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Incest उफ्फ अम्मी(एक अनार दो बेकरार)

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वसीम : नगमा मैं...(हांफते हुए)......मेरा होने वाला है"

नगमा : मेरा भी....आह! वसीम....और ज़ोर से.....बोहोत मज़ा आ रहा है....आह

वसीम तेज़ी से धक्का देते हुए नगमा की चूत के अंदर ही झड़ जाता है और लंबी लंबी सांस लेते हुए उसके जिस्म पर गिर जाता है।नगमा की नज़र अभी भी दरवाज़े पर थी जहां से अब वो दो निगाहैं गायब हो चुकी थी।वसीम उठता है और सीधा वाशरूम में चले जाता है।नगमा का जिस्म अब शिथिल पड़ा हुआ था।उसकी आँखों के किनारे से आँशुओं की धार बह रही थी।

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दर्द को बयां करने की जरूरत नही पड़ती।वो शब्दो का मोहताज़ नही होता,आंखों छलक के स्वयं ही किसी की भी व्यथा को उजागर कर देतीं है।इस वक़्त भी दो लोगों की आंखें उनके दिल का दर्द बयां कर रही थी।कमरे के अंदर बेड पर पड़ी हुई नगमा। लेकिन अभी तो वो काम क्रीड़ा में लिप्त थी और ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे आंनद की पराकाष्ठा पर हो तो फिर अब ये आंसू?
दरअसल ये सब दिखावा था।नगमा को आज न वसीम का स्पर्श ही भ रहा था न उसके जिस्म काम में लिप्त होकर प्रतिक्रिया कर रहा था।ये सारा दिखावा उन दो आँखों के लिए था जो दरवाज़े से अंदर झाँक रही थी।ये आंखें और किसी की नही बल्कि शाहिद की थी।

बाथरूम से बाहर आने के बाद शाहिद को बेचैनी होने लगी थी कि ऊपर कही कुछ उल्टा सीधा न हो जाए।कही अब्बू सीधा अपने रूम में न चले जाएं और अम्मी को वैसी हालात में न देख लें।लेकिन अगर ऐसा हुआ हो तो।शाहिद ये सोच कर थोड़ा घबरा रहा था।जाने अब्बू कैसे रियेक्ट करेंगे।कही वो अम्मी को कुछ कर न दें।यही सब बातें सोच कर शाहिद चिंतित हो गया था और हाथ पैर में प्लास्टर होने के बावजूद बिना स्वयं की चिंता करे रेलिंग का सहारा लिए बड़ी मुश्किल से ऊपर आ गया था।लेकिन जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला था उसके समक्ष बेड पर पड़ा हुआ नगमा का नग्न शरीर था और ऊपर वसीम का।बेशक वो उसके अब्बू ही थे जो नगमा के जिस्म को भोग रहे थे लेकिन नगमा का मादकता भरा हर शब्द शाहिद के कलेजे पर पड़ रहे खंजर की तरह था।नगमा से प्यार करता था वो और स्वयं से कैसे देख सकता था नगमा को किसी और के साथ इस अवस्था में,इस तरह काम क्रीड़ा का उपभोग करते,आनंद लेते।ऐसे शब्द उसने आज तक अपनी अम्मी के मुँह से नही सुने थे और उसे तो ऐसा महसूस हो रहा था कि नगमा ने उसका दिल ही तोड़ कर रख दिया।अभी तो कुछ समय पहले वो शाहिद की बाहों में थी और अब.........दीवार का सहारा लेकर खड़े शाहिद की आंखें न चाहते हुए भी बिना रुके बहे जा रही थी।

उधर दूसरी तरफ नगमा भी जो वसीम को मना कर रही थी,जब उसने दरवाज़े की तरफ से शाहिद को अंदर झांकते देखा तो उसने उसी वक़्त तय कर लिया कि यही मौका है शाहिद के मन में अपने लिए नफरत भरने का,शायद इससे नफरत बेसक न भरे लेकिन शाहिद जब मुझे वसीम के साथ इस तरह देखेगा,ऐसे बात करते सुनेगा तो दिल तो टूटेगा उसका।बस यही सोच कर नगमा ने अभी थोड़ी देर पहले ये सब नाटक किया था और अब उसकी आँखों से बहते आँसू उसके दिल के दर्द को बयाँ कर रहे थे।लेकिन किस बात से नगमा का दिल दुख है था,क्या था ये दर्द?शाहिद का उसे ऐसे देखना या वसीम का उसे भोगना?नही ये दर्द था जान बूझकर शाहिद के दिल को दर्द पहुँचाने का।

बेड पर पड़ी रोते रोते नगमा सोच में थी

"सॉरी शाहिद तुम्हे ये सब देखना पड़ा.....लेकिन मेरे पास तुमसे दूरी बनाने का और कोई रास्ता भी तो नही है,शायद अब तुम मुझसे नफरत करने लगो.......सॉरी।"

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अगला दिन

सुबह के 9बजे है।शाहिद डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा है, दूसरी तरफ वसीम बैठा है और अपने अखबार में बिजी है।आदिल आज भी जल्दी नाश्ता करके प्रोजेक्ट बनाने का बोलकर बाहर चला गया है।शाहिद ने गौर किया कि पिछले कुछ दिनों से आदिल अजीब व्यवहार कर रहा है,अक्सर वो आजकल घर से बाहर ही रह रहा है।घर पर भी अधिकतर वक़्त वो अपने कमरे में बंद होकर लैपटॉप या मोबाइल पर ही बिता रहे है।खैर उसने इस बात को इतना तवज़्ज़ो नही दिया और फिर से अपनी प्यारी अम्मी को देखते देखते नाश्ता करने लगा।शाहिद को कल की घटना का बुरा जरूर लगा था लेकिन वो नगमा से क्या बात करता।

तभी शाहिद के मोबाइल की रिंग बजी।नंबर देख कर उसके चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गयी।फ़ोन और किसी का नही नादिया का था।

शाहिद : हेलो

नादिया : अरे एक तो बस हेलो और वो भी इतना रूखा सूखा

सुन कर शाहिद के चेहरे की मुस्कान खिल गयी लेकिन सामने ही अब्बू बैठे हुए थे और दूसरा हाथ टांग में फ्रैक्चर तो एकदम से उठकर दूर भी नही जा सकता था।शाहिद ने अपनी अक्लमंदी का इस्तेमाल किया।

शाहिद : हाँ मैं और अब्बू अभी नाश्ता ही कर रहे हैं

नादिया : ओ अब समझी,अब्बू भी बगल में है....ई मीन अंकल भी बगल में ही है।अच्छा कोई बात नही कब आ रहे हो?

शाहिद : कहाँ?

नादिया : हॉस्पिटल

शाहिद : क्यों?

नादिया : भुलक्कड़ महाराज,आज आपके हाथ का प्लास्टर निकलना है ना

शाहिद : ओ सॉरी में तो भूल ही गया था।

नादिया : जानती थी,इसी लिए फ़ोन कर दिया।तो जल्दी से आ जाओ और हां मुझे कॉल कर देना आकर।

शाहिद : लेकिन तुम्हारी तो क्लास होगी न

नादिया : तुम्हे बड़ी टेंशन है मेरी क्लास की।चुप चाप आकर फ़ोन करना,मिले बिना गए न मुझसे तो देख लेना।

शाहिद के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गयी।वो भूल ही गया था कि वो कहा बैठा है और क्या कर रहा है।कितनी मीठी बातें करती है नादिया।

शाहिद : अच्छा जी,नही मिला तो? (मुस्कुराते हुए)

नादिया : जो एक हाथ और टांग बची है ना वो भी तोड़ दूँगी।

शाहिद : अच्छा है फिर तो आपको हमे अपनी बाहों में लेकर घूमना पड़ेगा।

ये सुनकर नादिया शर्म से लाल हो गयी और इधर वसीम अपने बेटे की बात सुन कर नकली खाँसी खांसते हुए मुस्कुराने लगा।

शाहिद को होश आया कि वो किसके सामने और कहां बैठा है।

शाहिद : अब्बू ये तो वो....हॉं कॉलेज के दोस्त का फ़ोन है,ऐसे ही मस्ती कर रहा था।

वसीम : अरे तो हमने कहाँ कुछ कहा भाई।वैसे अपने कॉलेज के दोस्त से पूछ लेना कि डॉक्टर कपूर कितने बजे बैठेंगे अपने रूम में।

शाहिद को पता था कि उसकी चोरी पकड़ी गई है।वो बस झेंप के रह गया।दूसरी तरफ नादिया ने उनकी बात सुन ली थी।काफी खुश थी वो।फ़ोन में ही दूसरी तरफ से उसने बिना पूछे ही बता दिया।

नादिया : 10 बजे और हां शाहिद कॉल जरूर करना।अब रखती हूं।बाए।

शाहिद : बाए

शाहिद अब चुपचाप प्लेट की तरफ देख कर नाश्ता करने लगा।

वसीम : तो हो गयी बात " कॉलेज के दोस्त" से?कितने बजे चलना है फिर।

शाहिद : क्या अब्बू आप भी,वो तो उसने याद दिलाने के लिए फ़ोन किया था कि आज प्लास्टर निकलवाने जाना है।

वसीम : चलो अच्छा है,दो दो हो गयीं अब तो जनाब का ख्याल रखने वाली (ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए)

शाहिद : अब्बू प्लीज न

वसीम : अच्छा अच्छा ऑल राइट।तो कितने बजे चलना है।

शाहिद : डॉक्टर कपूर 10 बजे आ जाएंगे

वसीम : ठीक है,तो रेडी हो जाओ, चलते हैं।नगमा तुम भी रेडी हो जाओ जल्दी से।

नगमा : मैं क्या करूंगी जाकर,आप ही लेते जाइये,हॉस्पिटल में मेला थोड़ी लगाना है।

ये बात वसीम को थोड़ी अटपटी सी लगी।शाहिद भी ये सुनकर हैरान था।

वसीम : अरे कल तक तो सिर पे चढ़ी रहती थी तुम की कब ले जाना है शाहिद को,बात करिये डॉक्टर साहब से,मुझसे देखा नही जा रहा और अभी कह रही हो मेला लग जाएगा तुम्हारे चलने से?

