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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

whether this story to be continued?

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Lovely Anand

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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

pprsprs0

Well-Known Member
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Hot waiting for next part 🔥
मुंबई में रतन सुगना के जबाब का इंतजार कर रहा था हालांकि अभी तक उसके द्वारा भेजा गया सामान गांव पहुंचा भी नहीं था पर रतन की व्यग्रता बढ़ रही थी वह रोज शाम को अपने एकांत में सुगना और सूरज को याद किया करता। बबीता से उसका मोह पूरी तरह भंग हो चुका था।

अपनी बड़ी बेटी मिंकी से ज्यादा प्यार करने के कारण उसकी पत्नी बबीता का प्यार मिंकी के प्रति कम हो गया था। मिंकी भी अब अपनी मां के बर्ताव से दुखी रहती थी। रिश्तो में खटास बढ़ रही थी या यूं कहिए बढ़ चुकी थी।

इधर बनारस में आयोजित धार्मिक महोत्सव में जाने के लिए सरयू सिंह को मनाना आवश्यक था कजरी सुगना की तरफ देख रही थी और सुगना कजरी की तरफ परंतु इसकी जिम्मेदारी सुगना को ही उठानी पड़ी। कजरी और सुगना दोनों ही यह बात जानती थी कि सरयू सिंह सुगना की कही बात कभी नहीं टाल सकते थे सुगना के लहंगे में जादू आज भी कायम था मालपुए का आकर्षण और स्वाद आज भी कायम था। वैसे भी इस दौरान मालपुए का स्वाद सरयू सिंह अपने होठों से ही ले रहे थे उनका लंड सुगना के मालपुए में छेद करने को बेचैन रहता परंतु डॉक्टर और कजरी के आदेश से उनकी तमन्ना अधूरी रह जाती।

दोपहर में खाना खाने के पश्चात सरयू सिंह दालान में लेटे आराम कर रहे थे। बाहर बिना मौसम बरसात हो रही थी तभी कजरी सूरज को अपनी गोद में लिए हुए आगन से निकलकर दालान में आई और सरयू सिंह से कहा..

"भीतरे चल जायीं सुगना अकेले बिया हम तनी लाली के माई से मिलकर आवतानी"

सरयू सिंह को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई हो आज कजरी ने कई दिनों बाद उन्हें सुगना के पास जाने का आमंत्रण दिया था वह भी दिन में। अन्यथा उनकी कामेच्छा की पूर्ति सामान्यतः रात को ही होती जब सुगना उन्हें दूध पिलाने आती और उसके उनके लंड से वीर्य दूह कर ले जाती। कभी-कभी वह अपने मालपुए का रस भी उन्हें चटाती परंतु उनका लंड सुगना के मालपुये के अद्भुत स्पर्श और मजबूत जकड़ के लिए तड़प रहा था ।

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कजरी से कहा

"छाता ले ला भीग जइबू"

जब तक सरयू सिंह की आवाज कजरी तक पहुंचती कजरी अपना सर आंचल से ढक कर हरिया के घर की तरफ बढ़ गई।

सरयू सिंह की खुशी उनके लंड ने महसूस कर ली थी। धोती के अंदर वह सतर्क हो गया था सरयू सिंह अपनी चारपाई पर से उठे और आँगन में आकर सुगना के कमरे में दाखिल हो गए। सुगना सूरज को दूध पिला कर उठी थी और अपनी भरी-भरी चूचियां को ब्लाउज के अंदर समेट रही थी परंतु वह सरयू सिह की आंखों उन्हें बचा ना पाई।

सरयू सिंह के अकस्मात आगमन से सुगना थोड़ा घबरा गई। शायद कजरी ने सरयू सिंह को बिना सुगना से बात किए ही भेज दिया था।

सुगना की घबराहट देखकर सरयू सिह सहम गए और बड़ी मायूसी से बोले

"भौजी कहली हा कि तू बुलावत बाडू"

सुगना को कजरी की चाल समझ आ चुकी थी। सुगना कजरी की इच्छा को जानकर मुस्कुराने लगी। शायद इसीलिए कजरी दूध पी रहे सूरज को सुगना की गोद से लेकर हरिया के यहां चली गई थी। भरी दुपहरी में अपने बाबू जी के साथ एकांत पाकर उसकी कामुकता भी जाग उठी।

सरयू सिंह अब भी उसकी चुचियों पर ध्यान टिकाए हुए थे..

सुगना ने नजरें झुकाए हुए कहा..

"आजकल बाबू फिर दूध नइखे पियत"

"जायदा अब तो बड़ हो गईल बा गाय के दूध पियावा"

"तब एकरा के का करी" सुगना ने अपनी भरी-भरी चुचियों की तरफ इशारा किया उसके होठों पर मादक मुस्कान तैर रही थी सरयू सिंह ने देर न कि वह सुगना के पास आए और चौकी पर बैठकर उसे अपनी गोद में खींच लिया उनका मर्दाना चेहरा सुगना की चुचियों से सट गया। सुगना के ब्लाउज को उन्होंने अपने होठों से पकड़ा और उसे खींचते हुए नीचे ले आए सुगना की भरी भरी फूली हुई दाहिनी चूँची उछल कर बाहर आ गई।

सरयू सिंह इस दूध से भरी हुई गगरी को पकड़ने को तैयार थे उन्होंने अपना बड़ा सा मुंह खोला और सुगना की चूँचियों का अगला भाग अपने मुंह में भर लिया सुगना के तने हुए निप्पल जब उनके गर्दन से छू गए तब जाकर उन्होंने दम लिया।

जितनी तेजी से उन्होंने सुगना की चूची अपने मुंह में भरी थी उतनी ही तेजी से उनका लंड उछल कर खड़ा हो गया जिसे सुगना की जांघों ने महसूस कर लिया।

सुगना को अब आगे के दृश्य समझ आ चुके थे वह स्वयं भी मन ही मन खुद को तैयार कर चुकी थी

सरयू सिंह ने सुगना की चूची से दूध चूसना शुरू कर दिया सरयू सिंह और सूरज के चूसने में एक समानता थी दोनों ही एक ऊंची को चूसते समय दूसरी को बड़े प्यार से सहलाते थे परंतु सरयू सिंह जितना रस सूचियों से चूसते थे सुगना की बुर उतने ही मदन रस का उत्पादन भी करती थी।

