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Erotica उम्र पचपन की में दिल हुआ बेईमान

aamirhydkhan

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एक पचपन वर्ष के आदमी के साथ इक्कीस वर्ष की युवती की योन क्रीड़ा।

Hello friends...

ये कहानी किसी और फोरम से कॉपी पेस्ट है।

गंगाराम और स्नेहा

गंगाराम-
एक 55 साल का हट्टा कट्टा आदमी है। उसका कद कोई 5'7" लम्बाई होगी। दिखने में आकर्षक दिखता है और अच्छे सलीके से रहता है।

स्नेहा - लड़की की उम्र कोई 20 -22 की होगी। लड़की दुबली पतली और, सावंली है। नयन नक्श अच्छे है।

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गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज.

सबने मिलकर उस कमरे को जहाँ केक कटने वाली थी सजाने लगे। अब सरोज का पती और गौरी का पति भी कमरा सजाने में शामिल हुए। कोई कलर पेपर कटाई कर रहा है तो कोई उसे बांध रहे है। कोई गुब्बारे में गैस तो कोई उन्हें टांग रहा है... कोई यह लावो, वह लावो,यह दो ये वह दो चिल्ला रहे थे, कुल मिलाकर वहां हंसी मजाक और छेढ़ चाढ़ का माहौल था। सात बजे गंगाराम ने केक काटी, और सब मिलकर, हैप्पी बर्थ डे का गाना गाये और गंगाराम को बधाई देने लगे।

उसके बाद माहौल में हल्ला गुल्ला मच गया। सब एक दूसरे पर केक का क्रीम लगाने और उस से बचने की कोशिश शुरू हुआ। सब चिल्ला रहे थे और जोर जोर से हंस रहे थे। फिर आंख मिचोली शुरू हुआ। आँखों पर पट्टी बांध कर एक दूसरे को पकड़ने का और उसका नाम बोलने का गेम शुरू हुआ। इस खेल का लाभ सबसे ज्यादा सरोज का पति अशोक उठाया। आँखों पर पट्टी बांध कर वह किसी को पकड़ता था पर हमेश गलत नाम बोलता था और वह फिर से पट्टी बांधलेता था। इस बहाने उसने स्नेहा के साथ साथ उसकी बहने पूजा का और उसकी माँ गौरी पर हाथ चलाया। सरोज यह बात समझ चुकी थी लेकिन कुछ बोली नहीं।

इस दौरन हि वहां (snacks) स्नैक्स और ड्रिंक्स सर्वे करे गये। स्नैक्स के नाम पर वहां दो किस्म के चिप्स, चिकन लॉलीपॉप के साथ मटन 65 था; तो ड्रिंक्स के नाम पर व्हिस्की, वाइन, बियर और फांटा, माजा सर्व किये गए। सभी लोग खेल के साथ साथ ड्रिंक़्स और स्नैक्स का एन्जॉय करने लगे।

यह सब हंगामा शुरू होने से पहले गंगाराम ने सबको गिफ्ट्स दिया। सरोज के लिए सलवार सूट और उसके पती के लिए अच्छा सा शर्ट और पैंट का जोड़ा दिया है। गौरी के लिए भी एक अच्छीसी साड़ी और उसके पती के लिए एक जोड़ी कपडे। स्नेहा का बहन पूजा के लिए एक अच्छासा नाहंगी घाघरा चोली और एक कॉस्टली टाइटन वाच दिया। स्नेहा की भाई के लिए उसे भी एक जोड़ा कपडे के साथ उसे एक क्रिकेट bat और gloves भेंट किया। सब लोग इतना खुश थे की उन्हें गंगाराम के बारे में क्या बोले समझ मे नहीं आया। यह सब भेंट करने से पाहले सब को संबोधित करते कहा ...

"दोस्तों;" वह कहना शुरू किया "मुझे परिवार (family) बहुत पसंद है। basically मैं फॅमिली man हूँ। मेरे दो बेटे बहार की देशों में रहते है। मेरी पत्नी की देहान्त हो चुकी है।

यहाँ मैं अकेला रहता हूँ इसी लिए जब में स्नेहा को देखा तो एक अच्छी घर वाली लड़की के रूप में दिखी, इसीलिए मैं उनसे दोस्ती बढ़ायी है। आप सब स्नेहा के बंधु और मित्र हो; इस वजह से आप सब भी मेंरे बंधू और फ्रेंड्स बनगए। मुझे एक फॅमिली मिल गयी है। इसिलए मैं इस वर्ष मेरा जन्मदिन फॅमिली के साथ मानाने का निश्चय कर यह सब किया है। मुझे आशा है की यह बंधन और फ्रेंडशिप हमेशा चले" कह कर वह अपना बोलना समाप्त मिया।

उनकी बातें सुनकर सब ने हर्षोल्लास के साथ तालियां बजाये और बोले 'दोस्ताना ज़िंदाबाद'।

रात के गयारह के ऊपर तक उन लोगों का हंसी मजाक; खेल खुद, नोक झोंक चलता रहा। तब जाके सब खाने बैठे लेकिन स्नैक्स ही इतना खा चुके थे की लिसी को भी खाने में रूचि नहीं थी। खाने के नाम पर थोडासा ही खाये और सब सोने चले गए। स्नेहा और उसके भाई,बहनके लिये एक कमरा, उसके माता पिता के लिए एक कमरा और सारोज दंपत्ति के लिए एक कमरा दिया आया। खुद गंगाराम पहली मंज़िल कि अपने बेड रूम में था। सोने से पहले स्नेहा ने अपनी माँ से कही "माँ... अंकल को bed tea की आदत है; आप प्लीज उन्हें सवेरे चाय दे दीजिये" कही जिसे गौरी ने मान ली।

इधर स्नेहा के पिता और दूसरे कमरे में सरोज का पती खूब पीकर टुन्न थे तो उन्हें होश ही न रही। जबकि पूजा और गोपी थके थे तो जल्दी ही सो गए और खर्राटे भरने लगे।

इधर गौरी के ख्यालों में गंगाराम उसे गिफ्ट देते समय कही बातें जहन में घूम रही है। उसने कहा था ...

"बाप रे गौरीजी.. ओफ्फो आप इतना सुन्दर होंगे मैं सोचा नहीं था। आप तो तीन तीन बच्चोंके की माँ तो बिलकुल ही नहीं दिखते। आज आप को स्विम सूट में देख कर तो मेरा दिल कुछ सेकंडों के लिए थम गया"।

वही सरोज के कमरे में सरोज भी नहीं सो रही थी। स्विमिंग पूल में गंगाराम के टच, और यहाँ शामको किसी बहाने अपने बदन पर उनके हाथ फेरना उसे बार बार यद् आ रही है। उतना ही नहीं एक बार मौका देख कर गंगाराम ने उसके गाल भी चूमा था। 'उफ़ कितना गर्म है उनके सांसे' सरोज सोचने लगी। लगता है उनका दिल मुझ पर आयी है... शायद मौका देख कर यह कभी उन्हें भी... अंकल का बहुत बड़ा है... क्या में उसे संभल पावुंगी... उसका पति का तो छह इंची ही है.. और पतला भी... सरोज में मन में तरह तरह के आलोचनायें घूम रही है।

एक और कमरेमे स्नेहा अंकल का अपना बर्थडे गिफ्ट देने को आतुर थी। वह, उसके बहन पूजा और भाई गोपी सोजाये तो वह अंकल के यहाँ जा सकती है।


स्नेहा ने टाइम देखि; बारह बजने में दस मिनिट कम थे। वह बगल में सोंये अपने बहन और भाई की ओर देखि। दोनों ही गरे नींद में है। वह उठी और इधर उधर देखती बिल्लीकी क़दमों से कमरे से बहार निकली और आजू बाजू देखि। हर ओर सन्नाटा था। हॉल में सिर्फ नाईट बल्ब की मद्दिम रौशनी थी। वह निःशब्द सीढियाँ चढ़ने लगी। वह ऊपर गंगाराम के कमरे में पहुंची। गंगाराम अभी सोया नहीं था। चित लेटकर कुछ सोच रहा था। दरवाजा बिदकने की आवाज सुनकर उसने सिर घुमाया और स्नेहा को दरवजा बंद करते देखा। वह उठ बैठा और मुस्कराहट के साथ स्नेहा को देख रहा था।

स्नेहा समीप आकर पलंग पर बैठी तो पुछा "पार्टी कैसी थी डियर...?"

"बहुत ही उम्दा अंकल; सब लोग बहुत खुश हैं..." बोली एक क्षण रुकी और फिर बोली "अंकल हैप्पी बर्थडे। यह कलीजिये पका गिफ्ट.." कही और अपने हाथ में थामे एक बडा सा लिफाफे को गंगाराम के हाथ में रखी।

"यह क्या है..." कवर हाथ में पकड़कर पुछा।

"खुद देखिये..." स्नेहा मुस्कुराई।

गंगाराम ने कवर खोला और अंदर से एक फाइल निकला और खोलकर देखा। अंदर के पेपर्स देख कर "यह....यह..." हकलाया और स्नेहा की ओर देखा।

"गिफ्ट पसंद आया अंकल...? वह मुस्कुराते पूछी।

"तुम..तुम.. समीर खान से मिली हो...?" गंगाराम स्नेहा से कह रहा था।

स्नेहा केवल मुस्क़ुरती उन्हें देख रहे थी।

गंगाराम स्नेह कि मासूम चेहरा देखा और जोरसे उसे अपने सेने में दबोचा "स्नेहा तुमने बहुत बड़ा त्याग किया... सच मनो अब तक तुम्हारे लिए मेरे मन में जो भावनाएं थी; वह सब अब तुम्हारे प्रति अथाह प्रेम में बदल गया। I Love you darling .. तुमने इस बूढ़े अंकल के लिए इतना बड़ा कदम उठाया..."

