगलियां चुम लीं। आज सुबह-सुबह ही उनके होठों को उनका बहुप्रतीक्षित और पसंदीदा रस मिल चुका था।

सुगना अपने वस्त्र पहनकर आंगन में आ गयी। उसने कजरी के पैर छुए और उसके सीने से लग गई। कजरी ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और उसके गालों को चूम लिया।

कजरी ने पूछा

"हमरा सुगना बाबू के नींद आईल ह नु? कुंवर जी सुते देले हा कि रात भर जगावले रहले हा?"

सुगना ने अपना सिर शर्म से नीचे कर लिया उसे उत्तर देने में हिचकिचाहट हो रही थी। कजरी ने फिर कहा

"जा मुंह हाथ धो कर तैयार हो जा फेर…"

सुगना अब तक अपनी के कामुक दुनिया से बाहर नहीं लौटी थी उसने पूरी बात सुने हुए बोला

"मां अभी ना, अब राती के…"

दरअसल सुगना में कजरी की बात से यह अंदाज लगाया कि कजरी उसे साथ मुंह हाथ धोने के बाद एक बार फिर अपने ससुर से संभोग के लिए प्रेरित कर रही है। तभी उसने अपनी मानसिकता के अनुरूप उत्तर दिया था जिसे सुनकर अब कजरी हंस रही उसने कहा..

"हट पगली"

सुगना अपनी दीवाली मना चुकी थी. उसके जीवन और लहंगे दोनों में खुशियां भरी हुई थी।

सुगना के जाने के बाद कजरी सरयू सिंह के पास आ गई सरयू सिंह अपने लंड को लंगोट में कस रहे थे कजरी को देखकर वह थोड़ा शर्मा से गए पर उन्होंने कहा

"आवा आखिर हमरा से तू ही गलत काम करवा ही देलू"

"रहुआ त हमारा कहला से आगे बढ़ गईनी. हम तो सुगना के मालपुआ में रस भरे के कहले रहनी रउआ त पुआ चूसे लगनी हा…रहुआ लाज ना लागत रहे"

सरयू सिंह यह बात भली-भांति जानते थे कि कजरी सारा दृश्य अपनी आंखों से देख चुकी है उससे छुपाने का अब कोई औचित्य न था उन्होंने कहा..

"अइसन सुंदर पुआ रहे मन लालच गईल रहे हम सोचनी ओकरो के सुख दे दी"

एक पल के लिए सरयू सिंह को लगा कि जैसे कजरी उनके और सुगना के बीच हुए इस मिलन से उतनी प्रसन्न नहीं थी।

कल की चुदाई से सुगना की बुर पूरी तरह फूल चुकी थी और संवेदनशील हो चुकी थी जिसका एहसास सुगना को तब हुआ जब वह मूत्र विसर्जन के लिए बैठी। उसने अपनी चुदी हुई बुर को देख कर आश्चर्यचकित रह गई कि 1 दिन में ही उसका छोटा सा मालपुआ बड़ा हो गया था। आज वह सरयू सिंह के साथ पुनः मिलन की इच्छुक थी परंतु बुर की हालत उसे रोक रही थी।

उधर सरयू सिंह का लंड अपनी जबान बहु को चोद कर मदमस्त हो गया था वह रह रह कर अपना सर उठा रहा था जिसे सरयू सिंह सहला कर वापस लंगोट में कर देते परंतु सुगना की आहट सबसे पहले वह लंड ही सुन रहा था। जब भी सुगना आस पास से गुजरती सरयू सिंह के लंड में तनाव बढ़ने लगता।

सरयू सिंह दोपहर में ही सुगना से मिलन को तत्पर थे परंतु सुगना ने अपना सारा वक्त लाली के यहां बिता दिया सरयू सिंह मन मसोसकर रह गए शाम होते होते आखिर उन्होंने सुगना को रसोई में घेर लिया कजरी घर से बाहर परचून की दुकान से तेल लेने गई हुई थी सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना की साड़ी उतार दी वह पेटीकोट और ब्लाउज में रसोई में खड़ी थी सरयू उसकी चुचियों को मसले जा रहे थे परंतु जब तक सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता भूल कर चुदाई के लिए तैयार हो पाती बाहर कजरी की आवाज आई। सरयू सिंह जल्दी बाजी में अपनी धोती समेटते हुए रसोई से बाहर आ गए सुगना ने भी अपनी साड़ी लपेटी और बैठकर सब्जी चलाने लगी।

आज सुगना में चुदने के लिए वह उत्साह नहीं था उधर सरयू सिंह के मन में निराशा जाग रही थी। रात होते-होते सुगना कजरी के बिस्तर पर ही सो गए सरयू सिंह इंतजार ही करते रह गए। उनकी हालत न माया मिली न राम जैसी हो गई थी सास और बहू एक ही बिस्तर पर एक दूसरे के आलिंगन में सो रही थी सरयू सिंह मन ही मन तरह तरह की कल्पनाएं करते हुए सो गए।

भाई दूज के दिन सुगना का भाई सोनू सुगना के घर आया हुआ था। उसे सुगना की मां पदमा ने सुगना का हाल-चाल लेने के लिए भेजा था।

पदमा सुगना को लेकर चिंतित थी परंतु पदमा से मिलने के बाद सोनू बेहद प्रसन्न था। उसकी बहन सुगना आज से पहले इतनी खुश कभी न दिखाई दी थी। उसका रोम-रोम खिला हुआ था।

सोनू अब तक स्त्री पुरुष के बीच होने वाले

क्रियाकलापों को बखूबी जान चुका था। लाली को देखकर उसके किशोर मन में हलचल होती थी वह उसका सानिध्य पाने को बेताब रहता था सोनू की मासूमियत लाली को भी आकर्षित करती थी परन्तु कामुकता वश नहीं अपितु वह सोनू की मासूमियत और सुगना के छोटे भाई होने की वजह से उसके करीब आसानी से आ जाती थी।

लाली और सुगना आगन में बातें कर रही थीं। सोनू दालान में बैठा लाली की बातों में ध्यान लगाया हुआ था। सुगना के कहा...

शेष अगले भाग में।
Awesome update
दोपहर के वक्त लाली और सुगना आंगन में बैठकर बातें कर रही थी सोनू बाहर दालान में चारपाई पर लेटा हुआ ऊंघ रहा था। सुगना अपनी बुर की संवेदनशीलता के बारे में लाली से बातें करना चाह रही उसने लाली से पूछा

"ए लाली पहला रात के तोहरो उ ( बुर की तरफ इशारा करते हुए) लाल भई रहे का.."

"हां तनी मनि ( हां थोड़ा सा)"

"हमार तो ढेर लाल भईल बा"

सुगना ने अनजाने में ही सच कह दिया था। लाली को यह बात बिल्कुल भी ना समझ आई सुगना का पति घर में न था और सुगना की सुहागरात को हुए काफी समय बीत चुका था फिर सुगना ने अकस्मात वह बात क्यों कही। उसने उस बात को नजरअंदाज करते हुए कहा

"त तहरा सुहागरात में ढेर छीला गई रहे का रतन भैया चुमले चटले ना रहन का"

लाली हंस रही थी और सुगना भी उसका साथ दे रही थी उधर सोनू उनकी बात से उत्तेजित हो रहा था वह सुगना के प्रति तो आकर्षित न था पर लाली उसके सपनों में कई बार आती थी।

लाली की कसी हुई कमसिन जवानी सोनू को लुभाती थी परंतु अभी वह यह सुख लेने लायक न था उसकी उम्र अभी सपने देखने की ही थी जिस पर लाली की चुचियों ने अधिकार जमाया हुआ था।

सरयू सिंह आज भी सुगना के आगे पीछे घूम रहे थे यह बात भूल कर कि उसका भाई घर में ही है और आज सुगना के साथ संभोग करने पर पकड़े जाने का खतरा था पर वह अपनी उत्तेजना के अधीन होकर सुगना से मिलन का मौका तलाश रहे थे।

शाम का वक्त था सुगना की बछिया जो अब गाय बन चुकी थी उसे दुहने का वक्त हो रहा था। सामान्यतः यह काम सरयू सिह स्वयं किया करते थे परंतु उन्हें यह बात पता थी कि सोनू भी इस कला में दक्ष है। उनके मन में योजना बन गई उन्होंने कजरी से कहा

" आज सोनू से दूध निकलवा ल हमरा अंगूठा में दर्द बा"


थोड़ी ही देर में सोनू और कजरी दोनों सुगना की बछिया का दूध निकालने मैं लग गए। बछिया नयी थी वह अपनी चुचियों पर आसानी से हाथ नहीं लगाने दे रही थी। सोनू के हाथ तो उसके लिए बिल्कुल नए थे। सोनू ने उसके दोनों पैर बांध दिए और कजरी बछिया के पुट्ठों पर हाथ फिराने लगी।

यह एक संयोग ही था की सुगना अपने कमरे की कोठरी से एक बार फिर वही दृश्य देख रही थी जिसे देखकर उसके मन मे उत्तेजना ने जन्म लिया था।

उसने स्वयं को बछिया की जगह रख कर सोचना शुरू कर दिया। एक पल के लिए उसे लगा कि जैसे उसकी जांघें बांध दी गई हों और उसकी सास कजरी उसके नितंबों को सहला रही हो तथा उसकी चूचियों से दूध निकालने का प्रयास किया जा रहा हो। वह अपनी चुचियों पर सोनू के हाथ की कल्पना न कर पायी वह उसका छोटा भाई था उसके ख्यालों में अभी उसके बाबूजी सरयू सिंह ही छाए हुए थे।

वह अपनी सोच पर शरमा गई। उसके मन में आई इच्छा नियति ने पढ़ ली। सुगना ने अभी-अभी संभोग सुख लेना शुरू किया था उसके मन में तरह-तरह की कल्पनाएं आना वाजिब था आखिर वह बछिया ही थी जिसने सुगना की मन में उसके बाबूजी के प्रति प्यार को वासना में बदल दिया था।


दालान में बैठे सरयू सिंह कभी सुगना को देखते कभी कजरी और सोनू को।

सुगना अपने छोटे भाई के हाथ अपनी बछिया की चुचियों पर महसूस कर गनगना रही थी। वह हमेशा अपनी चुचियों की तुलना बछिया की चुचियों से करती रही थी। जैसे-जैसे सोनू के हाथ बछिया की चुचियों को मीस रहे थे सुगना के निप्पल खड़े हो रहे थे वह अपने मन में चल रहे अंतर्द्वंद में जूझ रही थी एक पल के लिए उसने सोनू के हाथों को अपनी चुचियों पर भी महसूस कर लिया।


क्या बछिया की चुचियों पर एक नवकिशोर के हाथ भी सरयू सिंह की तरह महसूस होते होंगे? क्या उम्र का अंतर चुचियों के स्पर्श पर कोई असर डालता होगा? वह अपने ख्यालों में खोई हुई थी तभी सरयू सिंह ने सुगना को पीछे से आकर पकड़ लिया. इससे पहले कि सुगना चौक पाती सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके होठों को ढक लिया सरयू सिंह सुगना के गालों से गाल सटाये हुए उसे चूम रहे थे और लंड सुगना के नितंबो से सट कर सुगना को उसका एहसास दिला था सुगना दोहरी उत्तेजना की शिकार हो रही थी...

सुगना स्वयं को अपने बाबूजी के आगोश में महसूस कर रही थी उसकी निगाहें अपने छोटे भाई सोनू पर थी जो उसकी बछिया की चूचियां दबा दबा कर दूध निकाल रहा था तभी सरयू सिंह की हथेलियों ने सुगना की चुचियों को धर लिया सुगना का ब्लाउज सरयू सिंह की हथेलियों को न रोक पाया वो ब्लाउज के नीचे से प्रवेश कर सुगना की नंगी चूचियां को छूने लगी.

सुगना उत्तेजित हो चली थी. सरयू सिंह का लंड उसके नितंबों के बीच चुभ रहा था। अचानक सुगना ने अपनी साड़ी को ऊपर उठता महसूस किया उसे सरयू सिंह से यह उम्मीद न थी क्या उसके बाबु जी अभी इसी अवस्था में उसे नंगा करेंगे। वह कांप उठी उसकी निगाहें अभी भी अपनी सास कजरी और सोनू पर थी। परंतु सुगना अब उत्तेजना के आधीन थी सरयू सिंह उसकी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर करते हुए कमर तक ले आए और सुगना ने इसे रोकने की कोई कोशिश न की। सरयू सिंह का लंड सुगना की गांड से छू रहा था। वह अपने लंड को बुर की तरफ ले जाना चाह रहे थे।


सुगना खड़ी थी इस अवस्था में यह संभव न था वह कामकला के आसनों से परिचित न थी। सरयू सिंह ने सुगना के पेट पर अपना हाथ लगाया और उससे आगे झुकने का इशारा किया। सुगना एक खूबसूरत गुड़िया की तरह खिड़की को पकड़कर अपने शरीर को आगे झुका लिया तथा अपनी कमर को पीछे कर दिया। उसके बाबूजी के लंड को बुर् का स्पर्श मिल चुका था। स्पर्श ही क्या बुर से छलक रही लार ने सरजू सिंह के लंड के सुपारे को गीला कर दिया।

शरीर सिंह से और बर्दाश्त न हुआ उन्होंने अपने लंड को अपनी प्यारी सुगना बहू की बुर में उतार दिया वह गर्म सलाख की भांति सुगना की मक्खन जैसी बुर में प्रवेश करता गया। सुगना की आंखें बड़ी होती चली गई। वह इस उत्तेजक माहौल मैं अपना दर्द भूल कर कर लंड लीलने को कोशिश कर रही थी।

नियति तमाशा देख रही थी सरयू सिंह अपनी बेटी समान बहू सुगना को उसके छोटे भाई की उपस्थिति में धीरे-धीरे चोद रहे थे। उधर सोनू सुगना की बछिया की सूचियां मिस रहा था और इधर सरयू सिंह उसकी बहन सुगना के।

सरयू सिंह ने कहा

"सोनू बढ़िया से दूध दूहता लागा ता जल्दी एकरो बियाह करे के परी"

सुगना शर्मा गई और अपनी बुर को सिकोड़ कर सरयू सिंह के लंड पर दबाव बढ़ा दिया।

सरयू सिंह ने सुगना की चुचियों को तेजी से दबाया और सुगना कराह उठी...

