• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

  • yes

    Votes: 35 100.0%
  • no

    Votes: 0 0.0%

  • Total voters
    35

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,474
144
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
Smart-Select-20210324-171448-Chrome
भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,474
144
सुगना आज अपने मायके से विदा हो रही थी। गवना के बाद यह पहला अवसर था जब सरयू सिंह सुगना को विदा कराकर ला रहे थे ससुर बहू का संबंध अब बदल रहा था सुगना अपने ससुराल जा रही थी पर उसके दिलो-दिमाग पर उसके पति रतन की जगह उसके बाबूजी सरयू सिंह छाए हुए थे. सुगना बेहद प्रसन्न थी पद्मा ने सुगना को कॉटन की एक नई साड़ी उपहार में दी और उसे अपने हाथों से पहना दिया सुगना बेहद सुंदर लग रही थी।

जाते समय पद्मा ने सुगना को दीपावली की बधाई दी और उसके कान में कहा

"भगवान तोहरा के हमेशा खुश रखे तहर हर मनोकामना भगवान पूरा करें. दीपावली तहरा खातिर ढेर खुशियां ले के आये"

दीपावली का नाम सुनकर सुगना सिहर उठी।

सुगना की आंखों में अपनी मां से बिछड़ने का अफसोस था पर सरयू सिंह के साथ दीपावली मनाने की खुशी। वह अब उनका संसर्ग पाने को अधीर हो चली थी। सुगना का भाई सोनू और दोनों छोटी बहन उसे गांव के बाहर तक छोड़ने आए और उसके बाद सुगना अपने बाबूजी के पीछे पीछे अपने ससुराल के लिए चल पड़ी। गांव से दूर आते हैं सुगना अपने बाबूजी के साथ साथ चलने लगी

सरयू सिंह ने कहा

"दिवाली के बात ताहरा मां के मालूम बा?"

"हां, बुझाता सासू मां बतावले बाड़ी"

"तू तो खुश बाड़ू नु?"

"रउआ नइखी का"

सरयू सिंह के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। सुगना अब एक प्रेमिका की भांति बर्ताव कर रही थी।

नियति सरयू सिंह और सुगना का मिलन सुनियोजित कर चुकी थी। दोनों ही तरफ आग लगी हुई थी सुगना की अधीरता बढ़ती जा रही थी। नियति ने इस आग को भड़काने की कोशिश की और आसमान से बूंदाबांदी होने लगी। इस मौसम में वैसे कभी बरसात नहीं होती थी पर आज कुछ नया था।

आसपास सिर्फ और सिर्फ खेत थे जिन में धान की फसल लहलहा रही थी सरयू सिंह और सुगना परेशान हो गए। कुछ दूर एक बरगद का पेड़ दिखाई दे रहा था। सरयू सिंह और सुगना ने अपने पैरों की रफ्तार बढ़ा ली। सुगना कोमलांगी थी और शरीर सिंह गठीले मर्द। सुगना उनका साथ दे पाने में असमर्थ हो थी फिर भी भागते भागते वह दोनों प्रेमी युगल बरगद के पेड़ के नीचे पहुंच गए।

सुगना और सरयू सिंह थोड़े-थोड़े भीग गए थे। सुगना के चेहरे पर पानी की बूंदे उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रही थी काटन की साड़ी भीग कर उसके बदन से चिपक गई सुगना की चूँचियां अपना उभार दिखाने लगी थी। अपने बाबू जी की निगाहें अपने चुचियों पर महसूस कर सुगना ने अपना आंचल ठीक किया और चुचियों को एक बार फिर आंचल से ढक लिया। सरयू सिंह अपनी बहू की यह अदा देख रहे थे उनका लंड चुचियों के दर्शन मात्र से ही खड़ा हो चुका था। उन्हें अपने लंगोट पहने होने पर अफसोस हो रहा था। उन्होंने सुगना से अपनी नजर घुमाई और पीछे मुड़कर अपने लंड को लंगोट से बाहर निकाल दिया।

धोती और कुर्ते के अंदर छुपा लंड ऐसा लग रहा था नाग पिटारे से निकालकर चादर ओढ़े बैठा हो। सुगना इस अप्रत्याशित बारिश से डरी हुई थी। आकाश में बिजली कड़कना शुरू हो चुकी थी। वह सरयू सिंह के पास आती जा रही थी। बरगद का पेड़ अभी भी उन्हें पानी से बचा रहा था पर कब तक?

