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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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कुछ अपरिहार्य कारणों से मैं चाह कर भी अगले अपडेट नहीं लिख पा रहा हूं परंतु शीघ्र ही इस कहानी को आगे लिखूंगा प्रतीक्षा और जुड़े रहने के लिए धन्यवाद
 

Sanju@

Well-Known Member
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हॉस्टल के बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू आज के सुखद और दुखद पलों को याद कर रहा था। विकास ने आज उसके साथ जो बर्ताव किया था उसकी उम्मीद उसे न थी।

माना कि उसकी हैसियत मोटरसाइकिल खरीदने की न थी। पर सोनू काबिलियत में विकास से बेहतर था। विकास तो अपने माता पिता की दौलत की वजह से अय्याशी की जिंदगी व्यतीत करता था। परंतु सोनू अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझते हुए कम खर्च में अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था।

लाली दीदी के घर पहुंच कर उसने अपनी घड़ी पर निगाह डाली 11:00 बज चुके थे निश्चय ही देर हो गई थी। राजेश के जाने के पश्चात लाली धीरे-धीरे कदम बढ़ाते हुए अपने घर की तरफ बढ़ने लगी कमर में आई चोट अपना प्रभाव दिखा रही थी लाली के कदम गर्भवती महिला की तरह धीरे धीरे पड़ रहे थे। एक पल के लिए सोनू को बेहद अफसोस हुआ। उसने लाली दीदी को अनजाने में ही कष्ट तो दे ही दिया था।

सोनू ने लाली के हाँथ पकड़ लिए और सहारा देते हुए घर के अंदर ले आया लाली के कोमल हाथों का स्पर्श पाकर सोनू खुश हो गया परंतु लाली के चेहरे पर तनाव था। शायद दर्द कुछ ज्यादा था।

इस स्थिति में लाली को छोड़कर जाना उचित न था परंतु विकास की मोटरसाइकिल वापस करना भी उतना ही जरूरी था।

सोनू ने स्थिति की गंभीरता को समझते हुए लाली से कहा

"दीदी मुझे मोटरसाइकिल वापस करने जाना पड़ेगा।"


लाली ने अपने दर्द को छुपाते हुए कहा

"सोनू बाबु कुछ खाना खा ले तब जाना"

" नहीं दीदी मैं हॉस्टल में खा लूंगा. मुझे पहले ही बहुत देर हो चुकी है"


"सोनू, ऐसे खाली पेट कैसे जाएगा? मुझे अच्छा नहीं लगेगा"

"नहीं दीदी मुझे जाना होगा"

लाली ने कोई और रास्ता ना देख कर फटाफट बाजार से खरीदी हुई मिठाई सोनू के मुंह में जबरदस्ती डाल दी और पास बड़ी बोतल उठाकर उसके हाथों में पकड़ा दी "सोनू बाबू थोड़ा पानी तो पी ले" लाली बड़ी बहन की भूमिका बखूबी निभा रही थी।

सोनू फटाफट मिठाई खाते हुए पानी पीने लगा. तभी लाली ने पीछे मुड़कर अपनी चुचियों के बीच फंसे 100 -100 के दो नोट निकाले( जिसे सोनू ने निकालते हुए देख लिया) और सोनू को देते हुए बोली..

"यह अपने पास रख ले खर्च में काम आएंगे"


"नहीं दीदी इसकी कोई जरूरत नहीं है"

" मैंने कहा ना रख ले"


सोनू को निश्चय ही पैसों की जरूरत थी। अभी राजदूत में तेल फुल करवाना था। उसने लाली के सामने ही उन रुपयों को लिया और चूम लिया।

लाली को एक पल के लिए लगा जैसे सोनू ने उसके उभरे हुए उरोजों को ही चूम लिया. लाली अपना दर्द भूल कर एक बार फिर शर्म से लाल हो गई। उसने अपनी निगाहें झुका ली और सोनू ने अपने कदम दरवाजे से बाहर की तरफ बढ़ा दिए। जब लाली ने अपनी नजरें उठाई वह अपने मासूम और अद्भुत प्रेमी को राजदूत की तरफ बढ़ते हुए देख रही थी।


लाली को भी आज सुख और दुख की अनुभूति एक साथ ही मिली थी। नियति सामने मुंडेर पर बैठे मुस्कुरा रही थी। लाली का यह दर्द शीघ्र ही सुख में बदलने वाला था।

सोनू राजदूत लेकर फटाफट पेट्रोल पंप पर पहुंचा और पेट्रोल फुल करवाया इसके बावजूद उसके पास ₹50 शेष रह गए जो उसके कुछ दिनों के खर्चे के लिए पर्याप्त थे। उसने लाली दीदी को मन ही मन धन्यवाद दिया और उनके स्वस्थ होने की कामना की और मोटरसाइकिल को तेजी से चलाते हुए हॉस्टल की तरफ बढ़ चला।


हॉस्टल की लॉबी में पहुंचते ही उसकी मुलाकात विकास और भोलू से हो गई

"अबे साले तू तो 9:00 बजे तक आने वाला था? टाइम देख कितना बज रहा है"

सोनू ने अपनी घड़ी देखी और मैं दिमाग मैं उचित उत्तर की तलाश में लग गया

"पहले बता कहां गया था?"

विकास के प्रश्न लगातार आ रहे थे अंततः सोनू ने संजीदगी से कहा

"कुछ नहीं यार ऐसे ही अपने रिश्तेदार के यहां गया था" सोनू का उत्तर सुनकर भोलू ने अपनी नजरें झुका ली और मन ही मन मुस्कुराने लगा।

"सच-सच बता किस रिश्तेदार के यहां गया था?"


"अरे मेरी एक बहन यहां रहती हैं उनके पास ही गया"

"अच्छा बेटा तो ये बता मोटरसाइकिल पर लाल सूट में कौन लड़की बैठी थी?"


सोनू पूरी तरह आश्चर्यचकित हो गया उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था अब झूठ बोलना संभव नहीं था। उसने विकास और भोलू को सारी बातें साफ-साफ बता दी सिर्फ उस बात को छोड़ कर जिसके बारे में उसके दोस्त सुनना चाहते थे।

विकास ने चुटकी लेते हुए कहा

"यार जिसने तुझे और उस लड़की मेरा मतलब तेरी लाली दीदी को देखा था वह कह रहा था कि भगवान ने उसे बड़ी खूबसूरती से बनाया है तू सच में तो उसे बहन तो नहीं मानता?"


"अरे बहन है तो बहन ही मानूँगा ना। "

"तो ठीक है बेटा आज से मुझे अपना जीजा मान ले।. इतनी गच्च माल को मैं तो नहीं छोडूंगा पक्का उसे पटाउंगा और …...।"

"ठीक है यदि तू उसे पटा कर सका तो मुझे तुझे जीजा बनाने में कोई दिक्कत नहीं।"

लाली को ध्यान में रखते हुए सोनू ने यह बात कह तो दी परंतु नियति ने सोनू की यह बात सुन ली. विकास सोनू का जीजा…... नियति मुस्कुरा रही थी…


बनारस महोत्सव करीब आ रहा था. दो अनजान जोड़े मिलन के लिए तैयार हो रहे थे। सोनू की बहन सोनी अपनी जांघों के बीच उग रहे बालों से परेशान हो रही थी उसकी खूबसूरत बुर को चूमने और चोदने वाला उसके भाई सोनू से बहस लड़ा रहा था।

सोनू ने उस समय तो बात खत्म कर दी थी परंतु अब हॉस्टल के बिस्तर पर लेटे हुए हुए उसी बात को मन ही मन सोच रहा था। विकास ने कैसे उससे लाली दीदी के बारे में वैसी बात कह दी थी। कितना दुष्ट है साला वो। उसके मन में तरह-तरह के गलत ख्याल आ रहे थे वह विकास से अपनी दोस्ती तोड़ने के बारे में भी सोच रहा था। तभी विकास और भोलू कमरे में आ गए सोनू को उदास देखकर वह दोनों बोले...

"यार तू गुमसुम यहां बैठा है"

"हां मन नहीं लग रहा था" सोनू ने बेरुखी से जवाब दिया

"क्यों क्या बात है?"

"कुछ नहीं, मुझे बात नहीं करनी है तुम लोग जाओ"

विकास सोनू के मन की बात जानता था उसने विकास का हाथ पकड़कर उठाते हुए कहा ...

"अरे भाई माफ कर दे उस समय मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया, तेरी लाली दीदी मेरी भी लाली दीदी है मेरी बात को गलत मत लेना"

विकास के मनाने पर सोनू का गुस्सा काफूर हो गया।

उघर लाली का दर्द बढ़ गया था उसने पड़ोसियों की मदद से दर्द निवारक दवा मंगवा ली थी और चोट लगी जगह पर मलने के लिए एक क्रीम भी. उसने दवा तो खा ली पर अपने हाथों से अपनी ही कमर के ऊपर क्रीम लगाना इतना आसान न था। वह राजेश को बेसब्री से याद कर रही थी कि काश वह रात में आ जाता। परंतु रेलवे की टीटी की नौकरी का कोई ठिकाना न था। राजेश रात को नही लौटा और लाली राजेश को याद करती रही। उसके मन में सोनू के प्रति कोई गुस्सा न था सोनू उसे पहले भी प्यारा था और अब भी.

उधर अगली सुबह सरयू सिंह सुबह-सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर दालान में पहुंचे। आज उनके चेहरे पर खुशी स्पष्ट देखी जा सकती थी। आगन से सुनना गिलास में चाय लिए हुए हाजिर हो गई उसने सरयू सिंह के चरण छुए और बेहद आत्मीयता से बोली


"बाबूजी आज राउर जन्मदिन ह"

सरयू सिंह ने सुगना द्वारा लाई गई चाय एक तरफ रख दी और उसे अपनी गोद में खींच लिया। अपनी दाहिनी जांघ पर बैठाते हुए वह सुगना के कोमल गालों को चुमें जा रहे थे और सुगना उनकी बाहों में पिघलती जा रही थी।


सुगना ने भी उन्हें चूमते हुए कहा

"बाबूजी पहले चाय पी ली ई कुल काम दोपहर में"


सुगना ने कजरी को सब कुछ साफ-साफ बता दिया था. आज सरयू सिंह के जन्मदिन के विशेष उपहार के रूप में कजरी ने भी सुगना को चुदने की इजाजत दे दी थी थी.

सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। उन्होंने पिछले तीन-चार महीनों से सुगना से संभोग का इंतजार किया था तो तीन चार घंटे और भी कर सकते थे। उन्होंने सुगना की बात मान ली और वह अपनी नजरों से सुगना के खूबसूरत जिस्म का और होठों से चाय का आनंद लेने लगे।

सुगना अपने बाबूजी की कामुक निगाहों को अपनी चूचियां और जांघों के बीच टहलते हुए देखकर रोमांचित हो रही थी और होठों पर मुस्कान लिए उनकी चाय खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

कजरी ने अपने कुँवर जी के जन्मदिन के विशेष अवसर पर तरह-तरह के पकवान बनाए और सरयू सिंह का पसंदीदा मालपुआ भी बनाया। परंतु सरयू सिंह को जिस मालपुए की तलाश थी उसके सामने यह सारे पकवान फीके थे। सुगना का मालपुआ रस से सराबोर अपने बाबूजी के होठों और मजबूत लण्ड का इंतजार कर रहा था।

समय काटने के लिए सरयू सिंह ने अपनी कोठरी की साफ सफाई शुरू कर दी। इसी कोठरी में आज वह अपनी प्यारी बहू सुगना को जम कर चोदना चाहते थे। उनका लण्ड भी नए छेद के लिए तड़प रहा था। कितनी कसी हुई होगी सुगना की कोमल गांड उसकी कल्पना मात्र से ही उनका लण्ड में तनाव आ रहा था। वह बार-बार उसे समझाते परंतु वह मानने को तैयार ना था। इंतजार धीरे धीरे बेसब्री में बदल रहा था। काश सरयू सिंह के पास दिव्य शक्ति होती तो वह समय को मुट्ठी में सिकोड़ कर समय को पीछे खींच लेते लेते।

साफ सफाई के दौरान सरयू सिंह को शिलाजीत रसायन की 2 गोलियां मिल गयीं। सरयू सिंह की आंखों में चमक आ गई। गोलियों के प्रभाव और दुष्प्रभाव से वह बखूबी परिचित थे उनके मन में कामेच्छा और डॉक्टर के निर्देश दोनों के बीच द्वंद्व शुरू हो गया। उस गोली को वह खाएं या ना खाएं इसी उहापोह में कुछ पल बीत गए। विजय लंड की ही हुई।

शरीर का सारा रक्त लण्ड में भर चुका था और दिमाग के सोचने की शक्ति स्वाभाविक रूप से कम हो गई थी। सरयू सिंह ने एक गोली घटक ली। और दूसरी गोली अपने बैग में रख लीजिए वह हमेशा अपने साथ रखते थे। सुगना के दोनों अद्भुत छेदों का आनंद लेने के लिए सरयू सिंह ने डॉक्टर के सुझाव को दरकिनार कर दिया था।

अंदर सुगना नहा धोकर तैयार हो रही थी। आज उसे दीपावली के दिन की याद आ रही थी जब मन में कई उमंगे और अनजाने डर को लिए हुए वह अपने जीवन का पहला संभोग सुख लेने जा रही थी। आज उसके मन में बार-बार उसकी छोटी सी गांड का ख्याल आ रहा था जिसे आज एक नया अनुभव लेना था। परंतु उसके डर पर उसकी बुर की उत्तेजना हावी थी वह अपने बाबूजी सरयू सिंह से बेतहाशा चुदना चाहती थी उसकी तड़प भी अब चरम पर पहुंच चुकी थी।

कजरी भी पूरी तरह मन बना चुकी थी। उसने भगवान से प्रार्थना की कि उसके कुंवरजी सरयू सिंह का स्वास्थ्य कायम रहे। सुगना को मुखमैथुन पर विशेष जोर देकर और सरयू सिंह से कम से कम मेहनत कराने की बात समझा कर वह अपनी बहू को लेकर उनकी कोठरी में आ गई। सुगना ने अपने हाथ में पूजा की थाली ली हुई थी और कजरी ने अपनी थाली पर पकवान रखे हुए थे।


दोनों ने उनके जन्मदिन के अवसर पर औपचारिकताएं पूरी कीं। कजरी ने सरयू सिंह को आरती दिखायी और माथे पर तिलक लगाया। सरयू सिंह के मन में एक बार यह ख्याल आया जैसे वह जंग पर जाने वाले वीर सिपाही हों। अपनी कोमलांगी बहु सुगना के कोमल छेद के भेदन के लिए इतनी तैयारी…. सरयू सिंह मुस्कुरा रहे थे।

उनकी निगाहें सुगना की ब्लाउज से झांकती हुई चुचियों पर गड़ी हुई थी। सुगना ने अपने हाथों से उन्हें मालपुआ खिलाया और उन्होंने उसकी उंगलियों को अपने होठों से पकड़ लिया। कजरी अपनी बहू और कुँवरजी की अठखेलियां देख रही थी और शीघ्र ही वहां से हटने की सोच रही थी तभी गांव का चौकीदार भागता हुआ आया….

सरयू भैया सरयू भैया चलये मनोरमा मैडम ने आपको तुरंत बुलाया है।

सरयू सिंह भौचक रह गए

"अचानक कैसे आ गई मनोरमा मैडम?"

उन्हीं से पूछ लीजिएगा? कुछ जरूरी काम होगा तभी ढेर सारे पटवारी भी उनके साथ हैं"

"जा बोल दे मेरी तबीयत खराब है मैं नहीं आ सकता" सरयू सिंह किसी भी हाल में सुगना का साथ नहीं छोड़ना चाह रहे थे…

सुगना और कजरी मुस्कुरा रही थीं। सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया एक पल के लिए उसे लगा जैसे नियति ने आज भी उसके काम सुख पर ग्रहण लगा दिया था परंतु उसके बाबूजी अभी मोर्चा लिए हुए थे।

चौकीदार ने कहा

"छुट्टी तो नहीं लिया है ना आपने, चुपचाप जाकर मिल लीजिए बाकी आप जानते हैं मैडम कैसी हैं"

सरयू सिंह के दिमाग में मनोरमा का चेहरा घूम गया। वो बेहद कड़क एसडीएम थीं। जितनी कड़क उतनी ही सुंदर । 5 फुट 6 इंच की ऊंचाई भरा पूरा शरीर और सुंदर मुखड़ा तथा वह सरयू सिंह से बेहद तमीज से पेश आती थी।


सरयू सिंह इस बात को बखूबी मानते थे कोई भी सुंदर और युवा औरत उनकी कद काठी देखकर उन पर आसक्त तो हो सकती थी पर उनसे क्रोधित होना शायद सुंदर नारियों के के वश में न था।

इसके बावजूद ओहदे की अपनी चमक होती है। सरयू सिंह के मन में उसका खौफ हमेशा रहता था किसी महिला से डांट खाना उन्हें कतई गवारा ना था।

चौकीदार से हो रही इतनी देर की बहस में ही सरयू सिंह की उत्तेजना पर ग्रहण लग चुका था उन्होंने मनोरमा से मिलना ही उचित समझा और अपनी सजी-धजी प्रियतमा सुगना को देखते हुए बोले

"सुगना बेटा थोड़ा इंतजार करो मैं आता हूं"

चौकीदार ससुर और बहू के बीच में यह संबोधन देखकर वह सरयू सिंह से प्रभावित हो गया।

उधर प्राइमरी स्कूल पर खड़ी एसडीएम मनोरमा परेशान थी उसने प्राइमरी स्कूल के टॉयलेट का प्रयोग करने की सोची पिछले दो-तीन घंटों से लगातार दौरा करते हुए उसे जोर की पेशाब लग चुकी थी परंतु स्कूल का टॉयलेट देखकर वह नाराज हो गई। तुरंत इतनी जल्दी इसकी सफाई हो पाना भी असंभव था।

स्कूल के प्रिंसिपल ने हाथ जोड़कर कहा

मैडम जी सरयू सिंह जी का घर बगल में ही है आप वहीं चली जाए। मनोरमा के दिमाग में सरयू सिंह का मर्दाना और बलिष्ठ शरीर घूम गया। उनके पहनावे और चेहरे की चमक को देखकर मनोरमा जानती थी कि वह एक संभ्रांत पुरुष है। वह तैयार हो गई सरयू सिंह अपने दरवाजे से कुछ ही दूर आए होंगे तभी मनोरमा अपने काफिले के साथ ठीक उनके सामने आ गई।

सरयू सिंह ने दोनों हाथ जोड़कर मनोरमा का अभिवादन किया और मनोरमा ने भी अपने चेहरे पर मुस्कान ला कर उनका अभिवादन स्वीकार किया।

साथ चल रहे पुलिस वाले ने सरयू सिंह के कान में सारी बात बता दी और सरयू सिंह उल्टे पैर वापस अपने घर की तरफ आने लगे। उनके चेहरे पर मुस्कान थी मनोरमा मैडम ने उनके घर आकर निश्चय ही उन्हें इज्जत बख्शी थी। रास्ते में चलते हुए मनोरमा ने कहा..

आप भी बनारस चलने की तैयारी कर लीजिए दो-तीन दिनों का काम है बनारस महोत्सव की तैयारी करनी है

सरयू सिंह आज किसी भी हाल में सुगना को छोड़ने के मूड में नहीं थे मुंह में हिम्मत जुटा कर कहा

"मैडम मैं परसों आता हूं मेरे परिवार वाले भी उस महोत्सव में जाना चाहते हैं"

"फिर तो बहुत अच्छी बात है आप मेरे साथ चलिए और वहां महोत्सव की तैयारियां कराइये मैं परसों अपनी गाड़ी भेज कर इन्हें बुलवा लूंगी।"

मनोरमा ने शरीर सिंह के घर में जाकर उनका बाथरूम प्रयोग किया। सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल खोलकर स्वागत किया सुगना की खूबसूरती और कजरी की आवभगत देखकर मनोरमा बेहद प्रसन्न हुई। सुगना की खूबसूरत और कुंदन जैसी काया देखकर मनोरमा उससे बेहद प्रभावित हो गई गांव की आभाव भरी जिंदगी में भी सुगना ने इतनी खूबसूरती कैसे कायम रखी थी यह मनोरमा के लिए आश्चर्य का विषय था । वह उससे ढेर सारी बातें करने लगी सुगना ने कुछ ही पलों में अपना प्रभाव मनोरमा पर छोड़ दिया था।

उधर सरयू सिंह पर शिलाजीत रसायन का असर था जब जब वह सुगना को देखते उनका लण्ड उछल कर खड़ा हो जाता परंतु आज उन्हें सुगना से दूर करने के लिए नियति ने मनोरमा को भेज दिया था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे नियति बनारस महोत्सव को रास रंग का उत्सव बनाने की तैयारी में थी। कजरी ने सरयू सिंह के कपड़े तैयार किये और कुछ ही देर में सरयू सिंह मनोरमा के पीछे पीछे जीप की तरफ चल पड़े। सुगना अपनी जांघों के बीच अपनी उत्तेजना को दम तोड़ते हुए महसूस कर रही थी।

सुगना और कजरी को एक ही बात की खुशी थी कि बनारस महोत्सव जाने का प्रोग्राम पक्का हो गया था वह भी एसडीएम द्वारा भेजी जा रही गाड़ी से। यह निश्चय ही सम्मान का विषय था। मनोरमा के आगमन से सुगना और कजरी दोनों की प्रतिष्ठा और बढ़ गई थी।

सुगना ने अपनी बुर को दो-चार दिन और इंतजार करने के लिए समझा लिया।

परंतु बनारस में सोनू के दिमाग में बार-बार लाली का चेहरा आ रहा था उस को लगी चोट सोनू को परेशान कर रही थी। लाली दीदी कैसी होंगी? क्या आज ठीक से चल पा रही होंगी ? यह सब बातें सोच कर उसका मन नहीं लग रहा था अंततः वह हॉस्टल से बाहर आया और लाली के घर की तरफ चल पड़ा.

लाली का पुत्र राजू स्कूल गया हुआ था और लाली बिस्तर पर पड़ी टीवी देख रही थी उसने दरवाजा जानबूझकर बंद नहीं किया का बार-बार चलने में उसे थोड़ा कष्ट हो रहा था। राजेश दोपहर के बाद आने वाला था इसीलिए उसने दरवाजा खुला छोड़ दिया था।

लाली के दरवाजे पर पहुंचकर सोनू ने दरवाजा खटखटाया। अंदर से लाली ने आवाज दी

"आ जाइए दरवाजा खुला है"

सोनू थोड़ा आशंकित हो गया। क्या लाली की सच में तबीयत ज्यादा खराब है? लाली हाल में नहीं थी वह अंदर कमरे में आ गया। लाली पेट के बल लेटी हुई थी। उसने आगंतुक को देखे बिना ही कहा थोड़ा आयोडेक्स लगा दीजिए। इतना कहते हुए उसने अपनी ब्लाउज और पेटीकोट के बीच नंगी पीठ को खोल दिया।


सोनू लाली की नंगी पीठ को अपनी आंखों के सामने देखकर मंत्रमुग्ध हो गया उसमें कोई आवाज न कि और पास पड़े आयोडेक्स को उंगलियों में लेकर लाली दीदी की पीठ को छू लिया। सोनू की उंगलियों के स्पर्श को लाली तुरंत पहचान गई और अपनी गर्दन घुमाते हुए बोली

"अरे सोनू बाबू…. मैं समझी कि वो आए हैं"

"कोई बात नहीं दीदी दवा ही तो लगानी है मैं लगा देता हूँ"

लाली ने अपनी शर्म को छुपाते हुए कहा

"छोड़ दे ना वह आएंगे तो लगा देंगे तेरे हाथ गंदे हो जाएंगे"

"अब तो हो गए दीदी" सोनू ने अपनी दोनों उंगलियां (जिस पर आयोडेक्स लिपटा हुआ था) लाली को दिखा दीं।


लाली मुस्कुराने लगी और वापस अपना चेहरा तकिये में छुपा लिया। सोनू की उंगलियां लाली की पीठ के निचले हिस्से पर दर्द के केंद्र की तलाश में घूमने लगीं। लाली दाएं बाएं ऊपर नीचे शब्द बोल कर सोनू की उंगलियों को निर्देशित करती रही और अंततः सोनू ने वह केंद्र ढूंढ लिया जहां लाली को चोट लगी थी।

सपाट और चिकनी कमर जहां दोनों नितंबों में परिवर्तित हो रही थी वही दर्द का केंद्र बिंदु था। लाली का पेटीकोट सोनू की उंगलियों को उस बिंदु तक पहुंचने पर रोक रहा था। सोनू अपनी उंगलियों में तनाव देकर उस जगह तक पहुंच तो जाता पर जैसे ही वह अपनी उंगलियों का तनाव ढीला करता पेटीकोट की रस्सी उसे बाहर की तरफ धकेल देती।


शायद पेटिकोट की रस्सी लक्ष्मण रेखा का काम कर रही थी। तकिए में मुह छुपाई हुई लाली नसोनू की स्थिति बखूबी समझ रही थी। यही वह बिंदु था जिसके आगे सोनू के सपने थे। लाली मुस्कुराती रही परंतु उसके सीने की धड़कन तेज हो गई थी उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ते गए। पेटीकोट की रस्सी लाली के हाथों में आ चुकी थी।

उत्तेजना और मर्यादा में एक बार फिर उत्तेजना की ही जीत हुई और पेटीकोट की रस्सी ने अपना कसाव त्याग दिया। सोनू की उंगलियां एक बार फिर उस बिंदु पर मसाज करने पहुंची। पेटिकोट की रस्सी अपना प्रतिरोध खो चुकी थी सोनू की उंगलियां जितना पीछे जाती वह सरक पर और दूर हो जाती। लाली के दोनों नितम्ब सोनू को आकर्षित करने लगे थे। एकदम बेदाग और बेहद मुलायम। यदि नितंबों पर एक निप्पल लगा होता तो सोनू जैसे युवा के लिए चुचियों और नितंबों में कोई फर्क ना होता। सोनू ने न अपना दूसरा हाथ भी लाली की सेवा में लगा दिया।

लाली को दर्द से थोड़ा निजात मिलते ही उसका ध्यान सोनू की हरकतों की तरफ चला गया। सोनू लाली के नितंबों से खेलने लगा। पेटिकोट ने नितंबों का साथ छोड़ दिया था और उसकी जांघों के ऊपर था। सोनू बीच-बीच में दर्द को के केंद्र को सहला था और अपने इस अद्भुत मसाज की अहमियत को बनाए रखा था।

परंतु उसका ज्यादा समय लाली के नितंबों को सहलाने में बीत रहा था। सोनू के मन में शरारत सूझी और उसने लाली के दोनों नितंबों को अलग कर दिया लाली की बेहद सुंदर गांड और बुर का निचला हिस्सा सोनू को दिखायी पड़ गया। बुर पर मदन रस चमक रहा था।

लाली की का गांड पूरी तरह सिकुड़ी हुई थी। नितंबों पर आए तनाव को देखकर उन्होंने यह महसूस कर लिया। लाली ने जानबूझकर अपनी गांड छुपाई हुई थी। सोनू ने नितंबों को सहलाना जारी रखा। उसे पता था लाली ज्यादा देर तक उसे सिकोड़ नहीं पाएगी।अंततः हुआ भी वही, लाली सामान्य होती गई परंतु उसकी बुर पर आया मदन रस धीरे धीरे लार का रूप लेकर चादर पर छूने लगा।


सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…..

