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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Rekha rani

Well-Known Member
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कहानी मस्त होती जा रही है सोनू और सुगना का मिलन कब कहा कैसे होगा उसका ही प्रतीक्षा है, लाली अपनी पूरी कोसिस कर रही है और नियति भी, और वहाँ आश्रम में विद्यानन्द भविषय की क्या तैयारी कर रहा है वो भी मन मे सवाल खड़े कररहा है
 

Lovely Anand

Love is life
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महोदय, आपका लेखन कौशल उत्कृष्ट है और हम इसका भरपूर आनंद लेते हैं, आपकी ओर से एक और अपडेट जो यौन उथल-पुथल से भरा है
धन्यवाद...
Mst update waiting for more
Dhanyvad
बहुत ही रोचक और मजेदार अपडेट
धन्यवाद
कहानी मस्त होती जा रही है सोनू और सुगना का मिलन कब कहा कैसे होगा उसका ही प्रतीक्षा है, लाली अपनी पूरी कोसिस कर रही है और नियति भी, और वहाँ आश्रम में विद्यानन्द भविषय की क्या तैयारी कर रहा है वो भी मन मे सवाल खड़े कररहा है
विद्यानंद का आश्रम धमाल करेगा...
Bahut hi sundar rachna hai
Masala super updated on
Thanks..

SCORE 5/20
 

Tiger 786

Well-Known Member
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भाग 78

लाली और सुगना दोनों अपने-अपने घागरे को अपनी कमर तक उठाए धान रोप रही थी नितंबों के बीच से उनकी बुर की फांके बालों के बादल काले बादल को चीर कर अपने भाई को दर्शन देने को बेताब थीं।

सोनू से और बर्दाश्त ना हुआ उसने ने हाथ आगे किए और और सुंदरी की कमर को पकड़ कर अपने लंड को उस गुफा के घर में प्रवेश कराने की कोशिश करने लगा बुर पनियायी हुई थी परंतु उसमे प्रवेश इतना आसान न था…सोनू प्रतिरोध का सामना कर रहा था..

चटाक…. गाल पर तमाचा पड़ने की आवाज स्पष्ट थी…


अब आगे..

सोनू अचानक ही अपने सपने से बाहर आ गया अकस्मात पड़े सुगना के इस तमाचे ने उसकी नींद उड़ा दी। वह अचकचा कर उठ कर बैठ गया। पूरी तरह जागृत होने के पश्चात उसके होठों पर मुस्कुराहट आ गई। यह दुर्घटना एक स्वप्न थी यह जानकर वह मंद मंद मुस्कुरा रहा था।

वह एक बार फिर बिस्तर पर लेट गया और अपने अधूरे सपने को आगे देखने का प्रयास करने लगा परंतु अब वह संभव नहीं था…….. पर एक बात तय थी सोनू बदल रहा था…

इधर सोनू की आंखों से नींद गायब थी और उधर बनारस में सुगना की आंखों से । आज जब से सोनी लखनऊ के लिए निकली थी तब से बार-बार घर में सोनू का ही जिक्र हो रहा था। लाली और सुगना बार-बार सोनू के बारे में बातें कर रहे थे।

यह अजीब इत्तेफाक था सोनू दोनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था दोनों का प्यार अलग था पर सुगना और सोनू का भाई बहन का प्यार अब स्त्री पुरुष के बीच होने वाले प्यार से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा था।

लाली द्वारा कही गई बातें अब भी सुगना के जेहन में गूंज रही थीं।

दरअसल बच्चों के सो जाने के बाद दोनों सहेलियां अकेली हो गई थी। सोनू के जाने के बाद लाली वैसे भी अकेली थी और आज सोनी के लखनऊ जाने के बाद सुगना भी अकेलापन महसूस कर रही थी। उसने लाली को अपने पास ही बुला लिया …दोनों घरों के बीच दीवार न होने का यही सबसे बड़ा फायदा था। लाली और सुगना एक दूसरे के घर में बेबाकी से आ जाया करती थी बिना किसी औपचारिकता के।

लाली अपने बच्चों को सुला कर सुगना के पास आ गई..

*का बात बा मन नइखे लागत का?"

"सोनी के जाये के बाद सच में खालीपन लागता"

"अरे वाह तोरा सिर्फ सोनी के चिंता बा सोनू के गईला से तोरा जैसे कोनो फर्क नइखे"

"हमरा का पड़ी तोरा ज्यादा बुझात होई"

सुगना ने यह बात मुस्कुराते हुए कही। लाली उसका इशारा समझ चुकी थी उसने भी मुस्कुराते ही कहा..

"सोनुआ रहित त तोरो सेतीहा में सिनेमा देखे के मिल जाईत…"

"का कहा तारे ? कौन सिनेमा?" सुगना सचमुच लाली की बातों को नहीं समझ पाई थी..उसका प्रश्न वाजिब था..


लाली भी सुगना को शर्मसार नहीं करना चाहती थी उसने बात बदलने की कोशिश की

" चल छोड़ जाए दे "

"बताओ ना…. बोल ना का बोला तले हा" लाली के उत्तर न देने पर सुगना ने उसके उसे कंधे से हिलाते हुए कहा…

"ओ दिन जब सोनूआ जात रहे ते कमरा में काहे झांकत रहले?"

आखिरकार जिस बात पर पर्दा कई दिनों से पड़ा हुआ था उसे लाली ने उठा दिया। सुगना निरुत्तर हो गई। सुगना ने नजर चुराते हुए कहा


"जाय दे छोड़ ऊ कुल बात"

"ना ना अब तो बतावही के परी"

सुगना का चेहरा शर्म से लाल हो चुका था और नजरें झुक गई थी वह कुछ बोल पाने की स्थिति में न थी

"अच्छा ई बताओ कि केकरा के देखत रहले हमरा के की सोनुआ के?"

"पागल हो गईल बाड़े का? सोनुआ हमर भाई हा हम तो देखत रहनी की ते सोनुआ के कतना बिगाड़ देले बाड़े.."

"आंख मिला कर ई बात बोल नजर काहे छुपवले बाड़े"

नजर मिलाकर झूठ बोलना सुगना की फितरत में न था। उसने अपनी नजरें ना उठाई.

"झूठ बोला तारे नू, पूरा मर्द बन गइल बा नू....हम कहत ना रहनी की सोनुआ के पक्का मर्द बना के छोड़ब ओकर मेहरारू हमर नाम जपी "

"ठीक बा ठीक बा साल भर और मजा ले ले ओकरा बाद हम ओकर ब्याह कर देब.."

सोनू की शादी की बात सुनकर लाली थोड़ा दुखी हो गई … उसे यह तो पता था कि आने वाले समय में सोनू का विवाह होगा पर इतनी जल्दी? इस बात की कल्पना लाली ने ना की थी।

"अरे अभी ओकर उम्र ही कतना बा तनी नौकरी चाकरी में सेट हो जाए तब करिए काहे जल्दीआईल बाड़े?"

"लागा ता तोर मन भरत नईखे…" अब बारी लाली की थी वो शरमा गई और उसने बात बदलते हुए कहा


"अच्छा ई बताऊ यदि सोनू तोरा के देख लिहित तब?"

सुनना ने लाली के प्रश्न पूछने के अंदाज से उसने यह अनुमान लगा लिया कि लाली यह बात नहीं जानती थी कि सुगना और सोनू की नजरें आपस में मिल चुकी थीं उसने लाली को संतुष्ट करते हुए

"अरे एक झलक ही तो देखले रहनी ऊ कहा से देखित ऊ तोरा जांघों के बीच पुआ से रस पीयत रहे … सच सोनूवा जरूरत से पहले बड़ हो गईल बा …"

लाली के दिमाग में शरारत सूझी

" खाली सोनू ने के देखले हा की ओकर समान के भी?" लाली ने जो पूछा था सुगना उसे भली-भांति समझ चुकी थी

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई दोनों युवा स्त्रियां दूसरे की अंतरंग थी…एक दूसरे का मर्म भलीभांति समझती थी …

"जब देख लेले बाड़े तो लजात काहे बाड़े" लाली ने फिर छेड़ा।


सुगना ने कोई उत्तर न दिया उसके लब कुछ कहने को फड़फड़ा रहे थे परंतु उसकी अंतरात्मा उसे रोक रही थी जितनी आसानी से लाली कोई बात कह देती थी उतना सुगना के लिए आसान न था। उसका व्यक्तित्व उसे ओछी बात कहने से सदैव रोकता।

" आखिर भाई केकर ह?_सुगना ने समुचित उत्तर ढूंढ लिया था

" काश सोनुआ तोर आपन भाई ना होखित.."

" काहे …काहे …अइसन काहे बोलत बाड़े?"

"ई बात तेहि सोच..हमारा नींद आवता हम जा तानी सूते"


लाली सुगना के कमरे से बाहर जा रही थी और सुगना अपने दिल की बढ़ी हुई धड़कनों पर नियंत्रण करने का प्रयास कर रही थी… लाली के जाते ही सुनना बिस्तर पर लेट गईं। और एक बार फिर उसी प्रकार छत पर देखने लगे जैसा लखनऊ में बिस्तर पर लेटा हुआ सोनू देख रहा था। फर्क सिर्फ इतना था की सोनू ने अपनी कल्पना की उड़ान कुछ ज्यादा थी जबकि सुगना उस बारे में सोचना भी नहीं चाहती थी। पर परिस्थितियां और नियति ने सुगना को अपनी साजिश का हिस्सा बना लिया था क्या सुगना …सोनू के साथ….

सभ्य और आकर्षक व्यक्तिव की सुगना को इस वासना के दलदल में घसीटते हुए नियत भी सोच रही थी परंतु जो होना था शायद नियति के बस में भी नहीं था…

इसे संयोग कहें या टेलीपैथी सुगना ने भी अपने स्वप्न में वही दृश्य दखे जो कमोबेश सोनू न देखें थे और जैसे ही सोनू ने उसे पकड़ने की कोशिश की सुगना का हाथउठ गया….. और उस चटाक की गूंज से सुगना की भी नींद भी खुल चुकी थी। बिस्तर पर बड़े भाई बहन मन में एक अजब सी हलचल लिए हुए पंखे को ताक रहे थे।

लाली ने उस बात का जिक्र कर दिया था जिसे सुगना महसूस तो करती थी परंतु अपने होठों पर लाना नहीं चाहती थी उसके दिमाग में लाली के शब्द मंदिर के घंटों की तरह बज रहे थे।

जाने वह कौन सी मनहूस घड़ी थी जब उसने लाली को अपने पास बुलाया था..

सुगना की रात बेहद कशमकश में गुजरी वह बार-बार सोनू के बारे में सोचती रही। रात में उसकी पलकें तो बंद हुई पर दिमाग में तरह-तरह के ख्याल घूमते रहे। कुछ स्वप्न रूप में कुछ अनजान और अस्पष्ट रूप में । कभी उसे सपने में सरयू सिंह दिखाई पड़ते कभी उनके साथ बिताए गए अंतरंग पल ।

कभी उसके पति रतन द्वारा बिना किसी प्रेम के किया गया योनि मर्दन .. न जाने क्या क्या कभी कभी उसे अपने सपने में अजीब सी हसरत लिए लाली का पति स्वर्गीय राजेश दिखाई पड़ता…

अचानक सुगना को अपनी तरफ एक मासूम सा युवक आता हुआ प्रतीत हुआ…अपनी बाहें खोल दी और वह युवक सुगना के आलिंगन में आ गया सुगना उसके माथे को सहला रही थी और उस युवक के सर को अपने सीने से सटाए हुए थी अचानक सुगना ने महसूस किया की उस युवक के हाथ उसके नितंबों पर घूम रहे हैं स्पर्श की भाषा सुगना अच्छी तरह समझती थी उसने उस अनजान युवक को धकेल कर दूर कर दिया वह युवक सुगना के पैरों में गिर पड़ा और हाथ जोड़ते हुए बोला

"मां मुझे मुक्ति दिला दो….."

अचानक सुगना ने महसूस किया उसका शरीर भरा हुआ था। हाथ पैर उम्र के अनुसार फूल चुके थे। सुगना अपने हाथ पैरों को नहीं पहचान पा रही थी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह एक अधेड़ महिला की तरह हो चुकी थी। सुगना समझ चुकी थी कि वह किशोर युवक कोई और नहीं उसका अपना पुत्र सूरज था जो विद्यानंद द्वारा बताए गए शॉप से अपनी मुक्ति का मार्ग ढूंढ रहा था। क्या सुगना अपने पुत्र को शाप से मुक्त करने के लिए उसके जन्म मार्ग को स्वयं उसके ही वीर्य द्वारा अपवित्र करने देगी..?

यह प्रश्न जितना हकीकत में कठिन था उतना स्वप्न में भी। सुगना इस प्रश्न का उत्तर न तो जागृत अवस्था में दे सकती थी न स्वप्न में । अलग बात थी कि वह अपने पुत्र प्रेम के लिए अंततः कुछ भी करने को तैयार थी।

इस बेचैनी ने सुगना की स्वप्न को तोड़ दिया और वह अचकचा कर उठ कर बैठ गई । हे भगवान यह आज क्या हो रहा है। सुगना ने उठकर बाहर खिड़की से देखा रात अभी भी बनारस शहर को अपने आगोश में लिये हए थी। घड़ी की तरफ निगाह जाते ही सुगना को तसल्ली हुई कुछ ही देर में सवेरा होने वाला था।

सुगना ने और सोने का प्रयास न किया। आज अपने स्वप्न में उसने जो कुछ भी देखा था उससे उसका मन व्यथित हो चला था।


उधर लाली ने उसके दिमाग में पहले ही हलचल मचा दी थी और आज इस अंतिम स्वप्न में उसे हिला कर रख दिया था। सुगना ने बिस्तर पर सो रही छोटी मधु और सूरज को देखा और मन ही मन ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया जिसमें उसे इस पाप से बचाने के लिए मधु को भेज दिया था। सुगना दृढ़ निश्चय कर चुकी थी कि वह समय आने पर एक बार के लिए ही सही मधु और सूरज का मिलन अवश्य कराएगी तथा सूरज की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगी ….