"बाबू जी तनी धीरे से …...दुखाता, इकरा में से दूध ना निकली" उसने मुस्कुराते हुए कहा।

सरयू सिंह भी मुस्कुरा रहे थे उन्होंने सुगना को छेड़ा "जायेदा आज फिर से तहरा …. ( लंड से गर्भाशय पर प्रहार करते हुए) ए में मलाई भर दे तानी कुछ दिन बाद तोहरो चूची से दूध निकली"


सुगना ने अपने हाथ पीछे किये और उनके पेट पर मुक्का मारा

"छी कइसे बोला तानी"

समय कम था। अब सरयू सिंह सुगना को पूरे आवेश और उन्माद से चोदे जा रहे थे उधर दूध की बाल्टी भर रही थी उधर सरयू सिंह के अंडकोष में वीर्य।

बाल्टी भरने के बाद कजरी बछिया के पैर में बंधी रस्सी खोल रही थी और सोनू बाल्टी लिए उठ रहा था। इससे पहले कि वह दोनों दालान तक पहुंचते सरयू सिंह और सुगना अपना काम तमाम कर चुके थे। सरयू सिंह का वीर्य सुगना की बुर में भर चुका था और लंड निकलने के बाद उसकी जांघों से रिसता हुआ नीचे आ रहा था।

सरयू सिंह ने अपनी धोती में लपेटा हुआ लड्डू निकाला और सुगना को पकड़ा दिया वह खुशी-खुशी लड्डू खाने लगी।

कजरी और सोनू दलान में आ चुके थे।

सोनू ने सुगना को लड्डू खाते हुए देख कर बोला

"अकेले अकेले ही लड्डू खा तारे हमरा के ना देबे"

सुगना अबोध थी उसे लड्डू का रहस्य पता न था उसने लड्डू का बचा हुआ छोटा टुकड़ा सोनू को दे दिया जब तक सरयू सिंह सोनू को रोक पाते सोनू की जीभ उस लड्डू के स्वाद को महसूस कर रही थी लड्डू में मिली हुई दवाई का स्वाद सोनू को रास ना आया उसने कहा


"लड्डू तनी तीत लगाता"

सरयू सिंह ने बात बदल दी

"हां ई लड्डू तनी पुरान हो गईल बा"

इन्हीं बातों के दौरान सुगना ने अपनी आंखों से बहता हुआ वीर्य अपने पेटीकोट में पोछ लिया था।

कजरी सुगना के ब्लाउज पर पड़ी सलवटे देख रही थी परंतु वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी उसे यह कतई उम्मीद न थी कि सरयू सिंह इतनी जल्दी और इस तरह से सोनू की उपस्थिति में सुगना के साथ छेडख़ानी कर लेंगे।

सोनू अपने जहन में अपनी दीदी सुगना का खुशहाल चेहरा और उसकी सहेली लाली की सुनहरी यादें लेकर अपने घर लौट गया।

इधर सरयू सिंह ने सुगना के जीवन में खुशियां भर दी थी। वह कभी कभी उसके गर्भाशय में अपना वीर्य भरते, कभी अपनी वीर्य रूपी मलाई से उसकी मालिश। सुगना को सरयू सिंह का हर रूप पसंद आता वह सिर्फ और सिर्फ चुदने का आनंद लेती। बुर के अंदर लंड का फूलना पिचकना उसे अद्भुत सुख देता था इसलिए वह सरयू सिंह को अपने अंदर स्खलित होने पर अब टोकती न थी। उसने अब सब कुछ नियति के भरोसे छोड़ दिया था। और नियत उसे अभी और सुख देने पर उतारू थी। उसका गर्भाधान अब प्राथमिकता न रही थी। सरयू सिह जब जब वह अपनी बहू की बुर में अपना वीर्य भरते उसकी काट वह लड्डू के रूप में सुगना को खिला देते।

सुगना को उस लड्डू का रहस्य अभी पता न था परंतु वह अपने गर्भ में गिरे हुए वीर्य को भूलकर संभोग सुख का आनंद ले रही थी। जब जब सरयू सिंह सुगना की बुर में अपना वीर्य भरते तब तब सुगना अपने बाबुजी को घूरकर देखती और उसे लड्डू मिलता। वह इस राज को जानना चाहती थी परंतु सरयू सिंह वह बात छुपा ले जाते।

सुगना ने अब अपनी जांघें अपने बाबूजी के लिए पूरी तरह फैला दी थी यह उसकी सास कजरी की भी इच्छा थी और उसकी मां पदमा की भी। सुगना मन ही मन गर्भवती नहीं होना चाहती थी परंतु वह यह बात बार-बार सरयू सिंह से नहीं कहना चाहती थी। सरयू सिंह जब जब उसकी बुर में अपना वीर्य भरते वह एक तरफ थोड़ी दुखी होती परंतु मां बनने की खुशी सोचकर वह प्रसन्न भी होती। बुर में वीर्य भरे जाने के पश्चात उसे लड्डू खाने को मिलता उसके लिए यह एक अतिरिक्त खुशी थी।

अगले दस बारह दिन में कजरी ने सुगना और सरयू सिंह को संभोग करने के खूब अवसर दिए। सुगना की घनघोर चुदाई भी हुई इसके वावजूद सुगना का महीना आ गया।

सुगना बेहद खुश थी परंतु अपनी सास कजरी के सामने दुखी होने का नाटक कर रही थी।

सुगना का महीना आने के पश्चात सरयू सिह बेहद प्रसन्न थे। यह खुशी उनके अंतर्मन में थी परंतु जब जब वह कजरी के पास जाते वह अपनी खुशी पर काबू रखने का प्रयास करते ।

इन दस बारह दिनों में कजरी और सरयू सिंह के बीच संभोग ना हो पाया था परंतु अब सुगना का महीना आने के बाद सरयू सिंह कजरी के साथ रात बिताना चाहते थे।

सुगना समझदार थी उसे सरयू सिंह और कजरी के बीच की नजदीकियां बखूबी पता थी वह जानती थी की अब चुदने की बारी उसकी सास कजरी की थी। वैसे भी सरयू सिंह इन दिनों बेहद उत्तेजित रहा करते थे और हो भी क्यों ना अपनी बहू की कोमल बुर को चोद चोद कर उनका लंड मदहोश हो गया था। उसे एक पल के लिए भी चैन ना आता जब जब सुगना लहराती हुई दिखाई पड़ती तब तब वह लंड अपना सर उठाता। सुगना इन दिनों कजरी के कोठरी में उसकी चारपाई पर ही सो रही थी।

शाम के वक्त सुगना और कजरी आगन में नहीं मिल रही थी तभी सुगना ने कहा

"मां, हम अपना कोठरी में में सुतब"

"ई काहें?"

"राउर कुवर जी आजो मत धर लेस" सुगना ने मुस्कुराते हुए कहा सुगना की बात सुनकर कजरी भी हंस पड़ी और बोली..

"हम बता देब परेशान मत हो"

" ए सुगना, एक बात पूछी?"

" का बात?"

" कुंवर जी भीतरीये गिरावत रहन नू"

"का गिरावत रहन?" सुगना ने अनजान बनते हुए कहा

"अरे आपन मलाई"

"मां साफ-साफ बोल ना का पूछा तारे"

कजरी ने अपनी जाँघे फैला दी और अपनी बुर की तरफ इशारा करते हुए बोली

"तोरा में मलाई भरले रहन की ना?"

"हा भरत रहन पर कभी कभी हमारा देह पर भी गिरावत रहन"

कजरी का चेहरा लाल हो रहा था जिसमें वासना का पुट ज्यादा था और क्रोध का कम उसने कहा

"उ तोरा देह पर ना गिरावत होइहें चूचीं पर गिरावत होइहें"

सुगना ने अपने मन की खुशी को दबाते हुए कहा

" ए मा तोहरा कैसे मालूम"

कजरी निरुत्तर हो गई उसकी चोरी उसकी बहू ने पकड़ ली थी। कजरी झेंप गयी उसने स्थिति को संभालते हुए कहा

"अरे सब मर्द लोग के दु ही चीज पसंद ह" उसने अपनी निगाहों से सुगना की चूची और बुर की तरफ इशारा कर दिया।

सुगना भी आज कजरी को छेड़ने का मन बना चुकी थी उसने कहा

"मां बाबूजी ता कई साल पहले ही चल गई रहन रउआ कैसे मालूम था मर्द लोग के लीला"

कजरी ने उसकी बात का कोई उत्तर न दिया बल्कि अपनी निगाहें गेहूं की थाली में गड़ा ली ।

सुगना ने अपनी मर्यादा को ध्यान में रखते हुए बात को वहीं पर समाप्त कर दिया परंतु जाते जाते वह मुस्कुराते हुए बोली

"आज हम अपना कोठरी में सूतब अपना कुँवर जी से बच के रहिह"

सुगना ने कजरी के मन की बात कह दी कजरी की अंतरात्मा खुश हो गई उसकी जांघों के बीच एक चिलकन सी हुई और कजरी की बुर मुस्कुरा उठी आज कई दिनों बाद सरयू सिंह का साथ उसे मिलने वाला था।

सरयू सिंह आगन में बैठकर खाना खा रहे थे कजरी के मन में आज हलचल थी। सुगना बार-बार कजरी की तरफ देख रही थी उसे पता था आज उसकी सास कजरी जरूर चुदेगी।

खाना खाने के बाद सुगना अपने कमरे में चली गई और कजरी ने अपनी बुर को धो पोछ कर तैयार कर लिया और अपनी चारपाई पर लेट कर सरयू सिंह का इंतजार करने लगी।

आगन में शांति होते ही सरयू सिंह ने अपनी लंगोट उतार ली अचानक उनका ध्यान स्टील के उस छोटे से डिब्बे पर गया जिसमें उन्होंने अपनी प्यारी बहू सुगना के लिए लड्डू बना रखे थे। आज इन लड्डुओं कि उन्हें कोई आवश्यकता न थी। कजरी की नसबंदी पहले ही हो चुकी थी।

सरयू सिंह आकर कजरी की बगल में लेट गए और उसकी चुचियों पर हाथ रख उसे सहलाने लगे कजरी ने कहा

"रउवा अपन बहू सुगना में भुला गईल बानी। हमार याद एको दिन ना आइल हा"

सरयू सिंह ने कजरी की बड़ी-बड़ी चुचियों को जोर से मसल दिया और बोले

"अरे सुगना त अभी लइका बिया। तू ही तो कह ले रहलू कि पूरा मेहनत कर ली ओकरा गोदी में लाइका खातिर"

" एहि से दोनों बेरा (टाइम) मालपुआ खात रहनी हां"

सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे। सुगना के मालपुआ को याद करके वो उत्तेजित हो रहे थे उनका लंड उनकी भाभी कजरी की गांड से छू रहा था जिसे वह पूरी तरह अंदर उतार देना चाहते थे परंतु कजरी ने उस लंड को अपनी गांड में लेने से मना कर दिया था इतने दिनों के साथ के बावजूद वह उस सुख का आनंद न ले पाए थे।

कजरी अब पलट कर पीठ के बल आ चुकी थी सरयू एक हाथ से उसकी चूची मिस रहे थे तथा अपने चेहरे को दूसरी चूची पर रगड़ रहे थे कजरी ने कहा

"राउर सारा मेहनत बेकार चल गईल.."

"मेहनत बेकार नईखे गइल देखेलू सुगना आजकल कितना खुश रहेंले"

"अब रउआ पुआ चूसब त खुश ना रही"

सुगना झरोखे पर खड़ी सरयू सिंह और अपनी सास कजरी की बातें सुन रही थी वह सतर्क हो गई थी उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा था की उसके बाबूजी और सास उसके ही बारे में ऐसी बातें कर रहे थे वह अपना कान लगाकर उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगी।

"ले आवा आज तोहरो चूस दी"


सरयू सिंह ने कजरी की साड़ी को ऊपर खींचना शुरू कर दिया उसकी मखमली और गदराई जांघें नग्न होने लगी। उधर सरयू सिंह उसकी साड़ी को उठा रहे थे और इधर कजरी अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर रही थी।

सरयू सिंह अपना चेहरा कजरी की जांघों के बीच ले जाने लगे तभी कजरी ने रोक लिया और कहा

" रहे दी अभी ई सुख सुगना के ही दी साच में ओकर पुआ फूल जइसन कोमल बा"

"ओह त हु हूँ ओकर पुआ देखले बाड़ू"

"ओकरा खिड़किया से सब दिखाई देला"

"इकरा मतलब वह दिन तू सब देखले रहलु"

कजरी ने कोई जवाब न दिया अपितु सरयू सिंह को अपने ऊपर खींच लिया सरयू सिंह कजरी का इशारा पाते ही उसकी जांघों के बीच आ गए और उनका लंड अपनी सर्वकालिक ओखली में प्रवेश कर गया। सरयू सिंह की रफ्तार और उन्माद बिल्कुल नया था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह कजरी की बुर को पूरे उन्माद से चोद कर कजरी को प्रसन्न करना चाहते हों और उसे अपनी सुकुमार बहू को चोदने का अवसर देने के लिए उसे धन्यवाद देना चाहते हों। इस नए उन्माद को कजरी ने पहचान लिया और मुस्कुराते हुए बोली

"सुगना बहू रउआ में फुर्ती भर देले बिया"

सरयू सिंह ने कजरी की चुचियों को मसल दिया और उसकी प्यासी बुर में झड़ने लगे कजरी भी अपनी जाँघे फैला कर अपने कुँवर जी की वीर्य वर्षा का आंनद लेने लगी। उसकी बुर भी अपना पानी छोड़ रही थी। आज के इस उत्तेजक प्यार में निश्चय ही सुगना का योगदान था कजरी और शरीर सिंह दोनों ही उसके बारे में सोच रहे थे।

