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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
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भाग 126 (मध्यांतर)
 
Last edited:

Sanju@

Well-Known Member
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भाग-61

कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।

सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी


"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई

अब आगे..

"आई भैया" सोनी चिल्लाई

जब तक सोनी की आवाज बाहर पहुंचती सोनू कमरे में दाखिल हो चुका था यह तो शुक्र था कि सोनी के हाथ उसके लहंगे से बाहर आ चुके थे परंतु उंगलियों में रस अभी भी लगा हुआ था. सोनी ने उस रस को अपने नितंबों को ढक रहे घागरे में पोछने की कोशिश की और बोली..

"का चाहीं"

"थोड़ा बोरोप्लस लगा दे देख यहां का कटले बा"

सोनी ने देखा सोनू की नाक के नीचे एक कीड़े ने काट लिया था चमड़ी छिली हुई प्रतीत हो रही थी। सोनू के दोनों हाथ भैंसों के चारे से लथपथ थे शायद वह भैंसों के नाद ( जिसमेँ भैसें खाना खाती हैं) में चारा डाल कर उसे मिला रहा था।

सोनी ने दीवाल पर टंगे शीशे के साथ लगी प्लेट में रखा बोरोप्लस उठाया और अपनी उंगलियों में लेकर सोनू की नाक के ठीक नीचे लगे जख्म पर लगाने लगी एक पल के लिए सोनी यह भूल गई की उसकी उंगलियां प्रेम रस से संनी हुई थीं।


यद्यपि उसने उस रस को अपने घागरे में पोंछ लिया था परंतु कुवारी चूत की खुशबू अभी भी उसकी उंगलियों में समाहित थी।

जिस तरह कस्तूरी मृग अपनी नाभि में छुपे सुगंध को नहीं पहचान पाता उसी प्रकार सोनी भी उस खुशबू से अनभिज्ञ थी। परंतु सोनू वह तो इस काम रस की खुशबू से अभी हाल में ही वाकिफ हुआ था और उसकी मादक खुशबू को बखूबी पहचानता था।

अपनी लाली दीदी की चूत में उंगली घुमा कर उसने न जाने कितनी बार अपनी उंगलियों को प्रेम रस से सराबोर किया था और उन पर आई मदन रस को न जाने कितने घंटों तक सहेज कर उसकी मादक खुशबू का आनंद लिया था।


जैसे ही सोनी की उंगलियां सोनू की नाक के नीचे पहुंची सोनू की घ्राणेन्द्रियों ने उन्होंने सोनी की उंगलियों में लगी उसकी कुंवारी चूत की खुशबू बोरोप्लस की खुशबू पर भारी पड़ गयी। सोनू ने उसे अपने संज्ञान में ले लिया वह खुशबू उसे जानी पहचानी लगी ….

बनारस महोत्सव ने सोनू को स्त्रियों के यौन अंगों और उनसे रिसने वाले काम रस से भलीभांति परिचित करा दिया था.

यदि सामने सोनी की जगह लानी होती तो सोनू निश्चित ही यकीन कर लेता की उसके दिमाग में आए खयालात पूरी तरह सच है परंतु चूंकि यह उसकी छोटी बहन सोनी थी, सोनू का दिल यह बात मानने को तैयार न था की वह खुशबू सोनी की नादान चूत की ही थी। सोनू की निगाह में अब भी सोनी एक किशोरी ही थी उसे क्या पता था लड़कियां ज्यादा जल्दी जवान होती हैं और जांघों के बीच भट्टी जल्दी सुलगने लगती है..

सोनू ने उंगलियों को सुघने के लिए कुछ ज्यादा ही प्रयास किया जिसे सोनी ने महसूस कर लिया और उसे यह बात ध्यान आ गई उसने फटाक से अपने हाथ नीचे खींच लीयेऔर बोली

"लग गया…" और शर्माती लजाती तेजी से कोठरी से बाहर निकल गयी…..

सोनू भी वहां से हट गया पर अभी भी उस भीनी भीनी खुश्बू की तस्दीक कर रहा था कि क्या सोनी की उंगलियों पर कुछ और भी लगा था?


यह पहला अवसर था जब सोनू के मन में सोनी की युवा अवस्था का ख्याल आया अन्यथा आज तक तो वह उसकी प्यारी गुड़िया ही थी।

एक-दो दिन बाद सोनू वापस बनारस आ कर अपनी पढ़ाई में लग गया।

बनारस महोत्सव ने कईयों के अरमान पूरे किए थे और कईयों को उनकी किए की सजा भी दी थी एक तरफ सोनू ने इस महोत्सव में लाली की चूत में डुबकी लगाई थी वही विकास ने सोनी के जाँघों के बीच छलकती पहाड़ी नदी और उसकी उष्णता का आनंद लिया था। वहीं दूसरी तरफ सरयू सिंह को इस महोत्सव में ऐसी स्थिति में ला दिया था जहां वह न सिर्फ पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे अपितु अब उन्हें अपना जीवन बोझ लगने लगा था।

सोनू और विकास दोनों ही हॉस्टल के कमरे में अपने बिस्तर पर लेटे छत को देख रहे थे आंखें छत से चिपकी हुई थी पर दिमाग चूत पर टिका था।

कितना अद्भुत सृजन है नियति का एक छोटा पर अद्भुत छेद … लगता है जैसे सारी संवेदनाएं और भावनाएं उस अद्भुत कलाकृति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। वही प्रेम का चरम है वही जन्म का स्त्रोत है वही रिश्तो की जनक है वही पवित्र है वही पाप है…..

विकास अपने पहले अनुभव को साझा करना चाहता था। उसने बात शुरू करते हुए से सोनू से कहा...

इस बार तो तू अपनी लाली दीदी से चिपका रहा?

सोनू ने विकास की तरफ देखा परंतु कुछ बोला नहीं

" बेटा मैं जानता हूं कि वह गच्च माल तेरी असली दीदी नहीं है…"


"सच कहूं तो भगवान को ऐसी सुंदर और गदराई माल का कोई भाई नहीं होना चाहिए …तू कैसे उसे अपनी दीदी मां पाता है?" विकास मैं अपनी कही गई बात पर बल देते हुए कहा।

सोनू से अब और बर्दाश्त ना हुआ वह अपनी सफलता अपने दोस्त से साझा करना चाहता था उसने मुस्कुराते हुए कहा..

"दीदी है ना तभी तो दे दी…."

विकास बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और उत्सुकता से पूछा…

"तू क्या तूने चोद लिया"

" हां, चोद लिया" सोनू ने शर्माते हुए कहा.. वह भी अपने प्रथम संभोग की बातों को साझा कर अपनी मर्दानगी का बखान करना चाहता था..

" बता...ना कैसे कैसे हुआ?"


सोनू ने लाली के साथ बिताए गए पलों को विकास से पूरी तरह साझा कर लिया जैसे-जैसे सोनू की कहानी संभोग के करीब पहुंची वैसे वैसे उसने अपनी कहानी से राजेश को दूर कर दिया सोनू को यह बात अब भी समझ नहीं आ रही थी कि आखिर राजेश जीजु उसे लाली के समीप आने पर रोक क्यों नहीं रहे थे परंतु सोनू तो लाली का आम चूसने में व्यस्त था उसे गुठलियों से क्या मतलब था।

संभोग का विवरण सुनते सुनाते दोनों युवा एक बार फिर उत्तेजित हो गए और उनके लण्ड एक बार फिर हथेलियों का मर्दन झेलने लगे। यह भी एक विधि का विधान है जब वह अंग सबसे कोमल रहता है तब उसे सख्त हथेलियों के मर्दन का शिकार होना पड़ता है।

अब बारी विकास की थी उसने जैसे-जैसे सोनी के शरीर और उसके कामांगो के बारीक विवरण प्रस्तुत किए सोनू के दिमाग में उस किशोरी की छवि बनती चली गई। जैसे-जैसे विकास के विवरण में उस किशोरी की कुंवारी चूत का अंश आने लगा सोनू भाव विभोर हो गया। उसका लण्ड उसकी कठोर हथेलियों के मर्दन से तंग आ चुका था और शीघ्र स्खलित हो कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहता था।

विकास ने बताया..

"यार चूत की खुशबू क्या नशीली होती है, मैं तो उसे रात तक सूंघता रह गया था…"

सोनू के दिमाग में बरबस सोनी का ख्याल आ गया सोनी की उंगलियों में बसी बुर की खुशबू को सोनू ने अपने दिलो-दिमाग में बसा लिया था।

अपनी लाली दीदी की फूली हुई चूत रूपी ग़ुलाब को छोड़कर अचानक सोनू के दिमाग में गुलाब की कली का ध्यान आ गया। एक पल के लिए सोनू यह भूल गए कि जिस कली को वह मसलने की सोच रहा है वह उसकी अपनी छोटी बहन सोनी थी। उत्तेजना ने पराकाष्ठा प्राप्त की और सोनू के लण्ड ने अपना तनाव त्यागना शुरू कर दिया और अपनी दुग्ध धारा खुले आसमान की तरफ छोड़ दी। उधर विकास में भी अपना स्खलन प्रारंभ कर दिया था।


दोनों ही युवा पुरुषों से निकल रही वीर्य धारा एक दूसरे से होड़ लगा रही थी। परंतु सोनू था गांव का गबरु जवान और सरयू सिंह की प्रतिमूर्ति और विकास शहर का सामान्य युवक …. लण्ड की धार चाहे जैसी भी रही हो तृप्ति का एहसास उन दोनों के चेहरे पर था।

विकास को क्या पता था जिस किशोरी का उसने वर्णन किया था वह सोनू की अपनी बहन सोनी थी।

समय बीतते देर नहीं लगती। उधर सलेमपुर में जैसे ही स्थितियां सामान्य हुई सुगना ने सूरज द्वारा जीते गए पैसों से गंगा नदी के किनारे उसी सोसाइटी में एक मकान खरीदा जिसके काउंटर के बगल में लॉटरी की टिकट बिक रही थी।


उसने लाली और राजेश को भी उसी सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए मना लिया। सुगना के समीप रहने की बात सोच कर राजेश बेहद उत्साहित हो गया अपने प्रोविडेंट फंड के पैसे निकालकर वह उस सोसाइटी में मकान खरीदने के लिए तैयार हो गया।

पैसों की तंगी राजेश और लाली के पास भी थी। यह तो सुगना की दरिया दिली थी कि उसने अपने जीते हुए पैसों का कुछ भाग राजेश और लाली को भी दे दिया ताकि वह उसी सोसाइटी में उसके ठीक बगल का मकान खरीद पाए। राजेश ने बाकी पैसे अपने लोन से उठा लिए।

सरयू सिंह सुगना की दूरदर्शिता से पूरी तरह प्रभावित थे। बनारस शहर में मकान खरीदने का निर्णय सुगना ने किया था और वह तुरंत ही उसकी बात मान गए थे। क्योंकि वह पूरी तरह स्वस्थ न थे उन्होंने इस विशेष कार्य के लिए रतन और राजेश पर विश्वास कर लिया था और अपने संचित धन का महत्वपूर्ण हिस्सा उस घर पर लगा दिया। सरयू सिंह अपनी इस आकस्मिक पुत्री के जीवन में खुशियां लाना चाहते थे और उसकी हर इच्छा पूरी करना चाहते थे। राजेश ने भी सुगना को खुश करने के लिए घर के लिए आवश्यक साजो सामान खरीदने में अपने संचित धन का प्रयोग किया और कुछ ही दिनों में घर रहने लायक स्थिति में आ गया।

सुगना ने एक और कार्य किया उसने सोनू की मदद से जीते हुए पैसों से दो मोटरसाइकिल खरीदी और एक राजेश को तथा एक अपने पति रतन को उपहार स्वरूप दे दिया। फटफटिया की अहमियत के बारे में लाली उससे कई बार बातें कर चुकी थी सुगना मन ही मन यह सोच चुकी थी कि लॉटरी में जीते गए पैसे पर लाली का भी उतना ही अधिकार है जितना उसका। आखिर वह टिकट राजेश ने हीं खरीदी थी।

रतन और राजेश फटफटिया देखकर बेहद प्रसन्न हो गए यह अलग बात थी कि वह अपनी इस आकांक्षा को पूरा तो करना चाहते थे परंतु उन्हें कभी कभी यह फिजूलखर्ची लगती थी परंतु जब सुगना ने सामने से ही मोटरसाइकिल खरीदने का निर्णय कर लिया था तो वह उसके निर्णय के साथ हो गए थे और भौतिकता के इस उपहार का आनंद लेने के लिए सहर्ष तैयार हो गए थे ।

वह दोनों न सिर्फ सुगना की कामुकता के कायल थे अपितु उसकी दरियादिली के भी। सच सुगना बेहद समझदार थी और पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली थी।

कुछ ही दिनों में बनारस का मकान पूरी तरह तैयार हो गया। सुगना और लाली का परिवार बेहद प्रसन्न था।

राजेश की मदद से रतन को भी बनारस में उसी होटल में की नौकरी मिल गई जिसमे सुगना के दूसरे छेद का उदघाटन हुआ था।

नए मकान का गृहप्रवेश था। सलेमपुर गांव से कई सारे लोग सुगना और लाली के गृह प्रवेश में आए हुए थे गृह प्रवेश की पूजा में लाली और राजेश तथा सुगना और रतन जोड़ी बना कर बैठे थे रतन और सुगना को एक साथ बैठे देख कर कजरी का मन फूला नहीं समा रहा था वह बेहद प्रसन्न थी। आखिर भगवान ने उसकी सुन ली थी।

पूजा-पाठ का दौर खत्म होते ही खानपान का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया सभी सुगना और सूरज की तारीख करते नहीं थक रहे थे कितना भाग्यशाली था सूरज लाटरी के जीते हुए पैसे ने सुगना और उसके परिवार को एक नई ऊंचाई पर ला दिया था।

अकस्मात आया धन अपने साथ दुश्मन लेकर आता है। घर के बाहर पंगत में बैठे लोग वैसे तो सुगना और उसके परिवार के शुभचिंतक थे परंतु उनमें से कई ऐसे भी थे जो इस इस प्रगति से ज्यादा खुश न थे।

रतन और बबीता की पुत्री मिंकी पंगत में पानी के गिलास रख रही थी मिंकी का चेहरा उसके पिता रतन से मिलता था गांव के ही एक व्यक्ति ने मिंकी को देखकर पूछा..

"ई केकर लईकी ह"

सरयू सिंह जो पास में है खड़े थे और पंगत की व्यवस्था देख रहे थे उन्होंने उत्तर दिया

"मिन्की बेटा जा होने गिलास दे आव"

"रतन के दोस्त के लईकी ह, एकर माई बाबूजी दोनों नई खन"

सरयू सिंह ने अपने परिवार की इज्जत का ख्याल कर रतन की दूसरी शादी की बात को छुपा लिया परंतु मिंकी के चेहरे पर रतन के प्रभाव को वह समझा पाने में नाकाम थे। जाकी रही भावना जैसी... पंगत में बैठे लोगों ने सरयू सिंह की बात को सुना और अपनी अपनी मनोदशा के अनुसार उनकी बात पर यकीन कर लिया।

सरयू सिंह ने उन सभी को यह बातें स्पष्ट कर दी कि अब मिंकी उनके ही परिवार का अंग है और रतन और सुगना ने उसे पुत्री रूप में अपना लिया है।

सुगना बेहद प्रसन्न थी। मिन्की सुगना से पूरी तरह हिल मिल गई थी वह हमेशा सुगना के आसपास ही रहती और छोटी-छोटी मदद करती रहती सुगना उसे अपनी सूज बुझ के अनुसार पढ़ाती तथा प्लेट पर क ख ग घ लिखना सिखाती। सुगना के मृदुल व्यवहार ने मिंकी का मन मोह लिया था वह सुगना को अपने मां के रूप में स्वीकार कर चुकी थी।

सुगना के सारे मनोरथ पूरे हो रहे थे। पेट में आया गर्भ अपना आकार बड़ा रहा था। पूजा की शाम को वह सरयू सिंह के समीप गई और उनके चरण छूने के लिए झुकी...

सरयू सिंह पूरी तरह सुगना को अपनी बेटी मान चुके थे उन्होंने अपनी अंतरात्मा से उसे आशीर्वाद दिया

"खुश रहो बेटी भगवान तोहर मनोकामना पूरा करें और सूरज के जइसन एगो और भाई होखे"

"बाबूजी हमारा लईकी चाहीं…" सुगना ने चहकते हुए कहा..


सुगना उठ कर खड़ी हो चुकी थी और सरयू सिंह के आलिंगन में जाने का इंतजार कर रही थी। पिछले दो-तीन माह से उसे सरयू सिंह की अंतरंगता और आलिंगन का सुख नहीं मिला था। परंतु आज खुशी और एकांत में सुगना की कामुकता जवान हो उठी थी वह स्वयं उठकर अपने बाबुजी के आलिंगन में आ गए अपनी चूचियां उनके सीने से रगड़ ती हुई बोली ..

"हमार पेट फुला के त रहुआ भुला गईनी... लागा ता ई हो बूढा गईल बा…"

सुगना की निगाहें सरयू सिंह के चेहरे से हटकर उनके लण्ड की तरफ बढ़ने लगीं और हाथों ने उन निगाहों का अनुकरण किया । जब तक की सुगना के हाथ सरयू सिंह के लटके हुए लण्ड को छूने का प्रयास करते सरयू सिंह ने सुगना का हाथ पकड़ लिया और उसे उसके गालों पर लाते हुए बोले..

"अब ई सब काम मत कर….बच्चा पर ध्यान द... और एक बात कही..?"

"ना पहले ई बतायी रहुआ हमरा से दूर काहे भाग तानी"

सुगना ने अपनी चुचियों को ब्लाउज से आजाद कर दिया और बोली..

"यह दोनों हमेशा राहुल इंतजार करेले सो डॉक्टर खाली उ सब काम के मना कइले बा ई कुल खातिर नाहीं…"

सुगना ने अपनी चूचियां खोल कर उन्हें मीसने का खुला निमंत्रण सरयू सिंह को दे दिया था।

सरयू सिंह ने अपनी आंखें बंद कर लीं। वह अपनी पुत्री को अपने मन की व्यथा समझा पाने में पूरी तरह नाकाम थे।

सुगना ने अपनी कामकला का पाठ उन से ही सीखा था और उसे सरयू सिंह की यह बेरुखी बिल्कुल रास ना आ रही थी । यद्यपि यह बात वह जानती थी कि सरयू सिंह अभी उस दिन के सदमे से उबर रहे थे परंतु वह उनके कामुक स्पर्श के लिए बेताब और बेचैन थी।


उसे यह बात कतई समझ ना आ रही थी की सरयू सिंह की उत्तेजना को क्या हो गया था? जो व्यक्ति दिन में एक दो नहीं कई बार एकांत में उसे देखकर अपने आलिंगन में भर लेता और यथासंभव अपना स्पर्श सुख देता वह पिछले कई दिनों से उसी से दूर दूर रह रहा था।

सुगना को अचानक अपनी जांघों के बीच गिरे राजेश के वीर्य का ध्यान आया कहीं उसके बाबूजी मैं उसे गलत तो नहीं समझ लिया? सुगना परेशान हो गई उसने अपने मन में सोची हुई बात पर यकीन कर लिया और सरयू सिंह की नाराजगी के कारण को उससे जोड़ लिया।

उसने सरयू सिंह को मनाने की सोची… और घुटनों के बल आने लगी उसकी मुद्रा से सरयू सिंह ने आगे के घटनाक्रम का अंदाजा लगा लिया और वह पलट गए खिड़की की तरफ देखते हुए उन्होंने सुगना से कहा ..

"सुगना बेटा हमार ए गो बात मान ल…"

"बाउजी जी हम तो राउरे बानी आप जैसे कहब हम करब हमरा से नाराज मत होखी.. कौनो गलती भईल होखे तो हमार मजबूरी समझ के माफ कर देब"

सुगना ने अपने मनोदशा के अनुसार उस कृत्य के लिए सरयू सिंह से माफी मांग ली.

सरयू सिंह के मन में कुछ और ही चल रहा था उन्होंने सुगना को अपने सीने से लगा लिया परंतु यह आलिंगन में कामुकता कतई न थी सिर्फ और सिर्फ प्यार था. सुगना उनके आलिंगन में थी परंतु स्तनों ने जैसे अपना आकार सिकोड़ लिया था। उत्तेजना से सुगना के सख्त हो चुके निप्पलों ने भी इस नए प्रेम को पहचान लिया और उन्होंने अपना तनाव त्याग दिया। सुगना अपने पिता के आलिंगन में आ चुकी थी। सरयू सिंह का यह रूप उसे बेहद अलग प्रतीत हो रहा था परंतु भावनाएं प्रबल थी उसे सरयू सिंह के आलिंगन में अद्भुत सुख मिल रहा था।

सुगना ने पुरुष का यह रूप शायद पहली बार देखा था वह भावविभोर थी और आँखों मे अश्रु लिए सरयू सिह से सटती जा रही थी।

सरयू सिंह ने सुगना के कोमल गालों को अपने हाथों में लेते हुए उसके माथे को चूम लिया और बेहद प्यार से बोले ..

"बेटा हमार बात मनबु?

"हा बाबूजी" सुगना ने अपनी पलकों पर छलक आए आंसू को पूछते हुए कहा

"हमरा खातिर रतन के माफ कर द…"

सुगना ने कोई उत्तर न दिया…

सरयू सिंह ने फिर कहा..

"जीवन ने सब कुछ अपना मर्ज़ी से ना होला..हम सब कहीं न कहीं गलती कइले बानी जा… पर अब गलती के ठीक करके बा"

सुगना को अपनी गलती का प्रायश्चित करने का विचार आ चुका था…

"ठीक बा बाबूजी… पर का उ अब हमारा के अपना पइहें"

"बेटा उ सब कुछ छोड़ के तहरे पास आइल बा….उ..अब हमारा सुगना बेटा के तंग करी त लाठी से पीटब"

सुगना के होंठो पर मुस्कुराहट आ गयी। चेहरा कांतिमान ही गया। नियति सुगना को देख रही थी और सुगना के भविष्य का ताना बाना बुन रही थी।


रतन सचमुच सुगना से प्यार करने लगा था उसे पता था कि सूरज और उसके गर्भ में पल रहा दूसरा बच्चा भी उसका नहीं था परंतु वह इन सब बातों से दूर सुगना पर पूरी तरह आसक्त हो चुका था वह एक पति की तरह उसका ख्याल रखता और हर सुख दुख में उसका साथ देता.

कुछ ही दिनों में लाली और सुगना दोनों ही अपने नए घर में पूरी तरह सेट हो गई। उनका गर्भ लगभग 6 माह का हो चुका था। दोनों ही एक साथ गर्भवती हुई थी दोनों साथ बैठती और अपने गर्भ के अनुभव को साझा करती…

एक दिन लाली ने सुगना का फूला हुआ पेट सहलाते हुए पूछा

"ए में केकर बीज बा तोर जीजाजी कि रतन भैया के…?"

"जब होइ त देख लीहे…"

सुगना इस प्रश्न का उत्तर स्पष्ट तौर पर दे सकती थी उसका संशय तो राजेश और बाबूजी के बीच था, रतन तो इस खेल से पूरी तरह बाहर था। निश्चित ही राजेश का पलड़ा भारी था...

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

शेष अगले भाग में...
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
सोनु ने अनजाने में ही सही सोनी की कुवारी चुत के रस की खुशबू को सुंघ लिया
विकास और सोनू चुदाई की यादों मे खो गये
सरयुसिंग को पश्चात्ताप हो ने लगा है उसके मन में पिता का प्यार उमड पडा है
सुगना के नये घर में रतन और सुगना क्या एक हो सकते है देखते हैं अगले अपडेट में क्या होता है
 
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Sanju@

Well-Known Member
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भाग 62

सुगना के मन में उस दिन के दृश्य ताजा हो गए जब वह बनारस महोत्सव की आखिरी रात को राजेश के घर पर थी। जाने यादों और संवेदनाओं में ऐसी कौन सी ताकत होती है जो दूसरा पक्ष भी पहचान लेता है। राजेश भी रेल की खिड़की से सर टिकाए स्वयं उस दिन की यादों में खोया हुआ निर्विकार भाव से बाहर की काली रात को देख रहा था और उसका अंतर्मन सुगना को याद कर रोशन था रोमांचित हो रहा था …

अब आगे....

लाली के घर मे बनारस महोत्सव की आखिरी रात लाली और सुगना बिस्तर पर सुंदर नाइटी में लिपटी हुई बातें कर रही थी। कुछ वस्त्र तन को इस प्रकार ढकते हैं कि वह उसे और कामुक बना देते हैं वही हाल लाली और सुगना का था। दोनों परियां दीये की रोशनी में कयामत ढा रहीं थीं पर इन पर मार मिटने वाला राजेश बाहर हाल में लेटा हुआ उन्हें ही याद कर रहा था।

लाली में खुश होकर कहा

"आज त ते भाग्यशाली बाड़े"

सुगना को एक पल के लिए सच में एहसास हुआ कि जैसे वह इस दुनिया के सबसे भाग्यशाली औरत हो। भरपूर धन दौलत जो आज राजेश की बदौलत उससे मिल चुकी थी एक खूबसूरत और प्यारा बेटा जो सूरज के रूप में उसके पास था और तीसरा काम सुख.. यह अलग बात थी कि उसे पुरुष संसर्ग का सुख अपने पति के बजाए अपने प्यारे बाबू जी से मिला था पर वह अनुभव अद्भुत और बेहद आनंददायक था।

पिछले 3 -4 वर्षों में न तो उसे कभी अपने पति की कमी कभी महसूस न हुई थी वह दुनिया की सबसे संतुष्ट औरत थी। परंतु पिछले 3-4 दिनों में उसकी अधीरता चरम पर पहुंच चुकी थी। विद्यानंद की बातों पर विश्वास कर गर्भधारण उसके लिए बेहद अहम और एक चुनौती बन गया था।

सुगना जैसे संतुष्ट और खुशहॉल युवती अचानक ही हतभगिनी बन गई थी। जिस स्त्री को अपने ही पुत्र से संभोग करना पड़े निश्चित ही यह मानसिक कष्ट असहनीय होगा और तो और इसके बचाव का तरीका भी कम कष्टकारी न था अपनी ही पुत्री को अपने पुत्र से संभोग कराना यह घृणित और निकृष्ट कार्य सुगना के भाग्य में नियति ने सौंप दिया था। लाली ने फिर कहा

"कहां भुला गइले" सुगना उदास होकर बोली

"लागा ता हमार मनोकामना पूरा ना हो पायी"

"रतन भैया त आ गइल बाड़े" सुगाना के ना तो दिमाग में और ना ही खयालों में कभी रतन का नाम आया था वह कुछ ना बोली और चुप ही रही।

"कह त जीजा जी के बुला दे तानी*

सुगना ने पिछले दो दिनों में मन ही मन कई बार राजेश के बारे में सोचा था अपने अवचेतन मन में में वह स्वयं को राजेश के सामने नग्न तो कर लेती पर अपनी जाँघे खोल कर उनके काले लण्ड को अपनी बुर में…..….छी छी सुगना तड़प उठती। क्या वह सच में राजेश से संभोग करेगी? जिस रसीली चूत को उसके बाबूजी रस ले लेकर चूसते और चाटते हैं और उसमेँ किसी पराये मर्द का….….आह… सुगना की बुर सतर्क हो गयी…परंतु आज राजेश का पलड़ा बेहद भारी था।

सुगना स्वयं को तैयार करने लगी तभी लाली ने कहा "अच्छा हम जा तानी हम कालू मल ( राजेश का लण्ड) के दूह ले आवा तानी. ते आंख बंद करके सुतल रहिये ..बस उनका के आपन दिया (बुर) देखा दीहें ओ में तेल हम गिरवा देब"


उधर सुगनामन ही मन चुदवाने को तैयार हो रही थी परंतु लाली ने यह सुझाव देकर वापस उसे एक सम्मानजनक परिस्थिति में ला दिया। उसने अपनी मूक सहमति दे दी।

उधर राजेश ….जन्नत में सैर कर रहा था..

खूबसूरत पलंग पर लाल चादर बिछी हुई थी। लाली पूर्ण नग्न अवस्था में बिस्तर पर लेटी थी जैसे उसका ही इंतजार कर रही थी। पूरे कमरे में घुप्प अंधेरा था परंतु बिस्तर और उस पर लेटी हुई लाली चमक रही थी।


राजेश बिस्तर पर आ चुका था कुछ ही देर में उसका खड़ा लण्ड लाली की बुर में प्रवेश कर गया। दो सख्त और दो मुलायम जांघों के बीच घर्षण शुरू हो गया। पति-पत्नी की काम क्रीड़ा हमेशा की तरह आगे बढ़ने लगी।

अचानक राजेश को लाली को बगल में किसी के लेटे होने का एहसास हुआ उसने लाली से पूछा

"अरे ई कौन है"


लाली की गूंजती हुई आवाज आयी

"जेकर हमेशा सपना देखेनी उ हे ह आपके सुगना.."

"फेर काहे बुला लेलु हा , जाग गईल त?

"अरे उ घोड़ा बेच के सुतेले उ ना जागी.."

" हमरा ठीक नईखे लागत, चल हाल में चलीजा "

"अरे एहिजे कर लीं उ ना जागी"

राजेश लाली को चोदते चोदते अचानक रुक गया था परंतु लाली के आश्वासन से एक बार फिर उसके कमर की गति ने रफ्तार पकड़ ली लाली ने राजेश को छेड़ा

"आज त कालू मल (राजेश का लण्ड) कुछ ज्यादा ही उछलत बाड़े। लागता आपके दिमाग में सुगना घूमत बिया"

"लाली मत बोल उ जाग जायी" राजेश मन ही मन उत्साहित भी था पर घबरा भी रहा था।

राजेश को लाली के बगल में सोई हुई सुगना की आकृति दिखाई दे रही थी परंतु उसका शरीर पूरी तरह नाइटी से ढका हुआ था.