नगमा कुछ श्रण के लिए चुप रही।कितनी बेचैन होती थी वो शाहिद को इस हालत में देख कर।वो तो चाहती तो एक पल मे ही शाहिद को ठीक कर देती।ज़िद करते रहती थी वसीम से की वो जल्द से डॉक्टर कपूर से बात कर प्लास्टर उतरवाए लेकिन कल जो हुआ उसने पूरी तरह से नगमा को अंदर से हिला के रख दिया था।अगर वसीम उसे और शाहिद को उस हाल में पकड़ लेता तो कयामत ही आ जाती।नगमा ने फैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो बेशक शाहिद उससे ज़िंदगी भर नफरत ही करने लगे लेकिन उसे शाहिद से दूर होना ही होगा,शाहिद का अपने प्रति प्यार खत्म करना होगा।वो नही चाहती थी कि शाहिद को कभी एक छोटी सी खरोच तक आये और इसके लिए उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर ये सब करना ही था।

नगमा : ओहो काम है मुझे काफी आज और वैसे भी आपके साथ साथ वहाँ नादिया भी तो होगी न

वसीम के साथ साथ नगमा के बर्ताव से शाहिद भी थोड़ा हैरान था लेकिन उसने सोचा कि कल शाम को जो हुआ उसकी वजह से अम्मी थोड़ी शर्मिंदा है और उससे नज़रे नही मिला पा रही।उसने सोचा कि हॉस्पिटल से आकर अम्मी से बात कर लेगा,उन्हें समझा देगा।

वसीम और शाहिद कार में बैठ हॉस्पिटल पहुँचे।करीब 10:30 बज चुके थे।शाहिद अपना फ़ोन गलती से घर पर चार्जिंग पॉइंट पर लगा ही छोड़ आया था।वसीम और शाहिद गेट से अंदर पहुंचे।

वसीम : शाहिद सामने बैठ जाओ,मैं काउंटर से आता हूँ।

शाहिद : अब्बू यहां बैठ कर क्या करूँगा,आप काउंटर से आइए मैं डॉक्टर साहब के केबिन के बाहर चलता हूँ तबतक।

वसीम : ठीक है ध्यान से जाना

शाहिद : जी अब्बू।

शाहिद बैसाखी के सहारे डॉक्टर कपूर के केबिन के पास पहुंचा ही था कि उसे वहां यहां से वहां चक्कर लगाती नादिया दिखाई दी।शाहिद को देखते ही उसका चेहरा एकदम से खिल गया लेकिन अपने चेहरे पर झूठा घुसा लाते हुए नादिया शाहिद की तरफ बढ़ी।

नादिया : पागल हो?

शाहिद : हुँह?

नादिया : बहरे हो?

शाहिद : क्या बोल रही हो

नादिया : जवाब दो पहले (हक़ जताते हुए)

शाहिद : नही बाबा

नादिया : तो मेरी कॉल क्यों नही उठा रहे थे

शाहिद : वो....

नादिया : ये वो कुछ नही।सब समझती हूँ मैं।तुमने सोच बिना बताए निकल लोगे।है ना?एक मैसेज तक नही हुआ तुमसे,ऊपर से मैन पचासों कॉल की एक भी नही उठायी।

शाहिद : अरे सुनो तो (शाहिद ने नादिया का हाथ थामते हुए कहा)

नादिया ने ग़ुस्से में अपना हाथ झटक दिया जिसका फायदा उठाकर शाहिद ने तेज़ दर्द होने का बहाना बना दिया।

शाहिद : आआआह मेरा हाथ

नादिया (घबराते हुए) : सॉरी सॉरी.....सॉरी शाहिद।आई एम रियली सॉरी....क्या कर दिया मैने.... सॉरी सॉरी दर्द हो रहा है क्या

नादिया घबराते हुए शाहिद के हाथ को देखने लगी पर जब उसने उसके चेहरे की तरफ देखा तो शाहिद मुस्कुरा रहा था।नादिया को समझते देर न लगी कि वो बहाना बना रहा था।

नादिया : यूऊऊऊऊऊऊ.....जाओ मैं तुमसे बात नही करती।

शाहिद ने एक बार फिर उसका हाथ थामा।

शाहिद : नादिया सुनो तो यार

नादिया ने अबकी बार अपना हाथ शाहिद के हाथ में रहने दिया और सामने लगे काउच पर बैठने का इशारा करते हुए उसे वहां बैठने में मदद की।

शाहिद बैठने के बाद नाड़िये के चेहरे को देख रहा था।

नादिया : बोलो क्या बोलना है अब।ऐसे क्या देख रहे हो,बोलती क्यों बंद कर दी।

शाहिद : ग़ुस्से में और भी क्यूट लगती हो तुम

नादिया ये सुन अंदर ही अंदर तो बहुत खुश हुई लेकिन बाहर से ग़ुस्सा दिखाते हुए बोली

नादिया : हेलो मिस्टर फ़्लर्ट,इन सबसे मैं खुश नही होने वाली।पिछले आधे घंटे से क्लास छोड़कर यहां महाराज का इंतज़ार कर रही हूँ और आप के पास मेरी कॉल उठाने तक का टाइम नही।

शाहिद : टाइम?मेरा तो बस चले तो 40 के 40 घंटे तुम्हारे साथ बातें करने में बिताऊं।

नादिया : सिर पर चोट लगी थी न,असर हो तो नही गया।दिन में बस 24 घंटे ही होते है पागल।

शाहिद : वही तो.....तुम्हारे साथ बातें करने के लिए तो 24घंटे भी कम लगते हैं मुझे,कम से कम दिन 40 घंटे का होता तो शायद थोड़ा दिल भरता

नादिया : ओ गॉड कितने बड़े फ़्लर्ट हो गए हो शाहिद।कितनी लड़कियां पटाई ऐसी चीजी लाइन्स बोल के

शाहिद : यार हक़ीक़त बयाँ करू तो तुम फ़्लर्ट करना कहने लगती हो।

नादिया : हॉं हाँ रहने दो,24 घंटे कम पड़ रहे है और एक कॉल उठाने का टाइम नही।

शाहिद : यार मेरी गलती नही है।

नादिया : अच्छा फिर किसकी है तुम्हारे अब्बू की।

"हाँ बेटा इसके अब्बू की ही है,जल्दी जल्दी में मेरी वजह से ही इसका फ़ोन घर पे ही छूट गया"

पीछे से वसीम मुस्कुराते हुए बोला।
नादिया की तो मानो शर्मिंदगी से गर्दन ज़मीन में गड गयी हो।वो तो भूल ही गयी थी कि शाहिद होस्पिटल अकेले तो आया नही होगा न और किसी के साथ आया है तो वो दूसरा शख्स कहां है।

नादिया : सॉरी अंकल मेरा वो मतलब नही था

वसीम : अरे बेटा मैं जानता हूँ, बल्कि मैं तो बेहद खुश हुआ तुम्हे इसे डाँटते देख कर।घर में मैं तो इसे डांट नही पाता हाँ इसकी वजह से आपकी आंटी से डांट जरूर खाता हूं।तो मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि आप इसे डांट सकते हो।एक काम करते है,हम दोनों न मिलके एक टीम बना लेते है,जब मुझे इसकी वजह से घर पे डांट पड़ेगी तो मैं आप के पास भेज दूँगा,आप इसे जी भरके डांट लेना।बोलो डील (आगे हंसते हुए हाथ बढ़ाता है)

अब नादिया भी सहज होते हुए मुस्कुराते हुए हाथ मिलाती है।

नादिया : डील

इतने में डॉक्टर कपूर वार्ड की तरफ से आते है।

डॉक्टर कपूर : आओ वसीम,प्लीज कम इनसाइड।

वसीम उनके साथ अंदर जाता है।नादिया और शाहिद बाहर काउच पर बैठे है।

शाहिद : तो अब आप अब्बू की टीम में हो गए?

नादिया (इतराते हुए) : और नही तो क्या

शाहिद : सही है पहले फैमिली मेंबर अब अब्बू के टीम मेंबर,आदि के क्लासमेट हो ही,अम्मी के साथ भी कुछ जुगाड़ बना हो लोगे......बढ़िया है......सबसे कुछ न कुछ राबता बना लो बस हमसे छोड़के (दूसरी तरफ मुँह करके बोलता है)

नादिया : (शाहिद का हाथ अपने हाथ में लेते हुए) तुमसे तो सबसे ख़ास राबता है शाहिद....आई....आई

शाहिद : हाँ बोलो भी

नादिया : वो शाहिद आई....आई....आई वांट तो लर्न आंटी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी (तेज़ी से बोलते हुए हंसने लगती है)

डॉक्टर कपूर के केबिन का दरवाजा खुलता है और नादिया अपना हाथ हटा लेती है।शाहिद की आंखों में उसे एक मायूसी नज़र आती है जिसे देख कर नादिया शरारत भरी मुस्कान बिखेर देती है अपने चेहरे पर।

डॉक्टर कपूर : चलो शाहिद बेटा, एक्स रे कर लेते है आपका।

नादिया व्हील चेयर ले आती है और शाहिद को उसपे बैठाती है।डॉक्टर कपूर का ध्यान अब नादिया पर गया।

डॉक्टर कपूर : बेटा आप तो नर्सिंग स्टूडेंट हो,क्लास नही आपकी

नादिया : सर् वो आज मेरी वार्ड में ड्यूटी है सिस्टर जया के साथ तो.....