कुछ ही देर में सुगना और सरयू सिंह नियति की बनाई अद्भुत काया में प्रकट हो चुके थे सुगना के रंग बिरंगे कपड़े और सरयू सिंह की श्वेत धवल धोती और कुर्ता गोबर से लीपी हुई जमीन पर उपेक्षित से पड़े थे।

सरयू सिंह ने अपनी हथेलियां सुगना की बुर से सटा दी और बड़े मासूमियत से बोले

"सुगना बाबू आज हम करब ये ही में"

सुगना उन्हें निराश नहीं करना चाहती थी परंतु वह डॉक्टर के निर्देशों और कजरी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी उसमें सरयू सिंह के माथे को चुमते हुए कहा

"अच्छा आज आपे करब पर ये में ना बल्कि ये में" सुगना ने अपने मादक अंदाज में उनका ध्यान बुर से हटाकर अपने होठों पर कर दिया जिसे वह पूरी तरह गोल कर चुकी थी।

सरयू सिंह भली बात समझ चुके थे कि सुगना उन्हें अपनी बुर की बजाए मुंह में चोदने का निमंत्रण दे रहे थी परंतु यह कैसे होगा?

अब तक सुगना ने कभी जमीन पर बैठकर कभी घुटनों के बल आकर और कभी उनके ऊपर आकर उनके लंड को चूसा था परंतु आज वह उन्हें नया सुख देने को प्रतिबद्ध थी।

सुगना ने अपने सर और कमर के नीचे तकिया लगा कर लेट गई और सरयू सिंह को उसी अवस्था में आने का आमंत्रण दे दिया जिस अवस्था को आज सिक्सटी नाइन के नाम से जाना जाता है। सरयू सिंह का तना हुआ लंड सुगना के चेहरे के ठीक ऊपर था।और सरयू सिंह की आंखों के सामने सुगना की गोरी और मदमस्त चिपचिपी चूत थी जो खिड़की से आ रही रोशनी और उसके होंठों से रिस आए मदन रस से चमक रही थी।

तभी सुगना ने आज एक अनोखी चीज देख ली सरयू सिह के अंडकोशों के नीचे एक अलग किस्म का दाग दिखाई पड़ रहा था जो सुगना ने पहली बार देखा था यह इस विशेष अवस्था के कारण संभव हुआ था।

सुगना को अचानक सरयू सिंगर के माथे का दाग याद आ गया। यह दाग भी उसी की तरह अनोखा था परंतु दोनों दाग एक दूसरे से अलग थे।

सुगना से रहा नहीं गया उसने अपनी उंगलियों से उस दाग को छुआ और बोली

"बाबूजी ई दाग कइसन ह"


(((((शायद पाठकों को इस दाग के बारे में पता होगा जो सरयू सिंह को एक विशेष अवसर पर प्राप्त हुआ था जिसका विवरण इसी कहानी में है। मैं उम्मीद करता हूं कि जिन पाठकों ने यह कहानी पड़ी है उन्हें अवश्य इस दाग के बारे में पता होगा)))))

सरयू सिंह सुगना को इस प्रश्न का उत्तर नहीं देना चाहते थे। वो बेवजह इस कामुक अवसर को खोना नहीं चाहते थे उन्होंने उत्तर देने की बजाय सुगना के रस भरे मालपुए को लगभग लील लिया। उनके मुंह में उत्पन्न हुए निर्वात ने सर... सर... की ध्वनि के साथ सुगना के मालपुए का रस खींच लिया। सुगना चिहुँकउठी और बोली

"बाबू जी तनी धीरे…से….".

इस शब्द ने सरयू सिंह की उत्तेजना को और जागृत कर दिया उनकी लंबी जीभ सुगना के मालपुए में छेद करने का प्रयास करने लगी सुगना का दिमाग अब भी उस दाग के रहस्य को जानना चाह्ता था परंतु उसका शरीर इन प्रश्नों के मोह जाल से मुक्त होकर सरयू सिंह की अद्भुत काम कला का आनंद लेने लगा।

खिड़की से आ रही रोशनी सुगना की बुर और गुदांज गांड पर बराबरी से पढ़ रही थी. सुगना की बुर चूसते चूसते उनका ध्यान सुगना के उस अद्भुत छेद पर चला गया वह छेद उनके लिए एकमात्र दुर्लभ चीज थी जिसका आनंद वह लेना चाहते थे परंतु किसी न किसी कारण से उस अवसर के आने में विलंब हो रहा था।

आज उस छेद को वह ठीक उसी प्रकार देख रहे थे जैसे कोई महत्वाकांक्षी पर्वतारोही हिमालय की तराइयों में खड़े होकर माउंट एवरेस्ट को लालसा भरी निगाहों से देख रहा हो।

अपने लक्ष्य को इतने करीब देखकर उनसे रहा न गया और उन्होंने सुगना को बिना बताए अपने दोनों होंठों को उस छेद पर सटा दिया सुगना ने अपनी गांड सिकोड़ ली। सरयू सिंह के होंठ उस छेद के बाहरी भाग तक ही रह गए परंतु उन्होंने हार ना मानी उनकी लंबी जीभ बाहर आई और जो कार्य उनके होंठ न कर पाए थे उनकी लंबी जीभ ने कर दिया। उन्हींने सुगना के उस सुनहरे छेद को अपने लार से भर दिया। सुगना को यह कृत्य पसंद ना आया। परंतु उसकी उत्तेजना निश्चय ही बढ़ गई थी

"बाबूजी उ में अभी ना…" उसने कामोत्तजना से कराहते हुए कहा..

संजू सिंह अपनी उत्तेजना के आवेश में बह जरूर गए थे पर वह तुरंत ही वापस अपने लक्ष्य पर आ गए और फिर मालपुए का आनंद लेने लगे। उधर उनका लंड सुगना के मुंह में प्रवेश कर चुका था और वह अपनी कमर हिला हिला कर जोर-जोर से उसे चोद रहे थे जब भी उन्हें सुगना का मासूम चेहरा ध्यान आता उनकी रफ्तार थोड़ी कम हो जाती परंतु जब वह उसकी मदमस्त बुर को देखते वह अपनी रफ्तार बढ़ा देते।

कुछ ही देर में ओखली और मूसल ने अपने अंदर उत्सर्जित रस को एक साथ बाहर कर दिया सुगना का रस तो सरयू सिंह पूरी तरह पी गए पर सुगना के बस में सरयू सिंह के वीर्य को पूरी तरह आत्मसात कर पाना संभव न था अंततः उसकी चुचियां अपने बाबूजी के वीर्य से एक बार फिर नहां गयीं। सरयू सिह उसकी चुचियों से खेलते हुए बोले..

