- 264
- 458
- 63
शाहिद ने तुरंत नगमा को फिर से उसी तरह खुद से चिपका लिया और पीछे से उसकी ब्रा का हुक खोलने लगा।लेकिन एक हाथ से इसे खोलने में उसे दिक्कत हो रही थी।नगमा ने इस बात को समझते हुए पीछे हाथ करके स्वयं अपनी ब्रा को उतार दिया।दोनों चूचे शाहिद की छाती पर छलांग लगाते हुए धसे।अब बारी थी जन्नत के दर्शन की।नगमा थोड़ा पीछे हुई और मुस्कुराते हुए अपने हाथ पैंटी की स्ट्रिप पर ले गयी।शाहिद को अब कुछ ही सेकंड में अपनी अम्मी की मादक चूत के प्रत्यक्ष दर्शन होने वाले थे।नगमा ने हल्के से पैंटी को नीचे सरकाना शुरू किया।शाहिद बड़ी उम्मीद से अपना ध्यान उसी तरफ लगाए था कि तभी बाथरूम के दरवाज़े पर खटखटाहट हुई।
"शाहिद....नगमा"
ये आवाज़ और किसी की नही बल्कि नगमा के शौहर और शाहिद के अब्बू वसीम की थी।
********
"शाहिद....नगमा"
आवाज़ के साथ दरवाज़े पर एक बार फिर खटखटाहट हुई।यहां अंदर वसीम की आवाज़ सुनकर नगमा तो मानो बर्फ ही जम ही गयी।ऐसे लगा जैसे उसका पूरा शरीर ही निस्प्राण हो गया है,पल भर के लिए तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा ही छा गया।यही हाल शाहिद का भी था।अभी वो मादकता के आकाश की ऊंचाइयों में उड़ रहा था और अचानक से वास्तविकता की ज़मीन पर आ गिरा।दिमाग उसका भी सुन्न हो चुका था।दोनों के शरीर में ऊपर से नीचे तक कंपन थी लेकिन ये ठंड के कारण नही बल्कि जो होने वाला था उस अंजाम को सोच कर थी।नगमा के चेहरे पर जो डर की रेखाएं आज उभर आईं थी वो देख कर शाहिद को आत्मग्लानि होने लग गयी थी।आखिर गलती उसी की तो थी न।उसी की वजह से नगमा ऐसी हालत में यहां फंस गई थी।
"शाहिद.....नगमा"
एक बार फिर से दरवाज़े पे खटखटाहट हुई ।नगमा का तो मानो हलक ही सूख गुए था।गले से चाहकर भी आवाज़ नही निकल पा रही थी लेकिन आंख से आँसू जरूर बह रहे थे।नगमा को ऐसी हालत में देख कर शाहिद ने खुद को संभाला और खिड को किस्मत के हवाले करते हुए जवाब दिया
"जी....जी अब..बु,जी अब्बू"(हकलाते हुए)
"ओह बेटा तो तुम हो अंदर,मुझे लगा तुम्हारी अम्मी तो नही कहीं,वो बाहर नगमा की चुन्नी पड़ी थी तो मुझे लगा कही फ्रेश होने तो नही आई"
ये सुनते ही शाहिद का दिमाग जो कुछ श्रण पहले सुन्न पैड गया था अचानक से फिर जीवंत सा हो उठा।
'इसका मतलब अब्बू को ये नही पता कि अंदर अम्मी और मैं दोनों ही हैं,वो तो बस पूछ रहे थे कि अंदर कौन है' (शाहिद ने मन ही मन में चैन की सांस लेते हुए सोचा)
"नही अब्बू यहां तो मैं नहा रहा हूँ,अम्मी शायद छत पर गई होंगी सूखे कपड़े उतारने,जब मैं नहाने जा रहा था तो अम्मी ने बताया था"
"ओ हाँ ठीक है" (बोलकर वसीम कमरे से बाहर चला जाता है,कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज़ आती है,शाहिद तस्सल्ली करने के लिए एक बार बाथरूम का दरवाजा खोल कमरे में झांक के देखता है और फिर से चैन की साँस लेता है)
अब शाहिद का ध्यान नगमा की तरफ जाता है जो अभी भी सदमे में ही थी और उसकी आंख से आँसू बहे जा रहे है
"अम्मी....अम्मी?"