शेष अगले भाग में।
अति सुन्दर और बहुत ही सुन्दर अपडेट है
 

Sanju@

Well-Known Member
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पिछले भाग में आपने पढ़ा...
सोनू वह खूबसूरत दृश्य मंत्रमुग्ध होकर देख रहा था। गांव की बछिया और गायों की सेवा करते करते बुर से बहने वाली लार का मतलब उसे पता था…
अब आगे..
सोनू अपनी दीदी लाली की रिसती हुई बुर को देख खुद को न रोक पाया उसने झुककर लाली की लाली की बुर को चूमने की कोशिश की परंतु लाली ने उसी समय कमर को थोड़ा हिलाया और लाली की गांड सोनू के होठों से छू गई….
एक पल के लिए सोनू को अफसोस हुआ परंतु लाली के कोमल नितंबों ने सोनू के गालों पर हल्की मसाज कर दी। लाली को अपनी गलती का एहसास हो गया था। सोनू अपने पहले प्रयास में लक्ष्य तक पहुंचने में असफल रहा परंतु सोनू को लाली दीदी का हर अंग प्यारा था।
उसने एक बार फिर प्रयास किया उधर लाली में अपनी गलती के प्प्रायश्चित में अपनी जांघें थोड़ा फैला दी सोनू के होंठ लाली के निचले होठों से सट गए। पहली बार की कसर सोनू ने दूसरी बार निकाल ली। उसने लाली की छोटी सी बुर के दोनों होंठों को अपने मुंह में भर लिया और उसका रस चूसने लगा। सोनू अबोध युवा की तरह लाली की बुर चूस रहा था उसे यह अंदाज नहीं था की वह लाली का सबसे कोमल अंग था। लाली सिहर उठी उसमें अपने हाथ पीछे कर सोनु के सर को पकड़ने की कोशिश की पर असफल रही। उसकी पीठ में थोड़ा दर्द महसूस हुआ।
अपने अनाड़ी और नौसिखिया भाई के होठों में अपनी बुर देकर वह फंस चुकी थी। लाली ने सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया और कराहते हुए बोली
"बाबु तनि धीरे से….. "
अपनी फूली हुयी बुर को अपने भाई सोनू को सौंप कर वह अपने तकिए में मुंह छुपाए अपने अनाड़ी भाई सोनू के होठों और जीभ की करामात का आनंद लेते हुए अगले कदम का इंतजार करती रही। सोनू जब-जब नितंबों और जांघों के जोड़ पर अपना चेहरा ले जाता लाली के कोमल नितंब और गदराई जाँघे सोनू के चेहरे को पूरी तरह ढक लेते। सोनू अपने सर का दबाव बढ़ा कर अपने होठों को बुर तक ले जाता और लाली की बूर को चूमने का प्रयास करता।
सोनू को अपनी लंबी जीभ का ध्यान आया उसने उसे भी मैदान में उतार दिया। सोनू की जीभ बुर् के निचले भाग पर पहुंचने लगी और लाली की भग्नासा को छूने लगी। लाली उत्तेजना से कांपने लगी उसे लगा जैसे यदि उसने सोनू को नहीं रोका तो कुछ ही देर में सोनू अपना अगला कदम बढ़ा देगा। सोनू की जीभ और होठों से मिल रहे अद्भुत सुख को लाली छोड़ना भी नहीं चाहती थी।
लाली चुदना चाह रही थी पर उसने राजेश को जो वचन दिया था उसे तोड़ना नहीं चाहती थी। उसने अपनी यथास्थिति बनाए रखी। सोनू ने लाली की जाँघे पकड़कर उसे सीधा लिटाने का प्रयास किया। लाली ने दर्द भरी आह भरी। यह लाली ने जानबूझकर किया था। पीठ के बल लेटने पर उसकी नजरें सोनू से निश्चित ही मिलती और वह इस विषम स्थिति से बचना चाहती थी । अपने चेहरे पर वासना लिए अपने छोटे भाई से नजरें कैसे मिलाती। और यदि पीठ के बल लेटने के पश्चात सोनू कहीं संभोग के लिए प्रस्तुत हो जाता तो वह कैसे उसे रोक पाती ? जिस लंड की कल्पना और बातें कर उसने और राजेश ने अपनी कई रातें जवान की थी उसे मना कर पाना लाली के वश में न था।
सोनू ने भी उसे तकलीफ न देते हुए वापस उसी स्थिति में छोड़ दिया। सोनू के होठों से बहती लार और लाली की बुर से रिस रहे काम रस के अंश चादर पर आ चुके थे।
सोनू ने अपने लण्ड को बाहर निकाल दिया तने हुए लण्ड पर अपनी हथेलियां ले जाकर सहलाने लगा। लंड में सनसनी होने से उसे आयोडेक्स की याद आई उसने फटाफट अपने हाथ चादर के कोने से पोछे। लण्ड को पोछने के लिए उसने लाली की साड़ी का पल्लू खींच लिया।
लण्ड की जलन को सिर्फ और सिर्फ लाली की बुर ही अपने मखमली अहसाह से मिटा सकती थी। सोनू बिस्तर पर आ गया और अपनी अपने दोनों पैर लाली की जांघों के दोनों तरफ कर लाली पर झुकता चला गया।
जैसे ही उसके मजबूत लण्ड ने लाली के गदराये नितंबों को छुआ लाली उत्तेजना से कांप उठी। जिस प्रकार छोटे बच्चे लॉलीपॉप देखते ही अपना मुंह खोल देते हैं उसी प्रकार लाली की बुर ने अपने लॉलीपॉप के इंतजार में मुंह खोल दिया।
सोनू सच मे अनाड़ी था। लाली के फुले और कोमल में गोरे और कोमल नितम्ब देखकर वह मदहोश हो चुका था। सोनू व्यग्र हो गया था जैसे ही लंड ने नितंबों को छुआ सोनू ने अपनी कमर आगे बढ़ा दी लण्ड बुर की छेद पर न था लाली दर्द से तड़प उठी। ऐसा लग रहा था जैसे लण्ड नितंबों के बीच नया छेद करने को आतुर था
"बाबू तनि नीचे…" लाली एक पल के लिए राजेश को दिया वचन भूल कर अपनी बुर को ऊपर उठाने लगी।
परंतु नियति निष्ठुर थी जैसे उसने बनारस के आसपास कामवासना को जागृत तो कर रखा था परंतु संभोग पर पाबंदी लगा रखी थी। दरवाजे पर फिर खटखट हुई। सोनू घबरा गया वो फटाफट नीचे उतरा और अपने हथियार को वापस पजामे में भरकर भागकर दरवाजा खोलने गया।
राजेश को देखकर उसकी सिद्धि पिट्टी गुम हो गई अंदर बिस्तर पर लाली अर्धनग्न अवस्था में थी। वह राजेश को क्या मुंह दिखाएगा?
सोनू में जोर से आवाज दी
" दीदी जीजू हैं " लाली ने फटाफट अपने पेटिकोट को ऊपर किया और चादर ओढ़ ली. राजेश और सोनू अंदर आ चुके थे। आयोडेक्स की महक कमरे में फैली थी। राजेश को समझते देर न लगी की सोनू की उंगलियों ने लाली की पीठ का स्पर्श कर लिया है। राजेश का लण्ड खड़ा हो गया। उसे पता था सोनू के स्पर्श से लाली निश्चित ही गर्म हो चुकी होगी और चुदने के लिए तैयार होगी।
सोनू ने अब और देर रहना उचित न समझा उसने लाली से कहा
"दीदी एक-दो दिन आराम कर लीजिए" परसों से बनारस महोत्सव शुरू होने वाला है तब तक पूरी तरह ठीक हो जाइए। दवा टाइम से खाते रहिएगा"
सोनू ने राजेश से अनुमति ली। लाली अब तक करवट ले चुकी थी उसने सोनू से कहा
"बनारस महोत्सव के समय तो हॉस्टल बंद रहेगा ना। तू यहीं पर रहना यहां से हम लोग साथ मे घूमेंगे।"
राजेश ने लाली की बात में हां में हां मिलाई और बोला
"हां सोनू तुम्हारी दीदी तुम्हें देखते ही चहक उठती है इन्हें बनारस महोत्सव दिखा देना"
लाली ने सोनू के मन की बात कह दी थी अपनी प्यारी दीदी लाली के साथ वो 7 दिन सोनू को हनीमून के जैसे लग रहे थे।वो अपने दिल की धड़कन को महसूस कर पा रहा था जो निश्चित ही बढ़ी हुई थी। परंतु उसका लण्ड अपने लक्ष्य के करीब पहुंचकर एक बार फिर दूर हो गया था। लाली और सोनू के काम इंद्रियों पर सिर्फ और सिर्फ उत्तेजना थी और मन में बनारस महोत्सव का इंतजार ।
उधर एसडीएम मनोरमा की जिप्सी में सरयू सिंह ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बैठे थे और सामने बैठी मनोरमा को तिरछी नजरों से निहार रहे थे। मनोरमा को सामने से देखने की हिम्मत सरयू सिंह में ना थी परंतु आज अपनी तिरछी निगाहों से वह उसके गालों कंधों और साड़ी के पल्लू के नीचे से झांकती हुई चुचियों को निहार रहे थे। मनोरमा की कमर और जाँघे भी सरयू सिंह का ध्यान आकर्षित कर रही थी।
मनोरमा भी मन ही मन सरयू सिंह के बारे में सोच रही थी। कैसे यह व्यक्ति गृहस्थ जीवन से दूर एकांकी जीवन व्यतीत कर रहा था मनोरमा को क्या पता था सरयू सिंह कामकला के धनी थे और नियति उन पर मेहरबान थी। मनोरमा स्वयं इस सुख का आनंद पूरी तरह नहीं ले पाती थी उसके पति लखनऊ में सेक्रेटरी थे।
कामवासना की पूर्ति के लिए 400 किलोमीटर की यात्रा करना आसान न था। जब सेक्रेटरी साहब का मन होता वह मनोरमा के पास आ जाते और दो-चार दिनों के प्रवास में जी भर कर मनोरमा को चोदते परंतु मनोरमा को चरम सुख की प्राप्ति कभी कभार ही हो पाती।
मनोरमा जो मिल रहा था उसमें खुश थी उसकी हालत गांव की उस बच्चे जैसी थी जो बालूशाही आकर भी वैसे ही मस्त हो जाता है जैसे शहर के अमीर रसमलाई खाकर। परंतु रसमलाई रसमलाई होती है उसका सुख नसीब वालों को ही मिलता है मनोरमा उस सुख से वंचित थी।
बनारस महोत्सव की तैयारियों में मनोरमा ने बहुत काम किया था उसके कार्यों से प्रसन्न होकर नियति ने मनोरमा के लिए भी रसमलाई बनाई हुई थी। समय और वक्त का इंतजार नियति को था मनोरमा इन बातों से अनजान अपने रुतबे और टीम के साथ बनारस महोत्सव में पहुंच चुकी थी।
मनोरमा के साथ आये सारे पटवारियों ने अलग-अलग हिस्सों में कार्य संभाल लिया। सरयू सिंह को भी सेक्टर 12 के पंडालों का कार्यभार दिया गया। इसी सेक्टर के बगल में मेला अधिकारियों के लिए कई छोटे छोटे कमरे बनाए गए थे जिनमें शौचालय भी संलग्न थे। यह सब कमरे मध्यम दर्जे के थे परंतु पांडाल से निश्चय ही उत्तम थे जिसमें एक बिस्तर लगा हुआ था। मनोरमा को भी एक कमरा मिला हुआ था परंतु वह उसकी हैसियत के मुताबिक न था। सेक्रेटरी साहब और मनोरमा की कमाई हद से ज्यादा थी उसने तय कर रखा था कि वह उस कमरे को छोड़ नजदीक के होटल में रहेगी।
हर पंडाल किसी न किसी संप्रदाय और धर्मगुरुओं से जुड़ा हुआ था। कई पंडाल मेला में आने वाले दुकानदारों और सर्कस वालों ने भी ले रखा था हर पंडाल में लगभग पचास व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था थी।
हर पंडाल से लगे हुए शौचालय भी बने थे जिनका उपयोग पंडाल में रह रहे लोग करते। स्त्री और पुरुषों के लिए सोने की व्यवस्था अलग-अलग थी। पंडाल में पवित्रता बनी रहे शायद इसी वजह से स्त्री और पुरुषों को अलग अलग रखा गया था।
स्वामी विद्यानंद का पंडाल भी सेक्टर 12 में ही था। पंडाल के बाहर लगी बड़ी सी प्रतिमा को देखकर सरयू सिंह की आंखें विद्यानंद पर टिक गई। वह चेहरा उन्हें जाना पहचाना लग रहा था परंतु वह पूरी तरह से पहचान नहीं पा रहे थे वह आंखें और नयन नक्श उन्हें अपने करीबी होने का एहसास दिलाते परंतु बढ़ी हुई दाढ़ी और मूछों में चेहरे का आधा भाग ढक लिया था। एक पल के लिए सरयू सिंह के दिमाग में आया कहीं यह बड़े भैया बिरजू तो नहीं?
सरयू सिंह को अपने बड़े भाई बिरजू की काबिलियत पर यकीन नहीं था उन्हें इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि बिरजू जैसा व्यक्ति इतना बड़ा महात्मा बन सकता था।
सरयू सिंह विद्यानंद के कटआउट में खोए हुए थे तभी मनोरमा वहां आ गई और बोली
"सरयू सिंह जी कहां खोए हुए हैं यह विद्यानंद जी का पंडाल है। देखिएगा उनके अनुयायियों को कोई कष्ट ना हो मैं खुद इनकी भक्त हूं । एक बात और आपके परिवार के लिए भी मैंने इसी पंडाल में व्यवस्था की हुई है। ये लीजिये पास।"
" मैडम कुछ पास और मिल जाते असल में पास पड़ोस वाले भी मुझ पर ही आश्रित हैं"
"कितने …"
सरयू सिंह सोचने लगे उनके दिमाग में हरिया और उसकी पत्नी का चेहरा घूम गया तभी उन्हें अपनी पुरानी प्रेमिका पदमा की याद आई उन्हें खोया हुआ देखकर मनोरमा ने कहा
"परेशान मत होइए यह लीजिए 5 और पास रख लीजिए जरूरत नहीं होगी तो मुझे वापस कर दीजिएगा अब खुश है ना"
सरयू सिंह के दिमाग में सुगना और कजरी का मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया इतनी दिव्य व्यवस्था में रहकर सुगना और कजरी कितने खुश होंगे यह सोचकर वह मन ही मन हर्षित होने लगे।
"हां एक बात और पीछे कुछ वीआईपी कमरे बने हैं जिसमें अटैच बाथरूम है। यह उस कमरे की चाबी है मैंने आपकी बहू और भाभी को साफ सफाई से रहते हुए देखा है उन्हें यहां का कॉमन बाथरूम पसंद नहीं आएगा आप यह चाभी उन्हें दे सकते हैं वो लोग आवश्यकतानुसार उसका उपयोग कर सकते हैं पर उनसे कहिए गा कि ज्यादा देर वहां ना रहे नहीं तो बाकी लोग शिकायत कर सकते हैं"
सरयू सिंह मनोरमा की उदारता के कायल हो गए। अपने घर में सिर्फ उसे बाथरूम प्रयोग करने और आवभगत कर सुगना और कजरी ने मनोरमा का दिल जीत लिया था।
दिनभर की कड़ी मेहनत के पश्चात बनारस महोत्सव की तैयारियां लगभग पूर्ण हो गई थी विद्यानंद जी का पांडाल सज चुका था। विद्यानंद जी का काफिला भी बनारस आ चुका था और बनारस महोत्सव में उनका पदार्पण कल सुबह ही होना था। बनारस महोत्सव के लगभग सभी पंडालों में हलचल दिखाई पड़ने लगी थी एक खूबसूरत शहर अस्थाई तौर पर बसा दिया गया था। सड़कों पर पीली रोशनी चमक रही थी।पंडालों के अंदर लालटेन और केरोसिन से जलने वाले लैंप रखे हुए थे जमीन पर पुआल बिछाकर और उन पर दरी और चादरों के प्रयोग से सोने के लिए माकूल व्यवस्था बनाई गई थी।
बाहर तरह-तरह के पंडाल जिनमें अलग-अलग प्रकार की वस्तुएं तथा खान-पान की सामग्री भी मिल रही थी। कुल मिलाकर यह व्यवस्था अस्थाई प्रवास के लिए उत्तम थी।
बनारस महोत्सव का पहला दिन
अगली सुबह नित्य कर्मों के पश्चात तैयार होकर सरयू सिंह सुगना और कजरी को याद कर रहे थे वह बार-बार पांडाल से निकलकर बाहर देखते। मनोरमा की गाड़ी जिसे सुगना और कजरी को लेने जाना था अब तक नही आई थी।
तभी एक लाल बत्ती लगी चमचमाती हुई एंबेसडर कार पांडाल के बाहर आकर रुकी।
सरयू सिंह सावधान की मुद्रा में आ गए इस अपरिचित अधिकारी के बारे में वह कुछ भी नहीं जानते थे परंतु गाड़ी पर लगी लाल बत्ती उस अधिकारी और उनके बीच प्रशासनिक कद के अंतर को बिना कहे स्पष्ट कर रही थी
ड्राइवर ने सर बाहर निकाला और सरयू सिंह से ही पूछा
"सरयू सिंह कहां मिलेंगे?"
"जी मैं ही हूँ"
"मुझे मनोरमा मैडम ने भेजा है उन्होंने कहा है कि आप यहीं पंडाल की व्यवस्था में रहिए हां अपने परिवार के लिए कुछ मैसेज देना हो तो दे सकते हैं ड्राइवर ने पेन और पेपर सरयू सिंह की तरफ आगे बढ़ा दिया"
सरयू सिंह ने कजरी और सुगना के लिए संदेश लिखा अपने लिए और कपड़े लाने का भी निर्देश दिया।
कुछ ही देर में गाड़ी धूल उड़ आती हुई सरयू सिंह के गांव सलेमपुर की तरफ बढ़ गई।
आवागमन के उचित साधन ना होने की वजह से गांव से शहर की जिस दूरी को तय करने में सरयू सिंह को 4 घंटे का वक्त लगता था निश्चय ही एंबेसडर कार से वह घंटे भर में पूरी हो जानी थी।
सरयू सिंह सुगना का इंतजार करने लगे। मनोरमा द्वारा दी गई चाबी से वह मनोरमा का कमरा देख आए थे अपनी बहू सुगना से रासलीला मनाने के लिए वह कमरा सर्वथा उपयुक्त था। अपनी बहू को मिला दिखा दिखा कर खुश करना और जी भर चोदना सरयू सिंह का लण्ड खड़ा हो गया। मन में उम्मीदें हिलोरे ले रही थी बनारस महोत्सव रंगीन होने वाला था।
दूर से आ रही ढोल नगाड़ों की गूंज बढ़ती जा रही थी। विद्यानंद जी का काफिला अपने पंडाल की तरफ आ रहा था सरयू सिंह सतर्क हो गए और विद्यानंद जी की एक झलक का इंतजार करने लगे। उन्होंने मन ही मन सोचा यदि वह बिरजू भैया तो निश्चय ही उन्हें पहचान लेंगे। उनका मन उद्वेलित था।
उधर रेलवे कालोनी में सोनू की मालिश और बनारस महोत्सव की ललक ने लाली के दर्द को कम कर दिया था। सुबह अपनी रसोई की खिड़की से बाहर दीवार लगे हुए बनारस महोत्सव के पोस्टरों को देख रही थी। लाली ने चाय चढ़ायी हुई थी परंतु उसका मन नहीं लग रहा था। परसो दोपहर की बात लाली के दिमाग में अभी भी घूम रही थी..
सोनू के लण्ड ने उसकी बुर और गांड के बीच में अपना दबाव बढ़ा कर उसे दर्द का एहसास करा दिया था। परंतु लाली तो जैसे सोनू से नाराज ही नहीं सकती थी। काश सोनू का निशाना सही जगह होता तो वह सामाजिक मर्यादाओं को भूलकर अपने भाई सोनू से चुद गई होती। सोनू के जाने के बाद राजेश बिस्तर पर आ गया था।
लाली के कमर को सहलाते हुए उसने पूछा
" दर्द में कुछ आराम है?"
जब तक लाली उत्तर दे पाती राजेश के हाथ लाली के नितंबों को सहलाते हुए नीचे पहुंच गए। पेटीकोट का नाड़ा खुला हुआ देखकर राजेश प्रसन्न हो गया उसने लाली से कुछ न पूछा। हाथ कंगन को आरसी क्या।
उसकी उंगलियां लाली की बुर पर पहुंच गयी जो चपा चप गीली थी। राजेश को सारे प्रश्नों के उत्तर मिल चुके थे। बुर से बहने वाली लार लाली की उत्तेजक अवस्था को चीख चीख कर बता रही थी। राजेश को समझते देर न लगी कि सोनू के हाथों ने न सिर्फ उस दर्द भरी जगह को सहलाया है अपितु अपनी दीदी के कोमल नितंबों को और अंतर्मन को भी स्पर्श सुख दिया है।
राजेश ने लाली को जांघो से पकड़कर पीठ के बल लिटा दिया। लाली ने इस बार कोई प्रतिरोध न किया। उसका मन बेचैन हो रहा था अपने भाई के इसी प्रयास को उसने दर्द का बहाना कर नकार दिया था। उसे मन ही मन अपने भाई से दोहरा व्यवहार करने का दुख था।
वह क्या करती ? वो राजेश को दिए वचन को वह तोड़ना नहीं चाहती थी। पीठ के बल आते ही लाली का वासना से भरा लाल चेहरा राजेश की आंखों के सामने आ गया। उसने देर ना कि और लाली की जाँघे फैल गयीं। अपने साले सोनू द्वारा गर्म किए गए तवे पर राजेश अपनी रोटियां सेकने लगा.
राजेश ने लाली को चूमते हुए बोला
" मेरी जान मैं लगता है गलत समय पर आ गया?"
"बात तो सही है" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए कहा
राजेश ने अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक ठान्स दिया और बोला
"मुझे अफसोस मत दिलाओ"
"आपके लिए ही मैंने अपने भाई को दुखी कर दिया"
"राजेश लाली को बेतहाशा चोदे जा रहा था और उसी उत्तेजना में उसने बेहद प्यार से बोला"
"बनारस महोत्सव के उद्घाटन के दिन ही सोनू को खुश कर देना"
" और आपका वचन?"
"यह तो मुझ पर छोड़ दो…."
लाली खुश हो गई और उत्तेजना में अपनी कमर हिलाने की चेष्टा की पर दर्द की एक तीखी लहर उसकी पीठ में दौड़ गई. लाली ने पैरों को राजेश की कमर पर लपेट लिया वह राजेश को चूमे जा रही थी।
राजेश मुस्कुरा रहा था और लाली को चोदते हुए स्खलित होने लगा... मेरी प्यारी दीदी …..आ आईईईई। लाली ने भी अपना पानी साथ साथ छोड़ दिया….
बनारस महोत्सव के उद्घाटन की राह वह और उसकी बुर दोनों देख रहे थे। गैस पर उबल रही चाय की आवाज से बनारस महोत्सव के पोस्टर से लाली का ध्यान हटा पर बुर् ….. वह तो सोनू की ख्यालों में खोई हुई थी। वह अजनबी और प्रतिबंधित लण्ड से मिलने को आतुर थी…..

शेष अगले भाग में।
बनारस महोत्सव में तरह तरह की धमाल उडने वाली है सोनू और लाली सरयू और सुगना या मनोरमा इनकी चूदाई होने वाली है
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी
 
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बनारस महोत्सव का पहला दिन

सुगना और कजरी सुबह से ही तैयार होकर मनोरमा मैडम द्वारा भेजी जाने वाली गाड़ी का इंतजार कर रहे थीं।


तभी गांव के सकरे रास्ते पर धूल उड़ाती चमचमाती एंबेसडर कार सरयू सिंह के दरवाजे की तरफ आ रही थी गांव के बच्चे उस कार के आगे पीछे दौड़ रहे थे ड्राइवर परेशान हो रहा था और बार-बार हार्न बजा रहा था परंतु गांव के इस माहौल में उसकी सुनने वाला कोई नहीं था। वह मन ही मन बस सोच रहा था हे भगवान में कहा जाहिलों के बीच फस गया।

गांव की धूल एंबेसडर की खूबसूरती को रोक नहीं पाई सुगना और कजरी ने मनोरमा मैडम की जीप की उम्मीद की थी परंतु कार तो उनकी उम्मीद से परे थी।

सफेद रंग का सफारी सूट पहने ड्राइवर कार से बाहर आया और बच्चों को कार से दूर रहने की नसीहत देते हुए उन्हें कार से दूर हटाने लगा। जिस तरह गुड़ पर मक्खियां सटी रहती हैं बच्चे भी घूम घूम कर कार के पास आजा रहे थे।

सुगना और कजरी सतर्क मुद्रा में खड़ी हो गई थी ड्राइवर ने कजरी से पूछा

"सुगना मैडम कौन है?"

सुगना शर्म से लाल हो गई उसे अपने लिए मैडम शब्द की उम्मीद न थी। कजरी को थोड़ा बुरा जरूर लगा पर सुगना उसे जान से प्यारी थी उसने मुस्कुराते हुए कहा

"यही है आपकी सुगना मैडम।"

"मैडम बनारस महोत्सव में चलने के लिए मनोरमा मैडम ने गाड़ी भेजी है। और यह खत सरयू सिंह जी ने दिया है।"

"ठीक है हम लोग आते हैं " सुगना अपनी खुशी को छुपाना चाह रही थी परंतु उसके दांत खूबसूरत होठों से निकलकर उसकी खुशी प्रदर्शित कर रहे थे। थोड़ी ही देर में सुगना और कजरी एम्बेसडर कार की पिछली सीट पर बैठ रहे थे. तभी हरिया की पत्नी ( लाली की मां ) निकलकर बाहर आई… और बोली

"ई झोला लाली के यहां पहुंचा दीह"

सुगना और कजरी को एम्बेसडर कार में बैठा देखकर उसे यकीन ही नहीं हो रहा था।

कजरी ने उससे कहा..