"सुगना बेटा अब उ दिन कभी ना आई का? लागा ता हमार जन्मदिन भी एकरा बिना ही बीत जायी"

उनका कथन पूरा होते-होते उनकी हथेलियों ने सुगना की बुर को घेर लिया।

सुगना बेहद खुश थी आज उसे भी बेहद आनंद प्राप्त हुआ था उसने खुश होकर बोला

"राउर जन्मदिन में सब मनोकामना पूरा हो जायीं"

सुगना की बात सुनकर सरयू सिंह का उत्साह बढ़ गया अपनी मध्यमा उंगली में सुगना की गांड को छूते हुए और सुगना की आंखों में देखते हुए पूछा..

"साच में सुगना"

सुगना ने अपनी गांड एक बार फिर सिकोड़ी और उनकी उंगली को लगभग अपने चूतड़ों में दबोच लिया और उन्हें चुमते हुए बोली...

"हां...बाबू जी"

सरयू सिंह ने सुगना को अपने आगोश में भर लिया वह उसे बेतहाशा चूमने लगें।

वासना का उफान थमते ही नीचे पड़े उपेक्षित वस्त्रों की याद उन दोनों ससुर बहू को आई और वह अपने अपने वस्त्र पहनने लगे. अपने पेटीकोट से अपनी जांघों को ढकते हुए सुगना ने पूछा

"बाबूजी दरवाजा पर पोस्टर देखनी हां"

"हां देखनी हां, ई सब साधु वाधू फालतू काम कर ले"

"बाबूजी हमरा वहां जाए के मन बा वहां मेला भी लागेला"

सरयू सिंह सुगना की निप्पल से लटकती हुयी अपने वीर्य की बूंद को अपने हाथों से पोछते हुए बोले

"अरे तू तो इतना जवान बाड़ू अपन सुख भोगा तारू तहरा साधु वाधु से का मिली?"

"ना बाबूजी तब भी, हमरा जाए के मन बा और सासु मा के भी" सुगना ने कजरी का बहु सहारा लिया।

सरयू सिंह ने सुगना को एक बार फिर अपने सीने से सटा लिया और बोले

" सुगना बाबू जवन तू कहबु उहे होइ"

सुगना खुश हो गई और उनसे अमरबेल की तरह लिपटते हुए बोली

"हम जा तानी मां के बतावे उ भी बहुत खुश होइहें"

"अरे कपड़ा त पहन ला"

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी उसकी चूचियां अभी भी नंगी थी।

सुगना बेहद खुश थी वह अपनी विजय का उत्सव कजरी के साथ मनाना चाहती थी कपड़े पहन कर वह हरिया के घर कजरी को खुशखबरी देने चली गई सरयू सिंह सुगना के बिस्तर को ठीक कर वापस अपनी दालान में आ गए।

सुगना ने आज उनके अंडकोषों के नीचे लगा दाग देख लिया था। उन्होंने उसे उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दिया था परंतु उन्हें पता था कि सुगना वह प्रश्न दोबारा करेगी और कभी ना कभी उन्हें उसका उत्तर देना पड़ेगा। वह किस मुंह से उसे बताएंगे? उनके चेहरे पर उलझन थी परंतु उनका शरीर वीर्य स्खलन के उपरांत थक चुका था वह प्रश्न जाल में उलझे हुए ही सो गए.


उधर हरिद्वार में राजरानी मठ के आलीशान कमरे में श्री विद्यानंद जी अपनी सफेद धोती पहने और पीला गमछा ओढ़ कर प्रवचन के लिए तैयार हो रहे थे चेहरे पर तेज और माथे पर तिलक उनकी आभा में चार चांद लगा रहा थे। लंबे-लंबे बालों पर उम्र ने अपनी सफेद धारियां छोड़ दी थी जो उनके प्रभुत्व और प्रभाव को प्रदर्शित कर रही थीं।

तभी एक शिष्य कमरे में आया और बोला महात्मा हमारे बनारस जाने की सारी तैयारियां पूर्ण हो गई अगली पूर्णमासी को हमें बनारस के लिए प्रस्थान करना है.

बनारस का नाम सुनकर श्री विद्यानंद जी अपनी यादों में खो गए कितने वर्ष हो गए थे उन्हें अपना गांव सलेमपुर छोड़े हुए. यद्यपि यह मोह माया है वह सब कुछ जानते थे परंतु फिर भी गांव की यादें उनके जेहन में आज भी जीवित थीं। सरयू भी अब 50 का हो गया होगा उसके भी तो बाल सफेद हो गए होंगे। और वो पगली ...क्या नाम था उसका…….. हां ...हां .कजरी. ... मैंने उसके साथ शायद गलत किया.

मुझे कजरी के साथ विवाह ही नहीं करना चाहिए था परंतु दबाव और मेरी नासमझी की वजह से विवाह संपन्न हो गया परंतु मैं उसको उसका हक़ न दे पाया। पता नहीं सरयू और कजरी किस हाल में होंगे? क्या उनमें भी थोड़ी बहुत धार्मिक भावनाएं जगी होंगी? क्या सरयू और कजरी इस विशाल महोत्सव में वहां आएंगे? मेरा तो नाम और पहचान दोनों बदल चुके हैं वह मुझे पहचान भी तो नहीं पाएंगे?

विद्यानंद के होठों पर एक मुस्कान आ गयी। सांसारिक रिश्तों से दूर रहने के बावजूद अपने गांव के नजदीक जाने पर उनकी पुरानी यादें ताजा हो गई थीं। उन्होंने एक लंबी गहरी सांस भरी और सब कुछ नियति के हवाले छोड़ दिया जो उनके दरवाजे पर मक्खी के रूप में बैठी उनकी मनोदशा पड़ रही थी।

सांसारिक रिश्तो की अहमियत अभी भी विद्यानंद जी के मन में पूरी तरह दूर नहीं हुई थी उनका वैराग्य अभी पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ था। तभी उनका शिष्य कमरे में आया और बोला

" महात्मा सभी आपका इंतजार कर रहे हैं"

विद्यानंद जी ने अपने बालों को ठीक किया और पंडाल के सुसज्जित स्टेज पर विराजमान हो गए।

उधर बनारस शहर में भी गजब का उत्साह था हर तरफ इस धार्मिक महोत्सव के ही चर्चे थे देश विदेश से कई महात्मा और धर्म प्रचारक यहां अपने अनुयायियों के साथ आ रहे थे. इस उत्सव में गांव देहात से आए लोगों को रहने के लिए भी व्यवस्था की गई थी। ध्यान से देखा जाए तो यह एक उत्सव सामाजिक मिलन का उत्सव था जिसमें एक ही विचारधारा के कई लोग एक जगह पर उपस्थित रहते और एक दूसरे के साथ का आनद लेते लंगर में खाना खाते धार्मिक प्रवचन सुनते और तरह तरह के मेलों का आनंद लेते.