नगमा कोई जवाब नही दे रही।शाहिद उसे कंधों से पकड़ के झकझोरता है
"अम्मी"
नगमा झटके से अपनी सोच से बाहर आती है।शाहिद उसके आँसू पोछता है।
"अम्मी,इट्स ऑल राइट।अब्बू को नही पता कि आप यहां हो,वो तो बस पूछ रहे थे कि अंदर कौन है.....ओहो अब प्लीज रोना बंद करिये और जल्दी से कपड़े पहन के ऊपर के बाथरूम में जाइये।मैने अब्बू को छत पर भेज दिया है,अब जल्दी करिये"
नगमा होश में आते हुए भीगे जिस्म पर ही अपने कपड़े जल्दी जल्दी पहन कर बाहर निकलती है।किस्मत से वसीम उस वक़्त छत पर होता है।नगमा भागते हुए अपने रूम के बाथरूम में घुस जाती है।बाथरूम में वो अपने कपड़े निकालती है तो आईने के सामने साबुन लगा उसका जिस्म दिखता है।उसे देखते ही एक बार फिर उसकी नज़रो से नीर बहने लगता है।
बाथरूम के फर्श पर बैठ कर अब नगमा तेज़ साँसें भरते हुए आँसू बहाते हुए खुद से ही बातें करने लगती है।
"क्या होते जा रहा है मुझे?क्यों हो रहा है ऐसा?क्यों अपने ऊपर काबू नही रख पा रही मैं?क्या मैं भी शाहिद से?नही नही!! ऐसा कैसे हो सकता है,वो मेरा खून है,मेरा अपना बेटा है।मैं उससे कैसे.....नही नही!!लेकिन फिर क्यों में उसके साथ होने पर अपनी सुध बुध खो दे रही हूं?क्यों उसकी छुअन से मेरे जिस्म में बिजली दौड़ जाती है?क्यों इस जिस्म को उसकी छुअन इतनी पसंद है?क्यूँ उसके छूते ही में मदहोश होने लगती हूँ..... उफ़्फ़ ये क्या होता जा रहा है मुझे और आज,आज तो मैं सारी सीमाएं लांघने वाली थी और तभी(डर की रेखाएं माथे पर आ जाती है),क्या होता अगर वसीम ने हमें ऐसे देख लिया होता तो,मेरे साथ जो होता वो तो मैं फिर भी बर्दाश्त कर लेती लेकिन मेरी वजह से शाहिद को कुछ हो जाता तो क्या मैं जिंदा रह पाती?क्या मैं कभी खुद को मांफ कर पाती?नही नही,मैं शाहिद को कुछ नही होने दे सकती ।"
"लेकिन कैसे?कैसे रोकेगी तू उसे?जानती है ना तेरे से प्यार करने लगा है वो।चाहने लगा है वो तुझे एक औरत की तरह।फिर कैसे रोकेगी तू उसे"(नगमा के अंतरमन से सवाल उठता है)
"रोकूंगी,उसे अपने करीब नही आने दूंगी अब"
"ये तो तूने पहले भी कहा था,क्या रोक पाई तू उसे या फिर खुद को ही?अगर आज वसीम ना आया होता तो क्या तू उसकी छुअन से मदहोश होने से रोक पाई थी?आज नही तो कल वो तेरे इस जिस्म को भोगना चाहेगा,फिर कैसे रोक पाएगी तू उसे?तू नही रोकेगी क्योंकि तू खुद भी यही चाहने लगी है"
"नही नही!ये....ये सच नही है"
"हा हा हा हा......खुद से झूठ बोल रही है,ये तो तू भी जानती है और तेरा जिस्म भी की अगली बार अगर ऐसा कुछ हुआ तो शाहिद को रोक नही पाएगी तू"
"नही,रोकूँगी में उसे,मैं..... मैं उसकी अम्मी हूँ, उसे मेरी बात माननी ही पड़ेगी"
"अगर वो तेरी बात मान भी गया तो क्या तुझसे उसकी तड़प देखी जाएगी।तू खुद सौंप देगी उसको सब और फिर....."
"और फिर.....और फिर क्या?"
