भाग 116
परंतु अब यह संभव न था नियति लाली और सुगना के बीच का प्यार देख रही थी… सोनू की दोनों बहने जाने अनजाने एक दूसरे को सोनू के लिए तैयार कर रही थीं
नियति सोनू के भाग्य पर रश्क कर रही थी। क्या होने वाला था? सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जौनपुर के अखाड़े में किसे कूदना था लाली को या सुगना को या दोनों बहने एक साथ मैदान में उतरने की तैयारी में थी…
उधर सोनू अपने हथियार को अपने हाथ में लिए उसे सब्र करने को समझा रहा था…और अपने इष्ट से लगातार मिन्नते कर रहा था …सुगना को पाने के लिए उसकी उसकी मांगे कुछ उचित थी कुछ अनुचित…. ईश्वर स्वयं उसकी अधीरता से तंग आ चुके थे और आखिरकार……
अब आगे….
दीपावली को बीते लगभग एक डेढ़ माह हो चुके थे क्रिसमस आने वाला था सोनी के नर्सिंग कॉलेज की भी छुट्टियां हो चुकी थी। और वह अपनी मां पदमा के पास जा रही थी मालती भी सोनी के साथ हो ली वह दोनों अपने ही गांव के किसी गरीबी परिवार के साथ सीतापुर के लिए निकल गए….
सुगना लाली की तैयारियों को अंतिम रूप देने में लगी हुई थी। सुगना लाली को सजाने संवारने पर जितनी मेहनत कर रही थी वह अलग था और बार-बार लाली को सुगना के व्यवहार के बारे में सोचने पर मजबूर करता था। सुगना हर हाल में सोनू और लाली का मिलन चाहती थी वह भी पूरे उमंग और जोश खरोश के साथ शायद सुगना के मन में यह बात घर कर गई थी कि नसबंदी के कारण सोनू के पुरुषत्व पर लगाया प्रश्नचिन्ह उसके और सोनू के उस मिलन के कारण ही उत्पन्न हुआ था जिसमें कुछ हद तक वह भी न सिर्फ भागीदार थी और जिम्मेदार भी थी।
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सोनू को आज सुबह-सुबह ही बनारस आना था और लाली को लेकर वापस जौनपुर चले जाना था शुक्रवार का दिन था। सुगना और लाली सोनू का इंतजार कर रही थी सुगना ने लाली की मदद से अपने भाई के लिए तरह-तरह के पकवान बनाए पर जो पकवान सोनू को सबसे ज्यादा पसंद था वह था रसीला मालपुआ…. लाली ने उसे सजाने संवारने में कोई कमी न की परंतु अब सोनू जिस मालपुए की तलाश में था वह उसकी बड़ी बहन सुगना अपनी जांघों के बीच लिए घूम रही थी रस से भरी हुई और अनोखे प्यार से लबरेज ..
यह एक संयोग ही था कि सुगना को आज सुबह-सुबह आस पड़ोस में एक विशेष पूजा में जाना था। शायद यह पूजा सुहागिनों की थी सुगना भी सज धज कर पूरी तरह तैयार थी। हाथों में मेहंदी पैरों में आलता, खनकती पाजेब और मदमस्त बदन। सजी-धजी सुगना कईयों के आह भरने का कारण बनती..थी और आज अपने पूरे शबाब में सज धज कर पूजा के लिए निकल चुकी थी। गले में लटकता हुआ सोनू का दिया मंगलसूत्र सुगना की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था।
लाली सोनू की आगमन का इंतजार कर रही थी जो जौनपुर से अपने मन में ढेरों उम्मीदें लिए निकल चुका था। पूरे रास्ते पर सोनू सुगना को जौनपुर लाने के लिए लिए तरह-तरह के पैंतरे सोचता परंतु सुगना को उसकी ईच्छा के बिना जौनपुर लाना कठिन था सोनू यह बात भली भांति जानता था कि सुगना दीदी लाली को जौनपुर इसीलिए भेज रही है ताकि वह दोनों एकांत में जी भर कर संभोग कर सकें और इस दौरान वह भला क्योंकर जौनपुर आना चाहेगी जब घर में खुला वासना का खुला खेल चल रहा हो।
