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Erotica उम्र पचपन की में दिल हुआ बेईमान

aamirhydkhan

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एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्रीड़ा।

Hello friends...

ये कहानी किसी और फोरम से कॉपी पेस्ट है।

गंगाराम और स्नेहा

गंगाराम-
एक 55 साल का हट्टा कट्टा आदमी है। उसका कद कोई 5'7" लम्बाई होगी। दिखने में आकर्षक दिखता है और अच्छे सलीके से रहता है।

स्नेहा - लड़की की उम्र कोई 20 -22 की होगी। लड़की दुबली पतली और, सावंली है। नयन नक्श अच्छे है।

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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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बढ़िया कहानी बन रही है

keep it up
 

aamirhydkhan

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Update 08

दरवाजे की घंटी बजी।


"हाँ.. चाय चलेगी... लेकिन चाय मैं बनावूँगी ..."

"ठीक है बाबा...चलो ..." दोनों उठकर किचेन की ओर चलते हैं।

स्नेहा किचेन प्लेटफार्म के पास ठहर कर चाय बना रही थी और गंगाराम स्नेहा की कमर में हाथ डालकर उसकी गर्दन पर चूम रहा था।

"आआह्ह्ह्ह.. अंकल.. हाहा। .. वहां मत चूमिए..." वह तड़पते बोली।

"क्यों...? क्या हुआ...?" अपना चूमना जारी रखते; अब उसने स्नेहा की छोटी चूची की अपने हथेली के नीचे दबाते पुछा..."

"नहीं.. ऐसा मत करिये प्लीज....गुद गुदी होती है.."

"गुद गुदी ही तो होती है न.. कुछ और तो नहीं...?"

"कुछ और भी होती है..."

"अच्छा.... क्या...?" उसकी पूरी breast को टीपते पूछा..."

स्नेहा लाज से शरमाने का नखरे करते बोली... "जाओ अंकल मैं आपसे बात नहीं करूंगी... आप बहुत बेशरम हो गए है.. चलो चाय बनगयी है हॉल में चलते है..." कही और एक कप अंकल को थमाकर खुद एक ली और हाल में आकर सोफे पर बैठ गये। पहले की तरह गंगाराम ने स्नेहा को फिर अपने गोद में बिठाया...

दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नज़रों से देखते चाय पी रहे थे। पूरे एक महीने के बाद मिलने से स्नेहा में भी excitement थी। चाय पीकर कप साइड में रखे और गंगाराम ने स्नेहा की कमीज ऊपर उठाया और पहले उसकी ब्रा की चूचियों के ऊपर खींच कर उसके छोटे छोटे चूची पर हाथ फेरा।

"आआअह्हह्हह" अंकल कहते वह चटपटा रही थी। गंगाराम अपने सर झुका कर स्नेहा की चूची को पूरा मुहं में लिया और चुसकने लगा... स्नेहा ने अंकल की सर को अपने सीने से दबा रही है।

"क्यों जानू.... कैसी लग रही है...?" वह एक को चूसता दूसरे की घुंडी को उँगलियों में मसलता पूछा। स्नेहा ने कोई जवाब नहि दिया बल्कि सिसकने लगी।

जैसे जैसे गंगाराम उसे चूस रहा था.. उसका डंडा स्नेहा के नितम्बों के निचे उभर कर उसे ठोकर मार रही थी। जब अंकल का उस्ताद अपने गांड में चुभते ही अब स्नेहा से रहा नहीं गया। वह गंगारम के गोद से उतरी अपने घुटनों पर निचे कार्पेट पर बैठ कर अंकल की लुंगी हटा दी। गंगाराम अंदर कुछ पहना नहीं था तो उसका नाग सिर उठाकर फुफकार रह थी। पूरा तनकर छत को देख रहीथी। उसका सामने की चमड़ी पीछे को रोल होकर हलब्बी गुलाबी सुपाड़ा tube light की रौशनी में चमक रही थी।

स्नेहा उसकी गोद में झुक उस नाग को मुट्टीमे जकड़ी.. उसे एक दो बार प्यार से चूमि और फिर अपने जीभ उस सुपाडे की गिर्द चलाते एक बार तो उसने उस पिशाब वाली नन्हे छेद में कुरेदी।

"स्स्स्सस्स्स्स...स्नेहा..डियर..मममम...हहहहह..." कहते गंगाराम चटपटाया...

"क्या हुआ अंकल...?" कहती स्नेहा ने उसकी वृषणों को हथेलि में लेकर मसलने लगी।

"Saleeeeeeeee...." गंगाराम एक बार फिर गुर्राया।

उसने अपने ऊपर झुके स्नेहा के सलवार का नाडा खींचा तो सलवार उसके घुटन पर गिरी। फिर उसने उसकी पैंटी का भी वही हाल कर दिया। वह भी सलवार के साथ उसके घुटनों और तिरस्कृत पड़ी है गंगाराम ने पहले उसके नन्हे कूल्हों पर दोनों हाथ फेरा और फिर एक हाथ की ऊँगली पीछे से उसकी बुर पेल दिया।

"आआह्ह्ह्ह..." स्नेहा ने अपने कूल्हे और पैलाई। अब गंगाराम की दायां हाथ की ऊँगली स्नेहा की बुर को खुरेद रही तो बायां हाथ की तर्जनी ऊँगली से वह उसकी अन चुदी गांड को कुरेद रहा था।

गंगाराम की नजर उसकी छोटी नितंबो वाली गांड पर पहले से ही थी। दो तीन बार उसे लेने की भी कोशिश किया लेकिन हर बार स्नेहा ने ढर के मारे मना करती रही। वह स्नेह को रुष्ट नहीं करना चाहता था। कारण उसके मन में लम्बे दिनों तक चुदने लायक स्नेहा के साथ साथ स्नेहा की बहन पूजा जो 18 वर्ष की है और उसकी सहेली सरोज को भी चोदने का इरादा बना लिया था। इसी लिये वह स्नेहा को कुपित होते नहीं देखना चाहता था।

अपने ऊपर चल रही दोहरे आक्रमण से स्नेहा उत्तेजित होने लगी और अपनी गांड और चूत को गंगाराम की उंगलियों पर दबाने लगी।

अब गांगाराम की ऊंगली उसकी बुर को चोदने लगे.. वह उसे फिंगर फ़क कर रहा था... इधर स्नेहा गंगारम की लंड को जोर जोर से चूस रही थी।

वह एक दूसरों पर भावविहल्व हो रहे है की... दरवाजे की घंटी बजी।

दोनों घभरा कर अलग हुए और एक दूसरे को देखने लगे।

"इस समाय कौन आ गया...?" गंगाराम होंठों में बुद बुदाया; और फिर स्नेहा को अंदर जाने का ईशारा करा। स्नेहा अपनी सलवर उठाकर नाडा बांधते अंदर को भागी। गांगाराम भी अपने आप को व्यवस्तित करा और अपनी लुंगी को सीधा किया बालों मे उँगलियों का कंघा फिराते दरवाजे की और बढ़ा। इतने मे एक बार फिर घंटी बजी।

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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Update 09

डील !


गंगाराम ने दरवाजा खोला और सामने ठहरे आदमी को देख कर बोला। "...अरे राव साब ... आप.. आईये.. अंदर आईये.." कहते उसे अंदर बुलाया।

दोनों अंदर आकर बैठे। टू सीटर सोफे पर आने वाला बैठा तो उसके दायां तरफ के सिंगल सीट सोफ़े पर गंगाराम बैठा था।

"बोलिये राव साब कैसे आना हुआ....?" गंगाराम ने उसे देखते पुछा। उनकी बातें अंदर से स्नेहा सुन रही थी।

"वही गंगाराम जी.. वह डील फाइनल करना था... बस इसीलिए चला आया..." आने वाला जिसे रावसाब करके गंगाराम बुला रहा था कहा।

"लेकिन राव साब रेट वही रहेगा..."

"ठीक है.. जब तुम उसी रेट पर अड़े हो तो वैसे ही सही..." राव साब एक लम्बा सांस लेते बोला।

"दीपा बेटी...." गंगाराम ने अंदर की ओर देखते बुलाया। अंदर ठहरी स्नेहा समझ गयी की अंकल उन्हें ही बुला रहे हैं! वह यह भी समझ गयी की अंकल नहीं चाहते की आनेवाले को उसका असली नाम न मालूम हो...

"आयी अंकल..." कहती स्नेहा बाहर आयी और सामने वाले को देख कर नमस्ते कहि और गंगाराम की ओर देखकर पूछी "क्या है अंकल..."

"बेटी .. दो कप चाय बना देना..."