डॉक्टर कपूर : इट्स ऑलराइट बेटा।आई नो आप शाहिद के स्कूल फ्रेंड हो।अपने दोस्त को चोट लगी हो तो मन किसका मानेगा।चलो अच्छा है आप हो तो हेल्पिंग हैंड हो जाएगा।

नादिया एक स्माइल करती है और शाहिद को एक्सरे रूम लेकर चलती है।शाहिद की थोड़ी देर बाद ही एक्सरे रिपोर्ट आ जाती है।हाथों का फ्रैक्चर तो पूरी तरह से ठीक हो गया था लेकिन पैर पूरी तरह से हील नही हुआ था।डॉक्टर कपूर ने ऑर्थो के डॉक्टर से हाथ का प्लास्टर हटवाया और पैर से हार्ड प्लास्टर हटवा के सॉफ्ट प्लास्टर लगवा दिया।अब शाहिद को चलने में पहले से बहुत आसानी हो रही थी और हाथ का प्लास्टर हटते ही उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसे जेल से आज़ादी मिल गयी हो।बगल में नादिया थी।एक पल के लिए तो उसका मन हुआ कि नादिया को गले से लगा ले लेकिन उसने खुद को संभाला।डॉक्टर कपूर ने भी रिपोर्ट देख कर एक हफ्ते और पैरों में प्लास्टर रखने को कहा,उसके बाद वो भी उतर जाएगा।सुन कर सब बड़े खुश हुए।नादिया एक बार फिर वहां से उसे व्हील चेयर पर बैठ कर बाहर लाने लगी।वसीम वही खड़ा डॉक्टर कपूर से कुछ बातें करने लगा।

नादिया : मुबारक हो,ट्रीट कब दे रहे हो

शाहिद : घर पे आ जाना दे दूंगा

नादिया : रोटी सब्ज़ी खिलाओगे क्या,घर पे कौन देता है ट्रीट

शाहिद : जिस ट्रीट की में बात कर रहा हूं वो बाहर कही नही दे सकता न।

ये सुनकर नादिया के गालो पर लाली आ गयी।

नादिया : अच्छा ऐसी क्या ट्रीट देने का सोचा है तुमने मिस्टर (शर्माते हुए)

शाहिद : अम्मी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी सिखवा दूँगा,बाहर तो नही सीख सकती न कही (ये कहकर ज़ोर ज़ोर से हसने लगता है)

थोड़ी देर पहले जो पैंतरा नादिया ने शाहिद पर चला था वही शाहिद ने उसे सूद समेत वापस कर दिया था।

नादिया : बदमाश! (मुस्कुराती है)

वसीम जाते वक्त नादिया को शाम को घर पे बुलाता है।

नादिया : मूंग दाल हलवा रेसिपी के लिए(हंसते हुए)

शाहिद : नही किसी बात का इज़हार भी करना है,तुमसे तो होने से रहा

नादिया के गाल एक बार फिर लाल हो गए।उसने शाम को मिलने की हामी भरी और वार्ड में चली गयी।शाहिद भी कार में वसीम के साथ घर की तरफ चल दिया।अभी घर पहुंचे ही थे कि वसीम के ऑफिस से जरूरी कॉल आ गया और उसे शाहिद को गेट पर ही छोड़ कर जाना पड़ा।
शाहिद ये देख कर खुश हो गया कि अब उसे घर में अम्मी से बात करने का अकेले में समय मिल जाएगा।आग कितने दिनों बाद वो अम्मी को खुलकर अपनी बाहों में भरने वाला था।शाहिद अंदर गया तो नगमा नीचे के कमरों में नही थी।शाहिद के पैर से हार्ड प्लास्टर निकाल दिया गया था और अब चलने में इतनी कोई परेशानी थी नही।साथ ही साथ उसके दोनों हाथ अब फ्री थे तो उसने नगमा को ऊपर उसके रूम में जाकर सरप्राइज देने की सोची।ऊपर पोहचा तो नगमा किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी।आवाज़ रूम के बाहर तक आ रही थी।शाहिद ने सोचा कि अम्मी पहले बात कर ले तब अचानक से बाहों में भरते हुए सरप्राइज दूँगा और सारी बातें जो कल हुई क्लियर कर लूंगा।अब शाहिद दरवाज़े के बाहर खड़ा होक बातें सुनने लगा।

लेकिन जो जो वो बातें सुनता गया उसके चेहरे की रंगत फीकी पड़ते गयी।चेहरे की सारी खुशी उड़नछू हो चुकी थी।शाहिद अवाक से होकर नगमा की बातें सुन रहा था।उसके चेहरे पर ग़ुस्से के एकदम खौफनाक भाव उभर रहे थे।मानो जैसे ग़ुस्से में किसी का कत्ल न कर दे वो।साथ ही दिल में ग़ुस्से के साथ साथ उसकी आंखें भी भर आयी थी।जो सुन रहा था उसे उस बात पर विश्वास ही नही हो रहा था।उसके लिए ये सब एक बुरे सपने जैसा था।ग़ुस्से के मारे उसकी बड़ी बड़ी आंखें लाल हो चुकी थी।

लेकिन अंदर क्या हो रहा था।जो शाहिद अभी अपनी अम्मी को बाहों में भरने के लिए इतना उत्साहित था,बेचैन था आखिर ऐसा क्या हो गया कि वो ग़ुस्से की आग में उबलने लगा।ऐसा क्या सुन लिया शाहिद ने,जानने के लिए जुड़े रहिए।अगला अपडेट जल्द ही आएगा।
 

Boob420

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वसीम : नगमा मैं...(हांफते हुए)......मेरा होने वाला है"

नगमा : मेरा भी....आह! वसीम....और ज़ोर से.....बोहोत मज़ा आ रहा है....आह

वसीम तेज़ी से धक्का देते हुए नगमा की चूत के अंदर ही झड़ जाता है और लंबी लंबी सांस लेते हुए उसके जिस्म पर गिर जाता है।नगमा की नज़र अभी भी दरवाज़े पर थी जहां से अब वो दो निगाहैं गायब हो चुकी थी।वसीम उठता है और सीधा वाशरूम में चले जाता है।नगमा का जिस्म अब शिथिल पड़ा हुआ था।उसकी आँखों के किनारे से आँशुओं की धार बह रही थी।

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दर्द को बयां करने की जरूरत नही पड़ती।वो शब्दो का मोहताज़ नही होता,आंखों छलक के स्वयं ही किसी की भी व्यथा को उजागर कर देतीं है।इस वक़्त भी दो लोगों की आंखें उनके दिल का दर्द बयां कर रही थी।कमरे के अंदर बेड पर पड़ी हुई नगमा। लेकिन अभी तो वो काम क्रीड़ा में लिप्त थी और ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे आंनद की पराकाष्ठा पर हो तो फिर अब ये आंसू?
दरअसल ये सब दिखावा था।नगमा को आज न वसीम का स्पर्श ही भ रहा था न उसके जिस्म काम में लिप्त होकर प्रतिक्रिया कर रहा था।ये सारा दिखावा उन दो आँखों के लिए था जो दरवाज़े से अंदर झाँक रही थी।ये आंखें और किसी की नही बल्कि शाहिद की थी।

बाथरूम से बाहर आने के बाद शाहिद को बेचैनी होने लगी थी कि ऊपर कही कुछ उल्टा सीधा न हो जाए।कही अब्बू सीधा अपने रूम में न चले जाएं और अम्मी को वैसी हालात में न देख लें।लेकिन अगर ऐसा हुआ हो तो।शाहिद ये सोच कर थोड़ा घबरा रहा था।जाने अब्बू कैसे रियेक्ट करेंगे।कही वो अम्मी को कुछ कर न दें।यही सब बातें सोच कर शाहिद चिंतित हो गया था और हाथ पैर में प्लास्टर होने के बावजूद बिना स्वयं की चिंता करे रेलिंग का सहारा लिए बड़ी मुश्किल से ऊपर आ गया था।लेकिन जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला था उसके समक्ष बेड पर पड़ा हुआ नगमा का नग्न शरीर था और ऊपर वसीम का।बेशक वो उसके अब्बू ही थे जो नगमा के जिस्म को भोग रहे थे लेकिन नगमा का मादकता भरा हर शब्द शाहिद के कलेजे पर पड़ रहे खंजर की तरह था।नगमा से प्यार करता था वो और स्वयं से कैसे देख सकता था नगमा को किसी और के साथ इस अवस्था में,इस तरह काम क्रीड़ा का उपभोग करते,आनंद लेते।ऐसे शब्द उसने आज तक अपनी अम्मी के मुँह से नही सुने थे और उसे तो ऐसा महसूस हो रहा था कि नगमा ने उसका दिल ही तोड़ कर रख दिया।अभी तो कुछ समय पहले वो शाहिद की बाहों में थी और अब.........दीवार का सहारा लेकर खड़े शाहिद की आंखें न चाहते हुए भी बिना रुके बहे जा रही थी।