अचानक लाली ने अपने हाथ बढ़ाए और सुगना की फ्रंट ओपन नाइटी के दोनों भाग दोनों तरफ कर दिए राजेश की निगाहें सुगना की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई जो कार की हेडलाइट की तरह चमक रहीं थीं। राजेश की तरसती आंखों ने सुगना की चुचियों के दिव्य दर्शन कर लिए।

उस सुर्ख लाल बिस्तर पर सुगना का गोरा शरीर चमक रहा था पूरे शरीर पर कोई आभूषण न था परंतु सुगना की छातियों पर जो दुग्ध कलश थे सुगना के सबसे बड़े गहने थे। खूबसूरत और कसी हुई चूचियां गुरुत्वाकर्षण को धता बताकर पूरी तरह तनी हुई थी उस पर से निप्पल अकड़ कर खड़े थे जैसे सुगना के नारी स्वाभिमान की दुहाई दे रहे हों। चुचियों में वह आकर्षण था जो युवकों को ही क्या युवतियों को ही अपने मोहपाश में बांध ले।

राजेश जैसे-जैसे सुगना को देखता गया उसका लण्ड और खड़ा होता गया ऐसा लग रहा था जैसे शरीर का सारा रक्त लण्ड में घुसकर उसे फूलने पर मजबूर कर रहा था। राजेश का लण्ड अभी भी लाली के बुर में था पर वह शांत था। राजेश की निगाह छातियों की घाटी पर गई.. सुगना ने मंगलसूत्र क्यों उतारा था राजेश मन ही मन सोचने लगा…

कहीं सुगना संभोग आतुर तो नहीं शायद उसने अपने पति रतन का दिया मंगलसूत्र इसीलिए उतारा था? राजेश के मन में आए प्रश्न का उत्तर स्वयं राजेश ने हीं दिया और उसका मन कुलांचे भरने लगा।


लाली मुस्कुराते हुए राजेश को देख रही थी जिसकी आंखें सुगना की चुचियों से चिपकी हुई थी और होंठ आश्चर्य से खुले हुए थे।

राजेश का कालूमल अब अधीर हो रहा था शांति उसे कतई पसंद न थी उछलना उसका स्वभाव था और वह लाली की बुर में अठखेलियां करने के लिए तत्पर था लाली ने कहा

"लागा ता ओकरा चूँची में भुला गईनी"

राजेश वापस से लाली को चोदने लगा इस बार कमर के धक्कों की रफ़्तार कुछ ज्यादा थी निश्चित ही इसमें सुगना की चुचियों का असर था लाली ने कहा

"अब साध बुता गईल की औरू चाहीं"

सुगना राजेश के लिए एक अप्सरा जैसी थी उसकी चुचियों को देखकर उसके आकांक्षाएं और बढ़ गयीं सबसे प्यारी और पवित्र चीज सुगना की बुर अब भी उसकी निगाहों से दूर थी। सुगना की बुर और जांघों का वह मांसल भाग देखने के लिए राजेश तड़प उठा।


सुगना की जाँघों का पिछला भाग वह पहले देख चुका था परंतु आगे का भाग की कल्पना कर न जाने उसने कितनी बार कालूमल का मान मर्दन किया था राजेश ने लाली से कहा..

" नीचे भी हटा दी का?"

"मन बा तो हटा दी उ ना जागी घोड़ा बेच के सुतेले" लाली ने अपनी बात एक बार फिर दोहराई और राजेश के हौसले को बढ़ाया।

राजेश ने हिम्मत करके नाइटी का निचला भाग भी हटा दिया नाइटी अलमारी के 2 पल्लों की तरह खुलकर बिस्तर पर आ गए और सुगना का कोमल और कमनीय शरीर राजेश की निगाहों के सामने पूर्ण नग्न अवस्था में आ गया। सुगना ने अपने पैर के दोनों पंजे एक दूसरे के ऊपर चढ़ाए हुए थे। दोनों जाँघे एक दूसरे से चिपकी हुई थी।

अलमारी खुल चुकी थी परंतु तिजोरी अब भी बंद थी। जांघों के मांसल भाग ने सुगना की बुर पर आवरण चढ़ा रखा था वह तो उसके बुर् के घुंघराले बाल थे जो खजाने की ओर संकेत कर रहे थे परंतु खजाना देखने के लिए सुगना की मांसल जांघों का अलग होना अनिवार्य था।

राजेश को जांघों के बीच बना अद्भुत और मनमोहक त्रिकोण दिखाई दे रहा था सुगना के चमकते गोरे शरीर पर छोटे छोटे बालों से आच्छादित वह त्रिकोण राजेश को बरमूडा ट्रायंगल जैसा प्रतीत हो रहा था। वह उसके आकर्षण में खोया जा रहा था उसका अंतर्मन उस सुखना की अनजानी और अद्भुत गहराई में उतरता जा रहा था ।

उसने लाली की चुदाई बंद कर दी थी और भाव विभोर होकर बरमूडा ट्रायंगल के केंद्र में बने उस अद्भुत दृश्य को अपनी आंखें बड़ी-बड़ी कर देख रहा था परंतु गुलाबी छेद का दर्शन तब तक संभव न था जब तक सुगना अपनी जांघों के पट ना खोलती और अपने गर्भ द्वार और उसके पहरेदार बुर् के होठों को न खोलती।

लाली ने राजेश का ध्यान भंग किया और बोली

"आप देखते रहीं हम जा तानी सुते" अपना कालूमल के निकाल ली। "

लाली ने यह बात झूठे गुस्से से कही थी राजेश को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह सुगना के सुंदर शरीर को देखते हुए लाली को फिर गचगचा कर चोदने लगा। उसने लाली को चूमते हुए कहा ..

"कितना सुंदर बीया सुगना देखा चुचियों कतना फूलन फूलन बा . रतनवा साला के कितना सुंदर माल मिलल बा। एकदम मैदा के जैसन चूची बा"

"अतना पसंद बा त ध लीं"

"जाग जायी त"

"छोड़ देब"


"हट पागल"

राजेश एक बार फिर लाली को चोदने लगा था परंतु उसकी आंखें सुगना के इर्द गिर्द घूम रही थी।


वह चुचियों को छूना चाहता था उसकी मनोदशा जानकर लाली ने एक बार फिर कहा

"जोर से मत दवाईब खाली सहला लीं"


राजेश जैसे अधीर हो गया था उसने सुगना की चुचियों पर अपना हाथ रख दिया. सुगना जैसे निर्विकार भाव से लेटी हुई थी. उसने कोई प्रतिरोध ना किया और राजेश के हाथ सुगना की चुचियों को प्यार से धीरे-धीरे सहलाने लगे। उसकी उंगलियां सुगना के निप्पलों से टकराते ही और राजेश सिहर जाता। एक पल के लिए राजेश के मन में आया कि वह आगे बढ़ कर उसकी चुचियों को मुंह में भर ले पर राजेश इतनी हिम्मत न जुटा पाया। राजेश ने जो प्यार सुगना की चुचियों के साथ दिखाया था उसका असर सुगना के कमर के निचले भाग पर भी हुआ।

सुगना के गर्भ द्वार के पटल खुल गए सुगना की दोनों एड़ियां दूर हो चुकी थी और जाँघे भी उसी अनुपात में अलग हो चुकी थी। सुगना की रानी झुरमुट से बाहर मुंह निकालकर खुली हवा में सांस ले रही थी। राजेश की निगाह इस परिवर्तित अवस्था पर पढ़ते ही वह अधीर हो गया। उसने लाली की बुर से अपना लण्ड बाहर खींच लिया और अपने सर को सुगना की जांघों के ठीक ऊपर ले आया। उसके दोनों पैर लाली और सुगना के बीचो-बीच आ गए.

गोरी सपाट चिकनी और बेदाग चूत को देखकर राजेश मदहोश हो गया उसने लाली की तरफ देख कर बोला "एकदम मक्खन मलाई जैसी बा"

"तो चाट ली."

" जाग गई त"

"तो आप जानी और आपके साली"

राजेश से और बर्दाश्त ना हुआ उसने अपने होंठ सुगना की कोमल बुर से सटा दिए। अपने दोनों होंठो से सुगना के निचले होठों को फैलाते हुए उसने अपनी जीभ उस गहरी सुराही में छोड़ दी जिस पर पानी छलक रहा था । जीभ ने जैसे ही गहरी गुफा में प्रवेश किया सुगना की बुर से रस छलक कर बाहर आ गया और सुगना के दूसरे छेद की तरफ बढ़ चला। राजेश की निगाहें सुगना की सुगना की बुर को ध्यान से न देख पा रही थी वह कभी सर उठा कर सुगना की बुर को देखता और फिर झुक कर अपने होंठ उससे सटा देता।

नयन सुख और स्पर्श सुख दोनों ही राजेश को पसंद आ रहे थे। सुगना के फैले हुए पैर तन रहे थे। सुगना कि मजबूत जांघों की मांसपेशियां तनाव में आ रही थी राजेश के होठों की मेहनत रंग ला रही थी। सुगना की सांसें तेज चलने लगी । लाली ने सुगना की सांसों में आए बदलाव को महसूस कर लिया था उसने सुगना को चूमते हुए कहा

" ए सुगना मान जा"

"हम कहां रोकले बानी"

सुगना ने यह बात फुसफुसाकर कही थी पर राजेश ने सुन ली.

लाली ने सुगना के हाथ को पकड़ कर राजेश के लण्ड पर रख दिया और सुगना की कोमल हथेलियों से कालूमल को सहलाने लगी।

राजेश ने नए स्पर्श को महसूस किया। सुगना के हांथो में अपने लण्ड को देखकर मस्त हो गया। राजेश तृप्त हो गया उसने एक बार फिर सुगना की सुराही में मुंह डाल दिया।

एक अद्भुत तारतम्य बन गया था। सुगना राजेश का लण्ड तब तक सहलाती जब तक उसे अपनी बूर् चटवाने में मजा आता। जैसे जी राजेश उग्र होकर बूर् को खाने लगता वह लण्ड के सुपारे को जोर से दबा देती और राजेश तुरंत ही बुर से अपने होंठ हटा लेता।

लाली तो धीरे-धीरे इस खेल से बाहर हो गई थी थोड़ी ही देर में राजेश लाली को भूलकर सुगना की जांघों के बीच आ गया परंतु सुगना की जाघें अभी भी एक खूबसूरत कृत्रिम डॉल की तरह निर्जीव पड़ी हुई थी राजेश ने उसे अपने दोनों हाथ से अलग किया और घुटने से मोड़ दिया।

अपने काले लण्ड को सुगना की गोरी चूत के मुहाने पर रखकर वह मन ही मन सुगना को चोदने की सोचने लगा तभी लाली की गूंजती हुई आवाज सुनाई दी…


"अपना साली के सूखले चोदब बुर दिखाई ना देब?"

राजेश को शर्म आई और उसने अपने गले की चैन उतार कर सुगना की चूचियो पर रख दिया चैन से 8 का आकार बनाते हुए उसमें सुगना की चुचियों को उसमें भरने की कोशिश की। परंतु अब सुगना की चूचियां बड़ी हो चुकी थी। वह राजेश की छोटी सी चैन में आने को तैयार न थी। फिर भी राजेश ने यथासंभव कोशिश की और सुगना चुचियों को तो ना सही परंतु निप्पलों को अपने प्रेम पास में बांधने में कामयाब हो गया।

सुगना की निर्जीव पड़ी जाँघे अब सजीव हो चुकी थी वह अपने दोनों पैर घुटनों से मोड़ें दोनों तरफ फैलाए हुए थे और जांघों के बीच उसकी गोरी और मदमस्त फूली हुई बुर अपने होठों पर प्रेम रस लिए अपने अद्भुत निषेचन का इंतजार कर रही थी। अंदर का मांसल भाग भी उभरकर झांकने लगा ऐसा लग रहा था जैसे सुगना की उत्तेजना चीख चीख कर अपना एहसास करा रही थी और अपना हक मांग रही थी।


सुगना की जाँघे स्वतः फैली हुई थी राजेश को उन्हें सहारा देने की कोई आवश्यकता नहीं थी। सुगना की अवस्था प्रणय निवेदन को स्पष्ट रूप से दर्शा रही थी। राजेश ने अपने लण्ड का दबाव सुगना की मदमस्त बुर पर लगा दिया और सुगना की कामुक कराह निकल पड़ी..

"जीजा जी तनी धीरे से….. दुखाता…."

राजेश तो मस्त हो गया यह मादक और अतिकामुक कराह उसने पहली बार सुनी थी उसने निर्दयी भाव से अपने लण्ड को सुगना की बुर में ठान्स ने की कोशिश की और यही वक्त था जब उसका स्वप्न भंग हुआ दरअसल उसके लण्ड ने सुगना की कोमल बुर की जगह जगह चौकी में छेद करने की कोशिश की। परंतु वह काठ की चौकी लण्ड से ज्यादा कठोर थी। राजेश का स्वप्न भंग हो गया था.. और उत्तेजना दर्द में तब्दील हो गई थी।


सुगना की बुर लण्ड जड़ तक पहुंचाने के प्रयास में राजेश के पैर पूरी तरह तन गए थे पंजे बाहर की तरफ हो गए और चौकी के कोने में रखा दूध का वह गिलास जिससे सुगना ने अपने हाथों से दिया था जमीन पर गिर पड़ा खनखनाहट की तेज आवाज हुई और कमरे में लेटी बतिया रही सुगना और लाली सचेत हो गयीं।

राजेश ने अपने आपको पेट के बल चौकी पर पाया । नीचे सुगना ना होकर चौकी पर सूखा बिस्तर था। वह तड़प कर रह गया परंतु उसके होठों पर मुस्कुराहट कायम थी अपने स्वप्न में ही सही परंतु उसने अपनी स्वप्न सुंदरी की अंतरंगता का आनंद ले लिया था। वह पलट कर पीठ के बल आ गया और अपने इस खूबसूरत सपने के बारे में सोचने लगा।

गिलास गिरने की आवाज सेकमरे में लाली और सुगना सचेत हो गयीं। सुगना ने कहा

"जा कर देख जीजा जी सपनात बड़े का"

सुगना ने यह बात अंदाज़ पर ही कही थी परंतु उसकी बात अक्षरसः सत्य थी। लाली हाल में कई और राजेश की अवस्था देखकर सारा माजरा समझ गई। राजेश अभी भी अपने तने हुए लण्ड को हाथ से सहला रहा था। राजेश की स्थिति देखकर लाली वापस अंदर आयी हाथों में जैतून का तेल लिए वापस हाल में आने लगी। जाते-जाते उसने अपने हथेलियों को गोलकर सुगना को यह इशारा कर दिया कि वह कालू मल का मान मर्दन करने जा रही है, सुगना मुस्कुरा रही थी।

लाली के जैतून के तेल से सने हाथ राजेश के लण्ड पर तेजी से चलने लगी उसने राजेश से पूछा

"सुगना के बारे में सोचा तानी है नु?"

राजेश ने लाली से अपने स्वप्न को ना छुपाया और उसे अपने स्वप्न का सारा विवरण सुना दिया। लाली राजेश के स्वप्न को सुनती रही और उसके लण्ड को सहला कर स्खलन के लिए तैयार कर दिया।

तभी लाली ने कहा त "चली आज साँचों दर्शन करा दीं, सुगना सुत गईल बिया"

"का कह तारू?"

" उ जागी ना?"

लाली ने वही उत्तर दिया जो राजेश ने अपने स्वप्न में सुना था।

राजेश उस लालच को छोड़ ना पाया और अपने खड़े लण्ड के साथ अंदर के कमरे में आ गया। सुगना किनारे पीठ के बल सोई हुई सोई हुई थी। सुगना की मदमस्त काया को देख कर का लण्ड उछलने लगा। लाली के हाथ अभी भी उसके लण्ड को सहना रहे थे। अचानक लाली ने नाइटी तो दोनों तरफ फैला दिया सुगना का मादक शरीर पूरी तरह नग्न हो गया।


कमरे में बत्ती गुल थी। पर दीए की रोशनी में सुगना का शरीर चमक रहा था। सुगना ने अपना चेहरा ढक रखा था। राजेश सुगना का चेहरा तो ना देख पाया परंतु चेहरे के अलावा सारा शरीर उसकी आंखों के सामने था जो सपने उसने देखा था उसका कुछ अंश आंखों के सामने देख कर वह बाग बाग हो गया।

कालूमल आज उद्दंड हो चला था वह लाली के हाथों से छटक रहा था ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह स्वयं उछलकर सुगना की गोरी बुर में समाहित हो जाना चाहता था।

राजेश उत्तेजना से कांपने लगा लाली के हाथ लगातार कालूमल को रगड़ रहे थे और अंततः कालू मल ने अपना दम तोड़ दिया राजेश के लण्ड से निकल रही वीर्य की धार को नियंत्रित करने का जिम्मा लाली ने बखूबी उठाया और सुगना की बुर पर बालों का झुरमुट राजेश के रस से पूरी तरह भीग गया सुगना अपने होंठ अपने दांतो से दबाए इस कठिन परिस्थिति को झेल रही थी कभी उत्तेजना और कभी घृणा दोनों ही भाव अपने मन में लिए उसने अपनी बुर को राजेश के रस से भीग जाने दिया।

स्खलन उत्तेजना की पराकाष्ठा है और वही उसका अंत है स्खलन पूर्ण होते ही राजेश वापस हॉल में चला गया और लाली की राजेश के वीर्य से सनी उंगलियां सुगना की बुर में। सुगना की बुर पूरी तरह गीली थी। लाली की उंगलियों ने कोई अवरोध ना पाकर लाली में उस मखमली एहसास को अंदर तक महसूस करने की कोशिश की परंतु सुगना ने लाली के हाथ पकड़ लिए और कहा

"अब बस हो गईल"

लाली ने मुस्कुराते हुए कहा

"अतना गरमाइल रहले हा त काहे ना उनकर साधो बुता देले हा"

सुगना अपनी यादों में खोई हुई थी। तभी राजेश के वीर्य के जिस अंश को उसने अपनी गर्भ में स्थान दिया था आज उसने ही अंदर से उसके पेट पर एक मीठी लात मारी और उसे अपनी उपस्थिति का एहसास कराया अपने गर्भ में पल रहे बच्चे के हिलने डुलने का एहसास कर सुगना भाव विभोर हो गई और खुश होकर मुस्कुराते हुए बोली


"ए लाली देख लात मार तिया"

सुगना ने अपने गर्भ में पल रहे लिंग का निर्धारण स्वयं ही कर लिया था उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि गर्भ में पल रहा बच्चा एक लड़की की थी..

नियति स्वयं भी सुगना को देखकर उसके भाग्य के बारे में सोच रही थी सुगना जैसी संवेदनशील और प्यारी युवती के लिए उसने ऐसा खेल क्यों रचा था वह स्वयं परेशान थी।

लाली ने कहा..


"हमरा से बाजी लगा ले इ लइका ह"

सुगना सहम गई


"ते कैईसे बोला ता रे"

"हमरो पेट तोरे साथी फूलल रहे हमार त लात नईखे मारत ….लड़की देरी से लात मारेली सो"

सुगना ने लाली की बात का विश्वास न किया वह पूरी तरह आश्वस्त थी की नियति उसके साथ ऐसा क्रूर मजाक नहीं करेगी आखिर जब उसके इष्ट देव ने विषम परिस्थितियों में भी उसे बनारस महोत्सव के दौरान गर्भवती करा ही दिया था तो वह निश्चित ही यह कार्य सूरज की मुक्ति के लिए ही हुआ होगा..

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"

मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

शेष अगले भाग में..
अति सुंदर और मनमोहक अपडेट है भाई
मजा आ गया :adore:
बनारस महोत्सव में सुगना राजेश के साथ संभोग न करके किस तरह से गर्भवती हुई यह राज भी खुल गया सुगना का गर्भवती होने में सरयूसिंग का भी योगदान हैं जिसने राजेश के वीर्य को सुगना के गर्भाशय में पहुंचाया
 

Sanju@

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भाग- 63

सुगना और लाली की बातें खत्म ना हुई थी कि मिंकी भागती हुई सुगना के पास आई

"माँ सूरज के देख का भइल बा…"

मिंकी ने भी न सिर्फ अपनी माता बदल ली थी अपितु मातृभाषा भी सुगना अपना पेट पकड़कर भागती हुई सूरज के पास गई

"अरे तूने क्या किया…"


मिंकी हतप्रभ खड़ी थी उसने अपने दोनों हाथ जोड़ लीये और कातर निगाहों से सुगना की तरफ देखने लगी...सुगना परेशान हो गई...

अब आगे..

सूरज बिस्तर पर बैठा खेल रहा था परंतु उसकी छोटी नुंनी अपना आकार बढ़ा चुकी थी सूरज के अंगूठे पर सुगना द्वारा लगाया आवरण नीचे गिरा हुआ था । सुगना ने मिंकी की तरफ देखा डरी हुई मिन्की ने कहा "मां मैंने कुछ नहीं किया सिर्फ सूरज बाबू के अंगूठे को सह लाया था"

सुगना ने अपना सर पकड़ लिया उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था जो गलती मिन्की में की थी उसका उसे एहसास भी न था। उस मासूम को क्या पता था कि सूरज और उसके अंगूठे में क्या छुपा है।

सुगना ने स्थिति को संभाला और मिंकी से अपनी आंखें बंद करने को कहा..

"जबले हम ना कहीं आंख मत खोलीह"

मिंकी ने पूरी तन्मयता से अपनी आंखें बंद कर लिया और सुगना के अगले कदम का इंतजार करने लगी। मिंकी सुगना के वात्सल्य रस से ओतप्रोत हो चुकी थी उसे पूरा विश्वास था कि उसकी सुगना मां उसके साथ कुछ भी गलत नहीं करेगी।

फिर भी आंखें बंद कर सुगना के अगले कदम का इंतजार करती हुई मिंकी के चेहरे पर डर देखा जा सकता था। तभी सुगना ने अपनी उंगली को उसके होठों से सटाया और बोला

"अच्छा बता यह मेरी कौन सी उंगली है?"

सुगना की मीठी आवाज सुनकर मिंकी का डर काफूर हो गया और वह खुशी खुशी चाहते हुए बोली

"मां बीच वाली"

अच्छा यह बता

"मां सबसे छोटी वाली" मिन्की अपनी समझ बूझ से सुगना के प्रश्नों का उत्तर दे रही थी।


तभी सुगना ने सूरज को उठाकर अपनी गोद में ले लिया और उसकी नूनी को मिंकी के होठों से सटा दीया।

छोटी मिंकी सूरज की नुन्नी के अद्भुत स्पर्श को पहचान ना पहचान पायी। जब तक कि वह उत्तर देती सूरज की नुंनी ने अपना आकार कम करना शुरू कर दिया कुछ ही देर में मिल्की ने यह अंदाजा लगा लिया कि जो जादुई चीज उसके होठों से स्पर्श कर रही थी वह सुगना मां की उंगलियां कतई न थी मिकी ने अपनी आंखें तो ना खुली परंतु हाथ ऊपर कर सुगना को छूने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियां सूरज के पैरों से जा टकराई मिंकी को एक पल के लिए वही भ्रम हुआ जो सच था परंतु उसकी आंखें अब भी बंद थी।

सुगना ने सूरज को वापस बिस्तर पर रख दिया और मिंकी के माथे को चूमते हुए बोली

"बेटा कभी भी बाबू के अंगूठा मत सहलाई ह"

मिंकी अभी भी अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी उसने अपना सर हिलाया और अपनी मां के आलिंगन में आ गई सुगना ने उसे अपने पेट से सटा लिया परंतु पेट में पल रहे बच्चे की हलचल महसूस कर मिंकी ने पूछा

" मां एमें बाबू बा नु?"

सुगना सहम गयी उसने मुझे के गाल पर मीठी सी चपत लगाई और बोली "तोहार साथ देवे तोहार बहन आव तिया"

नियति ने सुगना के कहे शब्दों को अपने मन में संजो लिया और अपनी कहानी का ताना-बाना बुनने लगी …


उधर सरयू सिंह पूरी तरह निरापद और निर्विकार हो चुके थे। जीवन में उन्होंने जितने सुख सुगना से पाए थे वह सुखद यादें अब उनके मन में एक टीस पैदा करती थी। उनका मन बनारस में न लगता जब जब वह सुगना को देखते उनके मन में एक हुक सी उठती। सरयू सिंह की कामवासना अचानक ही गायब हो चुकी थी। पिता पुत्री के पावन रिश्ते के सैलाब में उनकी कामवासना एक झोपड़ी की तरह बह गई थी।


सुगना जैसी मदमस्त और मादक युवती को देखने का अचानक ही उनका नजरिया बदल गया था परंतु उनके अंग प्रत्यंग किसी न किसी प्रकार से सुगना के मादक स्पर्श को न भूल पाते हाथों की उंगलियां दिमाग के नियंत्रण से बाहर जाने का प्रयास करतीं सुगना भी परेशान रहती आखिर बाबूजी को यह क्या हो गया है? उनके आलिंगन में आया बदलाव सुगना भली-भांति महसूस करती थी वह स्वयं सटने का प्रयास करती परंतु उसके बाबूजी स्वयं मर्यादा की लकीर खींच देते और अपने शरीर को पीछे कर लेते।

सुगना को मन ही मन यह ग्लानि होती ही क्यों उसने राजेश के वीर्य को अपनी जांघों के बीच स्थान दिया… शायद इसी वजह से उसके बापूजी उससे घृणा करने लगे हैं। सुगना सरयू सिंह के करीब जाकर उन्हें खुश करने का प्रयास करती परंतु होता ठीक उल्टा शरीर सिंह असहज स्थिति में आने लगे थे।

सुगना ने अपने गर्भवती होने के लिए पर पुरुष के वीर्य को जिस तरह धारण किया था वह उचित है या अनुचित यह नजरिए की बात है।परंतु सुगना की मनो स्थिति वही जान सकती थी। बनारस महोत्सव में गर्भवती होना उसके लिए जीवन मरण का प्रश्न था और उसने वही किया जो उसके लिए सर्वथा उचित था।

सरयू सिंह दुविधा में थे। वह सुगना के करीब ही रहना चाहते थे और सुगना के कामुक व्यवहार से दूर भी रहना चाहते थे वह चाहकर भी सुगना को यह बात नहीं बता सकते थे कि वह उनकी अपनी पुत्री है। कोई उपाय न देख कर वह बनारस छोड़कर सलेमपुर चले आये। परंतु उनके लिए अकेले सलेमपुर में रहना कठिन हो रहा था उनका हमेशा से साथ देने वाली कजरी भौजी अब सुगना का ख्याल रखने बनारस में रहती थी। सरयू सिंह का खाना पीना उनके दोस्त हरिया के यहां चलता परंतु मनुष्य के जीवन में खाना के अलावा भी कई कार्य होते जो कजरी एक पत्नी के रूप में कर दिया करती थी। सेक्स तो जैसे सरयू सिंह के जीवन के गधे के सिर के सींघ की तरह गायब हो गया था।

उधर रतन सुगना के करीब आने को लालायित था। पिछले कुछ महीनों में सुगना ने रतन को अपने बिस्तर पर सोने की इजाजत देती थी परंतु विचारों में दूरियां अभी भी कायम थी। खासकर सुगना की तरफ से। रतन तो आगे बढ़कर सुगना को गले लगा लेना चाहता था परंतु सुगना खुद को हाथ न लगाने देती । वह मरखैल गाय की तरह व्यवहार तो ना करती परंतु बड़ी ही संजीदगी से स्वयं को दूर कर लेती।


वैसे भी वह दिमागी तौर पर हमेशा यही सोचने में व्यस्त रहती है कि आखिर उसके बाबूजी की उत्तेजना को क्या हो गया है। ऐसा तो नहीं कि वह गर्भवती पहली बार हुई थी इसके पूर्व भी जब उसके पेट में सूरज आया था तब भी सरयू सिंह ने अपनी और उसकी उत्तेजना को कम होने नहीं दिया था। सुगना की यादों में वह खूबसूरत पल आज भी कैद थे।

जैसे-जैसे सुगना का गर्भ अपना आकार बढ़ा रहा था सुगना का ध्यान कामुकता से हटकर अपने गर्भ पर केंद्रित हो रहा था शायद यही वजह थी कि वह सरयू सिंह की बेरुखी को नजरअंदाज कर पा रही थी।

आज सुगना के हाथ पैर में अचानक तेज दर्द हो रहा था। कजरी किसी आवश्यक कार्य से सलेमपुर गई हुई थी घर पर सिर्फ रतन और दोनों छोटे बच्चे थे एक सूरज और दूसरी मिन्की।

शाम घिर आई थी परंतु सुगना बिस्तर पर लेटी अपने हाथ पैर ऐंठ रही थी। उसे बच्चों और रतन के लिए खाना बनाना था परंतु उसकी स्थिति ऐसी न थी कि वह उठकर चूल्हा चौका कर पाती। एक पल के लिए उसके मन में आया की वह लाली से मदद ले परंतु उसे लाली की स्थिति का अंदाजा था। दोनों के पेट बराबर से फूले थे। उसके लिए खुद का खाना बनाना दूभर था। सुगना ने लाली को परेशान करने का विचार त्याग दिया और राम भरोसे रतन का इंतजार करने लगी।

थोड़ी ही देर में रतन आ गया सुगना की स्थिति देख वह सारा माजरा समझ गया। दोनों बच्चे उससे आकर लिपट गए सूरज हालांकि रतन का पुत्र न था परंतु जितनी आत्मीयता रतन ने सूरज के साथ दिखाई थी उस छोटे बालक सूरज ने उसे अपने पिता रूप में स्वीकार कर लिया था।


हालांकि सूरज की निगाहें अब भी सरयू सिंह को खोजती परंतु छोटे बच्चों की याददाश्त कमजोर होती है प्रेम का सहारा पाकर वह और धूमिल होने लगती है यही हाल सूरज का भी था वह रतन के करीब आ चुका था।

रतन ने कुछ ही देर में हाथ पैर धोए अपने और सुगना के लिए चाय बनाई। थोड़ी ही देर में पास पास के ही एक ढाबे से जाकर खाना ले आया बच्चों को खिला पिला कर उसने अपने ही कमरे में अलग बिस्तर पर सुला दिया तथा थाली में निकाल कर स्वयं और सुगना के लिए खाना ले आया।

सुगना रतन के इस रूप को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी आखिर रतन में आया यह बदलाव सर्वथा सुखद था । यदि सुगना के जीवन में सरयू सिंह ना आए होते तो शायद पिछले कुछ महीने सुगना के जीवन के सबसे अच्छे दिन होते जब वह धीरे-धीरे रतन के करीब आ रही होती।

खानपान के पश्चात रतन ने हिम्मत जुटाई और कटोरी में सरसों का तेल गर्म कर ले आया। बच्चे अब तक भोजन के मीठे नशे में आ चुके थे और सो चुके थे। रतन ने उन्हें चादर ओढाई और सुगना के बिस्तर पर आ गया।

कटोरी में तेल देखकर सुगना को आने वाले घटनाक्रम का अंदाजा हो रहा था वह मन ही मन सोच रही थी कि रतन उसके पैरों में तेल कैसे लगाएगा जिस पुरुष ने आज तक उसकी एडी से ऊपर का भाग नहीं देखा था वह आज उसके पैरों में तेल लगाने जा रहा था सुगना आज पहली बार रतन की उंगलियों को अपने पैरों पर महसूस करने जा रही थी।

सुगना की मनोदशा ऐसी न थी कि वह अपने पति से पैर दबवाती पाती परंतु लाली और राजेश के संबंधों के बारे में उसे बहुत कुछ पता था राजेश एक पत्नी भक्त की भांति लाली की सेवा किया करता था उसकी इस सेवा ने ही सुगना के मन में हिम्मत दी और उसने स्वयं को रतन के सामने तेल लगाने के लिए परोस दिया।

"साड़ी ऊपर करा तभी तो तेलवा लागी"

सुगना ने मुस्कुराते और रतन से अपनी नजरें बचाते हुए अपनी हरे रंग की साड़ी घुटनों तक खींच लिया। ऐसा लग रहा था जैसे केले के तने से ऊपरी हरा आवरण हटा दिया गया हो। सुगना के कोमल और सुडोल पैर झांकने लगे। रतन उन चमकदार पैरों की खूबसूरती में खो गया। सुगना के पैरों में लगा आलता और चमकदार चांदी की पाजेब उसके पैरों की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। सुगना आंखें बंद किए रतन की उंगलियों के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। रतन ने अंततः हिम्मत जुटाकर तेल से सनी अपनी उंगलियां सुगना के पैरों से लगा दीं उंगलियों ने उन खूबसूरत पैरों को थाम लिया और राजेश सुगना के पैरों को हल्की हल्की मसाज देने लगा सुगना का दिल धक-धक कर रहा था रतन के स्पर्श से वह अभिभूत हो रही थी।

जैसे-जैसे रतन सुगना के पैर दबाता गया सुगना के पैरों को आराम मिलने इतनी मीठी यादों में खोई सुगना की आंख लग गई..