"जी अंकल..." स्नेहा कही और किचेन की ओर चली।

दस मिनिट बाद वह एक ट्रे में दो कप चाय और दो ग्लासों में पानी, कुछ बिस्कुट लायी, सेंटर टेबल पर रखी।

"दीपा बैठो बेटी खड़ी क्यों हो..." गंगाराम बोला। स्नेहा ख़ामोशी से सामने के सोफे पर सिमिट कर बैठगयी।

राव साब को एक कप चाय थमाता बोला "राव साब यह मेरी भांजी है.. मेरी छोटी बहन की लड़की.... इंटर हो गया है.. अब यह यहीं से ग्रेजुएशन करेगी..." स्नेहा का परिचय कराया; और स्नेहा की ओर मुड़ कर बोला "दीपा बेटी.. यह राव साब है.. कारोबारी (business man) है..."

स्नेहा ने एक बार फिर 'नामसे' कही और राव साब को परखने लगी। वह एक लग भाग 50 के उम्र का आदमी लगता है। सर से गांजा है... सिर्फ साइड और पीछे पतले बाल है... आदमी गोरा है और तोंद भी है। महँगी ड्रेस पहना ही.. शर्ट को टक करा है.. बयां हाथ के दो उंगलियों मे सोने की अंगूठियां है।

कुछ देर वही बैठ कर फिर पूछी "अंकल मैं अंदर जाये क्या...?'

"हाँ बेटी जाओ..." स्नेहा उठकर अंदर चली गयी।

पूरा पंद्रह मिनिट बाद गंगाराम अंदर आया और स्नेहा से कहा.. "स्नेहा.. एक अच्छा डील आया है ... मैं डॉक्यूमॉन्ट बनवाने बाहर जा रहा हूँ... एक डेढ़ घंटे में आजाऊंगा... यह आदमी बहुत बिजी रहता है... मेरा आने तक इसे रोक के रखना... डॉक्यूमेंट पर इसके दस्तखत जरूरी है.... यह बातूनी है.. उसके साथ बैठकर उस से बातें करो और उसे मेरे आने तक रोके रखो...उसे कुछ देदेना... चाय.. व्हिस्की.. कुछ भी... लेकिन रोक के रखना... वह चला गया तो उसे फिर से पकड़ना मुश्किल... समझ गयी" स्नेहा कि कन्धा तप तपाता बोला।

"जी अंकल..." स्नेहा बोली। दोनों बाहर आये और गंगाराम रावसाब की ओर देख कर बोला " रावसाब मैं डॉक्यूमेंट बनाकर लाता हूँ, रुकिए.. दीपा आप को कंपनी देगी.. अगर कुछ चाहिए तो निस्संकोच पूछियेगा..." कहा और स्नेहा की ओर देख सर हिलाकर चला गया।

-
राव और स्नेहा एक दूसरे के आमने सामने बैठ है। कुछ देरी के ख़ामोशी के बाद स्नेहा ने ही पूछी "आप क्या करते है अंकल...?"

"मेरा गारमेंट्स की बिज़नेस है..." राव बोला और फिर स्नेहा है से पुछा "क्या नाम है बेटी तुम्हारा...?"

"मैं दीपा हूँ अंकल..." एक क्षण रुकी और बोली "गंगाराम जी मेरे मामा है.. मेरी माँ का बड़ा भाई...:" गंगाराम ने क्या कही उसे याद करती बोली।

"कहां तक पड़ी हो...?"

"इंटर हो गया है.. अब डिग्री करना चाहती हूँ..."

"घर में कौन कौन रहते है...?" राव फिर से पुछा...

"मम्मी, बाबा, मेरी एक छोटी बहन और एक छोटा भाई..."

"तुम्हरे पिताजी क्या करते है...?" उसके पूछने पर स्नेहा सोची... 'बाप रे सच में यह तो बहुत बातूनी है' सोचते बोली..."पिताजी एक फैक्ट्री में काम करते है... और मम्मी हाउस वाइफ है..." वह पूछने से पहले बोली।

राव ने अपने फॅमिली के बारे मे भी बोला। उसके एक पत्नी और चार बच्चे है... पहले एक लड़का और लड़की फिर एक लड़का और लड़की। पहले लड़का और लड़की की शादी हो गयी और बाकि के दो पढ़ रहे है।

उसके बाद दोनों के पास क्या बात करना समझ मे नहीं आया... कुछ देर बाद वह बोला "मैं चलता हूँ..." वह उठने लगा.. तो स्नेहा बोली.. अरे रुकिए अंकल.. मामाजी आते ही होंगे.. तब तक आप कुछ लीजिये... चाय, कॉफी या कुछ ठंडा ..." वह रुकी।

"यह चाय, कॉफ़ी का समय नहीं अगर व्हिस्की होता तो..." वह भी हिचकिचा रहा था...

"घर में है.. अंकल; (मामाजी) घर में रखते है... अभी लायी.. और स्नेहा जल्दी से गयी और एक ट्रे में व्हिस्की बोतल एक गिलास एक कटोरी में ice cubes और कुछ नमकीन ले आयी और टेबल पर रखि।

राव गिलास में व्हिस्की डालते पुछा.. "दीपा तुम...?"

"ओह नो अंकल.. में नहीं पीती..." वह नाटक करती बोली।

"अरे... आज कल तो middle class ke हर घर में लड़कियां भी लेती है.. मेरे घर में भी मेरी दोनों बेटिया और मेरी बड़ी बहु भी लेती है.. खैर .. कम से कम कोई ठंडा ही लो.. मुझे कंपनी देने के लिए।"

स्नेहा अंदर गोई और एक गिलास में फ्रूटी ले आयी और बैठने लगी तो बोला "दीपा वहां नहीं; मेरे यहाँ बैठो.." राव ने अपनी बगल में सोफा तप तपाया।

स्नेहा एक क्षण के लिए असमंजस में रही और धीरे से आकर राव् के बगल में बैठ गयी। दोनों इधर उधर की बातें करते अपने अपने ड्रिंक्स सिप कर रहे थे। राव अपना आधा पेग खतम करके स्नेहा से बोला ... "दीपा डियर. एक गिलास पानी चाहिए थी"। दीपा अपनी गिलास टेबल पर रखी और पानी लाने किचेन की ओर गयी। राव ने जल्दी से अपने गिलास का व्हिस्की स्नेहा के गिलास में उंडेला और फिर अपने गिलास में व्हिसकी डालने लगा। तब तक स्नेहा पानी ले आयी।

अपने गिलास की व्हिस्की में पानी मिलाकर एक सिप करा और चटकार लेते बोला .. "उम्दा शराब है.. तुम्हारे मामा तो उम्दा शराब की शौकीन है..." कहा... कहते कहते उसने ठहाका लगाकर हंसा और स्नेहा कि कांधों को धीरे से दबाया।

"स्नेहा कुछ बोली नहीं.. ख़ामोशी से अपना फ्रूटी सिप करने लगी। उसे फ्रूटी का स्वाद कुछ अलग लगी लेकिन वह समझी की यह स्वाद कूलिंग के वजह से होगी और सिप करने लगी।

राव स्नेहा से इधर उधर के बातें करते अपना हाथ निचे खिसकाया और उसके पीठ को सहलाने लगा.. "अंकल हाथ निकालिये..." वह धीरे से बोली।

"क्यों क्या हुआ डियर...?" वह काम जारी रखते पुछा...

"मुझे अच्छा नहीं लग रहा है..." बोली।

राव कुछ देर ख़ामोशी से रहा और फिर से बोला ... "लगता है तुम्हारे मामाजी तो अभी नहीं आएंगे, मैं चलता हूँ..."

"नहीं अंकल रुकिए तो.. मामाजी आजायेंगे..." स्नेहा कही...

"अच्छी बात है.. तुम्हरे बात पर ठहरता हूँ..." कहा एक क्षण रुका और फिर बोला.. "दीपा.. तुम बहतु सुंदर लड़की हो..." कहते वह झट स्नेहा की ओर झुका और उसके गलों को चूम लिया।

"ओह.. अंकल यह क्या कर रहे है...आप..." कहती स्नेहा ने अपने गाल पोंछी।

"क्या कर रहा हूँ..? प्यार ही तो कर रहा हूँ... क्यों यह भी पसंद नहीं...?"

"स्नेहा को क्या बोले समझमें नहीं आ रहा था... अंकल ने उससे, उसे रोकने को कहे... कहरहे थे डील बड़ा है.. हाथ से न निकले... लेकन यह है की बार बार उठ रह है...' सोच रही थी।



कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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Update 10

मामाजी आ गये तो !