"और फिर हर दिन किस्मत मेहरबान नही होती,एक न एक दिन वसीम पे भी ये राज़ खुल ही जाएगा और फिर वो या तो अपनी इज़्ज़त बचने के लिए तेरा कत्ल कर देगा या ग़ुस्से में शाहिद का"
"नही नही नही नही!!!!!!!!मैं.....मैं मेरे रहते शाहिद को कुछ नही होने दूँगी।कुछ नही"
"तो दूर होजा उससे"
"हाँ दूर हो जाऊंगी......हो जाऊंगी दूर उससे...पर कैसे"
"नफरत......प्यार करता है ना वो तुझसे,नफरत पैदा कर दे उसके दिल में अपने लिए"
"हाँ..... हाँ मैं अपने लिए शाहीद के दिल में नफरत पैदा कर दूंगी.....कर दूंगी नफरत पैदा लेकिन अपने शाहिद को कुछ नही होने दूँगी मैं"
और फिर नगमा अपने चेहरे को अपनी हथेली से छुपा कर रोने लगती है।गिरते शॉवर के नीचे भीगते जिस्म पे पड़ते पानी के साथ मिलकर आँसू भी बह जाते है फर्श पर।उसके प्यार को भी इसी तरह नफरतों में मिलकर बह जाना होगा।वो खुद पर लाखों दुख दर्द ले सकती है लेकिन शाहिद को एक खरोच भी आये ये उसे बर्दाश्त नही।
खुद से ही बातें करती हुई नगमा उठकर अपने जिस्म को टॉवल से पोछकर टॉवल लपेट कर बाहर आती है।बाहर कमरे में वसीम बेड पर बैठा होता है।
"आ....आप"(वसीम को देखकर थोड़ा घबराती हुई)
"अरे मल्लिकाए हुस्न,हम नही तो कौन,आपके बेटे ने बताया कि आप छत पर हैं तो हम वहां गए लेकिन आप थे नही तो यहां आए तो पाया कि बाथरूम का शॉवर ऑन है।वैसे कसम से बहुत खूबसूरत लग रहीं है आप"(वसीम नगमा के करीब आते हुए कहता है)
"क्या आप भी न" (वसीम से दूर होते हुए)
वसीम से दूर होना नगमा के जिस्म की स्वचालित प्रतिक्रिया थी।उसने ऐसा करा नही बल्कि हो गया।इस बात से नगमा भी चौंक गयी।क्यों वो अपने शौहर से दूर हो गयी?क्यों उसे ऐसा लगा कि जैसे उसके जिस्म पर तो किसी और का हक़ है?क्या सच में उसे भी शाहिद से प्यार.....नही नही!एक बार खुद से उसने खुद को ही समझाया।लेकिन उसका शरीर,उसका ये भीगा जिस्म,उसका मन जो अभी कुछ समय पहले तक एक मर्द की छुअन के लिए तड़प रहा था,अब क्यों ये एकदम उसके उलट प्रतिक्रिया दे रहा है।
नगमा इन खयालो में ही थी कि तभी वसीम आकर उसे पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए उसकी गर्दन पर चुम्बनों की बरसात करने लगता है।नगमा इस बार फिर उससे दूर हो जाती है।वसीम उसे सवालिया नज़रों से देखता है।
नगमा : आप भी न,ये भी कोई वक़्त है।
वसीम : प्यार करने का भी कोई वक़्त होता है क्या मोहतरमा(दोबारा से बाहों में भरने आता है)
इस बार वसीम की पकड़ मजबूत थी और एक ही झटके में उसने नगमा के जिस्म से टॉवल को निकाल कर दूर फेंक दिया।वसीम के होंठ और जीभ नगमा की गर्दन को फिर से गीला करने में लग गए और उसका हाथ स्वतः ही नगमा गोल गोल भारी स्तनों पे पहुँच गए।अब वसीम ने एक हाथ से नगमा के भारी चुचियाँ को अपने गिरफ्त में लिया हुआ था और दूसरा हाथ नगमा की मुलायम गुलाबी चूत पर था।आह!चूत के गुलाबी होंठों पर उंगली करते ही वसीम को गर्मी के साथ गीलाहट भी महसूस हुई।उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी।
वसीम : (नगमा के कानों में) ऊपर के होंठो से कितना भी ना कर लो लेकिन नीचे के होंठ तो सब ज़ाहिर कर ही देते है मोहतरमा।
नगमा : आह!!!! छोड़िए न।शाहिद घर पर ही है और आदि भी किसी भी वक़्त आ जाएगा।
वसीम : (फूली हुई गुलाबी चूत के होंठो को सहलाते हुए) आ जाने दो,अपनी बीवी को प्यार करना गुनाह है क्या?