"बाबूजी बस अब हो गई अब मत लगाईं"

"रुक जा मालिश पूरा कर लेवे दा थोड़ा साड़ी और ऊपर क..र"

सरयू सिंह के हाथ सुगना की जांघों की तरफ बढ़ चले थे सुगना भी अपनी साड़ी को बचाने के प्रयास में खींचकर अपनी कमर तक ले आई थी परंतु उसका फुला हुआ पेट पेटीकोट के नाड़े को घसीट कर उसकी फूली हुई बुर के ठीक ऊपर ला दिया था।

सरयू सिंह के हाथ सुगना की नंगी जांघों पर घूमने लगे गोरे गोरे पैरों पर उनकी मजबूत उंगलियां धीरे-धीरे ऊपर की तरफ बढ़ने लगी और अंततः वही हुआ जिसका सुगना इंतजार कर रही थी सरयू सिंह की उंगलियों ने सुगना के निचले होठों पर छलक आया काम रस छू लिया। अपनी तर्जनी को उस मलमली चीरे में डुबो दिया वह अपनी उंगलियां बाहर निकाल कर उस काम रस की सांद्रता को चासनी की भांति अपनी तर्जनी और अंगूठे के बीच लार बनाकर महसूस करने लगे।

सुगना कनखियों से सरयू सिंह को देख रही थी और शर्म से पानी पानी हो रही थी अपनी गर्भावस्था के दौरान उसकी यह उत्तेजना बिल्कुल ही निराली थी सरयू सिंह ने सुगना के कोमल मुखड़े की तरफ देखा और बेहद प्यार से बोला

"सुगना बाबू के मन कराता का?"

सुगना ने अपना चेहरा अपनी दोनों हथेलियों से छुपा लिया परंतु अपने मीठे गुस्से को प्रदर्शित करते हुए अपने मासूम अपने पैर सरयू सिंह की गोद में पटकने लगी। जो सीधा शरीर सिंह के तने हुए लण्ड से टकराने लगे सरयू सिंह ने अपने चेहरे पर पीड़ा के भाव लाते हुए कहा

"अरे एकरा के तूर देबू का खेलबु काहे से?"

सुगना तुरंत उठ कर सरयू सिंह की गोद में छुपे उनके जादुई लण्ड को सहलाने लगी

"चोट नानू लागल हा?"

"हम का जानी एकरे से पूछ ल"

सुगना ने देर न की उसने सरयू सिंह का लंगोट खिसकाया और तने हुए लण्ड को बाहर निकाल लिया। उसने अपने बाबूजी की तरफ एक नजर देखा और अगले ही पल लण्ड का सुपाड़ा सुगना उंगलियों के बीच था सुगना ने उसे चूमना चाहा उसने अपने पेट को व्यवस्थित किया और अपने बाबू जी की गोद में झुक गई। लण्ड उसके होठों के बीच आ चुका था। सुगना की कोमल और गुलाबी जीभ कोमल सुपारे से अठखेलियां करने लगी।


सुगना की हथेलियां सरयू सिंह के अंडकोषों को सहला सहला कर सरयू सिंह को और उत्तेजित करती रहीं। लण्ड पूरी तरह उत्तेजना से भर चुका था सरयू सिंह सुगना के रेशमी बाल सहलाए जा रहे थे और कभी कभी अपनी तेल से सनी उंगलियां सुगना की पीठ पर फिरा रहे थे। ब्लाउज कसे होने की वजह से उंगलियां अंदर तक न जा पा रही थीं। जैसे ही उंगलियों ने ब्लाउज के अंदर प्रवेश करने की कोशिश की सुगना ने बुदबुदाते हुए कहा

"बाबूजी साड़ी नया बा तेल लग जायी"

" त हटा द ना"

सुगना सरयू सिंह का लण्ड छोड़कर बैठ गई। दो कोमल तथा दो मजबूत हाथों ने मिलकर सुगना जैसी सुंदरी को निर्वस्त्र कर दिया। सुगना का चिकना और सपाट पेट जिसकी नाभि से निकली पतली लकीर उसकी बुर तक पहुंच कर खत्म होती थी गायब हो चुकी थी। पेट पूरी तरह फूल चुका था।


सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को चोदना चाहते थे परंतु उसके फूले हुए पेट और अंदर पल रहे बच्चे को ध्यान कर मन मसोसकर रह जाते थे परंतु आज उनका लण्ड विद्रोह पर उतारू था। सुगना के पेट को सहलाते हुए सरयू सिंह ने कहा..

"तहार मन ना करेला का?

"काहे के बाबूजी.."

उनकी उंगलियों ने पेट को छोड़कर बुर का रास्ता पकड़ा और मध्यमा ने गहरी घाटी में घुसकर सुगना के प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश की।


सुगना ने सरयू सिंह की मूछों को अपनी उंगलियों से हटाया और उनके होठों को चूम लिया और बोली

"केकर मन ना करी ई मूसल से चटनी कुटवावे के" सुगना का दूसरा हाथ सरयू सिंह के लण्ड पर आ चुका था।

सुगना के होठों की लार अब भी सुपाडे पर कायम थी। सुगना ने अपनी हथेली से लड्डू जैसे सुपारे को कसकर सहला दिया और लण्ड की धड़कन को महसूस करने लगी।

सरयू सिंह ने सुगना को चूम लिया और उसे अपनी गोद में बैठा लिया। सुगना ने बड़ी चतुराई से लण्ड को नीचे झुका कर अपनी दोनों जांघों के बीच से निकाल लिया और चौकी पर सरयू सिंह की गोद में पालथी मारकर बैठ गयी। उसके हाथ अब भी लण्ड के सुपारे से खेल रहे थे।


वह लण्ड को कभी अपनी बुर से सटाती और कभी लण्ड के सुपारे को अपनी भग्नासा से रगड़ती। सुगना अपना सारा ध्यान नीचे केंद्रित की हुई थी और उधर उसके बाबूजी की हथेलियां सुगना की चुचियों का जायजा ले रहीं थी। उन्होंने सुगना के शरीर को तेल से सराबोर कर दिया था और अपनी मजबूत हथेलियों से सुगना के कोमल शरीर और अत्यंत कोमल परंतु कठोर चुचियों को सहलाये जा रहे थे।

निप्पलों को दबाते ही सुगना सहम उठती और बोलती

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"


सुगना को भी यह अंदाज लग चुका था कि यह शब्द बाबुजी को अतिउत्तेजित कर देता है जब वह अपने मुंह से इस मीठी कराह को निकालती उनके लण्ड के सुपारे को दबा देती। लण्ड और भग्नासे की रगड़ बढ़ती जा रही थी।

"ए सुगना ये में से दूध निकली त हमरो मिली" सरयू सिंह ने सुगना की चूचियां और निप्पलों को मीसते हुए पूछा।

सुगना खिलखिला कर हंस पड़ी और बोली

" दुगो बानू एगो राहुर ए गो लइका के"

सुंदर और कामुक स्त्री यदि हंसमुख और हाजिर जवाब है उसकी खूबसूरती दुगनी हो जाती है सरयू सिंह भी सुगना कि इसी अदा पर मर मिटते थे। उन्होंने भी अपने हाथ सुगना की जांघों के बीच की घाटी में उतार दिए और उसकी बुर के झरने से बहने वाले रस में अपनी उंगलियां भिगोने लगे

सुगना की बुर से रिसने वाला काम रस लण्ड को सराबोर कर चुका था। सुगना अपनी हथेलियों को सुरंग का आकार देकर लण्ड को कृत्रिम योनि का एहसास करा रही थी..


सुगना का हर अंग जादुई था सुगना के स्पर्श से अभिभूत सरयू सिह धीरे-धीरे स्खलन को तैयार हो चुके थे उन्होंने सुगना के कान में कहां

"तनी सा भीतर घुसा ली का?"

"बाबूजी थोड़ा भी आगे जाए तब लाइका के माथा चापुट हो जायी हा मां कह तली हा"

अचानक ही सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से सुगना की गुदांज गांड को सहला दिया और सुगना के गालो को चूमते हुए पूछे

" अउर ए में?"

सुगना मुस्कुराने लगी उसने सरयू सिंह के गानों को चुमते हुए बोला

"राहुल लइका ई सब सूनत होइ त का कहत होइ"

"इतना सुंदर सामान देखी त उहो इहे काम करी"

सुगना जान चुकी थी कि यदि बाबूजी स्खलित ना हुए तो यह कामुक कार्यक्रम किसी भी हद तक जा सकता था। उसने अपनी उंगलियों की कला दिखायी वह सरयू सिंह के सुपारे को कभी अपने बुर में घुसेड़ती और फिर अपनी उंगलियों से खींच कर बाहर कर देती।


बुर् के मखमली एहसास से सरयू सिंह का लण्ड उछलने लगा। सुगना उसकी हर धड़कन पहचानती थी उसे मालूम चल चुका था ज्वालामुखी फूटने वाला था। वह उनकी गोद से उठ गई और लण्ड से निकलने वाली वीर्य धार को ऊपर आसमान की तरफ नियंत्रित करने लगी। वीर्य की बूंदों ने छत को चूमने की कोशिश की परंतु कामयाब ना हुईं। वह वापस आकर सुगना के मादक शरीर पर गिरने लगी सुगना ने उस वीर्य वर्षा में खुद को डुब जाने दिया। चुचियों और चेहरे पर गिर रहा वीर्य सुगना आंखें बंद कर महसूस करती रही। सरयू सिंह उसकी ठुड्डी और होठों को चूमते रहे वह भाव विभोर हो चुके थे। उधर उनकी उंगलियां सुगना की बूर को मसले जा रही थी…

सुगना के पैर एक बार फिर एठने लगे और पंजे सीधे होने लगे ….

रतन अर्ध निद्रा में सो रही सुगना की इस परिवर्तित अवस्था से आश्चर्यचकित था उसने सुगना को झकझोरा और बोला

" का भईल सुगना"

सुगना अपने मीठे ख्वाब से बाहर आ गई और अपने पति को अपना पैर दबाते देख एक तरफ वो शर्मा गयी दूसरी तरफ अपने उस सुखद सपने को याद कर रही थी जिसने उसकी बुर को पनिया दिया था।

सुगना की साड़ी अभी घुटनों के ठीक ऊपर थी रतन नींद में सो रही सुगना उस साड़ी को ऊपर करना तो चाहता था परंतु हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था परंतु अब सुगना जाग चुकी थी रतन के हाथ सुगना के घुटनों की तरफ बढ़ रहे थे...

नियति रतन की आंखों में प्रेम और वासना दोनों का मिलाजुला अंश देख रही थी…


शेष अगले भाग में…..
बहुत ही बेहतरीन और रमणीय अपडेट है
सुगना सरयूसिंग के साथ बिताये हुए कामक्षणों को याद करके रतन से मालिश करवाते हुऐ कामोउत्तेजित हो रही है लगता है रतन के साथ हमबिस्तर होने की संभावना बन रही है देखते हैं आगे क्या होता है नियति ने अपने गर्भ में क्या छुपा रखा है
 

Tiger 786

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भाग -57

सुगना के मन में अभी भी कजरी की बात घूम रही थी सुगना मालपुआ खोजने लगी तभी उसे सरयु सिंह की कड़कती पर आत्मीयता से भरी आवाज सुनाई पड़ी

"सुगना बाबू का खोजा तारू?"

"मालपुआ"

"ई त बा"

सरयू सिंह की हथेलियां सुगना की जांघो के बीच आ चुकी थीं।

छोटा सूरज अपनी माँ को इस नए रूप में देख कर आश्चर्य चकित था ..सुगना की आंख सूरज से मिलते ही सुगणा की नींद खुल गयी...


अब आगे…

दरअसल सूरज सरकते हुए नीचे आ गया था वह अपने छोटे-छोटे पैरों से सुगना की जांघों के बीच प्रहार कर रहा था जो अनजाने में ही उसकी भग्नासा से टकरा रहा था। शायद इसी वजह से सुगना की नींद खुल गई थी ।

सुगना जाग चुकी थी पर उसके दिमाग में स्वप्न में देखे गए दृश्य अभी भी कायम थे। अपने स्वप्न में स्वयं को सूरज के समक्ष नग्न रूप में याद कर सुगना मुस्कुराने लगी। उसने सूरज को ऊपर खींच कर अपनी चूचियां पुनः पकड़ाई और सोने की कोशिश करने लगी।

नियति ने सुगना को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया था जहां पंगत में बैठा हर व्यक्ति उसकी निगाहों में अब पवित्र और पावन नहीं बचा था। और जो समाजिक रिश्तों में सबसे पवित्र और पावन था (उसका पति रतन) वह उससे न तो भावनात्मक रूप से जुड़ा था और न हीं बनारस महोत्सव के विद्यानंद के पण्डाल में विद्यमान था।

सुगना की नाव आज दिन भर हिचकोले खाती रही पर किनारे न लग पायी। उसके गर्भ में आ चुका अंडाणु अपने निषेचन का इंतजार कर रहा था। परंतु बनारस महोत्सव का पांचवा दिन समाप्त हो चुका था.


बनारस महोत्सव का छठवां दिन

मुंबई से आ रही बनारस एक्सप्रेस के स्लीपर कोच में बैठी हुई छोटी बच्ची मिंकी ( रतन और बबिता की पुत्री) खिड़की पर ध्यान टिकाये हुए थी। धान की फसल लहलहा रही थी। मुम्बई में पल रही बच्ची के लिए वह नजारा बेहद खुबसूरत था हरियाली में लिपटी हुई उत्तर प्रदेश की पावन धरती सबका मन मोहने में सक्षम थी। तभी आवाज आई

"ये किसके साथ हैं? एक काले कोट पहने व्यक्ति ने पूछा।

"जी पापा इधर ही गए हैं" मिन्की ने अपनी मीठी आवाज में कहा।

टीटी और कोई नहीं लाली का पति राजेश था। वह बाहर गलियारे में झांकने लगा। रतन अपने ही कूपे की तरफ आ रहा था रतन और राजेश एक दूसरे को बखूबी पहचानते थे।


लाली के विवाह में रतन ने बड़े भाई की भूमिका निभाई थी और राजेश का पूरी इज्जत और सम्मान के साथ स्वागत किया था। वह दोनों एक दूसरे की भरपूर इज्जत किया करते थे। हालांकि यह मुलाकात चंद दिनों की ही हुआ करती थी।

रतन के विवाह और सुगना के अलग रहने के कारण राजेश को रतन का यह व्यवहार कतई पसंद नहीं आता था। वह बार-बार उसे सुगना को मुंबई ले जाने के लिए अपना सुझाव देता पर रतन की परिस्थितियां अलग थी। धीरे धीरे राजेश सुगना पर आसक्त होता गया और वह उसके खयालों में एक अतृप्त युवती की भूमिका निभाने लगी।

"अरे रतन भैया"

रतन ने जबाब न दिया पर अपनी बाहें खोल दीं।

राजेश और रतन एक दूसरे के गले लग गए। यह मुलाकात कई महीनों बाद हो रही थी।


मिंकी के रतन से कहा दिया पापा यह अंकल आपको पूछ रहे थे।

राजेश को इस बात का इल्म न था कि रतन मुंबई में शादी की हुई है मिंकी द्वारा रतन को पापा बुलाए जाने से वह आश्चर्यचकित था उसने रतन से कौतूहल भरी निगाहों से प्रश्न किया रतन उसे थोड़ा किनारे कर एक मीठा झूठ बोल कर अपनी स्थिति को बचा लिया । उसने राजेश को यह बताया वह उसके एक दोस्त की बेटी है जिसकी मृत्यु होने के पश्चात वह उसके साथ ही रह रही है और वह उसे बेटी की तरह पाल रहा है।

राजेश ने कोमल चिंकी की को अपनी गोद में उठा लिया और उसके माथे को चूमते हुए बोला..

कितनी प्यारी बच्ची है।

कुछ ही देर में मैं रतन और राजेश खुल कर बातें करने लगे । राजेश ने रतन को बनारस महोत्सव में उसके परिवार के आगमन की खबर दे दी और रतन ने अपने गांव न जाकर बनारस मैं ही उतरने का फैसला कर लिया।


राजेश को यह जानकर थोड़ी खुशी भी हुई कि रतन सब कुछ छोड़ छाड़ कर वापस गांव लौट आया परंतु उसके अंतर्मन में दुख भी था सुगना उसकी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल रही थी।

सूर्य अपनी चमक बिखेर रहा था दोपहर के 12:00 बज रहे थे सुगना के जीवन में चमक बिखेरने के लिए उसका पति रतन वापस आ चुका था विद्यानंद के पांडाल के गेट पर टीन की दो बड़ी बड़ी संदूकें लिए रतन की निगाहें अपनी धर्मपत्नी सुगना को खोज रही थी। जिस धर्म का अनुपालन रतन ने खुद नहीं किया था परंतु देर से ही सही वह अब उसे पूरे तन मन से अपनी पत्नी बनाने को तैयार हो चुका था। परंतु सुगना क्या वह उसे माफ कर अपने पति का दर्जा दे पाएगी?


यह प्रश्न उतना ही कठिन था जितना सुगना का गर्भधारण।

गेट पर खड़े रतन को देखकर कजरी भागती हुयी उसके पास आयी। रतन ने उस के चरण छुए और मां बेटा दोनों गले लग गए।

कजरी ने राजेश की तरफ देखा तभी राजेश ने कहा

"चाची तोहार रतन अब हमेशा खातीर गावें आ गईले खुश बाड़ू नु"

कजरी की आंखों से आंसू बहने लगे अपने पुत्र का साथ पाकर कजरी भाव विभोर हो गई भगवान में उसे उसके व्रत का फल दे दिया था। वह मिंकी को लेकर अंदर गयी और उसे सुगना से मिलवाया।

मिन्की बेहद प्यारी थी यद्यपि वह सुगना की सौतन बबीता की पुत्री थी परंतु मिंकी ने बाल सुलभ चेहरे और कोमलता ने सुगना का मन मोह लिया मिंकी ने आते ही सुगना के पैर छुए और सुगना से कहा

"बाबू जी कहते हैं कि आप बहुत अच्छी हैं" सुगना मिन्की से पहले ही प्रभावित थी उसकी इस अदा से वह उसकी कायल हो गई उसने मिंकी को गोद में उठा लिया और उसके गालो को चुमते हुए बोली

" तुम भी तो केतना प्यारी हो" सुगना ने मिंकी से हिंदी बोलने की कोशिश की।


दूर खड़ा रतन सुगना और मिंकी के बीच बन रहे रिश्ते को देखकर प्रसन्न हो रहा था अचानक सुगना से उसकी निगाह मिली। परंतु दोनों में कुछ तो एक दूसरे से झिझक थी और कुछ परिस्थितियां दोनों अपनी ही जगह पर खड़े रहे।

बनारस महोत्सव का छठवां दिन खुशियां लेकर आया था परंतु भूखी प्यासी सुगना और उसकी अधीर बूर अब भी अपने बाबूजी की राह देख रही थी उसका इंतजार लंबा हो रहा था।

राजेश रतन को पांडाल में छोड़कर वापस अपने घर गया और शाम ढलते ढलते लाली और अपने बच्चों को लेकर वापस विद्यानंद के पांडाल में आ गया आज शाम 6:00 बजे राजेश द्वारा खरीदी गई लॉटरी का ड्रा भी होना था।

गरीब और मध्यम वर्ग हमेशा से चमत्कार की उम्मीद में जीता है राजेश भी इससे अछूता न था। ₹10 से 10 लाख की उम्मीद करना सिर्फ उसके ही बस का था। राजेश आशान्वित अवश्य था पर उसने अपने मनोभाव लाली से छुपा लिए लाली को पांडाल में छोड़कर लॉटरी के ड्रा में पहुंच गया।

एक-एक करके इनाम खुलते गए और हमेशा की तरह राजेश के भाग्य ने उसे वही दिया जिसका वह हकदार था। 10 से 10लाख बनाना न तो राजेश के बस में था और नहीं उसके भाग्य में लिखा था।

प्रथम पुरस्कार की घोषणा होने वाली थी राजेश हतोत्साहित होकर वापस मुड़ने ही वाला था तभी


सूरज का नाम पुकारा गया...

परिसर में लाउड स्पीकर की आवाज घूमने लगी

"सूरज सिंह पुत्र रतन सिंह" जहां कहीं भी हो मंच पर आएं…

उद्घोषणा दो तीन बार होती रही। रतन भागता हुआ स्टेज की तरफ गया और आयोजकों के सामने प्रस्तुत होकर बोला।

"सूरज और उसके माता-पिता अभी यहां नहीं है मैं उन्हें लेकर आता हूं"

आयोजकों ने उसे बताया कि अब से 1 घंटे बाद पुरस्कार वितरण किया जाएगा आप जाकर उन्हें ले आइये। राजेश भागता हुआ पंडाल में पहुंचा।


संयोग से सुगना बाहर ही खड़ी सरयू सिंह की राह देख रही थी। राजेश ने भावावेश में सुगना को दोनों कंधों से पकड़ा और बोला

" सूरज बाबू के लॉटरी निकल गइल 10 लाख रूपया जीतेले बाड़े"


सुगना को राजेश की बात पर यकीन नहीं हुआ।

" काहे मजाक कर तानी"

"साथ सुगना तोहार कसम हम झूठ नइखी बोलत"

सुगना की खुशी का ठिकाना ना रहा उसका मन बल्लियों उछलने लगा।

एक पल के लिए सुगना अपनी भूख प्यास और गर्भधारण को आपको भूल कर इस धन सुख में हो गई वह भाव विभोर होकर राजेश से लगभग लिपट गई परंतु उसे अपनी मर्यादा का ख्याल था उसने राजेश से अपने कंधे तो सटा लिए परंतु अपनी चुचियों और राजेश के सीने के बीच दूरी कायम रखी।

"सुगना टिकट कहां रख ले बाड़ू ?" राजेश ने पूछा..

सुगाना को याद ही नहीं आ रहा था कि उसने उस दिन अपनी चूचियों के बीच छुपाया हुआ टिकट कहां रखा था। वह भागती हुई अंदर गई और अपने संदूक में वह टिकट खोजने लगी सारे कपड़े एक-एक कर बाहर आ गए पर वह टिकट न मिला सुगना पसीने पसीने होने लगी।

व्यग्रता निगाहों को धुंधला कर देती है उसे पास बड़ी चीजें भी दिखाई नहीं पड़ रही थी। तभी उसे वह टिकट अपनी साड़ियों के बीच से झांकता हुआ दिखाई पड़ गया…।

सुगना प्रसन्न हो गई। अब तक कजरी और पदमा भी सुगना के पास आ चुकी थी पूरे पांडाल में एक उत्साह का माहौल हो गया था। सारे लोग सूरज की ही बात कर रहे थे अब तक रतन भी आ चुका था। अपने पुत्र सूरज को गोद में लिए सुगना एक रानी की तरह लग रही थी।

पंडाल में उपस्थित सभी स्त्री पुरुषों की निगाहें सुगना और उसकी गोद में खेल रहे सूरज की तरफ थी।

थोड़ी ही देर में सुगना अपने पुत्र को गोद में लिए लॉटरी के मंच पर उपस्थित थी परिवार के बाकी सदस्य सामने दर्शक दीर्घा में अपने उत्साह का प्रदर्शन कर रहे थे अब तक सोनी मोनी और सोनू भी आ चुके थे। धीरे धीरे सरयू सिंह को छोड़कर उनका सारा परिवार दर्शक दीर्घा में आ चुका था लाली भी अपने बच्चों के साथ उपस्थित थी। उसे सुगना की किस्मत से थोड़ी जलन अवश्य हो रही थी परंतु सुगना उसकी बेहद प्रिय सहेली थी लाली ने अपने प्यार पर जलन को हावी न होने दिया वह खुश दिखाई पड़ रही थी।

इधर सुगना स्टेज पर बैठी पुरस्कार वितरण समारोह प्रारंभ होने का इंतजार कर रही थी उधर दर्शक दीर्घा में खड़ी सोनी अचानक वहां से हटकर किनारे की तरफ जा रही थी। सोनू का दोस्त विकास उसे दिखाई पड़ गया था। दोनों में एक दूसरे के प्रति जाने किस प्रकार का आकर्षण था सोनी के के कदम खुद-ब-खुद विकास की तरफ बढ़ते जा रहे थे।

विकास धीरे-धीरे दर्शक दीर्घा से दूर हो रहा था और सोनी उसके पीछे पीछे। कुछ ही देर में वह दोनों लॉटरी के स्टेज के पीछे आ गए.।

पुरस्कार वितरण देखने के लिए सारे लोग स्टेज के सामने खड़े थे और विकास और सोनी स्टेज के पीछे अपने जीवन का नया अध्याय लिखने जा रहे थे यह एकांत उनके लिए बेहद महत्वपूर्ण था।

सोनी के पास आते ही विकास ने सोनी को अपने आलिंगन में खींच लिया जाने यह विकास का आकर्षण था यार सोनी की स्वयं की इच्छा वह स्वतः ही विकास से सट गई। आज पहली बार नियति को सोनी के मन में उठ रही भावना का एहसास हो गया था सोनी की भावनाएं और तन बदन जवान हो चुका था।

विकास ने बिना कुछ कहे अपने होंठ सोनी के होठों से सटा दिए। सोनी शर्म बस अपने होंठ ना खोल रही थी पर वह ज्यादा देर अपनी भावनाओं पर काबू न रख पायी और उसने अपने निकले हुए विकास के होठों के बीच दे दिए।

अपने पहले पुरुष के स्पर्श को महसूस कर सोनी का रोम रोम उठा जवानी की आग प्रस्फुटित हो उठी। होठों की मिलन ने सोनी को मोम की तरह पिघलने पर मजबूर कर दिया। विकास की हथेलियों ने सोनी की पीठ को सहलाना शुरू कर दिया सोनी मदहोश हो रही थी। उसके लिए यह एहसास बिल्कुल नया था।

अचानक सोनी को अपनी नाभि में कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ सोनी का ध्यान बरबस ही उसकी तरफ चला गया उसे उत्थित पुरुष लिंग का एहसास न था और न कभी उसे देखा था। उसकी उंगलियों में संवेदना जागृत हो गई वह उस लिंग को छूना भी चाहती थी और उसे महसूस करना चाहती थी।


परंतु एक किशोरी की भावनाएं हया के अधीन होती हैं वह सोनी की भी थी विकास सोनी की हथेलियों को अपने लण्ड पर ले जाना चाहता था वह वह अपने होंठ सोनी के होठों से हटा नहीं रहा था।