उधर सुगना अपने बाबू जी और अपनी सास की बातें सुन चुकी थी। उसकी रजस्वला बुर भी पनिया गई थी परंतु सुगना उसे और छेड़ना नहीं चाहती थी।

अब तीनों ही एक दूसरे का राज जानते थे।

अपनी सांसे सामान्य होने के बाद कजरी में पूछा

"सुगना के कोनो बीमारी नइखे नु अतना मेहनत पर पर त ओकरा गाभिन हो जाये के चाहीं"

सरयू सिंह ने अपनी खुशी छुपाते हुए कहा " ना अइसन लागत त नइखे, जाए द एक महीना और देख ल"

सरयू सिंह ने अगले महीने भी सुगना की चुदाई का मार्ग प्रशस्त कर लिया था।

शेष अगले भाग में।
Behtreen update
 

Lovely Anand

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इस बार अपडेट में विलंब हुआ जिसका कारण समय उपलब्ध न हो पाना था अगला अपडेट एक-दो दिन में आ जाएगा जुड़े रहे तथा संजू @ एवं टाइगर 786 की तरह अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देते रहें धन्यवाद है
 

Sanju@

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राजेश ने सुगना को लेकर अपने मन में तरह-तरह की कल्पनाएं की थी जिसमें वह सुगना को कभी सजा धजा कर,कभी कामुक वस्त्रों में अर्धनग्न स्थिति में और कभी-कभी तो उसे अपने ख्वाबों में पूर्ण नग्न कर अपनी कामुकता को शांत किया करता था आज उस गुलाबी रंग के खूबसूरत गाउन में अपनी सुगना को देखकर राजेश की सांसे रुक गई थी।

कमर पर बंधा हुआ बेल्ट सुगना के खूबसूरत वक्ष स्थल और कटी प्रदेश को अलग कर रहा था। दूध से भरी हुई सुगना की चुचियाँ अपनी मादक उपस्थिति का अहसास करा रही थी।

नाइट गाउन सुगना की चुचियों को पूरी तरह ढकने में नाकाम था। सुगना की गोरी चूचियों के बीच की घाटी साफ-साफ दिखाई पड़ रही थी।

राजेश दरवाजे पर खड़ा एक टक सुगना को देखे जा रहा था तभी लाली ने कहा..

"अभी अंदर आ जाइए सुगना भागी नहीं जा रही आराम से देख लीजिएगा" सुगना और लाली दोनों मुस्कुराने लगी सुगना ने अपना सर झुका लिया था. राजेश शर्मसार था वह हॉल में आ चुका था उसके लंड में ना चाहते हुए भी हरकत हो रही थी जो उसके पेंट में आए उभार से स्पष्ट था।

कुछ ही देर में राजेश ने अपनी लूंगी लपेटी ( एक चादर नुमा कपड़ा जो गांव में कमर के इर्द-गिर्द लपेटा जाता है।) और हाथ मुंह धो कर हॉल में खाने के लिए उपस्थित हो गया तीनों बच्चे पहले ही सो चुके थे सुगना और लाली खाना निकालने की तैयारी करने लगे। लाली ने भी आज एक दूसरा गाउन पहना हुआ था लाली की खूबसूरती किसी भी प्रकार से कम न थी पर सुगना अद्भूत थी और राजेश के लिए नई थी। राजेश की निगाहें उस पर से हट ही नहीं रही थी वह कभी उसके पैरों को देखता कभी उसकी जांघों के उभार को और जब कभी सुगना के नितंबों के दर्शन होते राजेश बाग बाग हो जाता। अपनी ख्वाबों की मलिका को अपने इतने करीब और अपने ही घर में मचलते हुए देखकर उसकी भावनाएं हिलोर मार रही थी।

लाली ने जमीन पर ही अंग्रेजी भाषा के एल आकार में चादर बिछाई जिस पर एक तरफ राजेश बैठा और दूसरी तरफ सुगना। लाली अपने छोटे मोढ़े पर ही बैठ गई उसे उस मोढ़े पर बैठना अच्छा लगता था।

सुगना का फ्रंट ओपन गाउन जमीन पर बैठते समय उसके पैरों के ढकने में नाकाम हो रहा था। सुगना चाह कर भी पालथी नहीं मार पा रही थी जब भी वह इस अवस्था में आती गाउन दो भागों में अलग होने लगता और उसकी जांघें दिखाई पड़ने लगती उसे इस बात का एहसास था अपने दोनों घुटने सटाए तथा पैरों को एक तरफ कर दिया। उसके दोनों पैर नितंबों के एक तरफ हो गए और नितंबों ने जमीन का सहारा ले लिया। सुगना का शरीर लचीला था वह अब आराम से बैठ गई थी परंतु उसकी स्थिति और मादक लग रही थी।

खाना खाते समय राजेश कनखियों से बार-बार सुगना को देख रहा था और अपनी कल्पनाओं को उड़ान दे रहा था क्या नियति आज सुगना को उसकी बाहों में ला देगी? क्या सुगना के खजाने को देखकर उसकी प्यासी आंखें तृप्त होंगी? क्या सुगना की जांघों के बीच छुपे उस मखमली छेद को वह अपने होठों से चूम पायेगा? जितना ही वह इस बारे में सोचता उसकी जांघों के बीच उभार बढ़ता जाता।

लाली राजेश की स्थिति बखूबी समझ रही थी उसने छेड़ते हुए कहा.

"सुगना को देखकर पेट नहीं भरेगा रोटी खाईये"

राजेश और सुगना दोनों मुस्कुरा दिए। थोड़ी ही देर में लाली राजेश द्वारा लाई गई आइसक्रीम ले आई राजेश स्वयं उसे अपने हाथों से निकाल कर कटोरी में रखने लगा इसी दौरान आइसक्रीम का कुछ भाग छलक पर सुगना की दोनों जांघों के बीच गिर पड़ा सुगना जिस अवस्था में बैठी थी उसके दोनों पैर सटे हुए थे आइसक्रीम का टुकड़ा दो जांघों के बीच की जगह पर गिरा था गुलाबी रंग के गाउन के बीच में वह सफेद आइसक्रीम चमक रही थी।

क्योंकि यह गलती राजेश ने की थी उसने उस आइसक्रीम हुए टुकड़े को उठाने की कोशिश की और उसने अकस्मात ही सुगना की जाँघों को छू लिया। सुगना सिहर उठी…

राजेश की उंगलियां जैसे ही उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ती वह पिघल कर उसके हाथों से फिसल जाता दो तीन बार प्रयास करने के बाद भी राजेश उस आइसक्रीम के टुकड़े को पकड़ ना पाया अपितु वह धीरे-धीरे जांघों के जोड़ तक पहुंच गया।

राजेश के हाथ रुक गए वह उस स्थान पर हाथ लगा पाने की स्थिति में नहीं था। सुगना ने स्वयं उस छोटे टुकड़े को उठाने की कोशिश परंतु वह भी नाकामयाब रही लाली ने हंसते हुए कहा..

"जायदे तोर जीजा जी के आइसक्रीम उ हो खा ली" लाली ने सुगना की जांघों के बीच इशारा कर दिया था।

लाली ने हंसते हुए एक गूढ़ बात कह दी थी राजेश की आइसक्रीम (क्रीम) और सुगना की बुर... सुगना सिहर उठी और राजेश ने भी शर्म से सर झुका लिया।

इधर लाली सुगना को छेड़ रही थी तभी सूरज के रोने की आवाज आई सुगना ने आधी खाई हुई आइसक्रीम कटोरी में छोड़ दी और भागकर सूरज के पास गयी।

सूरज उसे जान से ज्यादा प्यारा था और हो भी क्यों ना हर मां के लिए उसका बच्चा प्यारा होता है और सुगना को तो यह बच्चा काफी प्रयास के बाद मिला था। उसके प्यारे बाबूजी सरयू सिंह ने उसे तीन-चार वर्षों तक जी भर चोदने के बाद ही उसे पुत्र रत्न से नवाजा था।

उधर सुगना सूरज को एक बार फिर दूध पिला रही थी इधर लाली और राजेश बातें कर रहे थे।

राजेश अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चुका था उसने लाली से संभोग की इच्छा जाहिर की परंतु राजेश का दुर्भाग्य था लाली आज ही रजस्वला हुई थी उसने राजेश को लाल झंडी दिखा दी राजेश के मन में एक बार फिर सुगना की जांघों और उनके बीच छुपा खजाना देखने की तीव्र इच्छा जागृत हुई परंतु यह इतना आसान न था।

सुगना सूरज को सुला कर अपने गोद में लिए हुए हॉल में आ चुकी थी और हाल में पड़े बिस्तर पर सूरज को सुलाने लगी उसने स्वयं ही हाल में सोने का फैसला कर लिया था उसे अपनी मर्यादा मालूम थी। वह लाली और राजेश को अलग नहीं करना चाहती थी वैसे भी राजेश कभी-कभी ही घर आता था। सुगना को मर्दों की जरूरत पता थी।

लाली ने सुगना से कहा

"हमनी के भीतर सुतल जाई"

लाली ने राजेश की तरफ देख कर कहा..

"आपका मन होगा तो आप भी वही आ जाइएगा"

कुछ ही देर में लाली और सुगना अंदर कमरे में आ चुके थे। राजेश भी अंदर आया पर कुछ ही देर में वह वापस अपनी चादर लेकर हॉल में जाने लगा सुगना ने राजेश से कहा

"जीजा जी आप यहीं सो जाइए मैं आराम से हाल में सो जाऊंगी"

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"अरे आज आपकी दीदी हमारे साथ नहीं सोना चाहती उन्होंने लाल झंडी दिखा दी है अब आपका ही सहारा है"

अच्छा आप चलिए मैं लाली को मनाती हूं।

राजेश हाल में आ गया और लाली ने सुगना को अपने रजस्वला होने और राजेश की चाहत के बारे में खुलकर बता दिया अब जाकर सुगना को राजेश की बात समझ आई सुगना सिहर उठी थी एक पल के लिए उसे लगा जैसे वह मन ही मन अपनी जांघें फैलाने के लिए खुद को तैयार कर रही थी।

कुछ देर बातें करने के बाद लाली उठी अलमारी के ऊपर रखा जॉनसन बेबी आयल का डिब्बा उठाया और हाल में आ गई।

कुछ ही देर मैं हाल से फुसफुस आहट की आवाज आने लगी जिसमें कभी-कभी सुगना का जिक्र आ रहा था सुगना बेचैन हो रही थी उसे पता था लाली और राजेश रोमांटिक पति पत्नी थे। परंतु उसका नाम? हो सकता है लाली राजेश के हस्तमैथुन में मदद करने गई हो परंतु उसका नाम आने का कोई औचित्य न था। वह दबे पांव दरवाजे के पास आ गयी।

दरवाजा पूरी तरह बंद न था। उसने हॉल में झांका और चौकी पर चल रहे दृश्य को देखकर उसकी आंखें राजेश के लंड पर टिक गई। लंड सरयू सिंह के मुकाबले में उन्नीस ही था परंतु वह नया और अपरिचित था।

सुगना की नजर उस पर से नहीं हट रही थी। लाली अपने दोनों हाथों से उस लंड को तेजी से आगे पीछे कर रही थी राजेश उसके होंठों को चूमते हुए उसकी दोनों चूचियों को दबा रहा था। लाली ने कहा..

आपके ख्वाबों की मलिका आपके बिस्तर पर सो रही हैं । हमेशा उसकी बातें करके यह बदमाश (लंड को दबाते हुए) मुझे तंग करता था। आज इसकी सिट्टी पिट्टी गुम है।

राजेश ने कहा

"लाली धीरे बोलो सुगना सुन लेगी"

लाली ने सुगना की चुचियों और कामुक अंगो की बातें और उनका उत्तेजक विवरण करके राजेश को शीघ्र स्खलित करा दिया राजेश तृप्त होकर लेट गया। सुगना यह दृश्य देखकर आश्चर्यचकित थी की कैसे लाली और राजेश ने उसे अपने अंतरंग पलों में स्थान दे दिया था। सुगना की बुर पनिया गई थी उसने अपनी हथेलियों से उसका गीलापन महसूस किया और न जाने कब उसकी मध्यमा उंगली उसकी बुर की रसीली गहराइयों में उतर गई थी।

जब तक लाली बाथरूम से लौट कर आती सुगना की बुर अपना पानी छोड़ चुकी थी। जीजा और साली अपनी अपनी जगह एक दूसरे को याद करते हुए तृप्त हो गए परंतु मिलन बाकी था।

सुगना अपनी आंखों और कानों से यह दृश्य देखने और सुनने के बाद यह जान चुकी थी की लाली और राजेश के बीच उसको लेकर कोई मतभेद नहीं था। लाली पहले भी राजेश की परिकल्पनाओं के बारे में उसे बताया करती थी परंतु उसे यकीन नहीं होता था आज सुगना यह जान चुकी थी की यदि वह आगे बढ़कर एक इशारा करेगी तो राजेश स्वतः उसकी जांघों के बीच उसका खेत जोत रहा होगा।

सुगना वक्त का इंतजार कर रही थी उसने धीरे-धीरे अपना मन बना लिया था।

स्टेशन मास्टर ने राजेश को आकस्मिक ड्यूटी के लिए बुलाया था उसे सुबह 4:00 बजे ही वापस जौनपुर के लिए निकलना था राजेश ने घड़ी में अलार्म सेट किया परंतु उसकी आवाज बेहद धीमी कर ली वह किसी भी हाल में अपनी प्रेमिका सुगना की नींद खराब नहीं करना चाहता था।

सुबह उठकर राजेश अपने कमरे में अपने कपड़े निकालने आया और कमरे की लाइट जला दी जो दृश्य उसकी आंखों के सामने था उसने राजेश की तन मन में आग लगा दी रात में सोते समय सुगना का नाइट गाउन घुटनों के ठीक ऊपर तक आ गया था उसकी जांघों का निचला भाग पूरी तरह नग्न था एक अकेली पायल ही सुगना के पैरों पर सुशोभित हो रही थी बाकी उसके पैरों और नंगी जांघों की कुदरती चमक स्वाभाविक रूप से ध्यान खींच रही थी