लाली और सुगना की मुलाकात अगली सुबह कई बार हुई परंतु न सुगना ने लाली को छेड़ा और ना लाली ने सुगना को। पर लाली द्वारा कही गई बातें बार-बार सुगना के जहन में घूम रही थी। क्या सोनू सच में उसके बारे में ऐसा सोचता होगा? उसे याद आ रहा था कि कैसे नजरें मिलने के बाद भी सोनू लाली को बेहद तेजी से चोदने लगा था। अपनी बड़ी बहन के प्रति इस प्रकार की उत्तेजना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है.. सुगना के प्रश्नों का उत्तर देने वाला कोई न था परंतु सुगना को अपनी जांघों के बीच चिपचिपा पन का एहसास हुआ और शायद उसे उसका उत्तर मिल गया।

दोनों अंतरंग सहेलियां ज्यादा देर तक एक दूसरे से दूर ना रह पाईं । दोपहर का एकांत उन्हें फिर करीब खींच लाया और सुगना और लाली के बीच उपजा मीठा तनाव समाप्त हो गया परंतु उसने सुगना के श्वेत धवल विचारों में कामवासना की लालिमा छोड़ दी थी..


एक-दो दिन रह कर और सोनी और विकास वापस बनारस आ गए थे। पिछले सात आठ दिनों में सोनी और विकास इतने करीब आ गए थे जैसे नवविवाहित पति पत्नी। बातचीत का अंदाज बदल चुका था। निश्चित ही वह सात आठ दिनों से हो रही सोनी की घनघोर चूदाई का परिणाम था। जब अंतरंगता बढ़ जाती है तो बातचीत का अंदाज भी उसी अनुपात में बदल जाता है। नई नवेली वधू में लाज शर्म और संभोग उपरांत शरीर में आई आभा स्पष्ट दिखाई पड़ती है। पारखी लोग इस बात का अंदाजा भली-भांति लगा सकते हैं।


सोनी के शरीर में आई चमक भी इस बात को चीख चीख कर कह रही थी कि सोनी बदल चुकी है उसके चेहरे और शरीर में एक अलग किस्म की कांति थी।

सरयू सिंह अपनी भाभी कजरी को लेकर बनारस पधारे हुए थे. सोनी चाय लेकर आ रही थी सरयू सिंह सोनी के व्यवहार और शरीर में आए बदलाव को महसूस कर रहे थे। अचानक वह एक किशोरी से एक युवती की भांति न सिर्फ दिखाई पड़ रही थी अपितु बर्ताव भी कर रही थी…

चाय देते समय अचानक ही सरयू सिंह का ध्यान सोनी की सीने में छुपी घाटी पर चला गया जो डीप गले के कुर्ते से झांक रही थी। सरयू सिंह की निगाहें दूर और दूर तक चली गई ।

दुधिया घाटी के बीच छुपे अंधेरे ने उनकी निगाहों का मार्ग अवरुद्ध किया और सोनी द्वारा दिए चाय के गर्म प्याले के स्पर्श ने उन्हें वापस हकीकत में ढकेल दिया पर इन चंद पलों ने उनके काले मूसल में एक सिहरन छोड़ थी।

वह कुर्सी पर स्वयं को व्यवस्थित करने लगे जब एक बार नजरों ने वह दृष्टि सुख ले लिया वह बार-बार उसी खूबसूरत घाटी में घूमने की कोशिश करने लगी। परंतु सरयू सिंह मर्यादित पुरुष थे उन्होंने अपनी पलकें बंद कर लीं और सर को ऊंचा किया । कजरी ने उन्हें देखा और बोली

"का भईल कोनो दिक्कत बा का?"

वो क्या जवाब देते। सरयू सिंह को कोई उत्तर न सूझ रहा था उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा…

" मिजाज थाक गईल बा.." सरयू सिंह ने बात टालने की कोशिश की।

जैसे ही सोनी चाय लेकर कजरी की तरफ बढ़ी सोनी के कमर के कटाव सरयू सिंह की निगाहों में आ गए पतले कुर्ते के भीतर से भी कमर का आकार स्पष्ट दिखाई दे रहा था. सरयू सिंह को कमर का वह कटाव बेहद पसंद आता था।

सोनी के शरीर में आया यह बदलाव अलग था जो नवविवाहिता ओं में में सामान्यतः देखा जा सकता सरयू सिंह इस कला के पारखी थे….

उन्होंने बेहद संजीदगी से कहा

"लागा ता अब सोनी के ब्याह कर देवें के चाही आजकल जमाना ठीक नईखे"

कजरी ने भी शायद वही महसूस किया था जो शरीर सिंह ने। उस ने मुस्कुराते हुए कहा

"कवनो बढ़िया लाइका देखले रखीं ट्रेनिंग पूरा होते ही ब्याह कर दीहल जाओ"

सरयू सिंह और कजरी चाय की ट्रे लेकर वापस जाती हुई सोनी को देख रहे थे। सच में कुछ ही दिनों की गचागच चूदाई का असर सोनी के पिछवाड़े पर पड़ चुका था। कमर का कटाव और नितंबों का आकार अचानक ही मर्दों का ध्यान रहे थे। सोनी के चेहरे पर नारी सुलभ लज्जा स्पष्ट दिखाई पड़ रही सोनी जो अब विवाहिता थी अपने पूरे शबाब पर थी। सोनी लहराती हुई वापस चली गई परंतु सरयू के शांत पड़ चुके वासना के अंधेरे कुएं में जुगनू की तरह रोशनी कर गई..

नियति स्वयं उधेड़बुन में थी…वासना के विविध रूप थे.. सरयू सिंह की निगाहों में जो आज देखा था उसने नियति को ताना-बाना बुनने पर मजबूर कर दिया…

तभी सुगना चहकती हुई कमरे में आई सरयू सिंह एक आदर्श पिता की भांति व्यवहार करने…

सूरज उछल कर की आवाज में " बाबा.. बाबा ..करते पिता की गोद में आ गया" …और उनकी मूछों से खेलने लगा। सरयूयो सिंह बार-बार छोटे सूरज की गालों पर चुम्बन लेने लगे। सुगना का दृश्य देख रही थी और उनके चुंबनों को अपने गालों पर महसूस कर रही थी। शरीर में एक अजब सी सिहरन हुई और वह अपना ध्यान सरयू सिंह से हटाकर …कजरी से बातें करने लगी सुगना और सरयू सिंह ने जो छोड़ आया था उसे दोहरा पाना अब लगभग असंभव था।……

"सोनू कब आई?"

सरयू सिंह ने सुगना से पूछा

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…


सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…

शेष अगले भाग में..
Bohot badiya update
 

Tiger 786

Well-Known Member
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भाग 79

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…

सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…


अब आगे….

आइए कहानी के और भी पात्रों का हालचाल ले लेते हैं आखिर उनका भी सृजन इस कथा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हुआ है। सुगना को छोड़कर जाने के पश्चात रतन बदहवास सा हो गया था। उसे यह बात कतई समझ नहीं आ रही थी कि आखिर उसके पुरुषत्व को क्या हो गया था,,,? सुगना उसके जीवन में आई दूसरी युवती थी इससे पहले तो उसे अपने पुरुषत्व पर नाज हुआ करता था..

रतन के पुरुषत्व का आनंद बबीता ने भी बखूबी उठाया था.. रतन को बबीता के साथ बिताए गए अपने कामुक दिन याद याद आते थे जब बबीता उसके मजबूत और खूंटे जैसे लंड पर उछलती हुई एक नहीं दो दो बार स्खलित होती और अंततः याचना करते हुए बोलती

"अब आप भी कर लीजिए मैं थक गई"

फिर रतन उसे चूमते, चाटते …..और प्यार से चोदते हुए स्खलित हो जाता.. । इतनी संतुष्टि के बावजूद पैसों की हवस ने बबीता को उसके ही मैनेजर की बाहों में जाने पर मजबूर कर दिया था । बबीता के इस व्यभिचार ने रतन और बबीता के बीच कभी न मिटने वाली दूरियां पैदा कर दी थी।

अपने पुरुषत्व पर नाज करने वाला रतन सुगना को संतुष्ट क्यों नहीं कर पाया? यह उसकी समझ के बाहर था। सुगना को स्खलित करने के लिए उसने कामकला के सारे अस्त्र छोड़ दिए परंतु उस छोटी और मखमली बुर से चरमोत्कर्ष का प्रेम रस स्खलित न करा पाया।

कई बार छोटे बच्चे तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयां देने के बाद भी प्रसन्न नहीं होते उसी प्रकार सुगना की करिश्माई बुर रतन की जी तोड़ मेहनत को नजरअंदाज कर न जाने क्यों रूसी फूली बैठी थी..

मनुष्य का पुरुषत्व उसका सबसे बड़ा अभिमान है रतन अपने इस अभिमान को टूटता हुआ देख रहा था। उसका मोह इस जीवन से भंग हो रहा था। वह कायर नहीं था परंतु सुगना का सामना करने की उसकी स्थिति न थी। रतन न जाने किस अनजानी साजिश का शिकार हो चुका था। सुगना का स्खलित न होना उसके लिए एक आश्चर्य का विषय था।

रतन सुगना से बेहद प्यार करता था और उस पूजा के दौरान उसने अपनी पत्नी सुगना को हर वह सुख देने की कोशिश की जो एक स्त्री एक पति या प्रेमी से उम्मीद करते है…अपितु उससे भी कहीं ज्यादा परंतु रतन को निराशा ही हाथ लगी।

कुछ महीनों की अथक मेहनत के बावजूद वह सुगना की बुर को स्खलित करने में नाकामयाब रहा और घोर निराशा का शिकार हो गया।

रतन ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर विद्यानंद के ही आश्रम की शरण में जाना चाहा।

बनारस महोत्सव के दौरान वह चाहकर भी विद्यानंद से नहीं मिल पाया था हालांकि तब चाहत में इतना दम न था जितना आज वह अकेला होने के बाद महसूस कर रहा था। अब उसका घर उजाड़ रहा था उसने आश्रम में जाकर रहने की ठान ली। सुगना जैसी आदर्श मां के हवाले अपनी पुत्री मिंकी को छोड़कर वह भटकते भटकते आखिर वह ऋषिकेश के क़रीब बने विद्यानंद के आश्रम में पहुंच गया।

विद्यानंद का आश्रम बेहद शानदार था। विद्यानंद का आश्रम जीवन मूल्यों तथा सुखद जीवन जीने की कला के मूल मंत्र पर निर्भर था यह पूजा पाठ आदि का कोई स्थान न था स्त्री और अपने-अपने समूह में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आनंद पूर्वक रहते।

बनारस महोत्सव में उनका पंडाल जन सामान्य के लिए सुलभ था और विद्यानंद के दर्शन भी उतनी ही आसानी से हो जाते थे। परंतु यहां उनके आश्रम में विद्यानंद के दर्शन तभी होते जब वह प्रवचन देने आते। बाकी समय वह आश्रम की व्यवस्था और आश्रम को उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर ले जाने में व्यस्त रहते हैं। आश्रम की भव्यता को बरकरार रखना निश्चित ही एक व्यवसायिक कार्य था और विद्यानंद उसके प्रमुख थे उनके जीवन में धन का कोई मूल्य हो ना हो परंतु उनकी महत्तावकांक्षा में कोई कमी न थी…

रतन उम्मीद लिए आश्रम की सेवा करने लगा और धीरे धीरे अपना परिचय बढ़ाता गया।

काश कि रतन को पता होता की विद्यानंद उसके पिता है पर न नियति ने उसे बताने की कोशिश की और नहीं उसके मन में कभी प्रश्न आया। उसे यह बात तो पता थी कि उसके पिता साधुओं की टोली के साथ भाग गए थे परंतु उस छोटे से गांव का एक भगोड़ा साधु आज विद्यानंद के रूप में शीर्ष कुर्सी पर विराजमान होगा यह उसकी कल्पना से परे था।

कालांतर में रतन की आश्रम में दी गई सेवा सफल होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु रतन जो इस आश्रम का उत्तराधिकारी बन सकता था अभी विद्यानंद के नए आश्रम में मुंशी बना निर्माण कार्य…की देखरेख का कार्य कर रहा था। नियति इस आश्रम के युवराज की यह स्थिति देखकर मुस्कुरा रही थी।

इस कहानी का एक और पात्र धीरे-धीरे विरक्त की ओर अग्रसर हो रहा था और वह की सोनी की बहन मोनी एक तरफ जहां सोनी अपने युवा शरीर का खुलकर आनंद ले रही थी वहीं दूसरी तरफ मोनी अपनी सुंदर काया को भूल अपना ध्यान धर्म विशेष की ओर लगाए हुए थी..

बनारस महोत्सव ने उसके मन में वैराग्य को एक बेहद आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर दिया था.. मोनी जब युवा महिलाओं को एक साथ नृत्य और जाप करते हुए देखती वह भाव विभोर हो जाती अपने इष्ट को याद करती हुई मन ही मन झूमने लगती….।

ऐसा नहीं था कि मोनी के बदन पर मनचलों की निगाह न पड़ती परंतु ढीले ढाले वस्त्रों की वजह से मोनी के उभार काफी हद तक छुप जाते और उसका सीधा साधा चेहरा तथा झुकी हुई निगाहें मनचलों के उत्साह को थोड़ा कम कर देते। वैसे भी मोनी घर से ज्यादा बाहर निकलती और अपने घरेलू कार्यों पर अपनी मां का हाथ बंटाती और अपने इष्ट की आराधना में व्यस्त रहती..