"ठीक बा घर के ख्याल रखीह"

लाली की मां ने हाथ हि

लाकर सुगना और कजरी को विदा किया और ड्राइवर ने कार वापस बनारस शहर की तरफ दौड़ा ली।

उधर विद्यानंद जी के पंडाल में गहमागहमी थी सरयू सिंह पंडाल के आयोजकों में थे परंतु विद्यानंद जी के आने के बाद जैसे उनकी उपयोगिता खत्म हो गई थी। जिस तरह बारात आने के बाद पांडाल लगाने वाले दिखाई नहीं पड़ते उसी प्रकार सरयू सिंह पांडाल के एक कोने में खड़े विद्यानंद की एक झलक पाने को बेकरार थे।

सजे धजे बग्गी में बैठे विद्यानंद पांडाल में बने अपने विशेष कक्ष की तरफ जा रहे थे। समर्थकों और अनुयायियों की भारी भीड़ उन्हें घेरे हुए थी। सरयू सिंह उन्हें तो देख पा रहे थे पर दूरी ज्यादा होने की वजह से वह निश्चय कर पाने में असमर्थ थे कि वह उनके बिरजू भैया हैं या यह सिर्फ एक वहम है।

कुछ ही देर में विद्यानंद जी का पंडाल सज गया श्रोता गण सामने बैठ चुके थे। मंच पर हुई दिव्य व्यवस्था मनमोहक थी और विद्यानंद के कद और ऐश्वर्य को प्रदर्शित कर रही थी । 54- 55 वर्ष की अवस्था में उन्होंने इस दुनिया में एक ऊंचा कद हासिल किया हुआ था। पाठक अंदाजा लगा सकते हैं जिसकी अनुयाई मनोरमा जैसी एसडीएम थी निश्चय ही वह विद्यानंद कितने पहुंचे हुए व्यक्ति होंगे।

कुछ ही देर में स्टेज के पीछे का पर्दा हटा और विद्यानंद जी अवतरित हो गए श्वेत धवल वस्त्रों में उनकी छटा देखते ही बन रही थी। चेहरे पर काली दाढ़ी में कुछ अंश सफेदी का भी था जो उनकी सादगी को उसी प्रकार दर्शाता था जैसे उनका मृदुल स्वभाव।

विद्यानंद जी का प्रवचन शुरू हो गया वह बार-बार दर्शक दीर्घा में बहुत ध्यान से देख रहे थे पता नहीं उनकी आंखें क्या खोज रही थी। श्रोता मंत्रमुग्ध होकर उनके द्वारा बताई जा रहे विवरण को ध्यान से सुन रहे थे।

पंडाल के बाहर एंबेसडर कार आ सुगना और कजरी को लेकर आ चुकी थी। सरयू सिंह बेसब्री से सुगना और कजरी का इंतजार कर रहे थे उन्होंने सुगना और कजरी का सामान लिया और उन्हें रहने की व्यवस्था दिखाई। सुगना और कजरी भी पंडाल में आ गयीं।

सुगना की गोद में सूरज एक खूबसूरत फूल के रूप में दिखाई पड़ रहा था। सूरज का खिला हुआ चेहरा और स्वस्थ शरीर सबका ध्यान अपनी तरफ जरूर खींचता। जितनी सुंदर और सुडौल सुगना थी उसका पुत्र भी उतना ही मनमोहक था ।

पांडाल में पहुंचते ही कजरी और सुगना श्रोता दीर्घा में बैठकर बैठकर पंडाल की खूबसूरती का मुआयना करने लगे वो बीच-बीच में विद्यानंद जी की तरफ देखते परंतु न तो कजरी का मन प्रवचन सुनने में लग रहा था और नहीं सुगना का। कजरी बार-बार विद्यानंद को देखे जा रही थी परंतु उसके मन में एक बार भी उसके बिरजू होने का ख्याल नहीं आया।

जब हैसियत और कद का अंतर ज्यादा हो जाता है तो नजदीकी भी दूर दिखाई पड़ने लगते हैं। विद्यानंद दरअसल बिरजू था यह कजरी की सोच से परे था।

विद्यानंद का एक प्रमुख चेला जो उनकी ही तरह सफेद धोती कुर्ते मैं सजा हुआ पंडाल में बैठी महिलाओं और बच्चों को बेहद ध्यान से देख रहा था। धीरे धीरे वह हर कतार में जाकर महिलाओं और बच्चों से मिलता उनका कुशलक्षेम पूछता और और छोटे बच्चों को लॉलीपॉप पकड़ा कर अपना प्यार जताता।

उसकी हरकतों से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह किसी विशेष बच्चे को खोज रहा हो। जैसे-जैसे वह पंडाल के आखिरी छोर तक आ गया उसके चेहरे पर अधीरता दिखाई पड़ने लगी।

वह व्यक्ति सुगना के करीब पहुंचा। सुगना जैसी खूबसूरत अप्सरा जैसी युवती को देखकर उसकी आंखें सुगाना के चेहरे पर ठहर गयीं। सूरज सुगना की चुचियों को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था शायद वह भूखा था। विद्यानंद जी के उस चेले ने सूरज को आकर्षित करने की कोशिश की। अपने मुंह से रिझाने के लिए उसने तरह-तरह की किलकारियां निकाली और सूरज का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने में सफल हो गया। लाल और सफेद रंग की धारियों वाला लॉलीपॉप उसने अपने हाथों में निकाल लिया। सूरज उस खूबसूरत लालीपाप के आकर्षण से न बच पाया और उसने अपना हाथ लॉलीपॉप लेने के लिए बढ़ा दिया।


यह वही हाथ था जिसके अंगूठे पर नाखून नहीं था। विद्यानंद के शागिर्द ने सूरज का अंगूठा देख लिया और उसके चेहरे पर खुशी देखने लायक थी। कभी वह सूरज को देकहता कभी विद्यानंद को। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसने कोई आश्चर्य देख लिया हो। उसने लॉलीपॉप सूरज को पकड़ाया और उल्टे पैर मंच की तरफ बढ़ चला। सुगना के बाद भी कतार में बैठे कई बच्चे भी लालीपाप का इंतजार कर रहे थे परंतु विद्यानंद का चेला वापस लौट चुका था।

जिसके भाग्य में लॉलीपॉप था वह मिल चुका था शायद उसकी तलाश पूरी हो चुकी थी। कुछ देर पश्चात विद्यानंद ने अपने प्रवचन से थोड़ा विराम लिया और हॉल में बैठे लोगों के लिए चाय बांटी जाने लगी। वह व्यक्ति एक बार फिर सुगना के पास आया और बोला

"विद्यानंद जी आपको बुला रहे हैं..?

सुगना आश्चर्यचकित थी। न तो वह विद्यानंद को जानती थी और न हीं वह उनकी अनुयायी थी फिर इस तरह से उसे बुलाना? यह बात सुनना की समझ से परे था। परंतु विद्यानंद की हैसियत और प्रभुत्व को वह बखूबी जान रही थी। यह उसके लिए सौभाग्य का विषय था कि इतनी भरी भीड़ में विद्यानंद ने उसे ही मिलने के लिए बुलाया था । उसने कजरी से कहा

"मां चल स्वामी जी का जाने काहे बुलावतारे ?"

उस शागिर्द ने कहा स्वामी जी ने सिर्फ आपको अपने बच्चे के साथ बुलाया है। सुगना की निगाहें सरयू सिंह को खोज रही थी शायद वह उनसे अनुमति और सलाह दोनों चाहती थी परंतु वह कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे । अंततः विद्यानंद के आमंत्रण को सुगना ठुकरा ना पायी और कजरी की अनुमति लेकर विद्यानंद से मिलने चल पड़ी।


विद्यानंद का कमरा बेहद आलीशान था उनके कमरे को बेहद खूबसूरती से सजाया गया था अपने भव्य आसन पर बैठे विद्यानंद अपनी आंखें बंद किए हुए थे। सुगना के आगमन को महसूस कर उन्होंने आंखें खोली और अपने शागिर्द को देखते हुए बोले

"एकांत"

वह उल्टे पैर वापस चला गया उन्होंने सुगना की तरफ देखा और सामने बने आसन पर बैठने के लिए कहा।

सुगना ने आज सुबह से ही भव्यता के कई स्वरूप देखें अब से कुछ देर पहले बह एंबेसडर कार में बैठकर यहां आई थी और वह इतने बड़े महात्मा विद्यानंद के साथ उनके कमरे में उनके विशेष आमंत्रण पर उपस्थित थी। उसे घबराहट भी हो रही थी और मन ही मन उत्सुकता भी । कमरे में एकांत हो जाने के पश्चात विद्यानंद ने कहा

"देवी आपकी गोद में जो बालक है यह विलक्षण है। मैं आपको कुछ बताना चाहता हूं।" अपने पुत्र को विलक्षण जानकर सुगना खुश हो गई उसने स्वामी जी के सामने हाथ जोड़ लिए और बेहद आत्मीयता से बोली


"जी कहिए"

"मैंने अपने स्वप्न में इस विलक्षण बालक को देखा है और उसे ढूंढते हुए ही इस बनारस महोत्सव में आया हूं। आपका यह पुत्र पति-पत्नी के पावन संबंधों की देन नहीं अपितु व्यभिचार की देन है और यह व्यभिचार अत्यंत निकृष्ट है ऐसे संबंध समाज और मानव जाति के लिए घातक है।

मैं यह बात सत्य कह रहा हूं या असत्य यह आपके अलावा और कोई नहीं जानता परंतु मुझे इस बालक के जन्म का उद्देश्य और इसका भविष्य पता है यदि मेरी बात सत्य है तो आप अपनी पलके झुका कर मेरी बात सुनिए.. अन्यथा मुझे क्षमा कर आप वापस जा सकती हैं। "

सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न रहा वह बेहद परेशान हो गई उसके चेहरे पर पसीना आने लगा . विद्यानंद ने फिर कहा

"आप परेशान ना हों यदि मेरी बात सत्य है तो सिर्फ अपनी पलके झुका लें... और यदि मेरी बात गलत है तो निश्चय ही आपका पुत्र वह नहीं है जिसे मैं ढूंढ रहा हूं"

सुगना की पलकें झुक गई उसकी श्रवण इंद्रियां विद्यानंद की आवाज की प्रतीक्षा करने लगी विद्यानंद ने बेहद संजीदा स्वर में कहा..

" यद्यपि इसका जन्म नाजायज और निकृष्ट संबंधों से हुआ है फिर भी इसके पिता और आपमें बेहद प्रेम है जो कि इस बालक में भी कूट कूट कर भरा हुआ है।


परंतु इसके पिता के साथ आपका एक पवित्र रिश्ता है जिसे आप दोनों ने जाने या अनजाने में कलंकित किया है। यह अनैतिक और पाप की श्रेणी में आता है। आने वाले समय में यह बालक एक असामान्य पुरुष के रूप में विकसित होगा जो अति सुंदर, बलिष्ठ, सभ्य, सुसंस्कृत, सुशील, विद्ववान पर अति कामुक होगा।

यदि इसकी कामुकता को न रोका गया तो इसके अंगूठे में जो दिव्य कामुक शक्तियां प्राप्त हैं उससे यह सारे सांसारिक रिश्तों की मर्यादा तार-तार कर देगा और उन्हें कलंकित करता रहेगा।

सांसारिक नजदीकी रिश्तों और मुँहबोले रिश्तों के अलावा किसी अन्य अपरिचित कन्या से मिलने पर इसका पुरुषत्व सुषुप्त अवस्था में रहेगा वह चाह कर भी किसी अन्य कन्या या स्त्री से संबंध नहीं बना पाएगा।"

सुगना थरथर कांपने लगी। अपने जान से प्यारे सूरज के बारे में ऐसी बातें सुनकर वह बेहद डर गई। विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर थे उनकी बात को यूं ही नजरअंदाज करना कठिन था और तो और उन्होंने उसे देखते ही उसके नाजायज संबंध के बारे में जान लिया था जो निश्चित ही आश्चर्यजनक था पर कटु सत्य था। सुगना को उनकी बातों पर विश्वास होने लगा था।

उसने दोनों हाथ जोड़कर अपनी आंखें बंद किए ही विद्यानंद जी से कहा..

"स्वामी जी तब क्या यह कभी किसी लड़की के साथ विवाह कर सामान्य जीवन व्यतीत नहीं कर पाएगा"

"नहीं देवी, सांसारिक और नजदीकी रिश्तो के अलावा स्त्री मिलन के समय इसकी काम इंद्रियां पूरी तरह निष्क्रिय रहेंगी"

सुगना को सारी बात समझ आ चुकी थी उसने हाथ जोड़कर कहा…

"क्या इसका कोई उपाय नहीं है?

"जैसे इसका जन्म एक अपवित्र संभोग से हुआ है वैसे ही इसका जीवन एक अपवित्र और निकृष्ट संबंध बनाने के पश्चात ही सामान्य होगा"

सुगना के चेहरे से पसीना टपक रहा था। वह यह बात पूरी तरह नहीं समझ पा रही थी या समझना नहीं चाह रही। उसने उत्सुकता से कहा

" महाराज कृपया अपनी बात स्पष्ट करें..

"देवी मैं यह बात कहने में ही आत्मग्लानि महसूस कर रहा हूं आप बस इतना समझ लीजिए की इस बालक का कामसंबंध या तो उस स्त्री या कन्या से होना चाहिए जो इस बालक के माता या पिता की सन्तान हो या फिर….. विद्यानंद चुप हो गए।

"महाराज कहिए ना सुगना अधीर हो रही थी.."

"या फिर आप स्वयं….आपसे…. "


विद्यानंद द्वारा बोली गई बात निश्चित ही निकृष्ट थी। सुगना जैसी पावन और कोमल स्त्री इस मानसिक वेदना को न झेल पाई और बेहोश हो गई...

विद्यानंद ने अपने कमंडल से पानी के छींटे सुगना के मुंह पर मारे और वह एक बार पुनः चैतन्य हुई।

विद्यानंद ने हाथ जोड़कर कहा…

"देवी मेरी यह बात याद रखिएगा परंतु आप किसी से भी साझा मत करिएगा। यह आपके और आपके पुत्र के लिए घातक होगा। समय के साथ आपको मेरी बातों पर यकीन होता जाएगा।

नियति ने मुझे इस बालक के सामान्य होने तक जीवित रहने का निर्देश दिया है। इस बालक को सामान्य करना ही मेरी मुक्ति का मार्ग है।

नियति का लिखा मिटा पाना संभव नहीं है जिसने इसका भाग्य लिखा है वह स्वयं इसका रास्ता बनाएगा। अब आप जाइए और मुझसे मिलने का प्रयास मत कीजिएगा इस विलक्षण बालक के युवावस्था प्राप्त करने के पश्चात आप मुझसे मेरे आश्रम में मिल सकती हैं। एक बात और ….यह बनारस महोत्सव आपके और आपके परिवार के लिए बेहद अहम है सूरज एक भाग्यशाली लड़का है यह आप लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन लाएगा और इसकी मुक्ति का मार्ग भी इसी बनारस महोत्सव के दौरान ही सृजित होगा।".

विद्यानंद द्वारा कही गई बातें सुगना के दिलों दिमाग पर छप चुकी थी। सुगना बड़ी मुश्किल से उठ कर खड़ी हुई। सूरज का लालीपाप खत्म हो चुका था। वह लॉलीपॉप की डंडी को भी उसी तरह चूस रहा था। जिस व्यक्ति ने सुगना को विद्यानंद तक पहुंचाया था वह वापस आया उसने एक और लॉलीपॉप और बच्चे के हाथ में थमाते हुए बोला

"बहुत प्यारा बच्चा है बिल्कुल आप पर गया है।" सुगना को उसकी बात से फिर नाजायज संबंधों की याद आ गई।

सुगना ने कुछ नहीं कहा वह पंडाल में आ चुकी थी कई सारी निगाहें सुगना को देख रही थी। सरयू सिंह और कजरी भी अपने कदम बढ़ाते हुए सुगना की तरफ आ रहे थे। उनके मन में कौतूहल था परंतु सुगना के पास उत्तर देने को कुछ नहीं था।

इधर सुगना बेहद तनाव में आ गयी थी उधर लाली के चेहरे पर लालिमा छाई हुई थी। राजेश ने आज लाली के चुदाई का दिन निर्धारित कर दिया था परंतु उसका प्यारा भाई सोनू अब तक नहीं आया था। बनारस महोत्सव जाने के लिए राजेश और लाली पूरी तरह सजधज कर तैयार थे। दोनों छोटे बच्चे राजू और रीमा भी नए नए कपड़े पहन कर मेला देखने के लिए उत्साह से लबरेज कमरे में उठापटक कर रहे थे ।

"मामा अभी तक नहीं आए?" राजू ने अधीरता से पूछा।


लाली बार-बार दरवाजे के बाहर अपना सर निकालकर सोनू की राह देख रही थी। राजेश ने उसे छेड़ते हुए कहा अरे इतनी अधीर क्यों होती हो अभी रात होने में बहुत वक्त है

लाली फिर शर्मा गई उसने राजेश की तरफ देखा और बोला

"मुझे मेला देखने की पड़ी है और आपको तो हर घड़ी वही सूझता है" लाली ने यह बात कह तो दी परंतु उसकी बुर जैसे लाली का विरोधाभास सुन रही थी। लाली के शब्दों के विपरीत उसकी बुर पनियायी हुई थी आज सुबह से ही लाली ने उसे खूब सजाया संवारा था उसकी उम्मीदें भी जाग उठी थी।

फटफटिया की आवाज सुनकर लाली एक बार फिर सतर्क हो गई और उसका प्यारा भाई और आज रात का शहजादा अपने दोस्त विकास के साथ राजदूत पर बैठा हुआ लाली के दरवाजे के सामने खड़ा था..

लाली उस अपरिचित व्यक्ति को देखकर कमरे के अंदर आ गई और राजेश से बोली

"देखिए सोनू आ गया है शायद उसका दोस्त भी साथ है"


राजेश कबाब में हड्डी बिल्कुल नहीं चाहता था वह बाहर निकला। परंतु आज नियति राजेश और लाली के साथ थी। विकास मोटरसाइकिल से आगे बढ़ चुका था और सोनू अपने कदम बढ़ाते हुए कमरे की तरफ आ रहा था।

कुछ ही देर में घर के बाहर दो रिक्शे खड़े थे राजेश ने लाली से कहा

"जाओ तुम सोनू के साथ बैठ जाओ दोनों बच्चे मेरे साथ बैठ जाएंगे।"

लाली नहीं मानी उसके मन में चोर था वह सोनू के साथ बैठना तो चाहती थी परंतु कहीं ना कहीं उसके मन में शर्मो हया कायम थी.

बनारस महोत्सव पहुंचने के पश्चात लाली का चेहरा देखने लायक था। हर तरफ खुशियां ही खुशियां राजेश ने लाली को मनपसंद सामान खरीदने की खुली छूट दे दी वह आज उसे किसी भी कारण से निराश नहीं करना चाहता था। आखिर उसके ही कहने पर लाली सोनू के करीब आ चुकी थी और उसकी दिली इच्छा आज पूरी करने वाली थी. परंतु राजेश को शायद यह बात नहीं पता थी की जो आग उसने लगाई थी उसे बुझा पाना अब उसके बस में भी नहीं था। नियति लाली और सोनू को अपना मोहरा बना चुकी थी।

राजेश को पता था की लाली और सोनू का यह संबंध लाली सुगना से पचा नहीं पाएगी और यदि ऊपर वाले ने साथ दिया तो सुगना जैसी खूबसूरत और कामसुख से वंचित कोमलंगी उसकी बाहों में आकर उसे जन्नत का सुख जरूर देगी.

इधर राजेश के मन में सुगना का ख्याल आया और उधर सरयू सिंह सुगना और कजरी को लेकर उसी रास्ते पर आ गए। लाली, सुगना को देखकर बेहद प्रसन्न हो गयी। सुगना भी अपनी सहेली को देख, विद्यानंद द्वारा कही गई बातों को दरकिनार कर फूली न समाई। वह दोनों लगभग एक दूसरे की तरफ दौड़ पड़ीं। दोनों की हिलती हुई बड़ी-बड़ी चूचियां आसपास के लोगों का ध्यान खींचने लगी सोनू भी इससे अछूता न था।


आलिंगन में लेते समय हमेशा की तरह दोनों की चुचियाँ एक दूसरे को दबाने का प्रयास करने लगीं। चुचियों के लड़ने का एहसास हमेशा की तरह सुगना और लाली को बखूबी हुआ। वह दोनों एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा दीं। कजरी ने छोटी रिया को गोद में लेकर लेकर प्यार किया। सरयू सिंह ने राजेश का हालचाल लिया। राजेश वैसे भी सुगना पर फिदा था और उनके प्रतिद्वंद्वी के रूप में सुगना से नजदीकियां बढ़ा रहा था.

लाली ने राजेश से कहा

"यह तो दिन पर दिन और चमकती जा रही है अपनी साली को पहचान तो रहे हैं ना?"

"सुगना ने झुककर राजेश के चरण छुए और अनजाने में ही अपने दोनों बड़े बड़े नितम्ब उसकी आंखों के सामने परोस दिए। अब तक सोनू भी आ चुका था उसने सुगना के पैर छुए और सुगना ने उसे अपने सीने से सटा लिया और बेहद प्यार से बोली

"अरे सोनू बाबू तू कैसे""

"लाली दीदी के साथ आया हूं मुझे तो पता ही नहीं था कि आप लोग भी यहां आने वाले हैं."

यही मौका था जब सोनू अपने दोनों बहनों के साथ हो लिया राजू अपने पिता राजेश की उंगली पकड़कर चल रहा था और रीमा कजरी की गोद में खेल रही थी। सरयू सिंह ना चाहते हुए भी अपने प्रतिद्वंद्वी राजेश के साथ बनारस उत्सव के बारे में बातें करते हुए टहल रहे थे.

रास रंग का आनंद लेते हुए शाम हो गई। सोनू ने अपनी दोनों बहनों को मेले के आनंद से रूबरू कराया झूला झुलाया और ढेर सारी शॉपिंग करायी।

लाली और राजेश ने सुगना और कजरी से विदा ली तभी कजरी ने कहा

"हमार पंडाल पासे बा लाली की मां कुछ सामान भेज ले बाडी चल लेला"

कुछ ही देर में सभी लोग विद्यानंद के पांडाल में थे। अपना सामान लेकर लाली और राजेश ने विदा ली सुगना ने सोनू से कहा

"बाबू तू यही रुक जा कॉलेज तो नहीं जाना है?"

" नहीं दीदी आज नहीं आज कुछ जरूरी काम है कल फिर आऊंगा"

लाली सोनू का झूठ अपने कानों से सुन रही थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। लाली की बुर के आकर्षण में बंधा सोनू अपनी सगी बहन को छोड़ लाली के पीछे पीछे चल पड़ा। नियति मुस्कुरा रही थी। सोनू की निगाहें लाली के नितंबों के साथ ऊपर नीचे हो रही थीं।

लाली ने अपना मोहपाश फेंक दिया था...सोनू उसके आकर्षण में बंधा...लाली के घर आ चुका था…..

राजेश अपनी पत्नी लाली की झोली में खुशियां भरने को तैयार था और उधर लाली की जांघो में छुपी सजी धजी बधू अपने नए वर से मिलने को तैयार थी..

लाली के बच्चे राजू और रीमा रास्ते में ही ऊँघने लगे थे मेला घूमने के आनंद में उन बच्चों ने कुछ ज्यादा ही मेहनत कर दी थी। लाली ने उन्हें बिस्तर पर सुला दिया और वापस हॉल में आ गयी।

राजेश अब तक नहाने जा चुका था मेले की भाग दौड़ से लगभग सभी थक चुके थे सिर्फ सोनू ही उत्साह से लबरेज लाली के आगे पीछे घूम रहा था।

राजेश के आने के पश्चात लाली ने सोनू से कहा

"सोनू बाबू तू भी नहा ले मजा आएगा" सोनू खुश हो गया मजा शब्द का मतलब उसने अपनी भावनाओं के अनुसार निकाल लिया था।

थोड़ी ही देर में राजेश और सोनु हॉल में बैठे हुए बातें कर रहे थे।

सोनू ने राजेश से पूछा

"जीजा जी रात में कितने बजे जाना है?"

"1:00 बजे"

सोनू ने घड़ी की तरफ निगाह उठाई जिसकी सुइयां 90 डिग्री का कोण बना रही थी। 9 बज चुके थे।

सोनू खुद को 4 घंटे इंतजार करने के लिए तैयार करने लगा । अपने लण्ड को राजेश की नजरों से बचाकर वह उसे तसल्ली देने की कोशिश कर रहा था।

तभी लाली बाथरूम से नहाकर, लाल रंग की सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बाहर आ गयी। शरीर से चिपकी हुई शिफॉन की नाइटी लाली के खूबसूरत शरीर को छुपा पाने में नाकाम थी।

सोनू की निगाहें उसके शरीर पर ब्रा और पेंटी खोजती रही। लाली सीधा किचन में गई और तीन गिलास दूध निकालकर हाल में आ गयी। लाली के दोनों प्रेमी लाली का दूध पीने लगे। मेरा आशय लाली द्वारा लाये गए दूध से था।

नियति छिपकली के रूप में हॉल में दीवाल से चिपकी तीनों की मनोदशा पढ़ रही थी। छिपकली देखकर लाली चिल्लाई राजेश अचानक पीछे पलटा और उसके हाथ का दूध हाल में रखे एकमात्र बिस्तर पर गिर गया।

सोनू और लाली मैं वह दूध साफ करने की कोशिश की परंतु जितना ही वह साफ करते गए बिस्तर उतना ही गंदा होता गया।

लाली ने कहा..