सुगना और कजरी ने इन उत्सव के बारे में कई बार सुना था परंतु वहां जा पाने का अवसर प्राप्त न हुआ था। सरयु सिंह की विचारधारा इस मामले में कजरी से मेल न खाती थी। इसी कारण उनके साथ 20 - 22 वर्ष बिताने के बाद भी कजरी अपनी मन की इच्छा पूरी न कर पाई थी। पर आज सुगना ने अपना मालपुरा चूसा कर सरयू सिंह को सहर्ष तैयार कर लिया था।

सुगना और सरयू सिंह एक दूसरे से पूरी तरह जुड़ चुके थे। एक दूसरे की इच्छाओं का मान रखना जैसे उनके व्यवहार में स्वतःही शामिल हो गया था।

परंतु सरयू सिंह की सुगना के गुदाद्वार में संभोग करने की वह अनूठी इच्छा एक अप्राकृतिक मांग थी। सुगना भी अपने बाबूजी की यह मांग कई वर्षों से सुनते आ रही थी। उसका तन और मन इस इस बात के लिए राजी न था परंतु उसका दिल सरयू सिंह की उस इच्छा को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध था। आयोजन के 2 दिन पूर्व ही सरयू सिंह का जन्मदिन था। सुगना उस उत्सव में जाने और अपने बाबुजी का जन्मदिन मनाने की तैयारियां करने लगी।

उधर लाली बेहद खुश थी। चाय बनाते समय वह कल रात की बात याद कर रही थी जब उसकी चूँची को गप्प से मुंह में लेने के बाद राजेश की स्वाद इंद्रियों को एक अलग ही रस से परिचय हुआ। लाली की चूचियां पसीने और सोनू के वीर्य रस से लिपटी हुई थीं। राजेश को यह मिश्रित स्वाद कुछ अटपटा सा लगा परंतु वह कामकला का माहिर खिलाड़ी था उसे वीर्य रस और उसके स्वाद की पहचान थी। तुरंत लाली की चुचियों पर वीर्य यह उसकी सोच के परे था…

अपनी उत्सुकता पर काबू रखते हुए और लाली को छेड़ते हुए कहा..

"आज तो चूची पूरी भीग गई है स्वाद भी अलग है।

लाली सब कुछ समझ रही थी उसने अपनी हथेलियों से अपने चेहरे को ढक लिया और मुस्कुरा कर बोली

"सब आपका ही किया धरा है"

"अरे मैंने क्या किया?"

"जाकर अपने साले से पूछीये"

राजेश ने लाली की आंखों में देखा और फिर उसकी चुचियों की तरफ. और चेहरे पर उत्साह लिए बोला

"तो क्या तुमने उसे अपना लिया"

लाली ने अपनी आंखें बंद कर ली और चेहरे पर मुस्कान लिए हुए बोली

"हां, आपके कहने से मैंने उसे अपना लिया है"

"पर कब?"

" जब आप जानी दुश्मन देख रहे थे तब आपका साला दोस्ती कर रहा था"

राजेश लाली की दोनों चुचियों को हाथ में लिए हुए लाली को आश्चर्य भरी निगाहों से देख रहा था।

लाली को राजेश के आश्चर्य से शर्म महसूस हो रही थी उसने बात बंद करते हुए कहा

"मैंने अपना लिया है अब आप भी अपना लीजिए" इतना कहते हुए लाली की जाँघे फैल गयीं। राजेश खुशी से पागल हो गया उसका मुंह एक बार फिर खुला और उसने लाली की दूसरी चूची को भी अपने मुंह में भर लिया।

लाली की स्खलित हो चुकी बुर ने भी राजेश के लंड को आसानी से रास्ता दे दिया कमरे में एक बार फिर…..

गैस से उबल कर चाय गिरने की आवाज हुई और लाली अपनी यादों से वापस आयी। चेहरे पर मुस्कुराहट लिए चाय छानकर वो हॉल में बैठकर सोनू से अगली मुलाकात के बारे में सोचने लगी जो आज सुबह ही अपने बनारस में लगे कर्फ़्यू में अपनी लाली दीदी द्वारा दी सुनहरी भेंट लेकर हॉस्टल लौट चुका था।

नियति अपनी चाल चल रही थी। बनारस का महोत्सव यादगार होने वाला था….


शेष अगले भाग में।
 

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रतन सिंह सुगना के जवाब की राह देख रहा है पत्नी बबिता से मोहभंग हो गया
सरयूसिंग का अंडकोष के निचे वाला दाग
सुगना का सरयूसिंग को बनारस जाने के लिये मना लेना
कजरी का भगोडा पती ब्रम्हानंद का बनारस आना
लाली और सोनू के बीच में पनपती की कामवासना को राजेश की तरफ से हवा देना
नियती क्या चाहती हैं देखते हैं आगे
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Lovely Anand

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रतन सिंह सुगना के जवाब की राह देख रहा है पत्नी बबिता से मोहभंग हो गया
सरयूसिंग का अंडकोष के निचे वाला दाग
सुगना का सरयूसिंग को बनारस जाने के लिये मना लेना
कजरी का भगोडा पती ब्रम्हानंद का बनारस आना
लाली और सोनू के बीच में पनपती की कामवासना को राजेश की तरफ से हवा देना
नियती क्या चाहती हैं देखते हैं आगे
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
लगातार जुड़े रहने के लिए आपको इस कहानी के प्रमुख प्रमोटर के खिताब से नवाजा जाता है।
धन्यवाद।
 

xxxlove

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Lovely bhai kahani ka flow bahut hi jabardast ban raha hai.
Har kadi ke sath purane aur naye patro ki sukhad entry ho rahi hai.Jis tarah se aap sabdo ki jadugiri se kahani ko age badha rahe ho vo vakai bemisaal hai. Ab kahani apne ramanchak aur kamuk avtaar me aa rahi hai.
Behtreen story hai es forum ki.
Superb ..................