मोनी की मां पदमा बेहद प्यार से बोलती

"मेरी प्यारी बेटी की शादी में पुजारी से करूंगी दोनो का मन पूजा पाठ में मन लगेगा…"

मोनी कोई उत्तर नहीं देती और बात टाल जाती उसे विवाह और विवाह से मिलने वाले सुख से कोई सरोकार न था। यदि कोई व्यक्ति उसके साथ उसकी ही विचारधारा काम मिल जाता तो निश्चित ही वह उसे स्वीकार कर लेती…पर फिर भी उसे इस बात का ध्यान रखता कि पुरुषों की सबसे प्यारी चीज उसकी जांघों के बीच अपने चाहने वाले का इंतजार कर रही है.. मोनी जिस सुंदर मणि को अपनी जांघों के बीच छुपाए हुए घूम रही थी उसका इंतजार भी कोई कर रहा था …

रतन की पूर्व पत्नी बबीता अब भी उस होटल मैनेजर के साथ रहती थी। धन और ऐश्वर्य की लोलुपता ने उसे और व्यभिचारी बना दिया वह अब किसी भी सूरत में स्त्री कहलाने योग्य न थी…उसके कृत्य अब दिन पर दिन घृणित हो चले थे। बबीता की छोटी पुत्री चिंकी भी अपनी मां का चाल चलन देखती उसके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।

सोनू का दोस्त विकास भी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुका था अगले 1 वर्ष सोनी को उसकी यादों के सहारे ही गुजारना था सोनी मन ही मन घबराती कि क्या अमेरिका से आने के बाद विकास उसे उसी तरह अपना लेगा जैसा उसने वादा किया है या वह बदल जाएगा सोनी मन की मन अपने इष्ट देव से प्रार्थना करती और विकास का इंतजार दिन बीत रहे थे।

लखनऊ में सोनी को विकास के देखने के बाद जिस बड़प्पन का परिचय सोनू ने दिया था उसने सोनी का दिल जीत लिया था सोनी अपने बड़े भाई के बड़प्पन पर नतमस्तक हो गई थी सोनू भैया इतने बड़े दिलवाले होंगे सोनी ने यह कभी नहीं सोचा था। सोनू को देखने के बाद एक पल के लिए वह हक्की बक्की रह गई थी परंतु सोनू की अनुकूल प्रतिक्रिया देखकर वह सोनू के गले लग गई उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन पूर्णता वासना रहित और आत्मीयता का प्रतीक था सोनू का हृदय भी अपनी छोटी बहन के इस प्रेम को नजरअंदाज न कर पाया और सोनू ने सोनी के इस कदम को मन ही मन स्वीकार कर लिया था।

उधर सलेमपुर सरयू सिंह का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। सोनू ने पीसीएस परीक्षा परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उनके परिवार का नाम और भी रोशन कर दिया था। सरयू सिंह के माथे का दाग पूरी तरह विलुप्त हो चुका था निश्चित ही वह सुगना के साथ उनके नाजायज संबंधों ने जन्म दिया था जो एक पाप के प्रतीक के रूप में उनके माथे दिखाई पड़ता था। सरयू सिंह की उम्र इतनी भी नहीं हुई थी की उनका जादुई मुसल अपना अस्तित्व भुला बैठे। जैसे-जैसे उनकी आत्मग्लानि कम होती गई उनके लंड में हरकत शुरु होती गई।

सरयू सिंह की खूबसूरत यादों में अब सिर्फ एक ही शख्स बचा था और वह थी उनकी आदर्श मनोरमा मैडम न जाने वह कहां होंगी। बनारस महोत्सव में उनके ही कमरे में उनके साथ अंधेरे में किया गया वह संभोग सरयू सिंह को रह-रहकर याद आता और उनका लंड उछल कर मनोरमा मैडम को सलामी देने के लिए उठ खड़ा होता। सरयू सिंह अपने लंड को तेल लगाते और सहलाते जैसे उसे किसी अनजान प्रेम युद्ध के लिए तैयार करते ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार वह अपनी लाठी पर तेल लगाकर उसे आकस्मिक हमले से बचने के लिए तैयार रखते थे। सरयू सिंह मनोरमा मैडम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते परंतु मर्यादा में रहते हैं कई बार उन्हें अपने करीबी साथियों से यह प्रश्न सुनने को मिल जाता

" का सरयू भैया? कुछ चक्कर बा का? उनका के काहे याद करा तारा?"

उनके सभी साथियों और कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा था कि मनोरमा मैडम का सरयू सिंह और उनके परिवार के प्रति विशेष स्नेह था। जाने मनोरमा मैडम कहां होगी और कैसी होंगी…


कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था.. बच्चों के लिए कपड़े खरीदना आवश्यकत था और स्वयं के लिए भी …दोनों सहेलियां बाजार निकल पड़ी।

दुकान पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े देखकर सुगना और लाली दोनों का मन मचल उठा. दोनों ने एक साथ ही कहा

"कितना सुंदर कपड़ा बा" दोनों सहेलियां मुस्कुरा उठी नियति ने दोनों की पसंद को मिला दिया था… दोनों मुस्कुराने लगी दुकान की तरफ बढ़ चली…

"आइए दीदी क्या दिखाऊ?"

सुगना ने अपनी उंगलियां बाहर टंगे पुतले की तरफ कर दी.. जिस पर एक लखनवी कुर्ता टंगा हुआ था जिस पर खूबसूरत चिकनकारी की हुई थी..

दुकानदार में अपने बात हाथ से उस कपड़े को निकालने के लिए कहा और उस कुर्ते की तारीफ करने लगा ..

सुगना सुगना सामान्यतया साड़ी ही पहनती थी विशेष अवसरों पर लहंगा चोली पहने ना उसे पसंद था परंतु सलवार सूट पहनना उसे आधुनिकता का प्रतीक लगता था जो उसके व्यक्तित्व और स्वभाव से मेल खाता था परंतु जब जब सुगना एकांत में होती वह सोनी के सलवार सूट को पहनने की कोशिश करती परंतु सोनी का कुर्ता सुगना के गदराए बदन पर फिट न बैठता और सुगना चाह कर भी अपने कामुख बदन को सलवार सूट में न देख पाती।


"दीदी यह माल कल ही आया है खास लखनऊ से मंगाया है" आप जैसे सुंदर दीदी पर यह बहुत फबेगा। दुकानदार चालू था… उसने एक ही वाक्य में सुगना और लाली दोनों को प्रभावित कर लिया था..

दुकान का नौकर उस सूट की कई वैरायटी लेकर काउंटर पर फैला चुका सुगना और लाली बार-बार उन्हें छूते उनके कपड़ों की कोमलता महसूस करते और मन ही मन उस कपड़े में अपने खूबसूरत बदन को महसूस करते..

कपड़ा और डिजाइन एक बार में ही पसंद आ चुका था अब बारी थी पैसों की.

"कितना के वा सुगना के सुकुचाते हुए पूछा?"

"₹300 के दीदी"


"लाली ने आश्चर्य से कहां 300 बाप रे बाप इतना महंगा?"

दुकानदार को लाली का इस प्रकार चौकना पसंद ना आया उसने सुगना की तरफ देख कर कहा

₹दीदी यह लखनवी चिकनकारी है आप तो जानती ही होंगी? हाथ का काम है महंगा तो होगा ही? आप एक बार ले जाइए यदि जीजा जी ने पसंद न किया तो वापस पटक जाइएगा"

सुगना अपने आकर्षक त्वचा और खूबसूरत चेहरे तथा सुडोल जिस्म की वजह से एक सब सब सभ्रांत महिला लगती थी…जिस सुगना ने मनोरमा मैडम जैसी खूबसूरत एसडीएम को प्रभावित कर लिया था उसे देखकर दुकानदार का प्रभावित होना स्वभाविक था।

सुगना और लाली दोनों दुकानदार का इशारा समझ रही थी उन्हें पता था कि इन कपड़ों में लाली और सुगना बेहद सुंदर लगेंगी और शायद इसीलिए वह विश्वास जता रहा था कि कोई भी उसे वापस करने नहीं आएगा।

यह अलग बात थी कि घर पर उन्हें इन वस्त्रों में देखने वाला कोई न था। लाली का सोनू लखनऊ में था और सुगना उसका तो जीवन ही उजाड़ हो गया… सरयू सिंह सरयू जिसके साथ उसने अपनी जवानी के तीन चार वर्ष बिताए थे उन्होंने अचानक ही काम वासना से मुंह मोड़ लिया था और उसका पति रतन ……शायद सुगना रतन के लिए बनी ही न थी।


सुगना जैसी सुंदरी सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूखी थी और जिसका बदन प्यार पाते ही मक्खन की तरह पिघल जाता है वह अपने प्रेमी के शरीर से लिपट कर उसकी सॉरी उत्तेजना और वासना को आग को अपने बदन के कोमल स्पर्श और चुम्बनो से शांत करती करती और अंदर उठ रहे तूफान को केंद्रित कर उसके लिंग में भर देती और उसे अपनी अद्भुत योनि में स्थान देकर उसके तेज को बेहद आत्मियता से सहलाते हुए इस उत्तेजना से उत्पन्न वीर्य को बाहर खींच लाती।

रतन ने भी सुगना से प्यार ही तो किया था पर क्या यह प्यार अलग था …. क्या यह प्यार सरयू सिंह और सोनू के प्यार से अलग था…लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला..और कहा

"चल सोनू के फोन कर दीहल जाओ ….लखनऊ से खरीद के ले ले आई आतना पैसा काहे देवे के?"

सुगना को यह बात पसंद आई उसने महसूस किया था उसे पता था सोनू की स्त्रियों के कपड़े की पसंद बेहद अच्छी थी। वह लाली के लिए कुछ कपड़े पहले भी खरीद चुका था।

दोनों सहेलियां एकमत होकर दुकानदार से बोली

"अच्छा ठीक है इसको रखिए हम लोग और सामान लेकर आते हैं फिर इसे ले जाएंगे.."

दुकानदार समझ चुका था वह अब भी सुगना और लाली को समझने की कोशिश कर रहा था दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी थीं पर माथे का सिंदूर गायब था।

बाहर निकल कर पीसीओ बूथ से लाली ने सोनू के हॉस्टल में फोन लगा दिया..

प्रणाम दीदी …. सोनू की मधुर आवाज सुगना के कानों में पड़ी

" खुश रहो "

सुगना ने दिल से सोनू को आशीर्वाद दिया और पूछा "सोनी बढ़िया से पहुंच गईल नू"

"हां"

सोनू ने संक्षेप में जवाब दिया। सुगना ने सोनू के स्वास्थ्य और खानपान के बारे में पूछा पता नहीं क्यों उसे आज बात करने में वह बात करने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। और यही हाल सोनू का था। कुछ दिनों से सोनू और सुनना दोनों की सोच में जो बदलाव आया था वह बातचीत में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था दोनों की बातें ज्यादा औपचारिक हो रही थी वह भाई बहन की आत्मीयता न जाने कब कमजोर पड़ती जा रही थी।

जो भाई बहन पहले काफी देर बातें किया करते थे वो आज मुद्दों की तलाश में थे… ऐसा लग रहा था जैसे बातें खींच खींच कर की जा रही हो। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसने फोन लाली को पकड़ा दिया और बोली

"ले लाली भी बात करी" सुगना को अचानक महसूस हुआ जैसे उसने फोन सोनू की प्रेयसी को दे दिया वह थोड़ा दूर हट कर खड़ी हो गई ..

लाली और सोनू ने कुछ देर बातें की। सुगना उनकी बातें सुनती रही आज पहली मर्तबा सुगना सोनू और लाली की बातों को ध्यान लगाकर सुन रही थी। उसे सोनू की आवाज तो सुनाई न दे रही थी परंतु वह मन ही मन अंदाज लगा रही थी । अंत में लाली ने सोनू से कहा

"वहां से लखनवी चिकनकारी के शीफान के सूट लेले अईहा हमनी खातिर…_

" दीदी पहनी…? " सोनू ने लाली से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि क्या सुनना वह सूट पहनेगी उसे यह विश्वास न था।

"अरे राखी में तू गिफ्ट ले आईबा तब काहे ना पहनी"

लाली भी सुगना के साथ रहते-रहते वाकपटु हो चली थी।

"साइज त बताव"

" हमर त मलूमे बा हां बाकी दुसरका एक साइज .. कम"

सुगना को समझते देर न लगी कि लाली ने उसकी चुचियों की साइज सोनू को बता दिया है…

सोनू की बाछे खिल उठी। आज लाली ने उसे सुगना को खुश करने का एक अवसर दे दिया था।

कमरे में आकर वहीबिस्तर पर लेट कर एक बार फिर सुगना की कल्पना करने लगा वह इसे तरह-तरह के कपड़ों में देखता और मन ही मन प्रफुल्लित होता कभी-कभी वह सुगना को कपड़े बदलते हुए देखने की कल्पना करता और तड़प उठता…हवा के झोंकें से सुगना का घाघरा जैसे हवा में उड़ता और उसकी मखमली जांघों अनावृत हो जाती…..

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…


शेष अगले भाग में…
Rakhi pe jab sonu aayega to sughna or sonu ke bech kya hoga mazedaar rahega
Lazwaab update
 

Tiger 786

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भाग 79

"सोनुआ राखी में आई"...सुगना के संबोधन अभी भी वैसे ही थे…. पर सोनू और सुगना के बीच बहुत कुछ बदल रहा था।

सुगना अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाने की सोचने लगी.. पिछले कई दिनों से उसने घर का खाना नहीं खाया होगा और उसका पसंदीदा.. मालपुआ…

सुगना…रक्षाबंधन का और अपने भाई सोनू का बेसब्री से इंतजार करने लगी…सुगना को क्या पता था कि अब उसका छोटा भाई सोनू किसी और मालपुए की फिराक में था जो शायद मीठा ना होते हुए भी बेहद आकर्षक गुलगुला और ढेरों खुशियां समेटे हुए था…. और वह भी अपनी बड़ी बहन का…जिसे उसने साथ-साथ बड़ा होते हुए देखा था…


अब आगे….

आइए कहानी के और भी पात्रों का हालचाल ले लेते हैं आखिर उनका भी सृजन इस कथा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही हुआ है। सुगना को छोड़कर जाने के पश्चात रतन बदहवास सा हो गया था। उसे यह बात कतई समझ नहीं आ रही थी कि आखिर उसके पुरुषत्व को क्या हो गया था,,,? सुगना उसके जीवन में आई दूसरी युवती थी इससे पहले तो उसे अपने पुरुषत्व पर नाज हुआ करता था..