"सोनू बाबू का बिस्तर खराब हो गया मीठे दूध के कारण इसमें चीटियां लगेंगी।"

"कोई बात नहीं सोनू अंदर ही सो जाएगा वैसे भी मुझे रात में चले जाना है।"

"सोनू बाग बाग हो गया उसे इसकी आशा न थी।"

लाली ने राजेश का गिलास उठाया और अपने झूठे ग्लास से दूध उसके क्लास में डालते हुए बोली

"लीजिए मेरा दूध पी लीजिए लाली ने कह तो दिया पर उसका चेहरा शर्म से लाल हो गया जिसे राजेश और सोनू ने बखूबी समझ लिया।"

सोनू ने लाली की झेंप मिटाते हुए कहा

"जीजा जी थोड़ा दूध मेरे ग्लास से भी ले लीजिए पर ...जूठा है"

राजेश ने बड़ी आत्मीयता से कहा

"अब तुम हमसे अलग थोड़ी हो हम सब एक हैं और अपना ग्लास आगे बढ़ा दिया" सोनू राजेश की बातों में छिपे गूढ़ रहस्य को नहीं समझ पाया।

दूध पीने के पश्चात राजेश ने जम्हाई लेते हुए कहा तुम लोग बातें करो मैं चला सोने और उठ कर अंदर आ गया अपनी डबल बेड की रजाई ओढ़ कर वह सो गया।

पर राजेश की आंखों में नींद कहां थी वह तो अपनी खूबसूरत पत्नी लाली और सोनू के मिलन का आनंद लेना चाह रहा था जिसका प्रणेता वह स्वयं था। वह बेसब्री से उनका इंतजार करने लगा उसके कान लाली और सोनू के वार्तालाप अपना ध्यान लगाए हुए थे।

सोनू बात करने के बिल्कुल मूड में नहीं था वह राजेश की नींद में कोई व्यवधान डालना नहीं चाहता था.. लाली किचन में ग्लास साफ करते हुए बोली

"सोनू बाबू जाओ आराम करो मैं भी आती हूं.."

सोनू जाकर बिस्तर के एक किनारे लेट गया उसने लाली के लिए अपने और राजेश के बीच में स्थान खाली छोड़ दिया था। अपनी आंखें बंद किए वह लाली के खूबसूरत शरीर को याद कर अपने लण्ड को सहला रहा था तभी अचानक लाली आ गई।


सोनू की कमर के ऊपर हो रही हलचल को वह बखूबी समझती थी उसने रजाई को सोनू की कमर के ठीक नीचे से पकड़ा और ऊपर उठाते हुए बोली

" मुझे भी आने दे लाली की आंखों के सामने सोनू का तंनाया हुआ लण्ड दिखाई पड़ गया जिसे सोनू अपने हाथों से छिपाने का असफल प्रयास कर रहा था । परंतु देर हो चुकी थी यह तो शुक्र है कि कमरे में पूरी रोशनी न थी सिर्फ एक लाल रंग का नाइट लैंप जल रहा था जो चीजों को देखने और पहचानने के काम आ सकता था.

सोनू ने अपने पैर सिकोड़ कर अपने सीने से सटा लिए और लाली को अंदर आने की जगह दे दी। लाली सोनू और राजेश के बीच में आ चुकी थी.

लाली ने अपने सिरहाने से वैसलीन की एक ट्यूब निकाली और सोनू को देते हुए बोली

तूने उस दिन जो दवा लगाई थी उसकी वजह से ही मैं चलने फिरने लायक हो गई यह क्रीम वही पर लगा दे..

लाली ने करवट ले ली और उसका चेहरा राजेश की तरफ हो गया और पीठ सोनू की तरफ।

सोनू ने वह वैसलीन तर्जनी पर निकाली और लाली की नंगी पीठ की तलाश में अपनी बाकी उंगलियां फिराने लगा। परंतु उस दिन की तरह आज लाली की पीठ नंगी न थी. सोनू ने हिम्मत जुटाकर लाली की नाइटी को नीचे से कमर की तरफ लाना शुरू कर दिया लाली की गोरी और चमकती हुई जान है रजाई के अंदर घुप अंधेरे में अनावृत हो रही थी लाली की बुर पहनी हुई अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रही थी।

नितंबों तक आते-आते सोनू का सब्र जवाब दे गया उसने एक ही झटके में अपना पजामा अलग कर दिया।

लाली की पीठ पर सोनू की उंगलियां घूमने लगी और सोनू का मजबूत लण्ड अपनी दीदी के नितंबों में छेद करने को एक बार फिर आतुर हो गया। रजाई के अंदर हो रही हलचल ने राजेश को सतर्क कर दिया था।


वह लाली की चुचियों पर कब्जा जमाने को लालायित हो गया उसकी हथेलियों ने लाली की नाइटी को सामने से खींच कर उसकी मदमस्त चुचियों को स्वतंत्र कर दिया….

नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

शेष अगले भाग में।
सरयूसिंग, कजरी और सुगना बनारस महोत्सव में आ गये
स्वामी विद्यानंद ने सुगना को बुला कर सुरज के उस के साथ आगे क्या क्या घटनायें होने वाली है उसका बहूत कुछ विवरण सुगना को बता दिया
लेकीन उसे यह नहीं मालूम की सुगना उसके पुत्र रतन की पत्नी हैं और सुरज उसके भाई सरयूसिंग और बहू सुगना के अवैध मिलन का परिणाम हैं
कजरी, सरयूसिंग और स्वामी विद्यानंद मुलाकात होने के बाद तीनों की क्या प्रतिक्रिया होती हैं देखते हैं
सोनू और लाली के मिलन का समय आ गया है
देखते एक धुवांधार थ्रिसम होने वाला है की नहीं
बहुत ही अजब गजब रोमांचकारी और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
 
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Sanju@

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नाइटी लाली के गले तक आ चुकी थी चीरहरण की इस मनोरम गतिविधि में लाली ने भी अपनी आहुति दी और उस सुंदर नाइटी को अपने गले और चेहरे से निकालते हुए बाहर कर दिया एक मदमस्त सुंदरी पूरी तरह वासना से भरी हुई चुदने को तैयार थी….

अब आगे...

लाली राजेश और सोनू के बीच करवट लेकर लेटी हुई थी उसका चेहरा राजेश की तरफ और पीठ सोनू की तरफ थी।

नियति लाली की दुविधा समझ रही थी। लाली जो सोनू से दिल खोलकर दिल ही क्या दिल और चूत दोनों खोलकर चुदना चाहती थी, परंतु वह राजेश की इच्छा पूरी कर अपना पत्नी धर्म भी निभाना चाह रही थी उसने अपना चेहरा और वक्षस्थल राजेश की तरफ बढ़ा दिया। लाली की कमर तथा भरे पूरे नितंब सोनू को उपहार स्वरूप स्वतः ही प्राप्त हो गए।

लाली के नितंब तब ही रुके जब सोनू के खड़े लण्ड ने उसकी गांड पर दबाव बना दिया। लाली का खरबूजा चाकू की नोक पर आ चुका था।

उधर लाली का चेहरा राजेश की हथेलियों में आ चुका वह उसे प्यार से चूमे जा रहा था। लाली और राजेश के होंठ आपस में मिल गए। जीभ रूपी दोनों तलवारें आपस में टकराने लगी जाने यह कैसा प्यार था जिसमें प्रेम युद्ध तो ऊपर हो रहा परंतु रंगहीन पारदर्शी रक्त लाली की जांघों के बीच से रिस रहा था और लाली इस प्रेम से अभिभूत प्रेमयुद्व के आनंद में डूब रही थी। उसकी उसकी सांसे भारी हो रही थीं।

लाली के ऊपरी होंठ राजेश के होठों से गीले हो चुके थे। निचले होठों को गीला करने में राजेश और सोनू दोनों के ही स्पर्श का योगदान था। सोनू का लण्ड उस चिपचिपी दरार तक पहुंच चुका था और आगे का मार्ग तलाश रहा था। लाली अपनी बुर सिकोड़ने का प्रयास कर रही थी।

अजब बिडम्बना थी जिसके इंतजार में लाली की बुर खुशी के आँशु लिए बेकरार थी और अब अपने करीब देखकर अब नजरें चुरा रही थी।

दरअसल लाली कुछ देर इसी आनंद को जीना चाह रही थी। राजेश अब होठों को छोड़ लाली की भरी-भरी चुचियों की तरफ आ गया। अपने दोनों हाथों में भरकर वह उसकी चूँची चूसने लगा। सोनू तो सुध बुध खो कर अपने लण्ड को उसके नितंबों के बीच से निकाल कर अपनी दीदी की फूली हुई बुर पर रगड़ रहा था तथा अपनी हथेलियों को लाली की जांघों पर फिरा रहा था।

कुछ देर लाली के वस्ति प्रदेश पर घूमने के पश्चात उसकी उंगलियों ने लाली की चुचियों की तरफ बढ़ने की कोशिश की। लाली ने लक्ष्मण रेखा खींच रखी थी उसने सोनू का हाथ पकड़ कर वापस अपनी जांघों पर रख दिया। सोनू को लाली का यह व्यवहार थोड़ा अप्रत्याशित लगा परंतु वह हर हाल में लाली को चोदना चाहता था। उसने लाली के इस कदम को नजरअंदाज कर दिया और अपने लण्ड से उस जादुई सुरंग को खोजने लगा।

उत्तेजित स्त्री की बुर में चुंबकीय आकर्षण होता है लाली की बुर के चुंबकीय आकर्षण ने सोनू के चर्म दंड को ढूंढ लिया और उसे अपने मुहाने तक खींच लाई। भावनाओं की एक करंट लाली और सोनू के शरीर में दौड़ गयी और सोनू का बहुप्रतीक्षित सपना पूरा हो गया.

सोनू का लण्ड अपनी दीदी की बुर की गहराइयों में उतर चुका था।

सोनू का हथियार लाली की बुर में उतरता जा रहा था। अंदर सिर्फ और सिर्फ प्रेम भरी फिसलन थी। रोकने वाला कोई ना था जैसे-जैसे लण्ड अंदर जा रहा था बुर का मांसल दबाव उसे एक मखमली एहसास दे रहा था। सोनू का लण्ड तब रुका जब उसने लाली के गर्भाशय पर ठोकर मारी और लाली के मुख से चीख निकल गई

"बाबू तनि अपनी धीरे से… आह…...."

राजेश ने लाली के होठों को चूम लिया।

लाली की आह सुन सोनू और उत्तेजित हो गया उसने अपने लण्ड को बाहर निकाला और फिर ठान्स दिया। लाली मीठे दर्द सेकराह उठी…

आह ….सोनू बाबू…

सोनु को अफसोस हुआ और उसके मन मे एक अनजाना डर समाया कि कहीं राजेश जीजू जग मत जाएं। वह कुछ देर के लिए शांत हो गया लाली ने स्वयं अपनी कमर आगे पीछे की और सोनू को एक बार फिर इशारा मिल गया। उधर राजेश लाली की चुचियों को लगातार मीस रहा था और लाली उसके बालों को सहलाए जा रही थी.

लाली एक समझदार रानी की तरह अपने उत्तरी और दक्षिणी भाग को अपने दोनों आशिकों में बांट कर आनंद के सागर में गोते लगा रहे थी और अपनी वासना पर निष्कंटक राज कर रही थी।

जैसे-जैसे सोनू की उत्तेजना बढ़ रही थी वह उग्र होता जा रहा था उसके धक्कों की रफ़्तार तेज हो रही थी। लाली को अब जाकर आपीने अद्भुत युवा भाई की ताकत का एहसास हो रहा था। लण्ड की ठोकर उसके गर्भाशय का मुख खोलने का प्रयास कर रही थी.

सोनू के युवा लण्ड की थिरकन लाली की बुर को बेहद पसंद आ रही थी ऐसा लग रहा था जैसे लाली की बुर ने जिंदा रोहू निगल ली थी जो तड़प रही थी। बुर से रिस रही लार रोहू को न मरने दे रही थी न जीने। लण्ड बेतरतीब ढ़ंग से आगे पीछे हो रहा था। परंतु बुर् का मांसल दबाव उसे हर बार गर्भाशय के मुख तक पहुंचा दे रहा था जिसका आनंद अद्भूत था।

उत्तेजना का दौर ज्यादा देर नहीं चल पाया एक तरफ सोनू को यह स्वर्गीय सुख पहली बार मिल रहा था वह भी अपनी प्यारी लाली दीदी से और दूसरी तरह लाली दोहरे आनंद का शिकार हो रही थी। अपने पति परमेश्वर के होठों से अपनी चूचियां चुसवाते हुए अपने छोटे भाई का लण्ड गपागप ले रही थी।

राजेश भी बेहद उत्साहित था वह खुल्लम खुल्ला लाली को चोदना चाहता था। उसके दिमाग में लाली के साथ सोनू की उपस्थिति में संभोग करने की इच्छा थी परंतु लाली ने उसे रोक दिया था..

सोनू की रफ्तार बढ़ती जा रही थी वह लाली को पूरी तन्मयता से चोदे जा रहा था परंतु उसके हाथ अपनी दीदी की चुचियाँ खोज रहे थे। पिछली बार उसकी हथेलियों को लाली ने रोक दिया था परंतु सोनू को लाली की चुचियों का वह मादक स्पर्श याद आ रहा था। उसने एक बार फिर प्रयास किया और अपनी उंगलियों को लाली के पेट से सटाते हुए ऊपर बढ़ाने लगा। लाली ने सोनू की मनसा जान ली उसने राजेश को ऊपर की तरफ खींचा और अपने होठो को उसके होठों से सटा दिया तथा राजेश के हाथों को अपने चुचियों से हटाकर दूर कर दिया।

सोनू की उंगलियां कोई अवरोध न पाकर चुचियों के निचले हिस्से तक पहुंच चुकी थी। सोनू की खुशी का ठिकाना ना रहा ।उसने लाली की चूँचियां अपनी हथेलियों में भर ली। लाली की चुचियाँ राजेश की लार से पूरी तरह गीली थी। सोनू के आश्चर्य का ठिकाना न उसे यह बात समझ ही नहीं आएगी लाली की चूचियां गीली कैसे हो गयीं। क्या लाली दीदी ने अपनी चुचियाँ खुद अपने होठों में ले ली? तनी हुई चुचियों को अपने होंठो से चूसना असंभव था और जो संभव था वह उसकी कल्पना से परे था।

सोनू को अब जाकर लाली के पूरे जिस्म का आनंद मिल रहा था सिर्फ उन खूबसूरत होठों को छोड़कर जिस पर अभी भी राजेश ने कब्जा जमाया हुआ था। सोनू और लाली एक हो चुके थे। गर्भाशय का मुख बार-बार दस्तक देने से खुल चुका था। जादुई सुरंग सोनू का रस खींचने को तैयार थी।

लाली ने अपनी कमर पीछे की और सोनू ने अपना लण्ड आगे। लाली बुदबुदा रही थी…

बाबू आ….आईईईई आ…...धीरे….आह…..मममममम

बुर की कपकपी सोनू महसूस कर पा रहा था। लाली के पैर सीधे हो रहे थे परंतु सोनू का लण्ड उसे सीधे होने से रोक रहा था। लाली झड़ रही थी और सोनू उसे लगातार चोद रहा था। जब तक वीर्य की फुहारे लाली के गर्भ से को सिंचित करतीं लाली स्खलित हो चुकी थी और एकदम शांत होकर अपने गर्भ पर अपने भाई सोनू के वीर्य की फुहारों को महसूस कर रही थी जो उसके बूर की तपिश को शांत कर रहीं थीं।

लाली के गर्भ ने अपने ऊपर हो रही वीर्य वर्षा में से कुछ अंश को आत्मसात कर लिया। तृप्ति की पूर्णाहुति हो चुकी थी प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर था और लाली के गर्भ में अपना अंश छोड़ चुका था.

वासना का तूफान शांत हो चुका था परंतु लाली और सोनू के दिल की धड़कन तेज थी। उनकी तेज चलती हुई साँसे कमरे में स्पष्ट सुनाई दे रही थीं राजेश भी वासना से ओतप्रोत स्खलित होने को तैयार था परंतु उसकी गाड़ी प्लेटफार्म खाली होने का इंतजार कर रही थी।

स्खलित होने के बाद कुछ ही देर में सोनू को बहुत जोर की पेशाब लगी। राजेश ने यह अवसर नहीं गवाया जब तक सोनू वापस कमरे में आता लाली की चुदी हुई और शांत बुर में राजेश ने भी हलचल मचाने की कोशिश की परंतु लाली पूरी तरह तृप्त थी उसके दिलों दिमाग पर सोनू छाया हुआ था। श्वेत वीर्य से लथपथ लाली की रानी आराम चाहती थी फिर भी उसने अपने पुराने प्रेमी को निराश न किया और इस अवस्था में भी उसे आत्मसात कर लिया ।

राजेश के लण्ड ने लाली की बुर से रिश्ते हुए सोनू के वीर्य को वापस धकेल कर गर्भाशय तक पहुंचा दिया था। जाने नियति क्या चाह रही थी? राजेश का यह प्रयास क्या रंग लाने वाला था? जब तक सोनू दरवाजे तक पहुंचता राजेश ने अपनी उत्तेजना शांत कर अपना लावा उड़ेल दिया। वह लाली की जांघों के बीच से हटकर वापस अपनी जगह पर आ रहा था. सोनू को यह टाइमिंग सातवें आश्चर्य से कम ना लगी।

सोनू दरवाजे की ओट लेकर खड़ा हो गया और अंदर स्थिति सामान्य होने की प्रतीक्षा करने लगा। राजेश ने लाइट जला दी और लाली को चुमते हुए बोला..

" मेरी रानी तुम खुश होना ना ? "

लाली ने कुछ कहा नहीं परंतु उसके चेहरे के हाव भाव उसकी खुशी जाहिर कर रहे थे उसने राजेश को चूम लिया। राजेश बिस्तर से उठा और अपना पेंट पहनने के बाद कमरे की लाइट जला दी।

लाली भी रजाई से बाहर आ गई और अपनी नाइटी को गले से डालते हुए अपने हाथ हटा लिए नाइटी एक पर्दे की भांति लाली के गदराए और मादक जिस्म को ढकती चली गई ऐसा लग रहा था जैसी वासना की इस फिल्म का द एंड हो गया था। परंतु सोनू की निगाहों ने लाली की खूबसूरत और चुदे हुए जिस्म का भरपूर नजारा देख लिया था। उसका लण्ड एक बार फिर तन्ना कर खड़ा हो गया। जैसे ही राजेश हाल में आया उसने सोनू को देखकर बोला..

"अरे बड़ी जल्दी नींद खुल गई तुम्हारी"

" हां जीजू नए बिस्तर पर नींद कच्ची ही आती है"

" कोई बात नहीं... अब तो छुट्टी ही है जाओ आराम करो"

राजेश ने लाली को आवाज देते हुए कहा

"साले साहब को नींद नहीं आ रही है उनका ख्याल रखना"

"लाली भी अब हॉल में आ चुकी थी उसके चेहरे को देख कर ऐसा लगता ही नहीं था जैसे अब से कुछ देर पहले वह सोनू से चुद रही थी। उसने सोनू के गालों को सहलाते हुए बोला

"जा टीवी चला कर देख मैं तेरे जीजू के लिए चाय बना रही हूं तू भी पीयेगा? "

"हां दीदी"

कुछ देर बाद राजेश अपनी ड्यूटी पर चला गया और कमरे में लाली और सोनू अपनी नजरें झुकाए चाय पी रहे थे दोनों के होंठ सिले हुए थे परंतु जांघों के बीच हलचल तेज थी अद्भुत और कामांध प्रेम का सैलाब हिलोरे मार रहा था।

नियति ने एक और व्यभिचार को बखूबी अंजाम तक पहुंचा दिया था और तो और लाली के गर्भ में उसके मुँहबोले भाई सोनू के अंश को सहेज कर रख दिया था। यह गर्भ नियति की साजिश में एक अहम भूमिका अदा करने वाला था।

इधर लाली के घर में लाली और सोनू अंतरंग हो रहे थे उधर सोनू की बहन सुगना परेशान थी. विद्यानंद के पांडाल में सुगना की आंखों की नींद उड़ी हुई थी। कजरी सो चुकी थी, परंतु सुगना टकटकी लगाकर कर पांडाल की छत को देख रही थी। पंडाल का वैभव उसे अब आकर्षित नहीं कर रहा था। सूरज सुगना की एक चूची को मुंह में डालें बड़े प्रेम से चूस रहा था और दूसरी चूची के निप्पल को अपने छोटे छोटे हाथों से सहला रहा था।

वह अपने जादुई अंगूठे से सुगना के निप्पल को सहलाता और अपनी छोटी-छोटी मुट्ठीओं में उस निप्पल को भरने की कोशिश करता। सुगना पांडाल की हल्की रोशनी में उस अंगूठे को देख रही थी।

क्या यह सच में जादुई है ?

सुगना को सोनी की बात याद आने लगी। वह अंगूठे को मसलने पर नुन्नी के बढ़ने की बात उसे दिखाना चाह रही थी परंतु उसमें सफल ना हुई थी। सुगना ने उस बात की तस्दीक करने के लिए अपने उंगलियों से उस उस अंगूठे को सहलाया और उसका असर देखने के लिए अपने छोटे बालक की जांघों की तरफ अपना ध्यान ले गई । सूरज की नूनी में कोई हलचल न थी।

ऐसा कैसे हो सकता है? क्या मेरा सूरज वास्तव में अलग है ? यदि सोनी की बात सच है तो निश्चय ही विद्यानंद एक पहुंचे हुए फकीर हैं? काश कि सोनी यहां होती?

सुगना मन ही मन सोनी से मिलने को अधीर हो उठी सोनी और मोनी दोनों ही उसकी बहनें थी और सूरज की मौसी थीं।

विद्यानंद के अनुसार जो असर सोनी ने देखा था वही मोनी के साथ में भी होना था। सुगना ने मन ही मन सोच लिया कि बनारस महोत्सव खत्म होने के बाद वह अपने मायके जाकर विद्यानंद जी की बताई बात की तस्दीक करेगी।

सुगना ने सूरज का जन्म एक नाजायज और अनुचित संबंधों से होने की बात को स्वीकार कर लिया था। सच में सरयू सिंह उसके पिता के उम्र के थे और रिश्ते में ससुर….यह संबंध अब सुगना की नजर में अनुचित लगने लगा था।

सुगना सूरज के सामान्य होने की बात को याद कर एक बार फिर सिहर उठी। क्या मेरे इस कोमल पुत्र को अपनी सगी बहन से संभोग करना होगा? पर यह कैसे संभव होगा? यह तो मेरा एकमात्र पुत्र है ? और बाबूजी तो अविवाहित हैं उनका संबंध कजरी मां और मेरे सिवा शायद ही किसी से हो? और यदि हुआ भी हो तो मैं उनसे कैसे यह बात पूछ पाऊंगी? और यदि सूरज को मुक्ति दिलाने के लिए उसकी बहन ना मिली तो?

सुगना विद्यानंद जी की दूसरी बात याद कर पसीने पसीने हो रही थी । नहीं नहीं यह असंभव है ऐसा निकृष्ट और नीच कार्य मुझसे नहीं होगा। मुझसे ही क्या कोई मां ऐसा सोच भी नहीं सकती।

तभी सुगना की आत्मा सुगना को कचोटने लगी। उसकी अंतरात्मा से आवाज आई

"तो क्या तुम अपने पुत्र को यूं ही समाज में सांसारिक रिश्तो को कुचलने और संभोग करने के लिए छोड़ दोगी? क्या वह समाज में एक सम्मानित जीवन जी पाएगा ? क्या कुछ ही वर्षों में वह एक कामुक और चरित्रहीन व्यक्ति के रूप में पहचान नहीं लिया जाएगा?

ऐसे कलंकित जीवन से तो मृत्यु बेहतर है सूरज इस कलंक के साथ ज्यादा दिनों तक जीवित नहीं रह पाएगा"

"नहीं नहीं मैं अपने बालक को मरने नहीं दे सकती"

"सुगना तेरे पास कोई चारा नहीं है"

"मैं अपने पुत्र को बचाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं"

"अपने आप को झुठला मत... तेरा मन इस बात की गवाही कभी नहीं देगा... तेरे पुत्र को यह दुनिया छोड़नी ही होगी"

"नहीं…. मैं ऐसा नहीं होने दूंगी"

"तो क्या तू अपने पुत्र के साथ… संभोग करेगी.?"

सुगना ने अपने दोनों हाथों से अपने कान बंद कर लिए उसे लगा ऐसी बात सुनने से बेहतर था इसी वक्त अपनी जान दे देना।

सुगना की आत्मा फिर अट्टहास करने लगी।

"मैं जानती हूं सुगना तू एक कोमल और पावन हृदय वाली युवती है। पुत्र की लालसा में तूने सरयू सिंह के साथ संबंध बनाए उन्होंने तेरे साथ छल किया पर उस व्यभिचार का आनंद तुम दोनों ने लिया सूरज का जन्म निश्चित ही व्यभिचार की देन है तुझे फैसला करना ही होगा।"

सुगना को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था तभी उसके मन में विचार आया और उसने खुशी-खुशी सोचा

"मैं एक पुत्री को जन्म दूंगी जो मेरे सूरज को इस शाप से मुक्ति दिलाएगी"

"तू कह रही तू ? क्या तू अपनी पुत्री और अपने पुत्र के बीच संभोग करवाएगी ? परन्तु तुझे पुत्री होगी कैसे? सूरज के पिता के साथ तेरा संभोग अब वर्जित हो चुका है क्या तू उनके जीवन के साथ खिलवाड़ करेगी।

सुगना जानती थी कि सरयू सिंह अब उसके साथ पहले की तरह संभोग नहीं कर पाएंगे और गर्भधारण के लिए न जाने कितने बार उसे उनके वीर्य को आत्मसात करना होगा।

सुगना प्रतिज्ञा होते हुए बोली

" मैं कुछ भी करूंगी पर निश्चित ही सूरज की मुक्तिदाता अपनी पुत्री को जन्म दूंगी"

"और यदि तुझे पुत्री की जगह पुनः पुत्र प्राप्त हुआ तो..?"

सुगना एक बार फिर थरथर कांपने लगी. सच यदि वह पुत्र हुआ तो क्या वह भी सूरज की तरह विलक्षण होगा। नहीं नहीं अपने दोनों पुत्रों के जीवन के बारे में सोच कर वह बेहद डर गई। इस अवस्था में उसे अपने दोनों पुत्रों के साथ …. छी छी छी कितनी विषम और घृणित परिस्थितियों में नियत ने सुगना को लाकर छोड़ दिया था।

सुगना ने मन ही मन निश्चय कर लिया कि वह पुत्री के जन्म के लिए प्रयास अवश्य करेगी चाहे वह उसके बाबूजी सरयू सिंह हो या कोई और।

सूरज सुगना की चूची छोड़ कर उसके चेहरे को एकटक देख रहा था।

सूरज ने सुगना के चेहरे को छू कर अपना ध्यान आकर्षित किया और सुगना अपने अचेतन मन से बाहर आई और अपने सूरज के कोमल और मासूम चेहरे को चूम लिया...

"बाबू तेरे लिए मैं सब कुछ करूंगी"

सूरज ने अपने होठों से सुगना के निप्पल को काट लिया और सुगना की तरफ देख कर मुस्कुराने लगा...