उधर दूसरी तरफ नगमा भी जो वसीम को मना कर रही थी,जब उसने दरवाज़े की तरफ से शाहिद को अंदर झांकते देखा तो उसने उसी वक़्त तय कर लिया कि यही मौका है शाहिद के मन में अपने लिए नफरत भरने का,शायद इससे नफरत बेसक न भरे लेकिन शाहिद जब मुझे वसीम के साथ इस तरह देखेगा,ऐसे बात करते सुनेगा तो दिल तो टूटेगा उसका।बस यही सोच कर नगमा ने अभी थोड़ी देर पहले ये सब नाटक किया था और अब उसकी आँखों से बहते आँसू उसके दिल के दर्द को बयाँ कर रहे थे।लेकिन किस बात से नगमा का दिल दुख है था,क्या था ये दर्द?शाहिद का उसे ऐसे देखना या वसीम का उसे भोगना?नही ये दर्द था जान बूझकर शाहिद के दिल को दर्द पहुँचाने का।

बेड पर पड़ी रोते रोते नगमा सोच में थी

"सॉरी शाहिद तुम्हे ये सब देखना पड़ा.....लेकिन मेरे पास तुमसे दूरी बनाने का और कोई रास्ता भी तो नही है,शायद अब तुम मुझसे नफरत करने लगो.......सॉरी।"

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अगला दिन

सुबह के 9बजे है।शाहिद डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा है, दूसरी तरफ वसीम बैठा है और अपने अखबार में बिजी है।आदिल आज भी जल्दी नाश्ता करके प्रोजेक्ट बनाने का बोलकर बाहर चला गया है।शाहिद ने गौर किया कि पिछले कुछ दिनों से आदिल अजीब व्यवहार कर रहा है,अक्सर वो आजकल घर से बाहर ही रह रहा है।घर पर भी अधिकतर वक़्त वो अपने कमरे में बंद होकर लैपटॉप या मोबाइल पर ही बिता रहे है।खैर उसने इस बात को इतना तवज़्ज़ो नही दिया और फिर से अपनी प्यारी अम्मी को देखते देखते नाश्ता करने लगा।शाहिद को कल की घटना का बुरा जरूर लगा था लेकिन वो नगमा से क्या बात करता।

तभी शाहिद के मोबाइल की रिंग बजी।नंबर देख कर उसके चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गयी।फ़ोन और किसी का नही नादिया का था।

शाहिद : हेलो

नादिया : अरे एक तो बस हेलो और वो भी इतना रूखा सूखा

सुन कर शाहिद के चेहरे की मुस्कान खिल गयी लेकिन सामने ही अब्बू बैठे हुए थे और दूसरा हाथ टांग में फ्रैक्चर तो एकदम से उठकर दूर भी नही जा सकता था।शाहिद ने अपनी अक्लमंदी का इस्तेमाल किया।

शाहिद : हाँ मैं और अब्बू अभी नाश्ता ही कर रहे हैं

नादिया : ओ अब समझी,अब्बू भी बगल में है....ई मीन अंकल भी बगल में ही है।अच्छा कोई बात नही कब आ रहे हो?

शाहिद : कहाँ?

नादिया : हॉस्पिटल

शाहिद : क्यों?

नादिया : भुलक्कड़ महाराज,आज आपके हाथ का प्लास्टर निकलना है ना

शाहिद : ओ सॉरी में तो भूल ही गया था।

नादिया : जानती थी,इसी लिए फ़ोन कर दिया।तो जल्दी से आ जाओ और हां मुझे कॉल कर देना आकर।

शाहिद : लेकिन तुम्हारी तो क्लास होगी न

नादिया : तुम्हे बड़ी टेंशन है मेरी क्लास की।चुप चाप आकर फ़ोन करना,मिले बिना गए न मुझसे तो देख लेना।

शाहिद के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गयी।वो भूल ही गया था कि वो कहा बैठा है और क्या कर रहा है।कितनी मीठी बातें करती है नादिया।

शाहिद : अच्छा जी,नही मिला तो? (मुस्कुराते हुए)

नादिया : जो एक हाथ और टांग बची है ना वो भी तोड़ दूँगी।

शाहिद : अच्छा है फिर तो आपको हमे अपनी बाहों में लेकर घूमना पड़ेगा।

ये सुनकर नादिया शर्म से लाल हो गयी और इधर वसीम अपने बेटे की बात सुन कर नकली खाँसी खांसते हुए मुस्कुराने लगा।

शाहिद को होश आया कि वो किसके सामने और कहां बैठा है।

शाहिद : अब्बू ये तो वो....हॉं कॉलेज के दोस्त का फ़ोन है,ऐसे ही मस्ती कर रहा था।

वसीम : अरे तो हमने कहाँ कुछ कहा भाई।वैसे अपने कॉलेज के दोस्त से पूछ लेना कि डॉक्टर कपूर कितने बजे बैठेंगे अपने रूम में।

शाहिद को पता था कि उसकी चोरी पकड़ी गई है।वो बस झेंप के रह गया।दूसरी तरफ नादिया ने उनकी बात सुन ली थी।काफी खुश थी वो।फ़ोन में ही दूसरी तरफ से उसने बिना पूछे ही बता दिया।

नादिया : 10 बजे और हां शाहिद कॉल जरूर करना।अब रखती हूं।बाए।

शाहिद : बाए

शाहिद अब चुपचाप प्लेट की तरफ देख कर नाश्ता करने लगा।

वसीम : तो हो गयी बात " कॉलेज के दोस्त" से?कितने बजे चलना है फिर।

शाहिद : क्या अब्बू आप भी,वो तो उसने याद दिलाने के लिए फ़ोन किया था कि आज प्लास्टर निकलवाने जाना है।

वसीम : चलो अच्छा है,दो दो हो गयीं अब तो जनाब का ख्याल रखने वाली (ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए)

शाहिद : अब्बू प्लीज न

वसीम : अच्छा अच्छा ऑल राइट।तो कितने बजे चलना है।

शाहिद : डॉक्टर कपूर 10 बजे आ जाएंगे

वसीम : ठीक है,तो रेडी हो जाओ, चलते हैं।नगमा तुम भी रेडी हो जाओ जल्दी से।

नगमा : मैं क्या करूंगी जाकर,आप ही लेते जाइये,हॉस्पिटल में मेला थोड़ी लगाना है।

ये बात वसीम को थोड़ी अटपटी सी लगी।शाहिद भी ये सुनकर हैरान था।

वसीम : अरे कल तक तो सिर पे चढ़ी रहती थी तुम की कब ले जाना है शाहिद को,बात करिये डॉक्टर साहब से,मुझसे देखा नही जा रहा और अभी कह रही हो मेला लग जाएगा तुम्हारे चलने से?

नगमा कुछ श्रण के लिए चुप रही।कितनी बेचैन होती थी वो शाहिद को इस हालत में देख कर।वो तो चाहती तो एक पल मे ही शाहिद को ठीक कर देती।ज़िद करते रहती थी वसीम से की वो जल्द से डॉक्टर कपूर से बात कर प्लास्टर उतरवाए लेकिन कल जो हुआ उसने पूरी तरह से नगमा को अंदर से हिला के रख दिया था।अगर वसीम उसे और शाहिद को उस हाल में पकड़ लेता तो कयामत ही आ जाती।नगमा ने फैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो बेशक शाहिद उससे ज़िंदगी भर नफरत ही करने लगे लेकिन उसे शाहिद से दूर होना ही होगा,शाहिद का अपने प्रति प्यार खत्म करना होगा।वो नही चाहती थी कि शाहिद को कभी एक छोटी सी खरोच तक आये और इसके लिए उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर ये सब करना ही था।

नगमा : ओहो काम है मुझे काफी आज और वैसे भी आपके साथ साथ वहाँ नादिया भी तो होगी न

वसीम के साथ साथ नगमा के बर्ताव से शाहिद भी थोड़ा हैरान था लेकिन उसने सोचा कि कल शाम को जो हुआ उसकी वजह से अम्मी थोड़ी शर्मिंदा है और उससे नज़रे नही मिला पा रही।उसने सोचा कि हॉस्पिटल से आकर अम्मी से बात कर लेगा,उन्हें समझा देगा।

वसीम और शाहिद कार में बैठ हॉस्पिटल पहुँचे।करीब 10:30 बज चुके थे।शाहिद अपना फ़ोन गलती से घर पर चार्जिंग पॉइंट पर लगा ही छोड़ आया था।वसीम और शाहिद गेट से अंदर पहुंचे।

वसीम : शाहिद सामने बैठ जाओ,मैं काउंटर से आता हूँ।

शाहिद : अब्बू यहां बैठ कर क्या करूँगा,आप काउंटर से आइए मैं डॉक्टर साहब के केबिन के बाहर चलता हूँ तबतक।

वसीम : ठीक है ध्यान से जाना

शाहिद : जी अब्बू।

शाहिद बैसाखी के सहारे डॉक्टर कपूर के केबिन के पास पहुंचा ही था कि उसे वहां यहां से वहां चक्कर लगाती नादिया दिखाई दी।शाहिद को देखते ही उसका चेहरा एकदम से खिल गया लेकिन अपने चेहरे पर झूठा घुसा लाते हुए नादिया शाहिद की तरफ बढ़ी।

नादिया : पागल हो?