अधीरता सफर को लंबा कर देती है सोनू जल्द से जल्द बनारस पहुंचना चाहता था परंतु रास्ते का ट्रैफिक सोनू के मार्ग में बाधा बन रहा था और वह व्यग्र होकर कभी गाड़ी के भीतर बैठे बैठे रोड पर बढ़ रहे ट्रैफिक को लेकर परेशान होता कभी अपने मन की भड़ास निकालने के लिए मन ही नहीं मन बुदबुदाता।
आखिरकार सोनू घर पहुंच गया…सुगना घर पर न थी परंतु लाली सोनू के लिए फलक फावड़े बिछाए इंतजार कर रही थी परंतु इससे पहले की सोनू लाली को अपनी आलिंगन में ले पाता लाली के छोटे बच्चे रघु और रीमा उसकी गोद में चढ़ गए बच्चों का अनुरोध सोनू टाल ना पाया उन्हें अपनी गोद में लेकर खिलाने लगा जैसे ही लाड प्यार का समय खत्म हुआ और बच्चे सोनू की लाई मिठाइयों और चॉकलेट में व्यस्त हुए सोनू ने लाली को अपनी बाहों में भर लिया परंतु निगाहें अब भी सुगना को ही खोज रही थी…
लाली ने छोटे सोनू के तनाव को बखूबी अपने पेट पर महसूस किया और अपनी हथेली से सोनू के ल** को पैंट के ऊपर से ही दबाते हुए बोली
"ई तो पहले से ही तैयार बा…"
उधर लाली ने सोनू के लंड को स्पर्श किया और उधर सोनू की बड़ी-बड़ी हथेलियां लाली के नितंबों को अपने आगोश में लेने के लिए प्रयासरत हो गई। लाली और सोनू के बीच दूरी तेजी से घट रही थी चूचियां सीने से सट रही थी और पेट से पेट। सोनू की हथेलियों ने लाली के लहंगे को धीरे-धीरे ऊपर करना शुरू कर दिया और लाली को अपनी नग्नता का एहसास होता गया जैसे ही लहंगा कमर पर आया लाली ने स्वयं अपने लहंगे को अपने दोनों हाथों से थाम लिया और सोनू को अपनी पेंटी उतारने की इजाजत दे दी लाली यह बात जानती थी कि अगले 1 हफ्ते तक उसे जौनपुर में सोनू से जी भर कर चुदना है परंतु फिर भी वह सोनू के इस तात्कालिक आग्रह को न टाल पाई। सोनू घुटनों के बल बैठ गया…और लाली की लाल पेंटी को नीचे सरकाते हुए घुटनों तक ले आया…या तो पेंटी छोटी थी या लाली के नितंबों का आकार कुछ बढ़ गया था पेंटी को नीचे लाने में सोनू को मशक्कत करनी पड़ी थी.. जैसे ही सोनू ने लाली की बुर् के होठों को चूमने के लिए अपना चेहरा उसकी जांघों के बीच सटाया…
तभी दरवाजे पर खटखट हुई…
लाली और सोनू ने एक दूसरे की तरफ देखा…. मिलन में रुकावट आ चुकी थी. लाली सोनू से अलग हुई उसने अपने कपड़े फटाफट ठीक किए और दरवाजा खोलने लगी आगंतुक सलेमपुर से आया एक व्यक्ति था जो सरयू सिंह और लाली के पिता हरिया का पड़ोसी था..
अब तक सोनू भी ऑल में आ चुका था उस व्यक्ति को देखकर सोनू ने कहा
"का हो का बात बा? बड़ा परेशान लगत बाड़ा"
"परेशानी के बातें बा हरिया चाचा और चाची मोटरसाइकिल से गिर गईल बा लोग हाथ गोड छिला गईल बा और चाची के त प्लास्टर भी लागल बा लाली दीदी के लिआवे आईल बानी…" आगंतुक ने एक ही सुर में अपनी सारी बात रख दी।
अपने माता पिता को लगी चोट और प्लास्टर की बात सुनकर लाली हिल गई कोई भी बेटी अपने मां-बाप पर आई इस विपदा से निश्चित ही परेशान हो जाती सो लाली भी हुई
…विषम परिस्थितियों में वासना विलुप्त हो जाती है. अपने माता पिता पर आई इस विपदा ने लाली के मन में फिलहाल जौनपुर जाने के ख्याल को एकदम से खारिज कर दिया.