सूरज मुस्कुरा रहा था और सुगना भाव विभोर होकर उसे चुमें जा रही थी सूरज उसे इस दुनिया में सबसे प्यारा था वह उसके लिए कुछ भी करने को तैयार थी।

सुगना थक चुकी थी धीरे-धीरे उसकी पलकें बंद होने लगी सूरज जाग रहा था और उसकी सूचियों को चूमते और चाटते हुए अपनी मां को सुखद एहसास करा रहा था। सूरज निश्चित ही एक विलक्षण बालक था…

इधर सुगना नींद की आगोश में जा रही थी उधर लाली और सोनू वासना के दलदल में धसते चले जा रहे थे। राजेश के जाने के पश्चात दोनों प्रेमी युगल अब किसी बंदिश के शिकार न थे। चाय खत्म होते-होते सोनू की लाली दीदी उसकी गोद में आ चुकी थी….

नियति ने उन्हें अपने हाल पर छोड़ दिया और बनारस महोत्सव के दूसरे दिन की तैयारियों में लग गई।
आखिर सोनू और लाली का मिलन हो ही गया बहुत ही मस्त
स्वामी विद्यानंद की भविष्यवाणी के कहे अनुसार सुगना सुरज के उज्ज्वल भविष्य के लिये क्या निर्णय लेती हैं देखते हैं
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
 

Sanju@

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बनारस महोत्सव का दूसरा दिन…

बनारस स्टेशन से एक महिला दो खूबसूरत किशोरियों के साथ रिक्शे पर बैठी हुई शहर की तरफ आ रही थी सोनू का दोस्त विकास जो स्टेशन से अपने रिश्तेदार को छोड़कर वापस आ रहा था खूबसूरत किशोरियों को देखकर लालायित हो गया वह अपनी राजदूत से रिक्शे का पीछा करने लगा। कभी वह रिक्शे से आगे निकलता और अपनी गर्दन घुमा कर कभी एक किशोरी पर ध्यान गड़ाता कभी दूसरी पर कभी दाएं कभी बाएं।

लड़की के हाव भाव यह इंगित कर रहे थे की वह पुरुष नजरों की प्रतीक्षा में थी। बाई तरफ बैठी लडक़ी ज्यादा सतर्क नजर आ रही थी जब जब उसकी नजरें विकास से मिलतीं वह अपनी नजरें झुका लेती।

विकास उन किशोरियों के आकर्षण में बंधा हुआ बनारस महोत्सव में पहुंच गया। किशोरियों की सीलबंद बुर का आकर्षण उसे रस्ता भूला कर इस महोत्सव में खींच लाया था। रिक्शा के अचानक बाई तरफ घूमने से विकास की मोटरसाइकिल रिक्शा से टकरा गई और एक किशोरी रिक्शे से गिर कर जमीन पर आ गई..

"बेटा लगी तो नहीं?"

पद्मा ने रिक्शे से उतरते हुए पूछा।


विकास भी मोटरसाइकिल से गिर चुका था।

मोनी उस पर गुस्सा होते हुए बोली


"भैया आप को दिखता नहीं है"

विकास सोनी पर ध्यान टिकाये हुए था। वह फटाफट उठ खड़ा हुआ और राजदूत को स्टैंड पर खड़ा कर वह सोनी के पास पहुंचा और बेहद संजीदगी से बोला..

"मुझे माफ कर दीजिए रिक्शा के अचानक मुड़ जाने से मैं टकरा गया.."

रिक्शा वाले ने अपनी गलती स्वीकार कर ली थी सच मे वह बिना हाथ दिए ही मुड़ गया था..

भगवान का शुक्र था की किसी को कोई विशेष चोट नहीं आई थी परंतु इस मिलन के चिन्ह सोनी और विकास दोनों के घुटनों पर अवश्य थे जो थोड़े छिल चुके थे।

पीछे आ रहे रिक्शे में पदमा की पड़ोसी भी इसी महोत्सव में आ रही थी। दोनों रिक्शे विद्यानंद के पंडाल की तरफ बढ़ रहे थे और विकास अपनी मोटरसाइकिल से सुरक्षित दूरी बनाए हुए उनके पीछे पीछे जा रहा था। विद्यानंद के पंडाल पर पहुंचते ही सब लोग रिक्शे से उत्तर कर पंडाल में जाने लगे। सोनी की निगाहें विकास को ढूंढ रही थी और विकास अपनी मोटरसाइकिल पर बैठा दूर से सोनी को देख रहा था।

सोनी की नजरें जब विकास से टकराई सोनी ने अपनी गर्दन झुका ली। विकास पहली मुलाकात में ही सोनी पर फिदा हो गया था। अंदर से मोनी की आवाज आई…


"अरे सोनी चल पहले सामान रख ले मेला बाद में देख लेना " मोनी को क्या पता था सोनी मेला नहीं अपना मेल देख रही थी।

पंडाल में पहुंचकर शीघ्र ही पदमा की मुलाकात कजरी और सुगना से हो गयी। सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा.. कल रात ही वह सोनी और मोनी के बारे में सोच रही थी और आज उसकी दोनों बहने उसके सामने थीं। सुगना ने उन दोनों को अपने गले से लगा लिया और उनकी छोटी छोटी कसी हुई चूचियां सुगना की फूली हुई चुचियों से सटने लगी सोनी के मन में हमेशा यह भाव आता की दीदी की चूचियां कितनी भरी भरी हैं न जाने मेरी कब बड़ी होंगीं।

मिलन की घड़ी बेहद सुखद थी अपने परिवार के साथ मेला घूमने की बात सोचकर सुगना बेहद खुश थी। कजरी और पदमा भी देश दुनिया की बातें करने लगीं। बनारस महोत्सव ने सच में सभी के चेहरे पर खुशियां ला दी थीं सरयू सिंह अपनी दोनों भूतपूर्व प्रेमिकाओं और अपनी वर्तमान रानी सुगना को लालच भारी निगाहों से देख रहे थे उनका ध्यान सुगना के गदराये नितंबों के बीच छुपे छेद पर केंद्रित था। उनका इंतजार अब उन्हें बेसब्र कर चुका था।

उधर विकास अपने बिस्तर पर पड़ा सोनी को याद कर रहा था कितनी खूबसूरत और करारी माल थी सोनी।

सोनी की छोटी-छोटी चुचियों को याद कर विकास की हथेलियों में ऐठन उत्पन्न हो गई काश कि वह उन्हें छु पाता। उसकी उत्तेजना ने उसके लण्ड को जागृत कर दिया और वह बेचारा एक बार फिर विकास की खुरदरी हथेलियों में पिसने को तैयार हो रहा था। विकास का लण्ड अपने मालिक को चीख चीख कर अपनी संगिनी लाने को कह रहा था पर विकास भी उतना ही मजबूर था जितना कि वह मसला जा रहा लण्ड।

विकास ने न जाने कितनी लड़कियों और युवतियों को अपने ख्याओं में लाकर पर अपने लण्ड को झांसा देते हुए हस्तमैथुन किया था पर आज वह सोनी पर फिदा हो गया था। वह अपनी भावनाओं को वह अपने दोस्त सोनू से साझा करना चाहता था परंतु उसका दोस्त सोनू अपनी लाली दीदी की के साथ रसोई में बर्तन मांज रहा था और लाली के शरीर से अपने शरीर को अलग-अलग अवस्थाओं में सटा रहा था। सोनू की लाली दीदी उसके दिलो-दिमाग , तन, मन सब पर छाई हुई थी।

सोनू को इस बनारस महोत्सव की शुरुआत में ही अपनी लाली दीदी की जवानी उसे उपहार स्वरूप मिल गई थी नियति ने यह संयोग ऐसे ही नहीं बनाया था। सोनू, लाली और उसके पति राजेश की कामुक कल्पनाएं का अभिन्न अंग था वह उनकी सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला था।

कल रात लाली के साथ अपने प्रथम संभोग को सकुशल अंजाम देने और राजेश के जाने के बाद हुई घटनाओं को याद करते करते सोनू खो सा गया। लाली खाना बनाते बनाते बीच-बीच में सोनू को देख रही थी जो अपनी यादों में खोए हुए निर्विकार भाव से खिड़की के बाहर देख रहा था और अपने हाथों में गिलास लिए उस पर अपनी उंगलियां लापरवाही से फिर आ रहा था..

लाली ने अंदाज लगा लिया की सोनू कल रात के ख्यालों में डूबा हुआ है...

बीती रात बिस्तर पर चाय पीने के पश्चात लाली रजाई में घुस गई और अपनी पीठ पर तकिया लगा कर टीवी देखने लगी सोनू भाई बिस्तर पर आ चुका था लाली ने पूछा

"सोनू बाबू नींद आ रही हो तो टीवी बंद कर दूं"

" नहीं दीदी मुझे तो नहीं आ रही"

"क्यों अपनी दीदी के साथ मन नहीं लगता क्या"

लाली सोनू को खोलना चाह रही थी पर सोनू अभी भी शर्मा रहा था।

"अच्छा आ देख मेरी आंख में कुछ पड़ गया है जरा फूंक मारकर निकाल दे"

सोनू लाली के बिल्कुल पास आ गया और अपने होठों को गोलकर लाली की आंख के पास आकर फूंक मारने लगा। सोनू के भोलेपन को देखकर लाली को उस पर बेहद प्यार आया और उसने अपने होंठ उससे बड़े आकार में गोलकर उसके फूंक मार रहे होठों को अपने आगोश में ले लिया। जब तक सोनू कुछ समझ पाता रेलवे कॉलोनी की बत्ती एक बार फिर गुल हो गयी।

सोनू ने लाली की मंशा जान ली थी और उसने लाली के होठों से जंग छेड़ दी । लाली ने अपनी तलवार रूपी जीभ बाहर निकाल ली पर सोनू ने उसे अपने होठों से खींच कर अपनी जीभ से सटा लिया।

इधर लाली और सोनू एक दूसरे के होठों से खेल रहे थे उधर सोनू के हाथ लाली की नाइटी को ऊपर की तरफ खींच रहे थे..

रजाई तो न जाने कब एक उपेक्षित वस्त्र की भांति किनारे पड़ी हुई थी जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई लाली के कोमल बदन को ठंड का एहसास होता गया।

लाली की नाभि तक पहुंचते-पहुंचते सोनू ने लाली की नाइटी को छोड़ अपने पजामे को नीचे करना शुरू कर दिया।

दोनों प्रेमी अर्धनग्न हो चुके थे सोनू ने लाली के होठों को चूमते हुए नाइटी पर ध्यान लगाया और लाली के सहयोग से उसका ही चीर हरण कर लिया।

सोनू अब पूरी तरह लाली के ऊपर आ चुका उसकी लाली दीदी जो उम्र में तो बड़ी थी पर सोनू के आगोश में लगभग समा चुकी थी। उम्र का यह अंतर सोनू के बलिष्ठ शरीर ने मिटा दिया था। दोनों एक प्रेमी युगल की भांति एक दूसरे से सटे हुए थे। उधर सोनू ने एक बार फिर लाली के चेहरे और होठों को चूमना शुरू किया और सोनू के तने हुए लण्ड ने लाली की चूत को चुम लिया।


जैसे-जैसे लाली अपनी जीभ को सोनू के होठों के अंदर करती गई सोनू का लण्ड उसकी मलाईदार और कसी हुई चूत में प्रवेश करता गया।

वासना अंधेरे में जवान होती है और एकांत में फलती फूलती है। उसके विविध रूप भी अंधकार में ही प्रकट होते हैं। यदि दोनों पक्षों की सहमति हो और शरीर का लचीलापन बरकरार हो तो संभोगरत जोड़े अपने सारे अरमान पूरे कर सकते हैं ।

सोनू ने आज तक जितना भी ज्ञान अपने दोस्तों और गंदी किताबों से सीखा था अपनी लाली दीदी पर प्रयोग कर लेना चाहता था। उसने अपने हाथों से लाली की जांघों को पकड़कर लाली के घुटने उसकी चुचियों के दोनों तरफ करते हुए अपने लण्ड को लाली की बुर में जड़ तक उतार दिया लाली एक बार फिर कराह उठी

"बाबू तनी धीरे से ….आह...दुखाता"

लाली ने अंतिम शब्द का प्रयोग यूं ही नहीं किया था इस अवस्था में सोनू का लण्ड उसके गर्भाशय पर एक बार फिर छेद करने को आतुर था।

सोनू ने लाली को चूम लिया और अपने लिंग को थोड़ा पीछे कर लिया लाली ने भी अपनी जांघें थोड़ा ऊंची की और खुद को व्यवस्थित कर लिया।

सोनू अपनी लाली दीदी को पूरी रिदम के साथ चोद रहा था और लाली अपनी आंखें बंद किए उस का आनंद ले रही थी। जाने लाली ने अपनी आंखें क्यों बंद की थी कमरे में तो पहले से ही अंधेरा था पर शायद आंखों के बंद करने से दिमाग और शांत हो जाता है और लाली उस अद्भुत असीम शांति में अपनी चुदाई का आनंद ले रही थी।

पर नियति तो जैसे शरारत करने के मूड में ही थी। रेलवे कॉलोनी की लाइट वापस आ गयी। लाली की बंद आंखों पर रोशनी की हल्की फुहारे आने लगीं। लाली को अब जाकर एहसास हुआ कि वह आज अपने ही बिस्तर पर पूरी तरह नग्न होकर अपने पैर के दोनों घुटनों को अपनी चुचियों के दोनों तरफ हाथों से खींचे हुए चुद रही थी।। लाली शर्म से पानी पानी हो गई सोनू क्या सोच रहा होगा? उसने अपने पैरों को छोड़ा और अपनी बंद आंखों को अपनी उंगलियों से ढक लिया.

अचानक लाइट आ जाने से एक पल के लिए सोनू भी डर गया था परंतु लाली ने जब अपनी आंखें स्वयं ही ढक लीं तो सोनू को आंखें बंद करने की कोई आवश्यकता न थी। वह लाली के खूबसूरत और भरे पूरे जिस्म का आनंद लेने लगा। एक पल के लिए उसने अपना ध्यान चुदाई से हटाकर लाली की खूबसूरती को जी भर कर निहारने लगा। अपनी नंगी दीदी का खूबसूरत चेहरा, सुंदर और सांचे में ढली हुई गर्दन और गर्दन में पहना हुआ काले मोतियों और सोने के धागों से बना हुआ मंगलसूत्र। मंगलसूत्र का लॉकेट दोनों चुचियों के बीच निर्विकार भाव से पड़ा सोनू को देख रहा था।


उस लाकेट को आज अपना अस्तित्व समझ नहीं आ रहा था। आज से पहले उसने नग्न लाली पर सिर्फ उसके पति राजेश को ही देखा था। उसे राजेश ने अपने प्रतीक स्वरूप लाली के खूबसूरत शरीर पर सजाया था परंतु आज लाली के भाई को उसी अवस्था में देखकर उसे अपनी उपयोगिता पावन संबंधों के प्रतीक के रूप में नहीं अपितु एक सौंदर्य की वस्तु के रूप में महसूस हो रही थी।

लाली सोनू की मनोदशा से अनभिज्ञ उसके कमर हिलाने का इंतजार कर रही थी। प्रेम कीड़ा में यह ठहराव उसे पसंद नहीं आ रहा था। उसने अपनी उंगलियां अपनी आंखों पर से हटायीं और सोनू की तरफ देखा जो अपना ध्यान उसकी चुचियों पर लगाए हुए था।


जब तक लाली कुछ कहती सोनू ने उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां गप्प से अपने मुंह में भर लीं और दोनों हाथों से पकड़ कर उसे मीसने लगा। सोनू के बलशाली होठों द्वारा चुसे जाने से दूध की धारा सोनू के मुंह में फूट पड़ी। अपनी भांजी रीमा के हिस्से का दूध पीना सोनू को पसंद ना आया और उसने अपने होठों का दबाव नियंत्रित किया और चूसने की वजह उसे चुभलाने पर अपना ध्यान केंद्रित कर दिया

आनंद में जो ठहराव आया था वह उतनी ही तेजी से अपनी गति पकड़ने लगा। लाली ने अपनी आंखें फिर से बंद कर लीं अब वह उंगलियों के प्रयोग से अपने प्यारे भाई सोनू के सर को प्यार से सहलाने लगी।


सोनू इस प्यार से अभिभूत होकर लाली को गचागच चोदने लगा कमरे में हलचल बढ़ रही थी जांघों के टकराने की थाप अद्भुत थी। लाली के दोनों बच्चे सो रहे थे और उनकी मां अपने भाई सोनू को प्रेमझुला झूला कर सुलाने का प्रयास कर रही थी।

सोनू अभी कुछ देर पहले ही स्खलित हुआ था उसकी उसका शरीर वीर्य उत्पादन के लिए अंडकोषों को निचोड़ रहा था। परंतु स्खलन हेतु वीर्य एकत्रित होने में अभी समय था। सोनू की तेज चल रही सांसे और लण्ड ने लाली को अपने पैर तानने पर मजबूर कर दिया। सोनू की चुदाई ने लाली को एक बार फिर झड़ने पर मजबूर कर दिया था। लाली हांफ रही थी और अपनी झड़ती हुई बुर में सोनू के लण्ड के आवागमन को महसूस कर रही थी। कभी वह उसे रोकना चाहती कभी अपनी बुर को सिकोड़ कर उसे बाहर निकालना चाहती। परंतु उसकी उंगलियां सोनू के सिर को लगातार अपनी चुचियों पर खींचे हुए थीं।

लाली शांत हो रही थी और भरपूर प्रयास कर रही थी कि वह अपने भाई सोनू की उत्तेजना को भी अपनी बुर की गर्मी से शांत कर दे परंतु सोनू तो आज अड़ियल सांड की तरह उसे निर्ममता से चोदे जा रहा था।

लाली की बुर अब आराम चाह रही थी परंतु लाली सोनू की उत्तेजना पर ग्रहण नहीं लगाना चाहती थी। वह सच में सोनू से प्यार करने लगी थी अपनी बुर की थकान और उसकी संवेदना को ताक पर रख वह अभी भी चेहरे पर मुस्कान लिए सोनू को इस स्खलन के लिए उत्साहित कर रही थी। नियत लाली की यह कुर्बानी देख रही थी उसने लाली को आराम देने की सोची और लाली की पुत्री रीमा जाग गई..

सोनू ने इस आकस्मिक आए विघ्न को ध्यान में रख अपनी रफ्तार बढ़ाई परंतु रीमा की आवाज तेज होती गयी। इससे पहले की राजू जागता और अपने मामा को अपनी मम्मी के ऊपर देखता लाली ने करवट लेना ही उचित समझा। सोनू ने अपना फनफनाता आता हुआ लण्ड मन मसोसकर बाहर खींच लिया जो फक्क की आवाज के साथ बाहर आ गया लाली और सोनू दोनों का ही ध्यान उस आवाज पर गया और उनकी नजरें मिल गई यह आवाज बेहद मादक थी और लाली और सोनू दोनों को उनके नंगे पन का एहसास करा गई थी दोनों ने ही अपनी पलके झुका लीं।


लाली ने रीमा की तरफ बढ़ कर उसे अपनी चुचियों से सटा लिया अपने मामा द्वारा कुछ देर पहले चुसी जा रही चुचियों को रीमा ने अपने मुंह में ले लिया और उससे दूध खींचने का प्रयास करने लगी। सोनू ने अनजाने में ही अपनी भांजी की मदद कर दी थी उसके चुभलाने से लाली का दूध उतर आया था। रीमा आंखें बंद कर दूध पीने लगी।

करवट मुद्रा में लाली को नग्न देखकर सोनू एक बार फिर उसके मदमस्त नितंबों का कायल हो गया वह नीचे आकर लाली के नितंबों को चूमने लगा ….

सोनू लाली को सर से पैर तक झूमे जा रहा था उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसके ख्वाबों की मलिका आज उसके सामने पूरी तरह नग्न लेटी हुई थी। लाली भी अपने तन की नुमाइश सोनू को बेझिझक होकर कर रही थी। पास पड़ी रजाई को न तो लाली ने खींचने की कोशिश की और न हीं सोनू ने।

रीमा के सो जाने के पश्चात लाली जान चुकी थी कि उसे एक बार फिर चुदना है। अपने प्रेम सफर पर उसने सोनू को अकेला छोड़ दिया था। उसकी बुर फूल चुकी थी और अब लण्ड के ज्यादा वार सहने को तैयार न थी। लाली ने अपने जांघों के बीच अपनी रानी की संवेदनाओं को ध्यान में रखते हुए खुद को डॉगी स्टाइल में ला दिया।

सोनू लाली का यह दिव्य रूप देख भाव विभोर हो गया। दोनों नितंबों के बीच उसकी कसी हुई गांड और उसके नीचे फूली और चुदी हुई बुर सोनू के लण्ड का इंतजार कर करती हुयी प्रतीत हुयी। लाली में अपनी ठुड्डी अपनी हथेलियों पर रख ली थी और बेहद प्यार और मासूमियत से चोली


"बाबू बत्ती बंद कर लो…फिर चो….."

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली। हाय राम मैंने यह क्या कह दिया। हालांकि लाली ने उस कामुक शब्द का दूसरा अंश अपने होठों पर नहीं लाया था परंतु सोनू तो पूरी एकाग्रता से लाली की अवस्था और आमंत्रण दोनों को देख और सुन रहा था।

वह इस नयनाभिराम दृश्य को देखना चाहता था उसने लाली की पीठ को चूमते हुए कहा

"दीदी बस थोड़ा देर…. और आप बहुत सुंदर लग रही हो"


इधर सोनू ने अपनी बात खत्म की और उसके लण्ड ने एक बार फिर लाली की नाभि की तरफ दौड़ लगा दी। लाली यह बात जानती थी कि उसके मादक और नंगे जिस्म को इस अवस्था में देखकर सोनू की उत्तेजना सातवें आसमान पर होगी फिर भी वह राजू के अकस्मात जाग जाने की आशंका से थोड़ा चिंतित थी..

उसने सोनू की उत्तेजना को नया आयाम देने की सोची और अपने मुंह से हल्की हल्की मादक आवाजें निकालने लगी

"बाबू ….धीरे…..आ…..ईईई ….और जोर से...हां हां ऐसे आ…".

जैसे-जैसे लाली कराह रही थी उसकी उत्तेजना एक बार फिर जागृत हो रही थी। अपने भाई सोनू के प्रति उसका अद्भुत प्रेम देख उसकी बुर् अपने सूजन को दरकिनार कर खुद स्खलन के लिए एक बार फिर तैयार हो गयी। सोनू लाली की कमर को पकड़े हुए उसे लगातार चोद रहा था और बीच-बीच में झुककर कभी वह उसकी पीठ को चूमता और चुचियों को मसलता और फिर उसी अवस्था में आ जाता।

सोनू और लाली के इस प्रेम पर अब सोनू की उत्तेजना हावी हो चुकी थी वह यह बात भूल चुका था कि जिस कोमल युवती की बुर वह बेरहमी से चोद रहा था वह उसकी अपनी लाली दीदी है। लाली के नितंबों के बीच अपने लण्ड के आवागमन को देखकर सोनू पागल हो गया और अपने लण्ड को तेजी से आगे पीछे करने लगा उसका दिमाग पूरी तरह एकाग्र होकर स्खलन के लिए तैयार हो गया।

सोनू ने एक बार फिर अपने लण्ड को लाली को बुर के अंदर ठान्स दिया और वीर्य वर्षा प्रारंभ कर दी।


"दीदी …...आह…." सोनू झड़ रहा था और लाली भी. जहां लाली की बुर उसके तने हुए लण्ड को जड़ से सिरे तक अपने प्रेमरस से सिंचित कर रही थी वही सोनू का लण्ड लाली के गर्भ में एक बार फिर वीर्य भर गया था।

नियति मुस्कुरा रही थी। लाली कि बुर ने आज कई दिनों बाद दिवाली मनाई थी और उसकी कोमल बुर में चलाए गए पटाखों की गूंज 9 महीने बाद सुनाई देनी थी।

नियत उस गूंज को सुनना चाहती थी महसूस करना चाहती थी और अपनी साजिश का अंश बनाकर इस खेल को आगे बढ़ाना चाहती थी।


"जल्दी जल्दी काम खत्म कर जीजू आते ही होंगे शाम को बनारस महोत्सव चलना है ना अपनी दीदी से मिलने"

लाली सोनू का ध्यान खींचकर उसे वापस वर्तमान में ले आयी।

"आप भी तो मेरी दीदी ही हो" सोनू ने अपने सचेत होने का प्रमाण देते हुए बोला..

"तो क्या हम दोनों तेरी निगाहों में एक ही हैं"

"आप मेरे लिए दीदी से बढ़कर हो"

"तो इसका मतलब अब मैं तुझे सुगना से ज्यादा प्यारी हूं"

सोनू उत्तर न दे पाया पर लाली ने उसे अपने आलिंगन में ले लिया। और सोनू का लण्ड एक बार फिर खड़ा हो गया।

जब तक सोनू लाली की जांघों के बीच आने के लिए कोई रणनीति बनाता राजेश दरवाजे पर आ चुका था। सोनू के अरमान जमीन पर आ गए पर पिछली रात उसे जो सुख मिला था वह उसे कई दिनों तक तरोताजा और उत्साहित रखने वाला था।

बनारस महोत्सव में जाने की तैयारियां शुरू हो गई थी.

उधर विद्यानंद के पंडाल में सुगना ने मोनी को बुलाया

"जी.. दीदी"

"चल तुझे.. एक वीआईपी कमरा दिखा कर लाती हूं"

सुगना ने मनोरमा के वीआईपी कमरे की चाबी ली और मोनी को लेकर उसके कक्ष की तरफ चल पड़ी। सूरज सुगना की गोद में बैठा अपनी मौसी मोनी को देख रहा था। मोनी भी सूरज को छेड़ती हुई सुगना के साथ साथ चल रही थी और सूरज किलकारियां मारकर मोनी की छेड़छाड़ का अपनी भाषा और भाव से उत्तर दे रहा था..

कमरे के आसपास मनोरमा की गाड़ी न देखकर सुगना खुश हो गई सरयू सिंह ने उसे बताया था कि यदि मनोरमा की गाड़ी उस कमरे के आसपास नहीं हो तभी उस कमरे का प्रयोग करना है।

सुगना ने दरवाजा खोला और अंदर प्रवेश कर गई।

कमरे के साफ और सुंदर बिस्तर पर मोनी बैठ गई।

सुगना ने पूरी संजीदगी से कहा

" मोनी क्या तुझे सूरज के अंगूठे के बारे में सोनी ने कुछ बताया था "

"हां दीदी"

"क्या वह बात सच है?"