"सच में तुम बहतु सुन्दर हो..." वह फिर उसे चूमा। अबकी बार स्नेहा ने अपने गाल नहीं पोंछी और राव को बातों में रखने के लिए बोली..."आप झूट बोल रहे है अंकल.... मैं उतना सुन्दर नहीं हूँ... यह मुझे मालूम है.. मैं दुबली पतली हूँ.. और..." वह रुक गयी।

"हाँ... हाँ.. बोलो और क्या...?"

"जी.. कुछ नहीं..."

"मुझे मालूम है तुम क्या कहना चाहती हो.. यहि न की तुम्हारी चूचियां छोटी है.. अरु तुम्हारे कूल्हे छोटे है.. यही न..."

स्नेहा सहमकर रह गयी।

"पगली.. तुम अच्छी लड़की हो... तुम्हारे breasts छोटे है तो क्या हुआ.. बहूत लुभावनी है.. और तुम्हारे कूल्हे भी... देखो कितना प्यारे हैं..." कहते राव ने स्नेहा को एक गुड़िया की तरह उठाकर अपनी गोद में बिठाया..."

"ओह अंकल छोड़ो मुझे... नहीं तो में मामाजी से कहूँगी..." स्नेहा ने उसे ढराने की कोशिश करि।

"बोलो.. उस से क्या होगा.. में तुम्हारे मामा का कस्टमर हूँ... यह तो पक्का है की वह मुझे पुलिस में नहीं देंगे.. उल्टा मैं यह जो सौदा करने वाला हूँ.. उसे कैंसिल कर दूंगा..."

राव के आखरी शब्द सुनते ही.. वह गभरा गयी। अंकल ने उसे रोकने के लिए कहे और वह है की डील ही कैंसिल करने को कह रहा है... वह सोचमे पड गयी। जैसे गंगाराम स्नेहा को कुपित नहीं देखना चाहता वैसे ही स्नेहा भी अंकल को तकलीफ नहीं पहुंचना चाहती... अंकल के मिलने से.. उसे ज़िन्दगी के मजे मिल रहे है.. पैसे को पैसा.. और ऊपर से कीमती वस्तुएं... गिफ्ट में... वस्तव में वह किसी को नहीं बताई और न दिखाई लेकिन गंगारामने उसके लिए एक सोने की चैन भी दिलाया है...

यह बात ख्याल में आते ही स्नेह ने राव के साथ प्रतिघटना छोड़ दी और अपने आप को ढीला छोड़ दी।

जैसे ही स्नेहा ने अपने शरीर को ढीला छोडी तो राव समझ गया की यह लड़की अब प्रतिरोध नहीं करेगी तो वह जोश में आगया और उसके होंठों को अपने में लेकर चूसने लगा।

स्नेहा ने फिर भी कुछ रेसिस्ट करने को सोची लेकिन फिर चुप हो गयी। अब उसे भी मजा आने लगा और वह खुद गरम होने लगी। इसके दो कारण थे। एक राव ने उसकी फ्रूटी में व्हिस्की मिलायी थी उसका असर पड रहा है और दूसरा... राव के आने से पहले गंगाराम और वह मस्ती के आलम में थे... राव ने आकर उन्हें डिस्टर्ब कर दिया।

"अंकल नहीं.. प्लीज ऐसा मत करो..."

"क्यों मेरी जान...? अच्छा नहीं लग रहा है क्या..? अरे तुम जवान हो.. मजे लूटो..." उसने स्नेह के छोटे चूची को पूरी हथेली के निचे लेकर दबाते बोला।

"अंकल नाराज हो जायेंगे..."

"हर चीज अंकल मालूम हने की क्या जरूरत है... स्वीटी यह राज़ हम दोनों की बीच की राज़ है.. ओके..."

"फिर भी अंकल को मालूम होगया तो...?"

"कैसे मालूम होगा... क्या तुम बोलने जाओगी की मैं चुद गयी हूँ..."

"छी .... आप कैसे बात करते हैं ..."

वह कुछ बोला नहीं.. उसकी कमीज़ उसके सर के ऊपर से निकल दिया।

चूत में आग की धधक के कारण स्नेहा ने भी... न...न... कहते अपनी कमिज उतरवाली।

राव ने उसे वहीँ हॉल में कारपेट पर निचे पीट का बल सुलाया और उसकी सलवार भी खोलने लगा।

"ओह नहीं... मुझे शर्म अति है..." वाह सच में ही शर्माने लगी।

"पागल हो गयी क्या.. बगैर इसे उतारे असली काम कैसे होगा..." कहते स्नेहा ना....ना.. कहने पर भी उसकि सलवार और पैंटी उतार दिया।

राव खुद अपनी पैंट उतर फेंका और सिर्फ बॉक्सर में रह गया। स्नेहा बॉक्सर के अंदर उसके उफनते औजार की उभार दिख रही थी। उस उभार को देखते ही स्नेहा एक बार सिहर उठी। वह ललचायी नजरों से उसे ही देख रही थी।

"क्यों दीपा डार्लिंग देखोगी..." पूछा...

स्नेहा शरम से लाल होगयी।

राव उसके दोनों पैरों को चौड़ा कर उसके जांघों के बीच आगया और सीधा उसकी बुर पर झपट पड़ा।

राव अपना मुहं वहां लगा कर स्नेहा की रिसती बुर को चाटा तो.... स्नेहा "हहहहहहहह.. अंकल.. कहती कमर उठायी।

फिर उसे कुछ अनुमान हुआ और बोली... "अंकल... मेरे मामाजी आ गये तो...?"


राव ने 'एक मिनिट' कहकर उसने गंगाराम को फ़ोन लगाया और कुछ देर उधर की बातें सुनता रहा और फिर बोला ... "दीपा तुम बेफिक्र रहो.. तेरे मामा एक घंटे से पहले नहीं आने वाले हैं..."

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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Update 11

पहले चूची फिर चूत


राव ने 'एक मिनिट' कहकर उसने गंगाराम को फ़ोन लगाया और कुछ देर उधर की बातें सुनता रहा और फिर बोला ... "दीपा तुम बेफिक्र रहो.. तेरे मामा एक घंटे से पहले नहीं आने वाले हैं..."

"ooooooooohhhhh" स्नेहा निश्चिंत हो गयी।

"अब शुरू करें...?" वह उसकी गाल को चिकोटी काटता पुछा। गर्म हुई स्नेहा ने 'हाँ' में सर हिलायी।

"बोलो पहले चूची या चूत ...?"

"आपकी मर्जी..." वह लजायी

राव ने अबकी बार उसके नन्हे चूची पर नजर डाला और फिर झुक कर उसे चाटने लगा। उसके चाटने से स्नेहा की शरीर में 440 W करंट दौड़ी। उसका सारा शरीर में एक हल्का सा कंपन हुआ और वह राव के सर को अपने सीने से दबायीं। राव ने पहले कुछ देर चूची को एक के बाद एक को चाटते रहा और फिर उसकी छोटी घुंडी को मुहं में लेकर चूसा..

""मममममममम.... ह्ह्ह्हआआ..." वह सीत्कार करि। राव पहले निप्पल को.. फिर धीरे धीरे पूरे चूची को मुहं में लिया। स्नेहा की चूची इतनी छोटी है की उसका पूरा चूची उसके मुहं में आगया।

चूची चूसने का असर स्नेहा पर पड़ी... वह पानी से निकाले गए मछली की तरह तड़पने लगी। अपना एक हाथ से वह राव की बॉक्सर को नीचे खींची और उसके डंडे को पकड़ी। उसे पकड़ कर ही उसने महसूस किय की उसका गंगाराम का उतना लम्बा नहीं है फिर भी उसकी मुट्ठी में समा गायी। एक हाथ से वह उसके लण्ड को हिलाती दूसरी हाथ को वह अपनी चूत पर ले आयी।

"क्यों दीपा.. खुजली हो रही है..." कहते राव् ने उसकी बुर में अपनी बीच वाली ऊँगली घुसादी।

एक ही झटके में उसकी ऊंगली पूरा का पूरा स्नेहा की बुर निगल गयी।

'साली..नखरे कर रही थी... यह तो पहले ही चूदी है...' सोचा और पुछा भी.. "दीपा डार्लिंग तुम तो चूदचुकी हो.. किसने चोदा .. कहीं तुम्हारा मामा तो नहीं...?" वह ऊँगली को अंदर तक घुसाते पुछा।

स्नेहा समझ गयी उसकी उँगली घुसाने से उसे अपनी चूदी चूत कहानी अपने आप मालूम हो गयी और... अनजाने में 'हाँ' कहते रुकी ... और बोली.. "छी... मेरे मामा ऐसे नहीं हैं..."