जैसे-जैसे दोनों उत्तेजना के आधीन हो रहे थे सोनी के कोमल वस्त्र विकाश को चुभ रहे थे सोनी के नंगे बदन को छूने की इच्छा लिए विकास उसके लहंगा और चोली के बीच की जगह तलाशने लगा। सोनी की चोली उसकी कमर तक आ रही थी विकास ने अपने हाथ से उसकी चोली ऊपर उठाई और उसकी नंगी पीठ पर अपना हाथ फिराने लगा। अब तक सोनी को ब्रा पहनने की आवश्यकता महसूस न हुई थी उसकी चूचियां संतरे का आकार ले चुकी थी पर अपना भार स्वयं ले पाने में सक्षम थी।


अपनी पीठ पर पुरुष हथेलियों को पाकर सोनी की बुर ताजे कटे फल की तरह रस छोड़ने लगी। कुछ ही देर में विकास की हथेलियों ने सोनी के घागरे में कमर से प्रवेश करने की कोशिश घागरे का कसाव विकास के हाथों को अवरोध पैदा कर रहा था पर कब तक घागरे का नाडा विकास की हथेलियों का दबाव न झेल पाया और विकास की हथेलियां उस प्रतिबंधित क्षेत्र तक पहुंच गई जहां बिना सोनी के सहयोग से पहुंचना असंभव था। विकास की मजबूत उंगलियां दोनों नितंबों के बीच घूमने लगी और बरबस ही उसकी उंगलियों ने सोनी की गांड को छू लिया।

विकास ने न तो आज तक कभी न बुर को छुआ था न गांड। सोनी का वह छेद ही बुर की तरह प्रतीत हुआ वह । अपनी उंगलियों से उसकी गांड को सहलाने लगा।

सोनी मन ही मन चीख चीख कर कह रही थी थोड़ा और नीचे परंतु विकास शायद उसकी मनोभाव समझने में नाकाम था। अंततः सोनी ने अपने हाथों से उसके हाथों को और नीचे जाने का निर्देश दिया। विकास ने थोड़ा आगे झुक कर अपनी हथेलियों को और नीचे किया।

सोनी के बुर से रिस रही चासनी उसकी उंगलियों से छू गई कितना मखमली और कोमल था वह एहसास। सोनी के मुंह से आह निकल गयी।

वह उस अद्भुत रस के स्रोत की तरफ बढ़ चला कुछ ही देर में विकास की उंगलियों ने उस अद्भुत गुफा को छू लिया जिसकी तमन्ना में वह कई दिनों से तड़प रहा था। विकास की उंगलियां सोनी की बुर में अपनी जगह तलाशने की कोशिश करने लगी।


परंतु उन दोनों की यह अवस्था इस कार्य में विघ्न पैदा कर रहे थी। विकास ने सोनी को घुमा कर उसकी पीठ अपनी तरफ कर ली और अपने हाथों को आगे से उसके घागरे के अंदर कर दिया।

दोनों जांघों के बीच उसकी हथेलियां जिस स्पर्श सुख को प्राप्त कर रही थी अकल्पनीय था। हल्की रोजेदार बुर पर हाथ फिरा कर विकास एक अलग एहसास में डूब चुका था। वह एक हाथ सोने की चुचियों ने ठीक नीचे रखे हुए उसे सहारा दिया हुआ था और दूसरे हाथ से उसकी जांघों के बीच बुर पर अपना हाथ फिरा रहा था । सोनी कभी अपनी जाने से कुर्ती कभी थोड़ा फैला देते विकास की उंगलियों को अपनी इच्छा अनुसार मार्गदर्शित करना चाहती थी।

विकास की उंगलियां बरबस ही उसकी बुर के अंदर प्रवेश करने लगी सोनी मैं आह भरते हुए कहा

"बस इतना ही... तनी धीरे से ….दुखाता "

विकास ने अपने हाथों को रोक लिया और अपनी उंगलियों से बुर् के होठों को सहलाते हुए बुर की रूपरेखा को समझने का प्रयास करने लगा। गुलाब की पंखुड़ियों को फैलाते फैलाते व उसके केंद्र में जाने की कोशिश करता परंतु सोनी की कराह सुनकर अपनी उंगलियां रोक लेता।

उसका लण्ड लगातार सोनी के नितंबों में छेद करने का प्रयास कर रहा था । सोनी के दोनों हाथ अभी खुद को बचाने में ही लगे हुए थे वह एक हाथ अपनी चुचियों पर रखे हुयी विकास के हाथ को ऊपर बढ़ने से रोक रही थी और दूसरा हाथ विकास की हथेलियों पर रखकर कभी उसे अपनी बुर से दूर करती कभी हटा लेती अजीब दुविधा में थी सोनी।

विकास ने अपनी पेंट का चैन खोलकर लण्ड को बाहर निकाल लिया उससे अब और तनाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था। लण्ड बाहर आने के बाद और भी उग्र हो गया। सोनी के नितंबों पर दबाव और बढ़ गया था। सोनी को थोड़ा असहज लगा उसने अपना हाथ पीछे किया और उस लिंग को अपने से दूर करने की कोशिश की और उसकी कोमल हथेलियों ने अपने से भी कोमल अंग को छू लिया। लण्ड की कोमल त्वचा उसे अभिभूत कर गई।

एक तरफ तो वह उसके तनाव से आश्चर्यचकित थी दूसरी तरफ उसकी मुलायम त्वचा। लण्ड का जादुई एहसास सोनी के आकर्षण का केंद्र बन गया। उसने अपनी कोमल हथेलियों मैं उस लण्ड को लेकर उसकी कोमलता का एहसास करने लगी। तनाव का आकलन करते करते उसने विकास के लण्ड को कुछ तेजी से दबा दिया।

विकास के मुंह से मादक आह निकल गयी उसने सोनी के कानों को चूम लिया और बेहद प्यार से बोला..

"तनी ...धीरे से दुखाता"

सोनी मुस्कुरा उठी उसने धीरे से कहा

"हमारो"

दोनों प्रेमी युगल एक दूसरे की बातों से मुस्कुरा उठे। दोनों के ही हाथ एक दूसरे की दुखती रग पर थे। एक दूसरे के जननांगों का यह स्पर्श उन दोनों को उत्तेजना के चरम पर ले आया। सोनी की चूचियां अभी भी विकास के स्पर्श का इंतजार कर रही थी। सोनी ने अपनी निगोड़ी बुर को बेसहारा छोड़ अपनी हथेली को विकास के दूसरे हाथ पर ले आई और उसे ऊपर बढ़ने का न्योता दे दिया ।

विकास सोनी की बुर में ही खोया हुआ था उसे पता ही नहीं था कि चुचियों की कोमलता क्या होती है। उसने हाथ बढ़ाएं और सोने की चूची को अपने हाथ में ले लिया। विकास के दोनों ही हाथों में लड्डू आ चुके थे। एक हाथ से वह उसकी चूचियां सहलाने लगा और दूसरे हाथ से उसकी बुर। कभी वह अनजाने में सोनी की भग्नासा को छूता कभी उसके निप्पल को। भग्नाशा का वह दाना अपने सोश मात्र से सोनी में थिरकन पैदा कर देता।


जितना ही वह उत्तेजित होती उतनी ही कोमलता से विकास के लण्ड को सहलाती।विकास दोहरी उत्तेजना में था किशोरी की बुर और चूची सहलाते हुए वह बेहद उत्तेजित हो गया था और सोनी की हथेलियों का स्पर्श पाकर वह स्खलन के लिए पूरी तरह तैयार हो गया।

सोनी की बुर भी अब और बर्दाश्त कर पाने की स्थिति में नहीं थी । उसकी बुर ने प्रेम रस उगलना शुरू कर दिया सोनी थरथर कांप रही थी और स्खलित हो रही थी। अपनी उंगलियों पर आए प्रेम रस से और उत्तेजित होकर विकास के लण्ड ने भी अपना लावा उगलना शुरू कर दिया ।

सोनी की हथेलियों में चिपचिपा द्रव्य लगने लगा। सोनी ने अपने हाथ हटा लिए परंतु वीर्य उसकी उंगलियों पर लग चुका था।

विकास ने अपने स्खलन के दौरान अपने हाथ को सोनी की बुर पर से हटाकर अपने लण्ड पर ले आया और अपने हाथों में लेकर हिलाने लगा इस कला का वह पुराना खिलाड़ी था। उसे पता था इस दौरान अपना हाथ किसी बजी अन्य हाथ से अधिक सुख देता है...हा बुर की बातअलग है जिसका इल्म अब्जी विकास को न था।

सोनी तृप्त हो चुकी थी । विकास के हाथ हटाने से वह विकास की पकड़ से आजाद हो गई वह विकास की तरफ मुड़ गई। और उसके हाथ में आए लण्ड को ध्यान से देखने लगी। विकास लगातार अपने लण्ड को तेजी से हिलाए जा रहा था और वीर की धार हवा में फैल रही थी विकास में अपनी बंदूक का मुंह सोनी की तरफ कर दिया। और सोनी उस से निकल रही धार से बचने का प्रयास करने लगे परंतु प्रेम रस के छींटे उसके शरीर पर पड़ चुके थे।

जब तक विकास सचेत हो पाता सोनी भागकर स्टेज के सामने अपने परिवार के बीच पहुंच गई। अपनी उंगलियों पर लगे वीर्य को सोनी अपनी तर्जनी और अंगूठे से छूकर महसूस कर रही थी। यह द्रव्य उसे वैसा ही प्रतीत हो रहा था जो आज सुबह उसने लाली के बिस्तर पर छुआ था। सोनी मन ही मन सोचने लगी क्या लाली दीदी के बिस्तर पर गिरा हुआ चिपचिपा द्रव्य यही था। पर किसका? राजेश जीजू तो घर में थे नहीं... तो क्या सोनू भैया का? हे भगवान….. क्या सोनू भैया भी यह सब करते हैं….? और उन्होंने यह सब किया कैसे होगा ??? लाली दीदी तो घर पर ही थी. सोनी का दिमाग चकराने लगा. उस बेचारी को क्या पता था सोनू इस कला में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुका था। तभी सोनू ने उसके कंधे पर हाथ रखा और बोला

"कहां चली गई थी…?"

सोनी ने कोई उत्तर न दिया। वह अपने कपड़े सहेजने लगी और एक बार फिर अपने कपड़े पर लगे विकास के वीर्य को अपनी उंगलियों में महसूस किया। सोनी शर्म वश सोनू से दूर आकर मोनी के पास खड़ी हो गई और पुरस्कार वितरण समारोह का आनंद लेने लगी।

स्टेज पर सुगना के साथ राजेश भी उपस्थित था। सुगना ने स्वयं ही उसे ऊपर अपने साथ चलने के लिए अनुरोध किया था। एक तो लॉटरी की टिकट उसने स्वयं खरीदी दूसरे सुगना अकेले ऊपर जाने में घबरा रही थी वहां उपस्थित व्यक्तियों में अभी राजेश ही सबसे ज्यादा करीब था रतन से भी ज्यादा।

अपने लोक लाज के कारण उसने लाली को भी ऊपर चढ़ने के लिए कहा था परंतु राजेश ने उसे रोक लिया स्टेज पर एक साथ इतने व्यक्तियों के जाने स्थिति असहज हो सकती थी।

पुरस्कार वितरण का कार्यक्रम प्रारंभ हो गया था तृतीय द्वितीय पुरस्कारों को बांटने के पश्चात आखिरी बारी सुगना पुत्र सूरज की थी। सूरज का नाम आते ही सुगना खुश ही गयी। आयोजक मंडल के कई सदस्य फूल माला लेकर सुगना की तरफ बढ़ने लगे सुगना भाव विभोर हो उठी। उसे अपने जीवन में इतना सम्मान कभी नहीं मिला था। देखते ही देखते सुगना फूल मालाओं से लद गई। उसका कोमल और कांतिमय चेहरा और खिल गया। सुबह से भूखी प्यासी सुगना के चेहरे पर चमक आ गई थी।

तभी आयोजक मंडल का एक सदस्य हाथ में मिठाई लिए सुगना को खिलाने पहुंचा तभी सुगना को अपने व्रत की याद आ गई उसने लड्डू खाने के लिए मुंह तो जरूर खोला परंतु रुक गई...

"आज हमारा व्रत है" कह कर उसने उस व्यक्ति को रोक लिया राजेश ने धीरे से पूछा सुगना आज कौन सा व्रत है सुगना मन ही मन मुस्कुरा उठी परंतु उसका उत्तर देना बेहद कठिन था।

सुगना की आंखें भीड़ में सरयू सिंह को खोज रही थी परंतु वह अब तक बनारस महोत्सव नहीं पहुंचे थे सुगना की सारी खुशियां सरयू सिंह से जुड़ी थी जब तक वह बनारस महोत्सव में आकर उसे गर्भवती ना करते उसकी मनो इच्छा पूरी ना होती….

सुगना के जीवन में आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण था सुगना जैसी युवती के लिए 10 लाख रुपए एक वरदान से कम न थे और यह वरदान भगवान ने राजेश के हाथों से प्रदान कर आया था। राजेश द्वारा लाया गया वह लाटरी का टिकट सुगना और उसके परिवार कि जिंदगी सवाँरने के लिए काफी था। पूरा परिवार हंसी खुशी वापस विद्यानंद के पंडाल में आ गया पर सुगना की निगाहें अभी भी पंडाल के गेट की तरफ लगी हुई थी अपने बाबूजी का इंतजार कर रही थी…


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उधर आज सलेमपुर में सुबह सुबह सरयू सिंह के घर पर डाकिया खड़ा था वह मुंबई से रतन द्वारा भेजा गया पार्सल लेकर आया था। सरयू सिंह के गांव में आने की खबर उसे भी लग चुकी थी उस खबर में मनोरमा की गाड़ी का विशेष योगदान था। इन दिनों सरयू सिंह की किस्मत जोरों पर थी वह गांव में मनोरमा की गाड़ी में दिखाई पड़ते उनका शारीरिक कद तो पहले भी ऊंचा था और अब उनका सामाजिक कद भी बढ़ चुका मनोरमा द्वारा दी गई पदोन्नति ने भी अपना योगदान दिया था।

"सरयू भैया लागता रतन भेजले बाड़े"

डाकिए ने मुंबई का पता देखकर अंदाज लगा लिया था सरयू सिंह ने वह पार्सल लिया और अपनी दालान में रख कर उसे खोलने लगे।

सूरज के लिए ढेर सारे खिलौने देखकर वह खुश हो गए और मन ही मन रतन को धन्यवाद दिया पार्सल में पड़े बंद लिफाफे पर सुगना का नाम देखकर वह आश्चर्यचकित थे रतन ने सुगना को पत्र क्यों लिखा? सरयू सिह यह भली-भांति जानते थे की रतन और सुगना में कोई संबंध नहीं है फिर उसे खत लिखने का क्या औचित्य था ? सरयू सिंह अपनी प्यारी सुगना को किसी और से साझा नहीं करना चाहते थे? उनकी बहू अब उनकी अर्धांगिनी तो न सही पर उनके जीवन का अभिन्न अंग हो चली थी ।

रतन के खत को हाथों में लिए वह उसे खोलने और न खोलने के बीच निर्णय नहीं ले पा रहे थे। यह खत एक पति द्वारा अपनी पत्नी को लिखा गया था परंतु पति पत्नी में कोई संबंध नहीं थे। सरयू सिंह को सुगना अपने हाथों से फिसलती हुए प्रतीत हो रही थी। वह सुगना को किसी भी हाल में खोना नहीं चाहते थे। अंततः वह खत खोल दिया और उसे पढ़ने लगे..


(पुरानी पोस्ट से उधृत)

मेरी प्यारी सुगना,

मैंने जो गलतियां की है वह क्षमा करने योग्य नहीं है फिर भी मैं तुमसे किए गए व्यवहार के प्रति दिल से क्षमा मांगता हूं तुम मेरी ब्याहता पत्नी हो यह बात समाज और गांव के सभी लोग जानते हैं मुझे यह भी पता है कि मुझसे नाराज होकर और अपने एकांकी जीवन को खुशहाल बनाने के लिए तुमने किसी अपरिचित से संभोग कर सूरज को जन्म दिया है मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है मैं सूरज को सहर्ष अपनाने के लिए तैयार हूं वैसे भी उसकी कोमल छवि मेरे दिलो दिमाग में बस गई है पिछले कुछ ही दिनों में वह मेरे बेहद करीब आ गया और मुझे अक्सर उसकी याद आती है।

मुझे पूरा विश्वास है की तुम मुझे माफ कर दोगी मैं तुम्हें पत्नी धर्म निभाने के लिए कभी नहीं कहूंगा पर तुम मुझे अपना दोस्त और साथी तो मान ही सकती हो।

मैंने मुंबई छोड़ने का मन बना लिया है बबीता से मेरे रिश्ते अब खात्मे की कगार पर है मैं उसे हमेशा के लिए छोड़कर गांव वापस आना चाहता हूं यदि तुम मुझे माफ कर दोगी तो निश्चय ही आने वाली दीपावली के बाद का जीवन हम साथ साथ बिताएंगे।


तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में।

सरयू सिंह की दुविधा और बढ़ गई। रतन सुगना के करीब आना चाह रहा था यह सुगना के भविष्य के लिए निश्चित ही एक सुखद मोड़ था यह अलग बात थी कि सुगना रतन के प्रति कोई संवेदना नहीं रखती थी परंतु पिछली 1 -2 मुलाकातों में सुगना और रतन आपस में एक दूसरे से बातचीत करने लगे थे वह दोनों धीरे-धीरे खुल रहे थे यह बात सरयू सिंह जानते थे।

राहत कार्य में लगे पुलिसकर्मी आ चुके थे और सरयू सिंह के एक बार फिर सलेमपुर में आई प्राकृतिक आपदा के राहत कार्य में व्यस्त हो गये। कार्य के दौरान समय का पता ही ना चला और देखते देखते शाम हो गई।

सरयू सिंह ने अपनी काबिलियत के बल पर मनोरमा द्वारा दिया गया कार्य पूरी कुशलता से समाप्त कर लिया था और वह अब एक भी पल सलेमपुर में रुकना नहीं चाहते थे। बनारस महोत्सव के दौरान ही वह अपनी प्यारी सुगना को अपनी बाहों में लेकर जी भर प्यार करना चाहते थे। मनोरमा ने अपने कमरे की चाबी देकर बनारस महोत्सव में उनके और सुगना के लिए कामक्रीड़ा का मैदान तैयार कर दिया था परंतु यह दुर्भाग्य ही था कि वह पिछले 5 दिनों में सुगना के दूसरे क्षेत्र का उद्घाटन न कर सके थे।

अंधेरा हो रहा था उन्होंने ड्राइवर को लालच किया और वह मन में उम्मीदें और लण्ड में तनाव लिए बनारस महोत्सव की तरफ बढ़ चले। रास्ते में सलेमपुर बाजार में रोक कर उन्होंने अपने वैद्य से शिलाजीत की वह दवाई भी ले ली जिसका लाभ वह सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के समय लेना चाह रहे थे। सुगना की कसी हुई गांड का उन्हें अंदाजा था वह किसी भी हाल में अपने लैंड के तनाव को कमनहीं करना चाह रहे थे। सुगना का कसे छेद को भेदने के लिए वह अपनी तलवार में पूरी तरह धार लगा रहे थे।


उनकी असफलता उनके स्वाभिमान को हमेशा के लिए गिरा सकती थी। सुगना के कसी गांड को ध्यान कर उन्हें सुगना के कौमार्य हरण के दिन की घटना याद आ गई जब उन्होंने अपनी उंगलियों को कजरी द्वारा बनाए गए मक्खन से सराबोर कर उसकी कौमार्य झिल्ली को तोड़ा था।

सरयू सिंह हलवाई की दुकान पर जाकर थोड़ा मक्खन भी खरीद लाए। सरयू सिंह के झोले में आज रात को रंगीन करने के सारे हथियार उपलब्ध थे।

रतन द्वारा सुगना के लिए भेजा गया खत भी उसी झोले में एक तरफ पड़ा हुआ था । ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे रतन की भावनाएं उस झोले में किनारे पड़ी हुई थी और उसकी पत्नी को चोदने तथा उसका भोग करने के लिए सरयू सिह अपने अस्त्र-शस्त्र इकट्ठा कर रहे थे।

उन्होंने मन ही मन निश्चय कर लिया था कि वह सूरज को कजरी के हवाले कर सुगना को लेकर मनोरमा के कमरे में चले जाएंगे और रात भर अपने सारे अरमान शांत करेंगे।

बनारस पहुंचते-पहुंचते रात के 7 बज गए। सरयू सिंह फटाफट नीचे उतरे और तेज कदमों से कजरी को खोजते हुए महिला पांडाल में पहुंच गए..

धोती कुर्ता में सजे धजे शरीर सिंह एक पूर्ण मर्द की तरह पंडाल के गेट से प्रवेश कर रहे थे।


परिवार के पूरे सदस्य एक साथ बैठे हुए थे मिठाइयों का दौर चल रहा था। सरयू सिंह को देखकर सुगना की बांछें खिल उठी वह लोक लाज छोड़कर भागती हुई सरयू सिंह की तरफ गई और बेझिझक उनके आलिंगन में आ गई। सरयू सिंह को देखकर सुगना के मन में जो भाव उठ रहे थे वह बेहद निराले थे कुछ पलों में ही वह यह भूल चुकी थी कि वह आज की सबसे भाग्यशाली महिला थी। सरयू सिंह के आगमन ने उसके सारे अरमान पूरे कर दिए थे

वह सरयू सिंह से अमरबेल की तरह लिपट गई सरयू सिंह लॉटरी के परिणाम से अनजान थे सुगना का यह प्रेम देखकर वह भी भावविभोर हो उठे और उन्होंने सुगना को अपने आलिंगन में कस लिया। चुचियों के निप्पल जब उनके सीने पर गड़ने लगे तब जाकर उन्हें एहसास हुआ कि वह पूरे पांडाल के बीच अपनी बहू को अपने आलिंगन में अपनी पत्नी की भांति सटाए हुए हैं। उन्होंने ना चाहते हुए भी सुगना को अलग किया और उसके माथे को चुमते हुए धीरे से बोले..

"हमार सुगना बेटा बहुत खुश बिया"

अब तक कजरी भी उनके समीप आ चुकी थी उसकी पारखी निगाहें सरयू सिंह और सुगना के आलिंगन मैं आए काम भाव को समझ चुकी थी। इससे पहले की उन दोनों के आलिंगन को कोई और अपनी गलत निगाहों से देखता कजरी ने कहा..

"अरे सूरज बेटा के 10 लाख के लाटरी लागल बा सुगना एहीं से गदगद बाड़ी"

10लाख का नाम सुनकर सरयू सिंह की भी आंखें बड़ी हो गई उन्होंने एक बार फिर सुगना को अपने सीने से सटा लिया परंतु इस पर उन्होंने मर्यादा ना तोड़ी।

सरयू सिंह ने अपने झोले से लड्डू निकाला सुगना ने अपना मुंह खोला और सरयू सिंह के हाथों दिया लड्डू खा लिया। राजेश यह देखकर बेहद आश्चर्यचकित था कि सुगना ने अपना व्रत भूलकर वह लड्डू कैसे खा लिया । उसे क्या पता था सुगना कि जीवन में खुशियां और गर्भाशय में बीज डालने वाले सरयू सिंह आ चुके थे सुगना का व्रत पूर्ण हो गया था।

पूरा परिवार एक साथ बैठकर परिवार में आए खुशियों का आनंद ले रहा था तरह-तरह की बातें हो रही थी।


सोनी मोनी तथा सोनू इतने सारे पैसों के बारे में सोच सोच कर ही उत्साहित थे अचानक उन्हें अपनी सुगना दीदी एक महारानी जैसी प्रतीत हो रही थी।

कजरी सरयू सरयू सिंह के पास गई और उनसे कुछ पैसे लेकर पांडाल की रसोई में चली गई वहां पर उसने कारीगरों से पूरे पांडाल के लिए मालपुआ बनाने का अनुरोध किया और उसके सारे खर्च का वहन स्वयं करने की इच्छा व्यक्त की।


पांडाल के कारीगरों ने उसे निराश ना किया सारी व्यवस्थाएं बनारस महोत्सव में पहले से ही मौजूद थीं। वैसे भी जब धन पर्याप्त हो तो व्यवस्थाएं तुरंत ही अपना आकार ले लेती हैं ।

कुछ ही देर में विद्यानंद के पंडाल में मालपुआ बनने लगा जिसकी सुगंध प्यूरी पंडाल में फैल गयी। सुगना के हर्षित और प्रफुल्लीत होने के कारण उसकी जांघो के बीच छूपा मालपुआ भी गर्म हो गया। सुगना अपनी मादक खुशबू बिखेरते हुए अपने परिवार के सदस्यों से मिल रही थी। उससे आसक्त सभी लोग रह रह कर अपने लिंग में तनाव महसूस कर रहे थे। सोनू भी सुगना के स्कूल में दाखिला लेने के लिए राह राह कर सुगना को निहार रहा था पर नजरें मिलने से कतरा रहा था।

इस बात की खबर पंडाल मैं रहने वाले सभी श्रद्धालुओं को हो गई कजरी ने यह निर्णय लेकर सभी को खुश कर दिया था आज सुगना के परिवार को एक विशेष स्थान दिया जा रहा था।

खाने की पंगत बैठ चुकी थी पंगत पर रतन राजेश सोनू सरयू सिंह और उनकी गोद में सूरज बैठा हुआ था। कजरी ने सुगना से मालपुआ परोसने के लिए कहा सुगना ने अपने स्वप्न में जो दृश्य देखा था अचानक व उसकी आंखों के सामने आ गया था….

बिल्कुल यही दृश्य……. वह यकीन ही नहीं कर पा रही थी कि स्वप्न में देखे गए दृश्य सच हो सकते हैं । अगले ही पर सुगना सिहर उठी क्या वह स्वप्न उसी तरह पूर्ण होगा ? वह घबरा गई उसने अपनी ब्लाउज को सहेजा और साड़ी की गांठ को व्यवस्थित किया. पूर्ण मर्यादित तरीके से वह रतन की थाली में मालपुआ देने लगी। सुगना की भरी भरी सूचियां छुपने लायक न थी बरबस ही रतन की निगाह उसकी चुचियों से टकरा गई। स्थिति कमोवेश स्वप्न जैसी ही हो गई थी परंतु उसका ब्लाउज गायब ना हुआ था। सुगना संतुष्ट थी और मन ही मन मुस्कुरा रही थी। रतन ने पुआ खाते हुए पूछा ...

"आज तहरा के खुश देख कर बहुत अच्छा लगता"

सुगना ने भी उसे मुस्कुराते हुए छेड़ा

"का अच्छा लगाता हम की पुआ?"

सभी मुस्कुरा उठे परंतु सरयू सिंह थोड़ा चिंतित दिखाई पड़ रहे थे। सुगना अपने पति के साथ थी परंतु सरयू सिंह के मन में खोट थी वह सुगना को अपनी मुट्ठी से फिसलते नहीं देखना चाह रहे थे।

राजेश और सोनू की थाली में पुआ डालते समय सुगना की आंखों के सामने वह दृश्य नाचने लगे जो वह स्वप्न में देखी थी वह लगातार अपनी कोहनी से अपनी साड़ी को व्यवस्थित की हुई थी ऊपर वाले में उसकी सुन ली थी उसके साथ स्वप्न में हुई घटनाएं नहीं हो रही थी परंतु अपने दिमाग में वह उन दृश्यों को अवश्य कल्पना कर रही थी।


सोनू की थाली में पुआ रखते समय सुगना को अपने स्वप्न में पूर्ण नग्न होने की याद आ गई उसका दिमाग विचलित हो गया ... वह कुछ देर के लिए जड़ हो गई तभी सरयू सिंह ने कहा...

" कुल पुआ अपना भाई यह के खिला देबु?" सरयू सिह ने यह बात उ ही कह दी थी। उसमें कोई और अर्थ न था। सोनू और सुगना के बीच आज हुए घटनाक्रम से वह अनजान थे।

सुगना सरयू सिंह की तरफ देख कर मुस्कुरा उठी वह उनके पास गयी उनकी थाली में मालपुआ रखा और एक मालपुआ उठाकर सूरज के हाथ में पकड़ा दिया जो अपने होंटो से चूस चूस कर उसकी मिठास का आनंद लेने लगा..

नियति मुस्कुरा रही थी सुगना द्वारा दिए गए मालपुए को सभी संभावित पात्र बेहद चाव से खा रहे थे सभी के मन में किसी न किसी रूप में सुगना का मालपुआ आकर्षण का केंद्र बना था। होंठो में मिष्ठान और दिमाग मे सुगना के जांघो के बीच मालपुए पर ध्यान धरे सभी आंनद में थे।


सोनू ने आज सुबह की घटना को अपने मन में कई बार दोहराया था और अपने अवचेतन मन में किसी न किसी रूप में सुगना के प्रतिबंधित मालपूए की कल्पना कर ली थी।

सिर्फ सूरज ही ऐसा था जिसे सुगना की जांघों के बीच के पुए से अभी कोई सरोकार न था वह उसके द्वारा दिए गए मीठे मालपुए में ही खुश था।

खानपान का समारोह खत्म होने के बाद सरयू सिंह ने कुछ पलों के लिए सुगना के साथ एकांत पा लिया उन्होंने कहा

"सुगना बाबू बनारस महोत्सव असहीं बीत जायी का? तोहार वादा पुराना होइ?"

"आपे त छोड़कर भाग गईल रहनी हां ...हम तक कबे से इंतजार कर तानी…"

"ठीक बा हम जा तानी मनोरमा के कमरा ठीक करके आवा तानी आज रात हमनी के ओहिजे रहे के.".