"हां दीदी उस दिन तो हुआ था"

"चल मेरे सामने कर ना"

मोनी ने सूरज को अपनी गोद में लिया उसकी कच्छी सरकायी उसके जादुई अंगूठे को अपने हाथों से सहलाने लगी। नुन्नी में कोई हरकत ना थी।सूरज मुस्कुरा रहा था।

सुगना को ध्यान आया की पिछली बार भी उसकी उपस्थिति में सोनी की हरकत से भी सूरज की नुंनी में कोई अंतर नहीं आया था। मोनी स्वयं आश्चर्य में थी पिछली बार उसने सूरज के जादुई अंगूठे को सहलाने का परिणाम अपनी आंखों से देखा था और न चाहते हुए भी उसे अपने होंठों का स्पर्श उस नुंनी को देना पड़ा था। परंतु आज वैसा कुछ भी न था।

"रुक जा मैं बाथरूम से आती हूं फिर वापस चलते हैं" सुगना ने कहा और सोचती हुई बाथरूम में चली गई। मोनी ने एक बार फिर सूरज के अंगूठे को सहलाने की कोशिश की और उसकी नूनी ने आकार बढ़ा लिया। अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए मोनी ने अंगूठे को कुछ ज्यादा ही सहला दिया और सूरज के नूनी एक लंबे गुब्बारे की भांति भूल गई। मोनी जोर से चिल्लाई

"सुगना दीदी यह देखिए.."

सुगना बाथरूम में नीचे बैठकर मूत्र विसर्जन कर रही थी उसकी बुर की फाँकें फैली हुई थी और उसका ध्यान मूत्र की सुनहरी धार पर लगा हुआ था। मोनी की आवाज सुनकर उसने अपने मूत्र विसर्जन को यथाशीघ्र रोकने की कोशिश की और वापस कमरे में आ गई सूरज की बढ़ी हुई नुंनी उसके लिए सातवें आश्चर्य से कम न थी। नुंनी का आकार 4 से 5 गुना बढ़ चुका था। जो सूरज के मासूम उम्र की तुलना में बेहद असामान्य था।

"मोनी, अब यह वापस सामान्य कैसे होगा?

मोनी ने अपने होठों को सूरज की नुन्नी से सटा दिया जैसे-जैसे वह अपने होंठ उस पर रगड़ती गई सूरज की नूनी का आकार सामान्य होता चला गया। सुगना कि आज आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थी।

स्वामी विद्यानंद की बात सोलह आने सच थी..

सुगना सोच में पड़ गई तो क्या…. सूरज को सामान्य करने के लिए सच में उसे अपने बेटे सूरज से…...

छी छी छी…... मैं यह कभी नहीं कर पाऊंगी. सुगना बुदबुदाई..

"क्या नहीं कर पाओगी.. दीदी"

सुगना क्या क्या बोलती उसने बात टालने की कोशिश की।

"कुछ नहीं…"

"दीदी सूरज के साथ ऐसा क्यों हो रहा है?

"मोनी कसम खा तू यह बात किसी को नहीं बताएगी"

"पर दीदी यह सोनी को भी पता है"

तुम दोनों ही उसकी मौसी हो तुम दोनों के अलावा यह बात किसी के सामने नहीं आनी चाहिए यहां तक कि हमारी मां और मेरी सासू मां को भी नहीं।

"ठीक है दीदी आप चिंता मत कीजिए"

सुगना खुश हो गई परंतु मोनी के मन में शरारत सूझी चुकी थी उसने हंसते हुए कहा..

"जब सूरज बड़ा हो जाएगा तो इसके अंगूठे पर दस्ताना पहनाना पड़ेगा वरना यदि कहीं मैंने और सोनी ने इस अंगूठे को छू लिया तब …….?"

सुगना मुस्कुराने लगी । उसके दिमाग में युवा सूरज और मोनी की तस्वीर घूम गयी। वह मोनी और सोनी की बड़ी बहन थी उनके बीच बातचीत की मर्यादा कायम थी। वह सेक्स विषय पर खुल कर बात करना नहीं चाहती थी। उसने बात टालने के लिए कहा


"हट पगली…. चल तू ही दस्ताना बना देना"

दोनों उस कमरे से वापस पंडाल की तरफ आने लगीं। सुगना मन ही मन गर्भवती होने की योजना बना रही थी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वह एक पुत्री को अवश्य जन्म देगी और अपने जान से प्यारे सूरज को इस अभिशाप से मुक्त करेंगी।

सरयू सिंह पंडाल के गेट पर खड़े अपनी मदमस्त बहू सुगना को आते हुए देख रहे थे। भरी-भरी चुचियों के बीच पतली कमर और साड़ी के पतले आवरण से झांकती सुगना की नाभि उन्हें सुगना कि गुदांज गाड़ का आभास करा रही थी। उनका लण्ड लंगोट के तनाव से जंग लड़ रहा था…

सुगना अपने बाबूजी के नजरों को बखूबी पहचानती थी परंतु मोनी साथ में थी वह चाह कर भी सरयू सिंह के करीब नहीं आ सकती थी उसने अपना घुंघट लिया और पंडाल के अंदर जाने लगी। सरयू सिंह ने कहा..

"सुगना बेटा लावा सूरज के हमरा के दे द"

सुगना रुकी और सरयू सिह के पास जाकर सूरज को उनके हवाले करने लगी। ससुर बहू के निराले संबंधों से जन्मा सूरज अपनी माता की गोद से अपने पिता की गोद में जा रहा था सरयू सिंह की बड़ी उंगलियों ने इसी दौरान अपनी बहू सुगना की चुचियों को छेड़ दिया। सुगना शरीर सिंह की मनोदशा से बखूबी परिचित थी उसने अगल-बगल देखा और उंगलियों के खेल की प्रतिक्रिया में मुस्कुरा दी। और एक बार फिर पंडाल की तरफ बढ चली…


शेष अगले भाग में
बहुत ही बेहतरीन अपडेट है सूरज के लिए सुगना क्या करती है देखते हैं अगले अपडेट में......
 

Sanju@

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बनारस महोत्सव का दूसरा दिन अपरान्ह 3:00 बजे…..


बनारस महोत्सव के निकट एक पांच सितारा होटल के बेहतरीन सजे धजे कमरे में एक नग्न युवती अपने घुटनों के बल बैठी हुई एक मोटे और थुलथुले व्यक्ति का छोटा सा लण्ड अपने मुंह में लेकर चूस रही थी वह व्यक्ति उसके सर को पकड़कर अपने लण्ड पर आगे पीछे कर रहा था।

युवती पूरी तरह रति क्रिया के लिए आतुर थी और पूरी लगन से उस कमजोर हथियार में जान भरने की कोशिश कर रही थी। पुरुष की आंखों में वासना नाच रही थी परंतु जितनी उत्तेजना उसके दिमाग में थे उतना उसके हथियार तक न पहुंच रही थी। अपने चेहरे पर कामुक हावभाव लिए वह उस सुंदर युवती के मुंह में अपना लण्ड आगे पीछे कर रहा था। कुछ देर बाद उसने उस युवती को उठाया और बिस्तर पर लेटने का इशारा युवती खुशी खुशी बिस्तर पर बिछ गई।


कामुक और सुडोल अंगों से सुसज्जित वह युवती प्रणय निवेदन के लिए अपनी जांघें फैलाए और अपने हाथों से उस व्यक्ति को संभोग के लिए आमंत्रित कर रही थी। सुंदर, सुडोल और कामवासना से भरी हुई युवती का यह आमंत्रण देख वह व्यक्ति उस पर टूट पड़ा।

उस मोटे व्यक्ति ने सुंदर युवती की जांघों के बीच आकर अपने लगभग तने हुए लण्ड को अंदर प्रवेश कराया और अपनी कुशलता और क्षमता के अनुसार धक्के लगाने लगा।


वह उसकी चुचियों को भी मीसने और चूसने का प्रयास करता रहा और वह युवती उसकी पीठ और कमर को सहला कर उसे उत्तेजितऔर प्रोत्साहित करती रही। धक्कों की रफ्तार बढ़ती जा रही थी और उस युवती के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी।

अचानक उस व्यक्ति के धक्के गहरे होते गए परंतु उनके बीच का अंतराल कम हो गया वह स्खलित होते हुए बोल रहा था

"….मनोरमा मुझे माफ कर देना…"

मनोरमा के पति सेक्रेटरी साहब स्खलित हो चुके थे और मनोरमा बिस्तर पर आज फिर तड़पती छूट गई थी। कुछ देर यदि वह यूं ही अपने चर्म दंड को रगड़ पाने में सक्षम होते तो आज कई दिनों बाद मनोरमा को भी वह सुख प्राप्त हो गया होता। मनोरमा नाराज ना हुई परंतु उसकी बुर में बेजान पड़ा लण्ड अब फिसल कर बाहर आ रहा था और उसके द्वारा बुर के अंदर भरा पतला वीर्य भी उसी के साथ साथ बाहर आ रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे "बरसात में सड़क पर चलने वाला जोक अपनी लार गिराते हुए चल रहा हो."

सेक्रेटरी साहब ने अपनी उंगलियों से मनोरमा की बुर को और उत्तेजित कर स्खलित कराने की कोशिश की परंतु मनोरमा ने मना कर दिया। उसका रिदम टूट चुका था और अब वह अपनी उत्तेजना लगभग खो चुकी थी। उसने स्त्री सुलभ व्यवहार को दर्शाते हुए कहा...

"कोई बात नहीं जी अभी तो बनारस महोत्सव में कई दिन है. फिर कभी"

मनोरमा को संभोग के उपरांत नहाने की आदत थी उसने स्नान किया और वापस सज धज कर एक एसडीएम की तरह वापस सेक्रेटरी साहब के सामने आ गई। घड़ी एक के बाद एक टन टन टन की पांच घंटियां बजाई मनोरमा बनारस महोत्सव में जाने के लिए तैयार थी उसका ड्राइवर ठीक 5:00 बजे गाड़ी लेकर उस होटल के नीचे आ जाता.. था। मनोरमा होटल के रिसेप्शन हॉल में जाने के लिए सीढ़ीयां उतरने लगी बनारस महोत्सव के आयोजन से संबंधित रोजाना होने वाली मीटिंग में उसे पहुंचना अनिवार्य था।

एक सुंदर और अतृप्त नवयौवना अपना दैहिक सुख छोड़कर कर्तव्य निर्वहन के लिए निकल चुकी थी। परंतु नियति आज निष्ठुर न थी। वह सुंदर, सुशील तथा यौवन से भरी हुई मनोरमा की जागृत उत्तेजना को अपनी साजिश में शामिल करने का ताना-बाना बुनने लगी।


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उधर लाली अपने परिवार औरपरिवार के नए सदस्य सोनू को लेकर विद्यानंद जी के पंडाल में आ चुकी थी। जहां सरयू सिंह के परिवार के लगभग सभी सदस्य उपस्थित थे। सुगना भी सज धज कर अपनी दोनों बहनों सोनी और मोनी के साथ मेला घूमने को तैयार थी।

कजरी और सरयू सिंह विद्यानंद से मिलने को आतुर थे परंतु किसी न किसी वजह से उनकी मुलाकात टलती जा रही थी। परंतु आज दोनों ने उनसे मिलने का निश्चय कर लिया था। दोनों देवर भाभी मेला घूमने का मोह त्याग कर विद्यानंद से मिलने का उपाय तलाश रहे थे।

रात में कई बार चुदने की वजह से लाली की चाल में अंतर आ गया था। लाली खुद भी आश्चर्यचकित थी। उसे यह एहसास कई दिनों बाद हुआ था। फूली हुई बुर चलने पर अपनी संवेदना का एहसास करा रही थी और लाली की चाल स्वतः ही धीमे हो जा रही थी थी।

सुगना ने कहा..

"काहे धीरे धीरे चल रही हो?"

"सोनुवा से पूछ" लाली सुगना से अपने और सोनू के संबंधों के बारे में खुलकर बात करना चाह रही थी परंतु सीधी बात करने में उसकी स्त्री सुलभ लज्जा आड़े आ रही थी।

सोनू सोनी और मोनी के साथ आगे चल रहा था अपना नाम लाली की जुबान पर आते ही वह सतर्क हो गया और पीछे मुड़कर देखा पर सुगना ने कुछ ना कहा...

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा..

"इसकी शादी जल्दी करनी पड़ेगी.."

लाली के बार-बार उकसाने से सुगना भी मूड में आ गई उसने लाली को छेड़ते हुए धीरे से बोला

"काहे तोहरा संगे फिर होली खेललस हा का"

सुगना ने होली के दिन सोनू को लाली की चूचियां पकड़े हुए देख लिया था और यह बात लाली भी बखूबी जानती थी लाली शर्मा गई और मुस्कुराते हुए बोली..

"बदमाश होली त छोड़ दिवाली भी मना ले ले बा"

"का कहतारे?" सुगना को जैसे विश्वास ही नहीं हुआ उसे अभी भी सोनू एक किशोर के जैसा ही दिखाई पड़ता था यद्यपि उसकी कद काठी एक पूर्ण युवा की हो चुकी थी।

"जाके ओकरे से पूछ" लाली का चेहरा पूरी तरह शर्म से लाल था

"तूने ही उकसाया होगा.."

"मतलब?"

"मतलब.. मिठाई खुली छोड़ी होगी"

"अरे वाह मिठाई का ढक्कन खुला छूट गया तो कोई भी खा ले…" लाली ने झूठी नाराजगी दिखाते हुए कहा

"तूने जानबूझकर अपनी मिठाई खोलकर दिखाई होगी मेरा भाई सोनू ऐसा लगता तो नहीं है.."

" वाह मेरा भाई….तो क्या वह मेरा भाई नहीं है ?"

"जब भाई मान रही है तब मिठाई की बात क्यों कर रही है?" सुगना ने जैसे बेहद सटीक बात कह दी वह अपने इस हंसी ठिठोली में आए इस तार्किक बात से खुद की पीठ थपथपा रही थी।

"अरे वाह जब मेरा भाई मिठाई का भूखा हो तो उसको क्यों ना खिलाऊं कही इधर उधर की मिठाई खाया और पेट खराब हुआ तो…" लाली ने नहले पर दहला मार दिया।

"अच्छा जाने दे छोड़ चल वह झूला झूलते हैं…" सुगना ने प्रसंग बदलते हुए कहा... वह सोनू के बारे में ज्यादा अश्लील बातें करना नहीं चाह रही थी।

सुगना को यह विश्वास न था की लाली और सोनू ने प्रेम समागम पूर्ण कर लिया है। परंतु लाली के चंचल स्वभाव और बातों से वह इतना अवश्य जानती थी की लाली सोनू को अपने अंग प्रत्यंग दिखा कर उत्तेजित किया रहती थी और भाई-बहन के संबंधों की मर्यादा को तार तार करती थी।

झूले के पास पहुंचने पर झूले वाले ने बच्चों को झूले पर चढ़ाने से इनकार कर दिया। यह झूला लकड़ी की बड़ी-बड़ी बल्लियों से मिलकर बनाया गया था और बच्चों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त इंतजाम न होने की वजह से उस पर 10 वर्ष से कम के बच्चों को चढ़ने की रोक थी।

राजेश ने सामने की दुकान से दो बड़े-बड़े लॉलीपॉप लाया और बच्चों को देकर बोला

"बेटा तुम और रीमा सामने सर्कस का शो देख लो। सोनू मामा दिखा लाएंगे।" सोनू बगले झांकने लगा वह लाली से दूर नहीं होना चाहता था।

"साले साहब जाइए अपने मामा होने का हक अदा कीजिए और बच्चों को सर्कस दिखा लाइए तब तक मैं इन लोगों को झूला झूला देता हूं.."

सोनू ने राजेश की बात मान ली. वैसे भी इन दोनों बच्चों की मां ने उसके सारे सपने कल रात पूरे कर दिए थे और इन बच्चों ने भी पूरी रात भर गहरी नींद सो कर उनकी प्रेम कीड़ा में कोई विघ्न न पहुंचाया था।


सोनू के जाने के पश्चात झूले पर बैठने की बारी आ रही थी। सुगना और उसकी दोनों बहनों ने उनका पसंदीदा घाघरा चोली कहना हुआ था।

झूले पर कुल चार खटोले बंधे हुए थे एक खटोले पर दो व्यक्ति बैठ सकते थे। सुगना और सोनी एक साथ बैठे और लाली तथा मोनी एक साथ। राजेश में अपनी सधी हुई चाल चलते हुए सुगना के ठीक सामने वाला खटोला चुन लिया। परंतु उसका साथी न जाने कौन होता तभी सोनू का दोस्त विकास न जाने कहां से भागता हुआ आ गया और राजेश के बगल में बैठ गया।


एक पल के लिए राजेश को लगा जैसे उसने उस व्यक्ति को कहीं देखा है परंतु वह उसे पहचान नहीं पाया। चौथे खटोले पर एक अनजान युगल बैठा हुआ था। झूले वाले ने झूला घुमाना प्रारंभ कर दिया जैसे जैसे झूले की रफ्तार बढ़ती गई सुगना और सोनी दोनों के लहंगे हवा में उड़ने लगे। जब राजेश और विकास का खटोला ऊपर रहता उन दोनों की निगाहें सुगना और सोनी के गर्दन के नीचे टिकी रहती और चूँचियों के बीच गहराइयों में उतरने का प्रयास करतीं। सुगना और सोनी दोनों बहने अपनी चुचियों का उधार छुपा पाने में नाकाम थीं सुगना तो चाह कर भी अपनी मादक चुचियों को नहीं छुपा सकती थी परंतु आज सोनी ने भी अपनी छोटी चचियों को चोली में कसकर उनमें एक अद्भुत और मोहक उभार दे दिया था।

शाम के सुहाने मौसम और खिली हुई रोशनी में सुगना और सोनी के पैर चमकने लगे पैरों में बनी हुई पाजेब और पैरों में लगा हुआ आलता उनकी स्त्री सुलभ खूबसूरती को और उजागर कर रहा था। जैसे-जैसे झूला तेज होता गया ऊपर से नीचे आते वक्त उनका घाघरा और ऊपर उठता गया। सोनी के सुंदर घुटने पर लगी चोट देख कर विकास आहत हो गया। सोनी की खूबसूरत जांघों से उसकी नजर हटकर एक पल के लिए घुटनों पर केंद्रित हो गई थी। चोट का जिम्मेदार कहीं ना कहीं विकास खुद को मान रहा था।


उधर सुगना की मदमस्त और गोरी जाघे राजेश की उत्तेजना नया आयाम दे रही थी। कितनी सुंदर थी सुगना और कितने सुंदर थे उसके खजाने। आज कई दिनों बाद सुगना के नग्न पैरों को देख राजेश का लण्ड पूरी तरह खड़ा हो गया। उसकी नजरें सुगना के कोमल और खूबसूरत पैरों पर रेंगने लगी धीरे धीरे वह अपने ख्यालों में सुगना की जांघों को नग्न करता गया और उसकी जांघों के बीच छुपे स्वर्गद्वार की कल्पना करता गया।

राजेश जिस एकाग्रता से सुगना की जांघों के बीच अपना ध्यान लगाया हुआ उस एकाग्रता को पाने के लिए न जाने कितने तपस्वी कितने दिनों तक ध्यान लगाया करते होंगे।


राजेश की कामुक नजरों का यह खेल ज्यादा देर तक न चल पाया और झूला शांत होने लगा। राजेश की उत्तेजना पर भी ग्रहण लग गया।

नई सवारियां झूले पर बैठने को तैयार हो रही थीं। खूबसूरत रंग-बिरंगे कपड़ों में लड़के और लड़कियां युवक और युवतियां अपने मन में तरह-तरह के भाव और संवेदनाएं लिए झूले पर अपने जीवन की खुशियां ढूंढने कतार में इंतजार कर रहे थे। झूला रुकते ही विकास और राजेश ने अपनी भावनाओं को काबू में किया तथा तने हुए लण्ड को अपने पेट की तरफ इशारा कर उसे फूलने पिचकने का मौका दिया.

झूला परिसर से बाहर आते समय सोनी और विकास थोड़ा पीछे रह गए यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया थी दोनों ही एक दूसरे से मिलने को आतुर थे। विकास ने सोनी से कहा..

"आपके घुटने पर तो ज्यादा चोट लगी है मुझे माफ कर दीजिएगा"

सोनी शर्मा गई परंतु वह मन ही मन बेहद प्रसन्न थी। उसके सपनों का राजकुमार मैं आज पहली बार खुद पास आकर उससे बात की थी। सोनी को इस बात का आभास न था उसने अनजाने में ही अपने प्रेमी को अपने खूबसूरत अंगों की एक झलक दिखा दी थी।

सोनी को चुप देखकर विकास ने कहां

"अपना नाम तो बता दीजिए"

"मिलते रहिये नाम भी मालूम चल जाएगा" सोनी ने अपने कदम तेज किये। वह अपने परिवार से थोड़ा दूर हो गई थी इससे पहले कि कोई देख पाता वह परिवार में शामिल हो जाना चाह रही थी।

तभी विकास के दोस्त भोलू ने आवाज दी

"साले मुझे मौत का कुआं की टिकट लेने भेज कर तू यहां झूला झूल रहा है. चल जल्दी अगला शो शुरू होने वाला है"

विकास अब से कुछ मिनट पहले जिस दृश्य को देख रहा था उसमें जीवन का रस छुपा था। काश कुछ देर झूला यूं ही घूमता रहता तो विकास अपनी युवा नायिका की जांघों के दर्शन कुछ देर और कर पाता।


विकास ने सोनी के नग्न पैरों को देखकर उसकी जांघों के जोड़ पर बैठी उसकी सोन चिरैया की कल्पना कर ली थी। वह सोनी के बारे में ढेर सारी बातें करना चाहता था उसका प्रिय मित्र सोनू अपनी लाली दीदी के यहां जाकर बैठ गया था। आज विकास में सोच लिया कि वह जाकर सोनू से जरूर मिलेगा। विकास को क्या पता था कि उसका दोस्त सोनू कुछ ही दूर पर ध्यान सर्कश के जोकर पर आँखे टिकाये सर्कस खत्म होने का इंतजार कर रहा था।

कुछ देर बाद सोनू बच्चों को सर्कस दिखा कर वापस आ गया और पूरा परिवार एक बार फिर मेले में आगे बढ़ने लगा।

रास्ते में एक हाउसिंग प्रोजेक्ट की बड़ी-बड़ी होर्डिंस लगी हुई थीं। (उस समय बनारस शहर का विकास तेजी से हो रहा था। गंगा नदी के किनारे कई सारे हाउसिंग प्रोजेक्ट चालू हो गए थे।)


होर्डिंग पर बने हुए खूबसूरत घर, सड़कें और न जाने क्या-क्या बरबस ही ग्रामीण युवतियों का ध्यान खींच लेते हैं अपनी आभाव भरी जिंदगी से हटकर उन खूबसूरत दृश्यों को देखकर ही उनका मन भाव विभोर हो उठता है। होर्डिंस में दिखाए गए घर उन्हें स्वर्ग से कम प्रतीत नहीं होते। सुगना और लाली भी इन से अछूती न थीं। लाली का पति तो फिर भी आगे पीछे कर कुछ पैसा कमा लेता था परंतु सुगना वह तो परित्यक्ता की भांति अपना जीवन बिता रही थी। यह तो शुक्र है सरयू सिंह का जिन्होंने सुगना और कजरी की आर्थिक स्थिति को संभाले रखा था और सुगना को कभी भी उसका एहसास नहीं होने दिया था तथा एक मुखिया के रूप में सुगना की हर इच्छा पूरी की थी परंतु इस घर को खरीद पाना उनकी हैसियत में न था।

सुगना और लाली दोनों टकटकी लगाकर उन खूबसूरत मकानों को देखे जा रही थी और उन मकानों के सामने सजे धजे कपड़ों में खुद को अपनी कल्पनाओं में देख मन ही मन खुश हो रही थीं

सोनी ने कहा.

"सुगना दीदी चल आगे, ई सब हमनी खातिर ना ह"

सुगना और लाली ने सोनी की बात को सुना जरूर पर जैसे उनके पैर जमीन से चिपक गए थे और आंखें होर्डिंग पर।

उस हाउसिंग प्रोजेक्ट के बुकिंग काउंटर के ठीक बगल में एक लॉटरी काउंटर था। जिनके पास पैसे थे वह हाउसिंग प्रोजेक्ट के काउंटर पर जाकर प्रोजेक्ट से संबंधित पूछताछ कर रहे थे और जिनकी हैसियत न थी परंतु उम्मीदें और आकांक्षाएं भरपूर थी वह अपना भाग्य आजमाने के लिए लाटरी की दुकान में खड़े थे।

अपनी पत्नी लाली और अपने ख्वाबों की मलिका सुगना को उन घरों की तरफ देखते हुए राजेश का मन मचल गया था काश कि वह टाटा बिरला जैसा कोई धनाढ्य व्यापारी होता अपनी खूबसूरत सुगना को निश्चित ही वह घर उपहार स्वरूप दे देता। अपने मनोभावों को ध्यान में रखते हुए राजेश ने लाटरी की टिकट खरीद ली दो टिकट अपने बच्चों के नाम और एक टिकट सूरज के नाम। उसे अपने भाग्य पर भरोसा न था परंतु बच्चों के भाग्य को लेकर वह हमेशा से आशान्वित था।

लॉटरी का ड्रा बनारस महोत्सव के समाप्ति के 1 दिन पूर्व होना था। राजेश खुशी-खुशी सुगना और लाली के पास गया और सुगना की गोद में खेल रहे सूरज को वह टिकट पकड़ाते हुए बोला...


"सूरज बहुत भाग्यशाली है इसके छूने से यह टिकट सोना हो जाएगा" सूरज ने वह टिकट पकड़ लिया और तुरंत ही अपने होठों से सटाने लगा सुगना ने उसका हाथ पकड़ लिया और राजेश से बोली...

"जीजा जी क्यों आपने पैसा बर्बाद किया?"