रतन के पुरुषत्व का आनंद बबीता ने भी बखूबी उठाया था.. रतन को बबीता के साथ बिताए गए अपने कामुक दिन याद याद आते थे जब बबीता उसके मजबूत और खूंटे जैसे लंड पर उछलती हुई एक नहीं दो दो बार स्खलित होती और अंततः याचना करते हुए बोलती

"अब आप भी कर लीजिए मैं थक गई"

फिर रतन उसे चूमते, चाटते …..और प्यार से चोदते हुए स्खलित हो जाता.. । इतनी संतुष्टि के बावजूद पैसों की हवस ने बबीता को उसके ही मैनेजर की बाहों में जाने पर मजबूर कर दिया था । बबीता के इस व्यभिचार ने रतन और बबीता के बीच कभी न मिटने वाली दूरियां पैदा कर दी थी।

अपने पुरुषत्व पर नाज करने वाला रतन सुगना को संतुष्ट क्यों नहीं कर पाया? यह उसकी समझ के बाहर था। सुगना को स्खलित करने के लिए उसने कामकला के सारे अस्त्र छोड़ दिए परंतु उस छोटी और मखमली बुर से चरमोत्कर्ष का प्रेम रस स्खलित न करा पाया।

कई बार छोटे बच्चे तरह-तरह के खिलौने और मिठाइयां देने के बाद भी प्रसन्न नहीं होते उसी प्रकार सुगना की करिश्माई बुर रतन की जी तोड़ मेहनत को नजरअंदाज कर न जाने क्यों रूसी फूली बैठी थी..

मनुष्य का पुरुषत्व उसका सबसे बड़ा अभिमान है रतन अपने इस अभिमान को टूटता हुआ देख रहा था। उसका मोह इस जीवन से भंग हो रहा था। वह कायर नहीं था परंतु सुगना का सामना करने की उसकी स्थिति न थी। रतन न जाने किस अनजानी साजिश का शिकार हो चुका था। सुगना का स्खलित न होना उसके लिए एक आश्चर्य का विषय था।

रतन सुगना से बेहद प्यार करता था और उस पूजा के दौरान उसने अपनी पत्नी सुगना को हर वह सुख देने की कोशिश की जो एक स्त्री एक पति या प्रेमी से उम्मीद करते है…अपितु उससे भी कहीं ज्यादा परंतु रतन को निराशा ही हाथ लगी।

कुछ महीनों की अथक मेहनत के बावजूद वह सुगना की बुर को स्खलित करने में नाकामयाब रहा और घोर निराशा का शिकार हो गया।

रतन ने गृहस्थ जीवन से संन्यास लेकर विद्यानंद के ही आश्रम की शरण में जाना चाहा।

बनारस महोत्सव के दौरान वह चाहकर भी विद्यानंद से नहीं मिल पाया था हालांकि तब चाहत में इतना दम न था जितना आज वह अकेला होने के बाद महसूस कर रहा था। अब उसका घर उजाड़ रहा था उसने आश्रम में जाकर रहने की ठान ली। सुगना जैसी आदर्श मां के हवाले अपनी पुत्री मिंकी को छोड़कर वह भटकते भटकते आखिर वह ऋषिकेश के क़रीब बने विद्यानंद के आश्रम में पहुंच गया।

विद्यानंद का आश्रम बेहद शानदार था। विद्यानंद का आश्रम जीवन मूल्यों तथा सुखद जीवन जीने की कला के मूल मंत्र पर निर्भर था यह पूजा पाठ आदि का कोई स्थान न था स्त्री और अपने-अपने समूह में एक दूसरे का ख्याल रखते हुए आनंद पूर्वक रहते।

बनारस महोत्सव में उनका पंडाल जन सामान्य के लिए सुलभ था और विद्यानंद के दर्शन भी उतनी ही आसानी से हो जाते थे। परंतु यहां उनके आश्रम में विद्यानंद के दर्शन तभी होते जब वह प्रवचन देने आते। बाकी समय वह आश्रम की व्यवस्था और आश्रम को उत्तरोत्तर प्रगति के मार्ग पर ले जाने में व्यस्त रहते हैं। आश्रम की भव्यता को बरकरार रखना निश्चित ही एक व्यवसायिक कार्य था और विद्यानंद उसके प्रमुख थे उनके जीवन में धन का कोई मूल्य हो ना हो परंतु उनकी महत्तावकांक्षा में कोई कमी न थी…

रतन उम्मीद लिए आश्रम की सेवा करने लगा और धीरे धीरे अपना परिचय बढ़ाता गया।

काश कि रतन को पता होता की विद्यानंद उसके पिता है पर न नियति ने उसे बताने की कोशिश की और नहीं उसके मन में कभी प्रश्न आया। उसे यह बात तो पता थी कि उसके पिता साधुओं की टोली के साथ भाग गए थे परंतु उस छोटे से गांव का एक भगोड़ा साधु आज विद्यानंद के रूप में शीर्ष कुर्सी पर विराजमान होगा यह उसकी कल्पना से परे था।

कालांतर में रतन की आश्रम में दी गई सेवा सफल होगी या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा परंतु रतन जो इस आश्रम का उत्तराधिकारी बन सकता था अभी विद्यानंद के नए आश्रम में मुंशी बना निर्माण कार्य…की देखरेख का कार्य कर रहा था। नियति इस आश्रम के युवराज की यह स्थिति देखकर मुस्कुरा रही थी।

इस कहानी का एक और पात्र धीरे-धीरे विरक्त की ओर अग्रसर हो रहा था और वह की सोनी की बहन मोनी एक तरफ जहां सोनी अपने युवा शरीर का खुलकर आनंद ले रही थी वहीं दूसरी तरफ मोनी अपनी सुंदर काया को भूल अपना ध्यान धर्म विशेष की ओर लगाए हुए थी..

बनारस महोत्सव ने उसके मन में वैराग्य को एक बेहद आकर्षक रूप में प्रस्तुत कर दिया था.. मोनी जब युवा महिलाओं को एक साथ नृत्य और जाप करते हुए देखती वह भाव विभोर हो जाती अपने इष्ट को याद करती हुई मन ही मन झूमने लगती….।

ऐसा नहीं था कि मोनी के बदन पर मनचलों की निगाह न पड़ती परंतु ढीले ढाले वस्त्रों की वजह से मोनी के उभार काफी हद तक छुप जाते और उसका सीधा साधा चेहरा तथा झुकी हुई निगाहें मनचलों के उत्साह को थोड़ा कम कर देते। वैसे भी मोनी घर से ज्यादा बाहर निकलती और अपने घरेलू कार्यों पर अपनी मां का हाथ बंटाती और अपने इष्ट की आराधना में व्यस्त रहती..

मोनी की मां पदमा बेहद प्यार से बोलती

"मेरी प्यारी बेटी की शादी में पुजारी से करूंगी दोनो का मन पूजा पाठ में मन लगेगा…"

मोनी कोई उत्तर नहीं देती और बात टाल जाती उसे विवाह और विवाह से मिलने वाले सुख से कोई सरोकार न था। यदि कोई व्यक्ति उसके साथ उसकी ही विचारधारा काम मिल जाता तो निश्चित ही वह उसे स्वीकार कर लेती…पर फिर भी उसे इस बात का ध्यान रखता कि पुरुषों की सबसे प्यारी चीज उसकी जांघों के बीच अपने चाहने वाले का इंतजार कर रही है.. मोनी जिस सुंदर मणि को अपनी जांघों के बीच छुपाए हुए घूम रही थी उसका इंतजार भी कोई कर रहा था …

रतन की पूर्व पत्नी बबीता अब भी उस होटल मैनेजर के साथ रहती थी। धन और ऐश्वर्य की लोलुपता ने उसे और व्यभिचारी बना दिया वह अब किसी भी सूरत में स्त्री कहलाने योग्य न थी…उसके कृत्य अब दिन पर दिन घृणित हो चले थे। बबीता की छोटी पुत्री चिंकी भी अपनी मां का चाल चलन देखती उसके कोमल मन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा था।

सोनू का दोस्त विकास भी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुका था अगले 1 वर्ष सोनी को उसकी यादों के सहारे ही गुजारना था सोनी मन ही मन घबराती कि क्या अमेरिका से आने के बाद विकास उसे उसी तरह अपना लेगा जैसा उसने वादा किया है या वह बदल जाएगा सोनी मन की मन अपने इष्ट देव से प्रार्थना करती और विकास का इंतजार दिन बीत रहे थे।

लखनऊ में सोनी को विकास के देखने के बाद जिस बड़प्पन का परिचय सोनू ने दिया था उसने सोनी का दिल जीत लिया था सोनी अपने बड़े भाई के बड़प्पन पर नतमस्तक हो गई थी सोनू भैया इतने बड़े दिलवाले होंगे सोनी ने यह कभी नहीं सोचा था। सोनू को देखने के बाद एक पल के लिए वह हक्की बक्की रह गई थी परंतु सोनू की अनुकूल प्रतिक्रिया देखकर वह सोनू के गले लग गई उसके आलिंगन में आ गई यह आलिंगन पूर्णता वासना रहित और आत्मीयता का प्रतीक था सोनू का हृदय भी अपनी छोटी बहन के इस प्रेम को नजरअंदाज न कर पाया और सोनू ने सोनी के इस कदम को मन ही मन स्वीकार कर लिया था।

उधर सलेमपुर सरयू सिंह का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। सोनू ने पीसीएस परीक्षा परीक्षा में प्रथम स्थान पाकर उनके परिवार का नाम और भी रोशन कर दिया था। सरयू सिंह के माथे का दाग पूरी तरह विलुप्त हो चुका था निश्चित ही वह सुगना के साथ उनके नाजायज संबंधों ने जन्म दिया था जो एक पाप के प्रतीक के रूप में उनके माथे दिखाई पड़ता था। सरयू सिंह की उम्र इतनी भी नहीं हुई थी की उनका जादुई मुसल अपना अस्तित्व भुला बैठे। जैसे-जैसे उनकी आत्मग्लानि कम होती गई उनके लंड में हरकत शुरु होती गई।

सरयू सिंह की खूबसूरत यादों में अब सिर्फ एक ही शख्स बचा था और वह थी उनकी आदर्श मनोरमा मैडम न जाने वह कहां होंगी। बनारस महोत्सव में उनके ही कमरे में उनके साथ अंधेरे में किया गया वह संभोग सरयू सिंह को रह-रहकर याद आता और उनका लंड उछल कर मनोरमा मैडम को सलामी देने के लिए उठ खड़ा होता। सरयू सिंह अपने लंड को तेल लगाते और सहलाते जैसे उसे किसी अनजान प्रेम युद्ध के लिए तैयार करते ठीक उसी प्रकार से जिस प्रकार वह अपनी लाठी पर तेल लगाकर उसे आकस्मिक हमले से बचने के लिए तैयार रखते थे। सरयू सिंह मनोरमा मैडम के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए हर संभव कोशिश करते परंतु मर्यादा में रहते हैं कई बार उन्हें अपने करीबी साथियों से यह प्रश्न सुनने को मिल जाता

" का सरयू भैया? कुछ चक्कर बा का? उनका के काहे याद करा तारा?"

उनके सभी साथियों और कर्मचारियों को इस बात का अंदाजा था कि मनोरमा मैडम का सरयू सिंह और उनके परिवार के प्रति विशेष स्नेह था। जाने मनोरमा मैडम कहां होगी और कैसी होंगी…


कुछ दिनों बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला था.. बच्चों के लिए कपड़े खरीदना आवश्यकत था और स्वयं के लिए भी …दोनों सहेलियां बाजार निकल पड़ी।

दुकान पर टंगे रंग बिरंगे कपड़े देखकर सुगना और लाली दोनों का मन मचल उठा. दोनों ने एक साथ ही कहा

"कितना सुंदर कपड़ा बा" दोनों सहेलियां मुस्कुरा उठी नियति ने दोनों की पसंद को मिला दिया था… दोनों मुस्कुराने लगी दुकान की तरफ बढ़ चली…

"आइए दीदी क्या दिखाऊ?"

सुगना ने अपनी उंगलियां बाहर टंगे पुतले की तरफ कर दी.. जिस पर एक लखनवी कुर्ता टंगा हुआ था जिस पर खूबसूरत चिकनकारी की हुई थी..

दुकानदार में अपने बात हाथ से उस कपड़े को निकालने के लिए कहा और उस कुर्ते की तारीफ करने लगा ..

सुगना सुगना सामान्यतया साड़ी ही पहनती थी विशेष अवसरों पर लहंगा चोली पहने ना उसे पसंद था परंतु सलवार सूट पहनना उसे आधुनिकता का प्रतीक लगता था जो उसके व्यक्तित्व और स्वभाव से मेल खाता था परंतु जब जब सुगना एकांत में होती वह सोनी के सलवार सूट को पहनने की कोशिश करती परंतु सोनी का कुर्ता सुगना के गदराए बदन पर फिट न बैठता और सुगना चाह कर भी अपने कामुख बदन को सलवार सूट में न देख पाती।


"दीदी यह माल कल ही आया है खास लखनऊ से मंगाया है" आप जैसे सुंदर दीदी पर यह बहुत फबेगा। दुकानदार चालू था… उसने एक ही वाक्य में सुगना और लाली दोनों को प्रभावित कर लिया था..

दुकान का नौकर उस सूट की कई वैरायटी लेकर काउंटर पर फैला चुका सुगना और लाली बार-बार उन्हें छूते उनके कपड़ों की कोमलता महसूस करते और मन ही मन उस कपड़े में अपने खूबसूरत बदन को महसूस करते..

कपड़ा और डिजाइन एक बार में ही पसंद आ चुका था अब बारी थी पैसों की.

"कितना के वा सुगना के सुकुचाते हुए पूछा?"

"₹300 के दीदी"


"लाली ने आश्चर्य से कहां 300 बाप रे बाप इतना महंगा?"