सुगना पूरी तरह तैयार थी परंतु उसने सरयू सिंह से कहा "और ए जा सब केहू बा का सोची लोग ?"


"तू कजरी से बता दिया उ संभाल लीहें…"

सुगना भी अब लोक लाज की चिंता छोड़ कर आज अपने बाबु जी से चुदने के लिए पूरी तरह तैयार हो गई थी। उसने मन ही मन सोच लिया था कि यदि आज उसने अपने बाबू जी से संभोग कर गर्भधारण न किया तो जिन परिस्थितियों का सामना उसे आने वाले समय में करना पड़ता वह बेहद ही शर्मनाक होती।


आज अपने बाबूजी के साथ रात बिताने और उससे उत्पन्न होने वाली परिस्थितियों को तो कजरी किसी न किसी प्रकार संभाल ही लेती।

सरयू सिंह मन में उमंग लिए और सुगना के दूसरे छेद के उद्घाटन के लिए अपना झोला लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चले गए….।

इधर अचानक बनारस महोत्सव का मौसम खराब होने लगा। यह पूर्ण अप्रत्याशित था। देखते ही देखते बनारस महोत्सव घने बादलों से घिर गया हल्की हल्की बूंदाबांदी होने लगी जो कुछ ही देर में घनघोर बारिश का रूप ले ली। सरयू सिंह भागते हुए मनोरमा के कमरे तक पहुंच तो गए परंतु इतनी तेज बारिश कि उन्हें उम्मीद न थी।

इधर सूरज कुछ गुमसुम हो रहा था शायद मालपुआ के घी की वजह से वह असहज महसूस कर रहा था अचानक उसके मुंह से झाग आने लगा। सूरज की तबीयत अचानक बिगड़ गई। कजरी तरह-तरह के जतन कर उसे सामान्य करने की कोशिश कर रही थी।। सुगना अंदर अपने रात्रि प्रवास का सामान इकट्ठा कर रही थी तभी सोनी ने उसे आकर सूरज के बारे में बताया सुगना के होश उड़ गए। वह भागती हुई कजरी के पास गयी और सूरज को अपनी गोद में लेकर उसे सामान्य करने का प्रयास करने लगी। परंतु स्थिति गंभीर थी। सुगना थर थर कांप रही थी।


"कोई डॉक्टर के बोलावा लोग"

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….


शेष अगले भाग में...
Atti uttam update
 

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भाग -58

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….

अब आगे....

मूसलाधार बारिश हो रही थी। सरयू सिंह अपनी बहू की सेज सजा कर उसके छेद का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर चुके थे। मौका देखकर उन्होंने शिलाजीत का सेवन भी कर लिया था। हथियार में धार और दिल में प्यार लिए वह बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे। रह रह के बस मक्खन को देखते जिसकी मदद से उन्हें सुगना की मखमली गांड का उद्घाटन करना था.. वह पंडाल में आई विपत्ति से पूरी तरह अनजान थे।

राजेश ने हिम्मत जुटाई और वह भागकर भीगते हुए मेला प्रबंधन केंद्र की तरफ गया।


उधर सोनू ने बनारस महोत्सव आते जाते एक डॉक्टर का घर देखा था वह भीगता हुआ उस डॉक्टर के घर की तरफ दौड़ पड़ा यहअलग बात थी कि सोनू के जाने से वह डॉक्टर कतई बनारस महोत्सव नहीं आता परंतु सोनू अपनी बहन और भतीजे को उस दुख में देख नहीं सकता था।

रतन तो निर्विकार और निरापद था। वह भी पंडाल से बाहर निकल गया इतने दिनों तक मुंबई में रहने के कारण उसका बनारस शहर से संपर्क टूट गया था वह बाहर निकल कर लोगों से मदद मांगने लगा….

जब तक कजरी सरयू सिंह को बुलाने के लिए कह पाती तब तक तीनों मर्द अलग-अलग दिशाओं में जा चुके थे। सुगना भी कातर निगाहों से पंडाल के गेट की तरफ देख रही थी काश उसके बाबूजी आ जाते और अपने पुत्र को अनजान विपत्ति से निकालने में उसका सहयोग करते।

आखिरकार राजेश ने सफलता पाई और मेला प्रबंधन से एंबुलेंस प्राप्त करने में सफल हो गया कुछ ही देर में एंबुलेंस विद्यानंद के पंडाल के सामने खड़ी थी सुगना सूरज को लेकर एंबुलेंस में बैठ गई उसका साथ देने के लिए कजरी जाने लगी तभी लाली ने कहा..

"चाची तू रहे तो हम जा तानी ओहिजा कुछ काम पड़े त हम संभाल लेब तू ई दोनों बच्चा के संभाल ल"


उसने अपने दोनों बच्चों राजू और रीमा से कहा

"नानी के तंग मत करिहा लोग और अच्छा से रहीह लोग"

राजू और रीमा को पांडाल में बहुत आनंद आता था वह दोनों सहर्ष रुक गए और लाली सुगना और सूरज के साथ एंबुलेंस में बैठ गई। राजेश ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गया। एम्बुसेन्स सांय सांय करती हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी।

सूरज की तबीयत सचमुच खराब हो गई थी सुगना ने अपने जीवन में यह दिन कभी नहीं देखा था। आज मिले अकस्मात धन की खुशियां एक पल में ही काफूर हो गई थी। माता के लिए पुत्र से बड़ा कोई धन नहीं होता है आज सूरज विपत्ति में था और सुगना का हृदय व्यथित।

हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने सूरज का निरीक्षण किया और यह बात सच थी वाकई मालपुए की वजह से उसे उल्टियां शुरू हो गई थी कजरी द्वारा बनवाया गया मालपूआ उसे रास ना आया था।

डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी और थोड़ी ही देर में सूरज भला चंगा हो गया रात के 10:00 बज चुके थे बाहर अभी भी बारिश हो रही थी।

हॉस्पिटल से राजेश की घर की दूरी कम थी जहां आसानी से जाया जा सकता था बनारस महोत्सव वापस जाना बेहद कठिन था।

सुगना लाली और राजेश के साथ उनके घर आ गई सूरज को सामान्य होते थे उसके चेहरे पर खुशियां स्पष्ट दिखाई देने लगी थी वह अब लाली और राजेश से खुलकर बात कर रही थी । लाली के घर पहुंच कर उसे सरयू सिंह की याद आई और वह एक बार फिर परेशान हो गई काश वह अपनी स्थिति सरयू सिंह को बता पाती काश उसके बाबूजी कैसे भी करके यहां लाली के घर आकर उसे ले जाते।

"का सोचतारे भीगल बाड़े कपड़ा बदल ले फेर सोचिहे" लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला.

सुगना ने तो सूरज को तो अपने आंचल में ढककर भीगने से बचा लिया था परंतु तीनों वयस्क इंद्रदेव की रिमझिम बारिश से न बच पाए थे।

लाली अंदर गई और अपने संदूक से दो नाइटी लेकर बाहर आ गई उसने सुगना को देते हुए कहा..

"कौन वाला पहिनबे?

सुगना ने देखा एक नाइटी उत्तेजक थी और दूसरी बेहद उत्तेजक। दोनों ही नाइटी प्रेमी जोड़ों के लिए ही बनी थी सुगना ने कहा

"और दूसर नइखे"

"सब त भीग गइल बा…"

बारिश के कारण लाली द्वारा बाहर सुखाने के लिए डाले गए कपड़े भी भीग चुके थे।

राजेश दोनों नाइटियो को देख कर खुद भी उत्तेजित हो रहा था। वह उन दोनों के बीच से हट गया और जाकर अपने कपड़े बदलने लगा। परंतु अपने इष्ट देव से वह मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि सुगना लाली की बात मानकर कोई भी एक नाइटी पहन ले।


सुगना के खूबसूरत शरीर को उस नाइटी में देखने की कल्पना कर राजेश मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसका लण्ड उछलने लगा।

आज उसने सुगना और सूरज की जी भर कर सेवा की थी। उसके छोटे से योगदान ने सूरज के तकदीर में ₹10 लाख का एक ऐसा विशाल धन ला दिया था जो सुगना के परिवार के जीवन स्तर को सुधारने में एक महती भूमिका अदा कर सकता था। सुगना आज राजेश के प्रति कृतज्ञ थी। राजेश ने उसके पुत्र की जान बचा कर आज उसने उसके जीवन में एक ऐसे पुरुष की भूमिका निभाई थी जो पति तुल्य थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना बेहद सुंदर नाइटियो में लाली की रसोई में दूध गर्म कर रहीं थी।

राजेश हाल के बिस्तर पर बैठा सूरज के साथ खेल रहा था और उन दोनों खूबसूरत सुंदरियों को देख रहा था परंतु उसकी निगाहें सुगना से ना हट रही थी।

आज राजेश के दोनों हाथों में लड्डू थे उसकी खूबसूरत पत्नी लाली और मदमस्त सुगना आह ….ऐसा मादक अहसास….खूबसूरत और पतली झीनी नाइटी से दोनों ही सुंदरियों के बदन का उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था । शरीर के ऐसे कटाव ग्रामीण परिवेश में ही देखने को मिलते हैं या फिर फिल्मों में। मध्यमवर्ग की अधिकतर महिलाएं चाह कर भी वह कसाव नहीं पा पातीं खासकर बच्चा होने के बाद।

राजेश ज्यादा देर तक उस खूबसूरती का आनंद न ले पाया बारिश तेज होने की वजह से रेलवे कॉलोनी की लाइट गुल हो गई एक पल के लिए राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया गैस की आंच में अब भी सुगना का चेहरा चमक रहा था जाने सुगना के शरीर में भगवान ने कौन सी उर्जा डाली थी उसकी त्वचा हमेशा चमकती थी थोड़ा सा भी प्रकाश पड़ने पर उसकी खूबसूरती और निखर आती।

लाली ने मोमबत्ती जला ली एक मोमबत्ती से उसने रसोई घर में उजाला कर दिया और दूसरी मोमबत्ती को सुगना को देते हुए बोली ले अपना जीजा जी के दूध दे द सुगना एक हाथ में गिलास लिए और दूसरे हाथ में मोमबत्ती लिए राजेश की तरफ चल पड़ी मोमबत्ती की रोशनी सीधे सुगना के चेहरे और छातियों के खुले भाग पर पढ़ रही थी उसकी चुचियों के बीच की बेहद आकर्षक घाटी पीली रोशनी में चमक रही थी सुगना का कुंदन शरीर राजेश की निगाहों में रच बस रहा था..

"जीजा जी दूध ले लीं"

सुगना की मधुर आवाज राजेश को सुनाई जरूर दी पर उसकी आंखें उसके खूबसूरत जिस्म से चिपक सी गयीं थीं।

सुगना ने फिर कहा..

"कहां भुलाईल बानी भाई दूध ले लीं"


रसोई में खड़ी लाली ने सुगना द्वारा दोबारा कहीं बात सुन ली और उसे राजेश की मनोदशा का अंदाजा हो गया उसमें मुस्कुराते हुए कहा

"तोहरे पुआ में भुलाईल होइहें"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई। लाली ने स्पष्ट तौर पर वही बात कह दी थी जो सुगना मन ही मन सोच रही थी राजेश लाली की बात सुनकर सचेत हो गया था उसने स्थिति संभालते हुए कहा..

"उ नकली पूआ त सब काम खराब कइले बा सूरज बाबू के तबीयत वोही से नु खराब भईल…"

" आज भगवांन बचा लेनी" सुगना कृतज्ञ भाव से बोली।

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज त सुगना के दिन ह, ₹10 लाख भी जितली और बेटा भी ठीक हो गईल"

"जीजा जी आज ही त आप भगवान बन कर आइनी"

"त भगवान जी के का मिली? राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा"

"सब आपके ही ह बताई का चाहीं?"

लाली भी अब तक उनके करीब आ चुकी थी उसने एक बार फिर राजेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया..

"छोड़, उनका जवन चाहीं तोरा से होइ ना"

"हमरा त एगो सूरज जइसन लइका चाहीं" राजेश ने पास खेल रहे सूरज को उठाकर चूम लिया।

मन में सुगना को सोच कर लिया गया यह चुम्बन कुछ ज्यादा ही आत्मीय था सूरज छूटने के प्रयास कर रहा था।

सुगना तो राजेश की बातों का गूढ़ अर्थ न समझ भाई परंतु लाली ने राजेश की मंशा जानकर सुगना से कहा..

"देख तोर जीजा जी का मांग तारे" जो आज उनके संगे सूत रह…उनको साध बुता जाई"

राजेश ने अनजाने में ही सुगना से उसका गर्भधारण मांग लिया था इच्छा तो सुगना की भी थी पर उसके गर्भधारण का प्रयोजन अलग था और राजेश का अलग।

"हट पागल कुछो बोलेले... हम कह तानी की सूरज अतना भाग्यशाली लईका बा जरूर अपना मां बाप के नाम रोशन करी और पूरा परिवार के भी" राजेश ने स्थिति को सामान्य करते हुए कहा….

जीजा साली और लाली के बीच हुई वार्तालाप ने नियति को मौका दे दिया।

कुछ देर की हंसी ठिठोली के बाद सुगना और लाली भीतर कमरे में सोने चली गई और राजेश हाल में ही अपनी मस्तराम की किताबों में डूब गया।

अंदर दोनों सहेलियां बिस्तर पर लेटी आज सुगना के जीवन में हुई धन वर्षा का आनंद ले रही थी..

"ए सुगना का करबे अतना पैसा के"

"हमु बनारस शहर में मकान खरीदब…"

" तब तो बहुत अच्छा बा हमरे साथ खरीद लीहे साथे रहल जायी।"

"अच्छा तोर पेट फुला वे के का भईल आज तक बनारस महोत्सव के आखिरी रात ह तोरा त रतन भैया के पास होखे के चाहीं ते एहजा बाड़े।"

सुगना के दिमाग में विद्यानंद की बातें एक बार फिर घूमने लगी सच आज बनारस महोत्सव की आखिरी रात थी वह अपने बाबूजी के साथ मनोरमा के कमरे में जी कर चुदना चाहती थी परंतु परिस्थितियों ने उसे ऐसी जगह पर लाकर छोड़ दिया था जहां वह न सिर्फ स्वयं को लाचार महसूस कर रही थी अपितु बेहद दुखी थी थी।

उसे पता था कल सुबह ही बनारस महोत्सव से उसके परिवार की विदाई निश्चित थी। नियति ने उसके साथ क्रूर खिलवाड़ किया था उसके बाबूजी उससे कुछ ही दूर पर उपस्थित थे परंतु उन दोनों के बीच का यह फासला मिटा पाना संभव न था।

"कहां भुला गइले" लाली ने सुगना को झकझोरा जो विचार मग्न थी।

"सोचा तानी कि तोर इच्छा पूरा करिए दीं"

"साँच सुगना… उ त सुन के पागल हो जइहें"

"पर ते सम्हाल लीहे…"

सुगना ने मन ही मन निर्णय कर लिया था। अपने पुत्र सूरज की मुक्तिदाता उसकी बहन का सृजन इसी बनारस महोत्सव में होना था इसके लिए समय बेहद ही कम था वह सुबह तक अपने बाबूजी का इंतजार कर सकती थी परंतु वह इसकी पक्षधर न थी। वह अपने भाग्य से अब तक आंख मिचौली खेलती आ रही थी और अब वह भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहती थी। अपने पुत्र के साथ घृणित संभोग की आशंकाओं ने उसे अधीर कर दिया था।

अंततः उसने लाली को अपनी सशर्त सहमति दे ही दी। वह किसी भी स्थिति में खुद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी …..पर क्या यह संभव था? नियति सुगना की मासूमियत और उसके मन मे चल रहे द्वंद्व को भली भांति जान रही थी। नियति ने ही इन पात्रों का सृजन किया था और इनका अंत भी उसी के हाथों होना था विधाता ने शायद सुगना के भाग्य में यही लिखा था।

अभी भी बिजली लगातार कड़क रही थी…सुगना ने जीवन में भूचाल आने वाला था।…..

उधर पंडाल में सरयू सिंह सुगना को खोजते हुए आ गए थे। पूरी तरह बारिश से लथपथ सरयू सिंह के चेहरे पर झुझलाहट साफ दिखाई दे रही थी वह पंडाल की वस्तुस्थिति से पूर्णता अनभिज्ञ थे।

"कहां चल गई रहनी हां?" कजरी ने पूछा….. पर उनका उत्तर सुना नहीं। उसने सूरज और उसकी स्थिति के बारे में स्वयं ही सब कुछ बता दिया। परंतु कोई भी यह बात पाने में असमर्थ था कि सुगना और राजेश सूरज को लेकर किस अस्पताल गए हैं।


मरता क्या न करता। सरयू सिंह के पास के पास और कोई चारा न था। इतनी रात को चाहकर भी वह सुगना और सूरज को ढूढने नही जा सकते थे। बारिश अभी भी जारी थी। वह मन मसोसकर रह कर रह गए। झोले में रखा सुगना के दूसरे द्वार भेदन के लाया गया मक्खन उन्हें मुह चिढा रहा था।

अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह सुगना की मनोस्थिति से अनजान थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूरज की तबीयत हल्की फुल्की खराब होगी पर राजेश ने जबरजस्ती उसे अस्पताल के बहाने अपने घर ले गया होगा।

आशंकाये आपकी सोच को प्रभावित करती हैं। सरयू सिंह ने अपने मन में राजेश को लेकर जो अवधारणा बनाई थी वह परिस्थितियों को उसी अनुसार देख रहे थे।

एक तो रतन का खत पढ़कर उनके मन में सुगना को खोने का डर समा गया था वह स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

सुगना उन्हें अपने हाथों से फिसलती हुई महसूस हो रही थी।

बिजली कड़क रही थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही शिलाजीत का असर अभी भी कायम था पर लण्ड नाउम्मीद हो चुका था। सुपारे पर उसके द्वारा छोड़ी गई लार सूख चुकी थी। बनारस महोत्सव का छठवां दिन भी सरयू सिंह की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाया था।

परंतु लाली के घर में नियति का खेल चालू था।

बनारस महोत्सव का अंतिम दिन…

ड्राइवर सुबह-सुबह विद्यानंद के पांडाल के सामने खड़ा था। सरयू सिह उसका ही इंतजार कर रहे थे। पहले रेलवे कॉलोनी ले चलो। सरयू सिंह सूरज और सुगना से मिलना चाहते थे।ड्राइवर ने कहा..

"मैडम बाहर जाने वाली है पहले उनसे मिल लीजीए वो आपका इंतजार कर रही हैं।" सरयू सिह पशेपेश में थे पर उन्होंने ड्राइवर की बात मान ली जैसे उन्होंने पूरी रात इंतजार किया था वैसे कुछ समय और सही।


मनोरमा द्वारा दी गई राहत सामग्री और कुछ जरूरी कागजात अभी गाड़ी में ही थे। सरयू सिंह को उन्हें मनोरमा को वापस करना था। वो सलेमपुर में की गई गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी बताना चाहते थे। कल शाम बनारस महोत्सव पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो गई थी और देर रात को मनोरमा से मिलना उचित नहीं था। और वह खुद भी सुगना और अपने परिवार की खुशियों में मशगूल हो गए थे।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपना झोला लिए मनोरमा के होटल के सामने खड़े थे। रिसेप्शन पर पहुंचने के पश्चात उन्होंने मनोरमा के कमरे में संदेश भिजवाया और रिसेप्शन पर बैठकर मनोरमा का इंतजार करने लगे। जब तक मनोरमा आती वह होटल की खूबसूरती को आंखों में बसा रहे थे। क्या रहने की जगह पर कोई इतना भी खर्च कर सकता है?


सरयू सिंह को पैसे की अहमियत पता थी और वह हमेशा से उसका सदुपयोग करते थे परंतु होटल के साज सजावट पर हुए खर्च का अनुमान कर उन्हें यह दुनिया दूसरी ही प्रतीत हो रही थी होटल सचमुच बेहद खूबसूरत था।

तभी मनोरमा सीढ़ियों से उतरते हुए दिखाई दी। सरयू सिंह ने मनोरमा की तरफ देखा यह पहला अवसर था जब मनोरमा ने अपनी नजरें झुका लीं। शायद सरयू सिह से आंख मिलाने में उसे शर्म आ रही थी।


सुबह-सुबह मनोरमा एक ताजे खिले हुए फूल की तरह दिखाई पड़ रही थी। सजा धजा कसा हुआ शरीर। आज पहली बार मनोरमा को उन्होंने अपनी काम वासना से भरी निगाहों से देखा । कल रात में खाये शिलाजीत ने उनके लण्ड में रक्त भर दिया।

मनोरमा करीब आ चुकी थी सरयू सिंह ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। मनोरमा उनकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी पर उसने उनकी धोती में आया उभार देख लिया था।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभी सीढ़ियों से होटल का वेटर मनोरमा का सामान लेकर नीचे उतर रहा था और पीछे पीछे सेक्रेटरी साहब भी नीचे आ रहे थे।

मनोरमा ने सरयू सिंह से कहा मुझे किसी आवश्यक कार्य से लखनऊ निकलना है।

मनोरमा ने सेक्रेटरी साहब से होटल के कमरे की चाबी ली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

"मेरे कमरे में बनारस महोत्सव से संबंधित कई सारे कागजात रखे हुए वह आप ऑफिस खुलने के पश्चात बनारस महोत्सव के कार्यालय में पहुंचा दीजिएगा।"

मनोरमा ने सरयू सिंह का परिचय होटल के रिसेप्शन पर करा दिया।

मनोरमा का ड्राइवर गाड़ी में रखे हुए कागजात लेकर रिसेप्शन पर आ चुका था मनोरमा ने उससे कहा

"तुम आज इनके साथ ही रहना तथा इनके परिवार को सलेमपुर छोड़ने के पश्चात छुट्टी पर चले जाना"

ड्राइवर भी खुश हो गया।

मनोरमा के जाने के पश्चात सरयू सिंह मनोरमा के कमरे में गए और कमरे की खूबसूरती और भव्यता को देख बेहद प्रसन्न हो गए। आलीशान कमरा और बेहतरीन सजा धजा डबल बेड देखकर सरयू सिंह की कामवासना जाग उठी उस सुंदर बिस्तर पर सुगना को चोदने का सुख सोच कर ही उनका लण्ड उत्तेजना से भर गया।

उन्होंने देर करना उचित न समझा वह नीचे आए और मनोरमा की गाड़ी में पीछे बैठकर सुगना को लेने चल पड़े।

थोड़ी ही देर में में उनकी गाड़ी रेलवे कॉलोनी में राजेश के घर के सामने खड़ी थी।


ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। ड्राइवर भी एक चतुर और व्यवहारिक प्राणी होता है वह घर की बाहरी हालत देखकर रहने वाले का वजन अंदाज लेता है और उसके अनुरूप बर्ताव करता है।

यदि वह रेलवे कॉलोनी का घर न होकर किसी अधिकारी का बंगला होता तो ड्राइवर की हार्न बजाने की हिम्मत ना होती पर राजेश का घर सामान्य था।

ड्राइवर ने दोबारा हार्न बजाया। सरयू सिह अभी गाड़ी से नहीं उतरे थे वह चाहते थे कि कम से कम एक बार राजेश उसे इस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा हुआ देख ले ताकि वह अपना प्रभुत्व उस पर और जमा सकें।

वह मन ही मन वह राजेश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे थे परंतु राजेश बाहर नहीं आया।

ड्राइवर ने फिर हार्न बजाने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने उन्हें रोक दिया। ड्राइवर का यह व्यवहार आसपास के लोगों को दिक्कत कर सकता था और वह अपनी प्रतिक्रिया देकर माहौल खराब कर सकते थे।


सरयू सिंह गाड़ी की पिछली सीट से उतरे और सधे हुए कदमों से राजेश के घर के दरवाजे पर पहुंच गए उन्होंने दरवाजा खटखटा दिया।

लाली ऊँघती हुई बाहर आई और दरवाजा खोला। लाली उनकी पुत्री समान थी वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी उसे नाइटी में देखकर सरयू से ने अपनी आंखें घुमा लीं। इतने उत्तेजक कपड़ों में अपनी पुत्री समान लाली को देखना पसंद ना आया।

लाली को कतई उम्मीद नहीं थी कि सरयू सिंह इतनी सुबह सुबह बिना बताए उसके घर पर आ धमकेंगे। अन्यथा लाली पूरी शालीन कपड़ों में उनका इंतजार कर रही होती । परंतु अब जो होना था हो चुका था लाली ने उनके चरण छुए और उन्हें अंदर बुलाया तथा हाल में बैठने के लिए कहा।

सरयू सिंह वस्त्रों के चयन को लेकर मन ही मन आज की नई पीढ़ी की मानसिकता को समझने का प्रयास करने लगे।

सुगना को हाल में न पाकर सरयू सिह परेशान हो गए क्या सुगना अंदर सो रही थी? सरयू सिंह को थोड़ी खुशी हुई उन्हें लगा जैसे राजेश घर पर नहीं था इसलिए लाली और सुगना अंदर सो गए थे।

लाली अंदर गई और राजेश को जगाया। राजेश बेसुध सो रहा था। बीती रात वह तृप्त हो चुका था। अपने जीवन में इतनी सुखद नींद उसने आज तक नहीं मिली थी।

राजेश कमरे से उठकर हाल में आया और सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह ने उसे आशीर्वाद तो दिया पर शब्दों से। उनके मन में राजेश के प्रति नफरत घर कर गयी थी और सुगना के प्रति गुस्सा था।

राजेश ने एक काम सही किया था। आते हुए उसने सुगना को उठा दिया। सरयू सिह की आवाज सुन सुगना सचेत हो गयी और आनन फानन में अपनी साड़ी पहनी और कुछ ही देर में हाल में आ गयी।

सुगना की हालत देखकर सरयू सिंह के मन में कई तरह के भाव आ रहे थे परंतु अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए उन्होंने पूछा

"सूरज कैसन बा"

"ठीक बा काल त सब के डेरा देले रहे"

लाली अंदर से अपने कपड़े बदल कर सूरज को लेकर आ गई। सूरज ने अपनी आंखें खोली और सरयू सिंह को देखकर बेहद खुश हो गया वह उछल कर उनकी गोद में आ गया। पिता और पुत्र का या प्यार सिर्फ सुगना और सरयू सिंह ही समझ सकते थे। लाली और राजेश, सूरज और सरयू सिंह के बीच इस आत्मीय संबंध के कारण से पूरी तरह अनजान थे।


सूरज को स्वस्थ और सुगना को पसंद देखकर सरयू सिंह की उम्मीद जाग उठी उन्होंने मौका निकाल कर शिलाजीत की दूसरी गोली का सेवन कर लिया पर राजेश ने उन्हें गोली खाते हुए देखकर पूछा..

"रोज गोली खाए के परेला का"

राजेश शहर का रहने वाला था उसे पता था शहर के मानिंद लोग 50 -55 वर्ष की अवस्था में कुछ न कुछ गोलियां खाया करते थे

सरयू सिंह झेंप गए । वह किस मुंह से बताते कि वह यह गोली किस लिए खा रहे हैं।

सरयू सिंह ने फरमान जारी किया

"फटाफट तैयार हो जा बाहर गाड़ी खड़ा बिया हमनी के जल्दी चले के बा।"

सुगना बाथरूम में गई परंतु बिजली गुल होने की वजह से नल मैं पानी नहीं आ रहा था उसने मुश्किल से रसोई में रखे पानी से अपना मुंह धोया और बालों को व्यवस्थित कर सरयू सिंह के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। वह स्वयं भी अपने परिवार से शीघ्र मिलना चाहती थी वह जानती थी कि सभी सूरज की तबीयत के बारे में फिक्र मंद होंगे।

सुगना ने लाली से विदा ली और सूरज को अपनी गोद में लिए घर से बाहर निकल पड़ी। राजेश से नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत ना थी कल रात जो हुआ शायद वह नहीं होना चाहिए था।

राजेश गाड़ी की तरफ जा रही सुगना के हिलते हुए नितंबों को देख रहा था उसका लण्ड एक बार फिर हिचकोले खाने लगा। सुगना की कामुक काया पर राजेश की निगाहें अटक गई थी। कल रात के कामुक दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच गए।

सरयू सिंह सुगना को लेकर पीछे बैठ चुके थे। सरयू सिंह हो यह ध्यान ही नहीं रहा की सुगना उनकी पत्नी नहीं उनकी बहू है उन्होंने ड्राइवर से कहा..

"पहले होटल ले चलिए कागज पत्तर सहेज के तब पंडाल में चलेंगे।"

सुगना होटल के नाम से सचेत हो गई वह चाह कर भी कुछ बोल ना पायी। ड्राइवर की उपस्थिति में कुछ भी बोलना उसने गवारा न समझा। वह चाहती तो थी कि वह पहले पांडाल में जाए ताकि वह अपने और सूरज की सलामती की खबर परिवार वालों को दे सके परंतु ऐसा हुआ नहीं। वह अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी पर कुछ ही देर में गाड़ी पांच सितारा होटल के पोर्च में आ गयी ।

होटल की खूबसूरती देखकर सुगना सहम गई उसने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी..।

वह तो सुगना की चमकती कुंदन काया थी जो उस होटल में रहने वाले लोगों से कई गुना सुंदर थी परंतु उसके कपड़े पांच सितारा होटल के स्तर के न थे वह यह बात बखूबी जानती थी।


उसने आखिरकार सरयू सिह के कान में कहा

"ई होटल में काहें"


सरयु सिंह ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और एक विजेता की भांति उसे लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़े..