शाहिद : हुँह?

नादिया : बहरे हो?

शाहिद : क्या बोल रही हो

नादिया : जवाब दो पहले (हक़ जताते हुए)

शाहिद : नही बाबा

नादिया : तो मेरी कॉल क्यों नही उठा रहे थे

शाहिद : वो....

नादिया : ये वो कुछ नही।सब समझती हूँ मैं।तुमने सोच बिना बताए निकल लोगे।है ना?एक मैसेज तक नही हुआ तुमसे,ऊपर से मैन पचासों कॉल की एक भी नही उठायी।

शाहिद : अरे सुनो तो (शाहिद ने नादिया का हाथ थामते हुए कहा)

नादिया ने ग़ुस्से में अपना हाथ झटक दिया जिसका फायदा उठाकर शाहिद ने तेज़ दर्द होने का बहाना बना दिया।

शाहिद : आआआह मेरा हाथ

नादिया (घबराते हुए) : सॉरी सॉरी.....सॉरी शाहिद।आई एम रियली सॉरी....क्या कर दिया मैने.... सॉरी सॉरी दर्द हो रहा है क्या

नादिया घबराते हुए शाहिद के हाथ को देखने लगी पर जब उसने उसके चेहरे की तरफ देखा तो शाहिद मुस्कुरा रहा था।नादिया को समझते देर न लगी कि वो बहाना बना रहा था।

नादिया : यूऊऊऊऊऊऊ.....जाओ मैं तुमसे बात नही करती।

शाहिद ने एक बार फिर उसका हाथ थामा।

शाहिद : नादिया सुनो तो यार

नादिया ने अबकी बार अपना हाथ शाहिद के हाथ में रहने दिया और सामने लगे काउच पर बैठने का इशारा करते हुए उसे वहां बैठने में मदद की।

शाहिद बैठने के बाद नाड़िये के चेहरे को देख रहा था।

नादिया : बोलो क्या बोलना है अब।ऐसे क्या देख रहे हो,बोलती क्यों बंद कर दी।

शाहिद : ग़ुस्से में और भी क्यूट लगती हो तुम

नादिया ये सुन अंदर ही अंदर तो बहुत खुश हुई लेकिन बाहर से ग़ुस्सा दिखाते हुए बोली

नादिया : हेलो मिस्टर फ़्लर्ट,इन सबसे मैं खुश नही होने वाली।पिछले आधे घंटे से क्लास छोड़कर यहां महाराज का इंतज़ार कर रही हूँ और आप के पास मेरी कॉल उठाने तक का टाइम नही।

शाहिद : टाइम?मेरा तो बस चले तो 40 के 40 घंटे तुम्हारे साथ बातें करने में बिताऊं।

नादिया : सिर पर चोट लगी थी न,असर हो तो नही गया।दिन में बस 24 घंटे ही होते है पागल।

शाहिद : वही तो.....तुम्हारे साथ बातें करने के लिए तो 24घंटे भी कम लगते हैं मुझे,कम से कम दिन 40 घंटे का होता तो शायद थोड़ा दिल भरता

नादिया : ओ गॉड कितने बड़े फ़्लर्ट हो गए हो शाहिद।कितनी लड़कियां पटाई ऐसी चीजी लाइन्स बोल के

शाहिद : यार हक़ीक़त बयाँ करू तो तुम फ़्लर्ट करना कहने लगती हो।

नादिया : हॉं हाँ रहने दो,24 घंटे कम पड़ रहे है और एक कॉल उठाने का टाइम नही।

शाहिद : यार मेरी गलती नही है।

नादिया : अच्छा फिर किसकी है तुम्हारे अब्बू की।

"हाँ बेटा इसके अब्बू की ही है,जल्दी जल्दी में मेरी वजह से ही इसका फ़ोन घर पे ही छूट गया"

पीछे से वसीम मुस्कुराते हुए बोला।
नादिया की तो मानो शर्मिंदगी से गर्दन ज़मीन में गड गयी हो।वो तो भूल ही गयी थी कि शाहिद होस्पिटल अकेले तो आया नही होगा न और किसी के साथ आया है तो वो दूसरा शख्स कहां है।

नादिया : सॉरी अंकल मेरा वो मतलब नही था

वसीम : अरे बेटा मैं जानता हूँ, बल्कि मैं तो बेहद खुश हुआ तुम्हे इसे डाँटते देख कर।घर में मैं तो इसे डांट नही पाता हाँ इसकी वजह से आपकी आंटी से डांट जरूर खाता हूं।तो मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि आप इसे डांट सकते हो।एक काम करते है,हम दोनों न मिलके एक टीम बना लेते है,जब मुझे इसकी वजह से घर पे डांट पड़ेगी तो मैं आप के पास भेज दूँगा,आप इसे जी भरके डांट लेना।बोलो डील (आगे हंसते हुए हाथ बढ़ाता है)

अब नादिया भी सहज होते हुए मुस्कुराते हुए हाथ मिलाती है।

नादिया : डील

इतने में डॉक्टर कपूर वार्ड की तरफ से आते है।

डॉक्टर कपूर : आओ वसीम,प्लीज कम इनसाइड।

वसीम उनके साथ अंदर जाता है।नादिया और शाहिद बाहर काउच पर बैठे है।

शाहिद : तो अब आप अब्बू की टीम में हो गए?

नादिया (इतराते हुए) : और नही तो क्या

शाहिद : सही है पहले फैमिली मेंबर अब अब्बू के टीम मेंबर,आदि के क्लासमेट हो ही,अम्मी के साथ भी कुछ जुगाड़ बना हो लोगे......बढ़िया है......सबसे कुछ न कुछ राबता बना लो बस हमसे छोड़के (दूसरी तरफ मुँह करके बोलता है)

नादिया : (शाहिद का हाथ अपने हाथ में लेते हुए) तुमसे तो सबसे ख़ास राबता है शाहिद....आई....आई

शाहिद : हाँ बोलो भी

नादिया : वो शाहिद आई....आई....आई वांट तो लर्न आंटी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी (तेज़ी से बोलते हुए हंसने लगती है)

डॉक्टर कपूर के केबिन का दरवाजा खुलता है और नादिया अपना हाथ हटा लेती है।शाहिद की आंखों में उसे एक मायूसी नज़र आती है जिसे देख कर नादिया शरारत भरी मुस्कान बिखेर देती है अपने चेहरे पर।

डॉक्टर कपूर : चलो शाहिद बेटा, एक्स रे कर लेते है आपका।

नादिया व्हील चेयर ले आती है और शाहिद को उसपे बैठाती है।डॉक्टर कपूर का ध्यान अब नादिया पर गया।

डॉक्टर कपूर : बेटा आप तो नर्सिंग स्टूडेंट हो,क्लास नही आपकी

नादिया : सर् वो आज मेरी वार्ड में ड्यूटी है सिस्टर जया के साथ तो.....

डॉक्टर कपूर : इट्स ऑलराइट बेटा।आई नो आप शाहिद के स्कूल फ्रेंड हो।अपने दोस्त को चोट लगी हो तो मन किसका मानेगा।चलो अच्छा है आप हो तो हेल्पिंग हैंड हो जाएगा।

नादिया एक स्माइल करती है और शाहिद को एक्सरे रूम लेकर चलती है।शाहिद की थोड़ी देर बाद ही एक्सरे रिपोर्ट आ जाती है।हाथों का फ्रैक्चर तो पूरी तरह से ठीक हो गया था लेकिन पैर पूरी तरह से हील नही हुआ था।डॉक्टर कपूर ने ऑर्थो के डॉक्टर से हाथ का प्लास्टर हटवाया और पैर से हार्ड प्लास्टर हटवा के सॉफ्ट प्लास्टर लगवा दिया।अब शाहिद को चलने में पहले से बहुत आसानी हो रही थी और हाथ का प्लास्टर हटते ही उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसे जेल से आज़ादी मिल गयी हो।बगल में नादिया थी।एक पल के लिए तो उसका मन हुआ कि नादिया को गले से लगा ले लेकिन उसने खुद को संभाला।डॉक्टर कपूर ने भी रिपोर्ट देख कर एक हफ्ते और पैरों में प्लास्टर रखने को कहा,उसके बाद वो भी उतर जाएगा।सुन कर सब बड़े खुश हुए।नादिया एक बार फिर वहां से उसे व्हील चेयर पर बैठ कर बाहर लाने लगी।वसीम वही खड़ा डॉक्टर कपूर से कुछ बातें करने लगा।

नादिया : मुबारक हो,ट्रीट कब दे रहे हो

शाहिद : घर पे आ जाना दे दूंगा

नादिया : रोटी सब्ज़ी खिलाओगे क्या,घर पे कौन देता है ट्रीट

शाहिद : जिस ट्रीट की में बात कर रहा हूं वो बाहर कही नही दे सकता न।

ये सुनकर नादिया के गालो पर लाली आ गयी।

नादिया : अच्छा ऐसी क्या ट्रीट देने का सोचा है तुमने मिस्टर (शर्माते हुए)

शाहिद : अम्मी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी सिखवा दूँगा,बाहर तो नही सीख सकती न कही (ये कहकर ज़ोर ज़ोर से हसने लगता है)

थोड़ी देर पहले जो पैंतरा नादिया ने शाहिद पर चला था वही शाहिद ने उसे सूद समेत वापस कर दिया था।

नादिया : बदमाश! (मुस्कुराती है)

वसीम जाते वक्त नादिया को शाम को घर पे बुलाता है।

नादिया : मूंग दाल हलवा रेसिपी के लिए(हंसते हुए)