"अंकल अपने आप को कभी भी बुड्ढा मत कहिये... मैं आपसे बहुत प्रेम करती हूँ... वास्तवमें मैं अपने शारीरक सुख के खातिर आपसे मुलाकात बढाई.. लेकिन जैसे जैसे हमारी मिलन होते गयी और मेर प्रति आपका प्रेम, प्यार, अफेक्शन और अपनापन देख कर में आपसे प्रेम करने लगी; सच्चा प्रेम... ऐसे में आपको प्रॉफिट दिलानी वाली इस काम को मैं करने का निश्चय किया और समीर से मिली। मुझे ख़ुशी है की आपका काम मेरे से पूरा हुआ। समीर खान, मेरे से बहुत खुश और बोले आगेसे आपका कोई भी फाइल वह आँख बन्द करके दस्तखत करदेगा"।

"थैंक यू स्नेहा.." कहा और एक बार फिर उसे अपने आगोश में खींचा।

"थैंक्यू बहुत होगया अंकल, मुझे मेरा गिफ्ट चाहिए..."

"पूछो.... क्या चाहिए तुम्हे.. जो मांगोगे मिल जायेगा..."

"ममममम.. मुझे यह चाहिए" कही और गंगाराम की लुंगी और बनियान खीँच फेंकी और बोली "हाँ अब पूरा बर्थडे बॉय दिख रहे हो..." कहते वह खुद अपने कपडे उतार फेंकी और खुद बर्थडे बेबी बन गयी।

कहानी जारी रहेगी

 
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aamirhydkhan

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गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज.

गौरी को नींद नहीं आ रही थी। उस शाम गंगाराम द्वारा बोले गये बातें उनके जहन में घूम रहे थे। गंगाराम ने कहा था " गौरी जी आप तो बहुत सुन्दर और जवान लग रही है... आप तीन तीन तीन बच्चों की माँ हो यह बात कोई भी विश्वास नहीं करते .... वैसी है आपकी फिगर ... मुझे आपके पती से ईर्ष्या हो रही है कि वह आपका पति हैं " यह बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रहे है। उसका पति तो उस से कभी भी इतना प्रेम से बात नही करा; सुंदरता के बारे में तो कभी भी नहीं। उसके बातें याद आते ही गौरी के शरीर में गुद गुदी सी होने लगी। इतने मे उसे अपनी बेटी नींद में बड बडाने की बात याद आयी। 'अंकल जरा धीरे पेलिए, आपका बहुत मोटा है' स्नेहा नींद में बड बडा रही थी।

यह बात याद आते ही उसकी गुद गुदी और बढ़ गयी। जांघों के बीच सन सनी सी होने लगी। उसका पती उसे चोद कर सालों गुजर गए। अब तो वह बंजर जमीन बन गयी... सोंचते, गौरी का नींद हराम हो गयी। तभी उसे 'खट' की आवाज सुनाई दी। वह आवाज इतनी धीमी थी की अगर वह रात की ख़ामोशी न होती तो उसे सुन पाना असंभव था। वह धीरे से उठी और बहार आकर देखि।

उसने अपनी बेटी स्नेहा को ख़ामोशी से इधर उधर देखते सीढियाँ चढ़ते पायी। वह समझ गयी की, स्नेहा क्यों ऊपर जा रहे है। अनजाने में ही उसके दिल में एक कुतूहल जाग उठी की देखे उसकी बेटी कैसे चुदवाती है उस मोटे लंड से.... वह चार, पांच मिनिट वेट करि और धीरे से ऊपर चढ़ने लगी।


इधर सरोज को भी नींद गायब थी। स्विमिंग पूल में गगराम द्वारा उसे छूना और शाम में कहे गए बातें; किसी बहाने अपने शरीर पर उनके हाथ फेरना उसे बार बार याद आ रही है। उतना ही नहीं एक बार मौका देख कर गंगाराम ने उसके गाल भी चूमा था। उसके सारे शरीर में सन सनी सी होने लगी। उसके हाथ अपने आप ही जांघों के बीच पहुंचि। 'सरोज तुम अंकल का देखना चाहती थी न.. रात के बारह बजे मैं अंकल के पास जा रही हूँ... अगर देखना चाहती हो तो ऊपर आ जाओ" स्नेहा ने उससे कहा था। और उसने उसे बताई कि ऊपर के कमरे के दो बॉलकनियाँ है और दोनों बॉलकनी में खिड़की है वह किसी भी खिड़की के पास आ सकती है। वह ख़ामोशी से उठके बहार आयी तो....

उसने देखा की स्नेहा की माँ सीढियाँ चढ़ रही है। वह अपने आप को छिपते छिपाते गौरी को फॉलो करने लगी गौरी को एक खिड़की की ओर जाते देख वह दूसरी खिड़की तरफ मुड़ी।

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"आअह्ह्ह... अंकल..मममम.." स्नेहा ने एक मदभरी सिसकारी ली। स्नेहा की मदभरी आवाज सुनकर दोनों तरफ ठहरे दोनों औरतें अपने अपने खिड़की से अंदर झांके। अंदर स्नेहा अपने पीट के बल चित लेटी थी और उसके जाँघों के बीच गंगाराम अपने घुटनों पर बैठ कर उसकी जवानी का रसपान कर ते देखे। दोनों आदमजात नंगे थे। स्नेहा है तो दुबली पर उसकी चूत खूब उभार ले चुकि है और उस उभार पर गंगाराम की जीभ निचे से ऊपर तक चल रही थी।

"ममम..अंकल उफ़...और अंदर डालिये आपका जीभ.. कुरेदो मेरी खुजला रहि चूत को..आह..." कहते कमर उछाल रही थी।

"चाट तो रहाँ हूँ न डार्लिंग.. जरा इस शहद का स्वाद तो चखने दो.. मममम...आअह्ह्ह.. क्या स्वादिष्ट शहद...." गंगाराम स्नेहा कि रिसते बुर को लपालप चाट रहा था। जैसे जैसे वह स्नेहा को चाट रहा था; बाहर एक और खड़ी गौरी और दूसरी खिड़की के पास ठहरी सरोज को ऐसा लग रहा था जैसे गंगाराम उन्ही के चुतों को चाट रहा है।

कुछ देर चाटने के बाद "स्नेहा डिअर अब रहा नही जाता... अब जल्दी से अपना दे दो.. देखो यह कैसा अकड़ रहा है...." कहते गंगाराम स्नेहा के जाँघों के बीच से सर उठाया और सीधा हुआ। उसका तन्नाया लैंड रह रहकर तुनक रही है। उसे देखते ही बहार एक ओर कड़ी गौरी चकित रहा गयी। 'बापरे.. इतना बडा....' सोचते गौरी के हाथ अपने आप अपने छाती पर रखली। 'अंकल आपका बड़ा है' कहते अपने बेटी को बढ़ बढ़ाते सुनी थी लेकिन इतना बड़ा होगा वह नहीं सोची थी। दूसरी ओर सरोज ने 'ओह गॉड .. यह तो सचमे ही बड़ा है... यह तो लग भग दस इंच का होगा... सरोज सोच रही थी। इतने में अंदर से...

"चोदिये न अंकल; मैं मना कहाँ कर रही हूँ.. मैं तो चोदने को ही कही थी; आप ही मेरी शहद चखने की तमन्ना रखते थे। लो मेरी ओखली तैयार है कूटो अपनी मुस्सल से..." स्नेहा कही और गंगाराम की लवडे को मुट्ठी में बांध कर अपनी ओर खींची।

गंगाराम स्नेहा की जाँघों के बीच आया और अपने यार को मुट्ठी में पकड़ा। स्नेहा भी अपनी टांगें और पैलादि; जिस से उसकी बुर की फांके कुछ और खुल गयी। गंगाराम अपना लंड की सुपाड़ी को उसके खुले फांकों के बीच रगड़ा... और हलका सा दबाव दिया।

'हाय.... मेरी फूल जैसी बच्छी मरी...' बाहर खड़ी स्नेहा की माँ सोच रही थी...

लंड का हलब्बी सूपाड़ा एक ही झटके में अंदर चली गयी।

"आअह..." स्नेहा की मुहं से एक सीत्कार निकली। गंगाराम अपने कमर उठाया और एक ठोकर और दिया...

"mmmmmaaaaaa...." स्नेहा की गले से निकला... और गंगाराम की पूरा साडे नौ इंच स्नेहा कि तंग बुर में। अब वह धना धन अपना कमर ऊपर निचे करने लगा और उसका मुस्सल स्नेह के बुर के अंदर बाहर होने लगी। सिर्फ दो ही मिनिट में स्नेहा जोश में आयी "आआह आआह ज़ोर से और ज़ोर से करो सीईईई सीईईई आआह हाँ ऐसे ही अंदर तक झटके मारो आआह' कहते अपनी कूल्हे उछलने लगी।

स्नेहा गंगराम के नीचे दबी पड़ी अपनी चूत को अंकल के लंबे लंड से कुचलवाती हुई किलकारिया मार रही थी।

"आआह मेरी स्नेहा रानी आज तो तुम मूड में हो; ले ले और अंदर ले मेरी राँड आज तो काफी गीली हो रही है तेरी बुर" एक दक्का और देते कहा।

"जब 12, 15 दिन बाद आआह सीईईई चोदोगे आआह तो ऐसे ही गीली चूत मिलेगी अंकल...हाय क्या लंड है आपका मैं स्वीट अंकल..."।

बहार खड़े दोनों औरतों ने देखा अब गंगाराम ने स्नेहा की दोनों जांघो को विपरीत दिशा में फैला रखा था और अपने घुटनों पर बैठकर अपने मिसाइल को स्नेहा की रसीली और फुली हुई चूत में डालकर दनादन रॉकेट दाग रहा था।

स्नेहा के मुख से निकलती सिसकारियां और उसके मस्ती से मूंदते आंखें और अध् खुले हुए होंठ दर्शा रहे थे कि वो इस समय कितने मज़े में है।