बिजली कड़कने की आवाज से सुगना बेहद डर गई और सरयू सिंह से आकर सट गई. सरयू सिंह ने उसे अपने आगोश में ले दिया उसकी चूचियां उनके सीने से टकराने लगी. सुगना जैसी कोमलंगी बहु को अपने आगोश में लिए सरयू सिंह मदहोश हो गए उन्हें यह ध्यान न रहा कि वह उनकी बहू सुगना है उनकी भौजी कजरी नहीं। वह उसके नितंबों और पीठ पर अपने हाथ फिराने लगे सुंदर युवती उनकी हमेशा से कमजोरी थी। इस भरी दुपहरी में वह अपनी बहु सुगना के अंग प्रत्यंगो को छूने लगे सुगना स्वयं भी मस्त हो गई थी। उसका डर अब उत्तेजना में बदल चुका था। उसने सरयू सिंह के लंड को अपने पेट पर महसूस कर लिया था।

सरयू सिंह के मन में आया कि वह सुगना की साड़ी उठा दे और गदराये नितंबों की मखमली त्वचा को अपने हाथों से महसूस करें। उन्हें अपनी उत्तेजना पर शर्म भी आई। क्या हुआ इतने अधीर हो चले थे कि अपनी बहू को दिन के उजाले में खुले खेत में नंगा करने को तैयार है। वह नई नई जवान हुई थी उसे इस तरह नंगा करना सर्वाधिक अनुचित था।

सरयू सिंह सुगना से अलग हुए और बरगद की जड़ पर पालथी मारकर बैठ गए सुगना अभी भी खड़ी थी उसे सरयू सिंह ने अपने आलिंगन से अलग कर उसका मन तोड़ दिया था। वह तो उस आलिंगन का आनंद ले रही थी तभी सरयू सिंह ने उसे बैठने के लिए कहा वह नीचे बरगद की जड़ पर बैठने लगी।

सरयू सिंह ने अपनी गोद की तरफ इशारा किया और बोले

"सुगना बेटा नया साड़ी गंदा हो जायी एहिजे बैठ जा"

सुगना प्रसन्न हो गई सरयू सिंह ने उसे अपनी गोद में ही बिठा लिया सुगना के नितंब सरयू सिंह के गोद में आ गए। कितनी कोमल थी सुगना। उनकी एड़ियों पर सुगना के गोल नितंब मुलायम तकिए के जैसे लग रहे थे। सरयू सिंह अपने अंगौछे से सुगना के गालों पर आई पानी की बूंदे पोछने लगे। उन्हें सुगना का चेहरा तो नहीं दिखाई दे रहा था पर उसके नाक नक्श का उन्हें भरपूर अंदाजा था सुगना उनके प्यार से अभिभूत हो रही थी और अपना प्रेम अपनी जांघों के बीच मदन रस छोड़कर जता रही थी। क्या उसके बाबूजी उसका प्यार समझ पाएंगे ? वह उनकी उंगलियों और लंड का स्पर्श अपनी बुर पर चाह रही थी।

जब भावनाएं और विचार एक तो लक्ष्य एक हो ही जाता है। सरयू सिंह स्वयं उत्तेजित हो चले थे । सुगना के कोमल नितंब उनके लंड से भी छू रहे थे। सुगना के चेहरे को पोछने के बाद उन्होंने सुगना के गर्दन और नीचे के भाग को छूना शुरु कर। दिया जैसे जैसे बिजली कड़कती सुगना की पीठ सरयू सिंह के सीने सट जाती। सरयू सिंह अपनी भुजाओं से सुनना को अपनी तरफ खींच लेते।

वह उनकी गोद में बेहद सुंदर लग रही थी। सरयू सिंह की हथेलियों ने अपना रास्ता खोज लिया। सुगना की गोल-गोल चूचियाँ उनकी हथेलियों में आ चुकी थी। कुछ देर तो वह उन्हें साड़ी के ऊपर से ही सहलाते रहे पर वह न सुगना को रास आ रहा था ना सरयू सिंह को। सरयू सिंह को ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह पन्नी में भरकर रसगुल्ला खा रहे थे। उनकी हथेलियों ने सुगना की ब्लाउज के अंदर जाकर सुगना की नंगी चूचियों को अपने आगोश में ले लिया। सुगना सिहर उठी पर खुश हो गई।

