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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
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Lagta h story ab close ho gyi h kya...
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 56

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन और गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई…

अब आगे….

बिस्तर पर राजेश अर्धनग्न स्थिति में पड़ा हुआ था उसकी लूंगी कमर पर कसी अवश्य थी परंतु सामने से पूरी तरह खुली हुई थी।

राजेश का तना हुआ लण्ड लाली के खूबसूरत हाथों में आगे पीछे हो रहा था।

लाली ने अपनी उंगलियां होंठ पर रखते हुए सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उन्हीं उंगलियों से उसे अपने पास भी बुला लिया।

कमरे में अब भी कुछ उजाला कायम था रेलवे कॉलोनी की खिड़कियों और दरवाजों को बंद करने के बावजूद सूरज की रोशनी को रोक पाना असंभव था।

सुगना बार-बार राजेश के चेहरे को देख रही थी जिस पर लाली ने अपना दुपट्टा डाल रखा था।

सुगना मन ही मन बेहद घबरा रही थी कहीं यदि राजेश जीजू के आंख पर से दुपट्टा हट गया तो?

सुगना सधे हुए कदमों से धीमे धीमे लाली के करीब आ गई। सुगना के सधे हुए कदमों ने पायल की छनक को भी रोक लिया। अपने अंतर्द्वंद से लड़ते हुए सुगना का मन मस्तिष्क थक चुका था और उसके कदम उसका अनुकरण कर रहे थे।

राजेश को यह अंदाजा भी ना हुआ की सुगना कमरे में आ चुकी है।

लाली ने अपनी हथेलियां राजेश के काले लण्ड पर फिराते हुए कहा…

"आज त कालू मल पूरा उछलत बाड़े…...सुगना खातिर का?" राजेश मुस्कुरा उठा

"धीरे बोल... सुगना बाहरे होइ"

"हमार बात मत टालीं ... ई इतना काहे फुदकता हमरा सब मालूम बा" लाली ने राजेश के लण्ड को दबा दिया और उसके सुपारे को अपने अंगूठे से सहला दिया।

राजेश ने लाली के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु लाली से पूछा…

"सुगना तोहार सहेली ह उकरे से काहे ना पूछ लूं कि छौ छौ महीना अकेले कैसे रहे ले? रतनवा सार पागल ह.. सुगना जैसन पुआ हमरा भेटाई रहित त…

"त..का…..का करतीं?" लाली ने राजेश के मुसल को मसल दिया

"आह..तनि धीरे से…..दुखाता….."

राजेश के मुख से निकले अंतिम वाक्यांश यूं ही नहीं निकले थे दरअसल सुगना की तारीफ सुनकर लाली थोड़ा नाराज हो गई थी उसने राजेश के लण्ड को कुछ ज्यादा ही तेजी से दबा दिया था और राजेश की उत्तेजना एक मीठी कराह में बदल गई थी।

लाली ने अपने हाथों का दबाव थोड़ा नरम किया और बोली..

"बताई बताई का करतीं...ओकरा पुआ के साथ?." लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना को देखा

राजेश ने कुछ कहा नहीं पर अपने होठों को गोल कर अपनी जीभ को अपने होठों पर फिराने लगा...

राजेश की इस हरकत से सुगना की जांघों के बीच छुपे मालपुए पर एक अजीब सी संवेदना हुई और वह सिहर उठी। उसे लाली की बातें याद आ रही थी लाली सच कहती थी। राजेश जीजू उसके बारे में खुलकर गंदी बातें कर रहे थे।

सुगना असमंजस में थी। उसे लाली और राजेश के बीच उसे लेकर चल रही उत्तेजक बातों से ज्यादा सरोकार न था वह मन ही मन घबरा रही थी और लाली द्वारा राजेश के वीर्य स्खलन का इंतजार कर रही थी। उसने लाली को अपने हाथों की गति बढ़ाने का इशारा किया प्रत्युत्तर में लाली ने उसे ही अपने हाथ लगाने का आमंत्रण दे दिया सुगना ने झटपट अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और मुस्कुराने लगी.

सुगना राजेश के करीब हो या ना हो पर वह लाली से बेहद प्रेम करती थी वह उसकी प्रिय सहेली थी जिससे वह हर प्रकार की बातें साझा करती थी।

राजेश के अंडकोष में लावा उबलने लगा था लाली के हाथों की कुशलता और दिमाग में घूम रही सुगना ने लण्ड में करंट दौड़ा दी और राजेश का लण्ड झटके लेने लगा…

जैसे ही राजेश का स्खलन प्रारंभ हुआ सुगना थर थर कांपने लगी। लाली के वीर्य से सने हाथ को देखकर सुगना को एक अजीब सा एहसास हुआ उसे आज पहली बार उस श्वेत वीर्य से घृणा का एहसास हुआ यह क्यों हुआ यह तो सुनना ही जाने परंतु उसी समय सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना उल्टे पैर हॉल वाले कमरे की तरफ दौड़ पड़ी। पुत्र मोह में वह यह भूल गई कि वह लाली के पास दबे पैर आई थी.

सुगना की छनकती पायल ने सारी कहानी बयां कर दी। राजेश ने लाली के वचन को तोड़ अपनी आंखों पर पड़ा दुपट्टा हटा लिया और दरवाजे से बाहर जाती हुई सुगना को देख लिया। वह अवाक रह गया उसने लाली से पूछा

"सुगना एहजे रहली का?"

लाली ने कुछ नहीं कहा। अपने दोनों हाथों में वीर्य लपेटे हुए अजीब सी स्थिति में आ चुकी ही। वह किस मुंह से यह बात बताती कि वह इन्हीं उंगलियों से सुगना की बुर में उसके वीर्य को प्रवेश करा कर सुगना को गर्भधारण करने में मदद करने वाली थी।

सारा खेल खराब हो चुका था।

( कुछ तो पाठको ने किया कुछ नियति ने किया)

सुगना के गर्भधारण की आस टूट चुकी थी अद्भुत निषेचन क्रिया होते होते रुक गई थी। लाली सोच रही थी कि जब राजेश के वीर्य से गर्भधारण में सुगना को आपत्ति नही है तो काश सुगना एक बार के लिए उसके पति की इच्छा भी पूरी कर देती……पर सुगना अपनी अपनी अद्भुत निषेचन क्रियाविधि से ही संतुष्ट थी पर आज यह अवसर भी जा चुका था।

कुछ ही देर बाद राजेश ने खाना खाया और वापस ड्यूटी के लिए निकल पड़ा।

सुगना सूरज को दूध पिलाते हुए लाली के वीर्य से सने हाथों की याद कर रही थी यदि सूरज न होता तो शायद लाली की वीर्य से सनी उंगलियां उसकी बुर में राजेश के वीर्य को पहुंचा चुकी होती…

सुगना को समझ ही नही आ रहा था कि वह खुश हो या दुखी…

थोड़ा आराम करने के पश्चात सुगना और लाली दोनों बनारस महोत्सव जाने के लिए तैयार होने लगी।

लाली के दोनों बच्चे पड़ोस में खेलने चले गए। लाली अपनी नयी साड़ी पहनकर झटपट तैयार हुई… तभी सुगना ने कहा...

"रुक जा हमु नहा ले तानी"

"काहे नहा तारे ते त असहीं चमकते रहेंले

अपनी तारीफ सुनकर सुगना मुस्कुरा उठी। वह खूबसूरत तो थी ही और मुस्कुराहट ने उसमे चार चांद लगा दिए।

सुगना ने अपनी साड़ी उतारी लाली की निगाहें उसके खूबसूरत जिस्म को निहार रहीं थीं जिसे सुगना ने ताड़ लिया और पलटते हुए बोली

" का देखा तारे.."

लाली शर्मा गई लाली सुगना की पतली कमर और भरे भरे नितंबों के बीच खो गई थी नितंबों के बीच छुपी सुगना की रानी की कल्पना जितना उसके पति राजेश ने की थी उतना लाली ने भी। उसने अपने मन और मस्तिष्क में अनायास ही उसकी छवि बिठा ली थी।

वह अपनी तुलना सुगना से कर रही थी भगवान ने दोनों एक जैसी काया दी थी परंतु सुगना के शरीर की चमक और कसाव उसे एक अलग ही पहचान देता था।

सुगना ने लाली की नाइटी ली और बाथरूम की तरफ जाने लगी। लाली ने भी आज बिल्कुल नई साड़ी पहनी थी वह बाहर जाते हुए बोली

"सूरज के भी ले ले जा तानी। पूजा में चढ़ावे खातिर कुछ सामान खरीद ले तानी। ते आराम से नहा ले"

"दरवाजा सटा दे" सुगना ने कहा और गुसल खाने में प्रवेश कर गई।

नियति सुगना को नग्न होते हुए देख रही थी सुगना ने अपने शरीर के सारे वस्त्र उतार दिए और अपनी जन्मजात अवस्था में आकर अपने खूबसूरत शरीर का अवलोकन करने लगी । एक बच्चे की मां बनने के बाद भीभी सुगना बिना अपने हांथों का प्रयोग किये अपनी आंखों से अपनी बुर की दरार देख पाती थी उसने अपने पेट पर उभार आने नहीं दिया था और चुचियों का कसाव भी बरकरार रखा था।

सुगना के चमकते हुए शरीर को देखकर नियति भी स्वयं अपनी कृति पर प्रफुल्लित हो रही थी यदि उसके बस में होता तो वह स्वयं ही उससे संभोग कर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती।

सुगना के तन मन में एक अजब सी आग थी अपने बाबुजी सरयू सिह से संभोग किये उसे कई महीने बीत चुके थे। जब भी उसका मन खुशहाल होता उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर मुस्कुराने लगती। पिछले दो-तीन दिनों से उसे हर घड़ी अपने बाबूजी की याद आ रही थी। विद्यानंद से मिलने के पश्चात एक-एक दिन उसने सरयू सिंह को याद करते हुए गुजारे थे। परंतु किसी न किसी कारण उसे उनका संसर्ग नहीं मिल पा रहा था।

हर समय उसका अंतरमन ऊपर वाले से एक ही प्रार्थना करता काश उसके बाबु जी उसे अपनी गोद में उठाते और उसकी नग्न पीठ पर अपनी खुरदरी हथेलियां फिराते हुए उसे अपने आलिंगन में लेते। गालों से गाल सटाते होठों से होठ चूमते और ……..आह ….

सुगना की उंगलियों ने उसके मनोभावों को पढ़ लिया वह अपनी निगोड़ी बुर को समझाने के लिए उसे थपथपाने लगी। परंतु प्यासी बुर सुगना के झांसे में आने को तैयार न थी उसने अपना मुंह खोल दिया और सुगना की उंगलिया उसकी कोमल गहराइयों में उतर गयीं। सुगना की बुर ने न जाने उंगलियों पर ऐसा कौन सा निर्वात बल कायम किया हुआ था, सुनना चाह कर भी अपनी उंगलियां बाहर न निकाल पायीं। उसकी उंगलियां अंदर थिरकती रहीं और सुगना के निप्पल तनते चले गए।

अपने ही हाथों अपनी चुचियों को सांत्वना देने के लिए सुगना ने उन्हें सहलाना चाहा और अनचाहे में ही अपनी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचा दिया। सुगना के दिलों दिमाग पर सरयू सिंह के साथ बिताए गए अंतरंग पल छाते चले गए...

काश बाबूजी अपने मजबूत मुसल से उसकी जांघों के बीच चटनी कूटते….मुसल का कार्य उंगलिया न कर सकीं पर …

सुगना की बुर ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। सुगना ऐंठती रही उसकी जाँघे तन गयी.. उसकी मांसल बुर ने अंदर रिस रहे सारे प्रेम रस को बुर् के होठों पर लाकर छोड़ दिया जो सुगना द्वारा लोटे से डाले जा रहे शीतल जल के साथ विलीन हो गया।

सुगना ने अपना स्नान पूरा किया और लाली की नाइटी पहन कर लाली के कमरे में आ गई अपने बाल सुखाते हैं सुखना दरवाजे की तरफ पीठ करके खड़ी थी ..