राजेश ललचायी नजरों से सुगना को देख रहा था अब तक लाली जाग चुकी थी उसने राजेश को सुगना की जांघों के बीच देखते पकड़ लिया था राजेश कुछ देर तक कामुक नयनसुख लेने के पश्चात अलमारी से अपने कपड़े निकालने लगा उसने इस बात का विशेष ख्याल रखा कि सुगना और बच्चों की नींद खराब ना हो जैसे ही राजेश अलमारी से कपड़े निकालने में व्यस्त हुआ लाली ने सुगना का गाउन और ऊपर खींच दिया सुगना करवट लेकर लेटी हुई थी तथा उसका दाहिना पैर ऊपर पेट की तरफ उठा हुआ था। गाउन को ऊपर उठाने से सुखना की लाल पेंटी दिखाई पड़ने लगी और उसके नितंब जो लाल पैंटी की कैद में थे, नजर आने लगे।

लाली ने यह कार्य कर तो दिया था परंतु उसने सुगना की नींद खोल दी उसने ऊंघते हुई अपने हाथ अपने चेहरे के उपर कर लिए तथा अपनी आंखों तथा चेहरे को ढक लिया। परंतु अपने खजाने को ढकना भूल गयी। कपड़े लेकर वापस जाते समय राजेश ने एक बार फिर सुगना को देखा सुगना का पूरा खजाना राजेश की आंखों के सामने था। सुगना की फूली हुई बुर पेंटी के नीचे से अपने आकार का प्रदर्शन कर रही थी। सुगना की कमर के नीचे का बेहद खूबसूरत हिस्सा था। पैन्टीअपनी मालकिन को कैद किए राजेश को ललचा रही थी। नंगी जाँघों का आकार अब पूरी तरह स्पष्ट था।

राजेश उन जाँघों पर अपना सिर रखकर उसके बीच उस जादुई सुरंग से रिस रहे अमृत का रसपान करना चाहता था। सुगना के खजाने भी उसे आमंत्रण दे रहे थे। लाली बिस्तर से उठ खड़ी हुई और राजेश को सुगना की जागो के बीच देखते हुए पकड़ लिया। राजेश ने शर्मा कर अपनी नजर हटायीं और बोला

"थोड़ा चाय पिला दो"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"लाती हूँ, तब तक आप बैठ कर अपनी मल्लिका को निहारिये। सुगना मुस्कुरा रही थी पर अपने पूरे शरीर पर राजेश की निगाहों को महसूस कर रही थी एक पल के लिए उसके मन में आया कि काश राजेश अपने हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी जांघों को अपने मजबूत हाथों का स्पर्श दे दे। परंतु राजेश और सुगना के बीच की यह दीवार मजबूत थी उसे टूटने में थोड़ा समय था।

उधर राजेश के पास समय बेहद कम था। लाली द्वारा बनाई गई चाय पीकर राजेश अपनी साली सुगना को छोड़कर स्टेशन की तरफ निकल गया। जाते-जाते उसने लाली से कहा हो मैं शाम को वापस आ जाऊंगा अपना ध्यान रखना और मुस्कुराते हुए धीरे से बोला और हमारी साली साहिबा का भी।

लाली एक बार फिर बिस्तर पर आ चुकी थी उसने सुगना के नितंबों को ढकने की कोशिश की। सुगना ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया दोनों सहेलियों की चूचियां आपस में टकरा गई और वह दोनों एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गयीं।

लाली ने सुगना से कहा

" देख लेले हम कहत रहनी नु ते एक बार इशारा कर बे उ तोरा बूर के पूजाई करे लगिहें"

सुगना मुस्कुरा रही थी. उसने लाली के गालों को चूम लिया और बोली

"साँच कह तारे लागत बा पुजाई करावही के परी" लाली ने भी उसे अपनी तरफ खींच लिया. लाली को राजेश की एक पुरानी बात याद आ गई वह मुस्कुराने लगी।

लाली सुगना को आलिंगन में लिए उसकी पैंटी को उतारने की कोशिश करने लगी पता नहीं सुगना किस नशे में थी उसने लाली को न रोका। लाली ने सुगना को पहनने के लिए दी हुई पेंटी को अपने हाथों से ही उतार दिया वह उपेक्षित सी बिस्तर के किनारे आ गई वह बेचारी हमेशा उत्तेजक पलों में सुगना की बुर को अकेला छोड़ देती थी।

लाली के हाथ सुगना की बुर की तलाश में लग गए और जब तक सुगना यह फैसला कर पाती कि वह लाली को आगे बढ़ने दे या रोके लाली की उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस चुरा लिया और उसे चूमते हुए बोली

"तोर जीजा जी इ रस खाती हमेशा बेचैन रहेले एक हाली उनको के चीखा दे"

लाली ने सुगना की उत्तेजना को पहचान लिया था इस मदन रस के रिसाव में निश्चय ही राजेश का भी योगदान था। आज पहली बार लाली ने सुगना की बुर पर हाथ लगाया था।

लाली आज स्वयं रजस्वला थी उसे पता था कि वह लाली से और अंतरंग नहीं हो सकती थी। उसने इस क्रिया को वहीं पर रोक दिया और सुगना को अपने सीने से सटे हुए सोने का प्रयास करने लगी। सुगना भी अपनी उत्तेजना पर काबू पाते हुए लाली की बाहों में सो गई।

लाली सुबह उठी और सुगना की कमर से उतारी गई पेंटी को ध्यान से देखा। पेंटी के बीच में सुगना की बुर से रिस आये प्रेम रस से उसका रंग बदल चुका था। वह उसे अपनी नाक के पास ले गई और उसकी भीनी खुशबू को महसूस किया उसके चेहरे पर मुस्कुराहट आई और उसने उस पेंटी को लपेटकर वापस अलमारी में रख दिया। उसने बड़ी आसानी राजेश की कल्पना को अंजाम दे दिया था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर सुगना से सटकर ऊँघने लगी।

कुछ देर बाद दरवाजे पर आहट हुई। लाली ने ऊंघते हुए सुगना से कहा

" ए सुगना तनी दरवाजा खोल दे ना"

सुगना भी जाग चुकी थी उसने जाकर दरवाजा खोला और अपने भाई सोनू को पाकर आश्चर्यचकित हो गई।

"अरे सोनू आईल बा" उसने लाली को आवाज दी।


लाली सचेत हो गयी।
Fantastic update lagta h Rajesh aur sugna ki chudai ho sakti hai
 

