Update 13
स्नेहा अपनी सहेली सरोज को गंगाराम से चुदने की बात की बात बताती है।
उस दिन संडे था। समय कोई ग्यारह बज रहे थे। स्नेहा ने अपनी सहेली सरोज को फ़ोन किया और पूछी की क्या वह खाली है.. सरोज ने उधर से जवाब दी की वह खाली है।
"तेरे पति नहीं है क्या...?" पूछी स्नेहा।
"नहीं वह अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ फिल्म देखने गया है और कह गया ही की वह शाम से पहले आने वाला नहीं।."
"खाना खायी...?"
"कहाँ यार स्टोव भी नहीं जलाई... में अकेली हूँ, सोच रहा हूँ की मेस से एक प्लेट माँगा लेती हूँ; मेरे घर के समीप ही एक मेस है। वहां फ़ोन करूँ तो भिजवा देते है..." सरोज का जवाब आया।
"चल, आज मैं तुझे खाना अच्छे से होटल में खिलाती हूँ..."
"अरे वाह मेरी बन्नू... क्या बात है.... बहुत चहक रही है...?"
"वैसा कुछ भी नहीं यार... बहुत दिन हो गये तुमसे मिलकर... कल ही मेरी सैलरी मिली है.. बस.."
"अच्छी बात है.. कहाँ मिलूं.. या तू मेरे घर आजा..."
"नहीं, तुहीं होटल को आजा.." स्नेहा होटल का नाम बोलती है और फिर कहती खाने के बाद "मैं तुम्हारे साथ.... गप्पे मारते है.."
"ठीक है..." सरोज फ़ोन बंद कर तैयार होने लगती है।
सरोज हेमा की उम्र की ही लड़की है.. वह भी स्नेहा की तरह एक डॉक्टर के पास काम करती है। दिखने में स्नेहा से जरा सा गोरी है उसका शरीर भी स्नेहा कि मुकाबले में भरा, भरा है। सरोज के चूची भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है। जब की स्नेहा के 28 A कप वाली ही तो सरोज के 32 B कप के है। उसके कुल्हे भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है और मांसल (fleshy) है। जब वह चलती है तो उसकी थिरकते कूल्हे देख कर राह चलने वालों की मन मचल जाती है। दो साल पहले उसकी शदी हो चुकी है और अभी तक उसका कोई संतान नहीं है।
जब दोनों सहेलियां होटल के सामने मिले तो लगभग एक बज रहा था। सरोज को स्नेहा होटल के बाहर ही उसका वेट करते मिली। स्नेहा को देख कर सरोज ढंग रह गयी। स्नेहा जीन पैंट पहन कर शर्ट डाली थी। सरोज स्नेहा से मिलकर तीन महीने के ऊपर होगये। स्नेहा कभी भी जीन पैंट नहीं पहनती थी। लेकिन आज वह जीन पैंट में और शर्ट में थी, और खूब जच रही थी। जीन पैंट से स्नेहा के पतली जाँघे और छोटे नितम्बो का कटाव दिख रहे थे। सरोज खुद सलवार सूट में थी।
"हाय हनी..." सरोज स्नेहा से गले मिली। स्नेहा भी उसे चिपक गयी। दोनों अंदर चलने लगी।
"स्नेहा क्या बात है... बहुत मस्त लग रही है..." सरोज उसे निचे से ऊपर तक देखती पूछी।
"कुछ नहीं मेरी माँ.. पहले चल अंदर जमके भूख लगी है..." इससे पहले भी दोनों सहेलियां, कभी कभी मिलकर बाहर खाना खाते थे, लेकिन तब हमेशा होटल न जाकर मेस में खा लिया करते थे। लेकिन आज स्नेहा उसे इतनी अच्छे होटल ले आयी है..बात क्या है'...' वह सोचने लगी।
दोनों आमने सामने बैठ गए। "बोल क्या खायेगी...?" स्नेहा पूछी।
"यार आज बटर नान और कड़ाई चिकेन खाने का दिल बोल रही है... चलेगा...?"
"हाँ.... हाँ.. क्यों नहीं चलेगा जो चाहे खालो.... फिर आइस क्रीम भी मंगालेना। बिलकी फ़िक्र न कर.." स्नेहा बोली।
"यार स्नेहा, कोई बात तो जरूर है... जो तू इतना दरिया दिल निकली.. कोई लाटरी लग गयी क्या...?"
"आरी मेरी माँ.. चुप करना... पहले आर्डर तो दे... घर चल कर सब बता दूँगी.."
"एक बात बता स्नेहा.. कोयी बॉय फ्रेंड मिल गया क्या... बहतु खुश दिख रही है..."
""हाँ, लेकिन बॉय फ्रेंड नहीं... मैन फ्रेंड है.."
"क्या.. मैन फ्रेंड..? यह कौन हुआ...?"
"यार, मैन फ्रेंड यानि की आदमी... कोई जवान नहीं..."
"अच्छा.. कितने वर्ष का है..कोई 30, 32 वर्ष का तो होगा ही..." सरोज स्नेहा को देखती पोची।
"नहीं रे.. और बड़ा है..."
"अरे कितना बड़ा है.. कहीं बुड्ढा तो नहीं .."
"यार सरोज, सबकुछ यहीं पूछेगी क्या...? में कही थी न घर चलकर बताउंगी..." स्नेहा अपनी सहेली को डाँटि। उसके बाद दोनों इधर उधर की बाते करते खाने लगे।
"यार सरोज.. तेरे पती कैसे हैं...?"
"उन्हें क्या वह तो मनमौजी है...सवेरे कंपनी जाते है और शाम को वापस.. मैं ही ऐसी की सवेरे दस बजे से दोपहर दो तक और फिर शाम 5.30 से रात दस कभी कभी 10.30 होजाते है। साली क्या नौकरी है...न आराम है न छुट्टी मिलती।"
"हाँ वह तो है... लगभग मेरा भी यही हाल है..." एक लम्बी साँस लेते बोली स्नेहा।
कहानी जारी रहेगी