अपनी चुचियों पर अपने बाबूजी का हाथ उसे बेहद अच्छा लगता था। उसकी बुर अपने होंठ खोल रही थी। प्रेम रस के बहने से बुर की दोनों फांकें थोड़ी फूल गई थी। शायद यह सुगना की उत्तेजना के कारण था। एक कुंवारी नवयौवना अपने बाबू जी की गोद में बैठी हुई अपनी चूची मीसवा(दबवा) रही थी यह उसके लिए स्वर्गिक सुख से कम न था।

जब जब बिजली कड़कती सरयू सिंह की हथेलियां अनजाने में ही उसकी चुचियों को जोर से दबा देतीं। सुगना कराह उठती

"बाबूजी तनी धीरे से…….दुखाता"

सरयू सिंह अपनी बहू की कोमल कराह से द्रवित हो जाते और उसके गर्दन और गालों को चूमने लगते. सुगना उत्तेजना से कांप उठती इस ठंडक में सरयू सिंह की सांसे उसे बेहद मर्मस्पर्शी और अपनत्व से ओतप्रोत लगतीं। वह अपने चेहरे को पीछे कर उनके गाल से अपने गाल सटाती तथा कभी-कभी उन्हें चूमने का प्रयास करती।

नियति बरगद के पेड़ पर बैठे हुए यह प्रेमा लाप देख रही थी उसे अपने निर्णय पर गर्व हो रहा था। उम्र का फासला हटा दें तो सरयुसिंह और सुगना जैसे एक दूसरे के लिए ही बने थे।

सरयु सिंह के माथे पर कीड़े का काटा हुआ दाग दिखाई दे रहा था। उनके खूबसूरत चेहरे पर एक वह एक धब्बे के जैसा दिखाई पड़ रहा था। जाने वह कौन सा कीड़ा था जिसने सरयू सिंह की खूबसूरती पर एक दाग लगा दिया था। ऐसा प्रतीत होता था जैसे जब वह सुगना के साथ कामुक गतिविधियां करते समय वह दाग और बढ़ जाता था।

सुगना की निगाह जब भी उस दाग पर जाती वह अपनी उंगलियों से उसे सहलाती और कई बार उसे चूम लेती। उसे बार-बार यही अफसोस होता कि उस दिन उसके लहंगे से कीड़ा निकालते समय उसके बाबूजी को यह दाग मिला था। पर उसका कोमल मन यह जानता था की यही वह पहला दिन था जब उसकी कोमल और कमसिन बुर के दर्शन बाबूजी ने किए थे।

सरयू सिंह के चूमने और सहलाने से सुगना उत्तेजित हो चली थी वह अपने बाबू जी की गोद में हिलडुल रही थी। अचानक ही सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा सा उठाया और अपने साड़ी को स्वयं ही पीछे करते गई। सरयू सिंह सुगना की यह गतिविधि देख रहे थे थोड़ी ही देर में सुगना की साड़ी उसकी कमर तक आ गई और उसके कोमल नितंब पूरी तरह नग्न हो गए इसी दौरान सरयू सिंह ने अपने लंड को धोती से अलग कर दिया। सुगना जब उनकी गोद में बैठी लंड उसकी जांघों के बीच से होते हुए ऊपर उसकी नाभि तक आ गया।

लंड पर सुगना की पेटीकोट और साड़ी का आवरण था। वह सुगना की साड़ी में एक तंबू बनाए हुए था। सुगना उस लंड की ताकत को देखकर सिहर भी रही थी और आनंदित भी हो रही थी। उसने अपनी हथेलियों से सरयू सिंह के लंड को साड़ी के ऊपर से ही सहलाना शुरु कर दिया।

सरयू सिंह थोड़ा पीछे छुक गए और सुगना को आरामदायक स्थिति प्रदान कर दी। सुगना ने अपने शरीर को एक बार फिर साड़ी से ढक लिया था पर नीचे उसके नितंब और जांघें पूरी तरह नग्न थी जो उसके बाबूजी के पैरों और जांघों से छू रही थीं।