Sanju@

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सोनू के आने की बात सुनकर लाली सचेत हो गई उसके शरीर में एक अलग प्रकार की ऊर्जा का संचार हुआ वह बिस्तर से उठ खड़ी हुई और अपने कपड़े व्यवस्थित करने लगी। सोनू अंदर आ चुका था। सुगना को इन मादक कपड़ों में देखकर सोनू विस्मित था। उसने अपनी बहन सुगना के पैर छुए और ऊपर उठते समय पतले और कामुक गाउन के पीछे छुपे सुगना के पैर जांघों और कमर के उभारों और गहराइयों के दर्शन कर लिये। सुगना को भी अपनी इस उत्तेजक अवस्था का एहसास था परंतु वह कुछ कर पाने में असमर्थ थी।
सोनू सुगना के प्रति गलत भावनाएं नहीं रखता था पर अपनी बड़ी बहन का यह रूप उसने पहली बार देखा था। कई दिनों बाद मिलने पर वह अक्सर अपनी बहन ले गले लग जाता था परंतु आज वह हिम्मत न जुटा पाया। जब तक सुगना की बाहें उसे आलिंगन में लेने के लिए उठतीं सोनू उससे दूर हो गया था।
लाली भी अब हाल में आ चुकी थी सोनू ने लाली के भी पैर छुए लाली भी गाउन में ही थी। यह एक अजीब संयोग था कि सुगना की पेंटी सुबह लाली ने उतार दी थी और बीती रात राजेश का हस्तमैथुन करते समय लाली की ब्रा राजेश ने उतार दी थी और उसकी चुचियों से जी भर कर खेला था।
जैसे ही सोनू लाली के पैर छूकर ऊपर उठा लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया और प्यार से बोला "अरे हमार सोनू बहुत दिन बाद आइल बा"
लाली और सोनू का यह आलिंगन एक भाई बहन के आलिंगन से बेहद अलग था सोनू के सीने से लाली की चूचियां सट गई जिसका एहसास सोनू को हो रहा था उसके हाथ लाली की पीठ पर थे। उसके हाथों ने लाली की पीठ पर कामुक आलिंगन वाला दबाव बना दिया था।
सुगना ने खलल डाला और बोला
"अतना भोरे भोरे कैसे?"
"अरे दीदी 8:00 बजता"
सुगना को अब जाकर एहसास हुआ कि उसे उठने में देर हो गई थी उसे हॉस्पिटल भी जाना था वह आनन-फानन में अपनी साड़ी और ब्लाउज लेकर नहाने चली गई।
लाली रसोई में चाय नाश्ते की तैयारी कर रही थी और सोनू हाल में बैठा हुआ अपनी लाली दीदी के शरीर का मुआयना कर रहा था उसे महिलाओं के शरीर का ज्यादा अनुभव नहीं था। लाली की नंगी चुचियां वह होली के अवसर पर छू चुका था परंतु वह आकस्मिक और होली के भावावेश में हुई घटना थी।
सोनू लाली की चुचियों को देखना चाहता था और उसे अपने हाथों तथा होठों से महसूस करना चाहता था। कॉलेज में जाने के पश्चात उसका सामान्य ज्ञान बढ़ चुका था लाली की कमर और उसकी जांघों के बीच सोचते ही सोनू का लंड बेकाबू हो जाता था।
सुगना बाहर आ चुकी थी। सोनू ना चाहते हुए भी आज सुगना को बार-बार देख रहा था उसे आज पहली बार अपनी बड़ी बहन की खूबसूरती का अंदाजा हुआ था उसने अपना ध्यान हटाया और वापस अपने लक्ष्य लाली पर केंद्रित कर दिया।
कुछ ही देर पश्चात सुगना और सोनू एक ही रिक्शे में बैठकर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। लाली ने कहा "सुगना शाम के जल्दी आजईहे"
धीरे धीरे सोनू सुगना का वह कामुक रूप भूल गया और अपनी बहन के साथ सामान्य रूप से बातें करते हुए हॉस्पिटल आ गया।
सरयू सिंह सुगना और उसके भाई सोनू को देखकर प्रसन्न हो गए। आज वह स्वस्थ लग रहे थे और कमरे में चहलकदमी कर रहे थे। सुगना को देखकर लंगोट में छुपा उनका नाग सतर्क हो गया। अपने बाबूजी को टहलते हुए देखकर सुनना के चेहरे पर खुशी आ गयी।
सरयू सिंह के मन में राजेश को लेकर बेचैनी थी उन्होंने पूछा
" सुगना बेटा राजेश ना अइले हा"
" बाबूजी उ त रात के ही चल गइले"
सरयू सिंह ने चैन की सांस ली वह अपने मन में सुगना और राजेश को लेकर तरह तरह की गलत कल्पनाएं करने लगे थे।
उसी समय दो तीन डॉक्टरों की टीम ने कमरे में प्रवेश किया और सभी लोगों को बाहर जाने के लिए कहा। सरयू सिंह आदर्श पेशेंट की तरह तुरंत बिस्तर पर लेट गए। डॉक्टरों की टीम ने उनका चेकअप किया और बाहर निकल कर कजरी से बोले
"अब यह पूरी तरह ठीक हैं आप लोग इन्हें घर ले जा सकते हैं"
उसने अपने असिस्टेंट से कहा
"इनके डिस्चार्ज पेपर रेडी करा दीजिए"
इस बार डॉक्टर ने सुगना की तरफ देख कर कहा
"और हां एक बात का ध्यान रखिएगा कि यह हमेशा खुश रहे इनका खुश रहना बेहद आवश्यक है वैसे मैं कुछ दवाइयां लिख दे रहा हूं कुछ ही दिनों में वो पूरी तरह खेत जोतने लायक हो जाएंगे।" डाक्टर मुस्कुराने लगा।
डॉक्टर ने यह बात शारीरिक श्रम के भाव से कही थी परंतु सुगना सिहर उठी उसे अपनी जांघों के बीच कोमल खेत की याद आ गई जिसे उसके बाबूजी न जाने कितनी बार जोत चुके थे…
सुगना ने डॉक्टर से पूछा "बाबूजी के माथा के दाग कुछ कम लग रहा है आप उसकी भी दवाई दिए हैं ना?"
डॉक्टर ने कहा
"उस दाग का हमारे पास कोई इलाज नहीं है वह कब बढ़ता है और कब कम होता है यह आपको ही देखना है हमें लगता है वह समय के साथ चला जाएगा वैसे उस दाग से उनके शरीर को कोई दिक्कत नहीं है"
सुगना ने यह महसूस किया था कि पिछले दो दिनों में वह दाग कुछ कम हो गया था। एक पल के लिए उसके मन में आई यह बात फिर प्रगाढ़ हो रही थी कि कहीं यह दाग उसके और उसके बाबूजी के बीच बने अनैतिक कार्यों की वजह से तो नहीं है? उसने अपने दिमाग से यह बात निकाल दी। वैसे भी आज सुगना, कजरी और सोनू तीनों खुश हो गए थे। सुगना अंदर आकर अपने बाबू जी से लिपट गई और बोली "बाबूजी रउआ ठीक हो गईनी आज हमनी के घरे चले के"
सुगना सरयू सिंह से बेहद प्यार करती थी वह उनका आदर और सम्मान भी करती थी। यदि नियति ने साजिश रच कर उनके बीच यह कामुक संबंध न बनाए होते तो सरयू सिंह अपनी बहू सुगना को वैसे ही प्यार करते जैसे कोई आदर्श ससुर अपनी बहू बेटी को करता है बल्कि कहीं उससे ज्यादा। वही हाल सुगना का भी था।
जब तक डिस्चार्ज पेपर तैयार होते हरिया भी हॉस्पिटल आ चुका था। कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपनी दोनों प्रेमिकाओं को अगल-बगल लिए हुए हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे। सोनू ने सारे सामान पकड़ रखे थे और सूरज को संभालने की जिम्मेदारी हरिया ने उठा ली थी। वह नीचे रिक्शा वालों को रोके सरयू सिंह का इंतजार कर रहा था।
सरयू सिह पूरी तरह स्वस्थ थे परंतु कजरी और सुगना उनके साथ साथ चल रहे थे।
हॉस्पिटल के नीचे खड़े रिक्शे के पास पहुंचकर विदाई का वक्त आ गया रिक्शे में कुल 4 व्यक्तियों के जाने की जगह थी सोनू को यहीं से अलग होना था।
हरिया की पत्नी ने अपनी बेटी लाली और उसके बच्चों के लिए कुछ मिठाईयां बनाकर भेजी थी परंतु हरिया अब लाली के घर जाने की स्थिति में नहीं था उसने सोनू से कहा
"बेटा हॉस्टल जाने से पहले ई सामान लाली तक पहुंचा देना"
सुगना ने भी पीछे मुड़कर अपनी ब्लाउज में हाथ डाला और ₹50 के दो नोट निकाल कर सोनू को दिया और बोली
"लाली के बच्चा लोग खातिर चॉकलेट खरीद लीहे और बाकी अपना खर्चा खातिर रख लीहे।"
सुगना भावुक हो गई। सोनू ने सभी के चरण छुए और अंत में सुगना के भी आज सुबह ही उसने सुगना का नया रूप देखा था पर साड़ी में उसका यह रूप सोनू की भावनाओं से मेल खाता था सोनू मन ही मन मुस्कुरा रहा था। जैसे ही वह उठा दोनों भाई बहन स्वाभाविक आलिंगन में आ गए सुगना ने उसके माथे को चूम लिया और बोली..
"आपन ख्याल रखिहे, कोनो दिक्कत परेशानी होखे लाली दीदी भीरे चल जईहे"
हरिया ने भी सुगना की बात को आगे बढ़ाया और बोला..
"कितना बढ़िया बात बा की लाली यही शहर में है जब भी छुट्टी हो लाली के घर चले जाया करो उसका भी मन लग जाया करेगा वइसे भी राजेश बाबू अधिकतर बाहर ही रहते हैं।"
हरिया ने यह बात बोल कर सोनू को एक नई ऊर्जा दे दी। वह लाली से मिलने को बेचैन हो गया। जैसे ही सरयू सिंह और सुगना का रिक्शा स्टेशन की तरफ बड़ा सोनू मन में उमंग लिए तेज कदमों से लाली के घर की तरफ बढ़ चला। उसकी चाल धड़क पिक्चर के हीरो जैसी थी।
रास्ते में बाजार सजा हुआ था परसों ईद की तैयारियां जोरों पर थी। एक से एक सुंदर युवतीयां कुछ बुरके में तो कुछ सलवार सूट में सोनू जैसे मैंने मर्द को लुभा रही थी वह कभी अपने कदम रोक कर उन्हें देखता पर उनमें से कोई भी उसकी लाली दीदी के आसपास न था। लाली की बड़ी-बड़ी चूचियां सोनू के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी। उसने लाली के बच्चों के लिए कई चॉकलेट खरीदी और दो चूसने वाली आइसक्रीम भी खरीदी। वह हॉस्टल जाने के बाद लड़कियों को आइसक्रीम चूसते हुए देखता और वह और उसके दोस्त उसकी तुलना अपनी मनोदशा के हिसाब से अपने लंड से कर लेते।
सोनू तेज कदमों से लाली के घर की तरफ भागता जा रहा था वह आइसक्रीम को रास्ते में पिघलने से रोकना चाहता था और उसे अपनी लाली दीदी के होठों में पिघलते हुए देखना चाहता अंततः वह लाली के दरवाजे पर खड़ा दरवाजा खटखटा रहा था….
"2 मिनट रुक जाइए आ रहे हैं लाली के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज आ रही थी.."
"ठीक है दीदी"
"सुगना कहा है"
"मैं अकेले ही आया हूँ दीदी गांव चली गयी"
"ठीक है तू रूक मैं आती हूँ"
सोनू मैं मन ही मन अंदाजा लगा लिया कि उसकी लाली दीदी बाथरूम में नहा रही थी वह उसकी कल्पनाओं में डूब गया और लाली के आने का इंतजार करने लगा।
उधर सरयू सिंह स्टेशन पर आ चुके थे और ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आज ट्रेन में स्लीपर की बोगी में भीड़भाड़ कम थी सरयू सिंह सपरिवार अपने दोस्त हरिया के साथ स्लीपर में चढ़ गए ट्रेन के चलते ही वह खिड़की से बाहर खेतों और पेड़ों का नजारा देखने लगे 2 दिन हॉस्पिटल में रहने के बाद उन्हें यह खेत खलिहान बेहद पसंद आ रहे थे। ट्रेन की यह स्लीपर बोगी उन्हें उनकी पुरी यात्रा की याद दिलाने लगी। वह पूरी यात्रा की यादों में खो गए…..
पुरी जाते समय कजरी की बेहद उत्साहित थी। आने वाले सात आठ दिन उन तीनों को एक ही कमरे में गुजारने थे सरयू सिंह की उत्तेजना इस समय चरम पर थी वह सुगना की मदमस्त जवानी का भोग लगा रहे थे।
कजरी स्वयं भी सुगना को नग्न देखकर बेहद खुश होती थी उसके मन में अक्सर सुगना को नग्न देखने की चाहत उठती वह उसके कोमल चूचियों को छूना चाहती थी। सुगना की साफ-सुथरी और कोमल बुर भी कजरी को बेहद आकर्षित करती थी। जब से उसने सरयू सिंह के होठों को सुगना के बुर की फांकों से खेलते हुए देखा था उसका मन ललच गया था।
कजरी जितना अपने मन में सुगना के साथ अंतरंग हो जाती थी उतना हकीकत में लगभग असंभव जैसा था। सुगना के मन में कजरी के प्रति इस तरह की कोई भावना न थी वह तो मासूम थी। उसने संभोग का नया नया सुख प्राप्त किया था वह भी अपने बाबूजी के साथ। उम्र का अंतर छोड़ दिया जाए तो सरयू सिंह ने उसकी मनो इच्छा पूरी करने में कोई कमी ना रखी थी। उम्र का यह अंतर उन्होंने अपने मजबूत लंड से मिटा दिया था। जितना सुख सरयू सिंह का वह जादुई लंड सुगना को दे रहा था उतना शायद उसका पति रतन या उस उम्र के लड़के भी ना दे पाते। यह अलग बात थी की नए लड़कों के अनाड़ीपन और अलहड़ता सरयू सिंह में न थी वह एक मजे हुए खिलाड़ी थे।
सरयू सिंह इस बात को लेकर पसोपेश में थे की पुरी पहुंचने के बाद वह होटल में कैसे रहेंगे? क्या एक ही कमरे में दो विवाहित महिलाओं के साथ उन्हें रहने की अनुमति होटल प्रबंधन देगा? क्या यह व्यवस्था उन्हें प्रश्नों के दायरे में नहीं खड़ा कर देगी? वह किस तरह से इस बात को होटल प्रबंधन को समझा पाएंगे?
कजरी तो उनकी पत्नी स्वरूप थी उसे तो वह अपनी भार्या बनाकर अपने कमरे में रख सकते थे परंतु विवाहित सुगना को उसी कमरे में रखना यह कठिन था। दो कमरे लेने में धन का अपव्यय था इतना धन सरयू सिंह के पास ना था कि वह दो अलग-अलग कमरे लेकर अपनी कजरी भाऊ जी और सुगना की मनो इच्छा को पूरा कर पाते।
उन्होंने यह बात कजरी से बताई कजरी एक समझदार महिला थी उसे मुसीबतों से निकलना आता था उसने कहा
"अरे जाए दी कह देब की बेटी ह। आखिर बहू और बेटी में ढेर अंतर ना होला। सुगना के उम्र भी कम बा"
सरयू सिंह को यह बात पसंद आ गई परंतु बेटी शब्द सुनकर उनके मन में अजीब से भाव पैदा हुए सुगना उनकी प्रेमिका थी।
"ओकरा माथे पर सिंदूर देखकर लागी ना कि शादीशुदा ह"
" अरे परेशान मत होई तनी मनी सिंदूर भीतेरी लगा ली और लड़की वाला कपड़ा पहनी साड़ी ब्लाउज ना पहिनी"
सरयू सिंह धीरे धीरे आश्वस्त हो गए सुगना के पास लड़कियों वाले कपड़े न थे। कुछ लहंगा और चोली अवश्य थे जिसे लड़कियां और नव युवतियां बराबरी से प्रयोग करती थीं। कजरी ने सुगना को साड़ी और ब्लाउज ना ले जाने के लिए कहा वह बार-बार जिद करती रही कि वह सिर्फ दो या तीन कपड़ों में इतने दिनों तक कैसे रहेगी परंतु उसकी सास कजरी ने उसे यह कहकर मना लिया उसके लिए नए वस्त्र वहीं खरीदे जाएंगे।
सफर के लिए तैयार होते समय कजरी ने सुगना के बाल बनाएं और उसकी मांग में बिल्कुल छोटा सा सिंदूर लगा दिया जो बालों के बीच लगभग छुप सा गया था सुगना ने पूछा
"सासू मां आज इतना कम सिंदूर"
"अरे सुगना बाबू, शहर जा तारे घूमे, शहर में असही सिंदूर लगावल जाला"
सुगना बेहद उत्साहित थी वह इस प्रपंच में नहीं पड़ना चाहती थी वैसे भी वह लहंगा और चोली में बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे अपने विवाह के पूर्व के दिन याद आ रहे थे।
ट्रेन आ चुकी थी और सुगना अपने सास और बाबूजी के साथ ट्रेन पर सवार हो गयी। उसकी पर्यटन की इच्छा पूर्ण होने वाली थी नियति एक बार फिर उसी ट्रेन पर सवार होकर सुगना को जीवन के नए सुख दिलाने निकल पड़ी थी।
सुबह-सुबह ट्रेन उड़ीसा के पुरी रेलवे स्टेशन पर पहुंच गयी। सरयू सिंह ट्रेन के दरवाजे पर सामान लेकर खड़े थे पीछे पीछे उनकी भौजी कजरी और कोमलांगी सुगना खड़ी थी। तीनों ट्रेन के रुकने का इंतजार कर रहे थे।
टेंपो में बैठकर सरयू सिंह सपरिवार पुरी के समुद्र तट पर पहुंच गए। सड़क के एक तरफ कई प्रकार के छोटे और बड़े होटल थे तथा दूसरी तरफ बेहतरीन और आकर्षक समुद्र तट सुगना की तो जैसे आंखें समुद्र से अटक गई थी वह कजरी के पीछे पीछे चल रही थी परंतु टकटकी लगाकर समुद्र तट की तरफ देख रही कजरी उसका हाथ पकड़कर आगे आगे चल रही थी। कभी-कभी लगता जैसे कजरी सुगना को घसीट रही हो। सरयू सिंह कंधे पर झोला तथा हाथ में दो संदूक लिए हुए कुली की भांति आगे चल रहे थे।
उनके लंड ने उन्हें इस अधेड़ अवस्था में सुगना के साथ हनीमून मनाने पर विवश कर दिया था मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थीं।
तभी एक दलाल सरयू सिंह के पास आया और बोला
"ए चाचा चली होटल दिखा दी बहुत बढ़िया बा सस्ता में"
सरयू सिंह का बजट ज्यादा न था सस्ता शब्द ने उन्हें कुछ ज्यादा ही आकर्षित किया एक तो वह व्यक्ति उनकी भाषा बोल रहा था दूसरे उसने सस्ते होटल का आश्वासन दिया था सरयू सिंह उसके झांसे में आ गए और अपने परिवार को लेकर उसके पीछे पीछे चल पड़े होटल के अंदर प्रवेश करते ही सिगरेट की महक आ रही थी होटल भी उनकी अपेक्षा अनुरूप न था वह उन्हें अपनी प्यारी बहू सुगना के लायक न लगा।
कुछ देर और होटल देखने के बाद सुगना और कजरी के पैर थक गए और अंततः सरयू सिंह ने होटल के रिसेप्शन की चमक दमक देखकर एक होटल को पसंद कर लिया।
होटल के रिसेप्शनिस्ट जो लगभग 20 - 21 साल का युवक था ने पूछा…
"चाचा जी आप का नाम"
"सरयू सिंह"
"चाची आपका"
"कजरी"
"और दीदी का" उसने सुगना की तरफ देखते हुए पूछा।
"सुगना"
कजरी ने जैसा सोचा था ठीक वैसा ही हुआ उस व्यक्ति ने सरयू सिंह और उनकी दोनों प्रेमिकाओं के बीच संबंधों की जगह पर पत्नी और पुत्री लिख दिया। सरयू सिंह अपनी आंखों के सामने उन संबंधों को देख रहे थे पर नियति जो उनके साथ साथ ही घूम रही थी उसने सरयू सिंह का ध्यान वहां से हटा दिया और वह होटल के अटेंडेंट के साथ कजरी और सुगना को लेकर कमरे की तरफ बढ़ चले।

डबल बेड के सुंदर बिस्तर को देखकर सरयू सिंह का लंड उछलने लगा …
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Tiger 786

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अगले कुछ दिनों में सुगना और सरयू सिंह की बीच अंतरंगता और बढ़ती गई. कजरी ने कुंवर जी और सुगना को खुली छूट दे रखी थी। सरयू सिंह और सुगना अब दिन में भी एकाकार हो जाते। इधर कजरी रसोई में खाना पकाती उधर दोनों प्रेमी युगल अपनी रास लीला रचाते। सुगना के अस्त-व्यस्त कपड़े और बिखरे हुए बाल देख कजरी सारा माजरा समझ जाती और मुस्कुराते हुए सुगना से पूछती

"भीतरी गिरावले हां की फिर चुचिये पर"

सुगना शर्मा जाति परंतु वह इशारों ही इशारों में कजरी को उत्तर दे जाती। एक बार कजरी के प्रश्न पूछने पर सुगना उत्तर न दे पायी उसके मुंह में लड्डू भरा हुआ था उसने अपनी साड़ी घुटनों तक उठा दी जांघों से बहता हुआ वीर्य घुटनों तक आ चुका था।

कजरी सारा माजरा समझ गई और मुस्कुराने लगी और बोली...