नगमा के शरीर में एक अलग सी बेचैनी थी।एक रात वसीम के इंतज़ार में जो जिस्म तड़प रहा था आज उस जिस्म में वसीम की छुअन से बेचैनी सी पैदा हो रही थी।नगमा वसीम को रोकने का भरसक प्रयास कर रही थी,अलग अलग बहाने भी बना रही थी लेकिन पिछले कुछ महीनों में नगमा के जिस्म में जो बदलाव आए थे उससे वो मादकता के शिखर पर पहुँच चुकी थी।फिर जिस शरीर से,जिस जिस्म के आकर्षण से उसका बेटा दूर नही रह पा रहा उससे उसका पति कैसे दूर रह पाता और वो भी तब जब नगमा का मखमली नग्न शरीर उसकी नज़र के सामने हो।नगमा को भी अब समझ आ चुका था कि वो अब वसीम को रोक नही पाएगी।महीनों से विरह की आग उसके जिस्म को भी तो तपा रही होगी।ये सोचते हुए नगमा ने खुद को वसीम के हवाले तो कर दिया लेकिन वो उसका साथ नही दे रही थी।अंदर से कोई चीज़ उसे ऐसा करने से रोक रही थी।तभी वसीम ने जोश में आते हुए नगमा को बेड पर पटक दिया।बेड पर गिरी नगमा के जिस्म को वसीम किसी भूखे जानवर की तरह देख रहा था।गदराए जिस्म और फूली हुई चूत को देख कर उसके मुँह से लार टपक रहा था।अब जल्दी से अपने कपड़े उतारकर वसीम नगमा के ऊपर आ चुका था।उसके हाथों को ऊपर करते हुए उसके पूरे जिस्म को चूम रहा था।नगमा सिर एक दिशा में फेरे आंखें बंद कर शिथिल पड़ी हुई थी।जैसे उसने अपना जिस्म तो सौंप दिया हो लेकिन उसकी आत्मा को नही।वसीम मानो इस समय एक बिना जान के शरीर को भोग रहा था।नगमा के तरफ चेहरा मोड़े आंखें बंद करे हुए पड़ी थी कि तभी उसके चुचों पर दाँत से काटने से उसकी आह निकलने के साथ आंखें भी खुल गयी और नज़र सीधा सामने दरवाज़े पर पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और दो आंखें उसमे से झाँक रही थी।नगमा की आंखें भी उन आँखों से जाकर टकराई और दोनों आंखें मानो आपस में कैद हो गयी।ये और कोई नही बल्कि शाहिद ही था।नगमा ने एक श्रण कुछ सोचा और तभी शिथिल पड़े नगमा के शरीर में जान आ गयी।उसने अपने हाथों के आलिंगन में वसीम को भर लिया और ज़ोर से बोली
"वसीम,अब रुक नही जाता,चोद दीजिये मुझे"
नगमा के मुंह से इस तरह की बात सुनकर वसीम की कामोतेजना और अधिक बढ़ गयी।उसने सीधा नगमा की टांगो को चौड़ी करके अपने लण्ड को फूली हुई कोमल चूत पर रख और एक ज़ोर का धक्का मारा और नगमा की फूली हुई चूत में लण्ड घुसा दिया।
अब वसीम का लण्ड नगमा की चूत की गिरफ्त में था।गीली और गरम चूत में घुसते ही लण्ड भी अपने काम पर लग गया।वसीम अब नगमा के ऊपर से ही पागलो की तरह काम उत्तेजना में डूबा ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था
"आआआह.........."