शाहिद : नही किसी बात का इज़हार भी करना है,तुमसे तो होने से रहा

नादिया के गाल एक बार फिर लाल हो गए।उसने शाम को मिलने की हामी भरी और वार्ड में चली गयी।शाहिद भी कार में वसीम के साथ घर की तरफ चल दिया।अभी घर पहुंचे ही थे कि वसीम के ऑफिस से जरूरी कॉल आ गया और उसे शाहिद को गेट पर ही छोड़ कर जाना पड़ा।
शाहिद ये देख कर खुश हो गया कि अब उसे घर में अम्मी से बात करने का अकेले में समय मिल जाएगा।आग कितने दिनों बाद वो अम्मी को खुलकर अपनी बाहों में भरने वाला था।शाहिद अंदर गया तो नगमा नीचे के कमरों में नही थी।शाहिद के पैर से हार्ड प्लास्टर निकाल दिया गया था और अब चलने में इतनी कोई परेशानी थी नही।साथ ही साथ उसके दोनों हाथ अब फ्री थे तो उसने नगमा को ऊपर उसके रूम में जाकर सरप्राइज देने की सोची।ऊपर पोहचा तो नगमा किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी।आवाज़ रूम के बाहर तक आ रही थी।शाहिद ने सोचा कि अम्मी पहले बात कर ले तब अचानक से बाहों में भरते हुए सरप्राइज दूँगा और सारी बातें जो कल हुई क्लियर कर लूंगा।अब शाहिद दरवाज़े के बाहर खड़ा होक बातें सुनने लगा।

लेकिन जो जो वो बातें सुनता गया उसके चेहरे की रंगत फीकी पड़ते गयी।चेहरे की सारी खुशी उड़नछू हो चुकी थी।शाहिद अवाक से होकर नगमा की बातें सुन रहा था।उसके चेहरे पर ग़ुस्से के एकदम खौफनाक भाव उभर रहे थे।मानो जैसे ग़ुस्से में किसी का कत्ल न कर दे वो।साथ ही दिल में ग़ुस्से के साथ साथ उसकी आंखें भी भर आयी थी।जो सुन रहा था उसे उस बात पर विश्वास ही नही हो रहा था।उसके लिए ये सब एक बुरे सपने जैसा था।ग़ुस्से के मारे उसकी बड़ी बड़ी आंखें लाल हो चुकी थी।

लेकिन अंदर क्या हो रहा था।जो शाहिद अभी अपनी अम्मी को बाहों में भरने के लिए इतना उत्साहित था,बेचैन था आखिर ऐसा क्या हो गया कि वो ग़ुस्से की आग में उबलने लगा।ऐसा क्या सुन लिया शाहिद ने,जानने के लिए जुड़े रहिए।अगला अपडेट जल्द ही आएगा।
Nice update
 
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वसीम : नगमा मैं...(हांफते हुए)......मेरा होने वाला है"

नगमा : मेरा भी....आह! वसीम....और ज़ोर से.....बोहोत मज़ा आ रहा है....आह

वसीम तेज़ी से धक्का देते हुए नगमा की चूत के अंदर ही झड़ जाता है और लंबी लंबी सांस लेते हुए उसके जिस्म पर गिर जाता है।नगमा की नज़र अभी भी दरवाज़े पर थी जहां से अब वो दो निगाहैं गायब हो चुकी थी।वसीम उठता है और सीधा वाशरूम में चले जाता है।नगमा का जिस्म अब शिथिल पड़ा हुआ था।उसकी आँखों के किनारे से आँशुओं की धार बह रही थी।

**************************************

दर्द को बयां करने की जरूरत नही पड़ती।वो शब्दो का मोहताज़ नही होता,आंखों छलक के स्वयं ही किसी की भी व्यथा को उजागर कर देतीं है।इस वक़्त भी दो लोगों की आंखें उनके दिल का दर्द बयां कर रही थी।कमरे के अंदर बेड पर पड़ी हुई नगमा। लेकिन अभी तो वो काम क्रीड़ा में लिप्त थी और ऐसे व्यवहार कर रही थी जैसे आंनद की पराकाष्ठा पर हो तो फिर अब ये आंसू?
दरअसल ये सब दिखावा था।नगमा को आज न वसीम का स्पर्श ही भ रहा था न उसके जिस्म काम में लिप्त होकर प्रतिक्रिया कर रहा था।ये सारा दिखावा उन दो आँखों के लिए था जो दरवाज़े से अंदर झाँक रही थी।ये आंखें और किसी की नही बल्कि शाहिद की थी।

बाथरूम से बाहर आने के बाद शाहिद को बेचैनी होने लगी थी कि ऊपर कही कुछ उल्टा सीधा न हो जाए।कही अब्बू सीधा अपने रूम में न चले जाएं और अम्मी को वैसी हालात में न देख लें।लेकिन अगर ऐसा हुआ हो तो।शाहिद ये सोच कर थोड़ा घबरा रहा था।जाने अब्बू कैसे रियेक्ट करेंगे।कही वो अम्मी को कुछ कर न दें।यही सब बातें सोच कर शाहिद चिंतित हो गया था और हाथ पैर में प्लास्टर होने के बावजूद बिना स्वयं की चिंता करे रेलिंग का सहारा लिए बड़ी मुश्किल से ऊपर आ गया था।लेकिन जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला था उसके समक्ष बेड पर पड़ा हुआ नगमा का नग्न शरीर था और ऊपर वसीम का।बेशक वो उसके अब्बू ही थे जो नगमा के जिस्म को भोग रहे थे लेकिन नगमा का मादकता भरा हर शब्द शाहिद के कलेजे पर पड़ रहे खंजर की तरह था।नगमा से प्यार करता था वो और स्वयं से कैसे देख सकता था नगमा को किसी और के साथ इस अवस्था में,इस तरह काम क्रीड़ा का उपभोग करते,आनंद लेते।ऐसे शब्द उसने आज तक अपनी अम्मी के मुँह से नही सुने थे और उसे तो ऐसा महसूस हो रहा था कि नगमा ने उसका दिल ही तोड़ कर रख दिया।अभी तो कुछ समय पहले वो शाहिद की बाहों में थी और अब.........दीवार का सहारा लेकर खड़े शाहिद की आंखें न चाहते हुए भी बिना रुके बहे जा रही थी।

उधर दूसरी तरफ नगमा भी जो वसीम को मना कर रही थी,जब उसने दरवाज़े की तरफ से शाहिद को अंदर झांकते देखा तो उसने उसी वक़्त तय कर लिया कि यही मौका है शाहिद के मन में अपने लिए नफरत भरने का,शायद इससे नफरत बेसक न भरे लेकिन शाहिद जब मुझे वसीम के साथ इस तरह देखेगा,ऐसे बात करते सुनेगा तो दिल तो टूटेगा उसका।बस यही सोच कर नगमा ने अभी थोड़ी देर पहले ये सब नाटक किया था और अब उसकी आँखों से बहते आँसू उसके दिल के दर्द को बयाँ कर रहे थे।लेकिन किस बात से नगमा का दिल दुख है था,क्या था ये दर्द?शाहिद का उसे ऐसे देखना या वसीम का उसे भोगना?नही ये दर्द था जान बूझकर शाहिद के दिल को दर्द पहुँचाने का।

बेड पर पड़ी रोते रोते नगमा सोच में थी

"सॉरी शाहिद तुम्हे ये सब देखना पड़ा.....लेकिन मेरे पास तुमसे दूरी बनाने का और कोई रास्ता भी तो नही है,शायद अब तुम मुझसे नफरत करने लगो.......सॉरी।"

***************
अगला दिन

सुबह के 9बजे है।शाहिद डाइनिंग टेबल पर बैठा नाश्ता कर रहा है, दूसरी तरफ वसीम बैठा है और अपने अखबार में बिजी है।आदिल आज भी जल्दी नाश्ता करके प्रोजेक्ट बनाने का बोलकर बाहर चला गया है।शाहिद ने गौर किया कि पिछले कुछ दिनों से आदिल अजीब व्यवहार कर रहा है,अक्सर वो आजकल घर से बाहर ही रह रहा है।घर पर भी अधिकतर वक़्त वो अपने कमरे में बंद होकर लैपटॉप या मोबाइल पर ही बिता रहे है।खैर उसने इस बात को इतना तवज़्ज़ो नही दिया और फिर से अपनी प्यारी अम्मी को देखते देखते नाश्ता करने लगा।शाहिद को कल की घटना का बुरा जरूर लगा था लेकिन वो नगमा से क्या बात करता।

तभी शाहिद के मोबाइल की रिंग बजी।नंबर देख कर उसके चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान आ गयी।फ़ोन और किसी का नही नादिया का था।

शाहिद : हेलो

नादिया : अरे एक तो बस हेलो और वो भी इतना रूखा सूखा

सुन कर शाहिद के चेहरे की मुस्कान खिल गयी लेकिन सामने ही अब्बू बैठे हुए थे और दूसरा हाथ टांग में फ्रैक्चर तो एकदम से उठकर दूर भी नही जा सकता था।शाहिद ने अपनी अक्लमंदी का इस्तेमाल किया।

शाहिद : हाँ मैं और अब्बू अभी नाश्ता ही कर रहे हैं

नादिया : ओ अब समझी,अब्बू भी बगल में है....ई मीन अंकल भी बगल में ही है।अच्छा कोई बात नही कब आ रहे हो?