"अब लगाता तोहार पेट फूल जायी। अपना मन भर सुख ले ल"

बेचारी कजरी को क्या पता था जब तक सुगना लड्डू खाती रहती उसका गर्भवती होना असंभव था.

सुगना मुस्कुरा रही और सरयू सिंह द्वारा दिया हुआ लड्डू खा रही थी। कजरी ससुर बहू के इस प्रेम से अभिभूत थी परंतु लड्डू का राज उसे भी समझ ना आ रहा था।

इधर जैसे-जैसे सुगना अपनी अदाओं से सरयू सिंह को रिझा रही थी उधर सरयू सिंह भी उत्तेजना को नए मुकाम पर ले जा रहे थे। वह शहर जाकर वह सुगना के लिए तरह-तरह की डिजाइनर पेंटी और ब्रा ले आए साथ ही साथ कुछ मैक्सी भी खरीद लाये।

सुगना उनके ख्वाबों की शहजादी वह उसे परियों की तरह सजाना चाहते थे और जी भरकर उसे चोदना चाहते थे। कभी-कभी वह घंटों सुगना के साथ नग्न होकर कोठरी में बंद रहते और कजरी को मजबूरन आवाज देकर उन दोनों को अलग करना पड़ता.

सुगना मैक्सी में अपनी आकर्षक काया लिए हुए लहराती हुई इधर-उधर घूमती और सरयू सिंह मौका देख कर उसे अपनी गोद में बैठा लेते। जब-जब सुगना का चुदने का मन होता वह अपनी पैंटी न पहनती और अपने बाबू जी की गोद में बैठते ही वह जादुई लंड सुगना की पनियायी बुर में प्रवेश कर जाता। उनकी गोद मे उछल कूद करने के बाद सुगना को लड्डू मिलता और वह अपनी जांघों पर बहता हुआ वीर्य लेकर खुशी खुशी वापस कजरी के पास चली जाती.

नया महीना आ चुका था सुगना का भी और अंग्रेजी कैलेंडर का भी। कैलेंडर के नए पृष्ठ पर समुद्र की खूबसूरत फ़ोटो थी जिसे सुगना मंत्रमुग्ध होकर देखती रह गयी। सुगना के चेहरे पर खुशी आ गई।

वह एकटक उस फ़ोटो को देखे जा रही थी तभी सरयू सिह कोठरी में आ गए। सरयू सिंह ने सुगना को गोद में उठा लिया और उसके गालों को चूमते हुए बोले।

" का देख तारू?"

"कतना सुंदर बा ई जगह हमनी के कभी देखे के ना मिली."

सुगना ने अनजाने में ही बाहर घूमने की इच्छा जाहिर कर दी। कई वर्षों बाद उसके मन में यह इच्छा जागी थी। सरयू सिंह को अपनी प्रेमिका की यह इच्छा हनीमून जैसी प्रतीत हुई। सरयू सिंह ने हिम्मत जुटाई और सुगना को किसी समुद्र तट पर ले जाने की सोचा परंतु यह इतना आसान न था वह किस मुंह से सुगना को हनीमून पर ले जाते।

जहां चाह वहां राह। सरयू सिंह ने अपनी व्यूह रचना की और रात को अपनी बाहों में सुगना को लेकर उसे यह खुशखबरी दी। सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही। उसने सरयू सिंह को चूम लिया और एक नई उत्तेजना के साथ उनके ऊपर आ गई सच कहते हैं जब प्रसन्नता मन पर हावी हो तो चुदने चुदाने का आनंद और भी बढ़ जाता है।

सुगना ने इसकी जानकारी कजरी को दी। कजरी भी बेहद प्रसन्न हुई अभी तक सरयू सिंह अपने मन में सिर्फ सुगना का ख्याल लिए हुए हनीमून की तैयारी कर रहे थे उधर कजरी ने भी साथ चलने की इच्छा जाहर की उस बात से उनकी कल्पना में व्यवधान आया और उनके चेहरे पर थोड़ी उदासी आ गई।

नियति मुस्कुरा रही थी। जिस कजरी ने सरयू सिंह को पिछले 10 - 15 सालों से हर सुख दिया था वह उस सुख और उसका साथ भूल कर उसकी बहू सुगना के साथ रंगरलिया मना रहे थे। उन्होंने कजरी को भी साथ ले चलने की स्वीकृति दे दी। खैर कजरी की उपस्थिति से ज्यादा फर्क नहीं पड़ना था। सुगना और सरयू सिंह का मिलन तब तक निर्बाध रूप से होता रहता जब तक कि सुगना गर्भवती ना हो जाती यह बात कजरी भी जानती थी और चाहती भी।

सरयू सिंह ने अपनी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी जिंदगी के सारे अरमान पूरे करने अपनी भौजी कजरी और बहू सुगना को लेकर उड़ीसा के समुद्रतट पुरी जाने की तैयारी करने लगे।

उन्होंने यह बात अपने दोस्त हरिया से कहां

"ढेर दिन हो गोहिल सोचा तानी कजरी के तीरथ (तीर्थ) करा ले आई फेर बुढ़ापा में जाने कब मौका मिली की ना मिली"

सरयू सिंह ने अपने हनीमून को कजरी के सहारे एक नया मोड़ दे दिया था वह गांव में प्रतिष्ठित तो थे ही और अपनी भौजी को तीर्थ पर ले जाने की बात से गांव में उनका सम्मान और बढ़ गया था।

हरिया भी सरयू सिंह से बेहद प्रभावित हो गया उसने पूछा

"और सुगना बेटी ?."

"अकेले उ कहां रही उ भी संग ही जायी।"

हरिया बात समझ चुका था उसने सरयू सिंह के घर की देखरेख करने का जिम्मा उठा लिया। यह पहला अवसर था जब वह अपनी भौजी को लेकर किसी दूसरे शहर में जा रहे थे और आने वाले कई दिन सिर्फ और सिर्फ पर्यटन और सुगना के साथ हनीमून का आनंद लेना चाहते थे।

कजरी भौजी की खुली सहमति और सुगना की इच्छा दोनों ही सुगना से संभोग करने के लिए उन्हें प्रेरित करती उन्होंने मन ही मन कई सारी कल्पनाएं की थी जिन्हें वह साकार करना चाहते थे। अपनी सुगना और ध्यान में रखते हुए उन्होंने स्लीपर क्लास के तीन टिकट कटा लिए और अपनी बहु सुगना और भौजी कजरी को लेकर तीर्थ यात्रा पर निकलने की तैयारी करने लगे।

सुगना को गर्भधारण से बचाने के लिए अब तक वह जिस लड्डू का प्रयोग करते आ रहे थे उसे आगे प्रयोग करना कठिन होता इस बात का अंदाजा उन्हें था। उन्होंने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र जाकर गर्भनिरोध के अन्य उपायों की जानकारी ली। दूसरा उपाय एक इंजेक्शन था जिससे अनचाहे गर्भ को अगले 2 वर्ष तक रोका जा सकता था सरयू सिंह अपनी वासना के अधीन थे उन्होंने मन ही मन सुगना को वह इंजेक्शन दिलाने की सोची .

परंतु जब जब वह उसके मासूम चेहरे को देखते और उसकी मां बनने की चाह के बारे में सोचते वह अपने फैसले में पाप का अंश महसूस करते। उनकी दुविधा बढ़ रही थी और पुरी जाने के दिन नजदीक आ रहे थे इसी दौरान सुगना के हाँथ में लोहे की एक पुरानी कील चुभ गई। उन दिनों टिटनेस इंजेक्शन का बहुत प्रचलन था।

सरयू सिंह सुगना को लेकर प्राथमिक सामुदायिक केंद्र पहुंच गए। एक पल के लिए सरयू सिंह की वासना फिर हावी हो गई और सुगना को उन्होंने 2 इंजेक्शन लगवा दिए। कम्पाउंडर राजवीर उनका राजदार बन गया उसने सुगना को 2 इंजेक्शन लगाए। पहला टिटनेस का और दूसरा आने वाले 2 वर्ष तक उसकी खुशियों का।

सुगना को एक इंजेक्शन के बारे में तो पता था परंतु दूसरे इंजेक्शन से वह पूरी तरह अनजान थी उसमें अपने बाबू जी पर पूरा विश्वास किया था परंतु सरयू सिंह ने अपनी बहू से छल किया था।

इंजेक्शन सुगना के शरीर में प्रवेश कर चुका था अब उसका कोई काट ना था अगले 2 वर्ष तक सुगना को सिर्फ और सिर्फ चुदना था और प्रकृति द्वारा प्रदत गदराई हुई जवानी का भरपूर आनंद लेना था। सरयू सिंह का वीर्य उसकी बुर के लिए किसी काम का ना रह गया था उससे सिर्फ और सिर्फ सुगना की चूचियों की मालिश हो सकती थी।

कुछ ही दिनों बाद सरयू सिंह अपनी बहू सुगना और भौजी कजरी को लेकर ट्रेन में सवार हो चुके थे सबके मन में अपने अपने अरमान थे कजरी को इस बात का इल्म न था की सरयू सिंह इस अवसर को हनीमून के रूप में देख रहे हैं परंतु कजरी खुद मन ही मन यह सोच रही थी कि क्या वह तीनों लोग एक ही कमरे में रहेंगे? यदि ऐसा हुआ तो क्या उसके कुंवर जी बिना संभोग किए रह पाएंगे?

सरयू सिंह जब जब अपनी पुरी यात्रा को याद करते थे उनका ल** तनाव में आ जाता था और जब तक कि उसे सुगना कि बुर् का कोमल स्पर्श ना मिलता वह शांत ना होता.


(आइए कहानी को वर्तमान में ले आते हैं)

हॉस्पिटल के बिस्तर पर लेटे हुए सरयू सिंह अपनी सुनहरी यादों से वापस आ गए थे उनका लंड सुगना के साथ बिताए गए कामुक पलों को याद कर खड़ा हो गया था जिसे वह अपने हाथों से शांत करने का प्रयास कर रहे थे। जितना ही वह उसे शांत करते वह उद्दंड बालक की तरह उतना ही उत्तेजित होता। वह धोती से बाहर आ चुका था कजरी पड़ी बेंच पर सोने का प्रयास कर रही थी। सरयू सिंह के बिस्तर पर हो रही हलचल को देखकर व उनके पास आ गई और बोली

"नींद नईखे आवत का ?"

सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती के अंदर ढका पर उसके आकार को कजरी से न छुपा पाए। कजरी ने उसका तनाव देख लिया और बोला

"अब ई महाराज काहै खड़ा बाड़े? रउआ ई कुल मत सोचल करिन।"

सरयू सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज हमरा दीपावली वाला दिन याद आवत रहल हा।"

कजरी मुस्कुराने लगी उसे भी दीपावली की वह रात कभी न भूलती थी। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने हाथों में ले लिया और बोली

"अब तू शांत हो जा. सुगना के लाइका दे देला अब ओकरा के तंग मत कर"

सरयू सिंह ने कहा " अब सुगना के मन ना करेला का"

कजरी ने कहा

"ना आइसन बात नइखे। लेकिन राउर दाग से चिंतित रहेले। ओकरा लागेला कि जब जब रउआ संगे सुते ले राउर दाग और बढ़ जाला"

सरयू सिंह को भी यह प्रतीत होता था कि नीचे इस दाग में कोई न कोई रहस्य अवश्य है परंतु वह इसका स्पस्ट उत्तर नही जानते थे।

कजरी उनके लंड को हाथों से सहला रही थी। उनकी प्यारी बहू सुगना अपनी सहेली लाली के घर जा चुकी थी। तभी कमरे का दरवाजा खुला और एक खूबसूरत नर्स कमरे में प्रवेश की। उस नर्स की उम्र सुगना जैसी ही थी और प्रकृति ने उसकी चुचियों, जांघों और नितंबों को भी वैसी ही खूबसूरती प्रदान की थी जैसी उनकी बहू सुगना को। सरयू सिंह के मन में वासना जाग उठी उन्हें पता था वह नर्स के साथ कुछ भी कर पाना असंभव था पर मन का क्या वह तो निराला था सरयू सिंह धोती से अपने तने हुए लंड को छुपा रहे थे।

अचानक उन्हें नर्स के हाथ में इंजेक्शन दिखाई पड़ा सरयू सिंह के होश फाख्ता हो गए। सारी उत्तेजना ढीली पड़ती गई। परंतु उनका लंड अभी भी इस अनजानी और खूबसूरत बुर की कल्पना में डूबा हुआ था। वह अपना सर झुकाने को तैयार न था।

नर्स ने कहा

"पीछे पलट जाइए कमर में इंजेक्शन देना है"

सरयू सिंह के करीब खड़ी कजरी ने उनकी धोती सरकाई और नर्स ने अपने कोमल हाथों से उनके नितंबों को थोड़ा रगड़ा और अगले ही पल इंजेक्शन घुसा दिया। सरयू सिंह दर्द से कराह उठे ज्यों ज्यों इंजेक्शन में भरी दवा अंदर जा रही थी एक तेज दर्द की लहर सरयू सिंह को महसूस हो रही थी अब उनका लंड भी अपना गुरुर भूलकर धीरे-धीरे शिथिल हो रहा था।

नर्स के जाने के पश्चात सरयू सिंह इस दर्द से निजात पाने की कोशिश कर रहे थे कजरी उनके नितंबों को से लाई जा रही थी उनका लंड अब उम्मीद खो चुका था और सिकुड़ कर छुप गया था।

कजरी ने उस लंड को वापस छूने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने रोक लिया और बोला

"जायेद अब रहे द"

सरयू सिंह की उत्तेजना शांत हो चुकी थी और वह सोने का प्रयास करने लगे।

उधर हरिया सुगना और सूरज को लेकर लाली के घर आ गया। लाली सुगना को देखकर खुश हो गई उसने अपने पिता और सहेली का खूब स्वागत किया सरयू सिंह की स्थिति जानकर वह थोड़ा दुखी हुई पर उसे इस बात का संतोष था कि अब वह पूरी तरह होश में थे।