"आआह अंकल... रगड़ दो मेरी चूत की दीवारों को अपने मूसल से आआह हाय हाय सीईईई ऐसे ही गहरे गहरे धक्के मारो रआआआजा" स्नेहा के मुँह से निकलती ये किलकारियाँ कमरे के बाहर दोनों ओर की खिड़कीयों के पास खड़ी नवयौवना और प्रौढ़ा के जिस्म में भी तरंगों का संचार बढ़ा रही थी।

वो अंदर खेले जा रहे खेल को देखकर अपने अपने आमों से खेल रहे है। वेह अपने पके आमोंको दबाने की कोशिश करती वो उतना ही ज़्यादा फ़ूलते जाते और उसके कड़क होते निप्पलों को वो जितना अपने अंगूठे और उंगली के बीच लेकर दबा रहे थे वेह और नोकिली और उतनी कड़क होती जा रही थी।

अंदर सिस्कारियों और किलकरियों की आवाज़ लगातार बढ़ती जा रही थी। उसी के साथ स्नेहा की पतली चूत में गंगाराम के लंड का अंदर बाहर भी तेज़ होता जा रहा था। गंगाराम स्नेहा की दोंनो जांघो को पकड़कर अपने जवान को सरपट स्नेहा के मैदान में मार्चपास कराने लगा। गंगाराम के हर करारे दकके के साथ स्नेहा के छोटे छोटे उरोज़, हलके से हिल रहे थे जिनको देखकर गंगाराम और जोश में अगला धक्का और तेज़ गति से लगा रहा था।

"आआह अंकल सीईईई आआह आअज फाड़ दोगे क्या उईईईई माँ जी आआह अंकल आराम से आआह"।

अंदर की सिस्कारियों ने बाहर के दोनों औरतों को भी आग लगा दी थी।

अंदर चलते कामुक समागम को देखते देखते बाहर खड़े दोनों के शरीर में गर्मी बढ़ने लगी। सरोज तो उस गर्मी को सहन न कर सकी और, उस गर्मी ने उसे बॉलकनी में ही नंगा होने पर मजबूर कर दिया था। उसने अपनी नाइटी निकाल दी और वह एकदम नंगी होगयी। अपने जिस्म को कपड़ो से आज़ाद करने के बाद उसे बड़ी सुखद अनुभूति हो रही थी बॉलकनी में चलती ठंडी हवा ने उसके जिस्म की गर्मी को और भड़का दिया था। उसकी चुचियों ने ठंडी हवा में और अकड़ना शुरू कर दिया। बरामदे में चलती ठंडी हवा में उसकी चुचियों में अकड़न शुरू हो गई थी।

"उईईईई अंकल ...आआआज मार डाला हाय मम्मी" चूत पर करारा चोट पड़ते ही स्नेहा एक फुट ऊपर को सरकी।

इधर स्नेहा की माँ गौरी मे भी अपनी बेटी की चुदाई देखते देखते गर्मी बढ़ गयी। वह सरोज जैसा पूरा नग्न तो न हुई पर अपने ब्लाउज के सारे हुक्स खोल डाली। अंदर ब्रा नहीं थी। वह एक हाथ से स्तन को दबाती दूसरी को जांघों के बीच घुसेड़ का साड़ी के ऊपर से ही अपनी खूब चुदी चूत को जकड़ी।

"आआह हाय सीईईई उईईईई आआह" अंदर कमरे से आती ठप ठप की मधुर ध्वनि उस गरमा चुके औरतों के कानों में शहद घोल रही थी। और उनके आंखें लगातार चूत में अंदर जाकर गायब होते हुए लंड पर टिकी थी।

"ओह अंकल... चोदिये प्लीज... रगड़ो.. मेरी चूत को... साली निगोड़ी आजकल बहुत ओहदाक रही है.. आअह्ह्ह्हह। ..वैसे ही.. अंकल.. क्या दक्का मार रहे हो... और अंदर तक पेलो...." स्नेहा जोश में कमर उछालने लगी।

"स्नेहा डार्लिंग लगता है आज कल तुम बहुत चुड़क्कड़ हो गयी हो..." गंगाराम दकके पर दक्का देरहा था और एक ओर उसकी छोटी मम्मे को दबा रहा था

कहानी जारी रहेगी

 
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aamirhydkhan

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गंगाराम की बर्थडे पर चुदती स्नेहा को उसकी माँ और सहेली सरोज देख रहे थे...


"हाँ अंकल.... मेरे राजा अंकल आप सही कह रहे है.. लेकिन मुझे चुड़क्कड़ किसने बनाया, तुम्ही ने तो बनाया,,, मुझे देखने की देरी... स्नेहा डार्लिंग स्वीट हार्ट स्नेहा कहते अपने गोद खींचते और अपना डंडा मेरी गांडपर ठोकर मरती है तो आपका एक हाथ मेरी लम्बी दरार में करेंट की तार को चेढ़ते राहती है तो दूसरा हाथ से मेरे मम्मी को दबाते और होंठों को चूसते है.. सोचो मेरी क्या दशा होगी। अंकल ठहरो, ठहरो कहने पर बी रुकते यही.. यह सब हरकतोंसे मैं चुड़क्कड़ नहीं बनूँगी तो और क्या बनूंगी.. बोलो,," वह भी गंगाराम के बराबर अपनी कूल्हे उछलती बोली।

"तौबा.. मैंने एक बात कही तो तुमने एक लेक्चर देदिया...वह हाजिर जवाब हो.. मान नी पडेगी।" गंगाराम बोला।

गंगाराम उसे दन दना दन चोदते बोला "स्नेहा डियर..एक बात पूछनी थी..."

"पूछो अंकल..."

"सोच रहा हूँ कहीं तुम बुरा न मनो,,,"

"तुम पूछो तो साही ..."

"यार.. तुम्हारी सहेली सरोज को..."

"वूं.. सरोज को क्या...?"

"उसकी दिलादो ना ..."

"kkyyyaaaaaa..." स्नेहा एक दम चिल्लाई।

"प्लीज डार्लिंग तुम मेरी अच्छी सहेली हो न,,,"

"बस..बस.. वह ऐसी नहीं है..."

"प्लीज...प्लीज..."

"नहीं उससे यह नहीं होगा... वह मेरी अछि सहेली है.. मुझे मालूम है वह वैसी नहीं है... वह मेरे से बात करना बंद करेगी..."

तुम कोशिश करो तो मन जाएगी.. वह तुम्हारी अच्छी सहेली जो है..."

स्नेहा कुछ देर सोचती है फिर बोलती है... "कोशिश करूंगी अंकल; लेकिन गारंटी नहीं है.."

"ठीक है.. कोशिश तो करो...."

करुँगी.. अब चोदो भी में झड़ने वे हूँ..." कहते वह गंगाराम को निचे कर उसके ऊपर चढ़ गई और उसे चोदने लगी। अब गांगाराम का डंडा स्नेहा की बुर में निचे से ठोकर मर रही थी। पूरा 10-12 मिनिट तक वह दोनो गुत्तम गुत्ता हुए और "हहा..हां" कहा और पुछा.. कहाँ झाडूं..."

"अंदर ही छोड़िये आज कल में पिल्स यूज़ कर रही हूँ वैसे अंकल क्या आप को एक बात मालूम?"

"क्या...?"

मेरे मम्मी को हमारे बारे में मालूम है..."

"क्या सचमे...."

"हाँ..."

"मम्मी ने कुछ नहीं कहा...?"

"बस यही की सम्भाल के रहना,... कहीं गर्भ न ठहरे..." रुकी और बोली.. अब छोडो अपने मॉल मेरे में.. में तो कब का खल्लास होगयी हूँ,,,"

8, 10 शॉट्स और दिए और उसके अंदर अपना गर्म लास लसा से उसकी बुर को भरने लगा।

बहार खड़े दोनों औरतें एह सब बातें सुन रहि थी। सरोज सोचमे पड़ गयी; क्यों स्नेहा ऐसा कही.. क्या उसे मेरे गंगाराम से चुदाना पसंद नहीं...' वह सोचने लगी।

दोस्तों उसके बाद क्या हुआ.. क्या सरोज गंगाराम से चुदती है... और गंगारम की इच्छा गौरी के बारे में क्या है... स्नेहा क्या करती है.. यह सब जान ने के लये अगली एपिसोड का इंतजार करे।


कहानी जारी रहेगी
 
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Sanjay dham

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गज़ब। मजा आ गया। कहानी के अपडेट देते रहा करो।
 

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गंगाराम और गौरी की चुदाई की मुलाकात का वादा


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जब तक गंगाराम और स्नेहा की चुदाई समाप्त हुयी रात के ढाई बजे थे। कमरे के दोनों ओर खड़ी दोनों औरतें इतना गरमा चुके है कि, जब तक वह किसीसे चुदवाती नहीं उन्हें चैन नहीं आनेवाली थी। सरोज ने तो बदनमे तपती गर्मी के वजह से अपना नाईट गौन ही उखाड़ फेंकी और अपनी पानी छोड़ते चूत में ऊँगली करने लगी। जब की दुसरो ओर खड़ी गौरी ने अपना साड़ी तो नहीं खोली पर, ब्लाउज के पूरे हुक्स खोलकर अपनी बड़े बड़े उरोजों पर हाथ फेरते चुचुक को मसलने लगी। 'बापरे मेरी बेटी क्या चुड़क्कड़ निकली..' गौरी यह सोचते, सीढियाँ उतरने लगी।