"तो किसने चोदा ..?"

"इंटर में मेरा बॉय फ्रेंड ने...." वह धीरे से बोली।

मैं तो समझ रहा था की तुम्हारी कुंवारी होगी... और तंग होगी... अब ढ़र नहीं..." कहकर राव स्नेहा को औंधे घुमाया।

"अंकल.. यह क्या कर रहे है...?" स्नेहा गभराकर बोली।

"कुछ नहीं स्वीटी ... में तुम्हे पिछेसे लेना चाहता हूँ..."

"पर क्यों...?"

"आरी पगली... मेरी तोंद के वजह से सीधे में मेरा पूरा अंदर नहीं घुसेगा.. इसिलिये.... पिछेसे..." कहा और स्नेहा को अपने कोहनियों पर और घुटनों पर झुकाया। कोहनियों पर होने वजह से उसकी गांड ऊपर उठकर बुर सामने दिखने लगी। वह अपने लण्ड के सुपाडे को स्नेहा की खुली फांकों पर रगड़ा।

लंड के स्पर्श से स्नेहा का शरीर एक बार फिर सिहर उठी। दिल थाम के राव को अंदर प्रवेश होने का वेट कर रही थी।

राव ने और एक बार अपनी डिक हेड उसकी फांकों पर चलाया... "ममममम...." कहती स्नेहा ने कमर को पीछे ठेली।

राव ने अपना कमर का दबाव दिया... 'फक' की आवाज़ के साथ उसका लंड का टोपा अंदर चली गयी। Sudden आक्रमण से स्नेहा एक बार तडपडाई...

राव ने कमर को पीछे किया एक और शॉट दिया...

"अम्म्मा..." वह चिल्लाई।

फिर उसके बाद दोनों में खूब चुदाई हुई...स्नेहा ने भी कमर को पीछे ढकेल ढकेल कर चुदने लगी। पूरा दस मिनिट की मेहनत के बाद उसने पुछा.. "मैं खल्लास होने वाला हूँ..." वह बोल रहा था की स्नेहा बोली.. "अंकल अंदर नही...प्लीज..." वह बोल ही रही थी की वहअपना गरम लावा से उसकी बुर को भर ने लगा।

"ओह अंकल यह क्या किये आपने.. मैं अब unsafe पीरियड में हूँ..."

"डोंट वोर्री दीपा.. मेरी नसे बहुत पहले ही बंद होचुके है.. मेरा वीर्य से तुम्हे कुछ नहीं होगा..." उसके ऐसे कहने से स्नेहा ने एक लम्बी सांस ली।

फिर दोनों सुस्त होकर अगल बगल पड़े रहे।

फ़ोन कि घंटी बजे तो दोनों को होश आया। स्नेहा की फोने बज रही थी। यह फ़ोन देखि... गंगाराम का था। "हाँ अंकल.. में दीपा .." बोली।

"मेरा काम हो गया है... 10 मिनिट में घर पहुँचता हूँ...." बोलकर फ़ोन काट दिया।

अंकल दस मिनिट में आ रहे है.. कहती वह उठी अपने कपडे लेकर अंदर चली गयी।

"कॉमन bathroom किधर है...?" राव पुछा तो उसने बताया और वह भी उधर बढ़ा।

दस मिनिट बाद दोनों फेश होकर बाहर अये और सोफे पर बैठे।

पांच मिनिट बाद गंगाराम पहुँच कर डॉक्युमेंट्स पर राव का दस्तखत लिया और बोला ... "राव साब .. बुधवार यानि की दो दिन बाद आपकी लैण्ड (Land) रजिस्ट्रेशन है..."


कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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Update 12

डील की कमीशन

पांच मिनिट बाद गंगाराम पहुँच कर डॉक्युमेंट्स पर राव का दस्तखत लिया और बोला ... "राव साब .. बुधवार यानि की दो दिन बाद आपकी लैण्ड (Land) रजिस्ट्रेशन है..."

"ठीक है..बुधवार को रजिस्ट्रेशन ऑफिस में मिलूंगा..." कह कर वह चला गया. उसने दीपा पर नजर तक नहीं डाला।

राव के जाने के बाद गंगाराम ने स्नेहा के कन्धों पर हाथ रख कर कहा..."राव को रोक के रखने के लिए थैंक यू स्नेहा..." और उसके गालों को चूमा। स्नेहा झट अपने दोनों बाहें गंगाराम के गर्दन में डाली और उस से लिपटती फफक कर रोई। गंगाराम गभरा गया.. "अरे स्नेहा...ऐसा क्यों रो रहे हो...? क्या हुआ...?" उसके पीठ को सहलाता पुछा।

स्नेहा उस से अलग हुए बिना ही सुबक ते.."अंकल उसने ..में...रे..से...जबर.....दस्ती...." कह कर रुक गयी।

"Kyaaaaa....? गंगाराम चकित रह गया।

स्नेह अभी भी सुबक रही थी....

"उसने कुछ किया....?" स्नेहा की पीठ सहलाना जारी रखते पुछा।

स्नेहा ने न में सर हिलायी और सुबकती बोली... "उस राव ने मेरे से जबरदस्ती करने की कोशश की... कह रहा था मुझे जो चाहे दे देगा... एक बार... कह रहा था।' वह वैसे ही सुबक ते बोली और फिर शुरू हुई "मैंने उस से कहा की अगर वह मुझे जबरदस्ती करेगा तो..मैं खुदकशी कर लूँगी.. फिर मेरे अंकल को कहना की मैं क्यों खुदकशी करि..." तो वह रुक गया... नहीं तो..." स्नेहा की शरीर ने एक झुर झूरी ली।

"सस्साला.... हरामजादा .. ऐसा करा उसने.. मैं अभी उसका डील कैंसिल करता हूँ... मैं उसकी डाक्यूमेंट फाड़ देता हूँ..." कहते गंगाराम ने डाक्यूमेंट निकाल के फाड़ने जा रहा था।

स्नेहा ने उसे रोकते... "नहीं.. ऐसा मत करिये... अंकल... अभी तो मैं सेफ हूँ... डॉक्यूमेंट फाड़ने से जो हुआ वह अनहोनी तो नहीं हो जाएगी"

"नहीं स्नेहा... उसे सबक सीखाना चाहिए..."

"सबक सीखना अपना नुकसान करके नहीं अंकल... मेरे पास एक आईडिया है..." स्नेहा बोली।

"क्या..." गंगाराम का गुस्स अभी कम नहीं हुआ...

"वह कह रहा था की उसकी एक बेटी है... कॉलेज पढ़ती है... किसी तरह उस से मेरी इंट्रो कराओ.. फिर देखो.. साला.. उसकी बेटी तुम्हारे निचे होगी..."

"वह क्या प्लान है..येहि ठीक होगा... उसके घर मेरा आना जाना तो है ही... चांस मिलते ही में उसकी तुमसे परिचय करादूंगा..."

गंगाराम की ऐसा कहने से स्नेहा ने एक लम्बी सांस ली।

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बुधवार को गंगाराम और स्नेहा रजिस्ट्रेशन ऑफिस में थे और राव का वेट कर रहे थे। गंगाराम ने स्नेहा को आज छुट्टी लेने को कहा था तो स्नेहा ने आधे दिनकी छुट्टी ली।

बारह एक बजे रजिस्ट्रेशन हो गया।

गंगाराम राव का दिया हुआ कमीशन की चेक हाथ में लेकर स्नेहा से पुछा.. "स्नेहा तुम्हारा कोई बैंक अकाउंट है क्या...?"

"हाँ अंकल.. है.. मेरे डॉक्टर साब कभी कभी मेरी सैलरी चैक में देते हैं..."

"कितने रुपये हैं...?"

"यहि कोई दो या तीन हजार...बस.... "

ठीक है में तुम्हे एक नया बैंक अकाउंट खुलवाता हूँ.. चलो पहले खाना खाते है! गंगाराम और स्नेहा दोनो एक होटेल में जाकर लंच करते है। गंगाराम में कुछ अच्छे गुण है.. उसमे से एक उसे कोई भी प्रॉफिट हो उसमे से उसने प्रॉफिट दिलाने वालों को कुछ हिस्सा देदेता है... आज भी उसका इरादा यही है.. लगभग ढाई लाख कंमिशन मिली उसको... उसमे से कुछ वह स्नेहा की नाम करना चाहता था।

दोनों बैंक जाते है और 5000 रूपये से एक बैंक अकाउंट खुलवाकर उसमे 60 हजार रूपये जमा करता है।

स्नेहा बैंक बैलेंस देख कर चकित रह जाती है... "अंकल यह क्या... इतने रूपये.. मेरे नाम पर..."