राजेश के घर में दो कमरे थे दोनों ही कमरे पर्याप्त बड़े थे वैसे भी रेलवे के घरों में जगह की कमी नहीं होती है राजेश और लाली ने दो चौकियों को जोड़कर एक बड़ा सा बिस्तर बना लिया था जिस पर राजेश और लाली तथा उनके दोनों बच्चे राजू और रीना सोया करते थे।

यह बिस्तर राजू और रीना की बाल सुलभ क्रीडा ओं का मैदान भी था और बच्चों के सो जाने के पश्चात वह काम क्रीड़ा के लिए भी प्रयोग में आता था।

दूसरे कमरे में उन्होंने बैठका बना रखा था जिसमें एक पतली चौकी पड़ी हुई थी जो किसी आगंतुक के सोने के काम आती घर में एक रसोई और एक गुसलखाना भी था।

लाली और सुगना रसोई खाना बना रहे थे और हरिया अपने नाती और नातिन के साथ खेल रहा था। सुगना का पुत्र सूरज एक किनारे आराम से सो रहा था। राजू और रीमा कभी उसकी पीठ पर चढ़ते कभी उसके मूंछ के बाल खींचते हरिया उनकी बाल सुलभ लीलाओं से प्रसन्न होकर ऊपर वाले को धन्यवाद दे रहा था जिसने उसकी लाली को ऐसे सुंदर और प्यारी औलाद दे दी थी। वह राजेश का भी शुक्रगुजार था जिसने लाली को हर सुख दिया था।

राजेश को आज घर नहीं आना था वह आज ही ट्रेन लेकर लखनऊ गया हुआ था। हरिया रात में खाना खाने के पश्चात बैठका में लगे हुए चौकी पर सो गया सुगना और लाली दोनों अंदर के कमरे में आ गई बच्चों को सुलाने के बाद बिस्तर पर लेटे लेटे वह दोनों बातें करने लगी।

सुगना उठकर बाथरूम की तरफ गई तभी लाली को राजेश की बातें याद आने लगी आज राजेश के ख्वाबों की मलिका उसके घर में थी घर में ही क्या उसके अपने बिस्तर पर थी काश राजेश यहां होता और अपनी सुगना को अपने बिस्तर पर देखकर उसकी कल्पनाएं आसमान छूने लगती। सुगना स्वयं लाली के बिस्तर पर आकर उत्तेजित महसूस कर रहे थे उसे पता था इस बिस्तर पर उसकी सहेली लाली जाने कितनी बार चुदी होगी।

सुगना के आने के बाद लाली ने कहा

"तोर जीजा जी आज घर में रहिते तो खुश हो जइते"

" ई काहें"

"उनके से पूछ लीह"

"खिसिया मत" ( नाराज मत हो)

लाली खुश थी उसने सुगना को राजेश की कल्पनाओं के बारे में खुलकर बता दिया जितना वह राजेश की कामुक कल्पनाओं के बारे में सुगना को बताती सुगना के कान और चौड़े हो जाते तथा बुर सावधान हो जाती.

सुगना और लाली दोनों अच्छी सहेलियां थी लाली के मुंह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सुगना की बुर पनिया चुकी थी लाली भी उत्तेजित थी। दोनों सहेलियां अपने अपने मन में कई तरह के ख्याल लेकर सो गयीं।

अगली सुबह हरिया और सुगना वापस हॉस्पिटल चले गए। लाली और सुगना ने मिलकर कजरी और सरयू सिंह के लिए खाना बना लिया था। हॉस्पिटल पहुंचने पर सुगना को देख सरयू सिंह प्रसन्न हो गए एक ही रात में सुगना से हुई दूरी ने उन्हें कर भावुक कर दिया था वह सुगना के लिए दिन पर दिन अधीर होते जा रहे थे।

दोपहर में राजेश लखनऊ से वापस आ गया लाली ने उसे सरयू सिंह और सुगना के आने की सूचना दी राजेश एक तरफ तो सरयू सिंह के लिए थोड़ा सा दुखी हुआ पर सुगना के आगमन के बारे में सुनकर उसका दिल बल्लियों उछलने लगा उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके इतने करीब है इस एहसास ने उसके दिल और दिमाग को अंदर तक गुदगुदा दिया वह लाली को दिखाकर बिस्तर के उस भाग को चूमने लगा जहां सुगना सोई हुई थी लाली हंस रही थी।

उसने कहा..

चली हॉस्पिटल चल के सब केहू से मिली आईल जाओ

राजेश प्रसन्न हो गया और कुछ देर बाद लाली और अपने दोनों छोटे बच्चों को लेकर हॉस्पिटल जाने के लिए रिक्शे में बैठ गया…


शेष अगले भाग में
Rajesh to bohot khush hoga hi.sugna jo pass hi hai.dekhte hai koi seen banta hai
Awesome update
 
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khemucha

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इस बार अपडेट में विलंब हुआ जिसका कारण समय उपलब्ध न हो पाना था अगला अपडेट एक-दो दिन में आ जाएगा जुड़े रहे तथा संजू @ एवं टाइगर 786 की तरह अपनी प्रतिक्रिया अवश्य देते रहें धन्यवाद है
chinta ki koi baat nahi ... jab samy mile tab likhiyega ... hume pata hai ki jo bhi pahdne ko milega ... umda hoga ...
 

Tiger 786

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रिक्शे में बैठा राजेश सुगना के बारे में सोचने लगा। सुगना जैसी खूबसूरत और जवान युवती के साथ भगवान ने ऐसी नाइंसाफी क्यों की थी? उसका पति हर 6 महीने में गांव आता था। उस बेचारी को पति का सुख उन 3 -4 दिनों के लिए ही मिलता था. बाकी समय उसकी गदराई और मदमस्त जवानी का कोई पूछनहार न था.

राजेश इस बात को लेकर सुगना से बेहद हमदर्दी रखता था। सुगना भी राजेश के करीब आ रही थी यह बात राजेश ने महसूस की थी। जब भी वह अपनी ससुराल जाता सुगना राजेश के लिए तरह-तरह की खानपान की सामग्री बनाती. राजेश उसकी ढेर सारी तारीफ करता और जीजा साली एक दूसरे के प्रति प्रेम का इजहार अपनी आंखों ही आंखों में कर लेते। राजेश उसके लिए उपहार भी ले जाने लगा था जिसे सुगना सहर्ष स्वीकार कर लेती।

इस बार की होली ने राजेश और लाली के बीच सुगना को लेकर आम सहमति बना दी। लाली को अब सुगना और राजेश के बीच पनप रहे कामुक संबंधों से परहेज न रहा। यही हाल राजेश का था वह लाली में सुगना के भाई सोनू के प्रति कामवासना भड़का रहा था।

दरअसल राजेश एक खुले विचार का आदमी था उसके जीवन में कामुकता और सेक्स का विशेष स्थान था। उसे पता था लाली और उसके बीच जो संबंध है उसकी डोर मजबूत थी थोड़ा बहुत व्यभिचार से यदि आनंद बढ़ता था तो उसे इसमे कोई आपत्ति न थी। अब तो लाली भी उसकी इच्छा में शामिल हो गई थी और नियति ने उनकी इच्छा पूर्ति के लिए सुगना और सोनू को उनसे मिला दिया था।

रिक्शा हॉस्पिटल के सामने पहुंच चुका था। राजेश ने राजू को गोद में लिया और लाली ने रीमा को। दोनों पति पत्नी हॉस्पिटल की सीढ़ियां चढ़ते हुए सरयू सिंह के कमरे में आ गए। सरयू सिंह बिस्तर पर पड़े हुए कमरे में घुस रहे अपने प्रतिद्वंदी को देख रहे थे। राजेश ने उन्हें नमस्कार किया और उनका हालचाल लिया। राजेश की निगाहें कुछ देर तो सरयू सिंह के ऊपर रही पर शीघ्र ही अपने लक्ष्य पर पहुंच गयीं।


सुगना के मासूम चेहरे पर प्यार बरसाने के बाद उसकी निगाहों में कामुकता जाग उठी। राजेश की निगाहें सुगना की चूचियों और कटीली कमर पर पड़ीं। कमर के उस गोरे हिस्से जो ब्लाउज और कमर पर साड़ी के घेरे के बीच दिखाई पड़ रहा था उसके बीच सुगना की सुंदर नाभि सुगना के छुपे खजाने का स्पष्ट संकेत दे रही थी। राजेश ने सुगना की नाभि को देख कर मन ही मन सुगना की कसी हुयी बुर की कल्पना कर ली।

सुगना ने राजेश की निगाहों को अपने शरीर पर महसूस कर लिया था। वह गठरी की भांति सिमट रही थी। उसने लाली की गोद से रीमा को ले लिया और लाली को अपने बगल में बैठा लिया। वह राजेश की कामुक निगाहों को अपने बाबू जी के सामने सहने की स्थिति में नहीं थी।

राजेश ने नर्स से उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी इकट्ठा की। वहां उपस्थित सारे लोगों में राजेश सबसे पढ़ा लिखा और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। सरयू सिंह भी अपनी युवावस्था में इसी प्रकार अपनी काबिलियत के बल पर कई लड़कियों और युवतियों को प्रभावित करते थे। आज राजेश उनके सामने ही उनकी सुगना को उनसे दूर करने जा रहा था। सरयू सिंह की सोच ना चाहते हुए भी राजेश को प्रतिद्वंदी की निगाह से देख रही थी। इसके उलट राजेश उन्हें और अपने ससुर हरिया को एक ही निगाह से देखता था। सुगना उसकी साली थी और जिस अवस्था से गुजर रही थी उसने राजेश के मन में सुगना के प्रति स्वाभाविक कामवासना को जन्म दिया था। राजेश को तो यह इल्म भी न था की हॉस्पिटल के बेड पर पड़ा हुआ यह अधेड़ अपनी बहू सुगना से ऐसे संबंध बनाए हुए था।

अचानक हरिया ने कहा

"भैया आज हम गांव चल जा तानी खेत में खाद डाले के बा. कल फिर आईब"

हरिया यह जान चुका था कि राजेश आज घर पर ही रहेगा और घर की हालत ऐसी न थी जहां अधिक मेहमान एक साथ रह सकते थे उसने गांव जाना ही बेहतर समझा।

कुछ देर और बातें करने के पश्चात हरिया गांव के लिए निकल गया.


शाम हो रही थी। लाली की बेटी रीमा रो रही थी। सरयू सिंह ने राजेश से कहा..

"बेटा अब आप लोग भी जाके आराम करो बच्चा सब भी परेशान हो रहे हैं" सरयू सिंह राजेश से हिंदी में बात करने का प्रयास कर रहे थे। राजेश ने लाली की तरफ देखा और उसकी इच्छा जाननी चाही। आंखों ही आंखों में लाली की सहमति प्राप्त कर उसने कहा..

" ठीक है । अब हम लोग जा रहे है। काल फिर आएंगे"

सरयू सिंह खुश हो गए। उन्हें जाने क्यों यह उम्मीद हो गई थी कि आज सुगना राजेश के घर नहीं जाएगी। आखिर अब वहां जाने का कोई औचित्य भी न था। आज लाली का पति घर आ चुका था।

राजेश उठ कर खड़ा हो गया। लाली ने सुगना से कहा

"सुगना चला ना ता अंधेरा हो जाई"

कजरी भी यही चाहती थी कि सुगना लाली के साथ चली जाए ताकि उसके बेटे सूरज को कोई दिक्कत ना हो।

लाली ने कजरी के मुंह की बात छीन ली थी। कजरी में उसका साथ देते हुए कहा

"अरे सुगना.. सूरज बाबू के भूख लागल होइ घर जाकर कुछ खिया पिया दीह"

सूरज का नाम सुनकर सरयू सिंह शांत हो गए। एक बार फिर उनकी प्यारी सुगना उनकी आंखों के सामने उनसे दूर अपने प्रेमी राजेश के साथ जा रही थी। उनके दिल का दर्द एक बार फिर बढ़ रहा था। नियति उनके साथ यह खेल क्यों खेल रही थी वह स्वयं ना समझ पा रहे थे।

कजरी उनके मन की व्यथा जान रही थी। जब से उनके जीवन में सुगना आई थी तब से शायद ही कोई दिन ऐसा था जिस दिन उनके लंड ने वीर्य प्रवाह ना किया हो। सरयू सिंह दिन में कभी एक बार तो कभी दो बार सुगना या कजरी को जमकर चोदते तथा अपनी कामवासना को शांत करते। उनमें यह आग पिछले दो-तीन वर्षों में और भी बढ़ गई थी। निश्चय ही इसकी जिम्मेदार सुगना की मदमस्त जवानी और उनकी पुरी यात्रा थी जिसमें सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के साथ कामकला के विविध रंग देखे थे।

सरयू सिंह अपना सोया हुआ लंड लेकर बिस्तर पर पड़े हुए थे। जब तक सुगना यहां थी वह चहक रहे थे। वह मन ही मन हॉस्पिटल के इस बिस्तर पर भी सुगना को चोदना चाहते थे। उसके जाते ही उनका चेहरा उदास हो गया कजरी ने कहा..

"अपना सुगना बाबू के याद कर तानी हां?"