Waiting for next update.........
 

Lovely Anand

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Lovely bhai kahani ka flow bahut hi jabardast ban raha hai.
Har kadi ke sath purane aur naye patro ki sukhad entry ho rahi hai.Jis tarah se aap sabdo ki jadugiri se kahani ko age badha rahe ho vo vakai bemisaal hai. Ab kahani apne ramanchak aur kamuk avtaar me aa rahi hai.
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आपकी प्रतिक्रिया के लिए आभार। ऐसी प्रतिक्रियाएं ही कहानी की दशा दिशा तय करतीं हैं
जुड़े रहे
 

Lovely Anand

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लाली के घर से जाने के बाद सोनू का दिल बल्लियों उछल रहा था यह पहला अवसर था जब किसी लड़की या युवती ने उसके कुंवारे लंड को मुखमैथुन द्वारा उत्तेजित और शांत किया था। और तो और वह युवती उसकी मुंह बोली बहन लाली थी।
लाली और सोनू का रिश्ता बचपन से ही था उसकी लाली दीदी कब उसके सपनों की मलिका हो गई थी वह खुद भी नहीं जानता था। जैसे-जैसे उसकी जांघों के बीच बाल आते गए लाली दीदी के प्रति उसका नजरिया बदलता गया परंतु प्रेम में कोई कमी न थी। पहले भी वह लाली से उसी तरह प्रेम करता था जितना वह अपने विचारों में परिवर्तन के पाने के बाद करने लगा था अंतर सिर्फ यह था की उस बचपन के प्यार में दिल और दिमाग सक्रिय थे परंतु अब सोनू का रोम रोम लाली के नाम से हर्षित हो जाता खासकर उसका लण्ड….
सोनू के मन में जितनी इज्जत और प्यार अपनी दीदी सुगना के प्रति था जो पूरी तरह वासना मुक्त था वह उतना ही प्यार अपनी लाली दीदी से भी करने लगा था। नियति कभी-कभी सोनू के मन में सुगना के प्रति भी उत्तेजना जागृत करने का प्रयास करती परंतु विफल रहती।
लाली भी अपने पति राजेश का सहयोग और प्रोत्साहन पाकर लाली सोनू के करीब आती गई और पिछली दो अंतरंग मुलाकातों में लाली ने स्वयं आगे बढ़ कर सोनू की हिचक को खत्म किया परंतु सोनू अब भी उसका भाई था और दिन के उजाले में उससे एक प्रेमी की तरह बर्ताव करना न तो लाली के बस में था और न हीं सोनू के।
सोनू की खुशी उसके चेहरे पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। लाली की जगह यदि किसी दूसरी युवती ने सोनू का लंड चूसा होता तो सोनू अब तक अपने कई करीबी दोस्तों को उस का किस्सा सुना चुका होता। अपने जीवन में मिली यह खुशी सोनू के लिए बेहद अहम थी परंतु उसका दुर्भाग्य था कि वह यह बात किसी से साझा नहीं कर सकता था। सभी की निगाहों में अभी भी यह पाप की श्रेणी में ही था।
सोनू को इस तरह हॉस्टल की गैलरी में खुशी-खुशी चहकते देखकर उसके दोस्त विकास ने पूछा...
"क्या बात है बनारस का कर्फ्यू सबसे ज्यादा तुझे ही रास आया है बड़ा चहक रहा है"
"लगता है साले को कोई माल मिली है.. बता ना भाई क्या बात है" विकास के साथी ने सोनू के पेट में गुदगुदी करते हुए पूछा
सोनू के पेट में दबी हुई बात उछल कर गले तक आ गयी जब तक कि वह कुछ बोल पाता विकास ने दोबारा कहा..
"तू तो अपनी लाली दीदी के घर गया था ना?"
सोनू एक बार फिर सतर्क हो गया पिछले कुछ पलों में उसने अपनी विजय गाथा साझा करने की सोच लिया था परंतु विकास के "लाली दीदी" संबोधन पर उसने वह विचार त्याग दिया।
"कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें लंड पर नहीं उतर आए तब तक यूं ही किताबों में सर खपाना है"
तीनों दोस्त आपस में बात करते हुए हॉस्टल से नीचे उतरे। विकास की मोटरसाइकिल राजदूत नीचे ही खड़ी थी। विकास ने कहा चल ना बाजार से मेरी किताब लेकर आते हैं। विकास के दोस्त ने पढ़ाई का हवाला देकर क्षमा मांग ली विकास में सोनू की तरफ देखा…
सोनू ने कहा
"भाई मैं चलाऊंगा….."
सोनू ने विकास की राजदूत चलाना सीख तो ली थी परंतु वह अभी पूरी तरह दक्ष नहीं था पर हां यदि सड़क पर भीड़ भाड़ ज्यादा ना हो तो उसे बाइक चलाने में कोई दिक्कत नहीं थी।
विकास ने उसकी बात मान ली और सोनू सहर्ष बाजार जाने को तैयार हो गया।
सोनू ने राजदूत स्टार्ट की और एक हीरो की भांति राजदूत पर बनारस शहर की सड़कों को रोते हुए बाजार की तरफ बढ़ चला। बहती हवा के प्रभाव से सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….
रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। सोनू के लंड में अब भी रह-रहकर कसक उठ रही थी। लाली के होठों और मुंह की गर्मी ने सोनू के दिमाग पर एक अमिट छाप छोड़ दी थी वह उन यादों के सहारे कई दिनों तक अपना हस्तमैथुन कर सकता था…
लाली की यादों ने सोनू की हथेलियों को लण्ड का रास्ता दिखा दिया और सोनू की मजबूत हथेलियां उस कोमल पर तने हुए लंड का मान.मर्दन करनें लगीं….