"अरे ₹10 ही तो है सूरज के हाथ लगने से यह 1000000 हो जाए तो बात बन जाए. आप यह टिकट संभाल कर रख लीजिए"

सुगना ने सूरज के हाथ से वह टिकट ले लिया और अपनी चोली के अंदर चुचियों के बीच छुपा लिया।


लाली राजेश और सुगना को देख रही थी राजेश ने उसे भी निराश ना किया और उसके भी दोनों बच्चों को एक-एक लॉटरी की टिकट पकड़ा दी। लाली भी खुश हो गयी। राजेश चंद पलों में ही कई सारे सपने बेच गया।

आगे-आगे चल रही युवा पीढ़ी अपने में ही मगन थी जहां सोनू अपनी लाली दीदी के साथ बिताई गई रात के बारे में सोच रहा था और लाली की शर्म और उसके चेहरे पर आए मनोभावों को पढ़कर अपनी मेहनत के सफल या असफल होने का आकलन कर रहा था वहीं दूसरी तरफ सोनी के जांघों के बीच हलचल मची हुई थी विकास से मिलने के बाद उसे अपनी जांघों के बीच एक अजीब सी सनसनी महसूस हो रही थी ऐसा लग रहा था जैसे उसकी छोटी सी बुर के अगल बगल के बाल इस सिहरन से सतर्क हो गए थे। चोली में कसी हुई चूचियां उसके शरीर से रक्त खींचकर बड़ी हो गई थी और बार-बार सोनी का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी वह मौका देख कर उन्हें सामान्य करने की कोशिश भी कर रही थी।

सोनी के लिए यह एहसास बेहद सुखद था उसे आज रात का इंतजार था जब वह मोनी के साथ खुलकर इस विषय पर बात करती और अपने एहसासों से मोनी को अवगत करती। मोनी अभी भी मेले की खूबसूरती में खोई हुई थी उसके शांत मन में हलचल पैदा करने वाला न जाने कहां खोया हुआ था।

बनारस महोत्सव का यह मेला वास्तव में निराला था देखते ही देखते तीन-चार घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला और सुगना तथा लाली का परिवार एक बार फिर विद्यानंद के पंडाल की तरफ आ रहा था।

सोनू अपने इष्ट देव से राजेश की नाइट ड्यूटी लगवाने का अनुरोध कर रहा था। वह अनजाने में ही उसके और लाली के मिलन के प्रणेता को अपने बीच से हटाना चाह रहा था। लाली के साथ रात बिताने की सोच कर उसका लण्ड अचानक ही खड़ा हो गया परंतु नियति ने आज लाली की बुर को आराम देने की सोच ली थी।


राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।

"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."

सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।

परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।

शेष अगले भाग में..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर गजब का अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
मनोरमा मॅडम तो अधूरी रह गयी लेकीन वो किससे अपनी जवानी की अग्नी शांत करती है
स्वामी विद्यानंद की मुलाकात होने के बाद कजरी और सरयूसिंग की क्या प्रतिक्रिया होती हैं कही कोई तांडव तो नहीं होता है
सोनी और विकास का प्रेम किस परवान चढेंगा
क्या सुरज का भाग्य लाॅटरी का इनाम दिलवायेंगा
सोनू और लाली के मिलन के लिये नियती ने आज क्या सोच रखा हैं देखते हैं अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट में
 

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राजेश नियति के विरुद्ध जाकर अपनी पत्नी लाली को एक बार फिर सुख देने पर आमादा था उसने सोनू पर अपना मोह पास फेका।

"सोनू अपनी लाली दीदी और रीमा को घर पहुंचा दो.."

सोनू की तो जैसे बांछें खिल गयीं छोटी रीमा लाली के साथ की जाने वाली प्रेम कीड़ा में कोई अड़ंगा डाल पाने में असमर्थ थी। सोनू के दिमाग मे लाली के साथ होने वाले संभोग आसन की मादक तस्वीर खींच गई वह लाली को करवट लिटा कर चोदने की तैयारी करने लगा इस अवस्था में लाली अपनी पुत्री रीमा को आराम से दूध पिला सकती थी और उसकी कसी हुई बुर अपने भाई सोनू के लण्ड से दूध दूह सकती थी।

परंतु नियति को यह मंजूर न था उसने कुछ और ही सोच रखा था।


अब आगे..


सुगना की खनकती आवाज सुनाई दी
"जीजा जी आज सब लोग खाना यहीं पंडाल में खाएंगे और यही रहेंगे।" सुगना ने अपनी मादक अदा से यह बात कह दी।

राजेश के लिए यह आग्रह से ज्यादा और आदेश से कम था।

सुगना और सोनू की मां पदमा भी वहां आ चुकी थी उसने भी सुगना की बातों में हां में हां मिलाई और सोनू के हाथ में आया मौका फिसल गया…।
परंतु सोनू को इस बात का सुकून था की आज रात वह अपने पूरे परिवार के साथ रह सकता था और अपनी दोनों छोटी बहनों तथा मां के साथ कई दिनों बाद जी भर कर बातें कर सकता था।
पूरा परिवार गांव की पुरानी यादों और परस्पर प्रेम में डूब गया। सरयू सिंह भी अपने परिवार को हंसी खुशी देखकर उनकी खुशियों में शामिल हो गए।
बनारस महोत्सव पारिवारिक मिलन के एक बेहद खूबसूरत उत्सव में बदल गया था जहां किसी को कोई चिंता न थी खान-पान की। रहन-सहन की व्यवस्था रहने वालों की मनोदशा के अनुकूल थी।

परंतु नियति ने इस खुशहाल परिवार में कामुकता का जाल बिछा दिया था... लाली और सोनू अभी नियति के चहेते चेहरे थे परंतु सुगना और सरयू सिंह के बीच की आग भी धधक रही थी। पिछले दो-तीन महीनों से सरयू सिंह सुगना को चोद तो नहीं पाए थे परंतु हस्तमैथुन और मुखमैथुन द्वारा एक दूसरे की उत्तेजना शांत कर अपना सब्र बनाए हुए थे।


यदि मनोरमा मैडम उन्हें उनके जन्मदिन पर सलेमपुर से खींचकर बनारस महोत्सव में न ले आई होती तो निश्चित ही उस दिन वह सुगना के आगे और पीछे दोनों छेदों का जी भर कर आनंद ले चुके होते।

सुगना ने डॉक्टर की सलाह के विपरीत जाकर जन्मदिन के उपहार स्वरूप अपने दोनों छेदों से खुलकर खेलने का मजा देने का वचन दे दिया था।

सरयू सिंह सुगना के अकेले आशिक न थे। राजेश की चाहत भी अब अपनी पराकाष्ठा पर थी लाली को वासना के दलदल में उतार देने के पश्चात अब उसे कोई डर भय नहीं था। राजेश सुगना को भी उसी फिसलन में खींच लेना चाहता था तथा रिश्तो की मर्यादा को ताक पर रख वह अपनी और सुगना की अतृप्त काम इच्छाओं की पूर्ति करना चाहता था।


उसे क्या पता था की सुगना की कामेच्छा पूरा करने वाले उसके बाबूजी सरयू सिंह कामकला के न सिर्फ धनी थे अपितु नियति द्वारा एक खूबसूरत और मजबूत लण्ड से नवाजे गए थे।

सुगना अपने बाबूजी सरयुसिंह की तरफ देख रही थी जो अपनी जानेमन सुगना को हंसता और खुश देख कर उसे अपने आगोश में लेने को तड़प रहे थे…

नयन चार होते ही सुगना ने सरयू सिंह के मनोभाव पढ़ लिए.. उसने मुस्कुराते हुए अपनी नजरें नीची कर ली। उसके गदराए शरीर में ऐठन सी हो रही वह अपने बाबूजी के आगोश में जाने को मचल उठी।


खुशहाल युवती स्वभाव से ही उत्तेजक प्रतीत होती है हंसती मुस्कुराती नग्न युवती को बाहों में लिए उससे कामुक अठखेलियां करना और संभोग करते हुए उसकी हंसी को उत्तेजना में तब्दील कर देना हर मर्द की चाहत होती है।

सरयू सिंह भी इससे अछूते न थे उनका मजबूत हथियार अपने कोमल और मुलायम आवरण (सुगना की बुर) में छुपने को तैयार था….

ग्रामीण समाज की परंपराओं के अनुसार स्त्रियों और पुरुषों का झुंड अलग-अलग घेरा बना कर बैठ चुका था। पांडाल में महिलाओं और पुरुषों के रहने की व्यवस्था अलग-अलग थी। सरयू सिंह और राजेश यह बात भली-भांति जानते थे कि पांडाल परिसर में वासना का खेल खेलना अनुचित और बेहद खतरनाक हो सकता था। सामाजिक प्रतिष्ठा एक पल में धूमिल हो सकती थी।


परंतु सरयू सिंह बेचैन थे सुगना द्वारा किया हुआ वादा याद करके उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच जाती और हंसती खिलखिलाती सुनना की आवाजें उनकी उत्तेजना के लिए आग में घी का काम कर रही थी।

वह रह-रहकर सुगना की तरफ देख रहे थे और सुगना भी इस बात को महसूस कर रही थी। इन दोनों का नैन मटक्का शक के दायरे में कतई न था। परंतु सोनू को यह अप्रत्याशित लगा उसने सरयू सिंह से पूछ लिया...

"बाबूजी कुछ चाही का?"

सरयू सिंह ने इशारे से उसे मना किया और एक बार फिर इधर-उधर की बातों में लग गये।

अचानक उन्होंने सुगना को उठकर पांडाल से बाहर बने बाथरूम की दिशा में जाते देखा उनकी बांछें खिल उठी। वह तड़प उठे उनसे बर्दाश्त ना हुआ और जैसे ही सुगना पांडाल से बाहर निकल गई सरयू सिंह भी पांडाल के सामने वाले गेट से निकलकर बाहर आ गए और तेज कदमों से भागते हुए एक बार फिर पांडाल के पीछे पहुंचे और बाथरूम से आ रही सुगना का इंतजार करने लगे।

शाम वयस्क हो चुकी थी। बनारस महोत्सव में रोशनी की कोई कमी न थी परंतु रात को दिन कर पाना बनारस महोत्सव के आयोजकों के बस में नहीं था। अभी भी कुछ जगहों पर घुप अंधेरा था। सरयू सिंह अंधेरे में घात लगाए अपनी बहु सुगना का इंतजार करने लगे। बाथरूम से बाहर आकर सुगना ने अपनी चोली और लहंगे को व्यवस्थित किया। बालों की लटो को अपने कान के पीछे करते हुए अपना सुंदर मुखड़ा अंधेरे में दूर खड़े अपने बाबूजी को दिखा दिया और अपनी मदमस्त चाल से पांडाल की तरफ आने लगी। अचानक सरयू सिंह बाहर आ गए। सुगना के आश्चर्य का ठिकाना न था

"बाबूजी आप"

सरयू सिंह ने अपने होठों पर उंगलियां रखकर सुगना को चुप रहने का इशारा किया और उसकी कलाइयां पकड़कर खींचते हुए उस अंधेरी जगह पर ले आए।

सुगना स्वयं भी पुरुष संसर्ग पाने को आतुर थी। वह अपने बाबूजी के आगोश में आने के लिए तड़प उठी। सरयू सिंह सुगना को अपनी बाहों में भर उसकी चुचियों को अपनी छाती से सटा लिया उनके हाथ सुगना की गोरी पीठ पर अपना शिकंजा बनाए हुए थे और धीरे-धीरे सुगना ऊपर उठती जा रही थी। उसका वजन अब सरयू सिंह की मजबूत बांहों ने उठा लिया था और सुगना के कोमल होंठ अपने बाबुजी के होठों से टकराने लगे।

सरयू सिंह ने एक झटके में अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना के दोनों होठों को मुंह में भरने की कोशिश की। परंतु सुगना भी उनका निचला होंठ चूसना चाहती थी उसने भी अपना मुंह खोल दिया।
सरयू सिंह और सुगना दोनों मुस्कुराने लगे। आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी।

सुगना अपने कोमल होठों से अपने बाबूजी के मजबूत होठों को चूसने लगी और सरयू सिंह भी उसी तन्मयता से अपनी बहू की इस अदा का रसास्वादन करने लगे। ऊपर हो रही हलचल को शरीर के बाकी अंगों ने भी महसूस किया। सरयू सिंह की हथेलियां सुगना के कोमल नितंबों की तलाश में लग गयीं। सुगना एक बार फिर अपने पैरों पर खड़ी हो गई और सरयू सिंह की हथेलियों ने उसके दोनों नितंबों को अपनी आगोश में ले लिया।

सुगना के नितंबों के आकार को महसूस कर सरयू सिंह सुगना की किशोरावस्था को याद कर रहे थे। नितंबों के आकार में आशातीत वृद्धि हुई थी। दीपावली कि वह पहली रात उन्हें याद आ रही थी। तब से अब तक नितंबों का आकार बढ़ चुका था और निश्चय ही इसका श्रेय कहीं न कहीं सरयू सिंह की भरपूर चुदाई को था उन्होंने सुगना के कान में कहा..

"सुगना बाबू ई दोनों फूलते जा तारे से"

"सब राहुर एकरे कइल ह" सुगना ने सरयू सिंह के लण्ड को पकड़ कर दबा दिया।

"अब उ सुख कहां मिला ता"

सुगना ने अपने होंठ गोल किए और अपनी जीभ को बाहर निकाल कर सरयू सिंह के मुंह में आगे पीछे करते हुए बोली

"कौन सुख ई वाला"

सरयू सिंह सुगना के इस मजाक से और भी उत्तेजित हो गए हो गए उन्होंने अपनी उंगलियां सुगना की गांड से सटा दीं और उसे सहलाते हुए बोले...

"ना ई वाला"

सुगना ने उनका हाथ खींच कर अपनी जांघों के बीच अपनी पनिया चुकी बुर पर ला दिया और बोला..

"तब इकर का होइ.."


"तू और तोहार सास ही पागल डॉक्टर के चक्कर में हमारा के रोकले बाड़ू हम त हमेशा तडपत रहे नी।"

"सरयू सिंह सुगना की उत्तेजित अवस्था को बखूबी पहचानते थे. सुगना का गोरा और चमकदार चेहरा वासना से वशीभूत हो चुका था। उसकी आंखों में लाल डोरे तैरने लगे थे। उसने अपनी पलके झुका लीं और अपने बाबु जी के मजबूत हथेलियों के स्पर्श को महसूस करने लगी।

सरयू सिंह सुगना के हर उस अंग को सहलाए जा रहे थे जो उन्हें अपने शरीर से अलग दिखाई पड़ रहा सुगना के हाथ भी अपने बहुप्रतीक्षित और जादुई मुसल को हाथों में लेकर अपना स्पर्श सुख देने लगे। कपड़ों का आवरण हटा पाना इतना आसान न था। परंतु ससुर और बहू दोनों ने यथासंभव नग्न त्वचा को छूने की भरपूर कोशिश की। दोनों दो-तीन दिनों से मन में जाग रही उत्तेजना को शांत कर लेना चाहते थे।
सरयू सिंह ने आनन-फानन में सुगना का लहंगा ऊपर कर दिया और अपनी उंगलियों को सुगना की बुर् के होठों पर फिराने लगे सुगना चिहुँक उठी। सरयू सिंह की उंगलियां अपनी बहू की बुर् के होठों पर उग आए बालों को अलग करती हुयी उस चिपचिपी छेद के भीतर प्रवेश कर प्रेम रस चुराने लगीं।
मध्यमा और तर्जनी जहां सुगना के बुर् के अंदरूनी भाग को मसाज दे रही थी वही बाकी दोनों उंगलियां सुगना की गांड पर घूम रही थी। सुगना सिहर रही थी। न जाने उसके बाबूजी को उस गंदे छेद में क्या दिखाई पड़ गया था। वह तो जैसे पागल ही हो गए थे।

जिस बुर में उनकी उत्तेजना को पिछले तीन-चार वर्षो तक शांत किया था उसे छोड़कर वह उस सौतन के पीछे लग गए थे।
सरयू सिंह के तन मन में उत्तेजना भरने के लिए अपने अंगों के बीच लगी होड़ को महसूस कर सुगना परेशान भी थी और उत्तेजित भी।

सरयू सिंह का लंड भी लंगोट से बाहर आ चुका था। परंतु मर्यादा और परिस्थितिवश वह धोती की पतले और झीने आवरण के अंदर कैद था। सुगना अपनी हथेलियों से उसके नग्न स्पर्श को महसूस करने को बेताब थी पर धोती जाने कैसे उलझ गई थी।
उसके होंठ अभी भी अपने बाबूजी के होठों से खेल रहे थे और वह चाह कर भी नीचे नहीं देख पा रहे थी। सरयू सिह सुगना की कोमाल हथेलियों का स्पर्श अपने लण्ड पर महसूस कर रहे थे और सुपाड़े ओर रिस रहा वीर्य सुगना की उगलियों को चिपचिपा कर रहा था।

दोनों स्स्खलन की कगार पर पहुंच रहे थे परंतु नियति को यह मंजूर न था । इस बनारस महोत्सव में सरयू सिंह का वीर्य व्यर्थ नहीं जाना था। सरयू सिंह के वीर्य से कथा का एक और पात्र सृजित होने वाला था।
नियति ने अपनी चाल चल दी। पास से गुजरती एक महिला ठोकर खाकर गिर पड़ी। उसे उठाने के लिए आसपास के कई सारे लोग इकट्ठा हो गए। सरयू सिंह को ना चाहते हुए भी सुगना को छोड़ना पड़ा। सुगना स्वयं बाबूजी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से चौक गई। उसे पीछे हो रही घटना का अनुमान गलत वह तो अपने बाबूजी के आलिंगन में अद्भुत कामसुख के आनंद में डूबी हुई थी।
उसने पीछे मुड़कर देखा और सारा माजरा उसकी समझ में आ गया उसने सरयू सिंह से धीरे से कहा..

"बाबूजी कल शाम के मनोरमा जी वाला कमरा में …." इतना कह कर वह तेज कदमों से पंडाल की तरफ भाग गई।

सरयू सिंह ने अपने खूंटे जैसे तने हुए लण्ड को वापस अपनी लंगोट में डाला और अपनी उंगलियों को चुमते और सुघते हुए पांडाल की तरफ चल पड़े। इस थोड़ी देर के मिलन ने सरयू सिंह में जान भर दी थी। उनकी उंगलियों ने सुगना की बुर से प्रेम रस और उसकी खुशबू चुरा ली थी। वह अपनी उंगलियों को चूम रहे थे और सुगना के मदमस्त बुर की खुशबू को अपने नथुनों में भर रहे थे। उधर सुगना की उंगलियां भी अपने हिस्से का सुख ले आयी थी। सरयू सिंह के लण्ड से रिस रहा वीर्य धोती के पतले आवरण को छेद कर सुगना की उंगलियों तक पहुंच चुका था। उसकी बाबूजी के लण्ड ने दिन में न जाने कितनी बार वीर्य रस की बूंदे अपने होठों पर लायी थी और वहीं पर सूख गया था। लण्ड की वह खुशबू बेहद मादक थी और सुगना को बेहद पसंद थी। वह अपनी उंगलियों को बार-बार सूंघ रही थी और उसकी खुसबू को महसूस कर उसकी बूर चुदने के लिए थिरक रही थी।

सुगना ने कल शाम अपने बाबू जी को खुश करने का मन बना लिया था। सुगना के मनोभावों को जानकर उसकी छोटी सी गांड ठीक वैसे ही सिहर उठी थी जैसे घर पर आने वाले मेहमानों की सूचना सुनकर कामवाली सिहर उठती है।

खानपान का समारोह संपन्न होने के पश्चात स्त्री और पुरुषों के अलग होने की बारी थी । लाली सोनू को प्यार भरी निगाहों से देख रही थी और उधर सुगना कभी राजेश को देखती कभी सरयू सिंह को….। राजेश की निगाहों में सुगना के लिए जितना प्यार और आत्मीयता थी शायद सुगना उसका चौथाई भी सुगना की आंखों में न था वह पूरी तरह तरफ पिछले दो-तीन महीनों को छोड़ दें तो उसे एक पुरुष से जो कुछ मिल सकता था वह सारा उसके बाबूजी सरयू सिंह ने जी भर कर दिया था। उसने सरयू सिंह से अपने सारे अरमान पूरे किए थे।
घर की सभी महिलाएं पांडाल में सोने चली गई लाली और सुगना अगल-बगल लेटे हुए थे सोनी और मोनी की भी जोड़ी जमी हुई थी। और अपनी जवानी जी चुकीं कजरी और पदमा अपने जीवन में आए अध्यात्म को महसूस कर रही थी।
परंतु सुगना की आंखों में नींद न थी वह पांडाल की छत की तरफ देख रही थी। उसके जहन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि सूरज को मुक्ति दिलाने वाली उसकी बहन का पिता कौन होगा.

डॉक्टर ने सरयू सिंह के चोदने पर प्रतिबंध लगाया था उस बात को याद कर सुगना तनाव में आ गई थी। वह स्वयं कभी भी दूसरी संतान नहीं चाहती थी परंतु विद्यानंद की बातों को सुनकर गर्भधारण करना अब उसकी मजबूरी हो चली थी.

क्या वह अपने बाबूजी के स्वास्थ्य को ताक पर रखकर उनसे एक बार फिर गर्भधारण की उम्मीद करेगी?

क्या यह 1 - 2 मुलाकातों में संभव हो पाएगा.?

सुगना इस बात से भी परेशान थी कि सरयू सिंह की प्राथमिकता अब उसकी बुर ना होकर वह निगोड़ी गांड हो चली थी।

सुगना को अभी अपनी कामकला पर पूरा विश्वास था उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि कल मनोरमा के कमरे में जाने के पश्चात वह अपनी कामकला से सरयू सिंह को अपनी जांघों के बीच स्खलित होने पर मजबूर कर देगी और रही बात उस दूसरे छेद की तो वह फिर कभी देखा जाएगा।

सुगना की अंतरात्मा ने उसे झकझोरा..

"तो क्या तू अपने पुत्र को मुक्ति दिलाने के लिए अपने बाबूजी के जीवन से खिलवाड़ करेगी…?

यदि तुझे चोदते हुए वह फिर एक बार मूर्छित हो गए तब??

सुगना पूरी तरह आतुर थी वह अपनी अंतरात्मा की आवाज को नकार रही थी उसने मन ही मन उसे उत्तर दिया…
"मैं उन्हें मेहनत नहीं करवाऊंगी मैं स्वयं उनका वीर्य दोहन करूंगी और यदि कुछ ऊंच-नीच होता भी है तो हम सब बनारस में ही हैं डॉक्टर की सुविधाएं तुरंत मिल सकती हैं"
"देख उनके माथे का दाग भी अब कितना कम हो गया है तेरे वासना के खेल से उनका दाग फिर बढ़ जाएगा"
"मुझे गर्भवती होना है इसके लिए इतनी कुर्बानी तो मेरे बाबूजी दे ही सकते हैं"
सुगना की अंतरात्मा ने हार मान ली और सुगना अपने प्यारे बाबू जी सरयू सिंह से चुदकर गर्भवती होने की तैयारी करने लगी।
मन ही मन फैसला लेने के पश्चात सुगना संतुष्ट थी।

"सुगना मैं तेरे बगल में लेटी हूं और तू न जाने क्या सोच रही हो?"
लाली ने सुनना का ध्यान भंग करते हुए कहा.

सुगना अपना निर्णय करने के पश्चात सहज महसूस कर रही थी। उसमें करवट ली। सुगना को अपनी तरफ करवट लेते देख लाली ने भी करवट ली और एक बार फिर उन दोनों की चुचियों ने एक दूसरे को छू लिया। दोनों मुस्कुराने लगी । उनकी चुचियों एक दूसरे से सट कर गोल से सपाट होने लगी।
"तुझे रतन भैया की याद नहीं आती है?"
लाली में सुगना की सुगना को सह लाते हुए कहा
"तू फिर फालतू बात लेकर शुरू हो गई"
"अरे वाह ये निप्पल ऐसे ही कड़ा है? यह सब फालतू बात है?" लाली सुगना को छेड़ने लगी
सुगना सरयू सिह के बारे में सोच सोच कर उत्तेजित थी लाली द्वारा अपनी चूँचीयां सहलाये जाने से उसके निप्पल और भी खड़े हो गए थे।
"मैंने तो बदलाव का सुख ले लिया है पर तेरे जीजा जी अभी भी तड़प रहे हैं"
लाली अपने और सोनू के बीच हुए संभोग के बारे में सुगना से खुल कर बताना चाह रही थी। परंतु यह उसकी जुबान पर खुलकर नहीं आ पा रहा था अनैतिक कृत्य तो आखिर अनैतिक ही था।
सुगना भली-भांति उसका मंतव्य जानती थी परंतु उसे इस बात का कतई विश्वास न था की सोनू उसे चोद चुका था।
"तो तू इस समय घूम घूम कर अनजानो से मजे ले रही है क्या?"
"ऐसे ऐसे मत बोल मैं कोई छिनाल थोड़ी हूं"
"बातें तो तू वैसी ही कर रही है"
"मैंने अपने सबसे प्यारे सोनू से ही व सुख बांटा है."
"क्या सच में पर यह हुआ कैसे.." सुगना ने लाली के उत्साह भरे चेहरे को देखकर उसकी बातें सुनने का निर्णय कर लिया।
सुगना के इस प्रश्न ने लाली के मन में भरी हुई बातों का मुंह खोल दिया। वह बेहद बेसब्री से अपने और सोनू के बीच हुए प्रेमालाप को अपनी भाषा में सुना दिया वह राजेश के सहयोग को जानबूझकर छुपा गयी। परंतु अपने और सोनू के बीच हुए हर तरीके के कामुक स्थितियों और परिस्थितियों को विस्तार पूर्वक सुना कर सुगना को उत्तेजित करती रही। परंतु वह किसी भी प्रकार से राजेश के व्यवहार को संदेह के घेरे में नहीं लाना चाहती थी। लाली मैं सोनू के साथ जितना संभोग सुख का आनंद लिया था वह अपनी सहेली को मना कर वही सुख अपने पति राजेश को दिलाना चाह रही थी।
सुगना को कभी उसकी बात पर विश्वास होता कभी लाली के फेंकने की आदत मानकर उसे नजरअंदाज कर देती। परंतु जितना भाव विभोर होकर लाली अपनी चुदाई की दास्तान बताए जा रही थी वह सुगना को उद्वेलित कर रहा था।
" क्या सचमुच उसका छोटा भाई सोनू उसकी हम उम्र लाली को चोद रहा था…?
व्यभिचार और विवाहेतर संबंधों के बारे में ज्यादा बातें करने और सोचने से वह सहज और सामान्य लगने लगता है. सुगना के कोमल मन मस्तिष्क पर लाली की बातों ने असर कर दिया था उसे यह सामान्य प्रतीत होने लगा था। परंतु मासूम सोनू ने लाली को घोड़ी बनाकर चोदा होगा यह नसरत विस्मयकारी था अपितु सोनू के व्यवहार से मेल नही खाता था।
अपनी ही चुदाई की दास्तान बताकर लाली भी गरमा गई थी। दोनों युवतियां अपने मन में तरह-तरह के अरमान और जांघों के बीच तकिया लिए अपनी चुचियां एक दूसरे से सटाए हुए सोने लगी…।
सोनी और मोनी बगल में लेटी हुई थी. सोनी विकास के साथ बिताए गए पलों को याद कर अपने तन बदन में उठ रही लहरों को महसूस कर रही वह अपनी बहन मोनी से सटकर लेटी हुई थी। उसकी जांघों पर अपनी जाँघे रखे सोनी अपनी बहन को विकास मानकर अपनी सूचियों को मोनी की बाहों से रगड़ रही थी तथा उसकी मोनी मोनी के जाँघों से सट रही थी।
मोनी के लिए यह खेल अभी नया था वह थकी हुई थी और नींद में आ चुकी परंतु सोनी के हिलाने डुलाने से ने अपनी आंखें खोली और बोली चल अब सो जा...
घर जाकर अपनी आग बुझा लेना…
सोनी शर्मा गई और मोनी को चूम कर सोने का प्रयास करने लगी। पंडाल में स्खलन जैसे वर्जित था।
परंतु नियति इस बनारस महोत्सव में इस परिवार में संबंधों की रूपरेखा को बदलकर आने वाले समय की व्यूह रचना कर रही थी।

शेष अगले भाग में….