रिसेप्शनिस्ट ने सरयू सिंह की तरफ देखा और प्रश्नवाचक निगाहों से सुनना के बारे में जानना चाहा। "अरे हमारी बहू है थोड़ी देर बाद हम लोग सामान लेकर निकल जाएंगे"

रिसेप्शनिस्ट ने कोई ऐतराज न किया. दोनों की उम्र के अंतर और रिश्ते ने रिसेप्शनिस्ट के मन में आए ख्याल को दबा दिया। सरयू सिह सुगना को लेकर कमरे में आ गए छोटा सूरज भी होटल की चकाचौंध को मासूम निगाहों से निहार रहा था कमरे में पहुंचते ही सरयू सिंह ने दरवाजा बंद किया और सूरज को बिस्तर पर छोड़कर उसे रतन द्वारा भेजे खिलौने पकड़ा दिए जो उनके झोले में ही थे।

नए खिलौने देखकर सुगना ने पूछा

"ई कब खरीदनी हा?"

सरयू सिंह ने सुगना को अभी यह बताना उचित न समझा कि यह रतन द्वारा भेजे गए थे। उन्होंने उसकी बात टाल दी और उसे अपने आलिंगन में कस लिया। सुगना के कोमल होंठों को अपने होंठों के बीच चूसते हुए एक बार सरयू सिंह के मन में फिर राजेश का ख्याल आया उन्होंने सुगना को खुद से अलग किया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगे। सुगना को अंदाज़ हो गया कि आज बाबूजी अपने अरमान अवश्य पूरे करेंगे वह मन ही मन इसके लिए तैयार हो गयी।

उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी को अपनी अदाओं से प्रथम स्खलन अपनी बुर में ही करने के लिए रिझा लेगी और इसके बाद स्वेक्छा से अपनी गुदांज गाड़ को उन्हें अर्पित कर देगी।

वैसे भी कल का दिन लगभग व्रत जैसा ही निकल गया था सूरज की बीमार पड़ने से सुगना अपना रात्रि भोजन न कर सकी थी थी और उसे सिर्फ लाली के घर में दूध पीकर ही गुजारा करना पड़ा था नियति ने उसके दूसरे छेद के उदघाटन की तैयारी करा दी थी।

परंतु सुगना प्रसन्न थी।बनारस महोत्सव में गर्भवती होने का उसकी इच्छा पूरी होने वाली थी। उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और स्वयं ही अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी। जब तक कि सुगना की चुचियाँ खुली हवा में सांस लेती सरयू सिंह का धोती कुर्ता और लंगोट जमीन चाट चुका था। सरयू सिंह का फनफनाता हुआ लण्ड देखकर सुनना खुश हो गई।

सुगना ने अपने शरीर पर पड़े अंतिम वस्त्र अपने पेटीकोट के नाड़े का धागा खोल दिया। एक प्रतिमा की भांति सुगना की कोमल जाँघे अनावृत होती गयीं।

पांच सितारा होटल के भव्य कमरे में पीली रोशनी में

कोमलांगी सुगना की कोमल कमनीय काया कुंदन की भांति कांतिमान थी।

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।


सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…


शेष अगले भाग में...
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भाग -58

डॉक्टर उस समय भी एक दुर्लभ प्रजाति थी। बनारस महोत्सव में डॉक्टर का मिलना असंभव था और वह भी इस धुआंधार बारिश के मौसम में। सब एक-दूसरे का मुंह ताक रहे थे। ऐसा कोई व्यक्ति न था जो सुगना की मदद कर सकता था। और जो था वो सुगना की गुदांज छेद के उद्घाटन की तैयारी में अपने हथियार में धार लगा रहा था….

अब आगे....

मूसलाधार बारिश हो रही थी। सरयू सिंह अपनी बहू की सेज सजा कर उसके छेद का उद्घाटन करने की पूरी तैयारी कर चुके थे। मौका देखकर उन्होंने शिलाजीत का सेवन भी कर लिया था। हथियार में धार और दिल में प्यार लिए वह बारिश के रुकने का इंतजार करने लगे। रह रह के बस मक्खन को देखते जिसकी मदद से उन्हें सुगना की मखमली गांड का उद्घाटन करना था.. वह पंडाल में आई विपत्ति से पूरी तरह अनजान थे।

राजेश ने हिम्मत जुटाई और वह भागकर भीगते हुए मेला प्रबंधन केंद्र की तरफ गया।


उधर सोनू ने बनारस महोत्सव आते जाते एक डॉक्टर का घर देखा था वह भीगता हुआ उस डॉक्टर के घर की तरफ दौड़ पड़ा यहअलग बात थी कि सोनू के जाने से वह डॉक्टर कतई बनारस महोत्सव नहीं आता परंतु सोनू अपनी बहन और भतीजे को उस दुख में देख नहीं सकता था।

रतन तो निर्विकार और निरापद था। वह भी पंडाल से बाहर निकल गया इतने दिनों तक मुंबई में रहने के कारण उसका बनारस शहर से संपर्क टूट गया था वह बाहर निकल कर लोगों से मदद मांगने लगा….

जब तक कजरी सरयू सिंह को बुलाने के लिए कह पाती तब तक तीनों मर्द अलग-अलग दिशाओं में जा चुके थे। सुगना भी कातर निगाहों से पंडाल के गेट की तरफ देख रही थी काश उसके बाबूजी आ जाते और अपने पुत्र को अनजान विपत्ति से निकालने में उसका सहयोग करते।

आखिरकार राजेश ने सफलता पाई और मेला प्रबंधन से एंबुलेंस प्राप्त करने में सफल हो गया कुछ ही देर में एंबुलेंस विद्यानंद के पंडाल के सामने खड़ी थी सुगना सूरज को लेकर एंबुलेंस में बैठ गई उसका साथ देने के लिए कजरी जाने लगी तभी लाली ने कहा..

"चाची तू रहे तो हम जा तानी ओहिजा कुछ काम पड़े त हम संभाल लेब तू ई दोनों बच्चा के संभाल ल"


उसने अपने दोनों बच्चों राजू और रीमा से कहा

"नानी के तंग मत करिहा लोग और अच्छा से रहीह लोग"

राजू और रीमा को पांडाल में बहुत आनंद आता था वह दोनों सहर्ष रुक गए और लाली सुगना और सूरज के साथ एंबुलेंस में बैठ गई। राजेश ड्राइवर के बगल वाली सीट पर बैठ गया। एम्बुसेन्स सांय सांय करती हॉस्पिटल की तरफ बढ़ गयी।

सूरज की तबीयत सचमुच खराब हो गई थी सुगना ने अपने जीवन में यह दिन कभी नहीं देखा था। आज मिले अकस्मात धन की खुशियां एक पल में ही काफूर हो गई थी। माता के लिए पुत्र से बड़ा कोई धन नहीं होता है आज सूरज विपत्ति में था और सुगना का हृदय व्यथित।

हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉक्टर ने सूरज का निरीक्षण किया और यह बात सच थी वाकई मालपुए की वजह से उसे उल्टियां शुरू हो गई थी कजरी द्वारा बनवाया गया मालपूआ उसे रास ना आया था।

डॉक्टर ने उसे कुछ दवाइयां दी और थोड़ी ही देर में सूरज भला चंगा हो गया रात के 10:00 बज चुके थे बाहर अभी भी बारिश हो रही थी।

हॉस्पिटल से राजेश की घर की दूरी कम थी जहां आसानी से जाया जा सकता था बनारस महोत्सव वापस जाना बेहद कठिन था।

सुगना लाली और राजेश के साथ उनके घर आ गई सूरज को सामान्य होते थे उसके चेहरे पर खुशियां स्पष्ट दिखाई देने लगी थी वह अब लाली और राजेश से खुलकर बात कर रही थी । लाली के घर पहुंच कर उसे सरयू सिंह की याद आई और वह एक बार फिर परेशान हो गई काश वह अपनी स्थिति सरयू सिंह को बता पाती काश उसके बाबूजी कैसे भी करके यहां लाली के घर आकर उसे ले जाते।

"का सोचतारे भीगल बाड़े कपड़ा बदल ले फेर सोचिहे" लाली ने सुगना को उसकी सोच से बाहर निकाला.

सुगना ने तो सूरज को तो अपने आंचल में ढककर भीगने से बचा लिया था परंतु तीनों वयस्क इंद्रदेव की रिमझिम बारिश से न बच पाए थे।

लाली अंदर गई और अपने संदूक से दो नाइटी लेकर बाहर आ गई उसने सुगना को देते हुए कहा..

"कौन वाला पहिनबे?

सुगना ने देखा एक नाइटी उत्तेजक थी और दूसरी बेहद उत्तेजक। दोनों ही नाइटी प्रेमी जोड़ों के लिए ही बनी थी सुगना ने कहा

"और दूसर नइखे"

"सब त भीग गइल बा…"

बारिश के कारण लाली द्वारा बाहर सुखाने के लिए डाले गए कपड़े भी भीग चुके थे।

राजेश दोनों नाइटियो को देख कर खुद भी उत्तेजित हो रहा था। वह उन दोनों के बीच से हट गया और जाकर अपने कपड़े बदलने लगा। परंतु अपने इष्ट देव से वह मन ही मन यह प्रार्थना कर रहा था कि सुगना लाली की बात मानकर कोई भी एक नाइटी पहन ले।


सुगना के खूबसूरत शरीर को उस नाइटी में देखने की कल्पना कर राजेश मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उसका लण्ड उछलने लगा।

आज उसने सुगना और सूरज की जी भर कर सेवा की थी। उसके छोटे से योगदान ने सूरज के तकदीर में ₹10 लाख का एक ऐसा विशाल धन ला दिया था जो सुगना के परिवार के जीवन स्तर को सुधारने में एक महती भूमिका अदा कर सकता था। सुगना आज राजेश के प्रति कृतज्ञ थी। राजेश ने उसके पुत्र की जान बचा कर आज उसने उसके जीवन में एक ऐसे पुरुष की भूमिका निभाई थी जो पति तुल्य थी।

कुछ ही देर में लाली और सुगना बेहद सुंदर नाइटियो में लाली की रसोई में दूध गर्म कर रहीं थी।

राजेश हाल के बिस्तर पर बैठा सूरज के साथ खेल रहा था और उन दोनों खूबसूरत सुंदरियों को देख रहा था परंतु उसकी निगाहें सुगना से ना हट रही थी।

आज राजेश के दोनों हाथों में लड्डू थे उसकी खूबसूरत पत्नी लाली और मदमस्त सुगना आह ….ऐसा मादक अहसास….खूबसूरत और पतली झीनी नाइटी से दोनों ही सुंदरियों के बदन का उभार स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था । शरीर के ऐसे कटाव ग्रामीण परिवेश में ही देखने को मिलते हैं या फिर फिल्मों में। मध्यमवर्ग की अधिकतर महिलाएं चाह कर भी वह कसाव नहीं पा पातीं खासकर बच्चा होने के बाद।

राजेश ज्यादा देर तक उस खूबसूरती का आनंद न ले पाया बारिश तेज होने की वजह से रेलवे कॉलोनी की लाइट गुल हो गई एक पल के लिए राजेश की आंखों के सामने अंधेरा छा गया गैस की आंच में अब भी सुगना का चेहरा चमक रहा था जाने सुगना के शरीर में भगवान ने कौन सी उर्जा डाली थी उसकी त्वचा हमेशा चमकती थी थोड़ा सा भी प्रकाश पड़ने पर उसकी खूबसूरती और निखर आती।

लाली ने मोमबत्ती जला ली एक मोमबत्ती से उसने रसोई घर में उजाला कर दिया और दूसरी मोमबत्ती को सुगना को देते हुए बोली ले अपना जीजा जी के दूध दे द सुगना एक हाथ में गिलास लिए और दूसरे हाथ में मोमबत्ती लिए राजेश की तरफ चल पड़ी मोमबत्ती की रोशनी सीधे सुगना के चेहरे और छातियों के खुले भाग पर पढ़ रही थी उसकी चुचियों के बीच की बेहद आकर्षक घाटी पीली रोशनी में चमक रही थी सुगना का कुंदन शरीर राजेश की निगाहों में रच बस रहा था..

"जीजा जी दूध ले लीं"

सुगना की मधुर आवाज राजेश को सुनाई जरूर दी पर उसकी आंखें उसके खूबसूरत जिस्म से चिपक सी गयीं थीं।

सुगना ने फिर कहा..

"कहां भुलाईल बानी भाई दूध ले लीं"


रसोई में खड़ी लाली ने सुगना द्वारा दोबारा कहीं बात सुन ली और उसे राजेश की मनोदशा का अंदाजा हो गया उसमें मुस्कुराते हुए कहा

"तोहरे पुआ में भुलाईल होइहें"

सुगना शर्म से पानी पानी हो गई। लाली ने स्पष्ट तौर पर वही बात कह दी थी जो सुगना मन ही मन सोच रही थी राजेश लाली की बात सुनकर सचेत हो गया था उसने स्थिति संभालते हुए कहा..

"उ नकली पूआ त सब काम खराब कइले बा सूरज बाबू के तबीयत वोही से नु खराब भईल…"

" आज भगवांन बचा लेनी" सुगना कृतज्ञ भाव से बोली।

राजेश ने मुस्कुराते हुए कहा

"आज त सुगना के दिन ह, ₹10 लाख भी जितली और बेटा भी ठीक हो गईल"

"जीजा जी आज ही त आप भगवान बन कर आइनी"

"त भगवान जी के का मिली? राजेश ने मुस्कुराते हुए पूछा"

"सब आपके ही ह बताई का चाहीं?"

लाली भी अब तक उनके करीब आ चुकी थी उसने एक बार फिर राजेश की दुखती रग पर हाथ रख दिया..

"छोड़, उनका जवन चाहीं तोरा से होइ ना"

"हमरा त एगो सूरज जइसन लइका चाहीं" राजेश ने पास खेल रहे सूरज को उठाकर चूम लिया।

मन में सुगना को सोच कर लिया गया यह चुम्बन कुछ ज्यादा ही आत्मीय था सूरज छूटने के प्रयास कर रहा था।

सुगना तो राजेश की बातों का गूढ़ अर्थ न समझ भाई परंतु लाली ने राजेश की मंशा जानकर सुगना से कहा..

"देख तोर जीजा जी का मांग तारे" जो आज उनके संगे सूत रह…उनको साध बुता जाई"

राजेश ने अनजाने में ही सुगना से उसका गर्भधारण मांग लिया था इच्छा तो सुगना की भी थी पर उसके गर्भधारण का प्रयोजन अलग था और राजेश का अलग।

"हट पागल कुछो बोलेले... हम कह तानी की सूरज अतना भाग्यशाली लईका बा जरूर अपना मां बाप के नाम रोशन करी और पूरा परिवार के भी" राजेश ने स्थिति को सामान्य करते हुए कहा….

जीजा साली और लाली के बीच हुई वार्तालाप ने नियति को मौका दे दिया।

कुछ देर की हंसी ठिठोली के बाद सुगना और लाली भीतर कमरे में सोने चली गई और राजेश हाल में ही अपनी मस्तराम की किताबों में डूब गया।

अंदर दोनों सहेलियां बिस्तर पर लेटी आज सुगना के जीवन में हुई धन वर्षा का आनंद ले रही थी..

"ए सुगना का करबे अतना पैसा के"

"हमु बनारस शहर में मकान खरीदब…"

" तब तो बहुत अच्छा बा हमरे साथ खरीद लीहे साथे रहल जायी।"

"अच्छा तोर पेट फुला वे के का भईल आज तक बनारस महोत्सव के आखिरी रात ह तोरा त रतन भैया के पास होखे के चाहीं ते एहजा बाड़े।"

सुगना के दिमाग में विद्यानंद की बातें एक बार फिर घूमने लगी सच आज बनारस महोत्सव की आखिरी रात थी वह अपने बाबूजी के साथ मनोरमा के कमरे में जी कर चुदना चाहती थी परंतु परिस्थितियों ने उसे ऐसी जगह पर लाकर छोड़ दिया था जहां वह न सिर्फ स्वयं को लाचार महसूस कर रही थी अपितु बेहद दुखी थी थी।

उसे पता था कल सुबह ही बनारस महोत्सव से उसके परिवार की विदाई निश्चित थी। नियति ने उसके साथ क्रूर खिलवाड़ किया था उसके बाबूजी उससे कुछ ही दूर पर उपस्थित थे परंतु उन दोनों के बीच का यह फासला मिटा पाना संभव न था।

"कहां भुला गइले" लाली ने सुगना को झकझोरा जो विचार मग्न थी।

"सोचा तानी कि तोर इच्छा पूरा करिए दीं"

"साँच सुगना… उ त सुन के पागल हो जइहें"

"पर ते सम्हाल लीहे…"

सुगना ने मन ही मन निर्णय कर लिया था। अपने पुत्र सूरज की मुक्तिदाता उसकी बहन का सृजन इसी बनारस महोत्सव में होना था इसके लिए समय बेहद ही कम था वह सुबह तक अपने बाबूजी का इंतजार कर सकती थी परंतु वह इसकी पक्षधर न थी। वह अपने भाग्य से अब तक आंख मिचौली खेलती आ रही थी और अब वह भाग्य भरोसे नहीं रहना चाहती थी। अपने पुत्र के साथ घृणित संभोग की आशंकाओं ने उसे अधीर कर दिया था।

अंततः उसने लाली को अपनी सशर्त सहमति दे ही दी। वह किसी भी स्थिति में खुद की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी …..पर क्या यह संभव था? नियति सुगना की मासूमियत और उसके मन मे चल रहे द्वंद्व को भली भांति जान रही थी। नियति ने ही इन पात्रों का सृजन किया था और इनका अंत भी उसी के हाथों होना था विधाता ने शायद सुगना के भाग्य में यही लिखा था।

अभी भी बिजली लगातार कड़क रही थी…सुगना ने जीवन में भूचाल आने वाला था।…..

उधर पंडाल में सरयू सिंह सुगना को खोजते हुए आ गए थे। पूरी तरह बारिश से लथपथ सरयू सिंह के चेहरे पर झुझलाहट साफ दिखाई दे रही थी वह पंडाल की वस्तुस्थिति से पूर्णता अनभिज्ञ थे।

"कहां चल गई रहनी हां?" कजरी ने पूछा….. पर उनका उत्तर सुना नहीं। उसने सूरज और उसकी स्थिति के बारे में स्वयं ही सब कुछ बता दिया। परंतु कोई भी यह बात पाने में असमर्थ था कि सुगना और राजेश सूरज को लेकर किस अस्पताल गए हैं।


मरता क्या न करता। सरयू सिंह के पास के पास और कोई चारा न था। इतनी रात को चाहकर भी वह सुगना और सूरज को ढूढने नही जा सकते थे। बारिश अभी भी जारी थी। वह मन मसोसकर रह कर रह गए। झोले में रखा सुगना के दूसरे द्वार भेदन के लाया गया मक्खन उन्हें मुह चिढा रहा था।

अपनी कामवासना के आधीन सरयू सिंह सुगना की मनोस्थिति से अनजान थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे सूरज की तबीयत हल्की फुल्की खराब होगी पर राजेश ने जबरजस्ती उसे अस्पताल के बहाने अपने घर ले गया होगा।

आशंकाये आपकी सोच को प्रभावित करती हैं। सरयू सिंह ने अपने मन में राजेश को लेकर जो अवधारणा बनाई थी वह परिस्थितियों को उसी अनुसार देख रहे थे।

एक तो रतन का खत पढ़कर उनके मन में सुगना को खोने का डर समा गया था वह स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहे थे।

सुगना उन्हें अपने हाथों से फिसलती हुई महसूस हो रही थी।

बिजली कड़क रही थी और बारिश थमने का नाम नहीं ले रही शिलाजीत का असर अभी भी कायम था पर लण्ड नाउम्मीद हो चुका था। सुपारे पर उसके द्वारा छोड़ी गई लार सूख चुकी थी। बनारस महोत्सव का छठवां दिन भी सरयू सिंह की आकांक्षाओं को पूरा न कर पाया था।

परंतु लाली के घर में नियति का खेल चालू था।

बनारस महोत्सव का अंतिम दिन…

ड्राइवर सुबह-सुबह विद्यानंद के पांडाल के सामने खड़ा था। सरयू सिह उसका ही इंतजार कर रहे थे। पहले रेलवे कॉलोनी ले चलो। सरयू सिंह सूरज और सुगना से मिलना चाहते थे।ड्राइवर ने कहा..

"मैडम बाहर जाने वाली है पहले उनसे मिल लीजीए वो आपका इंतजार कर रही हैं।" सरयू सिह पशेपेश में थे पर उन्होंने ड्राइवर की बात मान ली जैसे उन्होंने पूरी रात इंतजार किया था वैसे कुछ समय और सही।


मनोरमा द्वारा दी गई राहत सामग्री और कुछ जरूरी कागजात अभी गाड़ी में ही थे। सरयू सिंह को उन्हें मनोरमा को वापस करना था। वो सलेमपुर में की गई गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट भी बताना चाहते थे। कल शाम बनारस महोत्सव पहुंचते-पहुंचते काफी देर हो गई थी और देर रात को मनोरमा से मिलना उचित नहीं था। और वह खुद भी सुगना और अपने परिवार की खुशियों में मशगूल हो गए थे।

कुछ ही देर बाद सरयू सिंह अपना झोला लिए मनोरमा के होटल के सामने खड़े थे। रिसेप्शन पर पहुंचने के पश्चात उन्होंने मनोरमा के कमरे में संदेश भिजवाया और रिसेप्शन पर बैठकर मनोरमा का इंतजार करने लगे। जब तक मनोरमा आती वह होटल की खूबसूरती को आंखों में बसा रहे थे। क्या रहने की जगह पर कोई इतना भी खर्च कर सकता है?


सरयू सिंह को पैसे की अहमियत पता थी और वह हमेशा से उसका सदुपयोग करते थे परंतु होटल के साज सजावट पर हुए खर्च का अनुमान कर उन्हें यह दुनिया दूसरी ही प्रतीत हो रही थी होटल सचमुच बेहद खूबसूरत था।

तभी मनोरमा सीढ़ियों से उतरते हुए दिखाई दी। सरयू सिंह ने मनोरमा की तरफ देखा यह पहला अवसर था जब मनोरमा ने अपनी नजरें झुका लीं। शायद सरयू सिह से आंख मिलाने में उसे शर्म आ रही थी।


सुबह-सुबह मनोरमा एक ताजे खिले हुए फूल की तरह दिखाई पड़ रही थी। सजा धजा कसा हुआ शरीर। आज पहली बार मनोरमा को उन्होंने अपनी काम वासना से भरी निगाहों से देखा । कल रात में खाये शिलाजीत ने उनके लण्ड में रक्त भर दिया।

मनोरमा करीब आ चुकी थी सरयू सिंह ने खड़े होकर उसका अभिवादन किया। मनोरमा उनकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी पर उसने उनकी धोती में आया उभार देख लिया था।

सरयू सिंह ने मनोरमा को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। सभी सीढ़ियों से होटल का वेटर मनोरमा का सामान लेकर नीचे उतर रहा था और पीछे पीछे सेक्रेटरी साहब भी नीचे आ रहे थे।

मनोरमा ने सरयू सिंह से कहा मुझे किसी आवश्यक कार्य से लखनऊ निकलना है।

मनोरमा ने सेक्रेटरी साहब से होटल के कमरे की चाबी ली और सरयू सिंह को देते हुए बोली

"मेरे कमरे में बनारस महोत्सव से संबंधित कई सारे कागजात रखे हुए वह आप ऑफिस खुलने के पश्चात बनारस महोत्सव के कार्यालय में पहुंचा दीजिएगा।"

मनोरमा ने सरयू सिंह का परिचय होटल के रिसेप्शन पर करा दिया।

मनोरमा का ड्राइवर गाड़ी में रखे हुए कागजात लेकर रिसेप्शन पर आ चुका था मनोरमा ने उससे कहा

"तुम आज इनके साथ ही रहना तथा इनके परिवार को सलेमपुर छोड़ने के पश्चात छुट्टी पर चले जाना"

ड्राइवर भी खुश हो गया।

मनोरमा के जाने के पश्चात सरयू सिंह मनोरमा के कमरे में गए और कमरे की खूबसूरती और भव्यता को देख बेहद प्रसन्न हो गए। आलीशान कमरा और बेहतरीन सजा धजा डबल बेड देखकर सरयू सिंह की कामवासना जाग उठी उस सुंदर बिस्तर पर सुगना को चोदने का सुख सोच कर ही उनका लण्ड उत्तेजना से भर गया।

उन्होंने देर करना उचित न समझा वह नीचे आए और मनोरमा की गाड़ी में पीछे बैठकर सुगना को लेने चल पड़े।

थोड़ी ही देर में में उनकी गाड़ी रेलवे कॉलोनी में राजेश के घर के सामने खड़ी थी।


ड्राइवर ने हॉर्न बजाया। ड्राइवर भी एक चतुर और व्यवहारिक प्राणी होता है वह घर की बाहरी हालत देखकर रहने वाले का वजन अंदाज लेता है और उसके अनुरूप बर्ताव करता है।

यदि वह रेलवे कॉलोनी का घर न होकर किसी अधिकारी का बंगला होता तो ड्राइवर की हार्न बजाने की हिम्मत ना होती पर राजेश का घर सामान्य था।

ड्राइवर ने दोबारा हार्न बजाया। सरयू सिह अभी गाड़ी से नहीं उतरे थे वह चाहते थे कि कम से कम एक बार राजेश उसे इस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठा हुआ देख ले ताकि वह अपना प्रभुत्व उस पर और जमा सकें।

वह मन ही मन वह राजेश को अपना प्रतिद्वंद्वी मानने लगे थे परंतु राजेश बाहर नहीं आया।

ड्राइवर ने फिर हार्न बजाने की कोशिश की पर सरयू सिंह ने उन्हें रोक दिया। ड्राइवर का यह व्यवहार आसपास के लोगों को दिक्कत कर सकता था और वह अपनी प्रतिक्रिया देकर माहौल खराब कर सकते थे।


सरयू सिंह गाड़ी की पिछली सीट से उतरे और सधे हुए कदमों से राजेश के घर के दरवाजे पर पहुंच गए उन्होंने दरवाजा खटखटा दिया।

लाली ऊँघती हुई बाहर आई और दरवाजा खोला। लाली उनकी पुत्री समान थी वह उनके दोस्त हरिया की पुत्री थी उसे नाइटी में देखकर सरयू से ने अपनी आंखें घुमा लीं। इतने उत्तेजक कपड़ों में अपनी पुत्री समान लाली को देखना पसंद ना आया।

लाली को कतई उम्मीद नहीं थी कि सरयू सिंह इतनी सुबह सुबह बिना बताए उसके घर पर आ धमकेंगे। अन्यथा लाली पूरी शालीन कपड़ों में उनका इंतजार कर रही होती । परंतु अब जो होना था हो चुका था लाली ने उनके चरण छुए और उन्हें अंदर बुलाया तथा हाल में बैठने के लिए कहा।

सरयू सिंह वस्त्रों के चयन को लेकर मन ही मन आज की नई पीढ़ी की मानसिकता को समझने का प्रयास करने लगे।

सुगना को हाल में न पाकर सरयू सिह परेशान हो गए क्या सुगना अंदर सो रही थी? सरयू सिंह को थोड़ी खुशी हुई उन्हें लगा जैसे राजेश घर पर नहीं था इसलिए लाली और सुगना अंदर सो गए थे।

लाली अंदर गई और राजेश को जगाया। राजेश बेसुध सो रहा था। बीती रात वह तृप्त हो चुका था। अपने जीवन में इतनी सुखद नींद उसने आज तक नहीं मिली थी।

राजेश कमरे से उठकर हाल में आया और सरयू सिंह के चरण छुए सरयू सिंह ने उसे आशीर्वाद तो दिया पर शब्दों से। उनके मन में राजेश के प्रति नफरत घर कर गयी थी और सुगना के प्रति गुस्सा था।

राजेश ने एक काम सही किया था। आते हुए उसने सुगना को उठा दिया। सरयू सिह की आवाज सुन सुगना सचेत हो गयी और आनन फानन में अपनी साड़ी पहनी और कुछ ही देर में हाल में आ गयी।

सुगना की हालत देखकर सरयू सिंह के मन में कई तरह के भाव आ रहे थे परंतु अपनी भावनाओं को काबू में रखते हुए उन्होंने पूछा

"सूरज कैसन बा"

"ठीक बा काल त सब के डेरा देले रहे"

लाली अंदर से अपने कपड़े बदल कर सूरज को लेकर आ गई। सूरज ने अपनी आंखें खोली और सरयू सिंह को देखकर बेहद खुश हो गया वह उछल कर उनकी गोद में आ गया। पिता और पुत्र का या प्यार सिर्फ सुगना और सरयू सिंह ही समझ सकते थे। लाली और राजेशbeti सूरज और सरयू सिंह के बीच इस आत्मीय संबंध के कारण से पूरी तरह अनजान थे।


सूरज को स्वस्थ और सुगना को पसंद देखकर सरयू सिंह की उम्मीद जाग उठी उन्होंने मौका निकाल कर शिलाजीत की दूसरी गोली का सेवन कर लिया पर राजेश ने उन्हें गोली खाते हुए देखकर पूछा..