एक ओर सरोज ने, अपनी सहेली और गंगाराम की चुदाई देखते देखते, अपनी बुर में पहले एक ऊँगली फिर दो... और बाद में तीन उंगलियां डाल कर ऊँगली करते एक बार झड़ भी चुकी थी, फिर भी उसकी तृष्णा कम नहीं हुयी। अपनी सहेली का रासलीला समाप्त होते ही वह अपनी गाउन पहनी और धीरे से इधर उधर देखते गौरी के पीछे पीछे ही सीढ़ियां उतरी। अपने कमरे मे जाते ही वह अपनी पति के ऊपर गिर पड़ी और उसके लंड को ऐंठने लगी। सरोज का पति अशोक अच्छे नोंद में था फिर भी उसका मस्ताना खड़ा हो गया था। उसके छह इंच लवडे को देख, सरोज में एकबार मुहं बिचकायी पर अपने गाउन उठाकर अशोक के ऊपर चढ़ी, और उसके डंडे को अपनी योनि में घुसेड़कर ऊपर निचे होने लगी। कोई छह, आठ मिनिट बाद उसका डंडा सरो की बुर में अपना रस छोड़ दिया। वह थक कर अशोक के ऊपर से उतरी और उसके बाजु में पड गयी।

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इधर अपने कमरे में आने के बाद गौरी ने भी अपने पति को उठाने लगी। वह इतना गरमा गयी की वह किसि हांल चुदवाना चाहती थी। गौरी का पति पुखट में आयी शराब खूब पीकर घोड़े बेच कर सो रहा था। जब वह नहीं उठा तो गौरी ने उसकी लूँगी उखाड फेकि और उसके मुरझाये औजार से खेलने लगी। उसे सहला रही थी, ऐंठ रही थी, तब भी उसमे कोई हरकत नहीं हुयी तो गौरी उसे अपने मुहं में भी लिया; लेकिन उसमे कोई हरकत ही नहीं हुयी। "हूँ..." कहकर गौरी अपनी साड़ी खींच डाली और खूब चुदी चूत में उंगली करते करते सो गयी।

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गौरी ने जब आंख खोली तो सुबह के छह बज चूका था। उसे अपनी बेटी गंगाराम को बेड टी (Bed tea) देने को कही बात याद आयी और वह उठी और किचन की ओर चली। उसने फ्रिज में से दूध का पैकेट निकली और दूध गर्म करने लगी। दूसरे बर्नर पर उसने चाय का पानी चढ़ाई। पांच मिनिट बाद वह चाय लेकर गंगाराम के कमरे में गयी। उसने जब हाथ में चाय की ट्रे लेकर गंगाराम के कमरे में प्रवेश करि तो सामने का नजारा देख कर उसके दिल धक् धक् करने लगा। लगता है गंगाराम ने रात की चुदाई के बाद वैसे ही नंगा सोगया और सिर्फ शरीर पर एक चादर ओढली है। वह चादर भी अब उस के शरीर से किसक गयी और गंगाराम का नंगापन गौरी के सामने थी।

गंगाराम कि औजार मॉर्निंग इरेक्टन से फुल कड़क हो कर छत की ओर देख रही है। वह इतना कड़क था की उसके नसे भी दिख रहे थे। आगे का चमड़ा फिसलकर उनका बैंगनी सुपाड़ा चमक रहा था। उसे देखते ही गौरी के मुहं के साथ साथ उसकी खूब चुदी बुर में भी पानी आगया। जो चीज रात में अपनी बेटी के अंदर होते देखि थी वह अब उसके आँखों के सामने सिर्फ एक फुट की दूरी पर। वह धड़कते दिल से आगे बढ़ी और बिस्तर के पास जाकर, झुकी और उसे निहारने लगी। जैसे जैसे वह उसे निहार रही थी वैसे वैसे उसकी योनि में खुजली बढ़ती गयी। वह कई वर्षोंसे चुदी नहींथी तो कल रात और अब उस मुश्टन्ड को देख मन में जिग्नासा जगी की जो उसके सामने टुनक रही है वह अपने उसमे घुसी तो कैसा रहेगी।

उसने ट्रे को बयां हाथ से पकड़ी और दायां हाथ से गंगाराम की मर्दानगी को हलके से छूली। वह ढर भी रहीथी की कहीं गंगाराम उठ न जाये। फिर भी हिम्मत करके उसे छूली। "आआआहहहहह..." उसके मुहं से एक मीठी सीत्कार निकली। एक मिनिट तक उसे वैसे ही देखते रहने के बाद कहीं होश आयी। वह झट अपने आपको संभाली और गंगाराम के ऊपर चादर खींच, उसके कंधे को हिलाती बुलाई... "भाई साब.. उठिये.. आपकी चाय ठंडी हो रही है" तीसरी बार जब उसे जोर से हिलायी तो गंगाराम उठा और उसे देख कर कहा "गौरी जी आप...?"

"भाई साब आप के लिए बेड टी लायी हूँ..."

"अरे अपने क्यों तहलीफ किया..."

"तकलीफ की कोई बात नहीं... आपको चाय देने के लिए स्नेहा ने कही थी... तो... चाय पीलीजिए ठंडी हो रही है..."

गंगाराम चाय मग लेकर सिप करने लगा। गौरी वहीँ ठहर कर उसे ही देख रहे थी। उसके आँखों के सामने रात का दृश्य घूम रहा था। वह बार बार गंगारम की जांघों में देख रही थी। चाय पिते ही वह मग लेकर निचे आयी और स्नान करने चाली गयी। उसके पति या उनके बच्चे अभी नहीं उठे। 'लगता है सरोज और उसका पति भी नहीं उठे' सोचते वह नहाने चली गयी और नहाकर आगयी। उस समय सवेरे के सात ही बजे थे। वह अपने लिए चाय बनाकर सोफे पर बैठकर पिने लगी।

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सवेरे नौ बजे का समय था। गौरी किचन में नाश्ता बना रह थी। पहले उसने अपन बेटी से पूछी थी की नाश्ता क्या बनाये तो स्नेह ने उनींदी आवाज में कहीं की वह आलू के पराठे बनाये; तो वह आलू के पराठे बना ने लगी। वह बना ही रही थी की गंगारम किचेन में आगया और पुछा "गौरीजी.. क्या कर रहे है आप...?"

"जी पराठे बना रही हूँ.... स्नेहा ने कही थी की आपको बहुत पसंद है..."

गंगारम जो कल से उसे स्विम सूट में देखा है; और उसके भग का उभार और फांकों को देख कर अपने आप खो बैठा था और मौके की तलाश में था.. आगे आकर गौरी के पीछे उसे लगकर खड़ा हो गया।

गंगारम जब उसे से लग कर खड़ा हो गया तो गौरी का दिल धड़क ने लगी, और गभराहट भी। वह कुछ बोली नहीं धड़कते दिलसे खड़ी रही।

गंगारम उसके भुजाओं पर अपने हाथ रख कर उसे हलके से दबाते "मुझे पराठे तो पसंद तो है पर यह वाला नहीं..." बोला।

गंगाराम इतना करीब रहने से उसकी गभराहट और बढ़ गयी। उसी गभराहट में वह बोली "तो...."

"मुहे स्पेशल पराठा चाहिए..." कह उसने गौरी के कन्धों पर अपने दबाव बढ़ाया।

तब तक उसने महसूस किया की पीछे उसके नितम्बोँ की दरार में कच चुभ रही ...उसे समझ मे आयी की वह चुभने वाली क्या है...अनजाने में ही उसने अपने नितम्बों को पीछे धकेली और पूछी "स्पेसल पराठा.. वह क्या है?"

"वही जो आपके जांघों के बीच मे है.." गंगाराम आगे झुक कर उसके कानो में फुस फुसाया और अपने दोनों हाथों में गौरीके स्तन पकड कर दबा दिया।

"सससससस....ससस... भाई साब आप यह क्या कर रहे हैं.. छोड़िये मुझे..." वह उसके पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करती बोली।

लेकिन गंगाराम की बलिष्ट पकड़ से वह अपने आपको छुड़ा न पायी। भाई साब छोड़िये मुझे... वह फिर से बोल पड़ी।

"गारी जी कसम आपकी फिगर की... कल जबसे आपको मैं देखा है.. मेरा दिल खोगया है.... कसम आपकी...." गंगाराम और जोर से उसके सख्त स्तनों को टीपता बोला।

"भाई साब यह गलत है..." वह बोलने को बोली लेकिन उस सख्त भुजाओं के पकड़ से निजात नहीं चाहती थी।

गंगाराम उसे ताबड़ तोड़ चूमता रहा उसके चूचियों को दबाता रहा और तो और अपना यार को उसके गांड के दरार में भी चुभाने लगा। गौरी एक ओर उसके गर्माहट से बेकाबू हो रही थी... फिर भी बोली "छोड़िये मुझे..अरे बच्चे उठ जाएँगे..." अनजाने में ही उसने अपनी इच्छा जाहिर की। सच मानो तो जब से वह अपनी बेटी की बड़बड़ाहट सुनी थी, तबसे ही उसके मन चटपटा रहा था...कल रात और आज सवेरे जो कुछ उसने देखा उसकी धधकते आग में घी डालने जैसा हो गया।

"पहले वादा करोकी जब बच्चे या और कोई नहीं है तो आप मुझे अपनी पराठा खिलाओगे..."

"ओफ़्फ़्फ़ो... पहले छोडिये.. अरे कोई आजायेंगे,..." वह चटपटाते बोली।

"पहले वादा करो... तभी छोडूंगा..." गंगाराम कहा और अब उसके साड़ी के फ्रिल्स (Frills) में हाथ डालने लगा....

"अच्छा.. देखूँगी...अब छोड़िये..." वह फिर से अपने कूल्हों को पीछे धकेलते बोली।

"देखूंगी नहीं.. खिलावूँगी.. कहो. तभी तो आप को छोड़ता हूँ..." वह अभी भी गौरी को आप कहकर ही सम्बोदित कर रहा था।

"अच्छी बात है खिलादूंगी..." वह हथियार डालते हुए बोली।

"क्या खिलाओगे....?"

"वही.. जो आपने पुछा है..."

"क्या.. क्या पुछा है मैंने ...?"

"स्पेशल पराठा.. और क्या...?