उधर सीतापुर में सुगना की दोनों बहने सोनी और मोनी अपनी युवावस्था की दहलीज पर खड़ी अपने शरीर में हो रहे बदलाव को महसूस कर रही थीं।समय के साथ साथ उन्हें अपने शरीर में तरह तरह के बदलाव महसूस हो रहे थे। जितना बदलाव उनके शरीर में हो रहा था उतना ही उनकी भावनाओं और लोगों को देखने के नजरिये में।
अपनी बहन सुगना के पुत्र सूरज के जादुई अंगूठे से खेलते और उसके परिणाम को देखने और उसे शांत करने की तरकीब उन दोनों की समझ के परे थी परंतु दोनों बहनों ने उसे न सिर्फ अपनी आंखों से देखा था बल्कि महसूस किया था वह भी एक नहीं दो दो बार।
दोनों ही बहनें घर के कामकाज में पूरी तरह दक्ष थी पढ़ाई लिखाई उनके बस की बात न थी और नहीं वो इसके लिए बनी थीं। ऊपर वाले ने उन्हें अद्भुत कद काठी और सुंदरता दी थी जिससे आने वाले समय में वह न जाने कितने पढ़े लिखे और काबिल लड़के उनकी जाँघों के बीच अपनी सारी विद्वता अर्पित करने को तत्पर रहते।
दोनों अपनी मां पदमा का हाथ बतातीं और अपने शरीर का ख्याल रखतीं। दोनों खूबसूरत कलियां फूल बनने को लगभग तैयार थीं। ऊपर और नीचे के होंठ चुंबनों के लिए तरस रहे थे। जब भी वह दोनों एक दूसरे के आलिंगन में आती दोनों के मन में ही कसक उठती पर वह कसक मिटाने वाला भी बनारस महोत्सव की राह देख रहा था।
इधर सोनी मोनी जवानी की दहलीज लांघने वाली थी उधर सुगना की जवानी हिलोरे मार रही थी। पिछले तीन-चार वर्षो से वह शरीर सिंह की मजबूत बांहों और लण्ड का आनंद ले रही थी परंतु पिछले कुछ महीनों से उसकी जांघों के बीच गहराइयों में सूनापन था। बुर के होठों पर तो सरयू सिंह के होंठ और जिह्वा अपना कमाल दिखा जाते परंतु बुर की गहराइयों में लण्ड से किया गया मसाज सुगना को हमेशा याद आता। उसके वस्ति प्रदेश में उठ रही मरोड़ को सिर्फ वही समझ सकती थी या फिर इस कहानी की महिला पाठिकाएँ.
सुगना अपने प्रार्थनाओं में सरयू सिंह के स्वस्थ होने की कामना करती। नियति सुगना की भावनाओं में सरयू सिंह के प्रेम और उसके स्वार्थ दोनों को बराबरी से आंकती। सरयू सिंह के चेकअप का वक्त भी नजदीक आ रहा था सुगना को पूरी उम्मीद थी कि इस बार डॉक्टर उन्हें इस सुख से वंचित रहने की सलाह नहीं देगा।
सरयू सिंह अब पूरी तरह स्वस्थ थे वह खेतों में काम करते वह हर कार्य करने में सक्षम थे यदि उन्हें मौका दिया जाता तो वह सुगना की क्यारी को भी उसी प्रकार जोत सकते थे जैसा वह पिछले कई वर्षों से जोतते आ रहे थे परंतु कजरी और सुगना उन्हें डॉक्टर की सलाह का हवाला देकर रोक लेते थे।
जैसे-जैसे उनका जन्म दिन नजदीक आ रहा था उनकी उम्मीदें बढ़ती जा रही थी। वो सुगना की तरफ कामुक निगाहों से देखते और प्रत्युत्तर में सुगना अपनी आंखें नचा कर उन्हें अपने जन्मदिन की याद दिलाती। वह सरयू सिंह का जन्मदिन यादगार बनाने के लिए पूरी तरह मन बना चुकी थी।
परंतु सुगना जब जब सरयू सिंह की उस अंगूठी इच्छा के बारे में सोचती सिहर उठती वह कैसे उस मजबूत मुसल को उसका अपवित्र द्वार के अंदर ले पाएगी वह अपने एकांत के पलों में उस गुदा द्वार के कसाव और उसकी क्षमता का आकलन अपने हिसाब से करती जिस प्रकार कुंवारी लड़कियां पहली चुदाई को लेकर आशंकित भी रहती हैं और उत्तेजित भी रहती हैं वही हाल सुगना का भी था.
अपनी छोटी सी बुर से बच्चे को जन्म देने की बात याद कर सुगना के मन में विश्वास जाग उठा। एक वक्त वह था जब उसकी बुर में उसके बाबु जी की उंगली ने पहली बार प्रवेश किया था तब भी वह दर्द से चीख उठी थी परंतु आज उसे वह सहज प्रतीत हो रहा था। उसने मन ही मन सोच लिया जो होगा वह देखा जाएगा।
वैसे भी सुगना सरयू सिंह को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी उसे पता था की वह उनके दिल की रानी है वह उसे बेहद प्यार करते हैं वह उसे किसी भी हाल में कष्ट नहीं पहुंचाएंगे।
ज्यों ज्यों बनारस महोत्सव का दिन करीब आ रहा था सुगना और कजरी के उत्साह में उत्तरोत्तर वृद्धि हो रही थी। जाने सुगना को उस महोत्सव से क्या उम्मीदें थीं। परंतु अपनी पुरी (उड़ीसा) यात्रा के पश्चात यह पहला अवसर होता जब वह घर से बाहर अपने पूरे परिवार के साथ रहती और उस उत्सव का आनंद लेती।
वैसे भी घर के काम धाम और खेतीबाड़ी से दूर शहर की हलचल भरी जिंदगी में कुछ वक्त बिताने का अपना ही आनंद था इस महोत्सव में लगे हुए मेले सुगना को विशेष रूप से आकर्षित कर रहे थे। ग्रामीण समाज में मेलों का अपना आकर्षण है। इन मेलों में कई तरह की ऐसी वस्तुएं मिल जाती हैं जो आप पूरी उम्र खोजते रहे आप को नहीं मिली मिलेंगी। बनारस शहर में होने वाले इस भव्य महोत्सव में अलग-अलग विचारधारा और संस्कृति के लोगों का यह समागम निश्चय ही दर्शनीय होगा।
सरयू सिंह ने भी तैयारी में कोई कमी नहीं रखी सुगना और कजरी ने जो जो कहा वह बाजार से लाते गए उन्हें अब बेसब्री से अपने जन्मदिन का इंतजार था उस दिन एक बार फिर वह सुगना के साथ जी भर कर चुदाई करते और अपने जीवन में पहली बार गुदामैथुन का आनंद लेते।