लाली ने उस आगंतुक को बैठाया उसे पानी पिलाया और विस्तार से उस घटना की जानकारी ली. लाली के माता-पिता दोनों ठीक थे परंतु प्लास्टर की वजह से लाली की मां का चलना फिरना बंद हो गया था लाली का सलेमपुर जाना अनिवार्य हो गया था अपनी मां को नित्यकर्म कराना और उसकी सेवा करना लाली की प्राथमिकता थी वासना का खेल तो जीवन भर चलना था। उस लाली को क्या पता था कि वह जिस कार्य के लिए जा रही थी वह भी उतना ही महत्वपूर्ण था। वैसे भी सोनू के पुरुषत्व का सर्वाधिक लाभ अब तक लाली ने ही उठाया था।
लाली सलेमपुर जाने के लिए राजी हो गई और बोली बस भैया थोड़ा देर रुक जा हम अपन सामान ले ली…
"ए सोनू जाकर सुगना के बुला ले आवा चौबे जी के यहां पूजा में गईल बिया.."
सोनू तुरंत ही सुनना को बुलाने के लिए निकल पड़ा रास्ते भर सोनू सोच रहा था क्या विधाता ने उसका अनुरोध स्वीकार नहीं किया। वह तो चाहता था कि लाली और सुगना दोनों जौनपुर चलें। परंतु यहां स्थिति पलट चुकी थी सोनू के पुरुषत्व को बचाने के लिए जो सबसे सटीक हथियार था वह विफल हो चुका था सोनू उदास था। खुशियों के बीच आशंकाओं का अपना स्थान होता है ..…क्या सचमुच उसे इस महत्वपूर्ण समय में संभोग सुख प्राप्त नहीं होगा। क्या अगला हफ्ता सिर्फ और सिर्फ हस्तमैथुन के सहारे व्यतीत करना होगा।।
लाली के सलेमपुर जाने की बात लगभग तय हो गई थी। परंतु सुगना दीदी? क्या वह जौनपुर जाएंगी? क्या डॉक्टर ने जो नसीहत उन्हें दी है वह उसके पालन के लिए कुछ प्रयास करेंगी? अचानक सोनू के मन में एक सुखद ख्याल आया… हे भगवान क्या सच में उसकी मुराद पूरी होगी? जैसे-जैसे सोनू सोचता गया उसकी अधीरता बढ़ती गई और कदमों की चाल तेज होती गई। चौबे जी के घर पहुंच कर उसने छोटे बच्चे से सुनना को बाहर बुलवाया और वस्तुस्थिति की जानकारी दी।
सुगना की आंखें फटी रह गई। सुगना ने पूजा अधूरी छोड़ दी और सोनू के साथ चलती हुई वापस अपने घर आ गई.
जो होना था वह हो चुका था लाली का सलेमपुर जाना तय था…. लाली ने जो तैयारियां जौनपुर के लिए की थी उनका सलेमपुर में कोई उपयोग न था वह कामुकता से भरपूर नाइटीयां और अंतर्वस्त्र सलेमपुर में किस काम आते।
लाली अपने उन वस्त्रों को झोले से निकालकर वापस बिस्तर पर रखने लगी । सुगना परेशान हो रही थी अचानक सुनना के मन में ख्याल आया वह बाहर आई और बोली
" ए सोनू तू भी लाली के साथ ए सलेमपुर चलजो एक दो दिन ओहिजे रुक के देख लीहे "
सोनू सुगना के प्रस्ताव से अकबका गया उसे कोई उत्तर न सूझ रहा था उसने आखिरकार अपने मन में कुछ सोचा और बोला…
"हम लाली दीदी के लेकर सलेमपुर चल जाएब पर रुकब ना.. पहले ही हमार छुट्टी ज्यादा हो गईल बा अब छुट्टी मिले में दिक्कत होई" सोनू ने मन ही मन निश्चित ही कुछ फैसला ले लिया था इन परिस्थितियों में लाली से संभोग संभव न था सोनू को अब भी सुगना से कुछ उम्मीद अवश्य थी उसने अंतिम दांव खेल दिया था।
लाली ने भी सोनू की बात में हां में हां मिलाई और
"सोनू ठीक कहत बा …जायदे सोनू छोड़कर चल जाई"
अचानक आया दुख आपके मूल स्वभाव में जमीन आसमान का अंतर ला सकता है हमेशा छेड़ने और मजाक करने वाली लाली यदि सामान्य अवस्था में होती तो वह एक बार फिर सुगना से मजाक करने से बाज ना आती।
सुगना ने फटाफट खाना निकाल कर उस आगंतुक और सोनू को खाना खिलाया। खाना खाते वक्त सुगना सोनू के मासूम चेहरे को देख रही थी जिसके चेहरे पर उदासी स्पष्ट थी।
परंतु सोनू के चेहरे पर आई यह उदासी लाली के परिवार पर आए कष्ट की वजह से न थी अपितु अपने अगले 1 सप्ताह के सपनों पर पानी फिर जाने की वजह से थी। युवाओं को ऐसी छोटी-मोटी घटनाओं से होने वाले तकलीफों का अंदाजा कुछ कम ही रहता है शायद सोनू को भी लाली के माता-पिता को लगी चोट की गहराई का अंदाजा न था।
लाली की तो भूख जैसे मर गई थी सुगना के लाख कहने के बावजूद उसने कुछ भी ना खाया..