"आआआह.....वसीम.....आआआह"
(नगमा ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी)
"जान आवाज़ मत करो ,बच्चे सुन लेंगे"
"सुन लें,में आपकी बीवी हूँ, कोई गैर तो नही।आपका ही तो इकलौता हक़ है मुझपे.....मेरे इस जिस्म पे.....आह....जैसे चाहे चोदें मुझे"
नगमा के मुँह से ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर वसीम और भी उत्तेजित हो गया और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा।पूरे प्रकरण के दौरान नगमा की आंखें दरवाज़े की तरफ ही थी।उन आंखों में देखते हुए नगमा ऐसे दिख रही थी कि उसे इस काम प्रकरण में परम आनंद की अनुभूति हो रही है।उसकी आवाज़ में ऐसी मादकता थी कि वसीम ज्यादा देर तक खिड को रोक नही पाया।
वसीम : नगमा मैं...(हांफते हुए)......मेरा होने वाला है"
नगमा : मेरा भी....आह! वसीम....और ज़ोर से.....बोहोत मज़ा आ रहा है....आह
वसीम तेज़ी से धक्का देते हुए नगमा की चूत के अंदर ही झड़ जाता है और लंबी लंबी सांस लेते हुए उसके जिस्म पर गिर जाता है।नगमा की नज़र अभी भी दरवाज़े पर थी जहां से अब वो दो निगाहैं गायब हो चुकी थी।वसीम उठता है और सीधा वाशरूम में चले जाता है।नगमा का जिस्म अब शिथिल पड़ा हुआ था।उसकी आँखों के किनारे से आँशुओं की धार बह रही थी।
"शाहिद....नगमा"
ये आवाज़ और किसी की नही बल्कि नगमा के शौहर और शाहिद के अब्बू वसीम की थी।
********
"शाहिद....नगमा"
आवाज़ के साथ दरवाज़े पर एक बार फिर खटखटाहट हुई।यहां अंदर वसीम की आवाज़ सुनकर नगमा तो मानो बर्फ ही जम ही गयी।ऐसे लगा जैसे उसका पूरा शरीर ही निस्प्राण हो गया है,पल भर के लिए तो उसकी आँखों के सामने अंधेरा ही छा गया।यही हाल शाहिद का भी था।अभी वो मादकता के आकाश की ऊंचाइयों में उड़ रहा था और अचानक से वास्तविकता की ज़मीन पर आ गिरा।दिमाग उसका भी सुन्न हो चुका था।दोनों के शरीर में ऊपर से नीचे तक कंपन थी लेकिन ये ठंड के कारण नही बल्कि जो होने वाला था उस अंजाम को सोच कर थी।नगमा के चेहरे पर जो डर की रेखाएं आज उभर आईं थी वो देख कर शाहिद को आत्मग्लानि होने लग गयी थी।आखिर गलती उसी की तो थी न।उसी की वजह से नगमा ऐसी हालत में यहां फंस गई थी।
"शाहिद.....नगमा"
एक बार फिर से दरवाज़े पे खटखटाहट हुई ।नगमा का तो मानो हलक ही सूख गुए था।गले से चाहकर भी आवाज़ नही निकल पा रही थी लेकिन आंख से आँसू जरूर बह रहे थे।नगमा को ऐसी हालत में देख कर शाहिद ने खुद को संभाला और खिड को किस्मत के हवाले करते हुए जवाब दिया
"जी....जी अब..बु,जी अब्बू"(हकलाते हुए)
"ओह बेटा तो तुम हो अंदर,मुझे लगा तुम्हारी अम्मी तो नही कहीं,वो बाहर नगमा की चुन्नी पड़ी थी तो मुझे लगा कही फ्रेश होने तो नही आई"
ये सुनते ही शाहिद का दिमाग जो कुछ श्रण पहले सुन्न पैड गया था अचानक से फिर जीवंत सा हो उठा।
'इसका मतलब अब्बू को ये नही पता कि अंदर अम्मी और मैं दोनों ही हैं,वो तो बस पूछ रहे थे कि अंदर कौन है' (शाहिद ने मन ही मन में चैन की सांस लेते हुए सोचा)
"नही अब्बू यहां तो मैं नहा रहा हूँ,अम्मी शायद छत पर गई होंगी सूखे कपड़े उतारने,जब मैं नहाने जा रहा था तो अम्मी ने बताया था"
"ओ हाँ ठीक है" (बोलकर वसीम कमरे से बाहर चला जाता है,कमरे का दरवाजा बंद होने की आवाज़ आती है,शाहिद तस्सल्ली करने के लिए एक बार बाथरूम का दरवाजा खोल कमरे में झांक के देखता है और फिर से चैन की साँस लेता है)
अब शाहिद का ध्यान नगमा की तरफ जाता है जो अभी भी सदमे में ही थी और उसकी आंख से आँसू बहे जा रहे है
"अम्मी....अम्मी?"