"किसका...?"

अब तो गौरी एक नवयवना की तरह शरमाते कही... "मेरी..." उसके गाल लाल हो गए। उसके सारे शरीर में गरम खून बहनेके साथ साथ हजारों चींटिया रेंगने जैसा लगने लगा।

"कब...? गंगाराम फिर से सवाल किया।

"जल्दी ही जब मौका मिले तब ..." अब वह खुद बेचैन थी गंगाराम की बड़ा लंड अपने मे लेने के लिए। बिचारि सालों से जो चूदी नहीं थी।

"तब तक के लिए..." कहते गंगाराम ने अपनी गाल को उसके सामने ले आया और उसकी उरोजों को जोर से टीपा। गौरी ने शर्म से लाल होती झट अपने होंठ गंगाराम की गालों पर रखी और एक चुम्मा लेकर पीछे हटी।

"नही... ऐसे नही है... एक जोर का चुम्मा दो" कहा और गौरी को अपनी ओर घुमाया, अपने होंठ आगे करा।

"अरे भाई साब, बच्चे उठ जायेंगे ..." वह लजाते बोली।

"इतनी जल्दी कोई उठने वाला नहीं... सब घोड़े बेचके सो रहें हैं..."

पहले से ही शर्म से मरी जा रही गौरी और लाल होगई और ऑंखें बंद करके उसके होंठों पर अपने होंठ रखकर जोर का चुम्मा लेकर जीभ को गंगाराम की मुहं में डालदी।

गंगाराम उसकी जीभ को चूसते उसे जोर से दबोचा। इतना जोरसे की उसके घाटीले चूचियां गंगाराम सीने में रगड़ लेने लगी। गौरी ने महसूस किया की उसके टांगों के बीच मे गंगारम की मर्दानगी ठोकर मार रही है। वह मुश्किल से अपने आप को छुडाली और वहां से भागी। गौरी के थिरकते नितम्बों को देखते वह अपने यार को सहलाने लगा।

-x-x-x-x-x-x-x-x-x-x

गंगाराम का जन्मदिन के फंक्शन के बाद पंद्रह दिन गुजर गए। उस दिन रविवार था। दोनों सहेलियां, स्नेहा और सरोज का मुलाकात एक बार फिर हुयी। दोनों ही सरोज के घर में मिल रहे है। सरोज; स्नेहा को गले मिली अंदर लेगई और चाय पिलाई। दोनों सहेलियों में कुछ देर इधर उधर की बाते होने का बाद, स्नेहा पूछी "अंकल ने क्या गिफ्ट दिए थे तुझे...?"

"ठहर बताती हूँ..." कह सरोज अंदर गयी और उसे दिए गए सलवार सूट, और उसके पति के लिए दिए गए pant and shirt बताई। फिर वह बोली अंकल ने बहुत कॉस्टली गिफ्ट्स दिए है सबको; मैने मालूम किया जो सूट उन्होंने दिए हैं उसका दाम 2500 के ऊपर ही है..."

"हाँ.." स्नेहा बोली अंकल ने सबके लिए महंगे दाम वाले गिफ्ट्स दिए हैं। फिर वह दोनों कुछ बाते करने का बाद स्नेहा पूछी... 'सरोज.. तू देखि है ना अंकल का.. कैसा लगा तुम्हे ..."

"संच में यार जब तुम बोल रही थी तो मैंने विश्वस ही नहीं किया लेकिन उस रात देखने का बाद मुझे मानना पड़ा की तुम ने सही कहा है.. बापरे.. कितना मोटा और लम्बा है उनका..." एक क्षण रुकी और फिर बोली "वैसे साली.. स्नेहा तू भी कुछ कम नहीं है... ऐसे गांड उछाल उछाल के चुद रही थी तू"।

"हाँ यार अंकल को दखते ही मैं अपने आप को भूल जाती हूँ..." स्नेहा बोली।

"और चुदाई भी क्या कर रहे थे.. बापरे बाप.. देखकर तो मैं इतना गरमा गयी थी, मैंने तो अपना नाईट गाउन ही निकल फेंकी..."

"क्या सच में..?." स्नेहा आश्चर्य चकित होकर पूछी।

"हाँ यार... तुम लोगों कि चुदाई देखते मैं पूरी तरह नंगी होगयी और एक हाथ से मेरी मस्तियों को दबाते दुसरी मेरी मुनिया को सहलाते सहलाते दो बार झड़ी।"

"हमारी चुदाई देख कर तुझे क्या लगा...?"

"लगना कया.. बस सोच रही थी की उस मुस्सल से कब अपने ओखली में लूंगी.. वैसे स्नेहा तूने अंकल से ऐसा क्यों कहा की मैं वैसी लड़की नहीं हूँ..वगैरा वगैरा..क्या मेरा तुम्हारी अंकल से चुदवाना तुझे पसंद नहीं...?"

"मैंने ऐसा कब कहा...?"

"फिर तुम अंकल से ऐसा क्यों कहीं की सरोज वैसी लड़की नहीं है..वह नहीं मानेगी... "

"अरे पगली.. मैंने तेरा मान रखने के लिए ही ऐसा कही है.. अगर मैं उससे कहूं की तैयार होसकती है तो तू उसकी नजरों में चीप (cheap) हो जायेगी, इसी लिए....अब देख अंकल को तुझे चोदने के लिए कितना तड़पेंगे... तू भी थोडासा नखरा करना...ठीक"

"हँ यार समझ गयी.. Thank you, वैसे तुम कब करा रही हो अंकल से मेरी चुदाई..."

"डोंट वर्री डियर जल्दी ही.." स्नेहा सरोज के गाल को पिंच करते बोली।

"वैसे यार स्नेहा.. तुम मेरी एक सहायता करनी है..." सरोज बोली।

"अरी बोलना क्या हेल्प चाहिए.."

प्रॉमिस कर की तुम यह हेल्प करेगी और मुझ पर नाराज नहीं होगी..."

"चल किया प्रॉमिस..."

"देख स्नेहा.. प्रॉमिस से फिर नजाना..."

"क्या सरोज; तू भी,,,, तुझे मुझ पर विस्वास नहीं..."

"ऐसी बात नहीं हैं..:

"तो बोलना क्या हेल्प चाहिए...? कुछ पैसे चाहिए क्या...?"

"नो.. नॉट मनी..." (Money)

"तो फिर..."

"यार बुरा मत मानना .. अशोक तुझ पर फ़िदा है... बस एकबार उसकी ख्वाईश पूरा करदो ..."

"Kyyaaaaaaa...." स्नेहा चिल्लायी। "सरोज तुम्हे मालूम भी है की तम क्या पूछ रही हो...?" बोली।

"हाँ...यार.. उस दिन अशोक ने तुझे स्विम सूट में देखलिया है तब से वह पागल होगया है। हमेशा 'स्नेहा..स्नेहा..' का नाम जप ने लगा है.. यहाँ तक की रात में मुझे लेते समय भी वह तेरा नाम से झड़ने लगा है ..." सरोज बोल रही थी और स्नेहा उसे विस्फारित नेत्रों से देख रही थी।

"प्लीज स्नेहा.. मेरी अच्छी सहेली.. मेरे खातिर एक बार... मानले..."


कहानी जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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UPDATE 27

गंगाराम और गौरी की चुदाई की मुलाकात का वादा-2

स्नेहा: "सरोज यह तुम क्या बोल रहि हो... ऐसे कैसे हो सकता है...?"

सरोज: "स्नेहा क्या मतलब है तुम्हारा; मैं समझि नहीं...?"

"अरे.. वह तुहारा पति है.. मेरा सहेली का पति... तू चाहती है कि मैं मेरी सहेली को धोका दूँ.."

"इसमें धोके की बात कहाँ से आगयी.. मैं खुद ही तो पूछ रहि हूँ... धोके की बात तब अति है.. जब तू मेरे पीछे मेरे पति से सम्बन्ध बनाये तब; यहाँ तो मैं खुद ही बोल रहि हू.."

"लेकिन.. लेकिन..." स्नेहा रुक गयी...

सरोज उसे ही देख रही थी...

"लेकिन सरो.. उन्हें मैं अशोक भैया बुलाती हूँ..."

"वह तेरा कौनसा सगा भाई है...और तुझे तो मालूम हि है की आज कल सगे भाई बहन ही ऐसे सम्बन्ध बना रहे है..."

स्नेहा कुछ बोलती नहीं है।

"स्नेहा, तुम्हे कहीं गंगाराम को धोका देने की बात तो सता नहीं रही..." सरोज पूछी।

"नहीं.. वह कौनसा मेरे से ब्याहा पति है..."

"तो क्या सोच रही है...?" सरो बोली और कुछ क्षण बाद फिर बोली.. "अगर तुम मान गयी तो मुझे कुछ फ्रीडम मिलेगी...?"

स्नेहा ने अपनों सहेली की ओर सवालीया नजरिया से देखि।

"हाँ.. मुझे कुछ स्वतंत्रता मिलेगी... नहीं तो हर बातपर पाबन्दी.. कही जावूं तो पूछके जाया करो... क्यों जारहि हो..? जाना जरूरी है क्या..." सैकड़ों सवाल..मैं अपनी मर्जी से कहीं जा नहीं सकती, खरीद नहीं सकती.. छी ..छी.. हर बात पर पाबन्दी.. अगर तुम मान गयी तो; उस पर मेरा भी पकड़ होगा..अब मैं उसे अपने कण्ट्रोल में रख सकती हूँ.. दबा सकती हूँ..."

"सरो...क्या तुम पर इतने पाबंदियां है... कभी बोली नहीं..."