#####################################

उधर सोनू सोनी को पांडाल में छोड़ने के बाद कुछ देर अपने दोस्तों के साथ रहा परंतु उसका मन कहीं न लग रहा था। सुबह लाली को जी भर कर चोदने के पश्चात उसका मन नहीं भरा था। जाने यह कैसी आग थी जितना सोनू लाली के करीब आ रहा था उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी। आज लाली के घर में सुगना भी उपस्थित थी इसलिए सोनू जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

परंतु चतुर सोनू चूत के चस्कर में चकोर की भांति, चित्त में लाली की छवि बसाये, चूत के आकर्षण में बंधा लाली की कालोनी में आ गया।

लाली के घर से कुछ ही दूर उसे नई साड़ी में लिपटी सुगना के कंधे पर से झांकता हुआ सूरज का चेहरा उसे दिखाई पड़ गया। उसे लगा जैसे सुगना दीदी सूरज को लेकर कुछ सामान खरीद रही है। सोनू तेजी से भागता हुआ लाली के घर पहुंच गया और सटे हुए दरवाजे को धीरे से खोलते हुए अंदर आ गया।

घर में एकांत पाकर सोनू ने मन ही मन ऊपर वाले से अपनी अनुनय विनय कर डाली और ऊपर वाले ने भी उसकी इच्छा पूरी कर दी। उसके मनो मस्तिष्क में चल रही लाली को उसने अंदर अपने बाल सुखाते देख लिया। नाइटी में लाली न होकर सोनू की सुगना दीदी थी पर सोनू इस बात से अनजान था। नाइटी के झीने आवरण में ढकी गदराई जवानी उसे ललचाने लगी। सोंग का लण्ड स्प्रिंग की तरह तुरंत ही खड़ा हो गया वह सधे हुए कदमों से उस कामनीय शरीर के पीछे गया और उसे पीछे से अपने आलिंगन में ले लिया।

सुगना के पेट पर अपने हाथों से पकड़ बनाते हुए उसने सुगना को लगभग ऊपर उठा दिया। सुगना के पैर हवा में आ गए। सोनू के लण्ड ने सुगना के नितंबों के बीच में जगह बनाने की कोशिश की और सोनू के मजबूत लिंग ने अपनी उपस्थिति का एहसास सुगना को करा दिया।

सुगना ने पीछे पलट कर देखा...

सोनू सकपका गया।

"हम जननी हा की लाली ….."

सोनू जो कहना चाहता उसे कह पाना भी उतना ही कठिन था वह अपने वाक्य को पूरा न कर सका।

उसने सुगना को तुरंत ही नीचे छोड़ दिया और बिना कुछ कहे उलटे पैर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर के आलिंगन ने भाई बहन की बीच के पवित्र रिश्ते में एक ऐसा एहसास डाल दिया था जो दोनों के लिए बिल्कुल ही नया था।

सोनू थरथर कांप रहा था वह सबकी नजर बचाकर भाग जाना चाह रहा था परंतु ऐसा हो ना सका दुकान से आ रही लाली ने उसे देख लिया और बोला...

"कहां जा रहे हो ? दरवाजा तो खुला ही था अंदर सुगना है ना..

"मुझे कुछ काम है मैं थोड़ी देर बाद आता हूं…"

"जा पहले रिक्शा लेकर आ हम लोग बनारस महोत्सव जाएंगे.."

सोनू फंस चुका था वह रिक्शा लेने के लिए सड़क की तरफ बढ़ गया। उसके हाथ अभी भी उस अद्भुत स्पर्श.. को याद कर रहे थे। ऐसा नही था कि सुगना को सोनू ने छुआ न था पर वह आलिंगन अलग था वासना से ओतप्रोत...सोनू की बाहों पर अपना भार छोड़ती चुचियों का कोमल स्पर्श सोनू को अपने दिमाग मे चल रहे के कामुक द्वंद में और कमजोर कर रहा था।

सुगना के शरीर की कोमलता उसके लिए बेहद नई थी। इतनी उत्तेजना उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। लाली और सुगना के शरीर के अंतर को सोनू ने कुछ ही पलों में पहचान लिया था।

यह अंतर बिल्ली और खरगोश के बच्चे की तरह था दोनों ही कोमल और मुलायम थे पर अंतर अपनी जगह था।

उधर सुगना भी सिहर उठी थी।। कुछ ही पलों के आलिंगन में उसे सोनू के पूर्ण वयस्क होने का एहसास करा दिया था। अपने नितंबों में उसके खड़े लिंग की चुभन को उसने बखूबी महसूस किया था और मजबूत आलिंगन के कसाब को भी।

उसका भाई अब उतना छोटा न था जितना अब वो उसे समझती थी। जिस तरह बचपन मे वह उसे झूला झुलाया करती थी आज ठीक उसी तरह सोनु ने उसे कुछ पलों के लिए ही सही पर वही झूला झूला दिया था। पर भाव मे अंतर स्पस्ट था। प्रेम प्रेम में अंतर था।

सुगना और सोनू का प्यार वात्सल्य रस से अचानक श्रृंगार रस की तरफ मुड़ता प्रतीत हो रहा था।

इस आलिंगन ने सुगना के मन में सोनू के प्रति भाव बदल दिए। सोनू से नजरें मिलाने में खुद को नाकाम पा रही थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना सोनू द्वारा लाए रिक्शे में बैठकर बनारस महोत्सव के लिए चल पड़ीं। पीछे एक और रिक्शे में सोनू अपनी लाली दीदी के दोनों बच्चों को लेकर एक सेवक की भांति पीछे पीछे चलने लगा। रिक्से में बैठी हुई दोनों स्त्रियों की पीठ देखकर सोनू आज पहली बार इन दोनों की तुलना कर रहा था।

आज सोनू की निगाहे अपनी सगी बहन में कामुकता खोज रही थी। वह जितना ही ध्यान सुगना की पीठ पर से हटा कर लाली पर ले जाता परंतु उसका अवचेतन मन सुगना की पीठ पर ही निगाहों को घसीट लाता।

सुगना जब-जब सोनू के बारे में सोचती उसका दिल धक धक करने लगा। वह बार बार अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर अपनी नंगी पीठ को ढकने का प्रयास करती। सोनू के सामने बिंदास और निर्विकार भाव से घूमने वाली अब सचेत हो गयी थी।

पंडाल में उतरने के बाद वह सीधा महिलाओं वाले भाग में चली गई। उसने सोनू की तरफ पलट कर नहीं देखा वह देखती भी कैसे? अभी भी उसके स्पर्श का वह एहसास उसके दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था।

बनारस महोत्सव का पांचवा दिन भी बीत रहा था। संध्या वंदन के उपरांत सुगना ने अपने इष्ट देव के समक्ष अपना निर्णय सुना दिया…

जब तक उसके बाबूजी सरयू सिंह उसे अपने हांथो से पानी नही पिलायेंगे वह पानी नही पीयेगी। सुगना जो बात अपने इष्ट से कहना चाहती थी उसने अपने तरीके से वह बात उन पहुंचा दी थी। सुगना ने मन ही मन सोच लिया था कि वह सरयू सिह के आते ही तुरंत ही उनकी गोद मे आ जाएगी..

के सुगना चल खाना खा ले…

"ना मां हमारा भूख नइखे"

सुगना को जिस चीज की भूख थी वह सर्वविदित था।

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उधर सुबह सुबह सरयू सिंह सलेमपुर की तरफ बढ़ रहे थे.. आज वह किसी भी हाल में सुगना को छोड़कर सलेमपुर नहीं जाना चाह रहे थे परंतु उनका कर्तव्य और मनोरमा का निर्देश उनकी निजी आकांक्षाओं पर भारी पड़ रहा था। सलेमपुर पर आई इस प्राकृतिक विपदा से अपने गांव वालों को निकालना और उन्हें राहत पहुंचाना सरयू सिंह ने ज्यादा जरूरी समझा और अपने मन का मलाल त्याग कर अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल पड़े। काश कि वह सुगना की मनोदशा और उसके अंतर्द्वंद को जान पाते तो वह अपनी नौकरी को ताक पर रखकर सुगना के साथ खड़े रहते बल्कि उसे तब तक लगातार संभोग करते जब तक कि वह गर्भवती ना हो जाती।

उन्होंने निकलते वक्त सुगना के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए निर्धारित होटल मैं जाकर अपने ना आने की सूचना दे दी और काफी जद्दोजहद करने के पश्चात अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ पैसा वापस ले आए।

सलेमपुर पहुंच कर उन्होंने गांव वालों को यथोचित मदद पहुंचायी और साथ आए पुलिसवालों के साथ मिलकर उग्र गांव वालों को शांत करने में मदद की। इस दुरूह कार्य को करते करते रात गहरा गई।

सरयु सिंह का कार्य अभी अधूरा था सलेमपुर में भी और सुगना द्वारा किये वादे का सुख लेने का भी... परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन बीत चुका था।

सरयू सिंह सुगना के लिए अधीर हो रहे थे परंतु नियति भी सुगना के हाँथ की लकीरों के आगे मजबूर थी।

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विद्यानंद के पंडाल में रात गहरा रही थी। पंडाल में सारी महिलाएं सो चुकी थी सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी भूखी प्यासी सुगना अपने इष्ट देव से अपने बाबू जी के आगमन के लिए प्रार्थना कर रही थी अपने मन में इतना झंझावात लिए सुगना सो गई.. और एक निराली दुनिया मे पहूँच गयी।

पंडाल में जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। पंगत में कई सारे लोग बैठे हुए थे। महिलाएं पुरुषों को खाना परोस रही थी। सुगना को भी खाना परोसने के लिए बुलाया गया। सुगना अपने हाथ में मीठा मालपुआ लिए पंगत की तरफ बढ़ चली।

अचानक सुगना को अपनी साड़ी की सरकती हुई महसूस हुई। यह क्या... उसकी साड़ी अचानक ही शरीर से गायब हो चुकी थी थी. ब्लाउज और पेटीकोट सुगना के शरीर को मर्यादित आवरण देने में पूरी तरह नाकाम थे।

सामने बैठे पुरुष उसे एकटक घूरे जा रहे थे तभी पीछे से कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटा.. सब के मालपुआ खिया द"

कजरी के मुख से मालपुआ शब्द सुनकर सुगना ने एक पल के लिए शर्म से पानी पानी हो गई और अगले ही पल अपनी शर्म को ताक पर रखकर सामने बैठे व्यक्तियों को पहचानने की कोशिश करने लगी..

जैसे जैसे उसकी आंखें पुरुषों को पहचानने की कोशिश करती गई उसकी आंखें आश्चर्य से फटती चली गयीं।

पंगत में सबसे पहले रतन था उसके पश्चात राजेश और सोनू था। सबसे आखरी में सुगना के प्यारे बाबू जी पालथी मारे बैठे हुए थे और उनकी गोद में छोटा सूरज बैठा हुआ था।

सुगना अपनी अर्धनग्न अवस्था में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। तभी कजरी की आवाज एक बार फिर आयी..

"सुगना बेटा सब आपने ही परिवार के ह मालपुआ दे द"

सुगना आगे झुकी और रतन के पत्तल में मालपुआ रख दिया उसकी चूचियां बरबस ही रतन की निगाहों के सामने आ गयीं। सुगना के दोनों हाथ व्यस्त थे वह चाह कर भी अपनी चुचियों पर अपने हाथों का आवरण न दे पायी। सुगना थरथर कांप रही थी। उसकी चूचियां ब्लाउज से बाहर आकर रतन को ललचा रही थीं।

अगली बारी राजेश की थी। पत्तल में मालपुआ डालते समय सुगना कि दोनों चूचियां उछल कर बाहर आ गई…

सुगना ने जैसे ही मालपुआ सोनू की थाली में डाला पेटीकोट जैसे गायब हो गया। अपने छोटे भाई के सामने खुद को नग्न पाकर सुगना के पैर कांपने लगे सुगना बेसुध होकर गिर पड़ी उसने खुद को सरयू सिह की गोद में पाया..

सरयू सिंह की एक जंघा पर पूर्ण नग्न सुगना थी दूसरे पर सूरज था…

अपने ही अबोध बालक के सामने सुगना पूर्ण नग्न अवस्था में बैठी हुई थी। उसकी मालपुआ की थाली न जाने कहां गायब हो गयी थी..

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


शेष अगले भाग में...
अद्भुत लेखनी का अद्वितीय कमाल
अवर्णनीय अपडेट है भाई दिल गार्डन गार्डन हो गया
 

Tiger 786

Well-Known Member
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भाग 54
सोनू और लाली की मीठी छेड़छाड़ जारी थी। लाली में आह भरी। तवा गर्म हो चुका था…. गैस पर रखा हुआ भी और लाली की जांघों के बीच भी...

इधर सोनू और लाली मिलन की तैयारी में थे उधर सुगना और सोनी बनारस महोत्सव से लाली के घर आने के लिए निकल चुके थे..

अब आगे..


लाली रोटियां बना रही थी और सोनू उसके गदराए बदन को सहला रहा। अब से कुछ देर पहले आटा गूँथते समय सोनू ने उसकी चुचियों को खूब मीसा था जिसका असर उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर पर भी हुआ था जो अपनी लार टपका रही थी.

सोनू उस चासनी जैसी लार की कल्पना कर मदहोश हो रहा था। उसकी जीभ फड़फड़ा रही थी। वह अपनी दीदी के अमृत कलश से अमृत पान करना चाह रहा था। जैसे ही लाली ने रोटियां बनाना खत्म किया सोनू ने उसे उठा लिया और किचन स्लैब पर बैठा दिया.

"अरे सोनू क्या कर रहा है? गिर जाऊंगी"

"कुछ नहीं दीदी आप बैठे हो तो".