दुकानदार को लाली का इस प्रकार चौकना पसंद ना आया उसने सुगना की तरफ देख कर कहा

₹दीदी यह लखनवी चिकनकारी है आप तो जानती ही होंगी? हाथ का काम है महंगा तो होगा ही? आप एक बार ले जाइए यदि जीजा जी ने पसंद न किया तो वापस पटक जाइएगा"

सुगना अपने आकर्षक त्वचा और खूबसूरत चेहरे तथा सुडोल जिस्म की वजह से एक सब सब सभ्रांत महिला लगती थी…जिस सुगना ने मनोरमा मैडम जैसी खूबसूरत एसडीएम को प्रभावित कर लिया था उसे देखकर दुकानदार का प्रभावित होना स्वभाविक था।

सुगना और लाली दोनों दुकानदार का इशारा समझ रही थी उन्हें पता था कि इन कपड़ों में लाली और सुगना बेहद सुंदर लगेंगी और शायद इसीलिए वह विश्वास जता रहा था कि कोई भी उसे वापस करने नहीं आएगा।

यह अलग बात थी कि घर पर उन्हें इन वस्त्रों में देखने वाला कोई न था। लाली का सोनू लखनऊ में था और सुगना उसका तो जीवन ही उजाड़ हो गया… सरयू सिंह सरयू जिसके साथ उसने अपनी जवानी के तीन चार वर्ष बिताए थे उन्होंने अचानक ही काम वासना से मुंह मोड़ लिया था और उसका पति रतन ……शायद सुगना रतन के लिए बनी ही न थी।


सुगना जैसी सुंदरी सिर्फ और सिर्फ प्यार की भूखी थी और जिसका बदन प्यार पाते ही मक्खन की तरह पिघल जाता है वह अपने प्रेमी के शरीर से लिपट कर उसकी सॉरी उत्तेजना और वासना को आग को अपने बदन के कोमल स्पर्श और चुम्बनो से शांत करती करती और अंदर उठ रहे तूफान को केंद्रित कर उसके लिंग में भर देती और उसे अपनी अद्भुत योनि में स्थान देकर उसके तेज को बेहद आत्मियता से सहलाते हुए इस उत्तेजना से उत्पन्न वीर्य को बाहर खींच लाती।

रतन ने भी सुगना से प्यार ही तो किया था पर क्या यह प्यार अलग था …. क्या यह प्यार सरयू सिंह और सोनू के प्यार से अलग था…लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला..और कहा

"चल सोनू के फोन कर दीहल जाओ ….लखनऊ से खरीद के ले ले आई आतना पैसा काहे देवे के?"

सुगना को यह बात पसंद आई उसने महसूस किया था उसे पता था सोनू की स्त्रियों के कपड़े की पसंद बेहद अच्छी थी। वह लाली के लिए कुछ कपड़े पहले भी खरीद चुका था।

दोनों सहेलियां एकमत होकर दुकानदार से बोली

"अच्छा ठीक है इसको रखिए हम लोग और सामान लेकर आते हैं फिर इसे ले जाएंगे.."

दुकानदार समझ चुका था वह अब भी सुगना और लाली को समझने की कोशिश कर रहा था दोनों रंग-बिरंगे कपड़ों में सजी थीं पर माथे का सिंदूर गायब था।

बाहर निकल कर पीसीओ बूथ से लाली ने सोनू के हॉस्टल में फोन लगा दिया..

प्रणाम दीदी …. सोनू की मधुर आवाज सुगना के कानों में पड़ी

" खुश रहो "

सुगना ने दिल से सोनू को आशीर्वाद दिया और पूछा "सोनी बढ़िया से पहुंच गईल नू"

"हां"

सोनू ने संक्षेप में जवाब दिया। सुगना ने सोनू के स्वास्थ्य और खानपान के बारे में पूछा पता नहीं क्यों उसे आज बात करने में वह बात करने में स्वयं को असहज महसूस कर रही थी। और यही हाल सोनू का था। कुछ दिनों से सोनू और सुनना दोनों की सोच में जो बदलाव आया था वह बातचीत में स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था दोनों की बातें ज्यादा औपचारिक हो रही थी वह भाई बहन की आत्मीयता न जाने कब कमजोर पड़ती जा रही थी।

जो भाई बहन पहले काफी देर बातें किया करते थे वो आज मुद्दों की तलाश में थे… ऐसा लग रहा था जैसे बातें खींच खींच कर की जा रही हो। सुगना से और बर्दाश्त न हुआ उसने फोन लाली को पकड़ा दिया और बोली

"ले लाली भी बात करी" सुगना को अचानक महसूस हुआ जैसे उसने फोन सोनू की प्रेयसी को दे दिया वह थोड़ा दूर हट कर खड़ी हो गई ..

लाली और सोनू ने कुछ देर बातें की। सुगना उनकी बातें सुनती रही आज पहली मर्तबा सुगना सोनू और लाली की बातों को ध्यान लगाकर सुन रही थी। उसे सोनू की आवाज तो सुनाई न दे रही थी परंतु वह मन ही मन अंदाज लगा रही थी । अंत में लाली ने सोनू से कहा

"वहां से लखनवी चिकनकारी के शीफान के सूट लेले अईहा हमनी खातिर…_

" दीदी पहनी…? " सोनू ने लाली से इस बात की तस्दीक करनी चाहिए कि क्या सुनना वह सूट पहनेगी उसे यह विश्वास न था।

"अरे राखी में तू गिफ्ट ले आईबा तब काहे ना पहनी"

लाली भी सुगना के साथ रहते-रहते वाकपटु हो चली थी।

"साइज त बताव"

" हमर त मलूमे बा हां बाकी दुसरका एक साइज .. कम"

सुगना को समझते देर न लगी कि लाली ने उसकी चुचियों की साइज सोनू को बता दिया है…

सोनू की बाछे खिल उठी। आज लाली ने उसे सुगना को खुश करने का एक अवसर दे दिया था।

कमरे में आकर वहीबिस्तर पर लेट कर एक बार फिर सुगना की कल्पना करने लगा वह इसे तरह-तरह के कपड़ों में देखता और मन ही मन प्रफुल्लित होता कभी-कभी वह सुगना को कपड़े बदलते हुए देखने की कल्पना करता और तड़प उठता…हवा के झोंकें से सुगना का घाघरा जैसे हवा में उड़ता और उसकी मखमली जांघों अनावृत हो जाती…..

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…


शेष अगले भाग में…
Rakhi pe jab sonu aayega to sughna or sonu ke bech kya hoga mazedaar rahega
Lazwaab update
भाग 80

जैसे जैसे दिन बीत रहे थे सुगना सोनू के ख्वाबों में ज्यादा जगह बनाने लगी थी।

राखी….सुगना ….दीदी…लाली……दीदी….. आह…वो सुगना दीदी का देखना…वो …. उनकी आखों में छुपी प्यास….. सोनू की सोच कलुषित हो रही थी उसकी अपनी वासना ने उसकी सोच पर अधिकार जमा लिया था। सुगना के कौतूहल ने उसे अनजाने में ही सोनू की नजरों में अतृप्त और प्यासी युवती की श्रेणी में ला दिया था। राखी का इंतजार सोनू बेसब्री से कर रहा था.. सोनू सुगना को देखने के लिए तड़प रहा था…

शेष अगले भाग में…

सोनू के जेहन में लाली द्वारा की गई कपड़ों की मांग अब भी कायम थी। और फिर एक दिन सोनू लखनऊ के बाजार में अपनी बहनो के लिए राखी के लिए कपड़े लेने चल पड़ा।

सजे हुए बाजार में कई खूबसूरत लड़कियां जींस टॉप में उन्नत वक्षों का प्रदर्शन करते घूम रही थी कुछ सलवार सूट में भी थी जिन्होंने अपनी चुचियों पर दुपट्टा डाल रखा था। सोनू उन लड़कियों की तरफ देखता पर उनमें से कोई भी उसकी सुगना दीदी के करीब न फटकती थी…

वह रह रह कर अपने ख्वाबों में अपनी दोनों बहनों लाली और सुगना को अलग-अलग वस्त्रों में देखता और उनकी खूबसूरती की कल्पना करता। जब जब वह सुगना के बारे में सोचता उसके विचार अस्पष्ट होते। कभी वह सुगना की सुंदरता का कायल होता कभी उसके मादक बदन का और कभी अपनी दीदी के मर्यादित व्यक्तित्व का।


सिर्फ एक घटना ने सोनू के मन में सुगना के प्रति विचार बदल दिए थे। इसके पहले भी उसकी सुगना के साथ कामुक घटनाएं हुई थी पर हर बार सुगना का व्यक्तित्व सोनू के कामुक विचारों पर हावी रहता और सोनू के मन में वासना का बीज अंकुरित होने से पहले ही कुचल दिया जाता।

परंतु पिछले कुछ दिनों से हालात बदल चुके थे सुगना ने लाली और सोनू को संभोग करते हुए देखकर सोनू के मन में आ रही इस सोच से उत्पन्न होने वाली आत्मग्लानि को कुछ कम कर दिया था।

सोनू अब बेझिझक होकर सुगना और उसके कामुक बदन को याद करता। सोनू यह बात भली-भांति जानता था कि सुगना के सामने आते ही वह भीगी बिल्ली की तरह अपने उन कामुक विचारों को दरकिनार कर उसे बड़ी बहन का दर्जा देने को बाध्य होगा और उसके मन में चल रहे ख्याली पुलाव साबुन के बुलबुले की तरह टूट कर बिखर जाएंगे..

परन्तु ख्यालों पर पाबंदी लगाने वाला कोई न था। ईधर उसके ख्यालों में सुगना घूम रही थी और उधर जांघों के बीच लंड हरकत में आ रहा था। सोनू अपनी जांघों के बीच हलचल महसूस कर रहा था। रिक्शे पर बैठे-बैठे उसने अपने लंड को ऊपर की तरफ किया और उसे अपना आकार बढ़ाने की इजाजत दे दी। वह बीच-बीच में उसे सहला था और उसे धीरज धरने के लिए प्रेरित कर रहा था।

यही सब बातें सोचते सोचते उसका रिक्शा लखनऊ के बाजार में पहुंच चुका था। तरह-तरह के वस्त्र दुकानों के सामने लटके हुए थे। सोनू ने आज तक सुगना को या तो साड़ी या लहंगा चुनरी में देखा था पर शहरों में उस दौरान सलवार सूट का प्रचलन आ चुका था। सलवार सूट में महिलाओं की कमनीय काया स्पष्ट दिखाई पड़ती थी। चूचियों पर सटा हुआ सूट और कमर का वह कटाव …. सोनू कपड़ों के पीछे छुपी स्त्रीयो की स्वाभाविक खूबसूरती में खो गया।


दुकान पर लगे पुतलों में सोनू अपनी बहनों को खोजने लगा। पुतले कुछ कमजोर और पतले दिखाई पड़ रहे थे पर सोनू की दोनों बहने पूरी तरह गदराई हुई थीं। दो बच्चों की मां होने का असर उनके शरीर पर भी दिखाई पड़ रहा था। पर यह उनकी मादकता को और भी बढ़ा रहा था।

सुगना को याद कर सोनू का लंड एक बार फिर हरकत में आ रहा था। अचानक सोनू को दुकान पर टंगा एक कपड़ा पसंद आ गया सोनू ने रिक्शा रोका और उतरकर उस दुकान के अंदर आ गया अंदर एक खूबसूरत महिला कपड़े तह कर रही थी सोनू को देखते ही उसने पूछा

"भैया क्या देखना है..?"

सोनू उस महिला को बेहद ध्यान से देख रहा था महिला की उम्र उसकी अपनी बहनों से मेल खाती थी परंतु सुंदरता ….. सोनू को अपनी बहनों पर नाज था सुगना तो जैसे उसके ख्वाबों की परी बन चुकी थी। मन में यह सोच लाकर सोनू कभी लाली के प्रति अन्याय करता परंतु सुगना, सुगना और उसका आकर्षण सब पर भारी था।


सोनू दुकान के काउंटर पर आ गया और काउंटर से सट कर खड़ा हो गया। सोनू का लंड दुकान के काउंटर से रगड़ रहा था वह मीठी रगड़ सोनू को बेहद आनंददायक लग रही थी।

बहनों के लिए सूट देखते देखते सोनू ने अपने आनंद का उपाय कर लिया था…

उस महिला ने सोनू को कई सूट दिखाएं जिसमें वह सूट भी शामिल था जो सोनू की निगाहों पर चढ़ गया था।

कई सूट देखने के पश्चात आखिरकार सोनू ने दो सूट पसंद कर लिए। एक अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए और दूसरी अपनी मदमस्त लाली के लिए। सूट स्लीवलेस तो नहीं थे परंतु बाहों पर सिर्फ चिकनकारी की हुई थी। बाकी कुर्ते पर स्तर लगा हुआ था…महिला सोनू को सूट की चूची वाली जगह पर बार-बार देखते देख कर बोली…..

आपको साइज पता है तो बता दीजिए हम तुरंत ही उसी नाप का बना देंगे..

सोनू की चोरी पकड़ी गई थी काउंटर पर काम कर रही महिला ग्राहकों की उत्सुकता और प्रश्न को भलीभांति समझती थी।

सोनू ने शर्माते हुए कहा

" 36 और 34…"

नंबर बताते समय सोनू ने सुगना और लाली की सूट का रंग तय कर दिया। हल्के हरे रंग के सूट में सुगना की कल्पना कर सोनू बाग बाग हो गया ..

सूट पसंद करने के बाद अब बारी अंतरंग वस्त्रों की थी .. सोनू ने लाली के लिए तो अंतरंग वस्त्र पसंद किए परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना के लिए अंतर्वस्त्र खरीदने की हिमाकत नहीं कर पाया।उसने जितनी हिम्मत विचारों में इकट्ठा की थी उसे असली जामा पहनाने में नाकामयाब रहा।

लाली को कामुक अंतर्वस्त्र बेहद पसंद थे पसंद तो सुगना को भी थे पर इस समय उसे न तो इन वस्त्रों की उपयोगिता थी और नहीं आवश्यकता। सोनू उस महिला से अंतर्वस्त्र खरीदते समय बेहद शर्मा रहा था। महिला उसके सामने तरह-तरह ब्रा और पेंटी रखती जो सामान्यतः प्रयोग में लाई जाती है परंतु न तो सोनू सामान्य था और नहीं उसकी भावनाएं।

अंततः सोनू ने अपनी इच्छा स्पष्ट रूप से रख दी

"ऐसी जालीदार नहीं है क्या फैंसी वाली.."