"हाँ स्नेहा... यह रूपये तुम्हारे ही है... राव से तुम्हारे साथ जो बीती फिर भी तुमने उसे रोक के रखा.. और मैं ग़ुस्से मे डॉक्यूमेंट ही फाड़ देने वाला था.. लेकिन तुमने मुझे रोका... देखो.. मुझे जो कमीशन मिली उसमे से थोड़ा .. तुम्हारे नाम पर... "

"ओह अंकल..." वह उस से लिपट गयी..."

चलो चलते है... यहाँ से तुम घर जाओ.. में ऑटो बुलाता हूँ.. कह कर उसे स्नेहा को ऑटो में चढ़ाया और किराया भी भर दिया..."

स्नेहका चेहरा ख़ुशी से दमक रहा था...

तो दोस्तों.. यह थी स्नेहा और गंगाराम की एक और किस्सा.. आगे क्या हुआ.. यह हम बाद में जानते है..

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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Update 13

स्नेहा अपनी सहेली सरोज को गंगाराम से चुदने की बात की बात बताती है।

उस दिन संडे था। समय कोई ग्यारह बज रहे थे। स्नेहा ने अपनी सहेली सरोज को फ़ोन किया और पूछी की क्या वह खाली है.. सरोज ने उधर से जवाब दी की वह खाली है।

"तेरे पति नहीं है क्या...?" पूछी स्नेहा।

"नहीं वह अपने कुछ फ्रेंड्स के साथ फिल्म देखने गया है और कह गया ही की वह शाम से पहले आने वाला नहीं।."

"खाना खायी...?"

"कहाँ यार स्टोव भी नहीं जलाई... में अकेली हूँ, सोच रहा हूँ की मेस से एक प्लेट माँगा लेती हूँ; मेरे घर के समीप ही एक मेस है। वहां फ़ोन करूँ तो भिजवा देते है..." सरोज का जवाब आया।

"चल, आज मैं तुझे खाना अच्छे से होटल में खिलाती हूँ..."

"अरे वाह मेरी बन्नू... क्या बात है.... बहुत चहक रही है...?"

"वैसा कुछ भी नहीं यार... बहुत दिन हो गये तुमसे मिलकर... कल ही मेरी सैलरी मिली है.. बस.."

"अच्छी बात है.. कहाँ मिलूं.. या तू मेरे घर आजा..."

"नहीं, तुहीं होटल को आजा.." स्नेहा होटल का नाम बोलती है और फिर कहती खाने के बाद "मैं तुम्हारे साथ.... गप्पे मारते है.."

"ठीक है..." सरोज फ़ोन बंद कर तैयार होने लगती है।

सरोज हेमा की उम्र की ही लड़की है.. वह भी स्नेहा की तरह एक डॉक्टर के पास काम करती है। दिखने में स्नेहा से जरा सा गोरी है उसका शरीर भी स्नेहा कि मुकाबले में भरा, भरा है। सरोज के चूची भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है। जब की स्नेहा के 28 A कप वाली ही तो सरोज के 32 B कप के है। उसके कुल्हे भी स्नेहा के मुकाबले बड़े है और मांसल (fleshy) है। जब वह चलती है तो उसकी थिरकते कूल्हे देख कर राह चलने वालों की मन मचल जाती है। दो साल पहले उसकी शदी हो चुकी है और अभी तक उसका कोई संतान नहीं है।

जब दोनों सहेलियां होटल के सामने मिले तो लगभग एक बज रहा था। सरोज को स्नेहा होटल के बाहर ही उसका वेट करते मिली। स्नेहा को देख कर सरोज ढंग रह गयी। स्नेहा जीन पैंट पहन कर शर्ट डाली थी। सरोज स्नेहा से मिलकर तीन महीने के ऊपर होगये। स्नेहा कभी भी जीन पैंट नहीं पहनती थी। लेकिन आज वह जीन पैंट में और शर्ट में थी, और खूब जच रही थी। जीन पैंट से स्नेहा के पतली जाँघे और छोटे नितम्बो का कटाव दिख रहे थे। सरोज खुद सलवार सूट में थी।

"हाय हनी..." सरोज स्नेहा से गले मिली। स्नेहा भी उसे चिपक गयी। दोनों अंदर चलने लगी।

"स्नेहा क्या बात है... बहुत मस्त लग रही है..." सरोज उसे निचे से ऊपर तक देखती पूछी।

"कुछ नहीं मेरी माँ.. पहले चल अंदर जमके भूख लगी है..." इससे पहले भी दोनों सहेलियां, कभी कभी मिलकर बाहर खाना खाते थे, लेकिन तब हमेशा होटल न जाकर मेस में खा लिया करते थे। लेकिन आज स्नेहा उसे इतनी अच्छे होटल ले आयी है..बात क्या है'...' वह सोचने लगी।

दोनों आमने सामने बैठ गए। "बोल क्या खायेगी...?" स्नेहा पूछी।

"यार आज बटर नान और कड़ाई चिकेन खाने का दिल बोल रही है... चलेगा...?"

"हाँ.... हाँ.. क्यों नहीं चलेगा जो चाहे खालो.... फिर आइस क्रीम भी मंगालेना। बिलकी फ़िक्र न कर.." स्नेहा बोली।

"यार स्नेहा, कोई बात तो जरूर है... जो तू इतना दरिया दिल निकली.. कोई लाटरी लग गयी क्या...?"

"आरी मेरी माँ.. चुप करना... पहले आर्डर तो दे... घर चल कर सब बता दूँगी.."

"एक बात बता स्नेहा.. कोयी बॉय फ्रेंड मिल गया क्या... बहतु खुश दिख रही है..."

""हाँ, लेकिन बॉय फ्रेंड नहीं... मैन फ्रेंड है.."

"क्या.. मैन फ्रेंड..? यह कौन हुआ...?"

"यार, मैन फ्रेंड यानि की आदमी... कोई जवान नहीं..."

"अच्छा.. कितने वर्ष का है..कोई 30, 32 वर्ष का तो होगा ही..." सरोज स्नेहा को देखती पोची।

"नहीं रे.. और बड़ा है..."

"अरे कितना बड़ा है.. कहीं बुड्ढा तो नहीं .."

"यार सरोज, सबकुछ यहीं पूछेगी क्या...? में कही थी न घर चलकर बताउंगी..." स्नेहा अपनी सहेली को डाँटि। उसके बाद दोनों इधर उधर की बाते करते खाने लगे।

"यार सरोज.. तेरे पती कैसे हैं...?"

"उन्हें क्या वह तो मनमौजी है...सवेरे कंपनी जाते है और शाम को वापस.. मैं ही ऐसी की सवेरे दस बजे से दोपहर दो तक और फिर शाम 5.30 से रात दस कभी कभी 10.30 होजाते है। साली क्या नौकरी है...न आराम है न छुट्टी मिलती।"

"हाँ वह तो है... लगभग मेरा भी यही हाल है..." एक लम्बी साँस लेते बोली स्नेहा।


कहानी जारी रहेगी
 

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Update 14

स्नेहा अपनी सहेली सरोज को गंगाराम से चुदने की बात की बात बताती है-2


दोनों सहेलियां खाना ख़तम करने के बाद स्नेहा ने लजीज ice cream मंगाई। उसका cost मालूम होते ही सरोज फिर से दंग रहगयी। सोची 'जरूर कोई मालदार के पाले पड़ी है'।

खाना ख़तम करने के बाद दोनों सहेलियां सरोज के घर आयी। सरोज का दो कमरों का छोटा सा घर है। एक बेड रूम, एक फ्रंट रूम और छोटासा किचन बस। दोनों सहेलियां हाथ मुहं धोकर सरोज के बेडरूम में आये। सरोज ने दो मैक्सी निकाल कर एक स्नेहा को दी और एक खुद पहनी। स्नेहा ने भी अपना जीन पैंट और शर्ट उतार कर सरोज दवरा दिए मैक्सी पहनी।

दोनों सहेलियां पलंग पर अगल बगल लेटे रहे। वह एक दुसरे को देखते बातें करने लगे। सरोज का हाथ स्नेहा के कमर क गिर्द लिपटी है तो स्नेह का सरोज के कमर के गिर्द। ऐसे लेटके बातें करना वह पहले से करते थे।

"स्नेहा..." सरोज बुलाई और स्नेहा को अपने नजदीक खींची।

"vooon" बोलती स्नेहा सरोज के समीप किसकी। "क्या है...?" पूछी।

"तुझ में बहुत बदलाव आए है..." स्नेहा की गाल पर अपनी तर्जनी ऊँगली घुमाती बोली।

"अच्छा... ऐसे क्या बदलाव देखे है तूने..?"