सरयू सिंह की निगाहें जब भी सुगना से मिलती उनकी निगाहों में एक ही मूक प्रश्न होता
"ए सुगना मिली नु?"
और सुगना के चेहरे और हाव-भाव एक ही उत्तर दे रहे होते..
" हां बाबूजी…"
सुगना के लिए यह संबोधन अब शब्दार्थ को छोड़कर बेहद अहम हो चला था वह जब भी उनकी गोद में रहती चाहे कपड़ों के साथ या बिना कपड़ों के दोनों ही समय यह संबोधन उसे बेहद प्यारा लगता। नग्न अवस्था में दोनों के बीच उम्र का यह अंतर उनके बीच पनपे प्यार ने पूरी तरह मिटा दिया था विशेषकर सुगना के मन ने। परंतु सरयू सिंह कभी उसे अपनी प्यारी बहू के रूप में देखते और कभी वासना और गदराए यौवन से भरी हुई कामुक युवती के रूप में तो कभी अपनी ……..।
नियति ने सुगना और सरयू सिह में बीच एक अजब सा संबंध बना दिया था। एक उम्र के ढलान पर था और एक वासना और यौवन के उफान पर।
बनारस जाने की तैयारियों के दौरान लाली और कजरी ने अपने-अपने संदूको में पड़े अपने कपड़ों का मुआयना किया और उनमें से अच्छे वस्त्रों को छांट कर अलग किया ताकि उन्हें बनारस ले जा सके इसी दौरान सुगना की शादी की एल्बम बाहर आ गई जिसमें रतन और सुगना कुछ तस्वीरें थी..
कजरी इन तस्वीरों को लेकर देखने लगी। अपने पुत्र को देखकर उसकी आंखों में प्यार छलक आया उसने उसे सुगना को दिखाते हुए कहा
"सुगना बेटा देख ना फोटो कितना अच्छा आईल बा"
सुगना को हालांकि उस शादी से अब कोई औचित्य न था धीरे-धीरे अब वह उसे भूल चुकी थी पर रतन अब भी उसका पति था। कजरी के कहने पर उसने वह फोटो ली तथा अपनी किशोरावस्था के चित्र को देखकर प्रसन्न हो गई पर रतन की फोटो देखकर वह हंसने लगी और बोली…
"ई कतना पातर रहन पहले"
( यह कितने पतले थे पहले)
"अभी भी तो पतला ही बा मुंबई में जाने खाए पिए के मिले ना कि ना"
"नाम अब तो ठीक-ठाक हो गईल बाड़े"
सुगना ने जिस लहजे में यह बात कही थी कजरी खुश हो गई थी अपनी बहू के मुंह से अपनी बेटे की तारीफ सुनकर उसके मन में एक बार फिर आस जग उठी। काश... इन दोनों का रिश्ता वापस पति-पत्नी के जैसे हो जाता।
"जाने एक कर मती कैसे मरा गइल" कजरी में रतन को ध्यान रख कर यह बात कही
(पता नहीं कैसे इसकी बुद्धि भ्रष्ट हो गई)
" मां ई में उनकर गलती ना रहे लइका उम्र में शादी ना करेंके"
कजरी सुगना की बातों को सुनकर बेहद प्रसन्न हो रही थी उसे यकीन ही नहीं हो रहा था की सुगना रतन के पक्ष में बोल रही थी उसने सुगना को छेड़ते हुए कहा
" लागा ता हमार बेटा सुगना के पसंद आवे लागल बा"
सुगना ने अपनी बड़ी बड़ी आंखें नचाई और कजरी की चेहरे को घूरते हुए बोला
"हमरा राउर कुंवर जी ही पसंद बाड़े"
कजरी सरयू सिंह की मजबूत कद काठी के बारे में सोचने लगी जो निश्चय ही अभी भी रतन से बीस ही थी।
सुगना ने सटीक उत्तर देकर उस बातचीत को वहीं पर विराम लगा दिया था परंतु कजरी ने सुगना के मन में रतन की पिछली यादों को कुछ हद तक जीवित कर दिया था।
पिछली बार रतन ने आगे आकर उससे दोस्ती का हाथ बढ़ाया था परंतु सुगना से वह उस तरह होली नहीं खेल पाया था जिस प्रकार राजेश ने खेली थी। परंतु जिस प्रकार वह सूरज का ख्याल रखता था उसने सुगना का ध्यान अवश्य आकर्षित कर लिया था। सुगना बेफिक्र होकर सूरज को रतन के हवाले करती और अपनी रसोई के कार्यों में लग जाती सूरज भी रतन की गोद में ऐसे खेलता जैसे वह अपने पिता की गोद में खेल रहा हो। नियति आने वाले दिनों की कल्पना कर मुस्कुराती रही थी। कभी वह गिलहरी बन जाती और रतन की चारपाई के आगे पीछे घूम कर अपना ध्यान आकर्षित करती सूरज किलकारियां मारते हुए प्रसन्न हो जाता।
सुगना यह बात जानती थी की रतन की एक विवाहिता पत्नी है जो मुंबई में रहती है और रतन उससे बेहद प्यार करता है। सुगना को रतन की जिंदगी में दखल देने की न कोई जरूरत थी नहीं कोई आवश्यकता। उसके जीवन में खुशियां और जांघों के बीच मजबूत लंड भरने वाले सरयू सिंह अभी भी उसे बेहद प्यारे थे।।
साल में दो बार गांव आकर रतन सुगना से अपना रिश्ता बचाए हुए था सुगना के लिए इतना पर्याप्त था इसी वजह से समय के साथ उसने रतन के प्रति अपनी नफरत को बुलाकर उसे एक दोस्त की तरह स्वीकार कर लिया था।
उधर एक सुखद रात्रि को लाली को अपनी बांहों में समेटे हुए और चुचियाँ सहलाते हुए राजेश ने पूछा..
" क्या सच में उस दिन सोनू ने…." राजेश अपनी बात पूरी न कर पाया पर लाली समझ चुकी थी
" आपको चुचियों का स्वाद बदला हुआ नहीं लग रहा था?"
राजेश अपनी चाल में कामयाब हो गया था वह सोनू के बारे में बात करना चाह रहा था और लाली उसके शब्द जाल में आ चुकी थी।
"सोनू तो मालामाल हो गया होगा.."
"क्यों" लाली ने अपनी आंखें नचाते हुए पूछा
"अपनी दीदी के कोमल हाथों को अपने लंड पर पाकर कौन मस्त नहीं होगा…."
लाली मन ही मन मुस्कुराने लगी उसने सोनू को जो सुख दिया था वह राजेश शायद अब तक न समझ पाया था। राजेश की कामुक बातों से उसकी बुर में भी हलचल प्रारंभ हो गई थी उसने राजेश को और उत्तेजित करते हुए कहा…