"रोज गोली खाए के परेला का"

राजेश शहर का रहने वाला था उसे पता था शहर के मानिंद लोग 50 -55 वर्ष की अवस्था में कुछ न कुछ गोलियां खाया करते थे

सरयू सिंह झेंप गए । वह किस मुंह से बताते कि वह यह गोली किस लिए खा रहे हैं।

सरयू सिंह ने फरमान जारी किया

"फटाफट तैयार हो जा बाहर गाड़ी खड़ा बिया हमनी के जल्दी चले के बा।"

सुगना बाथरूम में गई परंतु बिजली गुल होने की वजह से नल मैं पानी नहीं आ रहा था उसने मुश्किल से रसोई में रखे पानी से अपना मुंह धोया और बालों को व्यवस्थित कर सरयू सिंह के साथ जाने के लिए तैयार हो गयी। वह स्वयं भी अपने परिवार से शीघ्र मिलना चाहती थी वह जानती थी कि सभी सूरज की तबीयत के बारे में फिक्र मंद होंगे।

सुगना ने लाली से विदा ली और सूरज को अपनी गोद में लिए घर से बाहर निकल पड़ी। राजेश से नजरें मिलाने की उसकी हिम्मत ना थी कल रात जो हुआ शायद वह नहीं होना चाहिए था।

राजेश गाड़ी की तरफ जा रही सुगना के हिलते हुए नितंबों को देख रहा था उसका लण्ड एक बार फिर हिचकोले खाने लगा। सुगना की कामुक काया पर राजेश की निगाहें अटक गई थी। कल रात के कामुक दृश्य उसकी आँखों के सामने नाच गए।

सरयू सिंह सुगना को लेकर पीछे बैठ चुके थे। सरयू सिंह हो यह ध्यान ही नहीं रहा की सुगना उनकी पत्नी नहीं उनकी बहू है उन्होंने ड्राइवर से कहा..

"पहले होटल ले चलिए कागज पत्तर सहेज के तब पंडाल में चलेंगे।"

सुगना होटल के नाम से सचेत हो गई वह चाह कर भी कुछ बोल ना पायी। ड्राइवर की उपस्थिति में कुछ भी बोलना उसने गवारा न समझा। वह चाहती तो थी कि वह पहले पांडाल में जाए ताकि वह अपने और सूरज की सलामती की खबर परिवार वालों को दे सके परंतु ऐसा हुआ नहीं। वह अपनी उधेड़बुन में खोई हुई थी पर कुछ ही देर में गाड़ी पांच सितारा होटल के पोर्च में आ गयी ।

होटल की खूबसूरती देखकर सुगना सहम गई उसने आज से पहले इतनी खूबसूरत जगह नहीं देखी थी..।

वह तो सुगना की चमकती कुंदन काया थी जो उस होटल में रहने वाले लोगों से कई गुना सुंदर थी परंतु उसके कपड़े पांच सितारा होटल के स्तर के न थे वह यह बात बखूबी जानती थी।


उसने आखिरकार सरयू सिह के कान में कहा

"ई होटल में काहें"


सरयु सिंह ने उसकी तरफ मुस्कुरा कर देखा और एक विजेता की भांति उसे लेकर मनोरमा के कमरे की तरफ चल पड़े..

रिसेप्शनिस्ट ने सरयू सिंह की तरफ देखा और प्रश्नवाचक निगाहों से सुनना के बारे में जानना चाहा। "अरे हमारी बहू है थोड़ी देर बाद हम लोग सामान लेकर निकल जाएंगे"

रिसेप्शनिस्ट ने कोई ऐतराज न किया. दोनों की उम्र के अंतर और रिश्ते ने रिसेप्शनिस्ट के मन में आए ख्याल को दबा दिया। सरयू सिह सुगना को लेकर कमरे में आ गए छोटा सूरज भी होटल की चकाचौंध को मासूम निगाहों से निहार रहा था कमरे में पहुंचते ही सरयू सिंह ने दरवाजा बंद किया और सूरज को बिस्तर पर छोड़कर उसे रतन द्वारा भेजे खिलौने पकड़ा दिए जो उनके झोले में ही थे।

नए खिलौने देखकर सुगना ने पूछा

"ई कब खरीदनी हा?"

सरयू सिंह ने सुगना को अभी यह बताना उचित न समझा कि यह रतन द्वारा भेजे गए थे। उन्होंने उसकी बात टाल दी और उसे अपने आलिंगन में कस लिया। सुगना के कोमल होंठों को अपने होंठों के बीच चूसते हुए एक बार सरयू सिंह के मन में फिर राजेश का ख्याल आया उन्होंने सुगना को खुद से अलग किया और उसकी साड़ी खींचकर उसे नग्न करने का प्रयास करने लगे। सुगना को अंदाज़ हो गया कि आज बाबूजी अपने अरमान अवश्य पूरे करेंगे वह मन ही मन इसके लिए तैयार हो गयी।

उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह अपने बाबू जी को अपनी अदाओं से प्रथम स्खलन अपनी बुर में ही करने के लिए रिझा लेगी और इसके बाद स्वेक्छा से अपनी गुदांज गाड़ को उन्हें अर्पित कर देगी।

वैसे भी कल का दिन लगभग व्रत जैसा ही निकल गया था सूरज की बीमार पड़ने से सुगना अपना रात्रि भोजन न कर सकी थी थी और उसे सिर्फ लाली के घर में दूध पीकर ही गुजारा करना पड़ा था नियति ने उसके दूसरे छेद के उदघाटन की तैयारी करा दी थी।

परंतु सुगना प्रसन्न थी।बनारस महोत्सव में गर्भवती होने का उसकी इच्छा पूरी होने वाली थी। उसने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और स्वयं ही अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी। जब तक कि सुगना की चुचियाँ खुली हवा में सांस लेती सरयू सिंह का धोती कुर्ता और लंगोट जमीन चाट चुका था। सरयू सिंह का फनफनाता हुआ लण्ड देखकर सुनना खुश हो गई।

सुगना ने अपने शरीर पर पड़े अंतिम वस्त्र अपने पेटीकोट के नाड़े का धागा खोल दिया। एक प्रतिमा की भांति सुगना की कोमल जाँघे अनावृत होती गयीं।

पांच सितारा होटल के भव्य कमरे में पीली रोशनी में

कोमलांगी सुगना की कोमल कमनीय काया कुंदन की भांति कांतिमान थी।

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।


सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…


शेष अगले भाग में...
Behtreen update
भाग 59

अब तक आपने पढ़ा...

सरयू सिंह अपनी किस्मत पर नाज कर रहे थे अपनी बहू और प्रेमिका की खूबसूरती का अवलोकन करते हुए उनकी निगाह सुगना के खूबसूरत बदन पर दौड़ रही थी। सुगना उनकी दृष्टि को अपने बदन पर महसूस कर रही थी उसकी धड़कनें तेज हो रही थी। जांघों के बीच निगाह पड़ते ही अचानक सरयू सिंह चेहरे के भाव बदल उठे।

सुगना ने उनके चेहरे पर आए बदलाव को महसूस किया इस बदलाव का कारण जानने के लिए अपनी जांघों के बीच देखा उसके होश फाख्ता हो गए जांघों के बीच बालों के झुरमुट और जांघों पर लगा राजेश का वीर्य सूख चुका था…...और सरयू सिंह को मुह चिढा रहा था…

अब आगे….


सुगना को अपनी गलती का एहसास हो चुका था उसने कोई सफाई देने की कोशिश न की। प्रेम सवालों पर विराम लगा देता है... उसने कदम बढ़ाए और अपने बाबूजी के आलिंगन में आ गई।


कई दिनों की तड़प के बाद सुगना के नंगे कोमल बदन का स्पर्श अपने शरीर से होते ही एक पल में सरयू सिह का गुस्सा काफूर हो गया।

सुगना का कोमल बदन उन्हें गर्म गुलाब जामुन की तरह प्रतीत हुआ जिसने उनके मन की कड़वाहट को एक पल में गायब कर दिया।

उनकी मजबूत भुजाओं ने उस कोमल शरीर को खुद से एकाकार करने की कोशिश की। परंतु उनका तना हुआ लण्ड सुगना के पेट में चुभ रहा था।

अपने बाबूजी के आलिंगन में जाकर सुगना की कामवासना जवान हो उठी. उसकी बुर पनिया गई और अपने होंठ खोल कर अपने लॉलीपॉप का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपनी मजबूत भुजाओं में सुगना को एक किशोरी की तरह उठा लिया और बिस्तर पर ले आए जहां उसका पुत्र सूरज रतन द्वारा भेजे गए खिलौनों में व्यस्त था।


बिस्तर पर हुई हलचल महसूस कर सूरज का ध्यान दो विलक्षण आकृतियों पर गया। पूर्ण नग्न अवस्था में न तो उसे सरयू सिंह पहचान में आ रहे थे और न हीं उसकी मां। उन दोनों के नग्न शरीर से अपना ध्यान हटाकर जब सूरज ने उनके चेहरे की तरफ देखा और उनको पहचान लिया। और सरयू सिह की गोद मे आने की जिद करने लगा उसे शायद पता न था उसकी माँ सुगना को भी उस गोद मे उतना ही आंनद आता था जितना उसे बस भाव अलग थे।

सुगना ने सूरज का ध्यान वापस खिलौनों पर लगाना चाहा पर उसकी निगाहें नग्न शरीरों से हट ही नहीं रही थी। सरयू सिंह भी अपने तने हुए लण्ड को सूरज की निगाहों से दूर रखना चाहते थे। वह उसे सुगना के नितंबों के पीछे छुपा रहे थे। परंतु सूरज हठी बालक की तरह व्यवहार कर रहा था। वह सरयू सिह के जादुई अंग को देखना चाह रहा था। अंततः सुगना ने स्वयं को डॉगी स्टाइल में अपने बाबूजी के सामने परोस दिया और सरयू सिंह का लण्ड उस सूखे हुए वीर्य को भूल उसकी पनियाई बूर में प्रवेश कर गया।

सुगना की बुर आज भी सरयू सिह के लिए उसी तरह का कसाव पैदा करती थी। जाने सुगना ने किस तरह अपनी बुर् में अद्भुत कसाव बनाए रखा था। सरयू सिंह के मुंह से आह निकल गयी…. और जैसे ही सरयू सिंह ने अपने कमर की ताकत लण्ड पर लगाई कराह ने अपनी आवाज बदल ली। कराहने की आवाज इस बार सुगना से आयी ..

" बाबू जी तनी धीरे से….." यह मादक कराह के दिनों बाद सरयू सिह के कानों को सुनाई दी थी।

सरयू सिंह एक बार फिर सुगना की पीठ पर झुक गए और उसके कानों को चूम लिया। सुगना की कराह पर उनका यह प्यार हमेशा मरहम का काम करता था पर यह प्यार पाकर लण्ड उछलने लगता।

कुछ देर सुगना के कानों और गालों को चूमने के बाद अचानक उन्हें सुगना की जांघों पर लगे वीर्य का ध्यान आया और उन्होंने अपना लण्ड सुगना की बुर के जड़ तक ठान्स दिया और गर्भाशय के मुख पर चोट कर उसे अपना मुंह खोलने पर विवश कर दिया।

शिलाजीत का असर दोगुना हो चला था। कल रात खाए शिलाजीत का असर अभी कम होता उससे पहले ही आज सुबह-सुबह शरीर सिंह ने दूसरी गोली ले ली थी। सरयू सिंह के तने हुए लण्ड के मजबूत धक्कों ने न सिर्फ सुगना के गर्भाशय का मुख खोल दिया अपितु राजेश के वीर्य के वह शुक्राणु जो अभी तक सुगना की योनि की सुरंग में लक्ष्य की तलाश में दिग्भ्रमित होकर टहल रहे थे उन्हें भी अनजाने में ही सुगना के गर्भ तक पहुंचा दिया।

अपने पिता तुल्य प्रेमी सरयू सिंह के लण्ड द्वारा किसी पर पुरुष के वीर्य से गर्भधारण की यह विधि इतनी ही निराली थी जितनी सुगना और उसका उसके बाबूजी के साथ संबंध।

सरयू सिंह प्यार, उत्तेजना और क्रोध के बीच की कई अवस्थाओं से गुजर रहे थे। जब जब वह सुगना के मासूम चेहरे और कोमल शरीर का ध्यान करते वह उसके प्यार में डूब जाते उनका लण्ड सुगना की बुर को बेहद ही तन्मयता से चोदने लगता।

जिस प्रकार एक मां अपने छोटे बच्चे की मालिश करती है सरयू सिंह का लण्ड सुगना की बुर की भीतरी दीवारों की मालिश करता। जब उत्तेजना हावी होती चुदाई की रफ्तार बढ़ जाती और सुगना की अपने बाबू जी की अद्भुत चुदाई से आह….आ...ईई। ह ह। ममममममम। आ….तरह-तरह की आवाजें निकालने लगती.. परंतु जब सरयू सिंह को सुगना की जांघों पर लगे वीर्य की याद आती उनके दिमाग में राजेश का चेहरा घूम जाता और वह अपने लण्ड को पूरी ताकत से सुगना की बुर की जड़ तक ठान्स देते।

गर्भाशय के मुख पर पड़ रही चोट अब भारी हो रही थी। उत्तेजना से लण्ड भी विकराल रूप में आ चुका था। सुगना कराह उठती और अपनी आंखों में हल्की आंसू लिए कहती …

"बाबूजी तनी धीरे से ….दुखाता"

इस वाक्य का अंतिम शब्द आज चरितार्थ हो रहा था। सुगना आज पहली बार इस संभोग में मीठे दर्द का एहसास कर रही थी यह दर्द सुगना की वो दीपावली वाली रात के दर्द जैसा ही था।


सरयू सिंह अपनी बहू सुगना से बेहद प्यार करते थे उसकी मादक और कामुक कराह सुनकर वह उत्तेजित अवश्य होते परंतु अपने लण्ड का आक्रमण कम कर देते और एक बार फिर चुदाई जारी हो जाती।

होटल के गद्देदार बिस्तर पर एक अजब सी हलचल थी। आज तक सरयू सिह को ऐसे डनलप के गद्दे पर चुदाई का सुख न मिला था। यह सुख अद्भुत और निराला था। इस हलचल में एक रिदम था। छोटा सूरज इस रिदम के साथ उछल रहा था और खिलौनों से खेल रहा था उसका ध्यान बरबस अपनी मां पर जाता। और वह उसकी चुचियों को उछलते हुए देखकर लालायित हो जाता। एक बार उसने आगे बढ़कर सुगना की चूँचियों को धरने की कोशिश की पर सुगना ने उसे वापस खिलौने में उलझा दिया। अपनी इस अवस्था में वह सूरज को स्तनपान नहीं कराना चाहती थी।

सुगना की चुदाई जारी थी। सुगना की बुर झड़ने को तैयार हो रही थी। एक पल के लिए सुगना अपने गर्भधारण को भूल अपनी उत्तेजना का आनंद लेने लगी उसकी गोरी और गुदांज गाँड़ फूलने पिचकने लगी और यही वह पल था जब सरयू सिह ने सुगना की गांड के उस अद्भुत आकर्षण को देख लिया।

केलाइडिस्कोप की तरह सुगना की सुंदर गांड तरह तरह के रूप दिखा रही थी और सरयू सिह को अनजाने में ही आमंत्रित कर रही थी।

आखिरकार उन्होंने सुगना के नितंबों से उन्होंने अपना हाथ हटाया और झोले की तरफ बढ़ कर आने झोले में रखा मक्खन का डिब्बा निकालने की कोशिश करने लगे। उनका लण्ड सुगना की बुर से छटक कर बाहर आ गया।

लण्ड की थिरकन देखने लायक थी। सुगना के प्रेम रस से सना लण्ड चमक रहा था। मदन रस की बूंदें एक धागे की तरह लटक रही थी और मोतियों की तरह चमक रही थीं ।


सुगना ने मुड़कर उस लण्ड को देखा और अपने बाबूजी से पूछा

"का भइल?"

सरयू सिंह के हाथ में डिब्बे को देखकर सुगना ने दोबारा प्रश्न किया।

"ई का ह?"


सरयू सिंह ने कुछ कहा नहीं और वापस उसकी बुर में अपना लण्ड डाल दिया सुगना की उत्तेजना ने उसके प्रश्न को वही दबा दिया।

सुगना एक बार फिर आनंद में झूला झूलने लगी।सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों को मक्खन से सराबोर कर लिया और सुगना की फूलती पिचकती गाँड़ को सहलाने लगे।


उंगलियों का स्पर्श पाकर सुगना को अपने वादे का ध्यान आ गया वह जान चुकी थी कि अब बचना मुश्किल है। वह अपना वादा कतई नहीं तोड़ना चाहती थी परंतु उसके मन में यही इच्छा थी के पहले बाबूजी उसकी बुर में ही स्खलित कर उसे गर्भवती करें।

सुगना ने अपनी डॉगी स्टाइल को और उत्तेजक बना दिया कमर के लचीलापन को पराकाष्ठा तक ले जाकर उसने अपनी दोनों चुचियों को उभार दिया और सरयू सिह की हथेली को जानबूझकर अपनी चुचियों पर ले आयी। सरयू सिह को सुगना का यह आमंत्रण बेहद पसंद आया उन्होंने उसकी चूँची थाम ली परंतु उन्होंने अपने एक हाथ को सुगना की गांड पर ही कायम रखा। सुगना सरयू सिंह को उत्तेजित करती हुयी बोली..

"बाबू जी आज जैसन सुख त कभी ना मिलल रहे"

सरयू सिंह उसे और तेजी चोदने लगे…


"हां बाबू जी असहीं ...धीरे से हां हां हां हां …..आह आआआआआआआईईई आई मा……" सुगना की आवाज कामूक थी। कुछ शब्द तो नियति सुन पा रही थी कुछ दांतो के बीच फंसे होंठो में अटक जा रहे थे परंतु जिस नियति ने सुगना में उत्तेजना भरी थी वह उसका मर्म बखूबी समझ रही थी।

सुगना सरयू सिंह को बेहद उत्तेजित कर उनको स्खलित कराना चाहती थी। उसने सारे जतन किये परंतु वह उन्हें स्खलित न कर पायी। सरयू सिह की उंगलियां उसकी गांड में अब अंदर तक जाने लगी।

उत्तेजना में अपनी गांड के अंदर अपने बाबूजी की उंगलियों को महसूस करना उसे भी अच्छा लग रहा था। वह और भी बेहद उत्तेजित हो गई। वह थरथर कांप रही थी। ऐसी उत्तेजना उसने जीवन में पहले कभी महसूस नहीं की थी।

गाँड़ के अंदर घूम रही सरयू सिंह की तर्जनी और मध्यमा उनके अपने ही लण्ड को पकड़ने की कोशिश करती। बीच का पतली दीवार पर हो रहा यह दोहरा घर्षण सुगना को एक अलग एहसास दिला रहा था। जब सरयू सिंह अपना लण्ड अंदर ठेलते वह अपनी दोनों उंगलियों से उसे महसूस करते और सुगना सिहर उठती। मक्खन लगे होने की वजह से सुगना को सुखद एहसास हो रहा था।

"बाबूजी राउर उंगली में भी सुख बा" सुगना के मुंह से बरबस ही निकल गया।


सरयू सिंह बेहद प्रसन्न थे। वह सुनना को लगातार चोद रहे थे। चूचियो को मीस रही हथेली को उन्होंने उठाकर सुगना के चेहरे पर ले आया और अपने अंगूठे को उसके मुंह में दे दिया। सुगना उनके अंगूठे को चूसने और चाटने लगी। अपने लण्ड तथा दोनों हांथो से वह सुगना के सारे छेद का आनंद ले भी रहे थे और यथासंभव सुगना को दे भी रहे थे।

पांच सितारा होटल का एयर कंडीशनर भी सुगना और सरयू सिह के पसीने को न रोक पाया। इस अद्भुत चुदाई से सरयू सिंह पसीने पसीने हो चले थे और सुगना भी।

माथे का दाग एक बार फिर अपने विकराल रूप में आ चुका था ऐसा लग रहा था जैसे उस दाग पर मौजूद आवरण फटने वाला था। परंतु जैसे-जैसे स्खलन का समय नजदीक आ रहा था सुगना और सरयू सिंह की आत्मा और भावनाएं एकाकार हो रही थीं।

नियति स्वयं इस मधुर मिलन में सुगना को विजयी और अपने गर्भ में सरयू सिह का वीर्य निचोड़ते देखना चाह राहु थी पर सुगना हार गयी। सरयू सिंह के त्रिकोणीय हमले ने सुगना को स्खलित होने पर मजबूर कर दिया। सरयू सिह के वीर्य की प्रतीक्षा में उसकी बुर और गर्भाशय ने अपना मुंह खोल दिया। उसकी बुर प्रेम रस की वर्षा करती रही पर सरयू सिंह का लण्ड न पसीजा वह स्खलन को तैयार न था।


अंततः सुगना निढाल हो गयी। कमर का जो कसाव उसने सरयू सिंह को उत्तेजित करने के लिए बनाया था वो ढीला पड़ गया।

सरयू सिंह ने सुगना को चुमते हुए कहा

"सुनना बाबू ठीक लागल हा नु"

"राउरो हो जाइत तो बहुत बढ़िया लागीत"

"अरे तोहार वादा भी तो पूरा करे के बा…"

सरयू सिंह का लण्ड अभी भी थिरक रहा था। सुगना जान चुकी थी की सरयू सिह बिना उसके दूसरे छेद का उद्घाटन किए उसे छोड़ने वाले नहीं थे। सुगना स्खलित हो चुकी थी। उसे पता अब सिर्फ और सिर्फ उसे सरयू सिंह को ही सुख देना था। अपनी छोटी सी गाँड़ में इतने बड़े मुसल को लेकर निश्चय ही उसे कुछ सुख नहीं मिलने वाला था।

सुगना ने मन ही मन सोचा वो उठी और सरयू सिंह के लण्ड को अपने हाथों में लेकर और उत्तेजित करने लगी। सरयू सिंह को तो जैसे शिलाजीत नहीं संजीवनी बूटी मिल चुकी थी। सुगना अपने हाथों से उस लण्ड को सहलाती और मसलती रही परंतु सरयू सिंह और उत्तेजित होते रहे..

उनका ध्यान सुगना की जांघों के बीच गया सूखे हुए वीर्य को देखकर एक बार वह फिर भड़क उठे। उन्होंने सुनना के बालों को पकड़ा और उसके चेहरे को अपने लण्ड की तरफ ले आए। निश्चय ही उन्होंने यह कार्य क्रोध में किया था परंतु सुगना ने इस आपदा को अवसर में बदल लिया।। उसने अपने बापू जी के लण्ड के सुपाड़े को मुंह में भर कर और उत्तेजित करने की कोशिश करने लगी।

सुगना अब यह जान चुकी थी कि उसके बाबूजी का स्खलन उसकी बुर में कतई नहीं हो पाएगा पर उसे अब भी उम्मीद थी कि वह सरयू सिह को पहले ही स्खलित करा लेगी और वीर्य को लण्ड से न सही अपनी उंगलियों से ही अपनी बूर् में पहुंचा देगी। यदि वह सफल न भी हुई तो उसका यह प्रयास व्यर्थ न जाएगा और वह उसे अपने गाड़ में उसे शीघ्र स्खलित करा पाएगी ताकि उसे कम से कम कष्ट से गुजरना पड़े।

सुगना अपने बाबूजी का लण्ड चूसने लगी वह अपनी हथेलियों से उनके अंडकोष को भी सहलाती और उसमें उबल रहे वीर्य को बाहर निकालने का प्रयास करती।


सरयू सिंह की उत्तेजना धीरे-धीरे बलवान होने लगी उन्होंने सुनना के सर को हटाया और अपनी मासूम बहू को होठों को एक बार चुमकर उसे वापस डॉगी स्टाइल में ला दिया। गांड पर लगा हुआ मक्खन अब भी कायम थी। सरयू सिंह ने सुगना की पीठ को चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे दो उसके कानों तक पहुंच गए । लण्ड नितंबो के बीच अपनी जगह तलाशने लगा। सुगना ने अपने नितम्ब ऊंचे किये और लण्ड को फिर अपनी चुदी हुई बूर् में लेने की कोशिश की। पर आज लंड कुछ ज्यादा ही तना था। सरयू सिह ने एक हाथ से सुगना के होठों पर उंगलीया फिराते हुए उन्होंने दूसरे हाथ से अपने लण्ड को सुगना की गांड के छेद पर रखा और धीरे धीरे अपना दबाव बनाने लगे।

"सुगना तू बहुत सुंदर बाड़ू और ई तहर दूसर द्वार भी…"


जैसे ही लण्ड के सुपारे ने गांड के छेद को फैलाया सरयू सिंह ने सुगना के होठों को अपनी मजबूत हथेलियों से दबा लिया और एक ही झटके में अपने लण्ड को पेल दिया।

सुगना दर्द से बिलबिला उठी।। मुंह बंद होने की वजह से उसकी चीख बाहर ना आ पायी पर आखों से आंसू छलक उठे।


आज उसके मुंह से आह की जगह कराह निकली थी ..

"बाबूजी साँचो ...दुखाता…." सुगना की यह दर्द भरी कराह सिर्फ नियति ने ही सुनी। सरयू सिह की हथेलियों ने सुगना का मुंह बंद कर रखा था।

सुगना ने अपने बाबूजी की खुशी के लिए उस दर्द को सह लिया। लण्ड एक झटके में पूरी तरह अंदर ना जा पाया। सुगना को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी गांड में कोई गर्म सलाख घुसा दी गई हो। सुगना एकदम शांत हो गयी। सरयू सिंह ने सुगना को शांत देखकर अपने हाथ हटाये और उसके कानों को एक बार फिर चूमते हुए बोले

"सुगना बाबू हो गइल अब ना दुखायी"

सरयू सिंह सुगना को बेहद प्यार करते थे और उसके शरीर की हर हरकत को महसूस कर लेते थे।


सुगना मजबूर थी वह चुपचाप सरयू सिह के अगले कदम का इंतजार करने लगी। सरयू सिंह ने अपने लण्ड को बाहर निकाला और धीरे-धीरे उसकी गांड में आगे पीछे करने लगे। सुगना को इस क्रीड़ा में कतई आनंद नहीं आ रहा था वह सिर्फ अपने बाबू जी को खुश करने के लिए उनका उत्साहवर्धन कर रही थी। उसे अब यह ज्ञात हो चुका था कि इस अपवित्र द्वार में घुसे हुए लण्ड से निकले हुए वीर्य को वह वापस अपनी बुर में कतई नहीं ले आएगी। वह अपने मन में यही योजना बनाने लगी कि अपने बाबू जी को कुछ देर आराम करने देकर वह एक बार उनके साथ पुनः संभोग करेगी और उनके वीर्य को अपने गर्भ में लेकर अपनी पुत्री का सृजन करेगी।

अपने विचारों में खोई हुई सुगना शांत थी और सरयू सिंह उसकी गांड लगातार मारे जा रहे थे उत्तेजना का यह दौर सरयू सिह के लिए बेहद कठिन था। सुगना की कसी हुई गांड में उनका लण्ड ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे किसी ने अंगूठे और तर्जनी से किसी ने गोल आकृति बना दी थी जी बेहद कसी हुयी थी। उनके लण्ड को काफी मशक्कत करनी पड़ रही थी...पर यही उनका चरमसुख था जिसके लिए वह कई वर्षों से इंतजार कर रहे थे। उनकी यह इच्छा को कजरी ने भी पूरा न किया था जिसके साथ उन्हीने न जाने कितने वर्षों तक काम सुख का आंनद लिया था। पर उनके सारे अरमान सुगना ने हो पूरे किए थे।

सरयू सिह अपना लण्ड पूरी तरह बाहर निकालते और फिर उसे थोड़ा आगे पीछे कर पीछे ताकत से पूरा जड़ तक अंदर डाल देते।


सूरज अब खिलौनों से उब चुका था वह अपनी मां के पास आकर कभी उसके चेहरे को छूता कभी चूचियो को जैसे वह सुगना को सांत्वना देने की कोशिश कर रहा हो। वह अपनी मां को सामने की तरफ खींच कर उसकी चुचियों से दूध पीना चाहता था परंतु सरयू सिह अभी सुगना को छोड़ने को तैयार ना थे। सरयू सिंह का चेहरा लाल हो चुका था।

माथे पर दाग पूरी तरह फूलकर फटने को तैयार था। जैसे-जैसे उनके लण्ड की रफ्तार बढ़ती गई उनकी धड़कनें तेज होती गयीं …..

और एक बार फिर वही हुआ जिसका सुगना को डर था। अपने नितंबों पर सुगना को सरयुसिंह की पकड़ ढीली लगने लगी। लण्ड की रफ्तार अचानक ही कम हो गई। लण्ड फिसल कर उसे बाहर जाता महसूस हुआ। सुबह पीछे पलटी। सरयू सिंह के चेहरे पर वासना की जगह दर्द था। वह असहज थे देखते हो देखते सरयू सिह कटे हुए वृक्ष की तरह धड़ाम से पांच सितारा होटल के कमरे की कारपेट पर गिर पड़े।

बाबूजी... बाबूजी ..चीखती हुयी सुगना उठ खड़ी हुई। वह कर उनके पास गई और उन्हें हिलाकर जगाने की कोशिश की।

नंगी सुगना अपने बाबूजी को जगाने के लिए भरपूर प्रयास कर रही थी। वह भागकर का एक टेबल पर रखे पानी के बोतल से पानी लाकर उनके चेहरे पर छींटे मारकर उन्हें जगाने की कोशिश की पर असफल रही।

सुगना थर थर कांप रही थी। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। इस अवस्था में वह किसी से कैसे मदद मांगे यह बात उसे समझ ना आ रही थी।

सूरज अब रोने लगा था। सरयू सिंह के माथे के दाग से रक्त का रिसाव होने लगा था। शायद उनके पाप का घड़ा भर चुका था। सुगना बेहद डर गई उसने एन केन प्रकारेण सरयू सिंह को घसीट कर बाथरूम के अंदर पहुंचाया। उनके लण्ड को साफ किया परंतु जाने यह कैसा विलक्षण संयोग था वह उनके लण्ड का तनाव न कम कर पाई।

एक पल के लिए उसे मन में आया कि सरयू सिंह की यह अवस्था होटल स्टाफ की नजरों में आएगी और वह बेइज्जत महसूस करेंगे परंतु इस अवस्था में उनका स्खलन करा पाना असंभव था।


सुगना ने उन्हें उसी स्थिति में छोड़ दिया उनके सारे कपड़े बाथरूम में लाकर डाल दिए और आनन-फानन में अपनी गांड पोछ कर वापस कमरे में आई और अपने कपड़े पहनकर होटल की लॉबी में जाकर मदद की गुहार लगाने लगी।

थोड़ी ही देर में होटल स्टाफ ने आकर सरयू सिंह की मदद की। सरयू सिह की नग्न अवस्था और खड़े लण्ड को देखकर होटल का स्टाफ आपस मे कानाफूसीं कर रहा था..