"सबसे पहले तो तेरे छेहरे पर निखार आयी है। तेरी स्किन पहले से ज्यादा स्मूथ हो गयी है। और अब तू कुछ ज्यादा महंगे कपडे पहन ने लगी। पहले तू सर्फ सलवार सूट में रहती थी लेकन अब..." सरोज कुछ पल रुकी और पीर बोली "अब तु जीन्स, शर्ट के साथ साथ, लेग्गिंग्स और शार्ट कुर्ती भी पहन रही है... क्या यह सब बदलाव नहीं है..?" सरोज रुकी।

"वाह बहुत अच्छी परख रही है..."

"सच बोलना स्नेहा यह सब उस बॉय फेरेंड का असर तो नहीं है...?"पूछी।

"हाँ.... उसी का असर है..." स्नेहा कुछ सोचते बोली।

"चल सुना अपना किस्सा..." कहती सरोज ने स्नेहा के मैक्सी के अंदर हाथ डालकर एक चूचिको पकड़कर भींची।

"सससससस...ह्ह्ह्हआआ.... इतने जोरसे नहीं.." स्नेहा सरोज के हाथ को रोकते बोली। "चल सुन.. तू भी क्या यद करेगी...?"

ठहर.... आज बहुत गर्मी है.. मैक्सी निकल देते है..." सरोज कही और खुद ही अपना और स्नेहा का भी मैक्सी उतार फेंकी। अब दोनों सहेलियां सिर्फ पैंटी और ब्रा में रह गये है। स्नेहा की ब्रा, पैंटी का ब्रांड का नाम देख कर सरोज बोली "waaaav... इतनी महंगी अंडरवियर..." वह अचम्भे में रह गयी।

उसे मालूम है की उस कंपनी के ब्रा और पैंटी की से मिनीमम 300 रूपये से कम नहीं है।

यह पैंटी तो बहुत अच्छी...महंगी होगी...?" सरोज अपने हाथ स्नेहा के पैंटी को टच करती बोली।

"हाँ ब्रा और पैंटी का जोड़ा 400 की है।" 400 रुपिये उस निम्न मध्य वर्गीय (Lower middle class) युवतियों किये महंगी ही है। वैसे मार्किट में 1000 रुपये के ऊपर वाले भी उपलब्ध हैं।

सरोज याद् करि की वेह लोग हमेशा मर्केट से किसी ठेले वाले के पास से 25, 30 की ब्रा पैंटी खरीदते थे। वह कुछ बोलने को सोची, फिर खामोश होगयी।

उसके बाद स्नेहा ने अपनी गंगाराम का किस्सा पहले से सुनाई।

"ओह.. तो तू उस 55 साल के बुड्डे से चुद गयी..."

"सरोज मै फ्रेंड... 55 साल का बुड्ढा नहीं... 55 साल का जवान कह; जवान मर्द कैसे चोदते हैं मुझे नहीं मालूम नहीं; क्यों की मैं इस से पहले किसी से चुदाई नहीं... लेकिन इस अंकल की चुदाई तो मुझे स्वर्ग की सैर कराती है।"

"अच्छा... क्या तुम्हरा यह अंकल इतना अच्छा करता है...?" सरोज में उत्सुकता जगी।

पूछो मत.. मुझे तो मजा ही मजा मिलती है... प्यार भी ऐसे करते है की दिल बाग बाग हो जाति है।

"अच्छा.... तू कितने बार करा चुकी है...?" सरोज उत्सुकता से पूछी।

"यार मेरा और उनका परिचय 4 महीने से चल रहा है.. और अब तक में सात से आठ बार उनसे.... वह रुकी... सच बहुत मजा देते हैं..." स्नेहा गंगारम की हरकतों को याद करते बोली।

"अच्छ ऐसा क्या करते हैं...?"

"क्या बोलूं.. मेरी समझमे नहीं आ रहा है.. अंकल तो मेरी चूची के दीवाने है ....?

"क्या...? मैं तो सुना है की लोग बड़े चूची के दीवने होते है... सॉरी.. तुम्हारे तो इतना छोटे है की..."

"आरी इस में सॉरी क्यों... जो है वही कह रही है न.. सही.. मेरे तो बहुत छोटे हैं... मैं इक्कीस की हूँ लेकीन मेरी दुद्दू.. छी...छी.... दुद्दू क्या वह तो कच्ची कैरी की गुटली जैसे है...उसे चूची कहना चूची के साथ अन्याय होगी..."

"खैर छोड़ो... भगवन ने जैसे दिए है वैसे हैं ... तो तुम्हरे अंकल क्या करते हैं ..?

"यार वह तो मुझे पहले चित लिटाते है और मेरी कपडे निकलने बाद सबसे पहले तो मेरी चूची पर टूट पड़ते हैं..."

"चूची पर टूट पड़ते हैं.. क्या मतलब...?"

"पहले तो वह एक के बाद एक को चूची की बेस से ऊपर नन्ही सी घुंडी तक चाटते हैं। उनकी खुरदरी जीभ का स्पर्श से ही में झड़ जति हूँ..... चाटते चाटते वह घुंडी को अपने जीभ से टिकल करते है तो मेरी सारे शरीर में बिजली दौड़ती है..."ममममम... अंकल.." कहते मैं उन्हें मेरे सीने से दबाती हूँ... फिर यह मेरी नन्ही घुंडी को होंठों मे दबाते है.. दांतों में नहीं... होंठों में... जब तो मैं पागल सी हो जति हूँ... और मैं खुद मेरी ऊँगली अपनी बुर पर पैंटी के ऊपर से चलाती हूँ...

फिर अंकल मेरे पूरी चूचिको अपने मुहं में लेते है और ऐसे चूसते है की मुझे तो लगता है मेरा सारा खून मेरी चूची से उनके मुहं में बह रहा हो..." स्नेहा रुकी।

स्नेहा की दास्ताँ से सरोज भी जोशमे आने लगी। वह खुद स्नेहा की पैंटी के साइड से ऊँगली अंदर डाल कर उसकी बुर को खुरदते वह खुद स्नेहा की पूरी चूची को मुहं में लेकर चूसने लगी।

"ससससस.... सरोज.. यह तू क्या कर रही हैं...?" स्नेहा भी अपनी सहेली की चूची को पकड़ते पूछी। सरोज की चूची B कप के size के है... और घुँडो भी बेर की बीज जैसे है। स्नेहा उसे उँगलियों में लेकर मसलने लगी।

"स्नेहा बोलना और क्या करते है.. तुम्हारे अंकल..."

"क्या बोलूं यार.. मैं बोलते बोलते थक जावूँगी..." स्नेहा ने भी सरोज की चुदी चूत में अपनी ऊँगली घुसाते बोली।

"अच्छा एक बात बता.. तुम्हरे अंकल का कैसा है...?"

"पूछो मत... एकदम लाजवाब है..."

"अच्छा... कितना बड़ा है...? छह इंच का तो होगा ना..." सरोज अपने पति की याद करते बोली।

"छह इंच.. यह तो अंकल के समने चूहा है.. अंकल का तो पूरा 9 1/2 इंच के ऊपर है.. और मोटापा पूरा 4 इंच का है..."

"तुम्हे कैसा पता.. है कि वह उतना लम्बा और मोटा है...?"

"उसकी लम्बाई देख कर में दंग रह गयी थी... मुझे तुम्हारी बात यद् आयी की तुम्हारा पति का लग भग छह इंच का है... तो मैंने उसे नापी.. तौबा.. पूरा नौ इंच से भी जयदा है उनका.. फिर उनके, उसके गिर्द धागा लपेट कर उसकी नाप ली तो पूरा चार इंच है..."

"हाय.... दय्या... इतना मोटा और लम्बा..." सरोज अपने हाथ अपने सीने पर रख कर कही...

"क्यों.. मन कर रहा है ...?" स्नेहा ने सरोज के गाल को चिकोटी काटी।

"चुप.. साली.. बेहया निगोड़ी कहीं की..." सरोज स्नेहा की चूची टीपते बोली


कहानी जारी रहेगी
 

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Update 15

छोटी सी चिंगारी

कुछ देर बाद सरोज फिर से पूछि.. "इतना मोटा अंदर घुसा तो तुझे दर्द नहीं हुअ.. उतना मोटा घुसने से.. मेरा तो मेरा पति का घुसते ही दर्द से जान निकल गयी थी..." वह अपनी सुहाग रात याद करते बोली।

"क्यों नहीं ... मेरी भी जान ही निकल गयी.. मैं अंकल निचे चट पटाने लगी। उनका सिर्फ आगे का हिस्सा ही मेरे अंदर गयी। तभी मेरा यह हाल होगयी.. अगर पूरा एक ही बार में घुसता तो....