सरयू सिंह का लंड सुगना की पनियायी बुर से छूता हुआ ऊपर की तरफ आ गया था। कोई दूर बैठा व्यक्ति यह तो देख सकता था कि सुगना अपने बाबू जी की गोद में बैठी है पर यह कल्पना भी नहीं कर सकता था सरयू सिंह का लंड सुगना की बुर से छू रहा था।

उनकी प्यारी बहू उस लंड को अपनी साड़ी के ऊपर से सहला रही थी। सरयू सिंह सुगना की कोमल बुर का स्पर्श अपने लंड पर पाकर अभिभूत हो चले थे। एक पल के लिए उन्हें लगा काश आज दीपावली होती वह अपनी कजरी भौजी की इच्छा आज ही पूरी करते देते।

बुर से निकल रहा चिपचिपा रस लंड पर भी लग रहा था। उस प्रेम रस पर सर्वाधिक अधिकार सरयू सिंह के लंड के सुपारे का था जिसने नहा कर उसे सुगना की बुर की गहराइयां नापनी थीं। पर वह बेचारा उससे दूर था। सुगना इस बात से अनजान सुपारे को अपने पेटीकोट और साड़ी के ऊपर से सूखा ही रगड़ रही थी।

सरयुसिंह सुगना की उंगलियों का कोमल स्पर्श अपने सूपारे पर चाह रहे थे। पर सुगना शायद इतनी समझदार न थी। सरयू सिंह ने स्वयं ही मोर्चा संभाल लिया उनके हाथ सुगना की नंगी जांघों को छूने लगे धीरे-धीरे वो अपने हाथ अपने लंड की तरफ ले गए और अपने लंड को छूने की कोशिश में उन्होंने सुनना कि को बुर को भी न सिर्फ छू दिया अपितु उसके होंठों पर रिस आये प्रेम रस चुरा कर अपने लंड पर लगा दिया

सुगना इस प्रेम रस की चोरी से प्रसन्न हो गई वह उनकी उंगलियों का इंतजार एक बार फिर करने लगी। सुगना और उसके बाबुजी अब तक पूरी तरह उत्तेजित हो चले थे। वह अपने लंड को सुनना की बुर पर रगड़ रहे थे पर लंड का सुपाड़ा बुर् का स्पर्श नहीं कर पा रहा था। वह सुगना की गोरी जांघों के बीच से निकालकर बुर से सट रहा था और सुगना के हाथों में खेल रहा था। ऐसा लग रहा था सरयू सिंह के उस नाग को पकड़ने में वह और उनकी बहू दोनों मेहनत कर रहे थे। सुगना की बुर पूरी तरह पनिया चुकी थी। शरीर सिंह अपने लंड को लगातार उसकी बुर से सटाए हुए थे।

सुगना की बुर लंड को अपने अंदर लेना चाह रही थी पर अभी दिवाली दूर थी। सरयू सिंह की करामाती उंगलियों ने सुगना की बुर के दोनों होठों और भगनासे को सहलाना शुरु कर दिया। थोड़ी ही देर में ससुर और बहू स्खलन के लिए तैयार हो गए। सुगना से अब बर्दाश्त ना हुआ वह अपने बापू जी की तरफ मुड़ी और उनके होठों को चूम लिया। इसी दौरान सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के भगनासे को कुरेद दिया। सुगना की बुर का फूलना पिचकना प्रारंभ हो गया।

सुगना कराह रही थी..

"बाबुजी….हा असहिं…..ए..आईईईई हममममम"

सरयू सिंह की हथेलियों को सुगना का प्रेम रस मिलने लगा सुगना ने भी अपने बाबूजी के लंड को तेजी से दबा दिया सरयू सिंह ने भी वीर्य धारा छोड़ दी।

"सुगना बाबू…..आहहहहहहह…"

सुगना की पेटीकोट और जाँघें भीगने लगीं।

सरयू सिंह सुगना की कोमल चुचियों को मीसते हुए अपना वीर्य दान कर रहे थे। (ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रक्तदान करते समय वह अपने हाथों से बॉल को मसल रहे हैं।)