"क्या बोलूं यार...यह तो रोज रोज का किस्सा है...उसे तो बस उसका घरका काम करने के लये नौकरानी चाहिए.. रात में चोदने के लिए चूत चाहिए.. बस.. मैं उसी तक सिमित हूँ..."कहते सरोज के आँखों में आंसू आगये।

"सरो.. अगर यह बात है तो; मैं तुम्हारी बात मानती हूँ... तुम्हारे लिए.. सिर्फ तुम्हारे लिए.. तुम्हारे पति के साथ बिस्तर गर्म करूंगी..." स्नेहा ने भावुक होकर कही।

"थैंक्यू स्नेहा।। थैंक्यू वैरी मच... तुम जो कहो वह मैं करूंगी...प्रॉमिस.."

"ठीक है.. फिर कब..." पूछी स्नेहा।

"मैं तुम्हें बाता दूँगी..." सरोज बोली और दोनों सहेलियाँ एक बार फिर एक दूसरे को गले लगाकर अलग हुये। स्नेहा अपने घर के लिए निकल पड़ी।

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सवेरे के दस बज चुके हैं। गौरी किचेन अपने लिए चाय बना रहिथी। उसी समय उसका मोबाइल बजा; उसने देखि की वाह काल गंगाराम की है तो उसके होंठो पर हलकि सी मुस्कान आयी है। गंगाराम के घर में जब से उसने गौरी के मुम्मे दबाते चूमा है; और साड़ी के ऊपर से ही उसकी उभार को जकड़ा है, गौरी की चुदाने की इच्छा दुगनी होगयी है। वहां से आने से पहले गंगाराम ने गौरी के मोबाइल नंबर लिया था। एक हप्ते से वह हर रोज इस समय यानि की दस, साढे दस के बीच फ़ोन पर बातें करने लगा।

गौरी को पहले एक दो दिन तो चिढ चिढ हुयी, लेकिन तीसरे चौथे दिन से उसे बात करने में रूचि होने लगी। अब वह उसका फ़ोन की इंतजार करने लगी। पहले एक दो दिन तो उसने आठ बजे फ़ोन करने लगा।

"भाईसाब इतना सवेरे फ़ोन मत कीजिये... इस समय सब बच्चे घर में रहते हैं; आपका फ़ोन कोई और उठा सकते हैं..." वह बोली।

गंगाराम के लिए यह पॉजिटिव पॉइन्ट थी, तो उसने पुछा... "तो गौरी जी कब फ़ोन करूँ.." पूछा।

"दस के बाद कभी भी...." कही उसके दिल में लड्डू फूट रहे थे।

आपको मेरा फ़ोन आना पसंद हैं न...?"

"हम्म..."

"अरे गौरीजी मुहं से बोलिये.. क्या आपको मेरा फ़ोन आना पसंद है...?"

"हाँ.. सच मानों तो मैं आपके फ़ोन का इंतजार करती हूँ.." और फिर से बोली "भाई साब, आप मुझे गौरीजी मत कहिये... मुझे अजीब सा लगता है... आप मेरे से बहुत बड़े है...प्लीज..."

"तो कैसे बुलावूं ...?

"सिर्फ गौरी कहिये बस..."

"ठीक है गौरी मान गया तुम्हारी बात... प्छ प्छ प्छ एक के पीछे एक तीन किस करने की आवाज आये।

"क्या.. सचमे..."

"हूँम..."

"थैंक यू डार्लिंग..."

डार्लिंग का शब्द सुनते ही गौरी के जांघों की गहरायी में चुदाई के कीडे रेंगने लगे।

जब से वह फ़ोन करने लगा और फ़ोन उठाते ही पहला उसके कान में ' प्छ प्छ प्छ..पपच' के आवाजें आने लगे। उस चुम्बन की शब्द सुनते ही वह और गर्म होने लगती। आज भी वही हुआ। फ़ोन उठाते ही उसकी कानों में चूमने की आवाजें आने लगी।

"अरे..अरे.. रुको जरा .. इतना भि क्या चूमना .." वह खिल खिलाते कही।

"क्या करूँ डार्लिंग... अब मेरे से सहा नहीं जाता। बोलो कब होगा हमारी मिलन और कब खिला रहीहो अपने पराठा।

"मौका नहीं मिल रहा है... मै क्या करूं... आपको पराठा खिलने के साथ, मुझे भी आपकी मूली को चखना है... मै भी तड़प रही हूँ...आपकी मूली के लिए..." बोलने को बोली लेकिन बाद में सोचने लगी की वह ऐसे कैसे बोलदी है।

वास्तव मे गौरी में भी अब सहना मुश्किल हो रहा है। इतने दिन, दिन क्या सालों गुजर गए उसे चुदाई करके .. 'साला हरामी पीकर दिन भर सोये पड़ा रहता है..' वह अपनी पति के बारे में सोची... लेकिन जब से वह अपनी बेटी की नींद में 'अंकल आपका बहुत बड़ा है.. और मोटा भी जरा धीरे से पेलिए..' कहकर बड़ बढ़ाते सुनी है; तबसे ही उसके चूत में खुजली होने लगी। और जब वह गंगाराम की जन्मदिन पर उसकी बेटी कि गंगाराम की हलब्बी लंड से चुदवाती; और दूसरे दिन मॉर्निंग गंगाराम की मूली को पूरी नग्नता में देखि है ... उसकी चूत की खुजलि बढ़ ही रही थी। अभी भी वह गंगाराम से बातें कर रही थी और साथ मे अपनी साड़ी उठके उसमे ऊँगली करने लगी।

"डार्लिंग मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ..." वह उधर से बोला।

"क्यों....?"

"अरे क्यों क्या... तम्हारी पराठा जो खानि है मुझे और तुम्हे मेरी मूली को चखाना जो है.. ठीक है अब रखता हूँ जल्दी ही तुम्हे मेरे यहाँ आने कि जुगाड़ करता हूँ...तब तक के लिए..."उम्मम्मममआ" एक लाम्बा किस किया और फ़ोन काट दिया।

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रात के साढ़े दस बजे हैं। स्नेहा अपनी नौकरी से घर आयी। तब तक स्नेहा का भाई और बहन सोचुके हैं। माँ गौरी उसकी इंतजार में जागी है और खाना भी नहीं खायी। दोनों माँ बेटी खाना खाने लगे। "माँ, तम मेरे लये वेट मत करो..तुम खाना खालो ..." स्नेहा निवाला मुहं में रखते माँ को देख कर कही।

"स्नेहा बेटी मझे अकेले में खाना अच्छा नहीं लगता... वैसे भी मैं तुम्हारे लिये वेट कर सकती हूँ.. तुम मेरी चिंता मत करो..." कुछ देर की खमोशि के बाद ....

"वैसे माँ तुमने गंगाराम अंकल के यहाँ कौनसा पराठा बनायीं थी...?"

"आलू पराठे क्यों क्या हुआ...?" गौरी बेटी से पूछी।

"कुछ नहीं माँ... अंकल कह रहे थे की तुमने पराठे बहुत ही जायकेदार और सॉफ्ट बनायीं है...। वह तो तुम्हारे पराठे का तारीफ करते थकते नहीं... वैसे वह कह रहे थे की परसो उनके यहाँ कुछ दोस्त आने वाले हैं.. और वह चाहते हैं कि परसों भी तुम वैसे ही पराठे बनाओ... अंकल मुझसे कह रहे हे की मैं तुम्हे वहां भेजूं.. तुम जाओगी क्या..?" स्नेहा पूछी।

यह बात सुनते ही गौरी की जांघों में बीच दरार में कुछ नमी सी आगयी। उसके छातिया कुछ वजनी होगये है... 'तो यह जुगाड़ किये हैं उन्होंने..' वह सोची। वह अपने चूत को दबाने की इच्छा को दबाते वह बोली

"बेटी.. उस दिन भाईसाब क्या कह रहे थे... वह कह रहे थे की हमारे में उन्हें एक परिवार (Famly) मिल गई.. तुम देखि हो की उन्होंने हमारे लिए कितने कॉस्टली गिफ्ट्स दिए हैं... और तो और वह तुम्हारे बहुत ख्याल रखते है.." गौरी उस दिन स्नेहा की चुदाई को याद करते बोली..." ऐसे में मैं न जावूं तो.. वह कुछ समझ बैठे तो..."

ठीक है माँ.. परसों तुम 11 या 11.30 तक जाओ... पूजा और गोपि तो कालेज और स्कूल जाते है... बाबा तो बस पङे पडे सोए रहते हैं.. तुम चली जाओ..." स्नेहा बोली।

कहानी जारी रहेगी
 

aamirhydkhan

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UPDATE 28

गंगाराम और गौरी की चुदाई की दास्ताँ ।

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जैसे ही गौरी गंगाराम की कमरे में प्रवेश करि; गंगाराम के लंड का तनाव उसके लुंगी में अब उभार बनाने लगा था जो गौरी की आंखों से भी छिपा नही था।

इस कमरे में अने के एक घंटा पहले ही वह गागरम के यहाँ आई थी। उस दिन उसने बदन को खूब घिस घिस कर स्नान करि और और वहां के बालों को साफ करि। गंगाराम की दिए हुई महँगी वाली कॉटन साड़ी और उस से मैचिंग करती ब्लाउज पहनी, अपने बालों को जुड़ा बनाकर उस पर जाली (net) चढ़ाकार चंपा के माला जुड़े की में फिरोई, थोडासा मेकअप करि और अपने को आईने में देखि थो वह खुद अपने आपको पहचान नहीं पायी। गौरी का तो पूरा काया कल्प होगया।

"ओह... माँ.. तुम कितनी सुन्दर हो... जमाना होगया तुमको ऐसे देख कर.." उसकी बेटी स्नेहा कही और माँ के गाल को जोर से चूमली।

स्नेहाने ही ऑटो बुलाकर माँ को ऑटो में बिठाई और एड्रेस बोली। गौरी में उत्तेजना के साथ टेंशन भी हो रहा था। आज वह चुदाने जा रही है... इस ख्याल से ही उसकी चूत खूब उभर चुकी है और सुर सूरीसी होने लगी। वह सोच रही थी की गंगाराम उसे देखते ही उसे जोर से दबोचेगा और ताबड़ तोड़ चूमना शरू कर देगा...