शाहिद : कहाँ?

नादिया : हॉस्पिटल

शाहिद : क्यों?

नादिया : भुलक्कड़ महाराज,आज आपके हाथ का प्लास्टर निकलना है ना

शाहिद : ओ सॉरी में तो भूल ही गया था।

नादिया : जानती थी,इसी लिए फ़ोन कर दिया।तो जल्दी से आ जाओ और हां मुझे कॉल कर देना आकर।

शाहिद : लेकिन तुम्हारी तो क्लास होगी न

नादिया : तुम्हे बड़ी टेंशन है मेरी क्लास की।चुप चाप आकर फ़ोन करना,मिले बिना गए न मुझसे तो देख लेना।

शाहिद के चेहरे की मुस्कान और गहरी हो गयी।वो भूल ही गया था कि वो कहा बैठा है और क्या कर रहा है।कितनी मीठी बातें करती है नादिया।

शाहिद : अच्छा जी,नही मिला तो? (मुस्कुराते हुए)

नादिया : जो एक हाथ और टांग बची है ना वो भी तोड़ दूँगी।

शाहिद : अच्छा है फिर तो आपको हमे अपनी बाहों में लेकर घूमना पड़ेगा।

ये सुनकर नादिया शर्म से लाल हो गयी और इधर वसीम अपने बेटे की बात सुन कर नकली खाँसी खांसते हुए मुस्कुराने लगा।

शाहिद को होश आया कि वो किसके सामने और कहां बैठा है।

शाहिद : अब्बू ये तो वो....हॉं कॉलेज के दोस्त का फ़ोन है,ऐसे ही मस्ती कर रहा था।

वसीम : अरे तो हमने कहाँ कुछ कहा भाई।वैसे अपने कॉलेज के दोस्त से पूछ लेना कि डॉक्टर कपूर कितने बजे बैठेंगे अपने रूम में।

शाहिद को पता था कि उसकी चोरी पकड़ी गई है।वो बस झेंप के रह गया।दूसरी तरफ नादिया ने उनकी बात सुन ली थी।काफी खुश थी वो।फ़ोन में ही दूसरी तरफ से उसने बिना पूछे ही बता दिया।

नादिया : 10 बजे और हां शाहिद कॉल जरूर करना।अब रखती हूं।बाए।

शाहिद : बाए

शाहिद अब चुपचाप प्लेट की तरफ देख कर नाश्ता करने लगा।

वसीम : तो हो गयी बात " कॉलेज के दोस्त" से?कितने बजे चलना है फिर।

शाहिद : क्या अब्बू आप भी,वो तो उसने याद दिलाने के लिए फ़ोन किया था कि आज प्लास्टर निकलवाने जाना है।

वसीम : चलो अच्छा है,दो दो हो गयीं अब तो जनाब का ख्याल रखने वाली (ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए)

शाहिद : अब्बू प्लीज न

वसीम : अच्छा अच्छा ऑल राइट।तो कितने बजे चलना है।

शाहिद : डॉक्टर कपूर 10 बजे आ जाएंगे

वसीम : ठीक है,तो रेडी हो जाओ, चलते हैं।नगमा तुम भी रेडी हो जाओ जल्दी से।

नगमा : मैं क्या करूंगी जाकर,आप ही लेते जाइये,हॉस्पिटल में मेला थोड़ी लगाना है।

ये बात वसीम को थोड़ी अटपटी सी लगी।शाहिद भी ये सुनकर हैरान था।

वसीम : अरे कल तक तो सिर पे चढ़ी रहती थी तुम की कब ले जाना है शाहिद को,बात करिये डॉक्टर साहब से,मुझसे देखा नही जा रहा और अभी कह रही हो मेला लग जाएगा तुम्हारे चलने से?

नगमा कुछ श्रण के लिए चुप रही।कितनी बेचैन होती थी वो शाहिद को इस हालत में देख कर।वो तो चाहती तो एक पल मे ही शाहिद को ठीक कर देती।ज़िद करते रहती थी वसीम से की वो जल्द से डॉक्टर कपूर से बात कर प्लास्टर उतरवाए लेकिन कल जो हुआ उसने पूरी तरह से नगमा को अंदर से हिला के रख दिया था।अगर वसीम उसे और शाहिद को उस हाल में पकड़ लेता तो कयामत ही आ जाती।नगमा ने फैसला कर लिया था कि अब चाहे जो हो बेशक शाहिद उससे ज़िंदगी भर नफरत ही करने लगे लेकिन उसे शाहिद से दूर होना ही होगा,शाहिद का अपने प्रति प्यार खत्म करना होगा।वो नही चाहती थी कि शाहिद को कभी एक छोटी सी खरोच तक आये और इसके लिए उसे अपने दिल पर पत्थर रख कर ये सब करना ही था।

नगमा : ओहो काम है मुझे काफी आज और वैसे भी आपके साथ साथ वहाँ नादिया भी तो होगी न

वसीम के साथ साथ नगमा के बर्ताव से शाहिद भी थोड़ा हैरान था लेकिन उसने सोचा कि कल शाम को जो हुआ उसकी वजह से अम्मी थोड़ी शर्मिंदा है और उससे नज़रे नही मिला पा रही।उसने सोचा कि हॉस्पिटल से आकर अम्मी से बात कर लेगा,उन्हें समझा देगा।

वसीम और शाहिद कार में बैठ हॉस्पिटल पहुँचे।करीब 10:30 बज चुके थे।शाहिद अपना फ़ोन गलती से घर पर चार्जिंग पॉइंट पर लगा ही छोड़ आया था।वसीम और शाहिद गेट से अंदर पहुंचे।

वसीम : शाहिद सामने बैठ जाओ,मैं काउंटर से आता हूँ।

शाहिद : अब्बू यहां बैठ कर क्या करूँगा,आप काउंटर से आइए मैं डॉक्टर साहब के केबिन के बाहर चलता हूँ तबतक।

वसीम : ठीक है ध्यान से जाना

शाहिद : जी अब्बू।

शाहिद बैसाखी के सहारे डॉक्टर कपूर के केबिन के पास पहुंचा ही था कि उसे वहां यहां से वहां चक्कर लगाती नादिया दिखाई दी।शाहिद को देखते ही उसका चेहरा एकदम से खिल गया लेकिन अपने चेहरे पर झूठा घुसा लाते हुए नादिया शाहिद की तरफ बढ़ी।

नादिया : पागल हो?

शाहिद : हुँह?

नादिया : बहरे हो?

शाहिद : क्या बोल रही हो

नादिया : जवाब दो पहले (हक़ जताते हुए)

शाहिद : नही बाबा

नादिया : तो मेरी कॉल क्यों नही उठा रहे थे

शाहिद : वो....

नादिया : ये वो कुछ नही।सब समझती हूँ मैं।तुमने सोच बिना बताए निकल लोगे।है ना?एक मैसेज तक नही हुआ तुमसे,ऊपर से मैन पचासों कॉल की एक भी नही उठायी।

शाहिद : अरे सुनो तो (शाहिद ने नादिया का हाथ थामते हुए कहा)

नादिया ने ग़ुस्से में अपना हाथ झटक दिया जिसका फायदा उठाकर शाहिद ने तेज़ दर्द होने का बहाना बना दिया।

शाहिद : आआआह मेरा हाथ

नादिया (घबराते हुए) : सॉरी सॉरी.....सॉरी शाहिद।आई एम रियली सॉरी....क्या कर दिया मैने.... सॉरी सॉरी दर्द हो रहा है क्या

नादिया घबराते हुए शाहिद के हाथ को देखने लगी पर जब उसने उसके चेहरे की तरफ देखा तो शाहिद मुस्कुरा रहा था।नादिया को समझते देर न लगी कि वो बहाना बना रहा था।

नादिया : यूऊऊऊऊऊऊ.....जाओ मैं तुमसे बात नही करती।

शाहिद ने एक बार फिर उसका हाथ थामा।

शाहिद : नादिया सुनो तो यार

नादिया ने अबकी बार अपना हाथ शाहिद के हाथ में रहने दिया और सामने लगे काउच पर बैठने का इशारा करते हुए उसे वहां बैठने में मदद की।

शाहिद बैठने के बाद नाड़िये के चेहरे को देख रहा था।

नादिया : बोलो क्या बोलना है अब।ऐसे क्या देख रहे हो,बोलती क्यों बंद कर दी।

शाहिद : ग़ुस्से में और भी क्यूट लगती हो तुम

नादिया ये सुन अंदर ही अंदर तो बहुत खुश हुई लेकिन बाहर से ग़ुस्सा दिखाते हुए बोली

नादिया : हेलो मिस्टर फ़्लर्ट,इन सबसे मैं खुश नही होने वाली।पिछले आधे घंटे से क्लास छोड़कर यहां महाराज का इंतज़ार कर रही हूँ और आप के पास मेरी कॉल उठाने तक का टाइम नही।

शाहिद : टाइम?मेरा तो बस चले तो 40 के 40 घंटे तुम्हारे साथ बातें करने में बिताऊं।

नादिया : सिर पर चोट लगी थी न,असर हो तो नही गया।दिन में बस 24 घंटे ही होते है पागल।

शाहिद : वही तो.....तुम्हारे साथ बातें करने के लिए तो 24घंटे भी कम लगते हैं मुझे,कम से कम दिन 40 घंटे का होता तो शायद थोड़ा दिल भरता

नादिया : ओ गॉड कितने बड़े फ़्लर्ट हो गए हो शाहिद।कितनी लड़कियां पटाई ऐसी चीजी लाइन्स बोल के