अद्भुत अविश्वसनीय और रोमांचकारी अपडेट है भाई मजा आ गया
सरयूसिंग को सुगना से मनचाहा उपहार बनारस महोत्सव में मिल पायेंगा
राजेश को सूगना से मिलन की चाह पुर्ण हो पायेगी
इस के लिये लाली क्या जुगाड करेगी
सुगना सुरज को बचाने के लिये सरयूसिंग से डॉ के सलाह के विरुद्ध जा कर संभोग करेगी या दुसरा कोई और होगा गर्भवती होने के लिये
सुगना सोनू और लाली के साथ होने वाले संबंध को किस तरह लेती हैं
सोनी और विकास का प्यार किस करवट जायेगा
देखते हैं अगले रोमांचकारी और धमाकेदार अपडेट में
 

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50 वां भाग

बनारस महोत्सव का तीसरा दिन

सरयू सिंह आज सुबह से ही उत्साहित थे. सुगना ने अपना वादा पूरा करने के लिए आज शाम का वक्त तय किया था परंतु सरयू सिंह सुबह-सुबह ही नहा धोकर तैयार थे. जब तक सुगना और परिवार की बाकी महिलाएं तैयार होकर आती सरयू सिंह पंडाल के सात्विक नाश्ते को छोड़कर बाहर से कचोरी और जलेबी ले आए वह सुगना के लिए विशेष तौर पर मोतीचूर का लड्डू भी ले आए जो सुगना को बेहद पसंद था। अपनी बहू का ख्याल रखना वह कभी नहीं भूलते थे और आज तो वैसे भी विशेष दिन था.

कजरी सरयू सिंह की भावनाओं को पूरी तरह पहचानती थी और उनकी नस नस से वाकिफ थी। सरयू सिंह के उतावले पन और बार-बार सुगना के करीब आने से वह अंदाज लगा रही थी की सरयू सिंह और सुगना निश्चित ही आज मिलने वाले थे। कजरी को भी मनोरमा के कमरे और उसकी चाबी सुगना के पास होने की जानकारी थी। उस कमरे की उपलब्धता ने कजरी की सोच को बल दे दिया था। बनारस महोत्सव के इस पावन अवसर पर दोनों पूर्ण संभोग करेंगे ऐसा तो कजरी ने नहीं सोचा था पर मुखमैथुन और हस्तमैथुन उन दोनों के बीच बेहद सामान्य को चला था।

सुबह के नाश्ते के पश्चात लाली और राजेश अपने बच्चों के साथ अपने घर चले गए। सोनू को भी अपने दोस्तों की याद आई और वह उनसे मिलने चला गया.

सरयू सिंह सुगना को लगातार ताड़ रहे थे जो अपनी दोनों बहनों के साथ अपनी उम्र को भूलकर हंस खेल रही थी। अपनी छोटी बहनों के साथ खेलते हुए सुगना सचमुच एक भरे पूरे बदन की किशोरी लग रही थी। कोमल और मासूम चेहरा उसके गदराए जिस्म से मेल नहीं खा रहा था.. सरयू सिंह की भरपूर चुदाई से उसके फूले हुए नितंब चीख चीख कर उसके युवती होने की दुहाई दे रहे थे परंतु सुगना के चेहरे की मासूमियत विरोधाभास पैदा कर रही थी।

तभी विद्यानंद के एक चेले ने हॉल में आकर आवाज लगाई सरयू सिंह और कजरी महात्मा जी आप लोगों को बुला रहे हैं.

पिछली दोपहर सरयू सिंह ने विद्यानंद से मिलने की बहुत कोशिश की परंतु सफल न हुए। हार कर उन्होंने खत लिख कर विद्यानंद के चेले को पकड़ा दिया। शाम तक विद्यानंद की तरफ से कोई बुलावा ना आने पर उनका स्वाभिमान आड़े आने लगा।

सरयू सिंह सोच रहे थे ...यदि वह उनका भाई बिरजू था तो उसे उन्हें इतना इंतजार नहीं कराना था। खत में उन्होंने साफ-साफ अपना नाम पता लिखा हुआ था और यदि वह बिरजू नहीं था तो विद्यानंद से मिलने का कोई औचित्य भी न था। सरयू सिंह वैसे भी ऐसे भौतिक महात्माओं पर ज्यादा विश्वास नहीं करते थे.

परंतु अब आमंत्रण आ चुका था। सरयू सिंह और कजरी दोनों विद्यानंद से मिलने चल पड़े..

विद्यानंद के कमरे में प्रवेश करते ही सरयू सिंह और कजरी विद्यानंद के आलीशान कक्ष की शोभा से मोहित हो गए। सरयू सिंह तो इन भौतिक चीजों में ज्यादा विश्वास नहीं रखते थे पर

ऐश्वर्य की अपनी चमक होती है। आप ना चाहते हुए भी उससे अभिभूत हो जाते हैं।

वही हाल सरयू सिंह का था उनकी निगाहें बरबस ही कमरे की साज-सज्जा पर जा रही थी। एक पल के लिए उनका ध्यान विद्यानंद से हटकर उस कमरे की भव्यता में खो गया था परंतु कजरी विद्यानंद को देखे जा रही थी उसे भी अब एहसास हो रहा था कहीं यह रतन के पिता तो नहीं।

विद्यानंद अपने आसन से उठ कर खड़े हो गए

"आओ सरयू"

इनके इस अभिवादन ने सरयू सिंह और कजरी के मन में उठ रहे संदेशों को खत्म कर दिया। उनका यह अंदाज ठीक वैसा ही था जैसे वह अपनी युवावस्था में अपने छोटे भाई सरयू सिंह को बुलाया करते थे। सरयू सिंह एक पल के लिए भाव विभोर हो गए और तेज कदमों से चलते हुए विद्यानंद के गले जा लगे।

कृष्ण और सुदामा का यह मिलन नियति देख रही थी। विद्यानंद ने सांसारिक जीवन से अपना मोह भंग कर लिया था यह उसके आलिंगन से साफ साफ दिखाई पड़ रहा था परंतु सरयू सिह के आलिंगन में आज भी आत्मीयता झलक रही थी। उनकी मजबूत बाहों की जकड़ विद्यानंद महसूस कर पा रहे थे। सरयू सिंह के अलग होते ही कजरी की बारी आई।

कजरी वैसे तो अपने पति से नफरत करती थी परंतु आज विद्यानंद जिस रूप में उसके सामने खड़े थे वह उनका अभिवादन करने से स्वयं को ना रोक पायी और झुक कर उनके चरण स्पर्श करने की कोशिश की।

परंतु विद्यानंद पीछे हट गए और और स्वयं आगे झुक कर कजरी को प्रणाम किया तथा अपने चेहरे पर संजीदा भाव लाकर बोले

" देवी मुझे क्षमा कर देना मैंने आपके साथ जो किया वह मेरी नासमझी थी परंतु नियति का लिखा कोई मिटा नहीं सकता मुझसे वह अपराध होना था सो हो गया। हो सके तो मुझे माफ कर देना।"

कजरी निरुत्तर थी इतना बड़ा महात्मा उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़े से क्षमा मांग रहा था कजरी ने अपनी मधुर आवाज में कहा

"शायद हम सभी के भाग्य में यही लिखा था"

विद्यानंद ने सहमति में अपना सर हिलाया और सरयू सिंह तथा कजरी को बैठने का इशारा किया।

कजरी के माथे पर चमकता हुआ सिंदूर और चेहरे का सुकून देखकर विद्यानंद को एक पल के लिए यह एहसास हुआ जैसे कजरी और सरयू सिंह ने एक दूसरे से विवाह कर लिया हो ।

विद्यानंद का आकलन सही था वैसे भी सरयू सिंह और कजरी विवाह न करते हुए भी एक दूसरे के प्रति पूरी तरह समर्पित थे और एक सुखद दांपत्य जीवन का आनंद ले रहे थे।

विद्यानंद ने सरयू सिंह से खुलकर बातें की और अपने बचपन को याद किया कजरी का जिक्र भी स्वाभाविक तौर पर आ रहा था गांव के छोटे बड़े सभी व्यक्तियों का समाचार सुनकर विद्यानंद अपने युवा काल और बचपन को याद कर रहे थे।

तभी विद्यानंद ने कजरी से पूछा..

बच्चे कहां हैं अब तो सब बड़े हो गए होंगे ..

"हां, आपका एक बेटा है जो मुंबई में है.".

सरयू सिंह ने उत्तर दिया पर विद्यानंद को यह बात समझ ना आयी। उन्होंने कजरी के साथ संभोग अवश्य किया था परंतु उन्हें कतई उम्मीद न थी की कजरी गर्भवती हो गई होगी। विद्यानंद ने इस पचड़े में ज्यादा पड़ना उचित नहीं समझा।

अचानक विद्यानंद का ध्यान सरयू सिंह के माथे के दाग पर चला गया जो निश्चित ही अपना आकार कुछ कम कर चुका था परंतु अब भी वह स्पष्ट तौर पर अपने अस्तित्व का एहसास करा रहा था। बालों के हटने से वह दिखाई पड़ने लगा।

विद्यानंद ने उस दाग को देखकर असहज हो गए और कजरी से कहा..

"देवी अब आप जा सकती हैं मुझे सरयू से एकांत में कुछ बातें करनी है।"

कजरी को यह बात बुरी लगी परंतु विद्यानंद से न उसे कोई उम्मीद थी और नहीं कभी भविष्य में मिलने की इच्छा वह कमरे से बाहर आ गई।

विद्यानंद उठकर सरयू के पास आए और अपने उंगलियों से उनके बाल को हटाकर उस दाग को ध्यान से देखाऔर बोला..

"सरयू तूने पाप किया है"

"नहीं बिरजू भैया ऐसी कोई बात नहीं है"

"तेरे माथे पर यह दाग तेरे पाप का ही प्रतीक है। यह क्यों है यह मैं तुझे नहीं बता सकता परंतु इतना ध्यान रखना नियति सारे पापों का लेखा जोखा रखती है तू जितना इस पाप से दूर रहेगा तेरे लिए उतना ही अच्छा होगा।"

विद्यानंद की बात सुनकर सरयू सिंह का दिमाग खराब हो गया। यह दाग उन्हें बेहद खटकने लगा। विद्यानंद ने अपनी नसीहत देकर उन्हें मायूस कर दिया। सरयू सिह को यह बात पता थी कि इस दाग का सीधा संबंध सुगना से था और सुगना उनकी जान थी।

वह चाह कर भी उसके यौवन और प्रेम के आकर्षण से विमुक्त नहीं हो पा रहे थे। कितनी अल्हड़ नवयौवना थी सुगना और उनसे कितना प्यार करती थी? उम्र के अंतर को भूलकर वह उनकी गोद में फुदकती थी और उनका लण्ड खुद-ब-खुद सुगना की बूर् खोज लेता। इतना सहज और मधुर संभोग कैसे प्रतिबंधित हो सकता है? सरयू सिंह ने अब और देर करना उचित न समझा और उठकर खड़े हो गए। उन्होंने विद्यानंद को प्रणाम किया और कहा भैया अब मैं चलता हूं।

विद्यानंद ने एक बार फिर से सरयू सिह को अपने आलिंगन में लिया और अपना सर उसके कान के पास ले जाकर कहा

"मनुष्य का नियंत्रण यदि दिमाग करें तो प्रगति दिल करे तो आत्मीयता और संबंध और यदि नियंत्रण कमर के नीचे के अंग करने लगे तो मनुष्य वहशी हो जाता है।उसे ऊंच-नीच और पाप पुण्य का अंतर दिखाई नहीं पड़ता । मैं सिर्फ इतना कहूंगा मेरी बात को ध्यान रखना और अपने आने वाले जीवन को सुख पूर्वक व्यतीत करना जिस दिन तुम्हें इस दाग के रहस्य पता चलेगा तुम्हें असीम कष्ट होगा। मैं प्रार्थना करूंगा कि यह दाग इसी अवस्था में सीमित रह जाए और तुम्हें इस जीवन में इसका रहस्य पता ना चले।"

"ठीक है भैया"

सरयू सिह अब बाहर निकलने के लिए अधीर हो चुके थे। इस दाग ने उनके बड़े भाई बिरजू को उन्हें नसीहत देने की खुली छूट दे दी थी और वह चाह कर भी उसका जवाब नहीं दे पा रहे थे।

यह तो उन्हें भी पता था की दाग का सीधा संबंध सुगना से था और शुरुआती दिनों में जिस तरह से उन्होंने सुगना के पुत्र मोह की लालसा को एक अस्त्र के रूप में प्रयोग कर सुगना की अद्भुत कामकला को विकसित किया था तथा जी भर कर उसके यौवन का आनंद लिया था बल्कि अब भी ले रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने उसके साथ कजरी को भी अपने इस वासना चक्र में शामिल कर लिया था।

सरयू सिंह विद्यानंद के कक्ष से बाहर आ गए उनका मूड खराब हो चुका था। बाहर सुगना और कजरी उनका इंतजार कर रहे थे सुनना चहकती हुई उनके पास आई और बोली..

"बाबू जी महात्मा जी का कह तले हा?@

"सुगना बेटा छोड़ ई सब कुल फालतू आदमी हवे लोग"

"अपना दाग के बारे में ना पूछनी हां?"

सरयू सिंह ने कोई उत्तर न दिया वह इस विषय पर और बातें नहीं करना चाह रहे थे। वह धीरे धीरे पांडाल के उसे हिस्से में आ गए जहां पर उनकी बैठकर लगा करती थी….

सुबह के कुछ घंटे सरयू सिंह ने अपनी सुगना के साथ बड़े अच्छे से व्यतीत किए थे परंतु विद्यानंद से हुई मुलाकात ने उनका दिमाग पूरी तरह खराब कर दिया था अब उन्हें उस अवसाद से निकलना था। तभी एक संदेश वाहक चौकीदार सरयू सिह को खोजता हुआ आया और बोला

"सरयू भैया बधाई हो आपकी पदोन्नति हो गई है"

सरयू सिंह की खुशी का ठिकाना ना रहा। इस पदोन्नति के लिए वह बेहद आशान्वित थे। मनोरमा मैडम ने उनके पदोन्नति के कागज पर दस्तखत कर बनारस महोत्सव के आयोजन में उनके योगदान का प्रतिफल दे दिया था। उन्होंने पूछा

" मनोरमा मैडम कहां है?"

"सेक्टर ऑफिस में बैठी हैं चाहे तो चल कर मिठाई खिला आइए"

एक पल में ही सरयू सिंह के सारे अवसाद दूर हो गए।

जैसे तेज हवा आकाश पर छा रहे छुटपुट बादलों को बहा ले जाती हैं उसी तरह पदोन्नति की खुशी ने सरयू सिंह को विद्यानंद की बातों से हुए अवसाद से बाहर निकाल लिया । वह भागकर मिठाई की दुकान पर गए और मिठाई का डिब्बा लिए एक बार फिर पंडाल में आए। कजरी और सुगना दोनों बेहद प्रसन्न हो गए थे। सरयू सिंह की पदोन्नति मे वो दोनों निश्चित ही विद्यानंद के चमत्कारी प्रभाव का अंश मान रहे थे वरना जिस पदोन्नति की आशा सरयू सिंह पिछले एक-दो वर्षों से कर रहे थे वह अचानक यू हूं कैसे घटित हो गया?

बहुत ही घटनाएं अपनी रफ्तार और समय से घटती है पर जब यह खबर आपको प्राप्त होती है उस समय आपकी मनो अवस्था और परिस्थितियां उसके लिए कर्ता की तलाश कर लेतीं है और निश्चित ही वह कर्ता दिव्य शक्तियों वाला कोई विशेष होता है चाहे वह भगवान हो या कोई महात्मा…

अपनी जानेमन सुगना को मिठाई खिलाते हुए सरयू आज आज अपनी खुशकिस्मती पर ऊपर वाले का शुक्रिया अदा कर रहे आज के दिन में दोहरी खुशी मिलने वाली थी।

सरयू सिंह लंबे लंबे कदम भरते हुए मनोरमा के अस्थाई ऑफिस जा पहुंचे मनोरमा उन्हें मिठाई का डिब्बा हाथ में लिए अपनी तरफ आता दे उनका मंतव्य समझ चुकी थी अपने होठों पर खूबसूरत मुस्कुराहट लिए उनके आने का इंतजार करने लगी

"मैडम जी आपने हमको इस लायक समझा आपका आभार"

एक आभावान और बलिष्ठ शरीर का अधेड़ मार्ग पूर्ण कृतज्ञ भाव से मनोरमा के सामने अपना आभार प्रकट कर रहा था मनोरमा के चेहरे पर प्रसन्नता थी उसने सरयू सिंह से कहा..

आपका यह प्रमोशन आपकी काबिलियत की वजह से है मेरा इसमें कोई योगदान नहीं है।

"मैडम यह आपका बड़प्पन है लीजिए मुंह मीठा कीजिये।"

सरयू सिंह के मन में मनोरमा के प्रति बेहद आदर और सम्मान का भाव आया। नारी के इस रूप से सरयू सिंह कतई रूबरू न थे। आज तक जितनी भी स्त्रियों से उनकी मुलाकात हुई थी वह हमेशा उन पर भारी पड़े थे भगवान द्वारा दिए हुए सुंदर और सुडौल शरीर में न जाने उन्होंने कितनी महिलाओं का दिल जीता था और कितनों के दिलों में हूक पैदा की थी। परंतु मनोरमा को सम्मान देने से वह खुद को ना रोक पाए।

सरयू सिंह के पूरे परिवार में हर्ष और उल्लास का माहौल बन गया पदमा कजरी सोनी मोनी सभी शरीर से उनकी पदोन्नति की खुशियां मनाने लगे शरीर सिंह ने भी ढेर सारी मिठाइयां और सभी के लिए कुछ न कुछ मनपसंद सामग्री खरीद कर सबका मन मोह लिया। सरयू सिंह आज परिवार में एक हीरो की तरह दिखाई पड़ रहे थे और सुगना उन पर न्योछावर होने को तैयार थी उसे अपने निर्णय पर कोई अफसोस ना था उसने आज अपने दूसरे छेद को अपने प्यारी बाबूजी को भेट देने की ठान ली थी।

शाम का इंतजार जितना सरयू सिंह को था उतना ही सुगना को भी...


अपराहन 3:00 बजे

बनारस महोत्सव के पास का पांच सितारा होटल

आज सेक्रेटरी साहब एक बार फिर अपनी रौ में थे। वह अपनी कल की गई गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाह रहे थे । उन्होंने आज मनोरमा को खुश करने की ठान ली थी।

आखिर पत्नी धर्म निभाना भी पति का कर्तव्य होता है और पत्नी की जांघों के बीच उस जादुई अंग को उत्तेजित कर पत्नी को चरम सुख देना भी उतना ही आवश्यक है जितना एक सेक्रेटरी के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वहन।

मनोरमा खाना खाने के पश्चात बिस्तर पर आराम कर रही थी और सेक्रेटरी साहब उसके खूबसूरत शरीर को निहारते हुए उसे अपने करीब खींचने का प्रयास कर रहे थे। मनोरमा की नींद खुल चुकी थी परंतु वह सेकेट्री साहब के उत्तेजक भाव को पढ़ने का प्रयास कर रही थी।

मनोरमा की नाइटी ऊपर उठती जा रही थी और पतले चादर के नीचे उसके कोमल अंग नग्न होते जा रहे थे। सेक्रेटरी साहब उसकी भरी-भरी चुचियों को चूमते चूमते सरकते हुए नीचे आते गए और मनोरमा की फूली हुई बुर पर उन्होंने अपने होंठ टिका दिए।

मनोरमा लगभग ऐंठ गई। उसने अपनी जांघें सिकोड लीं। विरोधाभास का आलम यह था कि दिमाग जांघों को खोलने का इशारा कर रहा था परंतु बुर की संवेदना जांघों को करीब ला रही थी। सेक्रेटरी साहब पूरी अधीरता से मनोरमा की बूर को चूसने लगे।

जांघों के बीच का वह त्रिकोण पुरुषों का सबसे पसंदीदा भाग होता है। अपने गालों को मनोरमा की जाँघों से सटाते हुए सेक्रेटरी साहब स्वयं अपनी उत्तेजना को चरम पर ले आये। और उनका छोटा सा लण्ड एक बार फिर तन कर खड़ा हो गया।

वह बार-बार उसे शांत कर अपनी उत्तेजना को कम करने का प्रयास करते परंतु मनोरमा की गुदांज और चिकनी कसी हुयी बूर उनके लण्ड में जबरदस्त जोश भर दे रही थी। मनोरमा तड़प रही थी और अपने पति के बालों को सहला रही थी उसका भग्नासा फुल कर लाल हो चुका था।

स्त्री उत्तेजना को पूरी तरह समझना बरमूडा ट्रायंगल के रहस्य को समझने जैसा है। सेक्रेटरी साहब ने इतनी पढ़ाई और अनुभव हासिल करने के बाद भी मनोरमा की उत्तेजना का आकलन करने की क्षमता को प्राप्त नहीं किया था उन्हें यह आभास हो गया की अब कुछ ही देर की चुदाई में मनोरमा स्खलित हो जाएगी। उन्होंने अपने होठों को बुर से हटाया और एक बार फिर अपने तने हुए छोटे से लण्ड को मनोरमा की बुर से सटाकर उसके ऊपर चढ़ गए।

मनोरमा ने भी अपनी जाँघे फैला कर अपने पति का स्वागत किया और उत्तेजना से कांपते हुए उनके धक्कों का आनंद लेने लगी। वह अपनी उंगलियों से अपनी भग्नासा को छूने का प्रयास करती परंतु यह इतना आसान न था। सकेट्री साहब का मोटा पेट मनोरमा की उंगलियों को उसकी भग्नासा तक पहुंचने से रोक रहा था।

सेक्रेटरी साहब अधीर हो रहे थे मनोरमा की फूली हुई और की चिपचिपी हुई बुर में अपना लण्ड डालकर वह उसे गचागच चोद रहे थे और उसकी फूली हुई चुचियों को होठों से चूसकर उसे चरम सुख देने का प्रयास कर रहे थे।

मनोरमा जैसी मदमस्त युवती की चुचियों को चूस कर जितना वह उसे उत्तेजित करने का प्रयास कर रहे थे उससे ज्यादा उत्तेजना अपने मन में लेकर वह मनोरमा को चोद रहे थे लण्ड और बुर कि इस मधुर मिलन में अंततः सेक्रेटरी साहब अपनी उत्तेजना पर एक बार फिर काबू नहीं रख पाए और उनके लण्ड ने मनोरमा की बुर पर एक बार फिर उल्टियां कर दी।

मनोरमा तड़प कर रह गई वह बेहद खुश थी। आज वह अपने चरम सुख के ठीक करीब पहुंच चुकी थी परंतु सेक्रेटरी साहब स्खलन के ठीक पहले निढाल पड़ गए थे। मनोरमा को यदि उस चर्म दंड का स्पर्श कुछ पलों के लिए और प्राप्त होता तो वह आज जी भर कर झड़ती और अपने पति से संसर्ग का आनंद समेटे हुए अगले कई महीनों के लिए इस सुखद क्षण को अपने मन में संजोए अपने पति धर्म को निभाने के लिए तैयार रहती।

परंतु मनोरमा की उत्तेजना एक बार फिर अपने अंजाम तक न पहुंच पाई घड़ी की सुईओ ने एक बार फिर टन टन... टन कर 5:00 बजने का इशारा किया। मनोरमा को याद आया कि आज उसका ड्राइवर नहीं आएगा उसने अपने पति से कहा..

"मुझे बनारस महोत्सव तक छुड़वा दीजिए मेरा ड्राइवर आज नहीं आएगा"

सेक्रेटरी साहब मनोरमा से नजरे मिला पाने की स्थिति में नहीं थे। वह इस प्रेम के खेल में लगातार दूसरी बार पराजित हुए थे। उन्होंने मनोरमा के छोटे से अनुरोध को सहर्ष स्वीकार कर लिया। समय की कमी के कारण मनोरमा ने आज स्नान नहीं किया अपनी जांघो और बुर पर गिरे वीर्य को उसने सेकेट्री साहब की बनियाइन से पोछा। समयाभाव के कारण स्नान संभव न था। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया कि वह मीटिंग के बाद बनारस महोत्सव में अपने कमरे में जाकर स्नान कर लेगी।

मनोरमा फटाफट तैयार हुई और अपने पर्स में एक पतली सी टॉवल डालकर कमरे से बाहर आ गई और सीढ़ियां उतरती हुई होटल के रिसेप्शन की तरफ बढ़ने लगी सेक्रेटरी साहब का ड्राइवर अपनी मेम साहब का इंतजार कर रहा था।

उधर सरयू सिंह और सुगना सूर्यास्त की प्रतीक्षा में थे सरयू सिंह मनोरमा के कमरे की चाबी लेकर उसकी साफ सफाई कर आए थे और सुगना की पसंद के कई फूल रख आए थे।

मनोरमा के इस कमरे में आज सुगना और सरयू सिंह के अरमान पूरे होने वाले थे।

सुगना अपने पुत्र के लिए उसे मुक्ति दिलाने वाली पुत्री की लालसा में गर्भवती होना चाहती थी और सरयू सिंह इच्छा का मान भी रखना चाहती थी।

इसका उपाय न तो सुगना को सूझ रहा और न नियति को….


शेष अगले भाग में।
बहुत मनमोहक और अद्वितीय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
स्वामी विद्यानंद ही घर छोड कर जा चुका बिरजू ही हैं इस बात से सरयूसिंग और कजरी की मुलाकात से परदा हट गया
वो बात अलग हैं की स्वामी विद्यानंद मोहमाया से परे हो गये
सरयूसिंग के माथे का दाग देखकर स्वामी विद्यानंद समझ गये की ये पाप का दाग हैं और पाप से दूर रहने की नसीहत देते है
सरयूसिंग आज मिली पदोन्नती का जश्न सुगना का पिछे का छेद खोलकर मना पायेगे या मनोरमा मैडम वहा पहूच जाती है तो क्या प्यासी मनोरमा मैडम भी शामिल होती हैं देखते हैं आगे
बडा धमाका होना तय हैं या नही
 
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