ससुर और बहु की उत्तेजना धीमी पड़ रही थी साथ ही साथ नियत द्वारा नियोजित बारिश भी धीमी हो गयी थी। सरयू सिंह और सुगना एक दूसरे को चूम रहे थे। सुगना की आंखें बंद थी और सरयू सिंह की खुली। सुगना इस उत्तेजक इस स्खलन के पश्चात एकदम शांत होकर सरयू सिंह की गोद में लगभग सो गई थी।

बारिश रुक जाने का एहसास सरयू सिंह को हो चुका था उन्होंने सुगना की गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोला

"सुगना बेटी उठा पानी बंद हो गईल"

सुगना ने अपनी आंखें खोली और बंद हुई बारिश को देखकर प्रसन्न हो गयी। वह धीरे-धीरे सरयू सिंह की गोद से उठ खड़ी हुई। साड़ी और पेटीकोट ने स्वतः ही सुगना की नंगी जांघों और स्खलित हुई बुर को ढक लिया। अपनी चुचियों पर सिकुड़ी अपनी साड़ी देखकर सुगना शर्मा गयी। आज इस बरगद के पेड़ के नीचे खुले आकाश में अपने बाबू जी की गोद मे स्खलित हुई थी। यह बरगद का पेड़ उसकी उत्तेजना और अनूठे प्रेम का गवाह था। ससुर और बहू आगे का सफर तय करते हुए घर तक आ पहुंचे कजरी सुगना को देखकर खुश हो गई।

जैसे-जैसे दिवाली करीब आ रही थी सुगना अपने बाबू जी से खुल रही थी। जिस दिन उसके शरीर पर मक्खन गिरा था और उसके बाबूजी ने उसके नंगे शरीर को जी भर सहलाया और उसका कौमार्य हरण किया था वह दिन उसकी याददाश्त में एक अमिट छाप छोड़ गया था। कैसे वह अपने बाबुजी के साथ नंगे होकर कुछ देर तक उनकी गोद में रही थी और अपने बुर पर उनकी हथेलियों का स्पर्श महसूस की थी।

जब जब इस बारे में सोचती उसका शरीर सिहर उठता। सरयू सिंह के दिमाग में भी नग्न सुगना की वह तस्वीर कैद हो गयी थी और वह अपनी सुगना को फिर नग्न देखना चाहते थे और जी भरकर उसके अंगों से खेलना चाहते थे।

दीपावली का त्यौहार उन दोनों के लिए ढेर सारी खुशियां लेकर आने वाला था। कजरी भी खुश थी उसकी बहू उस दिन गर्भवती होने वाली थी।

पर क्या सच में सुगना गर्भवती होना चाहती थी? सुगना मन ही मन अब यौन सुख का आनंद लेने लगी थी वह अपने बाबूजी का संसर्ग तो चाहती थी पर अब उसके मन में गर्भवती होने की इच्छा गौड़ हो चली थी। वह अपने बाबू जी से सिर्फ और सिर्फ चुदना चाहती थी। उसने अपनी सहेलियों से जितना सुन रखा था वह सारा योग प्रयोग वह अपने बाबूजी के साथ करना चाहती थी। एक अकेले वही मर्द थे जिन्होंने आज तक सुगना को छुआ था। वह उनसे अपने सारे अरमान पूरा करना चाहती थी।

क्या उसके बाबूजी उसकी इच्छाओं की पूर्ति करेंगे? या दीपावली के दिन अपने वीर्य को उसके गर्भ में भरकर उसे गर्भवती कर देंगे? यदि वह गर्भवती हो गई तो वह यौन सुख कैसे ले पाएगी? क्या वह उस बछिया की तरह ही बन जाएगी?

सुगना ने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी से चुदेगी तो जरूर पर गर्भवती नहीं होगी। वह बछिया नही थी जीती जागती अतिसुन्दर स्त्री थी कामसुख पर उसका भी हक था। यह विचार उसकी सास कजरी के आदेश से अलग था पर सुगना मजबूर थी। उसके दिलो-दिमाग पर अब उत्तेजना ने घर जमा लिया था।

कजरी को सुगना की बदली हुई मनोदशा का अंदाजा न था। सरयू सिंह खुद भी अपनी सुगना को जी भर कर प्यार करना और चोदना चाहते थे उनके मन में भी सुगना के प्रति तरह-तरह के अरमान पनप रहे थे परंतु वह अपनी कजरी भौजी के आग्रह को टाल पाने की स्थिति में नहीं थे। उन्हें दीपावली के दिन बहु के गर्भ में अपना वीर्य छोड़ना था जो कजरी की इच्छा थी।