महिला अंदर जाकर जालीदार कामुक ब्रा पेंटी का सेट ले आई और उसे देखकर सोनू की बांछें खिल उठी।

उसके जेहन में अब उस कामुक ब्रा और पेंटी में कमरे में चहलकदमी हुई करती हुई उसकी लाली दीदी घूम रही थी। वह मन ही मन लाली को घोड़ी बनाकर तथा उसकी जालीदार पेंटी को हटाकर अपना लंड डालकर उसे गचागच चोदने की कल्पना करने लगा जैसा उसने हालिया किसी ब्लू फिल्म में देखा था। उसने लाली के लिए दो ब्रा और पैंटी का सेट पसंद कर लिया।


उसी समय सोनू का एक और दोस्त उसी दुकान में आता हुआ दिखाई पड़ा जो अपनी प्रेमिका के लिए शायद कोई उपहार खरीदने ही आया था।

सोनू ने आनन-फानन में महिला को पैकिंग के निर्देश दिए और अपने दोस्त सोनू से बात करने लगा..

या तो सोनू …..या उसके दिशा निर्देश सुनने वाली महिला की गलती या नियति की चाल पर सोनू द्वारा पसंद की गई दोनो जालीदार कामुक ब्रा और पेंटी को भी उन सूट के साथ अलग अलग पैक कर दिया गया शायद पैक करने वाले ने अपने दिमाग का भी प्रयोग कर दिया था…. और अनजाने में ही सोनू की कामुकता को उसकी दोनों बहनों में बराबरी से बांट दिया था।

डब्बे को गिफ्ट रैप के पश्चात महिला ने समझदारी दिखाते हुए डिब्बे के कोने में बड़ा और छोटा लिखकर सूट में स्पष्ट अंतर कर दिया।

सोनू इस बात से कतई अनजान था कि सुगना के पैकेट में खूबसूरत जालीदार ब्रा पेंटी भी पैक है। सोनू उमंग में पैकेट लेकर वापस आने लगा। जालीदार ब्रा और पेंटी में लाली अब भी उसके दिमाग में घूम रही थी।

सोनू ने हॉस्टल पहुंच कर अपने हाथों की एक्सरसाइज की और वीर्य स्खलन के उपरांत ही उसका दिमाग शांत हुआ।

2 दिनों बाद रक्षाबंधन का पावन त्यौहार था। सोनू के लिए अगले 2 दिन 2 वर्ष जैसे बीत रहे थे … सोनू लाली से मिलने को तड़प रहा था और मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि काश उस दिन के दृश्य एक बार फिर उसी क्रम में दोहराया जाए .. सोनू के मन में चल रहे ख्याल कभी घनघोर वासना जन्य होते जिसमें सुगना भी एक भागीदार होती और कभी वह सिर्फ इस बात पर ही अत्यधिक कामोत्तेजक हो जाता कि वह अपनी बड़ी बहन की हम उम्र सहेली को उसी के सामने चोदेगा….परंतु उसे भी यह बात पता थी शायद यह दोबारा संभव नहीं पर जैसे सावन के अंधे को सब कुछ हरा हरा ही सूझता है वैसे सोनू की उम्मीदें बढ़ती जा रही थी…

उधर बनारस में सोनी सुगना और लाली तीनों सोनू का इंतजार कर रहे थे.

सोनू ने सोनी और विकास के रिश्ते को स्वीकार कर जो बड़प्पन दिखाया था उसने सोनी के दिलों दिमाग पर गहरी छाप छोड़ी थी सोनू उसका बड़ा भाई था परंतु सोनी की निगाहों में अब वह बेहद जिम्मेदार और पिता तुल्य हो चुका था।

सोनी पूरी आस्था और लगन से अपने बड़े भाई का इंतजार कर रही थी। सुगना भी सोनू के आने से बेहद प्रसन्न थी आखिर सोनू को देखे कई दिन बीत चुके थे।


पिछले कई वर्षों तक एक साथ रहने से उसका लगाव सोनू से बेहद ज्यादा हो गया था वैसे भी वह उसका छोटा और प्यारा भाई था पिछले बार के उस कामुक दृश्य को छोड़ दें तो सुगना और सोनू के संबंध बेहद आत्मीय रहे थे। खासकर सुगना की तरफ से। सोनू तो बीच-बीच में उसकी सुंदरता पर मोहित हो जाता था ।

सोनू वैसे भी अब पूरे परिवार की शान बन चुका था और सुगना अपने छोटे भाई पर नाज करती थी…परंतु जब जब सुगना के दिमाग में वह कामुक दृश्य आते उसका अंतर्मन सिहर उठता।

उसकी निगाहों में सोनू का मजबूत खूटे जैसा लंड और लाली की बुर चूदाई के दृश्य घूमने लगते। उसे सोनू का लंड अपने बाबूजी सरयू सिंह के लंड से मिलता जुलता प्रतीत होता और न जाने कब वह उस अद्भुत लंड के बारे में सोचते सोचते सुगना की जांघों के बीच चिपचिपा पन आ जाता। भाई बहन का रिश्ता कुछ ही पलों में तार-तार होने लगता …..और सुगना वापस सचेत हो जाती….

और लाली का तो कहना ही क्या इधर दोनों बहने सोनू के पसंद का सामान तैयार कर रही थी और उधर लाली अपनी जांघों के बीच उगाए अनचाहे बालों को हटाकर अपने छोटे भाई के लिए मल्ल युद्ध का अखाड़ा तैयार कर रही थी…

तीनों बहनों के लिए सोनू अलग-अलग रूप में दिखाई पड़ रहा था परंतु सुगना सबसे ज्यादा संशय में थी सोनू का यह बदला हुआ रूप के दिमाग को कतई रास ना आ रहा था परंतु उसकी जांघों के बीच वह उपेक्षित सुकुमारी अपनी पलकों पर आंसू लिए सोनू के उस रूप को रह-रहकर याद कर रही थी और सुगना का ध्यान अपनी तरफ खींच रही थी..

"ए सुगना देख बेसन जरता… कहां भुलाईल बाड़े?"

"सोनुआ के बारे में सोच तनी हां"

"वोही दिन के बारे में सोचा तले हा नू …जायदे अब कि आई तब फिर सिनेमा दिखा देब"


सुगना ने गरम छनोटा लाली की तरफ किया और मुस्कुराते हुए बोली

"ढेर पागल जैसन बोलबे त एही से दाग देब…."

लाली पीछे हटी और मुस्कुराते हुए बोली

"काश सोनुआ तोर भाई ना होखित" सुगना को यह बात समझ ना आए और जब तक वह यह बात समझती सोनी भी कमरे में आ चुकी थी सोनू को लेकर हो रही तकरार सुनकर उसने बिना बात समझे ही कहा..

"दीदी , सोनू भैया के जान से ज्यादा मानेले ओकरा बारे में कुछ मत बोला दीदी बिल्कुल ना सुनी"

"अरे वाह जब से लखनऊ से आईल बाड़ू सोनू भैया सोनू भैया रट लगावले बाडू कौन जादू कर देले बा सोनुआ" अनजाने में ही लाली ने सोनी से वह बात पूछ दी जिसका उत्तर न तो सोनी दे सकती थी और नहीं देना उचित था.. सोनी के विवाह का राज सोनी और सोनू के सीने में दफन था।

सुगना ने इस संवाद पर विराम लगाया और वह बेसन से भरी हुई कड़ाही लेकर नीचे बैठ गई और सोनी तथा लाली से कहा

"आवा सब केहूं मिलकर लड्डू बनावल जाऊ" सुगना को पता था सोनू को बेसन के लड्डू बेहद पसंद थे। सुगना को स्वयं मोतीचूर के लड्डू पसंद थे परंतु फिर भी वह अपनी पसंद को ताक पर रखकर सोनू के लिए लड्डू बना रही थी। लाली और सोनी भी सुगना का साथ दे रही थी सोनू अलग-अलग रूपों में तीनों बहनों के मन में छाया हुआ था।

और आखिरकार वह दिन आ गया जब सोनू रक्षाबंधन पर अपने घर बनारस के लिए रवाना हो गया…

रक्षाबंधन का दिन…

सोनू को आज बनारस एक्सप्रेस बेहद धीमी चलती हुई प्रतीत हो रही थी। लोहे की सलाखों के पीछे बैठा सोनू ऐसा महसूस कर रहा था जैसे वह किसी जेल में बैठा है। जब ट्रेन अकारण रूकती वह कभी व्यवस्था को कोसता कभी उन मनचले लड़कों को जो ट्रेन को चेन पुलिंग कर कर रोक दिया करते थे। उसका मन तो न जाने कबका बनारस स्टेशन पहुंच चुका था। मन में सुगना और लाली को देखने की लालसा लिए वह बेहद अधीर हो चला था।

वह अपने बैग से झांक रहे सूट के पैकेट को देखता उसके पूरे दिलो दिमाग में सनसनी दौड़ जाती है क्या सुगना दीदी आधुनिक जमाने के सूट को पहनेगी… उन्होंने आज तक तो कभी ऐसे वस्त्र नहीं पहने कहीं वह नाराज तो नहीं होंगी…. और यदि उन्होंने इससे पहनने के लिए मना कर दिया तब… सोनू के दिमाग में सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे …. परंतु उनका उत्तर उसकी दोनों बहने ही दे सकती थी…..


हर इंतजार का अंत होता है और सोनू का भी हुआ.. ट्रेन के धीरे होते ही सोनू अपना सामान लेकर बनारस स्टेशन पर कूद पड़ा वह भागते हुए बाहर पहुंचा और ऑटो करके तेजी से अपने घर की तरफ बढ़ चला…

सोनू ने अपने परिवार के सभी सदस्यों के लिए कुछ न कुछ गिफ्ट लाए थे परंतु सुगना और लाली का वह सूट अनोखा था..

उधर सुगना और लाली के घर में त्यौहार का माहौल था। सारे छोटे बच्चे सुबह से ही नहा धोकर तैयार थे। सोनी बच्चों को तैयार कराने में पूरी तरह मदद कर रही थी। सोनी ने बच्चों को नए नए कपड़े पहना कर खेलने भेज दिया छोटा सूरज आज न जाने कैसे सबसे पीछे हो गया था।


सोनी सूरज को कपड़े पहना रही थी और आज कई दिनों बाद सोनी ने एक बार फिर वही हरकत की उसने सूरज का अंगूठा सहला दिया। बिस्तर पर खड़ा सूरज अपनी नूनी को बढ़ते हुए देख रहा था..

"मौसी ई का कर देलू"

सूरज का यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगा और सोनी ने उसे छेड़ते हुए सूरज के अंगूठे को थोड़ा और सहला दिया नूनी का आकार विकास के हथियार के बराबर हो गया और सोनी शरमा गई. एक पल के लिए सोनी के दिमाग में विकास के साथ बिताए गए वह कामुक पल घूम गए सूरज सोनी के बाल खींचते हुए बोला..

"मौसी जल्दी ठीक कर ना ता मां के बुला देब"

सोनी ने प्यारे सूरज के गाल पर मीठी चपत लगाई और अपनी हथेलियां उसकी आंखों पर रखकर नीचे झुक गई.. सोनी को इस विलक्षण समस्या का कारण तो पता न था पर निदान पता था।

सूरज खिलखिला रहा था और सोनी के रेशमी बालों को पकड़कर कभी दूर करता कभी पास… सोनी मुस्कुरा रही थी और विकास को याद कर रही थी। वह विज्ञान की छात्रा सूरज के अंगूठे के इस राज को आज भी समझने का वैसे ही प्रयास कर रही थी..

अचानक सुगना ने दरवाजा खोल दिया और सोनी की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई और बोली..

"ते बार बार काहे ओकर अंगूठा छूएले ?"

"अरे कपड़ा पहनावत समय भुला गईनी हां"

सुगना ने सूरज को अपनी गोद में उठा लिया और एक बार फिर उसके अंगूठे को सहला कर उसने अपने पूर्व अनुभव को प्रमाणित करने की कोशिश की और यकीनन सुगना के अंगूठे सहलाए जाने से सूरज में कोई परिवर्तन न हुआ।

जाने नियति ने सूरज को ऐसा कौन सा अभिशाप दिया था…

सुगना ने कहा

"हम जा तानी नहाए ते पूजा पाठ के तैयारी कर ले सोनू भी आवत ए होई.."


सुगना ने अपने कपड़े उसी कमरे के बिस्तर पर रख दिए जिस पर आज से कुछ महीनों पहले उसने लाली और सोनू की जबरदस्त चूदाई देखी थी और अपनी नाइटी लेकर बाथरूम में घुस गई। विलंब हो रहा था और सुगना के दिमाग सोनू घूम रहा था जो कुछ ही समय बाद आने वाला था..

सुगना बाथरूम में नग्न होकर नहाने लगी। साबुन लगाते समय सुगना के दिमाग में फिर एक बार वही दृश्य घूमने लगे…. कैसे सोनू लाली की कमर को पकड़कर गचागच उसे चोद रहा था….. सोनू का मजबूत लंड उसके दिमाग पर एक अमिट छवि छोड़ चुका था।


सुगना ने एक बार फिर अपने हाथ की कलाइयों को देखा और सोनू के लंड से उसकी तुलना करने की कोशिश की।

सुगना मुस्कुरा रही थी उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसका अपना छोटा भाई उसके बाबू जी से किसी भी तुलना में कम न था। यदि सरयू सिंह अपनी युवावस्था में रहे होते तो शायद सोनू के जैसे ही होते। सोनू का भरा पूरा मांसल शरीर वह मजबूत भुजाएं ….हाथों पर सोनू के लंड पर दौड़ती नसें सब कुछ आदर्श था।

जैसे-जैसे सुगना सोनू की कसरती शरीर को याद करती रही वैसे वैसे उसकी हथेलियां स्वतः उसके गुप्तांगों की तरफ बढ़ चली। यह क्रिया स्वाभाविक रूप से हो रही थी। साबुन बार-बार अपनी जगह तलाश रहा था और अंततः सुगना की तर्जनी ने सुगना की उस कोमल दरार के बीच अपनी जगह बना ली।

यह क्या …..बाहर जितनी फिसलन थी अंदर उससे कई गुना ज्यादा थी… बुर् के होठों पर छलका प्रेम रस में न जाने कौन सा चुंबकीय आकर्षण पैदा किया और सुगना की तर्जनी उसकी बुर से प्रेम रस को खींच खींच कर बाहर निकालने लगी… जैसे ही भग्नासे ने तर्जनी का स्पर्श पाया वह फूल कर कुप्पा हो गया और बार-बार उस मादक स्पर्श की दरकार करने लगा…..सुगना के दांतो ने होठों को खींच कर अपना दबाव बढ़ाया जैसे वह अपनी मालकिन को होश खोने से रोक रहे हों।


शरीर के अंगों पर लगा साबुन सुगना की हथेलियों का इंतजार कर रहा था। पर सुगना की सोच पर न जाने कौन सा रस हावी हो गया था उसका सारा आकर्षण उस छोटी सी दरार पर केंद्रित हो गया था शायद जिस आनंद की भूखी सुगना कई महीनों से थी वह उसे प्राप्त हो रहा था… उसे समय का आभास भी न रहा….