"साला बुड्ढा जवान माल देखकर मुठ मार रहा होगा…"

"साले का हथियार तो वाकई कमाल है"

"चल भोसड़ी के उठा, लण्ड मत देख" उनके भारी शरीर को उठाते हुए पहले ने कहा..

सुगना सरयू सिह का झोला कंधे में टांगे और सूरज को गोद मे लिए सरयू सिंह को कमरे से बाहर जाते देख रही थी। उसकी आंखें नाम थी और मन ही मन वह अपने इष्ट देव से उनकी कुशलता की कामना कर रही थी।


कुछ ही देर बाद सरयू सिंह होटल की एंबुलेंस में लेटे हुए शांत शरीर पर तना लण्ड लिए सुगना और सूरज के साथ हॉस्पिटल की तरफ रवाना हो गए….

हॉस्पिटल पहुंचकर सुगना ने एंबुलेंस के ड्राइवर से अनुरोध किया कि वह विद्यानंद जी के पंडाल में जाकर सरयू सिंह के बारे में उसके परिवार को सूचना दे दे।

स्ट्रेचर पर सरयू सिह को आईसीयू में ले जाया जा रहा था। उनके धोती में उभार अब भी कायम था। लण्ड अपना तनाव छोड़ने को तैयार न था परंतु सरयू सिह हॉस्पिटल के स्ट्रेचर पर लेटे निस्तेज दिखाई पड़ रहे थे। उनका दाग विकराल रूप में आ गया था और उससे रक्त का रिसाव जारी था। सुगना बेहद डरी और घबराई हुई थी ।


डॉक्टरों की टीम ने सरयू सिंह का चेकअप प्रारंभ कर दिया कुछ ही देर में डॉक्टर का असिस्टेंट बाहर आया और बोला कुछ रक्त की आवश्यकता है आप अपने संबंधियों को बुलाकर उसका इंतजाम कीजिए सुगना ने कहा आप मेरा रक्त ले सकते हैं। कंपाउंडर ने सुगना को ऊपर से नीचे तक देखा सुगना पूरी तरह स्वस्थ थी उसने सिस्टर को बुलाया और सुगना उसके साथ रक्त देने चल पड़ी।

जब तक कजरी और परिवार के बाकी सदस्य हॉस्पिटल आते तब तक सुगना का रक्त उसके बाबूजी को चढ़ाया जा चुका था। विशेष दवाइयों के प्रयोग तथा सुगना के रक्त से सरयू सिंह होश में आ चुके थे।

होश में आते ही डॉक्टर ने सरयू सिंह से कहा… आपने जिन कामोत्तेजक दवाइयों का सेवन किया था वह आपको नहीं करना चाहिए … मेरी बात आप शायद समझ रहे हैं। डॉक्टर ने सरयू सिंह के जननांगों की तरफ इशारा किया। सरयू सिह शर्म से आंखें झुकाए डॉक्टर की बात पूरी समझ तरह समझ चुके थे पर उनके होंठ सिले हुए थे। डॉक्टर ने फिर कहा..

आज आपकी जान आपकी बेटी ने बचा ली…

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...

"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….

शेष अगले भाग में….
Niyati ka khel bi kamal hai
Sughna hi saryu singh ki beti
Nikli
Adhbut update
 

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HAPPY DEEPAWALI

भाग 60

मेरी बेटी? सरयू सिंह ने डॉक्टर को प्रश्नवाचक निगाहों से देखा...


"हां जी हां…. हमें आप को बचाने के लिए आपके ही पुत्र या पुत्री के रक्त की आवश्यकता थी। यह ऊपर वाले कि कृपा थी की हमें आपकी बेटी का रक्त मिल गया और हम आपकी जान बचा सके..

सरयू सिह जब तक अपना दूसरा प्रश्न करते तब तक दरवाजा खुला सुगना नर्स के साथ अंदर आ रही थी। ..

सरयू सिंह के दिमाग में विचारों की घुड़दौड़ जारी थी और धड़कने तेज... दिमाग डॉक्टर द्वारा कही गई बात को मानने को तैयार न था….


अब आगे..


डॉक्टर ने विदा ली और सुगना की तरफ मुखातिब होते हुए बोला

"अपने बाबूजी का ख्याल रखना और अपना भी". डॉक्टर की बात सुनकर सरयू सिंह अचंभे में थे। उन्हें डॉक्टर की बात पर कतई विश्वास नहीं हो रहा था वह बार-बार यही सोच रहे थे कि शायद सुगना की उम्र की वजह से डॉक्टर ने उसे उनकी बेटी समझा होगा। परंतु उनके मन मे प्रश्न आ चुका था।

दोपहर हो चुकी थी सरयू सिंह हॉस्पिटल के बेड पर पड़े अपने भरे पूरे परिवार को देख रहे थे। डॉक्टर की बात उनके दिमाग में अभी भी गूंज रही थी क्या सुगना उनकी पुत्री थी?

अपने भरे पूरे परिवार के सामने न तो वो डॉक्टर द्वारा कही गई बात की तस्दीक कर सकते थे और न हीं उस पर कोई प्रश्न उठा कर उसे सब की जानकारी मे ला सकते थे। तब यह बातचीत गोपनीय न रहती यह उनके परिवार और लिए अनुचित होता और शायद पदमा के लिए भी.

कजरी, पदमा और सुगना सरयू सिंह की तीनों प्रेमिकाऐं उनके अद्भुत लण्ड का सुख ले चुकी थी पर जितना आनंद उन्होंने सुगना के साथ पाया था वह शायद अनोखा और निराला था।

पर आज डॉक्टर द्वारा कही गई बात को याद कर अब उनका हृदय व्यतीत था। आंनद कष्ट और बेचैनी में बदल चुका था।अपनी ही पुत्री के साथ किये गए व्यभिचार को सोच कर उनका हृदय विह्वल था।


एकांत पाकर उन्होंने पदमा से पूछा…

"एक बात पूछी..?"

"का बात बा?"

"उ कौन महीना रहे जब तू पानी में डूबत रहलू और हम तहरा के बचवले रहनी?" सरयू सिंह ने पदमा से मर्यादा में रहकर उसकी चुदाई के दिन के बारे में जानकारी लेने की कोशिश की।

पद्मा ने अपने दिमाग पर जोर दिया और होली के बाद आई अमावस के दिन की तस्दीक कर दी। पद्मा को आज भी वह अनोखी चुदाई याद थी। सरयू सिंह का दिमाग तेजी से घूमने लगा उन्होंने अपनी उंगलियों पर गड़ना प्रारंभ की और सुगना के जन्मदिन से उसका मिलान करने लगे। डॉक्टर की बात उन्हें सही प्रतीत होने लगी। …...क्यों उनका ध्यान इस बात की तरफ आज तक कभी नहीं गया था?

अब सरयू सिंह को पूरी तरह यकीन आ चुका था कि सुगना उनकी ही पुत्री थी। पढ़े लिखे होने के कारण वह डॉक्टर की बात को नजरअंदाज नहीं कर रहे थे परंतु उन्हें यकीन ही नहीं हो रहा था कि पदमा के साथ एक बार किए गए संभोग ने हीं उसे गर्भवती कर दिया था। यह बात यकीन के काबिल ना थी परंतु नियति ने सुगना का सृजन ही इसी निमित्त किया था….

मासूम सुगना सरयू सिंह के पैरों में तेल लगा रही थी सरयू सिंह उससे नजरे न मिला पा रहे थे। उनके दिल ने इतनी पीड़ा शायद कभी ना सही थी। अपनी ही पुत्री के साथ कामवासना का जो खेल उन्होंने खेला था आज वह उसे याद कर कर अपनी पीड़ा को और बढ़ा रहे थे। वह सुगना को देख न रहे थे परंतु उनके मन मस्तिष्क में सुगना नाच रही थी..

बरबस ही उन्हें सुगना के कामांगो और नग्न शरीर का ध्यान आता उनकी आत्मा उन्हें और कचोटने लगती। सरयू सिंह को अपना जीवन बोझ जैसा प्रतीत होने लगा।

उधर बनारस महोत्सव समाप्त हो चुका था। विद्यानंद का पांडाल उखड़ रहा था इधर सरयू सिंह की उम्मीदें। वह अपने आने वाले जीवन से ना उम्मीद हो चुके थे कामवासना उनके जीवन का प्रधान अंग थी और उसे पुष्पित पल्लवित करने वाली सुगना अचानक सरयू सिंह ने अविवाहित रहने के बावजूद कामवासना का ऐसा आनंद लिया था जो उस वक्त में विरले लोगों को ही नसीब होता था और तो और पिछले 3-4 वर्षों में सुगना ने तो उनके जीवन में नई खुशियां भर दी थीं। अपनी प्रौढ़ावस्था में सुगना जैसी सुकुमारी का साथ पाकर वह धन्य हो गए थे। सुगना ने उनकी वासना को तृप्त न किया अपितु आग को और भड़का दिया और वह सुगना के दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे।


रतन अपने परिवार का सारा सामान समेटकर मनोरमा द्वारा दी गई गाड़ी में रख कर हॉस्पिटल के बाहर आ चुका था और राजेश इन घटनाओं से अनजान बीती रात की सुनहरी यादे लिए अपनी ड्यूटी पर निकल चुका था।

लाली तक खबर सोनू ने पहुंचाई और उसे लेकर हॉस्पिटल आ गया था। लाली को भी इस बात की खबर हो गई कि सरयू चाचा होटल से सीधा हॉस्पिटल में आए थे। परंतु चाचा जी सुगना को लेकर होटल में क्यों गए थे? लाली का दिमाग इस प्रश्न का उत्तर स्वयं न खोज पा रहा था उसने सुगना के सामने कई प्रश्न रखे पर सुगना निरुत्तर थी।

शाम होते होते सरयू सिंह को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया। उनकी जांच रिपोर्ट और सुगना के खून जांच की रिपोर्ट उनको दे दी गई सरयू सिंह की मन में आया कि वह यह रिपोर्ट फाड़ दें ताकि आने वाले समय में भी यह बात किसी को पता ना चले परंतु वह हॉस्पिटल से आज ही डिस्चार्ज हुए थे रिपोर्ट की आवश्यकता कभी भी पढ़ सकती थी उन्होंने सुगना से कहा

" इकरा के संभाल के रखी ह आगे काम करी"

नियति ने सरयू सिंह का यह उदगार सुन लिया और उसे अपनी कथा में एक नया मोड़ आता दिखाई पड़ गया।

सुगना ने लाल झोले में रखी हुई उस रिपोर्ट को सहेज कर रख लिया। यह लाल झोला बेहद आकर्षक था। बरबस ही ध्यान खींचने वाला। झोले में दफन सुगना और सरयू सिह के रिश्ते कब उजागर होंगे और कौन करेगा यह तो वक्त ही बताएगा परंतु अब हॉस्पिटल की लॉबी में गहमागहमी बढ़ गई थी।

"बाबू जी …..तनी धीरे से…". सुगना की चिर परिचित आवाज एक बार फिर सुनाई दे पर इसमें कामवासना कतई न थी वह अपने बाबू जी को सावधान कर रही थी जो इस वक्त हॉस्पिटल की सीढ़ियां उतर रहे थे।


माथे पर दाग से अब भी रक्तस्राव हो रहा था जिसे डॉक्टरों ने पट्टी और मलहम लगाकर रोक दिया था। पर वह अब साफ साफ नजर आ रहा था..

" सोनू ने पूछा ज्यादा चोट लग गई रहल हा का?


का भईल रहे ? चक्कर आ गईल रहे का""

सरयू सिंह क्या जवाब देते उन्होंने कोई उत्तर न दिया वह शर्मसार थे.. शाम होते होते सरयू सिंह अपने परिवार के साथ सलेमपुर गए।

पदमा भी अपनी दोनों पुत्रियों सोनी और मोनी के साथ सीतापुर पहुंच चुकी थी। उन्हें छोड़ने गया सोनू अब भी सोनी के आकर्षण का केंद्र था।। जब जब वह सोनू को देखती उसे लाली के हाल में बिस्तर पर गिरा वह चिपचिपा द्रव्य याद आ जाता।। क्या सोनू भैया भी अपने हाथों से अपने उसको हिलाते होंगे? क्या वह भी लड़कियों के बारे में सोचते होंगे? सोनी को अपनी सोच पर शर्म आ रही थी ...परंतु जितना वह सोचती उसकी सोच का दायरा बढ़ता जाता।

शर्म और हया का आवरण धीरे-धीरे अपनी मर्यादा तोड़ता है सोनी अपनी सोच में धीरे-धीरे सोनू को और नग्न करती गई जितना ही वह उसके बारे में सोचती सोनू उसे उतना खुलकर दिखाई देता। सोनी शर्म हया त्याग कर पुरुषों के लण्ड की कल्पना करने लगी। विकास और सोनू दोनों ही उसकी कल्पना में आने लगे।

सोनी का युवा शरीर पुरुष संसर्ग का थोड़ा सुख पा चुका था परंतु जांघों के बीच उठ रही हलचल अभी पूरी तरह शांत ना हुई थी विकास की उंगलियों ने उस आग को और दहका दिया था।

बनारस महोत्सव बीत चुका था। कहानी के तीन अलग अलग प्रमुख पात्र लाली, मनोरमा और सुगना के गर्भ में आ चुके थे।

सरयू सिंह अपने दालान की सैया पर पड़े अपने जीवन को याद कर रहे थे। यह जानने के पश्चात की सुगना उनकी अपनी ही पुत्री है वह दर्द में थे।

अपनी ही पुत्री के साथ पिछले चार-पांच वर्षो से उन्होंने यहां वासना का जो खेल खेला था वह अब उनके गले की फांस बन चुका था। अपनी ही पुत्री को लड्डू में गर्भनिरोधक दवाइयां मिलाकर खिलाना तथा उसकी मासूम चाहतों के एवज में उसे कई दिनों बल्कि कई वर्षों तक लगातार चोदना….. ।


सुगना के साथ बिताई सुखद यादें अब कष्ट का कारण बन गई थी। कैसे उन्होंने सुगना को दिखा दिखाकर बछिया की चूची मीसी थी? कैसे होटल के कमरे में उन्होंने सुगना की चुचियों पर जानबूझकर टॉर्च मारा था? और कैसे उसकी जांघों के बीच छुपे मालपुए के दर्शन किए थे?

वह नियति के इशारे को न समझ पाए थे जब उन्होंने पहली बार सुगना की बूर् का दर्शन किया था तब भी उनके इष्टदेव द्वारा भेजे गए कीड़े ने उनके माथे पर दाग दे दिया था। यह उनके द्वारा किए जा रहे पाप को रोकने का एक इशारा था परंतु कुंवारी सुगना की अद्भुत चूत के आकर्षण में खोए सरयू सिंह उस इशारे को न समझ पाए थे।

यह वही कीड़ा था जिसने सरयुसिंह को उसकी माँ पद्मा के साथ संभोग करते देखा था तथा सरयू सिह के अंडकोषों के पास काट कर उन्हें पराई शादी शुदा स्त्री के गर्भ में वीर्य भरने से रोकने की कोशिश की थी।

परंतु निष्ठुर नियति सरयू सिंह की वासना पर लगाम न लगा सकी। वासना में अंधे सरयू सिह को रोक पाने में छोटे से कीड़े की कोशिश कामयाब न हो पायी पर उसने दाग दे दिया...जो सरयू सिह की वासना के अनुपात में बढ़ता रहा और अंततः फूट गया।

सारा घटनाक्रम चाहे वह दीपावली की रात या सुगना का कौमार्य भेदन का या अपनी भाभी कजरी के साथ मिलकर सुगना से त्रिकोणीय संभोग …..सारी सुनहरी यादें अब उनकी पीड़ा का कारण बन चुकी थी।


बनारस के पांच सितारा होटल में जो कृत्य किया था वह शायद उनके इष्ट देव को भी रास ना आया था। अपनी पुत्री के साथ …..हे…. भगवान उन्होंने क्या कर दिया था...

सरयू सिंह का किसी कार्य में मन न लगता । वह सुगना से नजरे ना मिला पाते।


सुगना हमेशा की तरह ही उन्हें वैसा ही प्यार व सेवा करती परंतु अब उसमें कामोत्तेजना की भावना न थी। वह जानती थी यह सरयू सिंह के लिए घातक होता। अपने बाबू जी को इस अवस्था में देखकर उसकी कामोत्तेजना भी कुछ दिनों के लिए शांत हो गई।

सुगना अब भी परेशान थी सरयू सिंह ने उसके साथ संभोग तो अवश्य किया था परंतु वीर्य स्खलन न कर पाए थे। राजेश के साथ बिताई उस रात से सुगना को कोई विशेष उम्मीद न थी वह जानती थी कि उसकी योनि में राजेश के वीर्य का कुछ अंश अवश्य गया था परंतु क्या वह उससे गर्भवती हो पाएगी? यह प्रश्न उसके मन में अब भी कायम था। सरयू सिंह को बिस्तर पर पड़ा देख सुगना ने अपने दिल पर पत्थर रखकर आगे उनसे संभोग करने का विचार कुछ समय के लिए त्याग दिया था।

वैसे भी बनारस महोत्सव बीत चुका था उसके गर्भ में यदि उसकी पुत्री का सृजन होना था तो हो चुका होगा। अन्यथा अब उसकी कोई उपयोगिता भी न रह गई थी। सुगना परेशान थी और मन ही मन अपने इष्ट देव से राजेश के वीर्य से ही सही गर्भधारण के लिए प्रार्थना कर रही थी। उसे अपने आने वाले मासिक धर्म के दिनों के बिना रजस्वला हुए बीतने का इंतजार था।

सरयू सिंह उसके अपने पिता थे। यह बात वह कतई न जानती थी यदि वह जान जाती तो न जाने क्या करती। उसके सरयू सिह की पुत्री होने की खून जांच की रिपोर्ट अटारी पर झोले में दबी धूल चाट रही थी। सुगना उसे कब देखेगी और कब अपने हिस्से का पश्चाताप झलेगी या अभी भविष्य के गर्भ में था। अभी तो इस रिश्ते को जानने का दंश सिर्फ और सिर्फ सरयू सिंह झेल रहे थे।

दिन बीतते देर नहीं लगते। सुगना का भी इंतजार खत्म हुआ और मासिक धर्म के दिन बिना जांघों के बीच कपड़ा फसाये..बीत गए । उसकी इच्छा भगवान ने पूरी कर दी थी।

वह मन ही मन यह सोचती कि आखिरकार इस गर्भ में आए शिशु का पिता कौन है? उसके बाबू जी ने तो स्खलन पूर्ण न किया था परंतु सुगना यह बात भी जानती थी कि लण्ड से रिस रहा वीर्य भी गर्भवती करने के लिए काफी होता है।


जब जब वह अपने गर्भ के बारे में सोचती उसे ऐसा प्रतीत होता है जैसे यह राजेश के वीर्य से ही सृजित हुआ था। सुगना ने इस बात पर ज्यादा तवज्जो न दिया । विद्यानंद की कही बातों के अनुसार सिर्फ उसे सूरज की बहन का सृजन करना था और वह उसकी कोख में आ चुकी थी। यद्यपि नियत ने उस गर्भ का लिंग निर्धारण न किया था परंतु सुगना मन ही मन उस गर्भ को अपनी पुत्री मान चुकी थी। इसके इतर सोचकर वह और दिमागी मुसीबत में नहीं पड़ना चाहती थी।

सुगना पूरे तन मन धन से अपने गर्भ को सुरक्षित और स्वस्थ रखने का प्रयास करने लगी घर में खुशियां व्याप्त थी। कजरी ने पूछा…

"लागा ता कुंवर जी फिर भीतरिया डाल देले हां….जाय दे दु गो रहीहें सो ता अच्छा रही... भगवान एक और लइका दे देस तो दोनों साथ ही खेलहै सो"

"ना मा हमरा ता लईकी चाही…"

कजरी कभी भी लड़कियों की पक्षधर न थी उस जमाने में लड़कियों को लड़कों का दर्जा प्राप्त न था. कजरी ने कुछ कहा नहीं परंतु उसने अपने इष्ट देव से गुहार लगाई जो सुगना की इच्छाओं के विपरीत थी... नियति दोनों की प्रार्थनाएं सुन रही थी... परंतु इस कामगाथा के लिए जिस पात्र की आवश्यकता थी सुगना के गर्भ में उसका ही सृजन होना था। नियति सर्वशक्तिमान थी।

सुगना के गर्भवती होने की खबर सरयू सिंह तक भी पहुंची उन्हें एक बार फिर सुगना की जांघों के बीच लगे वीर्य की याद आ गई। वह यह बात भली-भांति जानते थे कि उस दौरान उन्होंने सुगना के साथ एक भी बार संभोग नहीं किया था और जब यह मौका उन्हें प्राप्त हुआ भी तब वह सुगना की दूसरे छेद के पीछे पड़ गए थे। उन्हें मन ही मन विश्वास हो चला था किस सुगना के गर्भ में आया बच्चा निश्चित ही राजेश का ही है। परंतु सुगना अब उनकी पुत्री थी वह इस बारे में ज्यादा नहीं सोचना चाहते थे ...उन्होंने यथास्थिति स्वीकार कर ली थी एक लिहाज से वह पाप से जन्मे एक और संतान के पिता होने से बच गए थे।

सुगना ने अपने जीवन में एक बार फिर वैसे ही खुश थी जैसे सूरज के गर्भधारण के समय थी। पर इस खुशी में आज वह अकेली थी। सुगना ने राजेश के घर पर बितायी रात के अनुभव को कजरी से भी छुपा लिया था।

उसने कजरी को गर्भ धारण का कारण उसने सरयू सिह से मुलाकात ही बताया था। यह गर्भधारण अकारण हुआ था। कजरी मन ही मन सोचती काश यह न हुआ होता तो कुछ ही दिनों में रतन और सुगना करीब आ जाते और तब यह और उचित होता। परंतु मन की सोच कार्य मे परणित हो शायद यह हमेशा संभव नही होता।

इस गर्भधारण ने सुगना अपनी ही नजरों में गिरने से बचा लिया था। यद्यपि सरयू सिह से सफल संभोग न हो पाने के बाद अपने गर्भधारण की आशंकाओं को सोचते हुए वह मन ही मन प्रण कर चुकी थी कि यदि सूरज को सामान्य करने के लिए उसे कालांतर में अपने ही पुत्र सूरज के साथ निकृष्ट संभोग को करना भी पड़ेगा तो वह अवश्य करेंगी।

निष्ठुर नियति मन की भावनाएं भी पढ़ लेती है। सुगना ने जो बात अपने दिमाग में लाइ थी वह नियति ने न सिर्फ पढ़ लिया अपितु उसे योजना में समाहित करने लगी। वैसे भी न चाहते हुए भी सुगना अब सूरज की माँ भी थी और बहन भी…..विद्यानंद ने सूरज की मुक्ति का जो मार्ग बताया था सुगना सूरज की माँ और बहन होने के कारण विशेष रूप से उपयुक्त थी...

उधर लाली भी गर्भवती हो चुकी थी अपने प्यारे मुंह बोले भाई सोनू से पूरी तन्मयता और आत्मीयता से चुदने के पश्चात लाली के गर्भ ने भी सोनू के वीर्य को उसी प्रकार आत्मसात कर लिया था जिस प्रकार लाली और राजेश ने सोनू को।


जिस गर्भ का सृजन पूरे प्यार और आत्मीयता से हुआ हो उसका मन और भावनाएं कितने कोमल होंगे इस बात का अंदाजा पाठक लगा सकते हैं।

इसी प्रकार एक पात्र का सृजन मनोरमा के गर्भ में भी हुआ था। सरयू सिंह जैसे बलिष्ठ और मजबूत व्यक्ति तथा मनोरमा जैसी काबिल और सुंदर युवती के गर्भ में आने वाला शिशु निश्चित ही अपने माता पिता के गुणों से सुसज्जित होता।


इस बनारस महोत्सव ने मनोरमा के जीवन में भी खुशियां भर दी थी उसके गर्भवती होने की खबर सुनकर सेकेरेट्री साहब फूले नहीं समा रहे थे वह दर-दर मंदिरों में सर पटकते हुए भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे थे। सच भी था शायद भगवान ने ही सरयू सिंह को मनोरमा के गर्भधारण के लिए भेज था।

मनोरमा मन ही मन अपने इष्ट देव को याद करती और कभी-कभी उसे सरयू सिंह देवस्वरूप दिखाई पड़ जाते। उसका सर जैसे अपने इष्ट देव के सामने झुकता वैसे ही सरयू सिंह के सामने। वह उनसे बेहद प्रभावित हो गई थी। उसे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास था कि या गर्भ उसे सरयू सिह से ही प्राप्त हुआ है अन्यथा जिस खेत को सेक्रेटरी साहब कई वर्षों से जोत और चोद रहे थे परंतु आज तक एक हरी दूब ने भी जन्म लिया था और आज पहली बार मनोरमा के उस खेत (गर्भ) में अद्भुत जीव का सृजन हो रहा था।

कहानी की तीनों वयस्क महिलाएं गर्भवती थी और अधेड़ अवस्था को प्राप्त कर चुकी सुगना की मां पदमा और सास कजरी दोनों काम सुख को तिलांजलि दे कर घरेलू जिम्मेदारियों में व्यस्त हो गई थी। कामुकता का जैसे अकाल पड़ गया था।


सारा दारोमदार सोनी पर आ गया था। सोनी की बहन मोनी अभी भी धर्म परायण थी और अपने शरीर में छुपे हुए खजाने से अनजान अपनी मां का हाथ बटाने में लगी रहती थी।

सोनी बिस्तर पर लेटी विकास के साथ बिताए पल याद कर रही थी उसकी हथेलियां स्तनों पर रेंग रही थी और जांघो के बीच फसा तकिया हिल रहा था…

जैसे जैसे तकिए की रगड़ जांघों के जोड़ पर बढ़ती गई सोनी की हथेलियां सूखी चुचियों को छोड़कर रसीली बुर की तरफ बढ़ गई। सोनी को अपनी रसीली बूर् को सहलाने में बेहद आनंद आता था..जैसे ही उंगलियों ने रसीले छेद पर छलके चिपचिपे रस को छुआ .तभी

"सोनी ए सोनी…." सोनू ने आवाज लगाई…


शेष अगले भाग में..
Awesome update
 

Lovely Anand

Love is life
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As usual again a beautiful update

very nice ... par Saryu Singh ko kuch to rahat deejiye ... sugna nahi to DM hi sahi ...

बहुत ही लाजवाब अपडेट

Supb update bro

Bhai sugna or sarko ka chudai krwao

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत अपडेट है भाई मजा आ गया
सुरज की तबियत खराब हो जाने से सरयूसिंग का रात में केएलपीडी हो गया लेकिन सुबह मौका हाथ लगते ही सुगना की जांघो के बीच सुखा हुवा वीर्य देख कर रात में राजेश के घर 🏠 क्या हुआ इसका अंदाज हो गया
वाह रे नियती क्या क्या खेल खेलती हैं आखिर राजेश और सुगना की चूदाई करवा ही दी
राजेश और सुगना की प्रथम चुदाई का वर्णन विस्तृत और धमाकेदार होना चाहिए तो मजा आ जायेगा

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणीय अपडेट है भाई मजा आ गया
अब धीरे धीरे नियती ने आगे क्या क्या छुपा रखा हैं ये सामने आ रहा है
बहुत सारे रहस्यों पर से परदा हट रहा है सुगना सरयू की बेटी हैं सुगना लाली और मनोरमा तीनो गर्भवती हो गई है
अगले रोमांचकारी रहस्यमयी और धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी

Bahut hi badhiya update bhai ji

बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया :adore:
सोनु ने अनजाने में ही सही सोनी की कुवारी चुत के रस की खुशबू को सुंघ लिया
विकास और सोनू चुदाई की यादों मे खो गये
सरयुसिंग को पश्चात्ताप हो ने लगा है उसके मन में पिता का प्यार उमड पडा है
सुगना के नये घर में रतन और सुगना क्या एक हो सकते है देखते हैं अगले अपडेट में क्या होता है

अति सुंदर और मनमोहक अपडेट है भाई
मजा आ गया :adore:
बनारस महोत्सव में सुगना राजेश के साथ संभोग न करके किस तरह से गर्भवती हुई यह राज भी खुल गया सुगना का गर्भवती होने में सरयूसिंग का भी योगदान हैं जिसने राजेश के वीर्य को सुगना के गर्भाशय में पहुंचाया

बहुत ही बेहतरीन और रमणीय अपडेट है
सुगना सरयूसिंग के साथ बिताये हुए कामक्षणों को याद करके रतन से मालिश करवाते हुऐ कामोउत्तेजित हो रही है लगता है रतन के साथ हमबिस्तर होने की संभावना बन रही है देखते हैं आगे क्या होता है नियति ने अपने गर्भ में क्या छुपा रखा है

Atti uttam update

Awesome update

लाजबाव एवम् कामुक अपडेट
आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद मैंने जो पाठक गण अभी भी चंद लाइनें लिखने में शर्म आ रहे हो वह भी हिम्मत जुटाकर अच्छा या बुरा कुछ भी लिखकर अपनी उपस्थिति का एहसास कराते रहें

एक बार पुनः धन्यवाद जुड़े रहें और आनंद लेते रहे
 
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