दोनों तरफ विचार अलग थे सरयू सिंह के मन में सुगना के प्रति उत्तेजना तो थी पर वह कजरी की बात को नजरअंदाज नहीं करना चाहते थे।

अगला दिन सुगना और सरयू सिंह के लिए पहाड़ जैसा बीत रहा था वो दोनों दीपावली की शाम का इंतजार बेसब्री से कर रहे थे।
आखिरकार सुगना का इंतजार खत्म हुआ। दीपावली का दिन आ चुका था सुबह से ही घर में जश्न का माहौल था। कजरी भी खुश थी। आज उसकी बहू को बहुप्रतीक्षित कामसुख मिलने वाला था जिस की कामना वह पिछले 6 महीनों कर रही थी।

कजरी स्वयं भी काफी प्रसन्न थी क्योंकि वह इस मिलन की प्रणेता थी हालांकि वह एक निमित्त मात्र थी जिसे नियति ने एक मोहरे के रूप में प्रयोग किया था।

सरयू सिंह तो उन्माद में थे। आज वह अपनी बहू सुगना को उसकी इच्छा अनुसार चोदने जा रहे थे। सुगना से वह बेटी का दर्जा पहले ही छीन चुके थे आज वह उसे बहु भी न मान रहे थे। जो कामुकता उस सांड के मन मे सुगना की बछिया के प्रति थी वही कामुकता सरयू सिंह सुगना के प्रति संजोये हुए थे।

उनकी कजरी भौजी और सुगना की मां पदमा की सहमति ने इस उन्माद को और बढ़ा दिया था। इतनी कामुकता के बावजूद संबोधनों में अभी भी वैसा ही प्यार कायम था। सुगना आज भी उन्हें बाबुजी ही बुलाती उसके कुँवर जी न कहा जाता। वही हाल सरयू सिंह का था। वह सुगना को या तो सुगना बेटी बुलाते या सुगना बेटा पर सिर्फ सुगना उनके मुह से चाह कर भी नहीं निकलता।

संबोधनों का यह प्यार अब वासना का अवरोधक न रहा अपितु सुगना की बुर बाबुजी बोलते समय मचल उठती।

उधर सरयू सिंह ऐसा सुंदर संयोग बनाने के लिए वह ऊपर वाले के शुक्रगुजार थे और धोती में फनफनता हुआ लंड लेकर अपनी बहू सुगना को चोदने के लिए तैयार थे।

आसमान में सूरज ढलने लगा था सरयू सिंह की अधीरता बढ़ती जा रही थी जिस तरह जयंद्रथ महाभारत के युद्ध में सूर्यास्त की प्रतीक्षा कर रहा था उसी प्रकार सरयू सिंह भी सूर्यास्त का इंतजार कर रहे थे।

सुगना नहा रही थी। इधर कजरी अपनी बहू सुगना की दीपावली यादगार बनाने की तैयारी कर रही थी। उसके जीवन में यह संभोग सुख कुछ समय की बात थी। जैसे ही वह गर्भवती होती कुंवर जी उसके साथ संभोग बंद कर देते। कजरी मन ही मन इस बात से डरी भी हुई थी कि कहीं सरयू सिंह अपने उन्माद में इस कोमलंगी के साथ ज्यादती ना कर दें। परंतु जिस प्यार से सरयू सिंह सुगना को संबोधित करते थे उसे विश्वास था वह अपनी बहू को कष्ट नहीं देंगे। उस बेचारी कजरी को क्या पता था सरयू सिंह सुगना के शरीर को अद्भुत संभोग के लिए पूरी तरह तैयार कर चुके थे।

जैसे ही सुगना नहा कर अपने कमरे में आई कजरी भी पीछे-पीछे आ गई उसने कहा आज हम अपना अपना सुगना बेटी के तैयार कर दी सुगना शर्मा रही थी।

पिछले कुछ दिनों में कजरी और सुगना एक दूसरे के सुख दुख में साथ देने लगे थे वह दोनों सहेलियों की भांति रहते उम्र का अंतर उन दोनों में जरूर था पर वह दोनों एक दूसरे का बहुत ख्याल रखती थी। कजरी ने तो सुगना की गर्भवती होने की इच्छा का मान रख कर उसके दिल मे अपनी जगह बना ली थी।