"अच्छा..एक बात बता..." स्नेहा पूछी।

"क्या...?"

"तू कितने बार खलास होती है...?"

"कितनी बार क्या.. मुश्किल से एक बार... वह भी कभी कभी। कभी कभी मुझे ऐस लगता है की जब मैं पूरे ताव में अति हूँ तो मेरा पति कुछ देर और करे... या दूसरी बार करे.. लेकिन.. वैसा नहीं होता..." सरोज कुछ उदास स्वर में बोली।

"तुझे मालूम है अंकल कितनि देर करते है... और मैं कितनी बार झड़ती हूँ...?" स्नेहा बोली।

"कितनी बार झड़ती है...?"

कम से कम तीन बार... कभी कभी ज्यादा भी.. और अंकल... पूरा 35 से 40 मिनिट करते है।

"क्या इतनी देर...?"

"हाँ यार.. मेरी कमर टूट जाती है.. लेकिन अंकल है की स्खलित होने का नाम नहीं लेते।" ऐसे ही बात करते जरते दोनों सहेलियां एक दूसरे की अंगों से खिलवाड कर एक एक बार झड़ चुके और और उठ गए। सरोज ने स्नेहा से गंगाराम के बारे में खुरेद खुरेद कर पूछी और स्नेहा जोश में जवब दे रहीथी। शाम पांच बजे तक स्नेहा अपने सहेली के साथ रही और घरचली गयी।

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जाने अनजाने में ही स्नेहा ने सरोज के मन में लंबे मोटे लंड के चुदाने ने का मज़े के किस्से सुनाकर उसमे आग भड़का दी। उस रात जब सरोज को उसका पति चोद रहा तो, वह अपने ऊपर गंगाराम की कल्पना करने लगी। अनजाने में ही सरोज में गंगाराम के प्रति एक चाहत पनपने लगी। जैसे जैसे अह गंगाराम के बारे सोच रहीथी, वैसे वैसे गंगाराम की प्रति उसकी चाहत बढ़ने लगी। एक बार चुदाके देखने में क्या हर्ज़ है... सरोज सोची। स्नेहा से पूछूँगी की वह उसे अंकल से मिलवाये। क्या स्नेहा मिलवाएगी... वह सोच रही थी। पूछ के तो देखते है... देखते है स्नेहा क्या कहती है। वह सोचने लगी।

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स्नेहा की आज कल की व्यवहार (बेहवियर) देख कर उसकी माँ; जिसका नाम है गौरी, को अनुमान हुआ की उसकी बेटी किसि से शारीरक सम्बन्ध बनाये है। 'शायद वह गंगारम बोलने वाला ही होगा' वह सोची। आज कल वह हर रविवार को सहेली से मिलना कहकर चली जाती है... घर में खाना भी बराबर नहीं खाती। गौरी ने, स्नेहा की शरीर में आरहे बदलाव को भी देखि। लेकिन वह उसे डांट नहीं सकती। लड़की जवान है, समझदार भी है। उसी से तो घर चल रहा है; उसका बेवड़ा पति तो पी पी कर अच्छा खासा सरकारी नौकरी ही खो दिया। तब से स्नेहा उस डॉक्टर के पास काम करके घर चला रही है। छोटी बहन और छोटे भाई की फीस भी तो वही भरती है। उसका ढर यही है की कहीं उसकी बेटी इतना बदनाम न हो की उसकी शादी में बाधा न पाडे। 'लेकिन क्या यह लोग उसकी शदी करेंगे...?' यह एक बड़ा सवाल थी।

एक दिन जब घर में कोई नहीं थे तो उसने स्नेह से कही, "बेटी तुमसे कुछ बात करनी थी... तुम्हे पुरसत है क्या...?"

"बोलो न माँ... क्या बात है...?"

बेटी देखो मेरी बातों का बुरा मत मान ना ..." वह बेटी की टोड़ी पकड़ कर बोली।

"अरे इसमें बुरा मान ने कि क्या बात है.. तुम मेरी माँ हो.. कहो क्या कहना चाहती हो...?

"स्नेहा बेटी तुम समझदार हो...तुम जो भी कदम उठारहि हो... सोच समझ कर उठाना... कहीं ऐसा न हो की तुम इतना बदनाम हो की आगे चलकर तुम्हारी शादी में कोई बाधा न पड़े..."

"माँ....." स्नेहा अपनी माँ को आश्चर्य से देखने लगी।

"हाँ.. बेटी... मुझे मालूम है... तुम जवान हो गयी हो.. तम्हारा पीवट पिता तो तेरी शादी करने से न रहे। मैं समझ चुकी हूँ की तुम आज कल तुम कहते हो न वह गंगारम अंकल.. उसके साथ घूम रही हो... जवानी ऐसे ही होती है.. मैं तुम्हे नहीं रोक नहीं रहीं हूँ.. लेकिन संभाल के.. कहीं तुम.... तुम समझ गयी न मेरी बात को..."

"जवानी होती ही ऐसे.. मैं खुद इसका शिकार हो चुकी हूँ...." उसकी माँ फिर कही।

"माँ......!" स्नेहा आश्चर्य से अपने माँ को देखि।

"हाँ बेटी .. मेरा मामा, माँ का छोटा भाई... जब मैं जवान थी तो शादी करने का वादा करके... मेरे से..." वह रुकी और बोली "आज कल तुम नींद में भी बड बडाने लगी हो..."

"क्या..." स्नेहा चकित रह गयी।

"हाँ बेटी..."

"मैं क्या बड़ बड़ा रही थी...." स्नेह अपनी माँ से पूछी।

स्नेहा की माँ 'गौरी' जिसकी उम्र केवल 41 साल की है गालों में लालीमाँ छागयी। माँ के कपोलों पर इस उम्र में आयी लालिमा देख कर सोची 'ऐसे क्या बोलदिया मैंने' सोची और माँ के गालों आयी लालिमा से मोहित होते पूछी..."बोलो ना माँ..."

"छोड़ो बेटी... आगे से संभल के रहना..." माँ बेटी से बोलने हिच किचा रही थी।

"लेकिन माँ.. मैं ऐसे क्या बोली.. मुझे मालूम तो हो..."

बेटी, तुम्हे मालूम है है हम सब एक ही कमरे में सोते है... उस रात तुम्हारी बड़ बड़ाने आवाज सुनकर मेरी नींद खूली। तुम कह रही थी... "ओह अंकल.. जरा धीरेसे पेलिये.. आपका बड़ा है..." माँ के मुहं से यह बात सुनते ही... स्नेहा शर्म से लाल पिली हो गयी। उसे क्या बोलना समझमे नहीं आया। खामोश रह गयी। "बेटी मेरे बातों का बुरा मत समझना... तुम अपने लिए किसी अच्छे लड़के को ढूंढ लो... उस से शादी करलो... और उस अंकल के साथ संभल के ... बस मैं यही कहना चाहती हूँ..." माँ बोली और खाना बनाने चली गयी।

उसके बाद तो स्नेह को खुली छूट मिल गई... अब वह अपने माँ से अंकल के यहाँ जा रही हूँ कहकर जाने लगी। वह समझ गयी की मा उसे रोक नहीं रही है.. केवल सावधान रहने को कही। स्नेहा समझ गयी माँ का ईशारा किधर है.. और अब वह गर्भ निरोधक गोलियां लेने लगी।

दोनों सहेलियां, सरोज और स्नेहा मिलके एक महीने के ऊपर होगया है। आखिरी बार जब वह मिले थे तो स्नेहा ने अनजाने में ही हो आपनी सहेली सरोज के मन में मोटा और लम्बे लण्ड से चुदाने का मजे के बारे में बताकर उसके मन में एक छोटीसी चिंगारी सी पैदा करदी। उसी रात जब सरोज अपने पति से करवा रही थी तो उसने अपने ऊपर स्नेहा का बॉय फ्रेंड, 55 वर्ष के गंगाराम की कल्पना करी थी।

उस मिलन के दूसरे या तीसरे दिन सरोज सोची की गंगाराम से उसका परिचय कराने के लिए स्नेहा से पूछेगी। लेकिन वह नौबत नहीं आयी। एक महीने के ऊपर होगया इस चिंगारी को सुलग के। उस चिंगारी ने अब आग बनगयी है। इस बीच स्नेहा से उसकी (सरोज) दो तीन बार सिर्फ फ़ोन पे ही बातें हुई थी।

आज फिर रवि वार है। उसका और स्नेहा का भी छुट्टी का दिन। उस दिन उसने स्नेह को फोन करि।

"हाँ बोल सरोज कैसी है..?." स्क्रीन पर सरोज का नाम देख कर उधर से स्नेहा कही।

"मैं तो ठीक हूँ.. तू बोल कैसी है...?" सरोज कही।

"हाँ यार सब चंगा.. बोल कैसे फोन करी..?"

"यार सोचा हम दोनों मिलकर बहुत दिन हो गए, सोचा बैठकर गप्पे लडाते हैं... बस उसि लिये.. तेरा कोई इंगेजमेंट है क्या...?"

"नहिं... वैसा कुछ भी नहीं है.. सोच रही हूँ कि आज घर में ही रेस्ट करने की ..." स्नेहा का जवाब आया।

कहानी जारी रहेगी
 

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Update 15

छोटी सी चिंगारी ने आग लगाई


"स्नेहा एक काम कर..तू तैयार होक मेरे यहाँ आजा.. यहीं रेस्ट करलेना और अपने गप्पे भी हो जाएंगे.. क्या...?" सरोज बोली।

"क्यों तेरा पति नहीं है क्या...?"

"यह तो सवेरे ही चला गया... अब तक अपने यार मित्रों के साथ ताश में बैठा होगा..."

स्नेहा कुछ पूछे ने को सोची और फिर बोली.. ठीक है अति हूँ..." कही और अपने माँ से कह कर वह सरोज के घर चली।


दोनों सहेलियां गले मिलते है और सरोज स्नेहा को अंदर बुलाई और एक पुरानी सोफे पर बैठे। कुछ देर इधर उधर की के बातें होने का बाद.. सरोज ने स्नेहा को चाय पिलायी।

"सरो... तुमसे एक बात पूछनी थी; पूछूं, बुरा मत मान ना..." स्नेहा अपनी सहेली को देखते पूछी।

"अरे.. इसमें तेरेसे बुरा होना क्या बात है.. पूछ क्या पूछने चाहती है...?" सरोज स्नेहा के हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली।

"कुछ नहीं.. सरो.... आज संडे है और तुम्हारा पति का भी छुट्टी है... वह तुम्हे कभी बहार घूमाने नहीं ले चलता... यही एक ही दिन तो तुम्हे मिल झुलकर रहना चाहिए थी।"

"आआआआह्ह्ह्हह्ह" सरोज ने एक लम्बी सी आह भरी बोली... स्नेहा मैं डियर जो तुम कह रही हो वह सच है... लेकिन वह कहता है की वह सारे हप्ते मेरे साथ रहता है तो संडे के दिन उसे दोस्तों से मिलना जरूरी है..."

"सारा हपता तुम्हरे साथ.. कब..?" स्नेहा चकित ठोकर पूछी।

"उसका मतलब रातों से है.. हर रात मेरे साथ रहता है... यह वह कहता है..."

"खैर छोड़ो वह किस्सा... चलो किचन में.. खाना बनाते बातें करते हैं..." सरोज स्नेह का हाथ पकड़ी।

"अब क्या खाना बनाएगी तू... चल आज बाहर से मंगाते है...डोंट वोर्री... पेमेंट मैं करूंगी"

"यार स्नेहा आज कल तू बहुत दरिया दिल वाली बन रही है..."

"ऐसे कोई बात नहीं... बस यही तो दिन है मौज मस्ति करने की..." फिर वह फ़ोन पर एक मटन बिरयानी, मटर पनीर करी, मीट बॉल्स कोफ्ता करी के साथ डबल का मीठा का आर्डर करि।

फिर दोनों सहेलियां बैडरूम में पहुँचते है.. और बातों में लगते है। दोनों अगल बगल में लेटे है और एक दूसरे को देखरहे हैं। स्नेहा का हाथ सरोज के कमर पर तो सरोज का स्नेहा का कमर पर। सडनली (suddenly) सरोज स्नेहा को अपने सामीप खींचती है और " स्नेहा आज तू बहुत आकर्षक (attractive) लग रही है...." कहते उसके होंठों को अपने में लेकर चूसने लगी।

"स्स्स्सस्स्स्स.... सरोज.. यह क्या कर रही है..." स्नेहा जबरदस्ती उस से छुड़ाती बोली।

"सच में यार तू आज बहुत आकर्षक लग रही है..." सरोज ने स्नेहा की छोटी चूची को अपने हाथ के निचे दबाती बोली।

"ममममम... तुम भी तो कुछ काम नहीं हो सरो..." स्नेहा ने अपनी सहेली की चूची थामी। कुछ ही देर में दोनों नंगे होगये... उनके शरीर पर सिर्फ ब्रा और पैंटी ही रह गयी है। सरोज ने स्नेहा के चूची को पूरा अपने मुहं में लकर चूसने लगी... "आअह्ह्ह... सरोज.. ऐसे ही चूसे मेरी सहेली.. मजा आ रहा है... ससस..हह" कही और सरोज के सर को अपने सीने से दबाली।

वह खुद सरोज के चूची के निप्पल को पिंच करते... दूसरे हाथ को उसके बुर पर पैंटी के ऊपर से चलाने लगी। सरोज ने अपने टाँगे पैलादि। स्नेहा की ऊँगली उसके सहेली के बुर में झड़ तक घुस गयी है।

"हाहाहा... ममम.. स्नेहा ऐसे ही कर मेरी बन्नो.. और डाल अपनि ऊँगली... को..." कहते कमर उछाली। फिर दोनों सहेलियां ऐसे ही मस्ती करते एक दूसरे की बुर को चूमते, चाटते उँगलियों से चुदाई करके झड़ जाते है..."

जब तक वह दोनों फ्रेश होजाते है तो उनका आर्डर किया खाना आजाती है, फिर दोनों सहेलियां बातें करते खाने पर बैठ जाते हैं।

खाना खाते.. सरोज पूछी... "बोल स्नेहा तुम्हारा क्या हाल है... इस बीच तुम अपने अंकल से मिली हो क्या....? (उसका इशारा गंगाराम से था)

"हाँ यार.. लास्ट वीक ही मिली हूँ...."

"अच्छा.. अबकी बार क्या किया था तुम्हारे अंकल ने..." सरोज स्नेह कि छोटीसी निप्पल को दबोचती पूछी ।

"यार सरोज मत पूछ... इस बार तो उन्होंने मेरी गांड मारी ..."

"क्या...? तूने गांड मरवाई...?" सरोज आश्चर्य से पूछी।

"हाँ..."

"स्नेहा तुझे दर्द नहीं हुआ...? तुम तो कह रही थी की उनका बहुत बड़ा है..."

"हाँ.. बहुत बड़ा है.. लेकिन अंकल इतना प्यार से करे की मुझे मालूम नहीं हुआ की उनका डंडा मेरे पीछे में चली गयी है..."

"ऐसा कैसे हो सकता है....?"

"है ना मिरकिल.... (miracle) यही हुआ और सच मनो तो मुझे भी मजा आया..."

"हाय राम.. तेरा गांड है की सुरंग..." कहते सरोज ने अपने जांघों के बीच अपने हाथ डालकर खुद अपनी बुर को भींची।

"क्यों.. खुजली हो रही है क्या..? तुम भी अंकल से क कराना चाहती हो...?"

"तुम्हारे अंकल मुझे क्यों करेंगे..? तुम तो कहती हो की वह तुम पर फ़िदा है..."

वह सब छोड़... तुझे कराना हैतो बोल... मैं अंकल से कहूँगी कि वह मेरे अच्छी सहेली का भी जरा ध्यान रखे।

"क्या वह मुझे चोदेंगे? "

"क्यों नहीं चोदेंगे....? क्या कमि है तुम में.. मेरी से गोरी हो... और तेरा शरीर भी मेरे शरीर से भरा है ... और तेरे चूचिया तो देख कितने मस्त है...." उसने सरो की चूची को जोर से मिंझी और बोली "वैसे मैं एक बात बोलना भूल गयी " स्नेहा कही।

"क्या....?" पूछी सरोज.. वैसे उसके मन में स्नेहा की बातों से उछाल खुद करने लगी।

"इस संडे, अंकल ने हमें फॅमिली के साथ दावत में बुलाये है.. कह रहे थे अगर मेरी किसी सहेली को बुलाना चाहती हूँ तो बुला सकती हूँ। तू चलेगी क्या... अंकल से तेरा परिचय भी हो जाएगी..." स्नेहा बोली।

सरोज को तो मानो उसकी इच्छा पूरी है रही है... वह हाँ कहते कहते रुकी... और बोली.. "नहीं यार.. कहीं तुम्हारा अंकल कुछ और न समझे..."

कहानी जारी रहेगी
 
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