सुगना को वास्तविक दुनिया में लाने का श्रेय आखिरकार लाली को गया जो दरवाजे पर खड़े होकर कह रही थी

" सुगना जल्दी कर 09 बज गइल सोनू आवहीं वाला बा.."


सुगना ने एक लंबी आह भरी और अपनी तड़पती बुर को अकेला छोड़ कर वापस अपने शरीर पर लगे साबुन के झाग हटाने लगी।

लोटे से लगातार वह अपने सर पर पानी डाल रही थी जो उसकी फूली और तनी हुई चुचियों से होते हुए जांघों के बीच बह रहा था। जैसी ही सुगना ने अपनी जांघें सटाई जांघों के बीच पानी इकट्ठा हो गया। इतनी सुंदर थी उसकी जांघें और कितना सुंदर था वह प्रेम त्रिकोण।

जिस त्रिकोण पर उसके बाबू जी सरयू सिंह सब कुछ निछावर करने को तैयार रहते थे। पिछले कई महीनों से उस त्रिकोण का कोई पूछना हार न था।। रतन को याद कर सुगना अपना मन खट्टा नहीं करना चाहती थी। उसने अपनी जांघें फैला दी और पानी को बह जाने दिया। अपनी बुर को थपथपा कर सुगना उठ खड़ी हुई और नाइटी से अपने भीगे बदन को पोछने लगी..

अपने बदन को यथासंभव पोछने के पश्चात सुगना उसी कमरे में आकर अपने वस्त्र पहनने लगी… जो गलती उस दिन अनजाने में सोनू और लाली ने की थी वही गलती आज सुगना दोहरा चुकी थी खिड़की पर लगा हुआ पर्दा थोड़ा हटा हुआ था …

सारे बच्चे के हाल में चिल्लपों मचाए हुए थे। सोनी रक्षाबंधन की तैयारियों में रंगोली बनाने में व्यस्त थी। लाली सोनू के लिए पूआ बना रही थी। सोनू को पुआ ठीक वैसे ही पसंद था जैसे सरयू सिंह को।


सोनू को दोनो पुए पसंद थे जांघों के बीच रसभरे भी और प्लेट में रखे चासनी से भीगे हुए भी।

बाहर अचानक खड़ खड़ खड़ खड़ की आवाज हुई…सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था। सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को चकमा देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी और हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रहती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखे फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…
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Tiger 786

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भाग 81

सोनू का ऑटो बाहर आकर रुक चुका था। दरवाजा सटा हुआ था सोनू ने अंदर आकर अपनी बहनों को सरप्राइस देने की सोची और वह दरवाजा धीरे से खोल कर अंदर आ गया। अंदर कमरे में सुगना के चूड़ियों की खनकने की आवाज आ रही थी। सोनू भली भांति जानता था कि घर में सिर्फ और सिर्फ उसकी सुगना दीदी ही भरपूर चूड़ियां पहनती हैं । लाली ने विधवा होने के बाद चूड़ी पहनना लगभग छोड़ कर दिया था और सोनी वह तो आधुनिक युवती थी हाथों में 1या 2 कंगन डालकर वह मस्त रखती थी।

चूड़ियों के खड़कने से सोनू ने अंदाज कर लिया कि सुगना दीदी उसी कमरे में है..अचानक उसका ध्यान उस खुली हुई खिड़की पर गया…. और सोनू ने अपनी आंखे उस दरार पर टिका दीं….

सोनू की आंखें फटी रह गईं…

शेष अगले भाग में…

सोनू ने आज वही दृश्य देखा जिसकी कल्पना वह कई दिनों से कर रहा था सुगना की भीगी हुई नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठ रही थी सुगना ने अपनी पीठ उसी खिड़की की तरफ की हुई थी जिससे सोनू अंदर झांक रहा था। सुगना स्वाभाविक रूप से अपने कपड़े बदल रही थी उसे क्या पता था खिड़की पर उसका छोटा भाई नजरों में कामुक प्यास लिए उसे निहार रहा था। जैसे-जैसे नाइटी ऊपर उठती गई.. सुगना की मांसल और गदराई जांघें सोनू की निगाह में आती गईं।


वह पैरों की गोरी पिंडलियां ,.…… जांघों और पिंडलियों के बीच वह बेहद लचीला और दो-तीन धारियों वाला घुटने के पीछे का भाग……सोनू की दृष्टि उस पर अटक गई.. सोनू मंत्रमुग्ध होकर ललचाई निगाहों से एक टक देखे जा रहा था.. कुछ ही पलों में नाइटी सुगना के नितंबों को अनावृत्त कर चुकी थी।

उसी दौरान सुगना की नाइटी उसके मंगलसूत्र में फस गई। सुगना उसे छुड़ाने का प्रयास करने लगी और कुछ देर तक सोनू की नजरों के सामने अपने भरे पूरे मादक नितंबों को अनजाने में ही परोस दिया। सोनू कामुक निगाहों से उसे देख रहा था उसकी पुतलियां फैल चुकी थी वह इस खूबसूरत दृश्य को अपने जहन में बसा लेना चाहता था। वह बिना पलक झपकाए मादक नितंबों के नीचे जांघों के बीच बने त्रिकोण पर अपना ध्यान केंद्रित किए हुए था। सुगना की बुर के होंठों ने और जांघों के बीच जोड़ ने एक अनोखी दिल की आकृति बना दी थी।

सुगना का दिल जितना खूबसूरत और विशाल था उतना ही खूबसूरत यह छोटा दिल भी था। इस अनोखे दिल के शीर्ष पर खड़ी सुगना की बुर न जाने कितना प्रेम रस छुपाए अपने प्रेमी का इंतजार कर रही थी… ।

कुछ ही देर में सुगना ने मंगलसूत्र को नाइटी से अलग कर लिया और उसकी नाइटी धीरे-धीरे ऊपर उठती गई जब तक कि वह नाइटी उसकी पीठ को अनावृत करते हुए गले तक पहुंचती…

हाल से मामा मामा की आवाज आने लगी। बच्चों ने सोनू को देख लिया था और वह मामा मामा चिल्लाने लगे थे।


सुगना बच्चों की चहल-पहल से अचानक पलटी और और अनजाने में ही अपनी भरी-भरी मदमस्त चुचियों को सोनू की निगाहों के सामने परोस दिया परंतु सोनू का दुर्भाग्य वह सिर्फ एक झलक उन चूचियों को देख पाया और उसे न चाहते हुए भी अपने भांजो की तरफ मुड़ना पड़ा जो अब उसके करीब आ चुके थे।

सुगना ने खिड़की की तरफ देखा और सोनू को खिड़की के पास खड़े घूमते हुए देखा। सुगना हतप्रभ रह गई।


क्या सोनू अंदर झांक रहा था? हे भगवान क्या सच में उसने अंदर झांका होगा? नहीं नहीं वह ऐसा नहीं कर सकता…आने के पश्चात तो वह अपने भांजों में खोया होगा… परंतु सुगना के मन में एक अनजाना डर समा गया था. वह खिड़की की तरफ गई और पर्दे को पूरी तरह बंद कर वापस कपड़े बदलने लगी उसने फटाफट अपने वस्त्र पहने.. उसका कलेजा धक-धक कर रहा था..

सुगना कमरे से बाहर आने की हिम्मत जुटा रही थी परंतु शर्म उसके पैरों में बेड़ियां बनकर उसका रास्ता रोक रही थी।

सोनू वैसे तो बच्चों के साथ खेल रहा था परंतु उसका ध्यान बार-बार उस कमरे की तरफ जा रहा था। आज पहली बार उसका मन बच्चो के साथ न लग रहा था।

इस अनोखी वासना ने सोनू को बदल दिया था।

सोनी हाल में आ चुकी थी। उसने सोनू के चरण छुए और एक बार फिर अपनी कृतज्ञता जताने के लिए वह सोनू के गले लग गई। .. सोनी की मुलायम चुचियों ने सोनू के सीने पर दस्तक दी परंतु उसका दिलो दिमाग कहीं और खोया हुआ था…सोनू ने लाली के भी चरण छुए और अपने बैग से निकाल कर ढेर सारी मिठाइयां और खिलौने बच्चों में बांटने लगा…. पर ध्यान अब भी बार-बार सुगना के दरवाजे की तरफ जा रहा था.


आखिरकार सुगना कमरे से बाहर आई। सोनू ने सुगना के चरण छुए… सुगना ने उसे खुश रहो का कर आशीर्वाद दिया…सुगना के घागरे के पीछे से आ रही साबुन और सुगना की मादक खुशबू को सोनू कुछ देर यूं ही सूंघता रहा ..सुगना ने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा

" अब उठ भी जो .."

सोनू उठ गया परंतु आज सुगना ने सोनू को गले न लगाया शायद आज भाई बहन के पावन प्यार पर ग्रहण लग चुका था। सुगना अपराध बोध से ग्रस्त थी।


बच्चे तो चॉकलेट और मिठाइयों में ही मस्त हो गए सुगना और लाली ने अपने-अपने गिफ्ट पैकेट प्राप्त किए । सोनी के हाथ में भी गिफ्ट पैकेट था परंतु यह पैकेट लाली और सुगना के पैकेट से अलग था कभी-कभी पैकिंग का आकर्षण गिफ्ट की अहमियत को बढ़ा या घटा देता है सोनी निश्चित ही अपने गिफ्ट की तुलना और सुगना को मिले गिफ्ट से कर रही थी नियति मुस्कुरा रही थी शायद उसने सोनी के साथ अन्याय कर दिया था।

आखिर सोनू की उस बहन ने भी अनजाने में अपने भाई के लिए लखनऊ के गेस्टहाउस में जो कुछ परोसा था वह निश्चित ही बेहद उत्तेजक था परंतु परंतु सोनू का दिलो-दिमाग अभी सुगना पर अटका था।

सोनू और सुगना का साथ आज का न था। दोनों को युवा हुए कई वर्ष बीत चुके थे और सोनू सुगना की सहेली लाली से जैसे-जैसे अंतरंग होता गया सुगना के प्रति उसका आकर्षण एक अलग रूप लेता गया।

यह बात निश्चित थी कि सोनू ने सुगना से अंतरंग होने की न कभी कोशिश कि नहीं कभी कभी उसके ख्यालों में वह आई पर एक झोंके की तरह। सोनू के विचारों का भटकाव स्वभाविक था दरअसल सुगना एक मदमस्त युवती थी जो स्वाभाविक रूप में उन सभी मदों के आकर्षण का केंद्र थी जिनकी जांघों के बीच हरकत होती थी। सोनू यह बात जानता था कि वह उसकी बड़ी बहन है और यही बात उसके ख्यालों पर लगाम लगा देती..

सुगना का व्यक्तित्व सोनू के छिछोरापन पर तुरंत लगाम लगा देता और वह एक बार फिर अपनी निगाहों में सुगना की बजाय लाली के कामुक अंगो की कल्पना करने लगता…

लाली और सुगना लाली और सुगना दोनों अपने-अपने गिफ्ट पैकेट लेकर अपने-अपने कमरों में आ गईं। दोनों में लखनऊ से मंगाए गए कपड़े देखने चाहत थी। सुगना उस खूबसूरत सूट को देखकर खुश हो गई आज पहली बार सोनू ने उसके लिए कपड़े पसंद किए थे वह भी इतने खूबसूरत ।

सुगना उसे अपने हाथों में लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगे तभी उसका ध्यान सलवार के नीचे पड़ी खूबसूरत जालीदार ब्रा और पेंटी पर पड़ा और वह चौंक गई… …ब्रा और पेंटी को देखकर सुगना को यकीन ही नहीं हुआ कि सोनू ऐसा कार्य कर सकता है।

ठीक उसी समय सोनी के कमरे में आने की आहट हुई सुगना ने फटाफट उस ब्रा और पेंटी को तकिए के नीचे छुपा दिया और सूट को अपने हाथों में ले पीछे पलटी और सोनी को दिखाते हुए बोली


"देख कईसन बा सोनुआ ले आइल बा…"

सोनी ने व सूट अपने हाथों में ले लिया और उसकी कोमलता और डिजाइन को देखकर खुश हो गई

" कितना सुंदर बा सोनू भैया हमरा खातिर ना ले ले आइले हा"


सुगना ने एक पल भी सोचे बिना कहा

" तोहरा ठीक लागत बा ले ले हम फिर मंगा लेब"

सुगना का यहीं बड़प्पन उसे बाकी लोगों से अलग करता था…. सोनी ने सुगना के हाथों में सूट को देते हुए कहा "ना…ई सूट दीदी तोरा पर बहुत अच्छा लागी आज इहे पहन ले"

सुगना को भी वह सूट बेहद पसंद आया था परंतु उसकी शर्म उसे रोक रही थी । सोनी के आग्रह पर उसने सूट पहने का फैसला कर लिया। परंतु वह ब्रा और पेंटी उसे समझ ही नहीं आ रहा था कि सोनू ने ऐसा क्यों किया होगा? उसने तकिया हटाया और एक बार फिर उस खूबसूरत ब्रा और पेंटी को देखने लगी… यह संयोग कहें या सोनू की किस्मत ब्रा और पेंटी की कढ़ाई सूट से थोड़ा-थोड़ा मैच करती थी। सुगना को एक पल के लिए लगा जैसे यह जालीदार ब्रा और पेंटी इसी सूट का हिस्सा थी। सुगना सहज हो गई परंतु फिर भी अपने भाई द्वारा लाई गई ब्रा और पेंटी को पहनने की हिम्मत न जुटा पाईं…उसे यह कार्य बेहद शर्मनाक लगा.

सुगना ने एक बार फिर अपने वस्त्र उतारे और सोनू द्वारा लाए गए सलवार सूट को धारण करने लगी । चिकनकारी किया हुआ वह शिफान के सूट बेहद खूबसूरत था जैसे जैसे वह सूट सुगना के मादक और कमनीय काया पर चढ़ता गया वह अपनी खूबसूरती को और बढ़ाता गया।

वस्त्रों की खूबसूरती उसे धारण करने वाले पर निर्भर करती है। सुगना के कोमल बदन को छूकर सोनू द्वारा लाया गया सूट भी धन्य हो गया।

सुंदर वस्त्र सुंदर स्त्री पर दोगुना असर दिखाते हैं यही हाल सोनू द्वारा लाए गए सूट का था। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस सूट का सृजन ही सुगना के लिए हुआ हो। सूट का बाजू लगभग पारदर्शी था जो सुगना की बाहों को आवरण देने में कामयाब था बाजू पर की गई चिकनकारी सुगना की मांसल भुजाओं को और खूबसूरत बना रही थी।


सीने पर सूट की फिटिंग देखने लायक थी ऐसा लग रहा था जैसे दर्जी ने सुगना की चूचियों की कल्पना कर उनके लिए जगह पहले से छोड़ रखी थी और सुगना की कसी हुई चूचियां सूट में बने जगह पर जाकर पूरी तरह सेट हो गई। सुगना की पतली कमर पर सटा हुआ सूट बेहद खूबसूरत लग रहा था सूट का पिछला हिस्सा सुगना के नितंबों को ढक रहा था और अगला उस प्रेम त्रिकोण को जिसकी तलाश उसका भाई सोनू अब अधीर हो रहा था।

सुगना ने स्वयं को आईने में देखा एक पल के लिए उसे लगा जैसे उसकी मदमस्त काया पर किसी ने खूबसूरत पेंटिंग कर दी हो..

सुगना स्वयं अपनी चुचियों को देखकर प्रसन्न हो गई उसे यकीन ही नहीं हो रहा था। सलवार सूट मैं उनका कसाव और आकार और भी उत्तेजक हो गया था।

सुगना ने अपने बाल सवारे । मांग के एक कोने में हमेशा की तरह सिंदूर का टीका किया। अपने मंगलसूत्र को गले पर सजाया और हाल में आने लगी। अचानक सुगना को सोनू का ध्यान आया और सुगना ने दुपट्टे से अपनी खूबसूरत चूचियों को ढक लिया और हाल में आ गई।

सुगना सचमुच बेहद खूबसूरत लग रही थी जैसे ही सोनू ने सुगना को देखा उसकी आंखें सुगना पर टिक गई और वह उसे सर से पैर तक निहारने लगा। सुगना की आंखें स्वतः ही शर्म से झुक गई.. .


सोनू खुद को रोक न पाया और बोला

"अरे दीदी सूट तोरा पर कितना अच्छा लागत बा" लाली ने भी सोनू की बात पर हां में हां मिलाई

"लागा ता सूट तोहरे खातिर बनल रहल हा" …लाली ने सुगना से कहा

" देख हम कहत ना रहनी की सोनू अब बड़ हो गईल बा दे त ओकरा के लइका समझेले"

सुगना मुस्कुरा दी और उस मुस्कुराहट ने उस सुंदरी के खूबसूरत चेहरे पर चार चांद लगा दिए…

अब तक सोनी ने हाल में सारी तैयारियां पूरी कर ली थी चादर को मोड़ कर बैठने का इंतजाम कर दिया गया था सारे बच्चे लाइन से बैठे हुए थे..

आइए मैं पाठकों को एक बार फिर इन बच्चों की याद दिला देता हूं जो इस कहानी के उत्तरार्ध में अपनी महती भूमिका निभाएंगे..

सुगना के घर में


  1. सुगना और सरयू सिंह के मिलन से जन्मा : सूरज…उम्र ..4 वर्ष लगभग..
  2. लाली और सोनू के मिलन से पैदा हुई : मधु उम्र लगभग 1 वर्ष कुछ माह ( सुगना इसे अपनी पुत्री और सूरज को उस अनजाने श्राप से मुक्ति दिलाने वाली उसकी छोटी बहन समझती है)
  3. रतन और बबीता की पुत्री मिंकी जो अब मालती नाम से सुगना के साथ रह रही है उम्र लगभग 6 वर्ष..
लाली के घर में

  1. राजेश और लाली का पुत्र : राजू, उम्र लगभग 6 वर्ष
  2. राजेश और लाली की पुत्री: रीमा, उम्र लगभग 4 वर्ष
  3. राजेश के वीर्य,सरयू सिंह की मेहनत और सुगना के गर्भ से जन्मा: राजा…..उम्र 1 वर्ष कुछ माह…
सारे लड़के चादर पर बैठे हुए थे। सोनू बीच में बैठा था और उसकी गोद में छोटा राजा था सोनू के एक तरफ राजू और दूसरी तरफ सूरज बैठा था।

लाली भी मधु को गोद में लेकर करीब ही बैठी थी। मालती और रीमा ने अपने तीनों भाइयों को राखी बांधी…अब बारी मधु की थी..

लाली मधु से सूरज के हाथ पर राखी बंधवाने लगी सुगना तड़प उठी…. भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को वह भलीभांति समझती थी…उसका दिल कह रहा था कि वह मधु को सूरज की कलाई पर राखी बांधने से रोक ले….. आखिर मधु को कालांतर में उससे संभोग कर उसे श्राप मुक्त करना था…

सुगना ने कहा अरे छोड़ दे "मधु अभी छोट बीया ओकरा का बुझाई"

परंतु लाली ना मानी उसने बेहद आत्मीयता से कहा "अरे ई सोनू के सबसे छोटे और प्यारी बहन हा ई ना बांधी त के बांधी"

और आखिरकार सूरज की कलाई पर छोटी मधु ने राखी बांध दी सुगना मन मसोसकर रह गई।

अब स्वयं उसकी बारी थी…

सुगना अपने हाथों में पूजा की थाली लिए सोनू की तरफ बढ़ रही थी। नजरों में ढेर सारा प्यार और अपने काबिल भाई की मंगल कामना सहित… उसने सोनू की आरती की माथे पर टीका लगाया और सोनू की कलाई पर राखी बांधने लगी.. इसी दौरान सुगना का दुपट्टा न जाने कब झूल गया और सूट में छुपी हुई चूचियां झुकने की वजह से अपने आकार का प्रदर्शन करने लगीं।


उन गोरी चूचियों के बीच गहरी घाटी पर सोनू की नजरें चली गईं। बेहद मादक दृश्य था अपनी बड़ी बहन की भरी-भरी चूचियों के बीच उस गहरी घाटी में सोनू की निगाहें न जाने क्या खोज रही थी। वह एक टक उसे घूरे जा रहा था। इस नयन सुख का असर सोनू की जांघों के बीच भी हुआ और उसका छोटा शेर भी इस कार्यक्रम में शरीक होने के लिए उठ खड़ा हुआ।

कुछ ही देर में सुगना ने सोनू की निगाहों को ताड़ लिया। उसे बेहद शर्म आई … और उसने अपना दुपट्टा ऊपर खींच लिया। उसने सोनू के गाल पर चपत लगाते हुए बोला…

"कहां भुलाईल बाड़े आपन मुंह खोल" और अपने हाथों में लड्डू लेकर उसने सोनू के मुंह में एक लड्ड भर दिया..

सोनू को अपने पकड़े जाने का है अहसास हो चुका था परंतु वह कुछ ना बोला और बड़ी मुश्किल से उस लड्डू को अपने मसूड़े से तोड़ने का प्रयास करने लगा.. लड्डू का आकार कुछ ज्यादा ही बड़ा था और सुगना ने आनन-फानन में उसे पूरा लड्डू खिला दिया था।

सोनी ने भी सोनू की कलाई पर राखी बांधी। इसी दौरान लाली ने मधु को सुगना की गोद में दे दिया और उठकर रसोई घर की तरफ चली गई । लाली आज सोनी की उपस्थिति में असमंजस में थी। जब से लाली ने सोनू को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया था तब से उसने उसकी कलाई पर राखी बांधना बंद कर दिया था।


परंतु सोनी ने लाली को न छोड़ा और अंततः सोनू की कलाई पर लाली से भी राखी बंधवा ही दी बंधन की पवित्रता नष्ट हो रही थी…. सोनू की निगाहों में भी और सुगना की निगाहों में भी…नियति मजबूर थी जिस खेल में विधाता ने उसे धकेल दिया था उसे चुपचाप यह खेल देखना था।

सोनू अपने तीनों बहनों के आकर्षण का केंद्र था आज उसकी जमकर आव भगत हो रही थी जब-जब सोनू सोनी को देखता वह उसके भविष्य को लेकर खुश हो जाता। विकास से बातचीत करने के पश्चात सोनु आश्वस्त हो गया था कि विकास सोनी को धोखा नहीं देगा और सोनू ने सोनी को दिल से माफ कर दिया था….


शाम होते होते भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का असर कम होने लगा और सोनू लाली के साथ एकांत खोजने में लग गया…

जैसे ही सोनी बच्चों को लेकर बाहर घुमाने गई…

लाली और सोनू एक बार फिर उसी कमरे में आ गए.. इस बार खिड़की पर से पर्दा हटाने का कार्य स्वयं सोनू ने अपने हाथों से किया और लाली के शरीर से वही सूट हटाने लगा जिसे वह जिसे वह आज सुबह ही लाया था.

सोनू के मन में एक बार फिर सुगना घूमने लगी

.. क्या सुगना दीदी आज भी आएंगी? सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जाती और बैरंग लौट आती समय कम था सोनी कभी भी वापस आ सकती थी।

"ए सोनू रात में करिहे काहे जल्दी आई बाड़?" लाली को क्या पता था कि सोनू के मन में हवस भरी हुई थी पिछले कुछ महीनों में उसमें इन उत्तेजक पलों को सिर्फ ख्वाबों में जीया था और जब यह पल उसके सामने हकीकत में उपलब्ध थे वह उसे तुरंत भाग लेना चाहता था…

"रात में फेर से"


सोनू ने बिना समय गवाएं लाली को घोड़ी बना दिया और उसकी जालीदार पेंटी को एक तरफ खिसका कर अपना लंड उसकी फूली बूर में उतार दिया…

लाली की बुर अभी पनियाइ न थी.. जहा पहले उसकी बुर को सोनू के चुंबनओं का स्पर्श प्राप्त होता था और सोनू की जीभ उसकी बुर की दरारों को फैला कर अंदर से प्रेम रस खींचती थी.. वही आज सोनू अधीर होकर लाली को आनन-फानन में चोदने के लिए तैयार था लाली ने सोनू को निराश ना किया और अपनी बुर को यथासंभव फैलाने की कोशिश की परंतु नाकामयाब रही..

सोनू के लंड ने अपना रास्ता जबरदस्ती तय किया और लाली "आह….." की आवाज के साथ कराह उठी…

लाली की यह कराह कुछ ज्यादा ही तेज थी शायद यह उसके द्वारा अनुभव किए जा रहे दर्द के अनुपात में थी..

"सोनू…. तनी धीरे से ..दुखाता" लाली ने फुसफुसा कर कहा..

"बस बस हो गइल"

लाली की आह की आवाज सुनकर सुगना सचेत हो गई। एक पल के लिए उसे लगा जैसे लाली किसी मुसीबत में थी परंतु जैसे ही वह कमरे की तरफ बढ़ी.. उसे सोनू की आवाज सुनाई दे गई। सुगना के मन में उस दिन के दृश्य घूम गए….

एक बार के लिए उसके मन में आया कि वह एक बार फिर खिड़की से झांक कर देखें परंतु वह हिम्मत न जुटा पाई और कुछ देर उसी अवस्था में खड़े रहकर वापस अपने कमरे में आ गई.. उसने कमरे का दरवाजा बंद न किया…और अपने कान उस कमरे की तरफ लगा लिए जिसमें सोनू और लाली की प्रेम कीड़ा चल रही थी..

सुगना के दिमाग में उसे कमरे के अंदर झांकने से रोक लिया था परंतु दिल …. ने सुगना के कामों पर नियंत्रण कर लिया था जो अब सोनू और लाली की आवाज सुनने का प्रयास कर रहे थे..

सोनू की निगाहें बार-बार खिड़की की तरफ जा रही थी लाली भी धीरे धीरे गर्म हो चली थी लंड के आवागमन ने उसके बुर् के प्रतिरोध को खत्म कर दिया था और लाली अब पूरे आनंद में थी…

वासनाजन्य उत्तेजना कभी-कभी वाचाल कर देती है..लाली ने सोनू से कहा

"जल्दी कर कही तहार सुगना दीदी मत आ जास" लाली ने यह बात कुछ ज्यादा तेजी कही जो सुगना के कानो तक भी पहुंची…

सुगना का नाम सुनकर सोनू और उत्साह में आ गया वो तो न जाने कब से खिड़की पर उसका इंतजार कर रहा था। और सोनू ने लाली की कमर पर अपने हाथों का कसाव बढ़ा दिया और लंड को और गहराई तक उतार दिया..

उधर सुगना लाली की शरारत और खुले आमंत्रण को बखूबी समझ रही थी पर वो अपनी लज्जा और आज रक्षाबंधन की पवित्रता को नजरअंदाज न कर पाई और वह अपने कमरे में खड़ी रही…

"सुगना दीदी….. ऊ काहे आइहें…?" सोनू ने अपने मुंह से सुगना का नाम लिया और उधर सोनू के लंड ने लाली के गर्भाशय को चूमने की कोशिश की शायद यह सुगना के नाम का असर था…


सोनू यही न रूका उसने अपनी चूदाई की रफ्तार बढ़ा दी…और कमरे में थप थप …थपा… थप की आवाज गूंजने लगी लाली की जांघें सोनू की जांघों से टकरा रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सोनू सुगना को बुलाने का पूरा प्रयास कर रहा था… पर सुगना अपनी धड़कनों को काबू में करने का प्रयास कर रही थी.. पर मन में कशमकश कायम थी…दिमाग के दिशा निर्देशों को धता बताकर चूचियां तनी हुई थीं और बुर संवेदना से भरी लार टपका रही थी…

शेष अगले भाग में…
Bohot hi kamuk update
 
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