कजरी ने सरयू सिंह की दुखती रग पर हाथ रख दिया था. सरयू सिंह मुस्कुराने लगे वह आज कुछ तरोताजा महसूस कर रहे थे. कजरी ने फिर कहा

"अब ई कुल चोदा चोदी छोड़ दीं। हर चीज के ए गो उमर होला। सुगना त अभी जवान बिया हमनी के उम्र गइल अब ई कुल ठीक नइखे।"

( हर चीज की एक उम्र होती है सुगना तो अभी जवान है पर हम लोग अब बूढ़े हो चले हैं)

सरयू सिंह कजरी की बातें सुन तो रहे थे पर उनका लंड इस बात को सिरे से नकार रहा था। शिलाजीत का असर अभी भी उस पर था। सुगना के साथ चोदा चोदी की बातें सुनकर वह हरकत में आ गया और धोती में एक नाग की भांति अपना सर उठाने लगा। कजरी ने हॉस्पिटल के कमरे का दरवाजा बंद किया और सरयू सिंह के लंड को सहलाने लगी। उसे पता था सरयू सिंह को सबसे ज्यादा आनंद स्खलित होने में ही मिलेगा। शायद वह सुगना की कमी को कुछ हद पूरा कर पाएगी और अपने कुँवर जी के चेहरे पर वापस ताजगी ला पाएगी।

कजरी सरयू सिंह के लंड को हाथों में लेकर सहलाने लगी वह अब अपनी बुर को सन्यास दिला चुकी थी परंतु आवश्यकता पड़ने पर अपने हाथों के कमाल से शरीर सिंह को खुश कर देती। आज भी उसने सरयू सिंह के लंड को सहलाना शुरु कर दिया था।

उधर राजेश अपनी पत्नी और अपनी प्यारी साली को लेकर हॉस्पिटल के नीचे आ चुका था उसने लाली और सुगना को एक रिक्शे में बैठाया तथा दूसरे रिक्शा अपने पुत्र राजू को लेकर घर की तरफ निकल पड़ा लाली और सुनना का रिक्शा आगे आगे चल रहा था और राजेश का उनके पीछे।

राजेश को आज ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसकी बहुप्रतीक्षित प्रेमिका उसके घर आई हुई थी। राजेश ने घर पहुंचने के ठीक पहले रिक्शा रोक दिया और आइसक्रीम तथा मोतीचूर के लड्डू खरीद लिए। उसने शायद लाली से कभी सुन रखा था कि सुगना को मोतीचूर के लड्डू बेहद पसंद थे।

सुगना और लाली ने घर पहुंचते ही बच्चों के खान-पान का प्रबंध किया बच्चे अस्पताल के वातावरण में कुछ देर में ही तंग हो गए थे। बच्चों का खाना पीना समाप्त होते हैं वह कमरे में लगे बड़े बिस्तर पर खेलने लगे। राजेश के दोनों बच्चे उससे बेहद प्यार करते थे और उसके पीठ पर चढ़कर खेल रहे राजेश भी उनका साथ पाकर आनंदित था ।

उसने सुगना के पुत्र सूरज को अपनी गोद में लेने की चेष्टा की। सूरज राजेश के पास नहीं जाना चाहता था पर उसके हाथ में एक नया और अनजान खिलौना देखकर उसे लेने के लिए राजेश की तरफ हाथ बढ़ाया इसी समय राजेश ने अपने दोनों हाथ बढ़ा दिए और सूरज उसकी गोद में आ गया पर सूरज के हस्तांतरण के समय राजेश की हथेलियों ने सुगना के वक्ष स्थल पर तने हुए सांची के स्तूपों को छू लिया यह घटना अकस्मात हुई थी पर उसकी सिहरन जीजा और साली दोनों में हुई थी। एक पल के लिए राजेश का लंड हरकत में आ गया था। सभी चूचियां उतनी ही कोमल होती है परंतु पराई और अपरिचित चूँची की बात ही अलग थी। सुगना भी अपनी जाँघों के बीच में अनजाना करेंट महसूस कर रही थी। उसने अपनी आंखें झुका ली और कमरे से बाहर आ गई।


कुछ देर खेलने के बाद लाली के दोनों बच्चे राजू और रीमा निद्रा देवी के आगोश में चले गए। सुगना का पुत्र सूरज बिना सुगना की चुचियों का रसपान किये नहीं सोता था। वह अभी भी जाग रहा था और राजेश के साथ खेल रहा था।

सुगना जब भी कमरे की तरफ देखती उसे यह देखकर बेहद हर्ष होता की राजेश सूरज को कितना प्यार करता है जिस तरह बछड़े को प्यार करने से मां स्वतः ही करीब आ जाती है वही हाल सुगना का राजेश उसे पसंद आने लगा था।

लाली ने कहा "जा सूरज के सुता दा उ भी थक गईल होइ"

सुगना कमरे में आ गई और राजेश से बोली

"लाइए मुझे दे दीजिए आपको बहुत तंग किया होगा"

सुगना आवश्यकता पड़ने पर हिंदी बोल लेती थी वह अपनी मां और फौजी पिता के साथ जब कई वर्षों तक बाहर रही थी उस दौरान उसने यह गुण सीख रखा था परंतु यह हिंदी भाषा वह सोच समझकर बोलती थी स्वाभाविक रूप से वह अपनी मूल भाषा में ही बात करती थी।

एक बार फिर सूरज का हस्तांतरण हुआ पर राजेश के हाथों को सुगना का उभरी हुयी चूँचियों का स्पर्श प्राप्त ना हो सका।

राजेश ने कहा बहुत "प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है"

इतना कहकर राजेश ने सूरज के गाल पर चुंबन ले लिया सूरज का गाल और सुगना के गाल में ज्यादा दूरी न थी एक पल के लिए सुगना को लगा जैसे सूरज के बाद उसकी ही बारी है तभी लाली कमरे में आ गयी।

सुगना सूरज को लेकर कमरे से बाहर जाने लगी तभी लाली ने उसे रोक लिया और बोली

"एहीजे बैठ के दूध पिया ल"

सुगना राजेश के सामने अपनी चूचियां खोलकर सूरज को दूध पिलाने में शर्मा रही थी उसकी दुविधा देखकर राजेश ने कहा

" आप आराम से बैठ जाइए मैं बाहर घूम कर आता हूं"

लाली ने अधिकार पूर्वक कहा

" अरे आप बैठिए सुगना दूसरी तरफ मुंह करके पिला लेगी।"

सुगना बिस्तर पर बैठ गई और सूरज को दूध पिलाने लगी। राजेश दीवाल पर टेक लगा कर बैठा हुआ था। सुगना ने अपने आंचल से अपनी चुचियाँ ढक लीं और सूरज को दूध पिलाने लगी। सुगना की पीठ राजेश की तरफ थी।

लाली ने राजेश को छेड़ा..

"लीजिए अब तो आपकी साली घर आ गई कीजिए उसका स्वागत जैसे हमसे बात करते थे"

राजेश शर्म से पानी पानी हो गया लाली इस तरह की बात बोल जाएगी उसने कभी न सोचा था। वह निरुत्तर हो गया। उधर सुगना अपना सर नीचे किये मुस्कुरा रही थी। पिछली रात लाली ने राजेश द्वारा उसे लेकर की जाने वाली बातों का एहसास करा दिया था। इतना तो सुगना को भी पता था कि पति-पत्नी के बीच में ढेर सारी ऐसी बातें होती हैं जिनका हकीकत से कोई लेना देना नहीं होता। खुद सरयू सिंह उसके साथ ऐसी ऐसी कल्पनाएं किया करते थे जो संभव न था पर उसका आनंद सरयू सिंह भी लेते थे और सुगना भी।


राजेश उसके प्रति आकर्षित था पर लाली जितना बोलती थी उतना सोचना तो आसान था पर करना कठिन। सुगना की जांघों के बीच तनाव बढ़ रहा था उसकी कोमल बुर सचेत हो गई थी।

राजेश ने बात बदलते हुए कहा

"आप के आदेश पर आपकी सहेली के लिए आइसक्रीम ले आया हूं"

" और वह मोतीचूर का लड्डू क्या अकेले में खिलाएगा"

लाली फिर हंस पड़ी थी वह राजेश पर प्रहार किए जा रही थी और सुगना सर नीचे किए हुए मुस्कुरा रही थी।

राजेश भी


हाजिर जवाब था उसने कहा

"अरे आप मौका दीजिएगा तब ना लड्डू खिलाएंगे"

लाली ने झूठ मुठ का गुस्सा दिखाते हुए बोला

"ठीक है हम जा रहे हैं खाना निकालने तब तक अपनी साली को लड्डू खिला लीजिए"

वह उठकर जाने लगी। सुगना ने लाली का हाथ पकड़ लिया और बोला

"हम तोरा रहते लड्डू खा लेब हमरा लड्डू खाए में कौन लाज लागल बा"

सुगना की बात सुनकर राजेश को बल मिला वह बोला "मेरी साली साहिबा ज्यादा समझदार है"

तीनों हंसने लगे थे अब तक सूरज सो चुका था। सुगना ने उसे सुलाने के लिए अनजाने में ही राजेश की तरफ मुड़ गई उसे अपनी चूचियां ढकने का ख्याल न रहा और सूरज को बिस्तर पर सुलाते समय उसने अपनी कोमल नंगी चूचि और खुले हुए निपल्ल का दर्शन राजेश को करा दिया। लाली ने राजेश की निगाहों को सुगना की चुचियों पर निशाना साधते देख लिया और सुगना से हंसते हुए बोली..

"ए सुगना एक आदमी और पियासल बा, कुछ दूध बाचल बा का?"

राजेश की चोरी पकड़ी गई थी सुगना ने राजेश की निगाहों को अपनी चुचियों पर महसूस कर लिया और तुरंत ही अपनी चूचियां ढक लीं.

उसने कुछ कहा नहीं और मुस्कुराते हुए बोली

"ते पागल हो गईल बाड़े चल खाना निकल जाऊ"

उसी समय एक व्यक्ति द्वारा दरवाजा खटखटाने का का एहसास हुआ। राजेश ने उठकर दरवाजा खोला उस व्यक्ति ने कहा

"स्टेशन मास्टर साहब ने आपको बुलाया है"

"ठीक है मैं आता हूं" राजेश ने कहा।

राजेश कपड़े पहन कर बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा। लाली थोड़ा दुखी हो गई पर राजेश ने कहा

"अरे तुम खाना निकालो मैं थोड़ी देर में आ जाऊंगा" लाली थोड़े गुस्से में थी।

राजेश के जाने के पश्चात सुगना ने लाली का गुस्सा शांत किया और वह दोनों सहेलियां आपस में हंस-हंसकर बातें करने लगी। लाली ने सुगना से कहा...

"चल तब तक हमनी के कपड़ा बदल लीहल जाउ"

आज ही राजेश ने लखनऊ से आते समय लाली के लिए एक सुंदर नाइट गाउन लाया था। यह नाइट गाउन फ्रंट ओपन टाइप का था जिसे कमर में बने कपड़े के बेल्ट द्वारा बांधा जा सकता था उसका कपड़ा बेहद मुलायम और कोमल था सुगना उसे अपने हाथों में लेकर छू रही थी। उसने इतना अच्छा और कोमल नाइट गाउन पहले कभी नहीं देखा था।

लाली ने कहा

"ए सुगना आज तू ई हे पहिंन ला"

" हट पागल, जीजा जी तोहरा खातिर ले आईल बाड़े."

"पर तोरा के पहिंनले देखे लीहें तो और मस्त हो जइहें. हमार कसम पहिंन ले"

लाली की जिद के आगे सुगना की एक न चली और उसने वह नाइट गाउन पहनने के लिए अपनी रजामंदी दे दी। अचानक सुगना को याद आया उसने पेंटी नहीं पहनी थी साड़ी और पेटीकोट पहनने के बाद उसकी कोई विशेष आवश्यकता वह महसूस नहीं करती थी। आज दिन भर तो वह बिना ब्रा के रही थी दरअसल दूध भरे होने के कारण सुगना की चूचियां ज्यादा बड़ी थी।

आज सुबह नहाने के पश्चात सुगना ने लाली की साड़ी और पेटीकोट तो पहन लिया था परंतु उसकी ब्रा सुगना को फिट नहीं आ रही थी बड़ी मुश्किल से एक पुरानी ब्लाउज सुगना की चूँचियों को ढक पाने में कामयाब हुई थी। इस कसी हुई ब्लाउज की वजह से सुगना की चूचियां और तन गई थी तथा निप्पल अपनी उपस्थिति साफ साफ दिखा रहे थे जिसे सुगना अपने आंचल से ढक कर उसे छुपाने का प्रयास कर रही थी।

सुगना ने लाली से कहा

"गाउन पेटीकोट के ऊपर से पहनब हमरा भीरी नीचे के कपड़ा नईखे"

लाली सुगना की दुविधा समझ गई और अपनी अलमारी खोलकर एक सुंदर सी लाल रंग की पेंटी निकाली। सुगना के नितंब लाली के नितंबों से थोड़ा ही बड़े थे परंतु पेंटी लचीले कपड़े से बनी हुई थी थोड़ा प्रयास करने पर सुगना ने उसे पहन लिया सुगना की गोरी जांघो पर लाली की निगाहें टिक गई वो बेहद खूबसूरत थीं और केले के तने की भांति चमक रही थीं। सुगना का सिर्फ रंग ही गोरा न था उसकी त्वचा में एक अलग किस्म की चमक थी।

लाली ने कहा..

"तोर जाँघ कतना चमकत बा का लगावे ले"

सुगना मुस्कुरा रही थी उसने कोई उत्तर न दिया वह अपने गनितंबों को उस लाल पेंटी में व्यवस्थित कर रही थी।

कुछ देर में उसने लाली की साड़ी और पेटीकोट को उतार दिया तथा उस सुंदर नाइट का उनको अपने शरीर पर धारण कर लिया। सुगना की खूबसूरती देखते ही बन रही थी वह खूबसूरत तो थी ही और इस खूबसूरत निवास में एक परी की बात दिखाई पड़ रही थी। सुगना ने लाली से अपनी सुबह खोली गई ब्रा लाने को कहा।

"एक बार ऐसे ही अपना जीजा जी के दिखा दे उनकर जीवन तर जायी।"


इतने में ही दरवाजे पर एक बार फिर खटखट की आवाज हुयी। राजेश वापस आ चुका था लाली झट से भाग कर गई और सुगना की ब्रा ले आई सुगना ने आनन-फानन में ही वह ब्रा पहनी उसकी सांसे तेज चल रही थी। जब तक सुगना ब्रा के हुक फसाती लाली दरवाजे की कुंडी खोल चुकी थी। राजेश अंदर आ चुका था और सुगना कमरे से निकलकर हॉल में आ रही थी। राजेश ने सुगना को देखा... उसकी सांसे रुक गई….
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