"लाली इतनी भी नासमझ न थी चार पांच वर्षों के वैवाहिक जीवन के पश्चात उसे स्लैब पर बैठने का अनुभव था और उसके बाद होने वाले क्रियाकलापों का भी। परंतु आज राजेश की जगह सोनू था लाली की नजरों में नासमझ और अनुभवहीन.

"क्या कर रहा है?".

"मुझे चासनी चाटनी है"

"लाली सोनू की मंशा समझ चुकी थी उसने हटाते हुए कहा.."

"अच्छा रुक में बाथरूम से आती हूं" लाली नहीं चाहती थी कि वह अपनी बुर से टपकती हुई लार सोनू को दिखाएं और अपने छोटे भाई के सामने अपनी उत्तेजना का नंगा प्रदर्शन करें".

परंतु सोनू नहीं माना वह अधीर हो गया और उसने लाली की नाइटी को ऊपर करना शुरू कर दिया. लाली के पैर नग्न होते गए जांघो तक पहुंचते-पहुंचते सोनू का सब्र जवाब दे गया। उसने अपने सर को लाली की दोनों जांघों के बीच रखा और नाइटी पर से अपना ध्यान हटा लाली की जांघों को अपने गालों से सहलाने लगा। नाइटी एक बार फिर नीचे आ चुकी थी परंतु सोनू नाइटी के कोमल आगोश में छुप गया था।

सोनू के होठ धीरे-धीरे लाली की जांघों के जोड़ की तरफ बढ़ रहे थे सोनू जैसा अधीर किशोर आज बेहद धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था लाली की बुर से आ रही खुशबू उसके नथुनों में भर रही थी वह उस मादक एहसास को खोना नहीं चाह रहा था।

कुछ ही देर में उसके होंठों ने अपनी प्रेमिका के निचले होठों को चूम लिया और उसकी लप-लपपाती जीभ अमृत कलश के मुहाने पर छलके प्रेम रस का आनंद लेने लगी।

लाली कांप रही थी ऐसा नहीं था की लाली को यह सुख पहली बार मिल रहा था परंतु आज यह सुख उसे अपने ही मुंहबोले छोटे भाई से मिल रहा था। नाइटी के अंदर सोनू के सर को सहलाते हुए कभी वह उसे अपनी तरफ खींचती कभी दूर करती। परंतु सोनू की जीव अमृत कलश पर से हटने को तैयार न थी।

सोनू की जीभ लाली की बुर की गहराइयों में उतर जाना चाहती थी। सोनू की नाक लाली के भग्नासा से टकरा रही थी। कुछ ही देर में लाली में अपने सोनू के लिए इतनी चासनी उड़ेल दी जिसे खत्म कर पाना सोनू के बस में नहीं था।

सोनू का चेहरा कामुक लाली के प्रेम रस से सन गया था ऐसा लग रहा था जैसे सोनू बड़े से पतीले में चासनी में तैर रहे रसगुल्ले को बिना अपने हाथों की सहायता से खाने का प्रयास कर रहा था।

सोनू अभी भी उस सुखद अहसास को छोड़ना नहीं चाह रहा था परंतु लाली ने स्लैप पर पड़े गिलास को नीचे गिरा कर उसका ध्यान भंग किया और जैसे ही सोनू ने अपना सर दूर किया लाली स्लैब से उतर गई इस बार लाली ने स्वयं ही अपनी नाइटी को ऊपर उठाया और सोनू को अपने कोमल और मखमली घेरे से आजाद कर दिया। सोनू उठ खड़ा हुआ उसके होठों और नाक पर लगी हुई चाशनी को देखकर लाली मोहित हो गई उसनें आगे बढ़कर सोनू के होठों को चूम लिया और बोली..

"सब कुछ बड़ा जल्दी सीख लिए हो पर पूरा चश्नी अपना मुंह में लभेर लिए हो"

सोनू की आंखों में वासना का असर साफ दिखाई दे रहा था उसकी भूख अभी शांत नहीं हुई थी उसने लाली को उठा लिया और हाल में रखे चौकी पर ले आया।

कुछ ही देर की चुदाई में लाली स्खलित हो गई। आधा कार्य तो सोनू के होठों ने पहले ही कर दिया था बाकी सोनू के मजबूत लण्ड ने कर दिया ।

अंदर कमरे में बच्चे सो रहे थे। लाली शीघ्र ही सोनू को स्खलित करना चाहती थी उसने अपना दांव खेला और एक बार फिर वह डॉगी स्टाइल में उपस्थित थी। सोनू आज दिन के उजाले में लाली के नितंबों को अनावृत कर उसके भी छुपे छेद का भोग करने लगा। लाली की गांड पर आज पहली बार उसका ध्यान गया। वह उतनी ही आकर्षक थी। जितनी लाली की रसीली बुर सोनू लाली की खूबसूरती का आनंद लेते हुए उसे गचागच चोद रहा था। कमरे में थप... थप..थप.. की मधुर आवाज गूंज रही थी. .

इधर सोनू और लाली की चुदाई जारी थी उधर दरवाजे पर सुगना आ चुकी थी। सोनी लालय के घर के सामने की परचून की दुकान पर लाली के बच्चों के लिए लॉलीपॉप लेने चली गई। और सुगना अपने प्यारे सूरज को गोद में लिए हुए लाली के दरवाजे पर आकर खड़ी थी। कमरे के अंदर से आ रही थप..थपा ..थप…..थप की आवाजें आ रही थी। छोटा सूरज भी अनजान ध्वनि से रूबरू हो रहा था और उछल उछल कर दरवाजे की तरफ जाने का प्रयास कर रहा था लगता था उसे यह मधुर थाप पसंद आ रही थी।

सुगना को वह आवाज जानी पहचानी लग रही थी उस ने भाप लिया कि अंदर लाली चुद रही है। सुगना शर्म से लाल हो गई उसकी दरवाजा खटखटाने की हिम्मत ना हुई वह दरवाजे के पास खड़ी लाली के नितंबों पर पड़ रही मधुर थाप को सुनती रही.

सोनी को दरवाजे की तरफ आते देख सुगना की सांसें फूल गई. वह भागती हुई सोनी की तरफ आई और बोली

"लगता है लाली अब तक सो रही है"

"अपने दरवाजा खटखटाया था"

" हां एक बार खटखटाया था" सुगना ने मीठा झूठ बोल दिया।

"अरे अब कोई सोने का वक्त है। रुकिए में खटखटाती हू"

सोनी सुगना को किनारे कर दरवाजे की तरफ बढ़ गई सुगना मन ही मन ऊपर वाले से प्रार्थना करने लगी की राजेश और लाली के बीच चल रहा प्रेम समाप्त हो चुका हो उसे क्या पता था कि अंदर लाली को चोद रहा व्यक्ति उसका पति राजेश नहीं सुगना का अपना भाई सोनू था. किशोर सोनी अंदर चल रही घटनाओं से अनजान थी उसने दरवाजा खटखटा दिया.

" दरवाजा खटखटाया जाने से लाली घबरा गई थी परंतु सोनू अभी भी उसे घपा घप चोदे जा रहा था अपनी उत्तेजना के आवेश में उसने लाली के नितंबों को अपने लण्ड पर तेजी से खींचा और लण्ड को एक बार फिर जड़ तक ठान्स दिया।

सोनू की पिचकारी फुलने पिचकने लगी लाली ने अपने आपको उससे अलग किया परंतु लण्ड से निकल रही वीर्य की धार लाली के शरीर पर गिरती रही लाली चौकी से उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ रही थी और सोनू अपने वीर्य से उसे भिगोने की कोशिश कर रहा था.

वीर्य की धार जितना लाली के शरीर पर गिरी थी उतनी ही चौकी पर बिछे चादर पर भी थी और उसके कुछ अंश जमीन पर भी गिरा रहा था।

लाली ने दरवाजे की सांकल खोलने से पहले सोनू की तरफ देखा जो अपना पैजामा ऊपर कर रहा था.

जब तक लाली दरवाजा खोलती सोनू बाथरूम में घुस गया सुगना और सोनू अंदर आ चुके थे.

सोनी ने चहकते हुए कहा

"अरे लाली दीदी तो नहा धोकर तैयार हैं पर आपके बाल क्यों बिखरे हुए हैं. और आप हांफ क्यों रही हैं?

सुगना ने तो लाली की स्थिति देखकर ही अंदाजा लगा लिया था। कमरे से आ रही मधुर थाप, लाली के तन की दशा और दिशा दोनों को ही चीख चीख कर लाली की चुदाई की दास्तान कह रहे थे।

रेलवे के मकानों के सीमेंट से बने फर्श पर वीर्य की लकीर साफ दिखाई पड़ रही थी .

सोनी ने लाली के चरण छुए और इसी दौरान उसके नथुनों में लाली की ताजा चुदी हुई बुर की मादक खुशबू समा गई। सोनी ने लिए यह गंध जानी पहचानी सी लगी सोनी ने कई बार अपनी बुर को सहला कर उस से निकल रहे रस को सूंघ कर उसे जानने पहचानने की कोशिश की थी।

वह उस गंध के बारे में सोचती हुई चौकी पर बैठने लगी सोनी के नितंबों से पहले उसकी हथेलियों ने चौकी पर बिछी हुई चादर को छू लिया और चादर पर गिरा हुआ सोनू का बीर्य सोनी की हथेलियों में लग गया..

"छी राम लाली दीदी यह क्या गिरा है"

"लाली सन्न रह गई उसे कोई उत्तर नहीं सूझ रहा था उसने अपने अनमने मन कहा

"अरे सोनी पानी गिर गया होगा"

"नहीं दीदी यह चिपचिपा है" सोनी बेपरवाह होकर अपनी बात रख रही थी।

सुगना पूरी तरह समझ चुकी थी कि वह निश्चित ही वीर्य की धार ही थी.

चादर पर गिरा हुआ वीर्य एक लकीर की भांति अपना निशान छोड़ चुका था। यह निशान भी वैसा ही था जैसा सुगना ने फर्श पर पहले ही देख लिया था सुगना ने सोनी से कहा।

"जा बाथरूम में हाथ धो ले मैं चादर बदल देती हूँ"

लाली स्वयं असहज स्थिति में थी । सोनू की भरपूर चुदाई से वह थक चुकी थी उसकी तेज चल रही सांसे धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी। वह चादर लेने कमरे में जाने लगी।

सोनी ने लाली से पूछा

"लाली दीदी जीजा जी कहां है?"

"अरे वह शाम को आएंगे"

सुगना का दिल धक से हो गया इससे पहले कि वह कुछ सोच पाती बाथरूम से सोनू बाहर आ गया और उसके चरण छूते हुए बोला

"अरे दीदी आप ..अचानक"

"अरे सोनू भैया तो लाली दीदी के यहां है हम लोग वहां आपका इंतजार कर रहे थे."

मैं तो लाली दीदी को लेकर वहीं आ रहा था

"जीजू नहीं थे ना इसलिए मैं वाली दीदी को लेने आ गया था यह भी मेला में जाना चाहती थी।"

सोनू ने अपनी बातों से सोनी और सुगना को समझा तो लिया था. परंतु सुगना ने अपने कानो से जो सुना था और चादर तथा जमीन पर पड़ी वीर्य की लकीरों को अपनी आंखों से देखा था उसे झुठला पाना असंभव था। सुगना को पूर्ण विश्वास हो चला था की लाली और सोनू ने मर्यादाओं को तोड़ कर भरपूर चुदाई की है।

लाली भी चादर लेकर बाहर आ चुकी थी।

कुछ ही देर में स्थिति सामान्य हो गई और लाली द्वारा बनाई गई रोटियां सभी मिलजुल कर खाने लगे.