लाली व्यग्र थी उसे फिलहाल अपने घर पहुंचना था अपने मां-बाप को इस स्थिति में जानकर वह दुखी हो गई थी.. उसने फटाफट अपने सामान बाहर निकालl और कुछ ही देर में लाली और उसके बच्चों के साथ सोनू की गाड़ी में बैठ गई…
सोनू जब सुगना से विदा लेने आया तो सुगना से ने कहा " वापसी में एनीये से जईहे तोहरा खातिर कुछ सामान बनल बा…"
सोनू की बांछें खिल गई उसके मन में उम्मीद जाग उठी।
दरअसल सलेमपुर से एक रास्ता सीधा जौनपुर को जाता था यह रास्ता बनारस शहर से बाहर बाहर ही था सुगना ने सोनू को वापसी में एक बार फिर बनारस आने के लिए कह कर उसकी उम्मीद जगा दी पर क्या सुगना सचमुच बनारस जाने को तैयार हो गई थी? . जब तक सोनू अपने मन में उठे प्रश्न के संभावित उत्तर खोज पाता गाड़ी में बैठे लाली पुत्र राजू ने आवाज दी
"मामा जल्दी चल…अ"
सोनू गाड़ी में अगली सीट पर बैठ गया और गाड़ी धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए सुगना की नजरों से ओझल हो गई…
सोनू और लाली के जाते ही सुगना सोच में पड़ गई। अब सोनू का क्या होगा? सलेमपुर में इन परिस्थितियों में लाली और सोनू का नजदीक आना संभव न था। और यदि ने इस सप्ताह लगातार वीर्य स्खलन न किया तब?
क्या सोनू नपुंसक हो जाएगा? क्या शारिरिक रूप से परिपक्व और मर्दाना ताकत से भरपूर अपने भाई को सुगना यू ही नपुंसक हो जाने देगी? क्या सोनू के जीवन से यह कुदरती सुख हमेशा के लिए विलुप्त हो जाएगा?
सुगना यह बात मानती थी कि इस विषम परिस्थिति के लिए वह स्वयं जिम्मेवार थी। आखिर सोनू ने नसबंदी का फैसला उसके कारण ही लिया था।
इधर सुगना तनाव में आ रही थी उधर मोनी पूर्ण नग्न होकर अपनी सहेलियों के साथ प्रकृति की गोद में धीरे-धीरे सहज हो रही थी। माधवी उन सभी कुंवारी लड़कियों की देखभाल कर रही थी।
आज माधवी उन सभी लड़कियों को लेकर एक खूबसूरत बगीचे में आ गई जहां बेहद मुलायम घास उगी हुई थी परंतु घास की लंबाई कुछ ज्यादा ही थी। कुछ घांसो के ऊपर सफेद और दानेदार छोटे-छोटे फूल भी खिले हुए थे। सभी लड़कियां अभिभूत होकर उस दिव्य बाग को देख रही थी..
माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा…
"आइए हम सब एक खेल खेलते हैं आप सभी को इस मुलायम घास पर शौच की मुद्रा में बैठना है…इस तरह…" ऐसा कहते हुए माधवी अपने दोनों पंजों और एड़ी के बल जमीन पर बैठ गई। माधुरी की पुष्ट जांघे स्वतः ही थोड़ी सी खुल गई और उसकी चमकती दमकती गोरी बुर उन सभी लड़कियों की निगाह में आ गई।
मोनी भी वह दृश्य देख रही थी अचानक उसका ध्यान अपनी छोटी सी मुनिया पर गया और उसने खुद की तुलना माधवी से कर ली। बात सच थी मोनी की जांघों के बीच छुपी खूबसूरत गुलाब की कली माधवी के खिले हुए फूल से कम न थी।
धीरे-धीरे सभी लड़कियां उस मुलायम घास पर बैठ गई और उनकी कुंवारी बुर की होंठ खुल गए ऐसा लग रहा था जैसे बुर के दिव्य दर्शन के लिए उसके कपाट खोल दिए गए हों। मुलायम घास जांघों के बीच से कभी बुर के होठों से छूती कभी गुदाद्वार को। एक अजब सा एहसास हो रहा था जो शुरू में शुरुआत में तो सनसनी पैदा कर रहा था परंतु कुछ ही देर बाद वह बुर् के संवेदनशील भाग पर उत्तेजना पैदा करने लगा। यह एहसास नया था अनोखा था। जब तक मोनी उस एहसास को समझ पाती। माधवी की आवाज एक बार फिर आई। उसने पास रखी डलिया से छोटे छोटे लाल कंचे अपने हाथों में लिए और लड़कियों को दिखाते हुए बोली
" यह देखिए मैं ढेर सारे कंचे इसी घास पर बिखेर देती हूं और आप सबको यह कंचे बटोरने हैं पर ध्यान रहे आपको इसी अवस्था में आगे बढ़ना है उठना नहीं है…. तो क्या आप सब तैयार हैं ?"
कुछ लड़कियां अब भी उस अद्भुत संवेदना में खोई हुई थी और कुछ माधवी की बातें ध्यान से सुन रही थी ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार कुछ संवेदनशील विद्यार्थी कक्षा की भौतिक परिस्थितियों को नजरअंदाज कर अपने गुरु द्वारा बताई जा रही बातों में खोए रहते हैं और अपना सारा ध्यान उनके द्वारा दिए जा रहे दिशा-निर्देशों पर केंद्रित रखते हैं
"हां हां " लड़कियों ने आवाज दी।
और माधुरी ने कंचे हरी हरी घास पर बिखेर दिए। घांस लंबी होने की वजह से वह कंचे खो गए सभी लड़कियां कंचे बीनने के लिए अपने पंजों की मदद से आगे पीछे होने लगी। खेल प्रारंभ हो गया उनका हाथ और दिमाग कंचे ढूंढने में व्यस्त था परंतु कुछ लड़कियां अपने आगे पीछे होने की वजह से अपनी बुर पर एक अजीब संवेदना महसूस कर रही थी जो उन मुलायम घासों से रगड़ खाने से हो रही थी। उनका खेल परिवर्तित हो रहा था कंचे ढूंढने और प्रथम आने के आनंद के अलावा वह किसी और आनंद में खो गई…उनकी जांघों और संवेदनशील बुर पर पर घांसों के अद्भुत स्पर्श का आनंद कुछ अलग ही था।
मोनी भी आज उस आनंद से अछूती न थी प्रकृति की गोद खिली कोमल घांस के कोपलों ने आज मोनी को अपने स्पर्श से अभिभूत कर दिया था। मोनी खुश थी और अपनी कमर हौले हौले हिला कर अपनी खूबसूरत मुनिया को उन घासों से रगड़ रही थी ….उसके चेहरे पर मुस्कुराहट और गालों पर ही शर्म की लालिमा दूर खड़ी माधवी देख रही थी कक्षा का प्यह दिन मोनी के लिए सुखद हो रहा था। और माधवी को जिस खूबसूरत और अद्भुत कन्या की तलाश थी वह पूरी होती दिखाई पड़ रही थी।
कुछ देर बाद माधवी ने फिर कहा अब आप सब अपनी अपनी जगह पर खड़े हो जाएं। जिन लोगों ने जितने कंचे बटोरे हैं वह अपनी अंजुली में लेकर बारी बारी से मेरे पास आए और इस डलियां…में वापस रख दें..