शाहिद : यार हक़ीक़त बयाँ करू तो तुम फ़्लर्ट करना कहने लगती हो।

नादिया : हॉं हाँ रहने दो,24 घंटे कम पड़ रहे है और एक कॉल उठाने का टाइम नही।

शाहिद : यार मेरी गलती नही है।

नादिया : अच्छा फिर किसकी है तुम्हारे अब्बू की।

"हाँ बेटा इसके अब्बू की ही है,जल्दी जल्दी में मेरी वजह से ही इसका फ़ोन घर पे ही छूट गया"

पीछे से वसीम मुस्कुराते हुए बोला।
नादिया की तो मानो शर्मिंदगी से गर्दन ज़मीन में गड गयी हो।वो तो भूल ही गयी थी कि शाहिद होस्पिटल अकेले तो आया नही होगा न और किसी के साथ आया है तो वो दूसरा शख्स कहां है।

नादिया : सॉरी अंकल मेरा वो मतलब नही था

वसीम : अरे बेटा मैं जानता हूँ, बल्कि मैं तो बेहद खुश हुआ तुम्हे इसे डाँटते देख कर।घर में मैं तो इसे डांट नही पाता हाँ इसकी वजह से आपकी आंटी से डांट जरूर खाता हूं।तो मुझे तो बहुत अच्छा लगा कि आप इसे डांट सकते हो।एक काम करते है,हम दोनों न मिलके एक टीम बना लेते है,जब मुझे इसकी वजह से घर पे डांट पड़ेगी तो मैं आप के पास भेज दूँगा,आप इसे जी भरके डांट लेना।बोलो डील (आगे हंसते हुए हाथ बढ़ाता है)

अब नादिया भी सहज होते हुए मुस्कुराते हुए हाथ मिलाती है।

नादिया : डील

इतने में डॉक्टर कपूर वार्ड की तरफ से आते है।

डॉक्टर कपूर : आओ वसीम,प्लीज कम इनसाइड।

वसीम उनके साथ अंदर जाता है।नादिया और शाहिद बाहर काउच पर बैठे है।

शाहिद : तो अब आप अब्बू की टीम में हो गए?

नादिया (इतराते हुए) : और नही तो क्या

शाहिद : सही है पहले फैमिली मेंबर अब अब्बू के टीम मेंबर,आदि के क्लासमेट हो ही,अम्मी के साथ भी कुछ जुगाड़ बना हो लोगे......बढ़िया है......सबसे कुछ न कुछ राबता बना लो बस हमसे छोड़के (दूसरी तरफ मुँह करके बोलता है)

नादिया : (शाहिद का हाथ अपने हाथ में लेते हुए) तुमसे तो सबसे ख़ास राबता है शाहिद....आई....आई

शाहिद : हाँ बोलो भी

नादिया : वो शाहिद आई....आई....आई वांट तो लर्न आंटी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी (तेज़ी से बोलते हुए हंसने लगती है)

डॉक्टर कपूर के केबिन का दरवाजा खुलता है और नादिया अपना हाथ हटा लेती है।शाहिद की आंखों में उसे एक मायूसी नज़र आती है जिसे देख कर नादिया शरारत भरी मुस्कान बिखेर देती है अपने चेहरे पर।

डॉक्टर कपूर : चलो शाहिद बेटा, एक्स रे कर लेते है आपका।

नादिया व्हील चेयर ले आती है और शाहिद को उसपे बैठाती है।डॉक्टर कपूर का ध्यान अब नादिया पर गया।

डॉक्टर कपूर : बेटा आप तो नर्सिंग स्टूडेंट हो,क्लास नही आपकी

नादिया : सर् वो आज मेरी वार्ड में ड्यूटी है सिस्टर जया के साथ तो.....

डॉक्टर कपूर : इट्स ऑलराइट बेटा।आई नो आप शाहिद के स्कूल फ्रेंड हो।अपने दोस्त को चोट लगी हो तो मन किसका मानेगा।चलो अच्छा है आप हो तो हेल्पिंग हैंड हो जाएगा।

नादिया एक स्माइल करती है और शाहिद को एक्सरे रूम लेकर चलती है।शाहिद की थोड़ी देर बाद ही एक्सरे रिपोर्ट आ जाती है।हाथों का फ्रैक्चर तो पूरी तरह से ठीक हो गया था लेकिन पैर पूरी तरह से हील नही हुआ था।डॉक्टर कपूर ने ऑर्थो के डॉक्टर से हाथ का प्लास्टर हटवाया और पैर से हार्ड प्लास्टर हटवा के सॉफ्ट प्लास्टर लगवा दिया।अब शाहिद को चलने में पहले से बहुत आसानी हो रही थी और हाथ का प्लास्टर हटते ही उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसे जेल से आज़ादी मिल गयी हो।बगल में नादिया थी।एक पल के लिए तो उसका मन हुआ कि नादिया को गले से लगा ले लेकिन उसने खुद को संभाला।डॉक्टर कपूर ने भी रिपोर्ट देख कर एक हफ्ते और पैरों में प्लास्टर रखने को कहा,उसके बाद वो भी उतर जाएगा।सुन कर सब बड़े खुश हुए।नादिया एक बार फिर वहां से उसे व्हील चेयर पर बैठ कर बाहर लाने लगी।वसीम वही खड़ा डॉक्टर कपूर से कुछ बातें करने लगा।

नादिया : मुबारक हो,ट्रीट कब दे रहे हो

शाहिद : घर पे आ जाना दे दूंगा

नादिया : रोटी सब्ज़ी खिलाओगे क्या,घर पे कौन देता है ट्रीट

शाहिद : जिस ट्रीट की में बात कर रहा हूं वो बाहर कही नही दे सकता न।

ये सुनकर नादिया के गालो पर लाली आ गयी।

नादिया : अच्छा ऐसी क्या ट्रीट देने का सोचा है तुमने मिस्टर (शर्माते हुए)

शाहिद : अम्मी की मूंग दाल हलवे की रेसिपी सिखवा दूँगा,बाहर तो नही सीख सकती न कही (ये कहकर ज़ोर ज़ोर से हसने लगता है)

थोड़ी देर पहले जो पैंतरा नादिया ने शाहिद पर चला था वही शाहिद ने उसे सूद समेत वापस कर दिया था।

नादिया : बदमाश! (मुस्कुराती है)

वसीम जाते वक्त नादिया को शाम को घर पे बुलाता है।

नादिया : मूंग दाल हलवा रेसिपी के लिए(हंसते हुए)

शाहिद : नही किसी बात का इज़हार भी करना है,तुमसे तो होने से रहा

नादिया के गाल एक बार फिर लाल हो गए।उसने शाम को मिलने की हामी भरी और वार्ड में चली गयी।शाहिद भी कार में वसीम के साथ घर की तरफ चल दिया।अभी घर पहुंचे ही थे कि वसीम के ऑफिस से जरूरी कॉल आ गया और उसे शाहिद को गेट पर ही छोड़ कर जाना पड़ा।
शाहिद ये देख कर खुश हो गया कि अब उसे घर में अम्मी से बात करने का अकेले में समय मिल जाएगा।आग कितने दिनों बाद वो अम्मी को खुलकर अपनी बाहों में भरने वाला था।शाहिद अंदर गया तो नगमा नीचे के कमरों में नही थी।शाहिद के पैर से हार्ड प्लास्टर निकाल दिया गया था और अब चलने में इतनी कोई परेशानी थी नही।साथ ही साथ उसके दोनों हाथ अब फ्री थे तो उसने नगमा को ऊपर उसके रूम में जाकर सरप्राइज देने की सोची।ऊपर पोहचा तो नगमा किसी से फ़ोन पर बात कर रही थी।आवाज़ रूम के बाहर तक आ रही थी।शाहिद ने सोचा कि अम्मी पहले बात कर ले तब अचानक से बाहों में भरते हुए सरप्राइज दूँगा और सारी बातें जो कल हुई क्लियर कर लूंगा।अब शाहिद दरवाज़े के बाहर खड़ा होक बातें सुनने लगा।

लेकिन जो जो वो बातें सुनता गया उसके चेहरे की रंगत फीकी पड़ते गयी।चेहरे की सारी खुशी उड़नछू हो चुकी थी।शाहिद अवाक से होकर नगमा की बातें सुन रहा था।उसके चेहरे पर ग़ुस्से के एकदम खौफनाक भाव उभर रहे थे।मानो जैसे ग़ुस्से में किसी का कत्ल न कर दे वो।साथ ही दिल में ग़ुस्से के साथ साथ उसकी आंखें भी भर आयी थी।जो सुन रहा था उसे उस बात पर विश्वास ही नही हो रहा था।उसके लिए ये सब एक बुरे सपने जैसा था।ग़ुस्से के मारे उसकी बड़ी बड़ी आंखें लाल हो चुकी थी।

लेकिन अंदर क्या हो रहा था।जो शाहिद अभी अपनी अम्मी को बाहों में भरने के लिए इतना उत्साहित था,बेचैन था आखिर ऐसा क्या हो गया कि वो ग़ुस्से की आग में उबलने लगा।ऐसा क्या सुन लिया शाहिद ने,जानने के लिए जुड़े रहिए।अगला अपडेट जल्द ही आएगा।
Twist expected. shahid se Pehle uska bhai baazi toh nahi Maar gaya😉.....
 
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Neo_

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Going great bro. Nice twist. Writing is awesome as always....
 
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