सोनु अपनी आंखें झुकाये हुए खाना खा रहा था। वह सोनी से तो बात कर रहा था परंतु सुगना से बात करने और नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी। अब से कुछ देर पहले ही वह उसकी प्रिय सहेली को कस कर चोद चुका था।

कुछ देर की औपचारिक बातचीत के पश्चात सुगना ने सोनू से कहा जा सोनी को पंडाल में छोड़ आ और जाते समय यह सामान पांडाल में लिए जाना।। सुगना में कुछ सामानों की फेहरिस्त उसे बता दी और सोनू और सोनी लाली के घर से पांडाल के लिए निकल गए घर में अब सुगना और लाली ही थे।

लाली के बच्चे भी अब सूरज का ध्यान रखने लायक हो गए थे। सूरज इन दोनों के साथ बिस्तर पर आराम से खेल रहा था। सुगना बिस्तर पर अपने बालक को उन्मुक्त होकर खेलते हुए देखकर मन ही मन गदगद थी। परंतु जब जब उसे विद्यानंद की बातें याद आ रही थी। वह बेचैन होती जा रही थी। बनारस महोत्सव के 4 दिन बीत चुके थे।

सुगना का गर्भधारण एक जटिल समस्या बन चुकी थी। बनारस महोत्सव से लाली के घर आते समय सुगना अपनी शर्मो हया त्याग कर राह चलते मर्दो को देख रही थी क्या उसके गर्भ में बीज डालने के लिए कोई मर्द ना बचा था। उसके मन में तरह-तरह के ख्याल आ रहे थे। कभी वह अपने अश्लील खयालों को सोच सोच खुद ही शर्मसार होती और कभी ऊपर वाले से यही गुहार करती कि एन केन प्रकारेण उसका गर्भधारण संपन्न हो और उसे सूरज की मुक्तिदायिनी बहन को जन्म देने का अवसर प्राप्त हो परंतु कोई उपाय न सूझ रहा था।

अपनी इस दुविधा को वह न तो किसी से बता सकती थी और न हीं अकेले गर्भधारण उसके बस में था। उसने हिम्मत जुटा घर लाली से अपना दुख साझा करने की सोची। विद्यानंद द्वारा दी गई नसीहत ओं का उसे पूरा ख्याल था परंतु बिना लाली के सहयोग के उसे और कोई रास्ता ना सूझ रहा था। उसने लाली के हाँथ को अपने कोमल हाथों में लेते हुए पुरी संजीदगी से कहा

"लाली मुझे दोबारा गर्भधारण करना है"

'अरे मेरी कोमल गुड़िया इतनी जल्दी क्या है बच्चा जनने की. अभी सूरज को और बड़ा हो जाने दे"

"नहीं तू नहीं समझेगी. मुझे यह कार्य इन 2 दिनों में ही करना है" लाली की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी उसे सुगना की बात बिना सर पैर के प्रतीत हो रही थी। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"तू पागल हो गई है क्या?. अभी 2 दिन में तू कहां से गर्भधारण करेगी? रतन भैया जब आएंगे तब जी भर कर चुद लेना मेरी जान और फिर अपना पेट फुला लेना। "

लाली को क्या पता, सुगना की बेचैनी का कारण क्या था.

जिस प्रकार मानसिक वहम का शिकार व्यक्ति चाहकर भी अपनी बात दूसरे को नहीं समझा पाता हूं वही हाल सुगना का था वह अपने गर्भ धारण की जल्दी बाजी को बयां कर पाने में सर्वथा असमर्थ थी।

सुगना उदास हो गई उसने अपना सिर झुका लिया उसकी आंखों में पानी छलक आया। उसके मन में अचानक उठ रहा उम्मीदों का बुलबुला फूट गया। लाली भी क्या करती सुगना का गर्भधारण उसके बस में तो था नहीं। फिर भी उसने सुगाना के चेहरे की उदासी न देखी गयी वह उसकी अंतरंग सहेली थी उसने सुगना के चेहरे को अपनी हथेलियों से उठाया और बोला

"सुगना मुझे खुलकर बता क्या बात है"

"चल चल छोड़ जाने दे" सुगना ने कोई उत्तर न दिया वह उठकर रसोई की तरफ चली गई. लाली भी उसके पीछे पीछे आ गयी और उसे बाहों में पकड़ते हुए बोली..

" देख रतन भैया तो है नहीं और बिना इस रानी को खुश किये तू गर्भवती हो नहीं सकती। मेरी रानी नियोग के लिए इसका भोग लगवाना होगा " लाली ने सुगना की जांघों के बीच अपनी उंगलियां फिराते हुए बोला।

सुगना चुप ही रही उसकी शांति को लाली ने उसकी रजामंदी समझ कर कहा

"एक मर्द है परंतु मुझे नहीं पता वह तेरे साथ ऐसा कार्य कर पाएगा या नहीं…"

सुगना परेशान थी परंतु वह व्यभिचार के लिए किसी भी तरीके से तैयार न थी। उसके अंतर्मन में कई बार राजेश का ख्याल अवश्य आ रहा था परंतु जब जब वह अपने ख्यालों में उसके साथ स्वयं को नग्न रूप में देखती वह स्वयं को बेहद असहज महसूस करती और अपने ख्याल को तुरंत त्याग देती। राजेश के साथ मीठी छेड़खानी तो वह कई बार कर चुकी थी और अपने पिछले प्रवास के दौरान अपनी नग्न जांघों के दर्शन भी उसने राजेश को करा दिए थे। परंतु इससे आगे बढ़कर अपनी जांघे खोल कर उससे चुदने की कल्पना करना उसके लिए कठिन हो रहा था।

सुगना कतई व्यभिचारिणी नहीं थी वह हंसते मुस्कुराते और कामुकता का आनंद लेती थी परंतु अपनी सहेली के बिस्तर पर बिछकर उसके ही पति से चुदना उसके लिए यह बेहद शर्मनाक सोच थी।

जैसे-जैसे बनारस महोत्सव का समय बीत रहा था सुगना की अधीरता बढ़ रही थी वह अपने दिमाग में गर्भधारण के तरह-तरह के उपाय सोचने लगी। आखिर संभोग में होता क्या है लिंग और योनि का मिलन तथा लिंग से निकले उस श्वेत धवल हीरे का गर्भ पर गिरना और गर्भाशय द्वारा उसे आत्मसात कर एक नए जीव का सृजन करना। सुगना को नियति के इस खेल का सिर्फ इतना ही ज्ञान था।

क्या किसी पुरुष के वीर्य को वह अपने गर्भ में नहीं पहुंचा सकती? क्या इसके लिए संभोग ही एकमात्र उपाय है ? सुगना का दिमाग तेजी से चलने लगा अपनी व्यग्रता में उसने अपनी समझ बूझ के आधार पर एक नया मार्ग निकाल लिया.

वह अपने मन में उम्मीद लिए हुए लाली के पास पहुंची जो अपने बेटे राजू को खाना खिला रही थी। बच्चों के सामने ऐसी बातें करने में सुगना शर्मा रही थी। उसने इंतजार किया और अपनी सोच को सधे हुए शब्दों में पिरोने की कोशिश करने लगी ।

लाली राजू को खाना खिला कर बर्तन रखने की रसोई में आ गई और सुगना उसके पीछे पीछे।

"ए लाली क्या बिना मिलन के भी गर्भधारण संभव है" लाली का ज्ञान भी सुगना से कम न था

दोनों ने प्राथमिक विद्यालय से बमुश्किल स्नातक की उपाधि ली थी।

"लाली ने मुस्कुराते हुए कहा हां हां क्यों नहीं महाभारत की कहानी सुनी है ना?"

"सुगना के मन में फूल रहे गुब्बारे की हवा निकल गई उसे पता था न तो इस कलयुग में वैसे दिव्य महर्षि थे और न हीं सुगना एक रानी थी"

"ए लाली यदि किसी आदमी का वीर्य अपने अंदर पहुंचा दें तो क्या गर्भ ठहर सकता है।"

"अरे मेरी जान इतनी क्यों बेचैन है कुछ दिन इंतजार कर ले वरना मेरे पास एक और रास्ता है"

"सुगना ने शर्म से अपनी आंखें झुका ली उसे पता था लाली क्या कहने वाली है" राजेश के उसके प्रति आकर्षण को लाली कई बार व्यक्त कर चुकी थी और वह स्वेच्छा से राजेश को उसे समर्पित करने को तैयार थी।

"जाने दे मुझे तेरा रास्ता नहीं सुनना मैं जीजाजी के साथ वो सब नहीं कर सकती"

"अरे क्या मेरे पति में कांटे लगे हैं?"

" तू कैसी बीवी है तुझे जलन नहीं होगी"

"अरे मेरी जान मुझे जलन नहीं बेहद खुशी होगी यदि मेरे पति तेरे किसी काम आ सके"

"तू भटक गई है मैं कुछ और बात कह रही थी"

" क्या बात पहेलियां क्यों बुझा रही है साफ-साफ बोलना"

"मैं सोच रही थी की क्या पुरुष वीर्य को अपने गर्भ में पहुंचा कर मैं गर्भवती हो सकती हूँ?"

"और यह पुरुष वीर्य तुझे मिलेगा कहां"

"मेरी सहेली है ना? अभी सुबह जो इस कमरे में हो रहा था उसका एहसास मुझे बखूबी है तूने सोनू को आखिर अपने मोहपास में बांध ही लिया"

"ओह तो तूने सोनू को मिठाई खाते हुए देख लिया"

"नहीं मैंने खाते हुए तो नहीं देखा पर मुझे मिठाई खाने की चप चप...की आवाज जरूर सुनाई पड़ रही थी" अब शर्माने की बारी लाली की थी। वह आकर सुगना से लिपट गई चारों बड़ी-बड़ी चुचियों ने एक दूसरे का चुंबन स्वीकार कर लिया। जैसे-जैसे दोनों सहेलियों का आलिंगन कसता गया सूचियों का आकार गोल से सपाट होता गया।

लाली ने सुगना के कान में कहा..

"मेरे तो दोनों हाथ में लड्डू है बता कौन सा लड्डू खाएगी"

सुगना ने अब तक सिर्फ और सिर्फ राजेश के बारे में ही सोचा था उसने अपने ख्यालों में राजेश के वीर्य से स्वयं को अपने मन में चल रही अनोखी विधि से गर्भवती करना स्वीकार कर लिया था।

"जिसने मेरी सहेली को दो प्यारे प्यारे फूल दिए हैं"

"पर कहीं होने वाले बच्चे का चेहरा राजेश पर गया तो तू दुनिया को क्या मुंह दिखाऊंगी"

मेरे ख्याल से तुझे दूसरा लड्डू ही लेना चाहिए

"क्या तू सोनू की बात कर रही है"

"मेरे पास और कोई उपाय नहीं दिख रहा है वैसे भी वो बाहर है पता नहीं कब आएंगे" लाली ने उत्तर देकर निर्णय सुगना पर ही छोड़ दिया।

"अरे जरूरी थोड़ी ही है कि उसका चेहरा पिता पर ही जाए मुझ पर भी तो जा सकता है" सुगना ने उत्तर दिया और मन ही मन खुद को राजेश के वीर्य से गर्भवती होने के लिए तैयार कर लिया था।

"ठीक है तो उनका इंतजार कर मैं कुछ उपाय करूंगी"

इंतजार शब्द ने सुगना के अंतर्मन पर गहरा प्रभाव दिखाया यही वह शब्द था जो उसे और अधीर कर रहा था। समय तेजी से बीत रहा था सुगना चैतन्य हो गयी। लाली ने एक बार फिर कहा..

"मैं अभी भी दूसरे लड्डू के पक्ष में हूं। उसे तो पता भी नहीं चलेगा अभी नया नया नशा है दिन भर पिचकारी छोड़ता रहता है. यदि तू कहे तो प्रयास किया जा सकता है" लाली हंस रही थी।

सुगना ने सर झुका लिया और बोला

"जैसी तेरी मर्जी"

उसके चेहरे के हाव भाव यह इशारा कर रहे थे कि वह लाली की बातों से इत्तेफाक नहीं रख रही थी पर मरता क्या न करता सुगना ने अनमने मन से ही सही लाली की बात को स्वीकार्यता दे दी थी। लाली ने सुगना के कोमल चेहरे को ठुड्डी से पकड़कर उठाते हुए कहा..

"अरे मेरी प्यारी चल मैं कुछ उपाय करती हूं, सुगना प्रसन्न हो गयी उसने अपनी आत्मग्लानि और मन में चल रहे द्वंद्व पर पर विजय पा लिया था"

सुगना ने अपने मन में चल रहे बवंडर को लाली के हवाले कर कुछ पलों के लिए चैन की सांस ले ली।

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन में अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।

सुखना और लाली ने गर्भधारण के लिए जो तरीका चुना था वह अनोखा था उसने नियति के कार्य को और दुरूह बना दिया था नियति अपने ही बनाए जाल में फंस चुकी थी….
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Tiger 786

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भाग 55

अब तक आपने पढा...

कल व्रत करने के पश्चात आज सुगना ने अपनी सहेली लाली और सोनू के प्रेम और सहयोग से बनी रोटियां कुछ ज्यादा ही खा ली थी भोजन ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। सुगना जम्हाई भरने लगी। दिमाग में चल रहा द्वंद्व भी कुछ हद तक शांत हो गया था।

सुगना लाली के बिस्तर पर लेट गई और छोटे सूरज ने करीब आकर उसकी चूचियां बाहर निकाल ली और दुग्ध पान करने लगा सुगना धीरे धीरे सुखद नींद की आगोश में चली गई परंतु उसका अवचेतन मन अब भी जागृत था।


अब आगे…..

धान की लहराती फसलों के बीच बनी कुटिया में खड़ी सुगना धरती पर बिछी हरियाली को देख रही थी जहां तक उसकी नजर आती धान के कोमल पौधे धरती पर मखमली घास की तरह दिखाई पड़ रहे थे। खेतों में एड़ी भर पानी लगा हुआ था। इन्हीं खेतों मे वह सोनू तथा अपनी छोटी बहनों सोनी और मोनी के साथ खेला करती थी। सुगना अपने बचपन की खूबसूरत यादों में खोई हुई थी परंतु उसके मन में विद्यानंद की बात गूंज रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके दिमाग की शांति में ड्रम बजा कर कोई खलल डाल रहा हो। सुगना के मस्तिष्क में जितनी शांति और सुंदरता थी, मन में उतना ही उद्वेग और अस्थिरता.

विद्यानंद की आवाज उसके दिमाग में और भी तीव्र होती गई तुम्हें गर्भधारण करना ही होगा अन्यथा अपने पुत्र के साथ संभोग कर तुम्हें उसे मुक्ति दिलानी होगी यह आवाज अब सुगना को डराने लगी थी। जैसे-जैसे वह आवाज तीव्र होती गई सुगना की आंखों के सामने दृश्य बदलते गए वह मुड़ी और कुटिया की चारपाई पर एक युगल को देख आश्चर्यचकित हो गयी.

चारपाई पर लेटा हुआ युवक पूरी तरह नग्न था। सुगना को उस पुरुष की कद काठी जानी पहचानी लग रही थी परंतु चेहरे पर अंधेरा कायम था वह अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर उस व्यक्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी परंतु वह चाह कर भी उसे पहचान न सकी।

चारपाई पर बैठी हुई युवती का चेहरा भी अंधेरे में डूबा हुआ था परंतु उसकी कद काठी से सुगना ने उसे पहचान लिया और बोली..

"लाली... ये कौन है"

लाली ने न कोई उत्तर न दिया न उसकी तरफ देखा। वह उस युवक के लण्ड से खेल रही थी। वह चर्म दंड बेहद आकर्षक और लुभावना था। जैसे-जैसे अपनी उंगलियों और हथेलियों से उसे सहलाती वह अपना आकार बढ़ा रहा था और कुछ ही देर में वह पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया।

उस गेहूंये रंग के या चर्म दंड पर उस स्त्री की गोरी उंगलियां बेहद खूबसूरत लग रही थी। उस स्त्री ने लंड की चमड़ी को नीचे खींचकर सुपाड़े को अनावृत करने का प्रयास कर रही थी। बेहद सुंदर और सुडोल था उस लण्ड का सुपाड़ा। लण्ड की चमड़ी पूरी तरह उस सुपाड़े को अपने आगोश में ली हुई थी। उस स्त्री को सुपारी को अनावृत करने में अपनी उंगलियों का दबाव लगाना पड़ रहा था। लण्ड का सुपाड़ा किसी नववधू के चेहरे की तरह अनावृत हो रहा था।

सुगना एक स्त्री को पुरुष का हस्तमैथुन करते देख शर्मा रही थी परंतु ध्यान मग्न होकर वह दृश्य देख रही थी उसका सारा आकर्षण अब उस लण्ड और उस पर घूमती उस स्त्री की उंगलियों पर केंद्रित था। लण्ड का सुपाड़ा पूरी तरह अनावृत होते ही सुगना उसकी खूबसूरती मैं खो गई। उस पुरुष का तना हुआ लण्ड जितना सुदृढ़ और मजबूत प्रतीत हो रहा था उतना ही कोमल उसका सुपाड़ा था। सुगना की उंगलियां फड़फड़ाने लगी वह उस लिंग को अपने हाथों से छूना चाहती थी और उसकी मजबूती और कोमलता दोनों को एक साथ महसूस करना चाहती थी।

सुगना की आंखें अब भी उस पुरुष को पहचानने की कोशिश कर रही थी। जैसे-जैसे उस स्त्री की उंगलियां लण्ड पर घूमती गई उस युवक के शरीर में ऐठन सी होने लगी। वह कभी अपने पैर फैलाता कभी पैर की उंगलियों को तान लेता कभी सिकोड़ता।

उस स्त्री की उंगलियों के जादू में उस युवक की तड़प बढ़ा दी थी ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उस युवक की जान उस लण्ड में केंद्रित हो गई थी।

सुगना यह दृश्य देखकर पानी पानी हो गई उस पर उसकी उत्तेजना हावी हो चली थी। सुगना की बुर पनिया गई थी जैसे-जैसे वह युवक इस स्खलन के करीब पहुंच रहा था सुगना के मन में चल रही उत्तेजना अपने चरम पर पहुंच रही थी।

तभी उसे आवाज सुनाई दी

"ए सुगना आ जा" उस स्त्री की आवाज गूंजती हुई प्रतीत हुई एक पल के लिए सुगना को वह आवाज लाली की लगी।

सुगना यंत्रवत उस स्त्री के बेहद करीब पहुंच गई।

उस स्त्री ने अपने दूसरे हाँथ से सुगना के घागरे को ऊपर करने की कोशिश की। सुगना ने उसके इशारे को समझा और अपने दोनों हथेलियों से घागरे को अपनी कमर तक खींच लिया। सुगना की जाँघे और उसके जोड़ पर बना घोंसला नग्न हो गया। छोटे छोटे बालों के झुरमुट से झांकती हुई उसके बुर की दोनों फांके खुली हुयी थी तथा उस पर छलक आया रस नीचे आने गिरने के लिए बूंद का रूप ले चुका था।

लाली ने हथेली से सुगना के बुर् के होठों को छू कर न सिर्फ उस बूंद को अपनी हथेलियों का सहारा दिया अपितु होठों पर छलका मदन रस चुरा लिया । उस स्त्री की कोमल उंगलियों का स्पर्श अपने सबसे कोमल अंग पर पाकर सुगना सिहर उठी उसने अपनी जांघें सिकोड़ी और कमर को थोड़ा पीछे कर लिया परंतु कुछ न बोली नहीं ।

अपने होठों को अपने ही दातों में दबाए सुगाना यह दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रही थी। स्त्री ने सुगना के प्रेम रस से भीगी हुई उंगलियां वापस उस युवक के लण्ड पर सटा दी सुगना के प्रेम रस ने स्नेहक का कार्य किया और उसी युवक का लण्ड इस चिकने दृव्य से चमकने लगा। स्त्री की उंगलियां अब बेहद आसानी से उस मजबूत लण्ड पर फिसलने लगीं उत्तेजना चरम पर थी।

जब जब उस स्त्री की हथेलियां लण्ड के सुपारे पर पहुंचती वह युवक उत्तेजना से सिहर उठता स्त्री अपने अंगूठे से सुपारे के निचले भाग को जैसे ही सहलाती युवक फड़फड़ाने लगता ... उसके मुंह से आह... की मधुर आवाज सुनाई पड़ती वह कभी अपने मजबूत हाथों से उस स्त्री के हाथों को पकड़ने की कोशिश करता कभी हटा लेता।

स्त्री बीच-बीच में सुगना की बुर से प्रेम रस चुराती और उस युवक ने लण्ड पर मल कर उसे उत्तेजित करती रहती। जब बुर् के होठों से प्रेम रस खत्म हुआ तो उसकी उंगलियां सुगना की बुर की गहराइयों में उतरकर प्रेम रस खींचने का प्रयास करने लगीं।

अपने बुर पर हथेलियों और उंगलियों के स्पर्श से सुगना स्वयं भी स्खलन के करीब पहुंच रही थी। यह दृश्य जितना मनोरम था उतना ही उस स्त्री का स्पर्श भी। वह युवक स्त्री की उंगलियों के खेल को ज्यादा देर तक न झेल पाया और लण्ड ने वीर्य की धार छेड़ दी।

वीर्य की पहली धार उछल कर ऊपर की तरफ गई और सुगना की आंखों को के सामने से होते हुए वापस उस युवक की जांघों पर ही गिर पड़ी। अब तक वह स्त्री सचेत हो चुकी थी और उसमें उस युवक के वीर्य पर अपनी हथेलियों का आवरण लगा दिया था। उस स्त्री की दोनों हथेलियां वीर्य से पूरी तरह सन गयी थी।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने मक्खन में हाथ डाल दिया हो। वह सुगना की तरफ मुड़ी और उसकी बुर में अपनी उंगलियां बारी-बारी से डालने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह उस वीर्य को सुनना की बुर में भरना चाह रही थी। सुगना अपनी जाघें फैलाएं उस अद्भुत निषेचन क्रिया को महसूस कर मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।

तभी उसे युवक की आवाज सुनायी दी..

"लाली दीदी आपके हाथों में भी जादू है"

सोनू की आवाज सुन सुगना बेहद घबरा गयी उसने अपना लहंगा नीचे किया और उस कुटिया से भागती हुई खेतों की तरफ दौड़ पड़ी वह भागे जा रही थी उसे लग रहा था जैसे सोनू उसका पीछा कर रहा है वह किसी भी हालत में उसके समक्ष नहीं आना चाहती थी मर्यादा की जो दीवार उन दोनों के बीच थी उस दीवार की पवित्रता वह कतई भंग नहीं करना चाहती सुगना भागी जा रही थी।

अचानक सामने से आ रहे व्यक्ति ने सुगना को रोका और अपने आगोश में ले लिया सुगना उस बलिष्ठ अधेड़ के सीने से सट गई और बोली "बाबूजी…."

सुगना की नींद खुल चुकी थी उसने अगल-बगल देखा सूरज बगल में सो रहा था सुगना की दोनों चूचियां अभी भी अनाव्रत थी. सुगना अपने स्वप्न से जाग चुकी थी और मुस्कुरा रही थी।

सुगना की आवाज सुनकर लाली कमरे में आ गई और बोली

"का भईल सुगना"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया परंतु उठकर अपनी चुचियों को ब्लाउज में कैद करते हुए बोली…

" तोरा बिस्तर पर हमेशा उल्टा सीधा सपना आवेला"

लाली उल्टा सीधा का मतलब बखूबी समझती थी उसने मुस्कुराते हुए कहां

"क्या जाने इसी बिस्तर पर तेरा सपना पूरा हो"

सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन महसूस हो रहा था अपने ही स्वप्न से वह पूरी तरह उत्तेजित हो चुकी थी वह उठकर बाथरूम में चली गई।

उसके अंतर्मन में हलचल थी पर वह अपने स्वप्न और हकीकत के अंतर को समझ रही थी।

अपने उधेड़बुन में खोई हुई सुगना ने अपनी साड़ी और पेटीकोट को ऊपर किया और खुद को तनाव मुक्त करने के लिए जमीन पर मूत्र विसर्जन के लिए बैठ गई जैसे ही मूत्र की धार ने होठों पर रिसा आये मदन रस को खुद में समाहित करते हुए गुसलखाने के फर्श गिरी

बाहर दरवाजे पर खट खट..की आवाज हुई.

सुगना संभल गई उसने अपने मूत्र की धार को नियंत्रित करने की कोशिश की ताकि वह उससे उत्पन्न हो रही सुर्र …….की आवाज को धीमा कर सकें परंतु वह नाकामयाब रही। राजेश घर में आ चुका था…

बाथरूम से आ रही वह मधुर आवाज उसके भी कानों तक पडी..

बाथरूम में कौन है…?

राजेश ने कौतूहल बस धीमी आवाज में पूछा…

आपको कैसे पता कि बाथरूम में कोई है ? लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा

राजेश ने लाली को खींच कर अपने सीने से सटा लिया और उसके कोमल उभारों को सहलाते हुए उसके कान में बोला…

"बहुत बदमाशी सूझ रही है"

जब तक राजेश लाली को अपने आलिंगन से अलग करता सुगना बाथरूम से बाहर आ चुकी थी।

सुगना आगे बढ़ी और राजेश के चरण छुए।

राजेश का ध्यान बरबस ही सुगना के भरे हुए नितंबों पर चला गया वह एक पल के लिए मंत्र मुक्त होकर उसे देखता रहा उसे यह ध्यान भी नहीं आया की उसकी साली उसके आशीर्वाद की प्रतीक्षा में है..

जीजा जी आशीर्वाद तो दीजिए सुगना ने झुकी अवस्था में ही कहा।

"अरे खूब खुश रही भगवान आपकी सारी मनोकामना पूरी करें"

सुगना मन ही मन सोच रही थी काश जीजा जी कोई सिद्ध पुरुष होते और उनके इस आशीर्वाद से ही वह गर्भवती हो जाती क्या कलयुग में किसी भी मनुष्य के पास जैसी दिव्य शक्तियां नहीं न थीं जैसी महाभारत काल में सिद्ध महापुरुषों के पास थीं।

सुगना के मन में ढेरों प्रसन्न थे बनारस महोत्सव का समय तेजी से बीत रहा था गर्भधारण का तनाव सुगना पर हावी हो रहा था परंतु अब भी गर्भधारण अभी उसके लिए एक दुरूह कार्य था उसके बाबूजी उसे मझधार में छोड़ कर अकेला चले गए थे। एक पल के लिए उसके मन में आया कि वह कोई उपाय कर अपने बाबूजी के पास सलेमपुर चली जाए और वहां अपने बाबू जी के साथ एकांत में रात्रि प्रवास में जी भरकर सहवास करें और नियति द्वारा निर्धारित गर्भधारण कर सूरज की मुक्ति दायिनी का सृजन करें।

सुगना की सोच और हकीकत में अंतर था वाहन विहीन व्यक्ति के लिए थोड़ी दूरी भी दुरूह हो जाती है सुगना के लिए सलेमपुर पहुंचना बनारस से दिल्ली पहुंचने जैसा था और दिल्ली अभी दूर थी।

सुगना अपने ख्यालों में खोई हुई थी राजेश सुगना के खयालों में। लाली रसोई से पानी लेकर आई और राजेश को देते हुए बोली..

"लीजिए यह मीठा खाकर पानी पीजिए यह मिठाई ( सुगना की तरफ इशारा करते हुए) अभी खाने को नहीं मिलेगी"

राजेश और सुगना दोनों हंसने लगे सुगना लाली के पीछे आकर लाली की पीठ पर अपनी हथेलियों से मीठे प्रहार करने लगी।

राजेश जब स्नान करने गुसल खाने में घुसा तो लाली ने सुगना से कहा…

"बड़ा भाग से तोरा जीजा जी आ गए. कह तो उनके जोरन से तेरे पेट में दही जमा दूं"

(जोरन दही का एक छोटा भाग होता है जो दूध से दही जमाने के लिए दूध में डाला जाता है)

सुगना ने कुछ कहा तो नहीं परंतु मुस्कुरा कर अपनी दुविधा पूर्ण सहमति दे दी।

जैसे ही राजेश आराम करने के लिए अंदर गया लाली सुगना को रसोई में छोड़कर कमरे में आ गई। राजेश के वीर्य दोहन और सुगना के गर्भधारण के इस अनोखे तरीके को अंजाम देने के लिए लाली अपनी तैयारियां पूरी कर चुकी थी... लाली ने अंदर का दरवाजा सटा दिया था...

सुगना रसोई में बर्तन सजाते अपने कल के व्रत के बारे में सोच रही थी कहीं उससे व्रत में कोई गलती तो नहीं हो गई? उसके बाबूजी अचानक उसे छोड़कर क्यों चले गए? आज का दिन वह अपने बाबू जी से जी भर चुद कर गर्भधारण कर सकती थी। क्या भगवान उससे रुष्ट हो गए थे?

उसका दिल बैठा जा रहा था ऐसा लग रहा था जैसे उसके जीवन में कोई पुरुष बचा ही न था। अपने कामुक ख्यालों में कभी-कभी वह राजेश के साथ अंतरंग जरूर हुई थी परंतु हकीकत में राजेश और उसके बीच अब भी मर्यादा की लकीर कायम थी हालांकि यह लकीर अब बेहद महीन हो चुकी थी। राजेश तो सुगना को अपनी बाहों में लेने के लिए मचल रहा था सिर्फ और सिर्फ सुगना को ही अपनी रजामंदी देनी थी परंतु वह अभी भगवान से सरयू सिंह के वापस आने की प्रार्थना कर रही। लाली राजेश का वीर्य दोहन करने अंदर जा चुकी थी और कुछ ही देर में उसे अंदर जाना था।

क्या वह अपने गर्भ में राजेश का वीर्य लेकर गर्भधारण करेगी क्या यह उचित होगा? क्या भगवान ने उसके व्रत के फलस्वरूप ही राजेश को यहां भेजा है…

परिस्थितियां तेजी से बदल रही थी और सुगना के मनोभाव भी। सुगना ने परिस्थितियों से समझौता कर लिया था और वह लाली के खाँसने का इंतजार कर रही थी जिसे सुनकर उसे कमरे के अंदर प्रवेश करना था।

###################################

उधर सोनी रिक्शे में विकास के साथ बैठी हुई बनारस महोत्सव की तरफ जा रही थी उसे बार-बार अपनी उंगलियों में लगा हुआ चिपचिपा द्रव्य याद आ रहा था आखिर वह क्या था? जितना ही वह उसके बारे में सोचती उसके विचार में घृणा उत्पन्न होती उस किशोरी उस किशोरी ने तो आज तक कभी वीर्य को न देखा था और न हीं छुआ था। परंतु आज उसे अपने ही भाई के वीर्य को अपनी उंगलियों से अकस्मात ही छू लिया था। उस करिश्माई द्रव्य से सोनी कतई अनजान थी। जिस द्रव्य को सोनी अपनी अज्ञानता वश घृणा की निगाह से देख रही द्रव्य के अंश को सुगना अपने गर्भ में लेने के लिए सुगना तड़प रही थी।

उसने सोनू से पूछा

"भैया आप लाली दीदी के यहां हमेशा आते जाते हो?"

"क्यों तुझे क्यों जानना है?"

"ऐसी ही" सोनू ने उत्तर न दिया और अनमने मन से दूसरी तरफ देखने लगा उसे लगा जैसे लाली के घर आना जाना असामान्य था किसे सोनी ने अपने संज्ञान में ले लिया था।

"लगता है आजकल वर्जिश खूब हो रही है" सोनी ने सोनू की मजबूत भुजाओं को छूते हुए बोला

सोनू का ध्यान सोनी की तरफ गया उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर सोनू खुश हो गया था।

सोनू ने रिक्शा रुकवाया और पास की दुकान से जाकर कुल्फी ले आया सोनी खुश हो गयी और कुल्फी खाने लगी। सोनी के गोल गोल होठों में कुल्फी देखकर सोनू के दिमाग में लाली घूमने लगी। वह देख तो सोनी की तरफ रहा था परंतु उसके दिमाग में लाली का भरा पूरा बदन घूमने लगा। कुल्फी चूसती हुई सोनी उसे लण्ड चूसती लाली दिखने लगी। अपनी ही छोटी बहन के प्रति उसके मन में बेहद अजीब ख्याल आने लगे।

उसका ध्यान सोनी के मासूम चेहरे से हटकर उसके शरीर पर चला गया जैसे जैसे वह सोनी को देखता गया उसे उसके उभारो का अंदाजा होता गया। सोनी अपनी अल्हड़ यौवन को भूलकर कुल्फी का आनंद ले रही थी। उसे क्या पता था की सोनु की नजरें आज पहली बार उसके शरीर का नाप ले रही थी।

"भैया आप भी अपनी कुल्फी खाइए पिघल रही है"

सोनी की बात सुनकर सोनु शर्मा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे सोनी ने उसके मनोभाव को पढ़ लिया है उसने अपना ध्यान हटाया और दोनों रिक्शा में बैठकर विद्यानंद के पंडाल की तरफ चल पड़े। अपनी मुंह बोली बहन लाली को चोद कर सोनू के दिमाग में बहन जैसे पावन रिश्ते के प्रति संवेदनशीलता कम हो रही थी।

सोनू ने सोनी को पंडाल तक छोड़ा और अपनी मां पदमा तथा कजरी से मिला। पद्मा ने सोनू को सदा खुश रहने और अच्छी नौकरी का आशीर्वाद दिया और अपने पिछले दिन के व्रत से अर्जित किए सारे पुण्य को अपने पुत्र पर उड़ेल दिया। पदमा को क्या पता था कि उसका पुत्र इस समय जीवन के सबसे अद्भुत सुख के रंग में रंगा हुआ अपनी मुंहबोली बहन लाली के जाँघों के बीच बहती दरिया में गोते लगा रहा है।

सोनू का मन पांडाल में नहीं लग रहा था उसे रह-रहकर लाली याद आ रही थी। हालांकि घर में उसकी बड़ी बहन सुगना भी मौजूद थी परंतु फिर भी वह लाली के मोहपाश से अपने आप को न रोक पाया और वापस लाली के घर जाने के लिए निकल पड़ा….

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उधर कजरी का व्रत सफल हो चुका था। कजरी ने जो मांगा था उसे शीघ्र मिलने वाला था।

मुंबई में रह रहा उसका पुत्र रतन बीती शाम बबीता से अपना पीछा छुड़ाकर गांव वापस आने के लिए तैयार था। उसने अपनी सारी जमा पूंजी इकट्ठा की और अपनी बड़ी पुत्री मिंकी को लेकर आज सुबह सुबह ट्रेन का इंतजार कर रहा था।

रतन के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ सुगना घूम रही थी उसने कुछ दिनों पहले सूरज के लिए जो खिलौने और सुगना के लिए जो खत लिखा था उसका जवाब नहीं आया था, आता भी कैसे? रतन का पार्सल सलेमपुर के डाकखाने में एक कोने में पड़ा सरयू सिंह के परिवार के सदस्यों के आने का इंतजार कर रहा था।

रतन में मन ही मन फैसला कर लिया था कि वह सुगना के करीब आने और उसे मनाने की भरपूर कोशिश करेंगा यदि वह नहीं भी मानती है तब भी वह उससे एक तरफा प्यार करता रहेगा और उसे पत्नी होने का पूरा हक देगा। शारीरिक न सही परंतु स्त्री को जो पुरुष से संरक्षण प्राप्त होना चाहिए वह उसमें पूरी तरह खरा उतरेगा।

अपने चार-पांच सालों में सुगना के प्रति दिखाई बेरुखी को मिटा कर अपनी गलतियों का प्रायश्चित करना चाहता था। जैसे-जैसे उसका प्रेम सुनना के प्रति बढ़ रहा था नियति प्रसन्न हो रही थी। वह इस कहानी में उसकी भूमिका तलाश में लगी हुई थी।

रेलवे स्टेशन चूरमुरा खाते हुए। मिंकी ने पूछा

"पापा वहां पर कौन-कौन है. नई मम्मी मुझे परेशान तो नहीं करेगी. मम्मी कह रही थी कि नयी मम्मी तुझे बहुत मारेगी तू मत जा"

"बेटा तेरी नई मम्मी तुझे बहुत प्यार करेगी. वह बहुत अच्छी है... वहां गांव पर तेरे बाबा है दादी हैं और ढेर सारे लोग हैं. तुझे सब ढेर सारा प्यार करेंगे और एक छोटा भाई भी है सूरज तू उसे देख कर खुश हो जाएगी वह बहुत प्यारा है"

मिंकी खुश हो गई. उसे छोटे बच्चे बेहद प्यारे थे और यह बात उसे और भी अच्छी लग रही थी उसका कोई भाई होगा. मिंकी अपनी नई जिंदगी को सोच सोच कर खुश भी थी और आशान्वित भी। सूरज के चमत्कारी अंगूठी अंगूठे का एक और शिकार सलेमपुर पहुंचने वाला था नियति को अपनी कथा का एक और पात्र मिल रहा था और सुगना को उसका पति।

परंतु क्या सुगना रतन को अपना आएगी? क्या उसका गर्भधारण उसके पति द्वारा ही संपन्न होगा? क्या सुगना और रतन का मिलन अकस्मात ही हो जाएगा? सुगना जैसी संवेदनशील और मर्यादित युवती क्या अचानक ही रतन की बाहों में जाकर आनन-फानन में संभोग कर लेगी?

नियति सुगना के गर्भधारण का रास्ता बनाने में लगी हुई थी परंतु सुगना के भाग्य में जो लिखा वह टाला नहीं जा सकता था। सुगना था यह गर्भधारण उसे विद्यानंद के श्राप से मुक्ति दिला पाएगा इसकी संभावना उतनी ही थी जितनी गर्भधारण से पुत्र या पुत्री होने की। सुगना के भविष्य को भी सुगना के गर्भ के लिंग के तय होने का का इंतजार था।

###################################

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन से गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई...

शेष अगले भाग में...
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भाग 56

परंतु लाली के घर में सुगना का इंतजार खत्म हो चुका था। लाली के खांसने की आवाज सुनकर सुगना का दिल तेजी से धड़कने लगा उसकी चूचियां और काम इंद्रियां सतर्क हो गई। आज पहली बार वह लाली के हाथों राजेश का वीर्य स्खलन देखने जा रही थी। देखने ही क्या उसे उस वीर्य को अपने गर्भ में आत्मसात भी करना था। सुगना का दिल और जिस्म एक दूसरे से सामंजस्य बैठा पाने में नाकाम थे। वह बदहवास सी अधूरे मन और गर्भधारण की आस लिए लाली के कमरे में प्रवेश कर गई…

अब आगे….

बिस्तर पर राजेश अर्धनग्न स्थिति में पड़ा हुआ था उसकी लूंगी कमर पर कसी अवश्य थी परंतु सामने से पूरी तरह खुली हुई थी।

राजेश का तना हुआ लण्ड लाली के खूबसूरत हाथों में आगे पीछे हो रहा था।

लाली ने अपनी उंगलियां होंठ पर रखते हुए सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उन्हीं उंगलियों से उसे अपने पास भी बुला लिया।

कमरे में अब भी कुछ उजाला कायम था रेलवे कॉलोनी की खिड़कियों और दरवाजों को बंद करने के बावजूद सूरज की रोशनी को रोक पाना असंभव था।

सुगना बार-बार राजेश के चेहरे को देख रही थी जिस पर लाली ने अपना दुपट्टा डाल रखा था।

सुगना मन ही मन बेहद घबरा रही थी कहीं यदि राजेश जीजू के आंख पर से दुपट्टा हट गया तो?

सुगना सधे हुए कदमों से धीमे धीमे लाली के करीब आ गई। सुगना के सधे हुए कदमों ने पायल की छनक को भी रोक लिया। अपने अंतर्द्वंद से लड़ते हुए सुगना का मन मस्तिष्क थक चुका था और उसके कदम उसका अनुकरण कर रहे थे।

राजेश को यह अंदाजा भी ना हुआ की सुगना कमरे में आ चुकी है।

लाली ने अपनी हथेलियां राजेश के काले लण्ड पर फिराते हुए कहा…

"आज त कालू मल पूरा उछलत बाड़े…...सुगना खातिर का?" राजेश मुस्कुरा उठा

"धीरे बोल... सुगना बाहरे होइ"

"हमार बात मत टालीं ... ई इतना काहे फुदकता हमरा सब मालूम बा" लाली ने राजेश के लण्ड को दबा दिया और उसके सुपारे को अपने अंगूठे से सहला दिया।

राजेश ने लाली के प्रश्न का उत्तर न दिया अपितु लाली से पूछा…

"सुगना तोहार सहेली ह उकरे से काहे ना पूछ लूं कि छौ छौ महीना अकेले कैसे रहे ले? रतनवा सार पागल ह.. सुगना जैसन पुआ हमरा भेटाई रहित त…

"त..का…..का करतीं?" लाली ने राजेश के मुसल को मसल दिया

"आह..तनि धीरे से…..दुखाता….."

राजेश के मुख से निकले अंतिम वाक्यांश यूं ही नहीं निकले थे दरअसल सुगना की तारीफ सुनकर लाली थोड़ा नाराज हो गई थी उसने राजेश के लण्ड को कुछ ज्यादा ही तेजी से दबा दिया था और राजेश की उत्तेजना एक मीठी कराह में बदल गई थी।

लाली ने अपने हाथों का दबाव थोड़ा नरम किया और बोली..

"बताई बताई का करतीं...ओकरा पुआ के साथ?." लाली ने मुस्कुराते हुए सुगना को देखा

राजेश ने कुछ कहा नहीं पर अपने होठों को गोल कर अपनी जीभ को अपने होठों पर फिराने लगा...

राजेश की इस हरकत से सुगना की जांघों के बीच छुपे मालपुए पर एक अजीब सी संवेदना हुई और वह सिहर उठी। उसे लाली की बातें याद आ रही थी लाली सच कहती थी। राजेश जीजू उसके बारे में खुलकर गंदी बातें कर रहे थे।

सुगना असमंजस में थी। उसे लाली और राजेश के बीच उसे लेकर चल रही उत्तेजक बातों से ज्यादा सरोकार न था वह मन ही मन घबरा रही थी और लाली द्वारा राजेश के वीर्य स्खलन का इंतजार कर रही थी। उसने लाली को अपने हाथों की गति बढ़ाने का इशारा किया प्रत्युत्तर में लाली ने उसे ही अपने हाथ लगाने का आमंत्रण दे दिया सुगना ने झटपट अपने दोनों हाथ पीछे कर लिए और मुस्कुराने लगी.

सुगना राजेश के करीब हो या ना हो पर वह लाली से बेहद प्रेम करती थी वह उसकी प्रिय सहेली थी जिससे वह हर प्रकार की बातें साझा करती थी।

राजेश के अंडकोष में लावा उबलने लगा था लाली के हाथों की कुशलता और दिमाग में घूम रही सुगना ने लण्ड में करंट दौड़ा दी और राजेश का लण्ड झटके लेने लगा…

जैसे ही राजेश का स्खलन प्रारंभ हुआ सुगना थर थर कांपने लगी। लाली के वीर्य से सने हाथ को देखकर सुगना को एक अजीब सा एहसास हुआ उसे आज पहली बार उस श्वेत वीर्य से घृणा का एहसास हुआ यह क्यों हुआ यह तो सुनना ही जाने परंतु उसी समय सूरज के रोने की आवाज आई और सुगना उल्टे पैर हॉल वाले कमरे की तरफ दौड़ पड़ी। पुत्र मोह में वह यह भूल गई कि वह लाली के पास दबे पैर आई थी.

सुगना की छनकती पायल ने सारी कहानी बयां कर दी। राजेश ने लाली के वचन को तोड़ अपनी आंखों पर पड़ा दुपट्टा हटा लिया और दरवाजे से बाहर जाती हुई सुगना को देख लिया। वह अवाक रह गया उसने लाली से पूछा

"सुगना एहजे रहली का?"

लाली ने कुछ नहीं कहा। अपने दोनों हाथों में वीर्य लपेटे हुए अजीब सी स्थिति में आ चुकी ही। वह किस मुंह से यह बात बताती कि वह इन्हीं उंगलियों से सुगना की बुर में उसके वीर्य को प्रवेश करा कर सुगना को गर्भधारण करने में मदद करने वाली थी।

सारा खेल खराब हो चुका था।

( कुछ तो पाठको ने किया कुछ नियति ने किया)

सुगना के गर्भधारण की आस टूट चुकी थी अद्भुत निषेचन क्रिया होते होते रुक गई थी। लाली सोच रही थी कि जब राजेश के वीर्य से गर्भधारण में सुगना को आपत्ति नही है तो काश सुगना एक बार के लिए उसके पति की इच्छा भी पूरी कर देती……पर सुगना अपनी अपनी अद्भुत निषेचन क्रियाविधि से ही संतुष्ट थी पर आज यह अवसर भी जा चुका था।

कुछ ही देर बाद राजेश ने खाना खाया और वापस ड्यूटी के लिए निकल पड़ा।

सुगना सूरज को दूध पिलाते हुए लाली के वीर्य से सने हाथों की याद कर रही थी यदि सूरज न होता तो शायद लाली की वीर्य से सनी उंगलियां उसकी बुर में राजेश के वीर्य को पहुंचा चुकी होती…

सुगना को समझ ही नही आ रहा था कि वह खुश हो या दुखी…

थोड़ा आराम करने के पश्चात सुगना और लाली दोनों बनारस महोत्सव जाने के लिए तैयार होने लगी।

लाली के दोनों बच्चे पड़ोस में खेलने चले गए। लाली अपनी नयी साड़ी पहनकर झटपट तैयार हुई… तभी सुगना ने कहा...

"रुक जा हमु नहा ले तानी"

"काहे नहा तारे ते त असहीं चमकते रहेंले

अपनी तारीफ सुनकर सुगना मुस्कुरा उठी। वह खूबसूरत तो थी ही और मुस्कुराहट ने उसमे चार चांद लगा दिए।

सुगना ने अपनी साड़ी उतारी लाली की निगाहें उसके खूबसूरत जिस्म को निहार रहीं थीं जिसे सुगना ने ताड़ लिया और पलटते हुए बोली

" का देखा तारे.."

लाली शर्मा गई लाली सुगना की पतली कमर और भरे भरे नितंबों के बीच खो गई थी नितंबों के बीच छुपी सुगना की रानी की कल्पना जितना उसके पति राजेश ने की थी उतना लाली ने भी। उसने अपने मन और मस्तिष्क में अनायास ही उसकी छवि बिठा ली थी।

वह अपनी तुलना सुगना से कर रही थी भगवान ने दोनों एक जैसी काया दी थी परंतु सुगना के शरीर की चमक और कसाव उसे एक अलग ही पहचान देता था।

सुगना ने लाली की नाइटी ली और बाथरूम की तरफ जाने लगी। लाली ने भी आज बिल्कुल नई साड़ी पहनी थी वह बाहर जाते हुए बोली

"सूरज के भी ले ले जा तानी। पूजा में चढ़ावे खातिर कुछ सामान खरीद ले तानी। ते आराम से नहा ले"

"दरवाजा सटा दे" सुगना ने कहा और गुसल खाने में प्रवेश कर गई।

नियति सुगना को नग्न होते हुए देख रही थी सुगना ने अपने शरीर के सारे वस्त्र उतार दिए और अपनी जन्मजात अवस्था में आकर अपने खूबसूरत शरीर का अवलोकन करने लगी । एक बच्चे की मां बनने के बाद भीभी सुगना बिना अपने हांथों का प्रयोग किये अपनी आंखों से अपनी बुर की दरार देख पाती थी उसने अपने पेट पर उभार आने नहीं दिया था और चुचियों का कसाव भी बरकरार रखा था।

सुगना के चमकते हुए शरीर को देखकर नियति भी स्वयं अपनी कृति पर प्रफुल्लित हो रही थी यदि उसके बस में होता तो वह स्वयं ही उससे संभोग कर उसकी मनोकामना पूर्ण कर देती।

सुगना के तन मन में एक अजब सी आग थी अपने बाबुजी सरयू सिह से संभोग किये उसे कई महीने बीत चुके थे। जब भी उसका मन खुशहाल होता उसकी जांघों के बीच छुपी हुई बुर मुस्कुराने लगती। पिछले दो-तीन दिनों से उसे हर घड़ी अपने बाबूजी की याद आ रही थी। विद्यानंद से मिलने के पश्चात एक-एक दिन उसने सरयू सिंह को याद करते हुए गुजारे थे। परंतु किसी न किसी कारण उसे उनका संसर्ग नहीं मिल पा रहा था।

हर समय उसका अंतरमन ऊपर वाले से एक ही प्रार्थना करता काश उसके बाबु जी उसे अपनी गोद में उठाते और उसकी नग्न पीठ पर अपनी खुरदरी हथेलियां फिराते हुए उसे अपने आलिंगन में लेते। गालों से गाल सटाते होठों से होठ चूमते और ……..आह ….

सुगना की उंगलियों ने उसके मनोभावों को पढ़ लिया वह अपनी निगोड़ी बुर को समझाने के लिए उसे थपथपाने लगी। परंतु प्यासी बुर सुगना के झांसे में आने को तैयार न थी उसने अपना मुंह खोल दिया और सुगना की उंगलिया उसकी कोमल गहराइयों में उतर गयीं। सुगना की बुर ने न जाने उंगलियों पर ऐसा कौन सा निर्वात बल कायम किया हुआ था, सुनना चाह कर भी अपनी उंगलियां बाहर न निकाल पायीं। उसकी उंगलियां अंदर थिरकती रहीं और सुगना के निप्पल तनते चले गए।

अपने ही हाथों अपनी चुचियों को सांत्वना देने के लिए सुगना ने उन्हें सहलाना चाहा और अनचाहे में ही अपनी उत्तेजना को अंजाम तक पहुंचा दिया। सुगना के दिलों दिमाग पर सरयू सिंह के साथ बिताए गए अंतरंग पल छाते चले गए...

काश बाबूजी अपने मजबूत मुसल से उसकी जांघों के बीच चटनी कूटते….मुसल का कार्य उंगलिया न कर सकीं पर …

सुगना की बुर ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया। सुगना ऐंठती रही उसकी जाँघे तन गयी.. उसकी मांसल बुर ने अंदर रिस रहे सारे प्रेम रस को बुर् के होठों पर लाकर छोड़ दिया जो सुगना द्वारा लोटे से डाले जा रहे शीतल जल के साथ विलीन हो गया।

सुगना ने अपना स्नान पूरा किया और लाली की नाइटी पहन कर लाली के कमरे में आ गई अपने बाल सुखाते हैं सुखना दरवाजे की तरफ पीठ करके खड़ी थी ..

#####################################

उधर सोनू सोनी को पांडाल में छोड़ने के बाद कुछ देर अपने दोस्तों के साथ रहा परंतु उसका मन कहीं न लग रहा था। सुबह लाली को जी भर कर चोदने के पश्चात उसका मन नहीं भरा था। जाने यह कैसी आग थी जितना सोनू लाली के करीब आ रहा था उसकी प्यास बढ़ती जा रही थी। आज लाली के घर में सुगना भी उपस्थित थी इसलिए सोनू जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।

परंतु चतुर सोनू चूत के चस्कर में चकोर की भांति, चित्त में लाली की छवि बसाये, चूत के आकर्षण में बंधा लाली की कालोनी में आ गया।

लाली के घर से कुछ ही दूर उसे नई साड़ी में लिपटी सुगना के कंधे पर से झांकता हुआ सूरज का चेहरा उसे दिखाई पड़ गया। उसे लगा जैसे सुगना दीदी सूरज को लेकर कुछ सामान खरीद रही है। सोनू तेजी से भागता हुआ लाली के घर पहुंच गया और सटे हुए दरवाजे को धीरे से खोलते हुए अंदर आ गया।

घर में एकांत पाकर सोनू ने मन ही मन ऊपर वाले से अपनी अनुनय विनय कर डाली और ऊपर वाले ने भी उसकी इच्छा पूरी कर दी। उसके मनो मस्तिष्क में चल रही लाली को उसने अंदर अपने बाल सुखाते देख लिया। नाइटी में लाली न होकर सोनू की सुगना दीदी थी पर सोनू इस बात से अनजान था। नाइटी के झीने आवरण में ढकी गदराई जवानी उसे ललचाने लगी। सोंग का लण्ड स्प्रिंग की तरह तुरंत ही खड़ा हो गया वह सधे हुए कदमों से उस कामनीय शरीर के पीछे गया और उसे पीछे से अपने आलिंगन में ले लिया।

सुगना के पेट पर अपने हाथों से पकड़ बनाते हुए उसने सुगना को लगभग ऊपर उठा दिया। सुगना के पैर हवा में आ गए। सोनू के लण्ड ने सुगना के नितंबों के बीच में जगह बनाने की कोशिश की और सोनू के मजबूत लिंग ने अपनी उपस्थिति का एहसास सुगना को करा दिया।

सुगना ने पीछे पलट कर देखा...