" सोनू सच में भाग्यशाली है उस दिन उसे हाथों का ही नहीं इनका भी सुख मिल चुका है" लाली ने अपने होठों को गोल कर इशारा किया।
लाली के इस उत्तर ने राजेश को निरुत्तर कर दिया उसने बातचीत को वही विराम दिया और उसके होठों को अपने होठों में लेकर चूसने लगा।
राजेश ने एक बार फिर हिम्मत जुटाई और लाली की नाइटी को कमर तक खींचते हुए बोला….
"काश मैं सोनू होता"
"तो क्या करते…"
राजेश ने कोई उत्तर न दिया परंतु अपने तने हुए लंड को लाली की पनियायी बुर में जड़ तक ठान्स दिया और उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर लाली को चोदते हुए बोला
"अपनी लाली दीदी को खूब प्यार करता"
लाली भी अपनी जांघें खोल चुकी थी उससे और उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी वो राजेश को चूम रही थी परंतु इन चुम्बनों में एक अलग एहसास था राजेश उस अंतर को बखूबी महसूस कर रहा था परंतु उसके चोदने की रफ्तार में कोई कमी नहीं आ रही थी वह लाली को कस कस कर चोद रहा था।
मासूम और युवा सोनू लाली और राजेश दोनों की उत्तेजना का केंद्र बन चुका था।
चुदाई का चिर परिचित खेल खत्म होने के पश्चात पसीने से लथपथ राजेश लाली के बगल में लेटा हुआ उसकी चूचियां सहला रहा था।
तभी लाली ने मुस्कुराते हुए कहा…
"आपकी फटफटिया कब आ रही है"
"इतनी रात को फटफटिया की याद आ रही है"
"कई दिन से शंकर जी के मंदिर जाने की सोच रही थी। एक दिन टैक्सी वाले से बात करके गाड़ी बुलाइएगा।"
"एक तो साले खूब सारा पैसा भी लेते हैं और नखरे अलग से दिखाते हैं"
" हां जब फटफटिया आ जाएगी तो हम लोग अपनी मर्जी से कहीं भी आ जा पाएंगे।
राजेश ने एक लंबी सांस भरी परंतु कोई उत्तर न दिया।
लाली ने राजेश के चेहरे पर चिंता की लकीरें देख ली थी उसने उसे चूमते हुए कहा
"ठीक है, पर परेशान मत होइएगा जब भगवान चाहेंगे आ जाएगी"
"हां भगवान सब इच्छा पूरा किये हैं तो यह भी जरूर करेंगे।"
राजेश लाली को अपनी बाहों में लिए हुए सुखद नींद सो गया लाली के मन में अभी भी सोनू नाच रहा था उसका मासूम चेहरा और गठीला बदन लाली को पसंद आ चुका था…. सोनू को अपनी मीठी यादों में समेटे हुए लाली सो गई...
बनारस शहर में महोत्सव की तैयारियां प्रारंभ हो गई थी यह एक विशेष उत्सव था जिसकी व्यवस्था में पुलिस और प्रशासन दोनों सक्रिय थे शहर की समतल मैदान को पूरी तरह साफ स्वच्छ किया जा रहा था जगह-जगह रहने के पंडाल लगाए जा रहे थे और शौचालयों का निर्माण किया जा रहा था यह एक अत्यंत भव्य व्यवस्था थी। बड़े-बड़े गगनचुंबी झूलों के अस्थि पंजर जमीन पर पड़े अपने कारीगरों का इंतजार कर रहे थे। अस्थाई सड़कों पर पीली लाइटें लगाने का कार्य जारी था। बनारस शहर का लगभग हर बाशिंदा उस उत्सव से कुछ न कुछ अपेक्षा रखता था।
उधर हॉस्टल में सोनू के कमरे के दरवाजे पर वॉलीबॉल की गेंद धड़ाम से टकराई। सोनु बिस्तर पर पड़ा ऊंघ रहा था। सोनू उठकर हॉस्टल की लॉबी में आ गया सुबह के 6:00 बजे रहे थे विकास के कमरे की लाइट अभी भी जल रही थी..
"अरे तू तो बड़ी जल्दी उठ गया" सोनू ने विकास की खिड़की से झांकते हुए पूछा।
"अबे रात भर जगा हूं एक पैसे की तैयारी नही हुई है एक्जाम की। अब जा रहा हूं सोने"
"भाई तेरी मोटरसाइकिल कुछ देर के लिए ले जाऊं क्या?"
"क्यों सुबह सुबह कहां जाएगा?"
" वह छोड़ ना बाद में बताऊंगा"
"ठीक है ले जा पर तेल फुल करा देना…" विकास ने राजदूत की चाबी सोनू को पकड़ते हुए कहा।
सोनू बेहद प्रसन्न हो गया वह फटाफट मन में ढेर सारी उमंगे लिए तैयार होने लगा उसने अपना खूबसूरत सा पैजामा कुर्ता पहना और कुछ ही देर में राजदूत की सवारी करते हुए लाली के दरवाजे पर खड़ा हार्न बजा रहा था...
लाली उस हॉर्न की आवाज सुनकर दरवाजे पर आई और अपने भाई सोनू को राजदूत फटफटिया पर बैठा देखकर बेहद प्रसन्न हो गई और उसे देखकर मुस्कुराते हुए बोली "अरे सोनू यह किसकी फटफटिया है? अंदर आ…"

शेष अगले भाग में…
 

komaalrani

Well-Known Member
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जैसे एक कठपुतली वाला एक साथ कई पुतलियों के सूत्र अपने हाथ में पकडे रहता है और ऊँगली के एक इशारे से किस पुतली के साथ क्या होना है, एक साथ स्थान अलग अलग पात्र अलग लकिन नियंत्रण वही और

सोनू और लाली का प्रसंग तो एकदम जबरदस्त चल रहा है,... सोनू के मन की उथलपुथल,




साथ में भाषा भी पात्र अनुसार , कुछ संवाद तो ,...

कुछ नहीं यार अपने भाग्य में लड़की कहां? जब तक हाथ की लकीरें,....


सोनू के खूबसूरत बाल लहरा रहे थे और मन में उसकी भावनाएं भी उफान पर थीं। काश उस राजूदूत पर पीछे लाली दीदी बैठी होती….

रात में हॉस्टल के खुरदुरे बिस्तर पर लेटे हुए सोनू को लाली के कोमल बदन की गर्मी याद आ रही थी। …
 
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