कजरी सुगना के कोमल शरीर को पोछने लगी। चेहरे और कंधे पर पानी की बूंदे मोतियों के समान लग रहे थे। सुगना बेहद सुंदर थी उसकी कद काठी भगवान ने अपने हाथों से रची थी। यदि वह किसी धनाढ्य घर में पैदा हुई होती तो निश्चय ही एक अप्सरा के समान रहती। पर सुंदरता तो सुंदरता है चाहे वह गांव में हो या शहर में।

कजरी जैसे जैसे उसका शरीर पोछती गयी सुगना का खजाना उसकी आंखों के सामने आता गया। सुगना की चूचियां वह पहले भी देख चुकी थी पर आज वह उसे ज्यादा ही आकर्षक लग रही थीं।

धीरे-धीरे कजरी सुगना के पेट और जांघों को पोछने लगी। उसकी निगाहें सुगना की कोमल बुर पर टिक गयीं। हल्के बालों से घिरी हुई सुगना की कोमल बुर अपना मुंह दिखाने को तैयार न थी। सुगना खड़ी थी बुर के दोनों होंठों ने बुर् के मुंह को पूरी तरह ढक रखा था। सुगना ने भी अपनी जांघों को सिकोड़ रखा था। उसे कजरी से शर्म आ रही थी। उसे इस बात का अंदाजा नहीं था कि उसकी सास कजरी उसकी बुर को देखकर खुश हो रही थी। कजरी के मन में सुगना को लेकर प्यार के साथ-साथ कामुकता भी पैदा हो रही थी।

वह सुगना की उस कोमल बूर को छूना और चूमना चाहती थी। पर क्या यह उचित होता? कजरी मन ही मन अपनी भावनाओं को काबू कर रही थी पर वह सुगना की बुर से अपना ध्यान न हटा पा रही थी। उसके हाथ जांघों पर रुक गए थे।

सुगना ने कहा...

"मां का देखा तारे?"

सुगना खड़ी थी और कजरी जमीन पर उकड़ू बैठी हुई सुगना की जांघों को पोछ रही थी सुगना के प्रश्न से कजरी सचेत हुई उसने सुगना की जांघों के जोड़ पर बुर् के ठीक ऊपर चुंबन ले लिया और कहा

" आज हमारा सुगना बेटी के पहिली बार सुख मिली इहे सोचतानी हां"

सुगना का ध्यान आज की नशीली रात पर चला गया।

सुगना के शरीर को पोछने के पश्चात कजरी में उसके शरीर पर सुगंधित तेल लगाया जो वह विशेष रुप से सुगना के लिए ही लाई थी। सुगना का शरीर कुंदन की भांति चमकने लगा। अब सुगना की शर्म कजरी से खत्म हो रही थी। फिर भी उसे ज्यादा देर तक कजरी के सामने नग्न रहने मे असहज महसूस हो रहा था।

उसने कहा

"मां बस हो गई जा तानी कपड़ा पहने"

" रुक जा बेटा अ पहिले आलता ( एक लाल रंग जो गांव की स्त्रियां अपने पैरों में साथ सजावट के लिए लगाती हैं) लगा दीं"

"कपड़ा पहिने के बाद लगा दिह"

"नया कपड़ा बा गंदा हो जाई. हमारा से का लजा तारू, कुँवर जी से लजाइह आज रात"

सुगना सिहर उठी उसने कजरी के कंधे पर अपने कोमल हाथों से प्यार भरा प्रहार किया। दोनों हंसने लगी…

सुगना चारपाई पर बैठ गई उसने अपनी जांघो को को सटा रखा था। कजरी बार बार सुगना की कोमल बुर का गुलाबी मुखड़ा देखना चाहती थी। देखना ही क्या वह उसे चुमने को भी तैयार थी। उसके मन में यह इच्छा बलवती हो उठी थी।

अंततः कजरी को मौका मिल गया सुगना के पैरों में आलता लगाते समय उसने सुगना के दोनों पैरों को थोड़ा दूर कर दिया यह कार्य अकस्मात हुआ था पर इसने सुगना की कुवारी बुर को कजरी की प्यासी आखों के सामने कर दिया।

जिस तरह आंखों में खुशी के आंसू चमकने लगते हैं उसी प्रकार सुगना की बुर पर प्रेम रस चमक रहा था। सुगना भी रात के ख्यालों में खोई हुई थी जिसका असर उसकी बुर के होठों पर दिखाई पड़ रहा था। कजरी ने सुगना को एक बार फिर छेड़ दिया..