लेकिन जैसा वह सोची थी वैसा नहीं हुआ; बहुत ही जेंटलमैन की तरह बिहेव किया। वैसे गंगाराम था तो गौरी की इंतजार में ही। लेकिन जब वह ऑटो से उतरी तो उसे आश्चर्य से देखते पुछा.."आप..."

"भाईसाब में हूँ गौरी..." वह बोली तो...... "ओह माय गॉड...गौरी जी आप.. मैं तो आपको पहचाना ही नहीं.. माय गॉड कितने सुन्दर हो आप.. आईये आईये.." वह उसे अंदर बुलाया और सोफे पर बैठने को कहा।

"गौरी सोफे पर बैठते बोली "भाईसाब आप मुझे 'जी' मत कहिये.. आप मुझसे बड़े है, ऐसा बोलने से, मुझे कुछ अजीब सा लगता है..."

"फिर क्या बोलूं..."

'गौरी कहिये... 'जी' मत लगाइये.. और 'आप' मत कहिये;" वह कुछ लजाते बोली।

फिर दोनों एक दूसरे की कुशल मंगल पूछे। गंगाराम गौरी के घर के बारे में और बच्चों के बारे में तो गौरी ने भी उसके बेटों, और बहुओं के बारे में पूछी। तब तक दो पहर के एक बज चुके थे। गंगाराम ने बाहर से खाना मंगाया था तो दोनों उसे खलिये और उसके बाद गंगराम ने उसे एक कमरा दिखाकर उसे आराम करने को बोला। वह अपने तरफ से कोई जल्दबाजी नहीं की है, उसे मालूम है की वह आई हि उस काम के लिए....

गौरी कमरे गयी और बेड पर गिरि.. मखमली गद्दी में वह घांस सी गई। वह सोच रही थी की गंगाराम आएगा, लेकिन वह नहीं आया। 15, 20 मिनिट तक भी वह नहिं आया तो गौरी हीं ऊपर उसके कमरे की तरफ चल पड़ी। जाने से पहले उसने अपनी ब्रा खोलकर गयी। जैसे ही वह गंगाराम के कमरे मे अंदर गयी....

जैसे ही गौरी गंगाराम की कमरे में प्रवेश करि; गंगाराम के लंड का तनाव उसके लुंगी में अब उभार बनाने लगा था जो गौरी की आंखों से भी छिपा नही था।

गौरी अपना ऐसा जोरदार स्वागत देखकर खुश हो गयी, वह सोची नहीं थी की ऐसा स्वागत होगा। अब उसकी हवस में और भी इजाफा हो गया, वो तेज़ कदमो से आगे बढ़ते हुए गंगारम के पास जा पहुंची, और इससे पहले की गंगाराम कुछ बोल पाता, गौरी उसके होंठों पर टूट पड़ी, ऐसा लग रहा था की वो पागल सी हो चुकी है, अपनी मुम्मों को गंगाराम छाती पर दबाते, रगड़ते हुए वो उससे चिपक सी गयी। गंगाराम भी उसे अपने बाँहों में जकड़ा और अपने होंठ गौरी कि तपते होंठों पर लगाया। गौरी पागलों की तरह गंगारम के होठों को बुरी तरह से चूस रही थी।

गांगराम ने भी इस मौके को न चूकने को सोचते गौरी को अपनी बाहों में भरकर अपने हाथों से उसकी गदरायी गांड को सहलाना शुरू कर दिया। अब उसे पता चला की गौरी कितना गरमा चुकी है; उसने गौरी के साड़ी के ऊपर से ही उसके गांड के दरार में अपनी उंगलियाँ उसकी गांड की दरार में उतार दी..

"आआआआअहहsssssssss भाई...सा....बsssssssssssssssss.. उम्म्म्मममममम," कही।

उसकी थर थराती हुई सी आवाज़ ने गंगाराम के अरमानो को और भड़का डाला, और उसने गौरी को बेड पर चित लिटाकर अपना मुँह सीधा गौरी के बड़ी बड़ी मुम्मों पर रख दिया और साड़ी हटाकर ब्लाउज के उपर से ही उसकी ब्रेस्ट पर लगे दाने को मुँह में लेकर चूसने लगा.. जैसे ही ब्रेस्ट उसके मुहं में आयी वह जान गया की गौरी ने ब्लाउज के अंदर ब्रा नहीं पहनी।

"ऊऊऊऊऊऊओह भाई सा.सा सा ..ब ... माई डार्लिंग ...... उम्म्म्मममममममम,..." कही। अब वह भी गंगाराम को माई डार्लिंग.." कही और लाज से उसकी छाती में अपना मुहं छुपाली।

गंगाराम ने गौरी की चूची कि चुचुक को होंठों से पकड़ते ही गौरी की सारा शरीर झन झाना उठा। अब वह खुद अपनी ब्लाउज खोलकर अपनी नंगी ब्रेस्ट गंगाराम के मुँह में ठूस दी..।

गंगाराम के यह पहला मौका था उसके लिए, उसने जी भरकर उन प्यारी, प्यारी सी चूची को देखा और फिर धीरे धीरे अपनी जीभ से उन चट्टानों को चाटने लगा।

उसकी खुरदरी जीभ जैसे जैसे अपने वक्ष को चाट रही है, गौरी मे आग धधक रही थी गंगाराम के सर को अपने दुद्दुओं पार दबते गौरी ने ज़बरदस्ती अपना एक मुम्मा उसके मुँह में ठूसा और ज़ोर से चिल्लाई .. "काटो.. भाई सब.. जोर से काटो.. आआआह्ह्ह्ह बाईट करो भाईसाब.... खा जाओ इनको ..."

गंगाराम तो ऐसी गर्म औरत को पाकर अपने आपको खुश किस्मत वाला समझने लगा, उसने तो सोचा भी नही था की ऐसी साधारण दिखने और रहने वाली औरत बेड पर इतनी गर्म होगी। उसने धीरे- धीरे गौरी के साड़ी और पेटीकोट उतार कर साइड में फेंक दी, ब्लाउज तो गौरी खुद खोल चुकी थी, अब वो बिस्तर पर पूरी नंगी पड़ी थी, और गंगाराम भी पलक झपकते ही नंगा हो गया।

गौरी ने अपने आक्रमण करि के लंड की तरफ देखी और शरमाते हुए अपनी नज़रें झुका ली, 'हाय रे इतना बड़ा...' वह सोचने लगी।

वह नंगी लेटी गौरी के पास पहुँचा और अपने लंड को उसके हाथ में पकड़ा दिया, उसकी मुट्टी में वह बहुत गर्म महसूस करि। उत्तेजना और गभरहट से उसे उपर नीचे करने लगी..फिर गंगाराम ने उसके सिर पर हाथ रखकर उसे नीचे जाने के लिए कहा, उसने गौरी के मुंह का निशाना साधकर अपना लंड सीधा इसके प्यारे से मुंह मे डाल दिया, वह भी किसी बेहतरीन खिलाड़ी की तरह गंगाराम के लंड को जोर जोर से चूसने लगी, जल्द ही उसका लंड अपनी पूरी औकात में आ गया, और वो पूरी तरह तनकर गौरी के गले की गहराइयों को नाप रहा था।

तकरीबन 10 मिनट तक गंगाराम अपना लिंग उससे चुसवाता रहा, अचानक उसे लगा कि वो झड़ने वाला है, पर वो ये नही चाहता था कि वो गौरी की चुदाई करने से पहले झड़े, इसलिए उसने तुरंत अपना लंड गौरी के मुंह से निकाल लिया।

गौरी को ऐसा लगा जैसे उसका प्यारा सा खिलौना किसी ने छीन लिया हो, उसने हसरत भरी निगाहों से गंगाराम की ओर देखा, और पूछी "भाईसाब, आपने ऐसा क्यों किया?"

"मैं पहले तुम्हारी बुर को चोदकर उसमे झड़ना चाहता हूँ..." कहा।

अगले ही पल गंगाराम ने उसे पकड़कर उसे बिस्तर पर सीधा लिटा दिया और फिर उसकी टांगे चौड़ी करके उनके बीच लेट गया..अब उसकी आँखो के सामने थी गौरी की, अपने पति से खूब चुदी चूत थी। उसकी चूत खूब उभरी और सफाचट थी, लगता है वह यहाँ आनेसे पहले ही साफ की हो। गंगाराम ने धीरे से अपनी जीभ को उसकी भाप छोड़ती चूत से टच करवाया.....।

गंगाराम को ऐसा लगा जैसे उसने किसी गर्म मलाई से भरे डिब्बे में मुँह डाल दिया है....गरमा गरम मलाई के साथ साथ गर्म हवा के भभके निकल रहे थे उसकी चूत में से..

जैसे जैसे वो गौरी की चुत को चूस रहा था...वैसे वैसे गौरी की सिसकारियाँ भी तेज होती जा रही थी...ऐसा लग रहा था जैसे गंगाराम अपनी जीभ और दाँतों से उसके जिस्म पर कब्जा करता जा रहा है और वह अपने होशो हवस खोकर पागलों की तरह चिल्लाती जा रही थी.