नगमा कोई जवाब नही दे रही।शाहिद उसे कंधों से पकड़ के झकझोरता है
"अम्मी"
नगमा झटके से अपनी सोच से बाहर आती है।शाहिद उसके आँसू पोछता है।
"अम्मी,इट्स ऑल राइट।अब्बू को नही पता कि आप यहां हो,वो तो बस पूछ रहे थे कि अंदर कौन है.....ओहो अब प्लीज रोना बंद करिये और जल्दी से कपड़े पहन के ऊपर के बाथरूम में जाइये।मैने अब्बू को छत पर भेज दिया है,अब जल्दी करिये"
नगमा होश में आते हुए भीगे जिस्म पर ही अपने कपड़े जल्दी जल्दी पहन कर बाहर निकलती है।किस्मत से वसीम उस वक़्त छत पर होता है।नगमा भागते हुए अपने रूम के बाथरूम में घुस जाती है।बाथरूम में वो अपने कपड़े निकालती है तो आईने के सामने साबुन लगा उसका जिस्म दिखता है।उसे देखते ही एक बार फिर उसकी नज़रो से नीर बहने लगता है।
बाथरूम के फर्श पर बैठ कर अब नगमा तेज़ साँसें भरते हुए आँसू बहाते हुए खुद से ही बातें करने लगती है।
"क्या होते जा रहा है मुझे?क्यों हो रहा है ऐसा?क्यों अपने ऊपर काबू नही रख पा रही मैं?क्या मैं भी शाहिद से?नही नही!! ऐसा कैसे हो सकता है,वो मेरा खून है,मेरा अपना बेटा है।मैं उससे कैसे.....नही नही!!लेकिन फिर क्यों में उसके साथ होने पर अपनी सुध बुध खो दे रही हूं?क्यों उसकी छुअन से मेरे जिस्म में बिजली दौड़ जाती है?क्यों इस जिस्म को उसकी छुअन इतनी पसंद है?क्यूँ उसके छूते ही में मदहोश होने लगती हूँ..... उफ़्फ़ ये क्या होता जा रहा है मुझे और आज,आज तो मैं सारी सीमाएं लांघने वाली थी और तभी(डर की रेखाएं माथे पर आ जाती है),क्या होता अगर वसीम ने हमें ऐसे देख लिया होता तो,मेरे साथ जो होता वो तो मैं फिर भी बर्दाश्त कर लेती लेकिन मेरी वजह से शाहिद को कुछ हो जाता तो क्या मैं जिंदा रह पाती?क्या मैं कभी खुद को मांफ कर पाती?नही नही,मैं शाहिद को कुछ नही होने दे सकती ।"
"लेकिन कैसे?कैसे रोकेगी तू उसे?जानती है ना तेरे से प्यार करने लगा है वो।चाहने लगा है वो तुझे एक औरत की तरह।फिर कैसे रोकेगी तू उसे"(नगमा के अंतरमन से सवाल उठता है)
"रोकूंगी,उसे अपने करीब नही आने दूंगी अब"
"ये तो तूने पहले भी कहा था,क्या रोक पाई तू उसे या फिर खुद को ही?अगर आज वसीम ना आया होता तो क्या तू उसकी छुअन से मदहोश होने से रोक पाई थी?आज नही तो कल वो तेरे इस जिस्म को भोगना चाहेगा,फिर कैसे रोक पाएगी तू उसे?तू नही रोकेगी क्योंकि तू खुद भी यही चाहने लगी है"
"नही नही!ये....ये सच नही है"
"हा हा हा हा......खुद से झूठ बोल रही है,ये तो तू भी जानती है और तेरा जिस्म भी की अगली बार अगर ऐसा कुछ हुआ तो शाहिद को रोक नही पाएगी तू"
"नही,रोकूँगी में उसे,मैं..... मैं उसकी अम्मी हूँ, उसे मेरी बात माननी ही पड़ेगी"
"अगर वो तेरी बात मान भी गया तो क्या तुझसे उसकी तड़प देखी जाएगी।तू खुद सौंप देगी उसको सब और फिर....."
"और फिर.....और फिर क्या?"