कई लड़कियों ने पूरी तल्लीनता और मेहनत से ढेरों कंचे बटोरे थे परंतु मोनी और उस जैसी कुछ लड़कियों ने इस खूबसूरत खेल से कुछ और प्राप्त किया था और वह उस घास के स्पर्श सुख से अभिभूत होकर अपनी बुर में एक अजीब सी संवेदना महसूस कर रही थीं।
जैसे ही वह खड़ी हुई बुर के अंदर भरी हुई नमी छलक कर बुर् के होठों पर आ गई और बुर् के होंठ अचानक चमकीले हो गए थे…. माधुरी की निगाहें कंचो पर न होकर बुर् के होठों पर थी। वह देख रही थी कि उसकी शिष्यायों में वासना का अंकुर फूट रहा है मोनी कम कंचे बटोरने के बावजूद अपनी परीक्षा में सफल थी.. उसकी बुर पर छलक आई काम रस की बूंदे कई कंचों पर भारी थी. मोनी को जो इस खेल में जो आनंद आया था वह निराला था।
इधर मोनी अपनी नई दुनिया में खुश थी उधर सुगना का तनाव बढ़ता जा रहा था। उसका उसका सारा किया धरा पानी में मिल गया था लाली को उसने कितनी उम्मीदों से तैयार किया था परंतु विधाता ने ऐसी परिस्थिति लाकर लाली को जौनपुर की बजाय सलेमपुर जाने पर मजबूर कर दिया था। छोटा सूरज अपनी मां सुगना को परेशान देखकर बोला..
"मां जौनपुर हमनी के चलल जाओ…मामा के नया घर देखें के आ जाएके" सूरज ने मासूमियत से यह बात कह तो दी थी।
सुगना सूरज को क्या उत्तर देती लाली जिस निमित्त जौनपुर जा रही थी वह प्रयोजन पूरा कर पाना सुगना के बस में न था…जितना ही सुगना इस बारे में सोचती वह परेशान होती…आखिर कैसे कोई बड़ी बहन अपने ही छोटे भाई को उसे चोदने के लिए उकसा सकती थी यद्यपि सुगना यह बात जानती थी कि आज से कुछ दिनों पहले तक सोनू की वासना में उसका भी स्थान था और शायद इसी वासना के आगोश में सोनू ने दीपावली की रात वह पाप कर दिया था. ..परंतु दीपावली की रात के बाद हुई आत्मग्लानि ने शायद सोनू के व्यवहार में परिवर्तन ला दिया था। पिछले कुछ दिनों में सोनू का व्यवहार एक छोटे भाई के रूप में सर्वथा उचित था और पूरी तरह उत्तेजना विहीन था…
सुगना मासूम थी…सोनू के मन में उसके प्रति छाई वासना को वह नजरअंदाज कर रही थी…उधर सोनू उधर सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना के प्यार में पूरी तरह मदहोश हो चुका था। वासना अपनी जगह थी और प्यार अपनी जगह।
अभी तो शायद प्यार का पलड़ा ही भारी था सोनू यथाशीघ्र लाली को सलेमपुर छोड़कर वापस बनारस आ जाना चाहता था। उसे विश्वास था कि उसकी मिन्नतें सुगना दीदी ठुकरा ना पाएगी और उसके साथ जौनपुर आ जाएगी बाकी जो होना था वह स्वयं सुगना दीदी को करना था उसे यकीन था कि सुगना दीदी उसके पुरुषत्व को यूं ही व्यर्थ गर्त में नहीं जाने देगी…
उधर कोई और रास्ता न देख सुगना ने फैसला कर लिया कि वह लाज शर्म छोड़कर…सोनू से खुलकर बात करेगी और डॉक्टर द्वारा दी गई नसीहत को स्पष्ट रूप से सोनू को बता देगी.
सुगना अपनी बात सोनू तक स्पष्ट रूप से पहुंचाने के लिए अपने शब्दों को सजोने लगी …निश्चित ही अपने छोटे भाई को डॉक्टर द्वारा दी गई उस नसीहत को समझाना कठिन था…
शेष अगले भाग में….