आआआआआआआआहह..........मा..आआआआआअ,,र डालोगे आप तो.........आआआआआअहह एसस्स्स्स्स्स्स्सस्स भाईसा...ब ... चाटो ....सक्क मि.... ईीईईईईईईईईईईईईई....और ज़ोर से........उम्म्म्ममममममममममममम bhaaaaaai sssaaaaabbbb ....आआआह "

और एक वक़्त तो ऐसा आया की गौरी ने उसके सिर को ज़ोर लगाकर दूर हटाने लगी...शायद उसकी चूत को चूसते हुए वो उसे झड़ने के उस मुकाम तक ले आया था जिसके बाद जरा सा टच भी संवेदन शील लगता है, और आखिर में आकर जो सेंसेशन महसूस होता है, वो गौरी को होने लग गया था.. ऐसे सेंसेशन और उत्तेजना पाकर तो उसे सालों गुजर गए।

गंगाराम अपने में ठान कर बैठा था की आज वो गौरीकी चूत की गर्मी को पूरी तरह से दूर करके रहेगा, इसलिए वो भी अपना काम कंटिन्यू करता रहा...चूसता रहा गौरी की बिना बालों वाला गर्म चूत को...अपने होंठों के बीच उसके निचले लिप्स को दबाकर जोरों से स्मूच करता रहा ...और तब तक करता रहा जब तक गौरी की आँखे नही फिर गयी...वो बेहोशी जैसी अवस्था में पहुँच गयी, अत्यधिक उत्तेजना के शिखर तक पहुँचकर ....और उसी बेहोशी में जब वो झड़ी तो उसके शरीर में ऐसे कंपन हुआ जैसे उसके शरीर पर कब्जा की हुई कोई आत्मा बाहर निकल गयी हो...और जोरदार तरीके से झड़ने के बाद वो निढाल सी होकर नीचे गिर पड़ी.

"आआआआआआआआहह ...... म्म्म्मममममममममम .. मेरे राजा आआअह्ह्ह ......"

गौरी उसकी टांगे को पकडे अपनी चूत में भाईसाब डुबकी लगाते हुए देखने लगी। गंगाराम ने अपने होंठ खोलकर उसकी चूत को पूरा अपने कब्ज़े में ले लिया और उसके साथ फ्रेंच किस्स करने लगा..इतना मज़ा मिल रहा था उसे, बड़ी भीनी - भीनी सी महक आ रही थी उसकी चूत से, गंगाराम ने अपनी जीभ को जितना हो सकता था बाहर निकाला और उसकी चूत की परतें खोलकर जीभ को अंदर धकेल दिया..

गौरी को लगा जैसे कोई खुरदरी नुकीली चीज़ उसके अंदर जा रही थी, वो सिसक उठी, और अपनी टांगे उसने गंगाराम की गर्दन में लपेट कर उसे बुरी तरह से जकड़ लिया, जैसे कुश्ती (wretsling) चल रही हो दोनों के बीच....

गंगाराम ने अपना मुँह गौरी की जांघों से बाहर निकाला और बोला: "कैसा लग रहा है जानेमन ..."

अत्यधिक् उत्तेजित गौरी ने बेड की चादर को पकड़ा और चिल्लाई "आआआआआआअहह भाई साब ... उम्म्म्ममममममममममम.. बहुत अच्छा .. मजा आ रहा है...... और करो...."

गंगाराम फिर से उसकी चूत की खुदाई करने में जुट गया.. और कुछ ही देर में उसने अपने मुँह से उसकी चूत को पूरा सींच दिया, अब वो समझ गया की अब गौरी अगले कदम के लिए तैयार है ..

वह थोड़ा उपर उठा और घुटनो के बल बैठ गया, उसकी नज़रो के सामने गौरी की रसीली चुत पानी और थूक में लथपथ होकर चमक रही थी, गंगाराम से अब बर्दास्त करना मुश्किल था, इसलिए उसने अपने रॉड की तरह सख्त हो चुके लंड को पकड़ा और उसकी चूत पर अपना लंड रगड़ने लगा।

गौरी को ये अहसास बहुत भा रहा था, उसकी सांसे भारी होने लगी थी, इधर गंगाराम लगातार अपना लंड उसकी रसीली चुत पर रगड़ रहा थ। गौरी से अब बर्दास्त नही हुआ और वो खुद ही बोल पड़ी, Bhaaaaai Saaaaab आआआ प्लीज़ अब डाल दीजिए आपका ये मूसल लंड मेरी चुत में, उड़ा दीजिये मेरी चुत की धज़्ज़िया, प्लीज़ मेरे राजा.. माय डार्लिंग जल्दी कीजिये अब देर न करो..."

गंगाराम ने भी अब उसे और तड़पाना ठीक नही समझा और धीरे-धीरे अपना लंड उसकी चुत के छेद में फंसाया और हल्का सा धक्का मारकर अंदर दाखिल हो गया।

"आआआआअहह उन्ह्ह्ह्ह...ह्म्प्फ़्फ़्फ़्फ़... ओहहहहहह यस ओहहहहहहह यस"

ओह्हहहहहह उम्ह्ह्ह्ह्ह भैय्या ssssss....भैय्या..ssssssss... करो प्लीज भैय्याययययययआआआ.."

गौरी के इतना कहने की देर थी की गंगाराम ने एक जोरदार झटका मारा, और उसका 9 इंच से भी बड़ा लंड गौरी लार टपकती चूत के अंदर पूरी तरह दाखिल हो गया..

"आआआआआआययययययययययीईईईईईईईईईईईई .... मररर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर गयी ...... अहह ," वो दर्द से बिलख उठी, हालांकि उसकी चूत खूब चुदी थी लेकिन सालोंसे कोई जोतने वाला नहीं था तो वह बंजर बन तंग हो चुकी है; इसी लिए वह दर्दसे चीख पड़ी।

उसकी बेटी स्नेहा से सुनी बातोंसे गंगाराम समझ गया की गौरी की तंग होगी; लेकिन इतना टाइट होगी यह नहीं सोचा था। गंगाराम थोड़ा सा रुक गया, गौरी को सच में थोड़ा दर्द हो रहा था,..पर उसके गधराये नंगे जिस्म की सुंदरता देखकर गंगाराम का लंड बागी सा हो गया..उसने सोच लिया की आज तो कम से कम 3 - 4 बार वो उसकी चुदाई करेगा।

कुछ समय रुक कर वह फिर से शुरू होगया।

अब गंगाराम, गौरी की चुत में ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा, हर धक्के में उसका हलब्बी लंड गौरी की चुत की जड़ तक पहुंच जाता, अपनी चुत की इस जबरदस्त कुटाई से उस औरत के जिस्म में लगातार सिहरन सी पैदा हो रही थी, और उसकी चुत लगातार पानी बहा रही थी, गौरी की चुत से निकल रहे पानी की वजह से गंगाराम का लंड चिकना होकर सरपट गौरी की चुत की गहराइयों को नाप रहा था; दोनों एक दूसरे में पूरी तरह मगन होकर जोर जोर से आहे भर रहे थे, क्योंकि उन्हें पता था; इस समय वहां आनेवाला कोई नहीं है और न वह डिस्टर्ब होंगे; इसलिए वो दोनों दुनिया से बेखबर होकर दमदार चुदाई में लगे पड़े थे।

"आआह्ह्ह... स्स्स्सस्म्ममं... यह.. चोदो मुझे उफ्फो... बहुत खुजली हो रही है मेरे चूत में ,,,और जोर से.. जोर से.... बस...पेलो..." गौरी उत्तेजना में चिल्लाई जा रही थी। उसे ऐसा लग रहा है जैसे वह स्वर्ग में विचर रही हो... अपने दोनों पैरों को उसने गंगाराम के कमर के गिर्द लपेटी, और उसे अपने ओर दबाने लगी।

"गौरी.. माय डार्लिंग.. वाह क्या चूत है तुमहारी अभी भी इतना तंग है.. जैसे कुंवारी लड़की की... लो.. अब आ रहा है मेरा शॉट.. यह.." कहते गंगाराम भी शॉट पे शॉट दे रहा था।

"हाँ... भाई साब हाँ..बस पेले जाओ अपना मुस्सल मेरी चूत में.. उफ़ कितना बड़ा है आपका ....मेरी बच्चेदानी को टच कर रही है..." वह जोश मे आकर बड़ बडाते उसके लंड को और अंदर लेने केलिए अपना गांड उछाल रही थी।

जैसे जैसी गंगाराम के शॉट पे शॉट दिए जा रहा था गौरी का चिल्लाना भी बढ़ रहा है,,,

"भाई साब ...... आअह्ह्ह ... मेरी होने वाली है.. हहा..में झड़ने वाली हूँ.. मारो.. शॉट.. और जोरसे.. अहह चोदो ओओओओओओ fuckkkkk meee ...ईईईईई गयी..यी..यी..यी" वह कही और उसका शरीर एक झटका लिया और फिर वह निढाल होकर पड़ी रही। तब तक वह तीन बार झाड़ चुकी थी।

गंगाराम भी अब और दूर नहीं था.. जैसे ही वह बोली की खललस हो रही है उसने अपना लंड को और जोरसे अंदर पेले जा रहा था। ऐसे ही धमसान चुदाई और पांच मिनिट करा और वह भी अपने गर्म वीर्य उसकी तपती भट्टी मे भरने लगा। अब दो जिस्मों गर्मी अब शांत पड रही है। उसके आखरी बूँद भी गौरी चूत में गिरने का बाद वह भी उसके ऊपर शिथिल पड गया।

ऐसा ही गंगाराम और गौरी ने उस शाम तक तीन बार चुदाई कर चुके है। और हर बार गौरी कम से कम दो बार झड़ी। गौरी तो गंगाराम की लंड की दीवानी बन गयी। तीन बार चुदाई और एक बार अपने मुहं में लेकर चूस चूस कर उसे निचोड़ी। फिर भी उसका मन नहीं भरा।

वह फिरसे चुदाने के लिए इतना आतुर थी की वह पूछ ही बैठी "भाई साब फिर कब...?"

"जल्द ही.. मुझे भी दिल नहीं भरा है.. एक बार मौका निकालो.. दो तीन दिन यहाँ रहने की.. खूब मजा लूटेंगे" वह कहा।

गौरी से हामी भरी और उसे बहुत ही उदास मन से विदा ली है।


कहानी जारी रहेगी

 

RajaRam1980

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Sanjay dham

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बहुत ही ज्यादा कामुक और गरम मसाले से भरपूर कहानी
 
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