"और फिर हर दिन किस्मत मेहरबान नही होती,एक न एक दिन वसीम पे भी ये राज़ खुल ही जाएगा और फिर वो या तो अपनी इज़्ज़त बचने के लिए तेरा कत्ल कर देगा या ग़ुस्से में शाहिद का"
"नही नही नही नही!!!!!!!!मैं.....मैं मेरे रहते शाहिद को कुछ नही होने दूँगी।कुछ नही"
"तो दूर होजा उससे"
"हाँ दूर हो जाऊंगी......हो जाऊंगी दूर उससे...पर कैसे"
"नफरत......प्यार करता है ना वो तुझसे,नफरत पैदा कर दे उसके दिल में अपने लिए"
"हाँ..... हाँ मैं अपने लिए शाहीद के दिल में नफरत पैदा कर दूंगी.....कर दूंगी नफरत पैदा लेकिन अपने शाहिद को कुछ नही होने दूँगी मैं"
और फिर नगमा अपने चेहरे को अपनी हथेली से छुपा कर रोने लगती है।गिरते शॉवर के नीचे भीगते जिस्म पे पड़ते पानी के साथ मिलकर आँसू भी बह जाते है फर्श पर।उसके प्यार को भी इसी तरह नफरतों में मिलकर बह जाना होगा।वो खुद पर लाखों दुख दर्द ले सकती है लेकिन शाहिद को एक खरोच भी आये ये उसे बर्दाश्त नही।
खुद से ही बातें करती हुई नगमा उठकर अपने जिस्म को टॉवल से पोछकर टॉवल लपेट कर बाहर आती है।बाहर कमरे में वसीम बेड पर बैठा होता है।
"आ....आप"(वसीम को देखकर थोड़ा घबराती हुई)
"अरे मल्लिकाए हुस्न,हम नही तो कौन,आपके बेटे ने बताया कि आप छत पर हैं तो हम वहां गए लेकिन आप थे नही तो यहां आए तो पाया कि बाथरूम का शॉवर ऑन है।वैसे कसम से बहुत खूबसूरत लग रहीं है आप"(वसीम नगमा के करीब आते हुए कहता है)
"क्या आप भी न" (वसीम से दूर होते हुए)
वसीम से दूर होना नगमा के जिस्म की स्वचालित प्रतिक्रिया थी।उसने ऐसा करा नही बल्कि हो गया।इस बात से नगमा भी चौंक गयी।क्यों वो अपने शौहर से दूर हो गयी?क्यों उसे ऐसा लगा कि जैसे उसके जिस्म पर तो किसी और का हक़ है?क्या सच में उसे भी शाहिद से प्यार.....नही नही!एक बार खुद से उसने खुद को ही समझाया।लेकिन उसका शरीर,उसका ये भीगा जिस्म,उसका मन जो अभी कुछ समय पहले तक एक मर्द की छुअन के लिए तड़प रहा था,अब क्यों ये एकदम उसके उलट प्रतिक्रिया दे रहा है।
नगमा इन खयालो में ही थी कि तभी वसीम आकर उसे पीछे से अपनी बाहों में भरते हुए उसकी गर्दन पर चुम्बनों की बरसात करने लगता है।नगमा इस बार फिर उससे दूर हो जाती है।वसीम उसे सवालिया नज़रों से देखता है।
नगमा : आप भी न,ये भी कोई वक़्त है।
वसीम : प्यार करने का भी कोई वक़्त होता है क्या मोहतरमा(दोबारा से बाहों में भरने आता है)
इस बार वसीम की पकड़ मजबूत थी और एक ही झटके में उसने नगमा के जिस्म से टॉवल को निकाल कर दूर फेंक दिया।वसीम के होंठ और जीभ नगमा की गर्दन को फिर से गीला करने में लग गए और उसका हाथ स्वतः ही नगमा गोल गोल भारी स्तनों पे पहुँच गए।अब वसीम ने एक हाथ से नगमा के भारी चुचियाँ को अपने गिरफ्त में लिया हुआ था और दूसरा हाथ नगमा की मुलायम गुलाबी चूत पर था।आह!चूत के गुलाबी होंठों पर उंगली करते ही वसीम को गर्मी के साथ गीलाहट भी महसूस हुई।उसके चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गयी।
वसीम : (नगमा के कानों में) ऊपर के होंठो से कितना भी ना कर लो लेकिन नीचे के होंठ तो सब ज़ाहिर कर ही देते है मोहतरमा।
नगमा : आह!!!! छोड़िए न।शाहिद घर पर ही है और आदि भी किसी भी वक़्त आ जाएगा।
वसीम : (फूली हुई गुलाबी चूत के होंठो को सहलाते हुए) आ जाने दो,अपनी बीवी को प्यार करना गुनाह है क्या?