वह सुगना की बुर की तरफ इशारा कर बोली

"ए सुगना, ई तो बछिया नियन पनियाईल बिया" सुगना शर्म से पानी पानी हो गई. उसके गाल लाल हो गए।

कजरी ने उठकर उसके गालों को चूम लिया चूमना तो वह उसकी बुर को भी चाहती थी पर उसने अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखा।

कजरी ने सुगना को शहर से लाई हुई लाल रंग की जालीदार ब्रा और पेंटी पहनाई वह सुगना की खूबसूरती की मुरीद होती जा रही थी वह मन ही मन सुगना के प्रति आसक्त हो रही थी उसे यह बात समझ नहीं आ रही थी कि एक स्त्री होने के बावजूद उसे सुगना पर इतना प्यार क्यों आ रहा था वह उसके हर अंग को चूमना चाह रही थी और स्वयं उत्तेजित हो रही थी।

कजरी की बुर भी अब तक पनिया चुकी थी पर वह साड़ी और पेटीकोट के आवरण में कैद थी। पर निगाहों का क्या? कजरी की आंखों में वासना तैरने लगी थी सुगना ने यह देख लिया उसने पूछा

"मां तोहार अखिया काहे लाल बा?"

" कुछ ना सुगना असहिं कुछ पर गइल होइ"

कजरी ने अपनी उत्तेजना छुपा ली। कुछ ही देर में सास और बहू पूरी तरह सज संवर कर दीपावली मनाने के लिए तैयार हो गयीं। कजरी ने सुगना के आभूषणों के अलावा अपने आभूषण भी सुगना को पहना दिए थे। सुगना तो अब आसमान से उतरी हुई परी लग रही थी।

कजरी भी अपना कसा हुआ शरीर लेकर अपनी बहू सुगना से होड़ लगा रही थी यदि कोई अनजान व्यक्ति उन दोनों को एक साथ देखता तो कभी नहीं कह सकता था कि सुगना कजरी की बहू है वह दोनों दो बहनों की भांति दिखाई पड़ रही थी।

उधर सरयू सिंह सफेद धोती कुर्ता पहने एक मर्द की भांति तैयार थे एक ही ऐब आ गया था वह कीड़े द्वारा काटा गया दाग जो उन्हें अपनी सुगना बहू की बुर देखने के बदले प्राप्त हुआ था पर उन्होंने उसे अपने बालों से ढक रखा था।

घर के अंदर उनकी भौजी और बहू दोनों ही उनके लिए ही तैयार हो रही थी पर आज उनका सारा ध्यान अपनी सुगना पर था। आज का दिन अद्भुत था सुगना के लिए भी और सरयू सिंह के लिए भी। कजरी भी आज बेहद उत्साहित थी।

दीपावली का उत्सव मनाया जाने लगा।


पूजा पाठ के पश्चात सुगना और कजरी ने घर के आंगन को दिए से सजा दिया बाहर की दालान और दरवाजे पर भी दिए रखकर पूरे घर को रोशन कर दिया । आज सभी के अंतर्मन में खुशी थी सुगना के जीवन मैं भी रोशनी होने वाली थी।
शेष अगले अपडेट में
 

Lovely Anand

Love is life
1,320
6,474
144
mast..........

धन्यवाद।
इतने लंबे अपडेट पर इतनी छोटी प्रतिक्रिया। कुछ अपनी इच्छा और भावनाएं व्यक्त करें आप कहानी पढ़ते है और मैं आपकी टिप्पणीयाँ।
 
1,445
3,069
159
बहुत ही बढ़िया अपडेट है ।आखिर कार दीपावली आ ही गई ।जिस का इंतजार सुगना के साथ साथ सभी पाठकों को भी था । सुगना की पहली चुदाई वाले अपडेट का इंतजार रहेगा
 
Top