सोनू सकपका गया।

"हम जननी हा की लाली ….."

सोनू जो कहना चाहता उसे कह पाना भी उतना ही कठिन था वह अपने वाक्य को पूरा न कर सका।

उसने सुगना को तुरंत ही नीचे छोड़ दिया और बिना कुछ कहे उलटे पैर कमरे से बाहर निकल गया।

कुछ देर के आलिंगन ने भाई बहन की बीच के पवित्र रिश्ते में एक ऐसा एहसास डाल दिया था जो दोनों के लिए बिल्कुल ही नया था।

सोनू थरथर कांप रहा था वह सबकी नजर बचाकर भाग जाना चाह रहा था परंतु ऐसा हो ना सका दुकान से आ रही लाली ने उसे देख लिया और बोला...

"कहां जा रहे हो ? दरवाजा तो खुला ही था अंदर सुगना है ना..

"मुझे कुछ काम है मैं थोड़ी देर बाद आता हूं…"

"जा पहले रिक्शा लेकर आ हम लोग बनारस महोत्सव जाएंगे.."

सोनू फंस चुका था वह रिक्शा लेने के लिए सड़क की तरफ बढ़ गया। उसके हाथ अभी भी उस अद्भुत स्पर्श.. को याद कर रहे थे। ऐसा नही था कि सुगना को सोनू ने छुआ न था पर वह आलिंगन अलग था वासना से ओतप्रोत...सोनू की बाहों पर अपना भार छोड़ती चुचियों का कोमल स्पर्श सोनू को अपने दिमाग मे चल रहे के कामुक द्वंद में और कमजोर कर रहा था।

सुगना के शरीर की कोमलता उसके लिए बेहद नई थी। इतनी उत्तेजना उसने पहले कभी महसूस नहीं की थी। लाली और सुगना के शरीर के अंतर को सोनू ने कुछ ही पलों में पहचान लिया था।

यह अंतर बिल्ली और खरगोश के बच्चे की तरह था दोनों ही कोमल और मुलायम थे पर अंतर अपनी जगह था।

उधर सुगना भी सिहर उठी थी।। कुछ ही पलों के आलिंगन में उसे सोनू के पूर्ण वयस्क होने का एहसास करा दिया था। अपने नितंबों में उसके खड़े लिंग की चुभन को उसने बखूबी महसूस किया था और मजबूत आलिंगन के कसाब को भी।

उसका भाई अब उतना छोटा न था जितना अब वो उसे समझती थी। जिस तरह बचपन मे वह उसे झूला झुलाया करती थी आज ठीक उसी तरह सोनु ने उसे कुछ पलों के लिए ही सही पर वही झूला झूला दिया था। पर भाव मे अंतर स्पस्ट था। प्रेम प्रेम में अंतर था।

सुगना और सोनू का प्यार वात्सल्य रस से अचानक श्रृंगार रस की तरफ मुड़ता प्रतीत हो रहा था।

इस आलिंगन ने सुगना के मन में सोनू के प्रति भाव बदल दिए। सोनू से नजरें मिलाने में खुद को नाकाम पा रही थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना सोनू द्वारा लाए रिक्शे में बैठकर बनारस महोत्सव के लिए चल पड़ीं। पीछे एक और रिक्शे में सोनू अपनी लाली दीदी के दोनों बच्चों को लेकर एक सेवक की भांति पीछे पीछे चलने लगा। रिक्से में बैठी हुई दोनों स्त्रियों की पीठ देखकर सोनू आज पहली बार इन दोनों की तुलना कर रहा था।

आज सोनू की निगाहे अपनी सगी बहन में कामुकता खोज रही थी। वह जितना ही ध्यान सुगना की पीठ पर से हटा कर लाली पर ले जाता परंतु उसका अवचेतन मन सुगना की पीठ पर ही निगाहों को घसीट लाता।

सुगना जब-जब सोनू के बारे में सोचती उसका दिल धक धक करने लगा। वह बार बार अपने कपड़ों को व्यवस्थित कर अपनी नंगी पीठ को ढकने का प्रयास करती। सोनू के सामने बिंदास और निर्विकार भाव से घूमने वाली अब सचेत हो गयी थी।

पंडाल में उतरने के बाद वह सीधा महिलाओं वाले भाग में चली गई। उसने सोनू की तरफ पलट कर नहीं देखा वह देखती भी कैसे? अभी भी उसके स्पर्श का वह एहसास उसके दिलो-दिमाग पर छाया हुआ था।

बनारस महोत्सव का पांचवा दिन भी बीत रहा था। संध्या वंदन के उपरांत सुगना ने अपने इष्ट देव के समक्ष अपना निर्णय सुना दिया…

जब तक उसके बाबूजी सरयू सिंह उसे अपने हांथो से पानी नही पिलायेंगे वह पानी नही पीयेगी। सुगना जो बात अपने इष्ट से कहना चाहती थी उसने अपने तरीके से वह बात उन पहुंचा दी थी। सुगना ने मन ही मन सोच लिया था कि वह सरयू सिह के आते ही तुरंत ही उनकी गोद मे आ जाएगी..

के सुगना चल खाना खा ले…

"ना मां हमारा भूख नइखे"

सुगना को जिस चीज की भूख थी वह सर्वविदित था।

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उधर सुबह सुबह सरयू सिंह सलेमपुर की तरफ बढ़ रहे थे.. आज वह किसी भी हाल में सुगना को छोड़कर सलेमपुर नहीं जाना चाह रहे थे परंतु उनका कर्तव्य और मनोरमा का निर्देश उनकी निजी आकांक्षाओं पर भारी पड़ रहा था। सलेमपुर पर आई इस प्राकृतिक विपदा से अपने गांव वालों को निकालना और उन्हें राहत पहुंचाना सरयू सिंह ने ज्यादा जरूरी समझा और अपने मन का मलाल त्याग कर अपने कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल पड़े। काश कि वह सुगना की मनोदशा और उसके अंतर्द्वंद को जान पाते तो वह अपनी नौकरी को ताक पर रखकर सुगना के साथ खड़े रहते बल्कि उसे तब तक लगातार संभोग करते जब तक कि वह गर्भवती ना हो जाती।

उन्होंने निकलते वक्त सुगना के साथ रंगरेलियां मनाने के लिए निर्धारित होटल मैं जाकर अपने ना आने की सूचना दे दी और काफी जद्दोजहद करने के पश्चात अपनी गाढ़ी कमाई का कुछ पैसा वापस ले आए।

सलेमपुर पहुंच कर उन्होंने गांव वालों को यथोचित मदद पहुंचायी और साथ आए पुलिसवालों के साथ मिलकर उग्र गांव वालों को शांत करने में मदद की। इस दुरूह कार्य को करते करते रात गहरा गई।

सरयु सिंह का कार्य अभी अधूरा था सलेमपुर में भी और सुगना द्वारा किये वादे का सुख लेने का भी... परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन बीत चुका था।

सरयू सिंह सुगना के लिए अधीर हो रहे थे परंतु नियति भी सुगना के हाँथ की लकीरों के आगे मजबूर थी।

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विद्यानंद के पंडाल में रात गहरा रही थी। पंडाल में सारी महिलाएं सो चुकी थी सिर्फ सुगना की आंखों से नींद गायब थी भूखी प्यासी सुगना अपने इष्ट देव से अपने बाबू जी के आगमन के लिए प्रार्थना कर रही थी अपने मन में इतना झंझावात लिए सुगना सो गई.. और एक निराली दुनिया मे पहूँच गयी।

पंडाल में जमीन पर चटाई बिछी हुई थी। पंगत में कई सारे लोग बैठे हुए थे। महिलाएं पुरुषों को खाना परोस रही थी। सुगना को भी खाना परोसने के लिए बुलाया गया। सुगना अपने हाथ में मीठा मालपुआ लिए पंगत की तरफ बढ़ चली।

अचानक सुगना को अपनी साड़ी की सरकती हुई महसूस हुई। यह क्या... उसकी साड़ी अचानक ही शरीर से गायब हो चुकी थी थी. ब्लाउज और पेटीकोट सुगना के शरीर को मर्यादित आवरण देने में पूरी तरह नाकाम थे।

सामने बैठे पुरुष उसे एकटक घूरे जा रहे थे तभी पीछे से कजरी की आवाज आई

"सुगना बेटा.. सब के मालपुआ खिया द"

कजरी के मुख से मालपुआ शब्द सुनकर सुगना ने एक पल के लिए शर्म से पानी पानी हो गई और अगले ही पल अपनी शर्म को ताक पर रखकर सामने बैठे व्यक्तियों को पहचानने की कोशिश करने लगी..

जैसे जैसे उसकी आंखें पुरुषों को पहचानने की कोशिश करती गई उसकी आंखें आश्चर्य से फटती चली गयीं।

पंगत में सबसे पहले रतन था उसके पश्चात राजेश और सोनू था। सबसे आखरी में सुगना के प्यारे बाबू जी पालथी मारे बैठे हुए थे और उनकी गोद में छोटा सूरज बैठा हुआ था।

सुगना अपनी अर्धनग्न अवस्था में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। तभी कजरी की आवाज एक बार फिर आयी..

"सुगना बेटा सब आपने ही परिवार के ह मालपुआ दे द"

सुगना आगे झुकी और रतन के पत्तल में मालपुआ रख दिया उसकी चूचियां बरबस ही रतन की निगाहों के सामने आ गयीं। सुगना के दोनों हाथ व्यस्त थे वह चाह कर भी अपनी चुचियों पर अपने हाथों का आवरण न दे पायी। सुगना थरथर कांप रही थी। उसकी चूचियां ब्लाउज से बाहर आकर रतन को ललचा रही थीं।

अगली बारी राजेश की थी। पत्तल में मालपुआ डालते समय सुगना कि दोनों चूचियां उछल कर बाहर आ गई…

सुगना ने जैसे ही मालपुआ सोनू की थाली में डाला पेटीकोट जैसे गायब हो गया। अपने छोटे भाई के सामने खुद को नग्न पाकर सुगना के पैर कांपने लगे सुगना बेसुध होकर गिर पड़ी उसने खुद को सरयू सिह की गोद में पाया..

सरयू सिंह की एक जंघा पर पूर्ण नग्न सुगना थी दूसरे पर सूरज था…

अपने ही अबोध बालक के सामने सुगना पूर्ण नग्न अवस्था में बैठी हुई थी। उसकी मालपुआ की थाली न जाने कहां गायब हो गयी थी..

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


शेष अगले भाग में...
Mind-blowing update
 

Lutgaya

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Lovely Anand ji meri story कहानी एक मासूम की आज के अपडेट भाग 12 पर पधारे और उसमें दिए लिंक पर क्लिक करें आपके लिए कुछ स्पेशल है उसमें ??
 

Lovely Anand

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साथियों मुझे खेद है कि अपडेट देने में कुछ ज्यादा ही विलंब हो चुका है परंतु इस समय मेरी व्यस्तता जरूरत से ज्यादा है और आप सब को पता ही है की कहानी लिखना फुर्सत और समय काटने का उपाय जो इस समय मेरे पास बेहद कम है आप सब जुड़े रहे मैं बीच-बीच में कुछ घटनाक्रम लिख रहा हूं परंतु उन्हें जोड़कर प्रस्तुत करने लायक अपडेट बनाने में देर हो रही है
 

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Lovely Anand ji meri story कहानी एक मासूम की आज के अपडेट भाग 12 पर पधारे और उसमें दिए लिंक पर क्लिक करें आपके लिए कुछ स्पेशल है उसमें ??
Dhanyavaad
 

Tiger 786

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साथियों मुझे खेद है कि अपडेट देने में कुछ ज्यादा ही विलंब हो चुका है परंतु इस समय मेरी व्यस्तता जरूरत से ज्यादा है और आप सब को पता ही है की कहानी लिखना फुर्सत और समय काटने का उपाय जो इस समय मेरे पास बेहद कम है आप सब जुड़े रहे मैं बीच-बीच में कुछ घटनाक्रम लिख रहा हूं परंतु उन्हें जोड़कर प्रस्तुत करने लायक अपडेट बनाने में देर हो रही है
Ok bro take ur time
 
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