नगमा के शरीर में एक अलग सी बेचैनी थी।एक रात वसीम के इंतज़ार में जो जिस्म तड़प रहा था आज उस जिस्म में वसीम की छुअन से बेचैनी सी पैदा हो रही थी।नगमा वसीम को रोकने का भरसक प्रयास कर रही थी,अलग अलग बहाने भी बना रही थी लेकिन पिछले कुछ महीनों में नगमा के जिस्म में जो बदलाव आए थे उससे वो मादकता के शिखर पर पहुँच चुकी थी।फिर जिस शरीर से,जिस जिस्म के आकर्षण से उसका बेटा दूर नही रह पा रहा उससे उसका पति कैसे दूर रह पाता और वो भी तब जब नगमा का मखमली नग्न शरीर उसकी नज़र के सामने हो।नगमा को भी अब समझ आ चुका था कि वो अब वसीम को रोक नही पाएगी।महीनों से विरह की आग उसके जिस्म को भी तो तपा रही होगी।ये सोचते हुए नगमा ने खुद को वसीम के हवाले तो कर दिया लेकिन वो उसका साथ नही दे रही थी।अंदर से कोई चीज़ उसे ऐसा करने से रोक रही थी।तभी वसीम ने जोश में आते हुए नगमा को बेड पर पटक दिया।बेड पर गिरी नगमा के जिस्म को वसीम किसी भूखे जानवर की तरह देख रहा था।गदराए जिस्म और फूली हुई चूत को देख कर उसके मुँह से लार टपक रहा था।अब जल्दी से अपने कपड़े उतारकर वसीम नगमा के ऊपर आ चुका था।उसके हाथों को ऊपर करते हुए उसके पूरे जिस्म को चूम रहा था।नगमा सिर एक दिशा में फेरे आंखें बंद कर शिथिल पड़ी हुई थी।जैसे उसने अपना जिस्म तो सौंप दिया हो लेकिन उसकी आत्मा को नही।वसीम मानो इस समय एक बिना जान के शरीर को भोग रहा था।नगमा के तरफ चेहरा मोड़े आंखें बंद करे हुए पड़ी थी कि तभी उसके चुचों पर दाँत से काटने से उसकी आह निकलने के साथ आंखें भी खुल गयी और नज़र सीधा सामने दरवाज़े पर पड़ी जो हल्का सा खुला हुआ था और दो आंखें उसमे से झाँक रही थी।नगमा की आंखें भी उन आँखों से जाकर टकराई और दोनों आंखें मानो आपस में कैद हो गयी।ये और कोई नही बल्कि शाहिद ही था।नगमा ने एक श्रण कुछ सोचा और तभी शिथिल पड़े नगमा के शरीर में जान आ गयी।उसने अपने हाथों के आलिंगन में वसीम को भर लिया और ज़ोर से बोली
"वसीम,अब रुक नही जाता,चोद दीजिये मुझे"
नगमा के मुंह से इस तरह की बात सुनकर वसीम की कामोतेजना और अधिक बढ़ गयी।उसने सीधा नगमा की टांगो को चौड़ी करके अपने लण्ड को फूली हुई कोमल चूत पर रख और एक ज़ोर का धक्का मारा और नगमा की फूली हुई चूत में लण्ड घुसा दिया।
अब वसीम का लण्ड नगमा की चूत की गिरफ्त में था।गीली और गरम चूत में घुसते ही लण्ड भी अपने काम पर लग गया।वसीम अब नगमा के ऊपर से ही पागलो की तरह काम उत्तेजना में डूबा ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था
"आआआह.........."
"आआआह.....वसीम.....आआआह"
(नगमा ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही थी)
"जान आवाज़ मत करो ,बच्चे सुन लेंगे"
"सुन लें,में आपकी बीवी हूँ, कोई गैर तो नही।आपका ही तो इकलौता हक़ है मुझपे.....मेरे इस जिस्म पे.....आह....जैसे चाहे चोदें मुझे"
नगमा के मुँह से ऐसे अल्फ़ाज़ सुनकर वसीम और भी उत्तेजित हो गया और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा।पूरे प्रकरण के दौरान नगमा की आंखें दरवाज़े की तरफ ही थी।उन आंखों में देखते हुए नगमा ऐसे दिख रही थी कि उसे इस काम प्रकरण में परम आनंद की अनुभूति हो रही है।उसकी आवाज़ में ऐसी मादकता थी कि वसीम ज्यादा देर तक खिड को रोक नही पाया।
वसीम : नगमा मैं...(हांफते हुए)......मेरा होने वाला है"
नगमा : मेरा भी....आह! वसीम....और ज़ोर से.....बोहोत मज़ा आ रहा है....आह
वसीम तेज़ी से धक्का देते हुए नगमा की चूत के अंदर ही झड़ जाता है और लंबी लंबी सांस लेते हुए उसके जिस्म पर गिर जाता है।नगमा की नज़र अभी भी दरवाज़े पर थी जहां से अब वो दो निगाहैं गायब हो चुकी थी।वसीम उठता है और सीधा वाशरूम में चले जाता है।नगमा का जिस्म अब शिथिल पड़ा हुआ था।उसकी आँखों के किनारे से आँशुओं की धार बह रही थी।
Last edited: