पदमा अपनी यादों में इतना खो गई थी कि तवे पर रोटी रखी रोटी चल रही थी सुगना वापस आ चुकी थी
"मां कहां भुलाईल बाड़े देख रोटी जरता" पदमा सचेत हो गई।
उस दिन की छोटी सुगना न आज पूर्ण युवा और वयस्क नारी बन चुकी थी और अपनी मां के प्रेमी के साथ दीपावली के दिन संभोग करने जा रहे थी।
सुगना और पदमा आपस में बातें करने लगी। मां और बेटी को आपस में खुलने में ज्यादा वक्त ना लगा सुगना ने अपनी सासू मां कजरी द्वारा कुछ दिन बाद (दीपवली के दिन) आयोजित किये गए प्रथम संभोग के बारे में अपनी मां पदमा को स्पष्ट रूप से बता दिया।
पदमा खुश हो गई पर जैसे ही उसका ध्यान सुगना की कमर पर गया वह थोड़ी डर गई सुगना की कोमल जांघों और उसके बीच उसकी छोटी और कोमल बुर सरयू सिंह के विशाल लंड को अपने आगोश में कैसे ले पाएगी यह सोचकर वह सिहर उठी। उसने यह सब नियति पर छोड़ दिया आखिर उस अवस्था में वह भी सुगना की ही तरह थी कोमल और कमसिन।
कुछ देर बाद हुआ दालान में बैठकर पंखा झलते हुए पद्मा सरयू सिंह को खाना खिलाने लगी। पदमा के मन में यह उत्सुकता कायम थी कि आखिर सरयू सिंह सुगना को चोदने के बारे में क्या सोच रहे होंगे। क्या उन्होंने अपनी बहू सुगना को चोदने का प्रस्ताव यूं ही स्वीकार कर लिया होगा? क्या उनके मन में इस बात का हर्ष होगा या वह ऐसा करने को विवश हो रहे होंगे?
जितना व सरयू सिंह को जानती थी उससे ज्यादा उनके लंड को। सरयू सिंह के मन में चाहे जो चल रहा हो धोती के अंदर वह जादुई लंड सुगना के बुर में जाने के लिए अवश्य उछल रहा होगा इतना पदमा अवश्य जानती थी।
सरयू सिंह मन में कई भाव लिए खाना खा रहे थे। कभी पदमा को देखते कभी रोटी को। वह पदमा को चोदना तो हमेशा से चाहते थे पर इस समय वह सुगना में खोए हुए थे। आखिर पद्मा ने पूछ ही दिया
"कजरी जी मंदिर में मिलल रहली सुगना के दुख के बारे में बतावत रहली"
"हा कुछ त करहीं के परि"
उन्होंने गंभीर मुद्रा में कहा। वह इस बारे में ज्यादा बात करने से बच रहे थे।
आखिर वह यह बात करते भी कैसे जिस लंड से वह पद्मा को चोद चुके थे उसी लंड से उसकी पुत्री को चोदने जा रहे थे।
तभी पद्मा का ध्यान सरयू सिंह के माथे पर कीड़े द्वारा काटे गए निशान पर गया। पद्मा ने पूछा..
"ई कइसे लाग गइल हा"
सरयू सिंह से जवाब देते न बना। वह पदमा से किस मुंह से कहते कि नियति ने यह इनाम उन्हें सुगना की कोमल बुर देखने के उपलक्ष्य में दिया है।
पद्मा ने कहा
"एक बात बोली मानब"
"हा बोल...अ"
"दीपावली के दिन हमार सुगना बेटी के ध्यान राखब बहुत कोमल और सुकवार बीया तनी धीरे धीरे आगे बढ़ब"
सरयू सिंह भावुक हो गए और बोले। उनकी प्रेमिका अपनी बेटी को धीरे धीरे चोदने का आग्रह कर रही थी। पर शायद पदमा को नहीं पता था सरयू सिंह भी सुगना से उतना ही प्यार करते थे जितना पदमा स्वयं यह तो नियति ने साजिश रचकर उनके प्यार में वासना का पुट डाल दिया था और अब वह अपनी प्यारी पुत्री समान बहू को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे।
"तहर बेटी के खुश राखल हमार जिमेवारी बा बाकी सुगना ने पूछ लिह"
सरयू सिंह की बात सुनकर पदमा संतुष्ट हो गई उसे यह बात पता थी कि सरयू सिंह कभी भी स्त्रियों के साथ आक्रामक नहीं होते थे वह उन्हें जी भर कर प्यार करते और मन भर चोदते थे। वह स्वयं उनकी इस कला की प्रत्यक्ष गवाह थी और हमेशा अपनी जाघें खोले उनसे चुदने के लिए तैयार थी।
आज पदमा ने अपनी कामुकता को दवा लिया था वह सुगना के प्रति चिंतित भी थी और मन ही मन सुगना के प्रथम संभोग के सुखद होने की कामना कर रही थी। सरयू सिंह पर उसे पूरा विश्वास था पर उनका जादुई लंड…... पदमा को उसकी करतूतें याद थी।
अपनी जांघों के बीच फंसे सरयू सिंह के लंड को सोचकर वह सिहर उठती। कितना शैतान था वह लंड पदमा की कोमल बुर को जी भर चोदने के बाद भी उसकी प्यास ना बुझती। आखिर पदमा को अपने होठों और नितंबों को भी मैदान में उतारना पड़ता तब जाकर लंड अपने अभिमान का परित्याग करता और वीर्य रस बहाते हुए पदमा के सामने नतमस्तक हो जाता।
पदमा द्वारा बनाया बेहतरीन खाना खाकर बिस्तर पर लेट कर आराम करने लगे वह शाम की कल्पना में डूबे हुए थे उनकी दोनों परियां एक साथ एक ही घर में थी क्या आज उनकी रात गुलजार होगी ? यह प्रश्न मन में लिए हुए वह निद्रा देवी की आगोश में चलें गए।
पदमा आज अपनी सुगना को प्रसन्न देखकर स्वयं भी बेहद खुश थी. सुगना अपनी छोटी बहनों सोनी मोनी के साथ खेल रही थी खेलते समय उसकी उम्र कुछ और भी कम हो गई। पदमा सुगना के बारे में सोच सोच कर कभी घबराती कभी शरमाती और कभी कभी उत्तेजित हो जाती।
सुगना एक पूर्ण युवा नारी थी जो संभोग की प्रतीक्षा में थी नियति ने मिलन का दिन निर्धारित भी कर दिया था पर अभी इस वक्त उसे खेलते देखकर पदमा की ममता जाग उठी वह कैसे अपनी फूल सी बच्ची को सरयू सिंह जैसे मर्द के हाथों चुदने के लिए छोड़ सकती थी।
पदमा भावनाओं में खो गई उसने सुगना को अपने पास बुलाया और अपने आलिंगन में ले लिया। सुगना की चूँचीयां अपनी मां की चुचियों से सट गई। सुगना की चूँचियां तनी हुई थी। अभी कल ही सरयू सिंह की मजबूत हथेलियों ने उसकी चुचियों को नया आकार देने की कोशिश की थी। सुगना ने भी अपनी मां को गले से लगा लिया। सुगना ने पूछा
"का भइल मां?"
पदमा की आंखों में आंसू थे. उसने कहा "कुछ ना बेटा जा खेल.."
पदमा नियति का यह निराला खेल देख रही थी. उसने सब कुछ ऊपर वाले पर छोड़ दिया जो सुगना के भाग्य में लिखा था वह घटित होना था. उसने अपने आप को इसी बात से संतुष्ट कर लिया कि सरयू सिंह निश्चय ही उसके अनुरोध का ख्याल रखेंगे और सुगना के साथ कोई कामवेग में कोई ज्यादती नहीं करेंगे।
वह शाम के खाने की तैयारियों में लग गई
खाना पीना खाने के पश्चात सोनी और मोनी सोने चली गई। पदमा का भाई सोनू भी खेत रखाने ट्यूबवेल पर चला गया घर में पदमा और सुगना रसोई के कार्य निपटा रही थी।
बाहर दालान में सरयू सिंह अपने ख्वाबों में खोए हुए थे। वह आज रात के लिए व्यग्र थे। उनके मन में इस रात के लिए कोई पटकथा तैयार नहीं थी वह कभी सुगना के बारे में सोचते कभी पदमा के। उन दोनों के बारे में सोच कर ही उनका लंड धोती में खड़ा हो चुका था जिसे वह बीच-बीच में थपकीया देकर सुलाने की कोशिश करते पर अपनी भूतपूर्व और वर्तमान प्रेमिकाओं को आंगन में घूमते और आपस में बातें करते देख कर उनका लंड सोने को तैयार न था। उसे अपनी प्रेमिकाओं की प्रतीक्षा थी।
कहते हैं जब अपनी प्रेमिका को सच्चे दिल से पुकारो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने के लिए लग जाती है. आज सरयू सिंह के लंड का सबसे ज्यादा इंतजार सुगना कर रही थी वह अपने बाबू जी से अपने ही घर में मिलने के लिए बेचैन थी।
पद्मा ने उसके मन की बात पढ़ ली और कहा "जा अपना ससुर जी के तेल लगा द, रास्ता चलत चलत थक गईल होइहें"
सुगना की प्रसन्नता की सीमा न रही उसने लकड़ी के चूल्हे पर कड़ाही में तेल गर्म किया और कटोरी में लेकर दालान में आ गई. पद्मा ने आगन से आवाज दी
"सुगना बेटी तेल लगा कर हमारे कोठरी में आ जाइह" सुगना खुशी-खुशी अपने बाबू जी के पास आकर उनके पैरों में तेल लगाने लगी. सरयू सिंह के मजबूत पैरों पर सुगना की कोमल हथेलियां फूल जैसी लग रही थीं फिर भी सुगना की हथेलियों का दबाव उन्हें अच्छा लग रहा था। जैसे-जैसे सुगना की हथेलियां ऊपर बढ़ती गई लंड मुस्कुराने लगा। जाने क्यों उसे यह प्रतीत हो रहा था जैसे वह कोमल हथेलियां उसका भी ख्याल रखेंगी.
सुगना स्वयं उस जादुई अंग को अपने हाथों में लेना चाहती थी परंतु दीए की रोशनी में अपने बाबूजी का लंड पकड़ना उसे अच्छा नहीं लग रहा था। नियति ने फिर उसका साथ दिया और एक ठंडी हवा के झोंके ने दिया बुझा दिया पर झरोखे से आ रही चांदनी कमरे को अभी भी थोड़ा प्रकाशमय की हुई थी। सुगना का गोरा चेहरा सरयू सिंह की आंखों में चमक रहा था। सुगना की हथेलियां धीरे-धीरे अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ रही थी। सरयू सिंह अपना लंगोट पहले ही खोल चुके थे।
कुछ ही देर में सुगना के तेल से भीगी हुयी हथेलियों ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में ले लिया। सरयू सिंह सिहर उठे। अपनी बहू के हाथ में अपना लंड महसूस कर उनकी उत्तेजना सातवें आसमान पर पहुंच गयी। लंड से रिश्ता हुआ वीर्य सुगना की हथेलियों से छू गया।
सुगना अब चिपचिपे द्रव्य को आसानी से पहचान लेती थी। उसकी हथेलियों ने सरयू सिंह के वीर्य की बूंदों को उनके ही सुपारे पर फैला दिया और अपनी छोटी हथेलियों से उसकी मालिश करने लगी। वह आई तो थी अपने बाबूजी के पैरों की मालिश करने पर अब जो वह कर रही थी वह उसके बाबूजी को भी उतना ही पसंद था जितना खुद उसको।
वह अपनी हथेलियों से कभी उसे नापने की कोशिश करती कभी उसकी गोलाई महसूस करती और कभी अपनी दोनों हथेलियों से उसे ऊपर नीचे करने लगती। लंड बार-बार उसकी हथेलियों को ऊपर की तरफ खींच रहा था। इस उम्र में भी शरीर सिंह के लंड में जाने इतनी ताकत कहां से रहती थी। सुगना उस लंड से खेलने लगी।
कुछ देर बाद सरयू सिंह ने उसे अपने पास बुला लिया। सुगना उनके पेट के पास आकर बैठने लगी।
सुगना ने लहंगा पहना हुआ था जैसे ही वह बैठ रही थी सरयू सिंह ने अपने दाहिने हाथ से उसके लहंगे को सरकाया और अपनी हथेली को सुगना के नितंबों के नीचे रख दिया। सुगना लगभग उनकी हथेली पर बैठ चुकी थी। अपने कोमल नितंबों के नीचे सरयू सिंह की मजबूत हथेली को पाकर वह आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा कर रही थी। कुछ ही देर में सरयू सिंह की उंगलियां सुगना की बुर की फांकों को सहलाने लगी। सुगना की उत्तेजना बढ़ रही थी सुगना की बुर ने सरयू सिंह की उंगलियों को अपने मदन रस से भिगो दिया। सरयू सिंह की मध्यमा उंगली सुगना की कोमल बुर के अंदर एक बार फिर प्रवेश कर गई।
सुगना आनंद में डूब रही थी जितना आनंद उसे अपने लहंगे के नीचे प्राप्त हो रहा था वह प्रत्युत्तर में उतना ही आनंद सरयू सिंह के लंड को सहला कर उन्हें प्रदान कर रही थी।
सरयू सिंह भी दोहरे आनंद में डूबे हुए थे एक तरफ उनकी हथेलियों को सुगना की कोमल बुर् का स्पर्श मिल रहा था जिसकी संवेदना उनके दिमाग तक भी जा रही थी उसी संवेदना लंड तन जा रहा था। उधर सुगना की हथेलियां उसे और उत्तेजित कर रही थीं। कुछ ही देर में सुगना की कोमल हथेलियों ने सरयू सिंह के लंड की अकड़ ढीली कर दी।
सुकुमारी सुगना के प्रयासों से लंड से वीर्य प्रवाह होने लगा वीर्य की धार उछल कर सुगना के गाल पर जा पड़ी। उछलते समय लंड को पकड़ना सुगना के लिए कठिन हो रहा था। इसी बीच सरयू सिंह की उंगलियों का कंपन बढ़ गया और सुगना की बुर भी पानी छोड़ने लगी। इस दोहरी उत्तेजना से वह वह वीर्य वर्षा को सही दिशा न दे पायी और सरयू सिंह के वीर्य की धार में वह खुद भी भीग गई और उसका कुछ अंश सरयू सिंह के चेहरे और सीने पर जा गिरा।
सरयू सिंह के लंड की उत्तेजना शांत पढ़ते ही सरयू सिंह ने सुगना को अपनी तरफ खींच लिया। और उसके गालों को चूमने लगे। सुगना ने भी उनके होठों से अपने होंठ सटा दिए और उनके होठों पर लगा उनका वीर्य अनजाने में अपने होठों पर ले लिया।
सरयू सिंह की मध्यमा उंगली जो सुगना के काम रस से पूरी तरह भीगी हुई थी उसे सरयू सिंह ने अपने होठों से सटा लिया। सुगना उस उंगली पर चमकते हुए अपने काम रस को देखकर शर्मा गई सरयू सिंह ने सुगना की आंखों में देखा और अपनी उंगली को अपने मुंह में भर लिया।
सुगना अपने बाबू जी की इस हरकत पर सिहर उठी। क्या उसके बाबूजी उसकी बुर का स्वाद ले रहे हैं? क्या बाबूजी को वह स्वाद पसंद आ रहा है? क्या कभी वह अपने होठों से उसके बुर का स्वाद लेंगे? सुगना सिहर रही थी वह उनसे अपनी आंखें और मिला पाने में खुद को असहज महसूस कर रही थी.
वह बिस्तर से उठी अपने बाबूजी के लंड को धोती से ढका और कटोरी में बचा हुआ तेल लेकर वापस आंगन में आ गई। पदमा कोठरी में उसका इंतजार कर रही थी। सुगना ने अपने चेहरे और चूचियों को साफ किया जो शरीर सिंह के वीर्य से गीली हो चुकी थी। सुगना ने अपने शरीर पर से वीर्य तो पोछ लिया था पर उसकी चोली और लहंगे पर जगह-जगह वीर्य के दाग पड़ चुके थे। सुबह उठने पर पद्मा ने वह दाग देखा और बोला
"सुगना बेटा ई का लगा ले लु हा"
सुगना ने जबाब न दिया।सुगना को अब जाकर एहसास हुआ की प्रेम रस का अपना दाग होता है वह शरमा गई और नहाने चली गई।
पदमा के मन में यह शंका उत्पन्न हो चुकी थी कि क्या सुगना के लहंगे पर लगा वीर्य सरयू सिंह का ही था? तो क्या सरयू सिंह ने सुगना के साथ नज़दीकियां बना ली थी? क्या सुगना ने सरयू सिंह के जादुई लंड को अपने हाथों में लेकर स्खलितकिया था या फिर सुगना पहले ही चुदाई का आनंद ले चुकी थी।
पदमा अपने ख्यालों में खोई थी पर उसके पास कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था। वह सुगना से और बातें करना चाहती थी पर समय का अभाव था आज ही सुगना और सरयू सिंह को वापस अपने गांव निकलना था
कुछ ही समय बाद सरयू सिंह और सुगना वापसी यात्रा के लिए निकल चुके थे। आज धनतेरस का दिन था 2 दिनों बाद दिवाली थी। सुगना और उसकी बुर दिवाली मनाने के लिए पूरी तरह तैयार थी।
शेष अगले भाग में।